Fantasy मोहिनी

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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

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मैं पशोपेश में पड़ गया। कुछ जवाब देते नहीं बन पड़ा। वह आगे बढ़ी और उसने मेरे कंधों पर हाथ रख दिया।

“बोलो कौन है वह जिसकी तलाश में तुम यहाँ तक आए हो। नहीं, तुम्हें शायद कुछ याद नहीं। हम ही हैं। हमने तुम्हें बुलाया है। हमें पहचानो, देखो हमारी आँखें, देखो हमारा दिल। क्या हम तुम्हें जाने पहचाने नज़र नहीं आते ?”

मोहिनी का धुंधला सा चेहरा अब भी मेरे मस्तिष्क में था। वह ऐसा तो न था जैसा कि यह महारानी नज़र आती थी। और वह कहती थी कि उसका प्यार मुझे यहाँ तक खींच लाया है। वह बहुत हसीन थी। अगर वह मोहिनी नहीं थी तो ऐसी बातें क्यों कर रही थी। कहीं ऐसा तो नहीं कि मोहिनी का शारीरिक रूप ऐसा ही हो।

“चुप क्यों हो कुँवर, क्या हमारी पुकार तुम्हें यहाँ तक खींच कर नहीं लाई ?”

“मैं कुछ ठीक से नहीं कह सकता। क्या तुम मोहिनी हो ?”

“मोहिनी...!” वह तनिक चौंकी और फिर एकदम से सामान्य हो गयी और फिर कहे बिना उल्टे पाँवों बाहर निकल गयी।

अब मेरे लिए यह जानकारी आवश्यक थी कि शारीरिक रूप से मैं मोहिनी को किस तरह पहचानूँगा। वह नन्हीं-मुन्नी छः इंच की लड़की जिसके पंजे छिपकलियों जैसे थे जिसकी देह भी छिपकली जैसी लगती थी। उसे इंसानी रूप में किस तरह पहचाना जाएगा। लेकिन मेरा दिल कहता था कि महारानी मोहिनी देवी नहीं हो सकती। महारानी का प्रभावशाली सौंदर्य और बातें सुन मेरा मस्तिष्क घूमकर रह गया।

दोपहर में गोरखनाथ से मेरी मुलाक़ात हुई और मैंने सारी बातें बताई। गोरखनाथ ने ध्यान लगाने के उपरांत कहा-
“चिंता का विषय है महाराज। यह औरत मोहिनी देवी तो नहीं है परंतु पिछले जन्म में यह तुम्हारी पत्नी थी और इसी कारण वह तुमसे प्रभावित है लेकिन यह अच्छा शगुन नहीं है। यह तुम्हें पहाड़ों की तरफ़ ले जाने से रोकेगी। उसका पति एक ख़तरनाक क़िस्म का जालिम इंसान है। इन दिनों अपने शिकारी कुत्तों के साथ शिकार खेलने गया है। और अगर उसे भनक लग गयी कि महारानी तुम्हारे प्यार के मोह में फँस गयी है तो वह हर क़ीमत पर तुम्हें मार्ग से हटाने का प्रयास करेगा लेकिन उसने यदि कोई ऐसा प्रयास किया तो पहाड़ों की रानी के कोप का भाजन बनेगा। मैं प्रयास करता हूँ कि उसके लौटने से पूर्व ही हम यहाँ से पहाड़ों की तरफ़ रवाना हो जाए लेकिन तुम जरा होशियार रहना।”

“ठीक है!”

उस दिन कोई विशेष बात नहीं हुई रात को मेरी आँखों में नींद नहीं थी। इस महारानी को यह ज्ञात हो चुका था कि मेरी मंज़िल कहाँ है। मोहिनी का नाम सुनकर वह चौंक पड़ी थी फिर कुछ कहे बिना चलती बनी थी। बहुत दिनों बाद आज मैंने दर्पण में अपना चेहरा देखा था तो महसूस किया कि मैं जवान होता जा रहा हूँ। यदि मैं दाढ़ी और बाल काट लूँ तो शानदार जवान दिखायी दूँगा। परंतु मैंने ऐसा नहीं किया।

रात का कोई पहर बीता जा रहा था जब महारानी दबे पाँव मेरे शयनकक्ष में प्रविष्ट हुईं और इसी का मुझे ख़तरा था। मैं जाग रहा था। न जाने क्यों मेरा दिल कहता था कि कुछ न कुछ होकर रहेगा। सोने का नाटक करके मैंने आँखें मूँद रखी थी। महारानी मेरे सिरहाने आकर बैठ गयी। वह काम-वासना की जीती-जागती तस्वीर लग रही थी। कोई मेनका था जो विश्वामित्र का तप भंग करने आई थी। मेरा दिल तेज-तेज धड़कने लगा।

“बिल्कुल वही, वही है।” महारानी बुदबुदाने लगी। “मेरा रामोन यह भूल गया है लेकिन मैं कहाँ भूली। मुझे तो आज भी याद है। पिछले जन्म में, नील का वह किनारा। आह, मेरे रामोन! आज भी तुम उसी भटकती हुई बदरूह की तलाश में भटक रहे हो जिसने हमारे शांति पूर्ण दाम्पत्य जीवन में आग लगाई थी। आज भी तुम उन शैतानी ताकतों से मुक्त नहीं हो पाए। लेकिन अब मैं तुम्हें न जाने दूँगी। बचपन से तुम्हारा चेहरा ही तो देखती आ रही हो। सपनों में, नजारों में, मरुस्थल में, नदी-झरनों में। पहाड़ों में दूर-दूर तक। तुम हो और बस मैं हूँ। रात सुरमई है और तुम कितनी मीठी नींद सो रहे हो मेरे राजकुमार। देखो मैं किस तरह सदियों से तड़प रही हूँ। मेरी आँखों में बेकरारी है। नींद आती थी और जब आती थी तो बस तुम्हारे सपनों होते थे।”

वह मुझ पर झुक गयी। उसकी साँसें मुझसे बहुत क़रीब हो गयी। मुझे ऐसा लगा कि मौत कि बाहें मेरे गले का फंदा बनकर कसती जा रही है। सैंकड़ों साँप फुंकार रहे हैं और अचानक एक धमाका सा हुआ। ज़ोरदार गड़गड़ाहट जैसे पास ही कहीं बिजली गिरी हो। हवा के साथ एक शोला खिड़की से भी टकराया और महारानी उछलकर खड़ी हो गयी। मारे दहशत से मेरा दिल तेज-तेज धड़क रहा था।

महारानी खिड़की के पास पहुँची। शीशा टूट चुका था। पर्दे जोर-ज़ोर से हिल रहे थे। सायं-सायं की आवाजें आ रही थी। वह खिड़की के पास खड़ी काँपती रही।
“अपशगुन है...।” वह बड़बड़ाई और तेज कदम रखती हुई शयनकक्ष से बाहर चली गयी।

मारे दहशत के मैं साँस रोक चुपचाप लेटा रहा। इंसान की ज़िंदगी में क्या आँधियाँ इस तरह आती हैं। नील नदी का किनारा और रागोन। क्या सचमुच वैसा ही रहा होगा। फिर यह बिजली किस पर गिरी थी। वह शोला जो खिड़की से टकराकर शीशे को चकनाचूर कर गया। क्या कोई संकेत था या आसमानी बला का संदेश।

अपशगुन, कैसा अपशगुन...!मेरे दिल में आँधियाँ थीं, धूल ही धूल थीं। रेत के गुब्बारे थे और धुआँ, धुआँ।मैं उठ खड़ा हुआ, सहमे हुए कदम रखता खिड़की के पास जा पहुँचा। हवा सायं-सायं चल रही थी। वहाँ से वह पहाड़ नज़र आते थे। और इस समय मैंने एक खौफनाक दृश्य देखा।

एक पहाड़ से आग की एक लकीर सी तनी। वहाँ लालिमा थी। यूँ जैसे ज्वालामुखी फट जाता है। यह रेखा रियासत के शाही महल के ऊपर तक आई थी। रात बेहद गंभीर और सन्नाटे के दामन में पेवस्त थी। फिर वह लकीर धीरे-धीरे खिसकने लगी और पहाड़ों में जज्ब हो गयी।

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Dolly sharma
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दूसरे दिन महारानी मुझे रियासत के चंद स्थानों में घुमाने ले गयीं। एक बहुत ही चौड़ा दरिया वहाँ बहता था जो कि रियासत की सीमा पर था। वहाँ के लोग खूब संपन्न मालूम होते थे। महारानी ने मुझे बताया कि वहाँ फ़सल खूब होती है। कई कल कारख़ाने भी चलते हैं। वह सारी दुनिया से कटा हुआ भू-भाग था परंतु उन्होंने अच्छी-खासी तरक्की की थी। लोग बड़े मेहनती और बहादुर थे। उनके पास तलवार भालों के अलावा गोला-बारूद के हथियार भी थे। महारानी का नाम सानतारा था और उसने बताया कि लगभग साठ हज़ार सैनिक उनकी सेना में हैं। उसने अपना अस्तबल भी दिखाया जहाँ अच्छी नस्ल के घोड़े थे और सौ के करीब कद्दावर कुत्ते थे जो भेड़ियों की तरह ख़तरनाक नज़र आते थे।कदाचित वह मुझे अपनी शक्ति का परिचय दे रही थी।

नदी किनारे छोटे-बड़े द्वीप आबाद थे। कई शिकारगाहें, सैरगाहें थीं। वहाँ की इमारतें बड़ी आलीशान थीं।

“नदी के उस पार एक वहशी कौम आबाद है। दो बार हमारा उनसे युद्ध हुआ है। वे लोग किसी बूढ़ी जादूगरनी के पुजारी हैं जिसे वे पहाड़ों की रानी कहते हैं। पहाड़ों की रानी आज तक पर्दे में रहती आई है। किसी ने उसकी सूरत नहीं देखी। कल तुम किसी मोहिनी की बात कर रहे थे न।”

“हाँ! मैंने सुना है कि वहाँ मोहिनी देवी का मंदिर है।”

“मैं बताती हूँ। वही बूढ़ी जादूगरनी जिसे वे सब पवित्र माँ कहते हैं, आन की देवी मानते हैं, उनका नाम मोहिनी ही है। परंतु जंगली उनके सामने इंसानी बलि चढ़ाते हैं। कई हज़ार साल से यह नाम सुना जाता रहा है और क्या तुम्हें विश्वास है कि हज़ारों साल तक कोई औरत जीवित रह सकती है ? हाँ, कोई भटकती शैतान आत्मा ज़रूर ज़िंदा रह सकती है। देखो राज! तुम उन पहाड़ों का विचार मन से त्याग दो। मैं तुम्हें वहाँ हरगिज नहीं जाने दूँगी। मैं तुम्हें फिर से पाकर खोना नहीं चाहती। पिछले जन्म में तुम मेरे पति थे और एक चुड़ैल आत्मा ने तुम्हें मुझसे छीन लिया था। मैं तुमसे आज भी उतना ही प्रेम करती हूँ और तुमसे शादी करना चाहती हूँ। तुम यहाँ के राजा कहलाओगे और फिर देखो हम किस तरह शासन करते हैं।”

“लेकिन आप तो शादीशुदा हैं और आपका पति सुना है बड़ा जालिम है।”

“चाहे वह जितना जालिम हो लेकिन कोई भी मर्द सुंदर औरत के सामने भुनगा होता है। वह मेरे तलवे चाटता है। उसने धोखे से मुझे हथिया लिया था। वह यहाँ का सबसे बहादुर सरदार था और मैं एक कमसिन राजकुमारी। अगर मैं उससे शादी न करती तो आज महारानी न होती। हाँ वह ज़रूर राजा होता और मैं उसकी बांदी। यहाँ केवल शक्तिशाली इंसान ही शासन कर सकता है। वहशी कौम और हमारे बीच कुछ शर्तों पर संधि हो चुकी है इसलिए अब जंग नहीं होती है लेकिन तुमने अगर उधर का नाम लिया तो संधि की सारी शर्ते टूट जाएँगी।”

हम एक राजसी सैरगाह में ठहरे थे। दो दिन तक मैं वहाँ तबियत ख़राब होने का बहाना लिए पड़ा रहा और महारानी के इश्क़िया रोग से बचता-बचाता रहा। महारानी सानतारा ने जिस तरह छिपे शब्दों में मुझे चेतावनी दी थी वह ख़तरनाक सूरत अख्तियार कर सकती थी। अगले दिन भी वही विषय छिड़ा रहा। वह मुझे समझाती रही कि मैं उस तरफ़ का रुख़ न करूँ।

“यूँ भी यहाँ के लोग तुमसे अधिक ख़ुश नहीं है। यहाँ इस साल सूखा पड़ा है।” महारानी कहती रही। “और वह अशुभ अभी लोगों ने देखी है। जब कभी वह चमक कर यहाँ के आसमान में लकीर खींचती है तो बड़े प्रकोप होते हैं। विपत्तियाँ आती हैं। जल्दी ही लोगों में प्रचलित हो जाएगा कि सब तुम्हारे कारण हुआ है। फिर वे सब तुम्हारे खून के प्यासे हो जाएँगे।”

शायद वह यह चाहती थी कि यह बात प्रचलित कर दी जाएगी।

“लेकिन मैं किस तरह आपसे शादी कर सकता हूँ। तब यहाँ के लोग क्या सोचेंगे। एक अजनबी जो उनके कौम से नहीं है यहाँ का राजा बन गया और फिर आपका पति...।”

“मैं अपने पति को ज़हर देकर मार डालूँगी।” वह हँसी। “तुम्हारे लिए तो सब कुछ कर सकती हूँ। फिर यह तो मेरी इच्छा है कि शासन कौन किस तरह करता है। तुम इसकी फ़िक्र मत करो। वह सब मैं ठीक कर लूँगी।”

महारानी को कदाचित कुछ संदेह हो गया था। वह उठकर पर्दे तक गयी। परदा खींचा परंतु वहाँ कोई नहीं था। अलबत्ता खिड़की ज़रूर खुली थी। महारानी ने बाहर झाँका फिर खिड़की बंद करके लौट आई। मैं महारानी को कोई ठोस उत्तर देकर उन्हें नाराज़ नहीं करना चाहता था लेकिन उसका दृढ़ इरादा सुनकर पलायन की योजना मन ही मन बनाने लगा।
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शाम को गोरखनाथ के दर्शन हुए जो सांड पर सवारी करते हुए वहाँ तक आ पहुँचा था। महारानी को देखकर बड़ा अचम्भा हुआ परंतु गोरखनाथ के साथ वह कठोरता से पेश नहीं आ सकती थी।

“आप यहाँ कैसे तशरीफ लाए ?” महारानी ने पूछा।

“क्या मेरे लिए कहीं रोक-टोक है ?”

“नहीं, ऐसा तो नहीं महाराज! आपको राजमहल में सारी सुविधाएँ दी गयी हैं। क्या आपको किसी से कोई शिकायत है ?”

“ऐसा कुछ नहीं है देवी जी। दरअसल मेरा कुँवर साहब के बिना मन बचाट हो रहा था सो इधर ही चला आया। मुझे ज्ञात हुआ है कि आप लोगों का यहाँ कई दिन तक ठहरने का इरादा है। मैंने सोचा वहाँ पड़े-पड़े क्या करूँगा। क्यों न मैं भी बुढ़ापे में कमर सीधी कर लूँ।” फिर गोरखनाथ मेरे क़रीब आकर बोला। “कैसे हो महाराज ? यहाँ की आबो-हवा पसंद आई ?”

“बहुत पसंद! बस तुम्हारी कमी खटकती थी।”

महारानी को गोरखनाथ का वहाँ अचानक आना बड़ा नागवार गुजरा और हमें तन्हा छोड़कर चली गयी।”
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“उसके तेवर अच्छे नहीं है महाराज।”

“देखो कुँवर साहब! देवी का यह भक्त तुम्हारे लिए सिर्फ़ गोरखनाथ है। आज से मुझे महाराज कहने की बजाय सिर्फ़ गोरखनाथ कहा करो।”

“फिर एक विनती मेरी भी है महाराज। तुम भी मुझे महाराज कहना छोड़ दो। मैं तुमसे उम्र में भी छोटा हूँ और ज्ञान-ध्यान में भी। और तुम्हारे मुँह से मेरे लिए महाराज का संबोधन अच्छा नहीं लगता।”

“देवी के सम्मानित अतिथि, मेरी तुम्हारे सामने कुछ भी हैसियत नहीं है।”

“लेकिन मेरे लिए तो तुम्हारी हैसियत है। वह तुम ही हो जो मुझे यहाँ तक लाए हो। अब मुझे वचन दो कि मुझे अपना समझोगे।”

“वचन दिया महाराज।”

“फिर महाराज...।”

“वचन दिया राज।”

“अब हुई कुछ बात गोरखनाथ।”

फिर गोरखनाथ ने मुझे बाजूओं में भर लिया। फिर हम आमने-सामने बैठ गए।

“मैं यहाँ इसलिए आया था कि इस औरत का पति शिकार से लौट आया है और आते ही जब उसे यह खबर मिली कि महारानी एक अजनबी मेहमान के साथ सैरगाह पर गयी हैं तो उसने राज्य ज्योतिषी को तुरंत तलब किया। फिर उसने भविष्य पूछा तो जाने क्या भविष्य पढ़कर सुनाया। सुन कर आग बबूला हो गया और इस तरफ़ आने का फ़ैसला किया। कल प्रातः काल वह कूच करेगा। अपने ख़ूनी दस्ते के साथ इसलिए मुझे यहाँ आना पड़ा कि कहीं तुम किसी तरह की संकट में न फँस जाओ।”

“उसका इरादा क्या है ?”

“राज्य ज्योतिषी ने मुझे सब कुछ बता दिया था क्योंकि वह खुद भयभीत है। आग के पहाड़ों से अशुभ अग्नि रेखा नज़र आई थी। वह मोहिनी देवी की नाराज़गी का संकेत है।

“सरमोन ने मुझसे कहा कि तुम्हें लेकर तुरंत पहाड़ों की तरफ़ कूच कर जाऊँ। यहाँ तुम्हारी जान को ख़तरा है और अगर तुम्हें इन लोगों से हानि पहुँची तो इस धरती के टुकड़े पर क़यामत टूट पड़ेगी।”

“इसके बावजूद भी वे लोग मुझे हानि पहुँचाने का इरादा रखते हैं।”

“इस रियासत का राजा एक पागल इंसान है। किसी जमाने में वह यहाँ का सर्वशक्तिमान योद्धा था और अपनी बहादुरी से ही उसने राजगद्दी प्राप्त किया था परंतु बाद में महारानी ने उसे विष दे-देकर पागल बना दिया और वह अत्याचारी हो गया। महारानी चाहती हैं कि वह मर जाए और फिर राज-पाट अपने ढंग से चलाए। अब उसे भी इसका संदेह हो गया है और उसका संदेह तुम्हारे बारे में राज ज्योतिषियों से सुनकर और भी ठोस हुआ होगा। राज ज्योतिषी ने यह अवश्य बताया होगा कि तुम पर देवी की कृपा है और राजा की मौत का कारण तुम्हीं बनोगे।” गोरखनाथ ने सारी बातें स्पष्ट की।

गोरखनाथ कुछ क्षण मौन रहने के बाद बोला- “हाँ राज, यहाँ की ज्योतिष पुस्तक में यही लिखा है कि कोई अजनबी आएगा। यह अजनबी सुदूर पहाड़ों को पार करता हुआ हज़ारों मील से आएगा। और फिर रियासत में खूनी क्रांति होगी। सबसे पहले वर्तमान शासक मारा जाएगा और फिर मोहिनी देवी इस संपूर्ण धरती में नया संविधान, नया कानून बनाएगी।” गोरखनाथ की बात सुनकर मैंने गहरी साँस ली। अगर वे लोग ज्योतिष पर विश्वास रखते थे तो निश्चय ही मुझे वह अजनबी समझा जाएगा। और यही बात मेरे लिए ख़तरनाक थी।

यूँ 'खतरा' शब्द मेरी ज़िंदगी में अर्थहीन होकर रह गया था। लेकिन यहाँ आने के बाद मैं एक सुकून की मौत मरना चाहता था। मैं मोहिनी को सशरीर देखना चाहता था। उसका एक चुम्बन लेकर ही मौत के गले लगना चाहता था। इसलिए सोचना ज़रूरी था कि इस मुसीबत से किस तरह निजात मिले।

“यहाँ से सरहद कितनी दूर है गोरखनाथ ?”

“नदी से कुछ दूर सफ़र करने के बाद हमें एक द्वीप पर उतरना होगा और फिर हम पहाड़ी रानी की सीमा में होंगे। एक बार वहाँ पहुँचने के बाद यह लोग वहाँ प्रवेश नहीं करेंगे। ऐसा विधान है।”

“उस जगह तक पहुँचने में हमें कितना समय लगेगा ?”

“हम नौका से यात्रा करेंगे तो हमें दो दिन लग जाएँगे। नौका को मेरा सांड खींचकर ले जाएगा।”

“तो फिर क्यों न हम आधे घंटे में तैयार होकर चलते बने ?”

“लेकिन यह किस तरह संभव है। महारानी की निगाह तो तुम्हीं पर है। हाँ, रात के किसी पहर फरार हो सकते हैं।”

“गोरखनाथ, तुम एक जादूगर हो! तुम्हारे लिए एक महारानी की नज़रें बाँधना कौन सा मुश्किल काम है।”

“हाँ राज, तुम ठीक कहते हो! क्योंकि मार्ग में तुमने मेरे जादुई करिश्मे देखे हैं। परंतु जिस संसार में हम इस समय है यहाँ मोहिनी देवी के अलावा किसी का जादू नहीं चल सकता। यही कारण है जो यहाँ पहले भी बहुत से तांत्रिक जादूगर आए और मर गए।

“अतः मेरी शक्तियाँ वही होगी जो मनुष्य रूप में मुझे प्राप्त है। अन्यथा मेरी चिंता का विषय क्या हो सकता था। आज रात के अंधकार में हम यह स्थान छोड़ देंगे। आगे का मार्ग जहाँ पहाड़ों की सीमा शुरू होती है उस स्थान तक मैं तुम्हें ले जा सकता हूँ। इससे आगे का मार्ग तो मैं भी नहीं जानता।”
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Re: Fantasy मोहिनी

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रात का भोजन करने के उपरांत मैं फिर सोने चला गया। सैरगाह की यह इमारत बिल्कुल उसी तरह की थी जिस तरह के रेस्टहाउस हुआ करते हैं। उसकी देखरेख एक सैनिक दस्ता करता था। महारानी ने अभी तक दस्ते को मेरे बारे में कोई निर्देश नहीं दिए थे। परंतु यदि इल्म हो जाता तो निश्चय ही अपने सभी सैनिक दस्तों को मेरी निगरानी की आज्ञा दे देती।

औरत जब भी इस तरह का अंधा प्रेम करती है तो अच्छे-बुरे का ख़्याल ही नहीं रहता। उसकी हालत बस एक पागल के समान होती है। वह अपनी हदों से गुज़र जाती है और यदि ऐसी औरत कोई महारानी हो तो इतिहास के पन्ने खून से रंग दिए जाते हैं।

मैं कोई ऐसा आदमी तो न था जो सुंदरियों से दूर रहता हो मैंने अपनी ज़िंदगी तमामतर अय्याशियों में गुजारी थी। मोहिनी थी इसलिए भोग-विलास में डूबा रहा।

किंतु अब इन सब चीज़ों से दूर हो गया था। मुझे यह सब कुछ एक वक्ती ख़ुशी का साधन मात्र लगता था। और इस वक्ती ख़ुशी के पीछे ज़िंदगी के कितने अंधेरे छिपे थे। प्रेम तो कोई और ही चीज होती है। अय्याशियाँ जीव का हृआस करती हैं।

मार्ग में मैंने जो कुछ ज्ञान प्राप्त किया था उससे मेरे भीतर का वह इंसान मर चुका था और मैं संपूर्ण रूप से एक वैरागी पुरुष बनता जा रहा था। कदाचित यही चीज़ें होती हैं जो किसी वैरागी के मार्ग में बाधक बनकर आती हैं। फरेब पाप के अंधकारों से दूर सच्चाई के प्रकाश की ओर बढ़ रहा था। और इस प्रकाश में कितना आनन्द था, यह मैं अनुभव करता जा रहा था।

रात के समय महारानी मेरे पास नहीं आई क्योंकि गोरखनाथ मेरे साथ ठहरा था। महारानी यह तजवीज कर रही थी कि किसी तरह गोरखनाथ को राजमहल भेजा जाए। मुझे यहाँ लाने का अर्थ भी यही था। पर आज की रात इस रियासत में अंतिम रात थी। आवश्यक तैयारियाँ करनी भी क्या थी। बस चलना ही था और हम किसी भी वक्त चल सकते थे।

रात का कोई पहर था जब गोरखनाथ ने मुझे चलने का संकेत दिया। मैं दबे कदम बाहर निकला। गलियारा सन्नाटे से डूबा था। फिर गोरखनाथ के साथ सावधानी से चलते हुए इमारत से बाहर आ गया। आश्चर्य की बात थी कि कोई पहरेदार जाग नहीं रहा था। किसी ने हमें नहीं रोका, किसी ने नहीं टोका और हम बाहर आ गए।

सांड अस्तबल में बंद था। गोरखनाथ उसे लेकर बाहर आया और फिर हम दोनों उस सांड पर सवार होकर चल पड़े। सड़कों पर रात का वीराना छाया हुआ था। हमने एक रास्ता पकड़ा जो सुनसान था। सांड अब तेज दौड़ रहा था। मैंने गोरखनाथ को कमर से पकड़े रखा। अन्यथा सांड के दौड़ने से उछल-उछल जाता था। मुड़-मुड़ कर पीछे देख रहा था कि कहीं कोई पीछा तो नहीं कर रहा। परंतु मेरा यह संशय निरर्थक ही था।

आख़िर हम नदी किनारे एक ऐसे स्थान पर पहुँचे जहाँ नौकाएँ खड़ी थी। यहाँ भी पहरेदार सो रहे थे। हमने सांड को नौका पर जोत दिया और फिर उसपर सवार हो गए।

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अगले दिन शाम का समय रहा होगा। मैंने पहली बार हवा में गंध महसूस की। मैंने एकदम खड़े होकर पीछे देखा। दूर बहुत दूर एक धूल का गुब्बार उठता दिखायी पड़ता था। गोरखनाथ भी एक परिस्थिति से अपरिचित था। उसने सांड को और तेज भगाने का उपक्रम शुरू कर दिया। किंतु सांड, घोड़ों और कुत्तों की रफ्तार में तो बहुत अंतर होता है। उस वक्त पहली बार यह विचार मस्तिष्क में आया कि हमसे भूल हो गयी। हमें सांड की जगह घोड़ों का प्रयोग करना चाहिए था।यूँ सांड की रफ्तार भी कुछ कम नहीं थी। और थकान का लक्षण उसमें नज़र नहीं आता था। फिर भी वह घोड़ों और कुत्तों का मुक़ाबला तो कर ही नहीं सकता था।

शीघ्र ही धूल उड़ाता वह ख़ूनी दस्ता हमारे सिर पर आ गया। उन्होंने कोई शार्टकट रास्ता अपनाया था और मैदान की ढलान से उतर रहे थे।

इस ख़ूनी दस्ते के साथ कुत्तों की फ़ौज़ भी थी। भेड़ियों जैसी शक्ल के ख़तरनाक कुत्ते। घुड़सवार तो चार ही थे। इन चारों में सबसे आगे जो लम्बा तगड़ा सवार था उसके शरीर पर राजसी वस्त्र थे। निकट आते ही गोरखनाथ ने उसे पहचान लिया।

“यह पागल राजा है। और उसके ख़ूनी दस्ते के तीन जनरल साथ में हैं।”

मैं समझ गया कि गोरखनाथ ने उनमें से किसे राजा कहा था।

“वे लोग हमारा पीछा क्यों कर रहे हैं ?” मैंने पूछा। फिर ख़्याल आया मेरा यह प्रश्न तो बच्चों जैसा है। यह हमारी कुशलता पूछने तो आ नहीं रहा है।

“भाला संभाल लो राज। कुत्तों को नौका से दूर रखना। मैं किसी द्वीप पर पहुँचने की कोशिश करता हूँ।”

मैंने भाला संभाल लिया। यूँ भी मैं एक हाथ से लड़ नहीं सकता था और ऐसी लड़ाई तो मैंने कभी लड़ी भी नहीं थी। परंतु इसका अर्थ यह नहीं था कि मैं उन चार आदमियों के सामने बिल्कुल पंगु था। मैंने मजबूती के साथ भाला संभाल लिया।
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