जब मुझे होश आया तो मैं एक तट पर पड़ा था। यह एक झील थी जिसका जल एकदम निर्मल और स्वच्छ था। मनोरम पहाड़ियों से घिरी एक खूबसूरत झील। दूर-दूर तक किसी आदम जात का पता नहीं।
मेरी समझ में नहीं आया कि मैं कहाँ हूँ। खुले आसमान पर सूरज चमक रहा था जिसकी भरपूर किरणें मुझ पर पड़ रही थीं। गुजरी हुई बातें एक भयानक ख्वाब की तरह महसूस होती थीं। वह कौन सी भूमि थी जहाँ मैंने इतना समय व्यतीत किया था ?
और अब मैं कहाँ आ गया हूँ ?
मैं उठ खड़ा हुआ और फिर आँखें फाड़-फाड़कर चारों तरफ देखने लगा। यह जगह मेरे लिए बिल्कुल अजनबी थी। एक बार फिर मैं अपने जीवन की तन्हाइयों में भटकने के लिए अनजान राहों पर खड़ा था।
“अलख निरंजन!” अचानक एक आवाज वातावरण में गूँजी और मैंने चौंककर उस ओर देखा जिधर से आवाज गूँजी थी। एक साधू वहाँ इस प्रकार अवतरित हुआ जैसे आकाश से उतर आया हो।
मैंने गौर से साधू को देख कर तुरन्त ही साधू जगदेव को पहचान गया। एक मुद्दत के बाद साधू जगदेव के दर्शन हुए थे। मेरे जीवन में चंद व्यक्तित्व ऐसे भी आये थे जो मेरे लिए रहस्य बने रहे। साधू जगदेव भी उन्हीं उलझी हुई गुत्थियों में से एक था।
“महाराज!” मैंने चौंककर कहा।
“मोहिनी का सपना टूट गया बालक ?” साधू जगदेव ने कहा। “और जान लिया कि वह क्या चीज है ? एक जमाना था बालक जब तुम्हें अनेक पवित्र शक्तियाँ वरदान में प्राप्त हुई थीं। परन्तु तुम्हारे सिर से मोहिनी का नशा न उतरा और तुम अपने मार्ग से भटककर भावनाओं के भँवर में फँसकर रह गये।
तुमने उस देवी कुलवन्त का मान भी तोड़ दिया। याद है तुम्हें कि तुमने कितने घर उजाड़े हैं ? कितने जीवन बर्बाद किये हैं ? कुलवन्त भी उनमें से एक थी जिसका जीवन तुमने छीना है।”
“महाराज...!” मैं कराह उठा। “तुम भी जहर बो रहे हो महाराज ? तुम भी तो मुझे मझधार में छोड़कर चले गये थे। जिस समय हरी आनन्द ने मुझे एड़ियाँ रगड़ने के लिए विवश कर दिया था, मैंने तुम सबको पुकारा था; परन्तु कोई मेरी सहायता के लिए नहीं आया। उस वक्त सिर्फ मोहिनी ही थी जिसने मेरी प्राणों रक्षा की थी। न सिर्फ प्राण रक्षा, बल्कि मेरे दुश्मन का भी खून चाट लिया था। क्यों महाराज, आप ही ने तो मुझसे कहा था कि मैं अधर्मियों के नाश के लिए पैदा हुआ हूँ। उन ढोंगी तांत्रिकों के लिए जो समाज और धर्म के नाम पर एक कोढ़ हैं। हरी आनन्द क्या ऐसा नहीं था ?”
“था...।” साधू जगदेव ने अपना त्रिशूल हवा में उछाला। “उसके अलावा भी बहुत से हरी आनन्द थे और हैं जिसके सर्वनाश के लिए हमने तुम्हें नियुक्त किया था। इसलिए तुम्हें वह शक्तियाँ दान मिली थीं। कुलवन्त ने पूरे सौ महापुरुषों का जाप करके उनकी शक्तियाँ तुम्हारे लिए हासिल की थीं, परन्तु मूर्ख आदमी...पापियों की श्रेणी में वे लोग कब आते थे, जिन्हें तुमने अपनी हवस का शिकार बनाया ? हरी आनन्द को पाने के लिए तुम इतने पागल हो गये कि तुम्हें इसका ख्याल ही न रहा कि कौन निर्दोष है, कौन पापी ? बब्बन अली की बहनों ने तुम्हारा क्या बिगाड़ा था ? और क्या तुम्हें वह नारियाँ याद हैं जो तुम्हारी हवस का निशाना बनीं थीं ? तुमने अपने को स्वयं पाप के दलदल में डालकर अपनी शक्तियों का नाश किया। और हरी आनन्द इसीलिए तुम्हें छकाता रहा ताकि तुम क्रोध में आकर इसी तरह अपने होश गँवाते रहो और तुम्हें वरदान में मिली शक्तियों का विनाश होता रहे। बोलो राज ठाकुर! क्या अब भी तुम्हारी आँखें नहीं खुलीं ? तुमने तो मोहिनी के साथ बहुत से सुन्दर सपने सजाये होंगे। परन्तु तुमने उसकी बर्बाद होती दुनियाँ को भी देख लिया होगा। हजारों लोग वहाँ आग के लावे में बह गये। कौन है उन निर्दोषों की मौत का जिम्मेदार ?”
“हाँ...हाँ महाराज, मैं उन सबका जिम्मेदार हूँ। मैं पापी हूँ और अब मुझे किसी की सहायता की जरूरत नहीं। मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये। बस मुझे मेरे हाल पर छोड़ दीजिये।”
“जरूर छोड़ दूँगा। लेकिन चीनी फौजें तुम्हें तुम्हारे हाल पर नहीं छोड़ सकतीं। जिस जगह तुम मौजूद हो, इसके चारों तरफ उनकी सेनाएँ फैली हुई हैं। यही वह स्थान था जहाँ मोहिनी का मन्दिर था और उन्होंने एक बड़ी तबाही देखी है। जब उस पहाड़ पर जलजला आया था और वह आग का पहाड़ प्रलय बनकर फट पड़ा था। तुम बच गये कुँवर राज। यह तुम्हारे हक में अच्छा न हुआ। अगर तुम उस रक्त के तालाब में न कूद गये होते तो तुम्हारी मृत्यु निश्चित थी। पर होनी को कौन टाल सकता है।”
जगदेव कोई पहुँचा हुआ साधू था। पहले भी मैंने उसके अनगिनत चमत्कारों को देखा था। मेरी तो समझ में कुछ नहीं आता था। अगर यही वह जगह है जहाँ मोहिनी का मन्दिर था तो फिर वह सब कुछ कहाँ अदृश्य हो गया ? उस सारी दुनियाँ का कोई चिह्न यहाँ नजर नहीं आता था।
“यह रक्त का वही तालाब राज, जो अब शांत झील बन गया है और वह सब बुरी आत्मायें थीं जो मोहिनी के मन्दिर की देखभाल करती थीं। वह सब मोहिनी के इँसानी शरीर के साथ-साथ जल गयीं। तुम जमीन के बहुत गहरे हिस्से में थे जहाँ तालाब में सुरक्षित थे। ऊपर पहाड़ फट पड़ा था और उसने चारों तरफ तबाही फैलाई थी। निरन्तर सात दिन तक तबाही। कुछ लोग अपनी जानें बचाकर भागे। उनमें से अधिकाँश चीनियों के हाथों मारे गये और जो शेष हैं, उन्हें चीनियों ने कैद कर लिया। उन्हें यह तो पहले ही ज्ञात हो चुका था कि जंग किसकी वजह से शुरू हुई। वे मृत लोगों की लाशों में भी तुम्हें खोज रहे हैं और एक दो रोज बाद इस पहाड़ी पर भी आ जायेंगे। बोलो राज ठाकुर, अब तुम चीनियों से जान बचाकर भागोगे ?”
“अगर मौत आनी ही है महाराज तो चीनियों के हाथों ही मारा जाऊँगा।”
“वे तुम्हें मारेंगे नहीं राज। मौत तो तुम्हारे भाग्य में लिखी ही नहीं है। वे तो तुमसे अमरत्व का रहस्य जानना चाहेंगे। वे जानना चाहेंगे कि एक ज्वालामुखी फटने के बावजूद भी तुम किस तरह बच गये।और मोहिनी का वह मन्दिर कहाँ विलीन हो गया। तुम यही कहोगे न कि तुम्हें कुछ नहीं मालूम, लेकिन तुमने अभी यातनायें देखी कहाँ हैं।”
“लेकिन तुम क्यों यह सब सुनाने आये हो महाराज ? तुम्हारा मुझसे अब सम्बंध ही क्या रहा है ?”
“पुराने रिश्ते याद आ गये तो मैं कैलास पर्वत से इधर निकल आया। यह देखने कि मोहिनी को पाकर तुमने क्या खोया और क्या पाया ?”
“ठीक है महाराज, अब तुमने जान लिया कि मैंने क्या पाया और क्या खोया है तो मेहरबानी करके मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो।”
“मैं तुम्हें इस तरह छोड़कर नहीं जाऊँगा। कुछ कर्तव्य मेरे भी शेष हैं। मैं जानता हूँ कि इन विषम परिस्थितियों में तुम मौत को गले लगाने से न हिचकोगे। लेकिन अभी तुम्हारा जीवन शेष है। तुम्हें प्रायश्चित करना है। जिन लोगों का तुमने अपमान किया है, उनके लिए तुम्हारा प्रायश्चित आवश्यक है। और इससे पहले कि कोई जादुई शक्ति या असुर शक्ति तुम्हें दूसरी राह पर ले जाए और तुम्हें चीनियों के हाथों न पड़ने दे, मैं यहाँ आया हूँ। मेरा एकमात्र उद्देश्य यही है कि तुम्हें यहाँ से न जाने दूँ।” इतना कहकर साधू जगदेव ने तेजी के साथ मेरे चारों तरफ एक घेरा त्रिशूल से खींचा और फिर त्रिशूल वहीं गाड़ दिया।