Fantasy मोहिनी

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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

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जब यह सब कुछ हो गया तो मैंने अपने दुश्मनों से निपटने की शुरुआत के लिये कदम उठाया। एक सुबह नाश्ता करके कपड़े बदल कर मैं घर से निकला तो मेरा रुख सीधा मेहता के दफ्तर की तरफ था। जिस समय मैं मेहता के दफ्तर पहुँचा तो वह किसी फाइल के अध्ययन में व्यस्त था। उसके दफ्तर के संतरी ने मुझे रोकने की कोशिश की, लेकिन मोहिनी ने उसे बेबस कर दिया। मैं किसी विरोध के बिना अन्दर चला गया। मेहता सपने में भी यह नहीं सोच सकता था कि मैं इस अन्दाज़ में सीना ताने उसके सामने पहुँच जाऊँगा। अतः आशा के विपरीत मुझे अपने सामने देखकर वह एक क्षण के लिये स्तब्ध रह गया।

मगर दूसरे ही क्षण उसकी आँखों में खून उतर आया। वह मुझे नफरत भरी दृष्टि से घूरता हुआ गुर्राया।

“तुम यहाँ किसलिए आए हो ?”

“मेहता! मुझे ख़ुशी है कि तुमने मुझे तुरन्त पहचान लिया। मुझे अपना परिचय देने की आवश्यकता महसूस नहीं हुई।” मैं जहरीले स्वर में बोला।

मेहता के माथे पर शिकन पड़ गयी।
“तुम्हें मेरे कमरे में आने की जुर्रत कैसे हुई ? दफा हो जाओ। गेट आउट!”

“समय-समय का खेल है मेहता! बुरा वक्त गुजर गया। अब तुम्हारी गर्दिश का वक्त है। मैं तुम्हारे लिये कहर बनकर आया हूँ। मैंने क्षमा करना नहीं सीखा है। तुम्हारे दुर्भाग्य से मेरी याददाश्त बहुत तेज है।” मैंने तेज स्वर में कहा। “तुमने मेरे आने का उद्देश्य पूछा है। सुनो। तुमने अपनी ताकत और पद के नशे में मुझ पर जुल्म तोड़े और इन सबके लिये तुम्हें चंद अमीरजादों, उन लोगों की शह मिली थी, जो मेरे अस्तित्व को ख़ाक में मिला देना चाहते हैं। क्योंकि वे जान चुके होंगे कि उनके लिये मैं मौत बनकर इस धरती पर पैदा हुआ हूँ। काश्मीर वाला मामला इतना अहम नहीं था, क्योंकि कोई भी अदालत मुझ पर जुर्म साबित नहीं कर सकती थी। सुनो मेहता, तुमने मुझे अच्छी तरह नहीं पहचाना। तुम नवाब बब्बन अली को भी जानते होगे। इन लोगों ने न जाने कितनी बहनों की इज्जत लूटी होगी। तरन्नुम भी एक ऐसी ही लड़की थी, जिसे मैंने उनके चंगुल से निकाला था। लखनऊ का एक ख़ास तबका मुझसे नफरत करता है और तुम उसी तबके के चमचे हो। मैं यहाँ से जा रहा था फिर ख्याल आया कि कर्ज तो सिर पर लाद कर जा रहा हूँ।”

मेहता ने मेरे बिगड़े हुए तेवर देखकर खतरे का अन्दाजा लगा लिया। एक पल के लिये उसने मुझे घूरा फिर बड़ी फुर्ती से अपना सर्विस रिवाल्वर निकालकर मेरे सीने का निशाना लेकर बोला।
“तुमने अच्छा किया कि खुद ही मेरे पास चले आए। तुम्हें तलाश करने की जहमत मुझे नहीं उठानी पड़ी। मेरा ख्याल था, तुम्हें जेल की आब ओ हवा रास आ गयी है। यूँ भी तुम जैसे खतरनाक मुजरिमों और सुअर की औलादों को बाहर खुली हवा में अधिक दिन नहीं रहना चाहिए।”

मेरे चेहरे पर मुस्कराहट छा गयी। मोहिनी उसी क्षण रेंगकर तेजी से मेरे सिर से उतर गयी। मैं समझ गया कि मेहता का अब बुरा वक्त आ गया है। मैं मेहता के और करीब गया और जोर-जोर से उसके हाथ पर अपना इकलौता हाथ मारा। रिवाल्वर उछलकर दूर जा गिरा। मेहता को कोने में पड़ा रिवाल्वर उठाने का समय नहीं मिला। मेरे बुलावे पर मोहिनी दूसरे ही क्षण मेरे सिर पर आ गयी। मैंने उसे दिल ही दिल में समझाया कि कुछ देर के लिये स्वयं ही मेहता से जोर आजमाइश करना चाहता हूँ। फिर मैंने आव देखा न ताव एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेहता के गाल पर रसीद कर दिया। मेहता को इस अचानक हमले की उम्मीद न थी। वह बौखला गया। उसके हाथ-पाँव चलाने से पहले मैंने एक और जोरदार तमाचा रसीद कर दिया जिस से खून की एक बारीक लकीर उसके होंठों पर फ़ैल गयी।

“कुर्सी पर बैठ जाओ मेहता। अधिक तेजी दिखाने की कोशिश मत करो। तुम्हारा बुरा वक्त आ चुका है।”

मेहता तुरन्त कुर्सी पर बैठ गया और अपना मुँह रूमाल से साफ़ करने लगा। उसके बैठते ही मैं भी उसके सामने वाली कुर्सी पर बैठ गया। मैंने अपने लहजे की काट कायम रखी। “मेहता! एक बार तुमने मुझ पर जुल्म की इन्तहाँ कर दी थी। मुझे सोचने-समझने का मौका नहीं दिया था। मगर मैं इतना जालिम नहीं हूँ। मैं तुम्हें वक्त देता हूँ। अगर तुम अपने प्रियजनों के लिये कोई पैगाम देना चाहते हो तो दे सकते हो। मैं वादा करता हूँ कि तुम्हारा पैगाम सम्बन्धित व्यक्ति तक पहुँचा दिया जाएगा। मगर जल्दी करो। मुझे लखनऊ से जाना है और अभी तुम्हारे कई बापों से निपटना है।”

मेहता जो चन्द क्षण पहले बड़ा खूंखार नजर आ रहा था, अचानक ठण्डा पड़ गया। उसकी आँखों से भय और आतंक के भाव झलक रहे थे। उसके चेहरे की रंगत पल भर में हल्दी की मानिंद पीली पड़ गयी थी।

कंपकंपाती आवाज में बोला। “कुँवर साहब! मैं स्वीकार करता हूँ कि मैंने तुम पर बहुत जुल्म किया है लेकिन ईश्वर साक्षी है उसमें मेरे इरादे का कोई दखल नहीं था। ऊपर से मुझे ऐसे ही आर्डर मिले थे।”

“ऊपर के आर्डर।” मैं हँस पड़ा। “तो फिर इस बारे में ऊपर वाले से ही शिकायत करना। मेरे पास अधिक समय नहीं है। तुम अपनी अंतिम इच्छा बताओ ?”

मैंने नफरत से उत्तर दिया। मेहता का चेहरा धुआँ हो गया। उसके चेहरे पर मौत के साए लरजने लगे। उसने एक नजर रिवाल्वर की तरफ देखा परन्तु उसे उठाने की हिम्मत उसमें न थी। उसने दरवाजे की तरफ दृष्टि डाली तो मैंने हँसकर कहा-
“अब तुम्हारे कोई काम नहीं आ सकता।”

“मुझे क्षमा कर दो कुँवर साहब।” अचानक वह गिड़गिड़ाने लगा। “मैं तुम्हारा अपराधी हूँ। मुझ पर दया करो।”

“दया और आप पर। मेहता साहब, आप जैसे बड़े पदाधिकारी पर।”

मेहता के चेहरे का रंग हर क्षण बदल रहा था। मैं उसकी हालत का लुत्फ उठा रहा था। उस समय मेरे दिल में रहम की कोई गुंजाइश नहीं थी। मैं एक अटल इरादे से उठा और निर्णायक स्वर में बोला। “मैं जा रहा हूँ मेहता। अधिक बातें करने से कुछ लाभ नहीं होगा। मेरा दूसरा आदेश तुम्हें मेरे जाने के बाद मिलेगा। मैं चाहता हूँ कि तुम्हारी आत्महत्या के गवाह सैकड़ों की संख्या में हों।”

इतना कहकर मैं तेजी से निकल गया। मुझे अच्छी प्रकार से विश्वास था कि मोहिनी ने मेरे दिल से उभरने वाले इरादे को समझ लिया होगा। मेरा अनुमान गलत नहीं निकला। मोहिनी मेरे सिर से उतर गयी थी। मैं थाने से निकल कर सड़क के दूसरे किनारे पर पहुँच गया और भीड़ में गुम हो गया। अभी मुझे वहाँ खड़े हुए दस मिनट ही गुजरे थे कि मैंने मेहता को थाने की इमारत से परेशान गिरेबां चाक पागलों की तरह बाहर निकलते देखा। सर्विस रिवाल्वर अभी तक उसके हाथ में था। उसके पीछे दो पुलिस वाले भी थे जो कदाचित उसकी मानसिक हालत समझकर उसके पीछे-पीछे आ गए थे।

सड़क पर पहुँचते ही मेहता ने कंठ फाड़-फाड़कर चीखना-चिल्लाना शुरू कर दिया। वह अपने इर्द-गिर्द खड़े लोगों के सामने अपना कच्चा चिट्ठा खोल रहा था। उन लोगों की काली करतूत सुना रहा था, जो पुलिस को खरीद कर रखते हैं। लखनऊ के नवाबजादों को नंगा कर रहा था।

“लोगों, मैं खुद को ख़त्म कर रहा हूँ। मेरे पापों की सूची इतनी लंबी है कि मुझे खुद याद नहीं पड़ता। मैं तुम्हारे सामने अपने गुनाह स्वीकार करता हूँ और मैंने अपने लिये खुद सजा चुन ली है। हाँ, मैंने अपने लिये सजा चुन ली है मैं मर रहा हूँ। देखो यारो, मैं मर रहा हूँ। तुम गवाह रहना दोस्तों।”

राहगीरों की अच्छी-खासी भीड़ हक्का-बक्का होकर मेहता को आश्चर्यचकित नजरों से घूर रही थी। दोनों पुलिस वाले भी स्तब्ध खड़े थे। फिर इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता मेहता ने रिवाल्वर की नाल कनपटी पर रखकर लिबलिबी दबा दी। वायुमंडल में एक धमाके की आवाज गूँजी और मेहता खून से लथपथ सड़क पर ढेर हो गया।

थोड़ी देर तक उसकी लाश तड़पती रही। फिर उसकी आत्मा शरीर से मुक्त हो गयी। मुझे उसके मरने का कोई अफ़सोस नहीं हुआ। बल्कि एक सकून सा महसूस हुआ। चन्द क्षणों में मोहिनी मेरे सिर पर आ गयी।

“मुझे ख़ुशी है राज कि तुमने इस दूर अंदेशी से काम लिया।” मोहिनी ने गम्भीरता से कहा। “अगर तुम थाने के अन्दर कोई जज्बाती कदम उठाते तो परिस्थितियाँ भिन्न होतीं। अब मेहता के सिलसिले में तुम्हें कोई आँच नहीं आएगी।”
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Dolly sharma
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मैंने एक फीकी मुस्कराहट बिखेरकर मोहिनी को देखा और अपनी रफ्तार तेज कर दी। अब मेरा रुख नवाब बब्बन अली की हवेली की ओर था। रास्ते में मैंने मोहिनी से कहा। “मेहता की मौत से कुछ लुत्फ नहीं आया।”

“क्या मतलब ?” मोहिनी ने आँखें फाड़कर कहा। “फिर तुम क्या चाहते हो ?”

“मैं जो चाहता था वही हुआ लेकिन मौत तो इन्तकाम नहीं है। यह तो बहुत आसान और हल्का नुस्खा है। क्षणिक यातना होती है। मौत तो आदमी को उस वक्त आती है जब वह खुद अपनी नजरों से गिर जाए। जब इस समाज में उसके लिये कोई जगह न रहे। वह अपनी जिन्दगी में रुसवाइयों का मजा चखे। मेरा ख्याल है मेहता को हमने सस्ता ही छोड़ दिया।”

“तुम बहुत दिलचस्प बातें कर रहे हो। चलो तुम्हें बोलना तो आया। इसलिए मैं कहती थी कि घर से निकलकर देखो। बहरहाल बब्बन अली के सिलसिले में इस बात का ख्याल रखा जाएगा।”

मोहिनी ने चहक कर कहा। हमने रास्ते में उस समय बब्बन अली से मुठभेड़ करने का इरादा त्याग दिया। दिन दहाड़े बब्बन अली के घर जाना उचित नहीं था। यह काम रात ही में हो सकता था। रात तक का समय गुजरना मुश्किल हो गया। सिर पर खून सवार था। जैसे-तैसे रात आयी मैं बब्बन अली की हवेली की तरफ रवाना हो गया। अशर्फी बेग़म के साथ बब्बन अली ने न जाने कितने घर उजाड़े थे। मैंने उसके चंगुल से तरन्नुम को छीना था। कई महफ़िलों से उसकी बादशाहत छीनी थी और हमारी दुश्मनी कभी खुलकर सामने नहीं आयी थी।

बब्बन अली जैसे लोग समाज में कोढ़ थे। पुलिस भी ऐसे लोगों के इशारों पर नाचती है और अब मैं इस शहर की हवा गरम कर देना चाहता था। बब्बन अली की हवेली में पहुँचना मेरे लिये कोई मुश्किल काम न था। मैं पहले भी वहाँ जा चुका था और हवेली के गुप्त रास्तों का पता मुझे मोहिनी ने बताया था। हवेली रौशन थी और मुझे मोहिनी ने बताया था कि बब्बन अली अंदर मस्ती छान रहा है। इसी तरह हर रोज उसके यहाँ या किसी और नवाब के यहाँ महफ़िलें सजती थीं या फिर नवाब किसी तवायफ के यहाँ अपनी रातें गुजारा करते थे। मैंने पुराना रास्ता अख्तियार किया। बब्बन अली के ख़ास कमरे तक पहुँचने में मुझे किसी प्रकार की कठिनाई पेश नहीं आयी। मैं देर करके इसलिए आया था कि साजिंदों और मेहमानों की उपस्थिति की संभावना न रहे और मैं नवाब से उसके शयनागार में ही मुलाक़ात करूँ।

शयनागार का दरवाजा बंद था। लेकिन वह एक झटके से खुल गया। रास्ते में एक ख़ास नौकर ने मुझे देखकर शोर मचाना शुरू किया, लेकिन मोहिनी ने ठीक समय पर मेरे सिर से उतर कर उसे दूसरी तरफ रवाना कर दिया। मैं जब उस रौशन कमरे में प्रविष्ट हुआ तो बब्बन अली की आगोश में एक बिजली तड़प रही थी। बब्बन अली का भारी भरकम शरीर उस गुलबदन की नजरों से इधर-उधर थिरक रहा था। सामने सुराही रखी थी। वह मदहोश सा था। अर्धनग्न लड़की का आधा बदन बब्बन अली की गोद में समा-समा जाता और निकल-निकल जाता। उन दोनों में दिलचस्प नोक-झोक जारी थी। मैं उसे बयान नहीं कर रहा। बस, वही नोक-झोक जो ऐसे अवसरों पर होती है।

बब्बन अली ने फिर किसी मासूम कली को औरत बनाने के लिये अपनी दौलत और अपने गुंडई हथकंडों का प्रयोग किया था। उस लड़की की हालत से यही मालूम होता था कि वह किसी चकले से नहीं आयी। किसी की बहन-बेटी है।

एक बार मैंने तरन्नुम को भी इसी तरह देखा था। उस मासूम कली की ऐसी ही दर्दनाक कहानी थी। मुझे तरन्नुम की याद आ गयी और मेरा खून खौल गया। मैंने बब्बन को ललकारा तो वह दोनों चौंक कर एक-दूसरे से अलग हो गए। बब्बन अली की नजरें मुझ पर पड़ीं तो वह किसी जहरीले नाग की तरह बल खाकर उठ खड़ा हुआ और खुरदरे स्वर में बोला-
“तुम ? कुँवर राज ठाकुर, तुम अभी तक यहाँ मौजूद हो।”

“तुम्हारा क्या ख्याल है नवाब साहब ? तुम्हारे चमचों ने मुझे दूसरी दुनिया का रास्ता दिखा दिया होगा या जेल में मुझे फाँसी लग गयी होगी। लेकिन जनाब आपका यह खादिम अदब के इस शहर में ठोकरें खा रहा है।”

“बदूबस्त, अब यहाँ क्या लेने आए हो ? अब कौन-सी तुम्हारी बहन को उठा लाए हैं हम!”

“नाराज न हो नवाब साहब। क़िबला आपका इकबाल बुलंद रहे। मैं तो बस सरसरी तौर पर आपसे मुलाक़ात करने आया था। सोचा इस शहर को छोड़ने से पहले आपसे मिलता जाऊँ।”

“लेकिन हम तुम्हारी सूरत भी देखना पसंद नहीं करते। तुमने हमसे हमारी तरन्नुम को छीन कर जाने कहाँ गायब कर दिया। हम तुम्हें कभी माफ नहीं कर सकते। तुम जिस रास्ते से आये हो, उसी से वापस चले जाओ।” नवाब के स्वर में भय का कंपन था। “तुम्हारे लिये बेहतर यही है।”

“वरना फिर नवाब क्या सजा तजवीज करेंगे ?” मैंने मुस्कराकर पूछा।

“फिर हम तो तुम जैसे हरामजादों को कुत्ते के आगे डाल देते हैं।” नवाब ने लड़की की तरफ देखकर कहा, जो सहमी हुई खड़ी थी।

“मैं भी इस वक्त इसी मकसद से आया हूँ।”

“मैं कहता हूँ यहाँ से निकल जाओ।”

“कैसे चला जाऊँ नवाब साहब! आते ही तो आपने लखनऊ का अदब तोड़कर मुझे बहन की गाली दी। अब आपकी बहन को लिये बिना हम भला कैसे यहाँ से रुखसत हो सकते हैं।”

“कमीने, हम तेरा खून पी जाएँगे। अपनी जुबान को लगाम दो वरना हम तुझे इसी वक्त जहन्नुम रसीद कर देंगे।” नवाब बब्बन अली क्रोध से पागल हो गया।

फिर उसके हाथ में जो चीज आयी मुझ पर उठाकर फेंकने लगा। उसके पागलपन का यह तमाशा मेरी दिलचस्पी का सामान था। वह लड़की जिसका नाम नौशाबा था, एक तरफ खड़ी थी।
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Vivanjoshi
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Kahani achi hai, magar upadte jaldi or bad3 dijiye
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