Fantasy मोहिनी

Post Reply
Vivanjoshi
Posts: 26
Joined: 08 Sep 2020 13:41

Re: Fantasy मोहिनी

Post by Vivanjoshi »

😆
chusu
Novice User
Posts: 683
Joined: 20 Jun 2015 16:11

Re: Fantasy मोहिनी

Post by chusu »

sahi...................
User avatar
Dolly sharma
Pro Member
Posts: 2734
Joined: 03 Apr 2016 16:34

Re: Fantasy मोहिनी

Post by Dolly sharma »

मैं केवल एक दायरे में देख सका। मगर मुझे वह नजर आ गया। हरि आनंद हजूम को चीरता कमरे में बढ़ा आ रहा था और चीख रहा था– “मुझे रास्ता दो, मुझे रास्ता दो!” वह लोग आश्चर्य से उसकी ओर देखने लगे।

“तुम कौन हो महाराज और यहाँ कैसे ?” पुलिस ऑफिसर ने उसका रास्ता रोकते हुए कहा। “शायद तुम गलत जगह आ गए हो।”

“हटो! मुझे रास्ता दो। मैं ठीक वक़्त और ठीक जगह आया हूँ। वह तुम्हारे काबू में नहीं आएगा। मैं तुम्हारी मदद करने आया हूँ। एक अरसे बाद मुझे इसका अवसर मिला है। मैं इसे तुम्हारे हवाले करूँगा। तुम नहीं जानते कि तुम्हारा वास्ता कितने बड़े शैतान से पड़ा है।” हरि आनंद ने गरजदार आवाज़ में कहा।
“क्या तुम उसे जानते हो ?” पुलिस ऑफिसर ने पूछा।

“मैं किसे नहीं जानता ?” हरि आनंद ने लहराकर कहा। “वक़्त कम है। देर न करो। बाकी बातें बाद में पूछना। वह बड़ी मुश्किल से काबू में आया है। इस वक़्त उसकी परी मोहिनी भी उसके साथ नहीं है। दरवाजा तोड़ दो। अन्दर दाखिल हो जाओ।” हरि आनंद ने जैसे-तैसे आज्ञा दी।

“मगर तुम्हारा उससे क्या सम्बन्ध है ?” पुलिस ऑफिसर ने तफ्तीश से पूछा।

“मेरी उससे पुरानी दोस्ती है। आज मैं दोस्ती का हक निभाने आया हूँ।” हरि आनंद ने व्यंग्य से उत्तर दिया। “ठहरो, दरवाजा तोड़ने की क्या आवश्यकता है! आओ, मैं इसे खोलता हूँ! मैं इसे अभी खोल देता हूँ।” यह कहकर उसने आँखें बंद कर ली और बुदबुदाने लगा।

पुलिस वाले आश्चर्यचकित निगाहों से उसे देख रहे थे। वह इस बात की कशमकश में थे कि हरि आनंद की बातों का विश्वास कर लें या उसे धक्का देकर अन्य लोगों की तरह बाहर निकाल दें। मजमे में सुकून छा गया था। अब मुझे विश्वास था कि दरवाजा क्षणों में खुल जाएगा और वह लोग हरि आनंद से प्रभावित हो जायेंगे। इतनी छोटी सी बात हरि आनंद के लिये क्या महत्व रखती थी। मैंने झिर्री पर पर्दा गिरा दिया और छिपने की नाकाम कोशिश करने लगा। मैं कमरे में इधर-उधर भाग रहा था। मुझे अपना अंजाम साफ नजर आ रहा था। यकीनन हरि आनंद ने मोहिनी के रास्ते अपने किसी जाप से रोक दिए होंगे। वह मेरी ताक में था। मैं अपने पसीने से डूबने लगा।

कुछ क्षणों की बात थी, उसके बाद मैं पुलिस के चंगुल में फँसने वाला था। फिर वही गिरफ्तारियाँ, फिर वही थाना, कचहरी, पुलिस जेलखाना। मोहिनी के आने की कोई सूरत नहीं थी। मुझे मायूसियों ने घेर लिया और मेरी साँस उखड़ने लगी। फिर मैंने दिल को दिलासा दी। ठीक है। वह मुझे गिरफ्तार कर लेंगे। मगर गिरफ्तारी अस्थाई होगी क्योंकि मोहिनी किसी न किसी वक़्त मेरे सिर पर आ जाएगी। उस जगह न सही किसी और जगह सही। लेकिन थोड़ी देर बाद पुलिस के हाथों मेरी जो गत बनने वाली थी, उसने मुझे भयभीत कर दिया था।

मैं सहमे हुए अंदाज में दीवारों में छुपने की कोशिश करने लगा। मेरी दृष्टि दरवाजे पर जमी थी। वह अब चरमराने लगा था। पुश्त की दीवार ने मेरा रास्ता रोका तो मैं चौंका। मैंने पलटकर पिछली तरफ खुलने वाली खिड़की से बाहर झाँका। हजूम देखकर मेरे रहे-सहे होश भी गुम होने लगे। गली में तिल धरने की जगह नहीं थी। अब दरो-दीवार मेरी हालत पर मुस्करा रहे थे। फिर अचानक एक चोट के साथ दरवाजा खुल गया। सबसे पहले एक वर्दीधारी पुलिस इंस्पेक्टर अन्दर दाखिल हुआ। मेरा जिस्म सिमट गया। उसी क्षण एक जानी-पहचानी आवाज ने मेरे कानों में सरगोशी की।

“राज, कोई आवाज न निकालना! जिस तरह खड़े हो वहाँ से जरा भी जुम्बिश न करना। पुलिस तुम्हारा बाल भी बाँका न कर सकेगी।”

कल्पना! यह आवाज कल्पना की थी। दूसरे ही क्षण पुलिस दनदनाती हुई कमरे में दाखिल हो गयी। वह क्षण आज भी मेरी कल्पना में सुरक्षित है जब मैं पुलिस की निगाहों के सामने खड़ा था लेकिन कानून के रक्षक मुझे देख पाने में असमर्थ थे। कमरे में अपने परम्परागत लिबास में खूबसूरत सुन्दरी कल्पना खड़ी थी। एक पुलिस ऑफिसर ने आगे बढ़कर डपटते हुए स्वर में उससे पूछा।
“तुम कौन हो ? वह कहाँ है ?”

“वह कौन ? वह तो कब के चले गए!” कल्पना ने मासूमियत से उत्तर दिया।

“लड़की! वह यहीं मौजूद है। हमें उसका पता बताओ। वह मुजरिम है और अधिक देर तक हमें झाँसा नहीं दे सकता।”

“कौन मुजरिम है ? किसकी बात कर रहे हैं आप ? कुँवर राज ठाकुर तो कब के चले गए।” कल्पना ने उसी सादगी से कहा।

मैं बिलकुल खामोश एक कोने में खड़ा था और आश्चर्यचकित नजरों से कभी कल्पना को तो कभी पुलिस वालों को देख रहा था। पुलिस ऑफिसर झल्लाया हुआ कल्पना के पास पहुँच गया और गुर्राकर पूछा- “वह कब गया ?”

“बहुत देर हो गयी। ना जाने कितनी देर हो गयी।” कल्पना ने बच्चों की तरह कहा।

“और तुम। तुम कौन हो और क्या करती हो ? तुम यहाँ क्या कर रही हो ? तुमने यहाँ क्या-क्या देखा है ?” पुलिस ऑफिसर ने बदहवासी से पूछा।

“म... मैं ? मैं जनाब कल्पना हूँ। एक दासी। मैंने यहाँ कुछ नहीं देखा। मैं तो देर से आयी थी।”

“दासी ?” पुलिस ऑफिसर बड़बड़ाया फिर गरजकर बोला। “लड़की तुम्हारे सामने पुलिस है। हमें साफ़-साफ़ बताओ, तुमने बार-बार पुकारने पर भी दरवाजा क्यों नहीं खोला ? तुमने मुजरिम को जरूर कहीं छुपा दिया है। वह यहाँ से कहीं नहीं जा सकता। खैर, हम तुमसे बाद में निपट लेंगे। तुम इस वक्त खुद को गिरफ्तार समझो।

“महाराज!” उसने घूमकर कहा। “महाराज कहाँ गए ?”

शायद वह हरि आनंद के दरवाजा खोल देने से प्रभावित हो गया था इसलिए बुलाना चाहता था। हरि आनंद उसकी आवाज सुनकर मुस्कराता हुआ अन्दर प्रविष्ट हुआ लेकिन वह दूसरे ही क्षण कल्पना को देखकर ठिठक गया। हरि आनंद और कल्पना के बीच तेज-तेज नजरों का टकराव हुआ और हरि आनंद बेपरवाही से पुलिस ऑफिसर से संबोधित हुआ।
“क्या है ? तुमने मुझे पुकारा महाशय ?”

“महाराज, दरवाजा खोलने पर हमें यह लड़की नजर आयी! कदाचित इसका सम्बन्ध भी अशर्फी बेगम की तवायफों से है। यह कहती है कि मुलजिम राज ठाकुर यहाँ से जा चुका है।” पुलिस ऑफिसर ने हरि आनंद को रिपोर्ट देते हुए कहा।

“जा चुका है ?” हरि आनंद ने आँखें फाड़ते हुए कहा। “क्या तुम सब अंधे हो गए हो ? वह तुम्हारे सामने मौजूद है। देखो, सामने खड़ा है! वह कौन बदमाश दीवार से चिपका भयभीत खड़ा है। इसे पकड़ लो। आज इसका काम तमाम हुआ।”

“कौन महाराज ? आप क्या कह रहे हैं ? यहाँ तो इस लड़की के सिवा कोई नहीं है।” पुलिस ऑफिसर ने विचित्र नजरों से हरि आनंद को देखा।

“क्या कहा ? क्या सचमुच वह तुम्हें नजर नहीं आ रहा है ? वह सामने देखो। अरे, तुम्हारे बिल्कुल सामने! यह टुंडा सैकड़ों जरायम कर चुका है। न जाने कितने इंसानों का खून कर चुका है। खिड़की के निकट सहमा हुआ कौन खड़ा है।”

“महाराज!” पुलिस ऑफिसर ने आँखें मलते हुए उकताकर कहा। “खिड़की के निकट। क्या आप मजाक कर रहे हैं ? आप सपना देख रहे हैं ? क्या आप... पागल हो गए हैं ?”

“ओह्हो!” हरि आनंद जैसे कुछ समझ कर बोला। “ठीक है, ठीक है! यह सब इसकी शरारत है। इस सुन्दर नार की। यह लड़की। तुम इसे गिरफ्तार कर लो। इसने तुम्हारी आँखों पर पर्दा डाल दिया है। तुम्हें कुछ नजर नहीं आएगा।” फिर तिलमिलाकर बोला- “ठहरो! मैं इसका तोड़ करता हूँ।” यह कहकर उसने अपनी रानों पर जोरदार हाथ मारा।
User avatar
Dolly sharma
Pro Member
Posts: 2734
Joined: 03 Apr 2016 16:34

Re: Fantasy मोहिनी

Post by Dolly sharma »

उसी समय कल्पना ने अपना हाथ उठाया और हरि आनंद की तरफ झटक दिया। कल्पना अब तक पुलिस और हरि आनंद की बदहवासी को दिलचस्पी और सादगी से देख रही थी लेकिन अब उसका खामोश रहना उचित नहीं था। वह गंभीर स्वर में बोली-
“हरि आनंद, यह चरवे पुराने हैं! तुम्हारी शक्ति ने मोहिनी का रास्ता थोड़ी देर के लिये अवश्य रोक लिया लेकिन तुम कल्पना को भूल गए। जाओ, हमारे रास्ते से हट जाओ। इसी में तुम्हारी मुक्ति है।”

“देवी, आज तुम्हारा कोई जादू नहीं चलेगा! राज ठाकुर ने दो क़त्ल किए हैं। तुम कब तक इसे बचाओगी। वह पाप-जुर्म करता रहेगा तो एक न एक दिन सजा पायेगा। आज वह दिन आ गया है। अब इसे कोई नहीं बचा सकता।” हरि आनंद ने दबे स्वर में कहा।
“हरि आनंद!” कल्पना की आवाज में नरमी थी। “कुँवर राज ठाकुर पर उस समय तक कोई हाथ नहीं डाल सकता जब तक मैं मौजूद हूँ। तुम एक साधारण से पंडित, इतना भी नहीं जानते कि मैं कौन हूँ ?”

कल्पना की यह दिलेरी देखकर पुलिस का सारा दस्ता चौकन्ना हो गया और पुलिस ऑफिसर ने कठोरता से कहा- “लड़की! अधिक बातें न बनाओ। सीधी तरह हमें उसका पता बताओ ?”

“अपने महाराज से उसका पता पूछो।” कल्पना ने व्यंग्य से कहा।

“वह अभी गिरफ्तार हो जाता। मैं कुछ सोच-समझ कर यहाँ आया हूँ देवी। मैं यह अवसर हाथ से न जाने दूँगा।” हरि आनंद ने फिर कहा।

“हरि आनंद, तुम्हारा समय भी निकट आ रहा है। यह दो माह भी समाप्त हो जाएँगे। माला रानी और डॉली का खून तुम्हारी गरदन पर है। मुझे तैश मत दिलाओ। तुम यहाँ से चले जाओ, मैं तुमसे आखिरी बार कहती हूँ।”

“क्यों देवी ? मुझसे डर लगने लगा है ? मुझ पर माला रानी और डॉली का खून है मगर राज ठाकुर, तुम्हारे इस प्रेमी की गर्दन पर अनेक मनुष्यों का खून है।” हरि आनंद ने गुस्से से काँपते हुए कहा।”

यह कहकर उसने छत की तरफ देखकर कुछ पढ़ा और मेरी तरफ उँगली उठा दी। मुमकिन था कि मैं काँप जाता परन्तु तभी मुझे कल्पना की चेतावनी का ध्यान आया। मैं साँस रोके खड़ा रहा। हरि आनंद के अमल के उत्तर में कल्पना ने भी अपनी उँगली के दायरे बनाने शुरू कर दिए और अपना रुख हरि आनंद की ओर कर दिया। दोनों के बीच यह हैरतअंगेज नोक-झोक थोड़ी देर जारी रही।

“देवी! तुम इसे यहाँ से नहीं ले जा सकती। पुलिस को सारी बात मालूम हो गयी हैं। अब राज ठाकुर का बचना मुश्किल है। मेरे आने का उद्देश्य यही था कि मैं असली मुजरिम का पता पुलिस को बताऊँ और मेरा काम किसी सीमा तक पूरा हो गया है।”

“मेरे आने का भी उद्देश्य यही था कि मैं राज ठाकुर की मदद करूँ।” कल्पना ने दो टूक जवाब दिया।

“सुन लिया! सुन लिया, तुमने पुलिस के गुर्गों ?” हरि आनंद ने पुलिस को संबोधित किया। “क्या अब भी तुम्हें यकीन नहीं आया कि यह औरत है जिसने राज को इस कमरे में ही अदृश्य कर रखा है। तुम्हें यकीन आया कि वह दुष्ट अब तक क्यों बचता रहा है ?”

“इन बातों से कोई लाभ नहीं है हरि आनंद।” कल्पना ने जहरीले स्वर में कहा। “तुमने देख लिया कि तुम नाकाम हो चुके हो। अब यहाँ से चले जाओ।”

पुलिस ऑफिसर अब उकताने लगे थे। वह कल्पना और हरि आनंद की रहस्यमय बातें समझने में असमर्थ थे। एक पुलिस ऑफिसर के संकेत पर दो कांस्टेबलों ने पलंग के नीचे आलमारियों, मेजों और आदमकद शीशों के पीछे मुझे तलाश करना शुरू किया। उन्होंने तमाम वस्तुएँ उलट-पलट डालीं। इस बीच दो कांस्टेबल भयभीत दिलनशीं, गजाला, शमीम और खुर्शीद को पकड़ कर अन्दर लाए। उनमें अशर्फी बेगम के नौकर भी सम्मिलित थे। शमीम काँप रही थी और दिलनशीं तस्वीर बनी हुई मुजरिमों की तरह पुलिस के सामने खड़ी थी।

“क्यों, तुम्हें यकीन है कि वह यहाँ मौजूद था ?” पुलिस ऑफिसर ने उनसे पूछा।

“जी हाँ! हम उसे यहीं छोड़कर गए थे।”

“मगर संभव है, वह अंत में फरार हो गया हो।” शमीम ने डरते-डरते जुबान खोली।

“वह कहाँ फरार हो सकता है ? तुम सारा घर दिखाओ।” पुलिस ऑफिसर ने शमीम को हुक्म दिया। दो कांस्टेबल उसे धक्का देते हुए कमरे से बाहर ले गए।

“यह कौन है ?” पुलिस ऑफिसर ने कल्पना की तरफ संकेत करते हुए दिलनशीं से पूछा।

“यह मुझे नहीं मालूम।” दिलनशीं ने काँपते हुए उत्तर दिया।

“महाशय! क्यों समय बर्बाद कर रहे हो ? यह नारियाँ तुम्हें क्या बताएँगी ? जो पूछना है, इस नारी से पूछो।” हरि आनंद ने उनका ध्यान कल्पना की तरफ आकर्षित कराया।

“हरि आनंद!” कल्पना ने उसे घूरकर देखा। “इन्हें क्यों मजबूर करते हो ? क्या तुमने अपनी असफलता स्वीकार कर ली ?”

“तुम इसे काबू में कर लो तो मैं कुँवर राज ठाकुर को अभी तुम्हारे हवाले कर दूँगा।” हरि आनंद ने पुलिस ऑफिसर से कहा। वह स्वयं कल्पना के पास जाने से झिझक रहा था।

फिर हरि आनंद ने मेरी आँखों में आँखें डालकर कहा– “कुँवर राज ठाकुर! मैं अँधा नहीं हूँ। उचित है कि अपनी जगह चलकर खुद आ जाओ। वरना तुम वहीं अग्नि में जल-भुन जाओगे।” यह कहकर वह आगे बढ़ा।

“रुक जाओ हरि आनंद!” कल्पना ने दहाड़कर कहा। उसी समय कांस्टेबल ने उसकी कलायी पकड़ ली। मगर दूसरे क्षण वह चीखकर दूर जा गिरा। उसका यह अंजाम देखकर दूसरा कांस्टेबल आगे बढ़ा। उसने कल्पना को काबू में करना चाहा किन्तु उसका भी वही अंजाम हुआ।
Post Reply