Fantasy मोहिनी

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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

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शाम को आठ बजे मैं उसके घर पर था। उसने चौकी सजाई हुई थी। जिस पर माता की मूर्ति स्थापित की गई थी। पूजापाठ की सारी सामग्री रखी थी। चौकी पर दीपक जल रहा था। उस वक्त वह वहां अकेली बैठी थी। उसका बेटा रामा वहां मौजूद नहीं था। घर का दरवाजा खुला था इसलिए मैं सीधा अंदर चला आया। साधारण सा घर था। उस कमरे में लोबान की महक उठ रही थी। उसने मुझे बैठने का इशारा किया।

वह थोड़ी देर तक पूजा की क्रियाएँ करती रही फिर उसने मुझे रोली का टीका लगाया।

“राज! मेरी एक बात मान लो तो जीवन का जो सुख चाहोगे वह तुम्हारे कदमो में होगा।”

“जी फरमाइए।”

“मैं एक तांत्रिक हूँ। छोटे मोटे अम्ल कर लेती हूँ, इन अम्लों से मैं लोगों के रोगों का निदान भी करती हूँ, लेकिन तुम्हारे भीतर एक विलक्षण शक्ति है। मैंने महसूस किया है।”

“मैं कुछ समझा नहीं। मैं तो एक साधारण सा इंसान हूँ एक छोटी सी नौकरी करता हूँ और उसी से गुजर-बसर करता हूँ।”

“तुम पर मोहिनी मेहरबान हो सकती है। यही विलक्षण शक्ति तुम्हारे अंदर है।”

“मोहिनी....मोहिनी...क्या ?”

“मोहिनी एक चंडालिनी है। जो उसे साध लेता है वह मालामाल हो जाता है। वह छिपकली जैसी दिखती है...वही उसका वास्तविक रूप है। आवश्यकता पड़ने पर वह इंसानी रूप भी धारण करती है। तांत्रिकों के लिये मोहिनी सिद्ध कर पाना बहुत कठिन होता है, अगर साधना विफल हो गई तो खुद के प्राण भी गंवाने पड़ सकते हैं इसलिए मोहिनी को सिद्ध करने की कोशिश बिरले ही तांत्रिक करते हैं।”

“यह सब बेकार की बातें हैं आंटी जी, मैं इन बातों पर यकीन नहीं करता।”

“तुम मोहिनी को बहुत सरलता से बिना सिद्ध किये हासिल कर सकते हो। बस तुम्हे कुछ जाप....”

मैं उसकी पूरी बात सुने बिना उठ खड़ा हुआ, मैं ऐसी औरत के पास भी नहीं बैठ सकता था जो इस तरह की बातें करे।

“रुको तो....मेरी बात तो सुनो...”

पर मैं बात सुने बिना उस घर से निकल आया।

मैं सोच रहा था कि मेरे पड़ोसी अच्छे लोग नहीं हैं। मुझे तांत्रिकों से बेहद नफरत थी और मेरे दिलो दिमाग में यह बात मुकम्म्ल तौर पर घर कर गयी थी कि तांत्रिक बहुत बुरा, गंदा और नीच इंसान होता है। इनके साथ से भी दूर रहना चाहिये।

अब मैं कहीं और मकान तलाश करने लगा लेकिन चंद दिन ही बीते थे कि एक अविश्वसनीय घटना हुई। उस दिन रविवार था। मैं घर पर ही था। शाम के चार बजे थे। मेरा दरवाजा खटखटाया गया। मैंने घर का दरवाजा खोला तो सामने रामा को खड़े पाया। वह मुझे देखते ही रोने लगा।

“बात क्या है ?” मैंने उसे पूछा– “तुम रो क्यों रहे हो?”

रामा औसत कद का मेरा हमायु नौजवान था। उसका पूरा नाम रामदयाल था। रंगत अपनी माँ की तरह गोरी थी बाल घुघिरपले थे, शरीर मोटा था।

“माँ ...” वह भर्राये स्वर में अटक-अटक कर बोला– “माँ का स्वर्गवास हो गया है।”

“क्या ?”

“हाँ राज बाबू... जरा मेरी मदद करो।” वह आंसू बहाते हुए बोला, “अब यहाँ हमारे रिश्तेदार भी नहीं हैं...दो-चार मोहल्ले वाले इकट्ठा होकर माँ का दाह संस्कार...।”

यह वह वक्त होता है जब कोई इंसान कितना भी व्यस्त हो अपनी व्यस्तता छोड़कर इस कार्य में सबसे पहले शिरकत करता है। लोग अजनबियों की शवयात्रा के साथ भी चल देते हैं। भले ही मैं उसकी माँ से नफरत करता था पर वह नफरत एक पल में खत्म हो गई।
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Dolly sharma
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मैं जल्दी से कपड़े पहन कर रामा के साथ हो लिया। कुछ मोहल्ले वाले भी इकट्टा हो गए थे। उनकी बातों से पता चला कि उनकी मौत हार्ट अटैक से हुई थी। वह ध्यान में बैठी थी और बैठे-बैठे उसके प्राण शरीर से निकल गए।

उसी समय अंतिम यात्रा की तैयारी कर ली गई और उस औरत को शमशान घाट ले जाया गया। जमुना किनारे चंद लोगों ने उसकी अंतिम क्रिया में शिरकत की। उनमे से एक मैं भी था। चिता को आग उस वक्त दी गई जब रात का अँधेरा फ़ैल चुका था।

चिता की लपटें उठ रही थी। रामा की माँ का शव चिता में जल रहा था। मुझे जाने-अंजाने उस औरत की बातें याद आ रही थी कि एकाएक न जाने क्या हुआ मेरे दिल की धड़कने तेज होने लगी। मैं बेहद खौफजदा हो गया। ठंड में भी मेरे पसीने छूटने लगे। मैंने उस औरत को जलती चिता में उठते देखा। उसका जिस्म आग में धधक रहा था और वह चिता के बीच में एकदम तन कर सीधी खड़ी थी। उसकी दहकती अंगारो जैसी आँखें मुझे घूर रही थी। मैं थर-थर कांपने लगा। फिर एक करुणा भरी आवाज मेरे कानो में सरसराने लगी, यह उसी औरत की आवाज थी वह कह रही थी–

“मैं मोहिनी को सिद्ध करना चाहती थी। उसने मुझे मार डाला...मार दिया उसने मुझे। काश कि तुमने मेरी बात मान ली होती। मोहिनी तुम पर मेहरबान है।”

आवाज रोने में तब्दील हो गई। मेरे रोंगटे खड़े हो गए। मैं ज्यादा देर तक वहां ठहर नहीं पाया और रामा को बताये बिना चुपचाप लड़खड़ाते कदमों से शमशान घाट के बाहर आ गया। उस वक्त मुझे कोई सवारी नहीं मिली। मैं जमुना ब्रिज की तरफ पैदल चल पड़ा। बार-बार उस औरत के शब्द मेरे कानों में नश्तर की तरह चुभ रहे थे। मैं अनगिनत सवालो के मंजर में फंसा पैदल-पैदल चलता रहा।

घर तक का सफर मैं पैदल ही तय कर रहा था। अचानक मेरा सिर भारी होने लगा जैसे किसी ने मेरे सिर पे वजनी पत्थर रख दिया हो...कि चलते-चलते मुझे यूँ लगा जैसे कोई तिनका मेरे सिर पर आ गिरा हो। मैंने दायें हाथ से सिर पर गिरे तिनके को हटाने की कोशिश की परन्तु तिनका मेरे हाथ में नहीं आया फिर भी महसूस हो रहा था कि तिनका बदस्तूर मेरे सिर पर विराजमान है।

दो-तीन बार कोशिश करने पर भी मैं तिनके को हटा नहीं पाया। घर पहुँच कर मैंने स्नान किया। आईने में उस तिनके को देखने की कोशिश की पर वह नज़र नहीं आया। जब मैं बिस्तर पर लेटा तो यूँ लगा तिनके में हलचल शुरू हो गई और वह मेरे बालो में इधर-उधर सरक रहा है। कभी-कभी उसकी चुभन भी मुझे महसूस होती। मैं परेशान सा करवटें बदलता रहा। खाना भी नहीं खाया। देर रात गुजरने पर मुझे नींद आ गई। फिर मैं सुबह देर से जागा। मैंने घड़ी में वक्त देखा आठ बज रहे थे। ठीक दस बजे तक मैं दफ्तर पहुँच जाता था। मैं जल्दी से उठकर सुबह के कामो से निवृत हो गया। चाय नाश्ता मैं घर पर ही बना लेता था। जल्दी से नाश्ता तैयार किया। नौ बजकर पंद्रह मिनट में मैं घर से निकला।

वह तिनका अब भी मेरे सिर पर मौजूद था। कई बार उसे हटाने के लिये बार-बार कंघा कर चुका था। जिस वक्त मैं दफ्तर पहुंचा तो मैंने घड़ी में वक्त देखा दस बजने में पांच मिनट बाकि थे।

दफ्तर में एंटर हुआ ही था कि बुरी तरह उछल पड़ा। मुझे लगा उस तिनके ने छिपकली की शक्ल धारण कर ली है। छिपकली मेरे सिर पर पंजे गाढ़े हुए चिपकी थी। अब मेरी इतनी भी हिम्मत नहीं थी कि सिर पर हाथ ले जा सकूँ। मेरे माथे पर पसीने की बूँदें सरकने लगी। एक अजीब सा खौफ सनसनाने लगा। मैं दफ्तर पहुँचते ही तुरन्त बाथरूम में पहुंचा। आईने में खुद को देखा। पर सिर पर छिपकली नज़र नहीं आई। लेकिन मैं महसूस कर सकता था कि छिपकली सिर पर मौजूद थी। हिम्मत करके मैंने कंघे को बालो पर फिराया कंघा छिपकली के आर-पार निकल गया। मैं डरा सहमा सा वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गया। अभी सीट पर बैठे पांच मिनट भी नहीं गुजरे थे कि ऑफिस का चपरासी मेरे पास आया।

“साहब आपको बुला रहे हैं।” उसने कहा।

“ठीक है! मैं आता हूँ।”

दो मिनट बाद ही मैं बॉस के केबिन में खड़ा था।

“मैं देख रहा हूँ पिछले पंद्रह दिन से तुम ऑफिस में बराबर लेट आ रहे हो। आज भी आधा घण्टा लेट हो।” बॉस बोला।

यह ऐसा इल्जाम था जिसे मैं कभी स्वीकार नहीं कर सकता था। मैं हमेशा ठीक वक्त पर ऑफिस पहुँचता था।

“नहीं सर। मैं कभी लेट नहीं होता। आज भी नहीं।”

“इडियट मुझे पढ़ा रहे हो।”

मैंने महसूस किया छिपकली मेरे सिर से गायब थी।

बॉस गरज रहा था “हरामखोर, कई बार तो मैं तुम्हे टोक चुका हूँ....रोज झूठ बोलते हो...हद हो गई जरा घड़ी में वक्त देखो। साढ़े दस बज रहे हैं इस वक्त।

मैंने ऑफिस में लगी वॉल क्लॉक को देखा– वाकई साढ़े दस बज रहे थे।

“सर! मैं कसम खाकर कहता हूँ कि मैं ठीक वक्त पर आया हूँ यह घड़ी शायद आगे चल रही है।”

“मुंह जोरी करता है मुझसे....।” वह अपनी सीट से उठा और उसने मेरे गाल पर एक थप्पड़ रसीद कर दिया। थप्पड़ इतना जोरदार था कि मेरा सिर झनझना उठा।
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Re: Fantasy मोहिनी

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“मैं अभी तुझे नौकरी से बर्खास्त कर रहा हूँ।”

“सॉरी सर...सर एक चांस।” थप्पड़ खाकर भी मैं उसके आगे गिड़गिड़ाया था। वह ऑफिस टेबल पर बैठ कर एक पेपर पर कुछ लिखने लगा।

“दफा हो जाओ।” उसने कागज मेरी तरफ सरका दिया।

“सर! मैं आइन्दा ध्यान रखूँगा।” मैंने हाथ जोड़ दिए।

अचानक छिपकली फक्क से मेरे सिर पर आई। उसने करवटें बदली और फिर एक खूबसूरत लड़की के रूप में तब्दील हो गई। उसके सुर्ख होंठ मुस्कुरा रहे थे वह आलथी पालथी मारे सिर पर बैठ गई। उसकी जुल्फे काली घनेरी थी आँखें पुरकाशिश थी। बेहद हसीन लड़की थी।

फिर मेरे कानों में किसी नारी का सुरीला स्वर सुनाई दिया– “राज! कोई तुम्हे थप्पड़ मारे इसे मैं बर्दाश्त नहीं कर सकती। तुम्हारा बॉस झूठा है, कमीना है।

“त....तुम...कौन ?” मैं बड़बड़ाया।

“ओय! अब यहाँ खड़ा-खड़ा मेरा मुँह क्या देख रहा है।” तभी बॉस गरजा, “निकल जा मेरे ऑफिस से अभी।”

“सबक सिखा इस हरामी को....” कान में वही सुरीला स्वर सुनाई दिया, “डर मत मैं तेरे साथ हूँ...चल पेपरवेट उठा और मार दे इसके सिर पर....चल पेपरवेट....देख क्या रहा है।”

मुझे लगा किसी ने मेरे बालों को बुरी तरह जकड़ लिया है और उस आवाज ने मुझे अपने वश में कर लिया है। मैंने आव देखा न ताव, पेपरवेट उठाया और लगातार तीन चार बार बॉस के सिर पर दे मारा। बॉस की खोपड़ी खुल गई, वह औंधे मुंह मेज पर लुढ़क गया, उसके सिर से बहता खून मेज पर फैलने लगा।

मैं यह देख कर घबरा गया कि मैंने क्या कर दिया। फिर मुझे कुछ नहीं सूझा और दफ्तर से बाहर निकल आया। बस स्टॉप से बस पकड़ी और गांधीनगर के लिये रवाना हो गया। अब वह हस्ती मेरे सिर पर नहीं थी। मुझे राहत सी महसूस होने लगी। सोचने लगा वह क्या था। पहले तिनका, फिर छिपकली, फिर लड़की। अचानक मुझे याद आया कि रामा की माँ ने कहा था कि मोहिनी का असली रूप छिपकली का होता है....तो क्या ये मोहिनी है...हे भगवान...यह मेरे साथ क्या हो रहा है ? हो सकता है मेरा बॉस मर गया हो। पुलिस उसके कत्ल के इल्जाम में पकड़ लेगी, फिर मेरा क्या होगा, जेल की सलाखें फिर फांसी का फंदा।

फांसी का फंदा मेरी आँखों के सामने झूल रहा था।

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