Fantasy मोहिनी

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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

Post by Dolly sharma »

उसने तुरंत अपना हाथ मेरे सामने कर दिया और मैंने सीट के ऊपर लगा बटन दबाकर पूरे ध्यान से रोशनी में उसके हाथ की रेखाएँ देखनी शुरू कर दी।

उसका नर्म मुलायम सफ़ेद सुर्ख हाथ मेरे हाथ में आया तो खून की गर्दिश बढ़ गयी। इस अर्शे में मोहिनी अपना काम करती रही और मुझे उस लड़की के अतीत, उसकी दिलचस्पियों उसके प्रोग्राम और उसके मित्रों के संबंध में बताती रही।

मैंने एक सर्द आह भरी- “आह! मिस सारा। मुझे खेद है कि आपको यात्रा अधूरी छोड़कर अपने वतन वापस जाना पड़ रहा है। आपकी प्यारी माँ का स्वर्गवास हो गया है।”

“हाँ, यह सही है!” वह आश्चर्य से बोली। “आप तो बहुत पहुँचे हुए मालूम होते हैं।”

मैंने उसकी बात पर कोई टिप्पणी नहीं की बल्कि गंभीरता धारण कर ली।
“और बताइए!” उसने बेचैनी से कहा।

मेरे लिए बताना क्या मुश्किल था। मेरे पास एक फितना मौजूद था जिसके पास सारी दुनिया की खबरें थीं।

मैंने उसे सारी जानकारियाँ सही-सही दे दी। वह हक्की-बक्की मेरा मुँह देखने लगी।

“आप महान हैं। मैंने हिन्दुस्तानी ज्योतिषियों से भी इतनी सही जानकारी नहीं प्राप्त की। आपने मेरे बारे में जो बातें बतायी हैं वह शत-प्रतिशत सही है।”

मैंने हल्की सी मुस्कराहट के साथ उठने की इजाज़त चाही उसने मुझे रोक लिया और पूछने लगी- “लंदन में आप कहाँ ठहरेंगे ?”

“मुझे मालूम नहीं! कोई अच्छा सा होटल देख लूँगा।”

“आप हमारे घर ठहरिए! हम लंदन से चौदह-पंद्रह मील दूर रहते हैं। वह आधा शहरी और आधा देहाती क्षेत्र है।” उसने दावत दी।

“मुझे खेद है। मैं होटल में ठहरना अधिक पसंद करता हूँ। आपकी इनायत का बहुत-बहुत शुक्रिया।”

“क्या मैं आपके पास आ सकती हूँ ? यदि आपका समय नष्ट न हो ?”

“शौक से। लंदन में मुझे किसी साथी की आवश्यकता पड़ेगी। आप आ जाएँगी तो वह अजनबी शहर मैं अच्छी तरह देख लूँगा।”

“मेरी ख़ुशक़िस्मती होगी।” फिर उसने एक कार्ड दिया। “यह मेरा फ़ोन नम्बर है। आप होटल में ठहरने के बाद मुझे फ़ोन कर लीजिएगा।”

यात्रा की शुरुआत दिलचस्प हुई। मैं अपनी सीट पर आ गया और दूसरे यात्री की तरह ऊंघने लगा। फिर मुझे नींद आ गयी और मैं सुबह सवा नौ बजे लंदन एयरपोर्ट पर उतर गया।
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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

Post by Dolly sharma »

लंदन!

यूरोप का शाही शहर!
इंसानों का जंगल! वहाँ कोहरा छाया हुआ था। यह दुनिया अजीब थी। हवाई अड्डे पर उतरते ही अंदाज़ा होता था कि मैं किसी दुनिया में आ गया हूँ। चहल-पहल, भागते हुए लोग, जागते हुई गाड़ियाँ, रेल-पेल।
मोहिनी भी दिलचस्प नजरों से लंदन का नजारा देख रही थी।

“यह इंग्लैंड है मोहिनी। अंग्रेज़ों का देश। हमारे पुरानों आकाओं का...।”

“मेरे आका तो तुम हो।”

“क्या कुछ अच्छा लग रहा है ? सुर्ख-सुर्ख चेहरे देखकर तो तुम्हारे मुँह में पानी आ गया होगा।” मैंने उसे छेड़ा।

“और तुम इन गोरी-गोरी हसीनाओं को कैसे वासना भरी नज़रों से देख रहे हो। यहाँ तुम्हारी दिल्लगी के लिए भी पूरा सामान मौजूद है।”

हमने एयरपोर्ट से एक टैक्सी पकड़ ली और लंदन के एक शानदार होटल में जा ठहरे।

इस होटल का किराया बहुत अधिक था। मेरे पास गिनती के चंद पाउंड थे जो मैंने पेशगी के तौर पर जमा करा दिए। यह होटल पुराने ढंग के एक इमारत में था। नृत्य-घर, नाइट क्लब और स्वीमिंग पूल।
स्नान करने के बाद मैंने मोहिनी को अपने सिर से जुदा कर दिया कि वह मेरे लिए रक़म का प्रबंध करे। मोहिनी के संकेत से मुझे नीचे जाने की जहमत उठानी पड़ी।

मेरी आपबीती सुनने वाले निश्चय ही बड़ी आसानी से अनुमान लगा चुके होंगे कि मुझे क्या करना पड़ा होगा और मोहिनी कहाँ गयी होगी। बहरहाल मैं जानता था कि कैशियर मुझसे रक़म माँगने नहीं आएगा।
उस दिन तो मैं शाम तक बिस्तर पर आराम करता रहा। शाम को मैंने सारा को फ़ोन किया और उसे अपने होटल का नाम और कमरे का नम्बर बता दिया।

लंदन के बड़े-बड़े समाचार पत्र मेरे कमरे में मौजूद थे और मैं दिन भर उस शहर और मुल्क की रोज़ मर्रा ज़िंदगी का अध्ययन करता रहा।

शाम को मैं होटल से निकल पड़ा और यूँ ही निरुद्देश्य घूमता-घामता एक जुए खाने में प्रविष्ट हो गया।

मोहिनी की उपस्थिति में यह रक़म बढ़ाने का सबसे बेहतरीन तरीक़ा था।

वहाँ रात जाग रही थी। खूबसूरत लड़कियाँ साकी बनी हुई थी। सबसे पहले मैंने जुए के उस नए तरीक़े का मुआयना किया। वहाँ सिर्फ़ मैं काला था। उन लोगों ने मुझे खुले दिल से पेशकश की। मैंने झिझकते-झिझकते बाज़ी लगाई।

निश्चय ही मुझे हारना था फिर दूसरी बाज़ी में भी ऐसा ही हुआ, तीसरी बाज़ी भी...।

लेकिन चौथी बार बाज़ी पलट गयी। मैंने जीतना शुरू किया। उठते-उठते मेरी ज़ेब में पाँच पौंड आ गए थें।

मैं अधिक जीतना भी नहीं चाहता था। वरना मेरे लिए समस्याएँ खड़ी हो जातीं। मोहिनी ने मुझे रोक लिया।

रक़म को ज़ेब में ठूँस कर मैं उस हंगामे और शोर की जगह से बाहर निकल आया।

बाहर तेज सर्दी थी और दूर-दूर तक टैक्सी दिखायी न देती थी। मैं रास्तों से अनजान था लेकिन मोहिनी की सहायता होटल से के रास्ते की तरफ़ जा रहा था।

फिर मुझे यूँ महसूस हुआ जैसे कोई मेरा पीछा कर रहा हो। वह एक छोटी सी स्याह रंग की कार थी। मेरे निकट आकर रुक गयी।
मैं समझा कि शायद वह मुझे लिफ़्ट दे रहे हैं।

अंग्रेज़ों की सभ्यता की बड़ी प्रशंसा सुनी थी। कार में से दो जवान बड़ी शालीनता से उतरें। उन्होंने गुड इवनिंग कहा और जब निकट आए तो उनमें से एक के हाथ में पिस्तौल था। दूसरे ने तेजी से मेरा इकलौता हाथ पकड़ लिया।

उन्होंने बड़ी शांतिपूर्वक रक़म माँगी तो मैंने उसी शांति से इनकार कर दिया। इस सड़क पर गोली चलाने की संभावना नहीं थी।

मेरे इनकार करने पर उन्होंने ज़बरदस्ती कार में बिठाने की धमकी दी। लाचार मैंने मोहिनी की तरफ़ देखा। जो बड़े गौर से तमाशा देख रही थी। वह कसमसाकर उठी और उसने मुझे साथ चलने को कह दिया।

मैं उनके साथ गाड़ी में बैठ गया। स्पष्ट है मोहिनी मेरे साथ नहीं थी। दूसरा जवान मेरे निकट बैठा था और मेरा हाथ थामे हुए था। मैंने उससे साधारण ढंग से बातचीत शुरू कर दी। लंदन के बारे में, अंग्रेज़ों की सभ्यता के बारे में। वह मुझे शटअप-शटअप करता रहा।
chusu
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Re: Fantasy मोहिनी

Post by chusu »

sahi...................
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Dolly sharma
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Re: Fantasy मोहिनी

Post by Dolly sharma »

जब उसने गाड़ी अपने अनुमान के विरुद्ध दूसरे रास्ते पर चलती देखी तो गजबनाक आवाज़ में अपने साथी को पुकारा लेकिन उसके साथी ने कोई उत्तर नहीं दिया।

यूं भी मुझे कनवेंस की ज़रूरत थी। मेरे होटल के सामने गाड़ी रुक गयी। ड्राइविंग करने वाले नौजवान ने बड़े आदर के साथ दरवाज़ा खोला और मुझे बाहर निकलने का संकेत किया। इस घटना ने मेरे पड़ोसी को सतर्क कर दिया। वह पूरी तरह चौंका हुआ था।

यह बात उसकी समझ से बाहर थी कि उसका साथी वीरान सड़कों की बजाय इस होटल तक कैसे आ गया।

उसने मेरे साथ नाराज़गी प्रकट करनी चाही लेकिन मैं अकेला ही उसके लिए काफ़ी था।

मैंने अपना हाथ छुड़ाकर उसकी गर्दन की गिर्द ज़ोर से लपेटा। उसकी चीख निकल गयी। यह हाथ पहले भी न जाने कितनों की गर्दन तोड़ चुका था। अब भी इसमें यही ताक़त थी।

उस छोकरे को मैं रास्ते से हटाकर बाहर आ गया। फिर मैंने उन्हें यहाँ तक छोड़ने के लिए धन्यवाद कहे और दूसरे नौजवान ने गाड़ी स्टार्ट कर दी। मोहिनी उन्हें दूर तक छोड़ने गयी और जब मैं वापस कमरे में पहुँचा तो मोहिनी भी क्षणों में अपने बिस्तर पर आ गयी। यानी कि मेरे बालों के बिछौने पर।

दूसरे दिन आशानुरूप सारा मुझसे मिलने होटल पहुँच गयी।

उसका कद लम्बा था। गाल चमकते हुए, होंठ गुलाबी। वह एक क़ीमती लिबास में सजी-धजी थी।

फिर तैयार होकर मैं सारा के साथ होटल से बाहर निकला।

उसकी स्याह लम्बी गाड़ी मुझे लंदन की सैर कराती रही। दोपहर को हमने एक चीनी रेस्टोरेंट में खाना खाया और शाम को मैं उसके शानदार कोठी पर था।

उसका बाप राल्फ स्मिथ एक बहुत बड़ा आदमी था। शिक्षित और सभ्य। उसने मेरा स्वागत एक अतिथि की तरह किया।

पामिस्ट्री के बारे में मुझे कुछ भी आता-जाता नहीं था लेकिन इस विषय पर बातचीत करते समय मैं प्रैक्टिकल लकीरों की बातें ऊल-जलूल बताता रहा। लार्ड इस विषय में भी खासी जानकारी रखता था। उसने हिन्दुस्तान के न जाने कितने ज्योतिषियों, पंडितों के नाम सुना दिए।

फिर उसने अपनी हाथ दिखाने की इच्छा प्रकट की।

मैंने एकांत चाहा। सारा वहाँ से चली गयी।

फिर मैंने शुरू से अंत तक लार्ड के अतीत की घटनाएँ बतानी शुरू की। उनकी आँखें फटने लगी और वह गंभीर बुजुर्ग आदमी एक घंटे के अंदर मेरे सामने बच्चा बन गया।

थोड़ी देर बाद सारा को आवाज़ दी गयी तो मेरी तारीफ़ में जमीन-आसमान के पुल बाँध दिए।

उसने निवेदन किया कि मैं उसके साथ, उसके महल में निवास करूँ लेकिन मैंने इनकार कर दिया।

नौकरों की एक फ़ौज़ ने रात का खाना लगाया। तमाम वक्त लार्ड बोलता रहा। रात को सारा मुझे होटल छोड़ने आई। मैंने कमरे तक पहुँचते-पहुँचते उसका नाज़ुक हाथ अपने हाथ में ले लिया। मैं उसे रात भर रोकना चाहता था। सिर्फ़ एक पेग हलक में उड़ेलने के बाद उसने जाने की अनुमति चाही। चलते वक्त उसने कल आने का वादा किया। उसकी नज़रों में मेरे प्रति सम्मान था।

मेरी वह रात एकांत में गुजरी।

लार्ड स्मिथ के साथ इतनी माथापच्ची निरुद्देश्य नहीं थी। उस अजनबी मुल्क में मुझे असरदार लोगों में अपना सिक्का जमाकर अपने इलाज का उचित प्रबंध करना था और वक्त पूरी तफरीह से गुजारना था।
सारा दूसरे दिन भी मुझे लंदन घुमाती रही।

उसने मुझे कई डॉक्टरों को दिखाया। फिर राल्फ स्मिथ के सुझाव पर यह तय हुआ कि उनका फैमली डॉक्टर ब्राउन मेरे हाथ का निरीक्षण करेगा।

एक अरसा गुज़र गया था लिहाजा यह असंभव था कि मेरा हाथ बदल दिया जाता। अब केवल यही सूरत थी कि मेरा टूटा हुआ हाथ इस तरह बनाया जाए कि नक़ल असल लगे।

मैं उस हाथ को उठा सकता था लेकिन उसकी उँगली में कोई चीज़ पकड़ने की शक्ति न होती। यह महत्वपूर्ण काम कराने से पहले मैं खानदान को और भरोसे में लेना चाहता था।
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