Romance संयोग का सुहाग

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Rohit Kapoor
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Re: Romance संयोग का सुहाग

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मीनाक्षी को बिलकुल भी अंदाजा नहीं था कि समीर उस पोजीशन में भी ऐसे बल पूर्वक धक्के मार सकता है। एक पल को उसके मन में विचार आया कि ‘हे भगवान्! समीर का लिंग इतना बड़ा क्यों है!’ खैर! अब जो भी होना था वो हो चुका था। मीनाक्षी समीर की गोद में उसी के लिंग को अपनी योनि में धारण करके बैठी हुई थी और भोगी जा रही थी। यह सब पहले से अलग तरह का था। उसकी आँखों से आँसू निकल आए। पीड़ा बर्दाश्त करते हुए वो सोच रही थी कि ये तो बढ़िया है.... चित भी मर्द की, और पट भी मर्द की।

“क्या हुआ मेरी जान! सब ठीक तो है?” उसके चेहरे के भाव देख कर समीर ने पूछा।

मीनाक्षी ने तल्खी से कहा, “इतनी ज़ोर से क्यों करते हो जानू! इतनी बेसब्री क्यों है आपको? मैं कहाँ भागी जा रही हूँ?”

उसकी आँखों के कोनों से आँसुंओं को पोंछते हुए वो बोला, “गलती हो गई! माफ़ कर दो, मेरी प्यारी मिनी!”

मीनाक्षी अभी भी अपनी योनि में ठुके हुए उस विशाल और कठोर लिंग के साथ सहज होने की कोशिश कर रही थी और सम्भोग क्रिया की ताल में अपना ताल बैठाने की कोशिश कर रही थी। इसलिए समीर की बात पर ध्यान नहीं दे रही थी। समीर फिर से बोला,

“ज़रा मुस्करा दो, मेरी मिनी! ये बदमाश नुन्नू अपनी सहेली को देख कर कंट्रोल नहीं कर पाया, और उसकी ज़ोर से चुम्मी ले बैठा!”

उसके मुँह से ये शब्द सुनकर मीनाक्षी की हँसी छूट गई और दर्द का अहसास कम हो गया।

“आप और आपका नुन्नू, दोनों एक समान ही बदमाश हैं!”

समीर ने उसको अपनी बाहों में भर लिया और पहले से धीरे धक्के लगाने लगा। उसके कठोर लिंग की गर्मी वो अपनी योनि के भीतर तक महसूस कर रही थी। सम्भोग की गति से होने वाली हलचल से उसके स्तन और चूचक समीर के सीने के बालों से रगड़ कर उसमें एक विद्युतीय आवेश पैदा कर रहे थे। उधर, उसके होंठ मीनाक्षी के होंठो को चूमने और चूसने में व्यस्त हो गए। अब सब सामान्य हो गया था और मीनाक्षी भी अपने पूरे शरीर में सम्भोग का आनंद महसूस कर रही थी। कभी कभी वो अपने नितम्बों को समीर के धक्के लगाने के जैसे ही आगे पीछे कर देती, और उसकी इस हरकत से उसका लिंग और अंदर तक चला जाता। कुछ क्षणों पहले जो अंग उसको इतनी पीड़ा दे रहा था, अब उसको आनंद दे रहा था।

“अभी ठीक लग रहा है?” समीर ने पूछा।

मीनाक्षी ने शरमाते हुए अपनी ‘हाँ’ में सर हिलाया। समीर ने उसको अपनी बाहों में भर लिया और वो निश्चिंत होकर, और अपना सर समीर के कंधे पर रख कर, उसकी गोद में बैठ कर इस अनूठे रमण का आनंद लेती रही। समीर की ही ताल में वो भी अपने नितम्ब चला रही थी। समीर अपनी हथेली से प्यार से उसका सर सहला रहा था होंठों को चूम रहा था।

“मिनी, तुम मेरी पत्नी भी हो, और मेरी प्रेमिका भी! आई लव यू!” समीर प्रेम से मुस्कुराया।

“और आप मेरा पहला प्यार हैं! मुझे नहीं पता था कि कोई मुझे इतना प्यार कर सकता है! आपने मुझसे सिर्फ प्यार किया है। मैं धन्य हो गई हूँ!”

इस बात पर समीर ने जब उसके होंठो पर चुम्बन किया तो मीनाक्षी के पूरे शरीर में रोमांच की लहर दौड़ गई। उसकी योनि के भीतर तक उतरा हुआ समीर का तपता हुआ उत्तेजित लिंग, मीनाक्षी के शरीर की गर्मी भी बढ़ा रहा था। दोनों की ही साँसे गहरी और गरम हो चलीं थीं। इस समय उन दोनों का पूरा शरीर ही घर्षण कर रहा था।

“तो फिर तुम हमेशा मेरी प्रेमिका ही बनी रहना।”

“आप मुझे जिस भी रूप में चाहेंगे, मैं वही रूप ले कर आपको सुख दूँगी! यह मेरा सौभाग्य होगा!”

यह कह कर मीनाक्षी ने अपने होंठ समीर के होंठो पर रख दिए और प्रसन्नतापूर्वक दोनों ने एक दूसरे के होंठो का रस पान करना शुरू कर दिया। उधर नीचे मीनाक्षी की योनि से इतना रस निकल रहा था कि समीर की जांघें और साथ ही बिस्तर भी गीला होने लगा। आज की रात पाँचवी बार मीनाक्षी ने यौन-क्रीड़ा में चरमोत्कर्ष प्राप्त कर लिया था और अभी तक उसको इस बात की महत्ता का पता ही चला।

दुनिया भर में कितनी ही स्त्रियाँ होंगी, जो इस सुख से वंचित होंगी। उनके पति बस अपना काम निकाल लेते हैं। उनकी पत्नियों की क्या इच्छा है, इससे उनको शायद ही कोई सरोकार हो। इस कारण वो स्त्रियाँ सम्भोग की उन संभावनाओं को कभी प्राप्त ही नहीं कर पातीं। और उनका सम्पूर्ण जीवन बस गृहस्थी और बच्चों के फेर में स्वाहा हो जाता है। और यहाँ मीनाक्षी पाँचवी बार इस महत्वपूर्ण सुख का आनंद ले रही थी - पहली ही रात में। और बेचारी को मालूम भी नहीं है कि यह सुख कहलाता क्या है।

उधर समीर उसकी योनि के अंदर की मांस पेशियो में जकड़े हुए अपने लिंग के घर्षण और दोहन से लगातार आनंदित हो रहा था और उसको खुद के चर्मोत्कर्ष की तरफ ले जा रहा था। समीर को स्थिति में थोड़ी असहजता महसूस होने लगी थी, इसलिए वो अब यह पोजीशन बदलना चाहता था। समीर ने मीनाक्षी को थोड़ा सा ऊपर उठाया, और उसको अपने घुटनों पर सम्हालते हुए पीठ के बल बिस्तर पर लिटा दिया, और खुद उसके ऊपर आ गया। यह करते समय समीर ने उसको इस प्रकार पकड़ रखा था कि उसका लिंग योनि से बाहर नहीं निकल पाया। अब दोनों के ही पाँव स्वतंत्र थे। मीनाक्षी का चेहरा अपनी हथेलियों में थाम कर, समीर किसी भूखे बच्चे की भांति उसके होंठो को बेतहाशा चूमने लगा। उसके स्तन समीर की छाती में गड़ रहे थे। समीर अब उन्मुक्त हो कर धक्के लगा रहा था। और अब मीनाक्षी को और भी आनंद आ रहा था।

मीनाक्षी ने महसूस किया कि इस बार दोनों बहुत देर से यह क्रीड़ा खेल रहे थे। समीर का तरीका भी थोड़ा बदल गया था - कभी वो अचानक ही धक्कों की गति तेज कर देता, तो कभी धीमी।

‘उफ़्फ़ ऐसी शरारत! यह सब कहाँ से सीखा है इन्होने!’

समीर के सम्भोग के कौशल को देख कर मीनाक्षी निहाल हुई जा रही थी। कुछ समय पहले आनंद की जो अनुभूति उसको हुई थी, अब पुनः उसकी शुरुआत होती महसूस हो रही थी। इस बीच उसके होंठो ने मीनाक्षी के होंठों को चूसना और चूमना बंद नहीं किया था। उसको भोगते समय समीर एक पल को रुका और साथ ही मीनाक्षी के होंठो को भी पल भर को छोड़ा। तब जा कर मीनाक्षी ने हाँफते हुए साँस ली और बोली,

“बस जानू, बस! अब बस! बाद में कर लेना।” मीनाक्षी के होंठ इतना चूसे जाने से सूज गए थे।
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Rohit Kapoor
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समीर उसकी तरफ देख कर मुस्कराते हुए, और उसके गाल सहलाते हुए बोला, “बस थोड़ा और! थोड़ी देर और बर्दाश्त कर लो, मेरी प्यारी। ज्यादा नहीं सताऊंगा!”

“नहीं जानू! सताने जैसा कुछ नहीं है। आप कर लीजिए अच्छे से।” वो हाँफते हुए बोली। मीनाक्षी की हालत चरमरा गई थी, लेकिन किसी भी हालत में वो अपने प्रेमी को निराश नहीं करना चाहती थी।

समीर ने जल्दी जल्दी बीस पच्चीस धक्के और लगाए और ताज़ा ताज़ा बना हुआ वीर्य मीनाक्षी की कोख में भर दिया। कार्य संपन्न होने के बाद समीर ने बेहद संतुष्टि भरी आवाज़ निकाली। चूँकि यह आवाज़ पहले के दोनों संसर्गों निकली उसकी आवाज़ से अलग थी, इसलिए मीनाक्षी को चिंता हुई,

“क्या हुआ?” उसने पूछा।

“अरे कुछ नहीं! तृप्त हो गया!” समीर हँसते हुए बोला।

“ओह”

“मिनी?”

“हम्म”

“तुमने बताया नहीं कि तुमको कैसा लगता है जब ये तुम्हारे अंदर रहता है?”

“आप भी न!” मीनाक्षी हँसती हुई बोली, “अगर अच्छा न लगता तो ऐसे मैं आपके नुन्नू को उसकी सहेली की चुम्मी लेने देती?”

“हा हा हा! तुम ऐसे बोलते हुए बड़ी सेक्सी लगती हो!”

“हा हा! आपको भी न जाने क्या क्या सेक्सी लगता है!” फिर थोड़ा ठहर कर, “जानू, आपसे एक बात कहूँ?”

“हम्म?”

“आपका ‘ये’ बहुत बड़ा है। थोड़ा आहिस्ता, थोड़ा आराम से किया करिए! नहीं तो दर्द होने लगता है।”

“सॉरी मेरी जान! आगे से ख़याल रखूँगा.... अरे! देख तो... तुम्हारे तो ऊपर के होंठ, और नीचे के होंठ - दोनों ही सूज गए हैं!”

“आप इतना सताएँगे तो ये सब नहीं होगा? जाओ मुझे बात नहीं करनी आप से।” मीनाक्षी झूठ-मूठ ठुनकते हुए बोली।

“बात न करो... पर कम से कम मेरे पास आ जाओ... मेरी बाहों में आ जाओ!”

“रहने दीजिए - नहीं तो आपका नुन्नू फिर से अपनी सहेली की चुम्मी लेने को आतुर हो जाएगा, और मेरी हालत खराब हो जाएगी उस चक्कर में।”

“नहीं नहीं... अभी हम सिर्फ बात करेंगे”

“पक्का?”

“पक्का।”

दोनों कुछ देर आलिंगनबद्ध हो कर लेटे रहे। उसने घड़ी में देखा - रात के ढाई बज रहे थे। इसका मतलब पिछले पाँच घण्टे से उनका यह प्रेम मिलन चल रहा था।

वो समीर के सीने पर हाथ रखे हुई थी। उसके मन में समीर को छेड़ने की इच्छा हुई,

“आदेश के दोस्त?” मीनाक्षी उसको छेड़ती हुई बोली।

“आएं! ये क्या हुआ तुमको?” समीर हैरानी से बोला।

“ये सब बदमाशियाँ आपको इंजीनियरिंग में सिखाते थे?”

“कैसी बदमाशियाँ?”

“वही सब, जो कर कर के आप मुझको सताते हैं?”

“ओह! वो! हम्म्म... उसके पीछे एक कहानी है!”

“अच्छा जी? उसके पीछे भी एक कहानी है?”

“हाँ! वो ऐसा हुआ कि एक दिन मुझे एक अप्सरा मिली। प्यारी सी। सुन्दर सी। भोली सी। वो इतनी सुन्दर सी थी कि मुझसे रहा नहीं गया, और एक दिन मैंने उसको चूम लिया। उस दिन से वो मेरे साथ है।”

“अच्छा जी? अभी भी साथ है?”

“हाँ! एक दिन हम दोनों साथ में थे। और कोई नहीं था। वो बिस्तर पर अपने पेट के बल लेटी हुई थी। मैंने देखा कि उसके दाहिने चूतड़ पर एक सुन्दर सा, उसके ही जैसा प्यारा सा तिल है। उसी तिल ने तिलिस्म डाल दिया मुझ पर। और सारी बदमाशियाँ सिखा दीं।”

मीनाक्षी ज़ोर से मुस्कुराने लगी थी, “अच्छा जी! तो आपकी बदमाशियों का ज़िम्मा भी उस बेचारी अप्सरा पर है!”

“और नहीं तो क्या! वरना मैं तो एक सीधा, सादा, निहायत ही शरीफ़ लड़का था।”

“जो अब आप नहीं रहे?”

समीर ने ‘न’ में सर हिलाया।

“बातें बनाना कोई आप से सीखे।” वो हँसे बिना नहीं रह सकी।

“मिनी?”

“जी?”

“एक और गाना सुनाइए न! आपकी आवाज़ में एक गाना सुन लूँगा.... तो आत्मा की तृप्ति में जो ज़रा सी कसर बची है, वो पूरी हो जाएगी!” समीर ने अनुरोध किया।

“गाना सुनाऊँ? अच्छा ठीक है। कौन सा गाना सुनाऊँ?”

“आपको जो भी पसंद हो।”

“जो भी मुझे पसंद हो? उम्म्म्म। ..... कुछ देर सोचने के बाद वो मुस्कुराई - उसकी आँखों में चंचलता और स्नेह दोनों के भाव दिख रहे थे।

“आप पहले ठीक से बैठिए।” कह कर उसने समीर को पहले बिस्तर के सिरहाने (head-rest) पर कई सारे तकिए लगा कर अधलेटा बिठाया, और फिर गाना शुरू किया।

“जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे
जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे
हो मेरे रँग गए सांझ सकारे

मीनाक्षी सिर्फ गा ही नहीं रही थी... वो अपने हाथों और चेहरे से नृत्य की भावभंगिमा भी बना रही थी। मीनाक्षी की गाने वाली आवाज़, उसकी बोलने वाली आवाज़ से भी कहीं अधिक मीठी थी! समीर सोच रहा था कि क्यों उसको मिनी के इस टैलेंट के बारे में कुछ पता ही नहीं था!

तू तो अँखियों से जाने जी की बतियाँ
तोसे मिलना ही जुल्म भया रे
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“जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे
जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे
हो मेरे रँग गए सांझ सकारे

मीनाक्षी सिर्फ गा ही नहीं रही थी... वो अपने हाथों और चेहरे से नृत्य की भावभंगिमा भी बना रही थी। मीनाक्षी की गाने वाली आवाज़, उसकी बोलने वाली आवाज़ से भी कहीं अधिक मीठी थी! समीर सोच रहा था कि क्यों उसको मिनी के इस टैलेंट के बारे में कुछ पता ही नहीं था!

तू तो अँखियों से जाने जी की बतियाँ
तोसे मिलना ही जुल्म भया रे

पाँचों उँगलियाँ एक साथ मिला कर उसने अपने माथे के कोने से न जाने क्या उठाया, और फिर समीर की दिशा में कलाई मोड़ कर उस इमेजिनरी काल्पनिक वस्तु को फेंक दिया। समीर उसकी इस अदा पर ज़ोर से मुस्कुराया।

हे जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे

मीनाक्षी गाने के ताल पर अपने सर को हल्के हल्के झुमा कर गा रही थी। मीठा गीत! पहले शब्दों से ही प्रेम रुपी शहद टपकने लगा। कौन न झूमने लगे? समीर का खुद का सर मीनाक्षी की ताल पर हिलने लगा।

देखी साँवली सूरत ये नैना जुड़ाए
देखी साँवली सूरत

गाते हुए मीनाक्षी ने समीर के दोनों गालों को अपने दोनों हाथों से प्यार से छुआ।

तेरी छब देखी जबसे रे
तेरी छब देखी जबसे रे नैना जुड़ाए
भए बिन कजरा ये कजरारे

मीनाक्षी ने हाथों से समीर की बलैयाँ उतारीं, और अपनी कनपटियों पर ला कर उँगलियों को फोड़ लिया.... मतलब उसने समीर के सर की बलाएँ अपने सर उतार लीं।

हे जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे
हो मेरे रँग गए सांझ सकारे

समीर ने उसका हाथ पकड़ कर अपने पास आने का इशारा किया। मीनाक्षी गाते हुए समीर के सीने पर टेक लगा कर बैठ जाती है।

जाके पनघट पे बैठूँ मैं, राधा दीवानी
जाके पनघट पे बैठूँ

समीर ने उसकी बाँह को चूम लिया।

बिन जल लिए चली आऊँ

उसने एक हाथ से अपने सर के निकट एक कलश का आकार बनाया। समीर उसके गाने, उसकी अदा, और उसके चेहरे की भाव-भंगिमा पर मुस्कुरा दिया।

बिन जल लिए चली आऊँ राधा दीवानी
मोहे अजब ये रोग लगा रे

कह कर मीनाक्षी ने समीर का हाथ अपने दोनों हाथों में पकड़ कर अपने चेहरे के एक तरफ लगाया, और आँखें बंद कर झूमने लगी।

हे जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे
हो मेरे रँग गए सांझ सकारे

समीर ने उसको पीछे से आलिंगनबद्ध कर लिया और उसके कंधे के नीचे चूम लिया।

मीठी मीठी अगन ये, सह न सकूँगी

मीनाक्षी ने मुस्कुराते हुए धीरे से अपना सर ‘न’ में हिलाया।

मीठी मीठी अगन
मैं तो छुई-मुई अबला रे

कह कर उसने दोनों हाथ अपने सीने से लगा कर खुद को हलके से सिमटा लिया।

मैं तो छुई-मुई अबला रे सह न सकूँगी

“अए हय”, समीर उसके ‘छुई मुई’ बोलने की अदा पर बोल पड़ा।

मेरे और निकट मत आ रे

“अरे!” कह कर समीर ने मीनाक्षी को और कस के अपने बाहुपाश में बाँध लिया।

ओ जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे
हो मेरे रँग गए सांझ सकारे
तू तो अँखियों में जाने जी की बतियाँ
तोसे मिलना ही जुल्म भया रे

गाते हुए मीनाक्षी ने आँखें और नाक प्यार से मिचका दिए.... मीनाक्षी की उस अदा पर समीर के दिल पर जैसे सैकड़ों खंजर चल गए हों।

ओ जोगी जबसे तू आया मेरे द्वारे


[गाना बंदिनी (1963) फिल्म से है; गीतकार हैं शैलेन्द्र; संगीतकार हैं सचिन देव बर्मन; गायिका हैं लता मंगेशकर! बहुत मीठा गीत है। कुछ नहीं तो ऐसे ही सुन लीजिए]
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