Adultery गुजारिश

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koushal
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#43

रूपा का सर दीवार से टकराया. पर वो सम्भल गई.

"तेरी यही इच्छा है तो ये ही ठीक " रूपा ने गुस्से से कहा और सर्प की पुंछ को पकड़ कर उसे हवा मे उछाल दिया.

मैं ये विध्वंस नहीं चाहता था पर उनको रोकने की हालत मे भी नहीं था. पहली बार मैंने शांत, सरल रूपा की आँखों मे कुछ ऐसा देखा था जिसकी मुझे कभी उम्मीद नहीं थी. वो सर्प जिसके सामने खड़े होने की किसी की हिम्मत नहीं, जिसके खामोश खौफ को मैंने खुद महसूस किया था.

रूपा ने सर्प पर झपटा सा मारा और वो सर्प चिंघाड़ता हुआ दूर जा गिरा.

"मुझे देखने दे इसे. " रूपा मेरी तरफ बढ़ी पर सर्प ने अपनी कुंडली मे जकड़ लिया रूपा को.

"मैंने कहा ना नहीं " सर्प अपनी अजीब सी शांत आवाज मे बोला

रूपा - देव के लिए मुझे तुझे चीरना भी पड़े तो परवाह नहीं

सर्प ने अपना फन जमीन पर मारा और फर्श के टुकड़े टुकड़े हो गए. उसका ये इशारा था रूपा को की आ देखू तुझे. उन दोनों के झगड़े की वज़ह से गर्मी बढ़ गई थी. दोनों एक दूसरे से जुझ रही थी. बड़ी मुश्किल से मैं उठ खड़ा हुआ.

"तुम दोनों मुझे मार दो, फिर जो चाहे करना है कर लेना " मैंने खुद को सम्हालते हुए कहा.

दोनो रुक गयी और मुझे देखने लगी.

"मैं नहीं जानता कि क्या कहूँ, और ना मुझे कुछ कहना है, तुम दोनों से विनती है मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो. " मैंने कहा

रूपा ने बेबस नजरो से मेरी तरफ देखा.

"तुम दोनों मे से जो भी मुझे इस दर्द से आजाद कर सकती है वो करे "मैंने कहा

"ईन दोनों के बस की बात नहीं है ये मुसाफिर " इस आवाज ने हम सबका ध्यान खींच लिया. ये बाबा थे जो अभी अभी कहीं से लौटे थे.

"एक पवित्र स्थान पर जो घृणित कार्य किया है तुम दोनों ने, विचार करके देखो, क्रोध और घ्रणा कब दिमाग पर काबु कर लेते है तो कुछ भान नहीं होता, कल जब लोग यहां आयेंगे तो इस हालत को देख कर क्या सोचेंगे "बाबा ने गुस्से से कहा

मैं दीवार का सहारा लेकर बैठ गया. मुझे लगने लगा था कि किसी भी पल बस कुछ भी हो सकता है.

"तुम दोनों जाओ यहां से "बाबा ने उनसे कहा

रूपा - नहीं जाऊँगी, जब तक ये ठीक नहीं हो जाता नहीं जाऊँगी

सर्प ने भी ऐसा ही कहा.

बाबा ने अपने झोले से कुछ निकाला और मेरे हाथ मे रखा.

"ये रक्तवर्धक बूटी है खा इसे " बाबा ने कहा

मैंने तुरन्त उसे घटक लिया.

बाबा - इस से नया खून बनने लगेगा.

बाबा ने सही कहा था जैसे ही बूटी का असर हुआ मुझे मेरी नसों मे एक लहर महसूस हुई. कमजोरी बंद हो गई.

मैं - क्या ये इलाज है बाबा

बाबा - जिंदगी भर का दर्द. ये घाव भर जाएगा पर दर्द नहीं जाएगा क्योंकि

"क्योंकि प्रहार रक्षा के लिए था, अनजाने मे तुमने कुछ ऐसी वस्तु छु ली जिसे प्राणघातक वार से संरक्षित किया गया था. " सर्प ने कहा

बाबा ने सर हिलाया.

रूपा - बाबा आप घाव भरो, दर्द को मैं अपने ऊपर ले लुंगी

बाबा - जानती है क्या कह रही है

रूपा - हाँ, जानती हूं

बाबा - ऐसा नहीं होगा. कदापि नहीं.

बाबा ने मुझे लेटने को कहा और झोले से कुछ निकाल कर मेरे सीने पर मलने लगे. तेज दर्द होने लगा.

"मुझे तुम्हारी जरूरत पड़ेगी " बाबा ने सर्प से कहा

सर्प की पीली आंखे टिमटिमाने लगी. वो अपने अर्ध नारी अर्ध नागिन रूप मे आयी. हमेशा के जैसे मैं उसका चेहरा नहीं देख पा रहा था. उसने अपने गले से कुछ निकाला और बाबा की तरफ फेंका.

बाबा ने उस चीज को रगड़ कर मेरे जख्म मे भरना शुरू किया और तुरन्त ही मुझे बड़ी राहत मिली.

बाबा - रुद्रभस्म असर कर रही है.

सर्प को जैसे राहत सी मिली.

बाबा - मुझे तुम्हारी सहायता भी चाहिए रूपा

"नहीं बाबा, ऐसा नहीं होगा " सर्प ने प्रतिकार किया

बाबा - तो तुम बताओ मैं क्या करू. दर्द के आवेश को रोकने का कोई और तरीका है.

सर्प - पर इसके दुष्परिणाम

बाबा - फ़िलहाल मेरी प्राथमिकता ज़ख्म भरने की है
रूपा आगे आयी. उसने हमेशा की तरह मुस्करा कर मुझे देखा.

"आंखे बंद कर लो मुसाफिर, और चाहे कितना भी दर्द हो पी लेना उसे, धीरे धीरे आदत हो जाएगी तुम्हें "बाबा ने कहा

मैंने आंखे मूंद ली. ऐसा लग रहा था कि जैसे मेरे सीने को सिलाई किया जा रहा हो. मैंने अपनी नसों मे कुछ अजीब सा बहता हुआ महसूस किया. धीरे धीरे मैं बेहोशी के सागर मे डूबता चला गया. जैसे हर रात के बाद सुबह होती है उस बेहोशी के बाद भी आंखे खुली. मैंने खुद बाबा के बिस्तर पर पाया. दिन निकल आया था.

मजार ऐसी थी कि जैसे कल कुछ हुआ ही नहीं हो. मैंने अपने सीने पर हाथ फेरा. ज़ख्म गायब था ना सिलाई के कोई निशान थे. मैंने कंबल ओढ़ा और बाहर आया.

"आ मुसाफिर आ चाय पीते है " बाबा ने मुझे देखते हुए कहा

मैं - वो दोनों कहा है

बाबा - कौन दोनों

मैं - आप इतने भोले भी नहीं है

बाबा - शातिर भी तो नहीं हूं

मैं - मुझे उस सर्प के बारे मे जानना है, कौन है वो, क्या रिश्ता है मेरा उससे, क्यों मेरे साथ है वो. कहाँ रहती है वो.

बाबा ने चिलम होंठो से लगाई और एक कश लिया.

बाबा - मुझे क्या मालूम

मैं - बाबा छुपाने का कोई फायदा नहीं, आपको अभी बताना होगा मुझे

बाबा - जानना चाहता है उसके बारे मे तो सुन, तू कर्जदार है उसका, तेरी आधी जिंदगी उसकी अमानत है. ये सांसे जो तेरी चल रही है, उसकी बदोलत है, तेरा सुख इसलिए है क्योंकि दुख उस के भाग मे जुड़ गया है. तू जानना चाहता है वो कौन है, वो वो अभागन है जिसके साथ नियति ने ऐसा छल किया है जो ना बताया जाए, ना छिपाया जाए. जब जब तुझे वो मिले, कृतज्ञ रहना उसका.

बाबा ने इतना कहा और आंखे मूंद ली. हमेशा की तरह उनका ये इशारा था. मैं वहां से उठा और बाहर की तरफ आया ही था कि मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी.
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#44

बाबा ने इतना कहा और आंखे मूंद ली. हमेशा की तरह उनका ये इशारा था. मैं वहां से उठा और बाहर की तरफ आया ही था कि मेरे सामने एक गाड़ी आकर रुकी. गाड़ी मे शकुंतला थी. उसने शीशा नीचे किया

मैं - देख कर चलाया करो, अभी चढ़ा देती मुझ पर

"मुझे मालूम था तुम यही पर मिलोगे, " उसने कहा

मैं - मुझसे क्या काम आन प़डा

शकुंतला- गाड़ी मे बैठो, बताती हूं

मैं गाड़ी मे बैठ गया शकुंतला ने गाड़ी आगे बढ़ा दी. कुछ ही देर मे हम गांव से बाहर उस जगह पर थे जहां वो विक्रम से मिलती थी

"बताओ क्या हुआ " मैंने पूछा

शकुंतला - मैंने बहुत सोचा, मुझे तुम्हारा प्रस्ताव मंजूर है, मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं.

शकुंतला की बात का मुझे यकीन सा नहीं हुआ,
उसका अहंकार अचानक से कैसे कम हो गया. ऐसे कैसे वो मुझ पर फिदा हो गई. दिमाग मे बहुत से विचार छा गए

मैं - ठीक है, बदले मे क्या चाहती हो

शकुंतला - यही बात मुझे बड़ी पसंद है तुम्हारी, सीधा मुद्दे पर आते हो. मैं तुम्हारे साथ सोने को तैयार हूं, जब जहां जब जब तुम बुलावोगे, मैं आ जाऊँगी. बदले मे तुम उस सर्प से कहकर मेरे पति का जहर उतरवाने को कहोगे

ये बड़ी अजीब बात थी और मेरी औकात से बाहर भी

"भला मैं कैसे कर सकता हूं ये, वो सर्प कभी मुझे मिलता ही नहीं और अगर मिला भी तो मैं कैसे समझा पाउंगा उसे. " मैंने शकुंतला से झूठ कहा

शकुंतला - मेरा पति तिल तिल मर रहा है छोटे चौधरी. मैं बड़ी आस लेकर आयी हूं. मुझे ना मत कहो.

मैं - तुम्हारी परेशानी समझता हूं सेठानी, और मेरे से ज्यादा तो तुम जानती हो सांप के बारे मे, यहां तक कि मुझे भी तुमने ही बताया था.

शकुंतला - मैं जानती हूं कि लालाजी और तुम्हारे सम्बंध कभी ठीक नहीं रहे पर मैं तुमसे उनकी जान की भीख मांगती हूं, उन्हें बचा लो

शकुंतला की आँखों मे आंसू भर आए. और मैं चाह कर भी उसे दिलासा नहीं पा रहा था. एक पत्नी जब पति को बचाने के लिए अपनी इज़्ज़त किसी दूसरे को सौंपने का निर्णय करती है तो ये बताता है कि वो उसे कितना चाहती है. दूसरी बात ये थी कि बेशक मैं उसकी लेना चाहता था पर पिछले कुछ दिनों से मेरी खुद की जिंदगी अजीब तरीके से झूल रही थी.

मैं गाड़ी से उतरा और पैदल ही खेत की तरफ चल प़डा. कल रात की घटना ऐसी थी कि मैं किसी को बताऊ तो कोई पागल ही समझे. मेरी सबसे बड़ी उत्सुकता थी कि रूपा उस सर्प को कैसे जानती थी और दोनों मे इतनी गहरी नफरत किसलिए थी.

सुल्तान बाबा उन दोनों को जानते थे. सोचते सोचते मेरे सर मे दर्द होने लगा. बेशक मुझे भूख लगी थी, फिर भी घर जाने की बजाय मैंने रज़ाई ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा.

पर ज्यादा देर सो नहीं पाया. कोई आ गया था. झोपड़ी मे. ये ताऊ की लड़की रितु थी.

"तुम यहाँ कैसे " मैंने पूछा

रितु - भाई आज मेरी शादी है मैं तुमको बुलाने आयी हूं.

मैं - तुम्हें आने की जरूरत नहीं थी, मैं बस आ ही रहा था

रितु - मुझे आना ही था भाई, क्योंकि तुम नहीं आते, और नहीं आने की वज़ह भी है तुम्हारे पास. पर आज का दिन मेरे लिए खास है, मैं अपने जीवन की नयी शुरुआत कर रही हूं और मैं चाहती हूं कि मेरा भाई मुझे अपने हाथों से विदा करे. घर वालो ने कभी वो हक नहीं दिया जिसके तुम हकदार थे. पर मैं हाथ जोड़कर विनती करती हूं कि मेरे लिए घर चलो. ये बहन अपने भाई से कुछ घंटे मांगती है.

रितु की आँखों से आंसू फूटने लगे., जो मेरे दिल को चीर गए. मैंने बस उसे अपने सीने से लगा लिया.

"बहने कभी विनती नहीं करती, बहनो का हक होता है " मैंने कहा.

मैं रितु के साथ घर आया. जल्दी से नहा धोकर. मैं शादी के कामों मे लग गया. दिल को इस बात की खुशी थी कि किसी ने तो अपना समझा. शाम होते होते अलग ही महफिल सज गई थी. मेरी नजर बार बार सरोज पर जा रही थी जो खुद किसी दुल्हन से कम नहीं लग रही थी. सुर्ख लाल साड़ी मे क्या गजब लग रही थी वो. हाथों मे दर्जन भर चूडिय़ां. कुछ ज्यादा ही कसा हुआ ब्लाउज जो उसके उभारो को ठीक से साँस लेने की इजाजत भी नहीं दे रहा था


मैं सरोज के पास से गुजरा और उसके नितंबों को सहलाता गया. उसने बड़ी प्यासी अदा से देखा मुझे. फिर वो मेरे पास आयी

सरोज - क्या इरादा है

मैं - तुम्हें पाने का

सरोज - मौके होते है तब तो भागते फिरते हो. आज जब चारो तरफ लोग है जब मस्ती सूझ रही है

मैं - पटाखा लग रही हो

सरोज - सुलगा दो फिर

मैं - करो कुछ फिर

सरोज - अभी तो मुश्किल है, फेरों के बाद देखती हूँ

मैं भी जानता था कि अभी थोड़ा मुश्किल है. सो दिल को तसल्ली दी और शादी एंजॉय करने लगा. रात बड़ी तेजी से भाग रही थी. बारात के खाने से लेकर, रितु के फेरे, ताऊ ने मुझे गठबंधन करने को कहा. ये एक ऐसी घड़ी थी ना चाहते हुए भी मेरा दिल भर आया तारो की छांव मे रितु को विदाई होने तक. मैं बुरी तरह से थक गया था.

मैंने सोचा कि थोड़ा आराम कर लू. दरअसल मेरी इच्छा तो थी कि सरोज को पेल दु. मैंने उसे कहा तो उसने कहा तुम चलो मैं थोड़ी देर मे आती हूं. मैं ताऊ के घर से निकल कर अपने घर की तरफ चल दिया.

हवा मे खामोशी थी, जनरेटर की आवाज दूर तक सुनाई दे रही थी. मैं गली के मोड़ तक पहुंचा ही था कि मेरे कदम जैसे धरती से चिपक गए. मेरे सामने... मेरे सामने....
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#45

सर साला फटने को हो गया है था. गली के नुक्कड़ पर लाला महिपाल की लाश पडी थी. एकदम सफेद लाश जैसे सारा खून निचोड़ लिया गया हो. ठीक इसी जगह पर मुनीम की लाश मिली थी और अब लाला की लाश. मैं बिना देर किए वहां से भाग लिया. दिल इतनी जोर से पहले कभी नहीं धड़का था. मैंने रज़ाई ली और कांपते हुए बैठ गया
.
थोड़ी देर मे ही चीख पुकार मच गई. मैं बाहर नहीं गया. ऐसा नहीं था कि लाला की मौत से मुझे दुख था, मुझे कोई फर्क़ नहीं पड़ता. पर मेरा विचार ये था कि मैं ही क्यों ऐसी जगह पर पहुंच जाता हूँ जहां ये सब चुतियापा चल रहा होता है. मेरे उलझनें पहले ही कम नहीं थी. गांव मे हो क्या रहा था मुझे मालूम करना ही था, जैसा शकुंतला ने कहा कि साँप मार रहा है लोगों को पर क्यों. अब ये मुझे मालूम करना था

दोपहर को मैं सेशन हाउस गया तो वहां जाकर कुछ और ही मालूम हुआ, मोना ने तीन दिन पहले नौकरी से इस्तीफा दे दिया था. इतनी बड़ी नौकरी को अचानक छोड़ देना क्या उचित था. मैंने गाड़ी जूनागढ की तरफ मोड़ दी. चौखट पर मैंने जब्बर को देखा और आगे बढ़ गया मेरा फ़िलहाल मोना से मिलना जरूरी था.

"मोना कहाँ है" मैंने गाड़ी से उतरते ही दरबान से पूछा

दरबान - यहां तो नहीं आयी मेमसाहब

मैं - नौकरी छोड़ दी है उसने

दरबान - हमे तो कोई जानकारी नहीं है हुकुम

मैं - सेशन हाउस नहीं है, यहां नहीं है तो कहाँ है वो, और कौन सी जगह है जहां वो जाती है

दरबान - और तो कहीं नहीं जाती वो, पर हाँ उस दिन आपके जाने के बाद बड़े साहब आए थे यहाँ, दोनों मे झगड़ा हुआ था.

मैं - बड़े साहब यानी मोना के पिता.

दरबान ने हा मे सर हिलाया.

मैं - किस बात को लेकर झगड़ा हुआ था

दरबान - हुकुम हम सब बाहर थे बाप बेटी अंदर थे पर आवाज़ें जोर जोर से आ रही थी तो हमको भान हो गया.

ये बाते और परेशान करने वाली थी मुझे. मोना का अचानक से नौकरी छोडऩा और फिर घर नहीं आना. क्या वो किसी मुसीबत मे थी. मेरा दिल घबराने लगा था. क्या सतनाम ने उसके साथ कुछ किया होगा. मैंने गाड़ी को सतनाम की हवेली की तरफ़ मोड़ दिया. कुछ ही देर बाद मैं वहां था जहां मैं ऐसे जाऊँगा कभी सोचा नहीं था.

"दरवाज़ा खोल, सतनाम से मिलना है मुझे " मैंने दरवाज़े पर खड़े लड़के से कहा

"तमीज से नाम ले बाऊ जी का, वर्ना अंदर तो क्या कहीं जाने लायक नहीं रहेगा " उसने रौब दिखाते हुए कहा

मैं गाड़ी से नीचे उतरा, उसके पास गया और बोला - गौर से देख मुझे और इस चेहरे को याद कर ले. जा जाकर बोल तेरे बाप को की सुहासिनी का बेटा आया है. आकर मिले मुझसे.

वो घबराते हुए अंदर गया और कुछ ही देर मे दरवाजा खुल गया. मैं हवेली के अंदर गया. मैंने पाया नानी को जो मेरी तरफ ही आ रही थी.

नानी - तुम्हें नहीं आना चाहिए था यहां

मैं - शौक नहीं है, मोना तीन दिन से गायब है सतनाम का झगडा हुआ था उससे. बस मालूम करने आया हूं

नानी - सतनाम का कुछ लेना देना नहीं है मोना से

मैं - तो झगडा क्यों किया

नानी - कोई झगड़ा नहीं हुआ था वो बस उसे समझाने गया था

मैं - क्या समझाने

नानी - यही की मोना अपने पद का दुरुपयोग ना करे, सतनाम के आदमियों के छोटे मोटे मुकदमों को भी मोना ने रफा-दफा करने की बजाय उलझा दिए थे. चुनाव आने वाले है बाप बेटी की नफरत को विपक्ष द्वारा खूब उछाला जा रहा था. बस इसलिए वो बात करने गया था

मैं - वो तीन दिन से लापता है, अगर उसे कुछ भी हुआ, एक खरोंच भी आयी तो ठीक नहीं होगा. कह देना अपने बेटे से मोना से दूर रहे. मोना की तरफ आंख उठाकर देखने से पहले ये याद रखे कि मोना के साथ देव चौधरी खड़ा है.

"मैं बहुत अच्छे से जानता हूँ कि उसके साथ तू है, इसलिए मुझे फिक्र नहीं उसकी. उस दिन तेरी आँखों मे मैने देखा था, कैसे मेरे बीस आदमियों के आगे खड़ा था तू " दरवाज़े की तरफ से आवाज आयी.

मैंने देखा सतनाम हमारी तरफ चलते हुए आ रहा था

"मेहमान आया है घर पर, कुछ चाय नाश्ता लाओ " सतनाम की एक आवाज से घर गूँज गया. उसने मुजे बैठने को कहा.

सतनाम - हाँ मैं गया था उसके पास पर किसी और कारण से. और तुम्हारा ये सोचना कि मैं उसका नुकसान करूंगा गलत है, बेशक हमारी राहें अलग है पर बाप हूं उसका, औलाद ना लायक हो तो भी माँ बाप को प्यारी लगती है. मैं ये भी जानता हूं कि तुम्हें मेरी बाते समझ नहीं आयेंगी क्योंकि एक बाप के लिए बड़ा मुश्किल होता है आपने दिल को खोलना.

चाय आ गई मैंने कप उठाया और एक चुस्की ली.
सतनाम - तुम्हें मालूम तो होगा ही की महिपाल की हत्या हो गई है, महिपाल मेरा पुराना दोस्त था.

मैं - गांव का बहुत खून पिया था उसने

सतनाम - मैं जोर लगाऊंगा उसके कातिल को तलाशने के लिए

मैं - मुझे क्या लेना-देना

सतनाम - मेरा भी क्या लेना-देना मोना से

मैंने कप टेबल पर रखा और बाहर आ गया. सतनाम ने जिस अंदाज से बात कही थी मैं समझ नहीं पाया. मैं वापिस अपने गांव के लिए मुड़ गया, आते आते रात हो गई थी. दिल मे था कि अब रूपा से मिल लू, उसके साथ दो घड़ी रहने पर ही सकून मिलना था मुझे. मैंने कच्चा रास्ता ले लिया, अचानक से मुझे कुछ याद आया और मैंने गाड़ी दूसरी दिशा मे मोड़ थी.

कुछ देर बाद मैं खाली जमीन के सामने खड़ा था सामने खड़ा था. मेरे दिमाग में बस वो शब्द गूँज रहे थे.
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#46

मेरी नजरे उस खाली जमीन को घूर रही थी, मैं जानता था वो हवेली वहीं पर थी बस उसे देखने वाली नजर चाहिए थी. बहुत देर तक मैं खड़ा सोचता रहा कि कैसे अदृश्य हवेली को प्रकट किया जाए. और वो कहते है ना कि किसी चीज़ को शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने मे लग जाती है, अपनी कहानी भी कुछ ऐसी ही थी. अंदाज़े से मैं उस जगह पर पहुंचा, जहां सीढियां थी.



"आ भी जाओ सामने " मैंने कहा. पर कुछ नहीं हुआ. कैसे हवेली को देखूँ मैं सोच मे प़डा मैं पागलों की तरह शून्य मे ताक रहा था. पर कहते है ना कि जहां चाह होती है वहां राह होती है. मैंने अपना पैर जैसे ही सीढि वाली जगह पर रखा. सीढिया सामने आ गई. हवेली ने शायद पहचान लिया था, एक के बाद एक करके पूरी हवेली मेरे सामने थी.

सामने दरवाजा ठीक वैसे ही खुला था जैसा मैंने छोड़ा था. मैं तुरंत अंदर घुस गया. कुछ मोमबत्तियां जल रही थी जिनसे रोशनी हो रही थी. अंदर गर्मी थी.. मैंने जैकेट उतार कर मेज पर रखी. मेज पर ही एक केतली रखी थी जिससे गर्म चाय की खुशबु आ रही थी. मैंने एक कप मे चाय डाली. पास ही कुछ और खाने की चीजे थी. जैसे किसी को अंदाजा हो कि मैं आने वाला हूं.

इक बात और थी जिसने मेरा ध्यान खींचा था हवेली मे जैसे हाल ही मे सफाई की गई हो, किसी ने जैसे कुछ छुपाने की कोशिश की थी क्योंकि कई जगह ताजा खून के धब्बे थे. खैर, अब तो मुझे ईन सब की आदत होने लगी थी, जिन्दगी ऐसी उलझी थी कि कब कहां क्या दिख जाए कोई ताज्जुब नहीं होता था. मैंने चाय खत्म की और एक बार फिर वापिस से मैं उस बड़ी सी तस्वीर के सामने था जिसमें मैं अपने माँ बाप के साथ था.

मोमबत्ती की रोशनी मे तस्वीरें ऐसी थी जैसे कि अभी मेरी माँ बाहर निकल कर मुझे अपने आगोश मे भर लेगी. पर एक बात थी कि ये मेरा घर था. सीढिया चढ़ कर मैं ऊपर आया. खून बिखरा था जैसे किसी को घसीट कर लाया गया हो. मैंने खून को हथेली में लिया और सूंघ कर देखा. महक कुछ पुरानी सी थी पर खून में गर्मी थी . और साथ ही बहुत गाढ़ा भी था ये.

“अवश्य ही वो नागिन किसी जानवर को लायी होगी ” मैंने अपने आप से कहा.

इस हवेली को बड़ी कारीगरी से बनाया गया था , पहली मंजिल के सभी कमरे एक जैसे ही लगते थे . मैं एक कमरे के दरवाजे को खोलने ही वाला था की मेरे कानो में आवाज पड़ी, पानी गिरने की आवाज जो ऊपर की मंजिल से आ रही थी . मैं दूसरी मंजिल पर चढ़ गया . ये मंजिल जैसे अपने आप में अजूबा थी . यहाँ पर बस एक ही कमरा था जिसका दरवाजा आधा खुला था . एक रसोई थी . जिसमे से बढ़िया खाने की महक आ रही थी .



मेरे कान बहते पानी को सुन रहे थे . मैं सोच ही रहा था की तभी पास वाला दरवाजा खुला और मेरे सामने बाबा आ गए, सुल्तान बाबा. वो मुझे देख कर चौंक गए और मैं उनको देख कर. बाबा के कपडे खून से सने थे .

“तू यहाँ कैसे मुसाफिर ” बाबा ने सवाल किया .

मैं- मेरा ही तो घर है बाबा.

बाबा - हाँ , मैं तो भूल ही गया था तेरा ही घर है. उम्र हो चली है बेटा.

मैं- पर आप यहाँ क्या कर रहे थे और ये खून कैसा आपके कपड़ो पर

बाबा- अरे कुछ नहीं , एक जानवर घायल मिला था तो उसकी मरहम पट्टी कर रहा था .

मैं- कैसा जानवर बाबा .

बाबा- तू भी न मुसाफिर , कितनी सवाल पूछता है . आ मेरे साथ .

बाबा ने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे वापिस से निचे ले आये. सीढिया उतरते हुए मैंने देखा की हॉल, और सीढिया चमक रहे थे जैसे अभी अभी किसी ने साफ़ किया हो. खून के दाग जो मैंने देखे थे अब गायब थे.मेरा सर अब दर्द करने लगा था . बाबा की सकशियत भी अब मुझे कुछ अजीब लग रही थी . कुछ तो था जो वो छुपा रहे थे .

“बाबा मैं उस सापिन से मिलना चाहता हूँ ” मैंने कहा

बाबा- मिल ले फिर .

मैं- कहाँ रहती है वो . क्या नाम है उसका.

बाबा- आजकल का तो पता नहीं पर एक ज़माने वो अपने गाँव के मंदिर में रहती थी .

मैं- बाबा, बातो को न घुमाओ अपने गाँव में कोई मंदिर नहीं है .

बाबा- मैंने कहा एक ज़माने में मुसाफिर. एक ज़माने में . एक समय था इस गाँव में भोले का मंदिर था . पर फिर तेरे दादा ने उसे तुडवा दिया . मिटटी में दबवा दिया.

मैं- क्यों

दादा- बड़ी उलझी हुई कहानी है वो मुसाफिर, तू समझ नहीं पायेगा मैं बता नहीं पाउँगा रहने दे उस बात को

मैं- ठीक है पर मुझे सापिन से मिलवा दो.

बाबा- मेरे बस की नहीं वो अपनी मर्जी से आती है जाती है .

मैं- आप हर बात को हवा में उड़ाते हो बाबा, मुझे सच बताते क्यों नहीं.

बाबा- मुसाफिर, समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता जब समय होगा तुझे तेरे सवालो के जवाब मिल जायेंगे. . जैसे समय आया तो तुझे तेरे परिवार की जानकारी हुई. इस घर तक तू आ पहुंचा.

मैं- घर की बात आई तो कहना चाहूँगा की बेशक घर मेरा है पर वारिस कोई और है इसका .

बाबा- क्या फर्क पड़ता है, मोना भी तेरी माँ के इतने ही करीब है जितना तू,

मैं- सो तो है .

बाबा- तू जब चाहे यहाँ आ सकता है दिन के उजाले में रात के अँधेरे में .हवेली की सीढिया तेरे कदमो को पहचान लेंगी . दुनिया के लिए ये होकर भी नहीं है पर अपने लिए ये हमेशा है .

मैं- बाबा इसे छुपाया क्यों गया .

बाबा- तुम्हारे लिए. तुम्हारे जीवन के लिए .

मैं- पर बाबा मैं तो हमेशा यहाँ से दूर ही रहा .

बाबा- यही तो पहेली है हम सबके लिए. .खैर, अभी मुझे जाना होगा, तुझे रुकना है तो रुक, आना है तो आ. तेरी मर्जी

बाबा ने अपना झोला उठाया, और मुझे पूरा यकीन था की झोले में कुछ फडफडा रहा था .

“एक मिनट बाबा, बस एक मिनट, मोना पिछले कुछ दिनों से लापता है , आपको कोई खबर है क्या ” मैंने कहा

बाबा- नहीं कई दिन से मिली नही मुझे, कोई खबर मिली तो बताऊंगा.



बाबा ने झोला उठाया और चले गए. मैं वापिस हवेली में आया. मुझे बड़ी उत्सुकता थी की दूसरी मंजिल पर क्या था . क्योंकि मैं जानता था की बाबा ने मुझसे झूठ बोला है. मैंने हवेली का बड़ा दरवाजा बंद किया और दूसरी मंजिल की तरफ चल दिया. पर जैसे ही पहली मंजिल से दाई तरफ मुड़ा. एक बार फिर मेरी किस्मत ने जैसे ठग लिया मुझे. मेरे सामने ..............
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