Adultery गुजारिश

Post Reply
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Adultery गुजारिश

Post by koushal »

#54

दरवाजे पर जब्बर था . उसे देखते ही मेरे माथे पर बल पड़ गए . जब्बर का यहाँ होना भला कैसा संकेत था .

“तेरी हिम्मत कैसे हुई यहाँ आने की ” मैंने कहा

जब्बर- ठण्ड रख ओये, मैं बस तुझसे मिलने आया हु दो बात करूँगा फिर चला जाऊंगा. माना की अपने बीच मामला थोडा टेढ़ा है फिर भी ....

मैं- ठीक है , बता क्या बात है .

जब्बर- तुझे मालूम तो है ही की लाला महिपाल की मौत हो गयी है , शकुन्तला से मेरे कुछ निजी तालुकात है , और जैसा की तुझे सब मालूम हो ही गया है की विक्रम भी तेरा इस्तेमाल कर रहा था

मैं- तो

जब्बर- मुझे तेरी मौत की सुपारी मिली है

मैं- हाँ तो ठीक है , मार दे मुझे खत्म कर बात को

जब्बर- बात ये नहीं है , दरअसल मुझे मोना की फ़िक्र है ,

मैं- उसकी फ़िक्र और तुझे,

जब्बर- चाहे मैं कैसा भी हूँ पर मैं चाहता हु उसे

मैं- चाहता तो उसे तलाश करता , उसके बारे में पता लगाता , सतनाम ने ही उसे गायब किया है .

जब्बर- नहीं , ऐसा नहीं है बाउजी का मोना के गायब होने से कुछ लेना देना नहीं है बल्कि वो तो खुद दिन रात एक किये हुए है , छोटे मुडकी की शादी में कुछ ही दिन बाकि है , बाउजी चाहते थे की मोना आरती करे , शादी के बहाने परिवार पुराने गिले शिकवे भूल कर एक हो जाये.

मैं- अगर तेरी नियत नेक है तो मेरी मदद कर मोना को ढूंढने में , पर मैं कैसे विश्वास करू तेरा.

जब्बर- मैं जानता हु, ये मुश्किल है अगर मैं अपना दिल निकाल के रख दू तो भी तुझे यकीन दिलाना मुश्किल है . तू चाहे मेरा विश्वास कर या न कर पर सच यही है की मुझे फ़िक्र है मोना की .

मैं- तो यकीन दिला मुझे , कर मदद उसे तलाशने में

जब्बर- मैंने अपने स्तर पर भी कोशिश की पर उसे किसी ने भी कही से भी आते जाते नहीं देखा, उसकी कार भी सरकारी यही है , जबकि उसके पैर में पलस्तर था . तो अकेले कैसे वो आ जा सकती है .

मैं- यही बात तो मुझे खटक रही है.

जब्बर-एक बात और कहना चाहता हूँ , तू बेफिक्र रह तुझे कोई हाथ भी नहीं लगा पायेगा, जब तक मैं हूँ

“और इस मेहरबानी की वजह ” मैंने पूछा

जब्बर- मेहरबानी तो सुहासिनी बुआ की थी , मैं तो जिन्दा ही उनकी बजह से हूँ , वो न होती तो मैं बचपन में ही मर जाता, मुझे जबसे मालूम हुआ की तू उनका बेटा है मैं मिलना चाहता था तुझसे पर समझ नहीं आ रहा था की कैसे मिलु.

मैं- अब तो मिल लिया न, छोड़ पुरानी बातो को , वैसे किसने सुपारी दी थी मुझे मारने को .

जब्बर- छोड़ न क्या फर्क पड़ता है वैसे भी तेरे चारो तरफ तो दुश्मन ही दुश्मन है

मैं- फिर भी बता दे

जब्बर- सुनना चाहता है तो सुन , तेरी काकी सरोज ने

एक पल को लगा की जैसे मैंने कुछ गलत सुन लिया हो .

मैं- क्या कहा तूने

जब्बर- मैं जानता हु तेरे लिए विश्वास करना बड़ा मुश्किल है , पर मेरा यकीन कर मैंने जो कहा वो सही है , तेरे घर छोड़ने के बाद सरोज मेरे पास आई थी , उसने मुझे १ लाख रूपये दिए ताकि मैं तुझे मार दू, तेरा विश्वास करना मुश्किल है पर मैं ये बाट साबित कर सकता हूँ ,

मैं- कैसे

जब्बर- मैं उसे बुला लूँगा तू आस पास छिपे रहना , हमारे बीच जो भी बाते होंगी तू सुन लेना फिर तुझे यकीन होगा.

जब्बर जिस तरीके से कह रहा था ऐसा लगता था की वो सच कहता है , पर मैं किसकी बात को सच मानु इस जब्बर की जो कुछ देर पहले मेरा दुश्मन था या फिर उस काकी की जिसने मुझे बचपन से पाला था .

“कुछ देर मैं अकेला रहना चाहता हूँ ” मैंने जब्बर से कहा तो वो चला गया .

मैं अपना माथा पकड़ कर बैठ गया , जिन्दगी मुझे क्या क्या दिखा रही थी . सरोज मुझे मरवाना चाहती थी , मेरे आसपास जो भी लोग थे रहस्य से भरे थे , सबके मन में कुछ न कुछ राज दफ़न था . और जिस जिस पर मैं बिश्वास कर रहा था वो ही छल रहे थे मुझे. सोचते सोचते न जाने कितना समय हो गया मुझे, न जाने कितनी शराब पी गया मैं . दो चार दिन बड़ी मुश्किल से निकले मेरे, हाल ऐसा था की मैं कहूँ तो क्या करू तो क्या . मोना की हवेली में जैसे कैद कर लिया मैंने खुद को .

दुनिया से जैसे नफरत सी हो गयी थी . पर मैं कहाँ जानता था की अभी तो मुझे बहुत कुछ देखा बाकी था . शयद वो पांचवा दिन था , आज ही वो तांत्रिक आने वाला था जो शकुन्तला ने बुलवाया था . खामोश रात में जब बस हवा का शोर था , मैं छुपा हुआ बस इंतजार कर रहा था की कब वो तांत्रिक आये , मैं बिलकुल नहीं चाहता था की वो कुछ भी उल्टा सीधा करे नागिन के साथ .

उस रात पीपल के निचे शकुन्तला, विक्रम दोनों मोजूद थे, मेरा दिल कर रहा था की अभी के अभी इन दोनों को मार दू. पर अभी इंतज़ार करना था , रात के करीब ११ बजे वहां एक गाड़ी और आई और उसमे से जो उतरा वो , वो शक्श था जिसे आज यहाँ नहीं होना था . विक्रम उस से कुछ बाते करने लगा. और फिर वो शकुन्तला को लेकर चला गया .

तांत्रिक के साथ दो और आदमी थे, उन्होंने अपना सामान लगाया और अपनी तयारी करने लगे.

मैं थोडा और आगे को चला ताकि बाते सुन सकू.

तांत्रिक- चेलो, आज तुम्हे ऐसी चीज दिखाऊंगा जो जिन्दगी में कभी कभी ही देखने को मिलता है ,

चेला- जी बाबा,

तांत्रिक ने अग्नि जलाई और उसमे कुछ सामान डाल कर अपनी पूजा करने लगा. हवा में अग्नि की लपटे जोर जोर से फडफडा रही थी , फिर उसने अपने झोले से एक बीन निकाली जो बहुत बड़ी थी , उस पर सितारे जड़े थे जो अग्नि की रौशनी में चमक रहे थे . तांत्रिक ने बीन अपने होंठो से लगाई और वातावरण में अजीब सी धुन गूंजने लगी , सब कुछ जैसे शिथिल होने लगा. करीब आधा घंटा बीता, पर उसका साँस नहीं टुटा वो बस बीन बजाता रहा और फिर माहौल जैसे बदल गया , दूर से ही फुफकार की आवाज आने लगी , वो आ गयी थी .
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Adultery गुजारिश

Post by koushal »

#55

“आजा , सामने आ मुझे तेरा ही इंतज़ार था ,आज तुझे पाकर ही रहूँगा ” तांत्रिक ने अट्टहास करते हुए कहा.

सामने से एक गहरी फुफकार आई , हवा में जहर फ़ैल गया , पर तांत्रिक ने फौरन ही कोई मन्त्र पढ़ा .

“नागिन, तेरा मुझ से पाला पड़ा है , तूने बहुत मासूम लोगो को अपना शिकार बना लिया है पर अब तेरा समय बीता. तेरे पास दो रस्ते है या तो मेरी शरण में आजा या मौत के ” तांत्रिक ने कहा.

मामला गंभीर हो चला था . तांत्रिक मुझे बहुत पहुंचा हुआ लगता था . उसने अपने आस पास एक राख का घेरा बनाया हुआ था ,

“सामने आ ” उसने चीखते हुए कहा और बीन दुबारा से बजाने लगा. इस बार त्रीवता और जोर की थी उसके चेले भी उसका साथ दे रहे थे . और फिर मैंने वो होते देखा जो नहीं होना था . आग की लपटों में मैंने नागिन को लहरा कर आते हुए देखा, पर वो वैसी बिलकुल नहीं थी जैसा मैंने उसको देखा था , वो कमजोर थी बहुत कमजोर . शायद कुछ हुआ था उसे . मैंने पहली बार अपने माथे पर पसीना बहते हुए महसूस किया.



“बड़ी तमन्ना थी की मौका मिलेकिसी विलक्ष्ण नागिन का शिकार करने का पर तू तो कमजोर निकली . ”तांत्रिक ने कहा

“तेरा अंत कर सकू अभी इतनी जान बाकी है ” नागिन ने शांत आवाज में कहा

तांत्रिक- उफ़ ये अहंकार, ये गुरुर , अच्छा लगा मजा आयेगा तुझसे खेलने में .

तांत्रिक ने बीन पर कोई मन्त्र पढ़ा और अपनी कार्यवाही करने लगा. नागिन बेकाबू होने लगी , शिथिल होने लगी . वो लगातार उस पर कुछ फेक रहा था जिस से नागिन तिलमिला रही थी उसकी त्वचा से रक्त बहने लगा था , दर्द से बिलबिलाने लगी थी वो . अब मेरे बर्दाश्त से बाहर था ये सब . मैं नागिन की तरफ दौड़ पड़ा .

“तांत्रिक , रोक दे अपने जतन को वर्ना तेरे टुकड़े कर दूंगा मैं ” मैंने उसके और नागिन के बीच में आते हुए कहा .

तांत्रिक ने मुझे देखा और कहा- कौन है तू मुर्ख और यहाँ आने की गुस्ताखी कैसे की तूने,

मैं- मेरे बारे में उस से जाके पूछना जिसने तुझे यहाँ भेजा है . ये नागिन मेरी है , और मेरे रहते तू तो का साक्षात् यमराज भी अगर आ जाये तो इस से पहले मैं खड़ा हूँ , तेरे और नागिन के बीच में मैं वो दिवार हूँ जिसे तुझे बेधना होगा.

तांत्रिक- जो तेरी इच्छा, पहले तेरा रक्त पान करता हूँ .

तांत्रिक ने अपनी मुट्ठी में कुछ लिया और मेरी तरफ फेका. बदन में जैसे आग लग गयी हो पर अगले ही पल मैं ठीक हो गया. तांत्रिक की आँखे फटी रह गयी .

“असंभव , ये मुमकिन नहीं, कौन है तू ” उसने कहा .

मैं- तेरी मौत.

मैंने पास पड़ी लकड़ी का टुकड़ा उठाया और तांत्रिक की तरफ बढ़ चला , उसके चेले मेरे सामने आ गए , तांत्रिक अग्नि के पास गया और बैठकर मन्त्र पढने लगा. नागिन तड़पने लगी. मुझे और गुस्सा आने लगा था . दोनों चेलो को धर लिया मैंने और पीटने लगा उन्हें. छीना झपटी में मैंने एक का सर फोड़ दिया.

जैसे ही वो गिरा . मैंने दुसरे को धक्का दिया और तांत्रिक की तरफ बढ़ा. पास में ही त्रिशूल खड़ा था मैंने उसे लिया और तांत्रिक के कंधे में घोंप दिया. वो चीख पड़ा . मैंने अग्नि में रेत फेंकी और तांत्रिक को धर लिया. वो लगातार अब भी मन्त्र बुदबुदा रहा था , नागिन मीमिया रही थी .

मैंने उसके अन्डकोशो पर वार किया तो वो तिलमिला गया .

“हरामजादे, मैंने तुझसे कहा था न की मैं तेरी मौत हूँ अब देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ , ” मैंने तांत्रिक का हाथ तोड़ दिया .

“आह्ह्ह्हह्ह ” चीखा वो . पर अब उसे चीखते ही रहना था , क्योंकि उसे सामना करना था मेरे गुस्से का. मैंने पास में पड़ी कटार उठाई और उसे काटने लगा. जैसे कोई कसाई बकरे को काटता है . तांत्रिक की चीखे दूर दूर तक गूँज रही थी पर मेरे मन में कोई रहम नहीं था . जब तक मेरा मन शांत नहीं हुआ मैं उसके टुकड़े करते रहा . उसके चेले भाग गए.

फिर मैं नागिन की तरफ गया . वो बेहाल पड़ी थी . मैंने उसे अपनी बाँहों में लिया .

“कुछ नहीं होगा तुझे , मैं हूँ न कुछ नहीं होगा तुझे. ” मैंने कहा

उसकी पीली आँखों से मैंने आंसू गिरते देखे.

ऐसा असहनीय दर्द मैंने तो महसूस किया था , समझ नहीं आ रहा था की क्या करू . कहाँ ले जाऊ इसे. पर तभी जैसे चमत्कार सा हुआ. मेरे सर पर जो लगी थी , खून की बूंदे नागिन के बदन पर पड़ी तो उसे राहत मिली. जहाँ मेरा खून गिरा था वहां उसके जख्म भरने लगे.



मैंने कटार उठाई और अपनी हथेली को काटा. रक्त धारा बहने लगी. मैं रक्त उसके शरीर पर मलने लगा. उसके जख्मो में सुधार होने लगा. पर तभी उसने मुझे दूर धकेल दिया.

“मत कर ” धीमी आवाज में बोली वो .

मैं- मेरे खून से अगर तुझे राहत मिलती है तो मेरी बूँद बूँद तेरी है .

नागिन- मैंने कहा न मत कर .तू जा यहाँ से , चला जा .

मैं- नहीं जाऊंगा , और तुझे भी नहीं जाने दूंगा. आजतक तू हमेशा मेरी ढाल बनके रही है , मुझ पर आने वाली हर मुशीबत को परे ही रोका है तूने आज जब मेरी बारी है तो मैं कैसे पीछे हट सकता हूँ.

नागिन- मानता क्यों नहीं मेरी बात चला जा , दूर रह मुझसे, मुझे कमजोर मत कर . मुश्किल से संभाला है खुद को , इस से पहले की बिखर जाऊ चला जा यहाँ से , चला जा , मेरी जरा भी परवाह है तुझे तो चला जा यहाँ से

मैं- ठीक है चला जाऊंगा, तेरी नजरो से दूर हो जाऊंगा पर जाने से पहले इतना बता जब दूर ही करना था तो आई क्यों . ठुकराना ही था तो अपनाया क्यो मुझे. जा रहा हूँ पर जाने से पहले मैं तेरा कर्ज चुकाना चाहता हूँ .और तू मना नहीं करेगी मुझे

मैंने अपना हाथ आगे कर दिया , वो मेरे पास आई और अपने दांत मेरी कलाई में गडा दिए.
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Adultery गुजारिश

Post by koushal »

#55

“आजा , सामने आ मुझे तेरा ही इंतज़ार था ,आज तुझे पाकर ही रहूँगा ” तांत्रिक ने अट्टहास करते हुए कहा.

सामने से एक गहरी फुफकार आई , हवा में जहर फ़ैल गया , पर तांत्रिक ने फौरन ही कोई मन्त्र पढ़ा .

“नागिन, तेरा मुझ से पाला पड़ा है , तूने बहुत मासूम लोगो को अपना शिकार बना लिया है पर अब तेरा समय बीता. तेरे पास दो रस्ते है या तो मेरी शरण में आजा या मौत के ” तांत्रिक ने कहा.

मामला गंभीर हो चला था . तांत्रिक मुझे बहुत पहुंचा हुआ लगता था . उसने अपने आस पास एक राख का घेरा बनाया हुआ था ,

“सामने आ ” उसने चीखते हुए कहा और बीन दुबारा से बजाने लगा. इस बार त्रीवता और जोर की थी उसके चेले भी उसका साथ दे रहे थे . और फिर मैंने वो होते देखा जो नहीं होना था . आग की लपटों में मैंने नागिन को लहरा कर आते हुए देखा, पर वो वैसी बिलकुल नहीं थी जैसा मैंने उसको देखा था , वो कमजोर थी बहुत कमजोर . शायद कुछ हुआ था उसे . मैंने पहली बार अपने माथे पर पसीना बहते हुए महसूस किया.



“बड़ी तमन्ना थी की मौका मिलेकिसी विलक्ष्ण नागिन का शिकार करने का पर तू तो कमजोर निकली . ”तांत्रिक ने कहा

“तेरा अंत कर सकू अभी इतनी जान बाकी है ” नागिन ने शांत आवाज में कहा

तांत्रिक- उफ़ ये अहंकार, ये गुरुर , अच्छा लगा मजा आयेगा तुझसे खेलने में .

तांत्रिक ने बीन पर कोई मन्त्र पढ़ा और अपनी कार्यवाही करने लगा. नागिन बेकाबू होने लगी , शिथिल होने लगी . वो लगातार उस पर कुछ फेक रहा था जिस से नागिन तिलमिला रही थी उसकी त्वचा से रक्त बहने लगा था , दर्द से बिलबिलाने लगी थी वो . अब मेरे बर्दाश्त से बाहर था ये सब . मैं नागिन की तरफ दौड़ पड़ा .

“तांत्रिक , रोक दे अपने जतन को वर्ना तेरे टुकड़े कर दूंगा मैं ” मैंने उसके और नागिन के बीच में आते हुए कहा .

तांत्रिक ने मुझे देखा और कहा- कौन है तू मुर्ख और यहाँ आने की गुस्ताखी कैसे की तूने,

मैं- मेरे बारे में उस से जाके पूछना जिसने तुझे यहाँ भेजा है . ये नागिन मेरी है , और मेरे रहते तू तो का साक्षात् यमराज भी अगर आ जाये तो इस से पहले मैं खड़ा हूँ , तेरे और नागिन के बीच में मैं वो दिवार हूँ जिसे तुझे बेधना होगा.

तांत्रिक- जो तेरी इच्छा, पहले तेरा रक्त पान करता हूँ .

तांत्रिक ने अपनी मुट्ठी में कुछ लिया और मेरी तरफ फेका. बदन में जैसे आग लग गयी हो पर अगले ही पल मैं ठीक हो गया. तांत्रिक की आँखे फटी रह गयी .

“असंभव , ये मुमकिन नहीं, कौन है तू ” उसने कहा .

मैं- तेरी मौत.

मैंने पास पड़ी लकड़ी का टुकड़ा उठाया और तांत्रिक की तरफ बढ़ चला , उसके चेले मेरे सामने आ गए , तांत्रिक अग्नि के पास गया और बैठकर मन्त्र पढने लगा. नागिन तड़पने लगी. मुझे और गुस्सा आने लगा था . दोनों चेलो को धर लिया मैंने और पीटने लगा उन्हें. छीना झपटी में मैंने एक का सर फोड़ दिया.

जैसे ही वो गिरा . मैंने दुसरे को धक्का दिया और तांत्रिक की तरफ बढ़ा. पास में ही त्रिशूल खड़ा था मैंने उसे लिया और तांत्रिक के कंधे में घोंप दिया. वो चीख पड़ा . मैंने अग्नि में रेत फेंकी और तांत्रिक को धर लिया. वो लगातार अब भी मन्त्र बुदबुदा रहा था , नागिन मीमिया रही थी .

मैंने उसके अन्डकोशो पर वार किया तो वो तिलमिला गया .

“हरामजादे, मैंने तुझसे कहा था न की मैं तेरी मौत हूँ अब देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ , ” मैंने तांत्रिक का हाथ तोड़ दिया .

“आह्ह्ह्हह्ह ” चीखा वो . पर अब उसे चीखते ही रहना था , क्योंकि उसे सामना करना था मेरे गुस्से का. मैंने पास में पड़ी कटार उठाई और उसे काटने लगा. जैसे कोई कसाई बकरे को काटता है . तांत्रिक की चीखे दूर दूर तक गूँज रही थी पर मेरे मन में कोई रहम नहीं था . जब तक मेरा मन शांत नहीं हुआ मैं उसके टुकड़े करते रहा . उसके चेले भाग गए.

फिर मैं नागिन की तरफ गया . वो बेहाल पड़ी थी . मैंने उसे अपनी बाँहों में लिया .

“कुछ नहीं होगा तुझे , मैं हूँ न कुछ नहीं होगा तुझे. ” मैंने कहा

उसकी पीली आँखों से मैंने आंसू गिरते देखे.

ऐसा असहनीय दर्द मैंने तो महसूस किया था , समझ नहीं आ रहा था की क्या करू . कहाँ ले जाऊ इसे. पर तभी जैसे चमत्कार सा हुआ. मेरे सर पर जो लगी थी , खून की बूंदे नागिन के बदन पर पड़ी तो उसे राहत मिली. जहाँ मेरा खून गिरा था वहां उसके जख्म भरने लगे.



मैंने कटार उठाई और अपनी हथेली को काटा. रक्त धारा बहने लगी. मैं रक्त उसके शरीर पर मलने लगा. उसके जख्मो में सुधार होने लगा. पर तभी उसने मुझे दूर धकेल दिया.

“मत कर ” धीमी आवाज में बोली वो .

मैं- मेरे खून से अगर तुझे राहत मिलती है तो मेरी बूँद बूँद तेरी है .

नागिन- मैंने कहा न मत कर .तू जा यहाँ से , चला जा .

मैं- नहीं जाऊंगा , और तुझे भी नहीं जाने दूंगा. आजतक तू हमेशा मेरी ढाल बनके रही है , मुझ पर आने वाली हर मुशीबत को परे ही रोका है तूने आज जब मेरी बारी है तो मैं कैसे पीछे हट सकता हूँ.

नागिन- मानता क्यों नहीं मेरी बात चला जा , दूर रह मुझसे, मुझे कमजोर मत कर . मुश्किल से संभाला है खुद को , इस से पहले की बिखर जाऊ चला जा यहाँ से , चला जा , मेरी जरा भी परवाह है तुझे तो चला जा यहाँ से

मैं- ठीक है चला जाऊंगा, तेरी नजरो से दूर हो जाऊंगा पर जाने से पहले इतना बता जब दूर ही करना था तो आई क्यों . ठुकराना ही था तो अपनाया क्यो मुझे. जा रहा हूँ पर जाने से पहले मैं तेरा कर्ज चुकाना चाहता हूँ .और तू मना नहीं करेगी मुझे

मैंने अपना हाथ आगे कर दिया , वो मेरे पास आई और अपने दांत मेरी कलाई में गडा दिए.
koushal
Pro Member
Posts: 2839
Joined: 13 Jun 2016 18:16

Re: Adultery गुजारिश

Post by koushal »

#57

किसी ने मुझे पुकारा, “देव ”

खेतो से एक साया निकल कर मेरे पास आया , मैंने देखा ये सरोज थी .

“तुम यहाँ कैसे ” मैंने कहा

सरोज- तुम्हे ढूंढते ढूंढते आ गयी , मुझे तुमसे बेहद जरुरी बात करनी थी .

मैं- जब्बर को मेरी मौत की सुपारी देने से ज्यादा जरुरी क्या बात है अब .

सरोज- मैं जानती थी ऐसा ही होगा. ये सब एक साजिश है हम दोनों के बीच दरार डालने की देव, मुझे मालूम हो गया है तुमने घर क्यों छोड़ा विक्रम उस शकुन्तला के साथ मिल कर जो भी कर रहा है उसमे मेरा उसका कोई साथ नहीं है देव, और जब्बर तो उनका ही मोहरा है .

मैं- जो भी हो मैं इस हालात में नहीं हूँ की किसी पर भी भरोसा कर सकू. मुझे मेरे हाल पर छोड़ दो.

सरोज- तुम्हे मेरी बात सुननी ही होगी,

मैं- मैंने कहा न जाओ तुम यहाँ से.

सरोज- इतना कठोर मत बनो देव, मुझ पर भरोसा नहीं कर सकते और मेरे पास ऐसा कोई सबूत नहीं है जो तुम्हे भरोसा दिला सके. बस मेरी जान है जो तुम ले लो शायद तब तुम्हे यकीन आये.

मैं- मैंने कहा न मेरे हालात ऐसे नहीं है , और तुम्हे अगर मेरी फ़िक्र है तो फिर मत आना मेरे पास.

मैंने कहा और आगे बढ़ गया . सरोज मुझे आवाज देती रह गयी .समझ नहीं आ रहा था की क्या करू क्या न करू. रिश्तो की ऐसी भूलभुलैया में उलझा था मैं की अपने पराये सच्चे झूठे का भेद समाप्त हो गया था .



रूपा के घर जब तक मैं पंहुचा , वो मेरी ही राह देख रही थी .

रूपा- बड़ी देर लगाई कब से राह देख रही हूँ मैं .



मैं- बस देर हो गयी .

रूपा- ये कैसा बक्सा है हाथ में .

मैं- रख ले तेरे पास , मुझे भूख लगी है बाद में देखेंगे इसे , हिफाजत से रख दे.

रूपा- जो हुकुम सरकार.

रूपा खाना बनाने लगी मैं वही दिवार का सहारा लेकर बैठ गया .

मैं- तू जादू करना जानती है

रूपा- कितनी बार तुझे बताऊ ,

मैं- कोई ऐसी तरकीब है की मैं अतीत देख पाउँगा

रूपा- बाबा सुलतान से पूछ , वैसे जादू में ऐसा होता है कुछ जादूगर अपनी यादो को कही छुपा देते है . वैसे तुझे किसका अतीत देखना है .

मैं- नागेश का

रूपा- जानता है तू क्या कह रहा है .

मैं- तू शायद जानती नहीं पर मुझे लगता है उसका मुझसे कोई नाता है .

रूपा- नागेश किवंदिती के सिवा कुछ भी नहीं . उसे मरे जमाना हुआ .

मैं- बाबा को लगता है की वो लौट आया है . चरवाहों का तिबारा शायद उसने ही तोडा है .

रूपा- नहीं ऐसा नहीं है .

मैं- क्यों

रूपा- वो तिबारा मैंने तोडा है .

मुझे जैसे रूपा ने झटका सा दिया.

मैं- पर क्यों

रूपा- जब तुझे चोट लगी तो मेरा दिमाग भन्ना सा गया था . मैं इलाज के लिए उपचार तलाश कर रही थी , तुझे मालूम नहीं उसे चरवाहों का तिबारा क्यों कहा जाता था क्योंकि वहां पर ये जादूगर लोग अपने सफ़र के दौरान अक्सर रुकते थे , एक तरह का गुप्त ठिकाना था ये लोगो को मालूम न हो की जादूगर है तो वो चरवाहों का भेस ले लेते थे .

मैं- पर तूने तोडा क्यों

रूपा- बता तो रही हूँ , उस रात जब मैं वहां पर पहुंची . तो मुझे कटोरे की तलाश थी जो मन्नते पूरी करता था .

मैं- कैसा कटोरा .

रूपा- तिबारे में हमेशा से एक कटोरा रखा होता था जिसमे से जो मांगो मिल जाता था , मतलब कुछ जरुरत की चीजे .

मैं- तो तुझे क्या जरुरत थी

रूपा- कितने सवाल करता है तू

मैं- बस उत्सुकता .

रूपा- मैं प्रतिकृति पत्थर को तलाश रही थी .

मैं- क्या होता है ये .

रूपा- एक तरह का छलावा .

मैं- समझा नहीं

रूपा- तेरा घाव तेरे कलेजे को खा रहा था , यदि जल्दी से उपचार न होता तो जहर तेरे कलेजे को भेद देता. चूँकि मुझे उपचारों का ज्ञान है तो मैंने एक रिस्क लेने का सोचा, मैं तेरे कलेजे की नकल बनाती और उस तंत्र वार के असर को उस पर उतार लेती बाद में कलेजा वापिस कर देती.

पर ये पत्थर मिलना दुर्लभ है तो बस मैं अपनी हताशा को रोक नहीं पाई.

मैं- मैं कैसे ठीक हुआ तुमने उस रात क्या किया था .

रूपा- कुछ भी नहीं किया मैंने .

मैं- रूपा, मुझे सच बता तुझे मेरी कसम है सच बता.

रूपा- मैंने कुछ नहीं किया सिवाय तेरे जख्म को सिलने के. जो किया उस नागिन ने किया उसने ....

रूपा ने एक आह भरी

मैं- क्या किया था उसने बताती क्यों नहीं .

रूपा- उसने तेरी जान के बदले खुद की जान रख दी. वो कोई मामूली नागिन नहीं है वो अलग है , हम सब जानते थे की नागेश के वार का कोई भी तोड़ नहीं है . तो उसने एक ऐसा फैसला किया जो बस काम कर गया . उसने तेरी जान के बदले अपनी जान रख दी. नागो की अपनी शक्तिया होती है , उसने रक्तभ्स्म तुझे दी .

मैं- क्या होती है ये .

रूपा- जैसे इंसानों के लिए शरीर में रक्त जरुरी होता है , नागो के लिए रक्त्भास्म होती है . वार उतारने के कुछ नियम होते है हर चीज का मूल्य होता है उसने तेरे कलेजे के बदले अपना कलेजा रख दिया. उसने सोचा था की उसका जहर नागेश के वार को झेल लेगा पर ऐसा हुआ नहीं .

मैं- मतलब

रूपा- मतलब ये की नागिन पल पल मर रही है , उसके पास समय बहुत कम है इस श्राप ने हम तीनो को आपस में जोड़ दिया है . उसका कलेजा गल रहा है , हर रात तेरी भारी होगी दर्द से, और मेरी पीठ का ये जख्म सदा ताजा रहेगा कभी भरेगा नहीं .

मैं- तू सब जानती थी तो तूने क्यों किया ऐसा.

रूपा- आशिकी इम्तेहान लेती है मेरे सरकार. और जब तुझसे नाता जोड़ा है तो फिर मैं कैसे कदम पीछे हटाती, जब सुख में तेरी साथी हूँ तो तेरा दर्द भी मेरा हुआ न .

मैं- पर नागिन ने मेरे लिए अपनी जान की बाजी क्यों लगाई,

रूपा- मुझे भी इंतजार है इस सवाल के जवाब का .

हम दोनों के दरमियान कुछ देर के लिए एक ख़ामोशी छा गयी. जिसे मैं इतना भला बुरा कह आया था वो मौत के करीब थी सिर्फ मेरी वजह से सिर्फ मेरी वजह से. अब मुझे समझ आया की मेरे खून से उसकी हालात क्यों ठीक हो रही थी क्योंकि मेरे खून में रक्त भस्म भी थी .

“रक्त भस्म कहा मिलेगी रूपा ” मैंने पूछा

रूपा- परचून की दुकान पर तो नहीं मिलेगी.

मैं- बता न .

रूपा- मैं नागो के बारे में गहराई से नहीं जानती मुसाफिर, बाबा से पूछ .

मैं- ठीक है उनके पास ही जाता हूँ ,

रूपा- खाना तो खा ले पहले

मैं- मुझे जाना होगा.

रूपा- बेशक पर पहले खाना खा, बड़ा सकून होता है जब मैं तेरे साथ रोटी खाती हूँ , इस थोड़े से सुख पर तो मेरा अधिकार रहने दे सरकार.

रूपा ने साग, चूरमा परोसा मुझे . और कुछ पालो के लिए मैं सब कुछ भूल गया . खाने के बाद मैं वहां से निकल कर चल दिया मुझे मालूम था की कहाँ जाना है , आधे रस्ते में मुझे सुलतान बाबा मिल गए.

बाबा- कहाँ था तू, तुझे ही तलाश रहा था मैं .

मैं- मैं भी तुम्हारे पास ही रहा था बाबा , मुझे मालूम हो गया इस झोले में क्या है

बाबा के चेहरे पर हवाइया उड़ने लगी.
Post Reply