Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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आज की शाम बहुत हसीन थी।और क्या न होती। आज हिना का बर्थ-डे था। आज उसे पन्द्रहवां साल लग गया
था ।पूरा बंगला मेहमानों से खचा-खच भरा हुआ था। रोशनगढ़ी से बाहर के मेहमान भी आए हुए थे।बंगला रोशनी में नहाया हुआ था। हर तरफ रंग-ओ-नूर की बारिश थी। खनकते कहकहे थे। मनमोहक मुस्कुराहटें थीं। थ्री-पीस सूट में समीर राय बहुत स्मार्ट लग रहा था। नफीसा बेगम के तो जैसे पांव ही जमीन पर न पड़ रहे थे। वह तो आज भी वैसे ही फिट-फार थी जैसे दस बरस पहले। वक्त की गर्दिश ने उसका कुछ नहीं बिगाड़ा था ।मामू–मामियां सब थीं तो मायरा भी मौजूद थी। मायरा काले लिबास में थी और खूब निखरी हुई दिखाई दे रही थी। वह सोफे पर इत्मीनान से बैठी थी।

समीर राय कई बार उसके सामने से गुजरा था। दोनों ने एक-दूसरे को देखा था। निगाहें मिली थी तो दोनों हौले से मुस्कुरा दिये थे। जाने क्यों ?आज की शाम जिसके नाम थी, उसकी दीद तो पत्थर कर देने वाली थी आज के इस समारोह के लिए हिना ने खास लिबास सिलवाया था। वह इस गोल्डन लिबास में कोई अप्सरा लग रही थी। वैसे भी वह इतनी सुन्दर थी कि इस दुनिया की लगती ही न थी। वह अपनी सहेलियों के साथ बंगले के लाउंज में बैठी थी। संगीतमय सुरीले कहकहे बिखर रहे थे। चुटकुले सुनाये जा रहे थे। फिकरे कसे जा रहे थे।हिना के बराबर में हेमा बैठी थी। हेमा, हिना की स्कूल की दोस्त थी और हिना के बहुत करीब थी। हिना उसे शोखी से 'हेमा मालिनी' कहा करती थी।हेमा को जब हिना ने बर्थ-डे पर इन्वाइट किया था तो वह थोड़ा हिचकिचाई थी-"कैसे आऊं...?

''क्या प्राब्लम है...?" हिना ने जानना चाहा।

"यार..रात हो जागगी... | मैं अकेले कैसे वापिस आऊंगी..?"

"तुम अपनी गाड़ी के बजाय टैक्सी में आ जाना। इधर से मैं अपने ड्राइवर को साथ भिजवा दूंगी... |

"मेरी किस्मत में क्या ड्राइवर ही रह गया है...?" हेमा ने उसे तिरछी निगाहों से देखा।

"क्या करूं..मेरा कोई भाई नहीं है ना...वरना अपने भाई को तेरे साथ कर देती... | हिना ने हंसकर कहा, फिर उसे एकदम से ख्याल आया-"पर तेरा तो भाई है ना। हेमा तू उसके साथ क्यों नहीं आ जाती..?"

"जरा रैस्पेक्ट से...।" हेमा ने आंखें तिरेरी-

"वह मेरे बड़े भाई हैं...।"

"सॉरी यार... । हां, तुम उनके साथ आ जाओ...रात को उनके साथ ही चली जाना...

''बर्थ-डे में इन्वाइटी मैं हूं, वह भला क्यों आने लगे। जानती नहीं मेरे भाई बड़ी नाक वाल हैं...।" हेमा हंसी।

"मैं कौन-सी उनकी नाक काट रही हूं..।" हिना शोखी से बोली।"तुम्हें उन्हें भी इन्वाइट करना होगा...।

" हेमा कुछ सोचती हुई बोली।"नो प्राब्लम ! तुझे बुलाने के लिये तो मैं किसी काले देव को भी दावत दे सकती हूं..।''

"खबरदार, जो मेरे भाई को देव कहा...वो भी काला। वह तो प्रिन्स है...राजकुमार हैं..देखेगी तो अपनी उंगली काट बैठेगी...।''

"कामदेव हैं क्या..?" हिना ने उसे घूरते हुए पूछा ।

“ऐसा ही समझ लो....।'' हेमा ने उसे तिरछी नजरों से देखा ।

"अच्छा...फिर तो देखना ही पड़ेगा... | बोल, किस तरह बुलावा दूं.?"

"फोन पर रिक्वेस्ट कर लेना...।''

"चल मंजूर... ।' फिर हिना ने उनसे फोन पर बात की तो थोड़े संकोच के बाद उन्होंने हामी भी ली। लेकिन आज की शाम को उन्हें कहीं और भी जरूरी जाना था इसलिये वह हेमा को छोड़कर और वक्त पर वापसी का वायदा करके चला गया था ।हिना से उसकी मुलाकात नहीं हो सकी थी।जब सारे मेहमान आ चुके और सारी तैयारियां हो चुकी तो समीर राय ने हिना को बाहर बुलवाया। वह अपनी सहेलियों के झुरमुट में लॉन में आ गई। शीशे की एक खूबसूरत मेज पर एक बड़ा-सा केक रखा था। हिना ने केक काटा तो हर तरफ 'हैप्पी बर्थ-डे' का शोर मच गया ।खाने के बाद 'म्युजिकल प्रोग्राम' रखा गया था। समीर राय को गजलें सुनने का हमेशा से शौक था। उसने एक नामी सिंगर को बुलवाया हुआ था। खाने के बाद जब गिने-चुने व खास लोग रह गये तो इस सिंगर ने अपनी खूबसूरत आवाज में एक गजल छेड़ी। इस सिंगर की जहां आवाज अच्छी थी वहीं उसका चुनाव भी लाजवाब था जब उसने पहली गजल छेड़ी-“जब से तूने मुझे दीवाना बना रखा है...।"तो उसका जोरदार तालियों की गूंज के साथ स्वागत किया गया। गजलें गाई जाती रहीं। रात भीगती रहीं। आनन्दपूर्ण क्षण वक्त के पहाड़ से टूट-टूट कर बरसते रहे ।ऐसी संगीतमय शामें भी तो समीर राय की जान रही थीं। इन्हीं संगीत भरी शामों ने ही तो उसे लूटा था। इसी नशे ने तो उसे उसकी नमीरा को छीन लिया था। इस दुनिया से गये नमीरा को लगभग पन्द्रह साल हो गये थे..लेकिन समीर उसे अभी तक नहीं भुला पाया था और ऐसी शामें नमीरा की याद को और भी गहरा व ताजा कर दिया करती थी। जिन्दगी में तो सभी प्यार किया करते हैं,मैं तो मर कर भी मेरी जान तुझे चाहूंगा।"

सिंगर गा रहा था और समीर राय के दिल पर टप-टप आंसू गिर रहे थे। फिर वह जब्त न कर पाया। संयम जाता रहा। वह बड़ी सावधानी से, बड़े सहज अंदाज में उठा जैसे किसी जरूरत पर उठा हो...लेकिन मायरा जानती थी कि वह यह दर्दीली गजल छोड़कर इस महफिल से क्यों उठा है।मायरा ने उसे बंगले की इमारत की तरफ जाते देखा तो वह ना चाहते हुए भी उसके पीछे चली । मायरा ने समीर राय को ढूंढ लिया। वह अपने बैडरूम में अपना हाथ आंखों पर रखे, जाने किस दुनिया में खोया हुआ था |

बैडरूम में टेबल-लैम्प रोशन था, लाल रंग के शेड का प्रतिबिम्ब उसके चेहरे पर पड़ रहा था। मायरा, उसे कुछेक क्षणों तक यूं ही देखती रही। सोचती रही कि उसे अपनी आमद का अहसास कराये या जिस तरह आई है वैसे ही खामोशी से लौट जाये। लेकिन वह यहां खुद से कहां आई थी...जो खुद से लौट भी जाती। उसे अपने आप पर नियंत्रण कब था ।वह बहुत धीरे उसके बैड पर बैठी और उसका हाथ पकड़ कर बड़ी कोमालता से उसकी आंखों से हटाया। हाथ हटा तो उसने देखा कि समीर राय की आंखें आसुओं से भरी हुई हैं। हड़बड़ाई आंखों से ही समीर ने हाथ हटाने वाली को देखा। कुछ नजर नहीं आया। एक तो रोशनी कम थी.दूसरे उसकी आंखें आंसुओं से भरी हुई थीं।फिर भी उसने जान लिया कि वह कौन है ?

"जब दर्दीली गजलें सुनने का शौक है तो अपने अंदर सुनने का हौसला भी रखा।" मायरा ने दुखी लहजे में कहा ।

"मायरा..मैं इस वक्त अकेले रहना चाहता हूं। प्लीज, मुझे तन्हा छोड़ दो...।" समीर राय ने बमुश्किल कहा।

मैं नहीं छोडूंगी तुम्हें तन्हा।' वह अपनत्वपूर्ण स्वर में बोली-"तुम कैसे मर्द हो? तुम्हारी 'क्लास और रुतबे के मर्द तो चार-चार शादियां करते हैं और इस कोरम (संख्या) को भी टूटने नहीं देते। एक मरती है तो फौरन दूसरी कर लेते हैं, और एक तुम हो कि पन्द्रह साल से एक ही को रोये जा रहे हो, आखिर कब तक रोओगे उसे..?"

"मायरा.. नमीरा को नहीं भूल सकता।" उसने अपनी बेबसी जाहिर की।

"तुम उसे भुलाना नहीं चाहते। तुम्हें अपने गम से इश्क हो गया है...।" मायरा ने जैसे उसे 'आईना दिखाया।

"चलो, यही समझ लो...।" समीर ने जैसे हथियार डाल दिये। लेकिन मैं तुम्हें यूं सिसक-सिसक कर मरने नहीं दूंगी...।"

"तुम कौन । हो..?" समीर राय के लहजे में कटुता भर आई थी।

मैं कोई नहीं हूं..मैं जानती हूं कि मैं कोई नहीं हूं। मैं अगर काई होती तो तुम्हें ठीक कर देती....।" मायरा भी अंदर से सुलग उठी।
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"तुम अपनी हदें फलांग रही हो मायरा...।" समीर को उसका यह अधिकारपूर्ण हस्तक्षेप रास नहीं आया था-"प्लीज, तुम यहां से जा सकती हो।

"जाती हूं...।" यह कहकर मायरा एक झटके से उइ गई-"लेकिन एक बात याद रखना, मैं अगर सचमुच चली गई तो बहुत पछताओगे...।"

समीर राय उसे जाता हुआ देखता रहा। मायरा जब दरवाजे पर पहुंच गई तो समीर बेअख्तयार हो बोल उठा-"सुनो... ।'

"मायरा ठिठकी और मुड़ी, लेकिन कुछ बोली नहीं।

"तुम आखिर कहना क्या चाहती हो मायरा..?"
समीर राय असहाय-सा बोला।

"कुछ नहीं...।" मायरा ने एक झटके से कहा और फौरन बाहर निकल गई।समीर राय की समझ में कुछ न आया कि मायरा आखिर क्या चाहती है ? हां, उसकी आमद से इतना जरूर हुआ था कि वह अपना गम भूल गया था |मायरा शायद वही चाहती
थी।

.
हिना ने भी अपने अब्बू को उठते हुए देखा था ।और समझ गई थी कि गजलों से उठने वाले किस दर्द ने उन्हें उठने को मजबूर किया है। वह अब बच्ची नहीं थी। अपने बाप की मनोदशा व जज्बात का अहसास था उसे। वह समझ गई थी कि अब्बू किसी एकान्त की तलाश में उठ गये हैं। ऐसे तड़पाते क्षणों में वह ऐसा ही तो करते थे।समीर राय प्रायः कहा करता था कि हिना ने उसकी जिन्दगी बचा ली है...वरना वह तो जाने कब का मर चुका होता हिना, अब्बू के लिए तड़प उठी, और अभी वह उठने की सेच ही रही थी कि हेमा ने अचानक कहा-"अच्छा हिना, अब मैं चलूंगी...।''

"क्यों भई, अपने भाई को तो आने दो...।" हिना बोली।

"वह आ गये हैं. मुझे नजर आ रहे हैं... "

"अच्छा , कहां हैं...जरा मुझे भी मिलवाओ। मैं उनसे पूछू तो सही कि क्या इस तरह आया जाता है किसी की सालगिरह में... " हिना हंसते हुए उठ खड़ी हुई।

"चल, पूछ ले...।" हेमा ने कदम बढ़ाते कहा ।हिना उसके साथ हो ली।इस वक्त मेहमानों की संख्या बहुत कम रह गई थी। वे दोनों जब मेहमानों के बीच से 'स्वीमिंग पूल' की तरफ बढ़ी तो हिना को वहां खड़ा वह नवयुवक दूर ही से नजर आ गया। वह 'तरूण-ताल' के किनारे खड़ा साकत पानी में अपना अक्स देख रहा था। फिर उसने इस पानी में जैसे एक 'सुनहरी जलपरी' को देखा। उसने घूमकर देखा..सुनहरी लिबास मे हिना उसकी बहन के साथ पीछे खड़ी थी। भाई..यह है मेरी सहेली हिना...।" हेमा ने उनका परिचय कराया "और हिना यह हैं गौतम ।

'"कामदेव...।" हिना शोख लहजे में लेकिन बहुत धीरे से बोली। वह गौतम को निहार रही थी।"क्या मैंने गलत कहा था...देख लिया ना तूने। हैं ना साक्षात् कामदेव... । हेमा ने भी हौले से कहा ।हिना, गौतम की तरफ देख रही थी। फिर दोनों की नजरें मिलीं। यूं लगा जैसे दो बिछुड़े..अचानक सामने आ गये हों। नजरें मिली तो फिर हट नहीं सकीं। फिर जैसे नजर-से-नजरर की बात चली |ढूंढती थी जिसे नजर वह तुम ही तो होवक्त की धुन्ध में थे जो गुमवह तुम ही तो हा कि जैसे तुझको बनाया गया है मेरे लिएतू अब से पहले सितारों में बस रही थी कहींतुझे जमीं पर बुलाया गया है मेरे लिए। कौन आया कि निगाहों में चमक जाग उठी।दिल के सोचे हुये तारों में खनक जाग उठी ।मेरी आंखों पर झुकी रहती थी जिसकी नजरेंतुम वही मेरे ख्यालों की परी हो कि नहींकहीं पहले की तरह फिर तो न खो जाओगी |जो हमेशा के लिए हो, वह खुशी हो कि नहींमैंने शायद तुम्हे पहले भी कहीं देखा है।

वे दोनों एक-दूसरे को देख रहे थे...और हेमा उन दोनों को देख रही थी। फिर उससे रहा नहीं गया। वह धीरे से खखारी और बोली
"अरे भई ! यह बताएं कि क्या आप लोग एक-दूसरे को पहले से जानत हैं ? किसी जमाने के बिछड़े हुये मिले हैं ? आखिर क्या मामला है ? कुछ हमें भी तो बताएं...।"

तब अचानक दोनों को होश आया। तन्द्रा टूटी, दोनों ने एक दूसरे को अजनबी निगाहों से देखा।"आपसे मिलकर खुशी हुई...।" हिना ने कहा।

"मुझे भी...।" गौतम बोला।

"लेकिन आप दानों को मिलाकर शायद मैं मुश्किल में पड़ गई हूं...।" हेमा हंस दी।

वह क्यों..?" दोनों ने समवेत स्वर में पूछा था।

इसलिए कि दोस्त, दोस्त न रहा..भाई, भाई न रहा... । हेमा ने बारी-बारी से दोनों की तरफ देखते हुए कहा ।हेमा की बात सुन उन दोनों की निगाहें एक साथ झुक गई थीं।चोरी पकड़ी जाने की लज्जा के सबब शायद ऐसा हुआ था।

“जी, अब हमें इजाजद दें। हम चलते हैं...।" गौतम खुद को संभालते हुए बोला ।

"अच्छा...।" हिना धीरे से बोली ।

"अरे वाह... | बड़े आराम से जाने की इजाजत दे दी। तू तो भैया से लड़ने के लिए आई थी...।" हेमा ने उसके बाजू पर चुटकी भरी।

"हां, हिना जी। मैं क्षमाप्रार्थी हूं, मुझे आने में देर हो गई। आपको सालगिरह मुबारक हो...।" गौतम को जैस अब होश आया था।

आपने खाना खाया..?" हिना ने भी औपचारिकता निभाई।

"थैक्स..मैं खाना खाकर आ रहा हूं...

''आप मुनासिब समझें तो थोड़ा-सा केक चख लें...।" हिना ने हेमा की तरफ देखा।

"अरे, मुझे क्या देखती है...।" हेमा चहकी।

"क्यों नहीं..।" गौतम बोल उठा-"चलिए...।

"प्लीज...।" हिना ने हाथ से इशारा किया ।हिना उन दोनों को ड्राइंगरूप में ले आई...सितारा से केक और कॉफी लाने को कहा। हिना व हेमा सोफे पर इकट्ठी बैठ गई थीं और गौतम उनके सामने वाले सोफे पर जा बैठा था। हिना ने निगाहें उठाकर गौतम की तरफ देखा। गौतम पहले से उसकी तरफ देख रहा था।"तुझे जमीन पर उतारा गया है मेरे लिए...

"बाहर से आवाज आ रही थी। सिंगर दिल पर असर करने वाली आवाज में गा रहा था। दोनों के नयन एक-दूसरे में उलझे हुए थे।प्रायः ऐसा ही होता है कि पहली नजर ही अपना असर दिखा जाती है। किसी को देखकर दिल एकदम पुकार उठता है-
"ढूंढती थी जिसे नजर वह तुम ही तो हो...। शायद यहां भी ऐसा ही था और प्यार तो वह जज्बा है जो ना ऊंचा-नीच देखता है ना जात-धर्म। प्यार होना होता है और हो जाता है बस !यहां भी शायद कुछ ऐसा ही था।

पन्द्रहवें बरस की यह पहली रात थी |भविष्यवक्ता अरूणिमा ने कहा था कि इस लड़की पर पन्द्रहवां साल बड़ा भारी होगा। वह पन्द्रहवां साल आ पहुंचा था ।कयामत की रात सिर पर थी।हिना अपने शवन-कक्ष में निद्रामग्न थी। नर्म मुलायम तकिये पर उसके रेशमी बाल फैले हुए थे। ढीले-ढाले नाईट सूट में बड़े पुरसुकून अंदाज में लेटी हुई थी। कमरे में नीले रंग का नाईट बल्ब रोशन था। नीलाहट लिये रोशनी में हिना का सुरत-सौंदर्य अपना जादू जगा रहा था ।वह सपनों की वादी में किसी तितली की तरह उड़ती फिर रही थी। उसे क्या मालूम था कि आज की रात क्या होने वाला है। वक्त कैसी करवट लेने वाला है ? किस्मत क्या गुल खिलाने वाली है ?इस वक्त रात के तीन बज रहे थे।चारों तरफ पूर्ण सन्नाटा व्याप्त था।ऐसे में 'वो' अचानक ही पर्दे के पीछे से नमुदार हुआ ।'वो' एक सुनहरा सांप था ।उसका जिस्म चमकदार था और उस पर छोटे-छोटे गोल निशान थे। ये निशान रंगीन व बेहद चमकदार थे। यही लगता था जैसे उसके सुनहरे बदन पर विभिन्न रंगों के 'पत्थर' जड़े हुये हों। उसके सिर पर भी एक चमकदार 'पत्थर' था...जिससे किरणें फूट रही थीं। यही लग रहा था जैसे यह 'मणिक' उसके सिर का ताज हो ।उसकी द्विशाखी काली जिव्हा बार-बार बाहर लपलपा रही थी।वो पर्दे से उतर कर हिना के बैड की तरफ बढ़ा। कमरे में एक अनूठी-सी सुगन्ध फैल गई और बड़ी ही मस्त कर देने वाली थी यह खुशबू भी हिना के रेशमी लम्बे बाल तकिये से होते हुये बैड के किनारे तक चले गये थे।
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वह सुनहरी सांप इन बालों की लहरों में घूमता हुआ ऊपर आया और फिर कुण्डली मारकर बैठ गया और अपना फन फैलाकर अपनी काली व चमकीली आंखों से हिना के सुप्त सौंदर्य को निहारने लगा।'वो' हिना के सौंदर्य व मनमोहिनी सूरत में मग्न था और हिना ख्वाबों की हसीन वादियों में घूम रही थी। उसके इस सपने में हेमा का भाई गौतम ही उसके साथ था। वह गौतम का हाथ पकड़े भागती चली जा रही थी। दोनों बेहद खुश थे। फिजा में कहकहे बिखर रहे थे। फिर अचानक बादल के एक टुकड़े ने उन्हें अपनी गिरफ्त में ले लिया। दोनों गड़बड़ा गये। हाथ छूट गये। कुछ क्षणों बाद जब बादल छंटे तो हिना ने खुद को पहाड़ी पर तन्हा अकेली पाया |उसने घबराकर इधर-उधर देखा और उसी वक्त उसकी आंख खुल गई।वह अपने कमरे में अपने बैड पर थी और उसके सामने एक सांप फन फैलाये उसे मंत्र-मुग्ध-सा देख रहा था। हिना पहले तो समझ ही न पाई कि ख्वाब कौन-सा था..वह, जहां हसीन वादियों में वह और गौतम घूम रहे थे और एक बादल के टुकड़े ने उन्हें जुदा कर दिया था या फिर ख्वाब यह है कि एक सुनहरा सांप उसके चेहरे के बिल्कुल निकट फन फैलाये खड़ा है ?इससे पहले कि हिना कोई फैसला कर पाती. इस सुनहरे सांप की आंखों से लहरें-सी निकली और हिना की आंखों में समा गई ।हिना पर फौरन अर्द्धबेहोशी-सी छा गई।उसकी आंखें खुली थीं। वह एक सुनहरे सांप को अपनी आंखों के सामने देख रही थी, मगर वह फैसला नहीं कर पा रही थी कि वह क्या करे। उसके दिमाग में जैसे धुआं-सा भरता जा रहा था। उसके हाथ-पैरों में जैसे हरकत कर पाने का सामर्थ्य भ्ज्ञी नहीं रहा था।फिर वह सांप उसके मरमरी बदन पर फिसलने लगा। सांप ने उसके उफनते यौवन को जैसे अपनी गिरफ्त में लिया और फिर यह गिरफ्त सख्त-से-सख्त होती चली गई।और हिना अपने आप से बेखबर होती जा रही थी।

सितारा हिना के कमरे का कई बार चक्कर लगाकर जा चुकी थी ।उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि आज बीवी को क्या हो गया है। स्कूल की आज छुट्टी थी और सितारा जानती थी कि छुट्टी वाले दिन हिना देर से उठती थी...लेकिन इतनी देर से भी नहीं...आज तो हद ही हो गई थी।दरवाजा अंदर से बंद था, नहीं तो सितारा खुद अंदर जाकर उसे जगा देती। सितारा पहले तो दरवाजा खुलने का इंतजार करती रही...जब दरवाजा नहीं खुला तो उसने आहिस्ता से दस्तक दी। आहिस्ता से दस्तक देने का कोई असर नहीं हुआ तो उसने जरा जोर से दरवाजा खटखटाया और साथ ही पुकारा भी-"बीवी दरवाजा, खोलें...।"

लेकिन हिना के कान पर जूं ता नहीं रेंगी। सितारा पेरशान होकर अपनी मां सरवरी के पास किचन में पहुंची व चिन्तित स्वर में बोली-"अम्मा, हिना बीवी अभी तक नहीं जागी।"

"अरी सोने दे, रात देर से सोई होगी...।" सरवरी ने डांटते हुए अंदाज में कहा।

कितनी ही देर से सोई हों, लेकिन इतनी देर से तो वह कभी नहीं उठती...अम्मा, तुझे पता है इस वक्त क्या बजा है..?"

"क्या बजा है ?" सरवरी ने सब्जी काटते हुए पूछा ।

“साढ़े बारह बज रहे हैं अम्मा...साढ़े बारह...।'

"हे...।" सरवरी को अचानक होश आया–“यह तो वाकई चिंता की बात थी,

जोर से दरवाजा खटखटाया तूने..?"

"हां, अम्मा ! इतने जोर से कि बस टूटने की कसर रह गई... ।' सितारा ने बताया।"

अच्छा, ठहर मैं चलती हूं।" सरवरी सब्जी एक तरफ सरकाते हुए बोली।"

अम्मा, दरवाजा पीटने से कुछ नहीं होगा...तू वहां जाकर क्या करेगी...?"

"अरी, तू आ तो...।'' वह किचन से निकलते हुए बोली ।

"अम्मा सुन तो...एक तरकीब समझ में आती है...।"

"वह क्या..?" सरवरी ने पूछा।

"लाउंज से उसके कमरे में फोन करते हैं। फोन की घन्टी सुनकर वह जरूर उठ जाएगी।"

"ठीक...।" सरवरी की समझ में आ गई-"चल, फोन करके देख ले.. ।

सितारा ने लाउंज में रखे फोन से हिना के कमरे वाले फोन का नम्बर मिलाया व रिसीवर कान से लगाकर अपनी मां को देखने लगी-।

"घन्टी बज रही है, अम्मा...

"तीन-चार घंटियां बजने के बाद भी हिना ने रिसीवर न उठाया तो सितारा फिर बोली-"वह तो फोन भी नहीं उठा रही है...। वह कमरे में है भी..?"

"घन्टी बजने दे...।" सरवरी बोली-“कबमरे से वह आखिर कहां जाएंगी...।"

सितारा रिसीवर कान से लगाए घन्टी की आवाज सुनती रही...फिर सहसा उधर से किसी ने रिसीवर उठाया। सितारा के चेहरे पर खुशी की लहर फैल गई-"उठा लिया...।" उसने अपनी चमकती आंखों से सरवरी को देखा।

"चलो, शुक्र है...।''

हो, हैल्लो...।" सितारा हिना के बोलने से पहले बोली।

हैल्लो।" हिना की नींद भरी आवाज आई।

बीवी..बीवी..मैं सितारा बोल रही हूं। दरवाजा खोलें ना। क्या आज उठने का इरादा नहीं है ? जरा टाइम भी तो देखें, साढ़े बारह बज रहे हैं... | आप । खैरियत से तो हैं..?'

"अच्छा, सितारा ! ठहरो मैं खोलती हूं दरवाजा...।" उधर से बदस्तूर नींद में डूबी आवाज आई फिर रिसीवर रख दिया गया |सितारा ने भी रिसीवर रखा व मां से बोली-"अम्मा, बीवी जाग गई हैं, मैं उनके पास जाती हूं... | नाश्ते का पूछकर आती हूं।"

"हां, पूछ ले। वैसे तो अब खाने का वक्त हो चला है...।" सरवरी ने कहा व किचन की तरफ चली गई |सितारा भागकर हिना के कमरे की तरफ आई।

हिना दरवाजा खोल चुकी थी। सितारा खुले दरवाजे से भीतर आई ता, वह तकिये ऊंचे किये निढाल-सी पड़ी थी।"

अरे, बीवी क्या हुआ..?" सितारा बैड की तरफ लपकी।हिना ने आंखें खोल दी.और एकटक सितारा को देखने लगी। इस तरह देखने पर सितारा सहम-सी गई। हिना का अंदाज ही कुछ ऐसा था। वह खोये-खोये अंदाज में उसे देख रही थी।

हाय...बीवी...यह आप ऐसे क्यों देख रही हैं...?" वह परेशान होकर बोली ।

तुम सितारा हो...?" हिना ने जैसे उसे पहचानने की कोशिश करते पूछा था।

"न बीवी.ऐसी बातें न करें मैं बहुत डरती हूं ऐसी बातों से...।

हिना ने कोई जवाब नहीं दिया...धीरे से अपनी आंखें बंद कर लीं।

"बीवी...बीवी...आंखें खोलें...।

"हां.क्या...।" हिना ने आंखें खोलने की कोशिश में आंखें फाड़ी...लेकिन शायद भीतरी अवस्था से बेबस, आंखें खुली न रख सकी।

''बीवी...क्या हुआ आपको...?" सितारा ने घबरा कर उसका बाजू पकड़कर हिलाया।"

मुझे मितली-सी आ रही है, तू एक गिलास पानी में नींबू निचोड़ कर ला..।" हिना ने आंखें, बंद किए-किए कहा ।

सितारा भागती हुई कमरे से निकली...फिर दो नींबू गिलास में निचोड़, पानी भरा और दौड़ती हुई वापिस गई। सरवरी उस वक्त किचन में नहीं थी। वह समीर राय का कमरा साफ करके निकली थी कि उसने सितारा को गिलास लिए भाग कर हिना के कमरे की तरफ जाते देखा तो उसका माथा ठनका |वह भी उसके पीछे हो ली।जब सरवरी हिना के कमरे में दाखिल हुई तो हिना गिलास मुंह से लगाए नींबू मिला पानी पी रही थी।
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"क्या हुआ बीवी को...?" उसने सितारा से पूछा और दौड़कर हिना का माथा छुआ।
हिना ने गिलास मुंह से हटाकर सरवरी को भी अनजान नजरों से देखा ।

"अम्मा, यह बीवी इस तरह क्यों देख रही हैं..मुझे डर लग रहा है...।" सितारा ने सहमी-सीधीमी आवाज में पूछा।

"अरी, चुप हो...तुझे हर वक्त डर ही लगता रहता है...।" सरवरी ने अपनी बेटी को डांटा और फिर हिना की तरफ आकर्षित हुई-"क्या हुआ बीवी...जी मितला रहा है ?"

हिना ने 'हां' में सिर । हिलाया.. मुंह से कुछ न बोली।"आपके डॉक्टर के पास ले चलें..?" सरवरी चिन्तित स्वर में बोली।

"नहीं..मैं अभी ठीक हो जाऊंगी...।" हिना आंखें मूंदे ही बोली और फिर आश्चर्यजनक तौर पर नींबू पानी पीकर उसकी तबियत संभल गई। वह थोड़ी देर बाद उठकर बैठ गई। कुछ देर खामोशी से बैठी रही। फिर अपने कमरे में चारों तरफ नजरें घुमाई...कुछ इस तरह जैसे कमरे में कोई चीज तलाश कर रही हो।सितारा उसके पास बैठी थी। सरवरी नाश्ता बनाने चली गई थी।सितारा हिना के गोरे-गोरे पांव अपनी गोद में रखे बहुत धीरे से दबा रही थी। थोड़ी देर बाद हिना ने अपने पांव खींच लिए।

"बस...अब मैं जरा नहा लूं...।" वह बोली।

हां, बीवी... । पर आपकी तबियत तो ठीक है ना..?

"हां...काफी हद तक.... ।

'"आपको हुआ क्या था..?" सितारा ने पूछा ।

"मुझे खुद नहीं मालूम...लेकिन कोई गड़बड़ जरूर है...।" बिस्तर से उठते हुए उसका बदन टूट रहा था। उसने अपने दोनों हाथ उठाकर अंगड़ाई ली, फिर एक ठंडी सांस लेकर दोनों हाथ छोड़ दिए।'

"हाय बीवी...अंगड़ाई लेते हुए आप कितनी प्यारी लगती हैं, जरा एक बार और लें तो...।" सितारा ने हंसते हुए कहा ।

"ज्यादा बक-बक नहीं करते...।" हिना ने उसके सिर पर हल्की-सी चपत लगाई और बाथरूम की तरफ बढ़ गई।बाथरूम पूर्णतया आधुनिक साजो-सामान से सुसज्जित था। दीवारों पर आमने-सामने आईने लगे हुए थे। बाथरूम में प्रवेश करके हिना ने दरवाजा बंद किया और वाश बेसिन के सामने खड़े होकर उसने अपने चेहरा देखा...चेहरा सफेद पड़ा हुआ था...ऐसा महसूस होता था

जैसे वह किसी भयंकर बीमारी से उठी हो ।एक ही रात में आखिर यह उस पर क्या बीत गई ?फिर उसे अपने दो ख्वाब याद आए। वह हेमा के भाई के साथ वादियों में उड़ती फिर रही थी कि एक बादल ने उन्हें ढक लिया और जब वह बादल उड़ा तो वहां गौतम नहीं था। उसने घबरा कर ही इधर-उधर देखा था कि उसी क्षण उसकी आंख खुल गई थी।फिर उसे अपने बिस्तर पर एक सुनहरा सांप फन उठाये नजर आया। उस संप की चमकीली आंखों से लहरें-सी निकलीं और उसे कुछ होश न रहा। उसके बाद...अभी थोड़ी देर पहले उसकी आंख टेलीफोन की घन्टी पर खुली। उसने बड़ी मुश्किल से उठकर दरवाजा खोला। उसकी तबियत बोझिल थी। शायद कमजोरी थी। जी मितला रहा था। उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि उसे हुआ क्या है और अब उसकी यही मनोदशा, अपना चेहरा देखकर थी। वह अपना चेहरा देखकर फिक्रमंद हो गई थी। उसका चेहरा लालिमा लिये हुये था..लेकिन अब वही चेहरा सफेद पड़ा हुआ था। वह कुछ देर अपने चेहरे को देखती रही...फिर उसने नल खोलकर अपने मुंह पर पानी के छपाके मारे ।वे दोनों घटनाएं चूंकि एक वक्त घटी थीं, इसलिए उसकी समझ में नहीं आ रहा था कि कौन-सा वाकया ख्वाब है और कौन-सा हकीकत ।फिर उसे ख्याल आया कि हेमा के भाई गौतम के साथ हसीन वादियों में घूमने का वाकया तो किसी तौर हकीकत नहीं हो सकता। गौतम से तो उसकी आज ही रात को मुलाकात हुई थी। हां...वह उस ‘कामदेव' का ख्वाब जरूर देख सकती थी किवह उसके मन को भा गया था। लेकिन उसे वह सांप वाली घटना भी हकीकत महसूस नहीं होती थी। अगर हकीकत होती तो वह उठकर सांप को मारने की कोशिश करती...क्योंकि उसे सांपों से कतई डर नहीं लगता था ।लेकिन वह तो सांप देखते ही होश गंवा बैठी थी..और इसका मतलब था कि उस सुनहरे सांप को भी उसने ख्वाब में देखा था।अभी वह शॉवर के नीचे खड़ी हुई थी और शॉवर को खोलना ही चाहती थी कि उसकी नजर सामने के बड़े आईने पर ठहर गई। वह बेअख्तयार ही आईने की तरफ बढ़ी ताकि उसने जो कुछ देखा था...उसे रोशनी में अच्छी तरह देख सके ।और उसे अपने पेट पर दो नन्हें सुराख नजर आये थे ।उसने घबराकर अपने पेट की तरफ देखा। वहां वाकई पास-पास दो नन्हें निशान मौजूद थे...जो नीलापन लिये हुए थे और यह स्पष्ट रूप से किसी सांप के काटने के निशान थे।तो क्या रात को उसे किसी सांप ने डसा ?यह सोचकर ही हिना दो दिन तक पढ़ने न जा सकी।वह पहले दिन पढ़ने नहीं गई तो, हेमा स्कूल में बहुत बोर हुई। हिना के बिना उसे स्कूल सूना लगता था। वह चिन्तित भी हो उठी। थी।स्कूल से घर पहुंचते ही उसने पहला काम हिना को फोन करने का किया। उसने हिना का नम्बर मिलाया..उधर से दूसरी घन्टी पर रिसीवर उठा लिया गया।

"हां जी...कौन..?" यह सरवरी की आवाज थीं हिना हैं...जरा उनसे बात कराओ...मैं हेमा बोल रही हूं...।"

"जी. बीवी...।" सरवरी ने माउथपीस पर हाथ रखकर हिना की तरफ देखा ।

"कौन है...?" हिना ने पूछा ।

"हेमा बीवी हैं..।" सरवरी ने रिसीवर उसकी तरफ बढ़ाते हुए बताया।

"हैल्लो, माई डियर हेमा मालिनी...।" हिना अपनी आवाज में शगुफ्तगी पैदा करते हुए बोली। हेमा मालिनी की मौसी...आज स्कूल क्यों नहीं आई..?" हेमा ने गुस्सा दिखाया।

"जागती आंखों से रात भर तेरे भाई के ख्वाब देखती रही..सुबह दोपहर को आंख खुली, सो स्कूल नहीं आ सकी...।" हिना ने शोखी से जवाब दिया।

"लो भई...तो एक ही मुलाकात मे यह हाल हो गया..?" हेमा ने ठण्डा सांस भरते पूछा । अब मैं क्या करूं । तेरा भैया 'कामदेव' है ना...जो देखे वो अपनी नींद गवां बैठे...।"

"तेरा भैया...तेरा भैया क्या कर रही है... | मेरे भैया का एक प्यारा-सा नाम भी तो है...।

''हां..है तो। पर मुझे तो उनकी मोहिनी सूरत और मीठी आवाज के सिवाय कुछ याद नहीं। शायद तूने अपने भाई का नाम बताया ही नहीं था।" हिना ने बड़ी मासूमियत से जवाब दिया। बताया था... | बताया तो था कि उसका नाम गौतम है...।"

"गौ...त...म...।" हिना ने शोखी से दोहराया-"सच ही बड़ा प्यारा नाम है। तेरे भैया की तरह...और उनकी आवाज माश अल्ला बोलते हैं तो लगता है जैसे कोई शायर गजल सुना रहा हो। कहीं वह कोई शायर...कवि तो नहीं हैं..।

"बकायदा शायर तो नहीं, अलबत्ता कभी-कभी कुछ कह लेते हैं...।" हेमा ने भाई की बड़ाई की "छपवाते नहीं बस लिख कर रख लेते हैं। किसी को सुनाते भी नहीं...।"

"कोई सुनने वाला न होगा...।” हिना ने छेड़ा।

"सुनने वाले बहुत..बल्कि सुनने वालियां..." । हेमा ने हंसकर कहा।

“खबरदार, जो किसी सुनने वाली का जिक्र किया तो...कत्ल कर दूंगी...।" हिना ने अजीब से लहजे में कहा।

"अरे, यार. क्या तू सीरियस है..?" हेमा को हिना के लहजे ने चौंकाया थां

"हां, मैं सीरियस हूं..।" हिना ने सचमुच ही बड़ी संजीदगी से जवाब दिया-"देख हेमा, अपने भैया का अब ख्याल रखना, कोई लड़की उनके नजदीक न आने पाये...।" उसने जैसे चेतावनी दी।


"हाय, हिना... । अगर यह बात भैया सुन लें तो, मारे खुशी के पागल ही हो जाएं... । हेमा घबरा-सी गई थी। तो सुना देना उनको...पागल कर देना उन्हें..।" हिना के लहजे में प्यार भर आया था।

"अच्छा तो यह बता ना कि आज स्कूल क्यों नहीं आई.?" हेमा ने विषया बदला, वह हिना का मसखरापन अब ज्यादा बर्दाश्त नहीं कर सकती थी।

"यार, तबियत ठीक नहीं है मेरी...।" हिना ने सच्चाई बताई।

"अरे क्या हुआ..?" हेमा परेशान हो गई। बस यही तो मालूम नहीं है कि क्या हुआ...तू देखेगी तो देखकर हैरान हो जाएगी.बल्कि परेशान हो जाएगी...।''

अरे, ऐसा क्या हुआ..एक रात में..?"और हिना ने बताया-"यूं लगता है जैसे जिस्म से सारा खून निचुड़ गया है. पीली पड़ गई हूं...दिल पर अजीब दहशत-सी है...। हालत अभी भी उनींदगी की सी है...नींद सता रही है। साढ़े बारह बजे सोकर उठी हूं। सितारा बेचारी दरवाजा पीट-पीट कर हलकान हो गई। फिर उसने फोन की घन्टी बजा कर मुझे उठाया। वह तो अच्छा हुआ, अब्बू घर पर नहीं थे, वरना मुसीबत ही आ जाती... | अब तक छः डॉक्टर सिर पर खड़े होते... |

"ओह... । हेमा यह सुन और ज्यादा परेशान हो उठी, उसने पूछा-“यह बता कल स्कूल आ रही है या नहीं..?"

"हिम्मत रही तो जरूर आऊंगी...।" हिना ने कहा था ।लेकिन दूसरे दिन वह फिर स्कूल नहीं जा सकी। हेमा फिक्रमंद-सी घर पहुंची। वह हिना के लिये चिन्तित थी। उसने जल्दी-जल्दी खाना खाया। थकी हुई थी. कुछ देर आराम किया । सो कर उठी तो उसका भाई गौतम कहीं बाहर जाने की तैयारी में था ।उसने गौतम को हिना के बारे में बताया कि वह दो दिन से पढ़ने नहीं आ रही है. बीमार है, तो गौतम यह सुनकर सोच में डूब गया। बहन की यह सहेली हिना उसके हवासों पर छाई हुई थी। उसका मन चाहा कि हेमा से कहे कि चला, उसका कुशल-क्षेम पूछने चलें। लेकिन वह कह न सका और महज अपनी बहन को देखता रह गया।"मुझे क्यों घूर रहे हैं..? मैंने थोड़ा ही उसे बीमार किया है... । हेमा ने अपने भाई को तिरछी नजरों से देखा।“मुझे लगता है कि तूने ही नजर लगाई है। बर्थ-डे वाले दिन उसकी तारीफ करते नहीं थक रही थी।
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