Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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Sexi Rebel
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

Post by Sexi Rebel »

"एक ही मुलाकात में तुम दोनों एक-दूसरे पर मर मिटे । न तुम भैया के बारे में कुछ जानती हो और ना भैया तुम्हारे बारे में कुछ जानते हैं। इसके बावजूद तुम दोनों ने एक-दूसरे को चुन लिया...।" "मेरी हेमा मालिनी..कभी-कभी जानने कि लिए एक लम्हा ही बहुत होता है, और कभी-कभी यूं भी होता है कि सदियां गुजर जाती है साथ रहते हुये...फिर भी लोग एक-दूसरे को नहीं जान पाते....।" हिना ने बदस्तूर मुसकुराते हुए जवाब दिया।

"हाय ! यह मुहब्बत भी क्या चीज है। बन्दे को क्या से क्या बना देती है। उधर मेरा भाई भी कुछ ऐसा ही फलसफा झाड़ने लगा है और इधर है कि तू उसी की सुरताल में बात कर रही है।

"अरे, हम क्या जानें...यह मुहब्बत क्या है। मुहब्बत की ग्रेटनेस तो कोई मेरे अब्बू से पूछे..जिन्होंने मम्मी की खातिर अपनी भरपूर जवानी उनकी याद में बिता दी। सच, हेमा अपने अब्बू का भी जवाब नहीं...किस्से-कहानियों में ही मिल सकता है उनका किरदार...।''

"हिना एक बात बता.. ।” हेमा उसे घूरते हुये संजीदगी से बोली-"क्या तुझे नहीं लगता कि तू अक्सर अपनी उम्र से बड़ी-बड़ी बातें करती है।

"हां, शायद हेमा।” हिना ने कबूला-"हो सकता है कि इसकी वजह यह हो कि मैं कोई आम-सी मामूली लड़की नहीं हूं। मैं बड़ी भावुक लड़की हूं। जहीन हूं। मेरी फितरत दूसरों से जुदा है। मेरा बचपन एक गैर मामूली माहौल में बीता है। बचपन से जवानी का सफर भी कोई आम सफर नहीं।

आज भी असाधारण, गैरमामूली हालात से दो-चार हूं और सच तो यह है कि सब ही मुझे मेरी बड़ी-बड़ी बातों पर टोकते रहे हैं। मेरी दादी जान मुझे दादी अम्मा कहकर पुकारती रही हैं, मेरे पापा ने भी कई बार टोका है। अक्सर मेरी किसी-न-किसी बात पर यही हैरत दर्शाते हैं कि-"हमारी हिना कुछ ज्यादा ही बड़ी नहीं हो गई है।" अब प्राब्लम यह है कि मैं क्या करूं | मेरे चैतन्य में पुख्तगी है तो अब मैं बच्चों जैसी बातें तो नहीं करूंगी ना...।'

"तुझे बच्चा बनने की जरूरत नहीं है..तू दादी-अम्मा ही बन..तुझे भला कौन रोक सकता है...।" हेमा ने उसे घूरा।

"ओये...अदब से... ।' हिना ने जैसे चेताया-"देखती नहीं है कि अब रिश्ता क्या-से-क्या हो चुका है...।'

'"रिश्ता कुछ भी हो जाये...।" हमा की अकड़ बरकरार रही-"पर इतना याद रख कर कि मैं तुझसे उम्र में बड़ी हूं...।

"लो भई...यह क्या बात हुई...कल कोई मैन्स मेरा रास्ता रोक कर खड़ी हो जाए और कहे कि हिना बीवी मैं तुमसे बहुत बड़ी हूं, मेरा अदब करो..तो तेरा क्या ख्याल है कि मैं उसके रूआब में आ जाऊंगी...।" हिना ने संजीदगी से एकदम परखच्चे उड़ा दिये ।

हिना...तेरा जवाब नहीं। रब्ब, तुम दोनों की जोड़ी को सलामत रखे... । हेमा जज्बाती हो उठी।

"वाह, दादी अम्मा... । इतनी जल्दी हमारा असर हो गया। इसे कहते हैं खरबूजे को देखकर खरबूजे का रंग बदलना...।" मीठा-सा कहकहा उगला था हिना ने।

"ऐसा ही समझ लो...।' हेमा ने उसका हाथ पकड़कर उसे उठाते हुए कहा ।

“क्या इरादा है..?" हिना ने पलकें उठा पूछा ।

"आओ नीचे चलें। तुझे अपनी मामी और उनके बच्चों से मिलवाऊं...।

''चलो...।" हिना उठ खड़ी हुई ।
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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गौतम अपने कमरे में बैठा टी.वी. देख रहा था। उसके दरवाजे के बाहर कदमों की आवाज गूंजी तो उसने दरवाजे की तरफ देखा। वे दोनों दरवाजे के सामने से गुजरी थीं।

हिना ने एक क्षण के लिए गर्दन घुमाई। गौतम इधर ही देख रहा था। उसने फौरन गर्द सीधी कर ली।

हेमा...।" जब वे दोनों दरवाजा क्रास कर गईं तो पीछे से आवाज आई।“

जी भैया...।" हेमा ने पलटकर उसके कमरे में झांका।

कहां जा रही हो..?''

"नीचे जा रही हूं, भैया ! हिना को मामी से मिलाने।

"अरे, इन्हें पहले हमारा कमरा तो दिखाओ...।"

गौतम ने इतने जोर से कहा कि हिना तक उसकी आवाज पहुंच गई।

"मैं लड़कों के कमरे में नहीं जाती...मुझे एलर्जी हो जाती है...।" हिना ने हंसकर कहा ।

"सुन लिया भैया..?" हेमा ने शोखी दिखाई।“

नहीं, मैंने नहीं सुना...क्या कह रही है..?" गौतम लपककर दरवाजे पर आ गया था।"

हिना..अब बोल...।'' हेमा ने उसकी तरफ देखकर कहा।

मैंने तो कुछ नहीं कहा...।" हिना साफ मुकर गई।

तो फिर आइये ना...कुछ देर हमारे कमरे में भी बैठें..।" गौतम सीधे हिना से सम्बोधित हुआ ।

इससे पहले कि हिना कोई जवाब देती, हेमा झट से बोली-"चल, हिना आ जा ! भैया का कमरा भी देख लें...।

"नाक पर हाथ रखकर जाना पड़ेगा...।'' हिना ने बहुत आहिस्ता से हेमा के कान में कहा। हेमा बरबस ही खिलखिला कर हंस पड़ी।

क्या हुआ..?" गौतम परेशान होकर अपनी बहन को देखने लगा।

कुछ नहीं, भैया...।" हेमा सूखा-सा मुंह बनाकर बोली, फिर हिना से सम्बोधित हुई-"आओ, हिना....हिना कमरे में दाखिल हुई तो उसे खुशगवार हैरत हुई। गौतम का कमरा बड़ा खूबसूरती से सजा हुआ था। हर चीज बड़े सलीके से रखी थी और हर शो-पीस गौतम की ऊंची अभिरुचि व पसंद का प्रतिनिधित्व करता था। हकीकतन, गौतम की ही तरह उसका कमरा भी बड़ा खूबसूरत था। एक तरफ पूरी दीवार में शैल्फ बना हुआ था और उसमें किताबें बड़े करीने से लगी हुई थीं और हिना तो किताबों की दीवानी थी...वह सीधे किताबों की शैल्फ की तरफ गई।

आपको भी लगाव है किताबों से.?" गौतम उसके बराबर आ खड़ा हुआ–“क्या पढ़ती हैं आप ?'"

"जी, वह...कुकिंग की किताबें पढ़ती हूं...।" हिना ने यह जवाब इतनी संजीदगी से दिया था कि गौतम उसका मुंह देखता रह गया ।और हेमा के लिए अपनी हंसी रोकनी मुश्किल हो गई। उसने हिना के करीब होकर उसके बाजू में चुटकी ली व बोली-“शरारती बाज आ जा...।"

यह सुनकर गौतम को हौसला हुआ। समझ में आ गया कि हिना मजाक कर रही है, वर्ना वह उसका जवाब सुनकर परेशान हो गया था। उसने शैल्फ से एक किताब निकालकर हिना की तरफ बढ़ा दी। हिना किताब देखने लगी वह रोमांटिक कहानियों का संग्रह था। नाम था-'तुम मेरी हो' |किताब का नाम पढ़कर हिना ने तिरछी नजरों से गौतम की तरफ देखा। कुछ कहे बिना किताब उसके हाथ में थमाई और फिर हेमा का हाथ पकड़ कर बोली-"चलो, हेमा। नीचे चलते हैं।"वे कमरे से निकल आईं।
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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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पहला चरण बाखूबी गुजर गया था ।दोनों ही राजी थे। हिना और गौतम एक-दूसरे के लिए बेकरार थे। शादी करना चाहते थे, लेकिन यह सब इतना आसान नहीं था। गौतम की अपने खानदान की नेहा से मंगनी हो चुकी थी और इस मंगनी का टूटना आसान न था ।फिर अभी हिना की ही रजामंदी थी...समीर राय के राजी होने का भी मसला था। मामी एक मीठे स्वभाव की औरत थी। उसने अपने पति की भांजी-भांजे को बड़े मान से रखा था। मामा भी इन दोनों का बहुत ख्याल रखते थे और इस सिलसिले में अब आगे का काम घर के इन बड़ों का ही था। इसलिए हेमा ने सोचा कि वह शोभा मामी से बात कर ले।और हेमा ने जब उनसे बात की तो मामी एकदम चौंक गई-"हेमा, यह तू क्या कर रही है...?

"भैया, हिना से शादी करना चाहते हैं...यह कह रही हूं मैं...।" हेमा ने अपनी बात दोहराई।

"यह मुमकिन है। गौतम और नेहा की मंगनी हो चुकी है। नेहा के बाप के कानों में जरा-सी भी भनक पड़ गई कि गौतम को इस रिश्ते से इंकार है और वह कहीं और शादी करना चाहता है। तो वह तो हंगामा खड़ा कर देंगे... ।'

"जानती हूं, मामी ! इसीलिए तो आपसे सलाह ले रही हूं... ।'"

"गौतम को तुम्हारी इस सहेली का ख्याल छोड़ना होगा...।" मामी ने मशवरा दिया।

यह नामुमकिन है, मामी... । हेमा ने स्थिति समझाई ।

“यह नामुमकिन है तो फिर अपने मामू से बात करो...।'' मामी ने अपनी जान बचाने को गेंद मामू के पाले में उछाल दी।

"मामा जी...मैं मामू से बात नहीं कर सकती। आप बात करके देखें...।"

हेमा ने गेंद बीच में ही पकड़ ली।"ठीक है..मैं कोशिश करूंगी...।" मामी ने कुछ सोच वायदा किया।और फिर शोभा मामी ने रात को जब यह बात छेड़ी तो मामू की प्रतिक्रिया भी तीखी ही थी।

"यह क्या बकवास है। मैं भाई राजा वकार को क्या जवाब दूंगा। क्या इस तरह मंगनियां टूटती हैं। शोभा रानी..तुम जानती नहीं तूफान आ जाएगा... ।'"

"मैं तो जानती हूं..अपने भांजे को समझाओ...।" मामी बोली ।

गौतम मामू के साथ ही आफिस में होता था। गौतम इस कन्स्ट्रक्शन कम्पनी में मामू का पार्टनर था। मामू ने सुबह-सुबह ही गौतम को अपने कमरे में बुलवा लिया। गौतम को इस बात का ख्याल भी नहीं था कि मामू सुखदेव उससे क्या बात करने वाले हैं। उसने समझा था कि किसी काम के सिलसिले में बुलाया होगा।गौतम के बैठते ही मामू सुखदेव बोले-"यह मैं क्या सुन रहा हूं..?'

'क्या सुन रहे हैं..?" गौतम ने हैरान हो दोहराया ।

मामू सुखदेव ने कुछ सोच बात पलट दी, बोले-"मैं कल कंगन-पुर जा रहा हूं, भाई राजा वकार से तुम्हारी शादी की तारीख तय करनी है... ।'

"मामू मैं यह शादी नहीं करूंगा...।" गौतम ने तुरन्त जवाब दिया, उसके लहजे में दृढ़ता थी-"और मामू एक बात मैं और आपको बता दूं। मुझे किसी भयानक अंजाम से डराने की कोशिश मत कीजिएगा। मैंने जो इरादा दिल में बांध लिया है.उसे हर कीमत पर पूरा करके रहूंगा...।'

"हिना का बाप राजी है इस रिश्ते के लिए... ।" मामू सुखदेव ने पैंतरा बदला ।

"मुझे नहीं मालूम...लेकिन मुझे यह मालूम है कि लड़की राजी है...।" गौतम ने बताया।

"बस तो फिर क्या है। मियां-बीवी राजी तो क्या करेगा काजी...।" मामू सुखदवे ने तीखे लहजे में टिप्पणी की।

मामू..।" गौतम नर्म पड़ते बोला-“मैं चाहता हूं कि आप हिना के बाप से बात करें।

"यह नेक काम तुम खुद क्यों नही कर लेते..?" मामू ने उसे घूरा ।

"मैं कर लेता...लेकिन प्राब्लम यह है कि रिश्तो कोई घर का बड़ा ही डालता है. ।'

"ठीक है... ।” सुखदेव मामू कुछ सोचते हुए बोला-"मैं रिश्ता लेकर जाता हूं, लेकिन लड़की के बाप को यह जरूर बता दूंगा कि तुम्हारी मंगनी हो चुकी है..।

'"फिर तो वह फौरन इंकार कर देंगे...।"

"तो क्या तुम चाहते हो कि मैं इस बात को छिपा कर रखू। लड़की वालों को धोखा दूं...। उन्हें सब कुछ बताना होगा, यह भी कि तुम गौतम कैसे हो और तुम्हारी हकीकत क्या है...क्योंकि यह बात तुम्हारे हक में है। गैर धर्म वाली बात नहीं उठेगी। शादी के मामले में हम किसी प्रपंच से काम नहीं ले सकते...।'

'"मामू...मामू...।" गौतम लफ्फाजी पर उतर आया-"आप जानते हैं कि न मेरी मां है न बाप... | आप ही मेरी मां हैं और आप ही बाप...। मैं आपकी इकलौती बहन की निशानी हूं। अगर आप भी मेरा साथ न देंगे तो फिर और कौन देगा। आप ही बातइये... ।'"

"ज्यादा फिल्मी डायलाग बोलने की जरूरत नहीं है।" मामू के तेवर बदल गए।

"ठीक है मामू..।'' गौतम ने एक्टिंग जारी रखी-“फिर मैं खुद ही कुछ करता हूं।" उसने निराशापूर्ण लहजे में कहा और जवाब का इंतजार किए बिना उठकर दरवाजे की तरफ बढ़ा ।

“गौतम... ।' मामू ने अचानक आवाज दी।

“जी, मामू..।" वह रुक गया।"

हिना के अब्बू से कल शाम का कोई वक्त ले लो। हम उनसे मिलने चलेंगे।"

मामू ने बदस्तूर संजीदगी के साथ कहा।"मामू जिन्दाबाद...।" गौतम फूल की तरह खिल उठा-"अब मालूम हुअए कि मेरा भी कोई है।

"बेटे.वैसे तुमने बड़े खतरनाक रास्ते को चुना है। भगवान ही मालिक है।" मामू बोले-“देखो, क्या होता है...?'

"मामू...कुछ पाने के लिये खतरा तो लेना ही पड़ता है... ।' गौतम उत्साहित-सा बोला, उसने पूछा-“मामू..आज शाम का वक्त ले लूं..?"

"ले लो...।" मामू उसकी बेताबी पर मुस्कुराते हुए बोला ।टाइम लेना कोई मुश्किल नहीं था ।गौतम ने आफिस से ही फोन किया। संयोग से काल खुद समीर राय ने रिसीव की।

गौतम ने उन्हें बातया कि वह अपने मामू के साथ उनसे मिलने आना चाहता है।

समीर राय को भला क्या एतराज हो सकता था।"हमें खुशी होगी बेटा। उसने कहा-"हम इंतजार करेंगे...।"समीर राय इस मुलाकात का मतलब समझ सकता था। रिसीवर रखने के बाद उसने फौरन हिना को बुलवाया। वह अभी स्कूल से आई थी..अभी ड्रेस भी नहीं बदला था, बाप के बुलावे पर वह फौरन उनके कमरे में पहुंची ।

“जी, अब्बू... | आपने बुलाया।"

"भई, वह गौतम अपने मामू को लेकर आ रहा है आज शाम ।" समीर राय ने उसे सूचित किया।

"क्यों अब्बू..?" हिना भीतर-ही-भीतर खुश होते बोली-“कोई खास बात है क्या..?''

अब वह आएंगे तो पता चलेगा..अभी मैं क्या कह सकता हूं, मैंने सोचा तुम्हें बता दूं. मेहमानों की आवभगत का इंतजाम कर रखना ।

“गौतम के अपने मामू के साथ आने का मकसद हिना भी समझ रही थी और वह मन-ही-मन में खुश भी थी। अपने कमरे में आते ही उसने हेमा को फोन किया।"ऐ, हेमा मालिनी ! यह क्या चक्कर है ?" वह फोन पर बोली।

"क्यों, क्या हुआ..?" हेमा की समझ में कुछ नहीं आया था।

"तुम्हारे भैया अपने मामू को लेकर आ रहे हैं... | पापा से शाम का टाइम लिया है। आखिर चक्कर क्या है...कुछ तो बता...।" हिना ने पूछा।

हिना, इसका मतलब है कि आज उनके आफिस में ही कोई बात हुई है। मुझे कुछ नहीं मालूम । मैं भैया को फोन करके पूछती हूं कि वो अगर आ रहे हैं तो क्यों आ रहे हैं। वैसे जो मैं समझ रही हूं..शायद तू भी समझ रही होगी कि क्यों आ रहे हैं...।" हेमा शोखी पर उतर आई।

समझती होती तो तुझसे पूछती।" हिना इठलाई-"तू बता ना...।''

"यकीनन तुझे मांगने के लिये...।" हेमा ने साफ शब्दों में कहा।

"हाय. मैं मर जाऊं...।" यह कहकर हिना ने फौरन सम्बन्ध विच्छेद कर लिये।
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और फिर इस शाम बड़ा गजब हुआ। एक अनहोनी थी जिसका सामना समीर राय को करना पड़ा |सुखदेव मामू ने इस मुलाकात पर भूमिका बांधते हुए जो बुनियादी जानकारी दी...उसे सुनकर ही समीर राय के होश उड़ गये। उसकी रूह में सन्नाटे उतर गये। गौतम को उसने अपने तौर पर अपनी हिना के लिए पसन्द कर लिया था। उसके गैरधर्मी होने के बारे में भी गम्भीरता से नहीं सोचा था। वह तो गौतम के घर गया भी इसलिए था कि जरा घर देख ले। उस दिन गौतम के मामा से मुलाकात नहीं हो सकी थी, और समीर राय सोच ही रहा था कि वह इस मामले को किस तरह आगे बढ़ाये। वह जल्द-से-जल्द हिना की किसी से मंगनी कर देना चाहता था। ताकि उसकी मां और सारे मामू ठण्डे होकर बैठ जाएं।शादी वह अभी नहीं करना चाहता था। यही सोचा था कि हिना बी.ए. कर ले, फिर उसकी शादी करेगा ।उसकी ख्वाहिश के अनुसार अब बात खुद-ब-खुद आगे बढ़ गई थी।

गौतम अपने मामा को लेकर आ गया था और मामा सुखेदव ने औपचारिक बातचीत के बाद गौतम के मां-बाप के बारे में बताने को अपनी बात शुरू की थी। समीर राय साहब... ! मैं यहां एक खास मकसद से आया हूं। पहले मैं चाहूंगा कि आपको गौतम की हकीकत व उसके खानदान के बारे में आगाह कर दूं। पहली बात तो यह है कि गौतम का असली नाम सुहेल है और वह एक मुस्लिम परिवार से है...। मैं इसका सगा मामा हूं क्योंकि मेरी इकलौती बहन ही इसकी मां थी...।

"यह रहस्योद्घाटन सचमुच ही बहुत-सी समस्याओं को खत्म कर देने वाला था। गौतम की इस हकीकत ने समीर राय को खुश ही किया था। पर आगे की जानकारियों ने धमाके ही किये थे ।मामू सुखदेव ने आगे बताया-"हां, समीर साहब ! गौतम का असली नाम सुहेल राजा नसीम है। मेरे बहनोई के पिता, यानी गौतम के दादा एक मशहूर हस्ती थे। उनका नाम राजा सलीम था। वह कंगनपुर के जागीरदार थे। गौतम या सुहेल की मां यानी मेरी बहन को किडनेप करके कत्ल किया गया। मेरी बहन ने लव मैरिज की थी। हमने इसे उनके किसी ससुराली मतभेद का नतीजा समझा था। पर फिर उसके कुछ ही समय बाद राजा नसीम को अगवा करके उसका भी कत्ल कर दिया गया। असल में गौतम के दादा राजा सलीम की रोशनगढ़ी के जागीरदार रोशन राय से दुश्मनी हो गई थी और आप देहातों की ऐसी दुश्मनियों के अंजाम से तो वाकिफ ही होंगे। पता चला कि गौतम के मां-बाप का कत्ल इसी दुश्मनी के चलते जागीरदार रोशन राय ने ही करवाया था। इसके बाद इसी दुश्मनी के खौफ से बहन-भाई हेमा और सुहेल को हम अपने पास यहां ले आए और सुहेल का नाम तक बदल दिया। ताकि खानदानी इंतकाम की आग इन मासूमों तक न पहुंच सके...।" इसके बाद मामा सुखदेव जाने क्या-क्या बताते रहे। समीर राय को वह कहानी सुननी पड़ी थी जिसकी आग में वह स्वयं एक मुद्दत से सुलगते रहे थे। यह दास्तान और इसकी विभीषिका उसके लिए नई नहीं थी। उसका तो दिमाग ही जैसे ठस्स होकर रह गया था। सुखदेव आगे क्या-क्या कहता रहा वह सब तो जैसे समीर राय सुन ही नहीं पाया था। वह मामू सुखदेव के होठ तो हिलते देख रहा था...लेकिन उसे सुनाई कुछ नहीं दे रहा था।दिल पर आरी-सी चल रही थी, जिन मानसिक यातनाओं से बचकर वह यहां आया था...यातनाओं के वही साये अब वह अपनी बेटी के सिर पर मंडराते देख रहा। था ।कैसी हौलनाक हकीकत थी कि यह गौतम उर्फ सुहेल राजा..राजा सलीम का पौत्र था। उसी राजा सलीम का पौत्र जिसने उसकी नमीरा और हिना की मां को एक शर्मनाक दर्दनाक मौत दी थी और फिर उसकी खुद की जान का दुश्मन बना रहा था वह तो अल्लाह ने समीर की जिन्दगी बचाई थी कि उसकी मौत बनकर आया राजा सलीम दुर्भाग्य से अपने ही बन्दे के हाथों गलती से मारा गया था। वरना आज खुद समीर राय का वजूद न होतांसमीर राय की नमीरा के कातिल राजा सलीम के पौत्र..आज उसके सामने सवाल बना बैठा थाहाय, क्या कयामत की शाम थी ।समीर राय के हवास जवाब दे चले थे। लेकिन यह वक्त खुद को सम्भालने का था। वह अपने आपको संभालने की कोशिश करने लगा |मामू सुखदेव.गौतम की हकीकत व सारी बैक-ग्राउण्ड बयान करने के बाद अब अपने असली मकसद पर आ गये थे। वह कह रहे थे-"समीर साहब. मैं चाहता हूं कि आप गौतम यानी सुहेल को अपना बेटा बना लें। इसके सिर पर अपना हाथ रख कर... ।'


"जी...।" समीर राय ने एक ठण्डा सांस लिया। उसने खुद को संभाल लिया था। वह शांत-संयत स्वर में बोले-"मुझे आप थोड़ा वक्त दें। मैं आपको सोचकर बताऊंगा...।

'"बिल्कुल...बिल्कुल... ।' सुखदेव बोला-"यह जरूरी भी है। आप इत्मीनान से सोचें लेकिन अगर आपका फैसला गौतम के हक में होगा तो यह हमारा सौभाग्य होगा...।" यह कहकर मामू सुखदेव उठ गये ।



समीर राय ने कोई जवाब नहीं दिया। बड़ी खामोशी व दिखावे की मुस्कुराहट के साथ ही उसने अपने इन मेहमानों को रुख्सत किया था
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