Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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Re: Horror अनहोनी ( एक प्रेत गाथा )

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उठते हुए हिचकिचाई वह आहिस्ता से नजमा से बोली ।"नहीं आया... आप ही जायेंगे। यही ठीक रहेगा...।

“नजमा की बजाय रायशा ने जवाब दिया ।"अच्छा, ठीक है...।" नफीसा बेगम उठी व अरूणिमा की मां रजनी के साथ ड्राइंगरूम से निकल गई और फिर रजनी जिस कमरे में नफीसा बेगम के साथ पहुंची... उसमें सब्ज रंग का एक सादा-सा कालीन बिछा हुआ था और सफेद कवर चढ़े दो गाव तकिये रखे थे। कमरे में कोई न था! रजनी ने नफीसा बेगम को बैठने का इशारा किया और बोली-"आप तशरीफ रखें...वह अभी आती है...।"यह कहकर वह बाहर चली गई। उसके जाने के बाद नफीसा बेगम ने एक निरीखणात्मक नजर कमरे पर डाली और गाव तकिये का सहार लेकर बैठ गई। उसकी नजरें भीतरी बंद दरवाजे पर थीं।कुछ ही देर बाद एक छोटी-सी लड़की कमरे में दाखिल हुई। उसकी उम्र मुश्किल से पन्द्रह साल की थी। नफीसा बेगम ने उसे देखा...और यही समझा कि कोई पैगाम वगैरह लेकर आई है...कि अरूणिमा कहीं व्यस्त है।लेकिन ऐसा न था। वह खुद ही अरूणिमा थी। इकहरे बदन की बालकटी अरूणिमा। वह पूरे इत्मीनान के साथ दूसरे गांव तकिये का सहारा लेकर बैठ गई।उसमें गहरी नजरों से नफीसा बेगम का जायजा लिया और फिर मुस्कुराते हुये बोली-"रोशनगढ़ी की हवेली की मल्लिका को आखिर हम से क्या काम पड़ गया..?"यह सुनकर नफीसा हैरान रह गई। टी०वी० सीरियलों की रोमांटिक अभिनेत्री-सी दिखती इस लड़की ने कैसे जाना कि वह कौन है और कहां से आई है। तभी उसे नजमा भाभी की यह टिप्पणी याद आई कि 'वहां चलकर देखना कि वह लड़की क्या कर सकती है। अरूणिमा ने मुंह खोलते ही नफीसा को हैरत में डाल दिया था। अब आगे वह न जाने क्या-क्या रहस्योद्घाटन करने वाली थी। मैं अपने बेटे के सिलसिले में आई थी...।"

नफीसा ने फौरन जवाब दिया।"क्या हुआ आपके इकलौते बेटे को..?" अरूणिमा ने उन्हें गहरी नजरों से देखते हुए पूछा नफीसा फिर हैरान हुई । अरूणिमा ने 'इकलौता बेटा कहकर एक और धमाका किया था। नफीसा को यकीन हो चला कि नजमा उसे सही जगह लेकर आई है कि उसकी समस्या जरूर हल हो जाएगी... अब नफीसा बेगम ने हर वह बात बता दी जो जरूरी थीं वह लड़की अरूणिमा पूर्ण एकाग्रता के साथ नफीसा बेगम की विपक्ष सुनली रहीं। नफीसा बेगम खामोश हुई तो अरूणिमा संजीदगी से बोली-"हमें आपके बेटे का पैन-कलम चाहिये होगा...।"अरूणिमा शायद यह भी जानती थी कि नफीसा बेगम समीर राय की 'इस्तेमाल की किसी चीज के तौर पर उसका पैन लेकर आई हैं ।

नफीसा एकदम बोली-“मैं लाई हूं, बोली ।"नफीसा बेगम ने पैन अपने पर्स से निकालकर अरूणिमा के हवाले कर दिया। उस कोमलागी भविष्यवकता और 'आमिल' ने इस बन्द पैन को एक नजर देखा और फिर अपने बांए हाथ में दबा लिया। उसकी हिरणी सी चपल आंखों एक वेषेनी सी दिखने लगी थी।"एक सवाल पूछ सकती हूं.?" नफीसा बेगम ने धीरे से पूछा ।

“जी, पूछिये...।" अरूणिमा ने अनुमति दी।“

क्या समीर राय ने वाकई अपनी नमीरा को देखा है..?"

अरूणिमा ने तत्काल जवाब दिया-"जी हां, यह सच है..।

''क्या नमीरा जिन्दा है..?" नफीसा का यह दूसरा सवाल स्वाभाविक था।

"नहीं. यह गलत है।

"इसका मतलब है कि नमीरा मर चुकी है...?"

"निस्सन्देह... । यकीनन... । अरूणिमा ने दृढ़ शब्दों में कहा।

"नमीर मर चुकी है. इसके बावजूद दिखाई दे रही है। यह सब क्या गोरखधंधा है?"

"आप इस बाल को समझ नहीं सकेंगी।" अरूणिमा की संजीदगी बरकरार थी- "अब आप चाहती क्या हैं..यह बताएं।"

""मैं अपने बेटे को नमीरा की यादों से अलग करना चाहती हूं। ये यादें उसे पागल किये हुये हैं...।

"ऐ बात बताएं...।" अरूणिमा ने नफीसा बेगम की आंखों में झांकते हुए पूछा-"क्या आपको अपनी पौत्री याद नहीं आती..?"

"क्या वह जिन्दा है...।" नफीसा ने चकित हो पूछा।

"हां...वह जिन्दा है और ऐसी प्यारी...ऐसी खूबसूरत बच्ची तो दूर-दूर तक दूसरी नहीं है। उसे आप भूले हुए हैं । पहले हम उस बच्ची के लिए कुछ करते हैं...फिर नमीरा की समस्या देखेंगे... । आपकी बहू नमीरा का मसला जरा टेढ़ा है। यूं उस बच्ची को भी पाना आसान नहीं है । वह बच्ची बड़े 'शैतानों'-'शबीसों के बीच फंसी हुई है...।
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'"क्या है वह..?" नफीसा ने बेअख्तियार पूछा।"

आज बस इतना ही । आप अब दो दिन बाद आएं। हमें कुछ 'अमल' करने होंगे। अब इस मामले में हमारी खुद ही दिलचस्पी जाग उठी है।" यह कहते हुये वह उठ खड़ी हुई ।इस अरूणिता के चेहरे पर इस क्षण कुछ ऐसे भाव थे, जिन्हें नफीसा बेगम कोई नाम नहीं दे सकी। वह नफीसा बेगम के कुछ बोलने से पहले ही अन्दरूनी कमरे से अंदर चली गई थी।
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और फिर दो दिन बाद... जब नफीसा बेगम दोबारा अरूणिमा के पास पहुंची तो अरूणिमा ने कहा-"हमें छ: चाकू और छ: नींबू चाहिये...।

''कोई मसला नहीं..मिल जाएंगे...।" नफीसा बोली ।

लेकिन ये चीजें हमें 'बच्ची' के बाप को लाकर देनी होंगी। आपका बेटा यह छ: चाकू और छ: नींबू खुद अपने हाथों से खरीदे और खुद ही हम तक पहुंचाए...।" अरूणिमा ने आगे कहा ।

ठीक है...।" नफीसा सोचपूर्ण लहजे में बोली-“मैं कल समीर राय को लेकर आ जाऊंगी....।''

"दोपहर और संध्या के बीच के समय में यहां आएं। न पहले न बाद में...।" अरूणिमा ने हिदायत दी।

बेहतर...ऐसा ही होगा...।" नफीसा बेगम का सिर इकरार में हिला ।

'बस, तो फिर आप जाएं...।" अरूणिमा ने संजीदगी से कहा ।

नफीसा बेगम उसके पास थोड़ा और बैठना चाहती थी। वह नमीरा और बच्ची में सवाल करना चाहती थी...लेकिन अरूणिमा ने इसका मौका नहीं दिया। अपनी बात पूरी करके उसने उसे उठा दिया था। नफीसा बेगम दिल में हसरत लिए अरूणिमा के कमरे से निकल आई ।बाहरी कमरे में लोगसरी बैठी थी। वह मालकिन को देखकर फौरन खड़ी हो गई। कुछ देर बाद ही वे दोनों गाड़ी में बैठी रोशन गढ़ी की तरफ लौट रही थीं |समीर राय हवेली में अपनी मां का बड़ी बेचैनी से इंतजार कर रहा था। नफीसा बेगम ने उसे अरूणिमा से अपनी मुलाकात के बारे में बता दिया था और जबसे उसने अपनी मां से यह सुना था कि उसकी बच्ची जिन्दा है...उसे मिल सकती है.तब से उसके अंदर एक नया समीर राय अंगड़ाई लेकर उठ बैठा था।उसकी बेकरारी देखने वाली थी। वह तो अपनी मां के साथ इस नजूमी युवती 'अरूणिमा से मिलने जाना चाहता था, लेकिन नफीसा बेगम ने ही मना कर दिया था...क्यों कि अरूणिमा एक लड़की थी..जाने वह समीर राय के सामने आना पसन्द करे या न करे |हालात की यह करवट भी समीर राय को उद्धेलित कर गई थी। बच्ची के जिन्दा होने की खबर ने तो उसके जिस्म में जैसे एक नई रूह फूंक दी और वह नमीरा को भूल गया था। अब वह अपनी बच्ची के लिये बेकरार था। वह बच्ची उसका अपना खून थी...उसकी नमीरा की निशानी थी। नमीरा न रही तो कम-से-कम उसकी यह निशानी ही मिल जाए। वह इंतजार कर रहा था कि यह अरूणिमा उसकी बच्ची के बारे में आज क्या बताती है।नफीसा बेगम हवेली पहुंची तो समीर राय का धैर्य जवाब दे चुका थां नफीसा बेगम ने कमरे में आ सांस भी लिया था कि समीर राय ने पूछा-"अम्मी क्या रहा? उस नजूमी लड़की ने क्या कहा?

"नफीसा बेगम ने उसे बताया कि अरूणिमा ने क्या चीजें मांगी हैं।अरूणिमा की मांग कोई बड़ी मांग न थी।अगले ही दिन व निश्चित समय पर समीर राय छ: चाकू व छ: नींबू लेकर अरूणिमा के घर पहुंच गया। नफीसा बेगम भी साथ थी। अरूणिमा की मां, रजनी देवी ने उन दोनों को ड्राइंगरूम में बैठाया और खुद अंदर चली गई।कुछ देर बाद वह अंदर से वापिस आई और उसने समीर राय को अपने साथ आने का इशारा किया। समीर राय फौरन उठकर खड़ा हो गया, मेज पर रखा वह लिफाफा उठाया जिसमें चाकू व नींबू थे और अरूणिमा की मां के पीछे चल दिया। नफीसा बेगम ने भी उसके साथ चलना चाहा तो अरूणिमा की मां ने रूककर, हाथ के इशारे से उसे अपने पीछे आने से रोक दिया।फिर रजनी देवी ने समीर राय को 'सब्ज कालीन वाले कमरे में बैठाया। उसके बैठते ही अरूणिमा कमरे में दाखिल हो गई। समीर राय ने उसके सम्मान में उठकर खड़ा होना चाहा। अरूणिमा ने हाथ के इशारे से उसे बैठे रहने को कहा और फिर स्वयं भी उसके सामने गोल-तकिये का सहारा लेकर बैठ गई।अरूणिमा ने सिर पर काला दुपट्टा ले रखा था और उसमें उसका चेहरा चांद की तरह चमक रहा था। समीर राय को उसके चेहरे में अपनी नमीरा का चेहरा नजर आया था। क्षण भर के लिये उसकी सोच बहकी, लेकिन फिर उसने स्वयं को संभाल लिया। जब उसने अपनी नजरें नीची कर ली थी।अरूणिमा की निगाहें समीर राय के चेहरे पर टिकी रही, फिर वह बोली-"लाइये, राय साहब! चाकू और नीबूं..।“

समीर राय ने उससे नजरे नहीं मिलाई और लिफाफे से छ: चाकू और छ: नीबूं निकाल कर उसके कदमों में रख दिये

|अरूणिमा ने एक चाकू उठाकर उसे खोला। इस चाकू का फल लगभग चार इंच का था। सारे चाकू आकार व साइज में एक जैसे ही थे नये थे। अरूणिमा की हिदायत के अनुसार ही थे ।अरूणिमा ने चाकू को वस्ता, मुट्ठी में दबाकर अपनी हाथ ऊपर उठाया। कुद इस अंदाज में जैसे वह चाकू का फल कालीन में गाड़ देगी, लेकिन ऐसा न हुआ ।उसने चाकू हाथ में लिये-लिये समीर को हुक्म दिया-“एक नीबूं अपनी हथेली पर रख लो...हथेली मेरे सामने फैला लो... "

समीर राय ने नीबूं अपने हाथ पर रखा और हाथ उसके सामने कर दिया। जाने वह क्या करने वाली थी।

"समीर साहब...क्या आपको अपनी पत्नी से बहुत प्यार था..?" अरूणिमा ने अचानक सवाल किया। उसने चाकू वाला हाथ ऊपर उठाया था..और समीर राय का हाथ उसके सामने फैला हुआ था, जिसमें नीबूं था।"

जी हां...मुझे उससे बहुत प्यार है...।" समीर राय ने बड़ी सादगी से कहा।

"काश...आपने यह मुहब्बत उससे उसकी मौत से पहले की होती तो उस पर जो कयामत गुजरी है..शायद वह न गुजरती...'
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"मुझे अपनी लापरवाही का अच्छी तरह अहसास है।" समीर ने ठण्डी सांस ली-"मैं शर्मिन्दा हूं। मैं क्या करूं, गया वक्त तो वापिस नहीं आ सकता। मैं अगर उसे अपनी जिन्दगी देकर भी वापिस ला सकू तो वह मेरी खुशकिस्मती होगी... '

'समीर साहब...! जिस तहर गया वक्त वापिस नहीं आ सकता...उसी तरह जाने वाले भी कभी लौटकर नहीं आते.. । अरूणिमा बोली ।"

अभी कुछ दिन पहले मैंने अपनी नमीरा को देखा था। आखिर वह कौन थी?" समीर राय ने पूछा।

फिलहाल इतना सुन लें कि आपकी नमीरा मर चुकी है...और आप इस हकीकत पर यकीन कर लें। रहा यह प्रश्न कि फिर आपने नमीरा के रूप में किसको देखा..वह वक्त आने पर बताया जाएगा... | अरूणिमा में जवाब दिया, उसका हाथ वैसे ही उठा हुआ था..कुछेक क्षणों बाद वह आगे आकर बोली-"फिलहाल आप अपनी बच्ची को फिक करें।

"मुझे बताएं, वह कहां है...?" समीर राय की बेताबी जाग उठी-" उसके लिए मुझे पाताल में भी जाना पड़ा तो जाऊंगा...।"

वह शैतान प्राणियों के संरक्षण में हैं। आप उनका कुछ न बिगाड़ पाएंगे...।

"फिर...फिर मेरी बच्ची मुझे किस तरह मिल सकेगी.?"

"हम मिलाएंगे उसे आपसे...।" अरूणिमा शून्य में निहारते बोली-"भगवान ने चाहा तो बच्ची दो दिन के अन्दर आपकी हवेली में पहुंच जाएगी। यह बड़ा अनूठा दावा था। समीर राय ने अपनी बच्ची के आगे की भविष्यवाणी सुनी तो खुशी में कुद कहना चाहा। लेकिन अरूणिमा ने फौरन उसे रोक दिया। वह बोली-"बस, अब कोई प्रश्न नहीं...। इसके बाद वह भी खामोश हो गई। अब उसकी नजर चाकू की नोंक पर थी और उसका हाथ धीरे-धीरे नीचे की तरफ आ रहा था। उसके होठ हिल रहे थे. लेकिन वह क्या पढ़ रही थी, यह सुनाई नहीं दे रहा । था।और फिर..जब समीर राय की हथेली पर रखे नींबू और चाकू की नोक के बीच तीन इंच का फासला रह गया तो अचानक नींबू ऊपर उठा व चाकू में पैवस्त हो गया या यूं कहिये कि चाकू नींबू में घुस गया।"

देखो, तुम्हें समीर राय साहब की बेटी को उनसे मिलाना है...।" अरूणिमा ने नींबू पर नजर जमाये कहा..वह न जाने किससे सम्बोधित थी।उसी क्षण नींबू के अंदर से दो कतरे खून के निकलें। वह खून बहकर थोड़ा-सा ही नीचे आया था कि जम गया।

"शाबाश... |" अरूणिमा ने खुश होकर कहा और चाकू में पैवस्त नींबू को, चाकू साहित एक बड़ी प्लेट में रख दिया ।इसके बाद अरूणिमा ने तमाम नींबुओं पर यही अमल दोहराया और फिर चाकुओं से भरी उस प्लेट को उठाया और खड़ी हो गई।उसे खड़े होते देख, समीर राय भी उठ खड़ा हुआ।“समीर साहब...अब आप इत्मीनान से अपनी हवेली जाएं, दो दिन बाद यानि शुक्रवार की सुबह को अपनी बच्ची भी हवेली में पहुंच जाएगी। अब आप तशरीफ ले जाएं...।"यह भविष्यवाणी कर उसने समीर के जवाब का इंतजार नहीं किया..फौरन कमरे से निकल गई।

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समीर रायक के लिये यह दो दिन जैसे कयामत बन गये। काटे नहीं कट रहे थे।वह बार-बार अपनी मां से सवाल करता-'अम्मीजान! क्या वाकई मेरी बेटी आ जाएगी?"नफीसा बेगम जवाब देती-"क्यों नहीं बेटे! जब अरूणिमा ने कह दिया है तो जरूर आ जाएगी। ऐसे मामलों में उसका बहुत नाम है, बेटे । लेकिन समीर राय को विश्वास ही नहीं आता था, पर वह चमत्कार देख चुका था। यह अरूणिमा किशोरी-सी दिखती, नवयौवना ही थी...फिर वह कैसे ऐसी 'पहुंची हुई' बन गई। फिर चाकू और नींबू का मामला..? नींबू किस तरह उठकर चाकू में जा घुसा था और किस तरह खून के कतरे निकले थे।यह सब तो समीर राय के सामने ही हुआ था। आंखिन देखी को कैसे झुठलाया जा सकता था?इस अरूणिमा के बारे में अब तो जाने कहां-कहां से क्या-क्या सुना था। उसे चमत्कारी तांत्रिक माना जाता था। इस उम्र में भी उसने बड़े-बड़े चमत्कार कर दिखाये थे। दूर-दूर तक उसके मुरीद फैले हुए थे। कईयों को बड़ी भयावह परिस्थितियों से मुक्ति दिलाई थी उसने। कितनों के जाने कैसे-कैसे बिगड़े काम संवारे थें उसने अरूणिमा अपने आपमें कम रहस्यमयी न थी। बहरहाल, वह दुखियों व पीड़ितों की सेवा कर रही थी और इस सिलसिले में किसी से एक पैसा भी कबूल नहीं करती थी।
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अरूणिमा के पिता का देहान्त हो चुका था। वह अपने मां-बाप की इकलौती संतान थी। उसकी मां रजनी देवी एक स्कूल में टीचर थी। खासी तनख्वाह थी.कुछ वह ट्यूशनें पढ़ा लेती थी। गुजार मजे से चल रहा था अरूणिमा स्वयं सैकेन्ड इयर में पढ़ रही थी। जब वह कालेज जाती तो एक नार्मल लड़की होती। कालेज में उसके बारे में कोई नहीं जानता कि वह 'रूहानी ताकतों' की मालिक है। वह अपने बारे में कोई चर्चा नहीं करती थी। अपने पास आने वालों को भी ताकीद करती थी कि उसकी चर्चा न करे। पर यह होता नहीं था। जिस किसी को भी वह उसके संकट से उबारती...वह किसी-न-किसी मुसीबत के मारे को लेकर पहुंच ही जाता था।नफीसा बेगम भी तो इसी तरह उस तक पहुंची थी। खुदा का शुक था कि इस चमत्कारी लड़की ने खुद दिलचस्पी लेकर समीर राय की बेटी को हासिल करने में अपनी सहायता का वचन दे डाला था.वरना वह तो कभी-कभी अपने पास आने वालों को कोरा जवाच भी दे देती थी।

समीर राय के ये दो दिन बड़ी मुश्किल से कटे थेफिर शुक्रवार की सुबह हुई...यह रात समीर राय हवेली में चकराता ही रहा। उसने पूरी रात जागकर गुजारी थी..आखिर उसकी बेटी आ रही थी। वह बेटी, जिसके मिलने की कोई उम्मीद न रही थी। समीर राय ने तो उसकी मौत का यकीन भी कर लिया था। एक दिन की बच्ची..जिसे ऊंट पर लादकर रेगिस्तान में छोड़ दिया जाए..वह भला किस तरह जीवित रह सकती थी। लेकिन मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। जिसे खुदा जिन्दा रखना चाहे, उसे भला कौन मार सकता है ।समीर राय ने हवेली का बड़ा दरवाजा खुलवा दिया था। चौकीदार से कह दिया था कि अगर कोई बच्ची नजर आये तो उसे अंदर आने दिया जाये। पौ फटते ही वह खुद हवेली की असली इतास्त के दरवाजे पर बैठ गया।

हवेली का बाहरी मुख्यद्वार सामने था। नफीसा ने उसे दरवाजे के सामने बरामदे की सीढ़ियों पर बैठे देखा तो उसके लिए अंदर से कुर्सी मंगवाई और फिर वह खुद भी उसके साथ ही एक कुर्सी पर बैठ गई।अरूणिमा ने बच्ची के आने का कोई निश्चित वक्त नहीं बताया था...बस इतनी भविष्यवाणी ही की थी कि बच्ची शुक्रवार की सुबह को हवेली पहुंच जाएगी।इस वक्त सुबह पूरी तरह हो चुकी थी। अच्छा खासा सूरज निकल आया था। हर तरफ उजाला फैला हुआ था।समीर राय टकटकी बांधे आंखें भी अपनी पौत्री को देखने को प्रतीक्षारत थीं।
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बरहा पीपल के पेड़ के नीचे एक 'सीढ़ी' पर बैठी थी।देवांग की मां पार्वती...बाल्टी से खाली प्यालों में दूध डाल रही थी। बरहा बड़ी दिलचस्पी से पार्वती का वह शुगल देख रही थी। सुबह का वक्त था...अंधरा धीरे-धीरे छंट रहा था ।पार्वती जब सारे प्यालों में दूध भर चुकी तो उसने खाली बाल्टी रसोई में जाकर रखी रखी व वापिस पेड़ के नीचे आई। उसने मुस्कुराकर बरहा की तरफ देखा, पूछा- "तमाशा देखेगी..?"

हां...।" बरहा ने अपनी खूबसूरत आंखों से बुढ़िया की तरफ देखकर कही पार्वती ने फौरन अपनी लाठी जोर-जोर से तीन बार जमीन पर बजाई वे बड़े प्यार से बोली-“जाओं, बच्चों... ।" उसका यह आवाज लगाना था कि विभिन्न स्थानों से छोटे-बड़े सांप लहराते हुए उन दूध भरे प्यालों की तरफ बढ़े।

इन सांपो को देखकर बरहा को जाने क्या शरारत सूझी कि उसने बूढ़ी पार्वती के लहजे की नकल करते हुये कहा-"आओ, बच्चों... ।' 'बरहा की आवाज ने उन सांपो को चौंका दिया और वे प्यालों की तरफ बढ़ते-बढ़ते रूक गये। सारे सांपों ने बरहा को अपनी चमकती आंखों से देखा और दूध पीना भूलकर बरहा की तरफ बढ़े और उसकी पीढ़ी के गिर्द चक्कर लगाने लगे।पार्वती ने जब इन सांपों को बरहा के गिर्द चक्कर लगाते देखा तो उसे खुद चक्कर आ गये तब बरहा खिलखिला कर हंसी और उसी अंदाज में बोली-“देखा..तमाशा।

"हां, देखा... ।" पार्वती ने मुस्कुराते हुए कहा। उसकी आंखों में बरहा के लिए प्यार था-"तू वाकई परमान का चुनाव है...तेरा जवाब नहीं...

"जाओ, बच्चों दूध पीओ... ।" बरहा ने उन सांपों को मुखतिब करते कहा, तो वे लहराते हुए अपने-अपने प्याले की तरफ बढ़ गये।देवांग इस वक्त घर पर नहीं था। उर्वशी कुछ सामान लेने बाजार गई हुई थी। यानि कि इस वक्त घर में बरहा और पार्वती के सिवा कोई नहीं था ।अभी वे सांप प्यालों में मुंह डाले दुध पी रहे थे कि किसी ने दरवाजे की कुण्डी बड़े जोर से खटखटाई ।

“बरहा दरवाजा खोल। देख, उर्वशी लौट आई होगी...।"पार्वती ने कहा ।बरहा उछलती-कूदती दरवाजे की तरफ बढ़ गई। उसने दरवाजे के बीच लगी जंजीर खोली। जंजीर खुलते ही किसी ने दरवाजे को धक्का दिया और दरवाजे के सामने खड़ी बरहा का हाथ पकड़ कर बाहर खींच लिया ।बूढ़ी पार्वती को अचानक खतरे का अहसास हुआ। वह जल्दी-जल्दी लाठी टेकती दरवाजे की तरफ बढ़ी। वो जब तक दरवाजे पर पहुंची उस वक्त तक वारदात हो चुकी थी। खेल खत्म हो चुका था। गली सुनसान पड़ी थी। वहां दूर तक कोई नहीं था ।पार्वती 'धक्क' से रूक गई। यह क्या हुआ? बरहा परमान की पसन्द और उसकी अमानत थी। कोई वह अमानत उनके घर के दरवाजे से उठा ले गया था। आखिर कौन था वह? वह पार्वती न देख पाई थी।
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