Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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कुछ देर बाद ही दोनों गाड़ियां शहर से बाहर निकल आईं। आगे सड़क बिल्कुल सुनसान थी और काफी दूर तक दिखाई दे रही थी।
"अगर यह सुनसान गुफाओं और मन्दिरों वाले इलाके में जा रही है तो हम टैक्सी में इसका पीछा नहीं कर सकेंगे।" डॉक्टर सावंत ने कहा।

"फिर क्या करन चाहिए?" राज ने पूछा।

"हमें वापिस जाकर अपनी कार लानी चाहिए। इतना तो हमें पता चल ही गया कि किधर जा रही है...।


"मुमकिन है यह उधर न जाकर कहीं और मुड़ जाए।" राज ने सोचते हुए कहा।

"तो फिर हमारे पास वापस जाने का वक्त नहीं होगा।'

"आपका मतलब है कि हमें टैक्सी में ही पीछा करना चाहिए?"

"हां।'' डॉक्टर ने जवाब दिया।

राज ने आगे झुकते हुए ड्रईवर से कहा
"क्या तुम पहाड़ियों मे जा सकता है सर?"

ड्राईवर ने कहा,
"हमें तो रोजी-रोटी चाहिए, टूरिस्ट लोग जाने कहां-कहां ले जाते हैं हम लोगों को....।"


"पैसे की फिक्र न करो।" राज बोला, "हम तुम्हारी मेहनत का भरपुर मुआवजा दंगे। हम उन पुलिस वालों में से नहीं है जो गरीब के पेट पर लात मारते हैं। तुम बस चलते रहो।"

"तुम्हारी गाड़ी में पेट्रोल तो होगा न?" डॉक्टर सावंत ने पूछा।

"जी साहब टंकी फुल है।"

"फिर ठीक है।'' डॉक्टर सावंत संतुष्ट होकर बैठ गया।

ज्योति की कार जिस रफ्तार से जा रही थी, उसी रफ्तार से आगे बढ़ती रही। आधा घंटा गुजर गया तो डॉक्टर सावंत ने कहा
"मुझे हैरत है, क्या अब तक ज्योति को असास नहीं हुआ होगा कि उसका पीछा किया जा रहा है? रोड पर हमारी गाड़ियों के सिवा कोई तीसरी गाड़ी नहीं है।"

"अगर आदमी सन्तुष्ट हो तो वह इधर-उधर ध्यान नहीं देता। फिर उसने तो खुद हमें अपना पीछा करने की दावत दे रखी है।" राज ने बताया।

"हां, वो तो है। लेकिन अगर वो आम औरत है, और डॉक्टर संयज की साजिश में शामिल है, तो मैं पिछले अनुभवों के अधार पर कह सकता हूं कि वा असावधान और बेवकूफ नहीं है।"

"फिर आगे क्या ख्याल है।

"मेरा शुरू से यही ख्याल है कि उसे अपना पीछा किए जाने की जानकारी है।" डॉक्टर सावंत ने कहा।

"हो सकता है, वो इसीलिए इस वीराने में आई हो, ताकि हमें परेशान कर सके।"

"या हमें कोई नुकसान पहुंचा सके?" डॉक्टर सावंत ने ठोस लहजे में कहा।

वो दोनों दबे-दबे स्वर में सरगोशियों में बात कर रहे थे।

"वो कैसे?" राज ने पूछा।

"मुमकिन है यहां उसके कुछ साथ मौजूद हों जो हमें घरे लें।"

"कुछ भी हो!" राज ने कंधे उचकाकर मजबूती से कहा, "इसे स्टेज पर हम लोग वापिस नहीं जा सकते। अब तो होगा, देखा जाएगा।"

"राज...."

"जी..."

"क्यों न हम यहां से लौट कर इतिहास की किताबों में रायगढ़ का इतिहास जानने की कोशिश करें? शायद हमें कुछ जानकारी मिल सके?" डॉक्टर सावंत ने कहा।

"ठीक है, आज यहां देख लेते हैं, लौटकर किताबें तलाश करेंगे।” राज ने जवाब दिया।
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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तब तक उसकी टैक्सी टीलों और पहाड़ियों के इलाके में पहुंच चुकी थी। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, पेड़ों के झुण्ड और पौधे दिखाई देने लगे थे। टीले भी जगह-जगह खड़े थे, छोटी-छोटी पहाड़ियों जैसे ही लगते थे। मन्दिरों और पहाड़ का रास्ता उन टीलों के बीच में से ही होकर गुजरता था।

फिर अचानक एक मोड़ पर ज्योति की गाड़ी गायब हो गई। राज ने ड्राईवर से कहा
"जरा रफ्तार तेज करके उस मोड़ तक पहुंचो....।"

ड्राईवर ने रफ्तार तेज कर दी।

लेकिन जब वो मोड़ पर पहुंच कर घूमे तो ज्योति की काली एम्बेसडर गायब थी।

उन टीलों के बीच में से गुजरकर वो लोग एक बहुत पुराने मन्दिर की खण्डहर जैसी इमारत के करीब पहुंच गए। लेकिन पूरी दरम्यानी दूर में उन्हें ज्योति की गाड़ी कहीं नजर नहीं आई।

"यह बो ड्रामा था जिसका मैं इन्तजार का रहा था।" डॉक्टर सावंत ने कहा।

"क्या मतलब?” नीलकण्ड ने पूछा।

"मतलब यह कि उसे पीछा किए जाने के पता था। इसीलिए वो निश्चित थी कि वो जब चाहे हमें चमका देकर गायब हो सकती है। वो यकीनन एक आदम लेकिन शातिर औरत है।"

"लेकिन साहब गाड़ी कोई सुई तो नहीं है...जो एकदम कहीं जेब में डालकर गायब कर दी जाए?" राज ने आगे-पीछे देखते हुए हैरत से कहा।

"इसके बावजूद ज्योति गाड़ी समेत गायब है।"

उन मन्दिरों के करीब एक छोटी सी बस्ती थी। मुश्किल से पचास साठ घर होंगे। उन्होंने बस्ती के करीब पहुंचकर टैक्सी रूकवाई। सड़क के किनारे पेड़ों के झुंड में एक बूढ़ा आदमी लकड़ी छी रहा था, उन्होंने उससे पूछा

"इस तरफ से किसी काली कार को गुजरते हुए देखा है?"

"नहीं।" बूढ़े ने जवा दिया।

नीलकण्ड ने गौर से सड़क को देखा। यह कोलतार की सड़क थी इसलिए टायरों के निशान भी नहीं दिखाई देते थे। डॉक्टर सावंत ने आगे बढ़ कर बूढ़े से पूछा
"क्या पीछे की तरफ से भी कोई रास्ता जाता है?"

"नहीं जाता।” जवाब मिला।

"फिर तो वह कार जयर इधर ही आई होगी। क्योंकि वो इधर ही मुड़ी थी।"

"इधर नहीं आई।"

राज डॉक्टर सावंत के कंधे पर हाथ रखकर एक तरफ ले गया और बोला
"हो सकता है यह बूढ़ा झूठ बोल रहा हो । ज्योति अक्सर इधर आती जाती होगी और ये लोग उसे जानते होंगे, उसके लिहाज में यह झूठ बोल रहा होगा।"

"हो सकता है, ज्योति इसे बताने से मना कर गई हो।"
डॉक्टर सांवत ने कहा।

"इसे पैसे का लालच देकर देखें?"

"ठभ्क है।" डॉक्टर सावंत ने जेब से कुछ नोट निकाले और बूढ़े को दिखाए और बोला, "अगर तुम हमें उस कार का पता बता दो तो ये तुम्हारे हैं...."

बूढ़े के माथे पर सलवटें पड़ गईं और वो रूखाई से बोला
"जब मैंने कार देखी ही नहीं तो नोटों को झलक देख कर झूठ बोल दूं क्या?"

वो रिश्वत कबूल करने को भी तैयार नहीं था। डॉक्टर सावंत ने राज की तरफ सवालिया निगाहों से देखा

"अब?"

"यह भी तो हो सकता है कि वो सच बोल रहा हो।" राज ने सोचते हुए जवाब दिया।

"तो फिर वो कार कहां गई?"

"मुमकिन है वो पीछे ही किसी टीले की आड़ में घूम गई हो।"

"तो फिर अब कहां है?" डॉक्टर सावंत ने कहा, "अब हम क्या करें?"

'मेरा ख्याल है कि हमें मोड़ तक पैदल जाना चाहिए।" राज ने सोचते हुए कहा," अगर वो अधर ही कहीं गायब हुई है तो कार के टायरों के निशान जरूर मिलेंगे।"

"फिर टैक्सी यहीं छोड़ दें?"

"हां। ड्राईवर यही हमारा इन्तजार कर सकता है।" राज बोला

"हम अभी आते हैं। तुम यहीं पर इन्तजार करो।" डॉक्टर सावंत ने टैक्सी ड्राईवर से कहा।

"बहुत अच्छा साहब।” ड्राईवर ने गर्दन हिला दी।

वो दोनों पैदल वापिस चल पड़े। लेकिन आधे रास्ते पर आकर

वो एक नई उलझन में पड़ गए। यहां टीले करीब-करीब थे और हर दो टीलों के बीच में कारों के पहियों के निशान थे। इसका मतलब था कि इधर कारों में सवार लोग आते रहते थे।

"अब क्या ख्या है?" डॉक्टर सावंत ने पूछा।

"वो इस तरफ गई....।" राज बोला, " आइए, जरा उधर देखते हैं।"

"क्या टैक्सी वाले को इधर ही बुला लें?"

"क्या जरूर है?"

"तो चलो।"

वो दोनों उन टीलों के दरम्यान से होते हुए आगे बढ़े। टीलो के दरम्यान बने वो कच्चे रास्ते किसी भूल-भुलैया से कम नहीं थे।

चूंकि इस जगह मी पर घास भी फैली हुई थी, इसलिए कारें इधर से गुजर सकती थीं।

थोड़ी देर टीलों के दरम्यान चकराने के बाद डॉक्टर सावंत ने कहा
"मेरे ख्याल में, हम यहां दो-चार दिन भी चकराते रहे तो हासिल कुछ नहीं होगा....।"

"तो क्या वापिस चलें?"

"मेरे ख्याल में तो इस सामने वाले टीले पर चढ़कर देखना चाहिए। शायद कुछ दिखाई दे जाए।"

वो सामने वाले टीले पर चढ़ गए। यह टीला काफी ऊंचा था और उसकी चोटी पर से काफी दूर-दूर तक देखा जा सकता था। उन्होंने ऊपर चढ़ कर देखा तो एक पुरानी सी मन्दिर जैसी इमारत करीब ही बनी हुई थी। इमारत देख कर डॉक्टर सावंत ने कहा
"मुमकिन है....बो इस इमारत में गई हो।"

"हां, मुमकिन है। कम से कम वहां जाकर देखने में कोई हर्ज नहीं हैं।" राज ने जवाब दिया। वो दोनों टीले में उतरकर उस पुरानी इमारत की तरफ चल दिए।

हालांकि ऊपर से इमारत बहुत नजदीक नजर आ रही थी, लेकिन रास्ता चूंकि टीलों के बीच में चकराते हुए था, इसलिए वहां पहुंचते-पहुंचते उन्हें आधा घंटा लग गया। राज ने कहा
"ड्राईवर बेचारा इन्तजार कर रहा होगा...."

"मैं भी यही सोचा रहा था। कहीं वो ऐसा ने सोचे कि हम उसके पैसे लेकर उसे छोड़ गए हैं ?"

"ऐसे तो नहीं सोचेगा।” राज ने मुस्कराकर कहा, "सूरत-शक्ल से तो हम शरीक ही नजर आते हैं।"

"हां, यह संयोग ही है, हमारी कोई कोशिश नहीं होती ऐसा दिखने की।" डॉक्टर सावंत हंस पड़ा।

यों ही बातें करते हुए वो मन्दिर तक पहुंच गये। वो दोनों इमारत के दरवाजे पर ठहरा गए। डॉक्टर सावंत दरवाजे पर खुदा लेख पढ़ने लगा, फिर वो बोला
"राज, क्या तुम मुझे सहारा देकर थोड़ा ऊपर उठा सकते हो?"
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"किसलिए?"

"मैं जरा उन अक्षरों को पास से देखना चाहता हूं।"

"जरूर उठा सकता हूं।"

"कैसे उठाओगे?"

"मैं दरवाजे का सहारा लेकर झुक जाता हूं, आप मेरी पीठ पर खड़े हो जाईए और आराम से पढ़ लीजिए।"

"तुम्हें कोई कष्ट तो नहीं होगा ?"

"अरे बिल्कुल नहीं। आप आईए।"

"फिर ठीक है।"

सावंत ने जूते उतारे और राज के कंधों पर सवार हो गया। कुछ देर तक वो उन अक्षरों को गौर से देखता रहा जो उस इमारत के दरवाजे के ऊपर खुदे हुए थे। फिर नीचे कूदते हुए बोला

"यह पुराने जमीने में नाग देवता का मन्दिर रहा है। मेरा अन्दाजा दुरुस्त निकला। ज्योति अगर कहीं मिलेगी तो ऐसी ही जगह मिलेगी।" डॉक्टर सावंत ने जवाब दिया-"संस्कृत में लेख है, बहुत पुराना। ज्योति और डॉक्टर जय ने बड़ी चालाकी से यह ठिकाना चुना है।"

"यानि अगर ज्योति वाकई नागिन है तो इससे अच्छी जगह उसे कोई नहीं मिल सकती थी..।"

"हां।" डॉक्टर सावंत ने कहा, "आओ, जरा अन्दर से देखते

"अन्दर जाकर हमने क्या देखना है।"

"मैं एक बार अन्दर जाकर अपने सन्देह की पुष्टि कर लेना चाहता हूं कि वाकई यह ज्योति और डॉक्टर जय का गुप्त हैडक्वार्टर है या नहीं।" डॉक्टर सावंत ने कहा।
"चाहिए।" राज ने गहरी सांस ली।

कमरे में एक अजीब किस्म की गंध फैली हुई थी और एक चौकरी पर पत्थर एक सन्दूक रखा था, जिसका ढक्कन खुला हुआ था।
"ये खुशबू कैसी है?" डॉक्टर सावंत ने पूछा।

"मुमकिन है यह भी किसी आत्मा की खुशबू हो, या नागिन वगैरह की हो...।" राज बोला।

"इतनी पुरानी इमारत है, क्या पता यहां कौन-कौन से चमत्कार बंद है।" डॉक्टर सावंत ने कहा।

ताबूत करीब दो फुट गहरा था और इतना लम्बा था कि उसमें एक आदमी आराम से लेट सकता था।

राज ने पहले कमरे का एक चक्कर काट कर सरसरी तौर पर जायजा लिया, फिर ताबूत जैसे उस सन्दूक वाले चबूतरे पर चढ़ गया।

लेकिन ऊपर पहुंचते ही उसकी ऊपर की सांस ऊपर और नीचे की नीचे ही रह गई। उसे ऐसा लगा जैसे किसी ने उसके पूरे जिरूम में बिजली की लहरें दौड़ा दी हों।
क्योंकि ताबूत खाली नहीं था।

डॉक्टर सावंत ने शायद राज के चेहरे के भाव पढ़ लिए थे और अन्दाज लगा लिया था कि कोई खास बात है । इसलिए वो भी चबूतरे पर चढ गया। ताबूत में नजर पड़ते ही उसकी हालत भी राज जैसी ही हुई।

ताबूत में एक लाश थी, जो सिर से पैर तक सफेद चादर से ढकी हुई थी।

"लाश.... ।” डॉक्टर सावंत ने सरसराते हुए लहजे में कहा।

"हां....लाश की लगती है। न जाने किस बदनसीब की लाश है।" राज ने आहिस्ता से कहा।

राज ने हाथ बढ़ा कर वो चादर खींच ली, और एक बार फिर उसका दिल उछल पड़ा। वो लाश ज्योति की थी।

राजकुमारी ज्योति की नहीं बल्कि आम ज्योति की , जो कभी सतीश की बीवी थी।
और....अभी वो दोनों इन झटकों से उभर भी नहीं पाए थे कि एक और हैरत भरी घटना घट गई, जिसने उनके रहे-सहे होश भी उड़ा दिए। लाश ने आंखें खोल दी थी ओर उसके चेहरे पर मुस्कराहट फैल गई थी।

राज हालांकि एक बार पहले भी ज्योति की लाश की जिन्दा होकर चलते हुए देख चुका था और वो स्वभाव से भी बुजदिल नहीं था, लेकिन इस महौल में लाश की आंखें खोलकर मुस्कराते देखकर उस पर इतना खौफ छा गया कि उसका जी चाहा कि वो चबूतरे से कूदकर बाहर भाग जाए।


मुमकिन है कि अगर डॉक्टर उसके साथ ने होता तो राज भाग खड़ा होगा या फिर दहशत से बेहोश ही हो गया होता। क्योंकि वो दो थे, इसलिए उनकी हिम्मत बंधी रही।
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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फिर भी कुछ देर तक वो दोनों हमप्रभ खड़े रहे, जैसे वो जिन्दा इन्सान न हों बल्कि उन्हें ममी बनाकर रख दिया गया हो।
वो असली ज्योति थी। हाड़-मांस की ज्योति। वो उनहें स्तब्ध खड़े देखकर उठा खड़ी हुई और अपनी सुरीली आवाज में बोली
"डॉक्टर राज, मैं आपका अभिवादन करती हूं...।"

उसकी आवाज सुनकर राज को अपने जिस्म में हरारत दौड़ती महसूस हुई, उसने ताबूत का सहारा ले लिया।
"तो....तुम वाकई ज्योति हो?"

"हां मैं वाकई ज्योति हूं। क्या तुम्हें कोई शक है?" वो मुस्करा रही थी।

"तो वो कौन थी जो डॉक्टर सावंत के घर हमें इच्छाधारी नागिन बनकर दिखा गई थी और हमसे सहयोग मांग रही थी?"

"वो भी मैं ही थी। ज्योति एक ही है।"

"तो फिर तुम दोबारा यहां आकर लाश बन कर क्यों लेट गईं, क्या अब तुम्हें हमारी मदद की जरूरत नहीं रही?"

राज ने संजीदा लहजे में पूछा।

"यह तो मेरा स्थाई स्थान है, कहां जाती मैं?" ज्योति ने कहा, "इसी सन्दूक में तो मैं छ: सौ साल में पड़ी हूं।
हां, जब कभी डॉक्टर जय की आज्ञा होती है तो मैं उसके बताइए हुए कि किसी मानव के साथ, उसे पति बनाकर, कुछ दिन उसके पास रह आती हूं। यहीं पर तो मेरी मणि खोई थी
और बाद में यहीं पर डॉक्टर जय से मेरी भेंट हुई थी। वो इस नाग मन्दिर में सांपों का प्राचीन इतिहास ढूंढने आया था।" ज्योति ने कहा।

"और मेरा आखिरी सवाल....।" राज ने पूछा

"कौन सा सवाल?' ज्योति ने पूछा।

"क्या तुम्हें हमारी मदद की जरूर नहीं है?"

"नहीं।"

"क्यों, अब क्या हो गया है? उस दिन तो भइया-भाई कहकर मदद मांग रही थीं?"

"हां, सहायता मांग रही थी। लेकिन अब मेरा डॉक्टर जय से समझौता हो गया है।” ज्योति ने मुस्करा कर बताया।

"कैसा समझौत?” राज ने हैरत से पूछा।

"तुम्हें खत्म करने के बाद वो मेरी मणि मुझे लौटा देगा, और मैं वापिस नागलोक चली जाऊंगी।'

"तो क्या तुम्हारी मणि डॉक्टर जय के पास थी?" राज ने पूछा।

"नहीं। वो कहता है कि उसने कल ही इस पुराने मन्दिर में से ढूंढ निकाली है।" ज्योति ने कहा।

"क्या तुमने वा मणि देखी है?"

"नहीं। लेकिन वो यहीं कहीं है....।" ज्योति ने कहा।

"तुम्हें कैसे पता है?"

"ऐसे कि जब मणि हमारे आसपास होती है तो हम लोग चाहें किसी भी शरीर में हों, हमारे उस शरीर की शक्ति और कांति
बढ़ जाती है।" ज्योति ने कहा।

"और अब तुम फिर से डॉक्टर जय के साथ मिलकर मेरी दुश्मन बन चुकी हो?"

"मजबूरी है डॉक्टर राज। मुझे नागलोक लौटना ही है, किसी भी कीमत पर। मेरे सब परिजन चिंतित होंगे। वहां छ: वर्ष व्यतीत हो गए होंगे।" ज्योति ने गहरी सांस ली, जैसे नागिन फुकारी हो।

"मैं तो उस दिन को कोसता हूं जब तुमने सतीश से शादी की थी....और मैंने तुम्हारी शक्ल देखी थी।"

"मैं भी यही सोचती हूं कि सतीश से शादी करके मैंने भारी भूल की थी। खैर....ये शायद डॉक्टर सावंत हैं?"
ज्योति ने अचानक पूछा।

डॉक्टर सावंत अब तक खामोश खड़ा था। उसने सिर झुका कर कहा
"जी, हां आदरणीय ज्योति जी। मैं ही डॉक्टर सावंत हूं और राज से आपकी बहुत तारीफ सुनता रहा हूं।"

"आप ही शायद उस दिन भी इनके साथ लेब्रॉटरी में थे ?"

'जी हां, मैं ही था।"

"मैं भी नमस्मार करता हूं डॉक्टर सावंत।"
एक आवाज ने राज और डॉक्टर सावंत, दोनों को ही चौंका दिया। उन्होंने पलटकर देखा तो डॉक्टर सावंत एक दरवाजे से
अन्दर दाखिल हो रहा था।

यह दरवाजा उन दोनों ने पहली बाद देखा था। दरवाजा भी क्या था, किसी मैकेनिज्म से दीवार में लगा एक बड़ा पत्थर एक तरफ सरक गया था और उस खाली हुए स्थान से डॉक्टर जय अन्दर आ रहा था।

डॉक्टर जय के चेहरे पर समय की छाप स्पष्ट दिखाई देने लगी थी, उसके बालों में सफेदी बहुत ज्यादा झलकने लगी थी और चेहरे पर झुर्रियों का जाल सा फैल गया था। लेकिन इतने साल बीत जाने के बावजूद ज्योति वैसी ही हसीन और जवान थी।

डॉक्टर सावंत ने डॉक्टर जय के चेहरे पर नजरें जमा कर कहा
"डॉक्टर जय, हालांकि दस-बारह साल बाद हम मिल रहे हैं, लेकिन मैंने आपको पहचान लिया है।" ।

"यह मेरी खुशकिस्मती है डॉक्टर सावंत । लेकिन अफसोस भी है कि उस वक्त हम दो दोस्तों की तरह मिले थे और आज दुश्मनों की तरह आमने-सामने खड़े हैं।" डॉक्टर जय ने कहा, "मुझे हालांकि आपसे कोई दुश्मनी नहीं है, लेकिन इस तरह के हालात
पैदा हो चुके हैं कि अब आप....।'
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