Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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Sexi Rebel
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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वो लकड़ी बड़ी परेशानी में इधर-उधर देख रही थी। इस अनापेक्षित घटना ने उसके होश उड़ा दिए थे। राज आगे बढ़ कर उसके करीब जा पहुंचा और तसल्ली देना वाले लहजे में बोला

“मुझे अफसोस है कि आपके साथ यह दुखद घटना घट गई। क्या मैं आपका और दिवंगत का नाम पूछ सकता हूं?"
“जी...जी?" पहले तो वो घबरा गई, लेकिन फिर फौरन ही अपने आप पर काबू पाकर बोली, “जी...जी हां जरूर! मेरा नाम सोनाली है और मैं...इनकी सैक्रेटरी हूं।" उसने लाश की तरफ इशारा किया।

"और यह साहब कौन हैं?"
"ये...इन्हें नहीं जानते आप?" उसने हैरानी से कहा, "यह बम्बई के मशहूर ज्वैलर हरसुख मेहता हैं।"
"ओह...तो ये सेठ हरसुख मेहता हैं!" राज ने थोड़ा ताज्जुब से कहा, क्योंकि सेठ हरसुख मेहता का नाम कई बार वो अखबारों में पढ़ चुका था।
राज अभी सोनाली से कुछ पूछना चाहता था कि डॉक्टर सावंत ने उसके कंधे पर हाथ रखकर कहा
“आओ राज, पुलिस चौकी चलते हैं। वहीं बैठकर इत्मीनान से बातें करेंगे।"
राज ने सोनाली की तरफ इशारा किया
"बेहतर हो कि इन्हें भी साथ ले चलिए।"
डॉक्टर सावंत ने सवालिया निगाहों से राज की तरफ देखा, फिर सोनाली की तरफ
"अभी-अभी मालूम हुआ है कि ये सोनाली जी हैं-मृतक सेठ हरसुख मेहता की प्राईवेट सैक्रेटरी।" राज बोला, “ इनसे आपको सही स्थिति की जानकारी हासिल हो सकती है। से सेठ हारसुख मेहता के साथ ही थीं।"

"मुझे अफसोस है कि आपसे मेरी मुलाकात ऐसे मनहूस समय हो रही है। डॉक्टर सावंत ने सोनाली से हाथ मिलाते हुए कहा।
सोनाली ने कुछ रस्मी बातें कहीं और उनके साथ पुलिस चौकी की तरफ चल पड़ी।
आधे घंटे में ही लाश पुलिस चौकी पहुंचा दी गई। वो तमाम लोग भी आ गए जो मौका-ए-वारदात पर मौजूद थे। प्लेटफार्म से पुलिस चौकी ज्यादा दूर नहीं थी, लेकिन देर दसलिए हो गई थी क्योंकि पुलिस का फोटोग्राफर देर से पहुंचा था। तहकीकात बाकायदा शुरू करने से पहले डॉक्टर सावंत ने राज का पुलिस इंस्पेक्टर से परिचय कराते हुए कहा
“ये डॉक्टर राज हैं, सांपों और जहरों के एक्सपर्ट, और मेरे साथ भी काम करते रहे हैं।
इस बात का पुलिस इंस्पेक्टर पर बहुत रौब पड़ा
उसके बाद राज और डॉक्टर सावंत ने मिलकर लाश का मुआयना किया। लेकिन इसके सिवा वो किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाए कि सेठ हरसुख अचानक मर गया था। उसके जिस्म पर कोई निशान तक नहीं था। पहले चीख सुनकर उसने यही समझा था कि किसी ने किसी को कत्ल कर दिया है।
डॉक्टर सावंत लाश का मुआयना करने के बाद सख्त हैरान थे कि आखिर हरसुख मेहता का देहांत कैसे हो गया? फिर उन्होंने
सोचा कि एक बार सभी लोगों के ब्यान सुन लिए जाएं, उसके बाद ही कोई नतीजा निकाला जाए।
राज ने डॉक्टर सावंत और पुलिस इंस्पेक्टर की इजाजत से उन लोगों से कुछ सवाल पूछे, जो उस वक्त मृतक सेठ के बिल्कुल करीब थे, जब वो चीखकर गिर पड़ा था।
सोनाली के अलावा उन तमाम लोगों से पूछताछ के बाद जो जानकारी उन्हें मिली, उसका सार यह था कि सेठ हरसुख मेहता बड़े आराम से खुशी-खुशी चलते आ रहे थे। चलते-चलते वो इस तरह रूक गया था जैसे सामने कोई खौफनाक चीज आ गई हो।
उसका एक हाथ कोट कि जेब में था, वो तेजी से उठा था और उसके गले पर जम गया था। दूसरे ही पल उसने एक जोरदार चीख मारी थी और नशेड़ियों की तरह गिर पड़ा था, लड़खड़ा कर। गिरते वक्त उसकी आंखों में खौफ और तकलीफ के भाव थे। फर्श पर गिरने के बाद सिर्फ एक बार उसके जिस्म ने झटका सा खाया था। उसके बाद उनका कोई अंग हिला तक नहीं था। शायद जमीन पर गिरते ही उसके प्राण निकल गए थे।
"अजीब केस है!" राज ने डॉक्टर सावंत से कहा,
"अगर हार्टफेल हो जाने से भी मौत हुई है, तब भी इतनी जल्दी जान लिकलना मुमकिन नहीं था।
"वाकई हैरत की बात है।" डॉक्टर सावंत ने गम्भीर लहजे में कहा, "लेकिन अब जरा सोनाली से भी जानकारी ले लो , हो
सकता है वो दिल की किसी बीमारी का मरीज रहा हो।"
“मुझे उम्मीद नहीं। फिर भी पूछना हमारा फर्ज है।“ राज बोला।
राज ने सोनाली को उस कमरे में बुला लिया, जहां वो चार लोगों के ब्यान ले रहे थे। सोनाली छोटे-छोटे कदम उठाती कमरे में दाखिल हुई। उसके चेहरे पर उदासी और परेशानी के मिले-जुले भाव थे। ऐसा लगता था, वो खुद भी इस खतरनांक घटना के लिए तैयार नहीं थी, जिससे जाहिर होता था कि सेठ हरसुख पूरी तरह स्वस्थ रहा होगा।
सोनाली के कुर्सी पर बैठ जाने के बाद डॉक्टर सावंत ने उससे पूछा
“सोनीली जी, आपको सेठ हरसुख मेहता के यहां काम करते कितना अर्सा हुआ है?"
"करीब चार महीने ।
"आप उनकी प्राईवेट सैक्रेटरी थीं?"
“जी हां।"
"मेरा मतलब है, क्या आप...उनके तमाम राजों से वाकिफ थीं?
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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"बहुत ज्यादा नहीं।" सोनाली ने जवाब दिया , " मेरा काम सिर्फ इतना था कि मैं उनके प्राईवेट लैटर्स का जवाब लिखू और
उनसे मिलने के इच्छुक लोगों को समय दिया करूं।"
"क्या आपकी राय में सेठ साहब दिल की किसी बीमारी से ग्रस्त थे?
"बिल्कुल नहीं। बल्कि वो हंस कर कहा करते थे कि मेरा दिल मेरे तमाम अंगों से ज्यादा मजबूत है।"
"क्या वो शराब पीने के आदी थे?" राज ने पूछा।
"जी हां। लेकिन वो बहुत कम मात्र में लेते थे। सिर्फ एक डेढ़ पैग।" उसने जवाब दिया।
"क्या वो ऑफिस जाने से पहले भी पैग-शैग लेते थे?
“जी नहीं। ज्यादातर वो रात को क्लब वगैरह में ही पीते थे।"
“घटने के समय आप उनके साथ थीं?"
“जी हां। मैं बिल्कुल उनके बराबर चल रही थी।"
“फिर अचानक क्या हो गया था?"
"कुछ भी नहीं । हम दोनों आहिस्ता-आहिस्ता भीड़ में चल रहे थे कि अचानक वो चलते-चलते रूक गये थे। इससे पहले कि मैं
कुछ समझ सकती , वो चीख मार कर फर्श पर गिर पड़े थे। यह देखकर खुद मेरे गले से चीख निकलते-निकलते रह गई थी।"
एक दो क्षण के लिए कमरे में खामोशी रही, फिर राज ने पूछा
"क्या आप इस बारे में कोई अनुमान लगा सकती हैं कि सेठ साहब की मौत कैसे हो गई? जबकि वो दिल के भी मरीज नहीं
थे!"
“मुझे खेद है कि मैं इस बारे में कोई अनुमान भी नहीं लगा सकती।" सोनाली ने जवाब दिया, “मैं खुद भी हैरान हूं कि वो सेहतमंद आदमी अचानक कैसे चल बसा?'
इसके बाद सवाल जवाब का यह सिलसिलो खत्म हो गया और एक बार फिर राज और डॉक्टर सावंत लाश का मुआयना
करने लगे।

अचानक राज के जेहन में एक घटना घूम गई। अब से कुछ साल पहले उसने अखबारों में एक अजीबोगरीब घटना की खबर पढ़ी थी, जो इस घटना से बहुत मिलती-जुलती थी।
कलकत्ता में रेलवे स्टेशन पर कोई शख्स गाड़ी से उतरा था और जब वो इसी तरह भीड़ में से चल कर बाहर जा रहा था कि अचानक किसी ने उसके कूल्हे में कोई सुई चुभो दी थी। भीड़ में कोई नहीं जान सका था कि वो किसने चुभोई थी। वो शख्स चीखकर गिरा था और कुछ ही क्षण में मर गया था।
बाद में जब खोजबीन हुई थी तो उसके कपड़ों में एक तेज नोंक वाली सुई उलझी हुई मिली थी। जिसकी नोक किसी घातक जहर में बुझी हुई थी। और उस शख्स के कूल्हे पर उस सुई के चुभने का गोल निशान मौजूद था। यह घटना भी वैसी ही थी, फर्क सिर्फ इतना था कि सेठ हरसुख मेहता के जिस्म पर ऐसा कोई निशान नहीं था। न ही उसके कपड़ों में कोई अटकी हुई थी।
फिर भी राज के जेहन में यह सवाल आया कि शायद कोई ऐसी ही बात इस घटना के पीछे भी हो। जहरीली सुई, सुई चुभोने वाला अपने साथ ही ले गया हो।
अपना यह सन्देह राज ने डॉक्टर सावंत पर प्रकट किया तो वह भी दोनों घटनाओं की समानता पर हैरान रह गया। थोड़े से विचार-विमर्श के बाद उन्होंने तय किया कि लाश को दुसरे कमरे में ले जाकर उसके सारे कपड़े उतारकर मुआयना किया जाए।

ताकि कोई निशान मिल जाए और यह पहेली हल हो जाए।
फौरन ही लाश उठवा कर दूसरे कमरे में रखवाई गई। राज
और डॉक्टर सावंत ही अन्दर रह गए। उनहोंने लाश के पूरे कपड़े उतार कर अच्छी तरह उसका मुआयना शुरू किया। लेकिन उल्हें कोई संदिग्ध निशान नजर नहीं आया। यहां तक कि डॉक्टर सावंत ने मैग्नीफाईंग ग्लास से लाश का एक-एक इंच हिस्सा देख डाला।
नाकाम होकर डॉक्टर सावंत ने चश्में के शीशे साफ करते हुए मायूस लहजे में कहा
“इससे साबित हुआ कि जहरीली सुईं वाला ख्याल गलत है।"
"हां।" राज बोला, “अब मौत की वजह लाश का पोस्टमार्टम करके ही मालूम हो सकेगी।
"मेरा भी यही ख्याल है।" डॉक्टर सावंत ने कहा, “उसके बाद ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है कि मौत स्वाभाविक थी या अस्वाभाविक।
“अस्वाभाविक...।“ राज ने हैरत से डॉक्टर सावंत के शब्द दोहराए।
"हां।" डॉक्टर सावंत ने सिर हिलाते हुए कहा, “ मेरा मतलब है, वारदात कल की भी हो सकती है।"

"नहीं। मेरे ख्याल में कत्ल की वारदात नहीं है, क्योंकि जाहिरी लक्षण यहीं बताते हैं।"
वक्त क्योंकि काफी गुजर चुका था, इसलिए राज ने फिर मिलने का वादा करके डॉक्टर सावंत से विदा ली। इंस्पेक्टर ने
तमाम गवाहों के नाम पते लिखकर उन्हें भी छोड़ दिया। राज और सतीश भी सोनाली के साथ पुलिस चौकी से बाहर आए। कुछ कदम चलने के बाद राज ने सोनाली से कहा
“सोनाली जी, अगर आप बुरा न मानें तो एक बात कहूं?"
“कहिए!" उसने हैरत से राज की तरफ देखते हुए कहा।
राज ने उसके चेहरे पर निगाहें जमा दीं और धीरे-धीरे बोला
"यह अजीब बात है...कि आप हैरान नहीं हैं।"
एक-दो पल के लिए सोनाली के चेहरे पर एक साया सा आकर गुजर गया। सतीश उन्हें बातचीत का मौका देने के लिए आगे चल रहा था क्योंकि वो राज की निगाहों का मतलब समझता था।
सोनाली ने फौरन ही खुद पर काबू पा लिया और बोली
"मैं आपके कहने का मतलब नहीं समझी?"

“मतलब तो साफ है।" राज ने उसके चेहरे पर निगाहें जमाए-जमाए कहा, “इसकी वजह सिर्फ एक ही हो सकती है कि सेठ हरसुख मेहता की मौत आपके लिए अनापेक्षित नहीं थी।"
"यह आप क्या कह रहे हैं?" सोनाली ने लरजते हुए भयभीत लहजे में कहा और वो चलते-चलते ठहर गई।
"अभी थोड़ी देर पहले आप कह चुकी हैं कि सेठ हरसुख मेहता बिल्कुल स्वस्थ था और उसका दिल बहुत मजबूत था। आपको अच्छी तरह मालूत कि उस पर किसी हथियार से हमला नहीं किया गया। बिल्कुल अचानक वो गिर कर मर गया। ऐसी हालत में आपको परेशानी से ज्यादा हैरानी होनी चाहिए थी। लेकिन मैं यकीन से कह सकता हूं कि आपको हैरानी बिल्कुल नहीं हुई, बल्कि हादसे की उलझन और परेशानी है...जिससे मैं इस नतीजे पर पहुंचा हूं कि आप...।"

“मिस्टर राज ।“ अचानक सोनाली ने उसकी बात काट कर कहा, “भगवान जाने आप क्या पहेलियां बुझा रहे हैं, जो मेरी समझ में बिल्कुल नहीं आ रही हैं। आपने मुझे और भी डरा दिया है।
“खैर...।" राज ने लापरवाही से कहा, “ अगर आपको यह जिक्र पसन्द नहीं है तो मैं एक बात और छेड़ता हूं। जाहिर है कि मेरा इस मामले से कोई सम्बंध नहीं है। मैं कलकत्ता का रहने वाला हूं और यहां सिर्फ एक मेहमान की हैसियत से आया हुआ हूं।"

"फिलहाल आप इस जिन को छोड़ ही दें तो अच्छा है।" सोनाली ने कहा, "मैं इस वक्त दिमागी तौर तर बहुत परेशान हूं। अगर एक दो दिन बाद आप इस बारे में बात करना चाहें तो मैं खुशी से आपको जवाब दूंगी। उस वक्त तक उम्मीद है कि लाश का पोस्टमार्टम भी हो जाएगा।"
"तो क्या आप मुझे दोबारा मिलने की इजाजत देंगी?"
“जरूर।" उसने कहा, “मुझे दोबारा आप से मिलकर खुशी होगी। “कहकर उसने अपने पर्स से एक विजिटिंग कार्ड लिकाला
और राज की तरफ बढ़ाते हुए बोली, “ यह मेरा एड्रेस है। कल, परसों जब भी आपको फुर्सत हो, जरूर इस पते पर पधारिये।
"थैक्यू।" कहकर राज ने कार्ड लेकर रख लिया।
सोनाली उससे विदा लेकर टैक्सी में बैठ कर चली गई।
उसके बाद सतीश ने राज के बराबर आकर उसे टहोका देते हुए कहा
"लड़की तो पटाखा है! कुछ बात बनी ?"
"हां, लड़की बहुत खूबसूरत है।" राज ने लापरवाही से कहा, "लेकिन जितनी खूबसूरत है। “उससे ज्यादा रहस्यभरी है।"

"रहस्यभरी?" सतीश ने हैरत से कहा।
"हां।" राज ने जवाब दिया, “मैं यकीन से कह सकता हूं कि हरसुख मेहता की मौत सोनाली के लिए अनापेक्षित रूप से अचानक नहीं थी। लेकिन असल रहस्य क्या है, यह में अभी नहीं कह सकता।"
“राज !“ सतीश ने हैरत और खौफ भरे लहजे में कहा,
"कहीं तुम यह तो नहीं कहना चाहते कि उस लड़की ने ही किसी तरह सेठ को मार डाला है?"
"हो सकता है ऐसा ही हो।" राज ने जवाब दिया,
“लेकिन फिलहाल इस बारे में अन्तिम रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता। जब तक लाश का पोस्टमार्टम न हो जाए।"
सतीश खामोश हो गया। राज ने एक खाली टैक्सी रोकी
और उसमें बैठ कर वो दोनों अपने पुराने दोस्त वकील सुनील पांडे से मिलने चले गए।
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उस घटना के दो दिन बाद, राज और सतीश पिक्चर देखने जाने की तैयारी कर रहे थे कि फोन की घंटी बज उठी। राज ने रिसीवर उठाया।
"हैलो...।"

"क्या राज साहब बोल रहे हैं?" दूसी तरफ से कहा गया, “मैं डॉक्टर सावंत हूं।"
“जी हां, डॉक्टर साहब। मैं राज ही हूं।" राज ने जवाब दिया।
"अगर फुर्सत हो तो इसी वक्त चले आओ।"
"कोई खास बात है?" राज ने पूछा।
“जी हां। सेठ हरसुख मेहता का आज सुबह पोस्टमार्टम हो गया है, उस पर थोड़ा विचार-विमर्श करेंगे।"
“बहुत अच्छा, मैं अभी आ रहा हूं।“ राज ने जवाब दिया
और रिसीवर रख दिया।
सतीश पिक्चर देखने चला गया और राज डॉक्टर सावंत के घर की तरफ चल पड़ा। डॉक्टर सावंत अपने लेब्रॉटरी ऑफिस में उसके प्रतीक्षक था। राज को देखते ही उन्होंने कहा
"अजीब बात है यार राज! सेठ हरसुख की मौत वाकई किसी घातक जहर से हुई है।"
"घातक जहर से?" राज ने चौंककर पूछा।
“हां। ऐसे जहर से जो बहुत तेज असर था, जिसने तुरत-फुरत दिल की घड़कने बन्द कर दी थी और वो मर गया।"
"इसका मतलब है कि प्लेटफार्म की भीड़ में चलते-चलते किसी तरह उसके जिस्म में जहर दाखिल कर दिया गया?"
"लेकिन सवाल यह है कि उसके जिस्म पर किसी जख्म का तो क्या सुई का निशान भी नहीं था। तो जहर किस तरह उसके जिस्म में पहुंचाया गया? जाहिर है कि चलते-चलते उसने कोई
चीज खाई भी नहीं थी।"
"मैं खुद हैरान हूं कि यह मामला क्या है?"
"क्या आपने जहर का परीक्षण किया था?"
"हां, किया था। डॉक्टर सावंत ने कहा, " वो सायनाइड नहीं है, लेकिन सायनाइड जितना ही तेज और घातक कोई दूसरा जहर है।
अचानक राज के जेहन में एक ख्याल उभरा, उसने कहा
"क्या यह मुमकिन नहीं कि सुबह नाश्ते में सेठ हरसुख को वो जहर दिया गया हो? जिसका असर एक-डेढ़ घंटे बाद हुआ हो?"
"नहीं। मेरे ख्याल में ऐसा नामुमकिन है।" डॉक्टर सावंत ने कहा, “ क्योंकि वो जहर इतना घातक है जिसका तुम अन्दाजा भी नहीं लगा सकते। मृतक के दिल के ऊपर इस तरह छाले पड़े हुए हैं जैसे बहुत तेज किस्म का तेजाब डाल दिया गया हो उसके दिल पर...।

"फिर सवाल यह है कि आखिर जहर किस तरह इस्तेमाल किया गया?"
“यही सवाल तो तहकीकात मांगता है।"

कुछ क्षण खामोश रहने के बाद राज ने पूछा
"क्या आप लाश के खून का सैम्पल साथ लाए हैं?"
"हां। मुझे पूरी उम्मीद थी कि खून का ख्याल तुम्हें जरूर आयेगा।
“तो चलिए लेब्रॉटरी में । मैं खुद उसकी परीक्षण करना चाहता हूं।" राज बोला।
वो दोनों लेब्रॉटरी में जा पहुंचे। वहां की हर चीज राज की जानी-पहचानी थी। डॉक्टर सावंत ने एक बड़ी सी शीशी उसे दी, जिसमें सेठ हरसुख मेहता का खून था। राज ने पहले तो माईक्रोस्कोप से खून के कुछ कतरों का मुआयना किया ।
खून के कणों में एक अजीब से रंग के कण शामिल थे जो यकीनन जहर के कण थे। उसके बाद राज ने एक रासायनिक प्रक्रिया से शुद्ध खून को अलग कर दिया। अब जो कुछ बाकी बचा था, उसमें जहर की मात्र त्यादा थी और खून कम था।
हालांकि जहर की मात्र किसी भी परक्षण या प्रयोग के लिए कम था, लेकिन जहर चूंकि बहुत घातक था, इसलिए उसके परिणाम भी आम जहरों से ज्यादा स्पष्ट होने जरूरी थे।
शुरूआती कामों से फारिग होकर राज ने तरल बनाया और उसे इंजेक्शन द्वारा एक स्वस्थ खरगोश के जिस्म में पहुंचा दिया। सुई चुभने से खरगोश कसमसाया, बस। इसके सिवा और
कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई उस पर । जहर की वो मात्र एक खरगोश को मारने के लिए बहुत थी। लेकिन खरगोश इंजेक्शन लगने के बावजूद स्वस्थ व चुस्त दिखाई दे रहा था।
डॉक्टर सावंत एक कुर्सी पर बैठा सब कुछ खामोशी से देख रहा
था। दोनों बहुत देर तक खरगोश पर बारीकी से नजर रखते रहे। डॉक्टर सावंत उसके दिल की धड़कनें गिनता रहा। राज मैग्नीफाईंग ग्लास से उसकी आंखों पर नजर रखे रहा। लेकिन खरगोश के जिस्मानी मैनेजमेंट में कोई फर्क नहीं पड़ा।
“अजीब गोरखधंधा है...।“ राज बड़बड़ाया।
"हां।" डॉक्टर सावंत ने चश्में से घूरते हुए कहा, “इतना घातक जहर है। हालांकि इसकी मात्र काफी कम थी। फिर भी खरगोश पर थोड़ा असर तो होना ही चाहिए था। शायद कुछ देर बाद हो..."
राज ने एक नए ख्याल के तहत कहा-“बेहतर है कि इस खरगोश पर निशान लगा कर छोड़ दिया जाए और कल सुबह फिर इसका मुआयना किया जाए।
"ऐसा करके भी देख लेते हैं। डॉक्टर सावंत ने सिर हिला कर इस सुझाव से सहमति जताते हुए कहा।
राज ने खरगोश के गले में प्रयोग का वक्त और तारीख लिखकर बांध दी और खरगोश को पिंजरे में छोड़ दिया।

फिर दोनों लेब्रॉटरी से बाहर आ गए।
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