Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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Sexi Rebel
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )

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ज्योति ने जय को फर्श पर पटका और आंधी-तूफान की तरह भागी जहां शीशियों और जारों में डॉक्टर जय ने जहर रखे हुए थे।
काले रंग के जहर से आधा भरा हुअउ एक जार उठा कर जमीन पर दे मारा। शीशे का जार टुकडे-टुकड़े हो गया। इसके साथ ही ज्योति फर्श पर बैठ गई। अगले ही पल लेब्रॉटरी में ऐसा तेज प्रकाश फैल गया जैसे हजारों वाट के बल्ब जल उठे हों। शायद ज्योति ने मणि ग्रहण कर ली थी।

उसके बाद जो कुछ हुआ, उसने सबके होश उड़ा दिए। ज्योति उठ खड़ी हुई। लेकिन यह वो ज्योति नहीं थी, जो कुछ क्षण पहले फर्श की तरफ झुकी थी।

इस ज्योति ने प्राचीन काल के राजसी वस्त्र रख्ने थे और उसकी आंखों से किरणें निकल रही थीं। वो तेज प्रकाश उसके पूरे जिस्म में से फूट रहा था।
सीधे खड़े होकर ज्योति ने अपना हाथ सीधा किया और उन खानों की तरफ घुमाया जहां चारों ओर शीशियों में जहरीले जीव कैद थे।

तड़ाक-तड़ाक-तड़ाक।
एक-एक करके सभी जार और शीशियां टूटने लगीं और उनमें से वो सांप, बिच्छू, छिपकलियां वगैरह निकल-निकल कर फर्श पर टपकने लगीं।

कुछ ही मिनटों ने सभी शीशियों और जार खाली हो गए और सभी जहरीले जीव फर्श पर रेंगने लगे। चारों तरफ सांपों की फंफकारों जोर-जोर से गूंज रही थीं।

फिर ज्योति रोशनी के घेरे में खड़े-खड़े मुड़ी और चल पड़ी।
उसका रूख दरवाजे की तरफ था। सभी जहरीले जीव उसके पीछे बढ़े। ज्योति राज और डॉक्टर सावंत वाली मेजों के पास से भी गुजरी, लेकिन उसने उठाकर भी किसी तरफ नहीं देखा और गरिमामयी चाल से चलती हुई दरवाजे पर पहुंची और फिर दरवाजे से बाहर चली गई। सभी जहरीले प्राणी भी उसके पीछे-पीछे रेंगते हुए बाहर चले गए। हैरत की बात तो यह थी कि इनमें से किसी भी प्राणी ने रेंगकर इधर-उधर छुपने की या किसी को नुकसान पहुंचाने की कोशिश नहीं की।

आजादी के बाद सभी मुक्त हवा में जाने के लिए बेचैन दिखते थे और उनकी नेत्र ज्योति भी, वो मणि हासिल करके खुद छ: सौ साल बाद आजाद हुई थी।

सबसे ज्यादा हैरत की बात तो यह थी कि ज्योति ने अपने जन्म-जन्म के प्रेमी बसंता सपेरा यानि डॉक्टर जय की तरफ भी नजर उठा कर नहीं देखा था। मानों डॉक्टर जय के व्यवाहार से वो भी मन ही मन कुढ़ी हुई हो और उसे दम तोड़ते हुए भी न देखना चाहती हो।

वहां मोजूद लोगों में से राज और डॉक्टर सावंत तो खैर बंधे ही हुए थे, डॉक्टर सावंत फर्श पर पड़ा छटपटा रहा था, लेकिन उसके पहलवानो पर भी शायद इच्छाधारी नागिन ने कोई जादू कर दिया था, कोई भी अपनी पलक तक नहीं झपका सका था।

राज और डॉक्टर सावंत जरा सी गर्दन मोड़ देख रहे थे
और सभी पहलवान स्तब्ध खड़े-खड़े।

उनके जाने के बाद राज का सम्मोहन तब टूटा, जब उसके कानों में किसी के चीखने की आवाज पड़ी-फिर अचानक कमरे में भगदड़ की आवाजें सुनाई दी। उसके बाद फिर सन्नाटा छा गया।

उसके बाद राज को अहसास नहीं रहा कि कितना वक्त गुजर गया। सब तरफ सन्नाटा छाया हुआ था। एक ही स्थिति में लेटे-लेटे उनका जोड़-जोड़ सुन्न हो चुका था, प्यास की वजह से उनके गले सूख रहे थे और रहे थे और वो दोनों धीरे-धीरे बोलते हुए एक दूसरे की हिम्मत बढ़ा रहे थे।

उन्हे इस बात का भी पता नहीं चल रहा था कि इस वक्त दिन ही या रात हो चुकी है। फिर इसी हालत में न जाने कब उन्हें नींद के झोंकें आने शुरू हो गए थे। वो हर तकलीफ से बेखबर हो गए।

फिर एक खौफनाक धमाके की आवाज से उनकी आंखें खुली थीं। आंखें खुलते ही नहींकण्ठ को ऐसा लगा जैसे बाहर कयामत आ गई हो।

लोगों के इधर-उधर भागने की आवाजें आ रही थीं, कुछ चीजों के टूटने-फूटने की आवाजें भी आईं। राज ने डाक्टर सावंत को पुकारा
"डॉक्टर सावंत, यह क्या हो रहा है.....?"

"कोई धमाका था, जैसे बम फटा हो.....।" डॉक्टर सावंत ने कहा, "कुछ समझ नहीं आ रहा है यहां कितना अधेरा हो गया

"काश....इस वक्त हमारे हाथ-पांव खुले होते।" राज ने ठण्डी आह भर कर कहा।

उसी वक्त उन्हें बाहर कोई गोलियां चलने की आवाज सुनाई दी।

"यह तो गोलियां चल रही हैं.....।” डाक्टर सावंत ने कहा।

"आपका मतलब है, पुलिस पहुंच गई है।"

"ऐसा ही लगता है।” डॉक्टर सावंत ने जवाब दिया।

और फिर......वाकई वो वमत्कार हो गया, जिसका राज को दोपहर से ही इन्तजार था। तीन-चार आदमियों के भारी जूतों की आवाजें गूंजी और दो क्षण बाद ही फ्लैश लाइट की तेज रोशनी राज के चेहरे पर पड़ी।

"नीकण्ठ!"

यह सतीश की आवाज थी जो राज ने साफ पहचानी।

यह आवाज सुनते ही जैसे राज के मुर्दा जिस्म में जान दौड़ गई। खुशी के आंसू उसकी आंखों में भर आए।

दूसरी आवाज इंस्पेक्टर विकास त्यागी की थी।

"भगवान का शुक्र है कि आप लोग सही सलामत हैं....।"

डॉक्टर सावंत ने खुशी से कांपती हुई आवाज में कहा
"स्वागत है इंस्पेक्टर त्यागी और सतीश साहब....शुक्र है कि आप वक्त पर ही पहुंच गए। वर्ना न जाने क्या होता....।" सतीश आगे बढ़कर राज की रस्सियां खोलने लगा और इंस्पेक्टर त्यागी डॉक्टर सावंत को खोलने लगा। उन दोनों के जिस्म बिल्कुल सुन्न पड़ चुके थे।

इंस्पेक्टर त्यागी ने कहा
"आप लोग अभी उठने की कोशिश न कीजिए। मनोज जी आप राज साहब की थोड़ी मालिश कर दें, ताकि खून का दौरा जल्दी ठीक हो सके।"

सतीश ने राज के हाथ-पैर मलने शुरू कर दिए और इंस्पेक्टर त्यागी डॉक्टर सावंत पर झुक गया। करीब पन्द्रह मिनट बाद राज के सुन्न हाथ पैरों में झनझनाहट सी शुरू हुई। इसका मतलब था, खून का दौरा सुन्न अंगों में पहुंचने लगा था।

राज उठ कर बैठ गया और उसने हाथ-पैर चलाने की कोशिश शुरू कर दी। फिर वो फर्श पर खड़ा हो गया और उसने वहां नजर डाली, जहां डॉक्टर जय गिरा था।

"अंस्पेक्टर साहब! जरा इधर रोशनी डालिए।" उसने इंस्पेक्टर त्यागी से कहा।

इंस्पेक्टर त्यागी ने फ्लैश लाइट उधर घुमाई तो सतीश और त्यागी की नजर भी जय पर पड़ी थी, जो अब बिल्कुल निश्चल पड़ा हुआ था।

"य....यह तो डॉक्टर जय लगता है?" सतीश ने लगभग चीखकर कहा।

"वही है।" राज बोला और साथ ही डॉकटर जय पर झुक गया।

"इसे क्या हो गया है?" सतीश ने पूछा।

राज ने गहरी सांस लेकर कहा, "जहरों का माहिर शिकारी
आज खुद ही खतरनाक बिच्छू के जहर का शिकार होकर भयानक मौत मरा है।"
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तब तक डॉक्टर सावंत भी उठ कर उसके करीब पहुंच चुका
था। जय के चेहरे पर निगाह पड़ते ही उसकेगले से एक चीख निकल गई।

"यह...यह क्या....डॉकटर राज ?"

राज ने गहरी सांस लेकर कहा
"देश का सबसे बड़ा जहर विशेषज्ञ शायद जिन्दगी में पहली बार गच्चा खा गया। इन बिच्छुओं के जहर की मारक क्षमता के बारे में उसका अनुमान गलत निकला। यह जहर इतना तेज और सख्त है कि इसका जिस्म गलना शुरू हो चुका है। शायद इसको मरे हुए भी कई घंटे बीत चुके हैं।"

"और ज्योति......ज्योति कहां है?" सतीश ने हड़बड़ा कर पूछा।

"वो जरा लम्बी कहानी है।" राज ने कहा, "फिलहाल यही कहा जा सकता है कि वो जहां से आई थी, वहीं लौट गई। और अब हमें कभी भी दिखाई नहीं देगी।"

सतीश ने सोचते हुए सिर हिला दिया, हालांकि उसकी समझ में कुछ भी नहीं आया था। डॉक्टर सावंत की हालत भी अब पहले से बेहतर थी। उसने पूछा
"आप लोग यहां तक कैसे पहुंचे?"

"तुम भी अजीब आदमी हो राज ।” जवाब में सतीश ने गुस्से से कहा, " कम से कम हमें सूचना तो दे देते।"

"वो कहानी भी मैं बाद में बताऊंगा।" राज बोला, "जो कुछ हुआ, वो एकदम अनापेक्षित हुआ। अब बोलो, तुम लोग यहां तक कैसे पहुंचे?"

"तुम्हें बारह बजे तक घर वापिस आना था, क्योंकि हम दोनों ने राकेश के यहां लंच पर जाना था, साढ़े बारह बजे तक भी तुम नहीं लौटे तो मैंने डॉक्टर सावंत के घर फोन किया। वहां से भी कोई मुनासिब जवाब न मिला तो मैंने क्लब से फोन किया, इंस्पेक्टर त्यागी को फोन किया। लेकिन तुम किसी जगह भी नहीं थे। तुम्हारे साथ डॉक्टर सावंत भी गायब थे। मुझे परेशानी होनी शुरू हो गई। मैं फौरन इंस्पेक्टर त्यागी के पास पहुंचा था
और उन्हें बताया था कि तुम दोनों ही गायब हो। हम दोनों तुम्हें हर उस जगह तलाश करते रहे, जहां तुम लोगों के होने की सम्भावना थी।

जब कोई नतीजा न निकला तो इंस्पेक्टर त्यागी ने दो घंटे बाद तुम लोगों के हुलियों के साथ वायरलेस पर पुलिस की सभी पेट्रोल कारों पर फ्लैश जारी करवा दी कि तुम दोनों गायब हो और तुम्हें तलाश किया जाए।

आखिर शाम को पांच बजे के बाद एक थाने से इंस्पेक्टर त्यागी को फोन आया कि वहां किसी टैक्सी ड्राईवर ने रिपोर्ट दर्ज करावाई है कि दो मर्द सवारियां उसकी टैक्सी में बैठ कर गुफाओं और मन्दिरों वाले एक इलाके में गई थीं। और कई घंटे इन्तजार के बाद भी वापिस नहीं लौटी थीं।

हम दोनों ने उस थाने में जाकर टैक्सी ड्राईवर से मुलाकात की थी और उसने हमें बताया था कि वो दोनों आदमी एक खूबसूरत औरत का पीछा करते हुए वहां पहुंचे थे। हमारे पूछने पर उसने औरत का जो हुलिया बताया था, वो शत-प्रतिशत ज्योति का था।

हम फौरन समझ गए थे तुम ज्योति के पीछे गुफाओं वाले इलाके में गए होगे। हमने उसी वक्त सशस्त्र पुलिस की एक टुकड़ी तैयार करवाई और यहां पहुंच गए।"
डॉक्टर सावंत ने बेताबी से कहा
"हां, हमें धुंधली सी उम्मीद थी कि ऐसा ही होगा।"

राज बोला, "ठीक है, अब आगे कहिए।"

"आगे यह कि हमारे साथी पुलिस वालों ने काफी मेहनत के बाद इस लेब्रॉटरी का दरवाजा तो तलाश कर लिया, लेकिन वो बाहर से बन्द। दीवारें बड़े-बड़े पत्थरों करी बनी हुई हैं और उस गुप्त दरवाजे को तोड़ने के लिए हमें अपने माइंड का इस्तेमाल करना पड़ा है।"

राज ने डॉक्टर सावंत की तरफ देखते हुए कहा
"इसका मतलब, वो धमाका डादनामाइट का था।"

"जी हां।' इंस्पेक्टर ने सिर हिला कर कहा, "डायनामाइट से दीवार टूट गई और रास्ता खुल गया। उसी धमाके ने यहां रहने वाले बदमाशे को होशियार कर दिया ओर उनमें से कुछ फरार हो गए। बाकी हमारे साथ हुए एनकाऊंटर में मारे गए या जख्मी हो गए हैं। उनके पास से करोड़ों के जेवर, हीरे, जवाहरात और नकदी बरामद हुई हैं। अब यहां की हर चीज पर हमारा कब्जा है।" डॉक्टर सावंत ने कहा।

"और मुझे खुशी है कि हम लोग वक्त पर पहुंचे। प्लीज कल सुबह पुलिस स्टेशन आकर मुझे सब कुछ विस्तार से नोट करवा दीजिएगा।" इंस्पेक्टर त्यगी ने कहा।

"हम रास्ते में ही आपको सब कुछ बता देंगे । इंस्पेक्टर साहब, आप चाहें तो इस जगह पर अपने आदमियों से पहरा लगवा सकते हैं।" राज बोला, "अब भगवान के लिए इस मनहूस जगह से निकलने की करें।"

"जी, चलिए।" इंस्पेक्टर त्यागी ने कहा और अपने आदमियों को निर्देश देने लगा।

फिर सभी पुलिस की गाड़ियों में चल पड़े। वो टैक्सी ड्राईवर भी पुलिस पार्टी के साथ जगह दिखाने आया था। राज ने उसे एक हजार रूपये नकद दिए और बड़ी गर्मजोशी के साथ उससे हाथ मिलाकर उसको धन्यवाद दिया।

रास्ते में राज ने इंस्पेक्टर त्यागी और सतीश को सभी घटनाए सुना दीं।

ज्योति के इच्धारी नागिन होने का पता सतीश को पहली बार चला था।

"हे भगवान!" सुनकर सतीश ने फंसी-फंसी आवाज में कहा, "तो क्या मेरी शादी एक छ: सौ साल पुराने शरीर वाली ओरत से हुई थी, जिसमें इच्छाधारी नागिन की आत्म थी!"

और वो बेहोश होकर पुलिस-कार की सीट पर लुढ़क गया।

राज ने उसे सम्भलते हुए कहा
"इसीलिए मैं उसे ये बातें नहीं बताना चाहता था। अब यह कुछ दिन और दिन रात शराब पियेगा......और मुझे इसको सम्भालना पड़ेगा।"

"और कुछ दिन बाद....कुछ दिन बाद इसका क्या बनेगा?"

डॉक्टर सावंत ने फिक्रमंदी से पूछा।

"कुछ दिन बाद.....?" राज ने गहरी सांस लेकर गम्भीरता से कहा-"क्लब में इसे कोई भरे-भरे बदन वाली हसीना मिल जाएगी और यह उसके साथ फ्लर्ट में मस्त हो जाएगा....."

"कमाल का बन्दा है फिर तो यह!'' इंस्पेक्टर त्यागी ने कहा।

"क्या करें साहब, इसकी फितरत ही ऐसी है....।” राज ने फिर गम्भीरता से कहा। सभी ठहाका लगाकर हंस पड़े।

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