ड्राईवर हैरान था कि बंता सिंह आखिर इन खंदकों में किस काम से आया था? अगर आया था तो फिर कहां गायब हो गया? वो राज से इस बारे में में कई सवाल करना चाहता था, लेकिन नहलकण्ठ को अपने ख्यालों में खोया देखकर उसकी हिम्त नहीं हो रही थी कि उससे कुछ पूछे।
आखिर एक चौड़ी खदक में उन्होंने बंता सिंह की टैक्सी खड़ी हुई ढूंढ ली। टैक्सी बिलकुल सही सलामत थी। लेकिन बंता सिंह का कहीं पता नहीं था। टैक्सी देखकर ड्राईवर से रहा ने गया और उसने पूछ लिया
"क्या बंता सिंह अपनी गाड़ी लेकर यहां आया था?"
"हां।” राज ने संक्षिप्त सा जवाब दिया।
"लेकिन इन खातों में गाड़ी लाने की उसे जरूरत ही क्या थी?"
"यही सोच कर तो मैं हैरान हूं!" राज ने झूठ बोला और टॉपिक चेंज करते हुए बोला-"अच्छा, इस टैक्सी को स्टार्ट करके मैं बाहर निकालता हूं, तुम अपनी गाड़ी में वापिस चलना।"
"ठीक है सर।" ड्राईवर ने जवाब दिया। लेकिन उसके चेहरे से जाहिर था कि वो बहुत परेशान है। और राज की तरफ से सन्देह में पड़ गया है।
राज ने टैक्सी का इंजन स्टार्ट किया और कई चक्करदार रास्तों से होकर वो उन खंदकों से बाहर निकला। दूसरे ड्राईवर ने भी अपनी टैक्सी स्टार्ट की और दोनों आगे-पीछे शहर की तरफ चल पड़े।
शृिंगरा की कोठी सड़क से कुछ हट कर बनी हुई थी। सड़क के दोनों तरफ बड़े-बड़े पेड़ थे। कोठी से कुछ फासले पर एक साथ बड़े-बड़े ऊंचे-ऊंचे पांच-छ: पेड़ खड़े थे। कोठी के सामने से गुजरते हुए राज ने जानबूझकर गाड़ी की रफ्तार कम कर दी थी। जिस वक्त वो पेड़ों के उस झुण्ठ के करीब से गुजरा तो उसे दो खौफनाक आंखें अपनी तरफ घूरती हुई नजर आई।
ये दोनों खौफनाक आंखें उसी भयानक शक्ल आदमी की थीं जिसने उस रात उन पर खंजर से हमला किया था। उसे पेड़ों में छुपा अपनी तरफ घूरता देखकर देखकर राज को यकीन हो गया कि बंता सिंह जरूर किसी मुसीबत में फंस गया है।
वो पेड़ों के इसी झुण्ड में घुसकर कोठी की निगरानी कर रहा होगा कि उस भयानक सूरत गुण्डे ने उस पर हमला कर दिया होगा और उसे जख्मी या बेहोश करके काबू करने के बाद कोठी में ले गया होगा। उसके बाद भगवान जाने वो खून के प्यासे लोग उसके साथ कैसे पेश आए होंगे, उस गरीब को मार दिया होगा या कैद करके रखा होगा कहीं, ये सब बातें रहस्य के पर्दे में छुपी हुई थीं।
राज सोच रहा था, अगर उसे कैद किया गया होगा तो यकीनन उससे पूछताछ भी की गई होगी कि वो इस कोठी की निगरानी क्यों कर रहा था। किसके लिए काम कर रहा था, हो सकात है बंता सिंह ने दबाव में आकर सब कुछ बता भी दिया हो।
इसका मतलब था कि दोनों तरफ से बकायदा जंग शुरू हो गई थी और दोनों एक-दूसरे से ज्यादा सावधान हो गए थे।
अगर बंता सिंह ने मुंह नहीं खोला तो उस पर सख्ती की जा रही होगी। ऐसी स्थिति में राज ने अपना फर्ज समझा कि बंता सिंह की मदद करे और अगर वो अभी तक जिन्दा है तो उसे छुड़ाने की भरपूर कोशिश करे।
लेकिन सवाल यह था कि वो करे तो क्या करे? इसी सोच-विचार में रास्ता कट गया। डॉक्टर सावंत बड़ी बेचैनी से उसका इन्तजार कर रहा था। नीलकण्ठा को एक दूसरे ड्राईवर के साथ और कुछ फिक्रमंद देखकर सो समझ गया कि बंता सिह नहीं मिला।
सबसे पहले तो उन्होंने नए ड्राईवर को किराये के अलावा पांच सौ रूपये और देकर उससे वादा किया कि वह इस बात का जिक्र किसी से नहीं करेगा। उस राज ने बता दिया कि बंता सिंह किसी काम में उनकी मदद कर रहा था और उनके कुछ दुश्मनों ने शायद उसे कैद कर लिया है और अब वो उसे छुड़ाने की कोशिश कर रहे हैं। यह हालात सुनकर वो संतुष्ट हो गया और खामोश रहने का वादा करके चला गया।
उसके बाद राज ने डॉक्टर सावंत को सारा किस्सा सुना दिया।
"फिर यही कहा जा सकता है कि उन्होंने या तो उसे मार डाला है, या फिर कैद कर लिया है....।” सारी बात सुनकर डॉक्टर सांवत ने कहा।
"जी हां, यही मेरी भी ख्याल है।" राज बोला-"लेकिन अब फिर वही सवाल सामने है कि क्या किया जाए?"
"अगर बंता सिंह उनकी कैद में है तो किसी तरह उस गरीब को छुड़ाना चाहिए। उनकी कोठी में दाखिल होने की कोई तरकीब सोची जाए।" डॉक्टर सावंत ने कहा।
"वो तरकीब ही तो समझ में नहीं आ रही।" राज ने लम्बी सांस ली।
कई घंटे तक वो सोचते रहे, लेकिन कोई तरकीब उनकी समझ में नहीं आई। शाम हो चुकी थी इसलिए दोनों सिरखपाई से उकता कर क्ल्ब की तरफ चल पड़े।
न जाने क्या बात थी कि सतीश से लड़कियां बड़ी जल्दी घुल-मिल जाती थीं। वो खूबसूरत जवान तो था ही, पैसे की भी उसके पास कोई कमी नहीं थी, ऊपर से बातचीत में भी पटु था। इसलिए भी लड़कियां उसका साथ पसन्द करती थीं, खासतौर से बालरूम में तो हर लड़की चाहती थी कि वो सतीश के साथ डांस करे।
सतीश का पालन-पोषण क्योंकि शुरू से ही पश्चिमी तर्ज के माहोल में हुआ था और उसने पूरी जिन्दगी तफरीह और लड़कियों के साथ फ्लर्ट करने के अलावा कोई खास काम नहीं किया था, इसलिए वो हर किस्म के डांस में पारंगम हो चुका
था। डांस की माहिर विदेशी लड़कियां भी उकसी तारीफों के पुल बांध चुकी थीं।
Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
बम्बई आने के बाद करीब हर रोज ही वो क्लब जाते थे, लेकिन इस बार कोई लड़की उसकी नजर में नहीं अटकी थी, जो स्थाई रूप से उसकी डांस पार्टनर बनी रहती । वो हर रोज नई लड़की के साथ डांस करता था।
लेकिन उस दिन जब डॉक्टर सांवत और राज क्लब में दाखिल हुए तो उन्होंने सतीश को एक कोने की मेज पर एक बहुत ज्यादा हसीना लड़की के पास बैठे हुए देखा। वो दोनों अपने आस-पास से बेखबर बड़े प्यार से आपस में बातें करने में व्यस्त थे।
उस लड़की को राज ने पहली बार देखा था। वो हर रोज कल्ब जाते थे लेकिन यह लड़की उन्हें कभी नजर नहीं आई थी। राज ने डॉक्टर सावंत का हाथ दबाकर सतीश की तरफ इशारा किया और पूछा
"क्या आपने पहले कभी इस लड़की को क्लब में देखा है?"
"नहीं।” डॉक्टर ने इन्कार में सिर हिलाया, "यह नई लड़की है...और आजकल में ही क्लब की मेम्बर बनी होगी।"
"लड़की तो एकमदल एटमबम है।'' राज ने लड़की की तारीफ की।
"वाकई।" डॉक्टर सावंत ने कहा, "आपका दोस्त भाग्यशाली
वो जानबूझ कर उन दोनों के करीब से गुजरे तो सतीश ने उन्हें देख लिया और मुस्कराते हुए उसने उन दोनों से लड़की का परिचय करवाते हुए कहा
"यह जूही है, और जूली, यह मेरे दोस्त राज और यह डॉक्टर सावंत हैं।"
उन दोनों ने ही जूही से हाथ मिलाया।
जूही का रेशमी मुलायम हाथ अपन हाथ में पाकर राज ने अपने आपको जन्नत की फिजाओं उड़ता हुआ महसूस किया। वो बेहद हसीन थी और उसका हुस्न तारीफों से बहुत ऊंचा था। लम्बी-लम्बी रेशमी काली जुल्फों के नीचे उसी खूबसूरत, मुस्कराती हुई आंखें यों मालूम होती थीं जैसे घने बादलों के बीच बिजलियां कौंध रही हों। गालों में जवानी का खून झलक रहा था। हरे रंग की साड़ी में लिपटा उसका गोरा बदन निगाहों में समाया जा रहा था।
"बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।" राज ने बड़ी मुश्किल से उसके सम्मोहन से निकलते हुए कहा।
"मुझे भी।" उसने शोखी से हंसते हुए कहा।
रस्मी बातचीत के बाद राज और डॉक्टर उन्हें अकेला छोड़
कर एक दूसरों मेज पर जा बैठे। वो दोनों खामखां कबाब में ही नहीं बनना चाहते थे।
बहुत देर तक दोनों बैठे स्कॉच से दिल बहलाते रहे । एक-दो बार राज ने भी अच्छी पार्टना मिल जाने पर डांस भी किया। एक बार डॉक्टर सावंत भी अपनी एक पुरानी दोस्त के साथ डांस करने फ्लोर पर गया।
दो-तीन घंटे उनके बड़े मजे से गुजर गए। कुछ देर के लिए बंता सिंह का ख्याल भी राज के जेहन से उतर गया। लेकिन नौ बजे के करीब शिंगूरा अपने भाई के साथ हॉल में दाखिल हुई तो एक बार फिर बंता सिंह का ख्याल राज के दिमाग पर बुरी तरह छा गया। उसका नशा हिरण हो गया।
दूर से ही हल्का सा सिर हिलाकर शिंगूरा ने राज और डॉक्टर सावंत का स्वागत किया और जमाल से बातें करती हुई उनमें दूर एक मेज पर जा बैठी। राज की तरफ शिंगूरा की पीठ थी जबकि जमाल पाशा का चेहरा उसकी निगाहों के सामने
था।
डॉक्टर सावंत ने राज के चेहरे पर पेरशानी के लक्षण देख कर आधी बोतल स्कॉच और मंगवा ली। दो पैग और पीकर राज हर किस्म की फिक्र से आजाद हो गया।
सतीश उनसे थोड़े फासले पर जूही के साथ बैठा हुआ था, कुछ इस तरह कि जमाल और शिंगूरा की तरफ उसकी पीठ थी, अलबत्ता जमाल और जूही आमने-सामने थे।
उस वक्त, जबकि राज और डॉक्टर सावंत पूरी तरह नशे में थे, न चाहते हुए भी राज की नजरें एक बार सतीश की तरफ उठ गई थीं।
उसने देखा कि सतीश सिगरेट मुंह में दबाए मेज पर झुका हुआ था और जूही माचिस की तीली जलाकर उसकी सिगरेट सुलगा रही थी।
उसके हाथ तो सिगरेट सुलगाने में व्यस्त थे लेकिन उसकी नजरें सतीश के झुके हुए सिर के ऊपर से होती हुई जमाल पाशा की तरफ उठी हुई थीं। नशे में होने की वजह से था या हकीकत थी कि एक बार राज ने महसूस किया कि जूही ने आंख दबा
और भौंहें उचकाकर ऐसे भाव जाहिर किए थे जैसे किसी को कोई खास इशारा कर रही हो। राज ने जल्दी से उकी नजरों की सीधी में देखा तो जमाल पाशा उन दोनों की तरफ बड़े गौर से देख रहा था और उसके होंठों पर पैशाचिक मुस्कराहट नाच रही थी।
यह सारा कुछ इतनी ही देर में हो गया था, जितनी देर में कि माचिस की तीली जलाकर सिगरेट सुलगाई जा सकती है। उसके बाद सतीश और जूही फिर बातें करने लगे थे।
राज इस पहेली को न समझ सका। फिर यह सोचकर कि
वो नशे में है और ऐसी हालत में कुछ गलतफहमी भी हो सकती है, यह सोचकर उसने वो ख्याल दिमाग से निकाल दिया।
थोड़ी देर में ही जूही सतीश से विदा लेकर चली गई और सतीश उठ कर नीलकण्ड और डॉक्टर सावंत वाली मेज पर आ बैठा। वो बहुत ज्यादा खुश था, जिससे राज ने अन्दाजा लगाया कि लड़की पूरी तरह उसके काबू में आ चूकी है। सतीश ने भी खुशी में बेतहाशा पीनी शुरू कर दी। उसके राज को कुछ पता नहीं चला कि शिंगूरा और जमाल पाशा कब गए और क्लब में कौन-कौन आया गया।
आखिर बारह बजे जब वो क्लब से निकले तो तीनों ही नशे में चूर थे। सतीश को उन दोनों से कुछ कम नशा था, इसलिए कार ड्राईव करने ही जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले ली थी और वो उम्मीद के खिलाफ बगैर किसी घटना के सुरक्षित घर पहुंच गए।
सुबह को जब सतीश राज के साथ नाश्ते की मेज पर बैठा हुआ था तो नीलकण्ड ने सतीश से कहा
" सतीश, यह लड़की जूही है तो बहुत हसीन, मगर इतनी हसीन लड़की से बच कर ही रहना। आजकल हम बड़ी पेचीडा स्थितियों से गुजर रहे हैं।"
"ओह डियर राज, तुम उसकी फिक्र न करो।” सतीश ने शोख लहजे में कहा-"मैं बहुत सावधान हूं।"
"वो है कौन?"
"एक लड़की है, क्लब की मेम्बर है।"
"कहां रहती है?" नीलकण्ड ने पूछा।
"मालूम नहीं। मैंने पूछा नहीं था।"
"अजीब बेवकूफ बन्दे हो यार!" नीलकण्ड ने झुंझलाकर कहा-'"इश्क लड़ाना शुरू कर दिया, और उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते हो?"
"अरे, इश्क कौन कर रहा है यार, वो तो बस जरा सी दिल्लगी है।" सतीश मुस्करा कर बोला।
"चलो दिल ही लगा हो, उसके बारे में कुछ जानकारी तो होनी ही चाहिए थी न।”
"ठीक है साहब ।” सतीश ने शोखी से कहा-"आज ही इसकी वंशावली और जन्म स्थान के बारे में मालूम कर लूंगा। और कुछ? अब उसका पीछा छोड़ा, नाश्ता कर लेते हैं।"
कह कर उसने केतली खींच कर चाय बनानी शुरू कर दी और बोला
"तुम बताओ, तुम्हारे जासूस बंता सिंह जी कोई खबर लाए हैं?"
"वो तो कल रात से लापता हो गया है....।"
"लापता हो गया है?" सतीश ने हैरत से पूछा, "क्या मतलब?'
"यही कि परसों रात से फिर वो वापिस नहीं लौआ।" राज बोला, "आज सुबह मैं शिंगूरा की कोठी की तरफ गया था, सिर्फ उसकी गाड़ी खड़ी थी, वो मैं वापिस लाट लाया।"
"कहां जा सकता है वो?" सतीश ने कुछ फिक्रमंदी से कहा।
"जाना कहां है!" राज बोला, "या तो उसे कत्ल कर दिया गया है, या फिर वो शिंगूर की कोठी में कैद है।"
"फिर क्यों ने पुलिस की मदद से उसकी कोठी की तलाशी ले ली जाए?"
"राय तो अच्छी है।" राज बोला, "लेकिन फर्ज करो, उन्होंने बंता सिंह को उस कोठी में नहीं, किसी और जगह कैद कर रखा हो या उसे मार कर कहीं दबा दिया हो-ऐसी सूरत में हम उन पर क्या आरोप लगा सकेंगे? ओछा हाथ डालकर मुफ्त
की शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी।"
"यह भी ठीक है।" सतीश ने कहा, "लेकिन कुछ तो करना ही होगा।"
"हां, करना तो जरूर चाहिए। लेकिन क्या किया जाए? किस तरह किया जाए? यही सोचने की बता है।"
"कुछ सोचा भी है?"
लेकिन उस दिन जब डॉक्टर सांवत और राज क्लब में दाखिल हुए तो उन्होंने सतीश को एक कोने की मेज पर एक बहुत ज्यादा हसीना लड़की के पास बैठे हुए देखा। वो दोनों अपने आस-पास से बेखबर बड़े प्यार से आपस में बातें करने में व्यस्त थे।
उस लड़की को राज ने पहली बार देखा था। वो हर रोज कल्ब जाते थे लेकिन यह लड़की उन्हें कभी नजर नहीं आई थी। राज ने डॉक्टर सावंत का हाथ दबाकर सतीश की तरफ इशारा किया और पूछा
"क्या आपने पहले कभी इस लड़की को क्लब में देखा है?"
"नहीं।” डॉक्टर ने इन्कार में सिर हिलाया, "यह नई लड़की है...और आजकल में ही क्लब की मेम्बर बनी होगी।"
"लड़की तो एकमदल एटमबम है।'' राज ने लड़की की तारीफ की।
"वाकई।" डॉक्टर सावंत ने कहा, "आपका दोस्त भाग्यशाली
वो जानबूझ कर उन दोनों के करीब से गुजरे तो सतीश ने उन्हें देख लिया और मुस्कराते हुए उसने उन दोनों से लड़की का परिचय करवाते हुए कहा
"यह जूही है, और जूली, यह मेरे दोस्त राज और यह डॉक्टर सावंत हैं।"
उन दोनों ने ही जूही से हाथ मिलाया।
जूही का रेशमी मुलायम हाथ अपन हाथ में पाकर राज ने अपने आपको जन्नत की फिजाओं उड़ता हुआ महसूस किया। वो बेहद हसीन थी और उसका हुस्न तारीफों से बहुत ऊंचा था। लम्बी-लम्बी रेशमी काली जुल्फों के नीचे उसी खूबसूरत, मुस्कराती हुई आंखें यों मालूम होती थीं जैसे घने बादलों के बीच बिजलियां कौंध रही हों। गालों में जवानी का खून झलक रहा था। हरे रंग की साड़ी में लिपटा उसका गोरा बदन निगाहों में समाया जा रहा था।
"बड़ी खुशी हुई आपसे मिलकर।" राज ने बड़ी मुश्किल से उसके सम्मोहन से निकलते हुए कहा।
"मुझे भी।" उसने शोखी से हंसते हुए कहा।
रस्मी बातचीत के बाद राज और डॉक्टर उन्हें अकेला छोड़
कर एक दूसरों मेज पर जा बैठे। वो दोनों खामखां कबाब में ही नहीं बनना चाहते थे।
बहुत देर तक दोनों बैठे स्कॉच से दिल बहलाते रहे । एक-दो बार राज ने भी अच्छी पार्टना मिल जाने पर डांस भी किया। एक बार डॉक्टर सावंत भी अपनी एक पुरानी दोस्त के साथ डांस करने फ्लोर पर गया।
दो-तीन घंटे उनके बड़े मजे से गुजर गए। कुछ देर के लिए बंता सिंह का ख्याल भी राज के जेहन से उतर गया। लेकिन नौ बजे के करीब शिंगूरा अपने भाई के साथ हॉल में दाखिल हुई तो एक बार फिर बंता सिंह का ख्याल राज के दिमाग पर बुरी तरह छा गया। उसका नशा हिरण हो गया।
दूर से ही हल्का सा सिर हिलाकर शिंगूरा ने राज और डॉक्टर सावंत का स्वागत किया और जमाल से बातें करती हुई उनमें दूर एक मेज पर जा बैठी। राज की तरफ शिंगूरा की पीठ थी जबकि जमाल पाशा का चेहरा उसकी निगाहों के सामने
था।
डॉक्टर सावंत ने राज के चेहरे पर पेरशानी के लक्षण देख कर आधी बोतल स्कॉच और मंगवा ली। दो पैग और पीकर राज हर किस्म की फिक्र से आजाद हो गया।
सतीश उनसे थोड़े फासले पर जूही के साथ बैठा हुआ था, कुछ इस तरह कि जमाल और शिंगूरा की तरफ उसकी पीठ थी, अलबत्ता जमाल और जूही आमने-सामने थे।
उस वक्त, जबकि राज और डॉक्टर सावंत पूरी तरह नशे में थे, न चाहते हुए भी राज की नजरें एक बार सतीश की तरफ उठ गई थीं।
उसने देखा कि सतीश सिगरेट मुंह में दबाए मेज पर झुका हुआ था और जूही माचिस की तीली जलाकर उसकी सिगरेट सुलगा रही थी।
उसके हाथ तो सिगरेट सुलगाने में व्यस्त थे लेकिन उसकी नजरें सतीश के झुके हुए सिर के ऊपर से होती हुई जमाल पाशा की तरफ उठी हुई थीं। नशे में होने की वजह से था या हकीकत थी कि एक बार राज ने महसूस किया कि जूही ने आंख दबा
और भौंहें उचकाकर ऐसे भाव जाहिर किए थे जैसे किसी को कोई खास इशारा कर रही हो। राज ने जल्दी से उकी नजरों की सीधी में देखा तो जमाल पाशा उन दोनों की तरफ बड़े गौर से देख रहा था और उसके होंठों पर पैशाचिक मुस्कराहट नाच रही थी।
यह सारा कुछ इतनी ही देर में हो गया था, जितनी देर में कि माचिस की तीली जलाकर सिगरेट सुलगाई जा सकती है। उसके बाद सतीश और जूही फिर बातें करने लगे थे।
राज इस पहेली को न समझ सका। फिर यह सोचकर कि
वो नशे में है और ऐसी हालत में कुछ गलतफहमी भी हो सकती है, यह सोचकर उसने वो ख्याल दिमाग से निकाल दिया।
थोड़ी देर में ही जूही सतीश से विदा लेकर चली गई और सतीश उठ कर नीलकण्ड और डॉक्टर सावंत वाली मेज पर आ बैठा। वो बहुत ज्यादा खुश था, जिससे राज ने अन्दाजा लगाया कि लड़की पूरी तरह उसके काबू में आ चूकी है। सतीश ने भी खुशी में बेतहाशा पीनी शुरू कर दी। उसके राज को कुछ पता नहीं चला कि शिंगूरा और जमाल पाशा कब गए और क्लब में कौन-कौन आया गया।
आखिर बारह बजे जब वो क्लब से निकले तो तीनों ही नशे में चूर थे। सतीश को उन दोनों से कुछ कम नशा था, इसलिए कार ड्राईव करने ही जिम्मेदारी उसने अपने ऊपर ले ली थी और वो उम्मीद के खिलाफ बगैर किसी घटना के सुरक्षित घर पहुंच गए।
सुबह को जब सतीश राज के साथ नाश्ते की मेज पर बैठा हुआ था तो नीलकण्ड ने सतीश से कहा
" सतीश, यह लड़की जूही है तो बहुत हसीन, मगर इतनी हसीन लड़की से बच कर ही रहना। आजकल हम बड़ी पेचीडा स्थितियों से गुजर रहे हैं।"
"ओह डियर राज, तुम उसकी फिक्र न करो।” सतीश ने शोख लहजे में कहा-"मैं बहुत सावधान हूं।"
"वो है कौन?"
"एक लड़की है, क्लब की मेम्बर है।"
"कहां रहती है?" नीलकण्ड ने पूछा।
"मालूम नहीं। मैंने पूछा नहीं था।"
"अजीब बेवकूफ बन्दे हो यार!" नीलकण्ड ने झुंझलाकर कहा-'"इश्क लड़ाना शुरू कर दिया, और उसके बारे में कुछ भी नहीं जानते हो?"
"अरे, इश्क कौन कर रहा है यार, वो तो बस जरा सी दिल्लगी है।" सतीश मुस्करा कर बोला।
"चलो दिल ही लगा हो, उसके बारे में कुछ जानकारी तो होनी ही चाहिए थी न।”
"ठीक है साहब ।” सतीश ने शोखी से कहा-"आज ही इसकी वंशावली और जन्म स्थान के बारे में मालूम कर लूंगा। और कुछ? अब उसका पीछा छोड़ा, नाश्ता कर लेते हैं।"
कह कर उसने केतली खींच कर चाय बनानी शुरू कर दी और बोला
"तुम बताओ, तुम्हारे जासूस बंता सिंह जी कोई खबर लाए हैं?"
"वो तो कल रात से लापता हो गया है....।"
"लापता हो गया है?" सतीश ने हैरत से पूछा, "क्या मतलब?'
"यही कि परसों रात से फिर वो वापिस नहीं लौआ।" राज बोला, "आज सुबह मैं शिंगूरा की कोठी की तरफ गया था, सिर्फ उसकी गाड़ी खड़ी थी, वो मैं वापिस लाट लाया।"
"कहां जा सकता है वो?" सतीश ने कुछ फिक्रमंदी से कहा।
"जाना कहां है!" राज बोला, "या तो उसे कत्ल कर दिया गया है, या फिर वो शिंगूर की कोठी में कैद है।"
"फिर क्यों ने पुलिस की मदद से उसकी कोठी की तलाशी ले ली जाए?"
"राय तो अच्छी है।" राज बोला, "लेकिन फर्ज करो, उन्होंने बंता सिंह को उस कोठी में नहीं, किसी और जगह कैद कर रखा हो या उसे मार कर कहीं दबा दिया हो-ऐसी सूरत में हम उन पर क्या आरोप लगा सकेंगे? ओछा हाथ डालकर मुफ्त
की शर्मिंदगी उठानी पड़ेगी।"
"यह भी ठीक है।" सतीश ने कहा, "लेकिन कुछ तो करना ही होगा।"
"हां, करना तो जरूर चाहिए। लेकिन क्या किया जाए? किस तरह किया जाए? यही सोचने की बता है।"
"कुछ सोचा भी है?"
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
"कल कई घंटे तक मैं डॉक्टर सोच-विचार करते रहे थे लेकिन हमारी समझ में कुछ नहीं आया था।" राज ने जवाब दिया, "अब सोच रहा हूं कि नाश्ते के बाद मैं टैक्सी लेकर जाऊं या कार में शिंगूरा की कोठी के चारों तरफ आधा मील के दायरे में घूम-फिर कर देखू, शायद कोई सुराग मिल जाए। और मैं वहां जाकर यह भी देखना चाहता हूं कि क्या किसी तरह चोरी-छुपे कोठी में घुसने की कोई तरकीब हो सकती है? अगर ऐसा कोई सुरक्षित रास्ता मिल गया तो रात के वक्त मैं कोठी में जाकर बंता सिंह को तलाश करने की कोशिश करूंगा।"
"काम बहुत खतरनाक है।' सतीश ने कहा।
"मालूम है मुझे।" राज बोला, "लेकिन उस गरीब को राम भरोसे भी तो नहीं छोड़ा जा सकता। वो हमारी वजह से इस संकट में फंसा है।"
"ठीक है।' सतीश बोला, " अब तुम यह बताओ कि इसमें मैं किस तरह तुम्हारे काम आ सकता हूं?" ।
"फिलहाल तो तुम अपनी हिफाजत ढंग से करते रहो। बाद में तुम्हारी जरूरत पड़ी तो देखा जाएगा।"
"लेकिन राज, कोई भी काम करो, अपना ख्याल रखना।" सतीश ने फिक्रमंदी से कहा, "मुझे तो वो लोग बहुत खतरनाक महसूस हो रहे हैं।"
"मेरी फिक्र न करो, मैं अपनी रक्षा करना खूब जानता हूं।" राज ने मुस्करा कर जवाब दिया।
"क्या अभी जाओगे?" सतीश ने पूछा।
"हां । बस नाश्ता करके जा रहा हूं।" राज ने जवाब दिया।
उसके बाद वो दोनों खामोशी से नाश्ता करने लगे और कोई आधे घंटे बाद ही राज अभियान पर निकल गया।
अपनी कार में आया था राज, और कार को उने खंदकों में खड़ी करके और पैदल ही कोठी के इर्द-गिर्द घूमता रहा और शाम तक जंगलों की खाक छानता रहा।
लेकिन उसे बंता सिंह का कुछ पता नहीं चल सका । कोठी को भी उसने चारों तरफ से देख लिया था, जाहिरी तौर पर उसमें घूसने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था।
कोठी में जानबूझ कर बाहर की तरफ खिड़कियां बनवाई ही नहीं गई थीं। लेकिन छत पर कई जगह बुर्जियां सी बनी हुई थीं जिनके नीचे शायद रोशनदान टाईप की कोई चीज हो या शीशे के उठाए जा सकने वाले रोशनदान हो सकते हैं। नीलकण्ड ने उन्हें देखा तो उसने सोचा अगर किसी तरह कोठी की छत पर पहुंचा जा सके तो कोठी के अन्दर की स्थिति मालूम की जा सकती है।
कोठ की इस बनावट से ही उसने यह अन्दाजा भी लगाया कि इस कोठी में जरूर कोई गड़बड़ है जिसे वहां रहने वालों में छुपाए रखने के लिए सब पर्देदारी बरती जा रही है। वर्ना खिड़कियां ने बनवाने की वजह कोई न होती।
बहुत देत तक इधर-उधर घूम कर राज यह ढूंढने की कोशिश करता रहा कि छत पर किसी रास्ते से चढ़ा जा सकता था। लेकिन डेढ़ घंटे की नाकाम कोशिश के बाद उसकी समझ में आ गया कि बगैर किसी बाहरी मदद के वो कोठी की छत पर भी नहीं पहुंच सकता।
आखिरी मायूस होकर वो फ्लैट पर लौट आया। बंता सिंह का ख्याल उसके दिमाग पर इस तरह सवार था कि उसे चैन नहीं
आ रहा था। वो सोच रहा था कि अगर बंता सिंह को कुछ हो गया तो उसकी सारी जिम्मेदारी उन्हीं लोगों पर होगी। क्योंकि वो इनके हितों के लिए काम कर रहा था।
बंता सिंह कोई पेशेवर जासूस नहीं था बल्कि एक गरीब टैक्सी ड्राईवर था और उसे ऐसे खतरनाक काम पर लगाकर उन्होंने एक गलती ही की थी। दुश्मन बहुत ज्यादा चालाक और खतरनाक थे और उनसे टक्कर लेने के बहुत ज्यादा चालाक और ताकतवर शख्स की जरूरत थी।
शाम तक राज इन्हीं ख्यालों में उलझा रहा, डॉक्टर सावंत के यहां भी नहीं गया, बल्कि फोन पर अपनी नाकामी की दास्तान संक्षेप में सुना दी थी।
शाम को सतीश ने बहुत ज्यादा अनुरोध किया तो राज को उसके साथ क्लब आना पड़ा। लेकिन क्लब में जाते ही सतीश
को जूही मिल गई और राज अकेला रह गया था।
थोड़ी देर राज अकेला बैठा दिल बहलाने की कोशिश करता रहा, एक-दो पैग स्कॉच पीकर फिक्र दूर करने की कोशिश की
और एक बार एक लड़की के साथ डांस करने फ्लोर पर भी गया। लेकिन एक दो राउण्ड डांस करने के बाद ही उसका दिल उकता गया और तबीयत खरा का बहाना करके, लड़की से माफी मांगकर टेबल पर वापिस आ गया।
आखिर तंग आकर उसने सतीश की बातचीत में दखल देते हुए
कहा
" सतीश, मैं घर जा रहा हूं और कार ले जा रहा हूं। तुम टैक्सी में आ जाना।” राज कार में बैठ कर सीधा घर आ गया।
एकांत में बैठकर राज बहुत देर तक सोचता रहा कि आखिर बंता सिंह को किस तरह तलाश किया जाए।
बैठे-बैठे सोचते हुए राज को न जाने कितना वक्त गुजर गया। ऐशे-ट्रे में सिगरेटों के टाटों से उसने अन्दाजा लगाया कि उसे क्लब से आए कम से कम दो घंटे गुजर चुके हैं।
उसी वक्त अचानक उसके दिमाग में एक ख्याल आया कि इसी वक्त शिंगूरा की कोठी पर चलना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए। हो सकता है किसी तरह इस वक्त अन्दर जाने की कोई तरकीब सूझ जाए या कम से कम छत पर पहुंचने का कोई
रास्ता ही मिल जाए।
दिल और दिमाग की इस आवाज को उसने फौरन सुना और उस पर अमल करने का फैसला कर लिया। पिस्तौल जेब में डाल कर वो चल पड़ा।
रास्ते में उसने एक मजबूत प्लास्टिक की रस्सी भी खरीदी ताकि छत पर चढ़ने के काम आ सके। इस वक्त चारों तरफ अन्धेरा छाया हुआ था, क्योंकि चांद की शुरूआती तारीखें थीं इसलिए रात को किसी के देखे जाने का खतरा भी नहीं था।
शहर से बाहर कोठियां बिल्कुल सुनसान पड़ी थीं। राज ने घड़ी देती तो साढ़े ग्यारह बजे रहे थे। दस-बारह मील का सफर नीलकण्ड को बड़ा सुहाना लग रहा था। कार की हैड लाईट में तारकोल की सड़क चमक रही थी। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, जिसे कभी-कभी किसी कार के इंजन की आवाज भंग कर देती थी। उसके बाद फिर वही गम्भीर सन्नाटा छा जाता था।
शिंगूरा की कोठी के करीब पहुंचकर राज ने कार की सभी लाईटें बुझा दी और सड़क से हटकर कोठी के पीछे जहां एक बागीचा सा बना हुआ था, वहीं कार राक दी।
उस वक्त राज प्रकृति की सुन्दरता के दृश्यों में इतना मगन था कि थोड़ी सी असावधानी कर बैठा। जिसका खामियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ा। जब कार उसने कोठी के करीब जाकर रोक दी, तब उसे इस मूर्खता का अहसास हुआ कि कोठी के पीछे एक कार के अक्षरों के निशान देख कर उन्हें जरूर शक हो जाता और उन्हें मालूम हो जाता कि रात को किसी ने कोठी के बारे में छानबीन करने की कोशिश की है। लेकिन यह अहसास राज को वक्त के बाद हुआ था। अब कुछ नहीं हो सकता
था उस बारे में।
कार छोड़कर राज ने एक बार कोठी की परिक्रमा की, लेकिन एक दरवाजे के सिवा उसे कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं
आया। पानी को टंकी क्योंकि छत पर था इसलिए लोहे का एक मजबूत पाईप ऊपर से नीचे जरूर आ रहा था। दीवार से लगा-लगा।
अगर कोई फुर्तीला वोर या कोई पशेवर डिटेक्टिव होता तो उस पाईप को देखते ही बगैर सोचे-समझे लपककर उसके जरिये छत पर चढ़ जाता।
लेकिन राज ने चूंकि इसके पहले कभी इस तरह का कोई काम नहीं किया था, इसलिए छत पर पहुंचने को एक रास्ता मिल जाने के बावजूद उसे सोचना पड़ रहा था।
इसमें भी कोई शक नहीं कि ज्योति और शिंगूरा के चक्करों में उलझ पर राज भी आधा-अधूरा जासूस बन गया। और उसे पूरी उम्मीद थी कि हालात की रफ्तार अगर ऐसी ही रही तो बहुत जल्दी वो एक माहिर जासूस बन जाएगा। वहां खड़े-खड़े तो राज यहां तक सोच गया कि थोड़ा अनुभव और हो जाए तो बाकायदा लाइसें लेकर प्राइवेट डिटेक्टिव बन जाएगा
और एक एजेन्सी खोल लेगा।
कुछ देर वो पाईप के पास खड़ा छप पर जाने के लिए हिम्मत बटोरता रहा। कोठी के अन्दर के हालात जानने का एकमत्र जरिया छत पर बने वो वेंटीलेटर थे और छत पर जाने का इकलौता जरिया या पानी का पाईप ही था।
"काम बहुत खतरनाक है।' सतीश ने कहा।
"मालूम है मुझे।" राज बोला, "लेकिन उस गरीब को राम भरोसे भी तो नहीं छोड़ा जा सकता। वो हमारी वजह से इस संकट में फंसा है।"
"ठीक है।' सतीश बोला, " अब तुम यह बताओ कि इसमें मैं किस तरह तुम्हारे काम आ सकता हूं?" ।
"फिलहाल तो तुम अपनी हिफाजत ढंग से करते रहो। बाद में तुम्हारी जरूरत पड़ी तो देखा जाएगा।"
"लेकिन राज, कोई भी काम करो, अपना ख्याल रखना।" सतीश ने फिक्रमंदी से कहा, "मुझे तो वो लोग बहुत खतरनाक महसूस हो रहे हैं।"
"मेरी फिक्र न करो, मैं अपनी रक्षा करना खूब जानता हूं।" राज ने मुस्करा कर जवाब दिया।
"क्या अभी जाओगे?" सतीश ने पूछा।
"हां । बस नाश्ता करके जा रहा हूं।" राज ने जवाब दिया।
उसके बाद वो दोनों खामोशी से नाश्ता करने लगे और कोई आधे घंटे बाद ही राज अभियान पर निकल गया।
अपनी कार में आया था राज, और कार को उने खंदकों में खड़ी करके और पैदल ही कोठी के इर्द-गिर्द घूमता रहा और शाम तक जंगलों की खाक छानता रहा।
लेकिन उसे बंता सिंह का कुछ पता नहीं चल सका । कोठी को भी उसने चारों तरफ से देख लिया था, जाहिरी तौर पर उसमें घूसने का कोई रास्ता नजर नहीं आता था।
कोठी में जानबूझ कर बाहर की तरफ खिड़कियां बनवाई ही नहीं गई थीं। लेकिन छत पर कई जगह बुर्जियां सी बनी हुई थीं जिनके नीचे शायद रोशनदान टाईप की कोई चीज हो या शीशे के उठाए जा सकने वाले रोशनदान हो सकते हैं। नीलकण्ड ने उन्हें देखा तो उसने सोचा अगर किसी तरह कोठी की छत पर पहुंचा जा सके तो कोठी के अन्दर की स्थिति मालूम की जा सकती है।
कोठ की इस बनावट से ही उसने यह अन्दाजा भी लगाया कि इस कोठी में जरूर कोई गड़बड़ है जिसे वहां रहने वालों में छुपाए रखने के लिए सब पर्देदारी बरती जा रही है। वर्ना खिड़कियां ने बनवाने की वजह कोई न होती।
बहुत देत तक इधर-उधर घूम कर राज यह ढूंढने की कोशिश करता रहा कि छत पर किसी रास्ते से चढ़ा जा सकता था। लेकिन डेढ़ घंटे की नाकाम कोशिश के बाद उसकी समझ में आ गया कि बगैर किसी बाहरी मदद के वो कोठी की छत पर भी नहीं पहुंच सकता।
आखिरी मायूस होकर वो फ्लैट पर लौट आया। बंता सिंह का ख्याल उसके दिमाग पर इस तरह सवार था कि उसे चैन नहीं
आ रहा था। वो सोच रहा था कि अगर बंता सिंह को कुछ हो गया तो उसकी सारी जिम्मेदारी उन्हीं लोगों पर होगी। क्योंकि वो इनके हितों के लिए काम कर रहा था।
बंता सिंह कोई पेशेवर जासूस नहीं था बल्कि एक गरीब टैक्सी ड्राईवर था और उसे ऐसे खतरनाक काम पर लगाकर उन्होंने एक गलती ही की थी। दुश्मन बहुत ज्यादा चालाक और खतरनाक थे और उनसे टक्कर लेने के बहुत ज्यादा चालाक और ताकतवर शख्स की जरूरत थी।
शाम तक राज इन्हीं ख्यालों में उलझा रहा, डॉक्टर सावंत के यहां भी नहीं गया, बल्कि फोन पर अपनी नाकामी की दास्तान संक्षेप में सुना दी थी।
शाम को सतीश ने बहुत ज्यादा अनुरोध किया तो राज को उसके साथ क्लब आना पड़ा। लेकिन क्लब में जाते ही सतीश
को जूही मिल गई और राज अकेला रह गया था।
थोड़ी देर राज अकेला बैठा दिल बहलाने की कोशिश करता रहा, एक-दो पैग स्कॉच पीकर फिक्र दूर करने की कोशिश की
और एक बार एक लड़की के साथ डांस करने फ्लोर पर भी गया। लेकिन एक दो राउण्ड डांस करने के बाद ही उसका दिल उकता गया और तबीयत खरा का बहाना करके, लड़की से माफी मांगकर टेबल पर वापिस आ गया।
आखिर तंग आकर उसने सतीश की बातचीत में दखल देते हुए
कहा
" सतीश, मैं घर जा रहा हूं और कार ले जा रहा हूं। तुम टैक्सी में आ जाना।” राज कार में बैठ कर सीधा घर आ गया।
एकांत में बैठकर राज बहुत देर तक सोचता रहा कि आखिर बंता सिंह को किस तरह तलाश किया जाए।
बैठे-बैठे सोचते हुए राज को न जाने कितना वक्त गुजर गया। ऐशे-ट्रे में सिगरेटों के टाटों से उसने अन्दाजा लगाया कि उसे क्लब से आए कम से कम दो घंटे गुजर चुके हैं।
उसी वक्त अचानक उसके दिमाग में एक ख्याल आया कि इसी वक्त शिंगूरा की कोठी पर चलना चाहिए और कोशिश करनी चाहिए। हो सकता है किसी तरह इस वक्त अन्दर जाने की कोई तरकीब सूझ जाए या कम से कम छत पर पहुंचने का कोई
रास्ता ही मिल जाए।
दिल और दिमाग की इस आवाज को उसने फौरन सुना और उस पर अमल करने का फैसला कर लिया। पिस्तौल जेब में डाल कर वो चल पड़ा।
रास्ते में उसने एक मजबूत प्लास्टिक की रस्सी भी खरीदी ताकि छत पर चढ़ने के काम आ सके। इस वक्त चारों तरफ अन्धेरा छाया हुआ था, क्योंकि चांद की शुरूआती तारीखें थीं इसलिए रात को किसी के देखे जाने का खतरा भी नहीं था।
शहर से बाहर कोठियां बिल्कुल सुनसान पड़ी थीं। राज ने घड़ी देती तो साढ़े ग्यारह बजे रहे थे। दस-बारह मील का सफर नीलकण्ड को बड़ा सुहाना लग रहा था। कार की हैड लाईट में तारकोल की सड़क चमक रही थी। चारों तरफ सन्नाटा छाया हुआ था, जिसे कभी-कभी किसी कार के इंजन की आवाज भंग कर देती थी। उसके बाद फिर वही गम्भीर सन्नाटा छा जाता था।
शिंगूरा की कोठी के करीब पहुंचकर राज ने कार की सभी लाईटें बुझा दी और सड़क से हटकर कोठी के पीछे जहां एक बागीचा सा बना हुआ था, वहीं कार राक दी।
उस वक्त राज प्रकृति की सुन्दरता के दृश्यों में इतना मगन था कि थोड़ी सी असावधानी कर बैठा। जिसका खामियाजा उसे बाद में भुगतना पड़ा। जब कार उसने कोठी के करीब जाकर रोक दी, तब उसे इस मूर्खता का अहसास हुआ कि कोठी के पीछे एक कार के अक्षरों के निशान देख कर उन्हें जरूर शक हो जाता और उन्हें मालूम हो जाता कि रात को किसी ने कोठी के बारे में छानबीन करने की कोशिश की है। लेकिन यह अहसास राज को वक्त के बाद हुआ था। अब कुछ नहीं हो सकता
था उस बारे में।
कार छोड़कर राज ने एक बार कोठी की परिक्रमा की, लेकिन एक दरवाजे के सिवा उसे कोई दूसरा रास्ता नजर नहीं
आया। पानी को टंकी क्योंकि छत पर था इसलिए लोहे का एक मजबूत पाईप ऊपर से नीचे जरूर आ रहा था। दीवार से लगा-लगा।
अगर कोई फुर्तीला वोर या कोई पशेवर डिटेक्टिव होता तो उस पाईप को देखते ही बगैर सोचे-समझे लपककर उसके जरिये छत पर चढ़ जाता।
लेकिन राज ने चूंकि इसके पहले कभी इस तरह का कोई काम नहीं किया था, इसलिए छत पर पहुंचने को एक रास्ता मिल जाने के बावजूद उसे सोचना पड़ रहा था।
इसमें भी कोई शक नहीं कि ज्योति और शिंगूरा के चक्करों में उलझ पर राज भी आधा-अधूरा जासूस बन गया। और उसे पूरी उम्मीद थी कि हालात की रफ्तार अगर ऐसी ही रही तो बहुत जल्दी वो एक माहिर जासूस बन जाएगा। वहां खड़े-खड़े तो राज यहां तक सोच गया कि थोड़ा अनुभव और हो जाए तो बाकायदा लाइसें लेकर प्राइवेट डिटेक्टिव बन जाएगा
और एक एजेन्सी खोल लेगा।
कुछ देर वो पाईप के पास खड़ा छप पर जाने के लिए हिम्मत बटोरता रहा। कोठी के अन्दर के हालात जानने का एकमत्र जरिया छत पर बने वो वेंटीलेटर थे और छत पर जाने का इकलौता जरिया या पानी का पाईप ही था।
- Sexi Rebel
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Re: Fantasy नागिन के कारनामें (इच्छाधारी नागिन )
आखिर राम नाम लेकर उसने सूली पर चढ़ने का फैसला कर ही लिया और सबसे पहले उसने जूते उतार कर कार में डाल दिए। उसके बाद पाईप हाथों के थाम कर और दीवार पर पैर जमाकर राज ने धीरे-धीरे ऊपर की तरफ सरकना शुरू कर दिया। पाईप चूंकि दीवार से पूरी तरह सटा हुआ नहीं था, इसलिए राज की अंगुलियां पाईप को चारों तरफ से पकड़ में ले सकती थीं। इसलिए उसे ऊपर चढ़ने में बहुत आसानी हो गई थी। काम बेहद कठिन था और राज को अपना संतुलन बनाए रखना मुश्किल हो रहा था, वो बार-बार फिसल रहा था और थोड़ा नीचे आ जाता था, फिर ऊपर सरकने लगता था।
एक बार तो छत का सिरा सिर्फ एक मीटर दूर रह गया था कि वो फिसल कर दो मीटर और नीचे आ पहुंचा, पाईप को दीवार के साथ लगाए रखने के लिए थोड़े-थोड़े फासले पर लोहे के मजबूत हुक ठोंके गए थे, उन्होंने छत पर चढ़ने में राज की बहुत मदद की।
उनका अपना ख्याल था कि अगर वो लोहे के हुक दीवार पर न लगे होते तो वह छत पर कभी नहीं नहीं चढ़ सकता था वो थक जाता था तो नीचे वाले हुक में पैर फंसाकर और ऊपर वाले हुक को थामकर थोड़ा सुस्ता लेता था एक दो मिनट के लिए।
आखिरकार पौन घंटे के लगातार संघर्ष के बाद राज छत पर पहुंचने में कामयाब हो ही गया। बहुत आहिस्ता-आहिस्ता बैठे-बैठे वो सरकते हुए सबसे करीबी वेटीलेटर के करीब पहुचा। खड़े होकर चलने की हिम्मत इसलिए न कर सकता था कि कहीं कदमों की आवाज से नीचे रहने वाले चौंक न उठे।
ऊपर वाला झरोखा कहिए या रोशनदान या कुछ और, काफी चौड़ा था और उस पर शीशे लगे हुए थे। उस पर एक छप्पर सा बनरा हुआ था जिसके नीचे लोहे की जाली थी यानि इन्हें बनाने में खास ख्याल रखा गया था कि हवा और रोशनी नीचे कमरों तक जा सके।
इस वक्त रात का एब बज रहा था और शायद कोठी के तमाम वासी अपने-अपने कमरों में सो चुके थे, क्योंकि पूरी दत पर अन्धेरा था, किसी भी छप्पर के नीचे से रोशनी नहीं नजर आ रही थी, सिर्फ एक छप्पर के नीचे से हल्की-हल्की रोशनी दिखाई दे रही थी।
राज सरकता हुआ उस छप्पर के करीब पहुंचा और उसने बड़ी सावधानी से नीचे झांककर देखा। नीचे एक बहुत बड़ा हॉल कमरा था जो बड़े करीने से सजा हुआ था, वो स्टडी रूम लगता था, चारों तरफ आलमारियों मे किताबें लगी हुई थीं और बीच में एक मेज थी जिस पर लिखने-पढ़ने का सामान नजर आ रहा था, ऊपर वाला रोशनदान इतना चौड़ा था कि उसकी एक साईड में आधार कमरा नजर आता था। दूसरी साईड से बाकी का
आधा कमरा भी देखा जा सकता था।
इस वक्त कमरा बिल्कुल खाली था। कमरे की दीवारों पर भी काफी तस्वीरें टंगी हुई थी और मेज पर भी एक तस्वीर का फ्रेम नजर आ रहा था।
मेज पर कागज-कलम इस तरह पड़े हुए थे जैसे कोई लिखते-लिखते किसी काम से उठकर चला गया हो। करीब दस मिनट बाद राज को नीचे कहीं कदमों की आवाज सुनाई दी। एक पल बाद ही लायब्रेरी का दरवाजा बेआवाजा खुला और जमाल पाशा नाईट गाउन पहने हुए लायब्रेरी में दाखिल हुआ और आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ मेज के करीब कुर्सी पर आकर बैठ गया।
थोड़ी देर तक वो दोनों कोहनियां मेज पर टिकाए सामने रखी फ्रेम की तस्वीर की घूरता रहा। फिर उसने फ्रेम उठाकर तस्वीर को चूमा और फिर बड़ी सावधानी से फ्रेम वापिस मेज पर रख दिया, लेकिन तस्वीर शायद मेज पर अपने बैक स्टेण्ड के सहारे टिकी नहीं थी। क्योंकि उसके हाथ हटाते ही तस्वीर सीधी होकर मेज पर गिर पड़ी। जमाल पाशा ने फौरत ही तस्वीर को उठाकर फिर सीधा कर दिया।
लेकिन इतनी देर में राज की निगाह उस तस्वीर पर पड़ चुकी थी। और अगर फासला ज्यादा होने की वजह से उसकी निगाहों ने धोखा नहीं खाया था तो वह तस्वीर जूही की ही थी।
शायद राज इस बक्त अपनी नजर की कमजोरी मान लेता, अगर एक दिन पहले ही उसने सतीश के पास बैठी जूही को जमाल पाशा की तरफ एक खास इशारा करते हुए न देखा होता उस वक्त जमाल पाशा भी जूही की तरफ देखकर मुस्कराया था।
इससे राज की समझ में दो बातें आईं। पहली यह कि यह
तो जमाल पाशा जूही से मोहब्बत करता था और जूही चूंकि रंगीन मिजाज, उड़ती तितली थी, इसलिए किसी एक मर्द से उसकी तसल्ली नहीं हो सकती थी। हो सकता है कुछ दिन उसने जमाल पाशा के साथ भी इश्क के पेंच लड़ाए हों, लेकिन बाद में किसी और मर्द की तरफ आकर्षित हो गई हो ओर अब सतीश में दिचस्पी ले रही हो।
हो सकता है उस दिन की उनकी इशारेबाजी सिर्फ संयोग से मिल जाने की वजह से हो या फिर दूसरी सूरत यह हो सकती थी कि जूही सिर्फ जमाल पाशा से ही मोहब्बत करती हो ओर उसकी तमाम साजिशों में भी शामिल हो। इस वक्त वो किसी प्लान के तहत की जमाल और शिंगूरा के कहने पर ही वो सतीश को फांस रही हो।
अगर जूही और सतीश के सम्बंधों की वजह यह दूसरी बात थी तो स्थिति वाकई गम्भीर थी। राज ने सोचा, इसका मतलब है कि उन्होंने हमोर लिए कोई नई और अनोखी तरकीब सोचाी
क्योंकि राज जानता था कि उन तीनों में से सतीश ही ऐसा मोहरा था कि कभ भी आसानी से फरेब दिया जा सकता था। इसलिए राज को उसी की तरफ से ज्यादा चिंता थी। राज को यकीन था कि उसे अगर उस खेल में मात होती है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी सीधे-सादे सतीश पर ही होगी।
जूही के बारे में सारे ख्यालों में से यह आखिरी ख्याल ही राज को सही लगा था। जरूर वो जमाल पाशा की किसी साजिश के तहत ही सतीश की फांस रही थी।
वो अभी इसी सोच-विचार में गुम था कि अचान किसी कार के इंजन की आवाज से चौंक उठा। उसने जरा सा सिर उठा कर सड़क क तरफ देखा तो ऐ कार इसी कोठी की तरफ आते देखी।
एक बार तो छत का सिरा सिर्फ एक मीटर दूर रह गया था कि वो फिसल कर दो मीटर और नीचे आ पहुंचा, पाईप को दीवार के साथ लगाए रखने के लिए थोड़े-थोड़े फासले पर लोहे के मजबूत हुक ठोंके गए थे, उन्होंने छत पर चढ़ने में राज की बहुत मदद की।
उनका अपना ख्याल था कि अगर वो लोहे के हुक दीवार पर न लगे होते तो वह छत पर कभी नहीं नहीं चढ़ सकता था वो थक जाता था तो नीचे वाले हुक में पैर फंसाकर और ऊपर वाले हुक को थामकर थोड़ा सुस्ता लेता था एक दो मिनट के लिए।
आखिरकार पौन घंटे के लगातार संघर्ष के बाद राज छत पर पहुंचने में कामयाब हो ही गया। बहुत आहिस्ता-आहिस्ता बैठे-बैठे वो सरकते हुए सबसे करीबी वेटीलेटर के करीब पहुचा। खड़े होकर चलने की हिम्मत इसलिए न कर सकता था कि कहीं कदमों की आवाज से नीचे रहने वाले चौंक न उठे।
ऊपर वाला झरोखा कहिए या रोशनदान या कुछ और, काफी चौड़ा था और उस पर शीशे लगे हुए थे। उस पर एक छप्पर सा बनरा हुआ था जिसके नीचे लोहे की जाली थी यानि इन्हें बनाने में खास ख्याल रखा गया था कि हवा और रोशनी नीचे कमरों तक जा सके।
इस वक्त रात का एब बज रहा था और शायद कोठी के तमाम वासी अपने-अपने कमरों में सो चुके थे, क्योंकि पूरी दत पर अन्धेरा था, किसी भी छप्पर के नीचे से रोशनी नहीं नजर आ रही थी, सिर्फ एक छप्पर के नीचे से हल्की-हल्की रोशनी दिखाई दे रही थी।
राज सरकता हुआ उस छप्पर के करीब पहुंचा और उसने बड़ी सावधानी से नीचे झांककर देखा। नीचे एक बहुत बड़ा हॉल कमरा था जो बड़े करीने से सजा हुआ था, वो स्टडी रूम लगता था, चारों तरफ आलमारियों मे किताबें लगी हुई थीं और बीच में एक मेज थी जिस पर लिखने-पढ़ने का सामान नजर आ रहा था, ऊपर वाला रोशनदान इतना चौड़ा था कि उसकी एक साईड में आधार कमरा नजर आता था। दूसरी साईड से बाकी का
आधा कमरा भी देखा जा सकता था।
इस वक्त कमरा बिल्कुल खाली था। कमरे की दीवारों पर भी काफी तस्वीरें टंगी हुई थी और मेज पर भी एक तस्वीर का फ्रेम नजर आ रहा था।
मेज पर कागज-कलम इस तरह पड़े हुए थे जैसे कोई लिखते-लिखते किसी काम से उठकर चला गया हो। करीब दस मिनट बाद राज को नीचे कहीं कदमों की आवाज सुनाई दी। एक पल बाद ही लायब्रेरी का दरवाजा बेआवाजा खुला और जमाल पाशा नाईट गाउन पहने हुए लायब्रेरी में दाखिल हुआ और आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ मेज के करीब कुर्सी पर आकर बैठ गया।
थोड़ी देर तक वो दोनों कोहनियां मेज पर टिकाए सामने रखी फ्रेम की तस्वीर की घूरता रहा। फिर उसने फ्रेम उठाकर तस्वीर को चूमा और फिर बड़ी सावधानी से फ्रेम वापिस मेज पर रख दिया, लेकिन तस्वीर शायद मेज पर अपने बैक स्टेण्ड के सहारे टिकी नहीं थी। क्योंकि उसके हाथ हटाते ही तस्वीर सीधी होकर मेज पर गिर पड़ी। जमाल पाशा ने फौरत ही तस्वीर को उठाकर फिर सीधा कर दिया।
लेकिन इतनी देर में राज की निगाह उस तस्वीर पर पड़ चुकी थी। और अगर फासला ज्यादा होने की वजह से उसकी निगाहों ने धोखा नहीं खाया था तो वह तस्वीर जूही की ही थी।
शायद राज इस बक्त अपनी नजर की कमजोरी मान लेता, अगर एक दिन पहले ही उसने सतीश के पास बैठी जूही को जमाल पाशा की तरफ एक खास इशारा करते हुए न देखा होता उस वक्त जमाल पाशा भी जूही की तरफ देखकर मुस्कराया था।
इससे राज की समझ में दो बातें आईं। पहली यह कि यह
तो जमाल पाशा जूही से मोहब्बत करता था और जूही चूंकि रंगीन मिजाज, उड़ती तितली थी, इसलिए किसी एक मर्द से उसकी तसल्ली नहीं हो सकती थी। हो सकता है कुछ दिन उसने जमाल पाशा के साथ भी इश्क के पेंच लड़ाए हों, लेकिन बाद में किसी और मर्द की तरफ आकर्षित हो गई हो ओर अब सतीश में दिचस्पी ले रही हो।
हो सकता है उस दिन की उनकी इशारेबाजी सिर्फ संयोग से मिल जाने की वजह से हो या फिर दूसरी सूरत यह हो सकती थी कि जूही सिर्फ जमाल पाशा से ही मोहब्बत करती हो ओर उसकी तमाम साजिशों में भी शामिल हो। इस वक्त वो किसी प्लान के तहत की जमाल और शिंगूरा के कहने पर ही वो सतीश को फांस रही हो।
अगर जूही और सतीश के सम्बंधों की वजह यह दूसरी बात थी तो स्थिति वाकई गम्भीर थी। राज ने सोचा, इसका मतलब है कि उन्होंने हमोर लिए कोई नई और अनोखी तरकीब सोचाी
क्योंकि राज जानता था कि उन तीनों में से सतीश ही ऐसा मोहरा था कि कभ भी आसानी से फरेब दिया जा सकता था। इसलिए राज को उसी की तरफ से ज्यादा चिंता थी। राज को यकीन था कि उसे अगर उस खेल में मात होती है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी सीधे-सादे सतीश पर ही होगी।
जूही के बारे में सारे ख्यालों में से यह आखिरी ख्याल ही राज को सही लगा था। जरूर वो जमाल पाशा की किसी साजिश के तहत ही सतीश की फांस रही थी।
वो अभी इसी सोच-विचार में गुम था कि अचान किसी कार के इंजन की आवाज से चौंक उठा। उसने जरा सा सिर उठा कर सड़क क तरफ देखा तो ऐ कार इसी कोठी की तरफ आते देखी।
- Sexi Rebel
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