Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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"रुक बेटा आज तुझे सब सिखाती हू अच्छे से.", उसको नीचे लिटा वो उसकी कमर पर झुक गई. अर्जुन को करेंट सा लगा जब ताईजी ने उसके लंड के सुपाडे को चूम कर मूह मे भर लिया. उसने ऐसा बस संदीप के घर उस किताब मे देखा था.

"कितना मोटा है रे तेरा. अंदर ही नहीं जा रहा." मूह से निकाल कर वो पूरे लंड को जीभ से चाटने लगी. बीच बीच मे उसको थूक से गीला भी कर रही थी.
"चल बेटा मैं नीचे लेट ती हू तू मेरी टाँगों के बीच आ." अर्जुन ने वैसा ही किया. "देख जब मैं कहूं तो आगे को धक्का दियो. और हा रुकने को कहूं तो रुक जइओ. तेरे ताऊ जी का इस से 5 उंगल छोटा है और मोटाई तो आधी होगी." उनको पता था की आज चूत का फटना तय है लेकिन वो तयार थी.

अपने हाथ से उन्होने उसका गीला लॉडा अपनी चूत के मूह पर रखा. थोड़ा घिसने के बाद खुद ही छेद पर दबाया. "देख मुझे दर्द होगा. लेकिन आधा डालने तक रुकना नही."और अपनी ब्रा मूह मे दबा ली. "हाँ" की आवाज़ सुनते ही अर्जुन ने अपनी कमर को एक प्रचंड धक्का दिया और उसका लंड सुपाडे सहित 3 इंच अंदर. चूत इतनी कस गई थी के सुपाडा हल्का छिल गया था. माधुरी दीदी को तो चोदते समय दोनो के अंग लोशन से चिकने थे. और यहा सिर्फ़ लंड पे थोड़ा सा थूक लगा था. ललिता जी की चीख किसी तरह ब्रा मे ही दबी रह गई. अर्जुन ने बिना समय गवाए एक और झटका दे दिया. 2 इंच लंड और अंदर चला गया. लेकिन अब ललिता जी अपना सर पटक रही थी. उनके पति का लंड इस जगह तक ही गया था लेकिन अर्जुन के लंड ने इस तंग गली को हाइवे बना दिया था. वो ताईजी के उपर झुक कर उनके होंठ पीने लगा. साथ ही साथ उनके बूब्स दबाने लगा. निपल को कस कर खींचने से चूत का दर्द कम होने लगा क्योंकि अब निपल भी दर्द करने लगे थे. थोड़ी देर मे उनकी साँस दुरुस्त हुई तो ब्रा को निकाल दिया मूह से. "तेरा लंड सच मे घोड़े का है रे. फाड़ ही डाली तूने तो मेरी, अब इसमे तेरे ताऊ जी का तो पता भी नही चलेगा. चल अब अपनी कमर हिला, लेकिनआराम से."

इतना तो अर्जुन को पता ही था. शुरू मे वो हल्के हल्के और छोटे धक्के दे रहा था. चूत की खाल खिच रही थी हर धक्के के साथ.

"हा बेटा ऐसे ही. अब अच्छा लग रहा है. दर्द के साथ ये मज़ा. आहह... मेरे लाल ऐसे ही करता रह."

"ताईजी ये क्या मज़ा दिला दिया आपने. मुझ से रुका नही जा रहा." इतना बोलकर अर्जुन ने आधे लंड से ही तेज धक्के देने शुरू कर दिए.

अब बंद कमरे मे ललिता जी की आवाज़ गूँज रही थी. "हाए राम. थोड़ा धीरे कर बेटा.. ऐसे तो पूरी फट जाएगीइिईई.. आ माआ...... मार दिया रे.. हा बेटा कर
लगा ऐसे ही धक्के." अब उनकी भी ताल मिलने लगी थी अर्जुन के साथ. झटके खाते हुए ही उनके हाथ तेल की शीशी लग गई. "बेटा रुक. ये ले और अपना लंड थोड़ा सा अंदर रख कर बाकी हिस्से पर तेल लगा ले." उन्होने वो शीशी अर्जुन को पकड़ा दी. और यही ग़लती हो गई उनसे.

तेल अच्छे से लगते ही अर्जुन ने एक करारा झटका दे मारा और लंड चूत को किसी कपड़े की तरह फाड़ता हुआ अंदर जा धसा.

"ऊई मा रे.. मर गई मैं कमीने कुत्ते.. फाड़ डाली तूने तो." उनकी आँखों से आँसू निकल पड़े और चूत ठंडी पड गई दर्द की वजह से. लेकिन कसावट की वजह से लंड अंदर और फूलने लगा

अर्जुन ने अब ताईजी की परवाह ना करते हुए धक्के लगाने शुरू कर दिए. हर धक्के के साथ वो उनके बूब्स को नोच रहा था और होंठ काट रहा था.

लंड जड़ तक अंदर जा रहा था और उसके अंडकोष ताईजी की गान्ड से लग रहे थे. "आ कितनी गरम है आपकी अंदर से. मेरा लंड जैसे जल रहा है

ताईजी ." ताईजी की चूत ज़्यादा ही फूली हुई थी. ऐसी गद्देदार चूत का मज़ा सबसे ज़्यादा था. इतनी तो माधुरी दीदी की भी नही थी.

"बेटा अब फाड़ तो दी है बस जान ना निकाल दियो. हाए राम ... ग़लती हो गई.. आ थोड़ा धीरे से कर बेटा... तेरी ताई की जान निकल रही है."

लेकिन अर्जुन तो सुपाडे तक लंड खींचता और फिर पूरा ठोक देता. जब ताईजी को मज़ा आने ही लगा था कि वो रुक गया.

"अर्रे क्या हुआ बेटा?"

"ताईजी रुक कर करते है ना. ऐसे तो पीठ दर्द करने लगी."

"बेटा तू एक बार लंड निकाल बाहर." जैसे ही लंड बाहर आया ताईजी को लगा जैसे अंदर से जान भी निकल गई हो. वो जल्दी से घोड़ी की तरह हो गई अपनी बड़ी गान्ड बाहर निकाल कर बिस्तर के किनारे और अर्जुन को पीछे खड़े होने को कहा ज़मीन पर. "अब यहा से लंड ज़रा निशाने पे लगा बेटा
ऐसे तेरी पीठ दर्द नही करेगी." उसने वैसा ही किया. यहा से तो लंड और भी कासके अंदर जा लगा. एक ही झटके मे अर्जुन का लंड पूरा अंदर
अब कमरे मे बस ताईजी की सिसकारिया और उनकी गान्ड पर पड़ते धक्को से निकलती पट्ट पट्ट की आवाज़ गूँज रही थी. अर्जुन के लिए ये अब तक की
सबसे मस्त चुदाई थी. कभी वो उनकी मोट्ती गान्ड को दबाता तो कभी लटकते ढूढ़ पकड़ के खींचता. "आ बेटा मैं तो गई रे... " इतने मे
ताईजी का सर बेड से टिक गया. वो एक के बाद एक 5-6 बार लगातार झड़ी थी. इतने सालो से सूखी पड़ी उनकी चूत मे आज बाढ़ आ चुकी थी.

मज़े से दोहरी होती वो बेहोश सी हो गई. और इस सबमे उनकी गान्ड उपर उठ गई थी. अर्जुन फिर से चोदने लगा उनकी गान्ड को उपर उठा कर. लंड अब इतना अंदर तक जा रहा था जितना कभी नही गया था. 5 मिनिट बाद ताईजी फिर से सिसकने लगी.. "बस कर रे बेटा. अब तो चूत भी दुखने
लगी है. भगवान बचा ले इसके हबशी लंड से... एक करारा झटका मार के वो ताईजी की गान्ड से चिपक कर झड़ने लगा. उसके मूह से हाँफने
की आवाज़ निकल रही थी. "हाँ... "और इतनी पिचकारियाया छोड़ी उसके लंड ने की चूत भर गई और उठी गान्ड से भी उसका पानी बाहर निकलने लगा.

"धम्म" की आवाज़ से वो बिस्तर पर लुढ़क गया और ताईजी भी. रात के 1 बज चुके थे. उनकी चुदाई मालिश के बाद पूरे एक घंटे चली थी.

ललिता जी का शरीर भी साथ छोड़ गया तो वो भी नंगी ही सो गई बस सोने से पहले उन्होने अर्जुन को बिस्तर पर सही से खींच लिया और अपने सीने से चिपका पसर गई.
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


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उन्माद के बाद जिग्यासा


गला सूखने की वजह से नींद टूट गई लेकिन अपनी छाती पे एक हाथ महसूस हुआ तो थोड़ी देर अर्जुन ध्यान से समझने की कोशिश करने लगा.

"रात मैं ताईजी के साथ था और फिर वो सब हुआ. आ मज़े से शायद मैं गिर ही गया था." सब याद कर वो आराम से ताईजी का हाथ बिस्तर पर रख उठ खड़ा हुआ. आराम से चिटकनी खोली, वापिस दरवाजा ढाला बाहर से और रसोईघर मे फ्रिज की ओर चल दिया. अभी भी अंधेरा था और आँगन मे अच्छी ठंडक थी, ताजी हवा की वजह से. पानी निकाल कर वही बाहर मे खड़े होकर पीया और बॉटल मज़े पर रख कर वापिस अंदर
आ कर ज़ीरो का बल्ब जलाया. 4 बजने मे अभी 10 मिनिट बाकी थे और घर पे सबसे पहले उठने वाले रामेश्वर जी भी 4:30 के बाद ही उठते थे.

अब कमरे मे इतनी रोशनी थी के सब दिख रहा था. वापिस बिस्तर पर आया तो अब ताईजी को ध्यान से देखने लगा. थोड़ा गोलाई लिया हुआ चेहरा,
भरे हुए गाल, मोटे होंठ, गोरी और मांसल गर्दन. कुल मिलकर उनका चेहरा इस उमर मे भी आकर्षक था. नज़र गर्दन से नीचे गई जहाँ वो उल्टी लेटी थी और एक बाजू अभी वही थी जहाँ कुछ देर पहले अर्जुन सोया हुआ था. हल्के चौड़े कंधे, मुलायम पीठ के नीचे पहाड़ जैसे उठे हुए कूल्हे, जो घर का काम करने की वजह से अभी तक अच्छे आकार में थे, कही कोई ढीलापन ना था. उनके नीचे चिकनी और आपस मे जुड़ी जांघे
उनके इस शरीर को और कमौत्तेजक बना रही थी. गोरी गोल पिंडलिया और छोटे खूबसूरत पाव. तकरीबन 5 फीट से कुछ उपर लंबाई होगी. उनको देखते देखते वो साथ मे लेट गया. बाह के नीचे से उनका बाया बड़ा चुचा बाहर निकला हुआ था और उसका निपल बिस्तर की तरफ छुपा हुआ था.

"वाह कितने मुलायम है ये. और अब तो नरम है, रात की तरह कठोर नही लग रहे." धीरे से उसने अपना हाथ लगभग आधे चूचे पर फिराया.

फिर अपना बाया हाथ नीचे लेजा कर बिस्तर पर टीके भाग को हथेली मे ले लिया. ललिता जी गहरी नींद मे थी और अर्जुन अब उनके चूचे को अच्छे से अपने हाथ लेकर मसल रहा था. वो बड़ा सा नरम माँस का गोला अर्जुन को वापिस वही ले जा रहा था जहाँ रात को वो बेहोश हुआ था. हल्के हल्के मसलने से अब उनका बड़ा सा भूरा निपल फूल कर सख़्त होने लगा और ताईजी ने मस्ती मे एक अंगड़ाई ली. अब वो सीधी बिस्तर पर लेटी थी और उनके विशाल पहाड़ो पर लगे मटर के दाने जीतने निपल छत की तरफ देख रहे थे. अर्जुन ने झुक कर दाएँ वाला जो उसकी तरफ हो गया था उसको अपने मूह मे हल्के से लिया और दूसरे वाले को अपनी मुट्ठी मे भरने की कोशिश करने लगा. ये इतना बड़ा था की उसका हाथ जितना उपर था, चूचा दोनो तरफ से उतना बाहर था. शरीर पर सिर्फ़ पाजामा था जो उसने बूब से हटाकर नीचे सरका दिया. अब वो बिना बोझ दिए ताईजी के उपर आ गया लेकिन दंड पेलने जैसी स्थिति मे. सिर्फ़ उसके पंजे बिस्तर पर थे और कोहनिया दोनो उभारों की बाहर की तरफ. ताईजी की जांघे आपस मे सटी थी.

"ऐसा स्वाद मूह मे आ रहा है जैसे कोई रस सा निकल रहा हो इनमे से." दोनो उभारों को प्यार से पीते हुए उसने मन मे ये बात कही. अपनी एक टाँग ताईजी की दोनो टाँगों के बीच ले जाकर उसने उनको जाँघो को अलग करने की कोशिश कर ने लगा.
सफल भी हो गया वो, अब ताईजी की टांगे थोड़ी दूर हो गई थी. चूचे पीना छोड़ वो घुटनो पर बैठ कर उनकी चूत को देखने लगा जो रात के अंधेरे मे दिखी नही थी.

"ताईजी की चूत कितनी फूली हुई है.", दोनो मोटे होंठ और उनके बीच लाल रंग का छेद उसको सही से दिख रहा था. रात की चुदाई से बाहर तक वो लाल दिख रही थी और शायद इतना बड़ा लंड खाने से ही डबल रोटी जैसे फूल गई थी. अपने हाथ से खड़ा लंड उसने चूत के चीरे पर फिराया तो नींद मे ही ताईजी के चेहरे पर मज़े के भाव आ गये. 4-5 बार आराम से सुपाडा उस लकीर मे फिराने के बाद अर्जुन ने नीचे की और झुकते हुए अपने होंठ अपनी ताईजी के होंठो पर रख दिए, थोड़े मजबूती से.

इधर ताई जी शायद ऐसा ही मजेदार सपना देख रही थी, उन्होने भी अब नींद मे ही अर्जुन के मूह मे जीभ घुमानी शुरू कर दी. अगले ही पल उनकी आँखें खुल गई और साँस रुकती सी महसूस हुई. उनकी आँखो के
सामने अर्जुन का चेहरा था और चूत में उसका खूँटा गढ़ चुका था. उनकी तरफ आराम से देखते हुए अर्जुन ने फिर एक धक्का दिया और जितना लंडा अंदर घुस चुका था उसी से ताईजी को चोदने लगा. ललिता जी को पहले तो कुछ समझ नही आया सिवाए फैल चुकी चूत और उसमे हुए दर्द से

फिर उन्होने अपनी आँखे बंद कर ली और अर्जुन के आधे लंड से ही चुदने के मज़े लेने लगी. अंदर से चूत पूरी गीली थी और लंड सख्ती से फिसल रहा था. एक बार फिर ज़ोर से उनके पपीते पकड़ कर ऐसा धक्का लगाया की जड़ तक लंड अंदर.

इतने बड़े लंड से ललिता जी पहली बार सिर्फ़ 4 घंटे पहले ही चुदी थी और उनकी चूत अभी उभर भी नही पाई थी की अर्जुन के लंड ने फिर से उसको फाड़ना शुरू कर दिया था.

"कितना बेदर्द है रे तू. तुझे मुझ पर ज़रा तरस नही आया जो सोती हुई मुझे ऐसे रंडी की तरह चोदने लगा.", कराहती हुई ताईजी ने पहली बार इतने गंदे लफ़जो मे बात करी थी. वो गाँव से थी तो उन्हे इन सबका पता ज़रूर था लेकिन इस परिवार मे कभी उन्होने किसी से ऐसी बात तो दूर उँची आवाज़ भी नही सुनी थी.
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"कितना बेदर्द है रे तू. तुझे मुझ पर ज़रा तरस नही आया जो सोती हुई मुझे ऐसे रंडी की तरह चोदने लगा.", कराहती हुई ताईजी ने पहली बार इतने गंदे लफ़जो मे बात करी थी. वो गाँव से थी तो उन्हे इन सबका पता ज़रूर था लेकिन इस परिवार मे कभी उन्होने किसी से ऐसी बात तो दूर उँची आवाज़ भी नही सुनी थी.

"वो ताईजी जब मैं उठा तो आप सोई हुई इतनी प्यारी लग रही थी. रात को आपका जिस्म देख नही पाया था और अब देखने के बाद रुका नही गया."

उसकी ऐसी बात सुनकर ललिता जी को एक बार तो अपने भतीजे पर बड़ा प्यार आया और खुद की तारीफ सुनकर खुशी भी हुई, लेकिन फिर वापिस हल्के गुस्से और दर्द से कहा, "तो मतलब मुझे नंगी देखकर कही भी छोड़ देगा?"

"क्या करू ताईजी अब आपने ऐसा मज़ा दिया है तो फिर रुका ही नहीं गया." अर्जुन अब उन्हे धीरे से चोद था वो भी ज़्यादा लंड अंदर बाहर किए.

"चल फिर जल्दी से अपना काम ख़तम कर." ताई जी ने बात ख़तम करते ही तेज सिसकी ली और इधर अर्जुन वापिस बुरी तरह से उनकी चुदाई मे लग गया.

"हाए ताईजी ये आपने क्या सीखा दिया. इतना मज़ा है ने इसमे के कभी ज़िंदगी मे ऐसा मज़ा नही मिला. और ये आपके दूध हिलते हुए कितने सुंदर लगतेहै."

"हाए.. मेरी जान निकाल रहा है और बेशर्मी से ऐसी बातें भी कर रहा है. बातें मत कर, ये मज़ा अब वापिस कभी नही मिलेगा." इतराती और सिसकती ललिता जी ने अपने हाथ अर्जुन के चुतड़ों पर रखे और उपर हो अपनी छातियाँ उसके बदन से चिपका चुदाई का मजा लेने लगी.

"अब तो मैं जब भी आप अकेली मिलोगि यही करूँगा."

गान्ड तक उसके अखरोट टकरा रहे थे और चूत किसी नदी की तरह बाहर तक पानी निकाल रही थी. दोनो की सिसकारियो से कमरा गूँज रहा था.

ऐसे ही 20-22 मिनिट तक चोदने के बाद अर्जुन ने उनकी दोनो टाँगे उठा कर लंड जड़ तक अंदर भर दिया. उसके सुपाडे से गुज़रता हुआ गरम लावा सीधा ललिताजी की बच्चेदानी मे उतरने लगा.

"हाए मा. कितना भरेगा मेरी चूत को? इस उमर मे मा बन गई तो ज़िंदगी खराब हो जाएगी." अपने उपर झड़कर गिरे हुए अपने भतीजे के सर पर प्यार से हाथ फेरते हुए उन्होने चिंता जताई.

"क्या एक ही बार मे आप मा बन जाओगी?"

"हो सकता है बन भी जाऊ. लेकिन अभी मेरा मासिक 4 दिन पहले ख़तम हुआ है तो उम्मीद कम है. पर याद रखना आगे से अंदर नही डालेगा."

"ठीक है मेरी प्यारी ताईजी . और अब पता चल गया के आगे से आप मुझे रोकॉगी नही." उनके होंठ चूमने के बाद आँख मारकर वो उठ के पाजामा पहन बाहर भाग गया.

"बदमाश. पूरी चूत को फाड़ गया. लेकिन इतना मज़ा भी तो दे गया." दर्द मे मुस्कुराती हुई ललिता जी ने अपनी फटी हुई चूत से भतीजे का गाढ़ा वीर्य बहता देखा तो चेहरे पर चमक आ गई. इतना दर्द तो पहली चुदाई मे भी नही आया था लेकिन मज़ा भी पहली चुदाई से ज़्यादा आज 27 साल बाद मिला था. अपनी ब्रा से छूट सॉफ कर फिर लेट गई वो बिस्तर पर और अर्जुन तयार होकर पार्क की तरफ चल दिया. 5 बज चुके थे.

माधुरी दीदी उठी और बाथरूम से फ्री होकर अपने और अलका के लिए कॉफी बनाने लगी, जिसका आज इम्तिहान था. जितनी बार वो पेशाब करती उनका दिल उतना ही चुदाई के लिए तड़प्ता. रसोईघर मे भी उन्होने अपनी चूत को पाजामे पर से सहलाया और सीसीया गई. "जल्दी कुछ करना पड़ेगा नही तो मरने जैसी हालत हो जाएगी. अब सहा नही जाता रे अर्जुन एक बार फिर से दीदी को जी भर के प्यार कर दे."मन मे सोचती हुई भी वो अर्जुन को पुकार रही थी.

"दीदी बन गई कॉफी?" अलक की आवाज़ आई जो अंदर आ गई थी.

"हा तू अंदर चल मैं लेके आ गई बस 2 मिनिट मे." वापिस मुड़कर अलका को देखा जो एक गुलाबी टीशर्ट और पाजामे मे थी. उसके उभार भी बड़ी दीदी पर ही जा रहे थे. लेकिन लंबाई ज़्यादा और पतली कमर और तीखे नैन नक्श उसको बिल्कुल अलग दिखाते थे. थोड़ी देर बाद दोनो अपने कमरे मे बैठी कॉफी पी रही थी और रेखा जी आँगन की सफाई कर रही थी. रेखा जी सुबह की चाय अपनी जेठानी ललिता जी के साथ पीती थी लेकिन वो अभी तक कमरे से बाहर नही आई थी.

"दीदी, आप उठ गई तो मैं चाय बनाऊ?" वही से उन्होने ललिता जी को आवाज़ दी जो अभी वैसे ही लेटी थी.

"हा रेखा मैं आती हू अभी बाहर." जैसे तैसे हिम्मत कर वो उठी और शरीर पर कपड़े पहन जैसे ही नीचे पैर रखा, उनकी चूत से लेकर पेट तक दर्द और मज़े की लहर दौड़ गई. "ये मरवा देगा मुझे. ग़लती कर दी जो इस घोड़े के नीचे आई. लेकिन हाए कितना मजबूत है और इतना लंबा टिकता है. अभी ही हाल है तो 2-3 साल बाद तो मेरा पेट फाड़ देगा." धीरे से बाहर निकलती हुई वो सोचती रही. हर कदम पर उनकी सिसकी निकल रही थी. टांगे थोड़ी फैल गई थी. कमोड पर बैठी तो चूत से निकलते पेशाब ने तो घी मे आग का काम कर दिया.

उनकी सिसकी इतनी तेज निकली की रेखा ने भी सुन ली थी. "दीदी, क्या हुआ? अभी भी दर्द है क्या?" चिंतित रेखा ने वही से आवाज़ लगाई.

"नही रे. वो तो बस थोड़ा झटका आ गया था कमर मे बैठ ते हुए." तेरे बेटे ने भुर्ता बना दिया इस चूत का क्या ये बताऊ तुझे. ऐसा लग रहा है जैसे चूत के अंदर तक छिल दिया हो."

हल्के हल्के कदमो से चलती वो कुर्सी पर बैठ गई. चाय भी बन गई थी तो रेखा 2 कप लेकर वही उनके पास आ बैठ गई.

"रेखा एक दर्द की गोली तो ला ज़रा. चाय के साथ ले लेती हू नही तो सारा दिन खराब हो जाएगा."

दवाई लेकर कुछ देर वही बैठी रही वो. इतने मे रेखा जी नहा कर कपड़े बदलने वापिस कमरे मे चली गई थी. किसी को पास ना देख कर वो उठकर अपने कमरे की तरफ चलने लगी और उनकी खराब किस्मत.

"मा तुम ऐसे क्यो चल रही हो.? दर्द तो कमर मे था लेकिन आपकी टांगे फैली हुई है?" अलका की बात सुनकर ललिता जी के पैर वही रुक गये.

"अर्रे बेटा वो तेरी मम्मी का पैर आज बाथरूम मे मूड गया था. मैने दवा दे दी है कुछ देर मे वापिस ठीक हो जाएगा." कमरे से बाहर आती रेखा जी ने उसको पूरी बात बताई. अलका फिर बाथरूम मे घुस गई. वो संतुष्ट नही थी चाची के जवाब से.
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पार्क के 2 चक्कर लगाने के बाद आज अर्जुन उन बुजुर्ग मंडली से थोड़ी दूर वही घास पर बैठ गया. 5 लोग हास्य-योग कर रहे थे और एक अकेले शीर्षासन की मुद्रा मे सर घास पे और पाव उपर कर खड़े थे. उनकी नज़र भी इस नये मेहमान पर रुक गई थी. अपना आसन 30 सेकेंड करने के बाद वो खड़े होकर वही अर्जुन के पास आ गये.

"दूसरी बार देख रहा हूँ तुम्हे यहा. हम जैसे बूढ़े लोगो को देख कर क्या मिलेगा. जवान हो तो वैसा ही करो जो जवान लोग करते है. आगे वाले हिस्से मे कई हम उम्र लड़किया दिखेंगी तुम्हे." वो जैसे अर्जुन को टटोल रहे थे. तकरीबन 6'2" कद और चेहरे पे लाली चाय थी. बाल बर्फ से सफेद लेकिन शरीर किसी 40 साल के तंदुरुस्त व्यक्ति सा था.

"वो ऐसा है ना अंकल की मैने एक बुक पढ़ी थी प्राणायाम और योग का महत्व, उसमे जैसा कुछ लिखा था आप लोग भी वैसा ही कुछ कर रहे थे.

बस यही देख मैं आप लोगो की तरफ चला आया. मुझे माफ़ कीजिए अगर मैने यहा आकर आप लोगो को डिस्टर्ब किया हो." वो विस्तार से आने का कारण बता उठने लगा तो उस बुजुर्ग ने उसके कंधे को थपका कर वापिस नीचे बैठने का इशारा किया और खुद भी उसके सामने बैठ गया.

"समझदार और काफ़ी जिग्यासा वाले नौजवान हो. सेहत भी अच्छी है तुम्हारी. देख कर अच्छा लगा के तुम सीखने वाले बच्चे हो. क्या नाम है?"

"जी अर्जुन शर्मा. अब कक्षा ग्यारह मे जाउन्गा. और क्या आप मुझे कुछ बताएँगे इस सब के बारे मे? मैं किसी को ज़्यादा जानता नही हू?"

परिचय देकर अपनी जिग्यासा उसने इन व्यक्ति को कही.

"बेटा मेरा नाम आचार्य परमोद शास्त्री है और मैं 3 साल पहले इस शहर मे आया हू. तकरीबन 46 साल से मैं योगा, हत-योग और प्राणायाम सीख और सिखाता आ रहा हू. तुम्हे अभी ये सब विस्तार से नही जान ना चाहिए. लेकिन मुझे लगता है के शायद कुछ तुम्हारे काम का थोड़ा बहुत मैं तुम्हे बता सकता हू."

"अच्छी बात है, सर. मैं भी अभी कुछ हद तक ही सीखना चाहता हू क्योंकि अगले महीने से स्कूल भी शुरू हो जाएँगे और टाइम भी कम मिलेगा.

परमोद जी उसकी ऐसी भोली बात सुनकर हंस दिए क्योंकि उन्हो ने बात जैसे कही थी अर्जुन को वैसी समझ नही आई थी. कम उमर का होने का शायद ये ही नुकसान था.

"बेटा ध्यान से सुनो. योग मतलब जोड़ (+). जो ये शरीर है हमारे चलने से चलता है, लेटने से लेट जाता है लेकिन ये सब तो हरेक इंसान कर लेता है. परंतु जो योग है ये एक शरीर और उसकी आत्मा या कह सकते हो दिमाग़ का तालमेल है. दोनो के जुड़ने से तुम कुछ अलग हाँसिल कर सकते हो. अच्छा यहा देखो फिर शायद समझ जाओगे." जब उन्हे लगा के ये बातें इस नन्हे दिमाग़ पर ज़्यादा ज़ोर ना डाल दे उन्होने उसको बताने से दिखाना उचित समझा. अपना एक हाथ बैठे हुए उन्होने पाँव की चौकड़ी से अंदर करते हुए ज़मीन पर रखा और पूरा शरीर धीरे धीरे ज़मीन से उपर सिर्फ़ उस एक हाथ पर संतुलित हो गया. इतने पर ही वो नही रुके और फिर दोनो टाँगों को ज़मीन के समानांतर हवा मे कर दिया.

"वाह. ये सब आपने कैसे किया. " अर्जुन अचंभित सा उनकी इस मुद्रा को देखता और कभी उनके शांत चेहरे को.

"ये दिमाग़ है ना हम इसके काबू मे रहते है. जब ये कहता है भूख लग रही है तो हम खा लेते है, जब सोने को बोलता है तो सो जाते है. और यही हम को रोकता है इस शरीर के सारे राज जान ने से. एक बार इसको काबू कर लिया बेटा तो तुम फिर सबकुछ हाँसिल कर सकते हो." फिर कुछ रुक कर कहा, "अभी इतना कुछ नही करने की ज़रूरत है तुम्हे. सिर्फ़ अपने खाली समय मे कोशिश करो ध्यान लगाने की. अपनी आँखें बंद कर आसपास की सब आवाज़, शोर को सुनो. धीरे धीरे वही ध्यान लगाओ. जब ऐसा लगे की सब शांत हो गया है तो कुछ देर उस मुद्रा मे रहने की कोशिश करना. सब सीखने मे समय लगेगा. और यहा बैठ कर ताजी हवा मे ज़्यादा से ज़्यादा ऑक्सिजन अपने फेफ्डो मे भरना भी एक अच्छे शरीर के लिए बहुत सही कसरत है."
अब हम कल मिलेंगे, नमस्कार."

"नमस्कार और थॅंक यू वेरी मच."
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(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
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