Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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"हाए. क्या कर रहा है. तू आराम से नही लेटा रह सकता. मुझे करने दे तू कुछ मत कर." इतना बोलकर वो अर्जुन को बिस्तर पर ही टिकाए थी और खुद खड़ी हो गई.

लंड अब अर्जुन के पेट की तरफ आ चुका था. "बाप रे ये इतना बड़ा कैसे हो सकता है." ये बात एक बार फिर ऋतु दीदी के मूह से निकली. लाल टमाटर सर सुपाडा और बाँस सी मोटाई जैसा लंड और इधर छोटी सी दीदी की चूत. कोई मेल ही नहीं था दोनो का. फिर दीदी लंड की लंबाई पर चूत रख कर वापिस बैठ गई और अपनी चूत की लकीर को उसपर घिसने लगी. अर्जुन तो मज़े से आँखें बंद किए पड़ा था.

"भाई तेरे हाथ यहा रख." दोनो हाथो मे अपने सख़्त बूब्स पकड़ा कर ऋतु ने सामने खिड़की तरफ देखा तो अलका भी देख कर मज़े ले रही थी. उसको दिखाते हुए ऋतु दीदी ने अपनी टीशर्ट गले तक उठा ली. उनके दूध से गोरे और बिल्कुल किसी बड़ी बॉल जैसे सख़्त चूचे अब अर्जुन के सामने थे. वो अपनी जीभ से उनके लाल चर्री जैसे निपल चुभलने लगा. और बारी बारी होंठो से खेंचने लगा.

चूत बुरी तरह बह रही थी और लंड को चमका रही थी. "भाई जल्दी कुछ कर ना प्लीज़. मॅर जाउन्गी इस आग से. बस अंदर नही करना. बाकी जो मर्ज़ी कर."

दीदी को यू तड़प्ता देख अर्जुन ने दीदी को अपनी जगह लिटाया और फिर उसने ढेर सारा तेल चूत के बाहर गिरा कर लंड से घिसना शुरू कर दिया. जोरदार घिसाई के बावजूद चूत के होंठो से परे उसका मूह नही दिख रहा था. बस एक लाल छोटी सी बिंदी चूत के बीच मे चिपकी लग रही थी.

"हा ऐसे ही रगड़ भाई. मज़ा आ रहा है. और इन्हे भी मसल दोनो हाथो से." वो अर्जुन का जोश बढ़ाती जा रही थी और अर्जुन तेल से सने लौडे को चिकनी चूत के होंठो के बीच घिसे जा रहा था. गोरे चूचे मे अब इतनी सख्ती से मसले जाने से लाल पड गये थे. फिर अर्जुन ने एकदम से सख्ती कम कर दी और नीचे झूक बिल्कुल प्यार से खड़े निपल चाटने लगा. ऐसे ही उसने दोनो मोटे चुचे जीभ से चाट कर गीले कर दिए. ये वाला एहसास बड़ा रोमांचक था. बूब्स ठंडे हो रहे थे और चूत ज़्यादा पानी निकाल रही थी. लंड अब ज्या दबाव लेकिन मध्यम गति से चल रहा था.

सुपाडा इस दबाव से फूल चुका था और जब वो चूत के छेद से टकराता तो दोनो ही मज़े से सिसकारिया भर उठ ते. यहा ऋतु दीदी की कमर हवा मे उठी उधर अर्जुन के लंड ने पूरी तेज़ी से पिचकारी उड़ाई जो सीधा दीदी के ठोड़ी और होंठ पर जा लगी. अगली 3 पिचकारिया बूब्स और पेट पर बाकी बचा हुआ माल चूत के होंठो पर गिरा. दीदी की चूत देख कर ऐसा लगा जैसे उन्होने पेशाब कर दिया हो. शायद ये उनका पहला भरपूर झड़ना हुआ था. वही साइड मे अर्जुन पलट कर साँस ठीक करने लगा और बड़बड़ाया, "सिर्फ़ उतना जितना ज़रूरी हो. संतुलन बना रहेगा."

कुछ देर मे वो चुका था और यहा ऋतु दीदी खुद की हालत देख शर्मा गई. थोड़ा वीर्य जीभ से लग कर मूह मे भी चला गया था. लेकिन उन्होने सिर्फ़ अपने आप को सॉफ किया और कपड़े पहन दरवाजा ढाल कर बाहर निकल गई जहाँ अब अलका खड़ी इंतजार कर रही थी. बाहर अंधेरा हो चला था.
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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बेहतर होने की शुरुआत


"तो बेटा आज तुम्हारी मुलाकात हो गई पंडितजी के पोते से. कैसा लड़का है?", कर्नल पुरी यहा अपने कमरे मे थे और उनके सामने ही कुर्सी पर प्रीति बैठी हुई थी. कर्नल पुरी एक रोबदार व्यक्ति थे. अच्छी शकल सूरत और कद काठी के धनी. उनके व्यक्तित्व को घनी सफेद मुच्छे और भी बेहतर बनाती थी. इनका एक बेटा और एक बेटी थे. बेटा अमेरिका रहता था अपनी बीवी संग लेकिन उनकी पौती यही उनके साथ रहकर पढ़ाई के साथ साथ अपने दादा जी का भी ख़याल रखती थी. ये परिवार थोड़ा समय से आगे था या ये कहे की शिक्षित भी था और पश्चिमी सभ्यता का थोड़ा असर भी दिखाई देता था इनके रहने और जीने के तौर तरीके पर. प्रीति की मा एक खूबसूरत पढ़ी लिखी ग्रीक महिला थी और नाम था रोमेला (रोमा शॉर्ट). एम बी ए प्रोग्राम के लिए जब प्रीति के पिताजी लंडन थे तब वही दोनो की मुलाकात हुई फिर प्यार और कर्नल पुरी की रज़ामंदी मिलने से दोनो ने शादी कर ली थी. समय से इनके 2 बच्चे हुए प्रीति और उस से 4 साल छोटा बेटा जोवल, जो अपने मा-बाप के साथ ही रहता था.

कॉल साहब की बेटी उनकी जान थी जिसका विवाह उन्होने एक आर्मी के कॅप्टन से करवाया था जो अब मेजर के ओहदे पर देहरादून पे पोस्टेड था. बेटी तकरीबन 36-37 साल की थी जिसका नाम रेणुका था और पति मेजर. कौशल, इनके एक ही बेटा है जो देहरादून आर्मी स्कूल मे पढ़ता है. महीने मे एक बार रेणुका अपने पिता से मिलने ज़रूर आती थी. वापिस कहानी की तरफ आते है.

"अच्छा लड़का है दादाजी लेकिन ऐसा लगता है शायद वो यहा का नही है. मेरा मतलब है की शायद उसको लाइफ के बारे मे उतना नही पता जितना इस उमर के लड़को को पता है." प्रीति अपने दादा कर्नल पुरी को विस्की की घूँट भरते देख बोली.

"हा बेटा. मेरा दोस्त जो मुझसे कुछ छुपाता नही है. उसने ही ये बात कही थी मुझसे की पहली बार वो ऐसी स्टेडियम जैसी एक अलग दुनिया मे जा रहा है जहाँ हर तरह के लोग मिलते है लेकिन अर्जुन जो 9 साल सिर्फ़ बाय्स हॉस्टिल, वो भी किसी आर्मी के जैसी अनुशाशण वाला, मे पढ़ा है. उसको तो अपने शहर, लोगो, अच्छाई बुराई का भी नही पता." गंभीरता से उन्होने सब बताया अपनी होन हार लाडली को.

"9 साल वो भी बचपन और इस यूत के?", आश्चर्य से प्रीति ने बात दोहराई

"हा बेटा. पंडित जी बड़े नेक इंसान है लेकिन जैसे ही मैं तुहारे लिए परेशान होता हू वैसे ही वो भी अपने इस बच्चे के लिए रहते है. तुम खुद ही देखो की तुम खुद कितनी अलग हो यहा के लोगो से. लेकिन तुम फिर भी बाहर से अलग हो वो बेचारा अंदर से भी अलग है. बड़ी मुश्किल से बचा तो वो जब पैदा हुआ था. और फिर अर्जुन के बाप ने उसको घर से दूर भेज दिया वो भी इतने समय के लिए. देखा जाए तो जितना उसको बताया जाता है वो उतना ही समझता है. अब तुम्हे थोड़ा साथ देना है मेरी बच्ची इस लड़के को दुनिया मे खड़ा करने मे. पंडित जी मेरे लिए भाई से बढ़कर है और उनकी ही वजह से आज तुम्हारा ये दादा जिंदा भी है और इसकी वर्दी बेदाग भी." एक बड़ा घूँट लेकर खाली गिलास वही टेबल पर रख वो रात के खाने के लिए डाइनिंग टेबल की तरफ चल दिए और पीछे रह गई सोच मे डूबी हुई प्रीति.

कॉल साहब के घर का सारा बाहर का काम नौकर मुकेश करता था और घर का खाना, सफाई और देख भाल उसकी पत्नी पार्वती करती थी. दोनो के लिए उपर एक कमरा बनवा दिया थे कर्नल पुरी ने.

इनका घर भी अंदर से काफ़ी आलीशान था. 5 कमरे और एक बड़े ड्रॉयिंग रूम वाले इस घर मे सुख सुविधा की हर चीज़ थी. महाँगा टेलीविजन, बड़े सोफे, झूमर, बेहतरीन कालीन, प्रीति के कमरे मे एक ख़ास बेड लगा था और एक कंप्यूटर भी, जो उस समय सिर्फ़ किसी अमीर घर मे ही होता था. घर के पिछले हिस्से को उपर से कवर किया हुआ था और यहा एक 15जे10 का स्विम्मिंग पूल बना हुआ था. कुलमिलाकर घर अपने आप मे खूबसूरती की मिसाल था.

वही रामेश्वर जी के घर रात के इस पहर सब सोने की तैयारी कर रहे थे लेकिन अर्जुन अभी बिस्तर से उठा था. अब उसका सर हल्का और शरीर उर्जा से भरपूर था. समय देख कर वो नीचे आया रसोईघर मे जहाँ उसकी मा रेखा जी फ्रिज मे समान रख रही थी सफाई करते हुए और कोमल दीदी मधुरी दीदी की बर्तन सॉफ करने मे मदद कर रही थी.

"कितना सोता है बेटा तू? तुझे कोमल 2 बार उठाने गई थी लेकिन तू सोया रहा. अब भूख लगी होगी?" रेखा जी ने बेटे को एक बार सीने से लगाया फिर खाने के लिए पूछा.
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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"नही मा. पेट भरा है मैं तो बस पानी पीने आया था.." इतना बोलकर सीधा बॉटल से पानी पीने लगा तो रेखा जी ने फिर भी ज़बरदस्ती उसको एक मुट्ठी मेवे के साथ बड़ा गिलास दूध का पीला ही दिया. फिर बिना किसी की तरफ देखे वो पानी की बॉटल हाथ मे लिए तीसरी मंज़िल पर चला गया.

"अब थोड़ा आचार्य जी की कही बात को देखा जाए." ये सोचकर वो खुले आसमान के नीचे वही छत पर बैठ गया. आँखे बंद कर के सिर्फ़ अपने कान लगा लिए वातावरण पर. ठंडी हवा और एक दम शांत समा था. कही कुछ ज़्यादा आवाज़ नही थी. अभी कुछ देर ही हुई थी उसको ऐसे बैठे हुए की उसको बहुत ही धीमी रेडियो पर गाने की आवाज़ आई. सो कर उठने के बाद से ही उसका मन तो बिल्कुल शांत था. उसमे कोई सवाल, परेशानी और विचार नही थे तो उसको भी ध्यान लगाने मे कोई दिक्कत ना हुई. थोड़ी देर बाद उसको बहुत धीमे कदमो की आहट भी हुई. रेडियो की आवाज़ से ध्यान अब इधर आ लगा था. आवाज़ धीरे धीरे तेज हो रही थी फिर उसको लगा के कोई उपर आ चुका है लेकिन अपनी आँखें नही खोली. उपर जो कोई भी आया था वो भी चुपचाप खड़ा था उसकी पीठ के पीछे. उखड़ी हुई उस इंसान की साँसों तक को इस शांत वातावरण मे वो सुन पा रहा था.

"भाई तू यहा अकेला बैठा क्या कर रहा है." ये माधुरी दीदी थी.

"कुछ नही दीदी बस थोड़ा खुद पर फोकस कर रहा था. कुछ दिन से ज़्यादा ही भागदौड़ हो रही है तो बस यहा बैठ कर इस ठंडी हवा से खुद को राहत दे रहा था. आप नही सोई अबी तक.?",

अर्जुन के सवाल से माधुरी दीदी की चेतना वापिस आई.
"अर्रे मैं तो इसलिए उपर आई थी के आज हम दोनो यहा सोएंगे." उनसे ये तो कहते नही बना के चूत कुलबुला रही 2 दिन से लंड लेने के लिए और भाई तू इसको छोड़ कर शांत कर दे. उन्होने बस यही कह दिया.

"मुझे अभी कहा नींद आएगी दीदी. और फिर आप तो सारा दिन काम करती हो, आप आराम कीजिए. मैं आपके लिए अभी बिस्तर लगा देता हू. " इतनी देर से अर्जुन ने एक बार भी दीदी की तरफ मूह नही किया था. लेकिन उसकी बात सुनकर माधुरी ने बस इतना ही कहा, "चल मैं भी तेरे साथ चलती हू."

दोनो नीचे आए, जहाँ आज भी संजीव भैया नही थे और दोनो कमरे खाली थे.

"कहा सोना चाहेंगी दीदी? उपर छत पर यहा भैया के कमरे मे.?"

"उपर ही चलते है भाई. यहा तो मुझे भी अच्छा नही लगता." उनकी बात सुनकर इतनी देर मे पहली बार अर्जुन मुस्कुराया था. 2 गद्दे अपने कंधो पर उठा वो बाहर निकला और दीदी भी हाथ मे चद्दर और तकिये लिए उसके पीछे चल दी कमरे बंद कर के.

"दीदी, लो चादर बिछा दो अब." दोनो गद्दे झाड़ कर बिछा वो सामने खड़ी माधुरी दीदी को बोला. मिलकर उन्होने एक डबल चादर बिछाई.

"मैं बस अभी आती हू एक बार नीचे बाहर वाले गेट को ताला लगा कर और बाथरूम होकर." वो खड़े होते हुए बोली.

उनके नीचे जाने के बाद अर्जुन छत के किनारे टहलने लगा. उनके घर के साथ एक तरफ तो अग्गरवाल जी, जो की आढ़त का काम करते थे, उनका घर था. दूसरी साइड जहाँ अभी वो देख रहा था प्लॉट खाली था जिसके साथ ही था 5 नंबर बांग्ला.

"प्रीति का घर कितनी पास मे है और एक मैं हू जिसको अपने पड़ोस का ही कुछ खास नही पता." उसने यही सोचा और उसको थोड़ा बुरा भी लगा के एक साल मे सिर्फ़ उसको वही पता है जो घर वालो ने बोला. स्कूल, दीदी का कॉलेज, भैया की दिखाई मार्केट, पड़ोस के 2-3 परिवार और अब स्टेडियम. सारा समय बस घर और स्कूल मे ही निकल गया.

"कोई बात नही अब धीरे धीरे सब देखूँगा. ये शहर इतना बुरा तो है नही."

कॉल साहब की छत लाइट जली तो उसने एक लड़की उसको वहाँ से जाती दिखी. और उपर बने कमरे मे 2 लोग चले गये.

"चल आजा अब आराम कर ले." माधुरी दीदी उपर आ चुकी थी. अर्जुन ने उनको देखा तो अब वो एक मॅक्सी पहने थी उन्होने जो नहाकर बदली थी. मुस्कुराता हुआ वो उनकी तरफ बिस्तर पर आ गया. बिस्तर पर सीधा लेटा था तो दीदी उसकी तरफ़ हो गई. एक हाथ उन्होने अर्जुन के उपर रख दिया. दोनो के सर के नीचे तकिये थे.

"दीदी कुछ पूछना था आपसे?" अर्जुन को भी पता था कि दीदी अगर उसके पास है तो शायद वो दोनो फिर वही करे जो 2 रात पहले हुआ था.

"हा तो पूछ ना भाई." उसका पेट और छाती सहलाती दीदी ने कहा. उनके बीच मे अभी भी थोड़ी दूरी थी. चिपके नही थे.

"दीदी जो भी हमने उस रात किया था, आप उस सब के बारे मे कितना जानती हो?"

अर्जुन के इतने सरलता से और बिना ही कोई नाम लिए पूछने से माधुरी दीदी भी मुस्कुरा उठी. कितना भोला था उनका छोटा भाई. शरीर से बढ़ गया था लेकिन मन से तो अभी वो कच्चा ही था.
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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"भाई जो हमने किया था उसको आम भाषा मे सेक्स कहते है और देहाती भाषा मे चुदाई. एक लड़का और एक लड़की की जिस्मानी मिलन मे बहुत कुछ होता है. और इसके लिए भगवान ने ये दो अलग जिस्म बनाए. कुछ अलग अंग दिए है दोनो को जिनक अहम किरदार होता है एक पूर्ण मिलन मे. एक लड़का और लड़की इस मिलन से ही प्यार करते है और अपनी दुनिया बनाते है."

"थोड़ा सा विस्तार से समझायँगी? कर तो लिया था एक बार लेकिन ऐसा लगता है जैसे कुछ सीखना और पता होना बाकी है."

"हा भाई. देख जो ये तेरा लंड जिसको तू लिंग कहता था ये वो बीज भरता है लड़की की चूत के अंदर जिस से वो एक बच्चे को जनम दे सके. चूत के अंदर ही बच्चेदानी या गरभ होता है जहाँ इसका कुछ हिस्सा जाता है और फिर लड़की और लड़के के पानी से एक नया जीवन वहाँ जनम लेता है. ये जो लड़की के सीने पर नरम मास के गोले होते है जिनको बूब्स कहते है इनमे ही उस बच्चे के लिए दूध बनता है उसके जनम लेने के समय. तभी तो
ये ऐसे होते है. जो ये निपल अभी छोटे और पतले है, बच्चे के जनम लेने के बाद थोड़े बड़े हो जाते है और उसके पीने से मोटे भी. लेकिन बच्चा तब तक नही ठहरता जबतक अंदर लड़की का पानी भी लड़के के पानी से ना मिले. सिर्फ़ लड़का अपना काम कर ले और इसमे लड़की को मज़ा ना आए तो वो सिर्फ़ वासना पूरी करना होता है. दोनो अगर प्यार करते है, एक दूसरे के दिल को समझकर सेक्स करते है और एक दूसरे के अंगो को मज़ा देकर मिलन करते है तभी वो पूर्ण सहवास या लव मेकिंग कहलाता है. किसी भी लड़की का शरीर तभी तयार होता है जब उसके ये बूब्स दबाए जाए,होंठ को चूमा जाए और चूत को चुदाई से पहले अच्छे से तयार किया जाए. कुछ लोग तो एक दूसरे के सभी अंगो को मूह मे लेकर, चूस्कर भी चुदाई के लिए तयार करते है."

दीदी की इतनी बात सुनकर अर्जुन को अपने दोस्त संदीप के घर देखी किताब याद आ गई जिसमे लड़की लंड चूस रही थी, गान्ड मे ले रही थी और काला आदमी उसकी चूत को चूस रहा था. और फिर ताईजी ने भी उसका लंड मूह मे लेके गीला किया था.

इन सब बातों के दौरान दोनो के शरीर भी गरम होने लगे थे. अब माधुरी दीदी अर्जुन के बाजू पर सर रख उस से चिपक चुकी थी. उनकी एक टाँग उसके लंड के उभार के पास मूडी हुई उपर थी और उनके मोटे चुचे उसके सीने पर.

"क्या बच्चा एक बार मे पैदा हो जाता है? अगर ऐसा है तो अब तुम क्या करोगी?" ये बात मे चिंता भी थी

"होने को हो जाता है भाई. लेकिन उस रात तूने जब अंदर किया था तो मेरे मासिक ख़तम हुए 5 दिन हो चुके थे. ये टाइम पर बच्चा गर्भ मे नही रुकता. और इस से बचने के कई उपाए भी है. लड़के अपने लंड पर निरोध चढ़ा कर कर सकते है, सखलित होने के वक्त वीर्य बाहर निकाल सकते है और लड़की अगर बच्चा नही चाहती तो वो रोज एक गर्भनिरोधक गोली खा सकती है." गोली के बारे मे उसने हिन्दी की एक पत्रिका मे पढ़ा था और उनकी शादी शुदा सहेलियाँ भी ये लेती थी जो उन्होने ही इनको बताया था.

अर्जुन उनकी सब बातें सुनता उनके दूध भी सहला रहा था. वो बहुत कुछ जान चुका था आज चुदाई के बारे मे. फिर कुछ याद आया और उसने अपने हाथ मॅक्सी के उपर से ही उनके चुतड़ों पर रख दिए. नीचे और कोई कपड़ा नही था, उनकी गान्ड अंदर से बिल्कुल नंगी थी. "और दीदी यहा." उसने बस गान्ड की दरार मे एक हाथ की उंगलिया फेरते हुए पूछा.

"भाई वहाँ नही. वो अन्नॅचुरल सेक्स होता है. गान्ड चुदाई बहुत से लोग करते है और कुछ लड़किया ये करवाती भी है. लेकिन गान्ड का च्छेद अलग होता है. छोटा और टाइट जबकि चूत किसी रब्बर की तरह होती है जो खुद पानी छोड़ती है तो गीली होने पर लंड झेल लेती है और वापिस वैसे ही हो जाती है. गान्ड मारना अलग होता है. यहा कोई चिकनाई नही होती तो लोग तेल या क्रीम प्रयोग करते है. ये उन्हे पूरी चुदाई मे करना पड़ता है नही तो दोनो के अंग खराब या ज़ख्मी हो सकते है. और इसमे सिर्फ़ मर्द को ही ज़्यादा मज़ा आता है.

चूत तो एक बार ही खून बहाती है जब सबसे पहली बार उसकी झिल्ली फट ती है. लेकिन गान्ड का छल्ला लंड के हिसाब से कई बार फट सकता है और खून भी निकलता है. वहाँ जख्म होता है लेकिन चूत में ऐसा कुछ नही. "

बातें होती रही और अर्जुन के हाथ दीदी की मॅक्सी को उपर करते गये . उनकी गान्ड अब बेपर्दा थी और अर्जुन करवट ले उनकी तरफ देखता गान्ड को सहला रहा था. माधुरी दीदी ने भी अब उसको गले लगा लिया चूत जो नंगी पड़ी थी उसके होंठो पर भी अर्जुन नीचे वाला हाथ फेरने लगा. दोनो आराम से होंठ चूम रहे थे और दीदी पाजामे मे हाथ डाल कर छोटे भाई के बड़े लंड को पकड़ कर उपर नीचे कर रही थी. सीधी हो कर उन्होने अपनी मॅक्सी उतार दी और उनकी तरफ देख अर्जुन भी नंगा हो कर वापिस बेड पे लेट गया. दीदी उसकी कमर से थोड़ा नीचे अपनी टाँगे चौड़ी कर बैठ गई. उपर झुकते हुए वो एक हाथ से अर्जुन का लंड सहला रही थी और दूसरा उसकी गर्दन के पीछे ले जाकर उसको थोड़ा उपर कर रही थी. अर्जुन भी उपर हुआ. दीदी अब एक तरह से उसकी गोद मे बैठी थी. अपने दोनो हाथो मे उनके बड़े पपीते पकड़ कर दबाते हुए वो उनको चूमने लगा.

"हाँ भाई ऐसे ही कर." गर्दन जीभ से चाट ते हुए वो नीचे मूह ले जा रहा था. फिर एक चूचे को हाथ मे लेकर अपने मूढ़ की तरफ खींच पीने लगा. दीदी सिसकिया लेती अपनी कमर उसके लंड के साथ रगड़ रही थी..

"आआह भाई अच्छा लग रहा है. पी ले मेरे ये दूध, निचोड़ डाल इनको देख ज़रा कितने भारी हुए जा रही है. " खुद अपना चुचा भाई के मूह मे तेलते हुए उसकी गान्ड हिल रही थी.
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