Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post Reply
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

ड्रॉयिंग रूम काफ़ी अच्छे से सज़ा हुआ था. सोफे पर बैठा तो पार्वती ट्रे मे पानी का गिलास लेकर खड़ी हो गई.

"जी शुक्रिया. मैं सीधा घर से आया हू. यही 2 घर छोड़कर मेरा घर है."

पार्वती ने एक बार अर्जुन को गोर से देखा और गिलास लेकर चली गई.

5 मिनिट बाद ही दरवाजा खुला और अपने बालो को एक रब्बर से बाँधती प्रीति बाहर निकली.

"क़यामत" अर्जुन के दिल ने सिर्फ़ इतना ही कहा.

सफेद और काली पट्टी वाला टॉप और गहरे नीले रंग की टाइट जीन्स पैंट पहन कर किसी अप्सरा सी वो अर्जुन को देख कर बोली, "तो चले जनाब अगर आप चाहें तो."

"हः. . हा चलो." अर्जुन बस उस पल मे ही खोया सा प्रीति के पीछे चल दिया. गलियारे मे आकर प्रीति एकदम से रुकी शायद कुछ भूल गई थी और पलट गई.

"तड्द" सीधा अर्जुन के सीने से टकराई, जो अभी भी खोया सा ही चल रहा था. "सॉरी. आपको लगी तो नही. वो मेरा ध्यान नही था." अर्जुन झेंप गया लेकिन प्रीति बिना कुछ बोले अंदर चली गई. अर्जुन अब शांत सा स्कूटर को स्टॅंड से उतार किक लगा था की वो एक लड़कियों वाला हॅंडबॅग अपने दाएँ कंधे पर डाल बाहर आ गई. स्कूटर पर प्रीति कुछ दूरी पर बैठी थी, दोनो हाथ उसने अपनी गोद मे रखे था. ऐसे ही चुपचाप दोनो मुख्य सड़क तक आ गये.

"आज मौन व्रत है क्या?" प्रीति ने पहली बार उसकी पीठ को छुआ था.

"नही वो कुछ देर पहले जो भी हुआ उसके लिए मैं शर्मिंदा हू. अंजाने मे सब हुआ"

"वो बात वही ख़तम हो गई थी. लेकिन आगे से टक्कर देख कर मारना. बिल्कुल पत्थर हो." फिर आगे बोली, "वैसे अच्छे लग रहे हो आज. कुछ खास है क्या."

"नही तो ऐसा तो कुछ नही है. बस मार्केट आ रहे थे तो दादाजी ने बोला के तयार होकर जाओ." अर्जुन ने संकोच से कहा. उसके मन मे कुछ चल रहा था लेकिन शायद झिझक या कुछ और था कि अभी वो ज़्यादा बोल नही पा रहा था.

"स्कूटर अच्छा चला लेते हो तो स्टेडियम साइकल से क्यो जाते हो.?" प्रीति शायद अर्जुन की इस झिझक को समझ गई थी लेकिन वो चाहती थी की दोनो बातें करे.

"दादा जी ने कहा के साइकल से जाना ठीक रहेगा. वो कसरत भी हो जाती है इसीलिए." अर्जुन ने फिर से छोटा सा जवाब दिया.

"क्या सोच रहे हो? देखो अगर तुम मुझे दोस्त या कुछ भी समझते हो तो बता सकते हो."\

"ऐसा कुछ नही है लेकिन एक बात मैं काफ़ी देर से सोच रहा हू. लेकिन लगता है के शायद वहाँ हो. बस ऐसा ही कुछ."

प्रीति ने अब अपना हाथ पीछे से उसके कंधे पर रखा. "तुम मुझसे बात कर सकते हो."

"क्या हम एक दूसरे को जानते है.?" अर्जुन का सवाल प्रीति के दिमाग़ के साथ दिल पर भी किसी सूई की तरह चुभा.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

अहसास- कुछ नये (2)

"क्या हम एक दूसरे को जानते है.?" अर्जुन का सवाल प्रीति के दिमाग़ के साथ दिल पर भी किसी सूई की तरह चुभा.

"देखा ना मैने कहा था कि ये मेरा वहाँ है. लेकिन क्या करू पता नही ऐसा लगता है के जैसे तुम्हारी आँखें मैं पहले भी बहुत बार देख चुका हू.

बहुत करीब से. लेकिन याद कुछ नही आ रहा. शायद किसी और को होंगी या फिर कोई सपना भी हो सकता है." अर्जुन अब निरंतर अपनी बात बोलता रहा.

"सॉरी वो बस ऐसे ही कह दिया. मैं तो कोई 8 साल से हॉस्टिल था. और फिर घर भी साल मे एक बार आता था. तुम भी अभी आई हो यहा तो ये मेरे वहाँ से ज़्यादा कुछ नही है." अर्जुन ये बात कह कर चुप सा हो गया और इधर दोनो मुख्य बाजार मे आ गये थे. ये काफ़ी ज़्यादा बड़ी मार्केट थी जो पास के 2-3 शहरो मे भी प्रचलित थी. हर तरह का समान यहा मिलता था. कपड़े, गहने, घर का समान, ऑफीस का समान, खाने पीने के कई रेस्तरा और होटेल भी थे. कही बड़ी दुकाने तो कही रेहडी मार्केट. अंदर स्कूटर पर जाना ठीक नही था तो अर्जुन ने प्रवेश करते ही स्कूटर को वही गाड़ी-दोपहिया के लिए बनाए एक प्लॉट पर खड़ा किया और वापिस बाहर प्रीति के पास आ गया था. प्रीति चुप थी लेकिन अब उसके चेहरे पे चिंता नही थी.

"ये दुकान ज़रा पूछ ले किसी से? थोड़ा ही टाइम है नही तो बंद हो जाएगी." अर्जुन ने फिर एक बार कोशिश की प्रीति से बात करने की. उसकी चुप्पी अर्जुन को बुरी लग रही थी.

"ठीक है."

पास मे ही एक ठेले वाले से उसने पूछा, 'भैया ये शृंगार घर किधर है.?"

"साहब ये सीधी सड़क पर चले जाओ.सामने गोल चक्कर के उस तरफ 2 मनीला दुकान है. दिख जाएगी वही से." वो आदमी जो चाट-पापडी बेच रहा था बोला.

"शुक्रिया भैया." बोलकर दोनो ठेले वाले की बताई दिशा मे चलने लगे. फुटपाथ पर चलते हुए प्रीति नीचे देखती चल रही थी और अर्जुन कभी उसको तो कभी सामने. शनिवार था तो भीड़ भी बहुत थी. हर जगह कही बाहर लोग समान बेच रहे थे और कही दुकानो पर सस्ते दाम के चार्ट चिपके थे.

गोल चक्कर को पार करते समय भी प्रीति का ध्यान नीचे ही था. अर्जुन सड़क को तेज़ी से पार करने के चक्कर मे थोड़ा आगे हुआ तो पीछे मुड़ा. एक गाय उसकी तरफ ही भागती आ रही थी. अर्जुन ने तेज़ी से प्रीति की और बढ़कर उसको अपनी तरफ खींच. और उतनी ही देर मे गाय उसकी पीठ के पीछे से निकल गई.



"मेरी बात से नाराज़ हो तो मत बात करो लेकिन सड़क पर नज़र तो रख लो. अभी कुछ हो जाता तो मैं कॉल अंकल को क्या जवाब देता?" उसने पहली बार सख्ती से किसी से बात कही थी. यहा प्रीति उसके सीने से जा लगी थी. दोनो वापिस अलग हो कर चल दिए.

इस बार अर्जुन आगे चल रहा था लेकिन उसने प्रीति का हाथ ऐसे थाम रखा था कि जैसे कोई बाप अपनी ज़िद्दी औलाद को उस दुकान से दूर ले जा रहा हो जहाँ खिलोने टाँगे हो. वो कभी अर्जुन की तरफ देखती तो कभी आसपास. किसी को उनकी परवाह नही थी और ऐसे ही वो उस दुकान पर आ गये. यहा अर्जुन ने हाथ छोड़ दिया था और शायद प्रीति को ये अच्छा नही लगा

"जी कहिए?" दुकान काफ़ी बड़ी थी लेकिन अभी वहाँ सिर्फ़ 2 ही लोग थे. एक लड़का जो अंदर समान पॅक कर रहा और एक ये अंकल जो मुख्य काउंटर पर बैठे पैसे गिन रहे थे.

"जी मुझे मल्होत्रा अंकल ने भेजा है.", इतना ही कहा था कि सामने वाले ने एक बड़ा सा बॅग अर्जुन की तरफ बढ़ते हुए कहा, "बेटा तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था. ये लो बेटा जैसा कहा था सब वैसा कर दिया है."

"जी शुक्रिया. और पैसे कितने हुए?" अर्जुन ने जब पूछा तो उन्होने बॅग पर लगी पर्ची पर निगाह डाली.
"बेटा 3500 हुए है. ये एक्सट्रा काम था. लहंगे की कीमत पहले ही मल्होत्रा जी दे चुके है."

अर्जुन ने नोटो की गद्दी से 35 नोट उनको दिए और बाकी वैसे ही वापिस रब्बर से बाँध जेब मे रख लिए. फिर प्रीति की तरफ देख शीशे के दरवाजे को खोला. दोनो बॅग लेकर बाहर आ गये.


"तुम्हे भी कुछ लेना था ना? तुम्हारे दादाजी ने बताया था." अर्जुन की बात सुनकर प्रीति ने उसकी तरफ देखा तो अर्जुन को उसकी वो आँखे अब किसी हीरे सी चमकती दिखी. शायद सूरज की रोशनी से.

"हा वो मुझे भी कुछ कपड़े लेने है. लेकिन मुझे ज़्यादा कुछ पता नही मार्केट मे की कहाँ से अच्छे कपड़े मिल सकते है."

प्रीति की बात सुनकर अर्जुन ने उसको रुकने का इशारा किया और वापिस उस दुकान मे घुस गया जिस से लहंगा लिया था. अब वहाँ वो लड़का था जो पहले अंदर की तरफ था.

"भैया यहा लड़कियो के अच्छे कपड़े कहा मिलते है. किसी ख़ास दिन के लिए?"

"भाई मिल तो यहा भी जाते लेकिन अभी दुकान बढ़ा दी है बस. लेकिन वहाँ सामने नटराज होटेल है. उसके साथ जो गली अंदर जा रही है वो सिर्फ़ लॅडीस के कपड़ो और समान की दुकानो से भरी है. हर तरह का कपड़ा वहाँ मिल जाएगा. और कुछ कमी होती है तो ज़्यादातर दुकानो मे दर्जी भी बैठे है." इतना कहकर उसने चाबियों का गुछा उठाए हुए ही अंदर से दरवाजा खोला और दोनो बाहर आ गये.

"शुक्रिया भाई." फिर से अब दोनो लोग चल पड़े. आगे अर्जुन और उस से एक कदम पीछे प्रीति. "अब ध्यान से पार करना."

अर्जुन ने ये बात कही तो प्रीति जो अब तक चुप थी बोली, "मुझे कुछ हो जाता तो क्या तुम्हे बुरा नही लगता?".

अर्जुन ने उसकी बात सुनी और फिर गली मे घुसते हुए ही बोला. "अभी तुम मेरी ज़िम्मेदारी हो और अगर तुम्हे कुछ हो जाता तो मुझे बिल्कुल भी नही पता के मैं क्या करता. क्योंकि मेरे पास इसका कोई जवाब नही होता."

"मतलब अगर मुझे चोट लग जाती तो तुम्हे फरक नही पड़ता?", प्रीति की बात सुनकर अर्जुन के पैर वही रुक गये.

"मैं खुद को माफ़ नही कर पाता. बस इतना कहूँगा." और फिर अपना पुरानी बात दोहराई, "बताओ क्या तुम मुझे जानती हो?"

"हा तुम्हे जानती हू तभी तो यहा आ गई तुम्हारे साथ. " प्रीति इतना बोलकर एक बड़ी दुकान मे चली गई जहाँ बड़े शीशे से अंदर लगी कई खूबसूरत पोशाक दिख रही थी. अर्जुन भी पीछे हो लिया. अंदर से तो ये दुकान और भी बड़ी थी. कोई 5 काउंटर थे यहा भीड़ ठीक ठाक ही थी. अर्जुन गोर से हर तरफ देखने लगा.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

"भैया वो स्टॅच्यू पर लगा ब्लॅक वाला सूट अवलेबल है.?" प्रीति शायद उस सूट को देख कर ही अंदर आई थी. था भी वो बेहद ही उम्दा कलाकारी वाला

"जी मेडम. ये रेडी टू स्टिच सूट है और काफ़ी पॉपुलर भी हो रहा है." दुकानदार ने और भी बहुत तारीफ की उस सूट की जिसमे रेशमी कपड़े पे काँच की कारीगरी की हुई थी.

"आप कितना वक़्त लेंगे इसको तैयार करवाने मे? हमें थोड़ी जल्दी है." बिना दाम पूछे ही प्रीति किसी छोटी बच्ची की तरह बार बार उसको देख रही थी.

"जी आप माप दीजिए हमारी मेडम इसको 2 घंटे मे ही तयार कर देंगी. सलवार सिर्फ़ चूड़ीदार ही तयार होगा. मैं ये पहले बता देता हूँ. पूरा सूट 4300 का लगेगा. जिसमे हमने 300 ही सिर्फ़ सिलाई के जोड़े है." दुकानदार ने एक ही बार मे अपनी बात कह दी.

प्रीति ने अर्जुन की तरफ देखा जैसे पूछ रही हो के क्या करे

"जी अंकल आप सूट तयार कीजिए. अभी 12 बजने वाले है हम 2 बजे आ कर ले जाएँगे." अर्जुन ने ही प्रीति की जगह जवाब दिया तो प्रीति नीचे देख कर मुस्कुराने लगी. अर्जुन ने पैसे देने के लिए अपना बटुआ निकाला तो प्रीति हैरान होती उसकी तरफ देखने लगी लेकिन थोड़ी फुर्ती से उसने अपने हॅंडबॅग से 500 के 9 नोट दुकानदार के सामने रख दिए. दुकानदार भी दोनो की तरफ देख मुस्कुरा दिया.

अर्जुन ने झेन्पते हुए बटुआ वापिस पिछली जेब मे रख लिया.

"पूनम ये सूट ज़रा जल्दी तैयार करना है पहले आकर यहा माप ले लो." दुकानदार ने आवाज़ लगाई तो चस्मा पहने एक औरत अंदर बने एक कमरे से बाहर निकल कर काउंटर की तरफ आई. उसके हाथ मे एक पेन्सिल और फीता था.
"आइए आपे मेरे साथ चलिए. और छोटू जो सूट इन्होने पसंद किया है उसका नया पीस अंदर भिजवा दो."

उन्होने इतना कहा तो प्रीति अंदर चली गई और एक लड़का पीछे के काउंटर से सूट निकालने लगा.

"चलो यहा से तो फारिग हो गये बस अभी एक और ड्रेस लेनी है." प्रीति ने ना जाने कैसे काउंटर पर आते ही अर्जुन की बाह थाम ली और उसको बाहर ले चल दी. अर्जुन स्तब्ध सा बाहर आ गया.

"वहाँ तुम पैसे क्यो दे रहे थे?" उसने अब मुस्कुरा कर पूछा तो अर्जुन से जवाब देते ना बना. बस एक शर्मीली सी मुस्कान के साथ सर झुका लिया.

"दादा जी ने मुझे पहले ही काफ़ी पैसे देकर भेजा है. और तुम तो मुझे कुछ समझते नही फिर तुम्हारे पैसे तो मैं वैसे भी नही लेने वाली थी." थोड़ा प्यार से किया तंज़ काम कर गया.

"क्यो? मेरे पैसे नकली है क्या? और तुम्हारे पास पैसे नही भी होते तो भी मैं बिना कहे देने वाला था. मुझे भी सूट पसंद आया था और जिस तरह तुम उसको देख रही थी, मेरे दिल ने कहा के मैं खुद ही तुम्हे दिलवा दूँ." फिर से गड़बड़ कर दी थी अर्जुन ने . यही तो कमी थी उसकी की शब्दो को नापतोल नही रख पाता था.

"चलो मुझे कल के लिए भी एक ड्रेस लेनी है.", और वो उसको लेकर सभी दुकानो को बाहर से ही देखने लगी. कही एक पल रुकती फिर चल देती.

अर्जुन भी घर से बाहर आज पहली बार इस तरह घूम रहा था. उसको भी अच्छा लग रहा था ऐसे प्रीति के साथ घूमना.

"यहा चलो मेरे साथ." अर्जुन ने देखा तो ये एक बहुत ही शानदार और बड़ी सी दुकान थी. पहले वाली से कही तीन गुणी बड़ी और बहुत तड़क भड़क वाली. दोनो अंदर गये तो दुकान की पूरी छत पर बहुत सी लाइट लगी थी. हर तरफ एक से बढ़कर एक पोशाक टाँगे थे या आदमकद महिला रूपी प्लास्टिक की मूरतो पर पहनाए गये थे.

अर्जुन के मूह से बस इतना ही निकला. "वाह." कही शादी के जोड़े, तो कही साड़ियाँ और सूट. खूबसूरत लहंगे और लंबी स्कर्ट भी वहाँ टन्गी थी.

"सही जगह है ना ये? अब तुम बताओ मुझे क्या लेना चाहिए?" प्रीति अर्जुन से कह रही थी और अर्जुन एक पोशाक को घूर रहा था.

"वो हमारे काम की नही है. उसको दुल्हन पहनती है." प्रीति की बात सुनकर अर्जुन अपनी बगले झाँकने लगा.

एक मूरत पर लाल चूड़े, घूँगत, चोली और लहंगा पहनाया हुआ था. बेहद ही खूबसूरत थी वो. लेकिन अर्जुन को ये सब नही पता था. "अच्छा ये देखो ये कैसी ड्रेस है.?"

प्रीति ने उसका ध्यान एक पश्चिमी पोशाक की तरफ किया. ये एक बहुरंगी फुलो वाली शर्ट और घुटनो से थोड़ी नीचे तक की लाल स्कर्ट थी.

"मुझे ये ज़रा भी पसंद नही आई. एक बार इसको देखो." उसने काउंटर के पीछे टाँगे हुए एक हल्के गुलाबी लहंगा-चोली की तरफ इशारा किया. जिसपे सुनेहरी और चाँदी के रंग की कारीगरी की गई थी. ये कोई ज़्यादा तड़क भड़क वाला लहंगा नही था जैसा आँटोर पर दिखाई देता है.

उस काउंटर पर खड़े नवयुवक ने अर्जुन की बात सुनकर कहा, "हमारे पास इसमे 2 और भी रंग है. इधर आइए मैं दिखाता हूँ आप." दोनो उस काउंटर की तरफ चल दिए जहाँ वो युवक काउंटर के नीचे से अलग लहंगे निकाल रहा था. "ये देखिए भाई. ये रंग भी थोड़ा अलग है और आँखों मे चुभता नही." उसने एक महरूण रंग का लहंगा दिखाया जो बिल्कुल वैसा ही था जैसा दीवार पर लगा था. और फिर दूसरा दिखाया जो हल्का नारंगी और लाल था.

अर्जुन ने दोनो को मना कर दिया. "एक बार वही उतार दीजिए." अर्जुन ने इशारा किया तो युवक ने एक गोल लकड़ी की मदद से लहंगा नीचे उतार दिया.

"इसको लगा कर देखो ज़रा खुद पर." अर्जुन के बोलते ही प्रीति ने हॅंडबॅग काउंटर पर रखा और लहंगे को दोनो हाथो मे पकड़ कमर के सामने लगाया.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

काउंटर वाले लड़के ने उसके साथ की तारो से बुनी हुई गुलाबी किनारों की चुन्नी अर्जुन की और की तो अर्जुन ने नासमझी से वो प्रीति के सर पर कर दी.

"हाहाहा. इसको गले मे लेते है यहा सर पर नही. लगता है अभी भी तुम्हारा ध्यान उस दुल्हन की ड्रेस मे है."

उनकी हरकत देख कर आसपास 3-4 लोग और वो काउंटर पे खड़ा लड़का भी मुस्कुरा दिया.

"मैं कोई लड़की तो नही. ऐसे ही हो गया." अर्जुन ने सफाई दी फिर काउंटर की तरफ सर घुमा के दाम पूछा. "ये सेट कितने का है भाई? और क्या इसमे भी दर्जी की ज़रूरत पड़ेगी?"

"ज़रूरत तो रहेगी भाई. चोली को माप के हिसाब से तैयार करना और लहंगे की लंबाई भी पहन ने वाले के हिसाब से करनी पड़ती है. इसमे 2 दिन का टाइम लगेगा. और जैसे की अभी ये ऑफ टाइम है तो इसकी कीमत भी 50% कम है. अभी ये 6000/- का लगेगा तयार करने के बाद."

"क्या हमें ये कल तक मिल सकता है.?" प्रीति पर्स से पैसे निकालती हुई बोली और ग्राहक को तयार देख कर युवक बोला. "आप एक मिनिट रुकिये." इतना बोलकर वो मुख्य काउंटर की तरफ गया और इधर एक लड़का ट्रे मे 2 गिलास पानी लेकर उन दोनो के पास आया. पानी पीने के बाद दोनो ने उसका धन्यवाद किया.

"जी मेडम, ये कल 3 बजे तक आपको मिल जाएगा. आप अड्वान्स काउंटर पर जमा करवा दीजिए और अगर कोई और ये लेने आए तो उनको ये पर्ची ज़रूर साथ देकर भेजना."

पूरे पैसे जमा करवा कर एक रसीद लेकर दोनो चल दिए वापिस जिस तरफ से आए थे.
"मुझे अभी कुछ और भी लेना है. तुमने वो ड्रेस दिलवाई तो अब मेरे पास कोई चूड़ियाँ या पायल तो है नही."

अर्जुन प्रीति की बात सुनकर मुस्कुरा उठा. "उसके बाद तो कुछ नही लेना.?" उसने प्रीति को थोड़ा मज़ाक मे ये बात कही तो प्रीति सोचने के अंदाज मे बोली, "हा सही कहा. मुझे अब कुछ और भी लेना पड़ेगा."

दोनो चल रहे थे तो एक दुकान के बाहर सौंदर्य प्रसाधन और चूड़ियों का बोर्ड लगा था. इस बड़ी दुकान मे अच्छी ख़ासी भीड़ थी और ज़्यादातर कॉलेज जाने वाली लड़किया अपनी मा के साथ थी और कुछ सहेलियों के.

एक काउंटर पर अर्जुन ने कहा, "चूड़ियाँ और पायल दिखा दीजिए."

वो लड़की तकरीबन 22-23 साल की थी. उसने दोनो को देखा और कहा, "आपको किस
तरह की चूड़ियाँ चाहिए?"

"एक तो ब्लॅक सूट के साथ मैचिंग की और एक गुलाबी लहंगे के साथ." प्रीति ने जवाब दिया. उनके साथ वाले काउंटर पर भी एक लड़की खाली खड़ी थी
तो उसको देख कर अर्जुन ने अपनी जेब से मल्होत्रा अंकल की दी हुई पर्ची निकाल कर उसकी तरफ बढ़ा दी. "ये समान यहा मिल जाएगा?"

लड़की ने सरसरी निगाह डाली और हा मे गर्दन हिला कर वो पर्ची ले ली. "आप इतने चूड़ियाँ पसंद कीजिए मैं ये समान निकालती हूँ."

अर्जुन थोड़ा निश्चिंत हो कर वापिस पहले वाली लड़की की और देखने लगा. प्रीति अलग अलग तरह की चूड़ियाँ देख रही थी की अर्जुन बीच मे बोल पड़ा, "क्या आप काली और सफेद चूड़ियों का सेट दिखा सकती है.?"

हंसकर उस लड़की ने हा कहा और फुर्ती से 12-12 चूड़ियों के 2 सेट तयार कर उनके सामने रख दिए. 2 सफेद 2 काली के हिसाब से वो बने थे.

"कमाल है यार. तुमने तो प्राब्लम एक चुटकी मे सॉल्व कर दी." प्रीति प्रशंसा के भाव से बोली.

"वो सूट भी कुछ ऐसा ही था तो मुझे लगा कि ये सही रहेंगी."

"ठीक है आप इन्हे पॅक कर दीजिए. और कोई गोल्डन गुलाबी चूड़ियों का सेट हो तो वो भी दिखा दीजिए." इतना बोलकर वो आसपास देखने लगी.

"लीजिए ये थोड़ी भारी है और लहंगे के साथ ठीक रहेंगी. दोनो हाथो मे 6 ठीक रहेंगी." लड़की अपने काम मे दक्ष थी. अर्जुन को भी वो पसंद आई.

"एक जोड़ी पायल भी दिखा दीजिए." बिना ही प्रीति की तरफ देखे उसने अगला हुकुम दिया जैसे. लड़की काउंटर से निकल कर अंदर चली गई.

अब प्रीति ने कहा, "मैने तो वैसे ही बोला था पायल के लिए."

"ड्रेस पूरी ही अच्छी लगती है. कुछ भी कम हो जाए तो वो अधूरापन एक कमी का अहसास करा ही देता है. ग़लत तो नही कहा." अर्जुन अपनी बात पर अडिग था.

"देखिए मेडम, ये सिंगल लाइन की छोटे घूंघुरू वाली पायल है. एक जो थोड़ी चौड़ी पट्टी की है और नीचे घुँगरू है. और एक ये वाली है जिसके नीचे चैन का डिज़ाइन है." जैसे ही उस लड़की ने वो सब पायल शीशे के काउंटर पर रखे अर्जुन ने छोटी छोटी चैन लगी वो पायल उठा ली. उसपर बिल्कुल ही महीन मोरपंख से बने थी जिनके नीचे जंजीर जुड़ी थी और पूरी गोलाई तक ये डिज़ाइन था.

"ये वाली पॅक कर दीजिए." उसने वो पायल लड़की की तरफ बढ़ा दी.

प्रीति बस प्यार से अर्जुन की तरफ देख रही थी. "लगता नही की किस्मत ऐसे मेहरबान होती होगी हर किसी पर." बस उसने मन मे यही सोचा.

इधर भी सारा समान पॅक कर दिया था दूसरी लड़की ने और सब जोड़कर एक पर्ची दरवाजे वाले काउंटर की तरफ बढ़ा दी समान के साथ.

"आपका सब समान का हुआ 3750/-" जो आंटी वहाँ बैठी थी उन्होने अर्जुन से कहा तो उसने उनसे 2 पर्ची बनाने को कहा.

"देखिए ये समान की अलग पर्ची बना दीजिए." उसने मल्होत्रा अंकल वाली पर्ची उनके सामने कर दी.

उसकी बात सुनकर प्रीति को थोड़ी हैरानी हुई और उसका हाथ फिर पर्स की तरफ चला गया जिसको अर्जुन ने देख लिया था. उसने अपना हाथ वही प्रीति के हाथ पर रख कर हल्के से दबा दिया. मतलब नही.

"ये सब हुआ 2800/-" अर्जुन ने वो पर्ची ले ली और उनको मल्होत्रा अंकल के पैसो से 2800 दिए और फिर अपने बटुए से 950/-. सारा समान खुद उठा लिया और
प्रीति से कहा, "मेडम चले."

वो भी हँसती हुई बाहर आ गई.

"अब अगर कहो तो मैं भी कुछ खरीद लू?" अर्जुन ने विनती ही कर दी थी अब प्रीति से.

"पहले कुछ खिलाओ फिर हम तुम्हारे लिए कुछ लेंगे." प्रीति की बात सुनकर वो सर पर हाथ रख कर चल दिया. सामने ही नटराज रेस्टा/होटल देख दोनो वहाँ चल दिए.

प्रीति ने मेनू उठा के एक पल के लिए देख फिर बोली, "मेरे लिए एक मसाला डोसा और लेमनेड. और तुम्हे क्या खाना है"
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

(^%$^-1rs((7)
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Post Reply