Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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rajsharma
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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ललिता जी एक खुली सी मॅक्सी पहन कर बाथरूम मे घुसी. अगले ही पल वो उस एक मात्र कपड़े से बाहर शावर के नीचे खड़ी अपने तपते शरीर पर ठंडा पानी गिरा रही थी. इस उमर मे भी उनके बड़े गुब्बारे ज़्यादा नही झुके थे, उपर से उनकी कहर ढाती बड़ी गान्ड जो उनके हिलने से और भी थिरक रही थी. इतने खूबसूरत शरीर वाली औरत के मूह पर उदासी घिरी थी. वो संस्कारी महिला थी लेकिन फिर भी हर शरीर की एक ज़रूरत और खुराक होती है. अगर वो ना मिले तो उसका हाल बुरा ही होता है. और यही आज उनके साथ एक बार फिर हुआ था. राजकुमार जी को 5 दिन के लिए बाहर जाना था तो उन्होने जाने से पहले अपनी गदराई बीवी को गरम करने के बाद अधूरा ही छोड़ दिया था. वो तो 4 बजे निकल गये दूसरे शहर और जाने से पहले अपनी बीवी की नींद खराब कर गये. पिछले 4-5 साल से उनका यही हाल था. राजकुमार जी खुद 2-3 मिनिट मे ख़तम हो जाते थे लेकिन ललिता जी तड़पति रह जाती थी. इस बात का असर उनके स्वाभाव पर काफ़ी गहरा हुआ था. वो ज़्यादा नही बोलती थी और ज़्यादातर गुमसूँम अकेली रहती थी अपने कमरे. सिर्फ़ घर के काम करते समय ही वो खुश रहने का मुखौटा ओढ़ लेती थी. आज भी हाल कुछ ऐसा ही था. पानी के नीचे खड़े होकर भी जब शरीर की गर्मी कम ना हुई तो उन्होने अपने हाथ से अपनी चूत रगड़नी शुरू कर दी और दूसरे हाथ से खुद ही अपने बूब दबा रही थी. उपर पानी बह रहा था नीचे पानी निकालने ने की कोशिश हो रही थी.
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अर्जुन की आँख आज फिर टाइम से पहले ही खुल गई थी. उसने देखा उसका लंड दीदी की चूत से चिपका खड़ा हुआ था लेकिन वो नज़रअंदाज कर खड़ा हुआ. अपनी दीदी को हिला कर कपड़े पहन ने के लिए बोल नीचे आ गया. कोमल जैसे तैसे कपड़े पहन वापिस सो गई. इधर जूते पहन कर अर्जुन पिछली सीडीया पकड़ रसोईघर मे पानी पीने लगा और उधर ललिता जी को उंगली से भी आराम ना मिला तो वो बदहवास सी नंगी ही अपने कमरे की तरफ चल दी. यहा वो बाहर निकली उधर अर्जुन, और दोनो ही अब एक दूसरे के सामने खड़े थे. ललिता जी तो पत्थर हो गई थी और उनके इस भरे हुए शरीर को देख अर्जुन उसमे ही डूब गया था. ज़्यादा रोशनी नही थी लेकिन इतनी थी की दोनो को एक दूसरे का भरपूर नज़ारा हो रहा था. किसी कमरे मे अलार्म बजने से दोनो होश मे आए तो अर्जुन अपने रास्ते चल दिया और ललिता जी अपने. दोनो मे कोई संवाद नही हुआ था. लेकिन ललिता जी ने अपने भतीजे की आँखों की चमक अच्छे से पढ़ ली थी.
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6 बजे तक वही हुआ जो बाकी दिन रहता था लेकिन आज अर्जुन को ढूंढती ऋतु दीदी बगीचे मे आ खड़ी हुई थी. यहा दादा पोता दोनो मिलकर पेड़- पौधो को पानी दे रहे थे.

"चलो माली अब अपनी मेंमसाब् को स्कूटी सिखाने का टाइम हो गया है. नही तो दादा जी से कह कर पगार कटवा दूँगी.",
दादाजी ने ऋतु की बात सुन अर्जुन को बाहर किया.
"चलिए मेंमसाब्", और अर्जुन स्कूटी को किकस्टार्ट कर गेट से बाहर लाकर ऋतु को पीछे बिठाया.

"दीदी हम अगले सेक्टर चलते है वहाँ बड़ा ग्राउंड है और पूरा खाली."

"ठीक है चलो फिर. और कोई शॉर्टकट नही, अच्छे से सिखाना."

"वादा करता हू आपको एक्सपर्ट बना कर ही दम लूँगा." अर्जुन ने बात तो सीधी की थी लेकिन ऋतु जानबूझ कर उसका ग़लत मतलब सोचने लगी.

"हा अब तो एक्सपर्ट बन ही जाउन्गी अगर तू प्यार से सिखाएगा."

ऐसे ही दोनो उस ग्राउंड मे पहुच गये. ये जगह पूरी वीरान थी और ज़मीन भी समतल सॉफ थी.

"दीदी देखो ये रेस है. अपने हाथ से इसको पीछे करोगी तो स्कूटी आगे चलने लगेगी. लेकिन ध्यान रहे की इसको ज़्यादा नही खींचना. बिल्कुल आराम से. इसके आगे जो ये रोड है ये अगले टाइयर के ब्रेक है. सिर्फ़ एमर्जेन्सी मे ही दबाना. ये लेफ्ट साइड वाला पिछला ब्रेक है.

स्कूटी को इस से रोकना बेहतर है. जब भी ब्रेक लगाना हो तो रेस नही देना. आज मैं आपको बॅलेन्स बनाना सिखाऊंगा और कुछ नही."

ऋतु सब ध्यान से देख सुन रही थी और फिर अर्जुन सीट पर पीछे सरक गया. ऋतु दीदी आगे बैठी तब अर्जुन ने उनके हाथ हॅंडल पर रख अपने हाथ उनके उपर रखे. धीमी रेस दी तो स्कूटी आगे बढ़ने लगी.

"दीदी बिल्कुल घबराना नही. ये हॅंडल बस सीधा रखना और जितना रेस अभी है उतने पे रहने देना. मैं आपके साथ हू." अर्जुन ऋतु दीदी से बिल्कुल चिपक कर बैठा था और हॅंडल पे उसके हाथ बस हल्के से ही रखे थे. ऋतु को साइकल चलानी आती थी तो काफ़ी हद तक वो ठीक कर रही थी. जब भी घूमना होता तो अर्जुन उनके हाथ पकड़ कर खुद स्कूटी मोड़ देता. ऐसे टाइम पर ऋतु के मुलायम दूध उसकी बाजू से दब जाते और ऋतु को अच्छा लगता ये नया एहसास. कुछ 15 मिनिट बाद वो बस अपनी गान्ड पर अर्जुन के लंड की गर्मी और बूब्स पर उसकी बाहो क स्पर्श का मज़ा ले रही थी. अर्जुन तो जब से उठा था तभी से उत्तेजित था और अब इस गर्मी को ऋतु दीदी ने और भड़का दिया था. कुछ टाइम बाद उसने ग्राउंड के आख़िरी कोने मे स्कूटी रोक दी. उसके दोनो पैर ज़मीन पर लगे थे और उसने दीदी के कंधे पर अपना सर टीका उनके दोनो अनार पीछे से ही हाथो मे थाम लिए.

"मैं यही तो चाहती हू भाई. नही तो स्कूटी के लिए कोंन इतनी सुबह उठेगा."

अपने भाई द्वारा बूब्स दबाए जाने पर ऋतु ने मन मे यही बोला और बाहर एक हल्की सिसकी निकल गई. उस मज़े की आवाज़ को सुनकर अर्जुन उनकी गर्दन पर चूमने लगा. अपने पैर से उसने साइड स्टॅंड लगा दिया था. ऋतु ने भी अपनी कमर पीछे धकेल दी जिसके नीचे अर्जुन का खड़ा लंड दब गया. अपनी गान्ड पर अर्जुन के मोटे लंड को एहसास होते ही ऋतु ने गर्दन घुमाई और भाई को चूमने लगी. टीशर्ट खुली थी तो अब अर्जुन के हाथ ब्रा पर पहुच गये थे. वो उस नरम कपड़े के उपर से ही उनके बूब्स मसल रहा था. पाजामी की अंदर कच्छी नही थी तो नरम गान्ड पर गरम लंड का भी असर होने लगा था. वो दोनो बस ऐसे ही उपर उपर से एक दूसरे को खुश करने मे लगे थे और ऋतु को अपनी चूत मे दबाव सा बनता महसूस हुआ. अर्जुन ने अपने लंड को और आगे किया तो वो ऋतु की चूत के होंठो के निचले हिस्से पर चुभने लगा. इसके साथ ही वो बुरी तरह से अकड़ गई और दीदी की चूत के पानी को अर्जुन ने अपने लंड पर भी महसूस किया. उसने हाथो की हरकत रोक दी बस बूब्स पकड़े रखे.

जब 2 मिनिट बाद ऋतु नॉर्मल हुई तो अर्जुन पीछे से उठकर आगे आकर बैठा, स्कूटी ओंन करी और वापिस घर की तरफ
चल दिया. दोनो चुप थे लेकिन मुस्कान गहरी थी उनके चेहरे पे. ऋतु को तो आज पता लगा था क़ि"ऑर्गॅज़म" क्या होता है.

"भाई बस ऐसे ही सिखाता रह मुझे. एग्ज़ॅम ख़तम होते ही तेरा पूरा ना ले गई तो मैं ऋतु शर्मा नही.", उसने मन मे ये बात कही और फिर खुद ही अपनी बात पे हँसने लगी.

"दीदी उतरो, घर पहुच गये.", ये बात सुनते ही ऋतु बिना मुड़े स्कूटी से उतर कर तेज़ी से अंदर दौड़ गई. उसकी चूत गीली थी और सलवार भी. अर्जुन को ये पता था तो वो बस मुस्कुरा भर दिया. "दीदी भी ना, कमाल ही है." और अंदर आ गया.

"मज़ा आया तुझे आज?", अर्जुन जब खाने की मज़े पर बैठा तो बारबर मे ही बैठी अलका ऋतु से पूछ रही थी

"इतना के बता नही सकती. तू खुद ही पता कर ले." दोनो धीमी आवाज़ मे बात कर रही थी लेकिन अर्जुन के कान वही लगे थे.

"ओये होय. पहले ही दिन तू बारिश मे भीग आई."

"कल तू अपने बादल बरसा लेना. कौन रोक रहा है." ऋतु ने मस्ती मे जवाब दिया.

"आरू, चल भाई खाना शुरू कर. ठंडा हो रहा है." माधुरी दीदी ने ये कहा तो अर्जुन उन्हे उपर से नीचे तक निहारने लगा.

"आप ठीक हो?" अर्जुन ने सिर्फ़ इतना कहा और माधुरी दीदी ने हाँ मे गर्दन हिलाई
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

ऋतु और अलका ने सब देख लिया था और फिर वो भी खाना खाने लगी.

"ताऊ जी नज़र नही आ रहे. ना ही भैया." खाने के दौरान ही अर्जुन ने ये बात कही तो ताई जी ने झिझकते हुए जवाब दिया

"बेटा वो तो सुबह 4 बजे चले गये थे पंजाब , 5-6 दिन तक आएँगे. और तेरा भाई भी अब रविवार तक ही वापिस आएगा."

आज तो गुरुवार है. मतलब आज मुझे भी स्टेडियम जाना है." अर्जुन को याद आ गया था के आज से उसका भी टाइम्टेबल बदल रहा है.

"भाई कल मेरा एग्ज़ॅम है तो तू ध्यान राखियो ." अलका ने ऋतु के साथ अपने कमरे मे जाते समय कहा. कोमल और माधुरी दीदी भी अब उनकी जगह बैठ कर नाश्ता कर रही थी. अर्जुन दोनो ही बहनो को देख रहा था. "भगवान ने भी बिल्कुल सही जोड़ी बनाई है. माधुरी दीदी और कोमल दीदी दोनो कितनी भारी भारी और गदराई हुई है. ऋतु दीदी और अलका दीदी गोरी, लंबी और मस्ती से लबरेज है." वो मन ही मन तुलना कर रहा था. "लेकिन सभी को भगवान ने फ़ुर्सत से ही बनाया है. दिल भरता ही नहीं."

अपने भाई को यू मंद मंद मुस्कुराते देख कोमल और माधुरी दीदी भी खुश हो गई.

"वो उपर मेरी अलमारी सेट कर देना मा अगर आपको समय हो जब भी. मेरे कपड़े शायद अभी नीचे ही है. और भैया के कमरे को भी देख लेना."

इतना बोलकर अर्जुन दूसरी मंज़िल पर ड्रॉयिंग रूम मे बैठ गया. एक किताब उसको दादाजी ने दी थी, सामान्य ज्ञान की तो वो उसको ही पढ़ने लगा.

एक घंटे बाद दरवाजे पर दस्तक हुई तो देखा ताईजी खड़ी थी बाहर. उनके हाथ मे झाड़ू था और पौचे की बाल्टी उन्होने बाहर ही रख दी थी.

"ताई जी मुझे आवाज़ दे देते मैं उपर ले आता. आपने कष्ट क्यो किया उपर तक बाल्टी लेके आने का.?" उसने अपनी ताईजी की फिकर करते हुए कहा

"बेटा इतना भी कोई खास वजन नही है. चल तू पंखे बंद कर पहले मैं झाड़ू दे देती हू.."

"ठीक है ताईजी . आप आओ अंदर."
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(^%$^-1rs((7)
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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Bhaisahab jldi se update de diya kro yaar
😒
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Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

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2 Mahine ho gye ab to update dede
😒
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