Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post Reply
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

(^%$^-1rs((7)
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Mrg
Rookie
Posts: 120
Joined: 13 Aug 2018 14:31

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by Mrg »

wah badhia update, waiting fot next update.
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

समर्पण


अलका की नींद आज समय से पहले ही खुल गई थी. उसने करवट बदली तो ऋतु को अपनी तरफ मूह कर के लेटा पाया. वो इस समय बिल्कुल किसी छोटी बच्ची की तरह घुटने मोड़ के सोई हुई थी. अलका ने बेड के किनारे रखी छोटी घड़ी की तरफ देखा तो पाया अभी 4 ही बजे है. वो ऋतु की तरफ खिसकी और उसको कस के वापिस लेट गई. ऋतु के शरीर से निकलती गर्मी ने उसको जैसे कुछ आराम दिया. फिर ऐसे ही अलका ने पलके बंद कर ली. बाहर अभी अंधेरा ही छाया हुआ था. इधर छत पर भी माधुरी दीदी अर्जुन से बिल्कुल चिपक कर सो रही थी. उनका चेहरा भी शांत और मासूम था इस पल मे. हल्की ठंड थी तो दोनो भाई बहन के जिस्म जैसे एक हो रखे थे. अर्जुन की आँख चिड़ियो के शोर से खुली

शायद कही पास मे बिजली के खंबे की तार टूटी थी. आँखें खोली तो अपनी बड़ी बहन को अपनी छाती से चिपका पाया. कुछ सोच कर उसने अपनी जगह एक तकिया रखा और बड़े आराम से चद्दर से बाहर आकर वापिस दीदी पर चद्दर उढ़ा दी. पास मे पड़ी एक और चद्दर भी उनपे ड़ाल कर वो नीचे आकर फ्रेश हुआ और तयार होकर समय से पहले ही दौड़ने चल दिया. अभी तो रामेश्वर जी भी नही उठे थे.

बीती रात को याद करके वो बस धीमी गति से भाग रहा था. सिर्फ़ 2 घंटे की नींद लेने के बावजूद आज उसका शरीर खुद उसको उर्जा से भरपूर लग रहा था. और एक बात हुई आज. अर्जुन जहाँ रोज आबादी से दूर नये सेक्टर की तरफ दौड़ लगाने जाता था, आज वो अपने ही सेक्टर की मैंन सड़क के किनारे दौड़ लगा रहा था. कुछ आगे चलने पर उसने देखा कि कुछ बुजुर्ग एक पार्क मे बैठे व्यायाम और योगा कर रहे थे.

एक 5-6 लोगो का झूंड हास्य-योग कर रहा था. जहाँ वो लोग ज़ोर ज़ोर से हंस रहे थे. बड़े बड़े वृक्षो पर बैठे पंचियो की चहचाहत इस वातावरण को और मधुर बना रही थी. अर्जुन पार्क के अंदर चला गया और किनारे बने फुटपाथ पर फिर से दौड़ लगाने लगा. लगभग 800 गज लंबाई के इस बाग के 4 चक्कर लगा वो वापिस घर की और निकल चला. अब काफ़ी लोग आने लगे थे वहाँ तो उसके भी टाइम का अंदाज़ा हो गया था. आसमान हल्का नीला सफेद हो चला था. जैसे ही घर मे दाखिल हुआ तो देखा की दादाजी नहा कर बैठक से अंदर जा रहे थे.

वो भी सीधा उपर चल दिया बिना कोई आवाज़ किए. अपने कमरे मे जूते उतार कर उसने कपड़े बदल कर घर की चप्पल पहनी और तीसरी मंज़िल पर पहुच गया. माधुरी दीदी कपड़े की गठरी की तरह चद्दर के अंदर सिमटी हुई थी. फिर उसका ध्यान गया नीचे बिछे गद्दे पर.

उल्टे ' वी " के आकार मे एक फुट के करीब गहरा लाल-भूरा धब्बा बना हुआ था वहाँ उस पुरानी चद्दर पर. ये देखते ही अर्जुन को माधुरी दीदी की चुदाई से फटी हुई चूत याद आ गई. उसने दीदी के मूह से कपड़ा हटा कर अपना हाथ उनके माथे पर रखा, जो बुरी तरह तप रहा था.

"दीदी, उठिए और आप नीचे चल कर आराम कीजिए. देखो आपको तेज बुखार है.", उसने प्यार से माधुरी दीदी को जगाया. अपनी बड़ी बड़ी आँखों से माधुरी ने अपने छोटे भाई को अपने पास बैठे देखा. उनकी आँखें भी कुछ लाल हो रखी थी, शायद चुदाई के दर्द और नींद की कमी से.

"भाई तू कब उठा?", इतना बोलकर जैसे ही उठने की कोशिस करी पूरे शरीर मे दर्द की तेज लहर दौड़ गई.

"आराम से दीदी. कोई जल्दी नही है. और मैं एक घंटा पहले ही उठ गया था. और अभी सब सो ही रहे है तो आप भी नीचे अपने कमरे मे ही सो जाओ. ये सब मैं उठा लूँगा यहा से. चलो मैं ले चलता हू आपको नीचे.", इतना बोलकर अर्जुन ने दीदी को दोनो बाजू पकड़ के आराम से खड़ा किया तो हिम्मत कर के वो भी खड़ी हो गई.

2 कदम चली तो फिर रुक गई. "हाए भाई ऐसा लग रहा है जैसे अंदर से चूत कट गई है."

"आप रूको." इतना बोलकर उसने बड़े आराम से दीदी को अपनी बाहो मे लिया और धीरे धीरे सीडीया उतरता नीचे चल दिया.

दूसरी मंज़िल से नीचे देखा तो ताऊ जी, कोमल और मा के कमरे के किवाड़ अभी बंद ही थे. उसी तरह माधुरी को उठाए वो नीचे आया और उन्हे उनके कमरे मे ले जाकर लिटा दिया. फिर माथा चूमकर, "आप अभी आराम करो और अगर कोई पूछे तो बोल देना दर्द की वजह से बुखार आ गया है और रात को पाव स्लिप हो गया था."

"आई लव यू सो मच भाई", अर्जुन के गले मे अपनी बाहों का हार डाल मधुरी दीदी ने एक तगड़ा चुंबन किया और फिर लेट गई. अर्जुन बाहर जाते हुए उनका दरवाजा ढलका गया.

छत पर जाकर सभी समान अपनी जगह रख वो खून से सनी चद्दर छुपा कर वो नीचे वापिस आ गया. ऋतु दीदी के कमरे का दरवाजा हल्का खुला हुआ देख थोड़ा हैरान हुआ. "इतनी जल्दी तो ये कभी नही उठती. और अभी थोड़ी देर पहले तो ये भी बंद ही था." मन मे सोचता हुआ अर्जुन उस कमरे की तरफ चल दिया. हल्का दरवाजा खोला तो देखा अलका दीदी बेड से टेक लगाए कुछ सोच रही है और उनके हाथ मे पानी का गिलास था.

"कुछ खो गया है क्या दीदी?", अर्जुन की आवाज़ ने अलका की तंद्रा भंग की तो वो उसको देख कर मुस्कुरा उठी. पास मे ऋतु वैसे ही लेटी थी जैसे पहले थी.

"कुछ नही भाई. कल शाम को ज़्यादा ही सो लिया था फिर रात भी तो थोड़ा जल्दी उठ गई थी."

"फिर तो मेरे से ही ग़लती हो गई. आपको भी अपने साथ ही पार्क ले जाता. दिन शायद और हसीन हो जाता मेरा.", ये कहकर अर्जुन भी दोनो बहने के बीच लेट गया सीधा.

"कुछ भी बोलता है भाई.", वापिस शरम ने आ घेरा था उन्हे. और अर्जुन को मौका मिल गया था उन्हे छेड़ने का.

"वैसे एक बात कहूं दीदी, आप ना मेरे साथ सोया करो. क्या पता मुझे और मेरे इस दिल को भी थोड़ा सकूँन मिल जाए.", और अलका के पेट पर हाथ रख दिया

अब अलका दीदी ने भी कुछ नही कहा और झुक कर खुद ही पहले अर्जुन का गाल चूमा फिर उसके होंठ. अलका दीदी के खुले बालो से उसका पूरा चेहरा ढक गया था. दोनो प्यार से एक दूसरे के होंठ चूस रहे थे कभी उपर वाला तो कभी नीचे वाला. और यहा ऋतु ने अपना हाथ अर्जुन के छाती पर रखा और चिपक गई उस से. अलका और अर्जुन दोनो कुछ देर बाद अलग हो चुके थे. वो वही बैठी बस मुस्कुरा रही थी. अर्जुन अब ना उठ सकता था और ना हिल सकता था.

ऋतु कोई खास सपना देख रही थी जो एकदम उसने अपनी एक लात उठा कर सीधे लेटे अर्जुन के उपर रख दी. अपना मूह उसकी गर्दन पे. अर्जुन दम साधें लेटा रहा.

"बुरा फसा आज अलका दीदी के चक्कर मे. अब ऋतु दीदी उठ गई तो मेरे पास कोई जवाब नही होगा के यहा उनके बिस्तर पर मैं क्या कर रहा हू." अर्जुन यही सोच रहा था और उसके चेहरे पे फैले इस हल्के से डर को अलका देख कर हँसने लगी. यहा ऋतु शायद यही नींद मे अलका समझकर अर्जुन के उपर आधी लेट चुकी थी. दोनो की होंठ हल्के हल्के चू रहे थे. ऋतु दीदी की उंगलिया अर्जुन की बाहो पर कसी और नींद मे ही उन्होने अर्जुन के होंठ अपने होंठ से पकड़ लिए. लेकिन जैसे ही हाथ छाती पर आया तो वो बिल्कुल सख़्त जगह थी. ऋतु ने आधी सी नींद मे अपनी आँखें खोली तो नीचे अर्जुन को पाया. और इसको सपना समझ फिर से उसके होंठ चूमने लगी. ऋतु दीदी ने अंदर कोई ब्रा तो पहनी नही थी. उनके बूब्स की चूहन से अर्जुन का लंड भी सख़्त होकर ऋतु की जाँघ से उपर टकराने लगा. एक बार फिर आँखें खोली तो नीचे अर्जुन और उसके बराबर मे हँसती हुई अलका को पाया.

ऋतु को जब कुछ समझ मे आया तो वो शरम और घबराहट से विपरीत दिशा मे पलट गई. बिना ही उन दोनो की तरफ देखे अलका से पूछा, "ये यहा कब आया?"

"तू ही तो रात को इसके साथ कमरे मे आई थी. और फिर पूरी रात तू इसके उपर सोती रही. देख ये आज अपनी दौड़ लगाने भी नही जा पाया.",

अलका ने सीरीयस होकर कहा. "और तो और मुझे तो ठीक से सोने भी नही दिया तूने. और ये तो रात से गूंगा हुआ लेटा है तेरे साथ.", अभी चाची या मा आ जाती कमरे मे तो बस हो गया था ना हमारा काम". अलका ने और मिर्च मसाला लगाया

ऋतु की तो आँखें भीग ही गई ये सब सोच कर. नींद मे कभी कभी चलने की समस्या थी उसको. ये ज़्यादा पढ़ने और देर रात तक जागने से उसको लगी थी.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

"यार मैं सच कह रही हू मुझे कुछ याद नही. तू भी जानती है ना मेरी प्राब्लम, तू अर्जुन को बता मैं ऐसी नही हू." अभी भी ऋतु दीदी अर्जुन की तरफ मूह करने से घबरा रही थी.

अर्जुन को लगा शायद अब ज़्यादा हो गया और उसने अपने हाथ से ऋतु दीदी को अपनी तरफ घुमाया और करीब करते हुए उनके माथे को चूमकर बोला, "अर्रे मेरी प्यारी दीदी. आपको लगता है के ऐसा कर सकती हो? नही ना. मैं तो खुद अभी 5-10 मिनिट पहले आया था और यहा आके लेटकर अलका दीदी से बात कर रहा था. और आप क्यो घबराती है जब मैं हू आपके साथ." और इतना बोलकर उसने एक छोटा सा किस जड़ दिया दीदी के गुलाबी होंठो पर. ऋतु भी प्यार और शरम से लिपट गयी अपने भाई से.

"वाह मतलब अब हमारी तो कदर ही नही.", अलका ने मुस्कुरा कर ये बात कही तो ऋतु भी बोली, "अर्जुन इस ग़रीब को भी थोड़ा प्यार दे ही दे. देख कैसे जल कर लाल हो चुकी है."

अर्जुन ने हंसते हुए अलका दीदी को पकड़ना चाहा तो वो भाग खड़ी हुई और दरवाजे पर पहुच के बोली, "मेरे हिस्से का मैं पहले ही ले चुकी हू. सुना नही था क्या अर्जुन 10 मिनिट से यहा था तेरे जागने से पहले." और हँसती हुई भाग गई बाहर. 5 मिनिट दोनो भाई बहन ऐसे ही लेटे रहे

फिर ऋतु दीदी ने एक और छोटा सा किस किया और खड़ी हो गई. यही पर अर्जुन की नज़र दीदी की टीशर्ट मे चोंच दिखा रहे खड़े निपल्स पे चली गई और ऋतु को भी पता चल गया की उसका छोटा भाई क्या देख रहा है. शरम से दोहरी होती वो मूड गई और अर्जुन भी हंसता हुआ बाहर आँगन मे आ गया.

"पागल है ये दोनो और मुझे भी कर दिया है." खुद से इतना बोला और सामने शीसे मे अपने ब्रेस्ट देख ऋतु मुस्कुरा उठी. "उसका ही तो है सब"
.
.
"माधुरी नही दिख रही ललिता. कुछ काम कर रही है क्या?", कौशल्या देवी ने अपनी बहू से पूछा क्योंकि इस टाइम ज़्यादातर रसोईघर मे माधुरी दीदी ही काम करती दिखती थी. अर्जुन के भी कान खड़े हो गये जो वही बैठा खाना ही खा रहा था अपने ताऊ जी के साथ.

"वो मा जी उसको बुखार आया है आंड फिर रात को पानी पीने के लिए कमरे से निकली तो फिसल गई थी. पाव मे मोच भी आई हुई है." ललिता जी ने चिंतित स्वर मे ही कहा. अब अलका और ऋतु को भी पता चला के उनकी बड़ी दीदी क्यो गायब थी वहाँ से.

"मैं देखती हू मेरी बच्ची को. और बेटा कोमल अपनी मा को भी कमरे मे ही खाना दे आ. उसको भी आराम करने दे.", इतना बोलकर कौशल्या जी उठ गई

"मा को क्या हुआ है ताइजी?", खाना बीच मे छोड़ कर अर्जुन ने कोमल दीदी के हाथ से थाली ली और थोड़ा घबराया सा अपनी मा की तरफ चल दिया बिना अपनी ताइजी का जवाब लिए. अंदर आया तो रेखा जी बिस्तर पर लेटी थी. "मा, क्या हुआ आपको? और आप उठो खाना खा लो फिर मैं डॉक्टर को बुला लता हू."

अपने बेटे को इस तरह परेशान देख रेखा जी उठ गई और उसके सर पर हाथ फेरती बोली, "अर्रे मेरे राजा बेटे मुझे कुछ नही हुआ. वो मौसम बदल रहा है ना बस इसलिए थोड़ा बुखार आ गया था रात मे. लेकिन अब ठीक हू. तू परेशान मत हो कुछ नही हुआ मुझे. रात कोमल ने ध्यान रखा मेरा अच्छे से."

बात कह रही थी रेखा जी की कोमल और ऋतु भी अंदर चली आई. "यहा तो मुन्ना अभी भी मा से चिपका है. जाने कब बड़ा होगा ये?", ऋतु ने अपने माथे पर हाथ रखते हुए सीरीयस चेहरा बनाते हुए ये कहा और फिर अर्जुन को छोड़ कर सब हंस पड़े.

"मा देखो ना दीदी को", अर्जुन ने भी झूठी शिकायत लगाई.

"अच्छा अच्छा तुम दोनो बाहर जा कर लड़ाई करो और मा को खाना खाने दो. फिर दवा भी देनी है.", कोमल ने दोनो को बाहर कर दिया.

कौशल्या जी भी माधुरी दीदी के कमरे से वापिस आ गई थी. "अभी ठीक है पहले से वो. बुखार तो उतर गया है शाम तक ठीक हो जाएगी."

उन्होने ललिता जी को बताया. ऐसे ही नाश्ता और रोज का काम ख़तम हुआ. सभी अपने रोज के काम कर रहे थे. 11 बजे के करीब संजीव भैया घर आए और सीधा अलका/ऋतु के कमरे के बाहर थपथपाया. अलका बाहर आई और भैया ने उसके हाथो मे 2 चाबिया रख दी और मुस्कुरा के वापिस बाहर की तरफ चल दिए.

"ऋतु, चल बाहर देख हमारी स्कूटी आ गई." वो लगभग चीखते हुए बोली तो ऋतु भी उसके साथ उछलती हुई निकल गई.

"वाउ. ये बेस्ट प्रेज़ेंट है भैया.", ऋतु ने संजीव भैया को स्कुटी पे बैठे देखा तो कहा.

"वैसे ये तो मेरा बर्तडे प्रेज़ेंट है ना?", अलका ने ऋतु से कहा

"याद कर अपनी खुद की कही बात", और उसके हाथ से चाबी लेकर स्कुटी के चारो तरफ गोल घूमने लगी

"हा.", और अलका छोटी बच्ची सी नाराज़गी दिखाने लगी..

"अले अले मेली बच्ची. तुझे टॉफी मिलेगी, स्कूटी नही.", ऋतु ने फिर चिढ़ाया

"और हा भैया इस अलका ने खुद ही कहा था के आप जो भी प्रेज़ेंट इसको लेकर दोगे वो मैं रखू.", अब ऋतु ने भैया को पूरी बात बताई

"फिर तो ठीक बात है. इसको ऋतु ही रखेगी.", भैया आज मज़ाक के मूड मे थे

"कोई बात नही. मुझे नही चाहिए कुछ भी." और वो जैसे सच मे रूठ गई

"अर्रे मेरी प्यारी दीदी. जो मेरा है वो आपका, और जो आपका वो मेरा. हम मे कॉन्सा बँटवारा है.", ये बात ऋतु ने आँख मारते हुए कही जिसको संजीव भैया नही देख पाए.

"वैसे भैया एक बात कहूँगा, आपने बंदर को अदरक लाकर दे दी है." अर्जुन अपने दादा जी के साथ बैठा ये ड्रामा देख रहा था और आख़िर मे बोल ही पड़ा. भैया और दादाजी तो हंस पड़े लेकिन ऋतु और अलका दीदी को बात समझ नही आई.

"क्या कहा इसने? मुझे बंदर कहा?", ऋतु ने तैश मे नखरे से कहा

"बेटा इसका मतलब है के तुम दोनो को साइकल चलानी तो आती नही इस स्कूटी को कैसे चलॉ ओगी.", दादा जी ने दोनो के चेहरे देखे.

"भैया, आप हमें सिख़ाओगे ना?", और दोनो संजीव भाई से निवेदन करने लगी

"गुड़िया मुझे तो कल से बिल्कुल भी टाइम नही मिलेगा. 3 शहर और मेरे अंडर आ गये है तो मैं तो घर भी रोज नही आ पौँगा."

"फिर तो एक ही काम करते है बेटा के ये स्कूटी हम अर्जुन को दे देते है.", दादा जी की बात सुनकर दोनो चौंक गई और अर्जुन दोनो को चिढ़ाने लगा.

"अब तो फिर ये यही हम दोनो को सिखाएगा नही तो मैं पापा को फोन लगा देती हू अभी.", ऋतु ने इतना कहा तो अब दादा जी ने भी बात ख़तम करने के हिसाब से कहा.

"दोनो एक दिन छोड़ कर बारी बारी से इसके साथ जाओगी रोज सुबह और ये एक घंटा तुम दोनो को ही स्कूटी सिखाएगा.",

फिर दोनो ने कुछ बात करी आपस मे और अलका बोली, "कल ऋतु जाएगी और परसो मैं. यही शेड्यूल रहेगा रोज सुबह 7 बजे."

"नही बेटा नही. कुछ पाने के लिए खोना पड़ता है. 7 बजे नही 6 बजे और जिस दिन जो 10 मिनिट लेट हुआ वो उस दिन घर ही रहेगा." रामेश्वर जी बोलकर उठ गये. उन्हे पता था के दोनो ही 7 बजे तक उठती है.
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
User avatar
rajsharma
Super member
Posts: 15829
Joined: 10 Oct 2014 07:07

Re: Incest ये प्यास है कि बुझती ही नही

Post by rajsharma »

(^%$^-1rs((7)
Read my all running stories

(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
(¨`·.·´¨) Always
`·.¸(¨`·.·´¨) Keep Loving &
(¨`·.·´¨)¸.·´ Keep Smiling !
`·.¸.·´ -- raj sharma
Post Reply