Thriller इंसाफ

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koushal
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Re: Thriller इंसाफ

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“यानी जब शरद चौबीस साल का था और श्यामला नाबालिग थी, सोलह साल की थी ?”
“हां ।”
“सगे भाई ने नाबालिग बहन के साथ...”
“सगा नहीं ।”
“क्या मतलब ?”
“शरद पापा की पहली बीवी से है, सुनीता मरहूम से है । मैं और श्यामला उनकी दूसरी, मौजूदा, बीवी दीप्ति की संतान हैं । अमरनाथ परमार हमारा पिता नहीं, हमारा पिता हमारी असली मां दीप्ति का पहला पति था जिससे उसका तलाक हो गया था । शरद का पिता अमरनाथ परमार है । जब अमरनाथ परमार और - दीप्ति निगम की शादी हुई थी तब दोनों बाऔलाद थे । ग्रूम का एक बेटा था, ब्राइड की दो बेटियां थीं । एक तरह से देखा जाये तो शरद हम बहनों का कुछ नहीं लगता, उसका हमारे से खून का रिश्ता स्थापित नहीं । वो हमारा भाई इसलिये है क्योंकि उसका पिता और हमारी मां पति पत्नी हैं । यू गैट दि पिक्चर ?”
“आई थिंक आई डू । तुमने जब पहली बार ये काण्ड देखा तो उन में से किसी को कुछ बोला नहीं ?”
“नहीं ।”
“परमार साहब को तो बोला होता ! वो शरद की खबर लेते !”
“इसीलिये न बोला । मैं घर में फसाद की भूमिका नहीं खड़ी करना चाहती थी ।”
“मां को ?”
“इसी वजह से न बोला ।”
“हूं ।”
“मुझे एक सिग्रेट दो ।”
मैं सकपकाया, फिर अपना डनहिल का पैकेट उसकी तरफ बढ़ाया ।
“सुलगा के दो ।”
मैंने सुलगा के सिग्रेट पेश किया ।
उसने अपना गिलास खाली किया और मेज पर रखने की जगह मुझे थमा दिया ।
मैंने उसका इशारा समझा और उसकी वो खिदमत भी की ।
कुछ क्षण हमारे में खामोशी व्याप्त रही, वो खामोशी से विस्की चुसकती रही, सिग्रेट के कश लगाती रही ।
उस बद्मजा जिक्र से माहौल भी बद्मजा हो गया था । ग्लैनफिडिक अब मुझे पहले जैसा आनन्दित नहीं कर रही थी ।
फिर उसने नया बम फोड़ा ।
“लेकिन” - वो बोली - “बाद में ऐसा कुछ हुआ जिससे मुझे गारन्टी हुई कि शरद की बाबत पापा को कुछ कहना किसी काम नहीं आना था ।”
“क्या हुआ ?”
जवाब देने से पहले वो फिर रुआंसी हो उठी, इस बार इतनी कि आंसुओं की दो मोटी मोटी बून्दें गालों पर ढुलक पड़ी ।
“पापा भी हैवी ड्रिंकर हैं” - वो बोली - “लेकिन उनका बुजुर्गी का दौर है । इस उम्र में लोगों का बॉटल से अनुराग बढ़ ही जाता है । नो ?”
“यस ।”
“एक रात टुन्न घर लौटे । इतनी पिये हुए थे कि ठीक से चल भी नहीं पा रहे थे...”
मेरा दिल जोर से अपनी जगह से उछला । जो आगे आने वाला था उसका अहसास मुझे होने लगा । मेरा जी चाहा मैं उसे बोलूं वो चुप करे, मैं अब और नहीं सुनना चाहता था लेकिन उम्मीद के खिलाफ उम्मीद करता चुप रहा कि शायद कोई और बात हो ।
“लेट नाइट का वक्त था । मैं बिस्तर के हवाले थी लेकिन अभी सोई नहीं थी । पापा लौटते थे तो कभी कभार मेरे बैडरूम में झांकते थे और प्यार से मेरा सिर सहला के, माथा चूम के जाते थे । मैंने सोचा कि उस रात भी ऐसा ही होने वाला था लेकिन वो तो मेरा गाल चूमने लगे, होंठ चूमने लगे ।”
“तौबा !”
“उनकी इज्जत रखने के लिये मैंने यही बहाना किया कि मैं गहरी नींद सोई पड़ी थी, मुझे नहीं मालूम था क्या हो रहा था । उन्होंने इसका गलत मतलब लगाया । उनकी किसिंग और उग्र हो उठी । फिर उनका हाथ मेरी नाइटी में घुस गया और मेरे वक्ष पर पड़ा । तब मैं नींद का बहाना करती न रही सकी । मैंने उनका हाथ झटक कर उन्हें परे धक्का दिया, तड़प कर उठी और गला फाड़ के चिल्लाई । मेरे चिल्लाते ही उनका सारा नशा हिरण हो गया । लगे माफिया मांगने । मैंने माफ तो किया लेकिन वार्निंग के साथ कि अगर उन्होंने फिर कभी ऐसी जलील हरकत की तो उनका मुकाम जेल होगा ।”
“बाज आये ?”
“हां । लेकिन बस फिजीकल न हुए । बाद में भी कई बार उनके नशे की हालत में मैं उनके सामने पड़ी तो मैंने उनकी आंखों में ऐसी वहशत देखी जो पुकार पुकार के कहती थी कि थी खयालों में मुझे नंगी कर रहे थे, मेरे साथ बलात्कार कर रहे थे ।”
“दाता !”
“अब आया समझ में कितना कलरफुल परिवार है हमारा ! कितनी पोल है इस के ढ़ोल में ?”
“आया ।”
“शुक्रवार को नशे से हिले हुए शरद को इस बात ने नहीं भड़काया था कि मैं क्लब में तुम्हारे से इंटीमेट हो रही थी, बल्कि इस बात ने भड़काया था कि मेरी वो अटेंशन उसे हासिल नहीं थी ।”
“कोई वहशी ही ऐसे खयाल रख सकता है ।”
“रखे, लेकिन ये तो खयाल करे कि डायन भी सात घर छोड़ देती है ।”
“ठीक कहा ।”
“क्लब में तुम्हारे मेरे बीच कुछ नहीं हो रहा था । मेरे को तुम्हारे साथ बैठे, हंसते मुस्कराते देख कर ही, देखा था, वो कितना भड़का था ! अब उसकी तब यहां मौजूदगी की कल्पना करो जबकि तुम मुझे किस कर रहे थे । दो कंसेंटिंग एडल्ट्स का प्राइवेसी में किस करना न अनैतिक है, न गैरकानूनी । शरद देखता तो खून करने पर आमादा हो जाता - इसलिये नहीं कि तुमने मुझे किस किया, बल्कि इसलिये कि वही काम मैंने उसे न करने दिया । बोलता घर की मुर्गी बाहर कैसे सर्व हो रही थी ।”
मैं खामोश रहा ।
बहुत तल्ख बोल रही थी लड़की लेकिन दुरुस्त बोल रही थी । कैसा अंधेर था कि एक नौजवान लड़की की अस्मत घर में ही महफूज नहीं थी - न बाप से, न भाई से ।
उसने सिग्रेट का बचा हुआ टुकड़ा ऐश ट्रे में डाला और खाली गिलास मेज पर रखा ।
मैंने नोट किया था कि इस बार ड्रिंक को उसने चुस्का नहीं था, बल्कि हलक में धकेला था ।
“दो ड्रिंक्स मेरी लिमिट है ।” - वो बोली - “आज तीन हो गये हैं लेकिन मैं और पीना चाहती हूं । फैमिली की जो जलालत, जो बेहयाई मेरे को अन्दर से साल रही है, आज उसे मैं विस्की में बहा देना चाहती हूं । साथ दोगे समीर शर्मा...”
“राज शर्मा ।”
“उठके चल तो नहीं दोगे ?”
“कैसे चल दूंगा ? ड्रिंक्स तो सरपराइज आफ दि हाउस हैं, मेरा इनवीटेशन तो डिनर का है वो तो अभी होना है । नहीं ?”
“हां । ड्रिंक बनाओ ।”
मैंने दो - नये ड्रिंक तैयार किये ।
इस बार बादाखोरी खामोशी में चली ।
“एक बात पूछूं ?” - मैं बोला ।
“हरीश शर्मा, तुम हाउस गैस्ट हो” - वो झूम कर बोली - “मुअज्जिज मेहमान हो, तुम्हें कुछ भी करने के लिये इजाजत लेने की जरूरत नहीं ।”
“कुछ भी ?” - मैं उसकी आंखों में आंखें डालता बोला ।
“हां, भई, कुछ भी ।”
“सार्थक का किसी के साथ अफेयर था । तुम्हारे साथ था ?”
“क्या बात करते हो ? सार्थक मेरा जीजा था, भई ।”
“अमरनाथ तुम्हरा पिता था !”
“गलत मिसाल है । वो जबरदस्ती का सौदा था । अफेयर कहीं जबरदस्ती होता है ? अफेयर तब होता है जब दोनों तरफ हो आग बराबर लगी हुई ।”
“तो अफेयर तुम्हारे साथ नहीं था ?”
“नहीं था । बात क्या है अफेयर की ?”
मैंने उसे रहस्यमयी रमणी की बाबत बताया, बाजरिया एडवोकेट महाजन मैं जिसका क्लायंट था, जिसकी बाबत मैं कुछ नहीं जानता था लेकिन जानना चाहता था ताकि मैं बिचौलिये को दरकिनार करके डायरेक्ट उससे डील कर पाता ।
“तुम्हारे खयाल से कौन हो सकती है वो ?” - मैंने पूछा ।
“पता नहीं ।” - वो बोली - “लेकिन ये पता है मैं नहीं हूं ।”
“कोई अन्दाजा ?”
उसने कुछ क्षण विवार किया, फिर इंकार में सिर हिलाया ।
“मैं शरद पर फिर वापिस लौट रहा हूं । इतनी पीता है, अल्कोहलिक नहीं हुआ अभी ?”
“क्या पता हो ?”
“लिवर सलामत है ?”
“क्या पता !”
“सार्थक का बड़ा भाई शिखर बराल कहता है कि कत्ल की रात को जब शरद के पांव ‘रॉक्स’ में पड़े थे, तब वो पहले से ही टुन्न था ।”
“क्या बड़ी बात है ! सच पूछो तो उस रात जब वो घर लौटा था तो सीढ़ियां चढ़ कर ऊपर अपने बैडरूम में नहीं जा सका था, नीचे ड्राईंग रूम में - ही ढ़ेर हो गया था । पापा को तो उसकी उस हालत की तब खबर लगी थी - बल्कि यही तब पता लगा कि वो घर में था - जबकि श्यामला के कत्ल की तफ्तीश करती पुलिस वहां पहुंची थी ।”
“तुम्हें कब खबर लगी थी ?”
“तभी लगी थी । पापा के भेजे रॉक डिसिल्वा मुझे लेने के लिये यहां आया था न ! मेरी कार तो शरद मांग के ले गया था । वापिस लौटाने आया ही नहीं था ।”
“वजह ?”
“ठोक दी थी । नशे में एक बिजली के खम्बे में दे मारी थी ।”
“कौन सी कार है तुम्हारे पास ?”
“आई-10 ।”
“कलर ?”
“वाइट । क्यों पूछते हो ?”
“यूं ही । कोई खास वजह नहीं ।”
“अजीब जवाब है ! लगता है कुछ छुपा रहे हो !”
उसकी जुबान कदरन लड़खड़ाने लगी थी लेकिन दिमाग अभी पूरी तरह से अलर्ट था ।
“मोतीबाग में तुम्हारी बहन की कोठी के सामने वाली कोठी के निवासी दर्शन सक्सेना का बयान है कि उस रात एक सफेद रंग की कार उसकी स्विफ्ट की टेल लाइट तोड़ गयी थी ।”
“ऐसा मेरी कार से हुआ नहीं हो सकता । मेरी कार शरद के कब्जे में थी और वो ‘रॉक्स’ में था । देर रात तक वहां था ।”
“क्या गारन्टी है ?”
उसने सकपका कर मेरी तरफ देखा । जाहिर था मेरा गारन्टी की बात करना उसे पसन्द नहीं आया था ।
“अरे, मैं ये थोड़े ही कह रहा हूं कि उसने श्यामला का कत्ल किया था !” - मैंने बात संवारने की कोशिश की - “अभी तो ये ही स्थापित नहीं है कि उस रात वो श्यामला की कोठी पर गया था । ये महज इत्तफाक हो सकता है कि गवाह ने उसकी कार की टेल लाइट ठोकती एक सफेद कार देखी थी, ये जरूरी थोड़े ही है कि वो कार तुम्हारी हो ! दिल्ली में वैसी सफेद कारों का कोई घाटा है क्या ?”
उसने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
“तुम कहो तो” - फिर बोली - “इस बाबत मैं शरद से बात करूं !”
“क्या जरूरत है ? वो नाहक शक करेगा । तुम खातिर जमा रखो, इस बाबत जो करना होगा, वो मैं खुद कर लूंगा ।”
“मेरे लिये फिक्रमन्द जान पड़ते हो !”
“भई, जिसका अन्न जल ग्रहण किया हो, उसका खयाल करना तो बनता है न !”
“अन्न जल !” - वो हंसी, उसने अपना गिलास ऊंचा किया - “जल !”
“स्काटलैंड का ।”
वो हंसी ।
“यू टॉक नाइस, मिस्टर अधीर शर्मा । यू डू टॉक नाइस ।”
पता नहीं उसे करारा नशा हो गया था या वो जानबूझ कर मुझे नये नये नामों से पुकार रही थी ।
“अधीर तो मैं हूं, नो डाउट” - मैं बोला - “लेकिन मेरा नाम...”
“क्यों अधीर हो ?” - वो मदभरे स्वर में बोली ।
“तुम्हें मालूम है ।”
“नहीं, मुझे नहीं मालूम ।”
“एक बात पूछूं ?”
“फिर ?”
“हां ।”
“अरे, बोला न, तुम मुअज्जिज...”
“मुझे याद है । मैं ये पूछना चाहता था तुम मुझे माधव धीमरे और शिखर बराल की तसवीर हासिल करने का कोई तरीका सुझा सकती हो ?”
“क्या करोगे उनका ?”
“गवाहों को - कमला ओसवाल और दर्शन सक्सेना को - दिखाऊंगा और उनकी बाबत उनसे कुछ सवाल करूंगा ।”
“आई सी । कोई मुश्किल काम तो नहीं ये !”
“गुड ! कैसे होगा ?”
“माधव धीमरे ‘रोज़वुड’ का रेगुलर एम्प्लाई है, शिखर बराल क्लब में कैजुअल हायर्ड हैल्प के तौर पर रजिस्टर्ड है । दोनों की बाबत हर डिटेल क्लब के रिकार्ड में अवेलेबल है । रिकार्ड में तसवीर भी जरूर होगी !”
“तसदीक करने का जरिया !”
“भई, सबकुछ क्लब के वैब साइट पर है ।”
“अभी तसदीक करने का जरिया !”
जवाब में उसने कार्डलैस काल बैल का बटन दबाकर मेड को तलब किया और उसे अपना लैपटॉप ले कर आने का हुक्म दिया ।
मेड लैपटॉप के साथ उलटे पांव वापिस लौटी ।
शेफाली ने लैपटॉप आन किया और उस पर रोजुबुड क्लब का वैबसाइट तलाश किया ।
फिर स्क्रीन पर माधव धीमरे का क्लोजअप प्रकट हुआ ।
वो दूसरी तसवीर की तलाश में आगे स्क्रॉल करने लगी ।
एक तसवीर पर मेरी निगाह अटकी ।
वो एक हृष्ट पुष्ट, गोरे चिट्टे व्यक्ति की तसवीर थी जो नेपाली ड्रैस पहने था ।
“बैक करो ।” - मैं बोला ।
उसने सहमति में सिर हिलाया, वो तसवीर वापिस स्क्रीन पर प्रकट हुई ।
मैंने गौर से सूरत देखी ।
“ये कौन है ?” - फिर बोला ।
“पहचानो ।” - वो बोली ।
मैं सकपकाया ।
“हाल ही में इससे दो बार मिल चुके हो !”
उस बात ने मुझे सचेत किया । मैंने सूरत का बारीक मुआयना किया ।
“एक हिन्ट देती हूं ।” - वो बोली - “मूंछ नकली है ।”
“डिसिल्वा !” - तत्काल मैं बोला - “रॉक डिसिल्वा ।”
“ऐग्जैक्टली ।
“इस फैंसी ड्रेस में ?”
“फैंसी ड्रैस वाला ही मौका था । फैली ड्रैस पार्टी थी क्लब में । ये ट्रेडीशनल नेपाली बनके आया था ।”
“ओह !”
फिर उसने शिखर की तसवीर भी तलाश की ।
“यहां प्रिंटर है ?” - मैं बोला ।
“है । क्यों ?”
“मुझे इस तीन तसवीरों का प्रिंट हासिल हो सकता है ?”
उसने फिर मेड को तलब किया और जरूरी हिदायत के साथ लैपटॉप उसे सौंपा ।
पांच मिनट में सुघड़, सर्वगुणसम्पन्न मेड मुझे एक लिफाफा थमा गयी जिसमें तीनों तसवीरों के पांच गुणा सात इंच के प्रिंट थे ।
“श्यामला से डिसिल्वा के कैसे ताल्लुकात थे ?” - मैंने पूछा ।
“वैसे ही जैसे हर किसी से थे ।” - वो बोली - “बहुत मिलनसार आदमी है डिसिल्वा ।”
मुझे अहसास हुआ कि उसके स्वर में व्यंग्य का पुट था ।
“घर आता जाता था ?”
“मैं तुम्हारी सोच को फालो कर सकती हूं । लेकिन वो सोच गलत है ।”
“ऐसा ?”
“हां । आम अफवाह है कि वो गे है ।”
“है ?”
“मुझे नहीं मालूम । जो लोग कहते हैं, वो मैंने बोल दिया ।”
“लोगों का कहा हमेशा तो सच नहीं होता ?”
“वो तो है !”
“तो श्यामला पर लाइन नहीं मारता था ?”
koushal
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Re: Thriller इंसाफ

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“मुझे नहीं पता लाइन कैसे मारी जाती है । हंसता बोलता तो था ! मन में क्या होता था, क्या मालूम ! वैसे श्यामला उससे उम्र में इतनी छोटी थी ।”
“तुम्हारी खुद की क्या पोजीशन है इस डिपार्टमेंट में ? तुम तो छोटी नहीं हो !”
“हूं । श्यामला जितनी न सही लेकिन हूं । ही इज अबोव फोर्टी ।”
“दिल्लगी में उम्र दखलअन्दाज नहीं होती ।”
“भई, जैसे श्यामला से पेश आता था, वैसे ही मेरे से पेश आता है लेकिन...”
“क्या लेकिन ?”
“अब तुम कहलवा रहे हो तो कहती हूं । संगीता की तरफ बहुत तवज्जो देता है । खास ही तवज्जो देता है ।”
“संगीता निगम ! तुम्हारी मामी ?”
“हां ।”
“वो खास तवज्जो अफेयर की तरफ इशारा हो सकता है । वो तो उसकी हमउम्र भी है ! जवाब ये सोच के देना कि अभी तुमने कहा कि लोग कहते हैं वो गे है लेकिन तुम समझती हो कि लोगों का कहा हमेशा ही सच नहीं होता ।”
“मामी चंचल तो है लेकिन अफेयर... दूर की कौड़ी है । मामा एमपी हैं, पॉलिटिक्स में बिजी रहते हैं, पब्लिक की तरफ तवज्जो देना होता है उन्हें । शायद संगीता ये जताने के लिये फ्लर्ट करती हो कि घर में भी किसी को तवज्जो की जरूरत थी ।”
“ठीक से नहीं निभ रही उनकी ?”
“पता नहीं । लेकिन कोई बोले कि नहीं निभ रही तो मुझे हैरानी नहीं होगी ।”
“वजह ?”
“अरे, इकट्ठे बहुत कम कहीं आते जाते हैं । मामा की अपनी पोलिटिकल दुनिया है, मामी की अपनी मौज बहार है । दोनों अपने अपने ढ़ण्ग से अपनी अपनी जिन्दगी के साथ मसरूफ हैं । क्या पता अन्दर क्या हो रहा है ! फिर आज की हाई सोसायटी में इनफिडिलिटी फैशनेबल भी तो हो गयी है !”
“यू सैड इट, माई डियर ।”
“औरत खूबसूरत हो, हसीन हो, हैसियत वाली हो - जैसे कि संगीता है - तो शादी के पांच साल बाद उसकी सोच ये बन जाती है कि एक जिन्दगी में एक मर्द से क्या बनता है ! मेन कोर्स के साथ साइड डिश तो होनी ही चाहिये । हुस्न और जवानी हमेशा तो साथ देते नहीं...”
अब वो मेरे वाली जुबान बोल रही थी ।
“यू आर एब्सोल्यूटली करैक्ट ।” - मैं बोला - “इस बात पर मैं तुम्हें एक जोक सुनाता हूं...”
उस रात मैं घर न गया ।
koushal
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Re: Thriller इंसाफ

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Chapter 4
दोपहरबाद मैं मोतीबाग पहुंचा ।
श्यामला की कोठी वाले ब्लॉक की सड़क पर दाखिल होने से पहले ही मुझे फिजा भारी लगने लगी । अपने मुकाम पर पहुंचने से पहले ही मुझे आगे सड़क पर लगा लोगों का जमघट दिखाई दिया । मैं कार से उतर कर पैदल आगे बढ़ा, करीब पहुंचा तो मालूम हुआ कि जमघट का मरकज श्यामला की नहीं, उससे अगली कोठी थी ।
कमला ओसवाल की कोठी ।
रात की किसी घड़ी कोठी को आग लगी थी जिसने भारी डैमेज किया था । पता नहीं कोठी की मालकिन कमला ओसवाल भी उस डैमेज में शामिल थी या नहीं ।
तमाशाईयों की भीड़ में मुझे दर्शन सक्सेना की सूरत न दिखाई दी ।
मैं उसकी कोठी पर पहुंचा तो मालूम पड़ा वो घर पर नहीं था । मैंने उससे अगली कोठी की कालबैल बजाई ।
गोद में प्यारा सा चिहुआहुआ सम्भाले एक महिला ने बाहर कदम रखा ।
“क्या हुआ सामने ?” - अभिवादनोपरान्त मैंने पूछा ।
उसने सन्दिग्ध भाव से मेरी तरफ देखा ।
“मैं प्रेस रिपोर्टर हूं ।” - अपने पीडी वाले आई-कार्ड की एक झलक मैंने उसे यूं दिखाई कि वो उस पर लगी तसवीर ही देख पाती ।
“ओह !” - उसके मिजाज में तब्दीली आयी - “कौन सा पेपर ?”
“हिन्दोस्तान टाइम्स आफ इन्डिया ।”
उसके चेहरे पर उलझन के भाव आये ।
“तमाम पेपर ‘ऑफ इन्डिया’ ही होते हैं, आफ श्रीलंका या मियामर या पाकिस्तान तो नहीं हो सकते न !”
“ओह !”
“क्या हुआ सामने ?”
“आग लगी । रात एक बजे । वर्मा साहब तब बाई चांस टायलेट जाने के लिये उठे थे तो उन्हें मिसेज ओसवाल की कोठी से उठता धुंआ और आग की लपटें दिखाई दी थीं ।”
“वर्मा साहब ?”
“मेरे हसबैंड । अरुण वर्मा । होम मिनिस्ट्री में” - उसके स्वर में गर्व का पुट आया - “अन्डर सैक्रेट्री हैं ।”
“आई सी । फिर ?”
“फिर उन्होंने फौरन फायर ब्रिगेड को फोन किया । फायर ब्रिगेड वाले पहुंचे - पुलिस भी पहुंची - उन्होंने कोई एक घंटे में आग को काबू में किया ।”
“वर्मा साहब की नींद न खुली होती तो ?”
उसने अनभिज्ञता से कन्धे उचकाये ।
“इधर वाली, श्यामला की कोठी तो आजकल लाक्ड है, परली तरफ वालों को आग की खबर न लगी जिनकी मिसेज ओसवाल की कोठी की दीवार से दीवार मिलती है ?”
“जो कोठी चानना साहब की है लेकिन वो भी आज कल आबाद नहीं है । सब लोग अमृतसर गये हुए हैं ।”
“मिसेज ओसवाल पर क्या बीती ?”
“भली बीती । प्रभू की किरपा हुई कि घर पर नहीं थीं ।”
“कहां गयीं ?”
“जयपुर ।”
“किसी काम से ?”
“बुक्स की बहुत दीवानगी है उन्हें, वहां कोई लिटरेरी फैस्टिवल होता है इन दिनों जो कि कई दिन चलता है । उसमें मिसेज ओसवाल हर साल जाती हैं ।”
“आग कैसे लगी ? कोई वजह सामने आयी ?”
“सुना है कोई सिग्रेट जलता रह गया था ।”
“वो स्मोक करती हैं ?”
“करती होंगी !” - उसने तनिक नाक चढाया - “या कोई स्मोक करने वाला मेहमान आ गया होगा !”
“लेकिन जलता सिग्रेट दिनोंदिन तो जलता नहीं रहता !”
“दिनोंदिन क्या मतलब ? कल रात ही तो गयीं ! रात साढ़े नौ बजे के करीब मैंने खुद उन्हें कार में सामान रखते देखा था ।”
“कार ड्राइव करके जयपुर गयीं ! वो भी नाइट ड्राइव ! इस मौसम में !”
उसने उस बात पर विचार किया, फिर बोली - “कार कहीं पार्किंग में छोड़ी होगी ।”
“हो सकता है । कल रात उस वक्त दर्शन सक्सेना साहब घर पर नहीं थे ?”
“मेरे खयाल से नहीं थे । उनकी कोठी की कोई बत्ती तो मुझे जलती नहीं दिखाई दी थी ।”
“कैसे ताल्कुकात थे उनके कमला जी से ।”
वो एक आंख तनिक दबा कर हंसी ।
“या कमला जी के उनसे ?”
“अरे, कोई फर्क होता है जब दोनों तरफ हो आग बराबर लगी हुई !”
“जी !”
“क्या जी ? समझो !”
“आप समझातीं तो बेहतर होता !”
“अरे, आये दिन तो सक्सेना साहब मिसेज ओसवाल के यहां डिनर पर इनवाइटिड होते हैं । और दिल्ली में, इस मौसम में, कोई डिनर ड्रिंक्स के बिना चलता है ?”
“यानी अच्छे पड़ोसी थे ! बड़े कार्डियल रिलेशंस थे उनमें !”
“अच्छे पड़ोसी !” - उसने नाक चढायी - “कार्डियल रिलेशंस ! माई फुट !”
“मैडम, गुस्ताखी माफ, आपका इशारा कहीं और ही जान पड़ता है !”
“है तो सही ऐसा कुछ कुछ । पता नहीं कुछ कहना मुनासिब होगा या नहीं !”
“आप जो कहना है, बेहिचक कहिये । हमारे पेपर की पालिसी है कि हम अपनी हर रिपोर्ट छपने से पहले उस शख्स से पास करवाते हैं जिसके इन्टरव्यू पर वो आधारित होती है । मैं जो लिखूंगा पहले आपको दिखाऊंगा, कोई बात आपको नहीं जंचेगी तो आपके सामने काट दूंगा ।”
“पक्की बात ?”
“हां ।”
“वो क्या है कि उन दोनों की आपस में कोई खास ही ट्यूनिंग है । सक्सेना साहब की वाइफ नहीं है, मिसेज ओसवाल का हसबैंड नहीं है, बड़ी तनहा जिन्दगी है दोनों की । ऐसे दो जनों का स्वाभाविक तौर से करीब आ जाना कोई बड़ी बात नहीं । या है ?”
“नहीं है । दोस्ती हो ही जाती है ?”
“अरे, दोस्ती कौन बोला ?”
“आपका इशारा... अफेयर की तरफ है ?”
“मैं तुम्हें एक वाकया सुनाती यूं उससे तुम खुद समझ जाओगे कि दोस्ती थी, अफेयर था या क्या था !”
औरत वाचाल थी, स्कैण्डलप्रिय थी और वो दोनों बातें उस वक्त मुझे रास आ रही थीं ।
“वो क्या है कि” - वो कह रही थी - “एक रोज मैं वहां अपने गेट पर खड़ी थी कि दर्शन सक्सेना साहब आये और मेरे से बतियाने लगे । थोड़ी देर वो सिलसिला चला, फिर वो चले गये । फौरन बाद कमला दनदनाती हुई मेरे सिर पर आ सवार हुई ।”
अब मिसेज ओसवल का अदब वाला सम्बोधन ‘कमला’ में तब्दील हो गया था ।
“खफा थीं ?” - प्रत्यक्षत: मैं बोला ।
“आगबबूला थी ।”
“किस बात पर ?”
“बेबात ।”
“उनकी निगाह में तो कोई बात होगी !”
“हां, वो तो थी !”
“क्या ?”
“मेरे को आकर बोली कि मेरा एक मरद से पेट नहीं भरता था जो मैं दूसरे के पीछे पड़ी थी !”
“ऐसा बोली वो !”
“अरे, जो वो असल में बोली, वो सुनोगे तो कान पक जायेंगे तुम्हारे ।”
“पकाइये ।”
“बोली - ‘डोट यू गैट एनफ फ्रॉम यूअर हसबैंड दैट यू आर आफ्टर मिस्टर सक्सेना’ ।”
“अरे ! ऐसा बोलीं !”
“हां । पहले तो मैंने मजाक समझा लेकिन वो तो एक दम संजीदा थी ।”
“क्यों कहा उन्होंने ऐसा ?”
“क्योंकि मेंटल है । जवानी में विधवा हो जाने की वजह से दिमाग पर असर हो गया है । विडो के फीमेल हारमोंस जोर मारते हैं और उसका भेजा हिलाते हैं ।”
मैंने उस बद्मजा डायलॉग का रुख बदला ।
“पुलिस” - मैं बोला - “मिसेज ओसवाल को कांटेक्ट करने की कोशिश तो कर रही होगी ?”
“हां । लेकिन फिलहाल तो कामयाब नहीं हो या रही ! सुना है कमला को ट्रेस करने के लिये उन्होंने जयपुर पुलिस को अप्रोच किया है ।”
“सक्सेना साहब को तो उनका कोई अता पता मालूम होगा !”
“कहते हैं, नहीं मालूम, मालूम होता तो वो अभी तक उसे आगजनी की खबर कर चुके होते ।”
“अता पता न सही, जब वो दोनों इतने इंटीमेट थे तो उनके पास मिसेज ओसवाल का मोबाइल नम्बर भी तो होगा !”
“कहते हैं उस पर कोई रिस्पांस नहीं है ।”
“आई सी । सक्सेना साहब से आप अच्छी तरह से वाकिफ हैं ?”
“नहीं, अच्छी तरह से नहीं । पड़ोसी होने की वजह से दुआ सलाम है, बस । वैसे भी वो कोई ज्यादा मिलनसार नहीं हैं ।”
“सार्थक और श्यामला ? उनका मिजाज कैसा था ।”
वो तनिक कसमसाई, फिर कठिन स्वर में बोली - “वो भी अपने आप में मग्न रहने वाली किस्म के लोग थे ।”
“कत्ल की रात और वारदात की बाबत क्या कहती हैं ?”
“कुछ नहीं । उस रात हम बहुत जल्दी सो गये थे । अगली सुबह ही पता लगा था कि पड़ोस में इतना बड़ा कांड हो गया था ।”
“ओह !”
“लेकिन सक्सेना साहब उस रात के वाकये से काफी वाकिफ हैं । वो तो बाकायदा गवाह हैं पुलिस के सार्थक के खिलाफ ।”
“ठीक । सहयोग का शुक्रिया, मैडम ।”
“जो लिखो, छपने से पहले मुझे दिखाने आना न भूलना ।”
“नहीं भूलूंगा ।”
मैंने उससे विदा ली । मेरे पीठ फेरते ही वो भी घर में वापिस घुस गयी ।
मैं सड़क पर आ गया ।
तब तक जली कोठी के आगे की भीड़ काफी हद तक छंट गयी थी ।
मेरे ऐतबार में ये बात नहीं आ रही थी कि वहां लगी आग एक हादसा थी, सिग्रेट जलती रह जाने की वजह से लगी थी । सार्थक आजाद होता तो तब कम से कम मैं ये जरूर सोचता कि उसने यूं अपने खिलाफ खड़े एक गवाह को खत्म करने की कोशिश की थी ।
वो बहुत दूर की कौड़ी थी लेकिन इंसानी दिमाग का क्या पता लगता था कि कब किस खुराफात पर उतर आये !
कत्ल का सार्थक का सुझाया आल्टररनेट सस्पैक्ट - माधव धीमरे - तो आजाद था ! अगर कातिल वो था तो जाहिर था कि कत्ल की रात को कमला ओसवाल ने मौकायवारदात से कूच करते सार्थक को नहीं, माधव धीमरे को देखा था । लिहाजा माधव धीमरे कातिल था तो वो कारनामा उसका हो सकता था ।
रॉक डिसिल्वा की नेपाली वेषभूषा वाली तसवीर भी मेरे जेहन पर कहीं दस्तक दे रही थी । उस ड्रैस में पट्ठा इतना नेपाली लगता था कि मैंने उसे पहचाना तक नहीं था ।
पेचीदा किरदार था उसका । और अच्छी तरह से समझने की जरूरत थी ।
समझूंगा - मैंने मन ही मन निश्चय किया ।
अभी तो मैंने किसी तरह से जली कोठी का मुआयना करना था ।
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koushal
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Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

शाम को एडवोकेट महाजन ‘कोजी कार्नर’ में मुझे फिर मिल गया ।
“फिर इधर कोई काम पड़ गया ?” - मैं तनिक व्यंग्यपूर्ण भाव से बोला ।
“हां ।”
“क्या काम ? जासूस पर जासूसी करने का काम ?”
“क्या ! पागल हुए हो ! मेरे को ऐसी कोई जरूरत कहां है ! होगी तो तुम्हें अपने पास तलब करूंगा । ऐनी प्राब्लम ?”
“नो” - मुझे कबूल करना पड़ा - “नो प्राब्लम ।”
“मैं काम से ही आया था इधर, लेकिन अपने नहीं ।”
“अपने नहीं ! तो और किसके ?”
मैं सकपकाया ।
“मेरा कैसा काम ?” - मैंने पूछा ।
“रहस्यमयी रमणी जैसा काम ।”
“सर, प्लीज एक्सप्लेन ।”
“मरे जा रहे थे न उसकी शिनाख्त से वाकिफ होने के लिये ! उसका ताआरुफ हासिल करने के लिये ? उसके साथ तुम्हारी कल सुबह साढ़े ग्यारह बजे की अप्वायंटमेंट फिक्स की है ।”
मैं मुंह बाये उसे देखने लगा ।
“अब खुश हो के तो दिखाओ । कोई थैंक्यू-वैंक्यू तो बोलो ।”
“कौन है वो ? नाम बोलिये ।”
“संगीता निगम ।”
“संगीता निगम !”
“नाम से वाकिफ जान पड़ते हो !”
“अमरनाथ परमार के एमपी साले की बीवी ! मकतूला की मामी !”
“हैरान हो गये ?”
मेरा सिर स्वयमेव सहमति में हिला ।
लिहाजा शेफाली ने जब मामी के स्वभाव को चंचल बताया था तो उसको बहुत कम करके आंका था । हसबैंड के जीजा के दामाद से अफेयर ! क्यों हाई सोसायटी के लोग इतने ‘इनसैस्ट’ प्रेमी थे ।
दुनिया राज शर्मा के कैरेक्टर को बद् बोलती थी । इन लोगों के मुकाबले में तो मैं महात्मा था ।
बड़ों का बड़प्पन इन बातों में था तो लानत ‘बद् भला बदनाम बुरा’ राज शर्मा की ।
“कहां खो गये ?” - वकील बोला ।
“तो” - मैं बोला - “सार्थक का एमपी साहब की बीवी से अफेयर था ?”
“बहुत ढ़ंका छुपा । अत्यंत गोपनीय ।”
“क्या गोपनीय ! आपको तो खबर थी !”
“अब हुई न ! क्योंकि ऐसी मजबूरी बन गयी । क्योंकि संगीता को एक काबिल वकील की जरूरत थी । अब वकील को तो कॉन्फिडेंस में लेना पड़ता है न !”
“वाकिफ कैसे थी आपसे ?”
“जब एमपी निगम पूरी तरह से करप्ट नहीं था, तब मैंने उसका एक केस किया था । कामयाबी से । संगीता को इस बात की वाकिफयत थी क्योंकि उस केस के दौरान उनके घर में मेरा अक्सर आना जाना होता था । जब उसकी खुद की जरूरत पेश आयी तो उसको मेरी याद आना स्वाभाविक था ।”
“जान कर खुशी हुई कि कोई ऐसा भी वक्त था जब एमपी साहब पूरी तरह से करप्ट नहीं था । कौन सी सदी में था ऐसा ?”
“शट अप !”
“इसी सदी में तो सौ दरिन्दों को निचोड़ो तो एक नेता बनता है ।”
“आई सैड शट अप ।”
“और !”
“और आज दिन में एक बड़ा अजीब वाकया हुआ मेरे साथ । एक स्पैशल मैसेंजर के जरिये मेरे को ब्राउन पेपर में लिपटा एक पैकेट डिलीवर हुआ जिस पर मेरा पता तो दूर, नाम तक नहीं था । मैसेंजर मेरे रूबरू हुआ, मेरे से मेरे नाम की तसदीक की और पैकेट मुझे थमाकर ये जा वो जा ।”
“क्या था पैकेट में ?”
“मैं वहीं पहुंच रहा हूं यार ।”
“सॉरी ।”
“दो-दो हजार के नये चले नोटों की तीन गड्डियां थीं । छ: लाख रुपये थे नकद । क्या समझे ?”
मैंने अनभिज्ञता से कन्धे उचकाये ।
“उतनी रकम थी जितनी से सार्थक की जमानत की रकम शार्ट थी ।”
“ओह ! ओह ! साथ कोई कवरिंग लैटर था ?”
“नहीं । खाली एक चिट थी जिस पर लिखा था : एक सदउद्देश्य के लिये एक शुभचिन्तक का योगदान ।”
“कोई नाम, कोई दस्तखत नहीं ?”
“न ।”
“योगदान आपके पास क्यों पहुंचाया गया ? ‘सार्थक को इंसाफ दो’ वालों को क्यों न पहुंचाया गया ?”
“शुभचिन्तक को उसमें कोई प्राब्लम लगी होगी ! या लगा होगा कि वहां कोशिश करने में एक्सपोजर का खतरा था ।”
“खामखाह ! जैसे मैसेंजर राजेन्द्रा प्लेस पहुंचा था, वैसे जन्तर मन्तर पहुंच जाता !”
“जैसे उसने पैकेट मेरे को सौंपा, वैसे वहां किसको सौंपता ! फिर भी किसी एक को चुनता तो हो सकता था कि वो भेजने वाले की बाबत जाने बिना पैकेट लेने से इंकार देता । या पैकेट खुद ही हज्म कर जाता ! इस बाबत क्या कहते हो ?”
मुझे जवाब न सूझा ।
“गुप्त दान की कोई रसीद तो ईशू होती नहीं ! फिर वो दानकर्ता तो इच्छुक ही नहीं था रसीद पाने का या बतौर मेजर कंट्रीब्यूटर अपनी हाजिरी लगवाने का ।”
“ठीक ।”
“उस कथित शुभचिन्तक को किसी तरीके से मालूम था कि मैं सार्थक का वकील था । उसे यकीन था कि मैं अमानत में खयानत नहीं कर सकता था ।”
“उसे खबर कैसे लगती कि आपने ऐसा किया था या नहीं ?”
“सार्थक के जमानत पर बाहर आने से लगती कि मैंने अमानत में खयानत नहीं की थी । वो तब भी आजाद न होता तो मतलब साफ होता कि रकम मैं हज्म कर गया था ।”
“तो वो क्या करता ? वापिस वसूली के लिये आपके पास पहुंच जाता ?”
“क्या पता क्या करता ! हो सकता है उसके ऐसे भी साधन हों ! जब हम जानते ही नहीं कि डोनर कौन है तो क्या कहा जा सकता है !”
“बहरहाल आपकी अमानत में खयानत की कोई मंशा नहीं ?”
“पागल हुए हो ! कल सार्थक की जमानत की रकम जमा हो जायेगी, जज ने कोई हुज्जत न की तो परसों वो बाहर होगा ।”
“हुज्जत कैसी ?”
“जजों का नखरा है, कई बार फैसला एकाध दिन के लिये रिजर्व रख लेते हैं ।”
“आई सी । लेकिन जमानत एक सुविधा है जो सार्थक को हासिल होगी । जमानत हो जाने से कोई बेगुनाह तो साबित नहीं हो जाता न ! मुकद्दमा तो उस पर फिर भी चलेगा !”
“वो तो है ।”
“फिर रहस्यमयी रमणी की - जो अव हम जानते हैं संगीता निगम है - सीक्रेट एलीबाई की अहमियत खत्म तो नहीं हो गयी न ! किसी और तरीके से वो बेगुनाह साबित न किया जा सका तो उस एलीबाई की दरकार तो उसे बराबर होगी !”
“मैंने ये बात संगीता से डिसकस की थी । अपनी बात पर तो वो अभी भी कायम है लेकिन अब उसमें एक पेच पड़ गया है ।”
“क्या ?”
“ये अफवाह गर्म है कि आलोक निगम को मंत्री बनाया जा सकता है । प्रधान मंत्री ने निकट भविष्य में कैबिनेट रीशफल का स्पष्ट संकेत दिया है । संगीता कहती है कि जब तक वो रीशफल न हो जाये, एमपी साहब मंत्री बनते हैं या नहीं बनते, ये बात स्पष्ट न हो जाये, तब तक वो सामने नहीं आयेगी ।”
“यानी तब तक वो गवाही नहीं देगी ?”
“हां । अपने पति के राजनैतिक भविष्य की खातिर, भविष्य निर्धारित हो जाने तक वो किसी स्कैंडल का अंग बनने को तैयार नहीं । कहती है उसके नाम से जुड़ा वो स्कैंडल उसके पति का राजनैतिक भविष्य बिगाड़ सकता है ।”
“उसके बाद ।”
“असर तो बाद में भी होगा लेकिन तब तक निगम मन्त्री बन चुका होगा । उस स्कैंडल ने, कि उसकी बीवी का अपने कम उम्र के एक करीबी रिश्तेदार से अफेयर है कैबिनेट रीशफल से पहले सिर उठाया तो बहुत मुमकिन है कि सम्भावित नये मंत्रियों की लिस्ट में से उसका नाम ड्रॉप कर दिया जाये !”
“ओह !”
“अब तुम्हारे पर भी प्रेशर है, शर्मा, कि पहले ही कुछ कर दिखाओ वर्ना संगीता की नयी शर्त सार्थक के लिये बहुत नुकसानदेय साबित होगी ।”
“मैं कोशिश करूंगा । कर रहा हूं आगे और शिद्दत से करूंगा ।”
“यस, प्लीज । यू विल बी हैण्डसमली कम्पंसेटिड ।”
“फिर तो जी जान से कोशिश करूंगा ।”
“कल जब संगीता से मिलो तो उसको उसकी उस शर्त से भी हिलाने की कोशिश करना । तुम्हारे किसी मिकनातीसी सुरमे के बहुत चर्चे सुने हैं मैंने, कल उसको आंखों में लगा के जाना न भूलना । शायद वो संगीता पर भी अपना असर दिखाये और वो अपनी शर्त वापिस ले ले ।”
मैं फैसला न कर सका कि वो संजीदा था या तंज कस रहा था ।
“अपने रीयल एस्टेट एक्सपर्ट से कोई मशवरा हुआ आपका ?”
“हुआ । पवन सेठी से कल मेरी लम्बी मीटिंग हुई थी ।”
“क्या जाना ?”
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