Thriller इंसाफ

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koushal
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Re: Thriller इंसाफ

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“अमरनाथ परमार का कोई बहुत बड़ा कंस्ट्रक्शन प्रोजेक्ट पाइपलाइन में है जिसके लिये उसका दुबई की किसी कंस्ट्रक्शन कम्पनी से कोई टाई अप हुआ है । परमार ने उस प्रोजेक्ट के लिये एडवांस में एक बड़े भूखण्ड का पोजेशन अपनी कम्पनी के पास दिखाना है, तभी टाई अप फाइनल होगा और फॉरेन फाइनांस का इनफ्लो शुरू होगा । जो भूखण्ड परमार की निगाह में है वो देवली के उस हिस्से में है जिसमें सार्थक की मां अहिल्या बराल का मकान है । वैसे सवा सौ के करीब मकान परमार के फोकस में हैं । हैरान करने वाली बात ये पता लगी है कि उसमें से तीस एक ही औरत के नाम रजिस्टर्ड हैं ।”
“और” - मैंने सस्पैंस के हवाले पूछा - “वो औरत अहिल्या बराल है ?”
“नहीं ।”
मैंने चैन की सांस ली ।
“तो कौन है ? मालूम पड़ा ?” - मैंने पूछा ।
“हां ।”
“अरे, तो बताओ न कौन है ! तपा क्यों रहे हो ?.”
“कमला ओसवाल ।”
“हे भगवान !”
“चौंक गये न ?”
“हां । बुरी तरह से ।”
“अपनी डिटेक्शन की रुटीन में बात करना उससे इस बाबत ।”
“ये मुमकिन नहीं ।”
“क्यों ?”
“दिल्ली में नहीं है । सुना है जयपुर गयी है । अभी कल रात ही गयी है, कब लौटेगी, पता नहीं ।”
“ओह !”
“पीछे उसके यहां एक काण्ड हो गया है जिसकी उसको खबर लगेगी तो बुरा हाल होगा उसका ।”
“कैसा काण्ड ?”
“उसके पीठ फेरते ही उसके घर को आग लग गयी ।”
“ओ गॉड !”
“फायर ब्रिगेड ने आकर बुझाई । वो लोग आनन फानन पहुंचे, देर करते तो सब स्वाहा हो चुका होता ।”
“आई सी ।”
“अब भी कोई कम डैमेज नहीं हुआ है लेकिन इमारत बिल्कुल ही खंडहर होने से बच गयी है ।”
“आगजनी के वक्त घर होती तो !”
उसके शरीर ने स्पष्ट झुरझुरी ली ।
“तो बोलो राम हो गया होता ।”
“शुक्र है बचाव हुआ, लेकिन बड़ा नुकसान तो हुआ !”
“तीस मकानों की मालकिन बता रहे हैं आप उसे । क्या फर्क पड़ता है !”
“अरे, पीडी साहब, अक्ल से काम लो ।”
“क्या अक्ल से काम लूं ? क्या हुआ ?”
“मैंने कहा है कि तीस मकानों का रजिस्ट्रेशन उसके नाम है, ये नहीं कहा कि मालकिन वो है ।”
“क्या फर्क हुआ ?”
“शायद विस्की का असर है जो दिमाग बराबर काम नहीं कर रहा । अरे, हालात ढ़ोल बजा के कह रहे हैं कि वो बेनामी का मामला है ।”
“यानी” - मैं नेत्र फैलाता बोला - “वो अमरनाथ परमार की बेनामी खरीद है ?”
“पवन सेठी को गारन्टी है इस बात की । कहता है परमार की उधर की और परचेजिज भी बेनामी की हो सकती हैं ।”
“आई सी ।”
“देवली में परमार का कोई बड़ा गेम चल रहा है - बड़ा और खुफिया - लेकिन वो हमारी तफ्तीश का मुद्दा नहीं अगरचे कि उसका उसकी बेटी के कत्ल से कोई रिश्ता न हो । शर्मा, वो बात तुम्हारी जानकारी के लिये है क्योंकि तुम इस जानकारी के तालिब थे लेकिन उसके बखिये उधेड़ने की कोशिश तभी करना जबकि गारन्टी हो कि उसका कत्ल के केस से कोई रिश्ता है । समझे ?”
“हां ।”
“मैं अब चलता हूं । गुड नाइट ।”
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अगले दिन एडवोकेट महाजन को मिले छ: लाख रुपये के अनुदान की खबर अखबार के मुखपृष्ठ पर थी ।
मुझे हैरानी हुई ।
इस बात ने आखिर तो रौशनी में आना ही था लेकिन वो इतनी जल्दी लीक हो जायेगी, इसका मुझे इमकान नहीं था । बहरहाल इतनी जल्दी वो खबर या दाता लीक कर सकता था, या प्राप्तकर्ता ।
दाता गुमनाम था इसलिये मैंने उस बाबत महाजन को फोन लगाया ।
वकील ने बताया कि खबर उसने प्रैस को लीक नहीं की लेकिन रकम उसने कल ही ‘सार्थक को इंसाफ दो’ कमेटी को सौंप दी थी ताकि पूरी जमानत राशि का - बीस लाख का - एडवांस में ड्राफ्ट बनवाया जा सकता । उसकी राय में खबर या कमेटी से लीक हुई थी या इरादतन लीक की गयी थी ।
जमानत के सन्दर्भ में अमरनाथ परमार का छोटा सा बयान छपा था जिसमें उसमें ‘कातिल’ की - अपने दामाद की नहीं - जमानत की मुखालफत की थी और पुरजोर अलफाज में कहा था कि जमानत हरगिज नहीं होनी चाहिये थी ।
बहरहाल आज जमानत राशि अदा हो जानी थी ।
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koushal
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Post by koushal »

सांसद आलोक निगम की निजी कोठी साकेत में थी जबकि - उसे बतौर सांसद राजेन्द्र प्रसाद रोड पर सरकारी बंगला भी अलाटिड था । मुझे साकेत में हाजिरी भरने का हुक्म हुआ था इसलिये मैं वहां पहुंचा वर्ना मुझे मालूम नहीं था कि निगम परिवार का हालिया स्थायी आवास साकेत में था या राजेन्द्र प्रसाद रोड पर ।
कोठी के आयरन गेट पर मैंने कोई दरबान तैनात न पाया । गेट ठेल कर मैं भीतर दाखिल हुआ, मैंने मेनडोर पर पहुंच कर कालबैल बजाई ।
दरवाजा खुद संगीता निगम ने खोला, उससे मैंने यही अन्दाजा लगाया कि उन लोगों की रेगुलर रिहायश सरकारी बंगले में थी, वहां वो मेरे से मुलाकात के लिये ही मौजूद थी । उस घड़ी वो वैसी काली जींस पहने थी जो टखनों तक नहीं पहुंचती थी, घुटनों से जरा नीचे पिंडलियों पर ही खत्म हो जाती थी । साथ में वो वैसा ही काला ट्यूबटॉप पहने थी जो उसके वक्ष से बस जरा ही नीचे तक पहुंचता था । उसका नंगा पेट ऐन सपाट था, सुडौल था, मां बन चुकी थी तो कमाल था, नहीं बन चुकी थी - चालीस से ऊपर तो शर्तिया थी - तो उस उम्र में तो फिर भी कमाल था ।
कुछ खुशकिस्मत औरतों को अक्षत यौवन का वरदान प्राप्त होता था, संगीता यकीनन वैसी ही खुशकिस्मत औरतों में से एक थी ।
वो मुझे ड्राईंगरूम में लेकर आयी जहां हम आमने सामने बैठे ।
उसने मेरा परिचय प्राप्त करने की कोशिश नहीं की थी, दो वजह से ऐसा था - एक तो वो राज शर्मा से प्रीशिड्यूल्ड मीटिंग थी, दूसरे शायद उसे शुक्रवार की रोज़वुड क्लब में हुई हमारी मुख़्तसर मीटिंग की याद आ गयी थी ।
“हमारा रहन सहन आर.पी. रोड के सरकारी बंगले में है ।” - उसने मेरे अनुमान की तसदीक की - “यहां मैं तुम्हारे से मुलाकात के लिये आयी हूं ताकि तुम्हें दूर न जाना पड़े ।”
“ऐसा नहीं होने वाला था” - मैं बोला - “क्योंकि मैं भगवान दास रोड पर रहता हूं ।”
“दूसरे” - उसने जैसे मेरी बात सुनी ही नहीं - “मैं इस मीटिंग को सीक्रेट रखना चाहती हूं । यहां एक केयरटेकर होता है, उसको मैंने एक ऐसे काम से भेज दिया है जिसमें उसे घंटे से ज्यादा लग जायेगा । हमारी मीटिंग इतना टाइम तो नहीं लेगी ?”
“नहीं ।”
“कोई चाय-काफी पियोगे ?”
“टाइम जाया होगा । दूसरे आपको बनानी पड़ेगी ।”
“तो कोल्ड ड्रिंक ?”
“जरूरत नहीं । आप तकल्लुफ बिल्कुल न कीजिये । मुझे किसी चीज की जरूरत नहीं ।”
“सो नाइस आफ यू ।”
“अलबत्ता स्मोक करने से ऐतराज न करें तो...”
“ओह, नो । गो अहेड ।”
“थैंक्यू ।”
मैंने अपना डनहिल का पैकेट निकाला और एक सिग्रेट सुलगा लिया ।
“इस वक्त मेरा हसबैंड यहां आ टपके” - वो बोली - “तो जानते हो क्या होगा ?”
“क्या होगा ?” - मैं सकपकाया सा बोला ।
“जल भुनकर कबाब हो जायेगा ।”
“काहे को ?”
“आदत बना ली है उसने ऐसी । मैं जो करूं गलत । मुझे मेल कम्पनी में देखेगा तो बोलेगा निम्फो, फीमेल कम्पनी में देखेगा तो बोलेगा लेस्बियन ।”
“ओ, माई गॉड !”
“मर्द की फितरत होती है ये, स्पेशियलिटी होती है ये, खुद सालोंसाल बीवी की उंगली न थामी हो, किसी दूसरे को कुछ थामता देखेगा तो कहेगा गोली मार दूंगा ।”
“गुस्ताखी माफ, बहुत कडुवाहट है आपके मन में पति के लिये ?”
“कोई ओवरनाइट तो नहीं हो गयी !”
“तो... बनती तो क्या होगी उनसे !”
“काफी समझदार हो । क्लब में मैं एक निगाह मैं भांप गयी थी कि इधर” - उसने एक उंगली से अपनी कनपटी ठकठकाई - “कुछ रखते हो ।”
“जहेनसीब ।”
“कौन सा नसीब ?”
“मेरा मतलब है कि मेरा अहोभाग्य कि आपने ऐसा कुछ समझा ।”
“कुछ नहीं, काफी कुछ समझा ।”
“काफी कुछ ?”
“हां । शेफाली तुम्हारे पर फिदा जान पड़ती थी ।”
“अरे, नहीं, मैडम । मैं तो लाइफ में पहली बार उससे मिला था । पहली बार में ऐसा करतब कहीं होता है !”
“होता है । आजकल कोर्टशिप में टाइम न जाया करने का रिवाज है ।”
वो ही बातें चलती रहती तो शाम वहीं हो जाना कोई बड़ी बात नहीं थी जबकि खुद उसने वार्निंग जारी की थी कि हमारे पास सीमित समय था । लिहाजा मुझे कूद कर मुख्य विषय पर पहुंचना जरूरी लगने लगा ।
“आपके पति को” - मैं बोला - “सार्थक बराल से आपके अफेयर की खबर है ?”
एकाएक हुए उस सवाल पर वो हड़बड़ाई लेकिन हड़बड़ाहट मुश्किल से दस सैकंड ही कायम रही ।
“हां, खबर है ।” - वो दिलेरी से बोली - “जानते हो कैसे खबर है ? मैंने बताया ।”
“जी !”
“बस, इतना फर्क हुआ कि परमार साहब से पहले न बता सकी ।”
“क्या ! अमरनाथ परमार साहब को इस बात की खबर थी ?”
“हां ।”
“कैसे लगी ?”
“श्यामला से लगी ।”
“लेकिन मैंने सुना है कि श्यामला को इस बाबत कुछ नहीं मालूम था !”
“कौन कहता है ?”
“खुद सार्थक कहता है ।”
“वो नादान है । अपने आपको भरमाता है । उस कबूतर की तरह है जो आंखें बन्द कर लेता है और समझ लेता है कि खतरा टल गया ।”
“कबूतरों का बहुत तजुर्बा है आपको ।”
वो हंसी ।
मेरे को तो हंसी फाश लगी लेकिन शायद वो मेरा भ्रम था, खुराफाती दिमाग का खलल था ।
“लेकिन” - उसका स्वर संगीतमय हुआ - “यही अदा तो कातिल है जिसने हमको मारा है ।”
“जो कुछ आपने निगम साहब को बोला, उसे सुन कर वो क्या बोले ?”
“वो क्या बोलते ! सिवाय इसके कि घोषित करने लगे कि मेरा उनका रिश्ता खत्म था ।”
“अच्छा !”
“हां । लेकिन खत्म रिश्ते को भी बनाये रखना मेरे पति की मजबूरी थी । वो पॉलिटिक्स में हैं जहां दागदार नेता का पतन कोई बड़ी बात नहीं । इस बात का आम होना उसके किरदार पर बड़ा दाग होता कि उसकी बीवी का किसी से अफेयर था । लिहाजा वो मुझे परित्यक्ता बना सकता था, डाईवोर्सी नहीं बना सकता था ।”
“मन्त्री बन जाने के बाद ?”
“तब भी फौरन नहीं । वो उज्जवल छवि वाला नेता बताता है अपने आपको । अपनी छवि को खुद दागदार करना वो अफोर्ड नहीं कर सकता ।”
“ऐसा कब तक चलेगा ?”
“क्या पता !”
कुछ क्षण खामोशी रही ।
उस दौरान मैंने अपने सिग्रेट के दो कश लगा कर उसे तिलांजलि दी ।
“श्यामला तलाक की तैयारी कर रही थी ।” - फिर मैं बोला - “अब ये बात साफ है कि उस फैसले की वजह पति की बेवफाई थी । उसका तलाक का केस कोर्ट में जाता तब भी तो सार्थक के आपसे अफेयर की पोल खुलती ! तब भी तो वो स्कैण्डल खड़ा होता जो आपके पति नहीं खड़ा होने देना चाहते थे ।”
“अरे, कहीं तुम ये हिन्ट तो नहीं ड्रॉप कर रहे कि मेरे पति ने श्यामला का कत्ल किया था ?”
“आप इस बात को नहीं झुठला सकतीं कि श्यामला की मौत की वजह से तलाक की बात खत्म हो गयी है और आपके अफेयर का पर्दाफाश होने से बच गया है ।”
“मेरा अपने पति से कोई लगाव बाकी नहीं लेकिन मैं उसकी कल्पना कातिल के तौर पर नहीं कर सकती ।”
“हैसियत और रसूख वाले लोगों को कत्ल खुद नहीं करना पड़ता ।”
“मैं तुम्हारा इशारा समझ रही हूं लेकिन मैं वो बात भी मानने को तैयार नहीं । मेरा पति इतना नीचे नहीं गिर सकता कि खुद अपनी भांजी के कत्ल का सामान करे ।”
“आई सी ।”
“और फिर सौ बातों की एक बात, मुझे मालूम है कातिल कौन है !”
“अच्छा ! मालूम है !”
“हां ।”
“कौन है ?”
“माधव धीमरे ।”
“ऐसा सोचने की वजह ?”
“सार्थक उसका कर्जाई था...”
“आप सार्थक की कोई माली इमदाद नहीं करती थीं ? आखिर आप एक सम्पन्न व्यक्ति की पत्नी हैं ।”
“और उस सम्पन्न व्यक्ति ने मेरे लिये खजाने खोले हुए हैं ?”
“ऐसा नहीं था ?”
“जैसे तल्ख हमारे ताल्कुकात चल रहे थे, उसमें क्यों भला वो अपनी सम्पन्नता में मुझे शेयरहोल्डर बनाता ?”
“ठीक !”
“फिर भी मेरे से कुछ बन पड़ता था तो मैं करती थी सार्थक के लिये । लेकिन आखिर था तो वो भी मर्द ही !”
मैं सकपकाया, उसके लहजे की वितृष्णा मेरे से छुपी न रही ।
“कोई” - मैं बोला - “शिकायत हुई उससे ?”
“बड़ी शिकायत हुई ।”
“क्या ?”
“मुझे उसका झुकाव शेफाली की तरफ बनता जान पड़ा ।”
“अरे, नहीं ।”
“औरत की छठी इन्द्रिय बोलती है इन मामलों में । उन दोनों में जरूर कुछ चल रहा था ।”
वो जज्बाती हो उठी । मैंने उसके गले की घन्टी उछलती साफ देखी ।
koushal
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मैं कैसे उसे समझाता कि मर्द से धोखा खाना औरत का प्रारब्ध था । आदिकाल से ऐसा ही चला आ रहा था । कैसे समझाता कि प्यार और वासना में सूई की नोक जितना ही फर्क होता था । कैसे समझाता कि मर्द की भंवरे वाली फितरत नहीं बदल सकती थी ।
“शायद ये आपका भ्रम हो !” - फिर भी मैंने उसे तसल्ली देने की कोशिश की ।
उसने जवाब न दिया, मुझे लगा कि वो अपने आंसू रोकने की कोशिश कर रही थी ।
मैं उठ कर उसके पहलू में पहुंचा और उसकी पीठ थपथपाकर उसे सांत्वना देने लगा ।
वो हौले से मेरे साथ आ लगी, उसने अपना सिर मेरे कंधे पर टिका दिया और आंखें बन्द कर लीं ।
मैंने उसका वो गाल सहलाया जो मेरे कन्धे के साथ लगा हुआ था और उसके जो आंसू पोंछे जिनका कोई वजूद नहीं था । मेरा दूसरा हाथ उसके कन्धों के गिर्द से सरक कर पीठ पर पड़ा, पीठ से कमर तक पहुंचा और और भी उत्तर दक्षिण कई जगह भटका ।
उसने कोई ऐतराज न किया ।
मैंने और हिम्मत की, मैंने दायें हाथ की एक उंगली उसकी ठोढी के नीचे टिकाकर उसका चेहरा ऊंचा किया और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिये ।
वो कसकर मेरे साथ लिपट गयी ।
कई क्षण यथापूर्व स्थिति बनी रही । फिर एकाएक वो मेरे से अलग हुई ।
“दरवाजा खुला है ।” - वो हांफती सी बोली ।
“लेकिन” - मैं बोला - “केयरटेकर के आने में तो अभी बहुत वक्त है ।”
“इत्तफाकन जल्दी आ सकता है ?”
“ओह ! तो दरवाजा बन्द करें ।”
“जाने दो अब ।”
मैंने जाने दिया ।
वो किसी की ब्याहता बीवी थी, किसी की माशूक थी, फिर भी उस पर ‘अवेलेबल’ का साइन बोर्ड लगा हुआ था । तभी तो सयाने कहते हैं कि औरत अभिसाररत भी हो तो एक हाथ फ्री रखती है ताकि किसी दूसरे कद्रदान, मेहरबान को वेव करने का स्कोप बना रहे ।
त्रिया चरित्रम्, पुरुषस्य भाग्यम्; दैवो न जानियेत्, कुतो मनुष्य: ।
मैं उस घड़ी उसका चरित्र देख रहा था और अपना भाग्य देख रहा था ।
बाज औरतें पंचायती हुक्का होती हैं जिन्हें कोई भी गुड़गुड़ा सकता है ।
फर्क भी क्या पड़ता था !
कहीं कोई मीटर तो लगा हुआ था नहीं ! फिर फिरंगियों की जुबान में कहते ही हैं कि ‘वन्स ए केक इज कट, नोबॉडी मिसिज ए पीस’ ।
यानी एक बार संतरा छिल जाये तो एक फांक की घट बढ़ का क्या पता लगता था ।
उस विषय पर से अपना ध्यान हटाने के लिये मैं बोला - “आपकी सार्थक के शेफाली की तरफ झुकाव वाली बात मुझे कतई हजम नहीं हो रही । जरूर ये आपका वहम है ।”
“तुम कहो” - वो बोली - “कि शेफाली का झुकाव तुम्हारी तरफ है तो मैं मान लूंगी मेरा वहम है ।”
उसकी उस बात ने मेरे सामने धर्म संकट खड़ा कर दिया था ।
क्या मैं उसकी खातिर झूठ बोलूं ? और नहीं तो इसलिये झूठ बोलूं कि अभी खातिर करा के हटा था !
“मेरी उससे हालिया मुलाकात है ।” - मैं बोला - “अभी पिछले शुक्रवार ही मैं उससे पहली बार मिला था ।”
“तो ?” - वो बोली ।
“शेफाली भली लड़की है ।”
गुजश्ता सारी रात मेरे साथ गुत्थमगुत्था थी भली लड़की ।
“वो तो वो है !” - उसने मेरी राय को मोहरबन्द किया ।
“माधव धीमरे की बाबत क्या कहती हैं ?”
“सार्थक उसका अस्सी हजार रुपये का कर्जाई था । जिस रात श्यामला का कत्ल हुआ था, उस रात धीमरे ने अपनी रकम कलैक्ट करने के लिये मोतीबाग जाना था । उससे पहले हमारी सीक्रेट मीटिंग प्लेस पर सार्थक मुझे मिला था और तब मैंने धीमरे को लौटाने के लिये उसे अस्सी हजार रुपये दिये थे । उसकी धीमरे से मुलाकात का दस बजे का टाइम पहले से फिक्स था लेकिन” - उसके चेहरे पर एक रंगीन मुस्कान आई - “तुम जानते ही होगे दो चाहने वालों की सीक्रेट मुलाकात में क्या होता है ! वन थिंग लीड्स टु एनदर । टाइम का पता ही नहीं चला ।”
“आखिर कब फ्री हुआ, वहां से कब गया सार्थक ?”
“ग्यारह तो बज ही गये थे । मेरे खयाल से साढ़े ग्यारह होने वाले थे या हो चुके थे ।”
“आप लोगों की सीक्रेट मीटिंग प्लेस से मोतीबाग में उसका घर कितनी दूर था ?”
“ज्यादा दूर नहीं था । बड़ी हद दस मिनट में मोतीबाग पहुंचा जा सकता था ।”
“ये है वो सीक्रेट प्लेस ?”
“नहीं ।”
“आपके पति को मालूम है कि जिस रात श्यामला का कत्ल हुआ था, उस रात आप सार्थक के साथ थीं ?”
“मेरे खयाल से नहीं । मेरे घर लेट पहुंचने की वजह से कुछ सूझ गया हो तो बात दूसरी है वर्ना नहीं ।”
“उसे आपके लौटने की खबर लगी थी ?”
“हां ।”
“कुछ बोला नहीं ? कोई कमेंट न किया ?”
“भई, हम एक दूसरे से तभी कलाम करते हैं जब तकरार करनी हो, लड़ना झगड़ना हो ।”
“आई सी । बाई दि वे, सार्थक की बाबत एक गुड न्यूज है मेरे पास ।”
“क्या ?”
“उसकी जमानत की रकम का इन्तजाम हो गया है । कल वो रकम जमा करा दी जायेगी, फिर परसों या उससे अगले दिन वो बाहर आ जायेगा ।”
उसकी शक्ल से न जाने क्यों मुझे यूं लगा जैसे उस गुड न्यूज से उसे कोई गुडनैस हासिल नहीं हुई थी ।
“क्या बात है ?” - मैं पूछे बिना न रह सका - “आपको इस खबर से कोई खुशी न हुई ?”
वो खामोश रही ।
“शायद आप समझती हैं वो आजाद हो कर आपकी बाबत मुंह फाड़ेगा ।”
“वो बात नहीं है ।”
“तो ?”
“उसका आजाद होना उसके लिये खतरनाक साबित हो सकता है, उसका कोई बुरा अंजाम हो सकता है ।”
“आपके पति के किये ?”
“शरद के किये । उसका मिजाज वैसे ही वायलेंट है, आजकल और वायलेंट हो गया है ।” - वो एक क्षण ठिठकी, फिर बोली - “उस रोज क्लब में बहुत बढ़िया हैंडल किया तुमने उसे । बहन को हिट करने लगा था । कामयाब हो जाता तो बुरा होता । तुम्हारी वजह से तो लोगों को पता ही न चला कि उसका इरादा क्या था !”
“शरद की फौजदारी नहीं चलेगी ।”
“कैसे रोकोगे ?”
“जैसे शुक्रवार को रोकी थी । सार्थक बाहर आ जायेगा तो मैं उसे अपने साथ अपने घर में रखूंगा ।”
“तुम ऐसा करोगे ?”
“इरादा तो है ! उसी ने मना कर दिया तो बात दूसरी है ।”
“आखिर क्या होगा ?”
“आखिर वो बरी होगा । जब आप इतने दावे के साथ कहती हैं कि कातिल माधव धीमरे है तो क्यों नहीं होगा ! ऊपर वाले के घर देर है, अन्धेर नहीं है ।”
“लेकिन कहने से क्या होता है ! कोई साबित भी तो करके दिखाये कि कातिल वो है !”
“होगा । आखिर साबित होगा । और किसी तरीके से नहीं होगा तो आपकी गवाही से होगा ।”
“उससे सार्थक बरी होगा, धीमरे मुजरिम थोड़े ही साबित हो जायेगा ?”
“पुलिस भी तो कुछ करेगी ? जब वो बरी हो जायेगा तो क्या के किसी आल्टरनेट कैंडीडेट पर तवज्जो नहीं देगी ? और फिलहाल तो आल्टरनेट कैंडीडेट धीमरे ही दिखाई दे रहा है ।”
“हूं ।”
“गवाही की बाबत आपका क्या इरादा है ?”
“मैं एडवोकेट महाजन पर जाहिर कर चुकी हूं । जब तक मेरे पति के मन्त्री पद का कोई फाइनल नतीजा सामने नहीं आ जाता, मैं कोर्ट में खड़ी होकर गवाही देने को तैयार नहीं ।”
“ये आपका दृढ़ निश्चय है ?”
“हां ।”
“ठीक है फिर” - मैं उठ खड़ा हुआ - “फिर तो कुछ कहना सुनना । बाकी नहीं रह गया । फिर तो मुझे इजाजत दीजिये ।”
उसने सहमति में सिर हिलाया और खुद भी उठ कर खड़ी हुई ।
मेरे साथ वो मेन डोर पर पहुंची ।
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Re: Thriller इंसाफ

Post by koushal »

वहां मैं एक क्षण को ठिठका, उसकी तरफ घूमा - “हाउ अबाउट वन फार दि रोड ?”
तत्काल वो मेरी बांहों में आ गयी ।
प्रगाढ़ आलिंगन और चुम्बन का आदान प्रदान हुआ ।
औरत और कुछ समझे न समझे, फाश इशारा गोली की तरह समझती है ।
अपने आपको सब्र का सबक देते हुए मैं उससे अलग हुआ । मैं कोठी से बाहर निकल कर सड़क पर पहुंचा और अपनी कार में सवार हुआ ।
तभी मुझे एक बीएमडब्ल्यू कार वहां पहुंचती दिखाई दी । वो और करीब आ गयी तो मैंने देखा उसे एक वर्दीधारी ड्राइवर चला रहा था और उसकी पिछली सीट पर सांसद आलोक निगम विराजमान था ।
उसकी खुर्दबीनी निगाह का शिकार होते मैंने अपनी कार को रफ्तार दी ।
पता नहीं उसको खबर लगी थी या नहीं कि तभी मैं उसी की कोठी में से बाहर निकला था ।
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अगले दिन सार्थक की जमानत हो गयी ।
लेकिन कागजी कार्यवाही मुकम्मल होने में और उसे रिहा किये जाने में शाम हो गयी ।
तब पूर्वनिर्धारित प्रोग्राम के तहत उसे मेरे हवाले कर दिया गया । वकील ने उसे समझा दिया कि क्यों ऐसा किया जाना जरूरी था, उसने खामोशी से समझ लिया । यानी उसे मेरे साथ रहने से कोई ऐतराज नहीं था ।
मीडिया की तवज्जो से सार्थक को एडवोकेट महाजन ने बचाया । उसकी जगह वो मीडिया के रूबरू हुआ । सार्थक की जगह उसने मीडिया को बयान दिया कि इतने दिन जेल में गुजारे होने की वजह से वो बीमार हो गया था ।
जबकि वो पूरी तरह से हट्टा कट्टा और तन्दुरुस्त था ।
पिछले साल भगवान दास रोड शिफ्ट करने से पहले मैं ग्रेटर कैलाश पार्ट वन के एक छोटे से फ्लैट में रहता था जो कि इमारत की पहली मंजिल के फ्रंट में था । मेरे से वाकिफ लोगबाग ये तो जानते थे कि मैंने वहां से शिफ्ट कर लिया था लेकिन ये नहीं जानते थे कि ग्रेटर कैलाश वाला फ्लैट अभी भी मेरे कब्जे में था और वैसे ही फर्निश्ड था जैसे मैं वहां रहता था तो था । वहां से मैंने कुछ नहीं हटाया था, भगवान दास रोड वाले फ्लैट के लिये मैंने हर चीज नयी खरीदी थी । मुझे सार्थक को वहां ले के जाना श्रेयस्कर लगा ।
उसने मेरे दो कमरों के फ्लैट का मुआयना किया जिसमें बैडरूम बड़ा था और सिटिंग रूम छोटा था ।
“एक ही बैडरूम है ।” - वो होंठों में बुदबुदाया ।
“लेकिन उसमें बैड किंग साइज है ।” - मैंने आगाह किया - “आठ गुणा आठ फुट साइज की ।”
“मैं ड्राईंगरूम के सोफे पर सो सकता हूं ।”
“कड़ाके की ठण्ड का मौसम है । सोच लो ।”
“मुझे कोई प्राब्लम नहीं होगी । कम्बल एक एक्स्ट्रा दे देना ।”
“मर्जी तुम्हारी । तो आखिर जमानत हो ही गयी !”
“हां, भई । नर्क से छुटकारा मिला ।”
“फंसे बुरे !”
“किस्मत की बात है । मालिक के हाथ है ।”
“तुम इसलिये फंसे क्योंकि तुम्हारा भाई तुम्हें ठीक से सपोर्ट न कर सका । तुम्हें मजबूत एलीबाई न दे सका ।”
“अब उस बात का जिक्र बेकार है ।”
“जिक्र बेकार नहीं है अगरचे कि उसने जानबूझ कर अपनी एलीबाई को बंगल न किया हो !”
“जानबूझ के ?”
“हां ।”
“नानसेंस ! वो भला क्यों करेगा ऐसा ?”
“कत्ल में अगर उसका रोल है तो क्यों नहीं करेगा ?”
“कैसा रोल ?”
“अगर तुमने नहीं किया तो कत्ल उसने किया हो सकता है ।”
“अटर नानसेंस ! कातिल माधव धीमरे है ।”
“किसी का नाम ले देने से कोई कातिल नहीं बन जाता । इलजाम तभी अपने पैरों पर खड़ा हो पाता है जबकि उसे सबूतों की मजबूत सपोर्ट हासिल हो । तुम्हारे पास धीमरे के खिलाफ कोई सबूत नहीं है ।”
“सबूत तुम तलाश करो । सुना है मोटी फीस पर काम कर रहे हो ! दिखाओ कुछ करके । करो कोई करतब ?”
“मेरे पास कोई जादू का डण्डा नहीं है जो मैं...”
“अच्छा, नहीं है ! वकील तो कुछ और ही कहता था !”
“क्या कहता था ?”
उसने जवाब न दिया ।
“पीडी का काम तफ्तीश से चलता है । तुम भी मेरी तफ्तीश का हिस्सा हो । मालूम !”
“हूं तो क्या ?”
“तो ये कि जो पूछूं उसका जवाब दो ।”
“पूछो ।”
“श्यामला का किसी से अफेयर था ?”
“मुझे खबर नहीं ।”
“हो सकता था ?”
“होने को क्या नहीं हो सकता !”
“तुम्हारे से ठीक पेश आती थी ? जैसे एक निष्ठावान पत्नी को पति से, पति परमेश्वर से पेश आना चाहिये ?”
वो परे देखने लगा ।
“जवाब दो ।” - मैंने जिद की ।
“नहीं ।” - वो कठिन स्वर में बोला ।
“तुम्हारे वैवाहिक अधिकारों को नजरअंदाज करती थी ?”
“हां । अक्सर ।”
“मैं शेफाली से मिला था । वो कहती है कि श्यामला और शरद में गहरे ताल्लुकात थे ।”
“गहरे ताल्कुकात से क्या मतलब है तुम्हारा ?”
“ऐसे वैसे ताल्कुकात थे ।”
“पागल हुए हो ! वो भाई बहन थे ?”
“शेफाली ने अपनी आंखों से देखा ।”
“क्या ? क्या देखा ?”
“वही जो नहीं देखना चाहिये था ! जो नहीं होना चाहिये था !”
“सच कहते हो ?”
“अगर शेफाली सच कहती है तो सच कहता हूं ।”
“और क्या कहती है ?”
“और भी बहुत कुछ कहती है । जो कहती है उसे खुद समझो । गन्दगी कुरेदने का नामुराद काम मेरे से क्यों कराते हो ?”
“हूं ।”
वो खामोश हो गया ।
मैं उसके दोबारा बोलने की प्रतीक्षा करता रहा ।
वो दोबारा बोला तो उसके स्वर में उग्रता नहीं थी, बल्कि दयनीयता थी ।
“शेफाली ने एक दो बार ऐसा हिन्ट तो दिया था” - वो दबे स्वर में बोला - “लेकिन वो नाकाबिलेयकीन बात थी इसलिये मैं समझा था कि मैं हिन्ट को गलत कैच कर रहा था । खोल के करने लायक बात नहीं थी, आखिर वो मेरी साली थी और वो एक बेहूदा सब्जेक्ट था । दूसरे, मैं जानता था वो अपनी छोटी बहन को कोई खास पसन्द नहीं करती थी । वजह मुझे मालूम नहीं लेकिन वो श्यामला से कुढ़ती थी । इसलिये भी मैंने सोचा कि उस मामले में वो नाहक एक की आठ लगा रही थी ।”
“मुझे तो वो सच बोलती जान पड़ी थी ! बहुत इमोशनल थी वो इस मामले में । रोने लगी थी ।”
“तो सच कहती होगी । देखो, भाई, वो नाम के भाई बहन थे । असल मैं न उनकी मां एक थी, न बाप एक था । उस लिहाज से उनके ताल्लुकात कोई ऐसे तो हाहाकारी नहीं थे कि सुन कर कान पक जाते ! फिर कमउम्री की बातें थी ! बड़े लोगों की बातें थीं । जितना ज्यादा कोई बड़ा उतनी ज्यादा पोल उसके ढोल में । नहीं ?”
“हां । चलो, माना कि वो कमउम्री का जुनून था । अब सवाल ये है कि क्या श्यामला की शादी के बाद भी उसके और शरद के बीच वो ताल्लुकात कायम थे !”
“भई, ये वाहियात बात है, मैं इसके जिक्र से परेशान हूं । मैं दूसरे तरीके से एक बात बोलता हूं ।”
“बोलो ।”
“जब मैं ‘रोज़वुड’ में रिसैप्शनिस्ट की नौकरी करता था तो शरद मेरे से बहुत अच्छी तरह से पेश आता था, सोशल स्टेटस में इतना फर्क होने के बावजूद मेरे से दोस्त जैसा बर्ताव करता था । लेकिन ज्यों ही उसे मेरे श्यामला से अफेयर का हिन्ट मिला, वो बेरुखी दिखाने लगा । हमने शादी कर ली तो बिल्कुल ही होस्टाइल हो गया । तब उसके मिजाज में एकाएक आयी तब्दीली मेरी समझ से बाहर थी लेकिन अब जबकि तुम दावे के साथ ये एक नयी बात बता रहे हो तो जो असल बात पहले मेरी समझ में नहीं आयी थी वो अब कील ठोक के आ रही है । जरूर वो मेरे से इसलिये खफा था क्योंकि मैं उसके सामान का मालिक बन बैठा था ।”
“हूं ।”
“अब मेरे को ये भी याद पड़ता है कि वो दोनों बहुत लड़ते झगड़ते रहते थे लेकिन अब तो लगता है कि वो तकरारबाजी दिखावा था, असलियत पर पर्दा डालने का ड्रामा था । हे भगवान ! मर्द जब पति बन जाता है तो कैसे अक्ल और आंख दोनों का अंधा हो जाता है !”
जैसे वो कुछ कम था ! शादीशुदा, उम्र में बड़ी औरत से अफेयर था और जाहिर यूं कर रहा था जैसे बड़ा फेथफुल हसबैंड था । यानी एक ही काम जब मर्द करे तो ‘होता है, यार । चलता है, भई,’ औरत करे तो गोली मार देने के काबिल । मर्द करे तो एडवेंचरिस्ट, औरत करे तो छिनाल । कैरेक्टरलैस !
“तुम्हारे से शादी कर लेने को” - प्रत्यक्षत: मैं बोला - “हो सकता है शरद ने इस निगाह से देखा हो कि उसके साथ धोखा हुआ था, दगाबाजी हुई थी । इस लिहाज से क्या वो श्यामला का कातिल हो सकता है ?”
“मैं इस बारे में दावे के साथ कुछ नहीं कर सकता । लेकिन इतना जरूर कह सकता हूं कि शरद मिजाज का तीखा है, बहुत जल्दी भड़कता है, किसी से भी पंगा लेने को, झगड़ा मोल लेने को हर घड़ी तैयार रहता है । खुद मेरे साथ कई बार यूं बददिमागी से पेश आया था कि हाथापाई की नौबत का गयी थी । ऊपर से हैवी ड्रिंकर है । ऐसा शख्स जाने अनजाने क्या न कर गुजरे, पता लगता है !”
“ये बात तो तुम्हारी ठीक है ! उसके मिजाज का मजा तो मैं भी चख चुका हूं ।”
“अच्छा ! कैसे ? कब ?”
मैंने उसे शुक्रवार के ‘रोज़वुड’ के वाकये की बाबत बताया ।
“कमाल है !”
“इतने बखेड़े खड़े करता है, कभी पुलिस के फेर में नहीं पड़ा ?”
“पड़ता है । रोडरेज के मामलों में कई बार पुलिस आती है लेकिन ज्यों ही पता चलता है किसका बेटा है, किसका भांजा है, पुलिस वाले दूसरी पार्टी को दोषी ठहराने लगते हैं । एक बार मेरे से भी लड़ा था तो पुलिस आ गयी थी । ज्यों ही उन्हें पता लगा कि वो बड़े बिल्डर का बेटा था, एमपी का भांजा था और मैं नेपाली था तो तो फौरन झगड़ा शुरू करने के लिये मुझे जिम्मेदार ठहराने लग गये थे । यहां तक बोले कि हम नेपाली गैरकानूनी ढ़ण्ग से हिन्दोस्तान में घुस आते थे और यहां की अमन शान्ति भंग करते थे ।”
“गलत है । नाजायज है ।”
“मेरे मोतीबाग के एक पड़ोसी ने ही एक बार मेरी ये गत बनाई थी ।”
“किसने ?”
“जो सड़क के पार ऐन हमारे सामने रहता है ।”
“दर्शन सक्सेना ?”
“यही नाम होगा !”
“क्या हुआ था ?”
“छोटी सी तकरार हुई । गुस्से में मेरे मुंह से निकल गया ‘आई विल किल यू’ । उसने पुलिस बुला ली । मैंने समझाने की कोशिश की कि कोई झगड़े की गर्मागर्मी में ऐसा कहता है तो कर थोड़े ही डालता है ! लोग बाग ताव में आकर मां की गाली देते हैं, बहन की गाली देते हैं तो जाके मां बहन से बलात्कार तो नहीं करने लगते ! सब-इन्सपेक्टर को बराबर मेरी बात जंची लेकिन ज्यों ही उसे पता चला कि मैं नेपाली था, पलटी खा गया । सारे बखेड़े के लिये मुझे जिम्मेदार ठहराने लग गया । बड़ी मुश्किल से जान छूटी ।”
“तकरार की वजह क्या थी ?”
“वजह तो बड़ी थी, इतनी बड़ी कि मैं सब न दिखाता तो वैसी तकरार कई बार हो चुकी होती ।”
“क्या वजह थी ?”
“जासूसी करता था । श्यामला को ताड़ता था । और ये उसका एकाध बार का नहीं, हमेशा का शगल था ।”
“क्या करता था ?”
“दूरबीन से हमारे घर को बीनता रहता था । कई बार देखा मैंने । उसकी कोठी में बेसमेंट है जिसकी वजह से कोठी सड़क के लैवल से पांचेक फुट ऊंची है । अपने ड्राइंगरूम की खिड़की से मैंने कई बार उसे हमारे घर पर दूरबीन फोकस किये देखा था ।”
“ओह !”
“अक्सर बहाने से हमारे यहां आता था और श्यामला से बतियाने लगता था ।”
“ठरकी था !”
“या मैंटल था । मैंने धमकाया उसे एकबार कि अगर मैंने फिर कभी उसकी दूरबीन अपने घर पर फोकस देखी तो दूरबीन उसके हलक में घुसेड़ दूंगा ।”
“पक्की बात कि हलक ही बोला था ?”
वो हंसा, तत्काल संजीदा हुआ ।
“पुलिस को रपट लिखवाने की न सोची ?”
“पुलिस ! हा हा हा । एक बार थोड़ा पकड़ के झिंझोड़ा भर था तो आई थी न पुलिस ! मुझे दोषी करार दे कर गयी थी ।”
“दूरबीन से देखता क्या था ?”
“अब क्या बोलूं क्या देखता था ! जो देखता था उसके लिये श्यामला भी जिम्मेदार थी ।”
“वो कैसे ?”
“घर में नंगी फुंगी फिरती थी । तरीके से तन नहीं ढ़ंक के रखती थी । गर्मियों में बई बार तो बस छोटी सी निक्कर चढ़ा लेती थी और और कुछ भी नहीं ।”
“ब्रा भी नहीं ?”
“न ! मैंने कई बार टोका, नहीं सुनती थी । कहती थी ऐसे वो कम्फर्टेबल फील करती थी ।”
“पर्दा ! घर की फरनिशिंग में एक आइटम पर्दा भी होती है ?”
“नहीं पड़ा होता था ड्राईंगरूम की खिड़की पर । टोकने पर कह देती थी खींचना भूल गयी । असल में जो करती थी, जानबूझ कर करती थी क्योंकि नुमायश का शौक था । जिस्म की नुमायश करके खुश होती थी, सुख पाती थी ।”
“फिर पड़ोसी ही तो पूरी तरह से गलत न हुआ न !”
“क्यों न हुआ ? श्यामला बेगैरत होकर दिखाती थी तो उसकी गैरत तो नहीं मर गयी थी ! बुजुर्गी में कदम था उसका ! अपना नहीं तो अपनी उम्र का ही लिहाज करता !”
उसकी लॉजिक में नुक्स था लेकिन मैंने उसे न टोका ।
“तुम श्यामला पर हाथ उठाते थे ?”
“कौन कहता है ? शेफाली ?”
“शरद ।”
“तुम्हारे से बोला ?”
“पुलिस से बोला । पुलिस से मेरे को मालूम हुआ ।”
“कमीना साला !”
“ये बोलो कि बात सच है कि नहीं ?”
“एक बार, सिर्फ एक बार ऐसी नौबत आयी थी । हमारे में भीषण तकरार छिड़ गयी थी जो कि कोई नयी बात भी नहीं थी । गुस्से में वो एक वास उठा कर मुझे मारने दौड़ी थी । मार्बल का वास था । एक ही वार मुझे हस्पताल पहुंचाने के लिये काफी होता । तब मैंने उसे एक झापड़ रसीद किया था - वो भी उसको चोट पहुंचाने के लिये नहीं, उसके होश ठिकाने लगाने के लिये । बस वो एक वाकया हुआ था हाथ उठाने का जिसका कि मैं गुनहगार हूं । कोई कहता है कि ऐसा अक्सर होता था तो झूठ बोलता है, बकवास करता है ।”
“आई सी ।”
उसकी बातों से और कुछ साबित होता या न होता, एक बात तो साबित होती थी ।
उसे अपनी बीवी की मौत का कोई अफसोस नहीं था । उसकी बाबत वो जरा जज्बाती नहीं था, पेरिशेबल आइटम की तरह उसका जिक्र कर रहा था ।
“रॉक डिसिल्वा के बारे में क्या कहते हो ?” - मैं बोला - “कभी उसका श्यामला की तरफ कोई रुझान नोट किया था ?”
“नानसेंस ! अरे वो गे है । हर किसी को मालूम है ।”
मैं पूछना चाहता था कि कैसे हर किसी को मालूम था लेकिन तभी मेरे मोबाइल की घंटी बजी ।
मैंने काल रिसीव की ।
संगीता निगम लाइन पर थी ।
लेकिन वो मेरे से नहीं, मेरे मेहमान से बात करना चाहती थी ।
मैंने फोन सार्थक की तरफ बढ़ा दिया ।
सार्थक ने तनिक हड़बड़ाते हुए फोन थामा और कान से लगाया ।
दूसरी तरफ से आती आवाज सुनाई देते ही उसका मिजाज तब्दील हुआ, वो उछलकर खड़ा हुआ और लम्बे डग भरता बैडरूम में दाखिल हो गया ।
माशूक की काल जो ठहरी ! मेरे सामने कैसे रिसीव कर सकता था !
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