लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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mastram
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लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

मैं अपने फ्लैट में सोफा चेयर में धंसा हुआ, सिगरेट का कस लेने में मशगूल था। दस बज चुके थे मगर ऑफिस जाने का मेरा कतई कोई इरादा नहीं था। सिगरेट के कश लेता हुआ मैं ये तय करने की कोशिश कर रहा था कि क्या करूँ, ऑफिस ना जाने की सूरत में क्या करूं?

इन दिनों कोई खास काम मेरे हाथ में नहीं था और गैर-खास काम करने की आपके खादिम को आदत नहीं थी, बर्शते कि बहुत ही ज्यादा कड़की भरी जिंदगी ना चल रही हो। मेरी रिसेप्शनिष्ट कम सेक्रेटरी-कम-पार्टनर-कम-सब कुछ-डॉली पिछले दो दिनों से छुट्टी पर थी। दरअसल वह अपनी किसी दूर के रिश्तेदार से मिलने सीतापुर गई हुई थी। मेरी उसे सख्त हिदायत थी कि वहाँ पहुँचकर पहली फुर्सत में वो मुझे फोन करे।

मगर थी तो आखिर एक औरत ही! एक बार में कोई बात भला भेजे में कैसे दाखिल हो सकती थी। लिहाजा दो दिन बीत जाने पर भी मुझे उसकी कोई खोज-खबर नहीं मिली थी।

मैं उसके लिए फिक्रमंद था।

उतना ही जितना मैं अपनी काम वाली बाई के लिए फिक्रमंद होता हूं! भला जूठे बर्तन धोना क्या कोई हंसी मजाक है।

बहरहाल डॉली के बिना अपने ऑफिस जाकर, तनहाई की बोरियत झेलते हुए किसी क्लाइंट का इंतजार करना, अपने आप में निहायत लानती काम था। टेलीफोन के लिए ऑनसरिंग सर्विस की सुविधा मुहैया थी। अगर कोई मुझे फोन करता तो मैसेज मुझे मिल जाना था। इसलिए ऑफिस जाना भी जरूरी नहीं था।

वैसे तो आज मोबाइल के दौर में शायद ही कोई लैंडलाइन पर कॉल करता हो फिर भी कमबख्त डॉली को जैसे कोई अलामत थी, वह जब तक जीभरकर लैंडलाइन की घंटी ना बजा ले! मोबाइल पर कॉल करना तो उसे सूझता ही नहीं था।

अब आप सोच रहे होंगे कि अगर मैं उसके लिए फिक्रमंद हूं तो खुद उसके मोबाइल पर कॉल क्यों नहीं कर लेता।

उसकी माकूल वजह पहले ही बयान कर चुका हूं कि मैं उसके लिए किस हद तक फिक्रमंद हूं। ना-ना, आप मेरे बारे में गलत धारणा बना रहे हैं। मेरी बातों का मतलब ये हरगिज ना लगायें कि मुझे उसकी परवाह नहीं है। उल्टा इस दुनिया में खुद के बाद अगर बंदा किसी की परवाह करता है तो वह डॉली ही है। मगर है वो पूरी की पूरी आफत की पुड़िया। और आफत! जैसा कि आप जानते ही होंगे, जहां जाती है दूसरों को फिक्र में डाल देती है, फिर भला आफत की क्या फिक्र करना।

क्या नहीं आता कम्बख्त को! मार्शल आर्ट में ब्लैक बैल्ट है। निशाना उसका इतना परफेक्ट है कि क्या कहूं! अगर वह एकलब्य की जगह होती तो द्रोणाचार्य ने सिर्फ उसका अंगूठा मांगकर तसल्ली ना की होती बल्कि पूरा हाथ ही निपटवा दिया होता। अर्जुन को हीरो जो बनाना था।

और डांस!....माई गॉड, डांस फ्लोर पर जाते ही उसके जिस्म की सारी हड्डियां जगह-जगह से टूटी हुई महसूस होने लगती हैं? जरूर प्रभु देवा साहब का असर होगा। कहती है बचपन से उनका डांस देखती हुई बड़ी हुई है, पता नहीं वो प्रभुदेवा साहब को उम्रदराज साबित करना चाहती थी या खुद को कमसिन साबित करना चाहती थी। वैसे भी जो प्रभू भी हो और देवा भी हो उसकी चेली ने कुछ तो खास होना ही था और वो खास बात उसके डांस में दूर से ही नुमायां हो जाती थी।

खूबसूरत इतनी कि मत पूछिये, ऐश्वर्या जी पर रहम खाकर उसने मिस वर्ल्ड 1994 की प्रतिस्पर्धा से अपना नॉमीनेशन वापस न लिया होता तो आज आप उसके जलवे देख रहे होते और मुझे उसपर डोरे डालने का कोई चांस ही हांसिल नहीं होता।

सबकुछ वाह-वाह! वाला था, बस कमबख्त में एक ही ऐब था - मुझे जरा भी भाव नहीं देती थी।

बहरहाल जैसा की मैंने बताया - घर में बैठा सिगरेट फूंकने का निहायत जरूरी काम कर रहा था और ऑफिस जाने का मेरा कोई इरादा नहीं था। अब सवाल ये था कि ऑफिस ना जाने की सूरत में क्या किया जाए? सिगरेट का कश लगाने के अहम काम को मुल्तवी करके क्या किया जाय! अभी मैं इसी उधेड़बुन में फंसा हुआ था कि टेलीफोन की घण्टी बज उठी।

जनाब मेरी सलाह है कभी भी टेलीफोन या मोबाईल की कॉल पहली घंटी पर हरगिज ना अटैंड करें, बल्कि उसे बजने दें, ताकि कॉल करने वाले को यकीन आ जाय कि आप कितने व्यस्त हैं-जो कि आप बिल्कुल नहीं होते-मगर इससे सामने वाले को एहसास होता है कि उसकी कॉल अटैंड करके आपने उसकी आने वाली सात पुश्तों पर कितना बड़ा एहसान किया है।
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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मैंने कुछ देर तक घंटी बजते रहने के बाद रिसीवर उठाकर कान से सटा लिया।

”हैल्लो“-मैं माउथपीस में बोला, ”राज हियर।“

”राज“-दूसरी तरफ से उसकी खनकती आवाज कानों में पड़ी। कसम से! सच कहता हूं पूरे शरीर में चींटियां सी रेंग उठीं, ”मैं डॉली बोल रही हूँ।“

खामोशी छा गयी, मगर कानों में उसकी सांसों के उतार-चढ़ाव की आवाज आती रही। मैं उन लम्बी-लम्बी सांसों के साथ उसके बदन के फ्रंट पेज पर उठते-गिरते उभारों का तबोस्सुर करने लगा। मैं तो जनाब अभिसार के सपने भी संजो लेता मगर कम्बख्त ने पहले ही टोक दिया।

”तुम सुन रहे हो।“

”यस, माई डियर, एक ही तो अहम काम है इस वक्त, जो मैं कर रहा हूं।‘‘

”मैं सीतापुर में हूं।“

”अच्छा, मैं तो समझा था तू चाँद पर है।“

”मजाक मत करो प्लीज, गौर से मेरी बात सुनो।“

”नहीं सुनता कोई जबरदस्ती है।“

”ओफ-हो! राज।“ वह झुंझला सी उठी- ”कभी तो सीरियस हो जाया करो।“

उसकी झुंझलाहट में कुछ ऐसा था जिसे मैं नजरअंदाज नहीं कर सका, तत्काल संजीदा हुआ।

‘‘सुन रहे हो या मैं फोन रखूं।‘‘ वो मानों धमकाती हुई बोली।

”अरे-अरे तू तो नाराज हो गई, अच्छा बता क्या बात है, वहां सब खैरियत तो है।“

”पता नहीं यार! यहां बड़े अजीबो-गरीब वाकयात सामने आ रहे हैं। कुछ समझ में नहीं आ रहा क्या करूं।‘‘

”तू ठीक तो है।“

”हाँ तुम सुनाओ क्या कर रहे हो?“

”झख मार रहा हूँ।“

वह हँस पड़ी। क्या हंसती थी कम्बख्त, दिल के सारे तारों को एक साथ झनझनाकर रख देती थी।

”सोचता हूं जासूसी का धंधा बंद करके, मूँगफली बेचना शुरू कर दूँ।“

”नॉट ए बैड आइडिया बॉस, लेकिन मूँगफली नहीं गोलगप्पे! सच्ची मुझे बहुत पसंद हैं।“

”क्या, गोलगप्पे?‘‘

”नहीं गोलगप्पे बेचने वाले मर्द़“

”ठहर जा कमबख्त, मसखरी करती है।“

”क्या करूं तुम और कुछ करने ही कहां देते हो, बस मसखरी करके ही काम चला लेती हूं।“

”और कुछ! और कुछ क्या करना चाहती है?“

”ओह माई गॉड! यार राज तुम मतलब की बात हमेशा गोल कर जाते हो।“

”मतलब की बात!“

”हाँ मतलब की बात जो इस वक्त मैं कर रही हूं।‘‘ वह बेहद संजीदा लहजे में बोली, ‘‘ये तो तुम जानते हो कि मैं यहाँ क्यों आई थी।“

”हाँ तेरे किसी पुराने आशिक का फोन आया था जो तुझसे मिलने को तड़प रहा था। उसी की पुकार सुनकर तू बावली-सी, दिल्ली से सीतापुर पहुंच गई। एक जो यहां पहले से इतना बड़ा दावेदार बैठा है उसका तुझे ख्याल तक नहीं आया।“


”नानसेंस, वह फोन मेरे आशिक का नहीं बल्कि हमारे दूर के रिश्तेदार मानसिंह की लड़की जूही का था।”

”तो पहले बताना था कि वो कोई लड़की है, मैंने खामखाह ही पांच सौ रूपये बर्बाद कर दिये।‘‘

‘‘किस चीज पर!‘‘

‘‘कल ही थोड़ा सा संखिया खरीद कर लाया था।‘‘

‘‘किसलिए?‘‘

‘‘सुसाईड करने के लिए।‘‘

‘‘हे भगवान!‘‘उसने एक लम्बी आह भरी,‘‘राज आखिरी बार पूछ रही हूं तुम ध्यान से मेरी बात सुन रहे हो या मैं फोन रख दूं।‘‘

‘‘जूही को तुम कब से जानती हो।‘‘ मैं मुद्दे पर आता हुआ बोला।
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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”जानने जैसी तो कोई बात नहीं थी, क्योंकि इससे पहले बस दो-तीन बार अलग-अलग जगहों पर, रिश्तेदारों की शादियों में हाय-हैलो भर हुई थी। बस उसी दौरान थोड़ी जान-पहचान हो गई थी। तुम यकीन नहीं करोगे सप्ताह भर पहले जब उसने कॉल करके बताया कि वो जूही बोल रही है तो मैं उससे पूछ बैठी कि कौन जूही? कहने का तात्पर्य ये है कि मुझे उसका नाम तक याद नहीं था। मगर पिछले दो दिनों मैं उसके बारे में सबकुछ जान चुकी हूं। वो तो जैसे एकदम खुली किताब है! छल-कपट जैसी चीजें तो जैसे उसे छूकर भी नहीं गुजरी हैं। बहुत ही मासूम है वो, एकदम बच्चों की तरह। ग्रेजुएट है मगर दुनियादारी से एकदम कोरी। ऐसे लोगों की जिन्दगी कितनी कठिन हो जाती है, इसका अंदाजा तुम बखूबी लगा सकते हो।‘‘

”मैं समझ गया तेरी बात, मगर ये समझ नहीं आया कि उसने खास तुझे क्यों बुलाया, जबकि तेरे कहे अनुसार तुम दोनों एक दूसरे को ढंग से जानते भी नहीं थे?“

‘‘उसने खास मुझे नहीं बुलाया राज! बल्कि चाचा, मामा, मौसा, फूफा वगैरह-वगैरह को फोन कर करके, हर तरफ से निराश होकर, उसने मुझे फोन किया था और झिझकते हुए पूछा था - क्या मैं कुछ दिनों के लिए उसके साथ उसके घर में रह सकती हूं - उस वक्त उसका लहजा इतना कातर था राज, कि मैंने उससे वजह पूछे बिना ही हामी भर दी।‘‘

‘‘बुलाया क्यों था?‘‘

”क्योंकि वो मुसीबतों के ढेर में नीचे-बहुत नीचे कहीं दबी पड़ी है। हाल ही में हुई पिता की मौत तो जैसे उसके लिए सूनामी बनकर आई और उसकी तमाम खुशियां अपने साथ बहा ले गई। सुबह से शाम तक आंसू बहाना और फिर बिना खाए-पिए अपने कमरे में जाकर बिस्तर के हवाले हो जाना, यही दिनचर्या बन चुकी है उसकी।‘‘

”यानी कि तू हकीम-लुकमान साबित नहीं हो पाई उसके लिए।“

‘‘समझ लो नहीं हो पाई।‘‘

‘‘ओके अब मैं तुझसे फिर पूछ रहा हूं कि असली मुद्दा क्या है, क्या उसे कोई आर्थिक मदद चाहिए।‘‘
जवाब में वह ठठाकर हंस पड़ी।

‘‘मैंने कोई जोक सुनाया तुझे!‘‘

‘‘कम भी क्या था। तुम्हारी जानकारी के लिए बता दूं, उसके पास इतनी दौलत है कि उसकी सात पुश्तें बिना हाथ-पांव हिलाए ऐश की जिन्दगी गुजार सकती हैं।‘‘

‘‘जरूर बिल गेट्स की बेटी होगी, अब मैं फिर पूछ रहा हूं कि उसकी प्रॉब्लम्स क्या हैं, कैसी मदद चाहिए उसे?‘‘

”पता नहीं उसे किस किस्म की मदद चाहिए। वह बुरी तरह डरी हुई है। वो समझती है कि उसकी जान को खतरा है। कोई है, जो उसे मार डालना चाहता है। वह हर वक्त किसी अनजाने-अनदेखे खतरे से खुद को घिरा हुआ महसूस करती है।“

”घूंट लगाती है?“

”क्या!....कौन?“

”तेरी सहेली और कौन?“

”नहीं वो ड्रिंक नहीं करती?“

”तू कहती है वो डरी हुई है, हर वक्त खुद को किसी खतरे से घिरा हुआ महसूस करती है। ये बता कोई पड़ा क्यों है यूं उसकी जान के पीछे। मेरा मतलब है उसने कोई वजह बताई हो, किसी का नाम लिया हो, किसी पर शक जाहिर किया हो?“

”ऐसा कुछ नहीं है, वो किसी का नाम नहीं लेती। मैंने भी बहुत कोशिश की मगर कुछ नहीं पता चला। लेकिन जिस तरह की हालिया वारदातें यहाँ घटित हुई हैं उससे साफ जाहिर हो रहा है कि कोई बड़ा खेल खेला जा रहा है यहां, कोई गहरी साजिश रची जा रही है इस हवेली में।‘‘

”हवेली!“

”हां हवेली, लाल हवेली, जूही यहीं रहती है यह उसके पुरखों की हवेली है, उनका खानदान सदियों से यहां रहता चला आ रहा है।“

‘‘ठीक है आगे बढ़।“

‘‘वो कहती है कि मरे हुए लोग अचानक उसके आगे आ खड़े होते हैं। हवेली में नर कंकाल घूमते दिखाई देते हैं। बंद कमरे में कोई अंजान सख्स दो बार उसपर गोली चलाकर उसकी जान लेने की कोशिश कर चुका है।“

”उसको बोल डरावनी कहानियां लिखना शुरू कर दे।“

”देखो बाकी बातों का मुझे नहीं पता मगर नर कंकालों को घूमते मैंने अपनी आंखों से देखा है।‘‘

”अब तू शुरू हो गयी?“

”मुझे मालूम था तुम्हें यकीन नहीं आयेगा, यकीन आने वाली बात भी नहीं है।“

”फिर भी तू चाहती है कि मैं यकीन कर लूँ।“

”हाँ और ना सिर्फ तुम्हें यकीन दिलाना चाहती हूँ बल्कि साथ में ये भी चाहती हूँ कि तुम फौरन यहाँ आ जाओ।“

”तौबा! मरवाने का इरादा है क्या?“

”क्या?“

”देखो जाने जिगर मैं जासूस हूँ कोई तांत्रिक नहीं, मैं जिन्दा व्यक्तियों से तो मुकाबला कर सकता हूँ, पूछताछ भी कर सकता हूँ मगर किसी भूत-प्रेत या नरकंकाल का इंटरव्यू लेना मेरे बस का रोग नहीं है, फिर उनसे मुकाबला क्या खाक करूँगा।“

”मगर अभी पल भर पहले तो तुम उनके अस्तित्व को नकार रहे थे।“

”मैं सिर्फ तेरी हौसला-अफजाई कर रहा था, तब मुझे ये कहाँ मालूम था, कि तू मुझे वहाँ आने को कहने लगेगी, ये तो वही मसल हुई कि नमाज बख्शवाने गये और रोजे गले पड़ गये।“
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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”यानी कि डरते हो भूतों से।“

”सब डरते हैं यार! इसमें नई बात क्या है।“

”मैं तुम्हारी बात कर रही हूँ।“

”मैं तो और भी फट्टू हूं इस मामले में।“

”यानी कि तुम यहाँ नहीं आओगे।“

”हरगिज नहीं अलबत्ता मैं तेरी सहेली की एक मदद जरूर कर सकता हूँ।“

”वो क्या?“

”एक हनुमान चालीसा खरीद कर उसे कूरियर कर सकता हूँ।“

”शटअप।“

”तूने शायद पढ़ा नहीं है उसमें लिखा है जब महाबीर नाम सुनावै भूत पिशाच निकट नहीं आवै।“

”आई से शटअप।“

”मेरी माने तो फौरन से पेश्तर उस भूतिया हवेली से किनारा कर ले।“

”राज“ - वो गुर्रा उठी - ”मैं तुम्हारा खून पी जाऊंगी।“

”हे भगवान! तेरे पर भी असर होने लगा उस भूतिया माहौल का, खून पीने की बात करने लगी है।‘‘

”राज प्लीज! जूही सचमुच किसी बड़ी मुसीबत में है।“ - वह अनुरोध भरे स्वर में बोली - ”उसकी हालत पागलों जैसी हो कर रह गई है, अगर यही हाल रहा तो वह सचमुच पागल हो जाएगी। उसका चचेरा भाई तो उसे पागल करार दे भी चुका है। मैंने खुद सुना, वह फोन पर किसी से कह रहा कि - जूही को अब किसी पागलखाने में भर्ती कराना पड़ेगा।“

”जमूरे का नाम क्या है?“

”प्रकाश! पहले मुम्बई में रहता था अपने पेरेंट्स के साथ मगर पिछले कुछ महीनों से यहीं डेरा डाले हुए है। मैंने आज सुबह ही इस बाबत सवाल किया तो कहने लगा कि वो जूही को इस हालत में छोड़कर कैसे जा सकता है।“

”ठीक है, अब फाइनली बता कि तू मेरे से क्या चाहती है।“

”प्लीज यहां आ जाओ। जूही के लिए ना सही मगर मेरी खातिर तो आ ही सकते हो।“

”मैं चाँद पर भी जा सकता हूँ, मगर सिर्फ तेरी खातिर।“

”थैंक्स यार।“ कहकर उसने सीतापुर पहुंचकर लाल हवेली पहुंचने का रास्ता समझाया। फिर कॉल डिस्कनैक्ट कर दिया।

सिगरेट एक्स्ट्रे में मसलने के बाद मैं कुर्सी छोड़कर उठ खड़ा हुआ। एक बैग में अपना कुछ जरूरी सामान पैक करने के पश्चात् मैंने अपनी अड़तीस कैलीवर की लाइसेंसशुदा रिवाल्वर निकालकर पतलून की बेल्ट में खोंसकर ऊपर से कोट का बटन बन्द कर लिया और कुछ एक्सट्रा राऊण्ड अपनी जेब में रखने के पश्चात् अपना फ्लैट छोड़ दिया। अपनी मोटरसाइकिल द्वारा मैं नीलम तंवर के ऑफिस पहुँचा, रिसैप्शनिष्ट ने बिना पूछे ही मुझे बता दिया कि वो ऑफिस में मौजूद थी।
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अठाइस के पेटे में पहुंची नीलम बेहद खूबसूरत युवती थी। वो क्रिमिनल लॉयर थी, इस पेशे में उसने खूब नाम कमाया था। आज की तारीख में वो वकीलों की फर्म ‘घोषाल एण्ड एसोसिएट‘ की मालिक थी। उससे मेरी मुलाकात लगभग पांच साल पहले एक कत्ल के केस में हुई थी। बाद में घटनाक्रम कुछ यूं तेजी से घटित हुए थे कि उसके बॉस अभिजीत घोषाल का कत्ल हो गया जो कि इस फर्म का असली मालिक था। घोषाल बेऔलाद विदुर था, हैरानी की बात ये थी कि उसने अपनी वसीयत में नीलम को अपना उत्तराधिकारी घोषित कर रखा था, जो कि महज उसके फर्म के दूसरे वकीलों की तरह ही एक वकील थी।

बहरहाल उसके कत्ल के बाद उसकी तमाम चल-अचल सम्पत्ति जैसे छप्पर फाड़कर नीलम की गोद में आ गिरी थी। लिहाजा जिस ऑफिस में वह नौकरी भर करती थी आज उसकी इकलौती मालिक थी। और वो सोचती थी कि ये सब मेरी वजह से हुआ था। मैंने भी उसकी ये गलतफहमी दूर करने की कभी कोशिश नहीं की। उसके बॉस की मौत के बाद गाहे-बगाहे हमारी मुलाकातें होती रहीं। फिर बहुत जल्दी हम अच्छे दोस्त बन गये। आज तक यह दोस्ती ज्यों की त्यों बरकरार थी।

मैं उसके कमरे में पहुँचा वो कुछ लिखने में व्यस्त थी।

”हैल्लो।“ - मैं धीरे से बोला।

”हैल्लो“ - उसने सिर ऊपर उठाया और चहकती सी बोली -‘‘हल्लो राज प्लीज हैव ए सीट।’

”नो थैंक्स मैं जरा जल्दी में हूँ।“

‘‘कभी-कभार मेरे लिए भी वक्त निकाल लिया करो यार! वो कहावत नहीं सुनी चिड़ी चोंच भर ले गई, नदी ना घटियो नीर। मुझे वो चोंच भर ही दे दिया करो कभी।‘‘

‘‘ताने दे रही हो?‘‘

‘‘हां मगर तुम्हारी समझ में कहां आता है।‘‘

कहकर वो हंस पड़ी मैंने उसकी हंसी में पूरा साथ दिया।

”कहीं बाहर जा रहे हो।“

”हाँ?“

”कहाँ?“

मैंने बताया।

”किसी केस के सिलसिले में या फिर.....।“

”मालूम नहीं।“

”लेकिन जा रहे हो।“

”हाँ डॉली भी वहीं हैं उसी ने फोन कर के मुझे वहाँ बुलाया है।“

”ओह! यूं बोलो ना ऐश करने जा रहे हो।“

”मुझे तुम्हारी कार चाहिए।“ मैं उसकी बात को नजरअंदाज करके बोला।

उसने कार की चाबी मुझे पकड़ा दी।

”मुझे वहाँ हफ्ता-दस रोज या इससे ज्यादा भी लग सकते हैं।“

”क्या फर्क पड़ता है यार!“ - वह बोली - ”वैसे अगर तुम चाहो तो मैं ड्राईवर को तुम्हारे साथ भेज दूँ, लम्बा सफर है थकान से बच जाओगे।‘‘

”नो थैंक्स।“

”तुम्हारी मर्जी“ - उसने कंधे उचकाये।

ऑफिस से बाहर आकर मैं उसकी शानदार इम्पाला कार में सवार हो गया।
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