लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by mastram »

‘‘इंस्पेटर साहब, आप लेट हो गये।‘‘
‘‘मैं कभी लेट नहीं होता बरर्खुदार हमेशा सही समय पर सही जगह पहुंचता हूं।‘‘ अब तक दरवाजा खुलना शुरू हो चुका था, ‘‘घबराओ मत ये मैं ही हूं, बेहिचक सब लोग बाहर आ जाओ।‘‘
सुनकर मैं भौंचक्का रह गया। दरवाजा खुला, दरवाजे पर इंस्पेक्टर जसवंत सिंह पुलिस की वर्दी में खड़ा मुस्करा रहा था। पता चला वह उस वक्त हवेली ही आ रहा था जब मैंने उसे फोन किया था।
”चाचा जी के क्या हाल-चाल हैं।“
अब तक हम सभी बाहर आ चुके थे और दीवानखाने में जमा थे, नौकर जूही के कहने पर चाय बना लाया था।
”वो इस वक्त हवालात में हैं। रतनबाबू उनका सेक्रटरी था, वो सजायाफ्ता था। एक बार राहजनी और दो बार 307 के केस में जेल जा चुका था। करीब दो साल पहले वह श्यामसिंह की मुलाजमत में आया था। उसके बाद उसने कोई जुर्म नहीं किया था। मेरा मतलब है हालिया घटनाओं को छोड़कर। मूलतः वह आजमगढ़ का रहने वाला था, डबल एमए था। सालों पहले रोजी रोटी की तलाश में मुम्बई गया था तब वहीं का होकर रह गया। तुम पहले ही उससे मिल चुके हो।“
”कहां?“
”शम्मो के कोठे पर जो सूट-बूट वाला आदमी तुमने देखा था वो श्यामसिंह का सेक्रेटरी ही था। वह काफी दिनों से यहीं रंजीत सिंह के मकान में रह रहा था। रंजीत सिंह वो आदमी है जिसका नम्बर तुमने मुझे दिया था।“
‘‘ओह, बहरहाल ये रतन बाबू कहां मिलेंगे?‘‘
‘‘कहीं नहीं, कल उसने अपने एक साथी के साथ डॉली को अगवा करने की कोशिश की तो पाशा उल्टा पड़ गया। नौबत यहां तक आ गयी कि इन देवी जी ने उसे मुंह खोलने को मजबूर कर दिया मगर इससे पहले की वह कुछ काम की बात बता पाता उसके आका ने उसे गोली मार दी।‘‘
‘‘मुझे पूरी बात बताओ प्लीज, क्या हुआ था वहां?‘‘ जवाब में डॉली ने पूरी कहानी दोहरा दी।
‘‘तुम्हारा मतलब है वह असली अपराधी का नाम लेने जा रहा था तभी उसे सूट कर दिया।‘‘
‘‘एक्जेटली।‘‘ डॉली बोली।
”श्यामसिंह ने अपना जुर्म कबूल कर लिया।“
”अभी नहीं, अभी तो हमने उसे सिर्फ तुम लोगों को नजरबंद करने के लिए हिरासत में लिया है। क्या चार्ज लगाना है यह बाद में सोचेंगे। फिलहाल कुछ बातें हैं जिनका जवाब तुमसे मिलने की उम्मीद कर रहा हूं।“
‘‘पूछो सरकार।‘‘
‘‘प्रकाश का कत्ल किसने किया। श्यामसिंह का नाम मत लेना, हमने चेक करवाया है प्रकाश के कत्ल वाले दिन वो मुम्बई में था।...और मानसिंह की मौत वाले दिन वह हर वक्त पार्टी में मौजूद था। ऐसे में ना तो वो मानसिंह को छत से नीचे फेंक सकता था और ना ही प्रकाश का कत्ल कर सकता था।‘‘
‘‘नहीं कहूंगा इत्मिनान रखो! हकीकत तो ये है कि श्यामसिंह ने कोई कत्ल नहीं किया। डॉली को तहखाने में बंद करने की बात को अगर तुम नजरअंदाज कर दो तो पाओगे कि श्यामसिंह के खिलाफ तुम्हारे पास कोई केस ही नहीं है।
‘‘तो फिर प्रकाश का कातिल कौन है? मानसिंह का हत्यारा कौन है? और लाख रूपये का सवाल ये है कि इतना बवेला फैलाकर कातिल हासिल क्या करना चाहता था?‘‘
‘‘अच्छा सवाल है, इंवेस्टिगेशन ऑफिसर को सूट करता है।‘‘
‘‘अब जवाब भी दे डालो कोई सजता सा।‘‘
‘‘जवाब ये है कि मुझे नहीं मालूम।‘‘
‘‘क्या!‘‘
‘‘ठीक सुना मेरे पास तुम्हारे तीनों प्रश्नों में से किसी का जवाब नहीं है।‘‘
‘‘ओह माई गॉड, और कहां मैं सोच रहा था कि तुम कातिल के चेहरे से नकाब नोचने वाले हो।‘‘
‘‘वो भी करेगा ये बीर बालक, थोड़ा धैर्य रखिये।‘‘
‘‘कितना सौ-पचास साल?‘‘
‘‘नहीं बस कल तक बशर्ते की आप थोड़ा सहयोग करें।‘‘
‘‘और अभी तक जो मैं तुम्हारे साथ करता आ रहा हूं उसे क्या कहते हैं।‘‘
‘‘सॉरी मेरा मतलब थोड़े और सहयोग से है।‘‘
‘‘तुम मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश तो नहीं कर रहे।‘‘ वह संदिग्ध स्वर में बोला।
‘‘आप बन जायेंगे बेवकूफ।‘‘
‘‘हरगिज नहीं।‘‘
‘‘सो देयर।‘‘
‘‘ठीक है बोलो क्या चाहते हो।‘‘
मैंने बताया।
‘‘खामखाह का ड्रामा करने की क्या जरूरत है, तुम उसका नाम लो मैं अभी उसे गिरफ्तार करता हूं।‘‘
‘‘नहीं कर सकते, गिरफ्तार करना तो दूर तुम उसकी परछाईं भी नहीं छू सकते। उसके खिलाफ हमारे पास कुछ नहीं है, और सौ बात की एक बात ये कि अगर मैंने उसका नाम बता भी दिया तो तुम हरगिज भी यकीन नहीं करोगे।‘‘
‘‘फिर कैसे बात बनेगी?‘‘
‘‘एक ही तरीका है कि कातिल खुद साबित करे की वो कातिल है।‘‘
‘‘तुमने अपराधी का मोटिव अभी तक नहीं बताया।‘‘
‘‘वो अभी धुंधला-धुंधला सा है मेरे जहन में, उम्मीद है शाम से पहले तस्वीर साफ हो जायेगी।‘‘
‘‘ठीक है अभी चलता हूं मैं।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिलाया और हवेली के गेट तक उसे छोड़ कर आया।
दोनों लड़कियां मुझे ही घूरती मिलीं।
‘‘क्या हुआ?‘‘
‘‘सच बताओ,‘‘ जूही बोली, ‘‘तुम चाचा जी को बचाने की कोशिश कर रहे हो या वे सचमुच अपराधी नहीं हैं।‘‘
‘‘मेरे ख्याल से कुछ बातों के लिए वो जिम्मेदार हैं, उन्हें असली अपराधी का छोटा सा सहयोगी समझ लो जिसने दौलत की लालच में उसका साथ देना कबूल किया।‘‘
‘‘फिर असली अपराधी कौन है।‘‘
‘‘शाम तक इंतजार करो।‘‘
मैं अपने कमरे की ओर बढ़ गया। फिर मैंने अपने पीडी भाई को कॉल लगाई। जवाब में उसने जो जानकारी दी सुनकर बांछें खिल गयीं। कॉल डिस्कनैक्ट कर मैंने सुशांत तिवारी को फोन किया आखिर उससे मेरा वादा था, एक एक्सक्लूजिव स्टोरी देने का।
‘‘कैसे हो गुरू?‘‘
‘‘टॉप ऑफ दी वर्ल्ड।‘‘ मैं बोला, ‘‘श्याम सिंह की गिरफ्तारी की खबर लगी?‘‘
‘‘हां लगी मगर पुलिस उसकी बाबत अपने मुंह पर ताला जड़े हुए है। अलबत्ता हम प्रेस वाले अपने-अपने ख्यालों के घोड़े दौड़ाकर कल के लिए कोई बढ़ियां सी सुर्खी तैयार करने में लगे हुए हैं, लेकिन तुम्हे तो सब पता होगा गुरू बताओ ना असल माजरा क्या है?‘‘
‘‘अपने कल के एडीशन में कम से कम हॉफ पेज बचाकर रखो।‘‘
‘‘अरे गुरू वो तो छपना शुरू भी हो गया होगा।‘‘
‘‘तो रोक दो, शाम तक तुम्हे ऐसी स्टोरी दूंगा कि ताजिंदगी मुझे याद करोगे। ठीक छह बजे लाल हवेली पहुंच जाना।‘‘
‘‘ठीक है गुरू मैं कॉल डिस्कनेक्ट करता हूं प्रेस रूकवानी होगी।‘‘
कहकर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
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mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by mastram »

ठीक साढ़े छह बजे।
हवेली की टूटी हुई दीवार की तरफ दस-बारह लोगों के बैठने के लिए कुर्सियां रखवा दी गईं। एक-एक करके लोग आते जा रहे थे। साढ़े पांच बजे तक आठ लोग वहां आ चुके थे। ये सभी मानसिंह के कत्ल वाले दिन हवेली में चल रही पार्टी में उपस्थित बेहद सम्मानित लोग थे। सभी को श्यामसिंह की तरफ से यह कहकर बुलाया गया था, कि उसे मालूम है कि उसके भाई मानसिंह की हत्या की गई थी, और वह हत्यारे को पहचान गया था।
हत्यारा क्योंकि बहुत पॉवरफुल आदमी था इसलिए उसे डर था कि पुलिस उसपर हाथ नहीं डालेगी, उल्टा हत्यारा उसे भी मौत की नींद सुला सकता था। इसलिए वह समाज के गणमान्य लोगों के सामने अपने भाई मानसिंह और बेटे प्रकाश के कत्ल से पर्दा उठाना चाहता था। ताकि पुलिस हत्यारे को गिरफ्तार करने में कोई कोताही ना बरते।
बात क्योंकि मानसिंह के कत्ल से संबंधित थी इसलिए लोगों में उत्सुकता जागनी स्वभाविक थी। वहां बुलाये गये लोगों की हाजिरी शत-प्रतिशत थी। उन लोगों के बीच टूटी हुई दीवार की तरफ पीठ करके कुर्सी पर एक पुतला रखा गया था, जिसे श्यामसिंह का कोट-पैंट और हैट पहनाया गया था, बाकी सब लोग पुतले की ओर मुंह करके सामने की कतार में बैठे हुए थे। पुतले के सामने तीन-चार कुर्सियों की जगह खाली छोड़ दी गयी थी। वहां जो भी पहुंचा था उसकी निगाह पुतले पर पड़ी थी मगर किसी ने उसकी बाबत कोई प्रश्न नहीं किया था।
तभी इंस्पेक्टर जसवंत सिंह अपने मातहत सब-इंस्पेक्टर और एक हवलदार के साथ वहां पहुंचा और सीधा राज के बगल में जा खड़ा हुआ।
‘‘सीओ साहब ने कहा है कि वे डीएम साहब के साथ यहां पहुंच रहे हैं। उनके आने का इंतजार किया जाय, उसके बाद ही श्यामसिंह का बयान होगा, डीएम की मौजूदगी में! कुछ समझ में आ रहा है तुम्हारे? खामखाह तुम्हारी बात मानकर मैंने अपनी नौकरी खतरे में डाल ली है।‘‘
मैंने उसकी बात का जवाब नहीं दिया। पूरी खामोशी से एक सिगरेट सुलगा कर कस लगाने लगा।
‘‘अगर यहां वो सब घटित नहीं हुआ, जिसकी तुम उम्मीद कर रहे हो तो समझो तुमने मुझे बेरोजगार कर दिया?‘‘ - कोतवाल फुसफुसाता हुआ बोला - ‘‘ऊपर से यहां इतने बड़े-बड़े लोग मौजूद हैं उनके सामने मेरी जो छीछालीदर होगी सो अलग।‘‘
‘‘जनाब चंद मिनट और इंतजार कीजिए, और यहां के लोगों की चिंता मत कीजिए अगर सबकुछ मेरी उम्मीदों के मुताबिक नहीं भी हुआ तो कम से कम यहां मौजूद लोग आपको कुछ नहीं कहने वाले, इनका जो गुस्सा फूटेगा वो श्यामसिंह पर फूटेगा।‘‘
‘‘वो तो अभी से फूटता दिख रहा है। लोग बाग बार-बार पूछ रहे हैं कि उन्हें वहां बुलाकर श्यामसिंह कहां गायब हो गया।‘‘
‘‘पूछने दीजिए बस कुछ मिनट की ही तो बात है।‘‘
‘‘अभी वो श्याम सिंह के बारे में पूछ रहे हैं फिर पुतले के बारे में सवाल.....।‘‘
‘‘धांय।‘‘ उसकी बात अधूरी रह गयी। गोली सीधा पुतले के सिर के पिछले हिस्से से टकराई, पुतला उछलकर दूर जा गिरा।
टूटी हुई बाउंड्री के पार एक शेवरले बीट कार की हल्की सी झलक दिखाई दी। कोतवाल चीते की तरह छलांग लगाता हुआ उस पार पहुंचा, मैं उसके पीछे था। सब इंस्पेक्टर और हवलदार मेरे पीछे थे। जसवंत कूदकर जीप में जा बैठा, मगर आगे बढ़ते ही जीप लहराने लगी। उसके अगले दोनों पहिये कातिल बेकार कर चुका था।
ठीक तभी इम्पाला हमारी बगल में आकर रूकी। ड्राईविंग सीट पर डॉली सवार थी।
‘‘इंस्पेक्टर साहब जल्दी।‘‘
मेरी आवाज सुन वह हकबकाया सा कार में आ बैठा। डॉली एक्सीलेटर का पैडल दबाती चली गयी। सामने बीट तो हमें नहीं दिखाई दी अलबत्ता धूल का गुब्बार उठता जरूर नजर आ रहा था। डॉली दांत पर दांत जमाये कार की स्पीड बढ़ाए जा रही थी। वह खेत-खलिहानों के बीच से गुजरता रास्ता था जो सीधा लखनऊ हाइवे पर जा मिलता था। अचानक कार का एक पहिया किसी गड्ढे में पड़ा, कार बुरी तरह डगमगाई, एक पल तो हमें कार उलटती सी लगी मगर डॉली ने संभाल लिया।
‘‘स्पीड कम करो वरना हम सब मारे जायेंगे।‘‘ मैं चीख सा पड़ा। मगर डॉली ने जैसे मेरी बात सुनी ही नहीं। ना तो उसने स्पीड कम की और ना ड्राईविंग से अपना ध्यान भटकने दिया।
‘‘ये मोहतरमा कार लेकर अचानक कहां से आ टपकी?‘‘ जसवंत सिंह बोला।
‘‘ये हमारा बैकअप प्लान था, वरना तुम्हारी जीप की वजह से हम हाथ मल रहे होते।‘‘
‘‘अब मुझे क्या पता था कि इतने शार्ट टाइम में वो ऐसा भी कुछ कर सकता था।‘‘
‘‘तुम्हारी जीप बेकार करना उसके लिए बहुत जरूरी था।‘‘
‘‘नहीं, अगर पुलिस की जीप सही भी होती तो शायद हम उसकी कार का पीछा नहीं कर पाते। इतनी भयानक ड्राईविंग की तो मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था।‘‘
तभी अगली कार दिखाई देनी शुरू हो गयी। मगर फासला बहुत ज्यादा था। एक बार अगर वो हाइवे पर पहुंच जाता तो उसे पकड़ना नामुमकिन नहीं तो मुश्किल जरूर साबित होने वाला था।
जसवंत सिंह ने अपना मोबाइल निकाला और अगली कार के बारे में बताकर किसी को निर्देश देने लगा। करीब डेढ़ मिनट तक दोनों कारें यूंही दौड़ती रहीं।
फिर दोनों कारों के बीच का फासला घटना शुरू हुआ। थोड़ी देर बाद ज्योंही अगली कार रिवाल्वर की रेंज में आई, जसवंत सिंह ने पहिए का निशाना लेकर गोली चला दी। निशाना अचूक था, अगली कार के पिछले बायें पहिए के परखच्चे उड़ गये। कार ने बाईं तरफ को झोल खाया, ड्राइवर ने संभालने की कोशिशें तो बहुत की होंगी, मगर कार की स्पीड इतनी ज्यादा थी कि वह कार को पलटने से नहीं बचा सका। कार ने कई बार पलटा खाया और आखिरकार उलटी होकर गतिशून्य हो गयी।
डॉली ने उससे थोड़ी दूरी पर अपनी कार रोक दी।
‘‘कौन होगा भीतर।‘‘
‘‘गेस करो।‘‘
‘‘नहीं कर सकता, ये पहेलियां बूझने का टाइम नहीं है।‘‘
‘‘तू क्या कहती है?‘‘ मैं डॉली से बोला।
‘‘कोई शर्त लगाओ तो गेस करूं?‘‘
‘‘चल लगाई, तू जीती तो मैं तुझे किस दूंगा और अगर मैं जीता तो तू मुझे किस देगी।‘‘
‘‘शटअप।‘‘कहकर वो तनिक रूकी फिर बोली, ‘‘सीओ साहब के अलावा और कौन हो सकता है।‘‘
‘‘क्या बकवास कर रही हो।‘‘ जसवंत सिंह लगभग चीख सा पड़ा।
‘‘अरे तूने कैसे जाना?‘‘
‘‘क्या मतलब है भई, तुम दोनों वही कह रहे हो ना, जो मैं समझ रहा हूं।‘‘
‘‘जाकर खुद देख लीजिए जनाब।‘‘
वो सहमति में सिर हिलाता कार की ओर बढ़ गया।
‘‘अब बता कैसे जाना?‘‘
‘‘इट्स वैरी सिम्पल बॉस, हर अपराध किसी ऐसे व्यक्ति की तरफ इशारा कर रहा था जो बेहद ताकतवर था। दिलावर हो सकता था मगर वह तो पहले ही मारा जा चुका था। श्यामसिंह हो सकते थे, मगर फिर हवेली में आज यह ड्रामा नहीं होता। जसवंत सिंह हो सकते थे मगर वह तो तुम्हारे प्लान में शामिल थे। अब ले-देकर एक ही आइटम था जो हर जगह फिट किया जा सकता था, सीओ दी ग्रेट महानायक सिंह राजपूत।‘‘
मैं मंत्रमुग्ध सा डॉली की ओर देखता रह गया।
‘‘धन्य है वो मां जिसने तुझे जन्म दिया, तेरे पांव कहां हैं मैं उन्हे....।‘‘
‘‘अरे यहां नहीं‘‘ वो हड़बड़ाकर बोली, ‘‘हवेली चलकर जीभरकर चाट लेना।‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘मेरे तलवे।‘‘
‘‘ठहर जा साली।‘‘
‘‘ओह तो अब मुझसे शादी का ख्वाब देखना बंद कर दिया।‘‘
‘‘ये किसने कहा।‘‘
‘‘अब साली कहा है तो जाहिर है मेरी बड़ी बहन से शादी करने का मन हो आया होगा।‘‘
‘‘तेरी बड़ी बहन भी है कोई।‘‘
‘‘हां जिसकी कार उधार मांगकर लाये हो।‘‘
अभी मैं कुछ और कहता कि तभी जसवंत सिंह मेरे पास आ खड़ा हुआ।
‘‘वही है, पर मेरी समझ में नहीं आ रहा कि....।‘‘
‘‘क्या बात है इंस्पेक्टर साहब अपने अफसर को कातिल मानने में मन लरज रहा है क्या?‘‘
उसने जवाब नहीं दिया, मोबाइल निकालकर व्यस्त हो गया।
मैं और डॉली उसे वहीं छोड़कर हवेली लौट आए। अब तक सभी लोग वहां से जा चुके थे। सुशांत तिवारी बेसब्री से चहलकदमी करता हुआ मेरा इंतजार कर रहा था।
‘‘अरे गुरू कहां रह गये थे।‘‘
‘‘तुम्हारा ही काम कर रहा था।‘‘
मैं उसे लेकर अपने कमरे में आ गया। सविस्तार उसे सारी कहानी सुना दी। सुनकर वो यूं भौचक्का हुआ, कि मैं बयान नहीं कर सकता। इस वक्त उसके चेहरे की चमक देखते बनती थी।
रात दस बजे बकायदा फोन पर इजाजत लेकर जसवंत सिंह वहां पहुंचा। तब तक हम दीवानखाने में ही मौजूद थे, और डिनर का इंतजार कर रहे थे। जसवंत सिंह के लिए भी थाली लगा दी गयी। सब ने खामोशी के साथ डिनर किया फिर कॉफी आ गयी।
‘‘शुरू हो जाओ भाई‘‘ काफी की चुस्कियां लेता जसवंत सिंह बोला, ‘‘अब और सस्पेंश मुझसे बर्दाश्त नहीं होता।‘‘
‘‘क्या जानना चाहते हो।‘‘
‘‘सबकुछ सिलसिलेवार ढंग से सुना डालो, जो बात मुझे मालूम हो वह भी कह डालो ताकि घटनाक्रम की टूटी हुई कड़ियां आपस में जोड़ी जा सकें।‘‘
मैंने उसकी उत्सुकता का आनंद लेते हुए पहले बेहद स्लो मोशन में एक सिगरेट सुलगाया फिर बोलना शुरू किया। इतनी मेहनत जो की थी मैंने, थोड़ा भाव खाना तो बनता था।
‘‘तो जनाबे हाजरीन पेश है राज भाई बकवास वाला की फेमस स्टाइल में लाल हवेली का खूनी वृतांत। वो वाकया जो कि सदियों में एक बार जन्म लेता है और लोगों के दिलों पर दहशत कि अमिट छाप छोड़ जाता है। रहस्य-रोमांच और एक्शन से भरपूर! मगर ध्यान रहे कहीं सांस लेना ना भूल जाएं आप।
”अब कुछ बकोगे भी या ड्रामा ही करते रहोगे।“
”बकूंगा जनाब आखिरकार बकने के लिए ही तो मैंने इस नाश्वर जगत में अवतार लिया है।“
तत्काल उसने कड़ी निगाहों से मुझे घूरा। पुलिसिया जो था, भला हेकड़ी दिखाने से कैसे बाज आ जाता। उसका यही एहसान क्या कम था जो उसने ये नहीं पूछ लिया कि - बाकी का किस्सा यहीं बयान करोगे या हवालात में।
बहरहाल मैंने बताना शुरू किया।
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by mastram »

‘‘इस खूनी सिलसिले की शुरूआत हुई आज से करीब छह महीने पहले। जब भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ‘एएसआई‘ की एक टीम लखनऊ से सीतापुर पहुंची। उनका काम था यहां की प्राचीन इमारतों मंदिरों इत्यादि का सर्वे करके उनकी मौजूदा हालत की रिपोर्ट तैयार कर दाखिल दफ्तर करना। उनमें से अगर किसी की हालत ज्यादा खस्ता होती तो विभाग उन प्राचीन-ऐतिहासिक धरोहरों की मरम्मत कराता। उन्हें नष्ट होने से बचाता।‘‘
‘‘उस टीम में से दो लोग जिनके नाम प्रशांत और ब्रजभूषण थे, अपने काम को अंजाम देते हुए लाल हवेली तक जा पहुंचे। पता नहीं हवेली का मुख्य द्वार बंद था या किसी ने दस्तक देने के बावजूद दरवाजा नहीं खोला, असली बात मैं नहीं जानता। मगर नतीजा ये हुआ कि वे लोग हवेली में दाखिल नहीं हो पाये।‘‘
‘‘तब वे लोग यूंही टहलते हुए बाहर से ही हवेली का मुआयना करने लगे। वहां जाने किस बात ने उनके भीतर उत्सुकता जगाई कि उन दोनों ने हवेली और आस-पास के इलाके को मैटल डिटेक्टर से खंगालने का फैसला किया और कैम्प में वापस लौट गये।‘‘
‘‘अगले रोज वे लोग मैटल डिटेक्टर के साथ वहां पहुंचे। जब उन दोनों ने हवेली के आस-पास की जमीन को खंगालना शुरू किया तो जल्दी ही उन्हें वहां बहुत सारे ‘गैर-चुम्बकीय‘ तत्वों के होने का आभास मिला। जो कि सोना, तांबा, एलिम्यूनिम कुछ भी हो सकता था। उन्होंने जब और जांच की तो उन्हें यकीन हो आया कि वह सारा मैटल-भंडार हवेली के नीचे दफ्न था।‘‘
‘‘इत्तेफाक से उसी वक्त महानायक सिंह उधर से गुजरा और उन्हें संदिग्ध हालत में देखकर पूछताछ की तो उन्होंने सारी बात उसे बता दी। सुनकर उसके कान खड़े हो गये। उसने किसी तरह दोनों को अपने झांसे में लिया और इस बारे में और अधिक जानकारी हासिल करने को कहा। जवाब में दोनों ने हवेली का चार सौ साल पुराना इतिहास खंगालना शुरू किया तो पता चला कि राजा नरसिंह सिंह राजपूत के शासनकाल में इस महल का निर्माण कराया गया था। उनके वंशज यहां से करीब पैंसठ मील दूर उत्तर-पश्चिम में जिसे अब हरदोई के नाम से जाना जाता है, अपने पुश्तैनी महल में रहा करते थे।
चार सौ साल पूर्व जब इस महल के निर्माण के बाद राजा नरसिंह सिंह राजपूत सपरिवार यहां रहने आए तो उनके पास सोने-चांदी व हीरे-जवाहरात के रूप में बहुत बड़ा खजाना था। एक ऐसा खजाना जिसका कोई भी जिक्र आगामी वर्षों में कभी भी सुनने को नहीं मिला था। लिहाजा दोनों कूदकर इस नतीजे पर पहुंच गये कि हो ना हो वही खजाना इस हवेली के गर्भ में कहीं गहरा दफ्न था। उन दोनों ने महानायक सिंह को भी यह यकीन दिला दिया कि हवेली के नीचे बहुत बड़ा खजाना दफ्न था। दोनों नहीं जानते थे कि ऐसा कहकर वो अपना डैथ वारेंट खुद साइन कर रहे थे।‘‘
‘‘अगले ही रोज दोनों की गोलियों से बिंधीं लाशें बरामद हो गयीं। पुलिस-पब्लिक-मीडिया सब हैरान थे। भला बाहर से आये उन लोगों की यहां किसी से क्या दुश्मनी हो सकती थी। घटनास्थल से लूटपाट का भी कोई संकेत पुलिस को नहीं मिला था। हत्यारे को तलाश कर पाना तो दूर, आप का डिपार्टमेंट उनकी हत्याओं का मोटिव तक नहीं तलाश पाया था! कहिए की मैं गलत कह रहा हूं।‘‘
‘‘नहीं तुम्हारी बात एकदम दुरूस्त है‘‘ कोतवाल बोला, ‘‘ये बताओ उन दोनों का कत्ल साहब ने खुद किया था या किसी से करवाया था।‘‘
‘‘इस बाबत मेरा अंदाजा ये कहता है कि यह काम महानायक सिंह ने खुद किया होगा। यह कोई ऐसा काम नहीं था जिसके लिए वह किसी और पर भरोसा करता। फिर अभी तक तो दिलावर से उसका गठबंधन भी नहीं हुआ था। वरना हम इसे दिलावर का किया धरा समझ सकते थे।‘‘
‘‘ठीक है आगे बढ़ो।‘‘
‘‘अब खजाने पर कब्जा जमाने के लिए यह बहुत जरूरी था कि लाल हवेली पूरी तरह उसके अधिकार में हो। वह जानता था कि अगर उसने सीधे-सीधे लाल हवेली खरीदने की कोशिश की तो उसका छुपे रह पाना मुश्किल हो जायेगा। जो सुनेगा वही हैरान रह जायेगा कि भला पुलिस के एक उच्चाधिकारी को इस पुरानी जर्जर हवेली में क्या दिलचस्पी हो आई। लिहाजा उसने दिलावर सिंह से सांठ-गांठ की, मगर मुझे यकीन है कि खजाने वाली बात उसने दिलावर को भी नहीं बताई होगी।‘‘
‘‘उसने दिलावर को ये कहानी सुनाई की भारत सरकार लाल हवेली वाले इलाके में अपना शूगर मिल लगाना चाहती है। अगर हवेली और उसके आस-पास की जमीनें खरीद ली जायं तो करोड़ों का मुनाफा कमाया जा सकता था।‘‘
‘‘उसकी बात मानने में दिलावर को दोतरफा फायदा दिखाई दिया। पहला ये कि उसे मोटा माल कमाने का मौका मिल रहा था और दूसरा ये कि उसकी सांठ-गांठ एक पुलिस अधिकारी से होने जा रही थी जो भविष्य में उसके बहुत काम आ सकता था। लिहाजा उसने झट हामी भर दी होगी।‘‘
‘‘मगर तुम्हारा अफसर इतने से संतुष्ट नहीं था। उसे अंदाजा था कि मानसिंह से हवेली खरीदना कोई आसान काम साबित नहीं होने वाला था। लिहाजा उसने दिलावर को श्यामसिंह से मिलने मुम्बई भेजा। दिलावर ने श्याम सिंह को लाल हवेली का सौदा कराने को कहा होगा और बदले में कोई बहुत मोटी रकम ऑफर की होगी। आम हालात में श्याम सिंह उसकी बात मानने से इंकार कर सकते थे। मगर उन दिनों हालात आम कहां थे। उनका बिजनेस चौपट हो चुका था, किसी बड़े कर्जे में भी घिरे रहे हों तो कोई बड़ी बात नहीं है। खुद को फाइनेंशियल क्राइसिस से उबारने के लिए उन्हें बहुत सारे रूपयों की जरूरत थी। ये जरूरत उन्हें दिलावर के जरिए पूरी होती दिखाई दी। नतीजा ये हुआ कि उन्होंने दिलावर को हामी भर दी।‘‘
‘‘इसके बाद सबसे पहले श्याम सिंह और उनके सेक्रेटरी रतन शेखावत के जरिये ‘सिगमा एण्ड ब्रदर्स‘ नाम की एक कंपनी का रजिस्ट्रेशन करवाया गया और हवेली के आस-पास की काफी सारी जमीनें खरीद ली गयीं।‘‘
‘‘मगर हवेली के आस-पास की जमीनों का उनको क्या करना था?‘‘
‘‘कुछ नहीं मगर शूगर मिल वाली बात को साबित करने के लिए ऐसा करना जरूरी था।‘‘
‘‘और इस काम में पैसा किसने लगाया?‘‘
‘‘कुछ तुम्हारे अफसर ने और बाकी दिलावर सिंह ने लगाया होगा।‘‘
‘‘वो तैयार हो गया होगा इतनी बड़ी इंवेस्टमेंट के लिए?‘‘
‘‘‘हो ही गया होगा, तभी तो कहानी आगे बढ़ी। क्योंकि तुम्हारे अफसर ने चाहे पुलिस की नौकरी में कितना भी माल क्यों ना कमाया हो, इतनी बड़ी इंवेस्टमेंट उसके बूते की बात नहीं थी। फिर दिलावर को इसमें कोई नुकसान नजर नहीं आया होगा। वह जानता था कि जमीनें वापस बेचकर अपनी मूल रकम तो वसूल कर ही सकता था।‘‘
‘‘पैसा जब इन दोनों ने लगाया तो ‘सिगमा‘ का मालिक किसी और को क्यों बनाया?‘‘
‘‘जाहिर है महानायक सिंह राजपूत जो खेल खेल रहा था उसमें वह सात पर्दों के पीछे छिपा रहना चाहता था। ताकि अगर कोई इस मामले की छानबीन पर उतर भी आए तो श्याम सिंह और उनके सेक्रेटरी से आगे ना पहुंच सके।‘‘
‘‘और मान लो दोनों दगाबाजी पर उतर आते तो।‘‘
‘‘आप भूल रहे हैं जनाब कि ये काम उन्होंने दिलावर के कहने पर किया था जिससे बाहर जाने की वे सोच भी नहीं सकते थे। फिर हो सकता है - ऐसा ना हो - इसके लिए कोई और इंतजाम भी किया गया हो।‘‘
‘‘ऐसा ही रहा होगा! आगे बढ़ो।‘‘
‘‘इतना सबकुछ निपट गया तो, श्यामसिंह को कहा गया कि वो अपने भाई को हवेली बेचने के लिए तैयार करें। मगर यहां आकर सबकुछ गड़बड़ हो गया। श्यामसिंह ने बहुतेरी कोशिशें कीं, मगर मानसिंह ने अपने भाई की एक ना सुनी और हवेली बेचने से साफ इंकार कर दिया।‘‘
‘‘तब दिलावर और महानायक सिंह ने मिलकर एक योजना बनाई, जिसके जरिए मानसिंह को ब्लैकमेल करके हवेली बेचने के लिए मजबूर किया जा सकता था। मगर अपनी योजना को अमली जामा पहनाने के लिए उन्हें एक अंदर के आदमी की जरूरत थी। उन्होंने इस बारे में श्यामसिंह से बात की तो उन्होंने प्रकाश को यहां भेज दिया।‘‘
‘‘दिलावर ने प्रकाश को अपनी सारी योजना बताई तो वह उसके इशारे पर नाचने को तैयार हो गया। अब इस योजना को अमली जामा पहनाने के लिए जरूरत थी एक लड़की की। जिसे कोई ना जानता हो जो अचानक गायब हो जाय तो किसी की कान पर जूं तक ना रेंगनी वाली हो। उनकी ये मुश्किल प्रकाश ने यह कहकर आसान कर दी कि वह मुम्बई से अपनी गर्ल फ्रेंड रोजी को बुलाकर इस काम के लिए तैयार कर लेगा।‘‘
‘‘इसके बाद रोजी को मुम्बई से दिल्ली बुलाया गया और उसे एक किराये के कमरे में शिफ्ट कर दिया गया। योजना का अगला पड़ाव, मानसिंह को किसी भी तरह इतना बीमार कर देना था, जिससे वे अस्पताल में भर्ती कराये जा सकें। मेरा अपना अंदाजा है उन्हें खाने में या विस्की में मिलाकर कोई ऐसी चीज दे दी गयी, जिसके हलक से नीचे जाते ही वे तड़पने लगे। उन्हें अस्पताल ले जाया गया। जहां डॉक्टर को किसी तरह बहला-फुसला कर या रिश्वत देकर इस बात के लिए तैयार किया गया कि वह पूछने पर कहे कि अभी मानसिंह की हालत नाजुक थी उनको दस-पंद्रह दिनों तक अस्पताल में ही रहना पड़ेगा। जैसे भी सही मगर उन्होंने डॉक्टर को तैयार कर लिया।‘‘
‘‘डाक्टर कौन था?‘‘
‘‘रतन यादव सर्वोदय नर्सिंग होम वाला‘‘ जवाब जूही ने दिया, ‘‘उसी ने पापा से आकर कहा था कि उनकी हालत बेहद खराब थी। उन्हें दस-पंद्रह रोज अस्पताल में ही बिताने होंगे।‘‘
‘‘बहरहाल मानसिंह वहां रूकने के लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने उसी वक्त हवेली जाने की जिद पकड़ ली। प्रकाश ने उन्हें समझाने का बहुत ड्रामा किया मगर वे नहीं माने। तब प्रकाश ने उनकी तीमारदारी के लिए हवेली में एक नर्स रखने की शर्त सामने रख दी जिसके लिए थोडी़ ना-नुकर के बाद मानसिंह ने हामी भर दी।‘‘
‘‘इसके बाद उसने रोजी को नर्स बताकर हवेली में स्थापित कर दिया।‘‘
‘‘हे भगवान!‘‘ जूही के मुंह से सिसकारी सी निकली, ‘‘इतना बड़ा विश्वासघात, इतना बड़ा धोखा।‘‘
‘‘रोजी हवेली में आ गई फिर क्या हुआ?‘‘ जसवंत सिंह ने पूछा।
जवाब में मैंने जूही की ओर देखा तो उसने रोजी के कत्ल और उसकी लाश प्रकाश द्वारा ठिकाने लगाने की सारी नौटंकी बयान कर दी। सुनकर कोतवाल यूं हैरान हुआ जैसे हमारे सिर पर अचानक सींग निकल आये हों।
‘‘जिस वक्त यह ड्रामा चल रहा था, उस वक्त आस-पास कहीं छिपा बैठा राकेश कैमरे से फोटो ले रहा था। अब उनके पास तस्वीरों की सूरत में मानसिंह को ब्लैकमेल करने की वजह मिल गयी थी। मगर अफसोस की उनका आखिरी हथियार भी कारगर साबित नहीं हुआ।‘‘
इस बार बच्चू सिंह को हवेली का सौदा करने के लिए मानसिंह के पास भेजा गया। उसने मानसिंह के सामने हवेली खरीदने की ख्वाहिश जताई, तो जैसा कि उसे पूरी उम्मीद थी मानसिंह ने साफ मना कर दिया। उसने दाम बढ़ाया हवेली की तीनगुनी कीमत तक देने को तैयार हो गया मगर मानसिंह ने हवेली नहीं बेचनी थी तो बस नहीं बेचनी थी। तब उसने उन तस्वीरों को हथियार की तरह मानसिंह के सामने लहराया। मगर उसका ये वार भी खाली गया। बुजुर्गवार बड़े ही सख्त जान निकले, उन्होंने बच्चू को किसी भी कीमत पर हवेली बेचने से मना कर दिया। बेटी को जेल भिजवा देने की धमकी का भी उनपर कोई असर नहीं हुआ।‘‘
‘‘कहने का आशय ये है कि साम-दाम-दंड-भेद में से ‘दंड‘ को छोड़कर सारे पैंतरे उनपर आजमाये जा चुके थे। मगर नतीजा सिफर रहा। महानायक सिंह को अपना सपनों का महल धराशाही होता दिखाई दिया। मगर था तो आखिर वो पुलिसिया, इतनी जल्दी हार कैसे मान लेता।‘‘
तत्काल जसवंत सिंह ने खा जाने वाली निगाहों से मुझे देखा।
‘‘माफ कीजिए जनाब! जुबान फिसल गयी थी। हां तो मैं कह रहा था कि महानायक सिंह हार मानने को तैयार नहीं था। अब उसने ‘दंड‘ वाला आखिरी रास्ता चुना। समस्या को जड़ से ही उखाड़ फेंकने का मन बना लिया। जल्दी ही उसने एक ऐसा प्लान तैयार कर लिया, जिससे मानसिंह की मौत को दुर्घटना का जामा पहनाया जा सके। उसे लगभग यकीन था कि पिता के बाद बेटी से हवेली का सौदा करना आसान काम साबित होना था।‘‘
‘‘एक बार मानसिंह के कत्ल का फैसला करने के बाद अब उसे इंतजार था सही मौके का। और वो मौका उसे तब दिखाई दिया, जब उसे पता चला की उन्नीस जुलाई को हवेली में पार्टी थी, जिसमें नगर के सभी सम्मानित लोगों को आमंत्रित किया गया था। महानायक ने उसी रात को मानसिंह का कत्ल करने का फैसला किया। अपनी योजना को अमली जामा पहनाते हुए उसने एक ट्रक ड्राइवर से सांठ-गांठ की और उसे एक लाख रूपयों के बदले हवेली के बाएं विंग की बाउंड्री वॉल तोड़ने को तैयार कर लिया।‘‘
‘‘उधर का ही क्यों?‘‘
‘‘क्योंकि इकलौती वही जगह थी जहां की बाउंड्री और भीतर इमारत के बीच महज दस फीट का फासला था। ऊपर से उधर की दीवार एकदम जर्जर हालत में थी, बहुत सारे पत्थर पहले से ही उखड़े पड़े थे। उसे यकीन था कि वो दीवार ट्रक का झटका नहीं झेल पायेगी। दूसरी अहम बात ये थी कि उधर से पहली मंजिल की बॉलकनी तक पहुंचना और वहां से सीढ़ियों के रास्ते छत तक पहुंच जाना बहुत ही आसान काम साबित होना था।‘‘
‘‘मान लो फिर भी दीवार नहीं टूटती तो वह क्या करता?‘‘
‘‘बेशक तब प्रकाश की मदद लेना उसकी मजबूरी होती। या वह कोई और चाल चलता। कहने का आशय ये है कि मानसिंह के मौत का दिन मुकर्रर हो चुका था।‘‘
‘‘उसे बुजुर्गवार की रोज रात आठ बजे छत पर टहलने वाली आदत के बारे में भी प्रकाश ने ही बताया होगा।‘‘
‘‘और कौन बताता।‘‘
‘‘ओके आगे बढ़ो‘‘ कहकर वो चुप हो गया।
‘‘बहरहाल जो भी हुआ उसका नतीजा सामने आया और बुजुर्गवार की जान चली गयी। पुलिस और पब्लिक दोनों ने उनकी मौत को दुर्घटना ही माना जैसा कि महानायक सिंह चाहता था।‘‘
‘‘मानसिंह की मौत के करीब दस दिन बाद बच्चू सिंह फिर हवेली आया। उसने वो सारे पैंतरे जूही पर आजमाये जो पहले ही मानसिंह पर आजमाकर नाकामी का मुंह देख चुका था। दाल उसकी इस बार भी नहीं गली। जूही पर उसकी किसी भी धमकी का असर नहीं हुआ। उसने भी पिता की तरह दो टूक कह दिया कि वह किसी भी कीमत पर हवेली नहीं बेचेगी।‘‘
‘‘खलीफा लोग हैरान थे, परेशान थे। उनकी समझ में नहीं आ रहा था कि हवेली का मालिकाना हक कैसे हांसिल किया जाय। उनके लिए जूही को जहन्नुम का रास्ता दिखाना आसान था। मगर महानायक सिंह को यह डर रहा होगा कि अगर बाप के पीछे-पीछे बेटी के साथ भी कोई हादसा प्लान किया गया तो मीडिया में यह बात चर्चा का विषय बन जानी थी। ऐसे में केस कोतवाली से लेकर सीबीआई को सौंपा जा सकता था। नतीजा ये होता कि उनका छिपे रह पाना मुश्किल हो जाता।‘‘
‘‘इस बार उन्होंने एक नई एकदम हैरान कर देने वाली योजना बनाई। इस योजना में उन्होंने इस बात को खूब कैश किया कि जूही दुनिया जहान की बातों से एकदम कोरी थी। अलौकिक शक्तियों में विश्वास रखने वाली, भूत प्रेतों से डरने वाली, सीधी-सादी मासूम सी लड़की थी।‘‘
कहकर मैंने उसे नर-कंकालों से लेकर, रोजी की लाश दिखाई देने तक की सारी कहानी कह सुनाई। उसे उस प्रोजेक्टर के बारे में भी बताया जिसपर चलती फिल्म से एक बार तो मैं भी धोखा खाकर दो गोलियां तक चला बैठा था।
वो मुंह बाये सुनता रहा।
‘‘उनकी योजना में विघ्न तब आया जब जूही ने डॉली को यहां रहने के लिए बुला लिया। आते ही इसने जूही को काफी हद तक संभाल लिया और जल्दी ही ये बात इसकी समझ में आ गई, कि जूही के खिलाफ हवेली में कोई बड़ा खेल खेला जा रहा था। लिहाजा इसने फोन करके मुझे भी यहां बुला लिया। यह बात किसी तरह प्रकाश को पता चल गयी जो कि उसने आगे दिलावर को ट्रांसफर कर दी।‘‘
उस रात जब मैं सीतापुर पहुंचा तो वहां राकेश अपने कुछ साथियों के साथ पहले से ही बाईपास पर मेरा इंतजार कर रहा था। उसने मुझपर गोलियां चलाकर मुझे डराने की कोशिश की थी। अलबत्ता उसकी इस कोशिश में मेरे द्वारा चलाई गई एक गोली उसकी टांग में जा घुसी थी। जिसके बाद वे लोग वहां से भाग खड़े हुए थे। फिर आप वहां पहुंच गये आगे क्या हुआ आपको मालूम ही है।‘‘
‘‘मगर राकेश को कैसे पता था कि तुम किस वक्त वहां पहुंचोगे।‘‘
‘‘मेरे ख्याल से नहीं पता था। मगर वहां उनकी मौजूदगी बेसबब नहीं हो सकती थी।‘‘
‘‘पता हो सकता था।‘‘ जूही बोली, ‘‘क्योंकि मैंने प्रकाश को तुम्हारे बारे में बताते हुए कहा था कि तुम नौ दस बजे तक यहां पहुंचोगे इसलिए वह सदर दरवाजा खोलने के लिए तुम्हारे आने तक जगा रहे। उसने आगे ये बात राकेश को बता दी होगी।‘‘
‘‘ठीक है पर अगर ये बाइपास पर नहीं रूकता तो वो क्या कर लेते।‘‘
‘‘मेरे ख्याल से उनकी निगाह शहर में दाखिल हो रही हर ऐसी कार पर रही होगी, जो दिल्ली नम्बर की हो। अब ऐसी सौ-पचास कारें तो नहीं आई होंगी उस रोज।‘‘
‘‘हो सकता है एक भी ना आई हो।‘‘
‘‘एक्जेटली! रही सही कसर इस बात ने पूरी कर दी कि मैंने वहां एक वाइन शॉप वाले से लाल हवेली का पता पूछ लिया। तब कुछ लोग वहीं पास में बैठे हुए थे, जिनपर ध्यान देने की उस वक्त कोई वजह नहीं थी। तब मैंने यही सोचा कि वे आस-पास के दुकानदार हैं जो बैठकर गप्पे हांक रहे थे। मगर अब लगता है वही राकेश एंड पार्टी थी।‘‘
‘‘तुम्हें महानायक सिंह पर शक कैसे हुआ?‘‘
‘‘जनाब माफी चाहता हूं, ये कहते हुए मुझे शर्मिंदगी महसूस हो रही है कि मुझे महानायक सिंह पर जरा भी शक नहीं था। शक तो मुझे आप पर था। जितना ज्यादा मैं आपके बारे में सोचता, उतना ही मेरा यह विचार पुख्ता होता चला जाता कि सब किया धरा आप का ही है।‘‘
‘‘तौबा! मुझे कभी एहसास तक नहीं होने दिया कि तुम मुझपर शक कर रहे हो।...... अच्छा ये बताओ जूही पर हमला किसने किया था।‘‘
‘‘इसे लेकर मैं थोड़ा कंफ्यूज हूं जनाब। वो हमला हवेली के दाहिने हिस्से से करीब सौ मीटर की दूरी पर मौजूद एक नीम के पेड़ पर बैठकर टेलीस्कोप वाली राइफल से किया गया था। वो काम अगर महानायक सिंह का नहीं था तो दिलावर के दोनों शूटर्स जमील या सलाउद्दीन में से किसी एक का हो सकता है। कोई बड़ी बात नहीं कि उस वक्त दूसरा कार के भीतर बैठा रहा हो। अलबत्ता एक बात तय है कि जिसने छत पर जूही को गोली मारी थी उसी ने प्रकाश का कत्ल किया था।‘‘
‘‘तुम्हारा ज्यादा ऐतबार किस पर है।‘‘
‘‘सीओ साहब पर।‘‘
‘‘ठीक अंदाजा लगाया तुमने! मरने से पहले उन्होंने मानसिंह और प्रकाश की हत्या तथा जूही को गोली मारने की बात स्वीकार की थी।‘‘
‘‘और क्या बताया?‘‘
‘‘कुछ नहीं, इतना बोलकर ही दम तोड़ दिया था।‘‘
‘‘ओह!‘‘
‘‘मगर एक बात समझ में नहीं आई। प्रकाश तो उनके पाले में था...।‘‘
‘‘था मगर अब वो उनके पाले से निकलने का मन बना चुका था।‘‘
कहते हुए मैंने वो स्टॉम्प पेपर उसके सामने रख दिया। जिसके जरिए खलीफा लोग उस हवेली का मालिक बनने का सपना देख रहे थे। साथ ही उससे संबंधित कहानी सुना दी जो मुझे रोजी से सुनने को मिली थी।
‘‘तुमने अभी भी नहीं बताया कि तुम्हें सीओ साहब पर शक कब हुआ?‘‘
‘‘कल! जब आपने हम तीनों को तहखाने से आजाद कराया था। अगर आप अपराधी होते तो आपके लिए ऐसा करना बिल्कुल जरूरी नहीं था। आप हमें वहीं फंसे रहने देते। बड़ी हद दस दिनों में हम भूख प्यास से वैसे ही दम तोड़ देते।‘‘
‘‘वहां से बाहर निकलते ही मेरे दिमाग में पहला सवाल यही कौंधा कि अगर आप नहीं तो कौन है? जो आपकी जगह पूरी तरह कातिल की तस्वीर में फिट बैठता है। तब मेरे दिमाग में एक ही नाम कौंधा-सीओ महानायक सिंह राजपूत।‘‘
‘‘जरा याद कीजिए आपका अफसर किस कदर भागा-भागा फिर रहा था। आपने कहा भी था कि-‘आजकल सीओ साहब बहुत सारा फील्ड वर्क खुद भी कर लेते हैं, सारा काम मुझपर ही नहीं थोप देते‘- मेरा सवाल है क्यों? सीओ साहब को क्या पड़ी थी कि वे हर तरफ भागे-भागे फिरते। कोतवाली इंचार्ज से भी पहले मौकायेवारदात पर पहुंच जाएं और फिर कैसे पहुंच जाते थे उन्हें क्या कोई सपना आना था?‘‘
उसने सहमति में सिर हिलाया।
‘‘मुझे तो उसी वक्त समझ जाना चाहिए था जब दिलावर के दोनों शूटर्स की मौत के वक्त वो जैसे आसमान से वहां टपक पड़ा था। वो मुझे रिवाल्वर से टकोहता हुआ कमरे के अंदर चलने को मजबूर कर रहा था। वो तो ऐन मौके पर एक पत्रकार ने वहां पहुंचकर उसका खेल बिगाड़ दिया वरना यकीनन उस रोज वो मेरा कत्ल करने की फिराक में था।‘‘
‘‘अब खजाने वाले हौव्वे का क्या करोगे तुम लोग?‘‘
‘‘इस बारे में तो आपको ही जूही की मदद करनी होगी। अगर ऐसा कोई खजाना सचमुच है तो वो सरकार को सौंप देना ही बेहतर होगा।‘‘
सहमति में सिर हिलाता वो उठकर खड़ा हो गया।
‘‘दिल्ली पहुंचकर अपना हाल-चाल देते रहना। मैंने तुम्हें ठीक पहचाना था। तुम सचमुच काबिल नौजवान हो, उससे भी कहीं ज्यादा जितना मैंने सोचा था।‘‘
वो बाहर निकल गया।
अगले रोज।
मैं दिल्ली वापस लौटना चाहता था। डॉली भी अब इस नामुराद शहर में और नहीं रूकना चाहती थी। मगर जूही के जिद के आगे झुकना पड़ा। हम हफ्ता भर और वहां रूक गये। वो सात दिन हमने सैर-सपाटे में व्यतीत किये। जूही ने उन सात दिनों को यादगार बनाने में कोई कसर रख नहीं छोड़ी थी। आठवें दिन जब हम दिल्ली के लिए रवाना हुए थे तो वह किसी मासूम बच्चे की तरह बिलख-बिलख कर रो रही थी।
इस वक्त हम इम्पाला में सवार थे। कार डॉली चला रही थी। मैं उसके पहलू में बैठा खामोशी से सिगरेट के कश ले रहा था।
”राज“ - वो सामने सड़क पर निगाहें जमाये हुए बोली - ”लगता है कोई अपना बिछड़ गया हो, नहीं?
”सो तो है।“
”तुम्हे तो उसकी ज्यादा याद आ रही होगी।“
”हाँ, बहुत ज्यादा।“
”क्यों?“ - वो बदले स्वर में बोली - ”वो क्या तुम्हारी कोई सगे वाली थी?“
”हे भगवान“ - मैंने आह भरी - ”सच ही कहा है, ”त्रिया चरित्रं पुरुषोस्य भाग्यं दैवो न जानयति कुतो मनुष्य?‘‘
”क्या कहा?“
”कुछ नहीं गाड़ी चला, खामखाह एक्सीडेंट कर बैठेगी।“


☺!! समाप्त !!☺
chusu
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Joined: 20 Jun 2015 16:11

Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)

Post by chusu »

sahi...................
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