मैंने आस-पास निगाह दौड़ाई। सामने बाउंड्री-वॉल एक जगह से टूटी पड़ी थी। जिसके पत्थर वहीं बिखरे हुए थे। पत्थरों का ढेर कुछ यूं लगा हुआ था कि उनपर चढ़कर कोई भी लम्बे कद का आदमी पहली मंजिल की बॉलकनी तक आसानी से पहुंच सकता था, और आगे सीढ़ियों के रास्ते छत पर पहुंच जाना क्या बड़ी बात थी। मेरी सारी थ्यौरी ही फेल हो गयी। मेरा यह विश्वास रेत के महल की तरह ढेर हो गया कि मानसिंह का कत्ल पार्टी में मौजूद किसी सख्श ने ही किया था।
सामने का नजारा खुद बयान कर रहा था कि कातिल उसी रास्ते से वहां पहुंचा था और स्केप के लिए भी उसने वही रास्ता इस्तेमाल किया था। टूटी हुई बाउंड्री के परली तरफ कच्चा रास्ता था जो आगे से बायें मुड़कर हवेली के मुख्य द्वार तक पहुंचता था।
‘‘एक ट्रक टकरा गया था बाउंड्री वॉल से“ - जूही मुझे उधर देखता पाकर बोली, ‘‘दीवार काफी पुरानी और कमजोर हो चुकी थी, वो ट्रक का मजबूत झटका नहीं झेल सकी और टूट कर बिखर गई।“
‘‘इधर ट्रक का क्या काम?‘‘
‘‘कोई काम नहीं, वो ट्रक ड्रायवर पापा से मिलने हवेली ही आ रहा था।‘‘
‘‘कब की बात है ये?‘‘
‘‘डैडी की मौत से महज एक दिन पहले की।‘‘
”इसे दोबारा बंद कराने की कोशिश नहीं की गई।“
”नहीं।“
”क्यों?“
”भई अगले ही दिन डैडी के साथ वो हादसा हो गया और उसके बाद हमने इस तरफ ध्यान नही नहीं दिया।“
‘‘ड्राइवर का क्या हुआ?‘‘
‘‘कौन ड्राइवर!‘‘
‘‘जिसके ट्रक ने बाउंड्री वॉल तोड़ी थी।‘‘
‘‘अच्छा वो, डैडी ने तो उसे माफ कर दिया, मगर अच्छा होता जो हमने उसे पुलिस में दे दिया होता।‘‘
‘‘क्यों?‘‘
‘‘अगले रोज हाइवे पर उसकी लाश बरामद हुई थी। किसी ने सरेराह उसे शूट कर दिया था। बेचारा हवालात में होता तो यूं मरने से बच जाता। उसकी मौत के बाद उसके घरवालों की इल्जाम लगाती उंगली डैडी की तरफ उठी, उन सबने बहुत हो हल्ला मचाया मगर कोई यह मानकर राजी नहीं हुआ कि मेरे डैडी ने सिर्फ इसलिए उसको मार डाला क्योंकि उसने उनकी दीवार तोड़ दी थी।‘‘
‘‘फिर क्या हुआ?‘‘
‘‘कुछ नहीं होना क्या था, पुलिस के अनसॉल्ब केसों में उसके कत्ल का भी एक केस जुड़ गया।‘‘
”ओह, क्या यहाँ छत पर पहुँचने का कोई दूसरा रास्ता भी है, ऐसा रास्ता जिसे इस्तेमाल करने के लिए नीचे हॉल से गुजरना जरूरी न हो।“
”है तो सही“ - जूही बोली - ”मगर वो इस्तेमाल में नहीं लाया जाता, हमेशा लॉक्ड रहता है।“
”अगर तकलीफ न हो तो मैं वो रास्ता देखना चाहूँगा।“
”अरे तकलीफ कैसी? आओ।“
कहकर वो सीढ़ियों की तरफ बढ़ी मैंने उसका अनुसरण किया, हवेली से बाहर निकलकर वो एक लम्बा घेरा काटकर हवेली के दूसरे छोर पर पहुंची।
वो एक छोटे लकड़ी के दरवाजे के सामने पहुंचकर ठिठक गई, उसने पलट कर मुझे देखा।
उसके चेहरे पर सख्त हैरानगी के भाव थे।
”क्या हुआ?
उसने चुपचाप दरवाजे की तरफ इशारा कर दिया।
दरवाजे का बड़ा सा ताला अपने कुंडे से निकलकर जमीन पर गिरा हुआ था, कुंडा भी अपनी जगह से उखड़कर दरवाजे से लटका हुआ था। मैंने झुककर ताले का मुआयना किया, ताला काफी पुराना, जंग लगा किंतु मजबूत था। वह जहां पड़ा था वहां की जमीन में नमी थी मगर ताले का ऊपरी हिस्सा एकदम साफ था, मैंने ताले पर रूमाल डालकर उठाया और उसके नीचे की जमीन का मुआयना किया। ताले का बहुत हल्का इम्प्रेशन वहां बना पाया। ताले के निचले कोने पर एक जगह थोड़ी मिट्टी लगी थी, जो ताला तोड़ेने के बाद वहां जमीन पर फेंकने से बना हो सकता था।
‘‘बारिश कब हुई थी?‘‘
‘‘बारिश!‘‘ - वो तनिक अचकचाई फिर बोली, ‘‘तुम्हारे यहां आने से दो रोज पहले। अरे हां याद आया जिस रोज डॉली यहां आई थी उसी रोज दिन में बारिश होकर हटी थी।‘‘
‘‘ओह!‘‘
”क्या मतलब हुआ इसका?“ जूही बोली।
”समझो‘‘ - मैं बेवजह उसे घूरता हुआ बोला - ”साफ जाहिर हो रहा है कि अभी हाल ही में किसी ने हवेली में इसी रास्ते से घुसपैठ की थी, लेकिन ऐसा उसने आखिरी बारिश होने के बाद किया था।“
”पहले क्यों नहीं?“
”क्योंकि अगर ताला यहां बारिश से पहले फेंका गया होता तो ताले के ऊपर काफी मिट्टी लगी होती जो की नहीं लगी है।“
‘‘तो क्या उसी ने मेरे पापा को....‘‘
‘‘जवाब अभी तुम खुद देकर हटी हो कि आखिरी बारिश उस दिन हुई जिस दिन डॉली यहां पहुंची थी, लिहाजा ताला उसके बाद तोड़ा गया।‘‘
‘‘ये दो जुदा लोगों के काम भी तो हो सकते हैं, मेरा मतलब है पहले कातिल ताला तोड़कर इधर से भीतर घुसा हो मगर उसने ताला फेंका ना हो, बाद में बारिश के बाद फिर इधर से कोई गुजरा हो और उसने ताला कुंडे से निकाल कर फेंक दिया हो।‘‘
‘‘हो सकता है मगर हम कातिल से इतनी नफासत की उम्मीद नहीं कर सकते कि उसने वापस जाते समय दोबारा ताले को कुंडे में फंसाने की जहमत उठाई हो।‘‘
मैंने आगे बढ़कर दरवाजा खोल दिया।
अंदर घुप्प अंधेरा था, अंधेरे में मुझे ऊपर को जाती सीढ़ियाँ दिखाई दीं। मैं सीढ़ियों की तरफ बढ़ा, जूही मेरे साथ थी।
हम सीढ़ियाँ चढ़ने लगे।
सीढ़ियों की हालत खस्ता थी, वो कई जगह से टूटी हुई थी, हाथ को हाथ सुझाई नहीं दे रहा था, कभी किसी उखड़े हुए पत्थर पर पैर पड़ जाता तो यूं लगता था हम नीचे जा गिरेंगे।
”हमें टार्च साथ लाना चाहिए था।“ जूही फुसफुसाई, तब कहीं जाकर इस अक्ल के अंधे को अपनी जेब में रखे लाइटर का ख्याल आया।
मैंने लाइटर बाहर निकालकर जला लिया।
अब हम लाइटर की नीम रोशनी में आगे बढ़ने लगे।
कुछ और ऊपर की तरफ जाने के पश्चात् मैं ठिठका, मुझे अपने पैरों के पास एक कागज का टुकड़ा पड़ा हुआ दिखाई दिया।
मैंने झुककर वो कागज उठा लिया, उस पर किसी का टेलीफोन नम्बर दर्ज था, मैंने कागज अपनी जेब में रख लिया।
”सावधानी पूर्वक सीढ़ियाँ चढ़कर हम दोनों एक बार फिर छत पर पहुंचे।
मैं अपना अगला कदम निर्धारित करने की कोशिश कर ही रहा था कि तभी........।
एक तीखी चमक मेरी आंखों पर पड़ी।
खतरा!
मेरे दिमाग ने मुझे चेताया, सेकैंड के दसवें हिस्से में मैंने अपने से कुछ कदमों की दूरी पर खड़ी जूही के ऊपर छलांग लगा दी।
”धाँय।“ - एक फायर हुआ।
मैं जूही को लिए दिए छत पर ढेर हो गया। मगर तब तक देर हो चुकी थी, गोली जूही के कंधे को चीरती हुई निकल गई।
”उसके गले से एक दिल दहला देने वाली चीख निकली, और वह निश्चेष्ट हो गई।
हड़बड़ाकर मैंने उसकी नब्ज टटोली, नब्ज चल रही थी। तभी एक पल को मेरी निगाह उधर गई जिधर से गोली चलाई गई थी। बहुत दूर एक पेड़ पर राइफल का आभास मुझे मिला, अलबत्ता दूरी बहुत ज्यादा होने की वजह से हमलावर के कद-काठ का कोई अंदाजा मैं नहीं लगा सका। पेड़ के ठीक नीचे एक कार खड़ी थी जो ऑल्टो या बीट हो सकती थी, ठीक-ठीक कह पाना मुहाल था। मेरी तमाम आशाओं के विपरीत राइफल वाला अभी तक वहां से हिला नहीं था और दोबारा निशाना साध रहा था।
मैंने रिवाल्वर निकाल कर हमलावर की दिशा में लगातार दो फायर झोंक दिये, मगर जैसा की आपेक्षित था, दूरी अधिक होने के कारण गोलियाँ रास्ते में ही ठण्डी हो गईं।
मैं हड़बड़ाया, हम खुले में थे। वो बड़ी आसानी से हम दोनों को शूट कर सकता था। अपनी निश्चित मौत का आभास मुझे हो चुका था, चंद कदमों की दूरी पर सीढ़ियों का दहाना था, वहां पहुंचकर हम खुद को सुरक्षित कर सकते थे। मैंने जूही को होश में लाने की कोशिश की मगर वो टस से मस नहीं हुई। उसके बाजू से लगातार खून बह रहा था, जो कि इस वक्त उसकी नाजुक हालत के लिए बेहद खतरनाक था। मैंने रूमाल निकाल कर कसकर उसके कंधे पर बांध दिया मगर खून रूकना बंद नहीं हुआ। मजबूरन मुझे रिस्क लेना ही पड़ा।
मैंने लेटे ही लेटे जूही के जिस्म को अपनी बाहों और टांगों के बीच मजबूती से जकड़ लिया और पहिए की तरह गोल-गोल घूमता हुआ सीढ़ियों की तरफ बढ़ा।
फौरन एक फायर हुआ। गोली मेरे ऊपर से गुजर गई।
हड़बड़ाकर मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी।
”धाँय।“ तत्काल दूसरा फायर हुआ। गोली मेरे पीठ पीछे छत से कहीं टकराई। हमलावर के अगले फायर से पहले मैं जूही को लिए दिए सीढ़ियों के दहाने तक पहुंचने में कामयाब हो गया।
मैंने जूही को खुद से अलग किया और हमलावर को गोली चलाने का अगला मौका दिये बगैर जूही को मजबूत दीवारों की ओट में खींच लिया।
तत्पश्चात उसे अपने कंधे पर डालकर मैं सीढ़ियां उतरने लगा, अंधेरे में यह एक खतरनाक कदम था। मगर मजबूरी थी ”मरता क्या न करता“ वाली।
मैं निर्विघ्न जूही को लेकर नीचे पहुंचा और गैरेज की तरफ बढ़ गया, गैरेज में उस वक्त तीन कारें मौजूद थी, पहली जेन जिसे प्रकाश चलाता था और दूसरी स्टीम जो कि जूही के इस्तेमाल के लिए थी। और तीसरी कार जो कि बीएमडब्ल्यू थी, वो शायद मानसिंह के जीवनकाल में उनके इस्तेमाल में आती होगी।
गैरेज में पहुंचकर मुझे याद आया कि किसी एक कार की चाभी भी मेरे पास नहीं थी। मैंने वापस हवेली में जाकर प्रकाश से चाभी मांगने के बारे में सोचा, मगर जूही को वहां अकेले छोड़ना भी ठीक नहीं था।
मैंने पुनः उसके बाजू पर दृष्टिपात किया, खून का बहना अभी भी जारी था।
मैंने रूमाल खोलकर दोबारा उसके घाव पर कसकर बांध दिया।
अब खून बहना कुछ कम हुआ।
मैंने अपनी जेब से चाभियों का एक गुच्छा निकाला फिर उसमें से छांट कर एक चाभी ड्राइविंग डोर के लॉक में डालकर घुमाया। वाह! पहली ही चाभी से दरवाजा खुल गया।
तत्पश्चात काफी परिश्रम करके मैंने जूही को कार की पिछली सीट पर लिटा दिया फिर दरवाजा बंद करने के पश्चात् मैं ड्राइविंग सीट पर जा बैठा।
मुख्य द्वार पर पहुंचने से पहले ही मैंने जोर-जोर से हार्न बजाना शुरू कर दिया। तत्काल पास की क्यारियों में बागवानी कर रहे एक नौकर ने गेट खोल दिया। हवेली से बाहर निकलकर मैंने कार को दाईं तरफ मोड़ा और स्पीड बढ़ा दी।
रास्ते में मुझे जो पहला नर्सिंग होम नजर आया, मैंने उसके इमरजेंसी गेट के सामने कार रोक दी और जोर से चिल्लाया, ‘‘कमॉन हरिअप! यह मर रही है।‘‘
अस्पताल के कर्मचारियों पर मेरे आखिरी फिकरे का अच्छा प्रभाव पड़ा।
आनन-फानन में जूही को एक स्टै्रचर पर लिटा दिया गया, दो वार्ड ब्वाय स्ट्रेचर को धक्का देते हुए अंदर ले गये, कार वहीं खड़ी छोड़कर मैं उनके पीछे लपका।
तभी एक डॉक्टर मेरे पास पहुंचा, ‘‘फौजदारी का मामला है, पुलिस को खबर करनी होगी, एमएलसी करानी होगी।‘‘
‘‘उसकी हालत कैसी है?‘‘
‘‘अभी कुछ कह पाना मुश्किल है। खून बहुत बह गया है। गोली शायद अभी भी अंदर है, ऑपरेशन करना होगा, मगर उससे पहले पुलिस को फोन करना जरूरी है।‘‘
‘‘डॉक्टर! प्लीज आप गोली निकालिए, बाकी मुझपर छोड़ दीजिए, मैंने जसवंत को फोन कर दिया है, वो आता ही होगा।‘‘
‘‘जसवंत!...कौन जसवंत?‘‘
‘‘क्या बात है डॉक्टर साहब आपकी शहर कोतवाली का इंचार्ज कौन है, ये भी नहीं पता आपको। प्लीज अपना काम पूरा कीजिए वो आता है तो मैं सारी फार्मेलिटिज पूरी करा दूंगा।‘‘
‘‘ओके आप कहते हैं तो...‘‘
‘‘हां मैं कहता हूं प्लीज।‘‘
वह भीतर चला गया।
मैंने कैशियर के पास जाकर अपने क्रेडिट कार्ड से बीस हजार रूपयों की पेमेंट कर दी। फिर कोतवाली में फोन किया। पता चला कोतवाल साहब अभी-अभी सीओ साहब के साथ कहीं बाहर गये हैं। मैंने उसके मोबाइल पर कॉल लगाई, दो बार घंटी जाते ही कॉल अटैंड कर ली गई।
‘‘मैं बहुत बिजी हूं भई।‘‘
‘‘मैं समझ सकता हूं इंस्पेक्टर साहब! बहुत जरूरी नहीं होता मैं आपको डिस्टर्ब नहीं करता।‘‘
‘‘कम शब्दों में बताओ क्या चाहते हो?‘‘
‘‘जूही को गोली लगी है वह शिवम नर्सिंग होम में एडमिट है। डॉक्टर एमएलसी के बिना उसका ऑपरेशन करके राजी नहीं था। मैंने आपके नाम का हवाला देकर कह दिया कि मेरी आपसे बात हो गई है, आप यहां आ रहे हैं। और आपने कहा है कि वह ऑपरेशन कर सकता है, आप कागजी कार्रवाई बाद में पूरी कर देंगे।‘‘
‘‘ठीक है।‘‘
उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दिया।
फिर तकरीबन दो घण्टे बाद डाक्टर ने मुझे बताया कि गोली निकाल दी गई है, मगर उसकी हालत अभी भी नाजुक बनी हुई है।
‘‘डॉक्टर वो इंस्पेक्टर साहब...‘‘
‘‘हां उनका फोन आ गया था।‘‘ वो मेरी बात काटकर बोला और आगे बढ़ गया।
मैंने चैन की सांस ली।
लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
Read my stories
भाई बहन,ननद भाभी और नौकर .......... सेक्स स्लेव भाभी और हरामी देवर .......... वासना के सौदागर .......... Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक Running.......... घर की मुर्गियाँ Running......नेहा बह के कारनामे (Running) ....मस्तराम की कहानियाँ(Running) ....अनोखा इंतकाम रुबीना का ..........परिवार बिना कुछ नहीं..........माँ को पाने की हसरत ......सियासत और साजिश .....बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई.....एक और घरेलू चुदाई......दिल दोस्ती और दारू...
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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भाई बहन,ननद भाभी और नौकर .......... सेक्स स्लेव भाभी और हरामी देवर .......... वासना के सौदागर .......... Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक Running.......... घर की मुर्गियाँ Running......नेहा बह के कारनामे (Running) ....मस्तराम की कहानियाँ(Running) ....अनोखा इंतकाम रुबीना का ..........परिवार बिना कुछ नहीं..........माँ को पाने की हसरत ......सियासत और साजिश .....बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई.....एक और घरेलू चुदाई......दिल दोस्ती और दारू...
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
अगले दो घंटे यूंही गुजरे। फिर नर्स ने बताया कि जूही को होश आ गया है और डॉक्टर ने उसे खतरे से बाहर बताया है।
मैंने उससे मिलने की इच्छा जाहिर की तो इजाजत दे दी गई।
मैं जूही के बैड के करीब पहुंचा। वह आंखे बंद किये लेटी हुई थी, आहट पाकर उसने आंखें खोलकर मेरी तरफ देखा, उसका चेहरा पीला पड़ चुका था। यूं महसूस हो रहा था जैसे उसके शरीर का सारा खून निचोड़ लिया गया हो।
मैं उसकी आंखों में देखता हुआ मुस्कराया।
जवाब में एक फीकी सी मुस्कुराहट उसके होठों पर उभरकर फौरन बाद गायब हो गई।
”अब कैसा महसूस कर रही हो?“
”पहले से बेहतर सिर्फ थोड़ी सी कमजोरी महसूस हो रही है और कोई परेशानी मुझे नहीं है।“
”तो फिर रोनी सूरत बनाये क्यों पड़ी हो?“
जवाब में वो खुल कर मुस्कराई।
”दैट्स लाइक ए गुड गर्ल।“
”दैट्स लाइक ए गुड ब्वाय।“
कहते हुए उसने हौले से मेरे गाल पर थपकी दी।
”जहेनसीब“ - मैं बोला- ”जीवन में पहली बार किसी ने मुझे गुड कहा है, साथ में ब्वाय तो जैसे सोने पे सुहागा हो गया।“
वह हंस पड़ी।
‘‘तुम्हे पता है।‘‘
‘‘क्या?‘‘
”यही कि तुम बहुत खूबसूरत हो।“
”धत्त्“ - वो शर्माती हुई बोली - ”झूठे कहीं के।“
”मैं सच कह रहा हूँ, कहीं तुमने ही तो विश्वामित्र की तपस्या भंग नहीं की थी।“
”बस-बस रहने दो।“
”कार-कार शुरू करूँ।“
”नानसेंस।“
”इडिएट भी।“
वह पुनः हंसी।
”ये रोजी कौन है?“
फौरन उसकी हंसी को ब्रेक लगा - ”क्यों जानना चाहते हो?“
”यूं ही, कल उसके जिक्र पर जिस तरह से प्रकाश ने तुम्हें डांटकर खामोश करा दिया, उससे लगता है कोई खास बात तो यकीनन है।“
”ठीक अंदाजा लगाया तुमने।“
”कौन थी रोजी?“
”वो एक नर्स थी।“
”ये तुम पहले ही बता चुकी हो। देखो मैं जानता हूं ये वक्त ऐसी बातें करने का नहीं है, मगर कातिल खुले में आ चुका है, और हम अभी तक अंधेरे में हैं, इसलिए मेरे लिए हर वो बात जानना जरूरी है जिसका तनिक भी रिश्ता तुमसे है, समझ रही हो तुम!‘‘
”हां समझ रही हूं। अच्छा सुनो ये तो मैं तुम्हे बता ही चुकी हूं कि वह हमारे यहां क्यों आई थी।‘‘
‘‘हां उससे आगे बढ़ो।‘‘
‘‘ओके, देखो उसे पापा के लिए अप्वाइंट किया गया था इसलिए उसे रहने के लिए पापा ने अपने बगल वाला कमरा दे दिया था। पापा के बेड के किनारे एक कॉल बेल लगा दी गयी जिसकी घंटी रोजी वाले कमरे में बजती थी। ताकि जरूरत पड़ने पर वे रोजी को बुला सकें। फिर एक रात जब मैं अपने कमरे में सोई हुई थी। मुझे बाहर किसी के जोर-जोर से बोलने की आवाज सुनाई पड़ी। उत्सुकता वश मैं कमरे से बाहर निकली और आवाज की दिशा में आगे बढ़ी, तभी मेरी नजर अपने कमरे से बाहर निकल रही रोजी पर पड़ी उसके हाथों में एक लम्बे फल वाला चाकू चमक रहा था। अजीब से सस्पेंस में फंसी मैं उसके पीछे चल पड़ी।“
”फिर क्या हुआ?“
”चाकू हाथ में लिए रोजी पापा के कमरे में जा घुसी। मुझे लगा वो पापा की हत्या कर देना चाहती है, मैं दौड़कर कमरे में पहुंची, तब तक रोजी पापा के सिराहने पहुंच चुकी थी। अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी, मैंने आस-पास निगाह दौड़ाई, फर्श पर मेरे पैरों के पास एक पिस्तौल पड़ी हुई थी, मैंने झुककर उसे उठा लिया। अब तक रोजी का चाकू वाला हाथ हवा में ऊपर उठ चुका था, घबराकर मैंने उसकी दिशा में फायर झांक दिया। वह जोर से चीखी और कटे पेड़ की तरह फर्श पर जा गिरी, तब जाकर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मैंने रोजी का कत्ल कर दिया था। मेरे हाथ पांव फूल गये, मारे दहशत के मेरा बुरा हाल हो गया। तब तक हवेली में जाग हो गई। पापा उठकर बैठ चुके थे, तभी प्रकाश वहाँ पहुंचा, मैंने उसे और पापा दोनों को बताया कि रोजी क्या करने वाली थी मगर किसी को यकीन नहीं आया। क्योंकि रोजी के पास से कोई छुरा बरामद नहीं हुआ। प्रकाश ने मेरी बात पर विश्वास कर रोजी की लाश इधर-उधर करके छुरे को ढूंढने की कोशिश की जो कि नहीं मिला। फिर आनन-फानन में रोजी की लाश वहां से हटा दी गई।“
”फिर क्या हुआ?“
”होना क्या था सभी ने उसकी बाबत खामोशी अख्तियार कर ली।“
लाश किसने ठिकाने लगाई?“
”प्रकाश ने?“
”कहाँ?“
”स्माईलपुर में इसाइयों का कब्रिस्तान है वहीं पर।“
”आई सी“ - मैं विचारपूर्ण भाव से बोला - ”अच्छा वो पिस्तौल किसकी थी जो कि तुम्हें कमरे के फर्श पर पड़ी मिली थी।“
”मालूम नहीं।“
”फिर वो यूं अचानक कमरे में कहाँ से नमूनदार हो गई?“
”मुझे नहीं मालूम।“
”अब वो पिस्तौल कहाँ हैं?“
”वह लाश के साथ ही दफन कर दी गई।“
”ऐसा तुमसे प्रकाश ने कहा।“
”हाँ।“
‘‘और रोजी की लाश ठिकाने लगाने भी वह अकेला ही गया था।‘‘
‘‘नहीं उसने अपने लंगोटिये यार राकेश को फोन करके बुला लिया था। दोनों ने मिलकर हमें उस मुसीबत से छुटकारा दिलाया था।‘‘
”ये रोजी के भूत वाला क्या चक्कर था?“
”कोई चक्कर नहीं था, मैंने सचमुच उसका भूत देखा था।“
”इस बात की क्या गारंटी कि वो रोजी का भूत ही था ना कि जीती जागती रोजी।“
”क्या मतलब?“ - वो चौंकती हुई उठ बैठी।
‘‘लेटी रहो और चौंको मत! कंकालों की असलियत जानकर भी तुम ऐसे ही चौंकी थी।‘‘
‘‘मगर मरी हुई रोजी...‘‘
‘‘तुमने उसकी नब्ज टटोली थी, चेक किया था कि वह सचमुच मर चुकी है?‘‘
‘‘नहीं मगर...।‘‘
”सोचो ऐसी कौन सी खास बात थी उसके अंदर जिससे कि तुमने उसे भूत समझ लिया।“
”मगर जब रोजी मर चुकी है..............।“
”फिर तुम ये कैसी कह सकती हो कि तुम्हारी गोली खाकर वह मर गई थी ना कि जिन्दा बच गई।“
”ओह गॉड, ओह माई गुड गॉड“ - वो आह भरती हुई बोली - तुम तो सचमुच मुझे पागल कर दोगे।“
”मैं तुम्हारा पागलपन दूर करने कि कोशिश कर रहा हूँ साफ जाहिर हो रहा है कि किसी ने जानबूझकर तुम्हारे सामने ऐसा स्टेज कायम किया कि तुम गोली चलाने पर मजबूर हो जाओ और ऐन वही हुआ। तुम्हारे पास रोजी का कत्ल करने के लिए कोई हथियार उपलब्ध नहीं था। लिहाजा षड़यंत्रकारी ने तुम्हारी मुश्किल आसान करने के लिए पहले ही फर्श पर एक पिस्तौल रख दिया बाद में जिसे उठाकर तुमने रोजी को शूट कर दिया, कोई बड़ी बात नहीं कि उस पिस्तौल में असली गोली रही ही ना हो, सिर्फ आवाज करने वाली गोली रही हो।“
‘‘ऐसी गोलियां भी होती हैं?‘‘ वो मासूमियत से मेरी ओर देखती हुई बोली।
‘‘ओह माई गॉड, अरे तुम अनपढ़-गंवार तो नहीं हो, जमाना कहां से कहां पहुंच गया और तुम हत्यारे की इतनी छोटी-छोटी चाल में फंसती चली आ रही हो।‘‘
‘‘देखो मेरे पास डिग्रियां बहुत हैं, किताबी ज्ञान भी बहुत है। मगर और कुछ नहीं आता मुझे, मैंने कभी इस शहर से बाहर कदम नहीं रखा। यहीं पली बढ़ी हूं, यहां के गंवार-देहाती लोगों में भी मुझसे ज्यादा दुनियादारी की समझ होगी। तुम नहीं जानते कि जब तुमने कंकालों की असलियत बताई तो मैं किस कदर भौचक्की रह गयी थी। मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि ऐसा भी होता है इस दुनियां में। इसलिए तुम मुझे अनपढ़ गंवार ही मान लो।‘‘
‘‘देखा मैं तुमपर तंज नहीं कस रहा, बात को समझने की कोशिश करो।‘‘
”ओके करती हूं कोशिश‘‘ - इस दफा वह खुलकर मुस्कराई - ‘‘यानी कि जो हुआ वो सिर्फ एक ड्रामा था।“
”हालात तो यही जाहिर करते हैं।“
”अगर वो ड्रामा था तो सब किया धरा प्रकाश का हुआ।‘‘
”जाहिर है।“
”वो ऐसा क्यों करेगा?“
”इस बारे में तुम मुझसे बेहतर सोच सकती हो।“
”सो तो है“ - वह विचार पूर्ण भाव से बोली - ”मगर मुझे नहीं लगता कि प्रकाश ऐसी बेहुदा हरकत कर सकता है।“
”हाथ कंगन को आरसी क्या मेम साहब, अगर ऐसा कुछ हुआ था तो उसे अभी भी साबित किया जा सकता है।“
”कैसे?“ - वो उत्सुक स्वर में बोली।
”रोजी की कब्र खोदकर, उसमें दफ्न ताबूत को खोलकर देखा जा सकता है।“
”तौबा मुझे तो कब्र के नाम से ही दहशत महसूस होने लगी और तुम तो बाकायदा उसे खोलने की बात कर रहे हो। मानो वो ताबूत न होकर किसी बक्शे का ढक्कन हो।“
मैं हंसा।
”हँस क्यों रहे हो?“
मैंने उससे मिलने की इच्छा जाहिर की तो इजाजत दे दी गई।
मैं जूही के बैड के करीब पहुंचा। वह आंखे बंद किये लेटी हुई थी, आहट पाकर उसने आंखें खोलकर मेरी तरफ देखा, उसका चेहरा पीला पड़ चुका था। यूं महसूस हो रहा था जैसे उसके शरीर का सारा खून निचोड़ लिया गया हो।
मैं उसकी आंखों में देखता हुआ मुस्कराया।
जवाब में एक फीकी सी मुस्कुराहट उसके होठों पर उभरकर फौरन बाद गायब हो गई।
”अब कैसा महसूस कर रही हो?“
”पहले से बेहतर सिर्फ थोड़ी सी कमजोरी महसूस हो रही है और कोई परेशानी मुझे नहीं है।“
”तो फिर रोनी सूरत बनाये क्यों पड़ी हो?“
जवाब में वो खुल कर मुस्कराई।
”दैट्स लाइक ए गुड गर्ल।“
”दैट्स लाइक ए गुड ब्वाय।“
कहते हुए उसने हौले से मेरे गाल पर थपकी दी।
”जहेनसीब“ - मैं बोला- ”जीवन में पहली बार किसी ने मुझे गुड कहा है, साथ में ब्वाय तो जैसे सोने पे सुहागा हो गया।“
वह हंस पड़ी।
‘‘तुम्हे पता है।‘‘
‘‘क्या?‘‘
”यही कि तुम बहुत खूबसूरत हो।“
”धत्त्“ - वो शर्माती हुई बोली - ”झूठे कहीं के।“
”मैं सच कह रहा हूँ, कहीं तुमने ही तो विश्वामित्र की तपस्या भंग नहीं की थी।“
”बस-बस रहने दो।“
”कार-कार शुरू करूँ।“
”नानसेंस।“
”इडिएट भी।“
वह पुनः हंसी।
”ये रोजी कौन है?“
फौरन उसकी हंसी को ब्रेक लगा - ”क्यों जानना चाहते हो?“
”यूं ही, कल उसके जिक्र पर जिस तरह से प्रकाश ने तुम्हें डांटकर खामोश करा दिया, उससे लगता है कोई खास बात तो यकीनन है।“
”ठीक अंदाजा लगाया तुमने।“
”कौन थी रोजी?“
”वो एक नर्स थी।“
”ये तुम पहले ही बता चुकी हो। देखो मैं जानता हूं ये वक्त ऐसी बातें करने का नहीं है, मगर कातिल खुले में आ चुका है, और हम अभी तक अंधेरे में हैं, इसलिए मेरे लिए हर वो बात जानना जरूरी है जिसका तनिक भी रिश्ता तुमसे है, समझ रही हो तुम!‘‘
”हां समझ रही हूं। अच्छा सुनो ये तो मैं तुम्हे बता ही चुकी हूं कि वह हमारे यहां क्यों आई थी।‘‘
‘‘हां उससे आगे बढ़ो।‘‘
‘‘ओके, देखो उसे पापा के लिए अप्वाइंट किया गया था इसलिए उसे रहने के लिए पापा ने अपने बगल वाला कमरा दे दिया था। पापा के बेड के किनारे एक कॉल बेल लगा दी गयी जिसकी घंटी रोजी वाले कमरे में बजती थी। ताकि जरूरत पड़ने पर वे रोजी को बुला सकें। फिर एक रात जब मैं अपने कमरे में सोई हुई थी। मुझे बाहर किसी के जोर-जोर से बोलने की आवाज सुनाई पड़ी। उत्सुकता वश मैं कमरे से बाहर निकली और आवाज की दिशा में आगे बढ़ी, तभी मेरी नजर अपने कमरे से बाहर निकल रही रोजी पर पड़ी उसके हाथों में एक लम्बे फल वाला चाकू चमक रहा था। अजीब से सस्पेंस में फंसी मैं उसके पीछे चल पड़ी।“
”फिर क्या हुआ?“
”चाकू हाथ में लिए रोजी पापा के कमरे में जा घुसी। मुझे लगा वो पापा की हत्या कर देना चाहती है, मैं दौड़कर कमरे में पहुंची, तब तक रोजी पापा के सिराहने पहुंच चुकी थी। अब शक की कोई गुंजाइश नहीं थी, मैंने आस-पास निगाह दौड़ाई, फर्श पर मेरे पैरों के पास एक पिस्तौल पड़ी हुई थी, मैंने झुककर उसे उठा लिया। अब तक रोजी का चाकू वाला हाथ हवा में ऊपर उठ चुका था, घबराकर मैंने उसकी दिशा में फायर झांक दिया। वह जोर से चीखी और कटे पेड़ की तरह फर्श पर जा गिरी, तब जाकर मुझे इस बात का अहसास हुआ कि मैंने रोजी का कत्ल कर दिया था। मेरे हाथ पांव फूल गये, मारे दहशत के मेरा बुरा हाल हो गया। तब तक हवेली में जाग हो गई। पापा उठकर बैठ चुके थे, तभी प्रकाश वहाँ पहुंचा, मैंने उसे और पापा दोनों को बताया कि रोजी क्या करने वाली थी मगर किसी को यकीन नहीं आया। क्योंकि रोजी के पास से कोई छुरा बरामद नहीं हुआ। प्रकाश ने मेरी बात पर विश्वास कर रोजी की लाश इधर-उधर करके छुरे को ढूंढने की कोशिश की जो कि नहीं मिला। फिर आनन-फानन में रोजी की लाश वहां से हटा दी गई।“
”फिर क्या हुआ?“
”होना क्या था सभी ने उसकी बाबत खामोशी अख्तियार कर ली।“
लाश किसने ठिकाने लगाई?“
”प्रकाश ने?“
”कहाँ?“
”स्माईलपुर में इसाइयों का कब्रिस्तान है वहीं पर।“
”आई सी“ - मैं विचारपूर्ण भाव से बोला - ”अच्छा वो पिस्तौल किसकी थी जो कि तुम्हें कमरे के फर्श पर पड़ी मिली थी।“
”मालूम नहीं।“
”फिर वो यूं अचानक कमरे में कहाँ से नमूनदार हो गई?“
”मुझे नहीं मालूम।“
”अब वो पिस्तौल कहाँ हैं?“
”वह लाश के साथ ही दफन कर दी गई।“
”ऐसा तुमसे प्रकाश ने कहा।“
”हाँ।“
‘‘और रोजी की लाश ठिकाने लगाने भी वह अकेला ही गया था।‘‘
‘‘नहीं उसने अपने लंगोटिये यार राकेश को फोन करके बुला लिया था। दोनों ने मिलकर हमें उस मुसीबत से छुटकारा दिलाया था।‘‘
”ये रोजी के भूत वाला क्या चक्कर था?“
”कोई चक्कर नहीं था, मैंने सचमुच उसका भूत देखा था।“
”इस बात की क्या गारंटी कि वो रोजी का भूत ही था ना कि जीती जागती रोजी।“
”क्या मतलब?“ - वो चौंकती हुई उठ बैठी।
‘‘लेटी रहो और चौंको मत! कंकालों की असलियत जानकर भी तुम ऐसे ही चौंकी थी।‘‘
‘‘मगर मरी हुई रोजी...‘‘
‘‘तुमने उसकी नब्ज टटोली थी, चेक किया था कि वह सचमुच मर चुकी है?‘‘
‘‘नहीं मगर...।‘‘
”सोचो ऐसी कौन सी खास बात थी उसके अंदर जिससे कि तुमने उसे भूत समझ लिया।“
”मगर जब रोजी मर चुकी है..............।“
”फिर तुम ये कैसी कह सकती हो कि तुम्हारी गोली खाकर वह मर गई थी ना कि जिन्दा बच गई।“
”ओह गॉड, ओह माई गुड गॉड“ - वो आह भरती हुई बोली - तुम तो सचमुच मुझे पागल कर दोगे।“
”मैं तुम्हारा पागलपन दूर करने कि कोशिश कर रहा हूँ साफ जाहिर हो रहा है कि किसी ने जानबूझकर तुम्हारे सामने ऐसा स्टेज कायम किया कि तुम गोली चलाने पर मजबूर हो जाओ और ऐन वही हुआ। तुम्हारे पास रोजी का कत्ल करने के लिए कोई हथियार उपलब्ध नहीं था। लिहाजा षड़यंत्रकारी ने तुम्हारी मुश्किल आसान करने के लिए पहले ही फर्श पर एक पिस्तौल रख दिया बाद में जिसे उठाकर तुमने रोजी को शूट कर दिया, कोई बड़ी बात नहीं कि उस पिस्तौल में असली गोली रही ही ना हो, सिर्फ आवाज करने वाली गोली रही हो।“
‘‘ऐसी गोलियां भी होती हैं?‘‘ वो मासूमियत से मेरी ओर देखती हुई बोली।
‘‘ओह माई गॉड, अरे तुम अनपढ़-गंवार तो नहीं हो, जमाना कहां से कहां पहुंच गया और तुम हत्यारे की इतनी छोटी-छोटी चाल में फंसती चली आ रही हो।‘‘
‘‘देखो मेरे पास डिग्रियां बहुत हैं, किताबी ज्ञान भी बहुत है। मगर और कुछ नहीं आता मुझे, मैंने कभी इस शहर से बाहर कदम नहीं रखा। यहीं पली बढ़ी हूं, यहां के गंवार-देहाती लोगों में भी मुझसे ज्यादा दुनियादारी की समझ होगी। तुम नहीं जानते कि जब तुमने कंकालों की असलियत बताई तो मैं किस कदर भौचक्की रह गयी थी। मैं तो सपने में भी नहीं सोच सकती थी कि ऐसा भी होता है इस दुनियां में। इसलिए तुम मुझे अनपढ़ गंवार ही मान लो।‘‘
‘‘देखा मैं तुमपर तंज नहीं कस रहा, बात को समझने की कोशिश करो।‘‘
”ओके करती हूं कोशिश‘‘ - इस दफा वह खुलकर मुस्कराई - ‘‘यानी कि जो हुआ वो सिर्फ एक ड्रामा था।“
”हालात तो यही जाहिर करते हैं।“
”अगर वो ड्रामा था तो सब किया धरा प्रकाश का हुआ।‘‘
”जाहिर है।“
”वो ऐसा क्यों करेगा?“
”इस बारे में तुम मुझसे बेहतर सोच सकती हो।“
”सो तो है“ - वह विचार पूर्ण भाव से बोली - ”मगर मुझे नहीं लगता कि प्रकाश ऐसी बेहुदा हरकत कर सकता है।“
”हाथ कंगन को आरसी क्या मेम साहब, अगर ऐसा कुछ हुआ था तो उसे अभी भी साबित किया जा सकता है।“
”कैसे?“ - वो उत्सुक स्वर में बोली।
”रोजी की कब्र खोदकर, उसमें दफ्न ताबूत को खोलकर देखा जा सकता है।“
”तौबा मुझे तो कब्र के नाम से ही दहशत महसूस होने लगी और तुम तो बाकायदा उसे खोलने की बात कर रहे हो। मानो वो ताबूत न होकर किसी बक्शे का ढक्कन हो।“
मैं हंसा।
”हँस क्यों रहे हो?“
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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- mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
”आज कल की लड़कियों के बारे में सोचकर जिनकी दिली ख्वाइश है कि वे हर मामले में पुरुष की बराबरी करें लेकिन अफसोस उनकी ख्वाइश अधूरी ही रह जाती है। जब बात हिम्मत और साहस की आती है तो मजबूरन उन्हें पीछे हटना पड़ता है। मर्द जाति की शरण में जाना ही पड़ता है।
”देखो मेरी जैसी की बात छोड़ दो तो आजकल की लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं।“
”अगर ऐसा है तो लड़कियाँ क्यों अपनी इज्जत की दुहाई देती फिरती हैं कि फलाना लड़के ने उसकी इज्जत लूट ली। फलां लड़के ने उसे छेड़ दिया“ - मैं बोला - ”तुम मुझे एक भी ऐसा लड़का दिखा दो जिसने कभी इतना भी कहा हो कि फलाना लड़की ने उसे छेड़ दिया।“
वो खामोश नहीं।
”जवाब दो मेरी बात का।“
”तुमसे बातों में कोई नहीं जीत सकता।“
”ये तो कोई जवाब नहीं हुआ।“
”ओके मुझे तुम्हारी बात से इत्तेफाक है।“
”कौन सी बात से?“
”यही कि लड़कियां कभी भी लड़कों की बराबरी नहीं कर सकती।‘‘
”गुड सच्चाई को असेप्ट करना अच्छी बात होती है। वैसे मुझे नहीं लगता कि कब्रिस्तान जाने पर रोजी की कब्र मिलेगी। फिर भी मैं चेक करूंगा। अगर वाकई उसके नाम की कब्र वहां हुई तो...।‘‘
‘‘अरे भई वो वैसा वाला कब्रिस्तान नहीं है। वहां कब्र पर नाम नहीं लिखा होता, कोई चबूतरा भी नहीं बनाया जाता। बस जमीन खोद कर दफना दिया जाता है।‘‘
‘‘ओह! अच्छा अब मैं चलता हूं बहुत सारे काम निपटाने हैं।‘‘
”कहाँ जा रहे हो?“
मैनें बताया।
”मुझे पहले घर तो पहुँचा दो।“
”फिलहाल तुम यहीं रही, वो हवेली तुम्हारे लिए महफूज नहीं है।“
”मगर हॉस्पीटल में .............।“
”सिर्फ शाम होने तक, ओके.....।“
”ओके“ - वो बोली - ”मुझ पर गोली किसने चलाई थी?“
”मालूम नहीं।“
”क्या वैसी कोई हरकत यहाँ नहीं हो सकती?“
”उम्मीद तो नहीं है, फिर भी मैं डॉ. को बोलकर जाऊंगा कि वह तुम्हारी सुरक्षा का कोई इंतजाम कर दे।“
उसने सिर हिलाकर हामी भरी।
मैं बाहर आकर कार में सवार हो गया। अब इस बखेड़े को जल्द से जल्द निपटाना बहुत जरूरी था, क्योंकि कातिल अब खुले में आ चुका था। जो कि इस अजनबी शहर में मेरे लिए खतरनाक बात थी। वो बौखलाया हुआ था, इसलिए कुछ भी कर सकता था। मैं वापस हवेली पहुँचा। प्रकाश की कार अब वहाँ नहीं थी। शायद वो हवेली से रूख्सत हो चुका था। मौका अच्छा था। मैं उसके कमरे तक गया, दरवाजा बंद था और कुंडे से एक मजबूत किंतु पुरानी बनावट का ताला लटक रहा था।
एक बार अपने आजू-बाजू देखकर मैंने ये इत्मिनान हॉसिल किया कि कोई नौकर-चाकर मुझे नहीं देख रहा था। तत्पश्चात अपनी जेब से चाभियों का गुच्छा निकालकर मैंने एक-एक करके सारी चाभियाँ ताले के छेद में डाल कर देख लिया। ताला नहीं खुला। मैंने जूही के कमरे का दरवाजा ट्राई किया। दरवाजा खुला हुआ था, मैं अंदर प्रवेश कर गया।
कमरे में अंदर से गुजर कर मैं बॉलकनी में पहुँचा, वहाँ से प्रकाश के कमरे की बालकनी में पहुँचना बहुत ही आसान काम साबित हुआ। राहत की बात ये थी कि उसकी बॉलकनी का दरवाजा खुला हुआ था।
बॉलकनी के रास्ते मैं प्रकाश के कमरे में दाखिल हुआ। अंदर दाखिल होते ही मैं थमक कर खड़ा हो गया।
सामने अस्त-व्यस्त पलंग पर प्रकाश की लाश पड़ी थी। उसकी दाईं कनपटी में बना गोली का सुराग दूर से ही नजर आ रहा था।
मैं उसके समीप पहुँचा।
पलंग के पायताने एक रिवाल्वर पड़ी हुई थी। मैंने झुककर उसे रूमाल से पकड़कर उठा लिया। नाल को नाक के पास ले जाकर सूंघा, ताजा जले बारूद की गंध स्पष्ट महसूस हुई। रिवाल्वर का सीरियल नम्बर रेती से घिसकर मिटा दिया गया था।
मैंने रिवाल्वर यथा-स्थान रखकर लाश का मुआयना किया। नब्ज बंद थीं। धड़कने बंद थीं। शरीर अभी गर्म था, और गोली के छेद से अभी भी खून रिस रहा था। उसे प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी गयी थी। लाश की हालत बताती थी कि उसे मरे अभी घंटा भी नहीं गुजरा था। यह उस आक्रमणकारी का काम हो सकता था, जिसने हमपर छत पर गोली चलाई थी।
मैंने हाथ में रूमाल लपेटकर वहाँ की तलाशी लेना आरम्भ किया। शुरूआत मैंने राइटिंग टेबल से ही किया। दराजों में कुछ कागजात भरे हुए थे मैंने एक-एक करके सभी कागजात देख डाले मगर कोई काबिलेजिक्र वस्तु मेरे हाथ नहीं लगी। अलबत्ता ऐसा कुछ जरूर महसूस हुआ जैसे किसी ने मेरे से पहले बेहद जल्दबाजी में वहाँ की तलाशी ली हो।
मैं वार्डरोब के करीब पहुँचा।
वहाँ भी पहले से ही अस्त-व्यस्तता का बोल-बाला था। जैसे-तैसे करके मैंने कमरे की तलाशी का काम मुक्कमल किया। इस दौरान काबिले जिक्र एक तस्वीर मेरे हाथ लगी। जिसमें तकरीबन पच्चीस वर्षीय एक युवती खड़ी मुस्करा रही थी। तस्वीर के पीछे रोजी डेनियल विद लव और मुम्बई का एक पता लिखा हुआ था, लिहाजा ज्यादातर उम्मीद इसी बात की थी कि तस्वीर वाली लड़की रोजी ही थी।
तस्वीर ये इशारा करती थी कि रोजी प्रकाश की गर्लफ्रेंड हो सकती थी जबकि बाजुबानी जूही मुझे पता लगा था कि रोजी एक नर्स थी जिसको कि जूही के डैडी ने अपनी तीमारदारी में रखा हुआ था। ‘शायद ये रोजी कोई और हो।‘ - मैं खुद से बोला - ”प्रकाश की गर्ल फ्रैंड रोजी और नर्स रोजी दो जुदा लड़कियाँ हो सकती थीं।“
मगर मेरा मन इसे मानने को तैयार नहीं हुआ, लिहाजा मैंने वो विचार अपने जेहन से झटक दिया और याद करने लगा कि कमरे में मैंने कहाँ-कहाँ अपनी उँगलियों के निशान छोड़े थे।
तभी दरवाजे पर आहट हुई शायद कोई ताला खोल रहा था। मैं चौकन्ना हो गया। यूं महसूस हुआ जैसे बाहर से कुंडा सरकाया गया हो। फिर दरवाजे में हरकत हुई, मैं फौरन वार्डरोब की ओट में सरक गया।
”देखो मेरी जैसी की बात छोड़ दो तो आजकल की लड़कियां किसी भी क्षेत्र में लड़कों से पीछे नहीं हैं।“
”अगर ऐसा है तो लड़कियाँ क्यों अपनी इज्जत की दुहाई देती फिरती हैं कि फलाना लड़के ने उसकी इज्जत लूट ली। फलां लड़के ने उसे छेड़ दिया“ - मैं बोला - ”तुम मुझे एक भी ऐसा लड़का दिखा दो जिसने कभी इतना भी कहा हो कि फलाना लड़की ने उसे छेड़ दिया।“
वो खामोश नहीं।
”जवाब दो मेरी बात का।“
”तुमसे बातों में कोई नहीं जीत सकता।“
”ये तो कोई जवाब नहीं हुआ।“
”ओके मुझे तुम्हारी बात से इत्तेफाक है।“
”कौन सी बात से?“
”यही कि लड़कियां कभी भी लड़कों की बराबरी नहीं कर सकती।‘‘
”गुड सच्चाई को असेप्ट करना अच्छी बात होती है। वैसे मुझे नहीं लगता कि कब्रिस्तान जाने पर रोजी की कब्र मिलेगी। फिर भी मैं चेक करूंगा। अगर वाकई उसके नाम की कब्र वहां हुई तो...।‘‘
‘‘अरे भई वो वैसा वाला कब्रिस्तान नहीं है। वहां कब्र पर नाम नहीं लिखा होता, कोई चबूतरा भी नहीं बनाया जाता। बस जमीन खोद कर दफना दिया जाता है।‘‘
‘‘ओह! अच्छा अब मैं चलता हूं बहुत सारे काम निपटाने हैं।‘‘
”कहाँ जा रहे हो?“
मैनें बताया।
”मुझे पहले घर तो पहुँचा दो।“
”फिलहाल तुम यहीं रही, वो हवेली तुम्हारे लिए महफूज नहीं है।“
”मगर हॉस्पीटल में .............।“
”सिर्फ शाम होने तक, ओके.....।“
”ओके“ - वो बोली - ”मुझ पर गोली किसने चलाई थी?“
”मालूम नहीं।“
”क्या वैसी कोई हरकत यहाँ नहीं हो सकती?“
”उम्मीद तो नहीं है, फिर भी मैं डॉ. को बोलकर जाऊंगा कि वह तुम्हारी सुरक्षा का कोई इंतजाम कर दे।“
उसने सिर हिलाकर हामी भरी।
मैं बाहर आकर कार में सवार हो गया। अब इस बखेड़े को जल्द से जल्द निपटाना बहुत जरूरी था, क्योंकि कातिल अब खुले में आ चुका था। जो कि इस अजनबी शहर में मेरे लिए खतरनाक बात थी। वो बौखलाया हुआ था, इसलिए कुछ भी कर सकता था। मैं वापस हवेली पहुँचा। प्रकाश की कार अब वहाँ नहीं थी। शायद वो हवेली से रूख्सत हो चुका था। मौका अच्छा था। मैं उसके कमरे तक गया, दरवाजा बंद था और कुंडे से एक मजबूत किंतु पुरानी बनावट का ताला लटक रहा था।
एक बार अपने आजू-बाजू देखकर मैंने ये इत्मिनान हॉसिल किया कि कोई नौकर-चाकर मुझे नहीं देख रहा था। तत्पश्चात अपनी जेब से चाभियों का गुच्छा निकालकर मैंने एक-एक करके सारी चाभियाँ ताले के छेद में डाल कर देख लिया। ताला नहीं खुला। मैंने जूही के कमरे का दरवाजा ट्राई किया। दरवाजा खुला हुआ था, मैं अंदर प्रवेश कर गया।
कमरे में अंदर से गुजर कर मैं बॉलकनी में पहुँचा, वहाँ से प्रकाश के कमरे की बालकनी में पहुँचना बहुत ही आसान काम साबित हुआ। राहत की बात ये थी कि उसकी बॉलकनी का दरवाजा खुला हुआ था।
बॉलकनी के रास्ते मैं प्रकाश के कमरे में दाखिल हुआ। अंदर दाखिल होते ही मैं थमक कर खड़ा हो गया।
सामने अस्त-व्यस्त पलंग पर प्रकाश की लाश पड़ी थी। उसकी दाईं कनपटी में बना गोली का सुराग दूर से ही नजर आ रहा था।
मैं उसके समीप पहुँचा।
पलंग के पायताने एक रिवाल्वर पड़ी हुई थी। मैंने झुककर उसे रूमाल से पकड़कर उठा लिया। नाल को नाक के पास ले जाकर सूंघा, ताजा जले बारूद की गंध स्पष्ट महसूस हुई। रिवाल्वर का सीरियल नम्बर रेती से घिसकर मिटा दिया गया था।
मैंने रिवाल्वर यथा-स्थान रखकर लाश का मुआयना किया। नब्ज बंद थीं। धड़कने बंद थीं। शरीर अभी गर्म था, और गोली के छेद से अभी भी खून रिस रहा था। उसे प्वाइंट ब्लैंक रेंज से गोली मारी गयी थी। लाश की हालत बताती थी कि उसे मरे अभी घंटा भी नहीं गुजरा था। यह उस आक्रमणकारी का काम हो सकता था, जिसने हमपर छत पर गोली चलाई थी।
मैंने हाथ में रूमाल लपेटकर वहाँ की तलाशी लेना आरम्भ किया। शुरूआत मैंने राइटिंग टेबल से ही किया। दराजों में कुछ कागजात भरे हुए थे मैंने एक-एक करके सभी कागजात देख डाले मगर कोई काबिलेजिक्र वस्तु मेरे हाथ नहीं लगी। अलबत्ता ऐसा कुछ जरूर महसूस हुआ जैसे किसी ने मेरे से पहले बेहद जल्दबाजी में वहाँ की तलाशी ली हो।
मैं वार्डरोब के करीब पहुँचा।
वहाँ भी पहले से ही अस्त-व्यस्तता का बोल-बाला था। जैसे-तैसे करके मैंने कमरे की तलाशी का काम मुक्कमल किया। इस दौरान काबिले जिक्र एक तस्वीर मेरे हाथ लगी। जिसमें तकरीबन पच्चीस वर्षीय एक युवती खड़ी मुस्करा रही थी। तस्वीर के पीछे रोजी डेनियल विद लव और मुम्बई का एक पता लिखा हुआ था, लिहाजा ज्यादातर उम्मीद इसी बात की थी कि तस्वीर वाली लड़की रोजी ही थी।
तस्वीर ये इशारा करती थी कि रोजी प्रकाश की गर्लफ्रेंड हो सकती थी जबकि बाजुबानी जूही मुझे पता लगा था कि रोजी एक नर्स थी जिसको कि जूही के डैडी ने अपनी तीमारदारी में रखा हुआ था। ‘शायद ये रोजी कोई और हो।‘ - मैं खुद से बोला - ”प्रकाश की गर्ल फ्रैंड रोजी और नर्स रोजी दो जुदा लड़कियाँ हो सकती थीं।“
मगर मेरा मन इसे मानने को तैयार नहीं हुआ, लिहाजा मैंने वो विचार अपने जेहन से झटक दिया और याद करने लगा कि कमरे में मैंने कहाँ-कहाँ अपनी उँगलियों के निशान छोड़े थे।
तभी दरवाजे पर आहट हुई शायद कोई ताला खोल रहा था। मैं चौकन्ना हो गया। यूं महसूस हुआ जैसे बाहर से कुंडा सरकाया गया हो। फिर दरवाजे में हरकत हुई, मैं फौरन वार्डरोब की ओट में सरक गया।
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- mastram
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Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
धीरे-धीरे दरवाजा खुला, खुले दरवाजे से एक निहायती खूबसूरत किंतु संजीदा युवती ने अंदर कदम रखा।
मैं तस्वीर वाली लड़की के रूप में उसे फौरन पहचान गया। यहां उसकी मौजूदगी ने मुझे हैरान करके रख दिया।
उसके पास प्रकाश के कमरे की चाभी का होना इस बात का पर्याप्त सबूत था कि वह कभी भी किसी भी वक्त प्रकाश के कमरे में आ जा सकती थी। क्यों थी प्रकाश के कमरे की चाभी रोजी के पास? और उसका पता तो हजारों मील दूर मुम्बई का था, फिर वह सीतापुर में क्या कर रही थी।
अगर नर्स रोजी और प्रकाश की गर्लफ्रेंड रोजी डेनियल एक ही लड़की थी तो इस सवाल का जवाब आसान था। निश्चय ही वो प्रकाश के हर स्याह-सफेद में कदम दर कदम उसके साथ थी।
रोजी पलंग के समीप पहुंची। मुझे लगा अभी वो चिल्ला पड़ेगी, शोर मचाकर हवेली के नौकर-चाकरों को वहाँ इकट्ठा कर लेगी। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वो सामान्य बनी रही।
यूँ सामान्य बनी रही जैसे उसे पहले से ही मालूम था कि पलंग पर प्रकाश की लाश पड़ी थी।
”कैसे मालूम था?“ - मैंने अपने आप से सवाल किया फिर जवाब भी खुद दे डाला - ‘‘यकीनन यह उसका दूसरा फेरा था। अपने पहले फेरे में ही वो प्रकाश की लाश के रू-ब-रू हो चुकी थी या फिर प्रकाश का कत्ल उसने खुद किया था और अब अपने किये पर लीपा-पोती करना चाहती थी।“
अब वह प्रकाश की जेबें टटोल रही थी। एक-एक करके उसने जेब का सारा सामान निकालकर पलंग पर रख दिया, फिर उसमें कुछ खोजने लगी। मगर शायद उसकी तलाश कामयाब नहीं हुई। उसने फिर से प्रकाश की तलाशी ली। अबकी दफा ज्यादा इत्मिनान से ली। एक रोल किया हुआ कागज उसके हाथ लगा। उसने रोल खोलकर पढ़ा फौरन उसका चेहरा चमक उठा। उसने रोल को अब तहों की शक्ल देकर अपने गरेबां के अंदर कहीं खोंस लिया, फिर वो दरवाजे की तरफ बढ़ी।
मेरा इरादा उसे पकड़ लेने को हुआ, वो अकेली थी, लड़की थी। ऊपर से नाजुक थी। मैं उस पर आसानी से काबू पा सकता था। मगर फिर मैंने अपना ये विचार जहन से उखाड़ फेंका। मैंने उसके पीछे जाने का फैसला किया।
जाती बार उसने दरवाजे को ताला लगाना जरूरी नहीं समझा। मगर दरवाजे से बाहर निकलने की सूरत में देख लिए जाने का खतरा था। लिहाजा मैं फौरन बॉलकनी में जा पहुँचा, फिर जूही के कमरे से होता हुआ बाहर निकल आया। रोजी मुझे सीढ़ियाँ चढ़ती दिखाई दी, जी हां वो सीढ़ियां चढ़ रही थी ना कि उतर रही थी। इस वक्त वह बेहद चौकन्नी थी। उसकी भरपूर कोशिश थी कि वो किसी की निगाहों में ना आने पाए। मैं सावधानी बर्तता हुआ उसके पीछे लपका।
आखिरकार वो हवेली की छत पर पहुंची। वहां से वह उन सीढ़ियों की तरफ लपकी जिधर से मैं घायल जूही को लेकर गया था। आगे वह टूटी हुई बाउंड्री के रास्ते हवेली से बाहर निकल गयी। अब हम दोनों एकदम खुले में थे। वो एक बार भी पीछे मुड़कर देखती तो मुझपर उसकी नजर पड़ जाना अवश्यम्भावी था। मगर उसके पास शायद पीछे मुड़कर देखने की फुर्सत नहीं थी। वह जल्द से जल्द उस इलाके से निकल जाना चाहती थी।
मैं बदस्तूर उसका पीछा करता रहा।
रिहायशी इलाके में पहुंचकर वो एक साइकिल रिक्शे पर सवार हो गयी। अन्य कोई रिक्शा वहां नहीं था। मैंने अपनी चाल तेज कर दी, मगर इतना काफी नहीं था। रिक्शे और मेरे बीच का फासला निरंतर बढ़ता जा रहा था। मैं दौड़ लगाकर उसका मुकाबला कर सकता था। मगर यूं सड़क पर दौड़ना खामखाह लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने जैसा था। ऐसे में रोजी की निगाह मुझपर पड़कर ही रहनी थी।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं।
तभी एक बाइक सवार उधर आता दिखाई दिया। मैंने उसे रूकने का इशारा किया, तो थोड़ा आगे जाकर उसने बाइक रोक दी। मैं झपटकर उसके करीब पहुंचा।
‘‘लिफ्ट चाहिए?‘‘
मैंने सहमति में सिर हिला दिया और उसके पीछे सवार हो गया।
उसने बाइक आगे बढ़ा दी।
‘‘कहां जाना है।‘‘
‘‘वो दूर जाता रिक्शा देख रहे हो उसका पीछा करना है।‘‘
जवाब में उसने कसकर ब्रेक लगाया और बाइक रोक दी।
‘‘क्या हुआ?‘‘ मैं हड़बड़ाया।
‘‘तुम बताओ किस फिराक में हो?‘‘
‘‘अच्छा वो!... देखिए भाई साहब उस रिक्शे पर मेरी बीवी बैठी हुई है। कमीनी बहुत दिनों से धोखा दे रही है मुझे। आज मैं उसे रंगे हाथों उसके यार के साथ पकड़ना चाहता हूं।‘‘
‘‘सच बोल रहे हो।‘‘
‘‘सोलह आने सच कसम उठवा लीजिए।‘‘
‘‘मुझे तुम्हारी बात पर तनिक भी यकीन नहीं है, मगर कोई बात नहीं, चलो देखते हैं।‘‘
उसने बाइक आगे बढ़ा दी।
रिक्शा आलम नगर की एक बहुमंजिला इमारत के सामने पहुँचकर रूक गया। रोजी नीचे उतरी, एक बार उसने अपने दायें-बायें देखा मैं फौरन एक बिजली के खम्बे की ओट में हो गया। बाइक सवार इतना बड़ा चिपकू निकला था कि अभी तक वो वहां से चला नहीं गया था। रोजी इमारत के अंदर प्रवेश कर गई। तत्पश्चात सीढ़ियाँ चढ़कर वो पहली मंजिल पर बने एक फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचकर ठिठक गई। मैं उससे चंद कदमों की दूरी पर खड़ा होकर उसके फ्लैट के अंदर दाखिल होने का इंतजार करने लगा।
कुछ क्षण यूं ही गुजरे।
फिर उसने अपनी पोशाक को टटोलकर एक चाभी बरामद किया और दरवाजे के की होल में फँसाकर घुमा दिया, क्लिक की आवाज हुई। उसने चाभी बाहर निकाल लिया और खुद भीतर दाखिल होकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
‘‘इसने ताला खुद खोला है, लिहाजा वो यहां अकेली रहती होगी, तुमने मुझे बेवकूफ बनाया।‘‘ बाइक सवार मुझे घूरता हुआ बोला। मैंने उसकी बात पर कान नहीं दिया।
मैं लपककर दरवाजे के करीब पहुंचा। मैंने अपनी एक आंख की होल पर लगा दी मगर दरवाजे के दूसरी तरफ देख पाने में सफल न हो सका। शायद उस तरफ से चाभी की-होल में लगा दी गई थी। मगर अंदर से दो लोगों के बात करने की आवाज आ रही थी। बाइक सवार से पीछा छुड़ाने के लिए मैंने उसे करीब बुलाया और ध्यान से सुनने को कहा। वह कुछ देर दरवाजे पर कान लगाकर सुनता रहा फिर सहमति में सिर हिलाता अलग हो गया। मगर वहां से टला नहीं।
‘‘अब क्या है भई?‘‘ मैं कलपता हुआ बोला।
‘‘मैं देखना चाहता हूं अंदर तुम्हारी बीवी के साथ कौन है।‘‘
मैंने घूरकर उसे देखा जवाब में वह बड़ी बेशरमी से हंसा। अजीब चिपकू था, मेरी मति मारी गयी थी जो मैंने उससे लिफ्ट लिया था।
‘‘देखो भाई साहब मैं पहले ही बहुत कलपा हुआ हूं। ऐसी छिनाल बीवी भगवान दुश्मन को भी ना दे। अब मुझपर एक एहसान करो और फूट लो यहां से।‘‘
‘‘अरे तुम समझ नहीं रहे हो दोस्त, भीतर जो आदमी है वो तुमसे ज्यादा ताकतवर हो सकता है, ऐसे में मैं तुम्हारे साथ रहा तो कुछ तो मदद करूंगा तुम्हारी।‘‘
मैंने आहत भाव से उसकी तरफ देखा, वह बड़े ही कुटिल अंदाज में मुस्करा रहा था। भगवान बचाये ऐसे मददगारों से। उससे पीछा छुड़ाने का कोई रास्ता इस वक्त मुझे नहीं सूझ रहा था।
मैं तस्वीर वाली लड़की के रूप में उसे फौरन पहचान गया। यहां उसकी मौजूदगी ने मुझे हैरान करके रख दिया।
उसके पास प्रकाश के कमरे की चाभी का होना इस बात का पर्याप्त सबूत था कि वह कभी भी किसी भी वक्त प्रकाश के कमरे में आ जा सकती थी। क्यों थी प्रकाश के कमरे की चाभी रोजी के पास? और उसका पता तो हजारों मील दूर मुम्बई का था, फिर वह सीतापुर में क्या कर रही थी।
अगर नर्स रोजी और प्रकाश की गर्लफ्रेंड रोजी डेनियल एक ही लड़की थी तो इस सवाल का जवाब आसान था। निश्चय ही वो प्रकाश के हर स्याह-सफेद में कदम दर कदम उसके साथ थी।
रोजी पलंग के समीप पहुंची। मुझे लगा अभी वो चिल्ला पड़ेगी, शोर मचाकर हवेली के नौकर-चाकरों को वहाँ इकट्ठा कर लेगी। मगर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ। वो सामान्य बनी रही।
यूँ सामान्य बनी रही जैसे उसे पहले से ही मालूम था कि पलंग पर प्रकाश की लाश पड़ी थी।
”कैसे मालूम था?“ - मैंने अपने आप से सवाल किया फिर जवाब भी खुद दे डाला - ‘‘यकीनन यह उसका दूसरा फेरा था। अपने पहले फेरे में ही वो प्रकाश की लाश के रू-ब-रू हो चुकी थी या फिर प्रकाश का कत्ल उसने खुद किया था और अब अपने किये पर लीपा-पोती करना चाहती थी।“
अब वह प्रकाश की जेबें टटोल रही थी। एक-एक करके उसने जेब का सारा सामान निकालकर पलंग पर रख दिया, फिर उसमें कुछ खोजने लगी। मगर शायद उसकी तलाश कामयाब नहीं हुई। उसने फिर से प्रकाश की तलाशी ली। अबकी दफा ज्यादा इत्मिनान से ली। एक रोल किया हुआ कागज उसके हाथ लगा। उसने रोल खोलकर पढ़ा फौरन उसका चेहरा चमक उठा। उसने रोल को अब तहों की शक्ल देकर अपने गरेबां के अंदर कहीं खोंस लिया, फिर वो दरवाजे की तरफ बढ़ी।
मेरा इरादा उसे पकड़ लेने को हुआ, वो अकेली थी, लड़की थी। ऊपर से नाजुक थी। मैं उस पर आसानी से काबू पा सकता था। मगर फिर मैंने अपना ये विचार जहन से उखाड़ फेंका। मैंने उसके पीछे जाने का फैसला किया।
जाती बार उसने दरवाजे को ताला लगाना जरूरी नहीं समझा। मगर दरवाजे से बाहर निकलने की सूरत में देख लिए जाने का खतरा था। लिहाजा मैं फौरन बॉलकनी में जा पहुँचा, फिर जूही के कमरे से होता हुआ बाहर निकल आया। रोजी मुझे सीढ़ियाँ चढ़ती दिखाई दी, जी हां वो सीढ़ियां चढ़ रही थी ना कि उतर रही थी। इस वक्त वह बेहद चौकन्नी थी। उसकी भरपूर कोशिश थी कि वो किसी की निगाहों में ना आने पाए। मैं सावधानी बर्तता हुआ उसके पीछे लपका।
आखिरकार वो हवेली की छत पर पहुंची। वहां से वह उन सीढ़ियों की तरफ लपकी जिधर से मैं घायल जूही को लेकर गया था। आगे वह टूटी हुई बाउंड्री के रास्ते हवेली से बाहर निकल गयी। अब हम दोनों एकदम खुले में थे। वो एक बार भी पीछे मुड़कर देखती तो मुझपर उसकी नजर पड़ जाना अवश्यम्भावी था। मगर उसके पास शायद पीछे मुड़कर देखने की फुर्सत नहीं थी। वह जल्द से जल्द उस इलाके से निकल जाना चाहती थी।
मैं बदस्तूर उसका पीछा करता रहा।
रिहायशी इलाके में पहुंचकर वो एक साइकिल रिक्शे पर सवार हो गयी। अन्य कोई रिक्शा वहां नहीं था। मैंने अपनी चाल तेज कर दी, मगर इतना काफी नहीं था। रिक्शे और मेरे बीच का फासला निरंतर बढ़ता जा रहा था। मैं दौड़ लगाकर उसका मुकाबला कर सकता था। मगर यूं सड़क पर दौड़ना खामखाह लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने जैसा था। ऐसे में रोजी की निगाह मुझपर पड़कर ही रहनी थी।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूं।
तभी एक बाइक सवार उधर आता दिखाई दिया। मैंने उसे रूकने का इशारा किया, तो थोड़ा आगे जाकर उसने बाइक रोक दी। मैं झपटकर उसके करीब पहुंचा।
‘‘लिफ्ट चाहिए?‘‘
मैंने सहमति में सिर हिला दिया और उसके पीछे सवार हो गया।
उसने बाइक आगे बढ़ा दी।
‘‘कहां जाना है।‘‘
‘‘वो दूर जाता रिक्शा देख रहे हो उसका पीछा करना है।‘‘
जवाब में उसने कसकर ब्रेक लगाया और बाइक रोक दी।
‘‘क्या हुआ?‘‘ मैं हड़बड़ाया।
‘‘तुम बताओ किस फिराक में हो?‘‘
‘‘अच्छा वो!... देखिए भाई साहब उस रिक्शे पर मेरी बीवी बैठी हुई है। कमीनी बहुत दिनों से धोखा दे रही है मुझे। आज मैं उसे रंगे हाथों उसके यार के साथ पकड़ना चाहता हूं।‘‘
‘‘सच बोल रहे हो।‘‘
‘‘सोलह आने सच कसम उठवा लीजिए।‘‘
‘‘मुझे तुम्हारी बात पर तनिक भी यकीन नहीं है, मगर कोई बात नहीं, चलो देखते हैं।‘‘
उसने बाइक आगे बढ़ा दी।
रिक्शा आलम नगर की एक बहुमंजिला इमारत के सामने पहुँचकर रूक गया। रोजी नीचे उतरी, एक बार उसने अपने दायें-बायें देखा मैं फौरन एक बिजली के खम्बे की ओट में हो गया। बाइक सवार इतना बड़ा चिपकू निकला था कि अभी तक वो वहां से चला नहीं गया था। रोजी इमारत के अंदर प्रवेश कर गई। तत्पश्चात सीढ़ियाँ चढ़कर वो पहली मंजिल पर बने एक फ्लैट के दरवाजे पर पहुंचकर ठिठक गई। मैं उससे चंद कदमों की दूरी पर खड़ा होकर उसके फ्लैट के अंदर दाखिल होने का इंतजार करने लगा।
कुछ क्षण यूं ही गुजरे।
फिर उसने अपनी पोशाक को टटोलकर एक चाभी बरामद किया और दरवाजे के की होल में फँसाकर घुमा दिया, क्लिक की आवाज हुई। उसने चाभी बाहर निकाल लिया और खुद भीतर दाखिल होकर अंदर से दरवाजा बंद कर लिया।
‘‘इसने ताला खुद खोला है, लिहाजा वो यहां अकेली रहती होगी, तुमने मुझे बेवकूफ बनाया।‘‘ बाइक सवार मुझे घूरता हुआ बोला। मैंने उसकी बात पर कान नहीं दिया।
मैं लपककर दरवाजे के करीब पहुंचा। मैंने अपनी एक आंख की होल पर लगा दी मगर दरवाजे के दूसरी तरफ देख पाने में सफल न हो सका। शायद उस तरफ से चाभी की-होल में लगा दी गई थी। मगर अंदर से दो लोगों के बात करने की आवाज आ रही थी। बाइक सवार से पीछा छुड़ाने के लिए मैंने उसे करीब बुलाया और ध्यान से सुनने को कहा। वह कुछ देर दरवाजे पर कान लगाकर सुनता रहा फिर सहमति में सिर हिलाता अलग हो गया। मगर वहां से टला नहीं।
‘‘अब क्या है भई?‘‘ मैं कलपता हुआ बोला।
‘‘मैं देखना चाहता हूं अंदर तुम्हारी बीवी के साथ कौन है।‘‘
मैंने घूरकर उसे देखा जवाब में वह बड़ी बेशरमी से हंसा। अजीब चिपकू था, मेरी मति मारी गयी थी जो मैंने उससे लिफ्ट लिया था।
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‘‘अरे तुम समझ नहीं रहे हो दोस्त, भीतर जो आदमी है वो तुमसे ज्यादा ताकतवर हो सकता है, ऐसे में मैं तुम्हारे साथ रहा तो कुछ तो मदद करूंगा तुम्हारी।‘‘
मैंने आहत भाव से उसकी तरफ देखा, वह बड़े ही कुटिल अंदाज में मुस्करा रहा था। भगवान बचाये ऐसे मददगारों से। उससे पीछा छुड़ाने का कोई रास्ता इस वक्त मुझे नहीं सूझ रहा था।
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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भाई बहन,ननद भाभी और नौकर .......... सेक्स स्लेव भाभी और हरामी देवर .......... वासना के सौदागर .......... Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक Running.......... घर की मुर्गियाँ Running......नेहा बह के कारनामे (Running) ....मस्तराम की कहानियाँ(Running) ....अनोखा इंतकाम रुबीना का ..........परिवार बिना कुछ नहीं..........माँ को पाने की हसरत ......सियासत और साजिश .....बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई.....एक और घरेलू चुदाई......दिल दोस्ती और दारू...
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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- mastram
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- Joined: 01 Mar 2016 09:00
Re: लाल हवेली (एक खतरनाक साजिश)
तभी जैसे ईश्वर को मुझपर रहम हो आया।
उसके मोबाइल की घंटी बज उठी, उसने कॉल अटैंड की और अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि नीचे की ओर यूं भागा जैसे उसके पीछे भूत लगे हों। मैं हकबकाया सा उसे सीढ़ियां फांदते देखता रहा। नीचे पहुंचकर उसने बाइक स्टार्ट की फिर यह जा वह जा हो गया।
मैंने चैन की मीलों लम्बी सांस ली। और आगे बढ़कर दरवाजे पर दस्तक दे दिया।
जवाब में अंदर से फुसफुसाहट उभरी।
”कौन है?“ शंकित स्वर में पूछा गया।
”दरवाजा खोलो।“ मैं अधिकार पूर्ण स्वर में बोला।
कमरे में अंदर से कुछ अजीब सी आहट हुई। फिर दरवाजे की तरफ आती पदचाप सुनाई दी।
मैं सावधान हो गया।
दरवाजा खुला। खोलने वाली रोजी ही थी।
”कौन हो तुम?“ - वो उखड़े स्वर में बोली।
”दोस्त।“
”दोस्त का कोई नाम भी तो होगा।“
”राज।“ मैं उसकी आंखों में देखता हुआ बोला- ‘‘आई एम डिटेक्टिव, रिमेम्बर?“
तत्काल उसके चेहरे के भावों में परिवर्तन आया, मुझे लगा के मेरे नाम से वाकिफ थी।
‘‘मुझे किसी डिटेक्टिव की जरूरत नहीं है?‘‘ प्रत्यक्षतः वो बोली - ”मैं किसी राज को नहीं जानती?“
”कहा न दोस्त हूँ।“
”मुझे किसी दोस्त की भी जरूरत नहीं।“
कहकर उसने दरवाजा बंद कर देना चाहा, मगर तक तक मैं दरवाजे में अपनी टांग अड़ा चुका था।
”मगर मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है मिस रोजी डेनियल।“
उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा - ”तुम मेरा नाम कैसे जानते हैं?“
”बंदा और भी बहुत कुछ जानता है मिस डेनियल, मगर वो सब बातें इत्मिनान से होंगी। पहले मैं जरा कहीं बैठ तो जाऊँ।“
‘‘हरगिज नहीं, जो कहना है यहीं कहो।“
”ठीक है तुम्हारी मर्जी‘‘ - मैं तनिक उच्च स्वर में बोला - ‘‘मुझे मालूम है कि तुम लाल हवेली से आ रही हो। वहां तुम प्रकाश के कमरे में गई थी जहां प्रकाश की.....।“
”खामोश रहो“ - वो अपनी हथेली मेरे मुंह पर रखते हुए बोली -”प्लीज खामोश रहो।“
”लो हो गया खामोश।‘‘
”क्या चाहते हो?“
”तुम्हारे साथ हनीमून पर जाना।“
”नॉनसेंस“ - वो बोली - ‘‘असल में क्या चाहते हो?“
”तुमसे थोड़ी सी गुफ्तगूं करनी है।“
”ठीक है, अंदर आ जाओ।“ - वो एक तरफ हटती हुई बोली।
मैं कमरे में दाखिल हुआ, वो ड्राइंग रूम के अनुरूप ही सजा-धजा एक बड़ा कमरा था। अंदर पहुंचकर मैं एक सोफा चेयर पर पसर गया।
वो दरवाजा बंद करके मेरी तरफ घूमी।
”अब बोलो क्या बात करना चाहते हो?“
”बताता हूँ पहले जरा अपने रोमियो को भी बाहर बुला लो।“
”तुम किसकी बात कर रहे हो?“ - वह तनिक हड़बड़ाई- ‘‘यहाँ और कोई नहीं है।“
”देखते हैं“ - कहकर मैंने गुहार लगाई - ”भाई साहब बाहर निकल आइए क्योंकि छुपे रहने का कोई फायदा आपको नहीं पहुंचने वाला। मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि आप भीतर मौजूद हैं।“
जवाब में बाईं तरफ का दरवाजा खोलकर प्रकाश का लंगोटिया यार राकेश कमरे में दाखिल हुआ।
उसे उस घड़ी वहाँ मौजूद देखकर मैं हैरान रह गया। रोजी और उसका साथ मेरी समझ से परे था।
”हे-हे“ - वह बेवजह दांत दिखाता हुआ बोला - ”मैं समझा कोई और है?“
”और कौन?“
”कोई भी तुम्हारे अलावा कोई भी।“
”मैं क्यों नहीं?“
”तुम्हारे यहां आ टपकने के बारे में तो हम सोच भी नहीं सकते थे‘‘ - तुम्हारा आगमन हमारे लिए सर्वथा अनापेक्षित था।“
”फिर भी मैं आ गया।“
”हां मगर सवाल ये उठता है कि क्यों आये हो?“
”बताता हूँ मगर उससे पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो। रोजी अगर जिन्दा है तो फिर महीने भर पहले उसके कत्ल का ड्रामा क्यों खेला गया। क्यों कूट-कूटकर यह बात जूही के दिमाग में बिठाई गई कि उसने रोजी का कत्ल कर दिया है।“
दोनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे।
”आराम से फैसला कर लो मुझे कोई जल्दी नहीं है। वैसे भी परसों रात को मुझपर गोली चलाने के जुर्म में जेल तो जाना ही है तुम्हें‘‘ - मैंने अंधेरे में तीर चलाया - ‘‘थाने पहुंचकर जवाब दोगे तो भी चलेगा।‘‘
‘‘क्या बकते हो, मैंने कब तुमपर गोली चलाई?‘‘
‘‘बताया तो परसों रात को, जब मैं दिल्ली से सीतापुर पहुंचा था। खैर ये बताओ तुम्हारा जख्म कैसा है। शुक्र है मेरी गोली तुम्हारे टांग में लगी वरना तुम तो उसी रात खुदा को प्यारे हो गये होते।‘‘
‘‘ईडियट मेरी टांग में बीयर की बोतल का कांच घुस गया था ना कि तुम्हारी गोली।‘‘
‘‘बेवकूफ हो तुम! पुलिस का डॉक्टर दो मिनट में साबित कर देगा कि तुम्हारी टांग में गोली लगी थी ना कि वो जख्म कांच के टुकड़े से बना था।‘‘
इस बार उसने कुछ नहीं कहा। चेहरे से वो साफ-साफ फिक्रमंद दिखाई देने लगा। लिहाजा मेरा अंधेरे में चलाया गया तीर एकदम सही निशाने पर लगा था।
”ऐसे किसी जवाब के लिए तुम हमें मजबूर नहीं कर सकते।“ यह रोजी की आवाज थी।
”कर सकता हूँ करूंगा भी बस तुम इतना बता दो, क्या तुम चाहोगी कि तुम्हारा नाम पुलिस के रिकार्ड में कातिलों की लिस्ट में शामिल हो जाय।“
”क्या कहना चाहते हो तुम?“ वो तनिक हड़बड़ाई।
”पुलिस को पता लगने की देर है कि प्रकाश का कत्ल तुमने किया है। वे तुम्हे फौरन लॉकअप में ठूंस देंगे। फिर तुम्हारी आगे की जिन्दगी जेल की सलाखों के पीछे गुजरेगी। वहां से जब तुम वापस आओगी तो तुम्हारा ये संगमरमरी हुस्न, सुलगती जवानी ढल चुकी होगी। तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियां होंगी। बाल सफेद होंगे? तुम बूढ़ी हो चुकी होगी। आज जो लोग तुम्हें देखकर ठण्डी आहें भरते हैं कल वे तुम्हारी तरफ देखना भी पसंद नहीं करेंगे।“
”चुप हो जाओ।“ वो जोर से बोली, ‘‘ऐसा नहीं होगा, ऐसा हरगिज भी नहीं होगा।“
”ऐसा ही होगा, च्च.....च्च........च्च मुझे तो तरस आता है तुम्हारे ऊपर।“
‘‘देखो मैं नहीं जानती कि तुम क्या कुछ जानते हो, मगर प्रकाश का कत्ल मैंने नहीं किया।‘‘
”फिर किसने किया?“
”मुझे नहीं मालूम मैं जब वहां पहुंची तो वह पहले से ही मरा पड़ा था।“
”वो तुम्हारा दूसरा फेरा था, प्रकाश का कत्ल तुमने अपने पहले फेरे में किया था।“
”हरगिज नहीं, मेरे पहुंचने से पहले ही वह मर चुका था।“
”तुम झूठ बोल रही हो।“
”मैं हकीकत बयान कर रही हूँ।“
”कौन करेगा तुम्हारी बात का यकीन?“
वो खामोश रही।
”प्रकाश के कमरे की केवल दो ही चाभी थी। जिसमें से एक तुम्हारे पास है और दूसरी अभी भी प्रकाश की जेब में पड़ी है“ - मैंने ब्लफ मारना शुरू कर दिया मेरा इरादा वक्ती तौर पर उसे हकलान कर देने का था - ”प्रकाश के कमरे में घुसते हुए तुम्हे मैंने अपनी आंखों से देखा था, दोबारा जब तुम बाहर निकली तो तुम्हारे चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई थीं।‘‘
उसके मोबाइल की घंटी बज उठी, उसने कॉल अटैंड की और अभी बात पूरी भी नहीं हुई थी कि नीचे की ओर यूं भागा जैसे उसके पीछे भूत लगे हों। मैं हकबकाया सा उसे सीढ़ियां फांदते देखता रहा। नीचे पहुंचकर उसने बाइक स्टार्ट की फिर यह जा वह जा हो गया।
मैंने चैन की मीलों लम्बी सांस ली। और आगे बढ़कर दरवाजे पर दस्तक दे दिया।
जवाब में अंदर से फुसफुसाहट उभरी।
”कौन है?“ शंकित स्वर में पूछा गया।
”दरवाजा खोलो।“ मैं अधिकार पूर्ण स्वर में बोला।
कमरे में अंदर से कुछ अजीब सी आहट हुई। फिर दरवाजे की तरफ आती पदचाप सुनाई दी।
मैं सावधान हो गया।
दरवाजा खुला। खोलने वाली रोजी ही थी।
”कौन हो तुम?“ - वो उखड़े स्वर में बोली।
”दोस्त।“
”दोस्त का कोई नाम भी तो होगा।“
”राज।“ मैं उसकी आंखों में देखता हुआ बोला- ‘‘आई एम डिटेक्टिव, रिमेम्बर?“
तत्काल उसके चेहरे के भावों में परिवर्तन आया, मुझे लगा के मेरे नाम से वाकिफ थी।
‘‘मुझे किसी डिटेक्टिव की जरूरत नहीं है?‘‘ प्रत्यक्षतः वो बोली - ”मैं किसी राज को नहीं जानती?“
”कहा न दोस्त हूँ।“
”मुझे किसी दोस्त की भी जरूरत नहीं।“
कहकर उसने दरवाजा बंद कर देना चाहा, मगर तक तक मैं दरवाजे में अपनी टांग अड़ा चुका था।
”मगर मुझे तुम्हारी सख्त जरूरत है मिस रोजी डेनियल।“
उसने हैरानी से मेरी तरफ देखा - ”तुम मेरा नाम कैसे जानते हैं?“
”बंदा और भी बहुत कुछ जानता है मिस डेनियल, मगर वो सब बातें इत्मिनान से होंगी। पहले मैं जरा कहीं बैठ तो जाऊँ।“
‘‘हरगिज नहीं, जो कहना है यहीं कहो।“
”ठीक है तुम्हारी मर्जी‘‘ - मैं तनिक उच्च स्वर में बोला - ‘‘मुझे मालूम है कि तुम लाल हवेली से आ रही हो। वहां तुम प्रकाश के कमरे में गई थी जहां प्रकाश की.....।“
”खामोश रहो“ - वो अपनी हथेली मेरे मुंह पर रखते हुए बोली -”प्लीज खामोश रहो।“
”लो हो गया खामोश।‘‘
”क्या चाहते हो?“
”तुम्हारे साथ हनीमून पर जाना।“
”नॉनसेंस“ - वो बोली - ‘‘असल में क्या चाहते हो?“
”तुमसे थोड़ी सी गुफ्तगूं करनी है।“
”ठीक है, अंदर आ जाओ।“ - वो एक तरफ हटती हुई बोली।
मैं कमरे में दाखिल हुआ, वो ड्राइंग रूम के अनुरूप ही सजा-धजा एक बड़ा कमरा था। अंदर पहुंचकर मैं एक सोफा चेयर पर पसर गया।
वो दरवाजा बंद करके मेरी तरफ घूमी।
”अब बोलो क्या बात करना चाहते हो?“
”बताता हूँ पहले जरा अपने रोमियो को भी बाहर बुला लो।“
”तुम किसकी बात कर रहे हो?“ - वह तनिक हड़बड़ाई- ‘‘यहाँ और कोई नहीं है।“
”देखते हैं“ - कहकर मैंने गुहार लगाई - ”भाई साहब बाहर निकल आइए क्योंकि छुपे रहने का कोई फायदा आपको नहीं पहुंचने वाला। मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि आप भीतर मौजूद हैं।“
जवाब में बाईं तरफ का दरवाजा खोलकर प्रकाश का लंगोटिया यार राकेश कमरे में दाखिल हुआ।
उसे उस घड़ी वहाँ मौजूद देखकर मैं हैरान रह गया। रोजी और उसका साथ मेरी समझ से परे था।
”हे-हे“ - वह बेवजह दांत दिखाता हुआ बोला - ”मैं समझा कोई और है?“
”और कौन?“
”कोई भी तुम्हारे अलावा कोई भी।“
”मैं क्यों नहीं?“
”तुम्हारे यहां आ टपकने के बारे में तो हम सोच भी नहीं सकते थे‘‘ - तुम्हारा आगमन हमारे लिए सर्वथा अनापेक्षित था।“
”फिर भी मैं आ गया।“
”हां मगर सवाल ये उठता है कि क्यों आये हो?“
”बताता हूँ मगर उससे पहले तुम मेरे एक सवाल का जवाब दो। रोजी अगर जिन्दा है तो फिर महीने भर पहले उसके कत्ल का ड्रामा क्यों खेला गया। क्यों कूट-कूटकर यह बात जूही के दिमाग में बिठाई गई कि उसने रोजी का कत्ल कर दिया है।“
दोनों एक दूसरे की शक्ल देखने लगे।
”आराम से फैसला कर लो मुझे कोई जल्दी नहीं है। वैसे भी परसों रात को मुझपर गोली चलाने के जुर्म में जेल तो जाना ही है तुम्हें‘‘ - मैंने अंधेरे में तीर चलाया - ‘‘थाने पहुंचकर जवाब दोगे तो भी चलेगा।‘‘
‘‘क्या बकते हो, मैंने कब तुमपर गोली चलाई?‘‘
‘‘बताया तो परसों रात को, जब मैं दिल्ली से सीतापुर पहुंचा था। खैर ये बताओ तुम्हारा जख्म कैसा है। शुक्र है मेरी गोली तुम्हारे टांग में लगी वरना तुम तो उसी रात खुदा को प्यारे हो गये होते।‘‘
‘‘ईडियट मेरी टांग में बीयर की बोतल का कांच घुस गया था ना कि तुम्हारी गोली।‘‘
‘‘बेवकूफ हो तुम! पुलिस का डॉक्टर दो मिनट में साबित कर देगा कि तुम्हारी टांग में गोली लगी थी ना कि वो जख्म कांच के टुकड़े से बना था।‘‘
इस बार उसने कुछ नहीं कहा। चेहरे से वो साफ-साफ फिक्रमंद दिखाई देने लगा। लिहाजा मेरा अंधेरे में चलाया गया तीर एकदम सही निशाने पर लगा था।
”ऐसे किसी जवाब के लिए तुम हमें मजबूर नहीं कर सकते।“ यह रोजी की आवाज थी।
”कर सकता हूँ करूंगा भी बस तुम इतना बता दो, क्या तुम चाहोगी कि तुम्हारा नाम पुलिस के रिकार्ड में कातिलों की लिस्ट में शामिल हो जाय।“
”क्या कहना चाहते हो तुम?“ वो तनिक हड़बड़ाई।
”पुलिस को पता लगने की देर है कि प्रकाश का कत्ल तुमने किया है। वे तुम्हे फौरन लॉकअप में ठूंस देंगे। फिर तुम्हारी आगे की जिन्दगी जेल की सलाखों के पीछे गुजरेगी। वहां से जब तुम वापस आओगी तो तुम्हारा ये संगमरमरी हुस्न, सुलगती जवानी ढल चुकी होगी। तुम्हारे चेहरे पर झुर्रियां होंगी। बाल सफेद होंगे? तुम बूढ़ी हो चुकी होगी। आज जो लोग तुम्हें देखकर ठण्डी आहें भरते हैं कल वे तुम्हारी तरफ देखना भी पसंद नहीं करेंगे।“
”चुप हो जाओ।“ वो जोर से बोली, ‘‘ऐसा नहीं होगा, ऐसा हरगिज भी नहीं होगा।“
”ऐसा ही होगा, च्च.....च्च........च्च मुझे तो तरस आता है तुम्हारे ऊपर।“
‘‘देखो मैं नहीं जानती कि तुम क्या कुछ जानते हो, मगर प्रकाश का कत्ल मैंने नहीं किया।‘‘
”फिर किसने किया?“
”मुझे नहीं मालूम मैं जब वहां पहुंची तो वह पहले से ही मरा पड़ा था।“
”वो तुम्हारा दूसरा फेरा था, प्रकाश का कत्ल तुमने अपने पहले फेरे में किया था।“
”हरगिज नहीं, मेरे पहुंचने से पहले ही वह मर चुका था।“
”तुम झूठ बोल रही हो।“
”मैं हकीकत बयान कर रही हूँ।“
”कौन करेगा तुम्हारी बात का यकीन?“
वो खामोश रही।
”प्रकाश के कमरे की केवल दो ही चाभी थी। जिसमें से एक तुम्हारे पास है और दूसरी अभी भी प्रकाश की जेब में पड़ी है“ - मैंने ब्लफ मारना शुरू कर दिया मेरा इरादा वक्ती तौर पर उसे हकलान कर देने का था - ”प्रकाश के कमरे में घुसते हुए तुम्हे मैंने अपनी आंखों से देखा था, दोबारा जब तुम बाहर निकली तो तुम्हारे चेहरे की हवाइयाँ उड़ी हुई थीं।‘‘
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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आग लगे चाहे बस्ती मे.
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