Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller गहरी साजिश

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‘‘साहब मैं सच कहता हूं!‘‘ - वो गिड़गिड़ाता हुआ बोला - ‘‘मैंने जीवन में कभी मक्खी तक नहीं मारी है किसी इंसान का कत्ल तो दूर की बात है।‘‘
‘‘कोई बात नहीं, सुन मैं बताता हूं कि तूने मंदिरा चावला का कत्ल क्यों किया। दरअसल किसी तरीके से तुझे पता चल गया कि दिसम्बर में तेरे बाप को उसी ने अपनी कार से ठोकर मारी थी। फिर बाद में जब किसी दूसरी वजह से तेरे बाप की मौत हो गयी तो तू कूद कर इस नतीजे पर पहुंच गया कि हो ना हो उस एक्सीडेंट की वजह से ही तेरे सिर से बाप का साया छिन गया था। बस बदले की भावना से प्रेरित होकर तूने उसका कत्ल कर दिया, उसी सिलसिले में तूने सुनीता और अंकुर को भी मौत के घाट उतार दिया।‘‘
‘‘मैंने किसी का कत्ल नहीं किया साहब यकीन करो।‘‘
‘‘और आज दिन में - चौहान उसकी बात को अनसुना करके बोला - रंजना चावला का कत्ल भी तूने ही किया था, तू नहीं बच सकता। मैं तुझे जिंदा छोड़ना अफोर्ड नहीं कर सकता, वरना आगे जाने तू कितने लोगों के खून से अपने हाथ रंगेगा।‘‘
‘‘साहब प्लीज! गरीबमार मत करो, मैंने किसी के खून से अपने हाथ नहीं रंगे, मैं सच कह रहा हूं।‘‘
‘‘आज शाम को तू मंदिरा चावला के फ्लैट पर नहीं गया था।‘‘
‘‘गया था साहब! मगर तब मुझे ये नहीं मालूम था कि उसका कत्ल हो चुका है।‘‘
‘‘गया क्यों था?‘‘
‘‘गायकवाड़ के जाने के करीब दो घंटे बाद मेरे पास एक अंजान लैंडलाइन नंबर से कॉल आई थी। फोनकर्ता ने कहा था कि वो मंदिरा चावला का वकील बोल रहा है। जिसकी कि आज वसीयत पढ़ी जानी थी। अपनी वसीयत में वो कुछ संपत्ति मेेरे पिता के नाम छोड़ गई है। साथ ही एक लेटर भी जिसमें उसने स्वीकार किया है कि मेरा पिता उसी की कार से टकराकर घायल हुए थे, जिसका कि उसे बेहद अफसोस था। इसीलिए वो अपनी वसीयत में उनका जिक्र कर गयी थी। उस वकील ने मुझे ये भी बताया कि मंदिरा चावला की वसीयत के मुताबिक मेरे पिता को एक लाख रूपये मिलने थे, जो कि उनकी मौत की सूरत में अब मुझे सौंपे जा सकते थे।‘‘
‘‘कहानी मत सुना!‘‘ चौहान ने आंखे तरेरीं।
‘‘मैं सच कह रहा हूं साहब!‘‘
‘‘नंबर दिखा, जिससे तुझे कॉल की गई थी!‘‘
जवाब में उसने मोबाइल में देखकर वो नंबर चौहान को नोट करवा दिया।
‘‘तो, उसने तुझसे कहा था कि वो मकतूला का वकील बोल रहा है! उसने कहा और तूने मान लिया, स्साले उल्लू समझ रखा है पुलिस को।‘‘
‘‘साहब यकीन करो उसने यही कहा था! तब ये बात मुझे भी अजीब लगी थी। मगर मैंने वहां पहुंचने में कोई नुकसान नहीं समझा, इसलिए हामी भर दी। तब उसने मुझे ठीक चार बजे वहां पहुंचने को कहकर काल डिस्कनैक्ट कर दिया था।‘‘
‘‘चल मान ली तेरी बात! तो अब तक की तेरी कहानी का मतलब ये निकलता है कि उस फोन कॉल की वजह से तू ठीक चार बजे मकतूला के फ्लैट पर पहुंचा था।‘‘
‘‘नहीं पहुंचा!‘‘
‘‘क्यों?‘‘
‘‘मेरी बदकिस्मती समझ लो साहब! तीन बजे के करीब जब मैं अपने घर से निकला तो मेरी मोटरसाइकिल पंचर हो गयी। पंचर बनवाते-बनवाते साढ़े तीन हो गये। आगे खानपुर की रेड लाइट पर पुलिस ने बैरीकैड लगा रखा था, जहां वे लोग सभी दोपहिया वाहनों को चैक कर रहे थे। इत्तेफाक से मैं बाइक के पेपर घर भूल गया था। मैंने बड़ी मुश्किल से उन लोगों को इस बात के लिए तैयार किया कि मैं घर से पेपर लाकर दिखा देता हूं। फिर मैं अपने घर वापिस लौटा और दोबारा पेपर्स के साथ खानपुर पहुंचा तो पता चला कि बैरीकेडिंग हटा दी गयी थी। मेरी मोटरसाइकिल वहीं खड़ी थी मगर लॉक थी। मैंने वहां एक ट्रैफिक के सिपाही से दरयाफ्त किया तो उसने मुझे थाने जाने को कह दिया। मरता क्या न करता मैं थाने पहुंचा जहां करीब डेढ़ घंटे के इंतजार के बाद मुझे मेरी बाइक की चाबी सौंप दी गयी। यूं साढ़े छह बजे मैं अपनी मोटरसाइकिल पर दोबारा सवार हो पाया। सात बजे से कुछ पहले जब वकील के बताये पते पर पहुंचा तो वहां उल्लू बोल रहे थे। मैं कुछ देर इधर-उधर ताक-झांक करता रहा फिर पास के एक दुकानदार से दरयाफ्त किया तो पता चला कि वहां कुछ घंटों पहले ही एक कत्ल हो गया था। सुनकर मेरे होश फाख्ता हो गये। वहां से वापिस लौटकर मैं मिष्ठान रेस्टोरेंट पहुंचा, जहां दिन में मेरी गायकवाड़ साहब से मुलाकात हुई थी। वहां मैंने एक मसाला डोसा खाया, फिर अपने घर को हो लिया। घर पहुंचकर मुझे पता लगा कि पुलिस मुझे ढूंढती हुई वहां आई थी। सुनकर मेरे हाथ-पांव फूल गये लिहाजा मैं जल्दी-जल्दी एक बैग पैक करके, कुछ दिन किसी दोस्त के यहां बिताने की मंशा से घर से बाहर निकला। आगे क्या हुआ आप जानते ही हो। आप चाहो तो मेरी तमाम एक्टीविटी चेक करवा सकते हो।‘‘
‘‘हम पहुंचने वाले हैं किस तरफ से अंदर घुसना है?‘‘ मैंने चौहान से सवाल किया।
‘‘साहब प्लीज मुझे छोड़ दो, मैंने कुछ नहीं किया, बेशक मुझे रिवाल्वर वाले मामले में अंदर कर दो मगर जान बख्स दो। गरीबमार मत करो प्लीज!‘‘ कहकर उसने चौहान के पांव पकड़ लिये।
‘‘सीधा होकर बैठ!‘‘
‘‘साहब छोड़ दो ना प्लीज!‘‘ वो पुनः गिड़गिड़ाया।
‘‘बोला न सीधा होकर बैठ।‘‘
इस बार चौहान ने उसे घुड़की दी तो वो सीधा होकर बैठ गया। मगर उसकी आंखों से याचना के भाव नहीं गये।
‘‘अब मेरी बात ध्यान से सुन!‘‘
‘‘जी साहब!‘‘ - वो दोनों हाथ जोड़कर बोला, उस वक्त उसका शरीर रह रहकर कांप उठता मुझे साफ दिखाई दिया।
‘‘समझ ले फिलहाल हमने तेरी बात पर यकीन कर लिया। हम तुझे आजाद कर रहे हैं, मगर! तुझपर मुतवातर वॉच रखी जायेगी, आइंदा अगर तूने हथियारों के खरीद-फरोख्त में हाथ डाला तो तेरी खैर नहीं समझ गया!‘‘
‘‘जी साहब जी!‘‘
‘‘घर जाकर किसी नौकरी की तलाश में जुट जा! वैसे भी तूने कई दुकानें किराए पर उठा रखीं हैं इसलिए मैं नहीं समझता कि तुझे पैसों की कोई तंगी होगी। फिर भी अगर पैसे कम पड़ते दिखें तो किसी होटल में बर्तन धो लेना, जूते पॉलिश कर लेना, मगर! दोबारा तूने इस धंधे में कदम नहीं रखना है। शुक्र मना कि इस वक्त हम लोग कत्ल के केस में उलझे हुए हैं, इसलिए तुझपर कोई चार्ज नहीं लगा रहे, इसका फायदा उठा और आइंदा चैन की जिंदगी बसर कर, समझ गया!‘‘
‘‘समझ गया साहब!‘‘
‘‘यहां से जाते ही भूल तो नहीं जाएगा।‘‘
‘‘हरगिज नहीं भूलूंगा।‘‘
‘‘कार रोक भई।‘‘
मैंने सड़क के किनारे ले जाकर कार रोक दी।
‘‘अभी हमारे यहां से जाते ही तू शेर हो जाएगा! - इस बार चौहान बड़े सब्र के साथ बोला - हो सकता है तेरे मन में ये खयाल आए कि तुझे जीते को फोन करके सावधान कर देना चाहिए कि पुलिस उस तक पहुंच सकती है....।‘‘
‘‘नहीं करूंगा साहब, प्रॉमिश।‘‘ वो जल्दी से बोला।
‘‘करना, मैं मना नहीं कर रहा। मगर! तब करना जब तू अपनी जिंदगी से आजिज आ चुका हो! - जा अब दफा हो जा यहां से।‘‘
‘‘शुक्रिया साहब! - वो कार से उतरता हुआ बोला - आप दोनों का बहुत-बहुत शुक्रिया।‘‘
उसके जाने के बाद चौहान भी कार से बाहर निकला और मेरे बगल में आकर बैठ गया, ‘‘क्या कहता है?‘‘
‘‘किसी ने लड़के को रंजना के कत्ल में फिट करने की पूरी कोशिश की थी, वो तो उसकी किस्मत - जिसे वो खराब बताता है - बहुत अच्छी निकली, वरना पुलिस के फेर में पड़कर रहना था उसने। आगे तुम्हारे महकमे को पता लगता कि वो गैरकानूनी हथियारों की दलाली करता है, तो उसके बाद तो उसकी एक नहीं सुनी जाती। लिहाजा उसकी जमकर मिट्टी पलीद् होना लगभग तय था।‘‘
‘‘ठीक कहता है तू, ला एक सिगरेट पिला।‘‘
मैंने सिगरेट का पैकेट और लाइटर उसे थमा दिया।
वो कुछ क्षण खामोशी से सिगरेट के कस लगाता रहा फिर बोला, ‘‘जानता है इस वक्त मैं क्या सोच रहा हूं।‘‘
‘‘यही कि क्या गायकवाड़ ने वो रिवाल्वर रंजना चावला को मौत के घाट उतारने के लिए खरीदा हो सकता है।‘‘
‘‘कमाल का अंदाजा है तेरा गोखले! मैं ऐन यही बात सोच रहा था। अब तू मुझे उस लड़के के पास लेकर चल जिसने गायकवाड़ को रिवाल्वर बेची थी। मगर ठहर! इससे पहले तू ये बता कि उसकी खबर तेरे को क्योंकर हुई?‘‘
जवाब मैं मैंने गायकवाड़ का पीछा करते हुए वहां तक पहुंचने वाली बात उसे बता दी।
‘‘गुड, अब मुझे यकीन आ गया कि तू हाथ पर हाथ धर के नहीं बैठा हुआ है। चल पहले उस जमूरे से निपटते हैं, आगे की बाद में सोचेंगे।‘‘
‘‘तुम उसे गिरफ्तार करवाना चाहते हो!‘‘ मैं हैरानी से बोला।
‘‘पागल हुआ है, इस वक्त हमारी प्राथमिकता कातिल तक पहुंचना है या उसे गिरफ्तार कराना है! उसे गिरफ्तार कराने के चक्कर में पड़कर क्या मुझे अपनी फजीहत करानी है। मैं तो बस उससे ये जानना चाहता हूं कि उसने किस तरह की रिवाल्वर गायकवाड़ को बेची थी। आगे तूने ये पता करना है कि क्या रंजना को उसी किस्म की रिवाल्वर से गोली मारी गयी थी। अगर हां तो ये अपने आप में इशारा होगा कि रंजना का कत्ल गायकवाड़ ने किया है। ....और अगर रंजना का कत्ल उसने किया है तो बाकी के कत्ल भी उसी ने किये होंगे।‘‘
adeswal
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हम तेखंड गांव पहुंचे। मैंने कार को एकदम इमारत के पहलू से सटाकर खड़ा किया फिर मैं और चौहान कार से बाहर निकलकर दूसरी मंजिल पर स्थित उस फ्लैट के सामने पहुंचे, जिसके भीतर मैंने गायकवाड़ को दाखिल होते देखा था।
चौहान ने दरवाजे पर दस्तक दी और बड़े ही दोस्ताना लहजे में बोला, ‘‘जीते ओ जीते, अरे सो गया क्या यार!‘‘
‘‘नहीं रूक अभी खोलता हूं।‘‘ भीतर से कहा गया। फिर दरवाजा खुला, खोलने वाला वही युवक था जिसे मैं पहले भी फासले से देख चुका था। एक बावर्दी पुलिसिये पर नजर पड़ते ही उसने दरवाजा बंद करने की कोशिश की मगर चौहान ने उसे कामयाब नहीं होने दिया। उसने वहीं खड़े-खड़े एक जोरदार लात उसे जमाई तो वो चार फीट भीतर कमरे में जा गिरा।
हम दोनों कमरे में दाखिल हुए।
वो तकरीबन बारह बाई बारह का कमरा था जिसमें हर तरफ अस्त-व्यस्तता का बोल बाला था। कहीं कपड़े पड़े हुए थे तो कहीं जूठे बर्तन! अभी मैं कमरे का मुआयना कर ही रहा था कि चौहान ने बिना कुछ पूछे, बिना कुछ कहे, लड़के को रूई की तरह धुन कर रख दिया। अपने मतलब की जानकारी निकलवाने का यही वो फेवरेट तरीका था, जिसमें हर पुलिसिए को महारत हासिल थी।
‘‘मेरी बात ध्यान से सुन! - उसे जमकर ठोकने के बाद चौहान कहर भरे स्वर में बोला - मुझे मालूम है तू कौन सा धंधा करता है। मगर इत्मीनान रख हमें उससे कुछ लेना देना नहीं है, इसलिए चैन से बैठ जा! समझ गया?‘‘
उसने रोते हुए मंुडी हिलाकर हामी भरी और सीधा होकर बैठ गया।
‘‘अब मैं तुझसे एक सवाल करने जा रहा हूं, जिसका जवाब बहुत आसान है। सही जवाब देगा तो हम अभी दफा हो जायेंगे और तेरे बारे सबकुछ भूल जायेंगे। घुमाने की कोशिश की तो आगे तेरा मुकाम कहां होगा ये तू मेरे से बेहतर समझता है।‘‘
‘‘साहब आप पूछो तो सही क्या जानना चाहते हो?‘‘ वह सहमे से स्वर में बोला।
‘‘आज दिन में तूने मनोज गायकवाड़ नाम के आदमी को एक रिवाल्वर बेची थी! हां और ना में जवाब दे।‘‘
‘‘बेची थी साहब!‘‘
‘‘कैसी रिवाल्वर थी वो!‘‘
‘‘वो ‘निडर‘ रिवाल्वर थी साहब!‘‘
‘‘पहले तो कभी नहीं सुना ये नाम!‘‘
‘‘मार्केट में नई नई आई है साहब! अभी पिछले साल ही तो लांच हुई थी, इसलिए हो सकता है आपने नाम ना सुना हो। वो आठ राउंड फायर करने वाली प्वाइंट बाइस कैलीबर की इंडियन रिवाल्वर है, जो सात मीटर तक मार कर सकती है। कानूनी तरीके से खरीदने जायेंगे तो लगभग पैंतीस हजार की आती है। आकार में बहुत छोटी होती है, एक सौ चालिस एमएम की। वजन एक पाव के करीब होता है, आप इसे जनाना हथियार भी कह सकते हैं।‘‘
‘‘तूने लोडेड पिस्तौल बेची थी?‘‘
‘‘जी!‘‘
‘‘क्या लगता है तुझे, गायकवाड़ को पिस्तौल की समझ थी, वो उसे हैंडल करना जानता था।‘‘
‘‘उसकी बातों से तो मुझे यही लगा था साहब! क्योंकि जब मैंने उससे कहा कि मैं उसे ऑपरेट करना सिखा देता हूं तो वो रिवाल्वर जेब में रखता हुआ बोला कि उसे मालूम था।‘‘
‘‘ठीक है, अगर तेरा जवाब सच्चा है तो समझ ले तेरी जानबख्शी हो गयी।‘‘
‘‘शुक्रिया साहब जी।‘‘
जवाब में जब हम वापिस लौटने को हुए तो वो जल्दी से बोल पड़ा, ‘‘साहब कोई खर्चा पानी?‘‘
चौहान ने तुरंत पलटकर उसे खा जाने वाली नजरों से घूरा, ‘‘खर्चा पानी तू अपनी गां..... में डाल ले बहन...चो!‘‘
कहकर वो बाहर निकल गया।
हम दोनों एक बार फिर मेरी कार में सवार हो गये।
‘‘आगे क्या इरादा है?‘‘ मैं कार स्टार्ट करता हुआ बोला।
‘‘आगे जो करना है वो सिर्फ और सिर्फ तुझे करना है! खान साहब या तिवारी साहब से ये जानने की कोशिश कर की मकतूला को किस किस्म रिवाल्वर से सूट किया गया था। सच पूछ तो अब मुझे तेरी ही बात सच होती जान पड़ती है। ये सब किया धरा गायकवाड़ का ही दिखाई देता है। बस ये साबित हो जाय कि वो कत्ल वाले रोज दिल्ली में था तो समझ ले उसका खेल खत्म हो गया।‘‘
‘‘खान साहब के पास तुम मेरे साथ क्यों नहीं चलते।‘‘
‘‘भेजा फिर गया है तेरा! मान ले अगर हमारी तमाम आशंकाओं के खिलाफ गायकवाड़ निर्दोष साबित हो जाता है, तो फिर आगे मेरा मुकाम कहां होगा, क्या ये बात तुझे समझाने की जरूरत है।‘‘
‘‘हां है! - मैं जिद भरे स्वर में बोला - यूं भागे-भागे कब तक फिरोगे तुम! एक ना एक दिन तो तुम्हे सामने आना ही होगा। या तुम्हारा महकमा खुद तुम्हें ढूंढ निकालेगा। तब तुम्हारी ज्यादा फजीहत होगी। जबकि आज अगर तुम खुद थाने में पेश हो गये तो कुछ तो लिहाज करेंगे ही वो लोग तुम्हारा।‘‘
उसने उस बात पर गंभीरता से विचार करना शुरू किया।
साहबान! चौहान के साथ क्या बीतती इस वक्त मुझे उसकी चिंता नहीं थी। चिंता तो मुझे अपनी थी। यूं अगर कोई मुझे उसके साथ देख लेता तो क्या मैं और क्या मेरा पीडी का धंधा! पलभर में सबकुछ चौपट हो जाना था। फिर मुझे सिक्स टेन स्टोर के कैशियर की भी चिंता थी। जहां बाद में किसी वक्त पुलिस पहुंचती - जो कि पहुंचनी ही थी - तो वो बताये बिना कैसे रहता कि पहले भी एक सब-इंस्पेक्टर और उसका साथी वहां की वीडियो फुटेज देखकर जा चुके थे। फिर जब पुलिस स्टोर के भीतर की फुटेज देखती तो मुझे पहचानने में क्या उन्हें वक्त लगना था। इसके बाद पुलिस की जो गाज आपके खादिम पर गिरती! उसके जिक्र मात्र से ही मेरा दिल हिले जा रहा था। लिहाजा मेरी गति इसी बात में थी कि चौहान फौरन खुद को पुलिस के हवाले कर देता।
‘‘क्या सोचा तुमने!‘‘ मैंने उसकी ओर देखे बिना प्रश्न किया।
‘‘मैं कोई फैसला नहीं कर पा रहा हूं! - वो विचारपूर्ण ढंग से बोला - क्योंकि गायकवाड़ के बेकसूर साबित होने की सूरत में मेरा जेल जाना तय है।‘‘
‘‘तुम्हे मेरी काबीलियत पर शक कब से होने लगा।‘‘
‘‘शक तो खैर मुझे नहीं है, मगर अपनी काबीलियत के दमपर जब तक तू कातिल को तलाशने में कामयाब होगा तब तक के लिए को मुझे अपनी फजीहत करानी ही पड़ेगी।‘‘
उस वक्त हम एक ऐसी सड़क से गुजर रहे थे, जहां सड़क के दोनों तरफ साप्ताहिक बाजार लगा हुआ था। इधर-उधर भटकती मेरी निगाह एक ऐसी दुकान पर पड़ी जहां ढेरों सूटकेस रखे हुए थे! जिनपर निगाह पड़ते ही जैसे मेरे जहन में कोई घंटी सी बजी।
‘‘हे भगवान!‘‘ मेरे मुंह से खुद बा खुद निकल गया।
चौहान ने चौंककर मेरी ओर देखा, ‘‘क्या हुआ?‘‘
‘‘कातिल का पता चल गया।‘‘
‘‘क्या?‘‘
‘‘मैं हैरान हूं कि इतनी बड़ी बात को मैं नजरअंाज कैसे कर गया।‘‘
‘‘अब कुछ बोलेगा भी या हैरान ही होता रहेगा।‘‘
‘‘गायकवाड़ ही कातिल है, उसके अलावा कोई हो ही नहीं सकता।‘‘
‘‘और इसका सपना तुझे अभी-अभी आया है नहीं।‘‘
‘‘हां बाजार में रखे सूटकेसों को देखकर।‘‘
‘‘गोखले क्यों तपा रहा है मुझे।‘‘
मैं हंसा।
जवाब में इस बार उसने मुझे कसकर घूरा।
‘‘समझो इस बात की गारंटी हो गयी कि गायकवाड़ अपनी बीवी के कत्ल से पहले ना सिर्फ दिल्ली में था बल्कि वो अपने फ्लैट में भी गया था।‘‘
‘‘प्लीज एक्सप्लेन।‘‘
‘‘देखो सुनीता के कत्ल के बाद उसके फ्लैट को पुलिस ने सील कर दिया था। वो सील उस रोज तोड़ी गई जब पुलिस ने तुम्हारी वकील नीलम तंवर को घटनास्थल का मुआयना कराने के लिए अपने एक हवलदार के साथ गायकवाड़ के फ्लैट पर भेजा था। हवलदार ने सील हमारी आंखों के सामने तोड़ी थी। उसके बाद हम भीतर दाखिल हुए और वहां की तलाशी लेने में जुट गये। उस दौरान जब मैंने बेडरूम में रखे बक्से वाले पलंग का ढक्कन हटाकर देखा तो भीतर मुझे एक नया-नकोर सूटकेस रखा दिखाई दिया। जिसके भीतर मर्दाना कपड़ों के अलावा सेविंग का सामान तथा अंडर गारमेंट तक रखे दिखाई दिये जो कि बेशक गायकवाड़ के थे। तब मुझे उसकी अहमियत समझ में नहीं आई मगर आज बाजार में रखे सूटकेसों को देखकर, जब मुझे उस सूटकेस का ख्याल आया तो दिमाग की बत्ती जल उठी।‘‘
‘‘मैं अभी भी नहीं समझा कि तू कहना क्या चाहता है।‘‘
‘‘सिर्फ इतना कि अगर गायकवाड़ फ्लैट सील किये जाने के अगले दिन दिल्ली पहुंचा था तो उसका सूटकेस सील्ड फ्लैट के भीतर कैसे पहुंच गया।‘‘
‘‘क्या पता वो कोई पुराना सूटकेस रहा हो जिसमें उसकी चीजें संभालकर सुनीता ने पलंग के भीतर रख दी हों।‘‘
‘‘चौहान साहब वो एकदम नया-नकोर सूटकेस था। अगर वो दो साल पहले खरीदा गया होता तो उसमें वो चमक नहीं होती जो उस सूटकेस पर मौजूद थी। ऊपर से कपड़ों को अगर दो साल तक बंद करके रख दिया जाय तो उसमें से जो मुश्क निकलने लगती है वो मुझे उस सूटकेस से आती महसूस नहीं हुई थी।‘‘
‘‘ठीक है थाने चल! अब जो होगा देखा जायेगा। मगर उससे पहले पता कर कि खान साहब वहां हैं या नहीं।‘‘
मैंने चैन की मीलों लंबी सांस खींची।
खान को फोन करने पर पता चला कि उस वक्त वो थाने में मौजूद था। मैंने उसे कोई खास जानकारी देने का हवाला देकर थाने में ही रूके रहने की इल्तिजा की तो उसने झट हामी भर दी।
आधे घंटे में हम थाने पहुंच गये।
वहां जब हम कार से निकलकर भीतर की ओर बढ़े तो जिसकी भी नजर चौहान पर पड़ी उसका मुंह खुला का खुला रह गया। उसके कलीग्स यूं हकबका कर उसकी ओर देखने लगे जैसे वो कोई अजूबा हो।
हम दोनों सीधा खान के कमरे में पहुंचे। चौहान पर निगाह पड़ते ही वो उछल सा पड़ा। उसकी जगह कोई और होता तो निश्चय ही सबसे पहले उसकी गिरफ्तारी का हुक्म दनदनाता, फिर कोई सवाल करता। मगर वो बेहद सुलझा हुआ पुलिस वाला था, पल भर में ही वो यूं शांत दिखने लगा जैसे चौहान के वहां आगमन में कोई खास बात थी ही नहीं।
हम दोनों उसका अभिवादन करके उसके सामने विजिटर चेयर पर बैठ गये।
‘‘कैसा है चौहान!‘‘
‘‘ठीक हूं जनाब!‘‘
‘‘गुड! कोई नई बात हो गयी दिखती है, नहीं।‘‘
‘‘जी जनाब, है तो कुछ ऐसा ही।‘‘
‘‘मैं तिवारी को यहां बुला लूं! तुझे कोई ऐतराज तो नहीं!‘‘
‘‘जी बेशक बुला लीजिए।‘‘
adeswal
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जवाब में उसने तिवारी के मोबाइल पर फोन किया और फौरन वहां पहुंचने को कह दिया। फिर उसने इंटरकॉम पर ड्यूटी रूम में फोन किया और बोला, ‘‘सतीश तुझे मालूम है कि इस वक्त मेरे कमरे में कौन है! सारे स्टॉफ को समझा दे कि अगर ये बात लीक हुई तो किसी की खैर नहीं।‘‘
कहकर उसने रिसीवर रख दिया फिर चौहान से मुखातिब हुआ, ‘‘अब बताओ क्या चाहते हो।‘‘
ठीक तभी एडिशनल एसएचओ तिवारी वहां हाजिर हुआ, चौहान पर निगाह पड़ते ही वो हकबका सा गया, मगर कुछ बोला नहीं और खान के इशारे पर हमारे बगल में एक चेयर खींचकर बैठ गया।
‘‘अब बोल क्या चाहता है।‘‘
‘‘सबसे पहले तो उस रिवाल्वर के बारे में बताइए जिससे रंजना चावला की हत्या की गई थी।‘‘
जवाब में खान ने तिवारी की ओर देखा तो वो बोल पड़ा, ‘‘रिवाल्वर अभी बरामद नहीं हुई है मगर हमारे टैक्निशियन का कहना है कि उसे प्वाइंट बाइस कैलिबर की क्लोज रेंज वाली एकदम नई किस्म की रिवाल्वर से गोली मारी गयी थी। वो कोई ऐसी रिवाल्वर थी जो अभी ज्यादा प्रचलन में नहीं आई है, क्या तो भला सा नाम बताया था उसने....!‘‘
‘‘निडर!‘‘ चौहान उत्सुक स्वर में बोला।
‘‘हां निडर! लेकिन तुझे उस बारे में कैसे पता?‘‘
जवाब में चौहान ने मेरी तरफ देखा! तो मैंने गायकवाड़ पर शक की सारी कहानी सिलसिलेवार ढंग से सुनानी शुरू कर दी। जैसे-जैसे मैं कथा करता गया खान और तिवारी की हैरानगी बढ़ती चली गयी। आखिरकार सूटकेस का जिक्र करके मैंने अपनी बात खत्म की।
‘‘कमाल है! - खान हैरान होता हुआ बोला - इतना बड़ा खलीफा लगता तो नहीं है वो, जो यूं पुलिस की आंखों में धूल झोंककर सिलसिलेवार वारदातों को अंजाम देता चला जाय।‘‘
‘‘जनाब चेक करने में क्या हर्ज है, अगर हमारी बात झूठी पड़े तो मैं बैठा तो हूं आपके सामने गिरफ्तार होने को।‘‘
‘‘तू सठिया गया है चौहान! सुना नहीं अभी फोन पर मैंने क्या कहा। लिहाजा इस वक्त तो तुझे कोई हाथ भी नहीं लगायेगा! तू जब इतने विश्वास के साथ यहां पहुंचा है तो उस विश्वास की लाज तो मुझे रखनी ही पड़ेगी।‘‘
सुनकर चौहान की आवाज भर्रा सी गयी, ‘‘शुक्रिया जनाब!‘‘
‘‘तिवारी तुमने सुना गोखले ने अभी क्या कहा - खान बोला - अब तुम बताओ कि तुम्हे क्या लगता है।‘‘
‘‘जनाब अगर इसने कोई कहानी नहीं सुनाई है - जो कि मुझे यकीन है कि नहीं सुनाई होगी - तो गायकवाड़ हो तो सकता है कातिल!‘‘
‘‘ऐसे में अब हमें क्या करना चाहिए।‘‘
‘‘रात को उठा लेते हैं, देखते हैं क्या कहता है।‘‘
‘‘वो तो हम करेंगे ही मगर उसपर हाथ डालने से पहले मैं कम से कम इतना पक्का कर लेना चाहता हूं कि कत्ल वाले रोज वो यकीनन दिल्ली में ही था। अगर वो बात गलत साबित होती है तो फिर उसे परेशान करने का हमें कोई हक नहीं पहुंचता। अब तुम मुझे ये बताओ कि साहब लोगों को इंवॉल्व किये बिना कोई रास्ता है, फौरन इस जानकारी को हासिल करने का।‘‘
‘‘पांच मिनट दीजिए।‘‘ कहकर तिवारी मोबाइल कोई नंबर डॉयल किया और बातों में मसरूफ हो गया। उसकी बातों के अंदाज से जाहिर हो रहा था कि वो अपने किसी बेहद करीबी दोस्त से बातें कर रहा था।
फिर उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी और खान से मुखातिब हुआ, ‘‘अभी पता चल जायेगा, थोड़ा इंतजार कीजिए।‘‘
आगे पांच मिनट पूरी खामोशी में गुजरे। फिर तिवारी के मोबाइल की घंटी बजी। हम सब ने एक साथ उसपर निगाहें टिका दीें। उसने मुश्किल से तीस सेकेंड बात की होगी मगर वो तीस सेकेंड हमें उस वक्त घंटों में तब्दील होते महसूस हुए।
आखिरकार उसने मोबाइल से किनारा किया और हर्षित स्वर में बोला, ‘‘चौहान तेरी तो समझ ले लॉटरी लग गई! वो कत्ल वाले रोज एक जून को ही दिल्ली पहुंच गया था। जबकि हमारे रिकार्ड के मुताबिक वो दो तारीख को यहां पहुंचा था।‘‘
सुनकर हम सभी ने चैन की सांस ली।
‘‘एक छोटी सी शंका और है मेरे मन में! - खान बोला - इसकी क्या गारंटी कि एक तारीख को दुबई से दिल्ली पहुंचा मनोज गायकवाड़ कोई और सख्स नहीं था, इत्तेफाकन जिसका नाम मनोज गायकवाड़ रहा हो।‘‘
‘‘कोई गारंटी नहीं, मगर इस बात की गारंटी है कि दो जून को कोई मनोज गायकवाड़ दुबई से दिल्ली नहीं पहुंचा था।‘‘
‘‘गुड! उठा लो कमीने को, साथ ही उसके फ्लैट की तलाशी भी लो, क्या पता उसने रिवाल्वर को अभी तक ठिकाने ना लगाया हो।‘‘
‘‘अभी?‘‘
‘‘हां अभी, मगर पूरी खामोशी से, कम से कम आज की रात मैं उसकी खबर मीडिया को नहीं लगने देना चाहता।‘‘
‘‘नहीं लगेगी।‘‘ तिवारी हर्षित स्वर में बोला। साफ जाहिर हो रहा था कि चौहान के साथ सस्पेक्ट की तरह बिहैव करना उसे पसंद नहीं आ रहा था। वो उठकर कमरे से बाहर निकल गया।
‘‘गोखले! - उसके पीठ पीछे खान बोला - यू आर ग्रेट।‘‘
‘‘शुक्रिया, शुक्रिया खान साहब।‘‘
‘‘और चौहान! मेरी तरफ से तू आजाद है, चाहे तो घर जाकर लंबी तानकर सो जा! अगर अंकुर रोहिल्ला के मर्डर के सिलसिले में कोई वहां पहुंचे तो बेशक मेरे से बात करा देना। अगर गायकवाड़ का बयान सुनकर जाना चाहता है तो अपने कमरे में जाकर बैठ! क्योंकि अभी मुझे बहुत से जरूरी काम निपटाने पड़ेंगे। गोखले को भी साथ लेता जा, बहुत भाग-दौड़ कर ली इसने तेरे केस में।‘‘
‘‘जी जनाब!‘‘ वो बोला और उठकर खड़ा हो गया। फिर हम दोनों उसके कमरे में जाकर बैठ गये और सिगरेट का धुंआ उड़ाने लगे।
adeswal
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Re: Thriller गहरी साजिश

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रात नौ बजे के करीब कई पुलिसियों से घिरा गायकवाड़ थाने लाया गया। जहां सबसे पहले उसे एसएचओ के कमरे में ले जाया गया। तब तक एसीपी त्रिलोक नाथ पांडेय भी वहां पहुंच चुका था। खबर मिलते ही मैं और चौहान भी वहां जा पहुंचे। एसीपी के इशारे पर मैं एक कुर्सी पर जा बैठा जबकि चौहान दीवार से पीठ टिका कर खड़ा हो गया।
वहां पहुंचते ही गायकवाड़ बिफर पड़ा, वो सीधा एसीपी से मुखातिब हुआ, ‘‘क्या मैं जान सकता हूं, कि यूं मुझे थाने पकड़ मंगवाने का क्या मतलब हुआ?‘‘
‘‘अभी पता चल जायेगा जनाब, पहले आप आराम से बैठ जाइए।‘‘ एसीपी बहुत धैर्य से बोला, साथ ही उसने तिवारी को छोड़कर वहां मौजूद बाकी पुलिस वालों को बाहर जाने को कह दिया।
अंगारों पर लोटता गायकवाड़ एक कुर्सी पर जम गया।
‘‘गुड! अब मैं आपसे एक मामूली सा प्रश्न पूछने जा रहा हूं, जिसका आपने सीधा और सच्चा जवाब देकर ये साबित करके दिखाना है कि आप एक नेक शहरी हैं और कानून व्यवस्था की कद्र करते हैं।‘‘
‘‘पूछिये।‘‘
‘‘आप दुबई से वापिस कब लौटे थे?‘‘
उस एक सवाल ने गायकवाड़ की हालत खराब करके रख दी। उसके चेहरे पर हवाइयां उड़ती सबने देखी, प्रत्यक्षतः वो बड़ी दिलेरी से बोला, ‘‘क्या मतलब हुआ इस सवाल का?‘‘
‘‘मतलब छोड़िये जनाब! मैंने आपसे एक सीधा सा प्रश्न किया है जिसके जवाब में आपने हमें बस एक तारीख बतानी है।‘‘
‘‘और अगर मैं इस सवाल का जवाब देने से इंकार कर दूं तो!‘‘
‘‘तो ये कि हमें आपका पासपोर्ट देखना पड़ेगा, आप अगर उसे दिखाने से भी इंकार करेंगे तो हम अपने तरीके से इस बात का पता लगा लेंगे। मगर उसमें वक्त लगेगा और उस दौरान हमें मजबूरन आपको हवालात में रखना होगा, जो की आपके लिए सहूलियत वाली बात तो हरगिज भी साबित नहीं होने वाली।‘‘
जवाब में गायकवाड़ ने सिर झुका लिया, उससे जवाब देते नहीं बन पड़ा।
‘‘जनाब मैं आपके जवाब का इंतजार कर रहा हूं, या तो जवाब दीजिए या फिर इंकार कीजिए, प्लीज!‘‘
‘‘एक जून को।‘‘ वो इतना धीरे बोला कि बड़ी मुश्किल से वो बात मेरे कानों तक पहुंच सकी।
‘‘फिर आपने ये क्यों जाहिर किया कि आप दो तारीख को अपनी पत्नी की मौत की खबर सुनकर दिल्ली आए थे।‘‘
‘‘मैंने ऐसा कुछ जाहिर नहीं किया, मुझसे पुलिस ने कभी ये सवाल नहीं किया कि मैं दिल्ली कब लौटा था।‘‘
‘‘चलिए मैंने आपकी बात मान ली, कि आपसे पुलिस ने इस बाबत सवाल नहीं किया इसलिए उसकी जवाबदारी आप पर लागू नहीं होती। अब बराय मेहरबानी आप हमें ये बताइए कि आपने अपनी बीवी का, मंदिरा चावला का, अंकुर रोहिल्ला का और मंदिरा की बहन रंजना चावला का कत्ल क्यों किया।‘‘
‘‘मैंने किसी का कत्ल नहीं किया! - वो आवेश भरे लहजे में बोला - इसलिए तुम लोग कितनी भी कोशिश क्यों ना कर लो, मुझसे कत्ल की बाबत कुछ नहीं कबूलवा सकते।‘‘
ठीक तभी तिवारी उठकर एसीपी के पास पहुंचा और उसके कान में कुछ कहने के बाद अपनी सीट पर वापिस लौट गया।
‘‘जनाब ये पुलिस स्टेशन है, आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि यहां बड़े से बड़ा अपराधी भी रटंत तोता बन जाता है, आपकी तो बिसात ही क्या है! बावजूद इसके मैं एक बार फिर आपकी बात मान लेता हूं कि आपने किसी का कत्ल नहीं किया। अब बराय मेहरबानी आप हमें ये बताइए कि आपके फ्लैट से जो रिवाल्वर बरामद हुई है, उसका आपके पास क्या जवाब है।‘‘
‘‘वो मैंने अपनी सुरक्षा के लिए आज दिन में ही खरीदी थी, जिस तरह से कत्ल दर कत्ल होते जा रहे हैं, उस लिहाज से मुझे यह डर सता रहा था कि कहीं कातिल का अगला शिकार मैं ना बन जाऊं।‘‘
‘‘हाल-फिलहाल उस रिवाल्वर का कोई इस्तेमाल किया था।‘‘
‘‘नहीं बिल्कुल नहीं।‘‘
‘‘ऐसा तो नहीं है जनाब, क्योंकि हमारे बैलेस्टिक एक्स्पर्ट का मुआयना ये कहता है कि हाल ही में उस रिवाल्वर से दो गोलियां चलाई गई थीं, यूं उसके चेम्बर में दो खाली कारतूस भी पाये गये हैं, उस बाबत आप क्या कहेंगे।‘‘
‘‘सिर्फ इतना कि आप सभी लोग मिलकर मेरे खिलाफ कोई साजिश रच रहे हैं। अपने एक सब-इंस्पेक्टर को बचाने की खातिर पुलिस मुझे बलि का बकरा बनाने पर तुली है।‘‘
‘‘वही सही, मगर सवाल ये है कि जो रिवाल्वर आपके अधिकार में थी उसमें से पुलिस भला दो गोलियां कैसे चला सकती थी।‘‘
‘‘वो सब मैं नहीं जानता, मगर है ये तुम्हारे महकमें की ही करतूत! और कोई ऐसा कर ही नहीं सकता। जरूर तुम लोगों ने मेरे फ्लैट से रिवाल्वर बरामद होने के बाद उससे गोली चलाई होगी, ताकि बाद में ये कह सको कि वो दोनों गोलियां मैंने चलाई थीं।‘‘
एसीपी ने एक फरमाईशी आह भरी फिर बोला, ‘‘तो आप कसम खाये बैठे हैं अपनी दुर्गत कराने की।‘‘
‘‘और आप कसम खाये बैठे हैं मुझे कत्ल के केस में फंसाने की।‘‘
तभी एक व्यक्ति कमरे में दाखिल हुआ, वो सीधा एसीपी पांडे के करीब पहुंचा और उसका अभिवादन कर के बोला, ‘‘स्टडी की दीवार में धंसी पाई गई गोली, उसी रिवाल्वर से चलाई गयी थी जो कि इन साहब के घर से बरामद हुई है। अलबत्ता मकतूला के सिर में मारी गई गोली अभी तक हमें हासिल नहीं हुई है, क्योंकि लाश का पोस्टमार्टम नहीं हो पाया है। लेकिन उसकी जांच के बावजूद मेरा ये दावा है कि दोनों गोलियां इसी रिवाल्वर से चलाई गई थीं। इसके दस्ते पर भी सिर्फ और सिर्फ इन्हीं साहब के उंगलियों के निशान मिले हैं।‘‘
कहकर वो कमरे से बाहर निकल गया।
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