Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller गहरी साजिश

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उस वक्त मैं वहां रखे पलंग के भीतर बने बॉक्सेज का जायजा ले रहा था, जब वो पुलंदा मेरे हाथ लगा। मैंने उस पुलंदे को - जो कि एक काले रंग के पॉलीथीन में बांधकर रखा गया था - खोलकर देखा। भीतर एक नजर पड़ते ही शक की तमाम गुंजाईश खत्म हो गयी। बेशक हम एकदम सही जगह पर पहुंचे थे। सबसे पहले मेरी निगाह सुनीता गायकवाड़ और उसके साथ मौजूद एक युवक की तस्वीर पर पड़ी। तस्वीर भले ही पीछे से ली गई थी किंतु उसमें मैंने चौहान को साफ पहचाना। उसी प्रकार की कुछ तस्वीरें और मेरे हाथ लगीं, जिनमें चौहान और सुनीता एक साथ दिखाई दे रहे थे। निश्चय ही ये वैसी ही तस्वीरें थीं जो मनोज गायकवाड़ के बताये अनुसार उसके घोस्ट फोनकर्ता ने तब भेजी थीं, जब वो अभी दुबई में था। तस्वीरों के अलावा जो दूसरी अहम चीज मेरे हाथ लगी, वो किसी बड़े मकान या बंगले का नक्शा था, जिसपर काफी सिर खपाने के बाद मैंने ये अंदाजा लगाया कि वो नक्शा मकतूल अंकुर रोहिल्ला के बंगले का हो सकता था। अलबत्ता दावे के साथ ऐसा कह पाने की स्थिति में फिलहाल मैं नहीं था।
बॉक्स से ही मुझे एक ऐसी चीज मिली जिसकी वहां मौजूदगी का कोई मतलब मैं समझ ही नहीं पाता अगरचे कि उसके बगल में ही वो पैंट-शर्ट ना पड़ी होती जो कल दिन में मनोज गायकवाड़ पहने था। वो चीज एक बिग थी जिसे मैंने अपने सिर पर रखकर वहां लगे आदमकद शीशे में अपना अक्स देखा तो पता चला कि वो ऐन गायकवाड़ की हेयर स्टाइल की नकल करके तैयार किया गया था। बिग के बाल गायकवाड़ के बालों की तरह ही जगह जगह से तांबे की रंगत लिए हुए थे। यही वजह थी जिस किसी ने भी घोस्ट फोनकर्ता का हुलिया बयान किया वो हमें गायकवाड़ का हुलिया ही जान पड़ा था। क्योंकि बालों की रंगत और डील डोल के बारे में सुनते ही हमारे जहन में गायकवाड़ का अक्स उभर आता था, लिहाजा हम उससे आगे कुछ सोच ही नहीं पाते थे। जो आखिरी चीज उस पुलंदे से बरामद हुई वो मंदिरा चावला के इकबालिया बयान की फोटो कॉपी थी।
मैंने मोबाइल निकालकर तमाम चीजों का क्लोज एंड लांग शॉट लिया फिर सभी चीजें यथास्थान वापिस रखकर मैं मेज की दराज की तलाशी लेते चौहान के पास पहुंचा।
‘‘कुछ मिला?‘‘ चौहान ने बगैर मेरी ओर देखे पूछा।
‘‘रिवाल्वर तो नहीं मिली अलबत्ता ये साबित हो गया कि इस बार हम सही राह पर हैं। तुम अपनी कहो कुछ हाथ लगा तुम्हारे!‘‘
‘‘ये चैन देख, मुझे ये दराज की तलाशी के दौरान मिली है।‘‘
‘‘ऐसी क्या खास बात है इसमें, सिवाय इसके कि ये मुझे सोने की चैन जान पड़ती है।‘‘
‘‘ये है ही सोने की! सुनीता की चैन है ये, जो कि मैंने उसके बर्थ-डे पर गिफ्ट की थी। जरूर उसकी हत्या के बाद कमीने ने उसके गले से इसे नोंच लिया होगा। दिल तो करता है अपने हाथों से गोली मार दूं स्साले को।‘‘
इसके बाद हमारे बीच खामोशी छा गयी। उस वक्त हम आजिज आकर रिवाल्वर की तलाश बंद करने ही वाले थे कि अचानक चौहान को सूझा कि उसने बॉथरूम और किचन में नहीं झांका था।
सबसे पहले वो बॉथरूम में पहुंचा, जहां पानी की टंकी का ढक्कन उठाते ही रिवाल्वर उसे दिखाई दे गई। वो एक पिन्नी में पैक करके टंकी के ढक्कन के अंदरूनी हिस्से के साथ टेप की सहायता से चिपका दी गयी थी। बॉथरूम की तलाशी का ख्याल अगर चौहान के जहन में नहीं आया होता तो शायद उस रिवाल्वर तक हमारी पहुंच नहीं बन पाती।
बहरहाल कातिल का चेहरा अब पूरी तरह साफ हो चुका था। अब हम जानते थे कि उन चारों हत्याओं के पीछे किसका हाथ था। लेकिन उसको कातिल साबित करने के मामले में दिल्ली अभी दूर थी। वो हर बात से मुकर सकता था, हर चीज को प्लांट किया हुआ बता सकता था। इसलिए जरूरी था कि वो रंगे हाथों हिरासत में लिया जाता। जिसकी योजना मैं पहले ही बना चुका था।
रिवाल्वर को यथास्थान रखकर मैंने उसके भी कुछ फोटो क्लिक किए फिर हम दोनों बाहर निकल आये। चौहान ने दोबारा वो ताला बंद कर दिया।
अब आगे जो भी होना था वो पुलिस अधिकारियों ने करना था। मुझे तो बस उनको अपनी योजना की स्क्रिप्ट पढ़ कर सुनानी थी, जिससे उन्हें इत्तेफाक होता भी या नहीं फिलहाल ये कह पाना मुहाल था।
बाहर निकल कर मैंने एसीपी पांडे को फोन करके अपनी योजना बताई, तो कुछ काट-छांट करने के बाद उसने मुझे आश्वासन दिया कि सबकुछ ऐन उसी ढंग से होगा जैसे कि मैं चाहता था। और मेरी तसल्ली के लिए वो मामले की कमान खुद संभालेगा।
उस वक्त रात के साढ़े आठ बजने को थे। मनोज गायकवाड़ एसएचओ के कमरे में अपने वकील के साथ बैठा हुआ था। उसके अलावा वहां चौहान का पड़ोसी, डॉक्टर खरवार, इंश्योरेंस एजेंट मुकेश सैनी, अंकुर रोहिल्ला का मैनेजर महीप शाह और रजनीश अग्रवाल मौजूद थे। जिन्हें पुलिस ने बहुत ही शार्ट नोटिस पर वहां तलब किया था।
पुलिस महकमें की बात करें तो उस घड़ी वहां एसीपी पांडेय, एसएचओ नदीम खान तथा एडिशनल एसएचओ सदानंद तिवारी मौजूद थे।
‘‘साहबान! - एसीपी वहां मौजूद तमाम लोगों के चेहरों पर निगाह दौड़ाते हुए बोला - आज यहां जिस मुद्दे पर हम बात करने जा रहे हैं उससे आप सभी बाखूबी वाकिफ हैं। पिछले दिनों एक के बाद एक चार लोगों को - पहले मंदिरा चावला, फिर सुनीता गायकवाड़, फिर अंकुर रोहिल्ला और उसके बाद मकतूला मंदिरा चावला की बहन रंजना चावला को बेरहमी से कत्ल कर दिया गया। इनमें से दो मामले - सुनीता गायकवाड़ और अंकुर रोहिल्ला का कत्ल - इस थाने में रजिस्टर नहीं हैं। लेकिन ये तीनों थाने क्योंकि एक ही डिस्टिक कमिश्नर ऑफ पुलिस के अधिकार क्षेत्र में ही आते हैं। इसलिए डीसीपी साहब के हुक्म पर मैं चारों मामलों की तफ्तीश पर निगाह रखे हुए हूं। इन सभी वारदातों के लिए हमने, पहले सब-इंस्पेक्टर नरेश चौहान को और बाद में गायकवाड़ साहब को जिम्मेदार ठहराया! दोनों को हिरासत में लेकर पूछताछ की गई मगर बात नहीं बनी।‘‘
‘‘इसका मतलब ये हरगिज नहीं है कि हमने इन्हें बेगुनाह मान लिया है। बल्कि कुछ ऐसी बातें हैं जो इन दोनों के खिलाफ हमारे केस में अड़चनें पैदा कर रही हैं। जिनका जवाब तलाशने के लिए हमने आप सभी को इस वक्त यहां बुलाया है। क्योंकि आप सभी महानुभाव किसी ना किसी रूप में इन चारों हत्याओं से जुड़े हुए हैं। लिहाजा हमनें सिर्फ कुछ अनुत्तरित प्रश्नों का जवाब ढूंढना है, जिसके बाद मुझे पूरा यकीन है कि अभी और यहीं कातिल हमारी मुट्ठी में होगा। क्योंकि हमारा ये मानना है कि इन सभी वारदातों को किसी एक सख्स ने ही अंजाम दिया है और वो इस वक्त हमारे बीच मौजूद है। मुझे ये स्वीकार करते हुए बेशक शर्म महसूस हो रही है कि कातिल के इतना करीब होते हुए भी हम उसे नहीं पहचानते।‘‘
एसीपी की बात सुनकर तत्काल वहां मौजूद सभी लोग एक दूसरे की शक्ल देखने लगे। मानों इस तरह निगाहों से ही कातिल को शार्टआउट कर लेना चाहते हों।
‘‘हो सकता है यहां मौजूद कातिल की सूरत देखकर आपमें से कोई ऐसा कहने वाला निकल आए कि फलाना व्यक्ति कातिल हो सकता है। या चौहान और गायकवाड़ साहब के मामले में जो अनसुलझे प्रश्न हैं उनका जवाब आपमें से किसी को मालूम हो। आप सभी के बयान पहले से ही हमारे रिकार्ड में हैं। हो सकता है उसमें आप कुछ नया जोड़ना या घटाना चाहें। इसलिए मेरी आप सभी से ये रिक्वेस्ट है कि तमाम घटनाक्रम को अपने दिमाग में दोबारा से ताजा करें, क्या पता ऐसा करने से आपको कोई नई बात सूझ जाय जो कातिल की गिरफ्तारी में हमारी मदद कर सके।‘‘
एक बार फिर सभी, एक दूसरे की शक्ल देखने लगे।
‘‘इसकी क्या गारंटी की! - सबसे पहले अंकुर रोहिल्ला के मैनेजर महीप शाह ने चुप्पी तोड़ी - कातिल यहां मौजूद लोगों में से ही कोई एक है।‘‘
‘‘जनाब इसकी गारंटी अब तक की पुलिस तफ्तीश की वजह से है। जिसके बारे में कुछ बताना और कातिल को खबरदार करना एक जैसी बात होगी। लिहाजा मैं आप सभी से उम्मीद करता हूं कि हमारी जानकारी पर प्रश्न चिन्ह लगाने की बजाय आप अपने दिमाग को थोड़ी सी कसरत करायें। यकीन जानिये यह पुलिस डिपार्टमेंट पर ही नहीं बल्कि समाज पर भी आपका उपकार होगा। क्योंकि कातिल बेहद शातिर और खतरनाक है उसका खुले में घूमते रहना, इस तरह की वारदातों को बढ़ावा देने जैसा ही होगा।‘‘
कमरे में पिन ड्रॅाप सन्नाटा छा गया।
तभी एक सब-इंस्पेक्टर भीतर दाखिल हुआ।
‘‘जयहिंद जनाब।‘‘
‘‘जयहिंद! - एसीपी अनमने भाव से बोला - क्या तुम्हें बताया नहीं गया कि यहां एक बेहद जरूरी मीटिंग चल रही है।‘‘
‘‘मैं माफी चाहता हूं जनाब, मगर मैं जो कहना चाहता हूं वो इस मीटिंग से कहीं ज्यादा जरूरी है।‘‘
तत्काल एसीपी की त्यौरियां चढ़ीं, मगर एसआई तनकर खड़ा रहा, वो जरा भी टस से मस नहीं हुआ। तब एसीपी थोड़ा नम्र लहजे में बोला - ‘‘क्या कहना चाहते हो।‘‘
‘‘जनाब यूं सबके सामने....।‘‘
‘‘हां सबके सामने कहो, वरना बाहर जाकर हमारी मीटिंग खत्म होने का इंतजार करो।‘‘
adeswal
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‘‘जनाब हमने एक लड़के को काबू में किया है, जो साकेत में ही मकतूला मंदिरा चावला के आवास से करीब एक किलोमीटर की दूरी पर, जनरल स्टोर की दुकान चलाता है। वो रंजना चावला के कातिल को पहचानने का दावा करता है। कहता है कि कल कत्ल से कुछ देर पहले तक कातिल उसकी दुकान पर मौजूद था। कातिल वहां तक बजाज की दो सौ बीस सीसी वाली ब्लैक कलर की पल्सर मोटरसाइकिल पर पहुंचा था। उस वक्त वो लिवाइस की लंबी धारियों वाली, क्रीम कलर की शर्ट और स्लेटी कलर की पैंट पहने हुए था। साथ ही वो लड़का दावा करता है कि कातिल ने अपनी पतलून की बैल्ट में रिवाल्वर खोंस रखी थी! - कहकर वो तनिक दम लेने को रूका फिर आगे बोला - कातिल ने वहां से किसी रजनीश अग्रवाल को, मंदिरा चावला का वकील बनकर फोन भी किया था और ठीक चार बजे उसे मकतूला के आवास पर पहुंचने को कहा था।‘‘
‘‘वो काल मुझे की गई थी! - रजनीश अग्रवाल उत्तेजित स्वर में बोला - उसने मुझसे कहा था कि चार बजे मंदिरा चावला की वसीयत पढ़ी जाने वाली थी जिसमें मेरे पिता का भी जिक्र था, जिसके अनुसार मुझे एक लाख रूपये मिलने थे।‘‘
अग्रवाल की बात सुनकर सब हैरानी से उसकी शक्ल देखने लगे।
‘‘तुम उसकी आवाज पहचान सकते हो।‘‘ एसीपी ने पूछा।
‘‘कहना मुश्किल है सर! ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी हो सकता।‘‘
‘‘ठीक है! - इस बार एसीपी अपने सब-इंस्पेक्टर से मुखातिब हुआ - उसे भीतर बुला लो और यहां मौजूद लोगों से उसका आमना-सामना कराओ, देखें क्या रिजल्ट निकलता है। यूं हमें ये भी पता चल जायेगा कि यहां मौजूद लोगों पर शक कर के हम कोई गलती तो नहीं कर रहे थे।‘‘
‘‘वो तो यहां नहीं है।‘‘ एसआई दबे स्वर में बोला।
‘‘नहीं है! व्हाट डू यू मीन नहीं है - एसीपी गर्जा - तुम क्या हमें कहानी सुनाने आये थे यहां।‘‘
‘‘जनाब मैंने उसे साथ लाने की कोशिश की थी, मगर वो इस जिद्द पर अड़ गया, कि अपनी दुकान के क्लोजिंग टाइम के बाद ही थाने आयेगा।‘‘
‘‘अरे राजी से नहीं आता था तो उठा लाना था।‘‘
‘‘आप इजाजत दीजिए जनाब, मैं अभी उसे पकड़ लाता हूं।‘‘
‘‘अब रहने दो! - एसीपी भुनभुनाता हुआ बोला - टाइम क्या है उसका दुकान बंद करने का, या सूझा नहीं तुम्हें ये सवाल करना!‘‘
‘‘कहता था नौ बजे दुकान बंद करके, दस बजे तक वो यहां पहुंच जाएगा।‘‘
‘‘इतनी देर तक मैं इतने लोगों को यहां कैसे बैठाए रख सकता हूं - एसीपी यूं बोला जैसा उस बात से भारी असुविधा महसूस कर रहा हो - हम सबको उसकी दुकान पर ही चलना पड़ेगा।‘‘
‘‘एसीपी साहब! - महीप शाह बोला - इतने लोग पुलिस के साथ वहां पहुंचेंगे तो दुकानदार का तो जुलूस निकल जायेगा। ऊपर से वहां भीड़ देखकर आस-पास के लोगों का हुजूम भी इकट्ठा हो जाएगा जिसे काबू करना आसान काम नहीं होगा। इसलिए परेशान होने की जरूरत नहीं है। नौ तो बजने ही वाले हैं, मेरे ख्याल से हम सभी एक़ घंटा उसका इंतजार करने की जहमत गवारा कर सकते हैं, या फिर जाकर वापिस आ सकते हैं।‘‘
जवाब में एसीपी ने वहां मौजूद बाकी लोगों के चेहरों पर निगाह दौड़ाई, तो सबने अनमने भाव से सहमति में सिर हिला दिया।
इसके बाद वो मीटिंग वहीं समाप्त हो गयी।
सब लोग एक-एक करके वहां से बाहर निकल गये। एसीपी ने मुझे और चौहान को अपने पास आकर बैठने के लिए कहा, फिर बोला, ‘‘अब देखना है तुम्हारा प्लान काम करता है या फ्लॉप हो जाता है।‘‘
‘‘जनाब छोटी मुंह और बड़ी बात, मगर कहे बिना नहीं रहा जा रहा। हम यहां बैठे हैं, और वहां कातिल उस लड़के का काम तमाम करके अपने खिलाफ इकलौते गवाह का मुंह बंद करके चलता बनेगा।‘‘
‘‘गोखले बहुत बेसब्रा है तू! मत भूल कि तू खुद भी यही तो चाहता था कि वो वहां पहुंचकर लड़के का कत्ल करने की कोशिश करे।‘‘
‘‘सिर्फ कोशिश जनाब! ना कि मैं ये चाहता हूं कि वो सचमुच वहां पहुंच कर उस लड़के का काम तमाम कर दे।‘‘
‘‘परेशान मत हो, कुछ नहीं होता लड़के को! कोई सिगरेट वगैरह पीना चाहता है तो पी ले और इत्मिनान से बैठ। सब इंतजाम कर रखा है खान नेे, वो पहुंचे तो सही वहां। फिर देखना उसका अगला मुकाम जेल में ही होगा।‘‘
इससे पहले कि मैं और कुछ कहता मेज पर रखा एसीपी का मोबाइल बाइब्रेट होने लगा। उसने कुछ क्षण फोन सुना फिर मोबाइल दोबारा मेज पर रखता हुआ बोला, ‘‘सब इंतजाम हो गया है! हमारे चार ऑफिसर इस घड़ी उसकी दुकान के आस-पास मौजूद हैं, जबकि दो दुकान के भीतर छिपे हुए हैं, जिन्हें हुक्म है कि अगर कातिल काबू से बाहर जाता दिखे तो बेशक उसे गोली मार दें।‘‘
‘‘वो तो ठीक है जनाब लेकिन!‘‘
‘‘अभी भी लेकिन! ठीक है उठो, हम भी वहीं चलते हैं, अगर कातिल सचमुच यहां मौजूद लोगों में से कोई था - जैसा की तुम्हारा दावा है - तो उसे निकले अभी ज्यादा देर नहीं हुई है, आगे-पीछे ही हम वहां पहुंच जायेंगे! - कहकर वो चौहान की ओर घूमा - एक प्राइवेट कार का इंतजाम करो फौरन, जिसका हमसे या थाने से कोई ताल्लूक ना हो।‘‘
चौहान ने मोबाइल पर किसी से बात की और बोला, ‘‘चलिए।‘‘
जवाब में मैं, चौहान, एसीपी पांडेय, एसएचओ खान और तिवारी थाने से एक साथ बाहर निकले। गेट पर पहुंचने के करीब दो मिनट बाद ही वहां एक स्कॉर्पियो आ खड़ी हुई, जिसमें मैं पुलिस पार्टी के साथ सवार हो गया।
‘‘हम पूरे दस मिनट लेट हैं साहब।‘‘ तिवारी बोला।
‘‘चिंता मत करो, इतना टाइम तो उसे भी लगेगा वहां का माहौल भांपने में, और गोखले अब तू मुझे ये बता कि असल में कातिल है कौन? वहां हमने किसके स्वागत के लिए ट्रैप लगाया हुआ है।‘‘
‘‘जनाब हम पहुंच तो रहे ही हैं वहां, जो भी होगा वो आपके सामने आ जायेगा।‘‘
‘‘क्या मतलब लगाऊं मैं तेरी बात का, ये कि तुझे खुद नहीं पता कि वहां कौन पहुंचने वाला है।‘‘
‘‘ऐसा तो नहीं है जनाब।‘‘
‘‘फिर बता क्यों नहीं देता, क्यों सस्पेंस फैला रहा है।‘‘
‘‘जनाब क्लाइमैक्स का मजा किरकिरा हो जाएगा, वो जब आपके आदमियों कि गिरफ्त में आ जाए, तो बेशक आप मुझसे ये कंफर्म कर लेना कि मैं वहां किसके पहुंचने की उम्मीद कर रहा था।‘‘
‘‘मेरा अपना ख्याल है कि वहां महीप शाह पहुंचेगा, क्योंकि जब मैंने शिनाख्त के लिए सबको साथ लेकर वहां चलने की बात कही थी, तो इकलौता वही सख्स था, जिसे उस बात से सबसे ज्यादा असुविधा महसूस हुई थी। मगर मुझे इस बात पर जरा भी यकीन नहीं कि वो कातिल हो सकता है। केस में उसकी इंवॉल्वमेंट ना के बराबर दिखाई देती है। अब उसके नाम पर तू कुछ हां ना तो बोल के दिखा।‘‘
जवाब में मैंने एक कागज पर कातिल का नाम लिखा और उसे फोल्ड करके एसीपी को थमा दिया, ‘‘जनाब इस कागज पर कातिल का नाम लिखा हुआ है। उसकी गिरफ्तारी के बाद आप बेशक इसे खोलकर देख़ लीजिएगा कि मेरा अंदाजा दुरूस्त था या नहीं। और मैं कोई इकलौता सख्स नहीं हूं जो उसको पहचानता है। बल्कि चौहान को भी पहले से पता है कि वहां कौन पहुंचने वाला है। उसकी मदद के बिना तो मेरे लिए कातिल को खोज निकालना असंभव की हद तक कठिन काम था। लिहाजा कातिल की गिरफ्तारी तक सस्पेंस बरकरार रहने दीजिए। उससे पहले आप लोग जितनी अटकलें लगा सकते हैं, लगाकर देख लीजिए। मेरा दावा है कि कातिल की सूरत देखकर आप हैरत से उछल पड़ेंगे।‘‘
इसके बाद कोई कुछ नहीं बोला।
उस वक्त हम सूरज सिंह के जनरल स्टोर सेे करीब दो सौ मीटर की दूरी पर थे, जब अचानक ही वातावरण में गोली चलने की जोरदार आवाज गूंजी। मैंने हकबका कर पहले एसीपी और फिर खान की ओर देखा, जिसने ड्रायवर को तत्काल स्पीड बढ़ाने का आदेश दे दिया।
हवा की तरह स्कॉर्पियो सूरज सिंह की दुकान तक पहुंची। चौहान के इशारे पर ड्राइवर ने दुकान के आगे गाड़ी रोक दी। तत्काल हम सभी लगभग छलांग लगाने वाले अंदाज में स्कॉर्पियो से नीचे उतरे।
मगर दुकान के भीतर दाखिल होने की जरूरत नहीं पड़ी।
adeswal
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मुझे और चौहान को छोड़कर सब लोग भौंचक्के से उस शख्स की सूरत देखते रह गये जो दो पुलिसियों की गिरफ्त में फंसा बुरी तरह से छटपटा रहा था। मैंने एसीपी के साथ-साथ खान और तिवारी के चेहरों पर एक निगाह फिराई तो ये देखकर मुझे बहुत सकून हासिल हुआ कि सभी की स्थिति एक जैसी थी। सबके सब हैरान निगाहों से पुलिसवालों के बीच सैंडविच बने डॉक्टर खरवार को देखे जा रहे थे। उसका एक हाथ घायल था जिसमें से तेजी से खून बह रहा था।
पुलिसवालों के पीछे-पीछे सूरज सिंह बड़ी शान से चलता हुआ बाहर निकला और मेरे पास आकर खड़ा हो गया।
‘‘कैसा रहा?‘‘
‘‘एकदम कमाल का, तुमने एक ऐसे काम को अंजाम देकर दिखाया है जिसे तुम्हारी मदद के बिना नहीं किया जा सकता था। सच पूछो तो अगर तुम्हारा दखल नहीं होता, तो कातिल तक पहुंचना भी लगभग असंभव था।‘‘
सुनकर वो खुश हो गया।
‘‘खुशामदीद जनाब! - मैं आगे बढ़कर डॉक्टर उमेश खरवार से मुखातिब हुआ - मैं आपके आला दिमाग को सलाम करता हूं। बेशक आपने ना सिर्फ एक हैरान कर देने वाली खतरनाक साजिश रची, बल्कि उसपर पूरी तरह अमल करके दिखाया। इसमें कोई शक नहीं सबकुछ एकदम वैसा ही हुआ जैसा कि आप चाहते थे। मुझे ये स्वीकार करने में भी कोई झिझक नहीं कि आप ने जो चक्रव्यूह रचा था, उसे तोड़ पाना पुलिस के लिए भी असंभव जैसा साबित हो रहा था। फिर इस अदने से प्राईवेट डिटेक्टिव की तो बिसात ही क्या थी। मगर आप भूल गये कि जहां चक्रव्यूह होता है वहां एक अभिमन्यु भी होता है, जो कि आपके मामले में सूरज सिंह नाम का यह नौजवान साबित हुआ। जिसने आपको बजाय एक आम ग्राहक समझने के, आप के उस घड़ी के हाव-भाव पर बाकायदा रिसर्च कर डाला था। लिहाजा इसे ना सिर्फ आपका हुलिया और मोटरसाइकिल का नंबर याद रह गया। बल्कि इसकी निगाहों से आप की पतलून की बेल्ट में खुंसी हुई रिवाल्वर भी नहीं छिप सकी। नतीजतन आप इस घड़ी पुलिस की हिरासत में हैं और आगे आपका वही मुकाम बनने वाला है जो आप जैसे तमाम अपराधियों का होता है। तिहाड़ जेल में कटने वाली आपकी आगे की जिंदगी के लिए एडवांस में मुबारकबाद कबूल कीजिए।‘‘
जवाब में वो कसमसाया, पहलू बदला, कुछ कहने के लिए मुंह खोला फिर मुंह फेरकर खड़ा हो गया।
‘‘इसे गोली कैसे लगी।‘‘ मेरा भाषण खत्म होते ही खान ने अपने सहकर्मियों की ओर देखते हुए सवाल किया।
‘‘और कोई चारा नहीं था जनाब, ये हमारी चेतावनी के बावजूद लड़के पर फायर करने को आमादा था लिहाजा मैंने इसके हाथ का निशाना लेकर गोली चला दी।‘‘
‘‘गुड जॉब! अब इसकी मलहम पट्टी का इंतजाम करो, फिर थाने में इसकी खातिरदारी करते हैं, देखते हैं खुद सबकुछ बकता है या हमसे मेहनत कराके ही दम लेगा।‘‘
इसके बाद पुलिस पार्टी अपनी कार्रवाई में जुट गई।
अब मेरा वहां कोई काम नहीं था।
पुलिस अधिकारियों से विदा लेकर मैं अपने फ्लैट पर पहुंचा और लंबी तान कर सो गया।
आठ जून 2017
वो एक छोटी सी पार्टी थी, जो कातिल की गिरफ्तारी और अपनी जान जोखिम से निकलने की खुशी में मनोज गायकवाड़ द्वारा कालकाजी स्थित एक रेस्टोरेंट में रखी गई थी - लिहाजा जान बचने की खुशी में वो बीवी की मौत का गम भूल चुका था - आपके खादिम के अलावा जिन लोगों की उस पार्टी में शिरकत थी उनमें - शीला वर्मा, नीलम तंवर, मुकेश सैनी, महीप शाह, और नरेश चौहान के नाम शुमार थे।
उस घड़ी हमारे बीच ड्रिंक और डिनर का दौर चल रहा था, ये जुदा बात थी कि वहां मौजूद लेडीज ने ड्रिंक के नाम पर ऑरेंज जूश प्रेफर किया था। चर्चा का विषय - जैसा की होना ही था - डॉक्टर उमेश खरवार था। जिसके बारे में चौहान हमें बता चुका था कि डॉक्टर ने ना सिर्फ अपना जुर्म कबूल कर लिया था, बल्कि पुलिस उसके फ्लैट का सारा ताम-झाम अपने कब्जे में कर चुकी थी। अलबत्ता डॉक्टर ने ये सारे कत्ल क्यों किए थे, इस बात से पर्दा उठना अभी बाकी था। बतौर चौहान बीती रात उसके फ्लैट की तलाशी तथा उसे चिकित्सा उपलब्ध कराने में पुलिस का इतना वक्त जाया हो गया था कि उसका मुकम्मल बयान - जो कि डीसीपी की उपस्थिति में होना था - नहीं लिया जा सका था।
लिहाजा सभी ये जानने को उत्सुक थे कि बीते दिनों घटित हुई चारों हत्याओं के पीछे असल वजह क्या थी। ऐसी कौन सी बात थी जिसने एक क्वालीफाईड डॉक्टर को कत्ल जैसा संगीन जुर्म करने को मजबूर कर दिया था। उनकी उत्सुकता स्वाभाविक थी, क्योंकि ऐसी कोई बात अभी तक सामने नहीं आई थी जो हत्या की कोई संभावित वजह सुझा पाती।
मैंने सिगरेट का पैकेट निकालकर एक सिगरेट सुलगाया, फिर इत्मिनान से एक गहरा कस लेकर हवा में धुंए का छल्ला बनाता हुआ बोला, ‘‘जनाबे-हाजरीन! मेरा खुद का अंदाजा ये कहता है कि इस हत्याकांड के पीछे कभी कोई ठोस वजह थी ही नहीं। आगे आप खुद देखेंगे कि बतौर कातिल डॉक्टर खरवार भी कील ठोक कर कोई वजह बयान नहीं कर पायेगा। हकीकत तो ये थी कि वो सिर्फ मंदिरा चावला और मिसेज गायकवाड़ की हत्या करना चाहता था जिसका इल्जाम, वो चाहता था कि चौहान पर आए। मगर हालात ने कुछ यूं पलटा खाया कि आगे चलकर अंकुर रोहिल्ला और रंजना चावला की हत्या करना उसकी मजबूरी बन गयी।‘‘
‘‘खामखाह! - चौहान बड़ी अधीरता से बोला - मेरे से भला उसकी क्या दुश्मनी थी, जो यूं मुझे फ्रेम करने की कोशिश करता।‘‘
‘‘कोशिश नहीं चौहान साहब! उसने ऐसा करके दिखाया था। तुम्हारी जिंदगी का सकून छीन लिया था उसने। तुम्हारी पुलिस की नौकरी, तुम्हारी इज्जत! तुम्हारा कैरियर! अपनी तरफ से तो सबकुछ खत्म कर चुका था वो। मत भूलो कि तुम्हारा जेल जाना लगभग तय था। तुम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि उसने जमकर खाना खराब किया था तुम्हारा। साथ ही तुम्हें उसके आला दिमाग की तारीफ भी करनी पड़ेगी, उसने तुम्हें और गायकवाड़ साहब को जैसे चाहा वैसे नचाकर दिखाया। उसने चाल ही कुछ ऐसी चली थी कि अगर तुम किसी तरह बच भी जाते, तो गायकवाड़ साहब को जेल जाकर रहना था। मत भूलो कि हम खुद इनका तबोस्सुर कातिल के रूप में कर चुके थे, क्यों? क्योंकि डॉक्टर ऐसा चाहता था। वो शुरू से ही बतौर अल्टरनेट कातिल इनको साथ लेकर चल रहा था। ताकि किसी तरह से अगर तुम बच भी जाओ तो यूं कातिल की खाली हुई कुर्सी पर इन्हें बैठाया जा सके।‘‘
‘‘ठीक कहते हो तुम - गायकवाड़ बोला - खासतौर से मैं तुम्हारा ये एहसान जीवन भर नहीं भुला सकता कि तुमने मुझे निश्चित तौर पर जेल जाने से ना सिर्फ बचाया, बल्कि मेरी बात पर यकीन करके ये साबित करके दिखाया कि मैं बेकसूर हूं और असली कातिल कोई और है।‘‘
‘‘उस बात का तो सारा क्रेडिट चौहान को जाता है! चौहान के बिना वो सब कर पाना मेरे लिए मुमकिन नहीं था। जिस तरह एक छोटे से वफ्ते में इसने जानकारियां मुहैया करा के दिखाईं, वो सिर्फ एक पुलिस वाला ही कर सकता था, मुझ जैसे किसी पीडी के वश की बात तो हरगिज भी नहीं थी। सच पूछिये तो सूरज सिंह की बाबत - जिसका इस केस के अनावरण में बहुत बड़ा योगदान था - हमें सिर्फ इसलिए पता चल पाया, क्योंकि चौहान ने सरेआम कानून की धज्जियां उड़ाते हुए रजनीश अग्रवाल को उस वक्त अगवा कर लिया, जब वो घर से फरार हो रहा था। फिर मेरी रनिंग कार में इसने अग्रवाल को जो ट्रीटमेंट दिया - उस घड़ी इसका रौद्र रूप देखकर मेरा कलेजा कांप उठा था, एक बारगी तो मैं ये तक सोचने लगा था कि कहीं ये अग्रवाल को गोली ही ना मार दे - इसके दिये पुलिसिया ट्रीटमेंट ने ही अग्रवाल को मुंह खोलने पर मजबूर किया। वो काम भी किसी पीडी के वश का नहीं था। यकीन जानिये अगर उसने मुंह नहीं खोला होता, तो ना तो हम सूरज सिंह तक पहुंच पाते, ना वो लड़का हमें डॉक्टर के बारे में बता पाता, लिहाजा इस केस के क्लाइमैक्स का पूरा-पूरा क्रेडिट चौहान को जाता है।‘‘
‘‘तो समझो मैं तुम दोनों का दिल से शुक्रगुजार हूं। ये एक ऐसा उपकार है तुम दोनों का मुझपर, जिसका बदला मैं चाहकर भी नहीं चुका सकता।‘‘
‘‘चुका तो सकते हैं जनाब! एक रास्ता तो मैं आपको अभी सुझा सकता हूं।‘‘
‘‘प्लीज टैल मी!‘‘
‘‘आप चौहान को माफ कर सकते हैं।‘‘
‘‘किसलिए भई?‘‘
‘‘आपकी शरीकेहयात का - खुदा उन्हें जन्नतनशीं करें - जिस लड़के के साथ अफेयर था, वो कोई और नहीं बल्कि चौहान ही था।‘‘
उसने हैरानी से चौहान की ओर देखा! चौहान का सिर झुक गया। गायकवाड़ कुछ क्षण तक उसको देखता रहा फिर बोला, ‘‘क्या जरूरत थी बताने की, इस बाबत तुम खामोशी भी तो अख्तियार कर सकते थे।‘‘
‘‘कर सकता था, अभी तक किया भी था। मगर आगे ये ऐसा नहीं चाहता था! आपके द्वारा अपनी जमानत कराए जाने पर ये इतना द्रवित हो उठा था, कि उस रोज कोर्ट में ही आपको सारी सच्चाई बता देने पर अमादा था। तब बड़ी मुश्किल से नीलम ने इसे ऐसा करने से रोका था - वो बात सुनकर नीलम ने तत्काल खा जाने वाली निगाहों से मुझे घूरा, उससे बेहतर कौन जानता था कि वैसी कोई बात हमारे बीच कभी नहीं हुई थी। मगर साहबान मैं भी क्या करता! चौहान की तरफ से गायकवाड़ का दिल साफ होना जरूरी था। मैं नहीं चाहता था कि कल को गायकवाड़ अपनी मकतूला बीवी के आशिक का - जो कि चौहान था - कत्ल करने पर अमादा हो जाए। ऊपर से चौहान और सुनीता के अफेयर की बात सामने लाए बिना ये कहानी आगे नहीं बढ़ने वाली थी।‘‘
‘‘नेवर माइंड! - कुछ क्षण खामोश रहने के बाद गायकवाड़ बोला - जब अपना ही सिक्का खोटा था तो इसको क्या दोष देना। ये अकेले तो जिम्मेदार नहीं था उसके लिए! दोनों के बीच जिस तरह के ताल्लूकात थे उसके लिए सुनीता, बल्कि मैं खुद भी उतना ही जिम्मेदार था जितना कि चौहान। इसके बावजूद अगर माफी से इसके दिल को कोई चैन मिलता हो तो समझो मैंनेे इसे माफ कर दिया। तुम आगे बढ़ो और बेहिचक बताओ कि बात हत्या तक कैसे जा पहुंची।‘‘
‘‘हत्या की वजह जैसा कि मैं पहले ही बयान कर चुका हूं कोई कील ठोक कर बताने वाली वजह नहीं है। उसके पीछे डॉक्टर की गंदी मानसिकता थी, चौहान के प्रति उसकी कुढ़न थी, जो धीरे-धीरे इतना विकराल रूप लेती चली गई कि डॉक्टर इससे खुंदक खाने लगा। दरअसल वो आपकी पत्नी पर बुरी तरह से आशक्त था, जबकि मकतूला उसकी तरफ जरा भी ध्यान नहीं देती थी। ये बात वो खुद मेरे सामने स्वीकार कर चुका है। चौहान और मकतूला के संबंधों के बारे में वो जब भी सोचता उसके सीने पर सांप लोटने लगते थे। वो हर वक्त ये सोचकर कुढ़ता रहता था कि मकतूला के संबंध चौहान के साथ थे, उसके साथ क्यों नहीं! धीरे-धीरे उसके दिमाग में ये बात गहरी पैठती चली गई कि चौहान के रहते हुए वो मकतूला की नजदीकियां हासिल नहीं कर सकता। इसी दौरान एक रोज चौहान से मिलने मंदिरा चावला इसके फ्लैट पर आई। निश्चय ही उस रोज वो काफी देर तक इसके फ्लैट में रही होगी, तभी....।‘‘
‘‘दो घंटे - चौहान मेरी बात काट कर बोला - उस रोज वो तकरीबन दो घंटे मेरे फ्लैट पर रही थी। फिर जब मैं उसे छोड़ने के लिए बाहर निकला तो देखा कि डॉक्टर अपने दरवाजे पर खड़ा हमें ही घूर रहा था।‘‘
adeswal
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Re: Thriller गहरी साजिश

Post by adeswal »

‘‘लिहाजा उसका लंबे समय तक चौहान के फ्लैट में बने रहने का मतलब डॉक्टर ने ये लगाया कि हो ना हो इसका मंदिरा चावला से भी अफेयर था। लिहाजा पहले से कुढ़ता डॉक्टर और ज्यादा जल-भुन गया। गुजरते वक्त के साथ वो चौहान को मन ही मन अपना दुश्मन मानने लगा। फिर एक वक्त वो भी आया जब वो चौहान को अपने रास्ते से हटाने योजनायें बनाने में जुट गया।‘‘
मैंने सिगरेट का आखिरी कस लेकर उसे एक्स्ट्रे में मसल दिया। फिर अपनी बात आगे बढ़ाते हुए बोला, ‘‘बात इतनी भी होती तो शायद ये मामला मंदिरा की हत्या से आगे नहीं बढ़ता। मगर आगे चल कर एक ऐसी मुख्तर सी घटना घटित हुई जिसने एक ही झटके में डॉक्टर के मन में मिसेज गायकवाड़ के लिए नफरत सी पैदा कर दी। उस रोज हुआ ये था कि मकतूला ने किसी बात पर डॉक्टर को ‘भइया‘ कहकर पुकार लिया, अपने लिए मकतूला के मुंह से ‘भइया‘ का संबोधन सुनकर उसका खून खौल उठा। यकीन जानिए वो इकलौता शब्द ही आपकी बीवी के कत्ल की वजह बना था। डॉक्टर ने उसी वक्त ‘तू मेरी नहीं तो किसी की नहीं‘ वाले तर्ज पर आर-पार वाला फैसला कर डाला।‘‘
‘‘तुम्हे कैसे मालूम?‘‘ चौहान पूछे बिना नहीं रह सका।
‘‘डॉक्टर की जुबानी ही मालूम हुआ था भई और कैसे मालूम होता।‘‘
‘‘ओह! आगे बढ़ो।‘‘
‘‘एक बार जब डॉक्टर ने मकतूला को रास्ते से हटाने का फैसला कर लिया तो वो अपने फैसले को अंजाम तक पहुंचाने की उधेड़ बुन में लग गया। वो मिसेज गायकवाड़ की हत्या तो करना चाहता था, मगर साथ ही वो ये भी चाहता था कि उसके कत्ल का इल्जाम चौहान के सिर आए ताकि उसका बदला पूरा हो सके। हकीकतन वो चौहान को तड़पता हुआ, मिमियाता हुआ देखना चाहता था। इसकी जिंदगी बद् से बद्तर कर देना चाहता था। उसपर मकतूला की हत्या का जुनून उतना हावी नहीं था जितना कि चौहान को बरबाद कर देने का जुनून उसपर सवार था। यही वजह थी कि उसने अपनी हिट लिस्ट में एक नाम और जोड़ लिया, मंदिरा चावला का नाम! वरना तो उसकी मंदिरा से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष कोई अदावत नहीं थी। वो तो उसे जानता तक नहीं था। इस तरह जब उसकी हिट लिस्ट पूरी हो गयी तो उसने एक साजिश रची, एक ऐसी खतरनाक साजिश जिसके बारे में हमारे लिए सोच पाना भी मुमकिन नहीं था।‘‘
‘‘अपनी योजना के जेरेसाया सबसे पहले उसने खुद को महफूज रखने का इंतजाम करना था। जिसके तहत उसे दरकरार थी एक बलि के बकरे की, जो कि गायकवाड़ साहब बने। आपको उसने अपने जाल में कैसे फंसाया ये आप जानते ही हैं। धीरे-धीरे उसने आपको एक ऐसी कहानी परोसी जिसमें आपकी पत्नी के अफेयर वाली बात को छोड़कर और कोई सच्चाई नहीं थी। वो आपके आगे चारा डालता गया और आप उसे निगलते चले गये। आप खुद ये बात स्वीकार करते हैं कि आपको उसपर कभी शक नहीं हुआ।‘‘
‘‘ठीक कहते हो तुम।‘‘
‘‘ऐसा भी क्या किया था उसने?‘‘ नीलम बोली।
जवाब में मैंने सबको डॉक्टर द्वारा गायकवाड़ को दुबई में की जाने वाली फोनकाल्स के बारे में बताया।
‘‘इसके बाद - मैं आगे बोला - उसने आपको किस तरह दिल्ली आने को मजबूर कर दिया ये भी आप जानते हैं। उसका इरादा मंदिरा और आपकी वाईफ का कत्ल करके उसमें चौहान को फंसाना था। मगर वो एक अल्टरनेट कातिल साथ लेकर चलना चाहता था। ताकि बाद में अगर किसी तरह चौहान बेगुनाह साबित हो जाय, तो सारा किया धरा वो आप पर थोप सके। यही वजह थी कि उसने दिल्ली पहुंचने के बाद आपको एक तयशुदा वक्त से पहले फ्लैट पर पहुंचने से रोक दिया। इसके लिए उसने आपके आगे ये चारा डाला कि अगर आप ठीक छह बजे अपने फ्लैट पर पहुंचेंगे तो आप अपनी पत्नी को उसके यार के साथ रंगे हाथों दबोच सकते हैं।‘‘
‘‘मान लो बावजूद उसकी तमाम बातों के मैं उसकी ये बात नहीं मानता तो वो क्या करता?‘‘
‘‘ना मानने का तो सवाल ही नहीं था, आपकी जगह कोई भी होता यही करता। इसके बावजूद अगर आप वहां अपनी बीवी की हत्या होने से पहले पहुंच जाते तो वो बाद में किसी बहाने से आपको घर से बाहर निकालता। फिर आपके पीठ पीछे उस काम को अंजाम देता जो आपके वक्त से पहले वहां पहुंचने की वजह से अधूरा रह गया होता। कहने का तात्पर्य ये है कि उस रोज उसने आपकी बीवी और मंदिरा की हत्या तो करनी ही करनी थी और उन दोनों की हत्या के इल्जाम में चौहान को फंसाकर रहना था।‘‘
‘‘एक बात शायद तुम भूल रहे हो - चौहान बोला - वो मुझे हत्या की वारदात में इसलिए लपेटने में कामयाब हो गया क्योंकि मंदिरा ने मेरी विस्की में कोई नशीली चीज मिला दी थी, जिससे मैं अपनी सुध-बुध खो बैठा था। अगर मैं होशो हवास में होता तो उसकी मजाल नहीं होती मेरे पास फटकने की।‘‘
‘‘लगता है चंद दिनों की फजीहत ने तुम्हारे दिमाग को जंग लगा दिया है, जो इतनी सी बात तुम्हें समझ में नहीं आती कि वो नशीली चीज डॉक्टर और मंदिरा की मिली भगत से तुम्हारी विस्की में मिलाई गयी थी।‘‘
‘‘अब तुम कुछ ज्यादा ही लंबी-लंबी हांकने लगे हो, भला उसकी और मंदिरा की जुगलबंदी क्योंकर मुमकिन हो सकती थी।‘‘
‘‘इसका बेहतर जवाब तो तुम्हे डॉक्टर ही दे सकता है, मैं तो बस अपना अंदाजा बयान कर सकता हूं कि वास्तव में क्या हुआ होगा।‘‘
‘‘वही करो।‘‘
‘‘डॉक्टर तुम्हारी गैर हाजिरी में किसी रोज तुम्हारे फ्लैट में घुसा था। उसने किस फिराक में ऐसा किया मैं नहीं जानता! मगर वो घुसा जरूर था। क्योंकि ऐसा किये बिना उसकी पहुंच मंदिरा के इकबालिया बयान तक नहीं हो सकती थी, जिसकी फोटो कॉपी कल उसके फ्लैट से बरामद हुई थी।‘‘
‘‘वो उसने मंदिरा के कत्ल के बाद हथियाई हो सकती है।‘‘
‘‘तुमने उस कॉपी को गौर से नहीं देखा वरना झट समझ जाते कि ऐसा हुआ नहीं हो सकता।‘‘
‘‘ऐसी क्या खास बात थी उसमें?‘‘
‘‘वो कॉपी किसी जेरॉक्स मशीन से नहीं कराई गयी थी, बल्कि उसे तुम्हारे पलंग पर बिछी बेडशीट के ऊपर रखकर, उसका किसी मोबाइल या कैमरे से फोटो लिया गया था। जिसकी वजह से उसके बैकग्राउंड में तुम्हारे पलंग पर बिछी बेडशीट साफ दिखाई दे रही थी। ऐसा उसने तुम्हारी गैरहाजिरी में तुम्हारे फ्लैट में घुसकर नहीं किया तो तुम बताओ कि कब किया।‘‘
‘‘चलो मान ली तुम्हारी बात, कि किसी भी तरीके से वो मेरे फ्लैट में घुसा था, जहां वो मंदिरा के इकबालिया बयान की फोटो लेने में कामयाब हो गया, मगर इसका मंदिरा और उसकी जुगलबंदी से क्या ताल्लूक था।‘‘
‘‘ताल्लूक था! उस बयान को पढ़ने के बाद डॉक्टर ने उसे नजरअंदाज नहीं कर दिया। बल्कि किसी तरह उसने घटना के बारे में पूरी जानकारी हांसिल की और यूं जो बात सामने आई उससे डॉक्टर को समझते देर नहीं लगी कि असल में क्या हुआ था। फिर वो मंदिरा के पीछे पड़ा और किसी तरह उसे अपने झांसे में फांसने में कामयाब हो गया। इसके बाद उसने मंदिरा को सुझाया होगा कि अगर किसी तरह वो तुमसे अपना इकबालिया बयान हांसिल करने में कामयाब हो जाय तो उसकी जान सासत से निकल सकती थी। हो सकता है उसने मंदिरा की कोई मदद करने का आश्वासन भी दिया हो। बल्कि कोई बड़ी बात नहीं होगी अगर बेहोशी वाली दवा भी उसी ने मंदिरा को मुहैया कराई हो। मत भूलो कि वो एक क्वालीफाइड डॉक्टर था जिसकी ऐसी चीजों तक पहुंच आम बात थी।‘‘
जवाब में वहां मौजूद सभी लोगों के सिर एक साथ सहमति में हिले।
‘‘आगे सीन कुछ यूं बनता है कि एक जून को डॉक्टर ने मंदिरा चावला को फोन करके बताया कि चौहान का उस रोज वीकली ऑफ है, इसलिए वो अपने काम को अंजाम दे सकती थी। डॉक्टर की बात पर अमल करते हुए मंदिरा तुम्हें फोन करके तुम्हारे फ्लैट तक पहुंची। जहां उसने जानबूझकर बातचीत का रूख इस तरह मोड़ा की तुम उसे ड्रिंक ऑफर किये बिना नहीं रह सके। तुम बोलो ऐसी कोई बात हुई थी तुम दोनों के बीच।‘‘
‘‘हुई तो थी - चौहान याद करता हुआ बोला - मेरे खयाल से उसने मुझसे कहा था, कि उस रोज वो बहुत डिस्टर्ब थी, इतना ज्यादा कि उसका दिन में ही ड्रिंक करने का दिल हो रहा था। और अपने घर पहुंचकर सबसे पहला काम वो यही करने वाली थी। जवाब में मैंने उससे कहा था कि ड्रिंक का इंतजाम तो अभी भी हो सकता था।‘‘
‘‘सो देयर!‘‘
‘‘ठीक है भई, ज्यादा फूंक मत लो आगे बढ़ो।‘‘
‘‘मंदिरा ने हामी भर दी तो तुमने दो पैग बनाकर एक उसे थमा दिया। ड्रिंक के दौरान मंदिरा ने तुम्हें सुझाया कि किचन से पानी गिरने की आवाज आ रही है, शायद सिंक की टूटी खुली रह गयी है। तब तुम उठकर किचन में चले गये जहां तुम्हे सिंक की टूटी बंद मिली, आगे तुमने बाथरूम भी चैक किया फिर वापिस बेडरूम में लौटे। तब तक मंदिरा तुम्हारे पैग में डॉक्टर द्वारा मुहैया कराया गया कोई नशीला पाउडर मिला चुकी थी। बेडरूम में पहुंचकर तुमने अपना जाम चुसकना शुरू किया तो तुमपर बेहोशी तारी होने लगी, जिसे तुमने विस्की का असर समझकर इग्नोर कर दिया। मगर वो असर इतना तेज था कि जल्दी ही तुम बेहोश होकर बेड पर गिर गये। तब मंदिरा ने तुम्हे हिला-डुलाकर देखा होगा, जवाब में तुम्हेे दीन दुनिया से बेखबर पाकर वो अपना इकबालिया बयान तलाश करने लगी, जो कि दीवार में लगी बुकसेल्फ से सहज ही उसे मिल गया।‘‘
‘‘फिर क्या हुआ?‘‘
‘‘होना क्या था, उसका मतलब तो हल हो चुका था। लिहाजा वो वहां से बाहर निकल कर अपने घर की राह हो ली। मेरा अपना खयाल ये है कि उसने रास्ते से ही मुझे फोन करके पांच और छह के बीच मिलने आने को कहा। वो शायद मुझसे उस बयान की बाबत ही कुछ डिसकस करना चाहती थी। हो सकता है उसका इरादा तुम्हारे खिलाफ कोई रिपोर्ट वगैरह लिखवाने का रहा हो, जिसके बारे में वो मेरी राय जानना चाहती हो। बहरहाल ये सिर्फ मेरा खयाल है हकीकत कुछ और भी रही हो सकती है।‘‘
‘‘मंदिरा के जाते ही डॉक्टर, चौहान के फ्लैट में पहंुचा, जहां से उसने चौहान की एक वर्दी और जूते हासिल किये। इसके बाद वो मंदिरा को फोन करके या बिना फोन किए उसके फ्लैट पर जा धमका। इत्तेफाकन यही वो वक्त था जब अंकुर रोहिल्ला मंदिरा के फ्लैट से बाहर निकल रहा था। लिहाजा दोनों का आमना-सामना होकर रहा। इसमें अहम बात ये रही कि डॉक्टर, अंकुर रोहिल्ला को बतौर टीवी स्टार झट से पहचान गया जबकि अंकुर रोहिल्ला के लिए वो काला चोर था। बहरहाल डॉक्टर भीतर पहुंचा तो मंदिरा ने उसे अपनी स्टडी में रिसीव किया। ये बात भी इशारा करती है कि दोनों एक दूसरे को पहले से जानते थे।
‘‘एक मिनट जरा रूको प्लीज - अंकुर रोहिल्ला का मैनेजर महीप शाह बीच में बोल पड़ा - अगर अंकुर बाबा ने उसे मंदिरा चावला के फ्लैट में दाखिल होते देख लिया था, तो डॉक्टर ने कत्ल के अपने प्लान को मुल्तवी क्यों नहीं कर दिया।‘‘
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