Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller गहरी साजिश

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बारह बजे के करीब हम नीलम के ऑफिस पहुंचे, जहां से फारिग होने में पूरा एक घंटा सर्फ हो गया। वहां से हम दोनों थाने पहुंचे। तिवारी के बारे में पता करने पर मालूम हुआ कि वो कोर्ट गया हुआ है। चौहान को बाहर छोड़कर मैं एसएचओ के कमरे में पहुंचा। उस वक्त वो मेज पर झुका कुछ लिखने में व्यस्त था। मुझे देखकर उसने सिर उठाया और बोला, ‘‘बहुत व्यस्त हूं भई, कोई जानकारी चाहते हो तो तिवारी से मिल लो।‘‘
‘‘तिवारी साहब कोर्ट गये हैं जनाब! और फिलहाल बंदा कोई जानकारी नहीं चाहता बल्कि आपकी दयादृष्टि का मोहताज है।‘‘
‘‘कितना घुमा-फिराकर बातें करते हो यार! खैर बताओ क्या चाहते हो?‘‘
‘‘अपने मुजरिम से एक मुख्तर सी मुलाकात का इंतजाम करवा दीजिए प्लीज।‘‘
‘‘सुबह मिले तो थे, ख्वाहिश पूरी नहीं हुई।‘‘
‘‘क्या करूं जनाब जब तक मैं किसी काम को रिपीट नहीं कर लेता मेरी ख्वाहिश पूरी नहीं होती। बहुत परेशान हूं इस लत से, कम्बख्त छूटती ही नहीं।‘‘
जवाब में खान ने घूरकर मुझे देखा फिर मेज पर रखी घंटी पर हाथ मारा। तत्काल एक सिपाही वहां हाजिर हुआ, ‘‘साहब को ले जाकर गायकवाड़ के साथ बंद कर दो, आगे जब ये फारिग हो जाएं तो इन्हें बाहर का रास्ता दिखा देना।‘‘
मैं सिपाही के साथ हो लिया।
गायकवाड़ को मैंने ऐन सुबह वाली हालत में वहां बैठा पाया। मुझे देखकर उसने सिर उठाया फिर बोला, ‘‘मैं तो तुम्हारे आने की उम्मीद ही छोड़ बैठा था।‘‘
‘‘जनाब उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ना चाहिए, उम्मीद है तो आदमी है वरना सब खाक समझिये।‘‘
‘‘ठीक कहते हो बैठो।‘‘
मैं सुबह वाला स्टूल खींचकर उसके सामने बैठ गया। फिर सिगरेट का पैकेट निकाल कर उसे ऑफर करने के बाद लाइटर निकालकर दोनों सिगरेट बारी-बारी से सुलगा दिए।
‘‘अब बताइए क्या कहना चाहते थे सुबह।‘‘
‘‘लिहाजा अब सुने जाने का कोई खतरा नहीं।‘‘
‘‘उम्मीद तो नहीं है, क्योंकि मैं एकदम अचानक यहां आया हूं इसलिए ऐसा कोई इंतजाम उनके लिए मुमकिन नहीं था। बशर्ते कि हवालात में ही कोई माइक्रोफोन ना फिट कर दिया हो।‘‘
‘‘कल रात के बाद से तो ऐसा कुछ होते मैंने नहीं देखा, शुरू से ही रहा हो तो नहीं कह सकता।‘‘
‘‘फिर तो बेफिक्र हो जाइए, क्योंकि शुरू से अगर ऐसा कोई इंतजाम यहां होता तो तिवारी को अलग से मेरी पीठ पर माइक्रोफोन चिपकाने की जरूरत नहीं पड़ी होती! अब बताइए क्या कहना चाहते हैं।‘‘
‘‘पिछले कुछ दिनों से कोई मुझे लगातार कॉल कर रहा था। वो सिलसिला दस मई के बाद शुरू हुआ था। नंबर हर बार नया होता था, मगर काल करने वाला वही होता था। पहली बार फोन पर उसनेे मुझे बताया था कि मेरी बीवी का किसी युवक के साथ अफेयर था। फिर उसने मुझे कुछ ऐसी तस्वीरें भेजीं जिसमें सुनीता की कमर में हाथ डाले कोई युवक खड़ा था। वो तस्वीरें हालांकि पीछे से ली गईं थीं, मगर मैं सुनीता को झट पहचान गया।‘‘
‘‘जनाब आपने मुझे कोई कहानी तो नहीं सुना रहे।‘‘
‘‘नहीं!‘‘
‘‘ठीक है आगे बढ़िये।‘‘
‘‘उसके बाद उसकी कॉल अक्सर आने लगी। वो मुझे बताता कि आज मेरी बीवी उस युवक के साथ फलाना जगह गई थी, आज उन दोनों ने फलाना होटल में रात गुजारी थी, वगैरह-वगैरह। अपनी बातों को प्रूव करने के लिए उसने किसी होटल में खड़ी सुनीता की फोटो भी मुझे भेजीं। फिर एक रोज उसने मुझे बताया कि सुनीता उस युवक पर शादी के लिए दबाव डाल रही है मगर युवक उससे शादी करने को तैयार नहीं था लिहाजा आजकल उनमें तू-तू मैं-मैं होने लगी है। तब मैंने सोचा चलो अच्छा है मुसीबत खुद बा खुद ही दूर हो जायेगी।‘‘
कहकर उसने खामोशी से सिगरेट का एक गहरा कश लिया।
‘‘फिर क्या हुआ! - मैं उत्सुक स्वर में बोला - क्या उन दोनों का ब्रेकअप हो गया।‘‘
‘‘नहीं, उसके कुछ दिनों बाद उस अंजान फोनकर्ता ने मुझे बताया कि सुनीता ने अपने प्रेमी को धमकी दी है कि अगर उसने शादी में आनाकानी की तो वो उसपर बलात्कार का मुकदमा दायर कर देगी। अब तक मैं उस अंजान फोनकर्ता की बातों पर पूरी तरह यकीन करने लगा था। वैसे भी काफी दिनों से मुझे अपनी बीवी का व्यवहार बदला-बदला सा लगने लगा था। मैं जब भी फोन करता वो कोई ना कोई बहाना बनाकर फोन काट देती थी। ऊपर से मेरी लाख कोशिशों के बावजूद वो दुबई आने को तैयार नहीं हो रही थी।‘‘
‘‘जनाब आपके ही बताये मुझे मालूम हुआ था कि आपकी बीवी को ऊंचाई से डर लगता था।‘‘
‘‘उस वक्त वो बात मैंने यूंही कह दी थी, ये साबित करने के लिए कि क्यों वो दुबई नहीं आना चाहती थी।‘‘
‘‘ठीक है आगे बढ़िये, फिर क्या हुआ।‘‘
‘‘तीस मई को उस अंजान व्यक्ति का फिर से फोन आया, उसने मुझसे कहा कि वो युवक सुनीता की हत्या की प्लानिंग कर रहा है।‘‘
मैंने हैरानी से गायकवाड़ को देखा।
‘‘मैं सच कह रहा हूं यकीन करो मेरा।‘‘
‘‘वजह क्या बताई उसने।‘‘
‘‘यही कि वो लड़का किसी भी कीमत पर एक शादीशुदा औरत से शादी नहीं करना चाहता, इसलिए उससे हमेशा के लिए पीछा छुड़ाने पर उतारू था। सुनकर मेरे होश उड़ गये। आगे उसने सलाह दी कि मुझे फौरन दिल्ली पहुंचकर अपनी पत्नी की जान बचाने की कोशिश करनी चाहिए। उसकी बात मानकर मैंने आनन-फानन में छुट्टी की अर्जी लगाई जो कि मेरा पिछला रिकार्ड देखते हुए फौरन मंजूर हो गई। फिर मैंने बहुत हैवी प्राइस चुकाकर अपने लिए दुबई से दिल्ली का एक टिकट हासिल किया। उस रोज उसका कई बार फोन आया लिहाजा मैंने उसे बता दिया कि मेरी छुट्टी मंजूर हो गई थी, साथ ही मैंने उसे अपनी फ्लाईट का शेड्युल भी बता दिया। इस तरह अगले रोज एक जून को दोपहर दो बजे के करीब मैं दिल्ली पहुंच गया।‘‘
‘‘इस बाबत आपको अपनी बीवी से दरयाफ्त करना नहीं सूझा?‘‘
‘‘सूझा था, सूझना ही था। मगर मैं जानता था कि उस बाबत वो कुछ बक के नहीं देने वाली थी। भला कौन ऐसी औरत होगी जो अपने पति के सामने गैरमर्द से अपनी आशनाई को स्वीकार करेगी। लिहाजा उस बाबत उससे कुछ पूछने का अपना इरादा मैंने बदल दिया।‘‘
‘‘ओके, तो आप दिल्ली पहुंच गये। आगे क्या हुआ?‘‘
‘‘उसका फिर फोन आया, तब मैंने उसे बता दिया कि मैं दिल्ली आ चुका था। जवाब में उसने कहा कि अगर मैं अपनी बीवी को उसके प्रेमी के साथ रंगे हाथों पकड़ना चाहता हूं तो ठीक छह बजे अपने फ्लैट पर पहुंचूं। मैंने उसकी बात मान ली और एयरपोर्ट पर बैठकर ही वक्तगुजारी करने लगा।‘‘
‘‘यूं आप एयरपोर्ट पर कितने घंटे बैठे रहे।‘‘
adeswal
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‘‘भई मैं चार बजे वहां से अपने घर के लिए रवाना हुआ था, लिहाजा दो घंटे मैंने एयरपोर्ट पर बैठकर गुजारे थे। जिसके बाद मैं एयरपोर्ट से बाहर निकला और कैब बुक करके घर के लिए रवाना हो गया। जब मैं कालकाजी पहुंचा तो पाया कि अभी सिर्फ पांच बजे थे। तब मैंने अपने फ्लैट से कुछ दूरी पर एक रेस्टोरेंट के सामने टैक्सी रूकवाई और अगला पौना घंटा मैंने वहां बैठकर गुजारा। इसके बाद मैं बाहर निकला और पैदल ही अपने फ्लैट वाली इमारत तक पहुंचा। वहां पहुंचकर मैंने फिर घड़ी देखी तो पाया कि ऐन छह बजे थे। मैं सीढ़ियां चढ़कर अपने फ्लैट तक पहुंचा तो मुझे दरवाजा चौखट से लगा हुआ नहीं जान पड़ा। मैं बिना कोई आवाज किए दरवाजा धकेलता हुआ भीतर दाखिल हुआ और थमककर खड़ा हो गया। सामने सुनीता की रक्तरंजित लाश पड़ी थी। यूं लगता था जैसे ढेर सारे गिद्धों ने मिलकर एक साथ उसे नोंच खाया हो। खड़े-खड़े मुझे चक्कर सा आने लगा पर मैंने जैसे-तैसे करके खुद को संभाला और दरवाजा भीतर से बंद करके उससे पीठ सटाकर फर्श पर बैठ गया। ठीक तभी उसका फोन आया। उसने मुझसे पूछा कि मैं दोनों को रंगे हाथों पकड़ने में कामयाब हुआ या नहीं, जवाब में मैंने उसे सुनीता के कत्ल की बात बता दी। सुनकर उसने दुःख प्रगट किया और बोला, ‘आखिरकार उसके प्रेमी ने उसकी जान ले ही ली।‘ जवाब में मेरे मुंह से एक शब्द तक नहीं निकला। तब उसी ने मुझे राय दी कि यूं सुनीता की लाश के साथ मेरा देखा जाना ठीक नहीं होगा, पुलिस मुझपर ही शक करने लगेगी। इसलिए जितना जल्दी हो सके मैं अपने फ्लैट से दफा हो जाऊं।‘‘
‘‘सूटकेस पलंग के बॉक्स में रखने की सलाह भी उसी ने दी थी।‘‘
‘‘हां उसी ने दी थी। ये कहते हुए कि अगर मैं सामान के साथ बाहर निकला तो किसी की नजर मुझपर पड़कर रहनी थी। इसलिए मैं सारा सामान फ्लैट में ही कहीं छिपा दूं। और अपनी जरूरत की चीजें बाहर से परचेज कर लूं।‘‘
‘‘फिर क्या किया आपने?‘‘
‘‘हालात को देखते हुए मुझे उसकी बात एकदम जायज लगी। मैंने उसकी बात पर अमल करते हुए सूटकेस को बेडरूम में रखे पलंग के हवाले किया और खाली हाथ, लोगों की निगाहों से बचता हुआ बिल्डिंग से भाग खड़ा हुआ और होटल में जाकर शरण ली।‘‘
‘‘फिर क्या हुआ, क्या उसकी दोबारा काल आई।‘‘
‘‘हां आई, उसने मुझसे कहा कि वो मुझे पुलिस के लफड़े से बचाने की पूरी कोशिश करेगा जिसकी शुरूआत वो कर भी चुका था। उसने मुझे ये भी बताया कि ऐन सुनीता की तरह ही कातिल ने एक और लड़की को कत्ल कर दिया है। जिसका मंगेतर एक पुलिस वाला है जो कि मेरा नेक्स्ट डोर नेबर है। उसने मुझसे कहा कि फिलहाल वो कुछ ऐसे क्लू छोड़ने वाला है जिससे पुलिस का ध्यान उसके मंगेतर की ओर चला जायेगा और मंगेतर क्योंकि पुलिसवाला है इसलिए पुलिस उसे बचाने की पूरी कोशिश करेगी, लिहाजा मेरी तरफ किसी का ध्यान नहीं जायेगा। बस मुझे कोई ऐसा इंतजाम करना था कि पुलिस अगर मेरे मेरे मोबाइल की बजाय मेरे ऑफिस में फोन करे तो वो कॉल फौरन मेरे मोबाइल पर ट्रांसफर कर दी जाय। फिर अगले रोज मैं यूं जाहिर करूं जैसे पुलिस द्वारा सुनीता की हत्या की खबर मिलने के बाद ही मैं दुबई से दिल्ली आया था।‘‘
‘‘और फिर आपने ऑफिस में ऐसा कोई इंतजाम कर छोड़ा।‘‘
‘‘वो बहुत आसान काम था, मैंने स्विच बोर्ड ऑपरेटर को फोन करके बोल दिया कि अगर कोई मुझे पूछे तो बजाय ये कहने के की मैं इंडिया में था! वो चुपचाप वो कॉल मेरे मोबाइल नंबर पर ट्रांसफर कर दे। लिहाजा पुलिस ने जब मुझे दुबई कॉल किया तो वो कॉल मेरे मोबाइल पर ट्रांसफर कर दी गयी और इस तरह ये भ्रम बना रहा कि सुनीता के कत्ल वाले दिन मैं दुबई में था।‘‘
‘‘जनाब मैं ये सोचकर हैरान हूं कि आज के जमाने में कोई पढ़ा-लिखा आदमी भी इतना बड़ा बेवकूफ हो सकता है। जानते हैं अगर उसी रोज आपने सबकुछ सच-सच पुलिस को बता दिया होता तो आज ऐसा बखेड़ा नहीं खड़ा होता और आपकी यूं दुर्गति नहीं हो रही होती।‘‘
‘‘मैं अब बताये देता हूं।‘‘
‘‘अब कोई आपकी बात पर यकीन नहीं करने वाला, सच पूछिये तो मुझे तो यूं लग रहा है जैसे आप किसी सस्पेंस फिल्म की स्क्रिप्ट पढ़कर सुना रहे हैं। खैर आगे बढ़िये फिर क्या हुआ?‘‘
‘‘उसके बाद कल दिन में उस अंजान व्यक्ति ने फिर मुझे कॉल किया और बोला कि उसने सब ठीक कर दिया है अब पुलिस का ध्यान मेरी तरफ बिल्कुल नहीं जाने वाला था। साथ ही उसने बताया कि सुनीता के कातिल ने अंकुर रोहिल्ला नाम के एक टीवी स्टार का भी कत्ल कर दिया है। हो सकता है वो मेरे कत्ल की भी कोशिश करे इसलिए मुझे उससे सावधान रहना चाहिए। फिर उसने मुझसे पूछा कि क्या मेरे पास कोई हथियार है, मेरा मना करने पर उसने कहा कि मुझे फौरन कहीं से एक रिवाल्वर का इंतजाम करना चाहिए। जवाब में मैंने उसे बताया कि मैं इस शहर में बिल्कुल अंजान हूं भला रिवाल्वर का इंतजाम कैसे कर सकता हूं। सुनकर वो थोड़ी देर के लिए खामोश हो गया फिर उसने मुझे एक नंबर नोट करवाया और कहा कि वहां से मेरी हथियार की जरूरत पूरी हो सकती थी। इसके बाद मैं रजनीश अग्रवाल नाम के एक लड़के से मिला और उसके जरिए तेखंड गांव से एक लाख रूपयों में एक रिवाल्वर हांसिल करके अपने फ्लैट पर वापिस लौट गया। आगे क्या हुआ वो तुम्हें पता ही है।‘‘
‘‘नहीं पता, जैसे कि मुझे ये नहीं पता कि कल शाम आप अपने फ्लैट पर वापिस लौटने के बाद कहां गये थे।‘‘
‘‘कहीं नहीं गया था! सच पूछो तो वहां पहुंचने के बाद मैंने रिवाल्वर को गद्दे के नीचे छिपाया और ड्रिंक करने बैठ गया, दिन भर की भागदौड़ से मैं इतना थक गया था कि जल्दी ही मुझे ऊंघ आने लगी और मैं गहरी नींद के हवाले हो गया। जिसके बाद पुलिस ने वहां पहुंचकर मुझे सोते से जगाया था।‘‘
‘‘और कुछ जो आप बताना चाहें।‘‘
‘‘नहीं मेरे साथ जो कुछ भी घटित हुआ था वो सब मैंने तुम्हें कह सुनाया। अब तुम खुद फैसला करो कि मेरी बात में कोई सच्चाई है या नहीं।‘‘
‘‘जनाब सवाल मेरे फैसला करने का नहीं है बल्कि कानून की निगाहों में आपको बेकसूर साबित करने का है। जो कि मुझे दूर दूर तक होता नहीं नजर आ रहा। आप अगर चार की बजाय पांच बजे एयरपोर्ट से निकले होते तो वहां की सीसीटीवी फुटेज देखने के बाद यह माना जा सकता था, कि आपके पास इतना वक्त नहीं था कि आप मंदिरा और अपनी बीवी दोनों को मौत के घाट उतार पाते। मगर आप तो अपनी बीवी के कत्ल से करीब घंटा भर पहले से उस इलाके में मौजूद थे। उस दौरान मंदिरा का कत्ल करके आप बड़े आराम से वापिस लौटकर अपनी बीवी को मौत के घाट उतार सकते थे।‘‘
‘‘वो एक घंटा मैंने रेस्टोरेंट में गुजारे थे, जहां कोई इस बात का गवाह बन सकता है। बाहरी ना सही मगर वहां के स्टाफ ने तो मुझे वहां लंबे समय तक बैठे देखा ही था।‘‘
‘‘उससे कोई फर्क नहीं पड़ता और यूं अगर कोई ये कहने वाला निकल भी आया कि आप वहां लंबे समय तक बैठे रहे थे, तो ये बात कोई कील ठोक कर नहीं कहने वाला कि वो लंबा अरसा पौना घंटा का था। उसके बावजूद अगर कोई हरिश्चंद का खानदानी निकल भी आया तो पुलिस को दो मिनट लगेंगे उसके बयान को तोड़ने-मड़ोड़ने में। लिहाजा अभी पुलिस के सामने उस रेस्टोरेंट का जिक्र हरगिज भी नहीं आना चाहिये, इसी में आपकी कोई गति दिखाई देती है।‘‘
‘‘उससे क्या होगा?‘‘
‘‘देखेंगे क्या होता है, और कुछ नहीं तो आपका वकील बतौर गवाह ऐसे किसी सख्स को - अगर कोई निकल आया तो - कोर्ट में पेश करके उसका बयान रिकार्ड करवा देगा, जो कि एकदम सच्चा होगा क्योंकि तब तक पुलिस को उसकी भनक नहीं लगी होगी। अब बराय मेहरबानी आप मुझे ये बताइए कि जिन नंबरों से आपको फोन किए जाते थे क्या आपने उनको नोट करके रखा हुआ है।‘‘
‘‘नोट करके तो नहीं रखा मैंने, मगर कल रात हवालात में बंद होने के बाद जब पहली बार मेरे ज्ञान चक्षु खुले तो सबसे पहला काम मैंने यही किया कि अपने मोबाइल ऑपरेटर एमकॉम को मेल भेजकर उनसे पिछले दो महीने का इनकॅामिंग कॉल का डॉटा मंगवा लिया। वो मैं तुम्हें अभी व्हाट्सएप्प पर भेज देता हूं। तुम बड़ी आसानी से उन नंबरों को बाकी नंबरों से अलग कर लोगे, क्योंकि लैंडलाइन नंबर के तौर पर सिर्फ वही नंबर हैं जिनसे मुझे इंडिया से कॉल की गई थी।‘‘
‘‘गुड और कुछ!‘‘
‘‘तुम मेरे लिए एक वकील का भी इंतजाम करो प्लीज, और अगर हो सके तो वो चौहान के केस वाली वकील! क्या नाम था उसका हां नीलम तंवर से बात करो प्लीज।‘‘
‘‘जनाब मैं माफी के साथ अर्ज करता हूं कि मैं तब तक ऐसा नहीं कर सकता जब तक कि पुलिस आपकी गिरफ्तारी शो नहीं कर देती। अभी उन्होंने आपकी गिरफ्तारी को राज रखा हुआ है। अगर मैंने यह राज खोला तो पूरे थाने का स्टॉफ मेरे खिलाफ हो जायेगा और कल को मुझसे यूं परहेज करने लगेंगे जैसे मैं कोई छूत की बीमारी हूं। नतीजा ये होगा कि आपका तो कुछ संवरते-संवरते संवरेगा, मेरा फौरन बिगड़ जायेगा। कम से कम इस थाने में तो मुझे हर कोई पहचानने से इंकार कर देगा। इसका मेरे धंधे पर इतना बड़ा इफेक्ट पड़ेगा जिसकी भरपाई मुमकिन नहीं होगी।‘‘
‘‘तुम तो मुझे निराश किये दे रहे हो।‘‘
‘‘सिर्फ इस मामले में, बाकी मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि अगर आप कातिल नहीं हैं तो मेरी हर चंद कोशिश यही होगी कि असली हत्यारा जल्द से जल्द गिरफ्तार हो और आपको इस जहमत से छुटकारा मिल सके।‘‘
‘‘यूं तो ये पता नहीं कब तक मुझे यहां बंद रखें, अगर ये सिलसिला ज्यादा दिन चला तो मेरा दम तो यूंही निकल जायेगा।‘‘
‘‘ऐसा नहीं होगा, बड़ी हद कल तक ये लोग आपको कोर्ट में रिमांड मजिस्ट्रेट के सामने पेश कर देंगे।‘‘
‘‘ऐसा फौरन हो सके इसका कोई रास्ता है तुम्हारे जहन में।‘‘
‘‘हां है, डॉक्टर खरवार! वोे आपसे सुबह मिलकर जा चुका है, ऐसे में उसका आपके लिए किसी वकील का इंतजाम करना आम बात दिखाई देगी। बशर्तेे कि वो ऐसी किसी कोशिश के लिए राजी हो जाय।‘‘
‘‘भई कोई याराना तो है नहीं मुझसे उसका, मगर सुबह बोल तो रहा था वो कि कोई भी जरूरत हो तो मैं उसे बेहिचक बताऊं।‘‘
‘‘ठीक है मैं उसे खबर करता हूं, फिर देखते हैं क्या होता है।‘‘
जवाब में उसने सहमति में सिर हिला दिया। मैं उठकर सींखचों वाले दरवाजे के पास पहुंचा और आवाज लगाकर सिपाही को गेट खोलने को कहा। फिर मैं ड्यिूटी रूम में पहुंचा जहां चौहान मेरा इंतजार कर रहा था।
उसके बाद हम दोनों बाहर निकल आये।
‘‘क्या रहा?‘‘
‘‘बुरा ही रहा, लगता है हमने गलत आदमी चुन लिया। वो ना सिर्फ खुद को बेकसूर बताता है बल्कि ऐसी-ऐसी दलीलें देता है, जिनका जवाब दे पाना मुमकिन नहीं है।‘‘
‘‘गोखले हमारी कोई निजी अदावत तो है नहीं उससे। इसलिए अगर तुझे वो निर्दोष दिखाई देता है तो हम नये सिरे से कातिल के पीछे पड़ सकते हैं। वैसे भी अभी कोर्ट में मेरी पेशी में दो दिन बाकी हैं, इस दौरान समझ ले कि मैं चौबीसों घंटे की ड्यिूटी तेरे साथ अंजाम देने को तैयार बैठा हूं। अब बोल क्या बताया उसने तुझे।‘‘
जवाब में मैंने उसे सारी कथा कह सुनाई।
वो मंत्र-मुग्ध सा सुनता रहा और जब मेरी बात खत्म हुई तो बोला, ‘‘कमाल है यार यूं लग रहा था जैसे किसी हॉलीवुड फिल्म की स्टोरी सुना रहा था तू मुझे।‘‘
मैं हंसा।
‘‘अभी हम कहां जा रहे हैं?‘‘
‘‘डॉक्टर के पास, मेरा इरादा उसके जरिए गायकवाड़ के लिए किसी वकील का इंतजाम करने का है, ताकि तुम्हारा महकमा उसे कोई थर्ड डिग्री ट्रीटमेंट ना देने लग जाय।‘‘
‘‘और तुझे लगता है कोई वकील उसे पुलिस की मार से बचा सकता है।‘‘
‘‘हां उसने बस ये करना होगा कि वो किसी तरह पुलिस पर दबाव बनाये, ताकि वे लोग आज ही गायकवाड़ को कोर्ट में पेश करने को मजबूर हो जायं! और कुछ नहीं तो वो बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका तो कोर्ट में लगा ही सकता है। आगे जब कोर्ट में पेश होने के बाद अदालत उसे पुलिस रिमांड पर सौंपेगी तो साथ ही ये फरमान जारी करेगी कि थाने ले जाये जाने से पहले मुलजिम का मैडिकल कराया जाय और अगली पेशी पर दोबारा उसका मैडिकल करा कर उसे कोर्ट में पेश किया जाय। ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि रिमांड के दौरान उसके साथ कोई ज्यादती नहीं की गई थी।‘‘
adeswal
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‘‘गोखले मैं तो तुझे बहुत सयाना समझता था।‘‘
‘‘अब नहीं समझते।‘‘
‘‘इस मामले में तो नहीं समझता। तू भूल रहा है कि पुलिस हर केस में रिमांड से पहले मुलजिम का मैडिकल चैकअप कराती है, यही प्रोसीजर है! तो क्या वो इंटेरोगेशन में उससे जी सर, यस सर, राइट अवे सर, प्लीज सर! कहकर पेश आती है।‘‘
‘‘नहीं आती!‘‘
‘‘हरगिज भी नहीं आती, पुलिस के हाथों उसकी दुर्गति होकर रहती है, बस उसे ठोका कुछ इस तरह से जाता है कि मैडिकल रिपोर्ट में उसका खुलासा नहीं हो पाता।‘‘
‘‘फिर कैसे बात बने?‘‘
‘‘पुलिस की मार से उसे सिर्फ पुलिस ही बचा सकती है। लिहाजा अगर तू सचमुच उसे पुलिसिया खातिरदारी से बचाना चाहता है तो उसका एक ही रास्ता है और वो ये कि तू इस बारे में एसीपी साहब से बात कर। किसी तरह उनसे मोहलत हासिल कर और उस वफ्ते में असली कातिल को खोजकर उनके सामने हाजिर कर।‘‘
‘‘वो भी करेेंगे, पहले जरा डॉक्टर से बात करके देखते हैं वो क्या कहता है। अगर उसने गायकवाड़ की कोई मदद करने से इंकार कर दिया तो बात ही खत्म हो जायेगी।‘‘
‘‘तेरी मर्जी है भैया।‘‘
कालकाजी पहुंचकर हमने डॉक्टर को सोते से जगाया। फिर उसे बताया कि गायकवाड़ उससे क्या उम्मीद रखता था। जवाब में उसने झट मदद करने की हामी भर दी और अपने किसी पहचान के वकील को फोन करके उसे सूरतेहाल कह सुनाया। जवाब में वकील ने उसे आश्वासन दिया कि वो सब संभाल लेगा।
हम दोबारा थाने पहुंचे तो पता चला एसीपी साहब हौज खास स्थित डीसीपी ऑफिस गये हुए हैं। हम हौज खास पहुंचे तो पता चला वो डीसीपी साहब के साथ किसी मीटिंग में व्यस्त थे।
हम वहीं बैठकर उनका इंतजार करने लगे।
वो इंतजार दो घंटा लंबा साबित हुआ। तब जाकर कहीं हमें एसीपी पांडेय के दर्शन हुए।
हमें वहां देखकर वो कुछ चौंक सा गया फिर बोला, ‘‘सब खैरियत तो है।‘‘
जवाब में चौहान की तो कुछ कहने की मजाल हुई नहीं, लिहाजा मैं ही बोल पड़ा, ‘‘जनाब खैरियत तो है मगर अभी हाल ही में कुछ ऐसी बातें सामने आई हैं जो ये सोचने पर मजबूर कर रही हैं कि गायकवाड़ बेकसूर है।‘‘
मुझे लगा वो फट पड़ेगा। मगर ऐसा नहीं हुआ।
‘‘गोखले होश में आ, कल तूने ही ये साबित करके दिखाया था कि सब किया-धरा उसी का है और आज तू ये नया राग अलाप रहा है। कहीं उसने कोई बड़ी रकम तो ऑफर नहीं कर दी तुझे।‘‘
‘‘आप बेहतर जानते हैं जनाब कि ऐसा नहीं हो सकता। कम से कम इस केस में तो हरगिज भी नहीं हो सकता। भले ही मेरी प्राथमिकता चौहान को बेकसूर साबित करने की थी। मगर उसके लिए किसी बेगुनाह को जेल जाना पड़े ऐसा तो आप खुद भी नहीं चाहेंगे।‘‘
‘‘तो क्या चाहता है तू, छोड़ दे उसे।‘‘
‘‘वो तो खैर मुमकिन नहीं जनाब!‘‘
‘‘फिर!‘‘
‘‘फिलहाल तो आपसे बस इतनी इल्तिजा है कि अगले चौबीस घंटों तक उसके साथ कोई सख्ती ना बरती जाय, ये सुनिश्चि कर दें।‘‘
‘‘कोई खास ही लगाव हो गया दिखता है उससे।‘‘
‘‘जनाब बात लगाव की नहीं है, समझ लीजिए इंसानियत के नाते ये मेहरबानी उसपर कर के दीजिए। बीवी की बेवफाई और मौत से वो वैसे ही टूटा हुआ है। हवालात में उसपर कोई सख्ती हुई तो यकीन जानिये पहला मौका मिलते ही वो अपनी जान दे दे तो कोई बड़ी बात नहीं होगी। बाज लोग इस प्रकार की घटनाओं को आसानी से नहीं भुला पाते।‘‘
‘‘और इस बात का फैसला तू करेगा कि वो गुनहगार है या नहीं।‘‘
‘‘जनाब फैसला तो आप करेंगे, अदालत करेगी, मैं तो बस आपसे चौबीस घंटे की मोहलत चाहता हूं।‘‘
‘‘और अगर चौबीस घंटों में तू उसे बेगुनाह साबित नहीं कर पाया तो!‘‘
‘‘तो जनाब की मर्जी, तब आप गायकवाड़ के साथ-साथ मुझे भी किसी सजा का हकदार समझें तो मेरे सिर आंखों पर।‘‘
‘‘ठीक है जा, करके दिखा कोई चमत्कार, ताकि मुझे एक बार फिर यकीन आ सके कि तू अभी भी पहले जैसा ही जहीन है, ना कि बे सिर-पैर की बातें उड़ाने लगा है।‘‘
‘‘शुक्रिया जनाब!‘‘
मेरा शुक्रिया सुनने से पहले वो अपनी कार में जा बैठा। मैं और चौहान दोबारा वेटिंग लाउंज में जा बैठे। चौहान ने वहीं गायकवाड़ की इनकॉमिंग कॉल की डिटेल्स का प्रिंट आउट निकलवाया, जिसके बाद हम उसमें से उन नंबरों को अलग करते गये जो कि इंडिया के थे। ऐसी कुल जमा सोलह कॉल की गयी थी गायकवाड़ के नंबर पर। उनमें से कई नंबर रिपीट भी हो रहे थे। लिहाजा जब हमने काट-छांटकर लिस्ट तैयार की तो हमारे सामने जांच के लिए छह नंबर बचे। अब हमें ये पता करना था कि वो नंबर कहां-कहां लगे हुए थे। इसका सीधा तरीका ये था कि हम उन नंबरों पर कॉल करते और यूं फोन उठाने वाले से ही दरयाफ्त करते कि वो कहां से बोल रहा था। मगर चौहान मुझसे सहमत नहीं था, उसका कहना था कि यूं अगर कोई नंबर कातिल के घर या ऑफिस का हुआ तो वो सावधान हो सकता था जो कि हमारे लिए दुश्वारी का काम होता।
लिहाजा उसने अपने पुलिसिया होने का फायदा उठाया और अगले एक घंटे में ना सिर्फ उन तमाम नंबरों के मालिकान का पता लगाया बल्कि ये भी जान लिया कि वे नंबर कहां-कहां लगे हुए थे। और जब हमारी वांछित जानकारी सामने आई तो ये देखकर हम हैरान रह गये कि वे तमाम के तमाम नंबर कालकाजी के इलाके में अलग-अलग पतों पर रजिस्टर्ड थे।
जिससे फौरी अंदाजा हमने ये लगाया कि हो ना हो गायकवाड़ का घोस्ट फोनकर्ता कालका जी में ही कहीं रहता था।
फिर हमने उन नंबरों की जांच की मुहीम छेड़ दी। पहला नंबर जो हमने जांच के लिए चुना वो कालकाजी के डीडीए फ्लैट के इलाके में स्थित एक पीसीओ का था जो कि एक परचून की दुकान में लगा हुआ था।
वहां से जब हमने उस कॉल की जानकारी हासिल करनी चाही तो जैसी की हमें उम्मीद थी, दुकानदार फोनकर्ता के बारे में कुछ नहीं बता पाया। चौहान ने घुमा फिराकर कई तरीके से उससे पूछताछ करने की कोशिश की, मगर उसके रिकार्ड की सूई बस एक ही जगह अटकी रही कि वो नहीं जानता कि फोन किसने किया था। बावजूद इसके कि उसके यहां से तीन बार आइएसडी कॉल की गई थी।
हारकर हम अगले पड़ाव की ओर बढ़े। वो नंबर तुगलकाबाद एक्सटेंसन से तनिक पहले स्थित एक पीसीओ का निकला। वहां से गायकवाड़ के नंबर पर पांच बार कॉल की गई थी। मगर उसका जवाब भी दूसरे दुकानदार जैसा ही निकला।
तीसरा नंबर पान की एक दुकान का निकला जो कि गोविंदपुरी के ठीक सामने सड़क के दूसरी ओर एक कपड़ों के शोरूम के नीचे थी। वहां दुकानदार का जवाब हमारी पसंद का निकला। उसने हमें बताया कि वो व्यक्ति कई बार उसके यहां से दुबई कॉल कर चुका था। वो बेहद लंबी बातें करता था और उसका बिल भी चार-पंाच सौ के करीब आता था इसलिए दुकानदार को वह याद रह गया था।
मगर जवाब में उसने फोनकर्ता का जो हुलिया बयान किया उसने हमारी तमाम आशाओं पर पानी फेर कर रख दिया। क्योंकि उसने जो हुलिया बताया था वो ऐन गायकवाड़ से मिलता था। जो कि अगर मुमकिन था तो फिर हमारी इस तमाम ड्रिल का कोई फायदा नहीं था। लिहाजा चौहान ने उसे अपना नंबर देकर हिदायत देते हुए कहा कि अगर वो व्यक्ति दोबारा वहां कॉल करने के लिए आये तो दुकानकार ने उसे इंफार्म करना था।
चौथे और पांचवे नंबर की दुकान हमें बंद मिली। पता चला दोनों के मालिकान अपने परिवार के साथ अपने होम टाउन गये हुए थे, जहां से वो कब वापिस लौटते इस बारे में किसी को भी पता नहीं था। अब हमारे पास सिर्फ एक नंबर चेक करने के लिए रह गया था जो कि कालका जी में देशबंधु कॉलेज से तनिक आगे एक स्टेशनरी शॉप पर लगा हुआ था। हमारी लिस्ट बताती थी कि वहां से गायकवाड़ को चार काल्स की गई थीं।
दुकानदार एक साठ-पैंसठ साल का बुढ़ापे की ओर अग्रसर किंतु चुस्त-दुरूस्त व्यक्ति निकला। जिसने हमें बताया कि वो रिटायर्ड पुलिस अधिकारी था। हमने उसपर अपनी मंशा जाहिर की तो उसे झट से काल करने वाला व्यक्ति याद आ गया।
‘‘देखो मैं उसका नाम तो नहीं जानता, मगर था वो खूब लंबा-चौड़ा कसरती बदन वाला युवक! शक्लो-सूरत से उच्च शिक्षित जान पड़ता था। मेरा खुद का अंदाजा ये है कि वो कोई पुलिसवाला ही था। उसके लहजे में कुछ शब्द पश्चिमी उत्तर प्रदेश के थे, जैसे उसने कहा था कि ‘अंकल नेक फोन दियो, दुबई कॉल करनी है।‘ लेकिन जब उसने फोन पर बात करनी शुरू की तो उसकी भाषा एकदम से बदल गई थी। वो पूरी तरह से हिंदी में बात करने लगा।‘‘
‘‘उसकी बातों का कोई अंश बेध्यानी में आपको सुनाई दे गया हो, याद रह गया हो।‘‘
‘‘भई वो जब आखिरी बार मेरे यहां आया था तो उसने फोन पर किसी से कहा था कि वो ठीक छह बजे अपने फ्लैट पर पहुंचे, इसके अलावा मुझे कुछ याद नहीं।‘‘
‘‘कोई अंदाजा कि वो आस-पास से ही आया था या...!‘‘ कहकर चौहान ने अपनी बात अधूरी छोड़ दी।
‘‘कहना मुहाल है भई, अलबत्ता वो आया मोटरसाइकिल से था। मगर उससे क्या फर्क पड़ता है, आजकल की नौजवान पीढ़ी इतनी आरामतलब हो गई है कि घर के बगल से दूध लेकर आना हो तो भी मोटरसाइकिल पर सवार हो जाती है।‘‘
‘‘ठीक कहते हैं जनाब, बहरहाल वक्त देने का शुक्रिया।‘‘ कहकर चौहान ने उसे भी अपना नंबर देकर पहले वाली हिदायत दोहरा दी अलबत्ता इस बार हुक्म देने की बजाय उसे वृद्ध से बाकायदा रिक्वेस्ट करना पड़ा था।
चौहान की जुगलबंदी में हम एक बार फिर कार में सवार हो गये।
adeswal
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Re: Thriller गहरी साजिश

Post by adeswal »

‘‘इतनी मेहनत का क्या सिला मिला गोखले।‘‘
‘‘सिर्फ इतना कि अब हमें यकीन है कि गायकवाड़ को सचमुच उस तरह की फोन काल्स आती थीं जिसका जिक्र उसने मुझसे किया था-ना कि उसने मुझे कोई कहानी सुनाई थी।‘‘
कहकर मैंने सिगरेट सुलगाया और एक उसे देते हुए बोला, ‘‘बस एक नंबर और चेक करना है।‘‘
‘‘अब कौन सा बचा है, कर तो लिए छह के छह! भले ही दो जगहों पर हमारी किसी से मुलाकात नहीं हो पाई।‘‘
‘‘मैं उस नंबर की बात कर रहा हूं, जो तुम्हें रजनीश अग्रवाल से हासिल हुआ था, जिसके जरिए उसे किसी वकील ने मंदिरा की वसीयत का झांसा देकर मौकायेवारदात पर बुलाने की कोशिश की थी।‘‘
‘‘ठीक कहता है उसे तो मैं भूल ही गया था।‘‘ कहकर उसने जब उस नंबर की बाबत जानकारी हासिल की तो पता चला वो तो साकेत में ही लगा हुआ था, और यूं जो पता हमें हासिल हुआ वो मंदिरा के फ्लैट से मुश्किल से एक किलोमीटर की दूरी पर था।
हम उस पते पर पहुंचे।
दुकानदार एक चश्माधारी युवक था जो उस वक्त जेम्स हेडली चेईज का उपन्यास ‘सनकी कातिल‘ पढ़ने में मशगूल था। वो किस कदर उपन्यास में डूबा हुआ था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हम उसकी दुकान पर जाकर खड़े हो गये मगर उसे एहसास तक नहीं हुआ। चौहान ने बाकायदा काउंटर खटखटाकर उसका ध्यान अपनी ओर आकर्षित कराया और बोला, ‘‘पुलिस!‘ तो उसने पल भर को हमारी तरफ देखा फिर, ‘‘एक मिनट प्लीज‘ कहकर वो पुनः उपन्यास पढ़ने में व्यस्त हो गया।
उस वक्त चौहान का गुस्सा उसपर फूटने ही वाला था जब उसने उपन्यास को उल्टा करके काउंटर पर रख दिया और बोला, ‘‘अब बताइए क्या बात है।‘‘
‘‘सबसे पहले तो अपना कोई अच्छा सा नाम बता दो।‘‘
‘‘अच्छा या बुरा मेरा एक ही नाम है, सूरज सिंह! - वो तीखे लहजे में बोला - क्या चाहते हैं आप लोग?‘‘
जवाब में मैंने उसे उस फोन काल के बारे में बताया जो उसकी दुकान से रजनीश अग्रवाल को की गई थी और यथा संभव वार्तालाप भी दोहरा दिया। सुनकर वो चहकता हुआ बोला, ‘‘वाऊ! मेरा अंदाजा एकदम सही निकला। मुझे तो उसी वक्त उसपर शक हो गया था कि वो कोई फ्रॉड व्यक्ति है, जो खुद को वकील बताकर अपना कोई उल्लू सीधा करना चाहता था।‘‘
‘‘गुड! अब लगे हाथों ये भी बता दो कि तुम्हे उसपर शक क्यों हुआ था?‘‘
‘‘उसने अपनी पतलून की बैल्ट में रिवाल्वर खोंस रखी थी। जिसे छिपाने के लिए उसने अपनी शर्ट को बाहर निकाल रखा था। वो जब बातें कर रहा था तो एक बार हवा से उसकी शर्ट तनिक ऊपर को उठ गयी तब मैंने रिवाल्वर की झलक साफ देखी थी।‘‘
‘‘कैसे पता कि वो रिवाल्वर ही थी?‘‘
‘‘बस पता है किसी तरह।‘‘
‘‘रिवाल्वर के अलावा कोई और बात जो तुम्हें खटकी हो।‘‘
‘‘कई बातें थीं, जैसे कि काल करने के करीब पांच मिनट बाद उसने मुझसे एक कोल्ड्रिंक ली जिसे उसने बीस मिनट से कम में तो क्या खतम किया होगा। उसके बाद उसने मुझसे पानी की एक बोतल ली और यूं ठहर ठहर कर घूंट लगाने लगा जैसे, विस्की चुसक रहा हो। पानी की आधी बोतल खाली कर चुकने के बाद उसने एक बर्गर खाया। फिर अपनी रिस्ट वॉच पर एक नजर डालने के बाद वोे पैसे चुकाकर चलता बना। साफ जाहिर हो रहा था कि उसे एक निश्चित समय पर कहीं पहुंचना था, जिसके बीच के वफ्ते में वो यहां खड़ा होकर महज टाईम पास कर रहा था।‘‘
‘‘देखने में कैसा था वो?‘‘
जवाब में उसने जो हुलिया बताया वो और किसी से मिलता ना मिलता मगर गायकवाड़ से जरूर मैच कर रहा था।
‘‘उसके पहनावे के बारे कुछ और बताओ, इसके अलावा कि वो पैंट शर्ट पहने था।‘‘
‘‘वो क्रीम कलर की सीधी धारियों वाली शर्ट और स्लेटी रंग की पैंट पहने हुए था। शर्ट लिवाइस की थी, पैंट के बारे में कुछ बता पाना पॉशिबल नहीं है। बालों वो जरूर खिजाब या मेंहदी लगाता था, क्योंकि उसके बालों का काफी सारा हिस्सा तांबे की रंगत लिए हुए था।‘‘
सुनकर मेरा दिमाग भिन्ना सा गया। ये तो वही कपड़े थे जिसे दिन में गायकवाड़ पहने था। शर्ट लिवाइस की थी या नहीं कहना मुहाल था मगर रंग और डिजाइन वही थे। और बालों का रंग भी ऐन गायकवाड़ से मिलता था। ऊपर से वो तीसरा ऐसा व्यक्ति था जो उस घोस्ट फोनकर्ता के बारे में बताते हुए गायकवाड़ का हुलिया बयान कर रहा था। क्या माजरा था! कहीं हम गायकवाड़ के हाथों उल्लू तो नहीं बन रहे थे! आखिर अंकुर रोहिल्ला ने भी तो मंदिरा के सीक्रेट विजिटर के बारे में बताते हुए गायकवाड़ का ही हुलिया बयान किया था।
‘‘कोई और खास बात जो तुमने नोट की हो।‘‘
‘‘खास बात तो अभी मैंने आप लोगों को बताई ही नहीं।‘‘
‘‘अच्छा! फिर तो कमाल ही हो गया, अब बरायमेहराबानी वो माल भी दिखा दो जिसकी पोटली तुमने अभी तक नहीं खोली है।‘‘
‘‘दिखाता हूं मगर मुझे शाबासी दिये बिना मत जाना! क्योंकि अब मैं ऐसा बम फोड़ने वाला हूं जो एक झटके में आप लोगों की तमाम प्रॉब्लम्स सॉल्ब कर देने वाला है।‘‘
‘‘ऐसी बात है तो जल्दी बताओ प्लीज!‘‘
‘‘वो बजाज की दो सौ बीस सीसी वाली, काले रंग की, पल्सर मोटरसाइकिल पर यहां पहुंचा था। मोटरसाइकिल की नंबर प्लेट पर उसने कुछ पोत रखा था जिससे वो दिखने बंद तो नहीं हुए थे मगर उन्हें बेहद नजदीक से ही देखने पर पढ़ा जा सकता था। नंबर इस कदर धुंधला गये थे कि अगर आप सड़क के उस पार से भी देखते तो वो आपको दिखाई नहीं देते।‘‘
‘‘लेकिन तुम्हें वो नंबर पता है।‘‘ मैं बोला।
जवाब में वो बड़ी शान से मुस्कराया।
‘‘तुम बेशक कमाल के लड़के हो, तुम्हारी ऑब्जर्वेशन भी कमाल की है। तुम्हें तो जासूस होना चाहिए!‘‘
‘‘थैंक्यू सर!‘‘
‘‘तो मिस्टर जासूस! अब उसकी मोटरसाइकिल के रजिस्ट्रेशन नंबर पर कोई रोशनी डालिए प्लीज!‘‘
‘‘नोट करो डीएल थ्री एस टू फाईव.....।‘‘
मैंने अपने मोबाइल में उसका बताया नंबर नोट कर लिया।
‘‘शुक्रिया, तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया।‘‘
‘‘आप पुलिस वाले नहीं हो सकते।‘‘
‘‘क्यों?‘‘
‘‘क्योंकि पुलिसवाले कभी किसी का शुक्रिया अदा नहीं करते। अलबत्ता आपके साथी टिपिकल पुलिसिये लगते हैं! जो मेरे हर जवाब में होती देरी पर तिलमिला कर रह जाते थे। इनका बस चलता तो ये मेरे हलक में हाथ डालकर सारी जानकारियां एक ही बार में बाहर निकाल लेते।‘‘
सुनकर चौहान जोर से हंस पड़ा, ‘‘क्या लड़का है भई तू, तेरी निगाहों की दाद देनी पड़ेगी। बहरहाल मैं तेरा दिल से शुक्रिया बोलता हूं। पुलिसवाला होते हुए भी शुक्रिया बोलता हूं।‘‘
‘‘यू आर मोस्ट वैलकम सर!‘‘
इसके बाद जब हमने उसके बताये मोटरसाइकिल का रजिस्ट्रेशन चेक किया तो मारेे हैरत के उछल से पड़े। मेरे जैसा ही हाल चौहान का भी हुआ। हम दोनों हकबका कर एक दूसरे की सूरतें देखने लगे।
कितने बड़े अक्ल के अंधे थे हम! कितना बड़ा सयाना था वो!
बहरहाल आनन-फानन में मैंने कातिल को रंगे हाथों पकड़ने की एक योजना बना डाली। मगर उस योजना को सूरज सिंह नाम के इस युवक की मदद के बिना अमली जामा नहीं पहनाया जा सकता था, मैं दोबारा उसके काउंटर पर पहुंचा, ‘‘मिस्टर जासूस! क्या तुम एक खतरनाक कातिल को पकड़वाने में पुलिस की मदद करना पसंद करोगे?‘‘
‘‘अफकोर्स सर! इट्स माई प्लेजर, बताइए मुझे क्या करना होगा।‘‘
‘‘बताएंगे पहले हमें कुछ और अहम कामों को अंजाम देना है, उसके बाद हम तुम्हें बता देंगे कि तुम्हें क्या करना है।‘‘
‘‘कब बतायेंगे।‘‘ वो उतावले स्वर में बोला।
‘‘आज ही बतायेंगे, तब तक के लिए अलविदा दोस्त।‘‘
‘‘अरे इतना तो बताते जाइए कि आप करते क्या हैं?‘‘
जवाब में मैंने उसे अपना एक विजटिंग कार्ड सौंपा और चौहान के साथ कार में सवार हो गया।
‘‘तौबा क्या लड़का था, हर बात ताड़े बैठा था।‘‘
‘‘ठीक कहते हो और अगर उसने कोई गलतबयानी नहीं की है तो समझो लो उसने कातिल को बाकायदा प्लेट में सजाकर हमें परोसा है।‘‘
‘‘सो तो है, अब आगे क्या इरादा है।‘‘
‘‘आज रात को हम सूरज सिंह के जरिए कातिल को एक्सपोज करेंगे।‘‘ कहते हुए मैंने उसे अपनी योजना कह सुनाई।
‘‘खामखाह बात को इतना घसीटने की क्या जरूरत है, हम सीधे-सीधे उसे गिरफ्तार क्यों नहीं करा देते।‘‘
‘‘कोई फायदा नहीं होगा, उसने अपने पीछे कहीं कोई सबूत नहीं छोड़ा है। बड़ी हद तुम इस लड़के के बयान को उसके खिलाफ इस्तेमाल कर सकते हो! मगर क्या फायदा होगा, वो कोई चश्मदीद गवाह तो है नहीं। ऐसे में उसके बयान का हम तभी कोई फायदा उठा सकते हैं, जब कातिल के खिलाफ हमारे पास पहले से कोई सपोर्टिंग सबूत हो। ऊपर से इस बार मैं ठोक-बजाकर देख लेना चाहता हूं कि सब किया धरा उसी का है। वरना कहीं बाद में वो भी गायकवाड़ की तरह इनोसेंट निकला तो इस बार हमें लेने के देने पड़ जायेंगे। मत भूलो कि मोटरसाइकिल उसने किसी को उधार दिया हो सकता है और उसके पास रिवाल्वर की मौजूदगी महज उस लड़के की कल्पना की उपज हो सकती है। जिसपर उपन्यासों का किस हद तक असर है हम देख ही चुके हैं।‘‘
‘‘शुरूआत कहां से करें?‘‘
‘‘हम उसके घर में घुसेंगे।‘‘
‘‘किसलिए?‘‘ वो हैरान होता हुआ बोला।
‘‘उस रिवाल्वर की तलाश में जिससे उसने अंकुर रोहिल्ला का कत्ल किया था।‘‘
‘‘वो जरूर अभी तक रिवाल्वर सहेजे बैठा होगा।‘‘
‘‘ना सही मगर रिवाल्वर की तलाश में लगने पर क्या पता कोई और काम की जानकारी हासिल हो जाए। कोई ऐसी चीज हासिल हो जाय जो उसके खिलाफ पुलिस के हाथ मजबूत कर सके, या उसे निर्विवाद रूप से कातिल साबित कर सके।‘‘
‘‘भई उम्मीद तो कतई नहीं है मुझे, मगर तुम कहते हो तो देख लेते हैं। लेकिन हम उसके घर में घुसें कैसे, दिन में होने वाला काम तो ये दिखाई नहीं देता। लिहाजा हमें रात होने तक इंतजार करना पड़ेगा।‘‘
‘‘चौहान साहब! दिन अब रहा कहां, छह बजने को है। हम अभी से अपनी मुहीम पर लगेंगे तब जाकर रात को हम अपने बाकी की योजना को अंजाम दे पायेंगे। फिर तुम्हें महज उसके घर का ताला खोलना है, उसके बाद अगर तुम चाहो तो बाहर रह कर मेरा इंतजार कर सकते हो। उस दौरान अगर मैं पकड़ा गया तो वो गुनाह मैं अपने सिर ले लूंगा, ऐसे में कम से कम तुमपर कोई आंच नहीं आएगी।‘‘
‘‘अब इतना बेमुरब्बत तो नहीं हूं मैं।‘‘
‘‘तो फिर साथ चलो और वो करामात दिखाओ जो पूजा अवस्थी के कत्ल वाले केस में पहले भी दिखा चुके हो।‘‘
‘‘यार कुछ तो शरम कर मैं पुलिस वाला हूं! जो चाहता है कर के दूंगा। मगर कम से कम मुझे ताला तोड़ साबित करने की कोशिश तो न कर।‘‘
मैं हंसा। जवाब में उसने खा जाने वाली निगाहों से मुझे घूरा, मगर मुझपर असर होता ना पाकर बोला, ‘‘अगर वो घर पर हुआ तो!‘‘
‘‘तो हम दोबारा वहां का फेरा लगायेंगे, दूसरी बार भी घर पर हुआ तो तीसरा फेरा लगायेंगे। कहने का मतलब ये है चौहान साहब की हमें इस काम को हर हाल में रात होने से पहले अंजाम देकर रहना है।‘‘
‘‘और अगर वो टला ही नहीं अपने घर से फिर?‘‘
‘‘फिर हम उसे घर से बाहर निकालने की कोई जुगत करेंगे। मगर वो बाद की बात है, मुझे पूरी उम्मीद है कि हम अपने पहले ही फेरे में सफल हो जायेंगे।‘‘
मैंने तत्काल कार आगे बढ़ा दी।
उस वक्त शाम के साढ़े सात बजने को थे, जब कलपते हुए ही सही, सब-इंस्पेक्टर चौहान ने वो दरवाजा खोल दिखाया जहां की हमें मुकम्मल तलाशी लेनी थी। हम दोनों भीतर दाखिल हुए! जैसा कि हम पहले ही दरयाफ्त कर चुके थे, घर में उस घड़ी कोई नहीं था। हमने तलाशी की शुरूआत बैठक से की, जो कि आगे एक्स्टेंड होती हुई मास्टर बेडरूम तक पहुंची।
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