Thriller गहरी साजिश

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adeswal
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Re: Thriller गहरी साजिश

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‘‘अब क्या कहते हैं आप! - एसीपी ने फिर से गायकवाड़ से सवाल किया - रंजना चावला का कत्ल तो चार बजे के करीब हुआ था। जबकि पुलिस ने अभी मुश्किल से एक घंटा पहले आपके घर से आपकी रिवाल्वर बरामद की है। ऐसे में आपको फंसाने के लिए हमने उस रिवाल्वर से रंजना पर गोली कब चला दी। क्या जवाब है आपके पास इस बात का।‘‘
‘‘वही जो पहले था, ये सब तुम लोगों की चाल है।‘‘
‘‘आप दुबई से यूं अचानक दिल्ली क्यों लौटे थे।‘‘
‘‘वो मेरा निजी मामला है जिसकी बाबत जवाब देना मैं जरूरी नहीं समझता।‘‘
उसकी बात पर तिलमिलाता हुआ तिवारी उठकर गायकवाड़ के पास पहुंचा और एक जोरदार थप्पड़ उसकी गाल पर जमाता हुआ कहर भरे स्वर में बोला, ‘‘स्साले जानता नहीं किससे बात कर रहा है, ये टाल-मटौल वाला रवैया छोड़ वरना तेरी एक भी हड्डी सलामत नहीं बचेगी।‘‘
थप्पड़ इतना तेज पड़ा था कि गायकवाड़ कुर्सी समेत घूम सा गया।
‘‘तिवारी! - एसीपी गरजता हुआ बोला - बिहैव योर सैल्फ!‘‘
‘‘मगर जनाब!‘‘
‘‘शटअप!‘‘ एसीपी जोर से चीखा। जवाब में तिवारी ने यूं सकपका कर दिखाया जैसे एसीपी के चीखने से उसकी पतलून गीली हो गई हो। हकीकत तो ये थी कि पुलिस अपनी फेमश नौटंकी शुरू कर चुकी थी।
‘‘मेरे सवाल का जवाब दीजिए प्लीज!‘‘
‘‘मुझे किसी ने फोन करके बताया था कि मेरी बीवी का किसी के साथ अफेयर था! - गायकवाड़ फट पड़ा - जिसपर वो शादी के लिए दबाव बना रही थी। जबकि उसका आशिक उससे पीछा छुड़ाने की खातिर उसके कत्ल के मंसूबे बांध रहा था।‘‘
‘‘किसने बताया!‘‘
‘‘मालूम नहीं उसने अपना नाम नहीं बताया था।‘‘
‘‘उसने कहा और आपने यकीन कर लिया, वो भी इस तरह कि दुबई से भाग कर दिल्ली पहुंच गये, ये क्या भला कोई मानने वाली बात थी।‘‘
‘‘उसपर मुझे पहले से शक था, क्योंकि जब भी मैं उसे दुबई अपने पास बुलाने की कोशिश करता वो कोई ना कोई बहाना बनाकर टाल देती थी। इसलिए मैं उस फोन कॉल्स को नजरअंदाज नहीं कर सका।‘‘
‘‘ओके होता है ऐसा, अब आप ये बताइये कि एक जून को दिल्ली अपने फ्लैट पर पहुंचकर आपने क्या किया।‘‘
‘‘कुछ नहीं, कुछ करने को बचा ही नहीं था, मैं जिस वक्त अपने फ्लैट पर पहुंचा सुनीता की हत्या हो चुकी थी। उसकी लाश देखकर जो पहला ख्याल मेरे जहन में आया वो ये था कि मुझे फौरन वहां से भाग जाना चाहिए वरना पुलिस मुझपर ही उसकी हत्या का शक करेगी। लिहाजा उल्टे पांव मैं वापिस लौट गया और जाकर एक होटल में बुक हो गया।‘‘
‘‘उससे पहले आपने कम से कम एक काम को और अंजाम दिया था - इस बार खान बोला - आपने अपने पास मौजूद सूटकेस को पलंग के भीतर बने बॉक्स में छिपा दिया था।‘‘
‘‘हां मैंने ऐसा ही किया था, क्योंकि तब मैं बुरी तरह डर गया था मुझे लगा इतने बड़े सूटकेस के साथ अगर मैं बिल्डंग से बाहर निकला, तो किसी ना किसी की निगाह मुझपर पड़कर रहनी थी।‘‘
‘‘आप मंदिरा चावला को जानते थे।‘‘
‘‘नहीं।‘‘
‘‘उसका कत्ल क्यों किया आपने?‘‘
‘‘अरे जब मैं उसे जानता नहीं था तो!‘‘
‘‘चटाख!‘‘ तिवारी का हाथ फिर चला और इस बार गायकवाड़ कुर्सी समेत फर्श पर जा गिरा, ‘‘स्साले झूठ बोलना बंद कर वरना!‘‘
‘‘तिवारी! - एसीपी सख्त लहजे में बोला - सस्सपेंड नहीं होना चाहते तो इसी वक्त कमरे से बाहर निकल जाओ!‘‘
‘‘लेकिन जनाब ये झूठ पर झूठ...!‘‘
‘‘आई से गेट आउट!‘‘ एसीपी पहले से अधिक सख्ती के साथ बोला। जवाब में तिवारी तुरंत कमरे से बाहर निकल गया।
फिर एसीपी ने खुद गायकवाड़ को उठकर दोबारा कुर्सी पर बैठने में मदद की।
‘‘अंकुर को क्यों मारा आपने!‘‘
‘‘मैंने किसी को नहीं मारा - वो लगभग रो देने वाले अंदाज में बोला - आप लोग मेरा यकीन क्यों नहीं करते।‘‘
‘‘रंजना की हत्या क्यों की आपने।‘‘
‘‘मैंने किसी की हत्या नहीं की है और कितनी बार कहूं ये बात!‘‘
‘‘बीवी को तो खैर आपने उसकी बेवफाई की सजा दी थी, मगर मंदिरा चावला ने आपका क्या बिगाड़ा था - खान बोला - क्या उसने आपको सुनीता की हत्या करते देख लिया था या कोई और बात थी।‘‘
‘‘मैंने कुछ नहीं किया, भगवान के लिए मेरा यकीन करो।‘‘
‘‘रंजना चावला की हत्या करने आप जिस मोटरसाइकिल पर सवार होकर पहुंचे थे वो किसकी थी।‘‘
‘‘मुझे मोटरसाइकिल चलानी नहीं आती।‘‘
‘‘रंजना ने जिस वक्त आपको ये बताया कि उसे मंदिरा का मोबाइल मिल गया है, जिसमें कातिल की आवाज रिकार्ड थी, उस वक्त आप कहां थे।‘‘
‘‘मैं अपने फ्लैट पर था।‘‘
जवाब में मेरे कान खड़े हो गये और गायकवाड़ के कातिल होने के प्रति रहा-सहा शक भी दूर हो गया।
‘‘तेखंड गांव से जब आपने रिवाल्वर खरीदी थी, उस वक्त तक रंजना की कॉल आ चुकी थी या उसके बाद आई थी।‘‘
‘‘बाद में आई थी।‘‘
‘‘उसके फ्लैट पर आपने जानबूझकर उसके मोबाइल को निशाना बनाया था या ऐसा इत्तेफाकन हो गया था।‘‘
गायकवाड़ ने कसकर अपने होंठ भींच लिये।
‘‘जवाब दीजिए जनाब इस तरह चुप रहने से आपका कोई भला नहीं होने वाला।‘‘
ठीक तभी तिवारी कमरे में वापिस लौट आया। उसके साथ-साथ दो सब-इंस्पेक्टर भी कमरे में घुस आये थे।
‘‘अच्छा ये बताइए कि अंकुर रोहिल्ला का कत्ल करने के लिए आप उसके बंगले में कैसे दाखिल हुए थे। क्योंकि मेन गेट से तो आपने एंट्री नहीं मारी थी।‘‘
गायकवाड़ चुप!
‘‘जिस रिवाल्वर से आपने अंकुर रोहिल्ला का कत्ल किया था वो अब कहां है?‘‘
गायकवाड़ चुप!
‘‘मंदिरा चावला को कैसे जानते थे आप!‘‘
सवाल रिपीट होने शुरू हो चुके थे।
‘‘मैं मांग करता हूं कि मुझे एक वकील का इंतजाम करने दिया जाय! अब मैं जो कुछ भी कहूंगा अपने वकील के सामने कहूंगा।‘‘
जवाब मेें वहां मौजूद तमाम पुलिसिए जोर से हंस पड़े, मुस्कान तो एसीपी के होंठों पर भी उभरी थी, जिसे उसने फौरन छिपा लिया।
‘‘लगता है हॉलीवुड की मूवी कुछ ज्यादा ही देख ली है तूने! भूल गया कि ये इंडिया है! - आखिरकार तिवारी बोल पड़ा - अगले पांच-छह दिनों तक तो हम तेरी गिरफ्तारी की हवा भी नहीं लगने देंगे किसी को! वकील करने देना तो दूर की बात है।‘‘
‘‘मैं तुम सब की शिकायत करूंगा, देख लेना तुम लोग‘‘ - गायकवाड़ रोआंसे स्वर में बोला - मुझे बेवजह हलकान करने का खामियाजा तो तुम लोगों को भुगतना ही पड़ेगा।‘‘
‘‘स्साले पहले तू अपनी खैर मना, आगे की तेरी तमाम जिंदगी जेल में कटने वाली है, फिर बुढ़ापे में बाहर आने के बाद तुझसे जो बन पड़ता हो बिगाड़ लेना हमारा।‘‘
जवाब में गायकवाड़ केवल कसमसा कर रह गया।
adeswal
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‘‘अब बता मंदिरा का कत्ल क्यों किया तूने।‘‘
‘‘इसलिए किया, क्योंकि मुझपर कत्ल करने का दौरा पड़ता है - इस बार गायकवाड़ लगभग चीखता हुआ बोला - मैंने ही मारा है अपनी बीवी को, मंदिरा का कत्ल भी मैंने ही किया है, अंकुर और रंजना को भी मैंने ही गोली मारी थी। तुम सबको भी मैं जिंदा नहीं छोड़ने वाला। जो बिगाड़ सकते हो बिगाड़ लो मेरा। क्या करोगे ज्यादा से ज्यादा मुझे हवालात में बंद करके मुझपर थर्ड डिग्री आजमाओगे! तो आजमाते क्यों नहीं। उसके अलावा तुम लोगों को आता ही क्या है।‘‘ कहकर इस बार वो हौले से सिसक उठा।
मगर उसके प्रलाप का असर वहां किसी पर नहीं पड़ा, ऐसी नौटंकियां उनके लिए रोजमर्रा की बात थी।
‘‘क्यों किया, अपनी बीवी के अलावा बाकी लोगों का कत्ल क्यों किया आपनेे?‘‘ एसीपी पूर्ववत् धैर्य के साथ बोला।
‘‘अब मैं एक शब्द भी नहीं बोलने वाला, जो बोलूंगा कोर्ट में बोलूंगा। तुमने अभी तोता रटंत बनाने की बात कही थी! अब मैं खुद तुम्हें चायलेंज करता हूं कि अगर बना सको तो बना लो।‘‘
कहकर उसने अपने होंठ सख्ती से भींच लिए।
‘‘हमारे पास बहुत वक्त है गायकवाड़ साहब! अभी आपने हमारी खातिरदारी देखी कहां है! देखते हैं आपमें जुल्म सहने की ताकत ज्यादा है या पुलिस में जुल्म करने की ताकत ज्यादा है।‘‘ - कहकर तिवारी ने एसीपी की तरफ देखा फिर बोला - ‘‘क्या करना है साहब इसका।‘‘
‘‘कितने साल से हो पुलिस की नौकरी में।‘‘
‘‘जी पांच साल होने को हैं।‘‘
‘‘फिर भी तुम्हे ये बताने की जरूरत है कि क्या करना है। कुछ भी करो! मगर कल सुबह दस बजे जब मैं यहां आऊं, तो मुझे इन साहब की जुबान खुली हुई मिलनी चाहिए।‘‘
एसीपी का बदला हुआ लहजा सुनकर गायकवाड़ के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगीं। उसकी सूरत से साफ जाहिर हो रहा था कि अब वो किसी भी वक्त अपना किया-धरा बयान कर देने वाला था। वैसे भी वो कोई आदी मुजरिम तो था नहीं, लिहाजा उसका टूट जाना महज वक्त की बात थी।
तिवारी ने वहां खड़े पुलिसियों को इशारा किया तो वे लोग गायकवाड़ को लगभग घसीटते हुए वहां से लेकर बाहर निकल गये।
‘‘आज की रात उसे कोई बड़ा ट्रीटमेंट देने की जरूरत नहीं है तिवारी जी - एसीपी बोला - सभ्य आदमी है, मुझे उम्मीद है रात भर हवालात में रहेगा तो वैसा ही टूट जायेगा। नहीं टूटा तो कल की कल देखेंगे।‘‘
‘‘जी जनाब!‘‘ तिवारी तत्पर स्वर में बोला।
‘‘गोखले! - एसीपी मुझसे मुखातिब हुआ - वैसे तो हम तुझे बाहर का आदमी समझते ही नहीं हैं, फिर भी इतना जरूर कहूंगा, कि इसकी गिरफ्तारी की बाबत अभी खामोश रहना।‘‘
मैंने सहमति में सिर हिला दिया।
उसके बाद वो मीटिंग वहीं समाप्त हो गयी।
सात जून 2017
मोबाइल की निरंतर बजती घंटी ने मुझे सोते से जगाया। मैंने वॉल क्लाक पर निगाह डाली तो पाया आठ बजने को थे। मैं अलसाया सा उठकर बैठ गया।
मोबाइल पर तिवारी का नंबर फ्लैश हो रहा था। मैंने तत्काल काल अटैंड की।
‘‘तिवारी साहब प्रणाम!‘‘
‘‘जीते रहो भई, लगता है अभी तक सो रहे हो।‘‘
‘‘जी था तो कुछ ऐसा ही।‘‘
‘‘मजे हैं भई तुम्हारे, यहां तो चार घंटे की नींद भी मयस्सर नहीं हुई।‘‘
‘‘जनाब सब कुशल-मंगल तो है।‘‘
‘‘अभी तक तो है ही, आगे देखते हैं।‘‘
‘‘आपके मुजरिम ने कुछ बककर दिया या नहीं।‘‘
‘‘ऐसे भला कौन बककर देता है गोखले, ढंग से इंटेरोगेट तो करने ही नहीं दिया साहब ने, वरना मैं तो कल रात एसीपी साहब के सामने ही उसका गुनाह कबूल करवा लेता।‘‘
‘‘कसर ही क्या रह गई थी!‘‘
‘‘ठीक कहते हो, थोड़ा ट्रीटमेंट और मिला होता तो कल रात ही सारा मामला साफ हो गया होता।‘‘
‘‘मगर यूं लिए गये बयान की क्या अहमियत होती जनाब, वो कोर्ट में पहुंचकर मुकर जाता तो! आखिर ऐसा आम होता रहता है।‘‘
‘‘भई हम उसके बयान के आधार पर कोई सबूत भी तो इकट्ठा करते, यूंही थोड़े उसे जज के सामने ले जाकर खड़ा कर देते। अभी भी कम से कम रंजना के कत्ल वाले मामले में तो हमारे पास उसके खिलाफ सबूत है ही।‘‘
‘‘हां सो तो है।‘‘
‘‘वो तुमसे मिलना चाहता है, कहता है उसने जो बताना है वो सिर्फ और सिर्फ तुमको बतायेगा, वरना भले ही हम उसकी हड्डी-पसली एक कर दें वो जुबान नहीं खोलेगा।‘‘
‘‘ऐसे भला कोई जुबान बंद रख सकता है।‘‘
‘‘नहीं रख सकता, मगर ये बात उसे कौन समझाये। फिर एसीपी साहब ने कहा है कि - घी सीधी उंगली से निकलता हो तो उंगली टेढ़ी करने वाला बेवकूफों की श्रेणी में गिना जाता है - फिर गोखले तो अपना आदमी है, मुजरिम उसे कुछ बताये या हमें बताये, एक ही बात है।‘‘
‘‘जनाब एक घंटे में पेश जाऊंगा मैं आपके हूजूर में, कोई और हुक्म हो तो बताइए।‘‘
‘‘हुक्म नहीं है भई इल्तिजा है दिल्ली पुलिस की तुमसे, एक घंटे में ना सही दस बजे तक तो पहुंच ही जाना।‘‘
‘‘आपका हुक्म सिर आंखों पर जनाब।‘‘
जवाब में उसने कॉल डिस्कनैक्ट कर दी।
सच कहता हूं साहबान! पुलिसवालों की मीठी-मीठी जुबान सुनकर मेरे अंदर कुछ होने सा लगता है। बजाय रिक्वेस्ट करने के अगर उसने सीधा हुक्म दनदना दिया होता कि मुझे फौरन थाने पहुंचना है, तो वो बात मेरे लिए ज्यादा सहज होती। उसका मैं अब तक आदी हो चुका था। बहरहाल जाना तो था ही, पता नहीं गायकवाड़ अब नया क्या कहना चाहता था। ऐसा क्या था जो वो पुलिस की बजाय सिर्फ और सिर्फ आपके खादिम को बताना चाहता था।
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ठीक दस बजे मैं थाने पहुंचा, तो तिवारी को मैंने बेसब्री से अपना इंतजार करते पाया।
‘‘एक घंटे में पहुंचने की बात कही थी गोखले।‘‘
‘‘हां जिसे आपने ही दस बजे तक के लिए एक्स्टेंड कर दिया था और देख लीजिए इस वक्त ठीक दस बजे हैं।‘‘
‘‘ठीक है चल! - वो उठता हुआ बोला, फिर बड़े प्यार से मेरी पीठ पर दो बार थपकी दी और मेरे कंधे पर हाथ रखकर वो बाहर तक आया। उसका ये दोस्ताना व्यवहार मुझे कुछ चुभ सा गया। कुछ ना कुछ गड़बड़ तो जरूर थी। क्यों वो यूं पेश आ रहा था जैसे मैं उसका कोई जिगरी यार था।
बहरहाल मुझे लॉकअप तक पहुंचाकर वो वापिस लौट गया। भीतर मनोज गायकवाड़ एक चेयर पर सिर झुकाये बैठा था। एक ही रात में वो सालों का बीमार लगने लगा था। आहट पाकर उसने चेहरा ऊपर उठाया, फिर मुझपर निगाह पड़ते ही उसके चेहरे पर अजीब से भाव उभरे। मैं वहां मौजूद एक स्टूल खींचकर उसके सामने बैठ गया।
‘‘क्यों फंसाया मुझे?‘‘
‘‘क्या कह रहे हो जनाब! मैं भला आपको क्यों फंसाऊंगा, फिर पता तो चले कि मैंने ऐसा क्या कर दिया।‘‘
‘‘रिवाल्वर की खरीद-फरोख्त वाली बात तुमने पुलिस को बताई थी।‘‘
‘‘किसने कहा आपसे ऐसा?‘‘
‘‘सोचो! मैं यहां हवालात में बंद हूं तो पुलिस के सिवाय ये खबर मुझे कौन दे सकता है। कैसे पीडी हो तुम जो क्लाइंट के लिए कातिल को तलाशने की बजाय, क्लाइंट को ही कत्ल के केस में लपेट दिया।‘‘
‘‘मैंने ऐसा कुछ नहीं किया - कहते हुए मैंने अपने जेब से एक डायरी और पेन निकाला फिर उसपर लिखा ‘चुपचाप मेरी पीठ पर देखिये क्या वहां कोई चीज चिपकी नजर आती है आपको‘ फिर वो पुर्जा फाड़कर मैंने उसे पकड़ाया और बात आगे बढ़ाई - ‘जनाब आप मेरी वजह से नहीं फंसे हैं, आपको फंसाया है आपके कुकर्मो ने क्या जरूरत थी आपको यूं कत्लेआम मचाने की।‘‘
‘‘मैंने कोई कत्ल नहीं किया।‘‘ कहते हुए उसने मेरी पीठ पर से बड़ी सी बिंदी जैसी चीज नोंचकर मेरे हाथों में रख दी। तो ये माजरा था! यकीनन वो कोई माइक्रोफोन था जिसके जरिए तिवारी ने हमारी बातें सुनने का इंतजाम किया था। मैने गायकवाड़ को इशारा किया कि उसे दोबारा वहीं चिपका दे। उसने ऐसा ही किया और दोबारा मेरा सामने आकर बैठ गया।
‘‘आपके कहने से क्या होता है, आपके खिलाफ ठोस सबूत हैं, आप हरगिज भी बच नहीं सकते।‘‘
कहने के साथ-साथ मैंने पुनः डायरी में लिखा, ‘‘ये कोई माइक्रोफोन है, जिसके जरिए हमारी बातें सुनी जा रही हैं, क्या आप कुछ खास कहना चाहते हैं, ऐसी कोई बात जो पुलिस को नहीं बताना चाहते।‘‘
‘‘मैंने तो तुम्हारा बहुत नाम सुना है इस धंधे में।‘‘ कहते हुए उसने कागज पर निगाह टिका दी, फिर सिर हिलाकर हामी भरी।
‘‘क्या नाम सुना है कि मैं अपने क्लाइंट का गुनाह अपने सिर ले लेता हूं, या मैं इतना बड़ा उस्ताद हूं कि स्याह को सफेद करके दिखाता हूं।‘‘
मैंने पुनः डायरी में लिखा, ‘‘मैं जल्द ही आपसे दोबारा मिलूंगा आज की ही डेट में! अभी कोई भी बात करते रहिए, कुछ नहीं तो इसी जिद पर अड़े रहिए कि आपने कुछ नहीं किया है।‘‘
उसने पढ़ा फिर सहमति में सिर हिलाते हुए बोला, ‘‘देखो मैं ये नहीं कह रहा कि तुम स्याह को सफेद कर के दिखाओ, मगर मैंने तुम्हे रिटेन किया है तो कम से कम कातिल की तलाश तो तुम्हें जारी रखनी चाहिए।‘‘
‘‘कातिल तो मेरे सामने बैठा है जनाब।‘‘
‘‘मैं तुम्हारा क्लाइंट हूं, तुम्हें मेरी बात पर यकीन करना चाहिए, और जाकर असली कातिल की तलाश में हाथ-पांव मारने चाहिए। यूं अगर तुम मुझे ही कातिल समझ लोगे तो इंवेस्टिगेशन कैसे करोगे।‘‘
‘‘मैं आपकी सारी बातें मान लूंगा बस आप एक सवाल का जवाब दे दीजिए कि अगर आप कातिल नहीं हैं तो जो रिवाल्वर आपके पास थी, उससे रंजना चावला का कत्ल क्योंकर हो गया।‘‘
‘‘मुझे नहीं मालूम! - वो दृढ़ स्वर में बोला - यही सीधा और सच्चा जवाब है। जो तुम्हें समझ में आता हो तो ठीक वरना समझ लो मैंने तुम्हें यहां बुलाकर सिर्फ वक्त बर्बाद किया।‘‘
‘‘पुलिस का कहना था कि आप मुझे कुछ बताना चाहते हैं, कोई ऐसी बात जो आप पुलिस को नहीं बताना चाहते।‘‘
‘‘ऐसी कोई बात नहीं थी, मैं बस तुमसे मिलना चाहता था। ताकि तुम्हें हत्यारे की तलाश में लगने के लिए तैयार कर सकूं, जो कि मैं देख रहा हूं कि होता नहीं दिख रहा। अब बेशक तुम जा सकते हो।‘‘
‘‘जैसी आपकी मर्जी।‘‘ कहकर मैं उठकर खड़ा हो गया। लॉकअप से बाहर निकलते ही मुझे तिवारी अपनी तरफ आता दिखाई दिया।
‘‘कुछ बताया उसने!‘‘
‘‘नहीं, बस यही राग अलापता रहा कि वो निर्दोष है और मुझे असली कातिल के पीछे पड़ना चाहिए।‘‘
‘‘तेरी पीठ पर कुछ लगा है गोखले।‘‘ कहकर उसने वहां चिपके माइक्रोफोन को नोंचकर अलग किया और यूं दिखावा किया जैसे पीठ से हटाकर कुछ फेंका हो, मगर अगले ही पल मैंने उसके हाथ को जेब में सरकते साफ देखा।
‘‘अब मेरा लिए क्या हुक्म है।‘‘
‘‘जा भई काम तो कुछ बना नहीं, अब तुझे यहां रोककर क्या फायदा।‘‘ कहकर वो सीधा अपने कमरे में जा घुसा।
उसके इस अंदाज पर मैं तिलमिला कर रह गया। फिर मैंने ये सोचकर खुद को तसल्ली दी कि मैंने ही कौन सी उसकी मनमानी चलने दी थी।
बाहर निकल कर मैंने अंकुर रोहिल्ला के मैनेजर महीप शाह को फोन किया तो पता चला कि वो उस घड़ी हौज खास थाने में पुलिस की हाजिरी भर रहा था।
मैं थाने पहुंचा, तो वो मुझे डियुटी रूम में एक चेयर पर बैठा मिला। बड़े ही अनमने भाव से उसने मुझसे हाथ मिलाया।
‘‘जरूर मरे जा रहे होगे मुझसे मिलने के लिए जो यहां तक आ पहुंचे, नहीं।‘‘
‘‘था तो कुछ ऐसा ही।‘‘
उसने असहाय भाव से मेरी ओर देखा।
‘‘आखिरकार पुलिस को तुमपर शक हो ही गया।‘‘
‘‘बकवास मत करो।‘‘
‘‘कब से बैठे हो यहां।‘‘
‘‘चार घंटे होने वाले हैं - वो कलपता हुआ बोला - अभी और जाने कितना वक्त लगायेंगे ये लोग।‘‘
‘‘बैठा क्यों रखा है तुम्हें।‘‘
‘‘कहते हैं मेरा बयान लेंगे। कल एक ही बात को हजार बार पूछने के बाद भी आज मेरा बयान लेंगे। और अगर लेना ही है तो फिर जल्दी से लेते क्यों नहीं, क्यों मुझे यूं यहां बैठा रखा है जैसे मैंने कोई जुर्म कर दिया हो।‘‘
‘‘किया है?‘‘
जवाब में उसने मुझे खा जाने वाली निगाहों से घूरा।
मैं हौले से हंसा।
‘‘क्यों कलपा रहा है भाई मेरे को, कल जो सिर पर इतना बड़ा गूमड़ निकाल दिया उससे पेट नहीं भरा क्या।‘‘
‘‘वो तुम्हारी गलती थी, मैं निहत्था था फिर भी पिस्तौल दिखाकर तुम मुझे हूल दिए जा रहे थे। ऐसे में तुम्हारे कस बल ढीले करना तो बनता ही था।‘‘
‘‘अब यहां क्या करने आये हो।‘‘
‘‘तुमसे मिलने आया हूं भई! पुलिस ने अगर तुम्हे हवालात में डाल दिया तो कोई वकील वगैरह का इंतजाम करने वाला होना चाहिए या नहीं।‘‘
‘‘लिहाजा जले पर नमक छिड़कने आए हो।‘‘
जवाब में मैं फिर से हंसा तो वो मुंह फेर कर बैठ गया।
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‘‘मैं तुम्हारे बारे में कुछ सोच रहा था।‘‘
‘‘मेरे बारे में सोच रहे थे! - वो पलटकर हैरानी से बोला - क्या सोच रहे थे।‘‘
‘‘यही कि अगर मैं पुलिस को बता दूं कि मकतूला रंजना चावला के कत्ल के वक्त तुम मौकायेवारदात पर मौजूद थे तो क्या ये लोग तुम्हें जल्दी से फ्री कर देंगे।‘‘
‘‘शी...धीरे बोलो यार! तुम तो तुम्हें मरवाने पर तुले हुए हो।‘‘
‘‘नहीं तुलूंगा, बस तुम स्वीकार कर लो कि रंजना को गोली तुमने ही मारी थी।‘‘
‘‘पागल हुए हो मैं भला ऐसा क्यों करता।‘‘
‘‘क्योंकि उसने तुम्हें बताया था कि मंदिरा का मोबाइल उसके हाथ लग गया है, जिसमें कातिल के साथ उसका आखिरी वार्तालाप भी रिकार्ड है। सुनकर तुम्हारे तो छक्के छूट गये होंगे, कहो कि मैं गलत कह रहा हूं।‘‘
‘‘नहीं भाई तुम गलत क्यों कहोगे, आखिर त्रिकालदर्शी जो ठहरे, गलती तो मैंने की तुमपर पिस्तौल तानकर, जिसका खामियाजा पता नहीं कब तक भुगतना पड़ेगा मुझे। कोई सॉरी वगैरह बुलवाना चाहते हो तो मैं अभी बोले देता हूं, लेकिन भगवान के लिए आज के बाद मुझे अपनी सूरत मत दिखाना प्लीज।‘‘
‘‘प्लीज कहते हो तो समझो मैंने मानी तुम्हारी बात, बस एक आखिरी सवाल का जवाब दे दो, तुमने अपने बॉस को गोली क्यों मारी। कोई सैलरी वगैरह का लफड़ा तो नहीं था।‘‘
जवाब में उसने बड़ी अप्रत्याशित हरकत की, उठकर वहां बैठे हवलदार के पास पहुंचा और गरजता हुआ बोला, ‘‘तुम लोगों ने मुझे बयान देने के लिए यहां बुलाया है, या टाइम पास करने के लिए। दो मिनट में या तो मेरा बयान दर्ज करो या मुझे जाने को कहो, वरना सब लोग पछताओगे।‘‘
हवलदार ने हकबकाकर एक बार उसकी शक्ल देखी फिर फोन करने में लग गया।
महीप शाह दोबारा अपनी सीट पर आकर बैठ गया।
‘‘बहुत बढ़िया - मैं हौले से बोला - एकदम सही ट्रीट किया तुमने उसे।‘‘
‘‘हां, अपने हाथों अपनी कब्र खोदने का इससे अच्छा रास्ता और क्या हो सकता है।‘‘
इससे पहले कि मैं दोबारा सवाल जवाब शुरू करता, उसे बयान नोट करवाने के लिए राइटर के पास भेज दिया गया। लिहाजा मुझे अपनी पूछताछ मुल्तवी करनी पड़ी। क्योंकि यूं बयान नोट होते-होते घंटों जाया हो जाते थे। उतनी देर वहां रूककर उसका इंतजार करने का कोई औचित्य नहीं था।
वहां से मैं चौहान को फोन करके उसके फ्लैट तक पहुंचा। आगे मेरा इरादा उसको साथ लेकर नीलम तंवर के पास जाने का था, जिसे बदली हुई परस्थितियों से अवगत कराना जरूरी था।
मैं सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंचा तो सीढ़ियों के दहाने पर खड़ा डॉक्टर खरवार दिखाई दिया। वो किताबों का कितना बड़ा रसिया था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता था कि उस वक्त भी वो एक मोटी सी किताब अपने हाथ में थामें हुए था।
‘‘नमस्कार जनाब!‘‘
‘‘नमस्कार भई कैसे हो।‘‘
‘‘अभी तक तो ठीक हूं आगे मालिक की मर्जी।‘‘
सुनकर वो हौले से हंस दिया।
‘‘किसी का इंतजार कर रहे हैं।‘‘
‘‘अरे नहीं भई, बस अंदर बैठे-बैठे घुटन सी महसूस हुई तो यहां आकर खड़ा हो गया। - कहकर वो तनिक रूका फिर बोला - तो ये सब किया-धरा गायवकवाड़ का निकला।‘‘
‘‘लगता तो यही है जनाब! आखिर पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया है तो यूंही तो नहीं कर लिया होगा।‘‘
‘‘ठीक कहते हो मगर जाने क्यों मुझे यकीन नहीं आ रहा कि वो कत्ल जैसी वारदातों का अंजाम दे सकता है। आज सुबह ही मैं उससे मिलने गया था, बड़ी मुश्किल से पुलिस ने इजाजत दी, तब उसने एक ऐसी बात कही जिससे मुझे लगने लगा कि वो कातिल नहीं हो सकता।‘‘
‘‘ऐसी भी क्या कह दिया उसने?‘‘ मैं उत्सुक स्वर में बोला।
‘‘वो कहता था कि अगर ये सारे कत्ल उसने किये होते तो उसे रंजना के कत्ल के लिए रिवाल्वर खरीदने की क्या जरूरत थी। क्यों न उसने रंजना को भी उसी रिवाल्वर से गोली मार दी जिससे उसने अंकुर रोहिल्ला का कत्ल किया था।‘‘
‘‘दम तो है जनाब उसकी दलील में, देखते हैं पुलिस उसका क्या जवाब तलाशती है! वैसे अंकुर के कत्ल वाले दिन वो था कहां? मेरा मतलब है इस बारे में आपको कुछ पता हो।‘‘
‘‘कहां था मैं नहीं जानता। उस रोज ग्यारह बजे के करीब वो अपना फ्लैट लॉक करके चला गया था। उसके बाद शाम के सात बजे जब मैं अपनी ड्यूटी पर जाने के लिए निकला तो उस वक्त भी उसके फ्लैट को ताला लगा हुआ था। बाद में वो किस वक्त लौटा कहना मुहाल है क्योंकि मैं तो अगली सुबह ही अस्पताल से वापिस लौटा था।‘‘
‘‘आपको उसकी गिरफ्तारी की खबर कब लगी?‘‘
‘‘आज सुबह। जब मैं अपनी नाईट ड्यूटी से वापिस लौटा तो पड़ोसी ने बताया कि बीती रात पुलिस गायकवाड़ को पकड़कर ले गई थी, जहां से वो तब तक वापिस नहीं लौटा था। सुनते ही मैं सीधा थाने चला गया। जहां बड़ी मुश्किल से मेरी उससे मुलाकात हो पाई। पता नहीं पुलिस ने उसके साथ कोई मारपीट की थी, या हवालात में रात गुजारने की वजह से उसकी हालत बदरंग हो गयी थी! मगर सच्चाई यही है कि उस वक्त उसकी हालत देखने लायक नहीं थी।‘‘
अभी हमारी बातें चल ही रही थीं कि तभी चौहान की काल आ गई, ‘‘कहां रह गया भई।‘‘
‘‘बाहर हूं आ जाओ।‘‘ कहकर मैंने काल डिस्कनैक्ट कर दी।
चौहान बाहर आया तो मैं डॉक्टर से विदा लेकर उसके साथ हो लिया।
‘‘डॉक्टर से क्या बातें कर रहा था?‘‘ चौहान कार में बैठता हुआ बोला।
‘‘कुछ खास नहीं, वो मुझे सीढ़ियों पर मिल गया तो गायकवाड़ के बारे में बातें करने लगा, कहता था उसे यकीन नहीं कि ये सब किया-धरा गायकवाड़ का है।‘‘
‘‘एक नंबर का चिपकू इंसान है, सुनीता से चिपकने की भी खूब कोशिश करता था, बस दाल नहीं गली उसकी।‘‘
‘‘बतौर डॉक्टर उसकी स्पेशिलिटी क्या है?‘‘
‘‘मैं नहीं जानता भाई, मेरी उससे कोई दुआ-सलाम नहीं है।‘‘
‘‘बोल रहा था कि उसकी नाईट ड्युटी चल रही है आजकल।‘‘
‘‘हो सकता है तभी तो दिनभर घर में पड़ा रहता है।‘‘
‘‘वैसे पोस्टिंग कहां है उसकी।‘‘
‘‘सरोजनी नगर में कोई अस्पताल है, वहीं।‘‘
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