Adultery Thriller सुराग

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Masoom
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Re: Adultery Thriller सुराग

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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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पौने पांच बजे के करीब मैं अपने फ्लैट पर पहुंचा ।
सरसरी निगाह से वहां का मुआयना करने पर मुझे लगा कि पिछली रात से मेरी वहां से गैरहाजिरी के दौरान वहां किसी बिन बुलाये मेहमान के कदम नहीं पड़े थे । लेकिन अपने काम को आगंतुक ने इस बार जरूरत से ज्यादा सावधानी से अंजाम दिया भी हो सकता था इसलिये फिर भी मैंने हर उस स्थान का बड़ी बारीकी से मुआयना किया जहां कि कुछ छुपाया जा सकता था ।
कुछ बरामद न हुआ ।
सवा पांच बजे मैंने वहां से कूच करने का फैसला कर लिया ।
मैंने दरवाजा खोल कर फ्लैट से बाहर कदम रखा । मैं घूमकर दरवाजा बंद करने लगा तो मेरे पर जैसे गाज गिरी, मेरी आंखों के सामने अन्धेरा छाने लगा और मेरे घुटने मुड़ने लगे ।
फिर मेरी चेतना लुप्त हो गयी ।
पता नहीं कब मुझे होश आया ।
मैं लड़खड़ाता हुआ उठकर अपने पैरों पर खड़ा हुआ, आंखें मिचमिचा कर मैंने उन्हें फोकस करने का उपक्रम किया और फिर दरवाजा धकेल कर लड़खड़ाता सा वापिस अपने फ्लैट में दाखिल हुआ । मैं सीधा बाथरूम में पहुंचा जहां मैंने अपने मुंह पर ठन्डे पानी के छींटे मारे तो मेरे हवास कुछ ठिकाने लगे ।
मैंने शीशे में अपनी सूरत का मुआयना किया तो पाया कि मेरी दाईं कनपटी पर पहले से मौजूद गूमड़ अब और बड़ा हो गया था । लेकिन वो फूटा नहीं था ।
मैंने अपना मुंह सिर पोंछा, बालों में कंघी फिराई, कपड़े व्यवस्थित किये और नये सिरे से फ्लैट की तलाशी ली ।
मेरी बेहोशी के दौर में भी वहां कुछ प्लांट नहीं किया गया था ।
तो फिर मुझं पर यूं आक्रमण का मकसद क्या था ?
कोई जवाब मुझे न सूझा ।
मैं फ्लैट से बाहर निकला, उसको ताला लगाया और अपने पर दौबारा किसी आक्रमण से खबरदार मैं नीचे सड़क पर पहुंचा जहां कि मेरी कार खड़ी थी । मैं कार पर सवार हुआ और मैंने उसे वहां से आगे बढाया ।
उस घड़ी मेरी मंजिल करोलबाग थी जहां कि हरीश पाण्डेय रहता था और जिसने पूरे दिन से मुझे अपनी कोई खोज खबर नहीं दी थी । अपने पर हुए वर्तमान आक्रमण के बाद मेरा उससे उसकी रिवाल्वर उधार मांगने का भी इरादा था ।
गली से निकल कर जब मैंने कार को आगे लेडी श्री राम कालेज के सामने से बायें मोड़ने की कोशिश की तो मेरे छक्के छूट गये ।
कार को ब्रेक नहीं लग रही थी ।
रफ्तार से मोड़ काटने की कोशिश में कार उलटते-उलटते बची वो मेन रोड पर सीधी हुई तो सामने तोप से छूटे गोले की तरह भागी । सामने से एक कार आ रही थी जिसकी चपेट में आने से मेरी कार बाल बाल बची ।
लेकिन फिर सामने मुझे पहाड़ की तरह तीन चौथाई सड़क घेरे एक बस दिखाई दी । उससे बचने की कोशिश में मैंने स्टियरिंग को बायें काटा, तो कार के उधर के दो पहिये फुटपाथ पर चढ़ गये ।
फिर ब्रेकों की चरचराहट की तीखी आवाज !
फिर धड़ाम की गगन भेदी आवाज !
मेरी चेतना फिर लुप्त ।
Chapter 5
इस बार मुझे होश आया तो मैंने अपने आपको हस्पताल के बैड पर पाया ।
फिर मुझे डॉली की सूरत दिखाई दी । वो मेरे करीब एक कुर्सी पर बैठी व्यग्र भाव से मुझे देख रही थी ।
“तू !” - मैं कम्पित स्वर में बोला - “यहां !”
“हां ।” - वो बोली ।
“मैं कहां हूं ?”
“मूलचन्द हस्पताल में । कैसा लग रहा है ?”
“जिस्म का पोर-पोर दुख रहा है ।”
“वो सब ठीक हो जायेगा । कोई गम्भीर चोट आपको नहीं लगी है । बहुत खुशकिस्मत हैं आप ! बहुत बड़े एक्सीडेंट से बाल-बाल बचे हैं ।”
“लेकिन तू..तू कैसे वहां पहुंच गयी ?”
“इत्तफाक से । बिल्कुल इत्तफाक से । दफ्तर बन्द करके आटो पर घर जा रही थी कि लेडी श्रीराम कालेज के सामने मुझे अपने से आगे आपकी फियेट कार दिखाई दी थी । फिर मेरे देखते-देखते मेरी आंखों के सामने आपकी कार का एक्सीडेंट हो गया । आपकी कार एक बिजली के खम्बे से टकराई, उसे पीछे से आते एक टैम्पो की ठोकरें लगी जिससे कि कार की डिकी का दरवाजा खुल गया । मैं आटो से उतर कर दौड़ती हुई आपकी कार के करीब पहुंची । डिकी का दरवाजा खुला देख कर मुझे वहां पड़े टायर ट्यूब में छुपी रिवाल्वर का ख्याल आया । उस घड़ी मुझे लगा कि रिवाल्वर वहां से बरामद नहीं होनी चाहिये थी, सो मैंने जल्दी से वहां से रिवाल्वर निकाली और अपने हैंडबैग में डाल ली । तब मैंने देखा कि वहां तो कुछ और भी मौजूद था ।”
“क्या ?”
“चमड़े की लाल जिल्द से मंढ़ी एक मोटी डायरी और उसके बीच दबे कुछ कागजात ।”
“मेरी कार की डिक्की में ?”
“हां । तब किसी अज्ञात भावना से प्रेरित होकर वो डायरी भी मैंने बैग में डाल ली ।”
“ओह ! किसी ने तुझे ये सब करते देखा नहीं ?”
“मेरे ख्याल से नहीं देखा । मैं तो पलक झपकते ही आपकी कार के पास पहुंच गई थी । देखा तो टोका नहीं । कोई बड़ी बात नहीं कि वहां बाद में जमा हुए लोगों ने मुझे भी आपकी कार का मुसाफिर ही समझा हो ।”
“हो सकता है । फिर ?”
“फिर मेरी तवज्जो आपकी तरफ गयी । आप स्टीयरिंग के पीछे बेहोश पड़े थे । मैंने आप के लिये मदद की दुहाई दी तो कोई दौड़ कर कहीं से पुलिस को फोन कर आया । फिर पलक झपकते वहां पुलिस की एक जिप्सी वैन पहुंच गयी । उन्होंने आप को कार से निकाल कर वैन में डाला और यहां ले आये ।”
“अब वो कागजात और रिवाल्वर कहां हैं ?”
“मेरे घर में । आटे के कनस्तर में ।”
“तेरे माता पिता आ गये ?”
“नहीं । मुझे खुद हैरानी है । टेलीग्राम नहीं मिली होगी उन्हें ।”
“या देर से मिली होगी ।”
“हो सकता है ।”
“तू जब वापिस यहां आयी तो तेरे से सवाल नहीं हुआ कि पहले तू कहां चली गयी थी ?”
“न । मेरे ख्याल से तो पुलिस की मेरी वहां मौजूदगी की तरफ तवज्जो ही नहीं गयी थी । वो तो यही समझे थे कि मैं बस पहली बार हस्पताल पहुंची थी ।”
“उन्होंने ये नहीं पूछा कि तुझे एक्सीडेंट की खबर कैसे लगी ?”
“न । किसी ने न पूछा । पूछते तो जवाब मेरे पास तैयार था ।”
“क्या ?”
“जमा हुई भीड़ में से कोई आपको पहचानता था ! उसने आपके ऑफिस फोन किया जहां कि मैं इत्तफाक से अभी मौजूद थी और मुझे आपके एक्सीडेंट की खबर दी । मैं दौड़ी यहां चली आयी ।”
“शाबाश ।”
अब मेरी समझ में आ गया कि हत्यारे की क्या मंशा थी । उसने मेरी कार की ब्रेकें फेल करके शबाना के कुछ और कागजात डिकी में छुपा दिये । उसकी निगाह में बिना ब्रेक की कार चलाने पर मेरा एक्सीडेंट होना तो अवश्यम्भावी था । मैं मर गया होता तो बात ही खत्म थी । क्योंकि तब जब शबाना की डायरी और मर्डर वैपन वो रिवाल्वर मेरी कार में से बरामद होते तो यही समझा जाता कि सब किया धरा मेरा ही था । एक्सीडेंट से बच भी जाता तो मेरी कार से उन चीजों की बरामदी की रू में पुलिस की निगाह में सस्पैक्ट नम्बर वन में ही होता ।
यानी कि यादव ने जैसी भविष्यवाणी की थी, तकरीबन वैसा ही सब कुछ हुआ था ।
मुझे सूझना चाहिए था कि शबाना के कागजात मेरे सिर थोपने के लिये मेरी कार, जो कि लावारिस सी मेरे घर के बाहर फुटपाथ पर खड़ी रहती थी, भी निहायत माकूल जगह थी । उन कागजात का मेरे फ्लैट में पायी जाना या मेरी कार में पाया जाना हत्यारे के मकसद के लिहाज से एक ही बात थी ।
“...एक चिट्ठी छोड़ गया था ।”
मैंने हड़बड़ा कर सिर उठाया और बोला - “क्या कहा ?”
“मैंने कहा” - डॉली बोली - “हरीश पाण्डेय आफिस में आया था और आपकी गैरहाजिरी में आपके लिये एक चिट्ठी छोड़ गया था ।”
“कहां है वो चिट्ठी ?”
“मेरे पास है ।”
उसने एक बन्द लिफाफा मुझे थमाया ।
मैंने लिफाफा खोल कर उसमें से चिट्ठी निकाली और उसे पढ़ा । लिखा था : रजनीश और प्रभात पचौरी की माली हालत आजकल खराब चल रही मालूम होती है । पिछले दिनों पचौरी ने अपनी नयी टाटा सियेरा बेच कर सैकण्डहैण्ड मारुती खरीदी है और बैक्टर ने चार लाख के शेयर बेचे हैं । उसका स्टॉक ब्रोकर कहता है कि यूं उसने पहले कभी शेयर नहीं बेचे और कहता है कि मुनाफा कमाने के लिहाज से शेयर बेचने के लिये वो मुनासिब वक्त नहीं था । - हरीश पाण्डेय
मैंने चिट्ठी को फाड़ कर उसके टुकड़े रद्दी की टोकरी में डाल दिए ।
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कोई बड़ी बात नहीं थी कि उन दोनों ने शबाना को देने के लिये रकम खड़ी करने के लिये वो काम किये थे ।
लेकिन यूं रकम भी कोई कब तक खड़ी करता रह सकता था !
मैं दोनों की कल्पना शबाना के कातिल के तौर पर करने लगा ।
“आपकी ये रात तो कम से कम यहीं कटेगी ।” - डॉली कह रही थी - “मैं अब चलती हूं । सुबह आऊंगी ।”
मैंने सहमति मे सिर हिलाया ।
वो दरवाजे पर पहुंची । मैं एकाएक बोला - “एक काम और करना ।”
वो ठिठकी, उसने घूम कर मेरी तरफ देखा ।
“इन्स्पेक्टर यादव को फोन करना ।” - मैं बोला - “उसे बता देना मैं कहां हूं और कहना कि मैं उससे बहुत जरूरी बात करना चाहता हूं ।”
“ठीक है ।”
वो चली गयी ।
आधे घन्टे बाद यादव मेरे सामने मौजूद था ।
“क्या हुआ ?” - वो आते ही बोला ।
मैंने बताया ।
“मैंने तो” - वो बोला - “पहले ही कहा था कि...”
“मैं तुम्हारी दूरदर्शिता की दाद देता हूं ।”
“अब तो बच गये लेकिन ये न भूलो कि ऐसी वारदात तुम्हारे साथ फिर वाक्या हो सकती है । यहां से निकलते ही ।”
“मैं सावधान रहूंगा ।”
“सावधान तो तुम पिछली बार भी थे ।”
“इस बार ज्यादा सावधान रहूंगा ।”
“मुझे कैसे याद किया?”
मैंने उसे बताया कि कैसे डॉली ने मर्डर वैपन रिवाल्वर को और हत्यारे द्वारा मेरी डिकी में रखे शबाना के कागजात को वहां से निकाला था और अपने घर ले गयी थी ।
“डॉली अपने घर में अकेली है ।” - आखिर में मैं बोला - “उसके मां बाप ने हरिद्वार से लौटना था लेकिन लौटे नहीं । मुझे डर है कि हत्यारा अब डॉली पर वैसे हल्ला न बोल दे जैसे उसने कोमलपर बोला था ।”
“लेकिन अभी उसे पता कैसे चला होगा कि वो रिवाल्वर और वे कागजात पुलिस ने तुम्हारी दुर्घटनातस्त कार से नहीं बरामद किये ।”
“पता चल सकता है उसे । ऐसी बातों की जानकारी हासिल करने का उसका कोई साधन हो सकता है ।”
“हूं ।”
“मैं चाहता हूं कि सिर्फ आज की रात तुम डॉली की निगरानी का कोई इन्तजाम करवा दो ।”
“आज के बाद क्या होगा ?”
“पहला काम तो ये ही होगा कि मैं ही यहां से आजाद हो जाऊंगा ।”
“डॉक्टर लोगों ने कहा है कि तुम्हारी कल छुट्टी हो जायेगी ?”
“नहीं कहा । लेकिन वो छुट्टी दें न दें, मैं कल के बाद यहां नहीं रुकने वाला ।”
“घर का पता बोल अपनी सैक्रेट्री के ।”
मैंने बोला ।
“ठीक है ।” - वो बोला - “मैं अभी खुद लोधी रोड थाने जाता हूं और दो सिपाहियों की इस पते पर रात भर की तैनाती का इन्तजाम कर देता हूं ।”
“इन्तजाम हो जायेगा ?”
“अच्छा ! तो अब तुझे भी जाने लगा कि मेरे बुरे दिन आ गये हैं ।”
“सारी ।”
वो चला गया तो वहां ए सी पी तलवार के कदम पड़े । उस के साथ उस घड़ी सिर्फ ए एस आई रावत था ।
“क्या हुआ ?” - तलवार मेरे पलंग के करीब पहुंचकर बोला ।
“आप को मालूम ही होगा ।” - मैं शुष्क स्वर में बोला - “न मालूम होता तो आप यहां आते ?”
“कार की ब्रेकें कैसे फेल हो गई ?”
“पता नहीं ।”
“हो गयी या कर दी गयी ?”
“मेरे ख्याल से तो कर दी गयी ।”
“इस ख्याल की कोई वजह ?”
मैंने उसे बताया कि कैसे वो वारदात होने से थोड़ी ही देर पहले मेरे फ्लैट पर मेरे पर आक्रमण हुआ था ।
“मेरी बेहोशी के दौरान ही” - मैं बोला - “किसी ने मेरी कार की चाबियां मेरी जेब से निकाली थी । उसकी ब्रेकें खराब कर दी थीं और चाबियां वापिस मेरी जेब में डाल दी थीं ।”
मैंने उसे ये न बताया कि हत्यारे को कार की चबियों की जरूरत उसकी डिकी खोल कर भीतर शबाना के कागजात प्लांट करने के लिये थी ।
“यूं तुम्हारी” - तलवार बोला - “मौत का सामान कौन कर सकता है ?”
“शबाना और कोमलके हत्यारे के सिवाय और किसने किया होगा ऐसा ? वही शुरू से ही मेरे पीछे पड़ा हुआ है । उससे पहले भी मेरी रिवाल्वर चुरा कर, उससे कोमलका कत्ल करके मुझे फंसवाने की कोशिश कर चुका है । मैं तब न फंसा तो उसने ये नया पैंतरा अख्तियार कर लिया ।”
“तुम्हारे से क्या दुश्मनी है उसकी ?”
“दुश्मनी नहीं है । वो मेरे को अपने लिये खतरा महसूस करता है । वो समझता है कि कोमलको शबाना से ऐसा कुछ मालूम हुआ था जो कि उसने आगे मुझे बता दिया था - जो उसकी जान के लिये खतरा बन सकता था । इतना आप मानते हैं या नहीं मानने कि शबाना का कत्ल भले ही किसी भी वजह से हुआ हो, कोमलका कत्ल सिर्फ एक वजह से हुआ था कि कातिल को अन्देशा था कि कोमलउसकी असलियत जानती थी । इसी तरह से कातिल को अन्देशा था कि मैं उसकी असलियत जानता था या जान सकता था ।”
“ये मुसीबत तुम्हारी खुद की बुलाई हुई है, मिस्टर प्राइवेट डिटेक्टिव । आग के साथ खिलवाड़ करोगे तो हाथे जलेगा ही ।”
मैं खामोश रहा ।
“कोई और बात” - तलवार बोला - “जो तुमने पुलिस से छुपा कर रखी हुई हो ?”
मैंने इन्कार में सिर हिलाया ।
“ऐसे फटाफट जवाब न दो ।” - वो अप्रसन्न भाव से बोला - “सोच के जवाब दो । पुलिस से छुपाव करूने के मामले में अपना भला बुरा विचार कर जवाब दो । अच्छी तरह सोच के रखना जवाब । मैं कल फिर आऊंगा ।”
फिर बिना दोबारा मेरे पर निगाह डाले वो रावत के साथ वहां से रुख्सत हो गया ।
***
सुबह जब मेरी नींद खुली तो मैंने पाया कि सात बजे हुए थे ।
तब सबसे पहले मुझे ये ही अहसास हुआ कि पिछली रात की तरह मेरे जिस्म का पोर-पोर नहीं दुख रहा था । मैंने पलंग से उतर कर दोनों हाथ हवा में फैला कर अंगड़ाई ली तो हालात को और भी आशाजनक पाया । मैं फिट तो नहीं था लेकिन अपनी निगाह में बिस्तर वाला केस भी नहीं था ।
मैं नित्यकर्म से निवृत हुआ तो हस्पताल का एक सर्वेन्ट चाय ले आया ।
एक नाई मेरी शेव कर गया ।
फिर ब्रेकफास्ट ।
फिर मैंने बाथरूम में जा कर गर्म पानी से स्नान किया और अपने पिछले रोज वाले कपड़े झाड़ पोंछ कर पहन लिये ।
मैं शीशा देखकर बालों में कंघी फिरा रहा था जबकि मोर्निंग राउन्ड का डाक्टर वहां पहुंचा ।
“कहां जा रहे हैं आप?” - वो हैरानी से बोला ।
“घर ।” - मैं बड़े इतमीनान से बोला ।
“अभी कैसे जा सकते हैं आप ? अभी तबीयत ठीक कहां हुई है आप की ?”
“डाक्टर साहब, मेरा फौरन कहीं पहुंचना बहुत जरूरी है । किसी की जान का सवाल है ।”
“आपकी भी जान का सवाल है ।”
“जहां मैंने जाना है वहां भी मेरी जान का ही सवाल है । इसलिये प्लीज, मुझे रोकिये नहीं ।”
“ठीक है ।” - वो अप्रसन्न स्वर में बोला - “जब मरीज को ही अपनी परवाह नहीं तो डाक्टर क्या कर सकता है ! मैं आप का बिल बनवाता हूं ।”
“शुक्रिया ।”
अपने निगहबानों से तब भी खबरदार मैं लोधी रोड डॉली के घर पहुंचा ।
डॉली मुझे वहां पहुंचा देख कर सख्त हैरान हुई ।
“जबरन छुट्टी करके चला आया ।” - मैं बोला - “जरूरी था ।”
“लेकिन आपकी तबीयत...”
“बिल्कुल ठीक तो नहीं है लेकिन हास्पीटल केस भी नहीं हूं । हस्पताल वालो का क्या है वो तो तगड़ा बिल बनाने के लिये चाहेंगे कि मैं पड़ा ही रहूं वहां ।”
“लेकिन फिर भी...”
“तू छोड़ वो किस्सा । तेरे मम्मी पापा आये ?”
“नहीं आये । मुझे तो फिक्र लग रही है ।”
“फिक्र की कोई बात नहीं । उन्हें तार नहीं मिली होगी । अब वो अपने प्रोग्राम के मुताबिक ही आयेंगे ।”
“आप कैसे आये यहां ?”
“मुझे वो कागजात दिखा जो तूने मेरी कार की डिकी में से निकाले थे ।”
वो सहमति में सिर हिलाती किचन में गयी और कागजात के साथ वापिस लौटी ।
मैंने उनका मुआयना शुरू किया ।
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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अपने पहले मुआयने से मैंने ये नतीजा निकाला कि मुकम्मल कागजात वो अभी भी नहीं थे । सब से पहले तो डायरी का सीरियल ही इस बात की चुगली कर रहा था, फिर उनकी टोटल गिनती का मेरा जो अन्दाजा था, उसके लिहाज से भी बावजूद दो बार नष्ट किये जा चुके कागजात के अभी पचासेक कागज हत्यारे के अधिकार में होने चाहिये थे जिन्हें या तो उसने अपने तरकश के आखिरी तीर के तौर पर रख छोड़ा था और या फिर वो वो कागजों जिनमें खुद उसका जिक्र था ।
फिर मैंने उपलब्ध कागजात का गौर से अध्ययन करना शुरू किया ।
उन को पढने के पीछे मेरी मंशा ये देखना था कि चाण्डाल चौकड़ी में से किस का नाम उन में नहीं था । अगर कौशिक, पचौरी, अस्थाना और बैक्टर चारों के नाम उस में थे तो मुझे हत्यारे के तौर पर कोई पांचवा नाम सोचना पड़ना था क्योंकि उन में से कोई भी ऐसा अहमक नहीं हो सकता था कि कागजात को हाथ से निकल जाने देने से पहले उन में से अपना नाम न सेंसर कर देता । कोई मुझे फंसाने के लिये अपनी गर्दन फंसाने को तैयार नहीं हो सकता था ।
दस बजे डॉली ने मुझे टोका ।
“आफिस का क्या होगा ?” - वो बोली ।
“क्या मतलब ?” - मैं बोला ।
“आप कहें तो मैं ऑफिस जाऊं ? आप जब फारिग हों तो यहां ताला लगा के आ जाइयेगा ।”
मैं कुछ क्षण सोचता रहा और फिर इन्कार में सिर हिलाने लगा ।
“नहीं ।” - मैं बोला - “तेरा यहां ठहरना जरूरी है । तेरी गैरहाजिरी में तेरे मम्मी पापा यहां पहुंच गये तो हो सकता है उनको मेरी अकेले यहां मौजूदगी पसन्द न आये ।”
वो खामोश हो गयी ।
साढ़े ग्यारह बजे मैं उन कागजात से निपटा ।
मेरी उम्मीद के खिलाफ कौशिक, पचौरी, अस्थाना और बैक्टर चारों के नाम उन कागजात में थे ।
यानी कि जो नाम उन कागजात में से कागजात समेत निकाला गया था वो कोई और ही था ।
और जो इजाफा मेरी जानकारी में हुआ वो ये था कि कागजात में मेरा भी नाम मकबूलियत से था और उसमें स्टाक ब्रोकर नरेन्द्र कुमार के अपेक्षित नाम के अलावा उतनी ही मकबूलियत से जिन दो और नामों का जिक्र था वो थे जीवन सक्सेना और किशोर भटनागर ।
मैं उन दोनों से वाकिफ था । दोनों शहर के बिगड़े रईसजादे थे और शबाना के शैदाई थे ।
अब सवाल ये पैदा होता था कि और कौन शख्स था - या शख्स थे - जिस का कि नाम अब तक सामने नहीं आया था लेकिन जिस का जिक्र उन बाकी पचासेक कागजात में हो सकता था जो कि अभी गायब थे ।
बड़े धीरज से उन तमाम लोगों का अक्स मैंने अपने जेहन पर उतारना शुरू किया, शबाना के दिल्ली में स्थापित होने के बाद से जिन के सम्पर्क में मैं वक्त-वक्त पर आया, था ।
कहीं किसी पार्टी में जहां शबाना मौजूद थी !
कही, कभी, शबाना के मिलवाये !
कभी शबाना के किसी चाहने वाले के आगे शबाना के किसी और चाहने वाले से मिलवाये !
कभी, कहीं, शबाना का परिचय प्राप्त करने के लिये मरा जा रहा कोई शख्स !
मेरे जेहन पर ऐसे लोगों की न्यूज रील सी चलने लगी ।
कई सूरतें, कई नाम सामने आये ।
लेकिन एक सूरत, एक नाम सब से ज्यादा उभर कर सामने आया ।
उस नाम को मद्देनजर रखकर मैंने सोमवार रात से लेकर तब तक के वाक्यात का बारीक तबसरा आरम्भ किया ।
वो नाम प्रत्यक्ष में या परोक्ष में मुझे हर जगह फिट होता लगा ।
लेकिन सबूत ! सबूत कहां था मेरे पास उसके खिलाफ ?
“क्या सोच रहे हैं ?” - डॉली बोली ।
“डॉली” - मैं उत्तेजित भाव से बोला - “मुझे लगता है कि मुझे सूझ गया है कि हत्यारा कौन है लेकिन मेरे पास उसके खिलाफ कोई सबूत नहीं हैं ।”
“फिर क्या फायदा हुआ ?”
“फायदा ये हुआ कि अब कम से कम मुझे दिशाज्ञान तो हुआ । भटकन तो बन्द हुई । अब मुझे ये तो मालूम है कि मेरा निशाना कौन होना चाहिये । इतना मालूम हो जाने के बाद तो अब मैं उसके लिये जाल भी बुन सकता हूं ।”
“जाल !”
“हां, जाल । ऐसा लाल जिस में शिकार खुद ही आ फंसता है । वो एक बार फंस जायेगा तो वो खुद ही अपने सारे गुनाह कबूल कर रहा होगा ।”
वो मुंह से कुछ न बोली तेकिन उसके चेहरे पर से संशय के भाव न गये ।
“तू फिक्र न कर ।” - मैं आश्वासनपूर्ण स्वर में बोला - “तू बिल्कुल फिक्र न कर । मैं सब संभाल लूंगा ।”
“अकेले ?” - वो बोली ।
“क्या मतलब ?”
“शिकार को फांसने के लिये जिस जाल का जिक्र आपने किया, वो आप खुद बुनेंगे, खुद फैलायेंगे, खुद समेटेंगे ?”
“ओह ! नहीं । इस सिलसिले में मेरा इन्स्पेक्टर यादव से मदद लेने का इरादा है ।”
“पुलिस से क्यों नहीं ?”
“वो भी तो पुलिस है ।”
“वो इस केस की तफ्तीश नहीं कर रहा ।”
“लेकिन चुपचाप मेरी बहुत मदद कर रहा है । और उम्मीद है कि इस बार भी करेगा ।”
“लेकिन....”
“डॉली, ए सी पी तलवार मेरे खिलाफ है । यहां तक कि वो मुझे ही शबाना और कोमलका कातिल समझता है । अपनी योजना के साथ मैं उस के पास गया तो वो यही समझेगा कि मैं वो ड्रामा पुलिस की तवज्जो अपनी तरफ से हटाने की नीयत से करना चाहता हूं ।”
वो खामोश रही ।
“अब तू बेखौफ ऑफिस जा । मैं सब सम्भाल लूंगा ।”
उसने हिचकिचाते हुए सहमति में सिर हिलाया ।
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कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
Masoom
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Re: Adultery Thriller सुराग

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