Adultery Thriller सुराग

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Masoom
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“ये” - वो जिदभरे स्वर में बोला - “शबाना के कत्ल के दौरान मौकायेवारदात पर चली गोली ही है । वहां दो गोलियां चली थीं । एक शबाना की छाती में लगी थी जिस ने उसकी जान ली थी । दूसरी उसके जिस्म के करीब मैट्रेस में धंस गयी थी । हमें पलंग पर बिछी चादर में और चादर के नीचे मैट्रेस में गोली का सुराख मिला था लेकिन गोली नहीं मिली थी । किसी ने गोली उस सुराख में से निकाल ली थी । जरुर कोई पुलिस से पहले ये जानने का इच्छुक था कि वो गोली कैसी रिवाल्वर से चलायी गयी थी ताकि फिर वो ऐसे शख्स को ट्रेस कर सकता जो कि शबाना का करीबी था, उसका कातिल हो सकता था और वैसी रिवाल्वर का मालिक था । वो ‘कोई’ तुम हो, मिस्टर प्राइवेट डिटेक्टिव । ऐसा खुरापाती आदमी मुझे इस केस में एक ही दिखाई दे रहा है जो कि तुम हो । फिर जब हमने चुपचाप ये मालूम करवाया कि क्या तुम्हारी जानकारी के दायरे में कोई आर्म्स एण्ड अम्युनिशन डीलर भी था तो इन साहब का नाम सामने आया । इन्हें पकड़ कर यहां मंगवाया गया तो इन्होंने जल्दी ही सारी कहानी कह दी । अब बोलो तुमने मैट्रेस में से गोली क्यों निकाली ?”
“मैंने नहीं निकाली ।” – मैं दिलेरी से बोला – “और मैं अभी भी कहता हूं कि ये जरुरी नहीं है कि ये गोली मर्डर वैपन से ही चली हो ।”
“तलवार ने कोई सख्त बात कहने के लिए मुंह खोला लेकिन फिर कुछ सोचकर खामोश हो गया । फिर उसने दराज में से एक खाली लिफाफा निकाला, उस पर पहले लिफाफे जैसे ही मोटे मोटे अक्षरों में ‘राज से बरामद हुई गोली’ लिखा और मेरे वाली गोली उठाकर उस लिफाफे में बंद किया और फिर कॉलबैल बजायी ।”
“तत्काल एक हवलदार भीतर आया ।”
“ये दोनों लिफाफे” – तलवार ने आदेश दिया – “बैलेस्टिक एक्सपर्ट के पास ले जाओ और कम्पेरिजन की रिपोर्ट लेकर उलटे पांव वापिस आओ ।”
“जी, जनाब ।” – हवलदार तत्पर स्वर में बोला, उसने मेज पर से लिफाफे उठाये और वहां से रुख्सत हो गया ।”
“अगर ये दोनों गोलियां” – तलवार मुझे घूरता हुआ बोला – “आपस में मिलती पायी गयीं तो जानते हो इसका मतलब क्या होगा ?”
“यही” - मैं बोला - “कि दोनों गोलियां एक ही रिवाल्वर से चली थीं ।”
“उस रिवाल्वर से, शबाना के कत्ल के केस में जिस से घातक गोली चली थी ।”
“कबूल । लेकिन इससे ये कैसे साबित हो जायेगा कि दूसरी गोली मैट्रेस में से निकली थी ?”
“और कहां से निकलेगी जब मौकायेवारदातपर दो ही गोलियां चली थी तो ....”
“मौकायेवारदात पर दो गोलियां चली थी लेकिन उन गोलियों को चलाने वाली रिवाल्वर से, कथित मर्डर वैपन से, दर्जनों गोलियां कहीं और, कभी और चली हो सकती हैं । दूसरी गोली उन्हीं कहीं और, चली गोलियों में से एक हो सकती है । जनाब, घातक गोली की शिनाख्त तो ये है कि वो पोस्टमार्टम के दौरान लाश में से निकली । दूसरी गोली घातक गोली से मिलती भी पायी गयी तो ये कैसे स्थापित होगा कि वो उस मैट्रेस में दागी गयी थी जिस पर कि शबाना की लाश पड़ी पायी गयी थी ?”
वो हड़बड़ाया । मुझे घूरती उसकी निगाह एक क्षण को विचलित हुई और फिर वो पूर्ववत कठोर स्वर में बोला - “ये तुम अपनी जुबानी कबूल करोगे कि वो गोली तुम ने मैट्रेस में से निकाली थी ।”
“अच्छा ! जबरदस्ती ?”
“फिर तुम्हें ये भी कबूल करना पड़ेगा कि वारदात के वक्त तुम मौकायेवारदात पर मौजूद थे ।”
“जनाब, अगर मैं वारदात के वक्त मौकायेवारदात पर मौजूद रहा होता तो ये गोली वहां मैट्रेस में से नहीं, शबाना की बगल में लुढकी पड़ी मेरी लाश में से बरामद हुई होती । आप कातिल के ऐसा अक्ल का अन्धा होने की कल्पना क्योंकर कर सकते हैं कि वो अपने पीछे अपनी करतूत का एक चश्मदीद गवाह जिन्दा छोड़ जाता ।”
“तुम तब कहीं इधर-उधर रहे होगे और कातिल को वहां तुम्हारी मौजूदगी की खबर नहीं लगी होगी ?”
“इधर-उधर कहां ? पलंग के नीचे ?”
“शटअप ।”
“मैं सुबह पांच बजे वहां कैसे मौजूद था ?”
“शबाना से तुम्हारा अफेयर था – तुम अपनी जुबानी मानो या न मानो, हमारी तफ्तीश यही कहती है कि तुम्हारा उससे अफेयर था – तुम पिछली रात से ही वहां मौजूद रहे हो सकते हो ।”
“किसलिये ?”
“मौजमेले के लिए और किसलिए ?”
“आप ऐसा इसलिए कह रहे हैं क्योंकि आप नहीं जानते कि शबाना कैसी फायरब्रांड औरत थी ! आप ये भी नहीं जानते कि इस पंजाबी पुत्तर की रगों में खून की जगह नाइन्टी थ्री ओक्टेन दौड़ती है । मेरी वो रात शबाना के पहलू में गुजरी होती तो अगली दोपहर तक मैं उठकर पैरों पर खड़ा न हो पाया होता । यानी कि जैसे शबाना की सोते में जान गयी थी, वैसे ही मेरी भी सोते में ही उसके पहलू में जान चली गयी होती ।”
“नेचर काल के लिये हर किसी को उठना पड़ता है । तुम्हारी खुशकिस्मती ये रही होगी कि तुम कातिल के बैडरूम में पहुंचने से बस जरा ही पहले टॉयलेट में गए होगे ।”
“और कातिल को टॉयलेट में मेरी मौजूदगी की खबर नहीं लगी होगी ?”
“हां ।”
हकीकत तो वही थी जो वो बयान कर रहा था लेकिन फिर भी दिखावे के लिए मैं एक फरमायशी हंसी हंसा ।
तभी हवलदार वापस लौटा । उसने दोनों लिफाफे तलवार के सामने मेज पर रख दिए और बोला – “जनाब जी, पराशर साहब बोलते हैं कि दोनों गोलियां एक ही रिवाल्वर से चलायी गयी हैं ।”
वो बात सुनते ही मुझे जैसे सांप सूंघ गया ।
यानी कि मर्डर वैपन मेरे अधिकार में था ।
अब जैसे उस काईयां पुलिस वाले ने अमोलकराम को खोज निकाला था, वैसे ही वो मेरी कार में से अस्थाना वाली फोर्टी फाइव कोल्ट रिवाल्वर बरामद कर लेता तो दिल्ली शहर में मौजूद मेरे सारे हिमायती मिल कर भी मुझे उस संकट से नहीं उबार सकते थे ।
जरुर यूयर्स ट्रूली की फेमस लक को किसी कलमुहें की नजर लग गयी थी ।
मेरा दिमाग तेजी से उस दुशवारी से निकलने के लिये कोई विश्वसनीय कहानी सोचने लगा ।
तलवार ने भुकुटि के एक इशारे से हवलदार को डिसमिस किया और फिर अमोलक राम की तरफ घूमा – “आप भी जाइये ।”
“शुक्रिया ।” - अमोलक राम तत्काल उछल कर खड़ा हुआ ।
“आपको आपके अपने हित में राय दी जाती है कि आइंदा ऐसे बखेड़ों से बच कर रहें । यारी दोस्ती दिखाने के और भी जरिये होते हैं, आइंदा ऐसा जरिया अख्तियार न करें जो आप और आप के कारोबार दोनों के लिए नुकसानदेय साबित हो सकता हो ।”
“मैं आइंदा ध्यान रखूंगा ।”
“जाइये ।”
मेरी तरफ हाथ हिलाता वो वहां से रुख्सत हो गया ।
फिर तलवार मेरी तरफ आकर्षित हुआ । उसने यूं मेरी तरफ देखा जैसे कसाई बकरे को देखता है ।
“अब बोलो ।” – वो मेरे से हासिल हुई गोली वाला लिफाफा अपनी एक उंगली से ठकठाता हुआ बोला – “ये गोली तुम्हारे पास कहां से आयी ?”
“कोमलने दी ।” – मैं यूं बोला जैसे वो बात मजबूरन मुझे अपनी जुबान पर लानी पड़ रही हो ।
“किसने ?” – वो अचकचा कर बोला ।
“कोमलने ? कोमलगोमज ने । शबाना की मेड ।”
“कब ? कब दी ?”
“मंगलवार । जब मैं उसके घर पर उससे मिला था । उस मुलाकात की बाबत मैंने बताया तो था आपको ।”
“मुलाकात की बाबत बताया था । गोली की बाबत नहीं बताया था ।”
“जनाब, तब गोली की बाबत बताने लायक कोई बात तो होती ! तब उस गोली की बाबत अभी कुछ मुझे भी कहां मालूम था ! उस रोज तो वो गोली मैंने अमोलकराम को सौंपी थी जिसकी बाबत उसने मुझे अगले रोज यानी की परसों बताया था कि वो कैसे हथियार से चली गोली थी ।”
“तो परसों इस बात की खबर पुलिस को की होती ?”
“किस बात की खबर पुलिस को की होती, जनाब ? मुझे क्या सपना आया था कि उस गोली का रिश्ता कत्ल के केस से निकल सकता था ? मेरे पास ये जानने का था कोई साधन कि शबाना का कत्ल पैंतालीस कैलिबर की रिवाल्वर से निकली गोली से हुआ था ? मेरे को तो यहां कदम रखने से पहले तक नहीं मालूम थी ये बात ।”
“कोमलके पास वो गोली कहां से आयी ?”
“वो कहती थी कि जब वो मंगलवार सुबह शबाना के फर्म हाउस पर पहुंची थी तो वो गोली उसे बैडरूम के फर्श पर पड़ी मिली थी ।”
“फर्श पर ?”
“जरुर वो मैट्रेस से पार किसी सख्त चीज से, किसी कब्जे या स्प्रिंग वगेरा से टकरायी होगी और छिटक कर छेद से बाहर आ गिरी होगी ।”
“नॉनसेंस ।”
“मैं आपको वो ही बता रहा हूं जो मुझे कोमलने बताया था । उसने गोली फर्श पर पड़ी पायी थी और कोई अजीब सी चीज जानकर उठा कर अपनी जेब में रख ली थी ।”
“अजीब सी चीज जानकर !”
“क्या बड़ी बात है ! जनाब, सौ में से निन्यानवे, बल्कि हजार में से नौ सौ निन्यानवे लोगों ने गोली नहीं देखी होती ।”
“फिर उसे सूझा कैसे कि वो गोली थी ?”
“उसने गोली मुझे दिखायी थी । तब मैंने उसे बताया था कि वो तो रिवाल्वर की गोली थी ।”
“जो कि उसे मौकायेवारदात पर पड़ी मिली थी ?”
“हां ।”
“फिर भी तुमने इस बात को पुलिस की जानकारी में लाने के काबिल न समझा !”
“मैं जरुर लाता लेकिन जब तक मुझे उस गोली की बाबत कुछ मालूम हुआ, तब तक कोमलमर गयी । तब मुझे ये खतरा सताने लगा कि पता नहीं अब कोई मेरी बात पर विश्वास करेगा या नहीं कि वो गोली मुझे कोमलने दी थी ।”
“मुझे तो बिल्कुल विश्वास नहीं तुम्हारी इस बात पर ।”
“देख लीजिये अब आप ही । यानी कि मेरा अन्देशा सही था ।”
“फिर भी इस बात की खबर तुम्हे पुलिस को करनी चाहिए थी ।”
“मेरा पूरा इरादा था ऐसा करने का लेकिन उस सूरत में जबकि मुझे शबाना के कत्ल में इस्तेमाल हुये मर्डर वैपन की बाबत पता चल जाता । अगर वो मर्डर वैपन पैंतालीस कैलिबर की कोल्ट रिवाल्वर पाया जाता तो मैं जरुर-जरुर इस गोली के साथ आपके पास पहुंचता । लेकिन आप जानते हैं कि मर्डर वैपन के बारे में तो अखबारों में कुछ छपा नहीं हैं ।”
“आज के अखबारों में छपा है ।”
“बदकिस्मती से आज का अखबार पढ़ने का मुझे मौका नहीं लगा ।”
“क्यों ?”
गोली से सम्बंधित अपना बड़ा नुक्स छिपाने के लिये पिछली रात डॉली के साथ बीती घटना का तब जिक्र करना आपके खादिम को बड़ी डीलक्स स्ट्रेटेजी लगी ।
“जनाब, परसों से ही मैं ऐसे हालत के हवाले हूं” – मैं अपने स्वर को भरसक दयनीय बनाता हुआ बोला – “कि मेरा दिमाग भन्नाया हुआ है । परसों रात मुझे गुंडों ने पीट दिया जिसका सर्टिफिकेट ये देखिये ये मेरी कनपटी पर बना गूमड़ और आंख के नीचे बना जख्म है । उससे पहले मेरी पता नहीं कब चोरी गयी रिवाल्वर कत्ल के मुकाम से बरामद हुई । कल रात को मेरी सैक्रेट्री के घर चोर घुस आये । फिर उसका अपने घर से अगवा हो गया ।”
“क्या !”
“कल रात ही, जनाब । चोरों के जाने के बाद । आपके जाने के बाद । पुलिस के जाने के बाद । मेरे जाने के बाद ।”
“क्या किस्सा है ?”
मैंने किस्सा सुनाया ।
“इतना बड़ा वाक्या छुपा के बैठे हुए हो ?” – वो हैरानी से बोला – “पुलिस में रिपोर्ट नहीं लिखवाई ?”
“एक कुलीन परिवार की इज्जतदार कुमारी कन्या की आबरू का सवाल था, जनाब ।”
“लेकिन फिर भी... परसों रात खुद पर हुए हमले की रपट लिखाई ?”
“नहीं ।”
“वो भी नहीं !”
“जनाब, मेरी जान को खतरा है । मुझे हर क्षण लगता है कि जैसे शबाना और कोमलका कत्ल हुआ है, वैसे ही मेरा भी कत्ल होने वाला है । ऐसे माहौल में दादा लोगों की दादागिरी से डर जाना क्या स्वाभाविक नहीं मेरे लिए ?”
“वैसे तो बड़े साहसी बनते हो !”
“अधिक साहस ही कभी-कभी विडम्बना बन जाता है, जनाब ।”
“अब तुम्हारी सैकेट्री कहां है ?”
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“मेरे ऑफिस में, लेकिन वहां उसे कोई खतरा नहीं । और घर पर आज दोपहरबाद तक उसके मां-बाप लौट आयेंगे ।”
“मैं उसकी हिफाजत के लिये उसके घर पर पुलिस तैनात कर सकता हूं ।”
“वो आपकी मेहरबानी है लेकिन यूं लड़की और भी अड़ोस-पड़ोस की निगाह में आ जायेगी । जनाब, मुझे उम्मीद है उसके मां-बाप उसकी बखूबी हिफाजत कर लेंगे ।”
“हूं । उस अगवा करने वाले की सूरत बयान कर सकते हो ?”
“सूरत भी बयान कर सकता हूं और उसका नाम भी बता सकता हूं ।”
“अच्छा !”
“जी हां । उसका नाम रघुवीर है और परसों रात मेरे अगवा के वक्त उसके साथ उसके जो दो चमचे मौजूद थे, उनके नाम इब्राहिम और कलीराम हैं ।”
“और क्या जानते हो उनके बारे में ?”
“और कुछ नहीं जानता !” - मैं बोला । उनकी बाबत यादव से हासिल जानकारी का जिक्र करना और जानकारी के साधन का जिक्र करना यादव की खातिर मुनासिब नहीं था ।
“नाम कैसे जाने ?” - तलवार बोला ।
मैंने बताया ।
“उनके हुलिये बयान करो ।”
मैंने किये ।
“हूं ।” - वो बोला । वो कुछ खामोशी से बैठा अपनी कुर्सी का हत्था ठकठकाता रहा और फिर बोला - “तुम बहुत खुराफाती आदमी हो । खुराफाती और झूठे भी । बहुत सी बेजा हरकतें तुमने की हैं जिनकी वजह से तुम्हें अभी हवालात में बन्द किया जा सकता है और ऐसा बन्द किया जा सकता है कि तुम्हारे हिमायती भी तुम्हारे किसी काम न आ सकेंगे । जब तुम यहां पहुंचे थे तो मेरा ऐसा ही कुछ करने का पक्का इरादा था लेकिन तुमने अपनी और अपनी सैक्रेट्री की जो पर्सनल ट्रेजडीज सुनायी हैं, उन्होंने मुझे द्रवित किया है इसलिये मैं तुम्हें एक मौका और दे रहा हूं । गोली की बाबत तुम्हारा बयान और अपनी रिवाल्वर की चोरी की बाबत तुम्हारा बयान बिल्कुल भी विश्वास में आने लायक नहीं है लेकिन फिर भी मैं तुम्हें हिरासत में नहीं ले रहा हूं । मिस्टर राज, अगेन्स्ट माई बैटर जजमेंट, आई एम लैटिंग यू ऑफ ।”
“थैंक्यू सर ।” - मैं हर्षित स्वर में बोला ।
“अब इससे पहले कि मेरा इरादा बदल जाये, यहां से निकल जाओ ।”
“फौरन, जनाब, फौरन ।”
मैंने उसे बनावटी सैल्यूट मारा और वहां से कूच कर गया ।
***
मैं पार्किंग में पहुंचा तो यादव मुझे मेरी कार के करीब खड़ा मिला ।
“नमस्ते ।” - मैं बोला - “यहां क्या कर रहे हो ?”
“तुम्हारा इन्तजार । तलवार ने कैसे तलब किया ?”
“कार में बैठो, बताता हूं ।”
हम दोनों कार में बैठे तो मैंने तलवार से अपना इन्टरव्यू अक्षरशः दोहराया ।
“राज ।” - आखिर में यादव बोला - “तेरी खैर नहीं ।”
“यार, तुमने तो तकियाकलाम ही बना लिया इसे अपना । ‘तेरी खैर नहीं, तेरी खैर नहीं’ अभी कितनी बार और कहोगे ?”
“जब इतना कुछ बताया है तो बाकी क्यों छुपाता है ? जबकि तू जानता है कि कम से कम इस बार मैं तेरी तरफ हूं । अब कबूल कर कि सोमवार रात को तू शबाना के साथ था, तेरी मौजूदगी में ही उसका कत्ल हुआ था, मैट्रेस में से गोली तूने ही निकाली थी और जिन कागजात की सारी हायतौबा है वो शबाना ने तुझे सेफ कस्टडी के लिये नहीं सौंपे थे, तूने उसके कत्ल के बाद उसके बैडरूम से चुराये थे ।”
“इतनी बातें एक साथ कबूल करूं ?”
“न भी करे तो कुछ फर्क नहीं पड़ता । क्योंकि मैं जानता हूं कि यही हकीकत है । राज, मैं तेरा पुराना वाकिफ हूं जबकि तलवार का तेरे से वास्ता ताजा-ताजा पड़ा है । तू तलवार को बहला सकता है, मुझे नहीं । अब कबूल कर कि जो मैं कह रहा हूं, वही सच है ।”
“मैं कबूल करूंगा तो तुम्हारा अगला दावा ये होगा कि शबाना का कत्ल भी मैंने किया है !”
“अभी नहीं होगा, बाद की गारन्टी नहीं करता !”
“ठीक है । किया कबूल ।”
“तू सोमवार रात को शबाना के साथ था ?”
“हां ।”
“कत्ल तेरी मौजूदगी में हुआ था ?”
“हां ।”
“कातिल की शक्ल देखी थी ?”
“नहीं ।”
“अपनी वहां मौजूदगी को छुपा के क्यों रखा ? फौरन कत्ल की खबर पुलिस को क्यों न दी ?”
“कागजात की वजह से । उनमें मेरा भी कोई कच्चा चिट्ठा हो सकता था जिसे कि मैं उनमें से सेंसर करना चाहता था लेकिन नौबत ही न आयी । कागजात तो हाथ के हाथ ही मेरे फ्लैट से चोरी चले गए ।”
“यानी कि कत्ल के बाद भी कातिल वहां से चला नहीं गया था । वो तुम्हारी निगाहबीनी के लिये वहीं कहीं छुपा रहा था ?”
“जाहिर है ।”
“कागजात तुम्हारे फ्लैट से कातिल ने ही चुराये ?”
“ये भी जाहिर है ।”
“और क्या छुपा रहे हो तुम मुझसे ?”
“चोरी गये कागजात में से कुछ कागजात प्रकट हो चुके हैं ।”
“कहां ?”
“शबाना के एक और एडमायरर रजनीश के यहां ।”
“तफसील में बताओ सारी बात ?”
मैंने बतायी । मैंने जोरावर का हुलिया भी बयान किया ।
“तुम यहीं ठहरना ।” - मैं खामोश हुआ तो यादव बोला - “मैं गया और आया ।”
मैंने सहमति में सिर हिलाया । वो कार में से निकला और हैडक्वार्टर की बिल्डिंग में दाखिल हो गया । उसके पीछे मैंने अपना डनहिल का पैकेट निकाला और एक सिगरेट सुलगा लिया ।
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पांच मिनट में यादव वापिस लौटा । वो वापिस कार में मेरे पहलू में आ बैठा और उसने पुलिस की एक रिकार्ड शीट मुझे थमायी । उस शीट पर दो क्लोज-अप चित्र लगे हुए थे जिनमें सें एक फ्रंट पोज था और दूसरा प्रोफाइल था ।
“पहचाना ?” - यादव बोला ।
“हां ।” - मैं तत्काल बोला - “यही है जोरावर ।”
“इसका असली नाम जावर सिंह है । बहुत शातिर चोर, ताला-तोड़, तिजोरीतोड़ और सेंधमार है । दो कत्ल भी कर चुका है लेकिन एक सेंधमारी की वारदात के अलावा इसका कोई जुर्म साबित नहीं हो सका था । उस जुर्म में इसे तीन साल की सजा हुई थी जिसे काट कर ये कोई छ: महीने पहले छूटा था । इसकी अपने थाने में हफ्तावारी हाजरी भरने की रूटीन जी जिस पर कि इसने चार हफ्ते भी अमल नहीं किया था । तलाश किये जाने पर ये मिला नहीं था । । पूछताछ करने पर मालूम हुआ था कि नेपाल भाग गया था लेकिन अब तुम्हारी बातों से सिद्ध होता है कि ये जावर सिंह से जोरावर बन गया हुआ है और इसे रजनीश ने पाल लिया हुआ है । राज, अगर इतना शातिर और बदमाश खूनी बैक्टर की सरपरस्ती में है तो फिर बैक्टर शबाना का कातिल नहीं हो सकता । फिर अपने हाथ खून से रंगने की जगह उसने इसी को कहा होता कि शबाना की सिल्वर मून में हाजिरी के दौरान ये शबाना के फार्म हाउस में घुसता और जो भी ताले-वाले खोलने जरूरी होते उन्हें खोल कर वहां से शबाना के वो फसादी कागजात चुरा लाता । कत्ल जरूरी होता तो वो भी उसने जोरावर को ही करने को कहा होता ।”
“दम तो है तुम्हारी बात में ।” - मैंने कबूल किया - “कत्ल का हथियार भी था जोरावर के पास । मैंने बैक्टर की कोठी पर उसके हाथ में जो रिवाल्वर देखी थी, वो पैंतालीस कैलीबर की कोल्ट आटोमैटिक थी और शबाना का कत्ल ऐसी ही रिवाल्वर से हुआ था ।”
“तुम्हारी गैरहाजिरी में तुम्हारे घर के ताले वाले खोल लेना भी जोरावर के लिये चुटकियों का काम था । राज, तुझे जोरावर की बाबत तलवार को बताना चाहिये था ।”
“पहले कैसे बताता ! पहले मुझे जोरावर की इतनी सारी खासियात कहां मालूम थी ! वो तो तुमने मुझे अब बतायी हैं ।”
“अब वापिस पहुंच जाओ तलवार के पास ।”
मैंने इन्कार में सिर हिलाया ।
“क्यों ?” - यादव बोला ।
“मैं उसके सामने नहीं पड़ना चाहता । मुझे डर है कि मेरी बाबत कहीं उसका इरादा न बदल जाये ! मुझे छोड़कर उसने जो दयानतदारी दिखाई है, पीछे बैठा वो उसके लिये पछता न रहा हो ! दोबारा उसके सामने पड़ना खामखाह वक्ती तौर पर टल गयी मुसीबत को फिर से न्योता देना होगा ।”
“सोच तो । ये तुम्हारे फायदे की मूव है । पुलिस के डण्डे में बड़ी ताकत होती है । तलवार चुटकियों में जोरावर से ही नहीं रजनीश से भी सब कुछ कुबुलवा लेगा ।”
“नहीं ।”
“क्यों नहीं ?”
“मेरे को एक बात बहुत चुभ रही है । अगर जोरावर के माध्यम से कागजात बैक्टर ने चोरी करवाये थे तो कागजात को नष्ट कर देने की जगह वो तमाम कागजात में से ऐन वही कागजात क्यों सम्भाले बैठा था जिनसे कि खुद उसका ताल्लुक था ? दूसरों के कच्चे चिट्ठे को संजोकर रखने में तो उसकी दिलचस्पी किसी भी वजह से हो सकती थी लेकिन खुद अपना कच्चा चिट्ठा भला क्यों वो सम्भाले रहता ?”
“तुम ये कहना चाहते हो कि किसी और ने वो कागजात वहां प्लांट किये थे ?”
“हां । खासतौर से छांट कर । सिर्फ वही कागजात जो बैक्टर की पोल पट्टी खोलते थे । चिट्ठियों के अलावा डायरी में से भी वही वरके फाड़े गये थे जिनमें सिर्फ बैक्टर का जिक्र था । मुझे लगता है कि बैक्टर को सच में ही अपनी स्टडी में उस कागजात की मौजूदगी की खबर नहीं थी । उसको तो उनकी बाबत मेरी वजह से ही पता चला था ।”
“उसको कत्ल और चोरी के इल्जाम से बरी कर रहे हो ?”
“ऐसा करते मेरा कलेजा फटता है लेकिन हालात का इशारा तो इसी तरफ है ।”
“कागजात वहां बैक्टर को फंसाने के लिये छुपाये गये थे ?”
“तत्काल समझ में आने वाली वजह तो ये ही है लेकिन वजह इससे गहरी भी हो सकती है ।”
“क्या ?”
“किसी को मालूम था कि मैं उसकी तलाशी के लिये उसके घर में जरूर घुसूंगा और फिर तलाशी में वो कागजात बरामद करके अपने घर ले जाऊंगा । ऐसा हो जाने पर वो पुलिस को कोई गुमनाम हिंट इस बाबत देता, पुलिस वो कागजात मेरे घर से बरामद करती तो उनकी वहां मौजूदगी की कोई वजह बयान करना मेरे लिये मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो जाता । तलवार को तो पहले ही मेरे पर शक है, उन कागजात की मेरे घर से बरामदी को तो वो मेरे खिलाफ हाथ आया कनक्लूसिव प्रूफ मान लेता ।”
“ये तो गर्दन के पीछे से हाथ घुमा कर कान पकड़ने जैसी बात हुई । ऐसा लखनऊ वाया सहारनपुर जैसा रूट अख्तियार करने की जगह उसने कागजात सीधे तुम्हारे यहां ही क्यों न प्लांट कर दिये ? बल्कि वहां से चुराये ही क्यों ?” - फिर तत्काल उसने अपने ही कथन में संशोधन किया - “नहीं, नहीं । निकालने की वजह तो है । उसने उनमें से अपना नाम सेंसर करना था ।”
“वो तत्काल कागजात मेरे यहां नहीं प्लांट करना चाहता होगा ।” - मैं सोचता हुआ बोला - “वो पहले मेरे खिलाफ शक की बैकग्राउन्ड मजबूत करना चाहता होगा । इसी वजह से उसने मेरी रिवाल्वर चोरी की और उससे कोमल का कत्ल किया । इसी वजह से उसने मेरी सैक्रेट्री के यहां चोरी का ड्रामा किया ताकि पुलिस को पूरी तरह से यकीन आ जाता कि मैं उनसे कुछ छुपा रहा था । इतना कुछ हो चुकने के बाद जब कागजात मेरे यहां से बरामद होते तो पुलिस मेरे कहने भर से ये न मान लेती कि वो कागजात वहां प्लांट किये गये थे ।”
“लेकिन हत्यारा कागजात के तुम्हारे घर पहुंचने की गारन्टी कैसे कर सकता था ? ऐसा होने में कोई भी अप्रत्याशित विघ्न आ सकता था जैसा कि सच में ही आया-बैक्टर ने वहां तुम्हें कागजात के साथ पकड़ लिया और उन्हें तुमसे छीन कर भस्म कर दिया । ऐसा न भी होता तो क्या गारन्टी थी कि कागजात को तुम अपने घर में ही छुपाते ?”
“स्वाभाविक बात तो ये ही थी । फिर भी मैं ऐसा न करता या कागजात के साथ कोई हादसा गुजरता - जैसा कि गुजरा - तो अभी तो वही गोला बारुद उसके पास और भी था । वो कागजात का कोई और हिस्सा, जो कि उससे सम्बन्धित न होता, अपने काबू में करता और उसे मेरे सिर थोपने का कोई जुगाड़ करता ।”
“हां, ये हो सकता है ।” - उसने स्वीकार किया - “कोई ऐसा शख्स है तुम्हारी निगाह में जिसे मालूम हो कि तुम शबाना के करीबी तमाम लोगों की घर-घर तलाशी लेने का इरादा रखते थे ?”
“नहीं ।” - मैं बोला ।
“फिर क्या बात बनी ?”
मैं खामोश रहा ।
“तुमने कागजात को पढ़ा था ?”
“कौन से कागजात को ? जो मैंने शबाना के यहां से चुराये थे या जो मैंने बैक्टर की स्टडी से बरामद किये थे ?”
“दोनों की बाबत बताओ ।”
“नहीं पढ़ा था । टाइम कहां था इतना ! चिट्ठियां और लूज शीट्स मिलाकर वो कोई ढ़ाई तीन सौ कागज थे । साथ में एक ये-मोटी डायरी थी । बैक्टर के यहां से बरामद कागजात भी, डायरी के फटे पन्ने और चिट्ठियां मिला कर गिनती में अस्सी पिच्चासी से कम नहीं थे । वक्त कहां था मेरे पास इतने कागजात की पड़ताल करने का ! मैंने तो बस शबाना की हैण्डराइटिंग पहचानने की नीयत से कुछ वरकों पर निगाह फिराई थी ।”
“ये गारन्टी है कि बैक्टर वाले कागजात मुकम्मल कागजात का ही एक हिस्सा थे ?”
“हां ।”
“और बैक्टर वाले कागजात सिर्फ बैक्टर से सम्बन्धित थे ?”
“हां ।”
“फिर तो ये भी हो सकता है कि मुकम्मल कागजात काबू में आ जाने के बाद सबने अपने-अपने कागजात आपस में बांट लिये हों ।”
“हो सकता है लेकिन ये नहीं हो सकता कि वो सब इतने मूर्ख हों कि जिन कागजात की वजह से हालात खून खराबे तक पहुंचे थे, उन्हें वे अपने पास संजोये रखते । हकीकतन कागजात बांटने की भी जरूरत नहीं थी । वो कागजात उनके कारनामों की कोई ट्रॉफी थोड़े ही थे जिन्हें वो बतौर यादगार संजोये रखना चाहते थे ! समझदारी की बात तो ये थी कि अपने-अपने कागजात बांटने की जगह उन्हें सबके सामने फूंक दिया जाता ?”
यादव ने सहमति में सिर हिलाया, वो कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बोला - “अब ये तो जाहिर है कि बाकी कागजात में बैक्टर का जिक्र नहीं होगा !”
“हां ।”
“वो कागजात अगर किसी और के यहां से बरामद होते हैं तो सारी करतूत बैक्टर की होने का ये अपने आप में सबूत होगा । तब यही समझा जायेगा कि बैक्टर ने अपना नाम छुपाने के लिये अपने कागजात उसमें से गायब कर दिये थे ।”
“यादव साहब, इससे बैक्टर का नाम छुपता नहीं, और उजागर होता है । और बैक्टर इतना अहमक नहीं हो सकता कि वो इस बात को न समझता हो । जिसका भी नाम कागजात में से कटा पाया जायेगा या जिससे संबन्धित कागजात भी मुकम्मल कागजात में से गायब पाये जायेंगे, उसका नाम तो जैसे स्पॉट लाइट के दायरे में आ जायेगा ।”
“तुम ठीक कह रहे हो । ये काम बैक्टर नहीं कर सकता । लेकिन कोई और तो कर सकता है । कोई ऐसा शख्स तो कर सकता है जो बैक्टर के भी खिलाफ हो और उस शख्स के भी खिलाफ हो जिसके यहां से कि कागजात बरामद होते ?”
“हां ।”
“वो शख्स कोई अनजाना नाम भी हो सकता है । वो शख्स शबाना के उन चार स्टेडीज के अलावा भी कोई हो सकता है जिनकी कि तुम्हें वाकफियत नहीं है ?”
“हां । अब तो ये ही लगता है कि शबाना के ताल्तुकात बहुत मर्दों से थे । उसके कागजात को पढ़ पाने का मौका मुझे हासिल हुआ होता तो कौशिक, पचौरी, अस्थाना और बैक्टर के अलावा और भी नाम रोशनी में आये होते । मैं हत्यारे की कल्पना शबाना के इन चार स्टेडीज के अलावा किसी और शख्स की सूरत में करूं तो कहानी कुछ यूं बनती है कि हत्यारे ने फार्महाउस पर शबाना का कत्ल किया लेकिन उस को तत्काल मेरी वहां मौजूदगी की खबर न हुई जिसकी वजह से मेरी जान बच गयी । फिर किसी तरीके से - जैसे मेरी कार की वहां मौजूदगी की वजह से - उसे सूझा कि घर में कोई और भी था । तब तक छुप के वार करने का माहौल खत्म हो चुका था और मेरे सामने आने का उसका हौसला हुआ नहीं था, लिहाजा मेरी ताक में वो कहीं छुपा रहा और जब मैं वहां से रुख्सत हुआ तो वो मेरे पीछे लग गया । यूं वो मेरे घर तक पहुंचा, मेरी गैरहाजिरी में वहां का ताला खोल कर भीतर घुसा, वहां से शबाना वाले कागजात और रिवाल्वर तलाश करके अपने कब्जे में की और चम्पत हो गया । अब उसके सामने चार सौ से ज्यादा वरकों को गौर से पढ़ने का काम था । उन वरकों को उसने इस निगाह से ही नहीं पढ़ना था कि उन में उसके नाम का जिक्र कहां-कहां था बल्कि इस निगाह से भी पढ़ना था कि उस में उसके मिजाज का, उसकी किसी आदत का उसके किसी पोजेशन का कोई ऐसा जिक्र न हो जो कि उसकी शिनाख्त की वजह बन सकता हो । एक तो ये वैसे ही वक्त खाने वाला काम था, दूसरे उसे अपनी पूरी तसल्ली के लिये कई कागजात को कई-कई बार पढ़ना पड़ सकता था । यूं जो कागजात उसने अपने आपको प्रोटेक्ट करने के लिए पढ़े, उन्हीं से उसे कौशिक, पचौरी, अस्थाना और बैक्टर के काले कारनामों की खबर लगी, उनमें मेरा भी कोई जिक्र था तो मेरी भी खबर लगी । उन्हीं कागजात से उसे ये भी मालूम हुआ होगा कि शबाना औरों के मुकाबले में मुझे कदरन अपने ज्यादा करीब मानती थी और ये कि मैं कौशिक वगैरह चारों जनों के बारे में जानता था । फिर मामूली सी सूंघ से उसे यह भी मालूम हो गया होगा कि मैं भी स्वतन्त्र रूप से शबाना के कत्ल के केस की तह तक पहुंचने की कोशिश कर रहा था और यह कि मेरे पास उस काम को अंजाम देने का जो सब से मजबूत जरिया था वो ये ही था कि मैं ये पता लगाने की कोशिश करता कि मेरे फ्लैट से शबाना वाले कागजात कौन चुरा के ले गया था । तब उसका ये सोचना स्वाभाविक था कि सबसे पहले मेरा शक कौशिक वगैरह पर ही जाता और फिर मैं उनके घरों और दफ्तरों वगैरह की तलाशी लेकर उन कागजात की बरामदी की कोशिश करता । कहना न होगा कि उसने मेरी विचारधारा को एकदम सही भांपा था । इसलिये उसने मेरी तलाश कामयाब बनाने के लिये बैक्टर के यहां वो कागजात प्लांट किये और अस्थाना के यहां वो रिवा...”
मैंने तत्काल अपने होंठ काटे ।
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Masoom
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Re: Adultery Thriller सुराग

Post by Masoom »

“कौन-सी रिवाल्वर ?” - यादव मुझे घूरता हुआ बोला ।
“रिवाल्वर का नाम किसने लिया ?”
“तुमने लिया । अभी लिया । जुबान फिसल जाने की वजह से लिया लेकिन लिया ।”
“बिल्कुल नहीं । मैं तो...”
“राज, दाई से पेट छुपाने की कोशिश न कर । और ये भी ध्यान में रख कि इस बार मैं तेरी तरफ हूं । पहले भी कहा । फिर कह रहा हूं । कम से कम इस बार मैं तेरी तरफ हूं ।”
तब मैंने अस्थाना के ऑफिस में अपने चोरों की तरह घुसने की और वहां की फाइलिंग कैबिनेट में से बिना नम्बर वाली पैंतालीस कैलीबर की कोल्ट रिवाल्वर की बरामदी की भी कथा उसे सुनायी ।
वो भौंचक्का-सा मेरा मुंह देखने लगा ।
“क्या बात है, राज !” - फिर बोला - “तड़प रहा है तिहाड़ में ट्रांसफर के लिये ?”
मैं खिसियाता सा हंसा ।
“ये किसी पढ़े-लिखे समझदार आदमी के करने के काम हैं ?”
“सॉरी ।”
“मुझे क्या सॉरी बोलता है ? और सॉरी बोलने की जगह अक्ल कर । क्यों तड़प रहा है अपनी दुरगत कराने के लिये ?”
“अब तो जो होना है वो हो चुका ।”
“कहां है अब वो रिवाल्वर ?”
“है किसी सेफ जगह पर ।”
“वैसी ही सेफ जगह पर जहां पर कागजात थे ?”
“नहीं ।”
“यानी कि रिवाल्वर घर में नहीं रखे हुए है ?”
“नहीं । कागजात का अंजाम देखकर उसे घर में रखना मुझे मुनासिब नहीं लगा ।”
“वो तेरे दफ्तर में या तेरी सैक्रेट्री के घर में भी बरामद हुई तो....”
“वो कहीं से बरामद नहीं होने वाली ?”
“यानी कि इस घड़ी तेरे घर पर पुलिस का छापा पड़े तो...”
“पुलिस के कुछ पल्ले नहीं पड़ेगा ।”
“क्या पता हत्यारा पुलिस को फोन कर भी चुका हो ।”
“अभी ऐसा नहीं कर सकता वो । अभी तो मैंने अपने घर का रुख भी नहीं किया ।”
“जो कागजात तेरे हाथ लगने की अपेक्षा हत्यारा कर रहा था, उन्हें तो बैक्टर फूंक-फांक चुका ।”
“लेकिन उसे अभी इस हकीकत की खबर नहीं हो सकती । यादव साहब, अभी तो वो मेरे घर पहुंचने का ही इन्तजार करेगा, उसके बाद कोई बड़ी बात नहीं कि इस बात की वो तसदीक करने की कोशिश करे, कि जो सामान उसने इतने टेढ़े तरीके से मेरे सिर थोपा था, वो मेरे घर पर मौजूद था । उसे वो वहां नहीं मौजूद पायेगा तो बाकी कागजात में से कुछ और कागजात वो वहां प्लांट कर देगा और फिर किसी तरह से पुलिस की तवज्जो मेरे फ्लैट की तरफ करने का कोई जुगाड़ करेगा । बहरहाल ऐसा कोई कदम वो तब तक नहीं उठायेगा जब तक कि मेरा कम से कम एक फेरा मेरे घर पर लग चुका होने की उसे तस्दीक नहीं हो जाती ।”
“इस तसदीक के लिये वो तुम्हारे पीछे लगा हुआ होगा ?”
“क्या जरूरत है ? ये तसदीक तो मेरे घर की निगरानी करने से भी हो सकती है ।”
“तुम कहते हो कि हत्यारा बहुत दूरअन्देशी था और वो भांप गया था कि तुम्हारी अगली मूव क्या होगी । यानी कि वो भांप गया था कि तुम चोरी से अस्थाना वगैरह के ठीऐ ठिकानों की तलाशी लेने की कोशिश करोगे । लेकिन असल में तुम ऐसा कोई कदम उठाने से गुरेज कर सकते थे । बात कितनी ही युक्तिसंगत क्यों नहीं थी, किसी वजह से-किसी भी वजह से, अंजाम से डरकर या हालात को अपने हक में न पाकर तुम उस पर अमल करने का ख्याल छोड़ सकते थे । इस लिहाज से क्या ये बेहतर न होता कि वो किसी तरीके से तुम्हें ये साफ टिप देता कि तुम्हारा अस्थाना का दफ्तर या बैक्टर की कोठी टटोलना तुम्हारे लिये फलदायक साबित हो सकता था ?”
“यादव साहब, ऐसी मुखबिरी पुलिस में चलती है और वहीं वैलकम होती है । कोई मुझे शिद्दत से ये बात सुझाता तो मैं न शक करता भी शक करता । तब पहला ख्याल मुझे यही आता कि अगर मुझे टिप देने वाला अस्थाना को या बैक्टर को हत्यारा समझ रहा था और ये भी जानता था कि उनकी तलाशी पर उनके खिलाफ कोई सबूत बरामद हो सकते थे तो उसने जो टिप मुझे दी थी, वो पुलिस को क्यों न दी ! मुझे वो टिप मिलने का मैं जो स्वाभाविक मतलब निकालता, वो ये होता कि मुझे कत्ल के लिये सैट किया जा रहा था । मिली टिप पर अमल करके मैं अस्थाना के दफ्तर में या बैक्टर के घर में घुसता तो चोर समझ कर शूट कर दिया जाता ।”
“ओह !”
“आज बैक्टर की कोठी पर जैसे मैं पकड़ा गया था, उन हालात में मुझे वहां शूट कर दिया जाता तो बैक्टर पर जरा भी कोई आंच न आती, खास तौर से तब जब कि मेरी जेब से चोरी गये कागजात का एक हिस्सा भी बरामद होता ।”
“वहां जोरावर की मौजूदगी का वो क्या जवाब देता ?”
“उस बाबत कोई सवाल होता तो वो जवाब देता न ? जोरावर की वहां मौजूदगी की बाबत तुम्हें किसने बताया ? मैंने बताया । अब जब मैं ही न रहता तो जोरावर का नाम कौन लेता ? खुद बैक्टर ?”
“कभी भी नहीं ।”
“एग्जैक्टली । वो जोरावर को वहां से खिसका देता और कह देता कि घर में घुस आये चोर को उसने खुद शूट किया था ।”
“वो तुम्हें जानता था ।”
“वो कह सकता था कि गोली चला चुकने के बाद ही उसने चोर की सूरत देखी थी । या वो इसी बात से मुकर सकता था कि वो मुझे जानता था ।”
“लेकिन किया तो तुमने ऐन वही सब कुछ जो हत्यारा तुम्हें टिप देता तो उसके परिणामस्वरूप तुम्हारे से करने की अपेक्षा करता !”
“इसीलिये तो उसने मुझे टिप न दी । वो जानता था कि मैं टिप के बिना भी वही कुछ करने वाला था । यादव साहब, तुम जरा हत्यारे के मकसद को समझने की कोशिश करो । उसका मकसद मुझे परलोक पहुंचाना नहीं था । होता तो वो मुझे वो टिप भी देता जिसका तुम जिक्र कर रहे हो और किसी तरीके से मेरी बाबत अस्थाना और बैक्टर को भी खबरदार करता । तब ये हो सकता था कि कोई मुझे चोर समझ कर शूट कर देता ।”
“हूं ।”
“उसका मकसद तो था, और है, मुझे कत्ल के इलजाम में फंसाना ताकि वो निश्चिन्त होता कि अब पुलिस की तवज्जो उसकी तरफ नहीं जाने वाली थी । इसीलिये उसने मेरी रिवाल्वर से कोमलका खून किया और उसे मौकायेवारदात पर छोड़ा । इसीलिये उसने बैक्टर के घर में कुछ कागजात और अस्थाना के ऑफिस में रिवाल्वर प्लांट की ताकि वो चीजें मेरे हाथ लगतीं और वापिस मेरे फ्लैट में पहुंच जातीं । इसीलिये उसने मेरी सैक्रेट्री के फ्लैट की तलाशी करवाई ताकि पुलिस को उस वारदात की खबर लगने के बाद पूरी तरह से यकीन हो जाता कि मैं उनसे कुछ छुपा रहा था ।”
“तुमने तो अपनी ही बातों से अस्थाना और बैक्टर को कत्ल के इल्जाम से बरी कर दिया !”
“हकीकत को तो मैं नहीं झुठला सकता, अलबत्ता हो सकता है कि वो दोनों मेरी उम्मीद से कहीं ज्यादा पहुंचे हुए महन्त हों ।”
“क्या मतलब ?”
“सुनो । ये सच है कि अस्थाना के पास शबाना के कत्ल के वक्त की उसकी बीवी की सारी रात चली बर्थडे पार्टी की सूरत में बड़ी मजबूत एलीबाई है । ये भी सच है कि बिना नम्बर वाली कोल्ट रिवाल्वर उसके ऑफिस में प्लांट की गयी हो सकती है लेकिन ये बात शक जगाने वाली है कि रघुवीर, इब्राहिम और कलीराम जैसे तीन हिस्ट्रीशीटर, तीन प्रोफेशनल दादे, जिनमें से एक हथियारबन्द, एक उजाड़ बियाबान जगह पर मुझ एक अकेली जान को काबू मे न रख सके । यादव साहब, मुझे अब बड़ी शिद्दत से अहसास हो रहा है कि परसों मैं कुछ ज्यादा ही आसानी से उनके चंगुल से छूट गया था ।”
“तुम्हारा क्या मतलब है” - वो अचरज से बोला - “कि तुम्हें दरियागंज से जबरन उठाना, तुम्हें उजाड़ जगह ले जाकर तुम से डायरी का अतापता कुबुलवाने की कोशिश करना, सब ड्रामा था ? तुम्हें गुमराह करने की चाल थी ? तुम्हें ये जताना था कि कागजात का चोर वो नहीं था, वो तो उन कागजात को हासिल करने के लिये मरा जा रहा था ?”
“क्या नहीं हो सकता ?”
“हो तो सकता है लेकिन....फिर तुम्हारी सैक्रेट्री के अगवा की कहानी कैसे बनी ?”
“वो रघुवीर का वन मैन शो हो सकता है जिससे कि अस्थाना का कुछ लेना-देना नहीं था ।”
कैसे कैसे परिवार Running......बदनसीब रण्डी Running......बड़े घरों की बहू बेटियों की करतूत Running...... मेरी भाभी माँ Running......घरेलू चुते और मोटे लंड Running......बारूद का ढेर ......Najayaz complete......Shikari Ki Bimari complete......दो कतरे आंसू complete......अभिशाप (लांछन )......क्रेजी ज़िंदगी(थ्रिलर)......गंदी गंदी कहानियाँ......हादसे की एक रात(थ्रिलर)......कौन जीता कौन हारा(थ्रिलर)......सीक्रेट एजेंट (थ्रिलर).....वारिस (थ्रिलर).....कत्ल की पहेली (थ्रिलर).....अलफांसे की शादी (थ्रिलर)........विश्‍वासघात (थ्रिलर)...... मेरे हाथ मेरे हथियार (थ्रिलर)......नाइट क्लब (थ्रिलर)......एक खून और (थ्रिलर)......नज़मा का कामुक सफर......यादगार यात्रा बहन के साथ......नक़ली नाक (थ्रिलर) ......जहन्नुम की अप्सरा (थ्रिलर) ......फरीदी और लियोनार्ड (थ्रिलर) ......औरत फ़रोश का हत्यारा (थ्रिलर) ......दिलेर मुजरिम (थ्रिलर) ......विक्षिप्त हत्यारा (थ्रिलर) ......माँ का मायका ......नसीब मेरा दुश्मन (थ्रिलर)......विधवा का पति (थ्रिलर) ..........नीला स्कार्फ़ (रोमांस)
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