अर्जुन ने जैसे ही मम्मी को झिंझोड़कर जगाया, वह एकदम उठ गयीं और एकदम चिल्लाकर बोली- " तू मेरे कमरे में मेरी मर्ज़ी के बिना कैसे घुस आया। अभी रुक मैं तेरी खबर लेती हूं।"
इससे पहले कि मम्मी अपना फोन उठा पातीं, अर्जुन ने तड़ातड़ दो तीन थप्पड़ मम्मी के गालों पर लगाते हुए कहा- " यह वीडियो देख जरा और मुझे यह बता कि यह सब बदमाशी कब से चल रही है।"
यह कहकर अर्जुन ने अपना मोबाइल खोलकर मम्मी के हाथ मे पकड़ा दिया।
मम्मी ने वीडियो देखा और एक अपराधी की तरह अर्जुन के आगे सर झुकाकर खड़ी हो गई।
अर्जुन समझ गया कि बात बन चुकी है। उसने जीन्स के अंदर अपने तने हुए लंड को सहलाते हुए एक और चपत मम्मी के गाल पर लगाया और बोला-" सबके सामने तो बड़ी सती सावित्री होने का ढोंग करके मंदिर जाने का बहाना करती है और आश्रम में यह रंगरेलियां मनाई जा रही हैं। यह वीडियो अब क्या मैं कुसुम और रश्मि को भी दिखा दूँ ? "
अब मम्मी एकदम अर्जुन के आगे हाथ जोड़कर गिड़गिड़ाने लगीं- " नही, यह गज़ब मत करना। तुम जो कहोगे वह मैं करने के लिए तैयार हूं। बस यह वीडियो अपने तक ही रखना। "
अर्जुन को जब लगा कि मम्मी पूरी तरह से उसके कंट्रोल में आ चुकी हैं तो वह फिर से सोफे पर अपने पैर फैलाकर बैठ गया और बोला- " चल इधर मेरे सामने आकर खड़ी हो जा "
मम्मी अर्जुन की दोनों टाँगों के बीच मे आकर खड़ी हो गई।
अर्जुन का लंड जीन्स से बाहर निकला जा रहा था।
अर्जुन मुस्कराते हुए मम्मी से बोला- " चल अपनी साड़ी उतार "
मम्मी ने अपनी साड़ी फ़टाफ़ट उतार दी।
मम्मी के बदन पर लाल ब्लाउज और पेटीकोट बच गया था।
अर्जुन ने देखा कि मम्मी ने अपने बदन को एकदम फिट रखा हुआ था और वह अपनी उम्र से कम से कम 10 साल छोटी लग रही थीं। अर्जुन ने अपने हाथ को मम्मी के चिकने और सपाट पेट पर काफी देर तक फिराया और फिर उसके हाथ खिसकते हुए मम्मी के बलाउज में बंद उरोजों को दबाने सहलाने लगे।
मम्मी अर्जुन का विरोध करने की स्थिति में नही थीं इसलिए वह जो कुछ भी कर रहा था, उसे सहते जाने के सिवा उनके पास कोई चारा नही था।
अर्जुन ने मम्मी को अपनी तरफ खींचते हुए अपने चेहरे को मम्मी के नाभि प्रदेश पर रखकर वहां चूमना चाटना शुरू कर दिया। काफी देर तक अपने चेहरे को अर्जुन मम्मी के चिकने पेट पर रगड़ता रहा।
इसी तरह काफी देर मम्मी से मज़े लेने के बाद अर्जुन बोला-" चलो अब अपना ब्लाउज और पेटीकोट भी उतारो।"
ब्लाउज और पेटीकोट उतरते ही अर्जुन एकदम बौरा सा गया और मम्मी की केले जैसी चिकनी जांघों पर अपने हाथ फिराने लगा।
काफी मज़े लेने के बाद अर्जुन बोला : चल अब यह ब्रा और पेन्टी भी उतार और एकदम नंगी हो जा।
मम्मी ने अर्जुन के हुक्म का पालन किया और अपने आखिरी कपड़े भी उतार दिए।
अर्जुन पूरी मस्ती में था : पीछे घूमकर दिखाओ
मम्मी पीछे घूम गई।
अर्जुन मम्मी के नितंबों पर हाथ फिरफिरा कर उन्हें थपथपाने लगा। उसके हाथ मम्मी की पीठ को भी सहला रहे थे।
इसके बाद अर्जुन ने कुछ देर रुककर अपनी टी शर्ट और जीन्स भी उतार दी। अब उसके बदन पर भी सिर्फ एक अंडरवियर था।
वह दुबारा से अपने पैर फैलाकर सोफे पर बैठ गया और मम्मी से बोला : नीचे घुटनों के बल बैठो
मम्मी कुछ समझी नही और अर्जुन के सामने उसकी टाँगों के बीच घुटनों के बल बैठ गयी।
अर्जुन ने बेहद रौबीली आवाज़ में मम्मी से कहा : अंडरवियर में से मेरा लंड बाहर निकालो और उसे अपने मुंह मे लेकर चूसो।
अब मम्मी ने पहली बार इनकार करते हुए कहा : यह सब मैंने पहले कभी नही किया है। यह मैं नही करूंगी
अर्जुन को लगा कि चिड़िया कंट्रोल से बाहर जाने की कोशिश कर रही है। वह बोला : चल खड़ी हो जा। अब तुझे ऐसी सज़ा मिलेगी कि आज के बाद से तू मुझे किसी भी बात के लिए इनकार करना हमेशा के लिए भूल जाएगी।
मम्मी फिर से खड़ी हो गई।
अर्जुन ने अपनी जीन्स में से चमड़े की बेल्ट निकाली और उसका एक स्ट्रोक मम्मी के नंगे बदन पर जोर से मारता हुआ बोला : अब तुझे इस बेल्ट के 50 स्ट्रोक लगाए जाएंगे।
अर्जुन बेल्ट के स्ट्रोक लगता जा रहा था और मम्मी जोर जोर से उछल उछल कर चिल्लाते हुए अर्जुन से कह रही थीं : मुझे और मत मारो। मैं तुम्हारा लंड चूसने के लिए तैयार हूँ।
अर्जुन मुस्कराते हुए बोला : अभी तो 20 बेल्ट स्ट्रोक ही लगे हैं। सजा तो पूरी भुगतनी पड़ेगी। अब यह बता कि 30 बेल्ट स्ट्रोक और लगाऊं या फिर तू मुझे 100 उठक बैठक लगाकर दिखाएगी।
मम्मी गिड़गिड़ाते हुए बोली : बेल्ट स्ट्रोक नही। बहुत दर्द हो रहा है। मैं 100 उठक बैठक लगा देती हूँ।
अर्जुन फिर हंसते हुए सोफे पर पैर फैलाकर बैठ गया और बोला : ठीक है। यहां मेरे नज़दीक आओ और कान पकड़कर 100 उठक बैठक लगाओ।
मम्मी का बदन अर्जुन के एकदम नज़दीक था और उठक बैठक लगाते वक्त भी वह उनके नंगे बदन को जगह जगह से दबा सहला रहा था।
40 उठक बैठक लगाने के बाद मम्मी वहीं अर्जुन के पैरों में गिरकर गिड़गिड़ाने लगीं : अब मैं बहुत थक गई हूं। अब दुबारा से गलती नही करूँगी। बस अब और उठक बैठक आज मत लगवाओ।
अर्जुन फिर बोला : देखो अब मैं बिस्तर पर लेट रहा हूँ। वहां बिस्तर पर आ जाओ और मेरा अंडरवियर उतारकर मेरा लंड चूसना शुरू कर दो।
इसके बाद अर्जुन बिस्तर पर जाकर लेट गया और मम्मी से बोला : आओ मुझे खुश करो
मम्मी फ़टाफ़ट बिस्तर पर पहुंच गई और अर्जुन के अंडरवियर में से लंड को निकालकर उसे अपने मुंह मे लेकर चूसने लगी।
अर्जुन बोला : पहले ही लंड चूस लेती तो न बेल्ट के स्ट्रोक लगते और न उठक बैठक लगानी पड़ती। अब आगे से ध्यान रखना। जो कुछ भी मेरा हुक्म हो उसका तुरंत पालन होना चाहिए।
मम्मी पूरी लगन और तल्लीनता से अर्जुन का लंड चूस चूसकर उसे खुश करने की कोशिश कर रही थी।
अचानक अर्जुन ने अपने लंड की पिचकारी छोड़ते हुए मम्मी को आदेश दिया : इसमें से जितना जूस निकले उसे तुझे पीना है। एक भी बूंद बाहर गिरी तो तुझसे उसे भी चटवाऊंगा।
अर्जुन और मम्मी दोनों इस समय पूरी तरह नंगे थे। अर्जुन ने जैसे ही लंड की पिचकारी छोड़ी, मम्मी फ़टाफ़ट सारा जूस पी गयीं लेकिन फिर भी काफी वीर्य रस बाहर अर्जुन की जांघों के अंदरूनी भाग पर गिर गया था।
अर्जुन बोला : पहले मेरे गीले लंड को चाटकर साफ करो और उसके बाद अपनी जीभ से मेरी जाँघों पर गिरे वीर्य को चाटो।
अर्जुन डबल मज़ा ले रहा था। लंड चुसवाने और चटवाने के बाद उसने मम्मी से अपनी जाँघे भी चटवाईं।
मम्मी अर्जुन के अगले आदेश की प्रतीक्षा करते करते लगातार उसकी जाँघों के अंदरूनी भाग को चाट रही थी और अर्जुन को इसमें बेहद मज़ा इसलिए आ रहा था क्योंकि यह सब वह पहली बार करवा रहा था।
कुछ देर और मज़े लेने के बाद अर्जुन बोला : चलो अब फिर से खड़ी हो जाओ।
मम्मी बिस्तर से उतरकर खड़ी हो गई।
अर्जुन बोला : जाओ नीचे जाकर किचिन की सफाई करो। बर्तन साफ करो और मेरे कमरे की भी सफाई करो। अब हर रोज तुम्हे यह काम इसी वक्त करना है जब कुसुम और रश्मि गहरी नींद में सो रहे हों।
मम्मी अपनी साड़ी उठाने लगी
अर्जुन ने मम्मी को साड़ी पहनने से रोक दिया : रात में कोई नही देख रहा है। ऐसे ही नंगी ही किचिन में जाओ और जो मैंने हुक्म दिया है, उसका पालन करो।
मम्मी नंगी ही कमरा खोलकर किचिन की तरफ जाने लगीं।
शेष अगले भाग में
Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
- mastram
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
मस्त राम मस्ती में
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
में अपने कॉटेज के अंदर ही बनी सीढ़िया चढ़ता हुआ उपर पहुँच गया....और जब बाहर निकल कर देखता हूँ....में एक पेड़ के सबसे उपरी जगह पर था वहाँ से पूरा जंगल ऐसा लग रहा था मानो घास का मैदान था....पूरा हरा भरा जंगल मेरी आँखो के सामने था....और यही से एक कॉटेज से दूसरे पर जाने के लिए छोटे छोटे पुल भी बने थे जो मजबूती के साथ एक दूसरे से बँधे थे....
हम सभी पूरे जंगल का वही से नज़ारा लेने लग गये थे....जहा नीरा कुछ देर पहले मुझे आँखे दिखा रही थी वो अब शांत थी....
कोई किसी से कुछ नही कह रहा था बस उस नज़ारे को सब अपनी आँखो मे क़ैद करने मे लगे थे....
सुहानी--कैसी लगी जय आपको ये जगह....
जय--ऐसा लग रहा है जैसे रहने के लिए इस से खूबसूरत जगह कोई और हो ही नही सकती....इतनी खूबसूरत जगह तो सिवाए स्वर्ग के कही हो ही नही सकती....
मम्मी--सही कहा जय....सच मे बहुत खूबसूरत जगह है ये....मन करता है यहाँ ऐसे ही अपना पूरा जीवन बिता दूं....
सुहानी--मुझे बस यही डर लग रहा था क्या पता मैं आप लोगो के भरोसे पर खरी उतरूँगी भी या नही....लेकिन आप लोगो को खुश देख कर मुझे भी अब इतमीनान हो गया है....
नीरा--सच में इतनी सुंदर जगह देख कर मुझे बड़ी खुशी हो रही है....
सुहानी--कल इस से भी ज़्यादा सुंदर जगह आप देख पाएँगे....में किसी को आपलोगो को रास्ता बताने के लिए भिजवा दूँगी....
में--नही सुहानी....मुझे बस एक मॅप दे देना और उसमे जो जगह देखने लायक हो उन्हे मार्क कर देना....
सुहानी--सुहानी ठीक है जय....जैसा तुम चाहो....अब आप लोग आराम करो किसी भी चीज़ के ज़रूरत होने पर यहाँ मोजूद वाइयरलेस से तुम मुझे कॉंटॅक्ट कर सकते हो....
उसके बाद सुहानी ये कह कर वहाँ से चली गयी और हम फिर से खो गये जंगल की खूबसूरती को अपनी आँखो मे बसाते हुए....
जंगल की सुंदरता का लुफ्त उठाते उठाते ना जाने कब अंधेरा हो गया....हम सभी अब भी एक ही कॉटेज मे बैठे बाते कर रहे थे....
कोमल--वाह भैया कमाल की जगह है ये तो.....कितना सुकून है यहाँ पर...
दीक्षा--ज़्यादा सुकून मत ले लेना कहीं ऐसा ना हो तू पढ़ाई लिखाई छोड़ के जंगली बन कर यहीं रहने लग जाए.....
दीक्षा की इस बात पर हम सभी हँसे बिना नही रह सके....
भाभी--वैसे में तो कहती हूँ हमे भी एक छोटा सा घर ऐसी ही किसी जगह बना लेना चाहिए.....
मम्मी--ज़रूर में भी यही सोच रही हूँ....एक फार्म हाउस कुछ इस तरह से बनाया जाए कि वो किसी छोटे जंगल से कम ना हो...
में--हाँ मम्मी वापस जाकर मैं यही काम करूँगा सब से पहले.....में भी दुखी हो गया हूँ शहर की भीड़ भाड़ से.....
नीरा--क्या यार इतनी प्यारी जगह हम आए है और यहाँ बंदरों की तरह पेड़ पर टँगे बैठे है....कहीं घूमने चलना चाहिए....
में--आज नही नीरा.....हमने ये इलाक़ा अच्छे से देखा नही है अभी....कल सुबह हम सब एक साथ चलेंगे घूमने.....
नीरा--जैसा आप लोग चाहे.....में तो इस पेड़ पर भी खुश हूँ....
रूही--हाँ बंदरिया....तुझे तो जय भैया जहाँ दिख जाए वही खुशी मिल जाती है....
नीरा--इसमें ग़लत क्या है....मैं प्यार करती हूँ इनसे....
नीरा की ये बात सुन कर मैं मम्मी और शमा नीरा की तरफ अपना मुँह फाड़ के देखने लगे....मम्मी ने बात बदलते हुए कहा.....
मम्मी--चलो अब सब थोड़ा आराम कर लो....नीरा...शमा तुम दोनो मेरे साथ सो जाना....कोमल दीक्षा तुम नेहा के साथ अड्जस्ट कर लेना....और जय तुम रूही को यहीं सुला लेना....
मम्मी की ये बात सुन कर जहाँ नीरा का मुँह उतर गया वहीं रूही का चेहरा किसी गुलाब की तरह खिल उठा.....
सब लोग अपने अपने कॉटेज की तरफ पेड़ो पर बने उस छोटे से पुल पर बढ़ गये....नीरा मुझे छोड़ कर जाना तो नही चाहती थी लेकिन उदास मन से मेरी तरफ देखने लगी....
में--मम्मी नीरा का मन नही है....इसे आप मेरे पास ही छोड़ जाओ.....ये बंदरिया मेरे पास अच्छे से सो जाएगी....
नीरा का इतना सुनना था और वो मुझ पर उछलती कुदती चढ़ के बैठ गयी....
में--ज़्यादा उछल कूद मत मचा हम पेड़ पर है कहीं ये ट्री हाउस गिर गया तो लेने के देने पड़ जाएँगे....
भाभी--जय अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ....
में--हाँ भाभी बोलो....
भाभी--वैसे ये जगह काफ़ी अच्छी है लेकिन मेरा सोचना ऐसा है कि हमे ज़मीन पर ही टॅंट लगा कर रहना चाहिए....हम लोग काफ़ी उँचाई पर है....कही उतरते चढ़ते कोई हादसा ना हो जाए.....
में--भाभी की इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया....
में--ठीक है भाभी मैं कल ही सुहानी से बोलकर टॅंट का बंदोबस्त करवा दूँगा...
हम सभी पूरे जंगल का वही से नज़ारा लेने लग गये थे....जहा नीरा कुछ देर पहले मुझे आँखे दिखा रही थी वो अब शांत थी....
कोई किसी से कुछ नही कह रहा था बस उस नज़ारे को सब अपनी आँखो मे क़ैद करने मे लगे थे....
सुहानी--कैसी लगी जय आपको ये जगह....
जय--ऐसा लग रहा है जैसे रहने के लिए इस से खूबसूरत जगह कोई और हो ही नही सकती....इतनी खूबसूरत जगह तो सिवाए स्वर्ग के कही हो ही नही सकती....
मम्मी--सही कहा जय....सच मे बहुत खूबसूरत जगह है ये....मन करता है यहाँ ऐसे ही अपना पूरा जीवन बिता दूं....
सुहानी--मुझे बस यही डर लग रहा था क्या पता मैं आप लोगो के भरोसे पर खरी उतरूँगी भी या नही....लेकिन आप लोगो को खुश देख कर मुझे भी अब इतमीनान हो गया है....
नीरा--सच में इतनी सुंदर जगह देख कर मुझे बड़ी खुशी हो रही है....
सुहानी--कल इस से भी ज़्यादा सुंदर जगह आप देख पाएँगे....में किसी को आपलोगो को रास्ता बताने के लिए भिजवा दूँगी....
में--नही सुहानी....मुझे बस एक मॅप दे देना और उसमे जो जगह देखने लायक हो उन्हे मार्क कर देना....
सुहानी--सुहानी ठीक है जय....जैसा तुम चाहो....अब आप लोग आराम करो किसी भी चीज़ के ज़रूरत होने पर यहाँ मोजूद वाइयरलेस से तुम मुझे कॉंटॅक्ट कर सकते हो....
उसके बाद सुहानी ये कह कर वहाँ से चली गयी और हम फिर से खो गये जंगल की खूबसूरती को अपनी आँखो मे बसाते हुए....
जंगल की सुंदरता का लुफ्त उठाते उठाते ना जाने कब अंधेरा हो गया....हम सभी अब भी एक ही कॉटेज मे बैठे बाते कर रहे थे....
कोमल--वाह भैया कमाल की जगह है ये तो.....कितना सुकून है यहाँ पर...
दीक्षा--ज़्यादा सुकून मत ले लेना कहीं ऐसा ना हो तू पढ़ाई लिखाई छोड़ के जंगली बन कर यहीं रहने लग जाए.....
दीक्षा की इस बात पर हम सभी हँसे बिना नही रह सके....
भाभी--वैसे में तो कहती हूँ हमे भी एक छोटा सा घर ऐसी ही किसी जगह बना लेना चाहिए.....
मम्मी--ज़रूर में भी यही सोच रही हूँ....एक फार्म हाउस कुछ इस तरह से बनाया जाए कि वो किसी छोटे जंगल से कम ना हो...
में--हाँ मम्मी वापस जाकर मैं यही काम करूँगा सब से पहले.....में भी दुखी हो गया हूँ शहर की भीड़ भाड़ से.....
नीरा--क्या यार इतनी प्यारी जगह हम आए है और यहाँ बंदरों की तरह पेड़ पर टँगे बैठे है....कहीं घूमने चलना चाहिए....
में--आज नही नीरा.....हमने ये इलाक़ा अच्छे से देखा नही है अभी....कल सुबह हम सब एक साथ चलेंगे घूमने.....
नीरा--जैसा आप लोग चाहे.....में तो इस पेड़ पर भी खुश हूँ....
रूही--हाँ बंदरिया....तुझे तो जय भैया जहाँ दिख जाए वही खुशी मिल जाती है....
नीरा--इसमें ग़लत क्या है....मैं प्यार करती हूँ इनसे....
नीरा की ये बात सुन कर मैं मम्मी और शमा नीरा की तरफ अपना मुँह फाड़ के देखने लगे....मम्मी ने बात बदलते हुए कहा.....
मम्मी--चलो अब सब थोड़ा आराम कर लो....नीरा...शमा तुम दोनो मेरे साथ सो जाना....कोमल दीक्षा तुम नेहा के साथ अड्जस्ट कर लेना....और जय तुम रूही को यहीं सुला लेना....
मम्मी की ये बात सुन कर जहाँ नीरा का मुँह उतर गया वहीं रूही का चेहरा किसी गुलाब की तरह खिल उठा.....
सब लोग अपने अपने कॉटेज की तरफ पेड़ो पर बने उस छोटे से पुल पर बढ़ गये....नीरा मुझे छोड़ कर जाना तो नही चाहती थी लेकिन उदास मन से मेरी तरफ देखने लगी....
में--मम्मी नीरा का मन नही है....इसे आप मेरे पास ही छोड़ जाओ.....ये बंदरिया मेरे पास अच्छे से सो जाएगी....
नीरा का इतना सुनना था और वो मुझ पर उछलती कुदती चढ़ के बैठ गयी....
में--ज़्यादा उछल कूद मत मचा हम पेड़ पर है कहीं ये ट्री हाउस गिर गया तो लेने के देने पड़ जाएँगे....
भाभी--जय अगर बुरा ना मानो तो एक बात कहूँ....
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भाभी--वैसे ये जगह काफ़ी अच्छी है लेकिन मेरा सोचना ऐसा है कि हमे ज़मीन पर ही टॅंट लगा कर रहना चाहिए....हम लोग काफ़ी उँचाई पर है....कही उतरते चढ़ते कोई हादसा ना हो जाए.....
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
में--हाँ भाभी बोलो....
भाभी--वैसे ये जगह काफ़ी अच्छी है लेकिन मेरा सोचना ऐसा है कि हमे ज़मीन पर ही टॅंट लगा कर रहना चाहिए....हम लोग काफ़ी उँचाई पर है....कही उतरते चढ़ते कोई हादसा ना हो जाए.....
में--भाभी की इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया....
में--ठीक है भाभी मैं कल ही सुहानी से बोलकर टॅंट का बंदोबस्त करवा दूँगा....
मेरी ये बात सुनकर वो सभी लोग फिर से अपने कॉटेज की तरफ बढ़ जाते है जो नीरा की वजह से रुक गये थे....
वैसे तो किसी को भूक नही थी लेकिन सब का खाना. कॉटेज में पहले ही पहुँच गया था....में अपने बेड पर बैठ कर एक स्कॉच की बोतल खोल देता हूँ जिसमें से रूही और नीरा के लिए भी एक एक छोटा छोटा पेग बना देता हूँ....
रूही--क्या बात है भाई....आज तू खुद हमे दारू पिला रहा है....
में--क्या करूँ अगर मुझे पीनी है तो तुम दोनो को भी पिलानी तो पड़ेगी ही....
इसी तरह हसी मज़ाक करते करते वो दोनो निढाल हो कर बेड पर पसर जाती है और में बाहर खड़ा होकर पूनम के चाँद का दूर से दीदार कर रहा था....थोड़ी देर बाद में भी दोनो के बीच मे पसर जाता हूँ....मेरे ऐसा करते ही नीरा और रूही दोनो का हाथ मेरे सीने पर आजाता है.....
में भी सो जाता हूँ आने वाले उस ख्तरे से अंजान जो किसी मकड़ी के जाल की तरह हमे फसाने के लिए तैयार हो रहा था....
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भाभी--वैसे ये जगह काफ़ी अच्छी है लेकिन मेरा सोचना ऐसा है कि हमे ज़मीन पर ही टॅंट लगा कर रहना चाहिए....हम लोग काफ़ी उँचाई पर है....कही उतरते चढ़ते कोई हादसा ना हो जाए.....
में--भाभी की इस बात ने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया....
में--ठीक है भाभी मैं कल ही सुहानी से बोलकर टॅंट का बंदोबस्त करवा दूँगा....
मेरी ये बात सुनकर वो सभी लोग फिर से अपने कॉटेज की तरफ बढ़ जाते है जो नीरा की वजह से रुक गये थे....
वैसे तो किसी को भूक नही थी लेकिन सब का खाना. कॉटेज में पहले ही पहुँच गया था....में अपने बेड पर बैठ कर एक स्कॉच की बोतल खोल देता हूँ जिसमें से रूही और नीरा के लिए भी एक एक छोटा छोटा पेग बना देता हूँ....
रूही--क्या बात है भाई....आज तू खुद हमे दारू पिला रहा है....
में--क्या करूँ अगर मुझे पीनी है तो तुम दोनो को भी पिलानी तो पड़ेगी ही....
इसी तरह हसी मज़ाक करते करते वो दोनो निढाल हो कर बेड पर पसर जाती है और में बाहर खड़ा होकर पूनम के चाँद का दूर से दीदार कर रहा था....थोड़ी देर बाद में भी दोनो के बीच मे पसर जाता हूँ....मेरे ऐसा करते ही नीरा और रूही दोनो का हाथ मेरे सीने पर आजाता है.....
में भी सो जाता हूँ आने वाले उस ख्तरे से अंजान जो किसी मकड़ी के जाल की तरह हमे फसाने के लिए तैयार हो रहा था....
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
रात को तकरीबन 3 बजे...
में पसीने में पूरा भीगा हुआ लगातार एक सपना देखे जा रहा था....
मम्मी मुझे पुकार रही है उनके कपड़े जगह जगह से फट चुके है....माथे से खून रीस रहा है उनके बगल में रूही बेसूध पड़ी है....एक साया उनके पास लगातार बढ़ रहा था....उस साए के हाथो मे एक खंज़र था जो किसी की अंतड़ियाँ निकालने के लिए काफ़ी था....में भाग रहा हूँ लगातार रूही और मम्मी को पागलो की तरह आवाज़े लगाते हुए....
भैया.....भैयाअ....भैया....उठो क्या हुआ आपको
रूही की आती हुई आवाज़ ने मुझे उस सपने से बाहर निकाल दिया में लगभग हान्फता हुआ पसीने से लथपथ रूही को देखे जा रहा था....
रूही के इस तरह ज़ोर से जगाने की वजह से नीरा की भी आँख खुल गयी थी....वो भी मेरी तरफ मुँह फ़ाडे देखने लग गयी ...
रूही--क्या हुआ भाई....कोई बुरा सपना देखा है क्या....
में--तू ठीक है ना रूही....मम्मी कहाँ है....तुझे कही चोट तो नही लगी....
रूही--में बिल्कुल ठीक हूँ...और मम्मी भी कॉटेज में आराम कर रही है....तूने ज़रूर कोई बुरा सपना देखा है....
इतने में नीरा ने उठ कर मेरे लिए पानी का ग्लास भर दिया....और मुझे अपने हाथो से पिलाने लगी....
में--हम अब यहाँ नही रहेंगे....हम सुबह होते ही वापस घर के लिए निकल जाएँगे....
मेरी ये बात सुनकर वहाँ जैसे एक सन्नाटा छा गया....नीरा और रूही दोनो एक दूसरे का चेहरा देखने लगे....लेकिन में निश्चय कर चुका था वापस घर जाने का....
एक अनचाहा डर मेरे मन मे घर कर गया था....में अब यहाँ से अपने परिवार को ले जाना चाहता था....
मेरे इस फ़ैसले से आफरा तरफरी का माहॉल बन गया था....कोई भी जाना नही चाहता था...सभी मुझे समझाने मे लगे हुए थे....
मम्मी--जय ये कैसा बच्पना है.....एक सपने के पीछे तू सबकी खुशियो पर पानी फेर देगा....
में--मम्मी पता नही क्यो...लेकिन मेरा मन नही मान रहा....
मम्मी--ठीक है अगर कुछ ग़लत होता है तो उसकी ज़िम्मेदारी में लेती हूँ.....तू बस अपने दिमाग़ से उस सपने को निकाल दे....
मम्मी की बात भी ठीक ही तो थी....एक सपने के पीछे में सब की ट्रिप खराब कर दूं ये सही नही होगा....इसलिए मैने फ़ैसला किया जैसा चल रहा है वैसे ही चलते रहने देने का....
में--ठीक है मम्मी जैसा आप चाहे....
मम्मी--तो फिर ठीक है चल अब सब को जंगल में घुमा कर ले आ....सुबह से सबको परेशान कर दिया है तूने....
उसके बाद में सब को एक जगह इकट्ठा करता हूँ और सबसे चलने की कहता हूँ....
नीचे उतर कर हम सभी मॅप के अनुसार आगे बढ़ने लगे....हम जिस तरफ जा रहे थे वहाँ एक छोटी नदी थी...और काफ़ी देर चलने के बाद हम सभी उस नदी पर पहुँच गये....
नदी ज़्यादा तेज़ नही बह रही थी....और ज़्यादा गहरी भी नही थी...
नदी को देखते ही नीरा कोमल रूही और भाभी जैसे पागल हो गये थे....उन्होने वही पर झाड़ियो मे जाकर चेंज किया और कूद पड़ी नदी के अंदर....
शमा--भैया मुझे डर लगता है पानी से....में नही जाउन्गि नदी मे...
में--डरना कैसा शमा ये नदी ज़्यादा गहरी नही है....और तुझे संभालने वाले हम लोग है ना यहाँ....
शमा--नही भैया मैं नही जाउन्गि....
शमा को डरता देख में उसे अपनी गोद में उठा लेता हूँ और नदी के अंदर मस्ती करती हुई नीरा और भाभी को इशारा करके शमा को संभालने की कह कर नदी में फेक देता हूँ....थोड़ी देर नदी मे उछाल कूद मचाने के बाद शमा भी अब नौरमल हो गयी थी...वो भी अब पानी में मस्ती करने लग गयी थी....उसको खुश देख कर मैने सुकून की साँस ली....
मेरे और मम्मी के अलावा सभी पानी मे मस्ती कर रहे थे....अचानक मम्मी ने मुझे भी पानी मे धक्का दे दिया....और मैं सीधा रूही और भाभी के बीच नदी में गिर गया....खुद को संभालने की कोशिश में मेरा हाथ रूही के बूब्स पर छु गया.....जिसे महसूस कर रूही अपनी आँखे बंद कर चुकी थी....
हम सभी नदी के पानी मे खेलते खेलते समय को भूल ही गये थे....
शमा--भैयाअ.....
में--क्या हुआ शमा....मज़ा नही आ रहा है क्या....
शमा--मज़ा तो आ रहा है लेकिन अब भूक लगने लग गयी है....
मम्मी--अरे खाना साथ लाना तो हम भूल ही गये....जय तू कॉटेज से जाकर खाना ले आ जब तक हम सब यही है....
नीरा--में भी चल रही हूँ आपके साथ खाना लेने......
में--ठीक है नीरा चल....इन भुक्कडो के लिए खाना लेकर आते है...
में पसीने में पूरा भीगा हुआ लगातार एक सपना देखे जा रहा था....
मम्मी मुझे पुकार रही है उनके कपड़े जगह जगह से फट चुके है....माथे से खून रीस रहा है उनके बगल में रूही बेसूध पड़ी है....एक साया उनके पास लगातार बढ़ रहा था....उस साए के हाथो मे एक खंज़र था जो किसी की अंतड़ियाँ निकालने के लिए काफ़ी था....में भाग रहा हूँ लगातार रूही और मम्मी को पागलो की तरह आवाज़े लगाते हुए....
भैया.....भैयाअ....भैया....उठो क्या हुआ आपको
रूही की आती हुई आवाज़ ने मुझे उस सपने से बाहर निकाल दिया में लगभग हान्फता हुआ पसीने से लथपथ रूही को देखे जा रहा था....
रूही के इस तरह ज़ोर से जगाने की वजह से नीरा की भी आँख खुल गयी थी....वो भी मेरी तरफ मुँह फ़ाडे देखने लग गयी ...
रूही--क्या हुआ भाई....कोई बुरा सपना देखा है क्या....
में--तू ठीक है ना रूही....मम्मी कहाँ है....तुझे कही चोट तो नही लगी....
रूही--में बिल्कुल ठीक हूँ...और मम्मी भी कॉटेज में आराम कर रही है....तूने ज़रूर कोई बुरा सपना देखा है....
इतने में नीरा ने उठ कर मेरे लिए पानी का ग्लास भर दिया....और मुझे अपने हाथो से पिलाने लगी....
में--हम अब यहाँ नही रहेंगे....हम सुबह होते ही वापस घर के लिए निकल जाएँगे....
मेरी ये बात सुनकर वहाँ जैसे एक सन्नाटा छा गया....नीरा और रूही दोनो एक दूसरे का चेहरा देखने लगे....लेकिन में निश्चय कर चुका था वापस घर जाने का....
एक अनचाहा डर मेरे मन मे घर कर गया था....में अब यहाँ से अपने परिवार को ले जाना चाहता था....
मेरे इस फ़ैसले से आफरा तरफरी का माहॉल बन गया था....कोई भी जाना नही चाहता था...सभी मुझे समझाने मे लगे हुए थे....
मम्मी--जय ये कैसा बच्पना है.....एक सपने के पीछे तू सबकी खुशियो पर पानी फेर देगा....
में--मम्मी पता नही क्यो...लेकिन मेरा मन नही मान रहा....
मम्मी--ठीक है अगर कुछ ग़लत होता है तो उसकी ज़िम्मेदारी में लेती हूँ.....तू बस अपने दिमाग़ से उस सपने को निकाल दे....
मम्मी की बात भी ठीक ही तो थी....एक सपने के पीछे में सब की ट्रिप खराब कर दूं ये सही नही होगा....इसलिए मैने फ़ैसला किया जैसा चल रहा है वैसे ही चलते रहने देने का....
में--ठीक है मम्मी जैसा आप चाहे....
मम्मी--तो फिर ठीक है चल अब सब को जंगल में घुमा कर ले आ....सुबह से सबको परेशान कर दिया है तूने....
उसके बाद में सब को एक जगह इकट्ठा करता हूँ और सबसे चलने की कहता हूँ....
नीचे उतर कर हम सभी मॅप के अनुसार आगे बढ़ने लगे....हम जिस तरफ जा रहे थे वहाँ एक छोटी नदी थी...और काफ़ी देर चलने के बाद हम सभी उस नदी पर पहुँच गये....
नदी ज़्यादा तेज़ नही बह रही थी....और ज़्यादा गहरी भी नही थी...
नदी को देखते ही नीरा कोमल रूही और भाभी जैसे पागल हो गये थे....उन्होने वही पर झाड़ियो मे जाकर चेंज किया और कूद पड़ी नदी के अंदर....
शमा--भैया मुझे डर लगता है पानी से....में नही जाउन्गि नदी मे...
में--डरना कैसा शमा ये नदी ज़्यादा गहरी नही है....और तुझे संभालने वाले हम लोग है ना यहाँ....
शमा--नही भैया मैं नही जाउन्गि....
शमा को डरता देख में उसे अपनी गोद में उठा लेता हूँ और नदी के अंदर मस्ती करती हुई नीरा और भाभी को इशारा करके शमा को संभालने की कह कर नदी में फेक देता हूँ....थोड़ी देर नदी मे उछाल कूद मचाने के बाद शमा भी अब नौरमल हो गयी थी...वो भी अब पानी में मस्ती करने लग गयी थी....उसको खुश देख कर मैने सुकून की साँस ली....
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हम सभी नदी के पानी मे खेलते खेलते समय को भूल ही गये थे....
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मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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