सवेरे सवेरे....
भैया उठो सवेरा हो गया है आज काफ़ी काम करने है ....जल्दी उठो भैया.,.
ये आवाज़ में पहचानता था लेकिन ये आवाज़ वो नही थी जो मुझे रोज़ सवेरे नींद में से जगा देती थी ...ये आवाज़ नीरा की थी...
में--क्या हुआ नीरा आज तू मुझ से पहले उठ गयी...
नीरा--हाँ उठ गयी और आपको उठाने भी आ गई...जैसे आपके उपर पूरे परिवार को संभालने की ज़िम्मेदारी है...वैसे ही मैने भी आपको संभालने की ज़िम्मेदारी ले ली है...
में--क्या बात है...तू अपने छोटे छोटे कंधो पर मुझे उठा लेगी...
नीरा--हाँ में आपको उठा भी लूँगी और ज़्यादा मुँह खोला तो नीचे पटक भी दूँगी चलो अब जल्दी से फ्रेश हो जाओ पंडित जी आने वाले है...
उसके बाद नीरा वहाँ से चली जाती है..
मुझे ऐसा लग रहा था जैसे इस घर पे जो दुख के बादल छा गये थे...वो अब दूर हो गये है ...सब कुछ बिल्कुल नौरमल सा लग रहा था जैसे कुछ हुआ ही ना हो...
में उठ कर नहा धो कर बाहर हॉल में आजाता हूँ वहाँ चाचा जी अख़बार पढ़ रहे थे...
मैने जाते ही उनके पेर छुए...और उन्होने भी स्नेह से मेरे सिर पर हाथ रख कर कहा ...
चाचा...बेटा आज हम लोगो को तीसरे की बैठक करनी है और दिन में जाकर अस्थिया भी लेकर आनी है...उसके बाद में और तेरी चाची और रूही हम तीनो अस्थिया लेकर हरिद्वार के लिए निकल जाएँगे...
में--जैसा आप ठीक समझो चाचा जी.,,पता नही अगर आप यहाँ ना होते तो में कैसे ये सब ज़िम्मेदारियाँ उठा पता ...
चाचा--बेटा मेरे होने या ना होने से कोई फ़र्क नही पड़ता...ये सब काम अपने आप आजाते है इनको सीखना नही पड़ता ...ये बिल्कुल उसी तरह है जैसे एक बछड़े को उसकी माँ का दूध पीना सीखना नही पड़ता... वो अपने आप ही उस जगह को ढूँढ लेता है जहा से उसकी भूक मिट सकती हो...
में--आप बिल्कुल पापा की तरह बात करते है चाचा जी...
चाचा--अब ये सारी बाते छोड़ और लग जा काम पर...बाज़ार से में एक लिस्ट दे रहा हूँ वो सामान जाकर ले आ और बाजार जाने से पहले तेरी मम्मी और भाभी से मिलकर जाना..
मम्मी और भाभी का नाम सुनते ही मेरे माथे पर चिंता की लकीरे उभर आई...जिसे चाचा जी ने तुरंत पहचान लिया.
चाचा--बेटा तू उन दोनो से छुप नही सकता उनसे छुप कर तू उन्हे और अकेला कर रहा है
अपनी सारी चिन्ताओ को छोड़ और उन्हे वापस इस संसार में लाने की कोशिश कर...
उसके बाद में मम्मी के रूम में चला गया वहाँ चाची भी बैठी हुई थी...
मम्मी मुझे बड़ी आस भरी नज़रो से देख रही थी....शायद वो कुछ कहना चाहती थी मुझ से ....शायद कुछ ऐसा कहना चाहती थी जो में सह ना सकूँ....शायद एक और तूफान मेरे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था....
मम्मी मुझे बड़ी आस भरी नज़रो से देख रही थी....शायद वो कुछ कहना चाहती थी मुझ से ....शायद कुछ ऐसा कहना चाहती थी जो में सह ना सकूँ....शायद एक और तूफान मेरे दिल के दरवाजे पर दस्तक दे रहा था.....,
में मम्मी के पास जाकर बैठ गया...और मम्मी मेरे सिर पर हाथ फिराने लगी...
मम्मी--तू तेरी भाभी से नही मिला क्या अभी तक...
में--नही मम्मी ....में अब जाउन्गा उनके पास..
मम्मी--मैने तो अपनी आधी से ज़्यादा जिंदगी सुख से निकाल दी...लेकिन वो बेचारी तो अभी बच्ची है.....उसने तो अभी तक कुछ देखा ही नही है...
में--हाँ मम्मी आप सही कह रही हो भाभी...कैसे रहेगी ये सोच सोच कर मेरा दिनग फटे जा रहा है...
मम्मी--तू तेरी भाभी से बात कर अगर वो अपने मायके जाना चाहे तो जा सकती है...और वैसे भी अब वो इस घर में रह कर करेगी भी क्या ....अपने माँ बाप के साथ रहेगी तो हो सकता है उसकी दूसरी शादी भी करवा दे...
Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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भाई बहन,ननद भाभी और नौकर .......... सेक्स स्लेव भाभी और हरामी देवर .......... वासना के सौदागर .......... Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक Running.......... घर की मुर्गियाँ Running......नेहा बह के कारनामे (Running) ....मस्तराम की कहानियाँ(Running) ....अनोखा इंतकाम रुबीना का ..........परिवार बिना कुछ नहीं..........माँ को पाने की हसरत ......सियासत और साजिश .....बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई.....एक और घरेलू चुदाई......दिल दोस्ती और दारू...
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
में--मम्मी ये कैसे पासिबल होगा भाभी के जीवन में इतना भारी तूफान आ गया और उनके मम्मी पापा ने यहाँ आना तो दूर एक फोन तक नही किया....वो कैसे भाभी का ख्याल रख पाएँगे...
मम्मी--बात तो तेरी सही है ...लेकिन कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा ...
में--मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा..,आप हे सलाह दो में क्या करूँ ऐसा जिस से उनकी लाइफ में फिर से खुशियाँ आ सके.
मम्मी--यही बात में भी सोच रही हूँ कब से...कैसे में उस बच्ची को दर्द की दुनिया से बाहर निकालु...क्या करूँ कुछ भी कहने की हिम्मत नही है मुझमे...
में कुछ कहना भी चाहूं तो मेरी ज़बान लड़खड़ा जाती है
में--मम्मी अब आप ज़्यादा मत सोचो में भाभी से मिलकर बाज़ार जा रहा हूँ कुछ ज़रूरी सामान लेने...
और में उठकर रूम से बाहर निकालने लगता हूँ...
में रूम के दरवाजे तक ही पहुचा होता हूँ. तभी मेरे कानो में मम्मी की आवाज़ सुनाई पड़ती है...
जो तूफान मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक देता हुआ महसूस हो रहा था वो अब मेरे सामने एक सवाल के रूप में आकर खड़ा हो गया था...
मम्मी--तू क्यो नही कर लेता नेहा से शादी.....??????
ये बात सुनते ही में मम्मी की तरफ पलट कर देखता हूँ....मम्मी मेरी आँखो में सुलगते हुए अंगारे देख के बिल्कुल खामोश हो जाती है.....और में बिना कुछ कहे वहाँ से भाभी के रूम की तरफ चला जाता हूँ...
में--भाभी घर से किसी का फोन आया क्या...अग्र आप बुरा ना माने तो में एक बात कहना. चाहता हूँ...
भाभी--नही जय किसी का फोन नही आया....में उनलोगो के लिए उसी दिन मर गई थी जब मैने तुम्हारे भैया से शादी की थी...तुम बोलो क्या कहना चाहते हो...
में--हिचक्कता हुआ ये बात कहता हूँ....भाभी अगर आप वापस जाना चाहो तो घर जा सकती हो....वैसे भी आपके लिए यहाँ कुछ भी बचा नही है....आप चाहो तो दूसरी शादी के बारे में सोच सकती हो....
भाभी--ये बात तुझे मम्मी ने कही या....तो खुद अपने मन से ये बात कह रहा हैं....
में--भाभी जो इस हालत में सही है...,में वही बात कर रहा हूँ...,
भाभी--तो फिर मेरा एक फ़ैसला तू भी सुन ले ...,,ये मेरा घर है....ये मेरे प्यार का घर है...क्या हुआ जो आज वो मेरे साथ नही है...लेकिन में ये घर कही भी छोड़ कर नही जाउन्गि......आइ थिंक तुझे तेरा जवाब मिल गया होगा .......इसलिए मुझे अब अकेला छोड़ दे और बोल दे सभी से मेरे बारे में चिंता करने की ज़रूरत नही है....
में--पर भाभी....
भाभी--मैने कहा ना अब किसी पर की गुंजाइश नही है....बस मुझे अकेला छोड़ दो तुम सब .....में अपने घर में ही रहना चाहती हो यहाँ से अगर में जाउन्गि तो एक लाश के रूप में ही जाउन्गि....
में--भाभी अगर आप यहाँ रहना चाहती हो तो में कौन होता हूँ आपको रोकने वाला.... लेकिन ऐसा ना हो कि एक दिन आप अपने फ़ैसले पर पछताओ....
भाभी--जिस दिन मुझे इस फ़ैसले पर पछ्ताना पड़ा ये मान लेना वो मेरे जीवन का आख़िरी दिन होगा.
में--लेकिन भाभी आप मेरी बात समझ ने की कोशिश करो....
भाभी--में तेरी बात अच्छे से समझ रही हूँ...लेकिन तेरी नियत को नही समझ पा रही...अगर तू चाहता है...तेरा मेरा रिश्ता ऐसे ही बना रहे तो यहाँ से चुप चाप उठकर बाहर चला जा......
में वहाँ से बिना कुछ कहे निकल गया...बाहर निकलते ही मुझे चाचा जी ने वो लिस्ट वाला काम पूरा करने के लिए कह दिया.
इस बीच चाचा जी श्मशान से अस्थिया भी लेकर आ गये थे...
.............................
मम्मी--बात तो तेरी सही है ...लेकिन कुछ ना कुछ तो करना ही पड़ेगा ...
में--मुझे तो कुछ समझ नही आ रहा..,आप हे सलाह दो में क्या करूँ ऐसा जिस से उनकी लाइफ में फिर से खुशियाँ आ सके.
मम्मी--यही बात में भी सोच रही हूँ कब से...कैसे में उस बच्ची को दर्द की दुनिया से बाहर निकालु...क्या करूँ कुछ भी कहने की हिम्मत नही है मुझमे...
में कुछ कहना भी चाहूं तो मेरी ज़बान लड़खड़ा जाती है
में--मम्मी अब आप ज़्यादा मत सोचो में भाभी से मिलकर बाज़ार जा रहा हूँ कुछ ज़रूरी सामान लेने...
और में उठकर रूम से बाहर निकालने लगता हूँ...
में रूम के दरवाजे तक ही पहुचा होता हूँ. तभी मेरे कानो में मम्मी की आवाज़ सुनाई पड़ती है...
जो तूफान मेरे घर के दरवाजे पर दस्तक देता हुआ महसूस हो रहा था वो अब मेरे सामने एक सवाल के रूप में आकर खड़ा हो गया था...
मम्मी--तू क्यो नही कर लेता नेहा से शादी.....??????
ये बात सुनते ही में मम्मी की तरफ पलट कर देखता हूँ....मम्मी मेरी आँखो में सुलगते हुए अंगारे देख के बिल्कुल खामोश हो जाती है.....और में बिना कुछ कहे वहाँ से भाभी के रूम की तरफ चला जाता हूँ...
में--भाभी घर से किसी का फोन आया क्या...अग्र आप बुरा ना माने तो में एक बात कहना. चाहता हूँ...
भाभी--नही जय किसी का फोन नही आया....में उनलोगो के लिए उसी दिन मर गई थी जब मैने तुम्हारे भैया से शादी की थी...तुम बोलो क्या कहना चाहते हो...
में--हिचक्कता हुआ ये बात कहता हूँ....भाभी अगर आप वापस जाना चाहो तो घर जा सकती हो....वैसे भी आपके लिए यहाँ कुछ भी बचा नही है....आप चाहो तो दूसरी शादी के बारे में सोच सकती हो....
भाभी--ये बात तुझे मम्मी ने कही या....तो खुद अपने मन से ये बात कह रहा हैं....
में--भाभी जो इस हालत में सही है...,में वही बात कर रहा हूँ...,
भाभी--तो फिर मेरा एक फ़ैसला तू भी सुन ले ...,,ये मेरा घर है....ये मेरे प्यार का घर है...क्या हुआ जो आज वो मेरे साथ नही है...लेकिन में ये घर कही भी छोड़ कर नही जाउन्गि......आइ थिंक तुझे तेरा जवाब मिल गया होगा .......इसलिए मुझे अब अकेला छोड़ दे और बोल दे सभी से मेरे बारे में चिंता करने की ज़रूरत नही है....
में--पर भाभी....
भाभी--मैने कहा ना अब किसी पर की गुंजाइश नही है....बस मुझे अकेला छोड़ दो तुम सब .....में अपने घर में ही रहना चाहती हो यहाँ से अगर में जाउन्गि तो एक लाश के रूप में ही जाउन्गि....
में--भाभी अगर आप यहाँ रहना चाहती हो तो में कौन होता हूँ आपको रोकने वाला.... लेकिन ऐसा ना हो कि एक दिन आप अपने फ़ैसले पर पछताओ....
भाभी--जिस दिन मुझे इस फ़ैसले पर पछ्ताना पड़ा ये मान लेना वो मेरे जीवन का आख़िरी दिन होगा.
में--लेकिन भाभी आप मेरी बात समझ ने की कोशिश करो....
भाभी--में तेरी बात अच्छे से समझ रही हूँ...लेकिन तेरी नियत को नही समझ पा रही...अगर तू चाहता है...तेरा मेरा रिश्ता ऐसे ही बना रहे तो यहाँ से चुप चाप उठकर बाहर चला जा......
में वहाँ से बिना कुछ कहे निकल गया...बाहर निकलते ही मुझे चाचा जी ने वो लिस्ट वाला काम पूरा करने के लिए कह दिया.
इस बीच चाचा जी श्मशान से अस्थिया भी लेकर आ गये थे...
.............................
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
शाम को 5 बजे तीसरे की बैठक थी...उस बैठक में शहर का ऐसा कोई बड़ा आदमी नही था जो ना आया हो...
लेकिन एक शक्श ऐसा भी था जिसके यहाँ आने के बारे मे में सोच भी नही सकता था....आज बैठक में मुझे सुहानी भी दिखाई दे गयी....
पता नही एक अदृश्य सा रिश्ता हमारे बीच में जुड़ चुका था....मुझे जब भी ज़रूरत होती....वो मेरे सामने किसी ना किसी रूप में आ ही जाती थी....
बैठक ख़तम होने के बाद वहाँ आए सभी लोगो ने मुझ से विदा ली ....और तभी सुहानी भी मेरी बगल में आकर खड़ी ही गयी....
जब सब लोग चले गये तब सुहानी ने भी जाने के लिए बोला....
में--नही सुहानी अगर तुम यहाँ नही आती तो मुझे इसका कोई अफ़सोस नही होता लेकिन ....यहाँ से अगर तुम इस तरह से चली जाओगी तो शायद में खुद को माफ़ भी नही कर सकूँगा....
और मेरा एक लालच भी है तुम्हे यहाँ रोकने का....में तुम से कुछ बाते करना चाहता हूँ...शायद उन सवालो का जवाब तुम ही मुझे सही तरीके से दे सकती हो....
सुहानी ने जब मुझे इतना उलझा हुआ देखा अपने ही सवालो में तब वो चाहकर भी जा ना सकी...
मैने नीरा को बुलाया और सुहानी के रुकने का प्रबंध नीरा के रूम में ही करवा दिया...
उसके बाद चाचा मेरी तरफ़ कुछ बात करने के लिए बढ़ जाते है....
चाचा---बेटा अब हम लोग हरिद्वार के लिए निकलेंगे और 2 दिन बाद वापस आजाएँगे...
में--चाचा जी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो आप मुझे बोल सकते हो..
चाचा--अरे नही बेटा किसी चीज़ की ज़रूरत नही है मुझे...
लेकिन दीक्षा और कोमल आज पहली बार मेरे और रजनी के बिना रहेंगी...में चाहता हूँ तुम उन दोनो का ध्यान रखो...
में--चाचा जी आप कैसी बात कर रहे है....
दीक्षा और कोमल मेरे लिए रूही और नीरा की तरह ही है आप लोग बिना किसी चिंता के वहाँ जाकर आ जाओ...
चाचा--ठीक है बेटा...हम थोड़ी देर में ही निकल जाएँगे....
में--चाचा जी आप लोग मेरी कार में चले जाना ड्राइवर को साथ में लेकर....
चाचा--ठीक है बेटा तू जैसा चाहेगा वेसा ही होगा...
और थोड़ी देर बाद चाचा जी...चाची जी. और रूही तीनो हरिद्वार के लिए रवाना हो जाते है..
वो सब लोग हरिद्वार के लिए निकल गये थे,.
मेने नीरा को आवाज़ दी और उसे कॉफी बनाने के लिए बोल दिया....मेरे पास सुहानी भी आकर बैठ चुकी थी...
में--सुहानी तुम्हे यहाँ देख कर काफ़ी सुकून मिला है मुझे....मेरी हर परेशानी तुम चुटकियो में हल कर देती हो...अभी भी में एक परेशानी में उलझा हुआ हूँ....
सुहानी--ऐसी क्या परेशानी है...जो आप इतना उलझ गये हो...
में--सुहानी मेरी मम्मी चाहती है कि में मेरी भाभी से शादी कर लूँ....और मुझे ये समझ नही आ रहा है कि भाभी को जब ये बात पता चलेगी तब उनका रियेक्शन क्या होगा....
सुहानी--आपकी मम्मी ने आपसे ये शादी वाली बात कब करी थी...
में--आज ही...
सुहानी--मुझे लगता है आप पूरे के पूरे बेवकूफ़ है....
में--हाँ वो तो में हूँ नही तो तुम मेरी मदद कैसे कर पाती...
सुहानी--देखो आप के पापा और भाई की डॅत को ज़्यादा दिन नही हुए है....इस लिए भाभी से इस बारे में कोई भी बात करना पूरी तरह से ग़लत है....और मुझे समझ नही आ रहा ऐसे मोके पर आपकी मम्मी के दिमाग़ में ये शादी वाली बात आ कहाँ से गयी.... आप अब मेरी बात सुनो .....कौन आप से क्या करने को कहता है आप उस पर ध्यान मत दो...आप बस अपने दिल और दिमाग़ की आवाज़ से ही अपना काम करते जाओ...
में--तुम्हारी बात ठीक है लेकिन...में भाभी और मम्मी को इस तरह परेशान नही देख सकता....
सुहानी--आप इसमें कुछ नही कर सकते...आप उन्हे वो नही लौटा सकते जो उनसे छीन लिया गया है.....इसलिए जो हो रहा है वो होने दो सब कुछ समय के उपर छोड़ दो...क्योकि आज नही तो कल तुम्हे अपनी बात कहने का सही मोका ज़रूर मिलेगा....
उसके बाद नीरा कॉफी ले आती है ...और वो भी हमारे साथ बैठ कर कॉफी पीने लग जाती है...
लेकिन एक शक्श ऐसा भी था जिसके यहाँ आने के बारे मे में सोच भी नही सकता था....आज बैठक में मुझे सुहानी भी दिखाई दे गयी....
पता नही एक अदृश्य सा रिश्ता हमारे बीच में जुड़ चुका था....मुझे जब भी ज़रूरत होती....वो मेरे सामने किसी ना किसी रूप में आ ही जाती थी....
बैठक ख़तम होने के बाद वहाँ आए सभी लोगो ने मुझ से विदा ली ....और तभी सुहानी भी मेरी बगल में आकर खड़ी ही गयी....
जब सब लोग चले गये तब सुहानी ने भी जाने के लिए बोला....
में--नही सुहानी अगर तुम यहाँ नही आती तो मुझे इसका कोई अफ़सोस नही होता लेकिन ....यहाँ से अगर तुम इस तरह से चली जाओगी तो शायद में खुद को माफ़ भी नही कर सकूँगा....
और मेरा एक लालच भी है तुम्हे यहाँ रोकने का....में तुम से कुछ बाते करना चाहता हूँ...शायद उन सवालो का जवाब तुम ही मुझे सही तरीके से दे सकती हो....
सुहानी ने जब मुझे इतना उलझा हुआ देखा अपने ही सवालो में तब वो चाहकर भी जा ना सकी...
मैने नीरा को बुलाया और सुहानी के रुकने का प्रबंध नीरा के रूम में ही करवा दिया...
उसके बाद चाचा मेरी तरफ़ कुछ बात करने के लिए बढ़ जाते है....
चाचा---बेटा अब हम लोग हरिद्वार के लिए निकलेंगे और 2 दिन बाद वापस आजाएँगे...
में--चाचा जी किसी चीज़ की ज़रूरत हो तो आप मुझे बोल सकते हो..
चाचा--अरे नही बेटा किसी चीज़ की ज़रूरत नही है मुझे...
लेकिन दीक्षा और कोमल आज पहली बार मेरे और रजनी के बिना रहेंगी...में चाहता हूँ तुम उन दोनो का ध्यान रखो...
में--चाचा जी आप कैसी बात कर रहे है....
दीक्षा और कोमल मेरे लिए रूही और नीरा की तरह ही है आप लोग बिना किसी चिंता के वहाँ जाकर आ जाओ...
चाचा--ठीक है बेटा...हम थोड़ी देर में ही निकल जाएँगे....
में--चाचा जी आप लोग मेरी कार में चले जाना ड्राइवर को साथ में लेकर....
चाचा--ठीक है बेटा तू जैसा चाहेगा वेसा ही होगा...
और थोड़ी देर बाद चाचा जी...चाची जी. और रूही तीनो हरिद्वार के लिए रवाना हो जाते है..
वो सब लोग हरिद्वार के लिए निकल गये थे,.
मेने नीरा को आवाज़ दी और उसे कॉफी बनाने के लिए बोल दिया....मेरे पास सुहानी भी आकर बैठ चुकी थी...
में--सुहानी तुम्हे यहाँ देख कर काफ़ी सुकून मिला है मुझे....मेरी हर परेशानी तुम चुटकियो में हल कर देती हो...अभी भी में एक परेशानी में उलझा हुआ हूँ....
सुहानी--ऐसी क्या परेशानी है...जो आप इतना उलझ गये हो...
में--सुहानी मेरी मम्मी चाहती है कि में मेरी भाभी से शादी कर लूँ....और मुझे ये समझ नही आ रहा है कि भाभी को जब ये बात पता चलेगी तब उनका रियेक्शन क्या होगा....
सुहानी--आपकी मम्मी ने आपसे ये शादी वाली बात कब करी थी...
में--आज ही...
सुहानी--मुझे लगता है आप पूरे के पूरे बेवकूफ़ है....
में--हाँ वो तो में हूँ नही तो तुम मेरी मदद कैसे कर पाती...
सुहानी--देखो आप के पापा और भाई की डॅत को ज़्यादा दिन नही हुए है....इस लिए भाभी से इस बारे में कोई भी बात करना पूरी तरह से ग़लत है....और मुझे समझ नही आ रहा ऐसे मोके पर आपकी मम्मी के दिमाग़ में ये शादी वाली बात आ कहाँ से गयी.... आप अब मेरी बात सुनो .....कौन आप से क्या करने को कहता है आप उस पर ध्यान मत दो...आप बस अपने दिल और दिमाग़ की आवाज़ से ही अपना काम करते जाओ...
में--तुम्हारी बात ठीक है लेकिन...में भाभी और मम्मी को इस तरह परेशान नही देख सकता....
सुहानी--आप इसमें कुछ नही कर सकते...आप उन्हे वो नही लौटा सकते जो उनसे छीन लिया गया है.....इसलिए जो हो रहा है वो होने दो सब कुछ समय के उपर छोड़ दो...क्योकि आज नही तो कल तुम्हे अपनी बात कहने का सही मोका ज़रूर मिलेगा....
उसके बाद नीरा कॉफी ले आती है ...और वो भी हमारे साथ बैठ कर कॉफी पीने लग जाती है...
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Re: Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक
नीरा--भैया क्या बाते हो रही है आप दोनो में मुझे भी तो कुछ बताओ....
में--कोई बात नही हो रही नीरा बस थोड़ा मम्मी की एक बात पर परेशान हो गया था...
नीरा--कौनसी बात भैया ऐसा क्या कह दिया आपसे मम्मी ने जो आप इतना परेशान हो गये...
में--मम्मी का कहना है कि मुझे भाभी से शादी कर लेनी चाहिए...
ये बात सुनते ही नीरा के होश उड़ जाते है लेकिन वो खुद को काबू में रख कर कहती है...
नीरा--भैया इसमें इतने चिंता करने वाली बात कौनसी है....पहली बात तो ये कि आप दोनो की शादी कोई बच्चो का खेल तो है नही...जो मम्मी ने बोल दिया और शादी हो गयी...
ये बात आपको और भाभी को तैय करनी है...और इसके लिए अभी काफ़ी समय का इंतजार करना होगा....क्योकि भाभी का फ़ैसला सिर्फ़ समय ही कर सकता है....
सुहानी नीरा की इस बात पर मुस्कुराए बिना नही रह सकी..,
सुहानी--सर आगे से आप नीरा जी को ही अपनी उलझने बता देना...क्योकि ये आप के दिल के हालात बहुत अच्छे से समझती है...
तभी नीरा उठ कर किचन की तरफ़ चली जाती है...और रोते हुए खुद से ही बात करने लगती है...उसे अपने दिल में सब कुछ टूटता हुआ महसूस हो रहा था...लेकिन वो किसी से कुछ कह भी नही सकती थी...प्यार जो करती थी जय से......!!!
रात हो चुकी थी और सुहानी ने मुझ से जाने की पर्मिशन माँगी और फिर में जाकर उसे एरपोर्ट तक छोड़ आया...जब में घर वापस आ रहा था तब रास्ते में से मैने एक शराब की बोतल भी ले ली थी...
जब घर पहुचा तो देखा नीरा कोमल और दीक्षा एक ही रूम में है ....और शायद भाभी और मम्मी सो चुके थे खाना खा कर...
में अपने रूम में चला गया और किचन में से कुछ स्नॅक्स ले कर मेरे रूम में आ गया उसके बाद मैने वो बोतल ओपन करी और धीरे धीरे सीप करता हुआ ड्रिंक करने लगा...
तभी मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई....
मैने जैसे ही जाकर दरवाजा खोला तो सामने भाभी खड़ी थी उनका चेहरा बिल्कुल बुझा हुआ...आँखे रो रो कर सूज चुकी थी...
में--भाभी क्या हुआ....कुछ चाहिए क्या मुझ से...,
भाभी--जय क्या में थोड़ी देर तुम्हारे साथ बैठ सकती हूँ अगर तुम बुरा ना मानो तो...
में --हाँ भाभी क्यो नही....मुझे भी नींद नही आ रही थी...
उसके बाद में दरवाजे से हट गया और भाभी सीधा मेरे रूम के बेड पर जाकर बैठ गयी मैने दरवाजा बंद किया लेकिन लॉक नही किया और वापस बेड के पास एक चेयर पर बैठ गया...
भाभी--जय तुमने शराब पी है???
में--हाँ भाभी जब से ये सब कुछ हुआ है तब से मुझे से रहा ही नही जाता...
भाभी--क्या मुझे भी थोड़ी सी दे सकते हो...
में--लेकिन भाभी....आप कैसे पियोगी इसे....आपने तो कभी पी भी नही होगी...
भाभी--आज मेरा मन बहुत घबरा रहा है....कुछ भी अच्छा नही लग रहा प्ल्ज़ मुझे एक ड्रिंक दे दो...
भाभी को इस तरह परेशान होता देख मेने अपने बेड के नीचे से वो सारा समान निकाल लिया जो भाभी के अंदर आने से पहले में बेड के नीचे सरका चुका था...
में किचन से जाकर भाभी के लिए एक ग्लास और ले आया और उनको उस ग्लास में ड्रिंक बना कर दे दिया...
भाभी--तुम सुबह मुझ से नाराज़ तो नही होगये थे ना...
में--नही भाभी में आपसे भला क्यो नाराज़ होने लगा...
भाभी--मुझे लगा शायद तुम मेरी उस नियत खराब वाली बात पर नाराज़ हो गये होगे...
में--नही भाभी ऐसी कोई बात नही है आप परेशान मत होइए....जब मैने ऐसा कुछ कहना चाहा ही नही था तो फिर में आपके गुस्से से नाराज़ क्यो हो जाउन्गा...
भाभी--जय मुझ से कभी भी नाराज़ मत होना...मेरा इस दुनिया में तुम सब के अलावा कोई नही है...मुझे माफ़ कर देना अगर में गुस्से में आकर कुछ बोल दूं तो...
में--अरे नही भाभी आप कैसी बाते कर रही है....में कभी नाराज़ नही हो सकता आपसे ....
उसके बाद हम दोनो ने एक एक ड्रिंक और लिया फिर भाभी जाने के लिए खड़ी हो गयी...
में--कोई बात नही हो रही नीरा बस थोड़ा मम्मी की एक बात पर परेशान हो गया था...
नीरा--कौनसी बात भैया ऐसा क्या कह दिया आपसे मम्मी ने जो आप इतना परेशान हो गये...
में--मम्मी का कहना है कि मुझे भाभी से शादी कर लेनी चाहिए...
ये बात सुनते ही नीरा के होश उड़ जाते है लेकिन वो खुद को काबू में रख कर कहती है...
नीरा--भैया इसमें इतने चिंता करने वाली बात कौनसी है....पहली बात तो ये कि आप दोनो की शादी कोई बच्चो का खेल तो है नही...जो मम्मी ने बोल दिया और शादी हो गयी...
ये बात आपको और भाभी को तैय करनी है...और इसके लिए अभी काफ़ी समय का इंतजार करना होगा....क्योकि भाभी का फ़ैसला सिर्फ़ समय ही कर सकता है....
सुहानी नीरा की इस बात पर मुस्कुराए बिना नही रह सकी..,
सुहानी--सर आगे से आप नीरा जी को ही अपनी उलझने बता देना...क्योकि ये आप के दिल के हालात बहुत अच्छे से समझती है...
तभी नीरा उठ कर किचन की तरफ़ चली जाती है...और रोते हुए खुद से ही बात करने लगती है...उसे अपने दिल में सब कुछ टूटता हुआ महसूस हो रहा था...लेकिन वो किसी से कुछ कह भी नही सकती थी...प्यार जो करती थी जय से......!!!
रात हो चुकी थी और सुहानी ने मुझ से जाने की पर्मिशन माँगी और फिर में जाकर उसे एरपोर्ट तक छोड़ आया...जब में घर वापस आ रहा था तब रास्ते में से मैने एक शराब की बोतल भी ले ली थी...
जब घर पहुचा तो देखा नीरा कोमल और दीक्षा एक ही रूम में है ....और शायद भाभी और मम्मी सो चुके थे खाना खा कर...
में अपने रूम में चला गया और किचन में से कुछ स्नॅक्स ले कर मेरे रूम में आ गया उसके बाद मैने वो बोतल ओपन करी और धीरे धीरे सीप करता हुआ ड्रिंक करने लगा...
तभी मेरे दरवाजे पर दस्तक हुई....
मैने जैसे ही जाकर दरवाजा खोला तो सामने भाभी खड़ी थी उनका चेहरा बिल्कुल बुझा हुआ...आँखे रो रो कर सूज चुकी थी...
में--भाभी क्या हुआ....कुछ चाहिए क्या मुझ से...,
भाभी--जय क्या में थोड़ी देर तुम्हारे साथ बैठ सकती हूँ अगर तुम बुरा ना मानो तो...
में --हाँ भाभी क्यो नही....मुझे भी नींद नही आ रही थी...
उसके बाद में दरवाजे से हट गया और भाभी सीधा मेरे रूम के बेड पर जाकर बैठ गयी मैने दरवाजा बंद किया लेकिन लॉक नही किया और वापस बेड के पास एक चेयर पर बैठ गया...
भाभी--जय तुमने शराब पी है???
में--हाँ भाभी जब से ये सब कुछ हुआ है तब से मुझे से रहा ही नही जाता...
भाभी--क्या मुझे भी थोड़ी सी दे सकते हो...
में--लेकिन भाभी....आप कैसे पियोगी इसे....आपने तो कभी पी भी नही होगी...
भाभी--आज मेरा मन बहुत घबरा रहा है....कुछ भी अच्छा नही लग रहा प्ल्ज़ मुझे एक ड्रिंक दे दो...
भाभी को इस तरह परेशान होता देख मेने अपने बेड के नीचे से वो सारा समान निकाल लिया जो भाभी के अंदर आने से पहले में बेड के नीचे सरका चुका था...
में किचन से जाकर भाभी के लिए एक ग्लास और ले आया और उनको उस ग्लास में ड्रिंक बना कर दे दिया...
भाभी--तुम सुबह मुझ से नाराज़ तो नही होगये थे ना...
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उसके बाद हम दोनो ने एक एक ड्रिंक और लिया फिर भाभी जाने के लिए खड़ी हो गयी...
मस्त राम मस्ती में
आग लगे चाहे बस्ती मे.
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भाई बहन,ननद भाभी और नौकर .......... सेक्स स्लेव भाभी और हरामी देवर .......... वासना के सौदागर .......... Incest सुलगते जिस्म और रिश्तों पर कलंक Running.......... घर की मुर्गियाँ Running......नेहा बह के कारनामे (Running) ....मस्तराम की कहानियाँ(Running) ....अनोखा इंतकाम रुबीना का ..........परिवार बिना कुछ नहीं..........माँ को पाने की हसरत ......सियासत और साजिश .....बिन पढ़ाई करनी पड़ी चुदाई.....एक और घरेलू चुदाई......दिल दोस्ती और दारू...
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