ज़ाहिद और सुरेश धर्मशाला में स्थित सरकारी गेस्ट हाउस में रुके थे।
अभी वे लोग खाना खाने बैठे ही थे कि सुरेश को एक फोन आया और फोन पर बात करने के बाद वह ज़ाहिद से मुखातिब हुआ।
“क्या हुआ ?” ज़ाहिद ने पूछा।
“एक ब्रेकथ्रू मिला है।”
“क्या ?” ज़ाहिद ने उत्साहित होते हुए पूछा।
“कंचन याद है न ?”
“वह पायलट विक्रम की गर्लफ्रेंड ?”
“हां! वही! उसे किसी ने विदेश से कॉन्टेक्ट किया है।”
“किसने ?”
“लगता तो उसका बॉयफ्रेंड विक्रम ही है। कंचन का फोन विजिल पर रखने का फायदा हुआ। आज ही उसे मोंटेनीग्रो से एक फोन आया।”
“ओह! तो विक्रम मोंटेनीग्रो में छिपा बैठा है ?”
“लगता तो ऐसा ही है।” सुरेश बोला, “पर अब यह पता चल गया है कि वह जिंदा है तो अब बस उसे पकड़ने की देर है।”
“पर दूसरे देश से किसी भगोड़े को वापस बुलाने के लिये तो लंबी प्रक्रिया हो जाती है।”
“वो बात भी ठीक है।” सुरेश बोला, “अगर ऑफिशियल रास्ते से जायेंगे तो बहुत समय लगेगा। उनका प्लान अब यह है कि उसने फोन करके कंचन को मोंटेनीग्रो आने को कहा है। वह वहाँ पर टूरिस्ट विजा पर जाएगी और यह महाशय वहाँ उससे शादी करके उसे वहाँ का सिटीजन बना लेंगे। ऐसा पूरा प्लान बनाया हुआ है। यह कंचन भी बेहद चालाक निकली। मेरे ख्याल से वह तब से उसके टच में होगा और अब कुछ सालों के अंतराल के बाद उसे लग रहा होगा कि अब मामला ठंडा हो गया–अब पर्सनल लाइफ पर ध्यान दिया जाये।”
“यानि यह तो साफ है कि विमान गायब होने में पायलट की मिलीभगत थी।” ज़ाहिद अपनी ठोड़ी सहलाते हुए बोला।
“अगर ये विक्रम ही है तो हाँ। लेकिन अजय का क्या रोल था, यह जानना अभी भी बाकी है।”
“वह भी मिला ही होगा। उसमें क्या शक है ?” ज़ाहिद पूरे आत्मविश्वास के साथ बोला।
“नहीं! जरूरी नहीं! प्लेन हाईजैक करने के लिये एक पायलट का मिला होना भी काफी है। विक्रम को मिला लिया होगा बाद में भले ही अजय को बेहोश या मार के एक तरफ डाल दिया हो और विक्रम से प्लेन गायब करवा लिया होगा।”
“जो भी हो लेकिन तुम समझ रहे हो न...” ज़ाहिद की आँखों में अनोखी चमक थी। “इसका मतलब प्लेन कहीं न कहीं सकुशल लैंड हुआ है। तभी उसमे बैठा पायलट विक्रम अभी तक जिंदा है। इसका मतलब... इसका मतलब...”
“मेरे भाई! मुझे पूरा यकीन है।” सुरेश मुस्कराकर बोला।
ज़ाहिद के चेहरे पर आई प्रसन्नचित मुस्कान हर रोज़ नहीं दिखाई देती थी। वह बोला–
“अब हमें आगे क्या करना है ? मेरे ख्याल से विक्रम को जल्द से जल्द पकड़ना होगा। उससे काफी कुछ पता चल सकता है।”
“तुम ठीक कह रहे हो। पर यह काम बहुत ध्यान से करना होगा। ऑफिशियल तरीके से बहुत लंबा समय लगेगा क्योंकि अब तक तो वह वहाँ का सिटीजन बन गया होगा। हाईजैकिंग के लिये उसे जरूर बड़ी रकम मिली होगी जिसके सहारे उसने एक नये देश में नये नाम से एक नयी जिंदगी शुरू की होगी। मेरे ख्याल से इसके लिये हम में से किसी को मोंटेनीग्रो जाना चाहिये।”
“तो फिर मैं जाता हूँ।” ज़ाहिद तत्परता के साथ बोला, “मुझे लगता है यह काम मैं बखूबी कर पाऊंगा।”
“देखो भाई– मोंटेनीग्रो एक क्रिश्चन कंट्री है और मैं भी क्रिश्चन हूँ। मुझे वहाँ ज्यादा दिक्कत नहीं आने वाली। मैं अपने असली पासपोर्ट पर भी आराम से जा सकता हूँ। पर तुम्हारे लिये इस मिशन में काफी रिस्ट्रिक्शन हो सकती हैं। मैंने कुछ गलत कहा हो तो माफ करना।”
“नहीं यार, तुम प्रैक्टिकल बात कर रहे हो उसमें कुछ गलत नहीं है, लेकिन मैं जाना चाहता हूँ।”
“भारत में भी मोर्चा संभालना जरूरी है और फिलहाल सुज़ुकी पर भी नज़र रखने के लिये कोई चाहिए। अब ये काम हम दोनों में से किसी एक को करना ही है तो अच्छा होगा मैं आसानी से मोंटेनीग्रो जाकर काम कर सकता हूँ तो मैं चला जाता हूँ यहाँ का काम तुम संभाल लो।”
कुछ देर इसी तरह विचार-विमर्श करके यही सहमति बनी कि सुरेश मोंटेनीग्रो जाएगा और ज़ाहिद फिलहाल भारत में ही रुकेगा। चीफ़ अभय से भी बात हो गई और वह इसके लिये सहमत था।
☐☐☐
Thriller मिशन
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“तुम यहाँ क्या कर रहे हो ?”
राज उसकी दिलकश आवाज तुरंत पहचान गया। उसने धीरे-धीरे आंखें खोलीं तो उसे अपने सामने पाया।
“रिंकी!”
“हाँ! मैं ही हूँ। इतनी जल्दी कैसे भूल पाओगे।”
“तुम यहाँ क्या कर रही हो ?” राज ने चारों तरफ देखा। वह एक हॉस्पिटल में था। बगल में नर्स और एक डॉक्टर भी थे। दूसरी तरफ भगवे कपड़ों में एक सीनो गुरु खड़ा था।
“यह सवाल मैंने तुमसे किया है। पहले तुम जवाब दो तुम यहाँ क्या करने आये हो ?”
“कुछ सवालों के जवाब ढूंढता हुआ यहाँ पहुँचा था।”
“अभी तो तुम्हें कई और सवालों के जवाब खोजने हैं, राज। अभी तुम्हें बहुत से इम्पोर्टेंट काम करने हैं। किसी पर भी आसानी से विश्वास मत करना। ये साजिश बहुत बड़ी है, इसमें ऐसे लोग भी शामिल हो सकते हैं जिनकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते।”
राज ने स्वीकृति में सिर हिलाया। वह उसे निहारने लगा। उसने रिंकी के चेहरे की तरफ हाथ बढ़ाया। उसके गाल को छुआ। रिंकी ने उसका हाथ चूम लिया।
“तुम कैसी हो ? मैं तुम्हें बहुत मिस करता हूँ। तुम्हारे बिना जीना बहुत मुश्किल है।”
रिंकी मुस्कुराई। मुस्कुराते हुए वह एकदम छोटी बच्ची लगने लगी। राज उसे देख कर भाव-विभोर हो गया।
“तुम भी मुझे बहुत याद आते हो पर मैं कोशिश करती हूँ तुम्हें कम याद करूँ। याद करती रहूंगी तो फिर तुम्हारा जीना मुश्किल हो जायेगा इसलिये अब अकेले रहने की आदत डाल ली है। देखो राज–एक दिन तो हम दोनों का मिलना तय है पर अभी नहीं। तुम्हें अभी देश के लिये बहुत कुछ करना है।”
“लेकिन तुम्हारे बिछड़ने का गम वक्त के साथ कम ही नहीं होता बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। कितना भी मन को मनाता हूँ मानता ही नहीं।”
“मुझे दिल से प्यार जो करते हो तुम। हम हर जन्म के साथी हैं इसलिये मेरे बिछड़ने का गम मत करो। हमें आगे कई-कई जन्मों में साथ रहना है। एक दूसरे के प्रति जो प्रेम है उसकी वजह से हमें अपना कर्म खराब नहीं करना है। तुम्हारा जो कर्म है उसे पूरा करो।”
“बहुत प्रवचन देने लगी हो।”
“हां! आजकल यहाँ सत्संग में ड्यूटी लगी हुई है।”
राज हंस दिया।
“अब तुम अपनी ड्यूटी पर जाओ। बहुत मजाक हो गया।”
अचानक राज जोर-जोर से हांफने लगा।
“क्या हो रहा है... यह क्या हो रहा है रिंकी ?”
“कुछ नहीं! सब ठीक हो जाएगा।”
उसे रिंकी धीरे-धीरे किसी प्रतिबिम्ब में बदलकर हवा में तेजी-से उड़ रहे चक्रवात में सम्मलित होती हुई नज़र आई।
और फिर अचानक राज उठ कर बैठ गया।
वह बुरी तरह से हांफ रहा था। उसने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया।
“तुम ठीक तो हो ?”
वह आरती थी। वहाँ एक डॉक्टर और नर्स भी मौजूद थे। वह लोग एक हॉस्पिटल के कमरे में थे।
“क्या हुआ था ? मैं कहां पर हूँ ?” राज बेचैन स्वर में बोला।
“तुम अब एकदम ठीक हो और अभी हॉस्पिटल में हो। गोली पीठ पर लगी थी।”
डॉक्टर बोला, “जख्म गहरा है पर आपके वाइटल ऑर्गन्स बच गये। गोली थोड़ा भी इधर-उधर होती तो भारी गड़बड़ हो सकती थी। हम ने पुलिस को इत्तला कर दी है। अभी आप आराम करो। वे लोग बाद में आप का बयान ले लेंगे।”
“मैं पुलिस को बयान दे सकता हूँ। उनका पकड़ा जाना ज़रुरी है।” राज व्यग्र स्वर में बोला।
“तुम फिक्र मत करो। मैंने पुलिस को पहले ही सब कुछ बता दिया है।” आरती बोली।
“अब आप आराम कीजिए।” कहकर डॉक्टर चला गया।
राज ने पूछा, “तुमने पुलिस को मेरे बारे में क्या बताया ?”
“मैंने यहीं कहा कि तुम हमारे आश्रम में रहते हो–ओसाका गुरु के एक शिष्य।”
“अच्छा! क्या कोई पकड़ा गया ?” राज ने पूछा।
“नहीं! उस वक्त वे लोग मेरे पीछे आ रहे थे। तुम्हारे जख्मी होने के बाद मैंने तुम्हें वहीं पर छोड़ा और दौड़ कर शहर की तरफ पहुंची। कुछ ही दूरी पर मुझे गश्ती पुलिस मिल गई जिनकी सहायता से मैंने तुम्हें हॉस्पिटल पहुंचाया।”
“थैंक यू!”
“तुम थैंक्स मत बोलो। तुमने मेरी जान बचाई और फिर मेरी वजह से ही तुम इस मुसीबत में पड़ गये।”
“पर आखिर वजह क्या है जो ये तुम्हारे पीछे पड़े हैं, क्या ये आहूजा के दुश्मन...”
“अभी तुम आराम करो। ज्यादा मत बोलो।”
फिर नर्स ने राज को एक इंजेक्शन दिया।
“अब मैं चलती हूँ।” आरती ने हल्के से राज का हाथ दबाया और वहाँ से रुख्सत हुई।
राज की आँखों के सामने आरती का आईसीयू से बाहर निकलता हुआ अक्स धुंधलाता चला गया।
☐☐☐
राज उसकी दिलकश आवाज तुरंत पहचान गया। उसने धीरे-धीरे आंखें खोलीं तो उसे अपने सामने पाया।
“रिंकी!”
“हाँ! मैं ही हूँ। इतनी जल्दी कैसे भूल पाओगे।”
“तुम यहाँ क्या कर रही हो ?” राज ने चारों तरफ देखा। वह एक हॉस्पिटल में था। बगल में नर्स और एक डॉक्टर भी थे। दूसरी तरफ भगवे कपड़ों में एक सीनो गुरु खड़ा था।
“यह सवाल मैंने तुमसे किया है। पहले तुम जवाब दो तुम यहाँ क्या करने आये हो ?”
“कुछ सवालों के जवाब ढूंढता हुआ यहाँ पहुँचा था।”
“अभी तो तुम्हें कई और सवालों के जवाब खोजने हैं, राज। अभी तुम्हें बहुत से इम्पोर्टेंट काम करने हैं। किसी पर भी आसानी से विश्वास मत करना। ये साजिश बहुत बड़ी है, इसमें ऐसे लोग भी शामिल हो सकते हैं जिनकी तुम कल्पना भी नहीं कर सकते।”
राज ने स्वीकृति में सिर हिलाया। वह उसे निहारने लगा। उसने रिंकी के चेहरे की तरफ हाथ बढ़ाया। उसके गाल को छुआ। रिंकी ने उसका हाथ चूम लिया।
“तुम कैसी हो ? मैं तुम्हें बहुत मिस करता हूँ। तुम्हारे बिना जीना बहुत मुश्किल है।”
रिंकी मुस्कुराई। मुस्कुराते हुए वह एकदम छोटी बच्ची लगने लगी। राज उसे देख कर भाव-विभोर हो गया।
“तुम भी मुझे बहुत याद आते हो पर मैं कोशिश करती हूँ तुम्हें कम याद करूँ। याद करती रहूंगी तो फिर तुम्हारा जीना मुश्किल हो जायेगा इसलिये अब अकेले रहने की आदत डाल ली है। देखो राज–एक दिन तो हम दोनों का मिलना तय है पर अभी नहीं। तुम्हें अभी देश के लिये बहुत कुछ करना है।”
“लेकिन तुम्हारे बिछड़ने का गम वक्त के साथ कम ही नहीं होता बल्कि बढ़ता ही जा रहा है। कितना भी मन को मनाता हूँ मानता ही नहीं।”
“मुझे दिल से प्यार जो करते हो तुम। हम हर जन्म के साथी हैं इसलिये मेरे बिछड़ने का गम मत करो। हमें आगे कई-कई जन्मों में साथ रहना है। एक दूसरे के प्रति जो प्रेम है उसकी वजह से हमें अपना कर्म खराब नहीं करना है। तुम्हारा जो कर्म है उसे पूरा करो।”
“बहुत प्रवचन देने लगी हो।”
“हां! आजकल यहाँ सत्संग में ड्यूटी लगी हुई है।”
राज हंस दिया।
“अब तुम अपनी ड्यूटी पर जाओ। बहुत मजाक हो गया।”
अचानक राज जोर-जोर से हांफने लगा।
“क्या हो रहा है... यह क्या हो रहा है रिंकी ?”
“कुछ नहीं! सब ठीक हो जाएगा।”
उसे रिंकी धीरे-धीरे किसी प्रतिबिम्ब में बदलकर हवा में तेजी-से उड़ रहे चक्रवात में सम्मलित होती हुई नज़र आई।
और फिर अचानक राज उठ कर बैठ गया।
वह बुरी तरह से हांफ रहा था। उसने कंधे पर किसी का हाथ महसूस किया।
“तुम ठीक तो हो ?”
वह आरती थी। वहाँ एक डॉक्टर और नर्स भी मौजूद थे। वह लोग एक हॉस्पिटल के कमरे में थे।
“क्या हुआ था ? मैं कहां पर हूँ ?” राज बेचैन स्वर में बोला।
“तुम अब एकदम ठीक हो और अभी हॉस्पिटल में हो। गोली पीठ पर लगी थी।”
डॉक्टर बोला, “जख्म गहरा है पर आपके वाइटल ऑर्गन्स बच गये। गोली थोड़ा भी इधर-उधर होती तो भारी गड़बड़ हो सकती थी। हम ने पुलिस को इत्तला कर दी है। अभी आप आराम करो। वे लोग बाद में आप का बयान ले लेंगे।”
“मैं पुलिस को बयान दे सकता हूँ। उनका पकड़ा जाना ज़रुरी है।” राज व्यग्र स्वर में बोला।
“तुम फिक्र मत करो। मैंने पुलिस को पहले ही सब कुछ बता दिया है।” आरती बोली।
“अब आप आराम कीजिए।” कहकर डॉक्टर चला गया।
राज ने पूछा, “तुमने पुलिस को मेरे बारे में क्या बताया ?”
“मैंने यहीं कहा कि तुम हमारे आश्रम में रहते हो–ओसाका गुरु के एक शिष्य।”
“अच्छा! क्या कोई पकड़ा गया ?” राज ने पूछा।
“नहीं! उस वक्त वे लोग मेरे पीछे आ रहे थे। तुम्हारे जख्मी होने के बाद मैंने तुम्हें वहीं पर छोड़ा और दौड़ कर शहर की तरफ पहुंची। कुछ ही दूरी पर मुझे गश्ती पुलिस मिल गई जिनकी सहायता से मैंने तुम्हें हॉस्पिटल पहुंचाया।”
“थैंक यू!”
“तुम थैंक्स मत बोलो। तुमने मेरी जान बचाई और फिर मेरी वजह से ही तुम इस मुसीबत में पड़ गये।”
“पर आखिर वजह क्या है जो ये तुम्हारे पीछे पड़े हैं, क्या ये आहूजा के दुश्मन...”
“अभी तुम आराम करो। ज्यादा मत बोलो।”
फिर नर्स ने राज को एक इंजेक्शन दिया।
“अब मैं चलती हूँ।” आरती ने हल्के से राज का हाथ दबाया और वहाँ से रुख्सत हुई।
राज की आँखों के सामने आरती का आईसीयू से बाहर निकलता हुआ अक्स धुंधलाता चला गया।
☐☐☐
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Re: Thriller मिशन
दूसरे दिन सुरेश मोंटेनेग्रो का वीज़ा निकलवाने के लिये दिल्ली चला गया।
ज़ाहिद सुबह से ही सुज़ुकी के फोन नंबर की सारी हिस्ट्री खोलकर जांच पड़ताल में लगा हुआ था। आखिरकार दोपहर तक उसे कुछ आगे बढ़ने लायक जानकारी हासिल हुई।
वह एक बार फिर विशाल के साथ सुज़ुकी के आश्रम पहुँचा।
इस बार सुज़ुकी से मिलने के लिये ज्यादा कठिनाई नहीं हुई। उस के कमरे में पहुँचकर सब से पहले ज़ाहिद ने उसे दुबारा कष्ट देने के लिये माफी मांगी।
“इसमें कष्ट की कोई बात नहीं है।” सुज़ुकी ने कहा।
“मैं एक बार फिर आपसे उस वक़्त की बात करना चाहता हूँ जब वह विमान गायब हुआ जिसमें आप और आपके शिष्य बैठने वाले थे।”
सुज़ुकी ने मुस्कराते हुए सिर को हल्की सी जुम्बिश दी।
“उस वक़्त आपको कुछ फोन कॉल्स आए थे। आपके आश्रम के एक नंबर से कई बार और एक और दिल्ली से किसी मोबाइल फोन से।”
“हाँ काफी फोन आये थे उस वक़्त। हम दिल्ली से आये थे। वहाँ हमारे शिष्य हैं। फिर मुम्बई से भी जहां हम जा रहे थे।”
“दिल्ली में आपके किसी शिष्य का नाम निक था ?”
सुज़ुकी सोच में पड़ गया।
ज़ाहिद ने फोन निकाला और उसमें निक का फोटो निकालकर सुज़ुकी को दिखाया।
सुज़ुकी ने इनकार में सिर हिलाया।
“फ्लाइट 301 की बोर्डिंग से मात्र दस मिनट पहले आपको किसी का फोन आया था और आपकी बात सिर्फ दस सेकंड हुई थी।”
“शायद हुई थी पर मुझे याद नहीं कि क्या बात हुई थी।” सुज़ुकी ने विशाल की मदद से कहा।
“आपको याद करना होगा क्योंकि यह आदमी हमारे लिये वांटेड है इसलिये आप पता करके बताइए इसका आपके साथ क्या कनेक्शन रहा है।” ज़ाहिद जोर देते हुए बोला और फिर उसने अपना पैर दूसरे पैर पर इत्मीनान से चढ़ा लिया जैसे कि जवाब लेने के लिये उसके पास पूरा समय था।
“मुझे उसका नंबर और फोटो भेज दो। मैं पता करके बताता हूँ।” सुज़ुकी ने कुछ सोचने के बाद कहा।
“ठीक है! तो मैं इस मामले के बारे में पूछताछ करने के लिये कल दोबारा आता हूँ। अब इजाजत दीजिए। आप को कष्ट देने के लिये एक बार फिर से क्षमा।” ज़ाहिद खड़े होते हुए बोला। सुज़ुकी ने मुस्कुराते हुए अपने सिर को हल्की-सी जुंबिश दी।
☐☐☐
राज को होश आ चुका था अब वह पहले से बेहतर महसूस कर रहा था। उसने पुलिस को बयान दिया कि वह अपनी आश्रम की दोस्त आरती के साथ त्रिउंड घूमने गया था और वहाँ कुछ लड़कों ने उसके साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की। वे लोग वहाँ से सकुशल निकल गए पर वापसी के दौरान उन पर फायरिंग हुई। राज ने अपनी एक नकली आई डी की बदौलत खुद का नाम अमन शर्मा बताया जो कुछ समय से ओसाका के आश्रम में रह रहा था। पुलिस ने बयान लिया और कहा कि कुछ दिन में वे कुछ सस्पेक्ट ढूंढकर शिनाख्त के लिये उन्हें थाने बुलाएंगे। राज और आरती ने सहमति जताई।
हॉस्पिटल से डिस्चार्ज के बाद राज किसी होटल में रुकना चाहता था पर आरती के आग्रह पर वह ओसाका के आश्रम में आ गया।
ओसाका के आश्रम के पीछे बर्फीले पर्वतों का खूबसूरत नजारा था जिसका दीदार अंतर्मन में एक सुखद अहसास दिला रहा था।
आश्रम में प्रवेश करते हुए राज को बेहद अच्छा लगा। वहाँ का माहौल ही कुछ ऐसा था।
चारों तरफ लाल कपड़े धारण किये शिष्य घूम रहे थे जिनके सिर पर मात्र छोटी चुटिया भर के बाल थे। सभी उसका झुककर अभिवादन कर रहे थे। शायद नये मेहमान का सभी इसी तरह स्वागत करते थे।
वे लोग सीधे गुरु ओसाका के कमरे के बाहर रुके।
कुछ देर में द्वारपाल ने अंदर जाने की अनुमति दी।
अंदर उन्हें ओसाका के दर्शन हुए।
सत्तर वर्षीय, सपाट व कांतिमय चेहरा, छोटी आंखें, सिर पर एक भी बाल नहीं। माथा बेहद चौड़ा था, इतना कि चेहरे का आँखों से नीचे का हिस्सा माथे से छोटा लगता था।
राज को देखते ही वो उठा और फिर झुककर अभिवादन करने के बाद उसने राज को गले लगाया। फिर साफ हिंदी में बोला-
“आपका आश्रम में स्वागत है। आपने एक मोतिरी की रक्षा की–आप हमारे लिये ईश्वर के अवतार समान है।”
“आश्रम की शिष्या मोतिरी कहलाती हैं और शिष्य मोतिर।” आरती ने राज को बताया।
राज मुस्कराया। उसने हाथ जोड़े।
“मैंने ऐसा कोई महान काम नहीं किया है, गुरु जी। आप मुझे यहाँ रहने के लिये जगह दे रहे हैं, ये मेरे ऊपर अहसान है।”
उसने राज के हाथ थाम लिये।
“ऐसा मत कहिये। ईश्वर के अवतार का यहाँ रुकना हम सभी पर अहसान है। आप यहाँ जितना अधिक समय व्यतीत करेंगे उतना ही अधिक हम पुण्य कमाएंगे। इसे अपना ही घर समझिए...”
“ज़रूर।”
उसके बाद आरती राज को एक छोटे किन्तु आरामदायक कमरे में ले गई।
“तुम यहाँ आराम करो। मैं कुछ देर में वैध जी को भेजती हूँ। उनकी दवा और यहाँ की आबो हवा से देखना तुम बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे।”
राज मुस्कराया। “चलो तुम्हारी मदद करने का ये फायदा तो मिला।”
आरती भी मुस्करा दी। फिर वह चली गई।
राज ने अपना बैग एक कोने में रख दिया। कमरे में ज़मीन ओर दरी बिछी हुई थी और एक कोने में गद्दा लगा था। अलमारियों में अधिकतर धार्मिक किताबें थी। सामने एक और दरवाजा था, जिसे खोलकर राज निकला तो राहदारी आ गई जिसके आगे रेलिंग थी। रेलिंग के सामने पहाड़ी नज़ारा था। राज ने झांककर देखा रेलिंग के नीचे कुछ दूरी पर पहाड़ खत्म हो रहा था और उसके आगे गहरी खाई थी।
राज रेलिंग के सहारे खड़ा होकर काफी देर उन नज़ारों में सम्मोहन-सी अवस्था में खोया रहा।
☐☐☐
ज़ाहिद सुबह से ही सुज़ुकी के फोन नंबर की सारी हिस्ट्री खोलकर जांच पड़ताल में लगा हुआ था। आखिरकार दोपहर तक उसे कुछ आगे बढ़ने लायक जानकारी हासिल हुई।
वह एक बार फिर विशाल के साथ सुज़ुकी के आश्रम पहुँचा।
इस बार सुज़ुकी से मिलने के लिये ज्यादा कठिनाई नहीं हुई। उस के कमरे में पहुँचकर सब से पहले ज़ाहिद ने उसे दुबारा कष्ट देने के लिये माफी मांगी।
“इसमें कष्ट की कोई बात नहीं है।” सुज़ुकी ने कहा।
“मैं एक बार फिर आपसे उस वक़्त की बात करना चाहता हूँ जब वह विमान गायब हुआ जिसमें आप और आपके शिष्य बैठने वाले थे।”
सुज़ुकी ने मुस्कराते हुए सिर को हल्की सी जुम्बिश दी।
“उस वक़्त आपको कुछ फोन कॉल्स आए थे। आपके आश्रम के एक नंबर से कई बार और एक और दिल्ली से किसी मोबाइल फोन से।”
“हाँ काफी फोन आये थे उस वक़्त। हम दिल्ली से आये थे। वहाँ हमारे शिष्य हैं। फिर मुम्बई से भी जहां हम जा रहे थे।”
“दिल्ली में आपके किसी शिष्य का नाम निक था ?”
सुज़ुकी सोच में पड़ गया।
ज़ाहिद ने फोन निकाला और उसमें निक का फोटो निकालकर सुज़ुकी को दिखाया।
सुज़ुकी ने इनकार में सिर हिलाया।
“फ्लाइट 301 की बोर्डिंग से मात्र दस मिनट पहले आपको किसी का फोन आया था और आपकी बात सिर्फ दस सेकंड हुई थी।”
“शायद हुई थी पर मुझे याद नहीं कि क्या बात हुई थी।” सुज़ुकी ने विशाल की मदद से कहा।
“आपको याद करना होगा क्योंकि यह आदमी हमारे लिये वांटेड है इसलिये आप पता करके बताइए इसका आपके साथ क्या कनेक्शन रहा है।” ज़ाहिद जोर देते हुए बोला और फिर उसने अपना पैर दूसरे पैर पर इत्मीनान से चढ़ा लिया जैसे कि जवाब लेने के लिये उसके पास पूरा समय था।
“मुझे उसका नंबर और फोटो भेज दो। मैं पता करके बताता हूँ।” सुज़ुकी ने कुछ सोचने के बाद कहा।
“ठीक है! तो मैं इस मामले के बारे में पूछताछ करने के लिये कल दोबारा आता हूँ। अब इजाजत दीजिए। आप को कष्ट देने के लिये एक बार फिर से क्षमा।” ज़ाहिद खड़े होते हुए बोला। सुज़ुकी ने मुस्कुराते हुए अपने सिर को हल्की-सी जुंबिश दी।
☐☐☐
राज को होश आ चुका था अब वह पहले से बेहतर महसूस कर रहा था। उसने पुलिस को बयान दिया कि वह अपनी आश्रम की दोस्त आरती के साथ त्रिउंड घूमने गया था और वहाँ कुछ लड़कों ने उसके साथ छेड़छाड़ करने की कोशिश की। वे लोग वहाँ से सकुशल निकल गए पर वापसी के दौरान उन पर फायरिंग हुई। राज ने अपनी एक नकली आई डी की बदौलत खुद का नाम अमन शर्मा बताया जो कुछ समय से ओसाका के आश्रम में रह रहा था। पुलिस ने बयान लिया और कहा कि कुछ दिन में वे कुछ सस्पेक्ट ढूंढकर शिनाख्त के लिये उन्हें थाने बुलाएंगे। राज और आरती ने सहमति जताई।
हॉस्पिटल से डिस्चार्ज के बाद राज किसी होटल में रुकना चाहता था पर आरती के आग्रह पर वह ओसाका के आश्रम में आ गया।
ओसाका के आश्रम के पीछे बर्फीले पर्वतों का खूबसूरत नजारा था जिसका दीदार अंतर्मन में एक सुखद अहसास दिला रहा था।
आश्रम में प्रवेश करते हुए राज को बेहद अच्छा लगा। वहाँ का माहौल ही कुछ ऐसा था।
चारों तरफ लाल कपड़े धारण किये शिष्य घूम रहे थे जिनके सिर पर मात्र छोटी चुटिया भर के बाल थे। सभी उसका झुककर अभिवादन कर रहे थे। शायद नये मेहमान का सभी इसी तरह स्वागत करते थे।
वे लोग सीधे गुरु ओसाका के कमरे के बाहर रुके।
कुछ देर में द्वारपाल ने अंदर जाने की अनुमति दी।
अंदर उन्हें ओसाका के दर्शन हुए।
सत्तर वर्षीय, सपाट व कांतिमय चेहरा, छोटी आंखें, सिर पर एक भी बाल नहीं। माथा बेहद चौड़ा था, इतना कि चेहरे का आँखों से नीचे का हिस्सा माथे से छोटा लगता था।
राज को देखते ही वो उठा और फिर झुककर अभिवादन करने के बाद उसने राज को गले लगाया। फिर साफ हिंदी में बोला-
“आपका आश्रम में स्वागत है। आपने एक मोतिरी की रक्षा की–आप हमारे लिये ईश्वर के अवतार समान है।”
“आश्रम की शिष्या मोतिरी कहलाती हैं और शिष्य मोतिर।” आरती ने राज को बताया।
राज मुस्कराया। उसने हाथ जोड़े।
“मैंने ऐसा कोई महान काम नहीं किया है, गुरु जी। आप मुझे यहाँ रहने के लिये जगह दे रहे हैं, ये मेरे ऊपर अहसान है।”
उसने राज के हाथ थाम लिये।
“ऐसा मत कहिये। ईश्वर के अवतार का यहाँ रुकना हम सभी पर अहसान है। आप यहाँ जितना अधिक समय व्यतीत करेंगे उतना ही अधिक हम पुण्य कमाएंगे। इसे अपना ही घर समझिए...”
“ज़रूर।”
उसके बाद आरती राज को एक छोटे किन्तु आरामदायक कमरे में ले गई।
“तुम यहाँ आराम करो। मैं कुछ देर में वैध जी को भेजती हूँ। उनकी दवा और यहाँ की आबो हवा से देखना तुम बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे।”
राज मुस्कराया। “चलो तुम्हारी मदद करने का ये फायदा तो मिला।”
आरती भी मुस्करा दी। फिर वह चली गई।
राज ने अपना बैग एक कोने में रख दिया। कमरे में ज़मीन ओर दरी बिछी हुई थी और एक कोने में गद्दा लगा था। अलमारियों में अधिकतर धार्मिक किताबें थी। सामने एक और दरवाजा था, जिसे खोलकर राज निकला तो राहदारी आ गई जिसके आगे रेलिंग थी। रेलिंग के सामने पहाड़ी नज़ारा था। राज ने झांककर देखा रेलिंग के नीचे कुछ दूरी पर पहाड़ खत्म हो रहा था और उसके आगे गहरी खाई थी।
राज रेलिंग के सहारे खड़ा होकर काफी देर उन नज़ारों में सम्मोहन-सी अवस्था में खोया रहा।
☐☐☐
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Re: Thriller मिशन
वर्तमान समय
अलीगढ़
अभय कुमार इस वक़्त सीक्रेट सर्विस के अलीगढ़ ऑफिस में मौजूद अपने केबिन में बैठा लैपटॉप पर किसी रिपोर्ट को पढ़ने में मशरूफ था।
तभी सीबीआई दिल्ली से राज निकेतन का फोन आया।
“हेलो राज!” उसने जवाब दिया।
“अभय, हाउ आर यू डूइंग ?”
“गुड! हाउ आर यू ?”
“नॉट टू बैड!”
“और बताओ कैसे याद किया ?”
“भाई, कमिंग स्ट्रेट टू द प्वाइंट - अच्छी न्यूज़ नहीं है।”
अभय शांति से सुन रहा था। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे पहले से ही किसी बुरी खबर के मिलने का अंदेशा था।
“लियोन ने अगले हफ्ते मंडे मॉर्निंग तक रमन आहूजा के खिलाफ पुख्ता सबूतों के साथ इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट मांगी है।”
अभय ने कैलेंडर की तरफ देखा।
आज मंगलवार है। यानि आज का दिन मिला कर सिर्फ छह दिन।
“सेटिस्फेक्ट्री रिपोर्ट न मिलने पर वे एक टीम भारत भेजेंगे, इन्वेस्टिगेशन और पूछताछ के लिये और उन्हें राज हिरासत में चाहिये होगा।”
अभय का चेहरा एकदम सपाट था।
“यू विद मी, अभय ?
“यस! मुझे उम्मीद है मंडे तक रिपोर्ट बन जायेगी।”
“अब सबकुछ तुम्हारे ऊपर निर्भर है। हमसे जो भी मदद चाहिये हो बेझिझक बोलना।”
“श्योर, थैंक्स राज!” कहकर अभय ने फोन रखा। कुछ क्षण सोचने के बाद उसने ज़ाहिद का नम्बर मिलाया।
☐☐☐
वर्तमान समय
हिमाचल प्रदेश
शाम के चार बजने में कुछ ही मिनट शेष थे।
सुज़ुकी के आश्रम के मुख्य द्वार की रक्षा करते हुए भगवे वस्त्र पहने दो शिष्य खड़े थे जो कि आते-जाते हर इंसान पर नज़र रखे हुए थे।
वह पहाड़ी लड़का जिसने आरती और राज पर हमला किया था आश्रम के द्वार की दिशा में तेजी-से चलते हुए आ रहा था।
जैसे ही वह द्वार पर पहुँचा, दोनों शिष्यों ने उसका रास्ता रोक लिया। वह रुका नहीं उसने दोनों को बाजू से पकड़ा और घुमाकर झटका दिया। दोनों एक तरफ जा गिरे।
वह अन्दर प्रविष्ट हो गया।
दोनों संभलकर उठे। उनके चेहरे पर आश्चर्य था। फिर आवेश में चीखते हुए दोनों उसके पीछे लपके।
इससे पहले कि वह उसे छू भी पाते, वह हवा में फिरकनी की तरह घूमा और उसकी किक दोनों के सीने पर लगी। दोनों एक बार फिर धरती चूम गए। इस बार के प्रहार ने दोनों को करारी चोट दी थी, वह दुबारा उठने में असमर्थ थे।
आश्रम के अन्दर कई लोगों ने ये नज़ारा देख लिया था और चार शिष्य उसकी ओर दौड़े।
उसने अपने हाथ सांप के फन की तरह फैलाये और फिर एक चक्रवात की तरह घूमते हुए उसने सभी पर अपने हाथों और लातों की बौछार कर दी।
वह रुक नहीं रहा था, तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था।
वह आश्रम के एक बड़े से कमरे के द्वार पर पहुँच गया। उसने दोनों हाथों से उसके विशाल दरवाजे धकेलकर खोल दिए।
अन्दर ज़मीन पर धर्मगुरु सुज़ुकी व दो और वरिष्ठ पुजारी मौजूद थे। एक रक्षक था जो लड़के को देखते ही क्रोधित होते हुए उसकी तरफ बढ़ा।
वह हवा में उछला तो उसे देख रक्षक भी हवा में उछला। दोनों ने किक घुमाई जो आपस में भिड़ीं और फिर दोनों ज़मीन पर आ खड़े हुए।
फिर वह चक्रवात की तरह घुमा। पर रक्षक उससे न सिर्फ बचा बल्कि ज़मीन पर झुककर उसने उसके पैरों पर ठोकर जड़ दी। वह गिर गया। रक्षक उस पर टूट पड़ा। उसने उसकी गर्दन अपनी भुजाओं में जकड़ लीं। पर वह सख्तजान था, उसने हाथों से रक्षक की जांघ पकड़ी और फिर उसे पलटकर गिरा दिया।
इससे पहले कि रक्षक उठता उसने उस पर लातों की बौछार चला दी।
“रुक जाओ!” अचानक सुज़ुकी चीखा।
वह एकदम से रुक गया। सुज़ुकी उसकी तरफ बढ़ा।
उसने नज़रें झुका लीं।
“क्या चाहते हो तुम ?”
वह कुछ बोला नहीं। हाथ जोड़ते हुए वह उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया।
सुज़ुकी सोच भरी मुद्रा में उसे देखने लगा।
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अलीगढ़
अभय कुमार इस वक़्त सीक्रेट सर्विस के अलीगढ़ ऑफिस में मौजूद अपने केबिन में बैठा लैपटॉप पर किसी रिपोर्ट को पढ़ने में मशरूफ था।
तभी सीबीआई दिल्ली से राज निकेतन का फोन आया।
“हेलो राज!” उसने जवाब दिया।
“अभय, हाउ आर यू डूइंग ?”
“गुड! हाउ आर यू ?”
“नॉट टू बैड!”
“और बताओ कैसे याद किया ?”
“भाई, कमिंग स्ट्रेट टू द प्वाइंट - अच्छी न्यूज़ नहीं है।”
अभय शांति से सुन रहा था। उसके चेहरे पर ऐसे भाव थे जैसे उसे पहले से ही किसी बुरी खबर के मिलने का अंदेशा था।
“लियोन ने अगले हफ्ते मंडे मॉर्निंग तक रमन आहूजा के खिलाफ पुख्ता सबूतों के साथ इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट मांगी है।”
अभय ने कैलेंडर की तरफ देखा।
आज मंगलवार है। यानि आज का दिन मिला कर सिर्फ छह दिन।
“सेटिस्फेक्ट्री रिपोर्ट न मिलने पर वे एक टीम भारत भेजेंगे, इन्वेस्टिगेशन और पूछताछ के लिये और उन्हें राज हिरासत में चाहिये होगा।”
अभय का चेहरा एकदम सपाट था।
“यू विद मी, अभय ?
“यस! मुझे उम्मीद है मंडे तक रिपोर्ट बन जायेगी।”
“अब सबकुछ तुम्हारे ऊपर निर्भर है। हमसे जो भी मदद चाहिये हो बेझिझक बोलना।”
“श्योर, थैंक्स राज!” कहकर अभय ने फोन रखा। कुछ क्षण सोचने के बाद उसने ज़ाहिद का नम्बर मिलाया।
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वर्तमान समय
हिमाचल प्रदेश
शाम के चार बजने में कुछ ही मिनट शेष थे।
सुज़ुकी के आश्रम के मुख्य द्वार की रक्षा करते हुए भगवे वस्त्र पहने दो शिष्य खड़े थे जो कि आते-जाते हर इंसान पर नज़र रखे हुए थे।
वह पहाड़ी लड़का जिसने आरती और राज पर हमला किया था आश्रम के द्वार की दिशा में तेजी-से चलते हुए आ रहा था।
जैसे ही वह द्वार पर पहुँचा, दोनों शिष्यों ने उसका रास्ता रोक लिया। वह रुका नहीं उसने दोनों को बाजू से पकड़ा और घुमाकर झटका दिया। दोनों एक तरफ जा गिरे।
वह अन्दर प्रविष्ट हो गया।
दोनों संभलकर उठे। उनके चेहरे पर आश्चर्य था। फिर आवेश में चीखते हुए दोनों उसके पीछे लपके।
इससे पहले कि वह उसे छू भी पाते, वह हवा में फिरकनी की तरह घूमा और उसकी किक दोनों के सीने पर लगी। दोनों एक बार फिर धरती चूम गए। इस बार के प्रहार ने दोनों को करारी चोट दी थी, वह दुबारा उठने में असमर्थ थे।
आश्रम के अन्दर कई लोगों ने ये नज़ारा देख लिया था और चार शिष्य उसकी ओर दौड़े।
उसने अपने हाथ सांप के फन की तरह फैलाये और फिर एक चक्रवात की तरह घूमते हुए उसने सभी पर अपने हाथों और लातों की बौछार कर दी।
वह रुक नहीं रहा था, तेजी से आगे बढ़ता जा रहा था।
वह आश्रम के एक बड़े से कमरे के द्वार पर पहुँच गया। उसने दोनों हाथों से उसके विशाल दरवाजे धकेलकर खोल दिए।
अन्दर ज़मीन पर धर्मगुरु सुज़ुकी व दो और वरिष्ठ पुजारी मौजूद थे। एक रक्षक था जो लड़के को देखते ही क्रोधित होते हुए उसकी तरफ बढ़ा।
वह हवा में उछला तो उसे देख रक्षक भी हवा में उछला। दोनों ने किक घुमाई जो आपस में भिड़ीं और फिर दोनों ज़मीन पर आ खड़े हुए।
फिर वह चक्रवात की तरह घुमा। पर रक्षक उससे न सिर्फ बचा बल्कि ज़मीन पर झुककर उसने उसके पैरों पर ठोकर जड़ दी। वह गिर गया। रक्षक उस पर टूट पड़ा। उसने उसकी गर्दन अपनी भुजाओं में जकड़ लीं। पर वह सख्तजान था, उसने हाथों से रक्षक की जांघ पकड़ी और फिर उसे पलटकर गिरा दिया।
इससे पहले कि रक्षक उठता उसने उस पर लातों की बौछार चला दी।
“रुक जाओ!” अचानक सुज़ुकी चीखा।
वह एकदम से रुक गया। सुज़ुकी उसकी तरफ बढ़ा।
उसने नज़रें झुका लीं।
“क्या चाहते हो तुम ?”
वह कुछ बोला नहीं। हाथ जोड़ते हुए वह उसके सामने घुटनों के बल बैठ गया।
सुज़ुकी सोच भरी मुद्रा में उसे देखने लगा।
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