Thriller मिशन

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josef
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Re: Thriller मिशन

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शाम को राज के कमरे पर आरती वैध के साथ पहुंची। वैध ने राज को शर्ट उतारने को कहा और फिर उसके घाव पर किसी किस्म की जड़ी-बूटी का लेप लगा दिया। साथ ही उसने एक कटोरी में कुछ दवाएं घोलकर काढ़े जैसा अर्क तैयार किया। कुछ देर बाद-
“अब लेप सूख गया है। तुम अपनी शर्ट पहन लो।” वैद्य ने मुस्कुराते हुए कहा। वह छोटे कद का लंबी दाढ़ी और पतली मूंछों वाला खुशमिजाज व्यक्ति प्रतीत हो रहा था। वह बोला-
“काफी कसरती बदन है तुम्हारा। बंदूक की गोली भी अच्छा झेल गये। कोई और होता तो इस वक्त अपने पांव पर खड़ा नहीं होता।”
“शायद मैं भी खड़ा नहीं होता। वह तो मेरी खुशकिस्मती थी कि दीपिका उस वक्त मेरे साथ थी।” राज ने प्रशंसा भरी नजरों से आरती को देखा। आरती के गुलाबी होठों पर बरबस मुस्कान आ गई।
“दीपिका तो हमारे आश्रम की सर्वश्रेष्ठ मोतिरी है। इसकी जितनी प्रशंसा की जाए कम है। प्रभु की वंदना, समाज सेवा, अच्छे कर्म, अच्छी संस्कृति, क्या कहूं इसके बारे में। साक्षात देवी है, देवी!”
“अब आप कुछ ज्यादा ही प्रशंसा कर रहे हैं।” आरती झेंपते हुए बोली।
“अब तुम ही बताओ–क्या मैंने कुछ गलत कहा ?” वो आंखें फैलाकर राज से बोला।
“नहीं! आपने बिल्कुल सच कहा है।”
वैध हो-हो करके हँसने लगा।
“अच्छा! सुनो यंग मैन! यह काढ़ा बनाया है। इसे हर रोज मैं तुम्हें शाम को बनाकर दूंगा। इसके नियमित सेवन से एक-दो सप्ताह में तुम्हारे सभी घाव भर जायेंगे और कमजोरी भी जाती रहेगी।”
“कमजोरी तो वैसे अभी भी कोई खास नहीं लग रही।”
“वह तो तुम्हारी सेहत अच्छी है इसलिये पर अभी अगर तुम दौड़-भाग करोगे तब तुम्हें कमजोरी पता चलेगी...और सुनो– धूम्रपान मदिरापान भूलकर भी मत करना।”
“पर मैं...”
“छुपाने की कोई जरूरत नहीं है। तुम्हारे होठों और आँखों दोनों से ये बातें साफ पता चलती हैं।”
“ठीक है, गुरु जी! जैसी आपकी आज्ञा।” राज हाथ जोड़कर बोला।
“अब मैं चलता हूँ।”
“प्रणाम!”
“प्रणाम!”
वैध ने उठकर मुस्कराते हुए राज का कंधा थपथपाया फिर अपना झोला लेकर वहाँ से चला गया।
आरती बोली, “दवा पी लो। फिर थोड़ी देर में खाना खाने चलेंगे।”
“ठीक है!” कहकर राज ने दवा का कटोरा उठाया और एक सांस में पी गया। निहायत ही कड़वे स्वाद से उसने जीभ निकालते हुए मुंह बनाया। आरती खिलखिला उठी।
कुछ मिनटों बाद राज को लगा कि वाकई वैध ने सही कहा था। दवा के असर से अब उसे अपने शरीर में स्फूर्ति का अहसास होने लगा था।
“आओ चलें... थोड़ा खुली हवा में घूमेंगे। तुम्हें आश्रम भी दिखा देती हूँ।”
आरती कमरे से बाहर निकली। उसने इस वक्त लाल रंग के भगवे वस्त्र पहने हुए थे और सिर ढक रखा था। राज उसे ध्यान से देखते हुए बाहर निकला।
फिर वे लोग आश्रम के आंगन में पहुँच गए–जहां कई शिष्य इधर-उधर बैठे थे। हर कोई अपने रोजमर्रा के कार्यों में व्यस्त दिखाई दे रहा था। कोई मसाला कूट रहा था तो कोई सूखे हुए कपड़े उतार रहा था। राज को ऐसा लग रहा था जैसे वह किसी बहुत बड़ी जॉइंट फैमिली के घर आ गया हो।
“तुम्हें कभी भी बोरियत महसूस हो तो कोई भी काम बेझिझक पकड़ लेना।” आरती मुस्कुरा कर बोली।
“जरूर! मुझे खुशी होगी। खाली बैठना तो मुझे बिल्कुल पसंद नहीं।”
“आश्रम के ग्राउंड फ्लोर पर सभी मोतिर यानि मेल रहते हैं और आश्रम की लड़कियां और औरतें यानी कि मोतिरी फर्स्ट फ्लोर पर रहती हैं। पूजास्थल, गुरुओं का निवास, मीटिंग हॉल आदि सब ग्राउंड फ्लोर पर ही हैं।”
“कुल कितने लोग रहते होंगे यहाँ ?”
“करीब एक सौ बीस-तीस।”
“और यह सभी लोग सीनो देश से आए थे ?”
“नहीं! सीनो देश से गुरु ओसाका व तीन गुरु, जिनमें से एक की मृत्यु हो गई, यह वैध और तीन-चार लोग और आये थे। दस साल पहले जब सीनो की गवर्नमेंट ने इन सब को मृत्युदंड दिया था तब ये सभी भाग कर भारत आ गए थे और भारत ने उन्हें यहाँ आश्रय दिया था। उसके बाद धीरे-धीरे इन्होंने आश्रम की शुरुआत की और इनके धार्मिक अनुयाई जो कि भारत में भी मौजूद थे इनसे जुड़ते गये। कुछ अनुयायी जो कि पूरी तरह से ईश्वर को समर्पित हो गये और अब संसारी मोह-माया छोड़ कर सारा जीवन ईश्वर की आराधना में बिताना चाहते हैं वह आश्रम में ही रहने लगे हैं।”
“कमाल है! मैं तो ऐसा सोच भी नहीं सकता।”
आरती ने उसकी तरफ इस तरह देखा जैसे किसी नादान बच्चे को देख रही हो।
“हर कोई तुम्हारी तरह स्ट्राँग नहीं होता। उनके पास जीवन में बुरे वक्त को अकेले झेलने की काबिलियत नहीं होती।”
“तो क्या तुम कहना चाहती हो–कमजोरी हमें ईश्वर की आराधना करने के लिये मजबूर कर देती है ? सिर्फ यही एक कारण है जिसकी वजह से इतने सारे लोग यहाँ मौजूद हैं ? क्योंकि उन्होंने सामाजिक जीवन में कुछ स्ट्रगल किये और उनसे हार कर यहाँ आ गए ?”
“नहीं! इस तरह का निष्कर्ष निकालना तो सिरे से गलत होगा। पर किसी बिलीफ की तरफ मुखातिर होने के पीछे कोई न कोई वजह जरूर चाहिये होती है। वह जीवन में किसी के खोने का असीमित दुःख, कोई स्ट्रगल या कोई महत्त्वाकांक्षा भी हो सकती है जो कि अपना सबकुछ झोंक देने के बाद भी पूरी नहीं हो पा रही हो। कई बार ऐसा होता है न कि हम किसी चीज के लिये अपना सब कुछ दांव पर लगा देते हैं फिर भी वह हमें हासिल नहीं होती। तब हम किस्मत पर सारा कसूर डाल देते हैं। पर ऐसे में ही किसी अज्ञात शक्ति की मदद अगर हमें मिलती है तो न जाने कैसे उन सपनों को साकार करने के लिये फिर से हिम्मत मिल जाती है, जीवन के दुखों से उभरने की ताकत हासिल हो जाती है।”
“कितना वक्त हुआ तुम्हें इस आश्रम में रहते हुए ?”
“तुम तो जानते ही हो कि मैं इससे पहले दिल्ली में थी, नौकरी कर रही थी। तो यहाँ रहते हुए ज्यादा समय नहीं हुआ पर मैं गुरु ओसाका की बहुत सालों से अनुयाई हूँ और अक्सर उनसे गाइडेंस लेने आश्रम आती थी। सिर्फ मैं ही नहीं हिमाचल और देश के बाकी भागों में भी आपको बहुत से लोग मिलेंगे जो गुरु ओसाका को मानते हैं और सीनो धर्म के अनुयायी हैं।”
बातें करते करते डिनर का समय हो गया और देखते ही देखते आंगन में चटाइयाँ बिछ गई और खाने के पत्तल लग गये। वहाँ किसी गाँव की दावत जैसा माहौल हो गया। सब लोग बैच में बैठने लगे और दस-दस मिनट में खाना खाकर उठने लगे। मोतिर और मोतिरी मिलजुल के खाना खा रहे थे, बातें कर रहे थे, किसी पर कोई रोक-टोक नहीं थी, फिर भी सब के कार्यकलाप में एक तरह का अनुशासन दिखाई दे रहा था। आरती और राज भी खाने बैठ गए। खाना शुद्ध-सात्विक-सा था पर फिर भी बेहद लजीज था।
“काफी दिनों से घर से बाहर निकला हूँ।” राज बोला, “आज जाकर लग रहा है कि घर का खाना नसीब हुआ।”
आरती मुस्कुरा दी।
“आश्रम में ही रह जाओ। हमेशा ऐसा खाना मिलता रहेगा।”
“लगता है तुमने पूरा जीवन आश्रम में ही बिताने का निर्णय ले लिया है।”
“इसमें कोई शक नहीं।” आरती बोली, “मुझे पहले से ही पता था ऐसा कुछ आगे चलकर होगा, इतनी जल्दी होगा यह तो नहीं पता था पर शायद किस्मत में यही लिखा था इसीलिए मेरे जीवन में कुछ ऐसी घटनाएं घटी जिन्होंने मुझे आज यहाँ पहुँचा दिया और मुझे इस बात की बहुत खुशी है। तुम यकीन नहीं करोगे कि कुछ महीने पहले जिन बुरी परिस्थितियों ने मुझे डिस्टर्ब कर दिया था, जिनके कारण मैंने जीने की आस खो दी थी, आज उन्हें याद करके भी मुझे कोई परेशानी महसूस नहीं होती।”
राज चुपचाप खाना खाता रहा।
कैसे उन लोगों की जानकारी आरती से निकाली जाये जिन्होंने इसकी आईडेंटिटी खत्म करके यहाँ तक पहुँचने में मदद की।
खाने के बाद दोनों टहलते हुए आश्रम के प्रांगण में आ गए। बाहर खुशनुमा ठंडी हवाएं चल रही थी, चाँद आसमान में जगमगा रहा था जिसकी रोशनी में बर्फ से ढकी पहाड़ियां चमक रही थी।
“आरती!” राज बोला।
आरती ने पहाड़ों की तरफ देखते हुए सिर्फ ‘हूँ’ कहा।
“मैं तुमसे सब साफ-साफ बोलूंगा। दिल की बात कहूँगा। मैं अपनी सीक्रेट सर्विस की नौकरी से बेहद प्यार करता हूँ। मैं अपने देश से बेहद प्यार करता हूँ। मैं एक देशभक्त जासूस हूँ और अपने देश और इस नौकरी के लिये मैं कुछ भी कर सकता हूँ। इस वक्त मेरे ऊपर जो आरोप लगे हैं वह सिर्फ एक ही दशा में हट सकते हैं– मैं आहूजा के खिलाफ कुछ सबूत निकाल सकूं, आहूजा और चौधरी के बीच जो प्लान रचा गया था उसकी जानकारी हासिल कर सकूँ। इसके बाद ही मेरे माथे पर लगा कलंक हट सकेगा।”
“तुम क्यों मेरे जख्मों को बार-बार छेड़ते हो ?” आरती उदास स्वर में बोली।
“मैं ऐसा हरगिज़ भी नहीं चाहता आरती। पर तुम्हें कैसा लगता अगर तुम मेरी जगह होती ? अगर तुम जंग में लड़ी वह सैनिक होती जिसने दुश्मनों को खत्म किया पर घर वापसी पर तुम्हें हीरो बनाने की जगह दुश्मनों को मारने की वजह पूछी जाती ? उनके खिलाफ सबूत मांगे जाते, हीरो की जगह विलेन बना दिया जाता ? तुम्हारे ऊपर क्या गुजरती– तुम बताओ ?”
आरती राज की तरह पलटी। वह ध्यानपूर्वक राज को देखने लगी। मानो उसका चेहरा देख कर उसके मन को पढ़ने की कोशिश कर रही हो।
“मेरी हालत इस वक्त उसी सैनिक की तरह है। मैं इस तरह नहीं जी सकता। मैं अपने माथे पर कलंक लेकर वापस नहीं जा सकता।”
आरती के चेहरे पर करुणा भरे भाव आ गए।
“ राज मैं समझ सकती हूँ कि शायद धीरज गलत राह पर चला गया था, भटक गया था। यह बात भी सच है कि अगर मुझे पहले ही उसके यह इरादे पता होते तो मैं उससे नफरत करने लगती। पर मुझे उसके प्लान के बारे में कभी पता नहीं था। मुझे नहीं पता था उसकी किन लोगों के साथ साथ-गाँठ है। मुझे जब उसने कॉन्टेक्ट किया और सुरक्षित जगह पर जाने को बोला तब मेरी नज़र में वह एक इंटरपोल एजेंट ही था इसलिये मेरी समझ में मेरी मदद करने वाले भी कानून के रक्षक थे।”
“यही तुमने गलती कर दी।” राज बोला, “कानून के रक्षक आखिर तुम्हारी मदद इस तरह क्यों करते ? तुम्हारी मौत का स्वांग क्यों रचाते ? क्या तुमने ऐसा कभी देखा है किसी की जान का खतरा होता है तो उसे मृत घोषित कर दिया जाये ?”
आरती चुप रही, फिर सोचते हुए बोली, “मैं इतना नहीं सोच सकती। मुझे नहीं पता जासूस व सीक्रेट एजेंट्स किस तरह काम करते हैं। मैं उस पर भरोसा करती थी उसने मुझे जैसा करने को कहा मैं करती चली गई।”
“आरती! अभी वक्त है। तुम अहसानफरामोशी की बातें भूल जाओ। जिन लोगों ने तुम्हारी मौत का नाटक किया वह चौधरी के पार्टनर थे जो कि सिर्फ आहूजा की बदले की भावना का इस्तेमाल करके अपना उल्लू सीधा करना चाहते थे। मुझे उन लोगों तक पहुँचने दो ताकि मैं यह साबित कर सकूं कि देश को नुकसान पहुंचाने का प्लान किसी और का था रमन आहूजा का नहीं।”
“क्या तुम मुझे बातों में उलझा कर अपना उल्लू सीधा करना चाहते हो ?” आरती उसे तीखी नजरों से देखते हुए बोली।
“हां! मैं अपना उल्लू सीधा करना चाहता हूँ। पर जो तर्क मैं दे रहा हूँ वही सच है। अगर तुम इसका काट दे सको तो दो। अगर तुम मुझे यह समझा सको कि अपने ही देश पर न्यूक्लियर मिसाइल गिराना सही भी हो सकता है तो मैं मान लूंगा कि मैं गलत हूँ और मैं अभी इसी वक्त यहाँ से चला जाऊंगा।”
“तुम चाहते तो जोर-जबरदस्ती से भी मुझसे यह जानकारी निकलवा सकते हो आखिर तुम ऐसा क्यों नहीं कर रहे ?”
“तुम एक सीधी-साधी लड़की हो। शुरू में मुझे तुम पर शक जरूर था पर अब मैं समझ चुका हूँ कि तुम्हारे और आहूजा जैसे लोगों को इमोशनल करके कैसे लोग अपना चक्रव्यूह रचते हैं। मैंने यह आज नहीं बहुत से मिशन में देखा है। आतंकवाद में क्या होता है ? दंगों में क्या होता है ? लोगों को इमोशनली ब्लैकमेल करके, भड़काकर खून की नदियाँ बहा दी जाती हैं जिस के सहारे कुछ धूर्त लोग अपने मंसूबे पूरे करते हैं।”
आरती उसे देखती रही। वह गहरी सोच में थी। राज के चेहरे पर चाँद की रोशनी पड़ रही थी। उसकी आँखों में छिपे भाव वह साफ देख सकती थी।
आरती ने निर्णय लिया और कहा- “चलो, तुम्हारे कमरे में चलते हैं। यहाँ बात करना ठीक नहीं।”
☐☐☐
josef
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राज अपने कमरे में पहुँचा। आरती ने कहा था कि वह कुछ देर बाद वहाँ आयेगी।
राज बैठा-बैठा बोर होने लगा तो उसने कमरे में रखी एक किताब उठा ली और उसे पढ़ने लगा।
करीब चालीस मिनट बाद दरवाजे पर दस्तक हुई। राज ने दरवाजा खोला। आरती अंदर आ गई और उसने दरवाजा अंदर से बंद कर लिया और फिर तेजी से कमरे के दूसरी तरफ पहुँचकर राहदारी में खुलने वाला दरवाजा और खिड़की भी बंद कर लिये। फिर ज़मीन पर चटाई बिछाते हुए बोली, “आओ, यहाँ बैठो।”
राज चटाई पर ठीक उसके सामने बैठ गया।
आरती ने अपना फोन निकाला और फिर एक फोटो दिखाते हुए बोली, “यह निक है।”
राज उसे देखने लगा। वह मोटा-तगड़ा, कम ऊंचाई वाला पहाड़ी युवक था।
“अरे, यह तो वही है।” राज उसे पहचानते हुए बोला।
“हां! यह वही है जिसने त्रिउंड में मुझ पर हमला किया था और फिर तुम्हारी इसके साथ हाथापाई हुई थी।”
“तुम इसे पहले से पहचानती थीं ? इसका फोटो तुम्हारे पास कैसे आया ?”
“पेशेंस रखो। सब बताने ही जा रही हूँ। इसका नाम निक है और यह फिलहाल गुप्त रूप से एक दूसरे धर्मगुरु के आश्रम में शिफ्ट कर रहा है।”
“कौन धर्मगुरु ?”
“सुज़ुकी!”
“अब यह कौन है ?”
“यह भी ओसाका की तरह सीनो से भागा एक धर्मगुरु है।”
“अरे, कमाल है।” राज हाथ नचाकर बोला, “उस दौर में कितने धर्मगुरु भागे थे ?”
आरती हंस दी। “बहुत से भागे थे। शायद वह दौर ही बगावत का था जब सीनो में नई गवर्नमेंट बनी थी और फिर पुरानी गवर्नमेंट जो कि इन सभी धर्मगुरु को सपोर्ट करती थी वह पावर में न रही। रातों रात गुप्त रूप से नई गवर्नमेंट की कैबिनेट ने इन सभी को अरेस्ट करके मृत्युदंड देने का फैसला लिया था। खैर, राज़ राज़ न रहा और कुछ गुरुओं तक ये बात पहुँच गई और उसी रात यह सभी धर्मगुरु वहाँ से भाग निकले। कुछ पकड़े गये और कुछ जो लकी थे वह भारत पहुँच गए। यह तो हुई उनके बारे में संक्षिप्त जानकारी तुम्हें ज्यादा चाहिए हो तो गूगल कर लेना, सब मिल जाएगा।”
“ऐसा था तो गूगल से ढूंढकर लिंक ही दे देतीं।”
“दे तो देती पर अब आगे जो जानकारी देने जा रही हूँ वह गूगल पर नहीं मिलेगी।” आरती आंख दबाते हुए बोली। राज हंस दिया।
“तो सुज़ुकी उनमें से एक गुरु है और निक उनका शिष्य है। दरअसल यह दोनों सीनो के जासूस हैं।”
“क्या बात कर रही हो ?” राज चौंकते हुए बोला, “पर अगर सुज़ुकी सीनो से भाग कर आया था तो फिर वह उनके लिये जासूसी क्यों करेगा ?”
“क्योंकि वह आज से बहुत साल पहले आया था। उसके बाद से वहाँ की गवर्नमेंट में बहुत बदलाव हुए हैं। वह पूरी तरह से धर्मगुरुओं के सपोर्ट में तो नहीं है, पर वहाँ का वर्तमान प्राइम मिनिस्टर किसी वजह से सुज़ुकी को सपोर्ट करता है।”
“वो क्यों ?”
“अब मुझे ये नहीं पता कि कैसे और क्यों पर सुज़ुकी उसी के इशारों पर भारत में जासूसी कर रहा है और खलीली ने जो प्लान बनाया था वह सुज़ुकी के सहयोग से बनाया था।”
इस बार तो राज वाकई चौंककर उठ खड़ा हुआ।
“तुम क्या बोल रही हो? और...और तुम्हें यह सब जानकारी कहां से मिली?”
“तुम सोचो–कहां से मिली होगी ?” आरती भेद भरी मुस्कान के साथ बोली।
“तुम्हें आहूजा ने बताया ?”
उसने सहमति में सिर हिलाया।
“यानि आहूजा को यह सब पता था।”
“बिल्कुल पता होगा। आखिर वह शुरू से इस मिशन में शामिल था। सोहनगढ़ माइंस में रह रहा था।”
“इसका मतलब रमन आहूजा तुमसे हरेक चीज नहीं छिपाता था।”
“नहीं! काफी कुछ बता देता था। उसने सिर्फ अपने इरादे मुझसे छुपाए और उसी वजह से मुझे सबसे ज्यादा आघात लगा। एक तरह से ये मेरे लिये अच्छा हुआ। अगर मेरी स्मृति में वह एक अच्छा इंसान ही रहता तो उसकी मौत का मुझे हमेशा गम रहता... पर अब उसके मिशन के बारे में तुमने जो बताया... वो जानकर...” कहकर आरती चुप हो गई। उसका गला भर आया।
“मैं समझ सकता हूँ।” राज बोला, “तो फिर निक की तुम्हारी दुश्मनी की क्या वजह है ?”
“सिंपल सी बात है। रमन आहूजा ने उनके साथ धोखा किया। खलीली के प्लान यानि कि सुज़ुकी व सीनो के प्लान को विफल करा दिया इसलिये वह उनका दुश्मन बन गया। धीरज तो वहीं मर गया। जिंदा रहता तो ये लोग उसे छोड़ते नहीं। धीरज को पहले ही पता था कि आगे ऐसा होना ही है इसलिये उसने मेरी सेफ्टी प्लान की हुई थी क्योंकि उसे पता था उसके मिशन का खुलासा होने के बाद वे लोग धीरज और उसके शुभचिंतकों के पीछे पड़ने वाले थे।”
“पर उन्हें मालूम कैसे पड़ा तुम्हारे बारे में ?”
“मुझे नहीं पता। आखिर धीरज को वह लोग कंट्रोल कर रहे थे। उनके पास कोई न कोई मेकैनिज्म होगा उसके ऊपर नज़र रखने का और उन्होंने मेरे बारे में जान लिया होगा।”
“...और अब...” राज बोला, “यहाँ पर निक ने तुम पर हमला किया। इसका मतलब तुम्हारी मौत का नाटक भी किसी काम नहीं आया। उन्हें पता है कि तुम जिंदा हो।”
“हाँ!” आरती हारे हुए स्वर में बोली, “इतना कुछ करने के बाद भी न जाने उन्हें कैसे पता चल गया।”
राज के चेहरे पर रोमांच से भरे भाव थे।
“वाह! यानि... यह तो कमाल है। यहाँ भारत में एक ही शहर में दो खेमे बन गये हैं–एक भारत के खिलाफ काम कर रहा है और दूसरा भारत के अनुयाई हैं।”
“हाँ! तुम ऐसा कह सकते हो। गुरु ओसाका को भारत का शुभचिंतक माना जा सकता है।”
“कमाल है!” राज के मुंह से निकला।
“अब मैं तुम्हें वो बात बताती हूँ जो तुम मुझ से बार-बार पूछ चुके हो। वे लोग जिन्होंने मेरी मदद की– उनमे से एक का नाम था पार्श्वनाथ, जिसने तुरंत मुझे दिल्ली से निकलने के लिये आगाह किया। न कोई फोन न मैसेज, वह सीधे आकर मुझसे मिला और उसने मुझे दिल्ली से निकलवा दिया। दूसरे दिन ही मुझे उसकी मौत की खबर मिली थी। वह किसी रेलवे ट्रैक के नीचे आ गया था। न्यूज़ में उसे सुसाइड बताया गया पर मैं जानती हूँ यह काम सुज़ुकी और निक के लोगों का था। दूसरा इंसान था– निरंजन, उसने मेरी मौत का स्वांग रचने में पूरी मदद की थी। वह कहां रहता है, मैंने कभी नहीं पूछा पर उसका फोटो मेरे पास है। वह मैं तुम्हें दिखा देती हूँ।” कहकर आरती ने मोबाइल में एक और फोटो दिखाया। राज ने ब्लूटूथ की मदद से वह फोटो अपने मोबाइल में ले लिया।
कुछ पल राज उसका फोटो देखता और सोचता रहा। आरती घुटनों पर ठोड़ी टिकाकर उसे देखती रही। फिर राज बोला, “मुझे एक बात समझाओ– सब कुछ जानते हुए तुम भागकर उन्हीं की तरफ क्यों आईं ?”
“मतलब ?”
“जब तुम्हें पता था सुज़ुकी यहीं धर्मशाला में रहता है तो तुम इसी तरफ भागकर क्यों आई ?” कहते हुए राज ने उसकी तरफ देखा फिर अचानक चुटकी बजाते हुए उठ खड़ा हुआ। “लगता है– मैं समझ गया।”
“तुम्हारे जैसा इंसान तो समझ ही जाएगा, मिस्टर जासूस।” आरती मुस्कुराई।
“तुम अपनी आईडेंटिटी बदलकर यहाँ आकर निक और सुज़ुकी को मजा चखाना चाहती थी।” राज चुटकी बजाकर बोला।
“मैं इतनी ताकतवर नहीं।”
“पर तुम चाहती तो होगी ही और भले ही ‘तुम’ ताकतवर न हो पर आहूजा के सहयोगी तो होंगे।”
आरती ने स्वीकृति में गर्दन हिलाई।
“पर कैसे ?”
“मुझे नहीं पता वो क्या कर रहे हैं, कैसे कर रहे हैं। पर जिस दिन सुज़ुकी और निक बर्बाद होंगे मुझे सब से ज्यादा ख़ुशी होगी और यहाँ रहकर मैं अपनी आँखों से उनका पतन देख सकूंगी।” कहकर आरती उठ खड़ी हुई। “रात काफी हो गई है। अब मैं चलती हूँ।”
“ठीक है!”
कमरे के दरवाजे की तरफ बढ़ते हुए आरती अचानक रुकी और पलटकर बोली, “अब तुम सोचो और यह बताओ आगे क्या करना चाहते हो ? मैं तुम्हारा साथ दूँगी।”
“हाँ! अब वही सोचना है। तुमने जो जानकारी दी है– वह वाकई विस्फोटक है।”
“जिन परिस्थितियों से मैं गुजरी हूँ, उसके बाद किसी पर भी आसानी से विश्वास नहीं कर सकती इसलिये अभी तक तुम्हें पूरा सच नहीं बता पा रही थी।”
“आई कैन अंडरस्टैंड!”
आरती के खूबसूरत चेहरे पर एक मोहक मुस्कान आ गई।
“एक बात बताओ- ये रिंकी कौन है ?”
राज ने चौंककर उसे देखा, फिर संयमित होते हुए पूछा, “कौन ?”
“रिंकी! जिसका नाम तुम बेहोशी के वक़्त हॉस्पिटल में ले रहे थे।”
josef
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राज झिझका फिर फीकी मुस्कान के साथ बोला- “ज़िन्दगी में कुछ दर्द हमारे भी हैं।”
“कभी शेयर करने का मन करे तो ज़रूर बताना।”
राज ने सहमति में सिर हिलाया।
“गुड नाईट!”
कहकर वो पलटी फिर दरवाजा खोलकर तेजी से बाहर निकल गई।
राज ने दरवाजा बंद किया फिर चटाई पर ही कम्बल ओढ़कर लेट गया और दो तकिया लगाकर फिर वह किताब पढ़ने लगा। किताब किसी अमीर बिजनसमैन के ऊपर लिखी गई थी जो कि अपना सबकुछ त्यागकर एक साधू बन गया था। राज उसे खुद से रिलेट करने लगा।
ठीक ही है! आखिर क्या रखा है दुनियादारी में। माँ का साया तो बचपन में ही सर से उठ गया और उसके बाद पापा ने दूसरी शादी कर ली, नया परिवार बना लिया जिसका मैं हिस्सा रहा हूँ, ऐसा कभी लगा ही नहीं। सौतेली माँ के चेहरे पर हमेशा एक बनावटी मुस्कान देखी, पर उसके मन में तो हमेशा एक बोझ रहा इसलिये दसवीं क्लास से ही मैंने बोर्डिंग में जाकर पढ़ने की इच्छा पापा से जताई। भले ही ऊपरी तौर पर अच्छे स्कूल में पढ़ने के लिये मैं आतुरता दिखा रहा था पर उन्हें पता था कि मेरा मन था कि उस परिवार से कहीं दूर रहूँ जो कभी मेरा नहीं हो सकता था। एक बार जो घर से निकला कभी वापस नहीं आया। स्कूल से निकलकर कॉलेज के हॉस्टल और फिर कॉलेज से जॉब में आने पर किराए के घर और फिर खुद के घर में। आखिरी बार पापा से कब मिला था ? याद ही नहीं आ रहा... हाँ तीन साल पहले जब सौतेली बहन की शादी में पापा और उनकी वाइफ के बहुत आग्रह करने के बाद जाना पड़ा था। जनरली लाइफ अकेले ही कटी है – मनपसंद नौकरी के सहारे, सुरेश और ज़ाहिद जैसे कुछ दोस्तों के सहारे, कुछ लड़कियों के साथ लापरवाह रिलेशन के सहारे... फिर मंदिरा आई, एक स्टेडी गर्लफ्रेंड! पर मेरे जीवन में सोलमेट तो कोई और लिखी थी, जिसके साथ इत्मिनान के दो पल भी ठीक से नहीं गुज़ार सका। और जब वो गई तो लाइफ में कितना बड़ा वोयड छोड़ गई जो कुछ भी कर के भर नहीं पा रहा बल्कि हर दिन और बड़ा होता जा रहा है।
सोचते हुए राज का मन भारी हो गया। उसे आरती के शब्द याद आये।
इस आश्रम की शरण में आकर उसे भी तो दुखों को सहने की ताकत मिली थी। तो...तो मुझे भी मिल सकती है। ये वाकई कमाल है जो मेरे जैसा अधर्मी ऐसी बातें सोच रहा है। पर शायद इंसान तभी धर्म या स्प्रिचुअलिटी की तरफ बढ़ता है जब लाइफ उसे कोई बड़ा दुःख देती है। मैं भी कोशिश करूँगा। बस एक बार खुद को सही साबित कर दूँ।
☐☐☐
राज की नींद बेचैनी के साथ खुली। उठते ही उसकी नज़र खिड़की पर गई। बाहर अभी भी चांदनी बिखरी हुई थी।
उसने घड़ी देखी– चार बजकर बीस मिनट हुआ था।
न जाने क्या सपने देखता रहा था वह। मन काफी उद्वेलित महसूस हो रहा था।
वह उठकर खिड़की के पास आ गया और बाहर देखने लगा।
अचानक ही उसके मन मे विचार कौंधा-
सीनो और खलीली ने संयुक्त रूप से मास्टरमाइंड प्लान बनाया था।
कितना बड़ा रहस्योद्घाटन है ये। विश्व स्तर पर प्रकट होने पर कितने बड़े परिणाम हो सकते हैं इसकी वजह से! खैर, विश्व स्तर पर कोई भी देश बिना सबूत के कभी कोई बात नहीं मानेगा और यहाँ तो अभी तक ये भी साबित नहीं किया जा पा रहा है कि रमन आहूजा एक आतंकवादी था। पर फिर भी इससे भारत और सीनो के बीच तनाव बढ़ सकता है। सीमा पर गरमा-गरमी हो सकती है, आर्थिक गठबंधन टूट सकते हैं।
फिलहाल उसे रमन आहूजा के खिलाफ सबूत जुटाने थे। पार्श्वनाथ और निरंजन सिर्फ दो नाम मिले थे, जिन में से एक यानि पार्श्वनाथ मर चुका था और निरंजन का फोटो उसे हासिल था।
अभी उसे ढूंढने का काम करना है। साथ ही इस बात की तस्दीक भी करनी है कि निक और सुज़ुकी वाकई सीनो के जासूस हैं।
राज का हाथ मेज की दराज में मौजूद सिगरेट के पैकेट की तरफ बढ़ा। उसने एक सिगरेट निकाली और खिड़की के पास खड़े होकर उसे लाइटर से सुलगाने लगा।
इसका मतलब सीनो अपनी विस्तारवादी नीति के चलते भारत पर बड़ा अटैक करना चाहता है ताकि भारत उसमे उलझ जाये और वह अपने मित्र देश के साथ भारत पर हमला करके अपने मंसूबे पूरा कर सके। एक तरफ कश्मीर दूसरी तरफ अरुणाचल... क्या नहीं सोच सकता वह। पर क्या वर्तमान अन्तराष्ट्रीय नितियों के तहत वह ऐसा रिस्क लेगा ? मुश्किल है! बाकि देश उसकी निंदा करेंगे, उस पर हमला कर सकते हैं, आर्थिक पाबंदियां लगा सकते हैं। फिर... ? इतने बड़े लेवल पर ये प्लान चल रहा है तो कुछ तो उन्होंने ऐसा सोच रखा होगा कि कैसे खुद पर कोई अंगुली उठवाये बिना उसे एग्झीक्यूट कर सके।
राज दरवाजा खोलकर पीछे राहदारी में आ गया। उसका मन बुरी तरह से बेचैन हो उठा था। देश पर छाये संकट को देखकर वह अपनी व्यक्तिगत समस्याओं को एक तरह से भूल गया था। वह वहाँ टहलने लगा।
अब तेजी से काम करना होगा। मास्टरमाइंड प्लान तो फेल हो गया पर सीनो चुप नहीं बैठा होगा। प्लान बी, प्लान सी तैयार होगा।
अगले दो घंटे राज ने बेहद बेचैनी से गुज़ारे। अपने मन को एकाग्रित करने के लिये वह कुछ देर कसरत व ध्यान करता रहा। छह बजे आश्रम में पूरी तरह से जाग हो गई थी। सुबह की पूजा करने के लिए करीब सात बजे सभी उस बड़े हॉलनुमा पूजाघर में एकत्रित हुए। एक घंटे तक पूजा चली। राज आरती को ढूंढ रहा था। पूजा समाप्त होने पर वह हॉल के बाहर खड़ा हो गया। जब आरती उसे बाहर निकलती दिखी तो उसने उसे इशारा किया और बाहर की तरफ चल दिया। वह उसके पीछे-पीछे बाहर पहुंची।
बाहर बगीचे में पहुँचकर राज पौधों में पानी देने लगा। आरती ने भी उसका अनुसरण किया।
काम करते-करते राज बोला-
“मुझे ये बताओ– ये निरंजन के बारे में और क्या पता है तुम्हें ?”
“वो मुझे मंडी में मिला था। उसने भी पार्श्वनाथ की तरह मुझे कभी फोन नहीं किया। शायद उनके काम करने का तरीका ही कुछ ऐसा था कि वो फोन से कॉन्टेक्ट करना रिस्क मानते थे।”
“पूरी बात बताओ।”
josef
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Re: Thriller मिशन

Post by josef »

“पूरी बात बताओ।”
“मैं जब घर लौटकर आई। उसने एक दिन घर के अंदर एक नोट लिखकर फेंका। नोट पर लिखा था ‘DN का दोस्त’। DN, मैं समझ गई रमन आहूजा के इनिशियल्स थे। मैं बाहर निकली। वहाँ एक और नोट के ज़रिये उसने मुझे मिलने के लिये मार्केट बुलाया और वहाँ मिलकर बताया कि मैं यहाँ मंडी में भी सेफ नहीं हूँ। धीरज के दुश्मन बड़े आराम से यह पता लगा सकते हैं कि मैं अब दिल्ली की जगह अपने होम टाउन में मौजूद हूँ। तो मैंने उससे पूछा कि मैं क्या करूं। उसने कहा कि इसका सिर्फ एक ही इलाज है कि मैं मरने का ढोंग करूं। मैं पहले तो डर गई, पर फिर उसकी बातों से कन्विंस हो गई कि इसके सिवा और कोई तरीका नहीं था खुद को सेफगार्ड करने का। उसने मुझे कहा कि तीन-चार दिन बाद फिर से कॉन्टेक्ट करेगा, तब तक शायद कोई प्लान बन जाये। तब तक अपना ख्याल रखूं और कम से कम लोगों को बताऊं कि मैं अपने घर में मौजूद हूँ। मैंने वैसा ही किया। कोई अप्रिय घटना नहीं घटी। फिर तीन दिन बाद वह दुबारा मिला और उसने बताया एक लड़की की लाश का इंतजाम हो गया है। मुझे दूसरे दिन सुबह घर से नदी की तरफ निकलना होगा और फिर वहाँ से वह मुझे पिक कर के दूसरे शहर ले आएगा। मैंने उसी रात फैसला कर लिया था कि दूसरा शहर कोई और नहीं धर्मशाला होगा और मैं गुरु ओसाका की शरण में आ जाऊंगी। मुझे पता था कि इसी शहर में धीरज के दुश्मन यानि सुज़ुकी और निक भी मौजूद हैं। शायद वही मुझे मरवाना चाहते थे पर फिर भी मैंने अपने गुरु की शरण में आना ही तय किया। कभी-कभी यह भी सोचती थी कि धर्मशाला आकर उन दोनों को खत्म कर दूंगी। एक तरफ मैं शांति के मार्ग पर चलना चाहती थी और दूसरी तरफ यह हिंसक विचार...मेरे मन में एक अंतर्द्वंद्व पैदा कर देते थे। फिर मैंने फैसला किया कि इधर आकर जो भी होगा अच्छा होगा। उसके बाद निरंजन का प्लान एग्जीक्यूट हुआ।
“सुबह नदी की ओर जाते वक्त मैं जानबूझकर दो-तीन लोगों की नज़र में आकर निकली ताकि वह बाद में इस बात की तस्दीक कर सकें कि मैं नदी की तरफ गई थी। प्लान सक्सेसफुल हुआ और फिर मैं धर्मशाला आ गई। कुछ दिन बाद गुप्त रूप से मैं घर वापस आई और अपने परिवार वालों को सब समझा दिया। वह समझदार हैं और मुझे यकीन है मेरे जिंदा होने की खबर उनके द्वारा लीक नहीं हुई होगी लेकिन इसके बावजूद उस दिन निक ने लहेश केव्स में मुझ पर हमला किया।”
“हां इसके आगे की कहानी तो मैं जानता हूँ। तो क्या निरंजन उसके बाद तुम्हें नहीं मिला ?”
“नहीं! मैंने पूछा भी था पर उसने साफ कहा था कि अब कॉन्टेक्ट करने की कोई जरूरत नहीं है। पर वे लोग मुझ पर नज़र रखेंगे। अगर कोई खतरा हुआ तो वह या कोई और मुझे कॉन्टेक्ट करेगा। ठीक उसी तरह – ‘डी एन का दोस्त’ बोल कर।”
“और ये जो रघु अभी आया था तुम्हें मेरे खिलाफ सचेत करने ?”
“उसे मैंने पहली बार देखा था। वो आश्रम आया और कोड वर्ड के सहारे मुझसे मिला और मुझे तुम्हारे खिलाफ सचेत किया।”
“हम्म...ये लोग ठीक किसी परिवार की तरह तुम्हारी मदद कर रहे हैं। पर आखिर क्यों ?”
“क्यों ? तुम्हें बुरा लग रहा है ?”
“नहीं बुरा लगने वाली बात नहीं है। मैं समझना चाहता हूँ। आहूजा मर चुका है उसके बाद भी... आखिर ऐसी क्या दोस्ती थी उनके बीच जो उसके मरने के बाद सभी भीष्म प्रतिज्ञा की तरह उसका पालन कर रहे हैं।”
“क्या इसी से ये साबित नहीं होता कि वो अच्छे इंसान हैं?”
“बिलकुल हो सकते हैं। पर अगर वो सीनो के प्लान के बारे में कुछ जानते हैं तो हमारा जानना भी बेहद ज़रूरी है। देश खतरे में हैं। उनका प्लान क्या है और उनका अगला कदम क्या होगा ये जानना बहुत ज़रूरी है।”
“राईट!”
“क्या तुम किसी तरह उस रघु को नहीं बुला सकतीं ?”
“मैंने तुम्हें उनकी कार्य प्रणाली बताई तो है। मेरे पास कोई जरिया नहीं है उनके संपर्क करने का।”
“पर जब भी तुम पर कोई विपत्ति आती है वो आते हैं। इस बार निक ने तुम पर हमला किया तो वो क्यों नहीं आये ?”
आरती सोच में पड़ गई, फिर बोली, “वो जगह भी एकदम सुनसान थी – हर कोई वहां आसानी से नहीं पहुँच सकता। या अगर नज़र रख भी रहे होंगे तो उन्होंने तुम्हें मेरे साथ देख लिया होगा।”
राज उसे ध्यान से देखते हुए बोला, “शायद! हम्म...तुम ठीक कह रही हो। भले ही मुझे पहचान न पाये हों पर समझ गये होंगे...”
आरती ने सहमति में सर हिलाया फिर मुस्कराकर बोली, “और सच तो है कि अब तुम मेरे आस-पास हो तो मुझे और किसी की मदद की ज़रूरत भी महसूस नहीं होती।”
राज धीरे-से हंसा। आरती उसे स्नेह भरी नज़रों से देख रही थी। राज को अज़ीब-सा लगा। वह गंभीर मुद्रा में बोला, “मुझे लग रहा है अब निक और सुज़ुकी के द्वारा ही कुछ पता चलेगा।”
“सही सोच रहे हो। पर उन पर हाथ डालना मुश्किल काम होगा। वैसा करने से तुम लाइम लाइट में नहीं आ जाओगे ? वैसे भी फिलहाल तुम छिप कर काम कर रहे हो।”
“सही कह रही हो। पर जासूसों को अच्छी-खासी ट्रेनिंग होती है कि कैसे गुप्त रहकर अपना मिशन पूरा किया जाये।”
“ये तुम्हारा असली चेहरा है या... ?” आरती उसे ध्यान से देखते हुए बोली।
“कुछ नकली आप भी हैं और कुछ नकली हम भी।” राज शायराना अंदाज़ में बोला।
“वैरी फनी! चलो अब ब्रेकफास्ट का टाइम हो गया है।”
कहकर आरती ने पानी का पाइप एक तरफ रखा और फिर दोनों आश्रम की तरफ बढ़ गए।
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