फोरेस्ट आफिसर

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rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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आधी रात के वाद केसरी बड़ी खामोशी के साथ चहार दीवारी पर करके मेयर की कोठी के कम्पाऊन्ड में कूद गया। पहले भी कई बार आ चुकने के कारण कोठी का नक्शा अच्छी तरह उसके दिमाग में छाया हुआ था। अन्धेरी झाड़ियों में अपने आपको छुपाता हुआ वह कोठी की इमारत के निकट पहुंचा।

वह जानता था कि मेयर का बैठरूम दूसरी मंजिल पर है। वहां तक पहंचने के लिए उसे पाईप का सहारा लेना पड़ेगा। लेकिन तभी उसकी नजर निचली मंजिल की एक खिड़की पर पड़ी। लगा खिड़की पूरी तरह बन्द नहीं है। निकट जाकर देखा।

वाकई खिड़की का एक दरवाजा खला हुआ था। भाग्य साथ सगा। खामोशी के साथ वह खिड़की के रास्ते भीतर प्रविष्ट हो गया। फिर इस बात की सावधानी बरतता हुआ कि कहीं अन्धेरे में किसी चीज से टकरा न बैठे, वह सीढ़ियों की ओर बढ़ चला।

बिना कोई आवाज किए विल्ली की सी खामोशी के साथ वह सीढ़ियां चढ़कर ऊपर पहुंच गया। मेयर के बैडरून का दरवाजा धकेलकर खोलने का प्रयत्न किया उसने। तब तो दरवाजा नहीं खुला लेकिन थोड़ा हैंडिल घुमा कर उसने जोर लगाया तो वह खुल गया। बड़े धीरे से बहु भीतर सरक गया। इतनी आसानी से अपने शिकार तक पहुंच जाएगा यह तो उसने सोचा भी नहीं था।

छोटे से नीले रंग के नाईट बल्ब की रोशनी में उसने मेयर को बड़े आराम से अपने पलंग पर लेटा हुआ पाया।

जेब से पिस्तौल निकाल कर उसकी ओर तान दी। इच्छा हुई अभी शूट कर दे। लेकिन नहीं। मरने से पहने कम से कम उसे यह तो मालूम हो ही जाना चाहिए कि वह क्यों मर रहा है और उसे कौन मार रहा है।
आगे बढ़कर उसने बुरी तरह झिंझोड़ दिया मेयर को।

बौखला कर झट-पट उठते हुए मेयर ने निकट रखे टेबिल लैम्प का स्विच ऑन कर दिया और उसकी रोशनी में जो उसका चेहरा और उस पर छाए खतरनाक भावों को देखा तो वह बोला-'केसरी तु तु तुम?'

'हां मैं।

'तुम यहां क्या कर रहे हो?'

'जो आज दिन में नही कर सका।' केसरी उसके चेहरे की
ओर अपनी पिस्तौल तानता हुआ बोला-'क्योंकि ईश्वर से तो तेरा कभी दूर का भी वास्ता नहीं रहा मेयर। इसलिए अपने शैतान क याद कर ले क्योंकि अब तुझे मेरे हाथों से दुनिया की कोई ताकत नहीं बचा सकता।'
पिस्तौल को अपनी ओर तना देखकर मेयर की हवा खराब हो गयी थी। उसकी सारी चेतना, सारी बुद्धि केसरी के हाथ में दबी पिस्तौल पर केन्द्रित हो गई थी जिससे निकली कोई भी गोली उसकी मौत का कारण बन सकती थी।
वह उसे रोकने के लिए विधियाया-'केसरी'।'

लेकिन केसरी पर उसकी घिघियाहट का कोई असर नहीं हुआ। वह पिस्तौल का ट्रिगर दबाने ही जा रहा था कि तभी उसे लगा जैसे उसका सिर घूम गया हो। किसी ने पीछे से उसके सिर पर चोट की थी। उस अज्ञात आक्रमण का मुकाबला करने के लिए वह एकदम घूम गया।
तभी सिर पर एक और चोट हुई और वह अपने कदमों पर खड़ा न रह सका।
लेकिन बेहोश होकर नीचे गिरने से पहले उसने अपने आक्रमणकारी को पहचान लिया था कि वह कोई और नहीं बल्कि फरार मुजरिम जगतार ही था।
इतना जानने के बाद उसे कोई होश नहीं रहा।

मेयर को इस बात का पता भी न लग सका कि किसने कहां से आकर उसे निश्चित मृत्यु के भयानक मुख से बचा लिया। उसकी समस्त चेतना इस तरह केन्द्रीभूत हो गई थी कि कुछ देर के लिए उसे सब कुछ दिखाई देना बन्द हो गया था।
दिखाई दे रही थी तो सिर्फ केसरी के हाथ में दबी हुई पिस्तौल।
मौत के भय से पथरा सी गई आंखों को कुछ अजीब सी हलचल का अहसास तो हुआ किन्तु वह न समझ 'पाया कि यह सब कैसे हो गया।
जब कुछ देखने समझने योग्य हुआ तो अपने तेजी से धड़कते दिल की रफ्तार कम करने के लिए छाती को सहलाते हुए
एक नजर बेहोक्ष पड़े केसरी की ओर देखा और अपने सामने खड़े जगतार से बोला-'सही टाईम पर पहुंच कर बचा लिया तुमने मुझे। लेकिन तुम हो कौन भाई?'
'मैं एक चोर हूं।' जगतार ने बड़े आराम से जवाब दिया।
'चोरी करने के इरादे से आए थे?' 'जाहिर है कि कोई चोर किसी दूसरे के मकान में चोरी करने
के इरादे से ही प्रविष्ट होगा।' 'अब तुम्हें चोरी करने की जरूरत नहीं।' मेयर पलंग से उठता हुआ बोला-'जितना पैसा चाहोगे मैं तुम्हें दे दूंगा। बैठो, आराम से बैठा अब तुम।' जगतार बैडरूम में ही रखी एक कीमती गद्देदार कुर्सी पर बैठ गया।

मेयर एक कोने में रखे फिन की ओर बढ़ता हुआ बोला-'बीयर पियोगे?'
'कोई इससे सख्त चीज नहीं है?'
'व्हिस्की है वह चलेगी?'
'हां तुम्हारा साथ देने के लिए व्हिस्की चला लेंगे।' मेयर ने गिलास बोनल एक मेज पर रखी और फिर बर्फ की ट्रे लाकर दोनों गिलासों में व्हिस्की डाली।
गिलास जगतार से टकराता हुआ वह बोला-'अपने चोर दोस्त की सेहत के लिए।
फिर कूछ बूंट भरने के बाद वह बेहोश केसरी की ओर देखता हुआ बोला-'लेकिन यह समझ में नही आया कि यह यही आ कैसे गया?'
'जब मुझे आने में कोई दिक्कत नहीं हुई तो इसे ही क्या दिक्कत दोती।' जगतार रोना-'इमारत का पहरा देने वाले जो
तुम्हारे शेर जैसे दो खतरनाक बुलडाग थे वे मेरा खिलाया गोश्त खाकर बेहोश पड़े हैं। चोरी करके लौट रहा था तो जो रास्ता मैंने अपने लिए बनाया था उससे इसे अन्दर आते हुए देखा। पहले तो समझा कि यह कोई अपना ही भाई-बन्द है
और चोरी के इरादे से अन्दर घुसा है। लेकिन जब इसकी हरकतें कुछ अजीब-सी लगी तो उत्सुकतावश इसके पीछे लग गया। जब मैंने देखा कि यह तो तम्हें जान से ही मारने वाला है तो फिर मेरे लिए अपने-आपकाँ छिपाए रखना बहुत मुश्किल हो गया।'

'भगवान जो करता है अच्छा ही करता है।' मेयर अपना गिलास खाली करता हुआ बोला-'मैं तो कहूंगा कि भगवान ने, आज मेरी रक्षा करने के लिए ही तुम्हें चोरी करने की प्रेरणा दो है। लाओ गिलास आगे लाओ।' जगतार अपना गिलास उसकी ओर बढ़ाता हुआ बोला-'नहीं, भगवान ने मुझे कोई प्रेरणा-प्रेरणा नहीं दी। वह तो।'

'अरे तुम नहीं समझोगे उस अन्तर्यामी के तरीकों को।' मेयर गिलास में डालकर उसकी ओर बढ़ाता हुआ बोला-'सब अपने-अपने कर्मों के मुताबिक दुःख-सुख उठाने के लिए उसी के द्वारा प्रेरित होते हैं। यह मूर्ख भी अपने पुराने पापों का फल भोगने के लिए उसी की माया से प्रेरित हुआ और तुम्हारे पुण्य फलों का लाभ देने के लिए उसी ने तुम्हें मेरे यहां चोरी करने की प्रेरणा दी।'
'मुझे नहीं मालूम कि आपके उस भगवान ने किमको क्या दिया।' जगतार बोला-'लेकिन मुझे अपना मालम है कि अपके यहां चोरी करने की प्रेरणा मुझे जगन सेठ ने दी थी।'
उसकी वात सुनकर ह्विस्की पीते हुए मेयर को ऐसा लगा जैसे उसे किन्हीं अज्ञात हाथों ने बुरी तरह झकझोर दिया हो। हलक से नीचे को जाती हुई ह्विस्की झटका खाकर नाक के रास्ते से बाहर निकल आई। गिलास हाथ से छूटकर निकल गया।
एक ही झटके में सारा अध्यात्म भूल गया वह।
'तु"तुम"म्हें जगन सेठ ने भेजा है चोरी करने के लिए?' बह एकदम हकलाए से स्वर में बोला।

'हां।' जगतार ने गरदन हिलाई और ह्विस्की का चूंट भरा।
'क्या चराने आए हो?'
'चुराने आया नहीं हूं बल्कि अब तो चुराकर जा रहा हूं।'
'यानि ।'
'शायद तुम समझ गए होगे।' जगतार बोला-'तुम्हारी सेफ में रखे कुछ कागजात की सख्त बरूरत थी जगन सेठे को। बस
वही ले जा रहा हूं।' 'लेकिन तुमने वह सेफ कैसे खोल ली?' भ्रमित-सा मेयर बोला-'बहु दुनिया की सबसे मजबूत ।' 'दुनिया की सबसे मजबूत चीजें तोड़ने के लिए ही दुनिया में सबसे मजबूत आदमी पैदा होते हैं।'
'नहीं में तुम्हें वह कागजात नहीं ले जाने दूंगा।'
कहने के साथ ही मेयर बेहोश केशरी की गिरी हुई पिस्तौल उठाने के लिए झपटा। लेकिन तभी जगतार के पैर की ठोकर उसकी पसलियों में पड़ी और वह उछलकर पलंग पर जा गिरा।
rajan
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उसने पलंग पर पड़े पड़े ही विस्फारित नेत्रों से अपने निकट
आ गए जगतार को देखा जो उस खतरनाक ढंग से घूरता हैजा क रहा था-'ऐसा दुनिया मैं कोई माई का लाल आज तक पैदा नहीं हुआ जो जगतार को कहीं आने-जाने से रोक सके।'

'तो तुम जगतार हो-वह फरार मुजरिम।'
'अब पहचान लिया ना तुमने मुझे अच्छी तरह से?' 'देखो जगतार वह कागजात मुझे दे दो।' मेयर ने एकदम
अपना अन्दाज बदलते हुए उसे फुमलाने के से ढंग में कहा-'बदले में तुम जितना चाहोगे मैं पैसा देने को तैयार हूं। लाख डेढ़ लाख जो कहो।' "मुंह मांगा पैसा तो जगन सेठ भी देने को तैयार है।'
'जो कुछ भी जगन सेठ देगा मैं उससे पच्चीस हजार फालतू देने को तैयार हूं।'
'यद हुई ना कुछ बाद।' जगतार धीरे से मुस्कराया-'अब तुम दोनो में से इन कागजातों की जो सही कीमत देगा यह इन्हें ले लेगा।'
'यानि तुम इन कागबातों को नीलाम करोगे?'
'जब दोनों पार्टियां एफ-दूसरे से ज्यादा बढ़-चढ़कर बोली लगाने के लिए तैयार हैं तो ज्यादा-से-ज्यादा पैसा हासिल करने में बुराई क्या है।' जगतार बोला-'सिर्फ एक बुराई है।'
'वह क्या?'
'इस मक्करबाजी में जगन सेठ तो निश्चित रूप से तबाह हो जाएगा लेकिन बच तुम भी नही सकोगे। ज्यादा सम्भावना इसी बात की है कि एक-दूसरे के चक्कर में तुम दोनों खत्म हो जाओगे ओर मुझे कुछ लाख का पायदा हो जाएगा।'

'आखिर तुम कहना क्या चाहते हो।'
'वही बतान जा रहा हूं।' जगतार बोना-'जरा गिलास में ह्विस्की डालो।' मेयर उसके गिलास में ह्विस्की डालने लगा।
ह्विस्की के बूंट भरता हुआ जगतार बोला-'तुम जगन सेठ से
पच्चीस हजार फालतू देन को तैयार हो, जगन सेठ तुमसे पचास हजार देने को तैयार हो जाएगा। इन कागजातों की कीमत बढ़ती जाएगी और उसके साथ ही तम लोगों की आपसी दुश्मनी भी। मैं तो शायद इन कागजों के बदले में कई लाख कमाकर चला जाऊं। लेकिन तुम दोनों की बढ़ी हुई दुश्मनी एक-दूसरे को पूरी तरह बरबाद कर देगी। मैं गलत तो नहीं कह रहा?'
'कह तो तुम ठीक रहे हो लेकिन इसके अलावा कोई चारा भी
तो नही है।'
'है एक चारा।'
मेयर ने उसकी ओर प्रश्नपूर्ण दृष्टि से देखा। 'अगर आपसी झगड़ों को भूलाकर अगर तुम दोनों मिल जाओ।'
'नहीं।' उसकी बात पूरी होने से पहले ही मेयर झटके के साथ बोला-'यह असम्भव है।'
'पहले मेरी बात सुन लो।' जगतार बोला-'अगर तुम दोनों का आपस में मिलना असम्भव है तो एक काम तो यह हो सकना है कि मैं अभी तुम्हें गोली मार दूं। तब बच जाएगा जगन सेठ
और जगन सेठ के साथ में अपना चक्कर चला लूं। वह चककर पहले से ही चला हुआ है। लिहाजा आसान तरीका यही है कि तुम्हें रास्ते से हटा दिया जाए।'
'जगन सेठ कमी वफादार नहीं हो सकता तुम्हारे साथ?' मेयर
अपने सूखते होंठों पर जबान फेरता हुआ बोला।
'तब दूसरा तरीका यही है कि मैं तुमरे साथ मिल जाऊं और हम दोनों जगन सेठ का सफाया कर दे।'
'यही बात तो मैं तुम्हें समझाना चाहता हूं।' मेयर उत्साहित
स्वर में बोला।
'उसने पहले मुझे यह बता दो कि तुम्हारी और जगन सेठ की खोपड़ी आपस में मिल जाए तब इस शहर से ज्यादा फायदा उठाया जा सकता है या नहीं?'
'बिल्कुल उठाया जा सकता है और पहले मिलकर फायदा उठाया है, वह तो जगन सेठ जरा अपनी तड़ी में ।'
'जो हो चुका उसे भूल जाओ। अगर हम सब मिल जाएं तो फायदा ज्यादा उठा सकते हैं या नहीं?'
'मैं तुम्हार बात मान भी लूं तो क्या जगन सेठ मिलने की तैयार हो जाएगा?'
'तुम अगर मिलने को तैयार हो तो जगन सेठ को मिलने के लिए मैं मजबूर कर दूंगा।'
'मैं तो तैयार हूं। लेकिन ।'
'अब लेकिन क्या?'
'कहीं कोई गड़बड़ न हो।'
'इसे देख रहे हो?' जगतार ने बेहोश केसरी की ओर संकेत करते हुए कहा-'अगर ऐन वक्त पर मैंने इसे न रोक लिया होता तो इतनी बड़ी गड़बड़ हो गई होती कि तुम कुछु कहने-सुनने की हालत में न होते इस वक्त। तुम्हें मौत के मुंह से निकाल लाया। क्या यह मेरी सच्चाई का सबूत नहीं है।' मेयर ने कुछ देर उसकी ओर देखा और सोचा। फिर अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाता हुआ बोला-'मुझे तुम पर पूरा भरोसा है और जैसा तुम कहोगे मैं करने को तैयार हूं।'
जगतार ने उससे हाथ नहीं मिलाया।
बोला-'पहले तुम्हारे और जगन सेठ के हाथ आपस में मिलवा दूं फिर तुम लोगों से हाथ मिलाऊंगा मैं। हां चलने में पहले एक बार फिर से गिलास जरूर टकराऊंगा तुम्हारे साथ।'
मेयर ने उससे गिलास टकराते हुए कहा-'उन कागजातों के साथ तुम्हें कुछ फोटो ग्राक्स भी मिले होगे।' 'साधना के?'
'उसमें मेरा कोई दोष नहीं हई वे सब जगन सेठ की
कारस्तानी...।'
'उसे भूल जाओ।' जगतार ने कहा-'बड़ी बातों के आगे ऐसी छोटी-माटी बातें नहीं सोचनी चाहिए। फोटो ग्राफ्स और नैगेटिव के लिफाफे भी अपने साथ लिए जा रहा हूं। आराम से बैठकर देखूगा।'

मेयर के सिर से जैसे बोझ-सा हटा हो। वह सोच रहा था कि रहीं उन्हें उसके सेफ में पाकर वह उसकी ही कारस्तानी न समझे।
अपना खाली गिलास मेज पर रखता हुआ बोला जगतार-'अच्छा तो में चलता हूं। कल सुबह नौ बजे मेरे फोन का इन्तजार करना।'
'लेकिन इसका क्या करें?' मेयर ने बेहोश केसरी की ओर संकेत करते हुए पूछा।
'अगर मेरा एक हाथ घायल न होता तो इसे ऐसे ही उठाकर कहीं डाल देता। लेकिन अब तो होश में ही लाना पड़ेगा।'
कहते हुए जगतार ने बर्फ की ट्रे का ठण्डा पानी बेहोश केसरी के मुह पर डाल दिया।
केसरी एकदम चौंककर उठा तो जगतार बोला-'उठिए साले साहब यह कोई सराय या रेलवे स्टेशन नहीं है जहां आराम से पड़े हुए हैं। जाइए धर जाकर आराम कीजिए।'

'काम हो गया?'
मेयर की कोठी से कुछ दूर हटकर अंधेरे में खड़े जगन सेठ ने उसे देखते ही बेताबी के साथ पूछा। उसके पीछे के और भो गहरे अंधेरे में जगन सेठ की कार और फारेस्ट आफिसर की जीप खड़ी हुई थी, जिसकी पिछली सीट पर लेटा भैरों उनके पहुंचने की आहट सुनते ही कूदकर बाहर आ गया था।
जगतार ने जगन सेठ की बात का कोई जवाव न देकर केसरी को जीप की ओर धकेलते हुए कहा-'भैरोसिंह जरा इस मिट्टी के शेर को इसके बंगले तक पहुंचा देना।'
'आइए फारेस्ट आफिसर साहब।' भैरों ने केसरी को जीप में
बैठाया और वहां से चल दिया।
'वो कागजात कहां हैं?' जगन सेठ ने बेताबी के साथ पूछा।
'सारा किस्सा बताता हूं पहले यहां से खिसक तो लो।'
जगतार ने घावों की पट्टियां छुपाने के लिए ओढ़ी गई चादर को ठीक करते हुए कहा। ड्राइवर नहीं था। इसलिए चालक की सीट पर जगन सेठ को खुद ही बैठना पड़ा। जगतार उसके साथ ही अगली सीट पर बैठ कर औजारों का बरसा उसने पिछली सीट पर पटक दिया।
'तुमने सच ही कहा था जगन सेठ।' जब कार वहां से चल दी
तो जगतार बोला -'वह सेफ वाकई बहुत सख्त है।'
'वो कागजात लाए या नही?'

'जब सेफ ही नही खुली तो कागजात कहां से ले आता।'
जगतार की बात सुनते ही जगन सेठ ने झटके के साय गाड़ी रोकी और चौंककर उसकी ओर देखा।
'गाड़ी तो चलाते रही या सड़क पर ही सवेरा करने का इरादा है?'
'तुम तो बड़ी डींग मार रहे थे कि दुनिया की कोई सैफ ऐसी नहीं जो तुम्हारा हाथ लगते ही न खुल जाए। यह न हो जाए वो ना हो जाए मगर वक्त पर हुआ कुछ नहीं टांय-टांय फिस्स...।'
'डीम तो गलन नहीं मार रहा था जगन सेठ।' जगतार एक
लम्बी सांस के साथ वोला-'लेकिन उस वक्त यह नहीं मालूम था कि ऐन वक्त पर मह साला तूसरा हाथ साथ देने से बिल्कुल ही इन्कार कर देगा।'
जगन सेठ को जैसे ही उसकी धायलावस्था का ध्यान आया तो वह कुछ ढीला पड़ा। निराशापूर्ण ढंग से सिर हिलाता इआ बोला-'लगता है मेरी
कुछ किस्मत ही खराब है। जब तुम अन्दर गए थे तो गोचा था कि जब तुम बाहर आओगे तो कागजात मेरे हाथों में होगे
और मेयर के मरने की खार मेरे कानों में।'
'जब सेफ नहीं खुली तो मुझे सारी योजना बदलनी पड़ी। यह फारेस्ट आफिसर तो मेरे बनाए हुए रास्ते पर चलता हुआ बड़े आराम से पहुंच गया था उसके बैडरूम में उसे जान से मारने के लिए। वह नो शुक्र समझो कि ऐन वक्त पर मैं वहां पहुंच गया और इसे रोकने के लिए पीछे से इसके सिर पर वार किया।
'मर जाने देते साले को तुम्हें रोकने की क्या जरूरत थी।'
'उस साले को तो मर जाने देता मगर मेरा होने वाला साला विना मतलब के कत्ल का अपराधी बन जाता तो उससे क्या
फायदा होता। अब तुम जरा एक बढ़िया-सी सिगरेट पिलवाओ तो फिर तुम्हें एक ऐसी बढ़िया खबर सुनाता हूं कि फड़क उठोगे।'
जगन सेठ ने अपना कीमती सिगरेटकेस और लाइटर निकालकर उसे दे दिया। उसने एक हाथ से सिगरेटकेस खोलकर सिगरेट निकाली और उसे होंठों में लगाता हुधा बोला-'अब जरा इसे जला तो दो।'
जगन सेठ ने उपेक्षा से उसकी सिगरेट जला दी।
'मेरी नाकामयाबी पर नाराज हो तुम।' जगतार सिगरेट का धुआं उड़ाता हुआ बोला-'लेकिन जब कामयाबी के बारे में सुनोगे तो खुशी के मरे उछल पड़ोगे।'
'अब कौन-सी कामयाबी रह गई है तम्हारी?' भरे हुए-से स्वर में जगन सेठ ने कहा-'मेरी गरदन तो उस साले मेयर के चंगुल में ही फंसी पड़ी है।'
'कल मेयर कागजातों के साथ आएगा और हाथ जोड़कर तुमसे समझौता करने की विनती करेगा। कहो कैसी रही?' 'अव मुझे तुम्हारी किसी बात का कोई विश्वास नहीं हो सकता।'
'गाड़ी रोको जगन सेठ।'
जगतार ने ऐसे सख्त से स्वर में कहा कि जगन सेठ ने एकदम गाड़ी रोक दी। जगतार ने झटके से दरवाजा खोला और नीचे उतरकर बोला-'अब बाकी की वातें तभी होंगी जब तुम्हें मेरी बातों पर विश्वास होने लगेगा। कल सुबह नौ बजे फोन का इन्तजार करना।'
इसते पटले कि जयन सेठ कुछ कह पाता जगतार बाहर के
अंधेरे में विलीन हो चुका था।
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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'मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा कि आखिर तुम कौनसा
खेल खेलने जा रहे हो जयतार?'
अगली सुबह नौ बज कर पांच मिनट पर जगतार का फोन आया तो जगन सेठ ने कहा। हालांकि नौ बजे मे पहले ही वह टेलीफोन के पास जम कर बैठ मया था और जैसे ही घड़ी की सुईयों ने नौ बजाए तो उसकी नजरें एकदम फोन की ओर इस तरह धम गई जैसे वह बज उठा हो।
लेकिन अगले ही क्षय उसे आभास हो गया कि मात्र उसका वहम था। फोन की घंटी नहीं बजी थी। वह पहले की तरह ही
खामोश था। फिर एक-एक मिनट बीतना भी उसे भारी सा लगने लगा। तरह-तरह की आशंका मन में उठकर त्रस्त करने लगीं।
जगतार सेफ खोलकर कागजात लाने में असफल रहा था।
मेयर को पता लग गया होगा कि यह काम जगन सेठ का है।
बह कहों उन कागजात का उपयोग करके उसे तबाह करने
का ही निश्चय न कर ले।
रात की घटना से वह कुछ क्रुद्ध हो उठा हो तो कोई ताज्जुब नहीं। उसका सारा शरीर पसीने मे भीगना शुरू हो गया था। अनिष्ट की आशंका उसे धबड़ाए दे रही थीं। वह जानता था कि जब तक कागजात मेयर के कब्जे में हैं वह चैन की नींद नहीं सो सकता। रात कागजात हामिल करने का जगतार का प्रयत्न असफल रहा। और अब उन्हें फिर से हासिल करने की कोई उम्मीद उसे दिखाई नहीं दे रही थी।

मेयर वैसे ही बड़ा काईया है और रात की घटना से तो बहु
और भी अधिक सावधान और सतर्क हो गया हो। सम्भव है अब तक काजगात उसने ऐमी जगह पहुंचा दिए हों जहां लाख सिर पटकने के बावजूद भी जगन सेठ के फरिश्ते तक न पहुंच सकें।
उसके मानस क्षितिज पर अनेकानेक बुरे विचार काले-काले भयानक बादलों की तरह घुमड़ रहे थे।
जगतार ने नौ बजे कल करने को कहा था। लेकिन नौ तो वज चुके। फिर वह फोन क्यों नहीं कर रहा?
कहीं जगतार भी उसे धता बता कर तो...
तभी कोन की घंटी बज उठी और उसने झपट कर फोन उठा लिया। उसकी आवाज सुनकर जहां आश्वस्त सा हुआ वह,
वहीं उसने बड़े ही अनमने ढंग से उपरोक्त बात कही।
'मैं वह खेल खेलने जा रहा हूं जगन सेठ कि जिससे उस
सत्यानाश को रोका जा सके जो तुम और मेयर करने जा रहे हो।' फोन पर जगतार की आवाज आई।
'क्या मतलब?'
'तुम और मेयर आपसी दुश्मनी में सब कुछ नष्ट कर देने पर तुले हो। जबकि मैं चाहता हूं कि आपसी दुश्मनी को भुला कर अगर तुम दोनों मिल जाओ तो हम सब मिलकर इस शहर और इसके जंगलों से इतनी अकूत दौलत कमा सकते हैं कि हमारी आने वाली पीढ़ियां आराम से खा सकें।'
'तो क्या मेयर वह कागजात देने के लिए तैयार है?'
'बिल्कुल तैयार है। बस तुम्हें उन्हें हासिल करने के लिए यहां तक आना होगा।'
'लेकिन मैं मेयर की कोठी पर नहीं आऊंगा।' जगन सेट बोला-'अगर वह साफ दिल से अपनी भलमनसाहत का सबूत देना चाहता है तो उसे कागजात लेकर मेरे पास आना होगा।'
'तुम लोगों को यह बेमतलब की हठ भी तुम लोगों की दुश्मनी बनी हुई है। तुम मेयर के यहां नहीं आना चाहते और मयर तुम्हारे यहां नहीं आना चाहता तो फिर बात बने तो बने कैसे?'
'देखो।'
'मुझे तुम लोगों की इस हठधर्मी का पहले ही आभास था इसलिए मैंने ऐसा इन्तजाम कर लिया है कि हम लोग किसी ऐसी जगह पर मिलें जो न तुम्हारी हो न मेयर की हो।'
'ऐसी जगह का इन्तजाम कर लियो है तुमने?'
'जी हां।' जगतार की आवाज आई-कृष्णा होटल का रूम नम्बर सोलह। वहां पहुंचने में तो तुम्हें कोई एतराज नही है?'
'वहां पहुंचने में भला क्या एतराज हो सकता है। लेकिन मेयर
तो पदुंब रहा है वहा?'
'समझिए कि बस पहुंचने वाला है और तुम भी वक्त खराब करने की बजाए फौरन वहां पहुंच जाओ। बाकी बातें वही आने पर हो जाएंगी। और हां उस पुलिस कमिश्नर जयकर को साथ लेते आईएगा।'

उसे तो में ले आऊंगा लेकिन मेरे साथ भैरों भी होगा।' 'यानि इस वक्त भी किसी बाडीगार्ड की जरुरत है?' जगतार बोला-'खैर ले आईएगा उसे भी। लेकिन बिना किसी हथियार के। क्योंकि मेयर यहां मेरे भरोसे पर बिल्कुल अकेला आ रहा है। बातचीत के दौरान अगर उसके साथ कोई गड़बड़ी हुई तो मुझे फिर अपना दुश्मन ही समझिएगा।'

जिस समय जगन सेठ कृष्णा होटल के रूम नम्बर सोलह में पुलिस कमिश्नर जयकर और भैरों के साथ पहुंचा तो वहां मेयर पहले से ही मौजद था। उन तीनों को देखकर उसने अजीब ढंग से मुंह बिसूरा और दूसरी ओर देखने लगा। जगतार ने उठ कर उनका स्वागत किया। उन लोगों ने बैठने के लिए पहले से ही इन्तजाम इत्गदि किया हुआ था। जा सब लोग बैठ गए तो जगतार बोला-'मेरा ख्याल है कि हम लोगों को इधर-उधर की बातचीत न करके सीधे ही अपने मकसद पर आ जाना चाहिए। जैसा कि आप मब लोग जानते होंगे कि हम लोग यहां इस लिए एकत्रित हुए हैं कि जो भी पिछली गलतफहमियां हैं उन्हें टूर करके हम नये सिरे से एक ग्रुप बनाएं और मिलकर फायदे का काम करें।' 'जद तक मेरे हाथ म वे कागजात नहीं पहुंच जाते तव तक मैं कोई बात करने को तैयार नही हूं।' जगन सठन अपनी स्थिति को थोड़ा मजबूत समझते हुए कहा।
हालांकि उसकी समझ में कोई बात पूरी तरह मे नहीं आ रही थी अभी, लेकिन मेयर का वहां आ जाना ही उसके लिए इस बात का सबमे बड़ा सबूत था कि वह समझौता करने के लिए बेताब है। ऐसे में खुद कुछ अकड़ जाने में उसे कोई बुराई नजर नहीं आई।
मेयर ने जगमार की ओर देखा। उसे मालूम था कि कागजात उसके पास नहीं हैं। अगर जगन सेठ कागजात मांग रहा है तो जाहिर है कि जगतार ने कागजात उसे नहीं दिए हैं। इसका मतलब है कि जगतार वाकई पूरी ईमानदारी के साथ समझौता करा देना चाहता है।
जगतार ने मेयर को आलों ही आंखों से आश्वस्त करते हुए

जगन सेठ ने हा-'कागजात तुम्हें मिल जाएगे जगन सेठ। वो ही देने के लिए तो मेयर साहब यहा आए हैं। लेकिन इनकी क्या गारन्टी है कि कागजात आपको मिलने के बाद समझौता हो ही जाएगा?'
'मैं जबान देता हूं।' 'तुम्हारी जवान पर और मैं भरोमा करूंगा?' मेयर एकदम आवेश में आकर बोला-'यह बेवकूफी अब मै दोबारा करने वाला नहीं हूं जगन सेठ। तुम्हारी जबान पर भरोसा करके मैं देख चुका हूं। तुम जैसा थूक कर चाटने वाला आदमी मैंने दूसरा नहीं देखा।' 'तू आस्तीन का सांप मुझे थूक के चाटने वाला आदमी कह रहा है।' जगन सेठ भी अपनी बांहें फैलाता हुआ बोला-'मैंने तुझे चुनाव लड़वाया। पानी की तरह पैसा बहाया तुझे मेयर बनाने के लिए। लेकिन बदले में तूने मुझे दिया क्या। अहसान फरामोश, कृतघ्न आदमी। कुर्सी पर बैठते ही आंखें बदल गई।'
'झूठ मत बोलो जगन सेठ।' मेयर ने भी तुर्की बतुर्की जवाब दिया-'जो कुछ भी तुमने मेरे साथ किया था उसका भरपूर बदला चुकाया था मैंने। लेकिन तुमने मुझे बराबर का दरजा देने के लिए तैयार नहीं थे। तुम मुझे अपने हाथ की कठपुतली बना लेना चाहते थे। तुम चाहते थे कि मैं तुम्हारे इशारे पर नाचूं। तुम बैठने को कहो तो बैठ जाऊं, तुम उठने को कहो तो
उठ खड़ा होऊं। तुम जब चाहे मेरा कान पकड़ कर जिस तरफ मुंह मोड़ दो और मैं कुछ न बोलूं। तुमने मुझे कभी अपना साथी नहीं समझा। तुम मुझे अपना ऐसा कुत्ता बना लेना चाहते थे जो तुम्हारे द्वारा चसकर फेंकी गई हड्डी को चुपचाप खाता रहे और बदले में तुम्हारे तलवे चाटता हुआ अपनी दुम हिलाता रहे।' क्रोधावेश में मेयर कहता गया-'लेकिन मैं भी आदमी हूं। मेरा
भी कुछ आत्म सम्मान है। जब मैंने तुम्हारा कुत्ता बनने से इन्कार कर दिया तो तुमने मुझे दूध में से मक्खी की तरह निकाल बाहर फेंका। कालिया के साथ मिलकर तुम जंगल
की दौलत लूटते रहे और तस्करी करवा कर अपना घर भरते रहे। इस जयकर की मदद से शहर में सट्टे और जुए का कारोबार करते रहे। अवैध शराब के अड्डे और वेश्यालय चलाते रहे और दोनों हाथों है सोना-चांदी बटोरते रहे। लेकिन पुराने दिनों की दोस्ती का लिहाज करके मैं सब कुछ देखता रहा और चुप रहा। लेकिन तुमने मेरी शराफत को हमेशा मेरी कमजोरी ही समझने की भूल की। अब चुनाव सिर पर आए तो उस साले सम्पतराय मुनीम को सामने ले आए ताकि मुझे उखाड़कर नया मेयर बना दिया जाए जो तुम्हारे तलवे चाटे
और अपनी दुम हिलाए।'
'किसी क्ने भी मेयर बनाने की और मेयर की कुर्सी से हटाने की ताकत है मेरे हाथ में।' जगन सेठ ने जोर से अपनी मुट्ठी बन्द करते हुए कहा-'और तुम मेरी इस ताकत को समझने के बावजूद भी उस नये फारेस्ट आफिसर की खातिर मुझसे उलझने को तैयार हो गए।
'तुमने जब उस सम्पतराय मुनीम को अपना नया उम्मीदवार घोषित कर दिया तो मुझे भी तो अपने बचाव में कुछ करना ही था। सारी कमाई तुम हड़प रहे ये और मैं ।'
'सारी कमाई मैं हड़प रहा था और तुम बड़े साधु धर्मात्मा बने बैठे थे।' जगन सेठ ने जोरदार शब्दो में उसकी बात काटते हुए कहा-'न जाने कितने जाली परमिट और कोटे दे-देकर पैसे बटोरते रहे तुम। अस्पतालों और स्कूलों के नाम पर लाखों का चन्दा हजम करके डकार भी नहीं ली तुमने। समाज सेविकाओं की आड़ में कालगर्ल्स का धन्धा करवाते रहे तुम। किस काम की जानकारी नहीं है मुझे तुम्हारे। लेकिन मैंने कभी तुम्हारे किसी काम में टांग अड़ाने की कोशिश नहीं की। सिर्फ इसलिए क्योंकि कभी अच्छे दोस्त रह चुके थे हम दोनों। इसी जयकर ने मुझसे वाई बार कहा कि तुम्हारा पुलिंदा खीच कर रख दे। लेकिन मैंने यह कहकर मना किया कि कीचड़ में पत्यर फेंकने से कोई लाभ नही, अपने ही कपड़े गन्दे होंगे।'
'मेरा पूलिंदा खींच दे?' मेयर उत्तेजित स्वर में बोला-'जरा कोई हाथ तो लगा के दिखाता फिर पता चलता कि कैसे मैं तुम लोगों का शीशे का महल मिट्टी में मिला देता।'
'देखिए मुझे तो मेहरबानी करके बीच में मत घसीटिए।'
जयकर ने कहा-'मैंने तो हर चन्द कोशिश की कि दोनों पक्ष आपस में मिल-जुलकर प्यार से रहें। लेकिन आप दोनों ही अपनी अपनी जिद पर इस बुरी तरह से अड़े रहे कि किसी की भी कुछ सुनने को तैयार नही।' 'लेकिन फायदा तुम्हें जगन सेठ के खेमें में नजर आया इसलिए उसके साथ मिलकर मेरी काट करते रहे।' मेयर ने व्यंग्यपूर्ण स्वर में कहा।
जयकर ने प्रतिवाद करना चाहा।
लेकिन हाथ के संकेत से उसे चुप रहने के लिए कहकर जगतार बोला-'मेरा खयाल है कि एक-दूसरे के बारे में काफी कुछ कहा जा चुका है। अब अगर यह बहस ज्यादा देर तक चालू रही तो मुझे खतरा है कि हम अपने बसनी उद्देश्य में भटक जाएंगे।'
मेयर और जगन सेठ बोले तो नहीं लेकिन आग्नेय दष्टि ले एक-दूसरे को घूरते अवश्य रहे। भैरों ने अपनी बोरियत का प्रदर्शन करते हुए कुर्सी में पहलू बदला। साफ लग रहा था कि उसकी इस सारी बातचीत में कोई दिलचस्पी नहीं है।

'अब तक जो हो चुका सो सो चुका।' जगतार बोला-'मेरा खयाल है कि यह आप लोगों को यह समझाने के लिए मुझे ज्यादा कुछ कहने की जरूरत नहीं है कि आपस की इस लड़ाई में किसी का भी कोई फायदा नहीं होने वाला है। बेहतर यही है कि दोनों पक्ष पिछली सारी बातों को भूलकर एक हो जाएं। आपकी क्या राय है पुलिम कमिश्नर साहब।'
'इस राय में तो किसी भी आदमी को कोई विरोध नहीं हो सकता।' जयकर ने कहा-'मिस्टर मेयर की इस शहर में अपनी एक हस्ती है जिप्ते कोई भी चुनौती देने का साहस नहीं कर सकता। रही जगन सेठ की बात सो इनके बारे में कुछ भी कहना सूरज को दीपक दिखाने जैसा है। अगर यह दोनों फिर से मिल जाएं तो फिर क्या कहने है। इस शहर से
और इन जंगलों से सोना ही सोना उगाया जा सकता है। लेकिन मिस्टर जगतार आपसे एक बात पूछ सकता हूं।'
'जरूर पूछिए।'
'इन लोगों के बीच मेल कराने में आपका अपना क्या फायदा
है?'
'पुलिस कमिश्नर साहब अंग्रेजों का असूल रहा था कि फूट
डालो और राज करो। एकदम गलत असूल था वह। इसलिए
अंग्रेजों को यहां से अपना बोरिया बिस्तरा बांध कर भाग जाना पड़ा। जगतार का असूल है, मेल कराओ और माल कमाओ।'
'मैं कुछ समझा नहीं।' 'मैं समझाता हूं। अभी-अभी आपने कहा कि अगर यह दोनों
महान हस्तियां आपस में मिल जाएं तो इस शहर से और इसके जंगलों से सोना ही सोना उगाया जा सकता है। आपके बताने के पहले यहां के हालात देखने के बाद ऐसा ही कुछ अनुमान मेंने लगा लिया था। इसीलिए इन लोगों के बीच समझौता कराने की कोशिश में हूं। ताकि इन लोगों के मिलने के बाद जो सोने की फसल उगेगी उसमें एक हिस्सा मेरा भी होगा। कहिए इस बात पर आपमें से किसी को कोई एतराज
तो नहीं है।'
'यह सब प्रोग्राम तो बाद में बन जाएगा।' जगन सेठ बोला -'लेकिन जब तक वह कागजात मुझे वापिस नही मिल जाते तब तक समझौते की कोई बात करना बेकार है।'
'तो फिर इस बात को यही खत्म कर दिया जाए।' जगतार ने एकदम निर्णायक स्वर में कहा-'आगे बातचीत करने का कोई फायदा नहीं।'
'क्या मतलब?' उसकी बदली हुई टोन सुनकर जगन सेठ एकदम चौंका।
'मतलब साफ है जगन सेठ।' जगतार तनिक कड़े स्वर में बोला-'अगर वो कागजात तुम्हारे हाथों में पहुंच ही गए तो फिर तुम मेयर साहब को किस खेत की मूली समझोगे?'
'यानि यानि ।'
जगतार की बात पर कोशिश के बावजूद भी मेयर अपनी प्रसन्नता न रोक सका और हकला सा गया। मगर फिर एकदम अपने आपको संयत करता हुआ बोला-'अगर कागजात एक बार दे दिए तो फिर जगन सेठ ने किसे पूछना है। फिर तो तू कौन और में कौन।'
जगन सेठ ने कड़ी नजरों से जगतार को धूरा।
क्रोध से नथने फड़कने लगे थे और गाल लाल हो गए थे।
कड़े स्वर में जगतार से बोला वह-'आखिर तुम ओ इस मेयर से जा मिले?'
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