फोरेस्ट आफिसर

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rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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साधना का हाथ उसे मारने के लिए उठा तो उसने उसकी कलाई पकड़ ली और सख्त स्वर में बोला-'बस दीदी बस। अब तुम्हें कोई हक नहीं रहा मुझ पर हाय उठाने का। जाओ उस जगतार की माला जपो जिसे तुम अपना रक्षक समझ रही थी।'
'कहां मिला था तू उनसे?'
'नाम मुनते ही पिघल गई?' उसने घृणापूर्ण दृष्टि से साधना मँग ओर देखते हुए उसका हाथ झटक दिया-'मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि तुम भावनाओं के बहाब में कभी इतना नीचे भी गिर जाओगी। छि:।'
वह जाकर अपने पलंग पर घम्म से औंधे मुंह जा पड़ा।
साधना दरवाजे से सिर टिकाकर सोचने करें कि क्या उसने बाकई अपने सब हक खो दिए हैं।

क्या उसकी सारी तपस्या का कोई अर्थ नहीं। सब कुछ यूं ही निष्फल चला जाएगा। आखिर शराब से वहके हुए यह कदम
जसके भाई को कौन सी भटकी हुई मंजिल की ओर खींच रहे हैं। उसे भी क्या दोष दे? कहीं वह खुद भी तो नहीं भटक गई

आखिर क्या हो जाता है उसे जगतार का नाम सुनकर?
सब कुछ जानते-बूझते शी लग वह खुद गलत दिशा में नहीं बढ़ रही। सब कुछ सोचते समझते भी एक फरार मुजरिम के साथ अपनी प्रीत की डोर बांध बैठी। भावना से वहके हुए
खुद उसके कदम भो तो उसे न जाने किस भटकी हुई मंजिल की ओर खींच रहे हैं। जगतार का नाम सुनते ही वह सब कुछ क्यों भूल गई? क्यों उसकी इच्छा हो रही है कि जाकर केशो से पूछे कि वह कहां मिला था? कैसे हैं? उनके जख्मों का क्या हाल है?
आंसुओं से भीगे चेहरे के साथ उसने पलंग की ओर देखा जहां वह औंधा पड़ा हुआ था और फिर भारी कदमों से अपने कमरे की ओर लौट गई।
कुछ पूछने का साहस नहीं हुआ।
वह खुद पलंग पर गिरते ही शराब के नशे से भरपूर नींद के आगोश में पहुंच गया था। देर दिन चढ़े तक सोता रहा था वह।
वहीं पड़े-पड़े बाहर फैली हुई धूप को देखा। घड़ी में दस बय रहे थे। फिर भी उठने का मन नहीं कर रहा था। रात की शराब का नशा अब खुमार बन कर मन मस्तिष्क
को बोझिल सा किए हुए था।
रात की घटनाएं धीरे-धीरे याद आने लगी। लेकिन दे कोई ऐसी यादें नही थीं जिनसे मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित होता। बल्कि उनके कारण निराशा का कोहरा उसे दबोचता सा चला गया।
नहीं वह कुछ नहीं कर सकता। इस सारी व्यवस्था से अथवा-अव्यवस्था से वह नहीं लड़ सकता।
जगन सेठ के खिलाफ सबूत लेकर गया तो मेयर ने दोगलापन दिखा दिया। मेयर को मारने के लिए गया तो जगतार उसे बचाने के लिए पहुंच गया। सब साले चोर हैं।
वह पुलिस कमिश्नर तक इन चोरों से मिला हुआ है।
वह यही सव सोचता रहा और पलंग पर करवटें बदलता रहा। ग्यारह बज गए। बारह बज गए?
लेकिन अभी भी उठने को मन नहीं कर रहा था। बीच में एक बार साधना आई थी उससे चाय पूछने के लिए। हालांकि चाय पीने की इच्छा थी उसकी लेकिन फिर भी न जाने क्या सोच कर उसने मना कर दिया। साधना ने भी दोबारा नहीं पूछा।
घर में चारों ओर फैली मनहूसियत को देखते हुए उसने सोचा कि अब उसे उठ ही जाना चाहिए। तभी बाहर किमी जीप के रुकने की आवाज सुनाई दी। बह उठने की जा रहा था कि उससे पहले ही फड़फड़ाता हुआ एक पुलिस अधिकारी भीतर घुस आया। यह वही पुलिस
अधिकारी था जिसे उसने हास्पिटल में देखा था।
'मिस्टर केटरी आप अपने आपको हिरासत में समझो।' उसने
आते ही कहा।
'लकिन मैंने क्या किया है?'
'आप पर आरोप है कि आपने मेयर भी शर्मा के घर में घुस
कर उनकी हत्या का प्रयास किया था।'
तब तक साधना भी वहां पहुंच गई थी। उसे देखते ही पुलिस अधिकारी बोला-'मिस साधना आपको जेल से फरार खतरनाक मुजरिम जगतार को कानून की नजरों से बचाकर पनाह देने के अपराध में गिरफ्तार किया जाता है।'
'लेकिन बह हैं कहां?'
'मैंने उसे गिरफ्तार कद जिया है और वह बाहर जीप में बैठा
सुनते साधना बावल स बाहर की ओर दौड़ पड़ी।

बाहर जीप में जगतार बैठा था। हाथों में हथकड़ियां थी। दोनों की नजरें मिली। क्षण भर को ठिठक कर खड़ी रह गई। फिर आगे बढ़कर उसके निकट पहुंच गई।
काफी देर तक दोनों में से कोई नहीं बोला। बस एक-दूसरे की
ओर देखते भर रहे।
'कैसे हो?' आखिर साधना ने पूछा।
जवाब में अजीब ढंग से मुस्कराया जगतार। फिर हाथों की हथकड़ियों की ओर संकेत करता हुआ बोला-'जहां से आया था वही वापिस जा रहा हूं।' 'मैं इन्तजार करूंगी तुम्हारा।'
'बेवकूफ हो तुम जो एक अपराधी के लिए अपनी जिन्दगी
खराब करना चाहती हो।' जगतार बोला-'हम दोनों के बीच जो कुछ भी हुआ उसे महज एक सपना समझ कर भूल जाना।'
'क्या तुम भूल सकोगे?'
एकाएक जवाब न दे सका साधना के इस सवाल का जगतार। फिर धीरे से बोला-'लेकिन भूलना तो होगा ही। सपने कभी सच नहीं होते।'
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

Post by rajan »

साधना ने विषय परिवर्तन करते हुए पूछा-'तुम्हारे घाव अब कैसे हैं।'
'वे तो ठीक हो ही जाएंगे।' जगतार एक लम्बी सांस के साथ बोला-'लेकिन नही जानता कि तुम्हें जो घाव देकर जा रहा हूं वो कैसे ठीक होगा।'
'मेरी चिन्ता मत करो।' साधना बोली-'मुझे कोई घाव नहीं दिया है तुमने। मैंने सिर्फ तुम्हें चाहा है और दिल से चाहा है।
तुम जो भी जैसे भी हो मेरे हो।'
'साधना।'
'मैंने कहा ना कि मैं तुम्हारा इन्तजार करूगीं।'
'और अगर मैं लौटकर न आया तो?'
'तो सारी जिन्दगी तुम्हारा नाम लेकर गुजार दूंनी। तुम जानते हो ना कि मेरा नाम साधना है। बिश्वास रखो अपनी साधना के बल पर मैं तुम्हें हासिल करके ही रहूंगी। अगर यहां नहीं तो वहां।' कहते-कहते साधना ने ऊपर आसमान की ओर संकेत किया।
न जाने क्या सोच कर जगतार की आंखें सजल हो बाई। वह एकटक साधना को देखता सा रह गया।
'तुम किस धोखेबाज के चक्कर में फस गई हो बेटी।'
अचानक उसी पुलिस अधिकारी की आवाज सुनाई दी। वह न जाने कब उनके निकट पहुंच गया था।
'आपको हम लोगों के बीच बोलने का कोई हक नहीं है।' साधना एकदम रोषपूर्ण स्वर में बोसी।
'यह मक्कार तुम्हें शुरू से धोखा देता रहा और फिर भी तुम इसकी तरफदारी कर रही हो।' वह पुलिस अधिकारी बोला-'लेकिन फिर भी तुम्हारा प्रेम देखकर मैं नतमस्तक हो गया हूं। अपनी पूरी जिन्दगो में तुम जैसी अनोखी लड़की नहीं देखी मैंने। यह लो चाबी और इसकी हथकड़ियां खोल दो।'
साधना ने चाबी नहीं ली। ऊपर से नीचे तक उस पुलिस
अधिकारी को देखा और फिर कड़े स्वर में बोली-'हमें किसी से भी दया की भीख नहीं चाहिए। यह कानून के मुजरिम हैं
और कानून जो भी।' 'नहीं बेटी।' पुलिस अधिकारी उसकी बात काटता हुआ बोला-'यह कानून का मुजरिम नहीं है। यह सिर्फ तुम्हारा मुजरिम है।'
साधना के बेहरे पर आश्चर्य के भाव उभरते देखकर वह पुलिस अधिकारी बोला-'हां बेटी, मैंने तुमसे कहा था ना कि यह धोखेबाज तुम्हें शुरू से ही धोखा देता रहा था। इसने कभी तुम्हें अपने बारे में सच्चाई नही बताई। इसने अपना नाम तक सही नही बताया तुम्हें। इसका नाम जगतार नहीं बल्कि मनबीर सिंह है। और न हो यह जेल से भागा हुआ कोई कैदी ही है बल्कि भारतीय खुफिया विभाग का एक बहुत ही दिलेर
और खतरनाक जासूस है।'
साधना को जैसे अपने कानों पर विश्वास न हो रहा था कि जो जो कुछ वह सुन रही है वह सच है। उसे ऐसा लगने लगा था जैसे कोई सपना सा देख रही हो।
पुलिस अधिकारी जगतार की हथकड़ियां खोलता हुआ बोला -'नाटक वहुत हो चुका। कार बेवकूफ बना लया तुमने इस लड़की को अब अपनी असलियत में आ जाओ वरना अब वह बेभाव की मारनी शुररू करूंगा कि खोपड़ी गंजी हो जाएंगी।'
'यस अंकल।' हथकड़ियां खुलते ही जगतार बाहर कूदता दुआ बोला। साधना को चक्कर से आने लगे थे। उसे लगा जैसे वह खशी के मारे बेहोश हो जाएगी। वह बेहोश होकर गिर भी पड़ती अगर मनवीर ने उसे अपनी मजबूत बांहों में, न थाम लिया होता।

rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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'मेरा नाम अवध बिहारी सिंह है।' चाय की चुस्कियों के दौरान उस पुलिस अधिकारी ने बताना शुरू किया--'और मैं खुफिया विभाग में मनवीर का आफिसर हूं। दरअसल हम लोगों को इस इलाके से जबर्दस्त गड़बड़ियों की सूचनाएं मिल रही थी। उनके बारे में पता लगाने और असली अपराधियों को खोजने के लिए हमने अपने ही विभाग के एक अन्य जासूस सरन महतो को यहां का फारेस्ट आफिसर बनाकर भेजा। लेकिन उसने हमें कभी कोई महत्वपूर्ण रिपोर्ट नहीं भेजी। बस गहि वगाहे यही सूचना भेजता रहा कि वह पता लगाने की कोशिश में है। फिर एक दिन हमें मालूम हुआ कि जंगल में उसकी लाश पाई गई। किसी जंगली जानवर ने उसे मार डाला है।'

'हम लोगों को इस बात पर यकीन नहीं आया। मैंने मनवीर से सलाह की और हम दोनों इसी नतीजे पर पहुचे कि जिन अपराधियों का पता लगाने के लिए उसे भेजा गया था उन्हें किसी तरह यह मालूम हो गया कि वह खुफिया विभाग का जासूस है और उन्होंने उसकी हत्या कर दी। असली अपराधियों का पता लगाने के लिए नये सिरे से योजना बनाई गई और मनवीर ने ही यह सुझाव रखा कि इस वार इस ढंग से काम किया जाए कि अपराधी लाख कोशिश के बावजूद भी असलियत पता लगाने में कामयाब न हो सकें।'

'इसके लिए एझ नाटक खेला गया। मनबीर को जगतार बनाकर एक अपराधी के रूप में जेल भेजा गया जहां से कुछ दिन बाद इसे भगा दिया गया। भागकर योजना के अनुसार यह सीधा वहां जंगल में आया।

'तब तक तुम नये फारेस्ट आफिसर बनकर यहां आ चुके थे।'

अवध बिहारी ने केसरी की ओर उन्मुख अकर कहा-'और कालिया से तुम्हारी तनातनी शुरू हो चुकी थी। पहले ही दिन तुम्हारी मनवीर से जगतार के रूप में मुलाकात हुई तो तू-तू मैं-मैं भी हो गई। जगतार के रूप में मनवीर जंगलों के मजदूरों से बातचीत करके कुछ जानकारियां हासिल करता रहा। तू-तू मैं-मैं के बावजूद तुम्हारी कर्तव्यनिष्ठा और ईमानदारी से भी प्रभावित हुआ था यह। जब तुमने कालिया के मुंह पर थप्पड़ मारा तभी मनबीर को इस बात का यकीन हो गया था कि कालिया बदले की कार्यवाही के रूप में कुछ न कुछ करेगा। इस लिए यह रात को तुम्हारे बंगले की निगरानी करने का निश्चय कर चका था। जिससे गुंडों के हमले के समय ऐन वक्त पर यह तुम्हारो मदद के लिए पहुंच सका था।'

'खैर उस कांड में एक और कांड हो गया कि साधना का झुकाव न जाने कैसे इस अपराधी की ओर हो गया। औरत के बारे में मनबीर के अनुभव कुछ अच्छे नहीं थे और इसी वजह से यह अभी तक कुंआरा रहा। दरअसल यह खुफिया विभाग में जासूस तो अपने शौक की वजह से है और वैसे करोड़पति बाप का इकलौता बेटा है। जितनी भी लड़कियां इसे मिली उन अबके बारे में इसका यही खयाल था कि उनमें से कोई भी इसे नहीं चाहती बल्कि इसकी करोड़ों की दौलत के लालच में इससे प्यार का नाटक करती हैं। हालांकि भगवान ने कोई बुरी सूरत नहीं दी है इसे। लेकिन न जाने क्यों इसे यह बहम हो नया था कि इसकी सूरत इस लायक ही नहीं है कि कोई खूबसूरत लड़की इससे प्यार कर सके। इसलिए जब साधना इसकी ओर बढ़ी तो यह गच्चा सा खा गया था। उसे अपने से दूर रखने के लिए इसने अपने कैदी होने की बात भी बता ही। लेकिन साधना पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। क्योंकि मुझे लगता है कि इसने अपने मन की आंखों से असली जगतार को पहचान लिया था'

'बहरहाल उस रौत कालिया से हुई लड़ाई में यह हास्पिटल पहुंच गया। मुझे जैसे ही खबर लगी मैं वैसे ही कुछ सिपाही लेकर वहां से रवाना हो गया था क्योंकि मुझे खतरा था कि कही कालिया के गुंडे इसे हास्पिटल में ही मारने की कोशिश न करें। इससे पूरी बात जानने के लिए मैंने उस समय तुम लोगों को जबर्दस्ती बाहर निकाल दिया था।'

'अन्दर मनबीर ने सब कुछ बताया मुझे। अपनी अब तक की कारगुजारियों के बारे मे भी और साधना के बारे में भी। मगर साथ ही कहा कि मैं साधना को उसकी असलियत के बारे में जरा भी आभास न लगने दूं बल्कि यह जानने की कोशिश करू कि क्या वह वाकई अपराधी जगतार को दिल से चाहती है।'

'बाहर आकर मैंने साधना से वही सब कहा और जैसी कि उम्मीद थी इस जिद्दी लड़की ने मेरी बातों पर कोई ध्यान नहीं दिया। यह जगतार की देखभाल के लिए उसके कमरे में रहना चाहती थी लेकिन ऐसा सम्भव नहीं था। क्योंकि हमें अपना कर्तव्य भी तो पूरा करना था।'
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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'मुझे और जगतार को पूरा भरोसा था कि कालिया का कोई न कोई आदमी उसे हास्पिटल में जान से मारने की कोशिश करेगा और हम तब उसे पकड़ लेंगे ताकि उससे और कुछ उमलवाया जा सके।'

'लोकिन ऐसा नहीं हुआ। उसकी जगह सफाई कर्मचारी के रूप में एक आदमी ने जगतार से पूछा था कि क्या वह भाग निकलना चाहता है। दुश्मनों के बीच घुसने के लिए इस मौके की तलाश थी ही। इसलिए हमने भी अपनी घेराबन्दी ढीली कर ली ताकि हुश्मनों को इसे भगाने में कोई खास दिक्कत पेश न आए।'

'आपने ऐसी घायलावस्था में इन्हे दुश्मनों के बीच जाने दिया?' साधना ने शिकायत पूर्ण स्वर में कहा।

'अरे बेटी विभाग में मैं इसका अफसर हूं और यह मेरा मातहत।' 'अवध बिहारी सिंह ने मनवीर की ओर देखते हुए कहा-'लेकिन जब फील्ड में काम करने का मौका आता है तो यह मेरा अफसर होता है और मैं इसका मातहत। उस वक्त जो यह चाहेगा वही होगा मेरी कुछ नहीं चलती तब।'

'यही सोचकर तो मैं भी हैरान था कि इतना जबर्दस्त पुलिस प्रबंध होने के बावजूद भी जगतार मेरा मतलब मनवीर भाग कैसे निकला।' केसरी बोला-'फिर मुझे ध्यान आया कि पुलिस भी तो दुश्मनों से ही मिली हुई है।'

'खैर हम दुश्मनों से मिले नहीं थे लेकिन फिर भी हमने इसे आग जाने दिया।' अवध बिहारी सिंह ने चाय का अन्तिम चूंट भरते हुपू कहा-'उस वक्त हमने यह नहीं सोचा था कि अपराधी जिस रात मनवीर को भगाएंगे उसी रात कालिया की भी हत्या कर देंगे।'

'तो कालिया की हत्या जगन सेठ ने ही की थी।'

'जगन सेठ ने करवाई थी। भैरोंसिंह के हाथों।' अवध बिहारी सिंह ने कहा-'लेकिन मनवीर के भागने का सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि यह जगन सेठ के नजदीक पहुंच गया चोर सभी वह संयोग हुआ कि तुम कागजात लेकर मेयर के पास पहुंच गए। लेकिन वह कागजात तुम्हारे हाथ लगे कैसे?'

केसरी ने उसे कागजात मिलने का किस्सा बता दिया।

'हूं।' सुनने के बाद अवध बिहारी सिंह ने गम्भीरता से सिर हिलाते हुए कहा-'इससे यह तो साफ जाहिर हो जाता है कि सरन महतो यहां आकर जासूसी तो पूरी करने लगा था लेकिन विभाग के लिए नहीं बल्कि खुद माल चीरने के लिए। तुम कहते हो कि तुम्हारे कमरे की दीवार पर सांप की कोटर लिखा हुआ था। मुझे पक्का यकीन है कि वे शब्द सरन महतो ने ही लिखे होंगे। शायद उसे इस बात का शक हो गया था कि कहीं यह लोग उसकी हत्या न कर दें। उस हालत में वह जानता था कि विभाग का कोई न कोई आदमी उसकी हत्या की जांच पड़ताल करने के लिए जरूर आएगा और दीवार पर लिखे इस संकेत के मिलते ही वह इसके आधार पर खोज
शुरू करके अपराधियों के खिलाफ उस द्वारा एकत्रित किए गए सबूत हासिल कर लेगा।

विभाग की ओर से उसकी हत्या की जांच-पड़ताल और असली अपराधियों की तलाश में मनवीर आया तो सही। लेकिन यह कुछ ऐसे घटनाक्रम में उलझा कि उन सांकेतिक शब्दों पर इसकी नज़र ही न पड सकी। खैर वे कागजात तुमने मेयर को दिए और मेयर को जैसे मन मांगी मुराद मिल गई हो। उसने उन कागजातों के माध्यम से जगन सेठ और पुलिस कमिश्नर जयकर को अपने शिकंजे में कसना चाहा!

जगन सेठ ने मनवीर को किस्सा बताया और मनबीर उन कागजातों को हासिल करने के लिए तैयार हो गया। तभी इसे खबर मिली कि तुम मेयर को मारने के लिए पिस्तौल ढूंढते फिर रहे हो। इसे इस बात का खतरा हुआ कि कहीं तुम उत्तेजना में कोई ऐसा-वैसा कार्य न कर बैठो। कि तुम्हारे लिए जिन्दगी-भर का पछताना हो जाए। इसलिए इसने अपनी योजना के अनुसार तुम्हें पिस्तौल भी दिलवा दी और उन लोगों के साथ मिलकर एसा इन्तजाम कर लिया कि तुम आधी रात के बाद मेयर के घर में प्रविष्ट हो। तुम्हें भीतर घुसने में किसी तरह की दिक्कत न हो इसके लिए यह तुम्हारे वास्ते रास्ते भी बनाता गया था।'

'इसका असली इरादा तो यह था कि वहां अकेले में तुमसे बात करके तुम्हारे सिर से हत्या का भूत उतार देगा।' अवध बिहारी सिंह कहता रहा-'लेकिन वहां इसे अपनी योजना बदल देनी पड़ी। क्योंकि सेफ से यह जगन सेठ और पुलिस कमिश्नर जयकर के खिलाफ वे कागजात हासिल करने में कामयाब हो गया था किन्तु मेयर के खिलाफ इसे कोई सबूत नही मिला था। जबकि कानून के फन्दे में मेयर को फांसना भी जरूरी था। आखिर वह भी कोई कम बड़ा अपराधी तो था नहीं। मेयर को फंसाने के लिए ही इसने चाल चली और तुम्हें मेयर के बैडरूम में घुस जाने दिया और ऐन वक्त पर तम्हारे सिर पर चोट करके तुम्हे बेहोश किया और मेयर को बचा लिया। मेयर को अपने चक्कर में फंसा कर समझौते के लिए मजबूर किया। लौटकर जगन सेठ को भी इस बात के लिए प्रेरित किया था कि वह मेयर से समझौता कर ले। इस सारे नाटक का उद्देश्य था मेयर के खिलाफ सबूत हासिल करना।'

'मौका देखकर यह रात को जगन सेठ के पास से भी चल दिया और मुझसे मिला। रात-रात में हमने उन अपराधियों को फसाने के लिए कृष्णा होटल के सोलह नम्बर कमरे में स्टेज तैयार की। कमरे मे माईक्रोफोन और विडियो कैमरे इस तरह से फिट कर दिए गए कि किसी को उनके होन का संदेह तक न हो सके। और तब समझौते के लिए मेयर अपने हाथों से अपने अपराधों का विवरण लिखने लगा तो मनबीर ने हमे भैरोसिंह के हाथों व्हिस्की लाने के लिए फोन करवा कर सतर्क कर दिया। हम लोग न केवल इन लोगों की बातचीत रिकार्ड कर रहे थे बल्कि उसे सुन भी रहे थे और जब मौका आया तो हमने एकदम कार्यवाही करके सबको गिरफ्तार कर लिया। भैरोंसिंह ने पिस्तौल निकालने की कोशिश की थी।

लेकिन उसे मौका ही नहीं मिला। बाकी कोई कुछ करने की स्थिति में ही नहीं था। अपराधी और उनके खिलाफ सबूत दोनों ही हमारे कब्जे में आ चुके थे।'

'लेकिन आप इन्हें हथकड़ी डालकर क्यों लाए यहां?' साधना ने पूछा।

'बताया ना यह सब इसी बदमाश की शरारत थी।' अबध बिहारी सिंह ने कहा-'यह जानना चाहता था कि तुम इससे कितना प्यार करती हो। वैसे इस नाटक में भी कोई बुराई नहीं थी। अब कम से कम इस बेवकूफ को यह तो यकीन आ गया कि कोई खूबसूरत लड़की इसे सचमुच प्यार कर सकती है।'
साधना ने चोर निगाहों से मनवीर की ओर देखा।
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