फोरेस्ट आफिसर

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rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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उस घटना के बाद से दोनों भाई बहनों में से कोई भी एक दूसरे से नही बोला था। अपने-अपने कमरे में आकर पड़ गए
थे वे लोग।
बाहर उतरता हुआ रात का अन्धेरा बंगले में भी घिर आया था
पर किसी ने भी बत्ती जलाने की जरूरत नहीं समझी थी।
वह अपने पलंग पर चित्त पड़ा हुआ फटी-फटी आंखों से छत के अन्धेरों के घूरता हुआ सोच रहा था कि यह क्या हो गया। कैसी जगह आ गया वह जहां उसकी जिन्दगी में यह नर्क का अन्धेरा घुलता चला जा रहा है।
यहा आने से पहले कैसा था उनका छोटा सा परिवार। अभाव थे जिन्दगी की कशमकश थी लेकिन उसके बाद भी खुशियां थी उनके जीवन में।
लेकिन यहां आते ही उनकी खुशियां के फूल नियति के क्रूर हाथों द्वारा नोचकर मसल दिए गए।
अपनी दीदी की दिल से पूजा किया करता था वह। वह जानता था कि जमाने की कितनी सर्द-गर्म तेज हवाओं का सामना करके उसने उन लोगों को पाल पोस कर बड़ा किया है। अपने सभी अरमानों और खुशियों को कुर्बान करके उसे पड़ा लिखा कर शिक्षित किया ताकि वह अपने पैरों पर खड़ा हो सके।
और आज अपने पैरों पर खड़े होते ही उसने अपनी दीदी की कुर्बानियों का बदला उसके मंह पर चौटा मार कर चुकाया।
लेकिन दीदीको भी यहां औते ही क्या हो गया?

लोग जिसके चरित्र खौर संयम की कसमें खाया करते थे, बह उस आवारा से जगतार पर छि:...|
'खाना बनाऊं?'
न जाने कब में साधना आ गई थी वहां। बचानक ही उसकी
आवाज सुनकर चौंक पड़ा था वह। फिर अनमाने स्वर में बोला-'नहीं।'
और कुछ नहीं कहा साधना ने। और दिनों की भांति यह नहीं पूछा कि क्यों नहीं खाएगा। बस खामोशी से मुड़ी और बाहर जाने को हुई।
'दीदी।' उसने पुकारकर रोका।
रुक गई साधना।
'बत्ती जला दो।'
स्विच दवा कर बत्ती जला दी साधना ने। उसने देखा कि
आंखें जरूर लाल-लाल और भारी थीं। लेकिन पश्चाताप का कहीं कोई निशान नहीं था। चेहरे पर पत्थर की सी खामोशी
और दृढ़ता थी जो उसने पहले भी कई ऐसे अवसरों पर देखीं थी जब वह दनिया भर के विरोधों का मुकाबला करने के लिए अपने आपको मानसिक रूप से दृढ़ प्रतिज्ञा कर लेती थी।
कांप गया था वह उस दृढता को देखकर।
'दीदी।' अजीब से कंपित स्वर में बोला वह-'आज जो कुछ
भी हुआ।'
'नहीं होना चाहिए था।'
.
.
.
'मैंने तुम पर हाथ उठाया?'
'उसका मुझे अफसोस है कि मैंने तुम्हें इतना दुख पहुंचाया जो तुम अपना आपा खो बैठे।' साधना ने सपाट से स्वर मे कहा।
'तुम्हें यह सब नहीं करना चाहिए था दीदी।'
'यह तो मैं नहीं जानती केशो कि मुझे यह सब करना चाहिए
था या नहीं। लेकिन इतना जरूर हूँ कि जिस रास्ते पर मैं आगे बढ़ चुकी हूं उससे अब वापिप्त नहीं लौटूंगी?'
'उस जगतार के लिए?'
'ही उसी के लिए।'
'कब से जानती हो उसे।'
'जिस रात बंगले पर हमला हुआ था तब पहली बार देखा था उसे।'
'ऐसा उस असभ्य लोफर में क्या दिख गया तुमको?'
'यह मैं भी नहीं जानती।'
'एक क्षण के लिए तुमने यह नहीं सोचा कि वह तुम्हें बोखा
भी दे सकता है।'
'शायद।'
'ओह।' उसने झुंझलाकर फोल्डिंग पलंग के लोहे बे पाईप पर हाथ मारा-'तुम इतनी समझदार होकर यह सब |
'मेरा ख्याल है कि इस विषय में अगर हम आगे बात न करे तो अच्छा है।'
'लेकिन दीदी उस आदमी के बारे में बिना कुछ जाने
समझे।'
'जितना कुछ मुझे जानना चाहिए वह मैं जान चुकी हूं।' 'क्या जान चुकी हो तुम?'
'वह चाहे एक अच्छा आदमी न हो लेकिन एक सच्चा आदमो जरूर है।'
उसने उलझनपूर्ण दृष्टि से साधना की ओर देखा।
'वह अपने बारे में सब कुछ बता चुका है।' साधना ने शून्यू में निगाहें जमाते हुए कहा-'जब अनजानी भावनाओं से बध मेरे कदम उसकी ओर बढ़े थे तभी उसने मुझे चेता दिया था कि मैं गलन दिशाओं में बढ़ रही हूं। वह एक पेशेवर अपराधी है। पुलिस उसके पीछे पड़ी है। उसी से बचने के लिए वह इन जंगलों में छुपने के लिए आया है।'
'इसके बावजूद भी तुम ।' 'हां, शायद यही मेरा भाग्य है या शायद एक और चुनौती कि मैं एक भटके हुए आदमी को सही रास्ते पर ला सकू।' 'कहीं ऐसा न हो दीदी कि तुम खुद जिन्दगी के रास्ते पर भटक जाओ।'
'कौन जानता है?' एक दीर्घ निःश्वास के साथ कहा साधना ने और फिर चुपचाप बाहर निकल गई।
दोबारा खाने के लिए नहीं पूछा उसने। पूछती भी तो उसका उत्तर इन्कार में ही होता।
जाने के बाद भी वह काफी देर तक सोचता रहा। जिन्दगी की धारा ने इस मोड़ पर आकर क्या अनोखी करवट ली है। तब जबकि वह सोच रहा षा कि यह नौकरी मिलने के बाद उनकी जिन्दगी में सुों की सरगम बजने लगेगी तब यह अचानक ही कौन से अशुभ दुखों की धुन बज उठी।
पेशेवर मुजरि पुलिस पीछे पड़ी है तो क्या पुलिस को खबर कर दे इसके बारे में पुलिस के दोनों पहरेदार भी आने बाले होगें पुलिस उसे पकड़कर ले जाएगी तो दीदी की जिन्दगी से निकल जाएगा यह मुजरिम ।
लेकिन फिर उसने एक लम्बी सांस के साथ निराशा से सिर हिलाया।
वह अपनी दीटी को जानता था। जगतार को जितना टससे दूर किया जाएगा दीदी की उसके प्रति निष्ठा और लगन उतनी ही मजबूत होती जाएगी।
पहरेदार लोग आ गये थे।
लेकिन आज उसकी इच्छा नहीं हुई उनसे बोलने और बतियाने की।

बंगले पर जिन सिपाहियों की ड्यूटी लगती थी उसका पता निकालकर रघुवर ने उन्हें अपने जल में उलझा भी लिया था।
एक काल्पनिक कहानी सुनाई थी उसने किसी बुढ़िया हारा अपने किराएदार के मकान से निकालने की कोशिश के बारे में। कहानी सनाते हए रघुबर बार-बार उनके सामने इस ढंग से झक रहा था कि जेब में रखा अंग्रेजी का पव्वा उन्हें बराबर नजर आता रहे।
'अंग्रेजी है।' एक सिपाही ने पूछा। 'अंग्रजी ही है चखोगे?' रघुबर ने पव्वे पर हाथ फेरते हुए
कहा।
'बस पव्वा लिए ही घूम रहे हो?'
'अरे हवलदार तुम हुषम करो तो अभी पूरी बोतल आ जाए
पर वो काम"।'
'अभी बात करने का टाईम नहीं है। ड्यूटी पर जाना है।' 'रात की ड्यूटी है।' 'हां, फारेस्ट बंगले पर।'
'कहो तो बोतल लेकर वहीं आ जाऊं। बात की बात हो जाएगी और रात भी गुलजार हो जाएगी।'
'क्या कहते हो?' सिपाही ने अपने साथी की ओर अर्थपूर्ण
दृष्टि से देखते हुए पूछा।

दोनों को ही बिचार बुरा नहीं लगा कि रात की बोरियतच भरी ड्यूटी में अगर कुछ रंग पानी हो जाए, जंगल में मंगल हो जाएगा और किसी को पता भी न चलेगा। दोनों सिपाहियों ने आपस में तय करके रघुबर को बता दिया कि वह माल-पानी का इन्तजाम करके जंगल के बंगले पर पहुंच जाए। लेकिन दस बजे के बाद। तब तक बंगले के वाशिन्दे आराम की नीद सो चुके होंगे। वही वे आराम के साथ उसकी वात सनकर तय करेंगे कि उस बुढ़िया के किराएदार को किस तरकीब से गोल करके बाहर फेंका जाए।
ठीक दस ब्जे एक झोले में सब सामान लिए हुए रघुबर वहां हाजिर था। वैसे कोई खतरे की बात नहीं थी लेकिन फिर भी सिपाहियो ने उसे एक झाड़ी के पीछे बैठ जाने के लिए कहा।
रघुबर अपने साथ सब इन्तजाम करके ले गया था एक टोकरी मैं। गिलास, व्हिस्की और नमकीन ही नहीं बल्कि सोडे की बोतलें भी।
झाड़ी के पीछे रघुबर ने अपना मयखाना चालू कर दिया।
एक सिपाही झाड़ियों के पीछे आया, गिलास खाली किय
और नमकीन चबाता हुआ वापिस लौट गया।
उसके बाद दूसरा आया। फिर पहला।
फिर दूसरा।
पहरे का पहरा दिया जा रहा था और रंग-पानी का रंग पानी जम रहा था।
'बड़ा तेज माल है यार।' एक सिपाही गिलास उठाता हुह बोला-'दोतीन पैग में ही सिर घुमाना शुरू कर दिया इस तो।'
'असली अंग्रेजी है हवलदार, असली अंग्रेजी।' रघुबर बोला 'इसकी यही तारीफ है कि नशा पूरा दे और अगले सुबह कि
भी न पकडे।'
'तुम भी तो लो।'
'मैं तो ले ही रहा हूं।' रघुबर ने नशे में लड़खड़ाने अभिनय किया-'तुम पियो छक कर।' दोनों सिपाही पहरेदारों में से किसी को नहीं मालूम था जिस नशे के कारण उन्होंने लड़खड़ाना शुरू कर दिया था वह
खाली अंग्रेजी ह्विस्की का ही नशा नहीं था बल्कि उसमें बेहोशी की दवाई भी मिली हुई थी।
उसने अपना असर दखाया तो एक तो अपना गिलास हाथ में थामें-थामें ही लुढ़क गया।
कुछ देर बाद झूमता-झामता दूसरा आया तो अपने बेहोश साथी को देखकर बोला-'इसे क्या हुआ?'
'शायद ज्यादा चढ़ गई है।' 'बस मैं और नहीं लेता।'
'अरे लो ना हवलदार। तुम्हारा हाजमा इतना कमजोर थोड़े ही है। अभी एक बोतल और चढ़ा जाओ तो भी पता न चले कि तुमने पी है।' सिपाही गिलास तो खाली कर गया मगर उसके साथ ही गिलास समेत लुढ़क गया।
रघुबर ने जब अच्छी तरह देख लिया कि दोनों पूरी तरह होश हो गए हैं तो एक ओर की झाड़ियों की तरफ उन्मुख होकर बोला-'आ जाओ उस्ताद काम हो गया।'
दूसरी झाड़ियों में मौके की इन्तजार में छुपा हरिया आवाज शुनते ही वहां पहुंच गया। उसने भी उन दोनों सिपाहियों को अच्छी तरह उलट-पलट-कर देखा। बय अच्छी तरह सन्तुरष्ट हो गया तो बोला-'अब नके हाथ-पैर बांध दिए जाएं।'
'क्या जरूरत है यार।' रघुबर बोला-'दोनों की हालत स वक्त मुर्दो से भी बदतर है। सुबह से पहले होश नहीं।'
'फिर भी जैसा भईया ने कहा है वैसा ही करना है।'
रस्सी से उन दोनों बेहोश सिपाहियों के हाथ पैर-बांध दिए है। उस काम से निबटने के बाद दोनों ने अच्छी तरह काम बट जाने की निश्चिन्तता के साब अपने हाथ झाड़े।
फिर हरिया बोला-'अब मैं बंगले पर नजर रखता हूर और
जाकर भइया को खबर कर दे। इन्तजार कर रहे होंगे।
'अब उस्ताद को तकलीफ देने की स्पा जरूरत है। मैदान साफ है। उस साले फारेस्ट आफिसर को अभी बंगले से बाहर निकालकर रेत देते हैं।'
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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'खबरदार।' रघबर को धमकाया हरिया ने-'काम वैसे ही होगा जैसा भईया ने बताया है। अब फटाफट लपक ले तू यहां से।'
'ठीक है।'
कहकर रघुबर तीव्र गति से एक ओर को चल दिया।

जगतार एक पत्थर पर चित्त लेटा हुआ तारों भरे आसमान को शून्य दृष्टि से घूरता हुआ अपने बाएं कंधे को सहला रहा था जिसमें अचानक ही फिर दर्द की लहरें उभरने लगीं थीं।
जेल से भागते समय जल्दबाजी में एक अजीब-सा झटका लगा और बायां कन्धा उतर गया था। अपने आप ही सिंकाई और मालिश वगैरहा करके उसने उसे काफी हद तक ठीक कर लिया था। लेकिन आज जब उसने कोधावेश में झटके के साथ केसरी को सिर से ऊपर उठा लिया था तो फिर एक झटका सा लगा और दबा हुआ दर्द उभर आया।
'नहीं...।'
साधना की चीख अब भी उसके कानों में गूंज रही थी।
अगर समय रहते साधना ने चीखकर उसे न रोक लिया। होता तो उसने वाकई केसरी को इस जोर से पटक दिया होता कि उसकी हड्डी-पसली चूर-चूर हो जाती।
उसने कभी सोचा भीई नहीं था कि जिन्दगी में कभी कोई
औरत इस बुरी तरह उसके दिल और दिमाग पर छा जाएगी जिस तरह कि साधना इन कुछ ही दिनों में छा गई थी।
इस जंगल में आते ही उसे लगभग सारी बातों का पता लग चका था। केसरी की हिम्मत की दाद देने को मन हुआ था पर?' उससे हुई पहली मुलाकात कोई खुशगवार नहीं रही थी।
साधना के साथ कुछ लोगों ने बलात्कार करने की कोशिश की थी यह भी उसे मालूम हो चुका था। उसे चोरी छुपे उसने

देख भी लिया था। उसके गठे हुए शरीर और गम्भीर रूप में एक अद्भुत चुम्बकीय सी शक्ति का अहसास तो उसे हुआ था किन्तु उसने यह नहीं सोचा था कि वह शक्ति उस जैसे पत्थर दिल इन्सान के भीतर भी कोमल भावनाओं की कोपलें उगाने में समर्थ होगी।
उस रात उसने कुछ व्यक्तियों को चोरी छु' गए बंगले की ओर बढ़ते देख लिया था। वह उस समय भी उन्हे देख रहा था जब उन्होंने बंगले पर पत्थर फेंकने शुरू किए थे।
लेकिन कोई हरकत नहीं की।
चुपचाप देखता भर रहा था।
उस समय वह वाकई मोहित सा हो गया था जब साधना को दरांती के साथ दश्मनों की ओर झपटते देखा था। तभो उसे लगा था कि वह कोई साधारण औरत नहीं है।
सहायता के लिए आगे बढ़ा तो चक्कर खाती हुई साधना अपने आप ही उसकी बाहों में आ गई। उसे चूमने का लोभ संवरण न कर सका था वह। उस समय उसने सोचा भी नहीं था कि वह गम्भीर और दृढ़ निश्चयी युवती उसे तलाश करती हुई जंगल में आएगी। पहले दिन वह जान-बूझकर उसके सामने नहीं आया और झाड़ियों में छुपा हुआ उसकी बेचैन खोब का आनन्द लेता रहा था।
जब अगले दिन भी बह आई तो अपने को रोक न सका।
उस समय तो वह चकित ही रह गया जब उसने साधना को अपने जेल अपराधी होने के बारे में बताते हुए अपने से दूर
रहने के लिए कहा तो साधना ने दृढ़ स्वर में जवाब दिया
था-'तुम जो भी हो जैसे भी हो उसी रूप में चुना है मैंने। अगर आगे के रास्ते पर साथ ले चलने के लिए तुमने मेरा हाथ थाम लिया तो तुम्हें विश्वास दिलाती हूं कि हम लोग कल की सारी कालिमा को धोकर एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करेंगे।'
वह चकित सा उसके दीप्ति-युक्त मुख को देखता हुआ उसके शब्दों का सही-सही अर्थ समझने की कोशिश करता रहा था। लेकिन अनुराग के वे क्षण अस्थायी साबित हुए।
प्रेम-महल की भावमानी भित्तियों को केसरी की तेज आवाजों ने हिलाकर रख दिया था।
साधना बौखला कर भागी थी।
यह झाड़ियों में छुरा सब देख रहा था। भाई-बहन के बीच पड़ने का उसका कोई इरादा नहीं था।
लेकिन जब साधना के गाल पर घाटा पड़ा तो वह अपने पर काबू न रख सका।
दुखते हुए कन्धे को सहलाता हुआ बह उठकर पत्थर पर बैठ गया।
उसके बाद झाड़ियों में अपने को छुपाए हुए कई बार बगले का चक्कर लगा आया था। लेकिन उस घटना के बाद जो बंगले में सन्नाटा छाया तो अब तक न टूटा।
उसने आकाश की ओर नजरें दौड़ाकर देखा न जाने क्या टाईम हुआ होगा।

अब तो पहरेदार सिपाही भी आ चुके होंगे।
साधना सो गई होगी या शायद न सोई हो। क्या वह भी उसकी तरह उसके ख्यालों में उलझी हुई होगी?' उसे भी सो जाना चाहिए।
वह फिर लेट गया। कुछ देर काले आसमान में हीरों से जड़े सितारों को देखते रहने के बाद उसने सोने की कोशिश में
आंखें बन्द कर ली।
लेकिन नींद कहां थी?
लग रहा था जैसे साधना अपनी सांसों के साथ उसे पुकार रही है। उठकर बैठ गया। अपनी बेवकूफी पर अजीव ढंग से सिर हिलाता हुआ वह धीरे से हंसा।
कहीं इश्क का भूत उसके सिर चढ़कर तो नहीं बोलने लगा जो यह अजीब किस्म के खुराफाती विचार उसकी खोपड़ी में चक्कर लगाने लगे हैं। साधना भला उसे इस वक्त क्यों बुलाएगी? वह भो अपनी सांसों के द्वारा पुकार कर-क्या बकवास है।
अपनी असलियत को भूलकर किसी विरही प्रेमी की तरह क्या अंट-शंट सोचने लगा है वह। फिर भी वह बैठा न रह सका। उठकर खड़ा हो गया।
अनजाने हो उसके कदम बंगले की ओर बढ़ गए। यह उसकी समझ में भी नहीं आ रहा था कि इस वक्त बंगले पर जाकर वह क्या करेगा। साधना तो मिलने से रही। आराम से सो रही होगी।
सिपाही रोज की तरह पहरा दे रहे होंगे।
लेकिन फिर भी वह चला जा रहा था अरने को झाड़ियों में छुपाए हुए सावधानी के साथ बिना कोई आवाज किए हुए। ताकि पहरा देने वाले सिपाहियों को उसकी कोई भनक न मिलने पाए।
वह एक ऐसी जगह पहुंच गया जहां से बंगले को बाखूबी देख सकता था वह। पहरा देने वाले सिपाही भी उसे नजर आ गए। लेकिन और दिनों की तरह वे सतर्क और चौकन्ने नहीं
थे। बल्कि आज उनकी चाल में अजीब सी लड़खड़ाहट थी।
यहां का माहौल काफी बदला-बदला सा लगा जगतार को।
वह अपनी जगह बैठा चौकन्नी निगाहों से सब कुछ खामोशी के साथ देख रहा था।
एक सिपाही झाड़ी के पीछे जाता था और दूसरा आता था?
ऐसा क्या है झाड़ी के पीछे? लेकिन कुछ ही देर बाद जगतार को अनुमान लगाने में दिक्कत नहीं हुई कि दोनों सिपाही नशे में लड़खड़ा रहे हैं
और झाड़ी के पीछे जो आना-जाना लगा रखा है वहां चूंट मारने जाते हैं?
क्यों?
एक बड़ा-सा प्रश्न जगतार के दिमाग में उभर आया और साथ ही उसे खतरे का अहसास सा होने लगा।
फिर भी मामले को पूरी तरह समझने के लिए वह खामोश
बैठा देखता रहा। उसे कोई सन्देह नहीं रहा था कि आज फिर कोई गलत चक्कर चल रहा है यहां।
उसके देखते-देखते दोनों सिपाही झाड़ियों के पीछे ओझल हो गए और कुछ देर बाद दो व्यक्ति झाड़ियों के पीछे से निकलकर आए।
वे दोनों पहरेदार सिपाही नही थे। न ही वे नशे में थे। पहरेदार सिपाही झाड़ियों के पीछे ही थे। शायद नशे में बेहोश।
वह उन दोनों व्यक्तियों की बातें सुनकर मामले की असलियत जानने की कोशिश करता रहा।
फिर एक व्यक्ति वहीं बंगले के पास रह गया और दूसरा व्यक्ति एक ओर को चला गया।
जगतार क्षण भर के लिए दुविधा में फंस गया कि उस व्यक्ति का पीछा करे या इस बंगले वाले व्यक्ति को संभाले?
अगले ही क्षण उसने निर्णय ले लिया। उस निर्णय के साथ ही वह उस चीते की सी सावधानी और खामोशी के साथ उस व्यक्ति की ओर बढ़ा जो अपने शिकार पर झपटने ही वाला हो।
इससे पहले कि हरिया किसी तरह के खतरे का आभास पाकर सावधान हो पाता, जगतार ने छलांग मारकर उसे दबोच लिया।

उसका हाथ हरिया के मुंह पर था ताकि वह चीख न सके और गर्दन बाहों के बीच में ऐसी फंसी हुई थी कि वह जरा भी हिलने की कोशिश करता तो हड्डी चटक जाए।
'कौन है तू?' जगतार ने हरिया की गर्दन पर अपनी बाहों का
दबाव डालकर पूछा।
मुंह बन्द होने के कारण हरिया सिर्फ मिमयाकर रह गया। साथ ही उसने अपनी जेब से पिस्तौल निकालने की भी कोशिश की। जगतार ने उसकी इस हरकत को भांपा और उसे उठाकर जमीन पर पटक दिया।
गर्दन पर घुटना रखा और जेब से पिस्तौल निकालकर उसके माथे पर रखता हुआ बोला-'अब बोल।'
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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लेकिन न जाने क्या हुआ था हरिया को कि उसने एक झटके के साथ जगतार के बन्धनों से निकल जाना चाहा और जगतार ने उसे दबाए रखने के लिए अपने घुटने पर एकदम पूरा जोर डाल दिया।
कुछ देर बाद जब उसने हरिया को कोई हरकत करते न देखा तो चौंका। उसने हरिया को जांचा तो पाया कि वह मर चुका था। घुटने के अतिरिक्त दबाव ने हरिया की गर्दन तोड़कर रख दी थी।
अनजाने में ही वह सब हो गया था और जगतार जानता था कि उस पर खेद व्यक्त करने का कोई मौका नहीं है।
उसने पिस्तौल अपने कब्जे मे की और हरिया की लाश उठाकर एक ओर झाड़ियों में डाल दी।
फिर उन झाड़ियों को देखा जिनके पीछे दोनों सिपाही गायब हुए थे।
उन्हें बेहोश हालत में रस्सियों से बंधा पाया। होश में लाकर उनके बन्धन खोलने की उसने कोई कोशिश नहीं की।
वह झाड़ियों से बाहर आया बौर फिर तीब गति से उस ओर को चल दिया जिधर वह दूसरा आदमी गया था।
:: ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

कालिया ने सिगरेट का कश लिया और अपनी रेडियम डायल की कलाई घड़ी की ओर देखा।
इतनी देर? आखिर कर क्या रहे हैं वे दोनों?
वह मन हो मन बुदबुदाय और फिर बेताबी के साथ अपना दायां हाथ जीप के बोनट पर फेरने लगा। हाथ में पहने हुए बघनखे के कारण धातु से धातु ने रगड़ खाई और एक अजीब
सी आवाज उत्पन्न हुई जिससे चौंककर उसने तुरन्त ही हाथ फेरना बन्द कर दिया।
वह बंगले से काफी दूर जंगल के एकान्त स्थल पर खड़ा सन्देश मिलने का इन्जरनार कर रहा था। क्योंकि इन्तजार कर रहा था इसीलिए ऐसा भी अनुभव कर रहा था कि हरिया
और रघुबर अपने काम में कुछ ज्यादा ही देर लगा रहे हैं। जब रघुबर आता दिखाई दिया तो उसकी बेचैनी फम हुई।
उसके निकट आने पर पूछा-'काम हो गया?'
'बिल्कुल उस्ताद।' रधुबर बोला-'दोनों के दोनों पूरी तरह चित्त हो चुके हैं। किसी भी हालत में सुबह से पहने होश में नहीं आ सकते। फिर भी सावधानी के नाते उन्हें अच्छी तरह से बांध भी दिया है रस्सियों से।'
'ठीक?' उसने सन्तोष के साथ सिर हिलाया-'हरिया वहीं है?'
'हां।' वैसे तो मैंने हरिया से कहा था कि आपको तकलीफ देने की कोई जरूरत नहीं है। मैदान बिल्कुल साफ पड़ा है। मैं ही उस फारेस्ट आफिसर के बच्चे को बाहर निकालकर ऊपर भेज देता।'
'नहीं, यह काम मैं ही करूंगा।'
कालिया ने सिगरेट का अन्तिम कश लेकर अपने जूते से कुचला और फिर बंगले की ओर बढ़ गया।
रघुबर उसके पीछे-पीछे था।
अभी उन्होंने बंगले तक का आधा रास्ता ही तय किया था कि तभी अपने पीछे कुछ अजीब सी आवाज सुनकर कालिया एकदम घूम गया। देखा कि रघुबर जमीन पर बेहोश पड़ा हुआ है और एक आदमी उसकी ओर पिस्तौल ताने हुए कह रहा था-'खबरदार, ज्यादा होशियार बनने की कोशिश की तो गोलियों से शरीर छलनी कर दूंगा।'

जगतार अभी आधे रास्ते में ही था कि तभी उसे खूछ आदमियों के आने की आहट सुनाई दी। वह तुरन्त ही पास के एक मोटे तने वाले पेड़ की आड़ में हो गया।
कुल दो व्यक्ति हैं-सोचा उसने? इन दो को सम्भालना तो कुछ ज्यादा मुश्किल नहीं होगा। स्थिति कुछ ज्यादा विषम नहीं है।
वह बिल्ली की तरह दबे पांव आगे बढ़ा और कालिया के पीछे जाते हुए रघुबर के सिर पर पिस्तौल के दस्ते की ऐसी खतरनाक चोट जमाई कि वह तुरन्त ही कटे पेड़ की तरह गिर पड़ा। मुंह से कोई आवाज तक न निकाल सका वह।
उसके गिरते न गिरते ही कालिया एकदम पलटा मगर तब तक जगतार उसे अपनी पिस्तौल के निशाने पर ले चुका था।
खामोश निगाहों से कालिया ने उसका ऊपर से नीचे तक निरीक्षण किया और फिर अपनी आवाज को यथा-सम्भव स्थिर रखने की कोशिश करते हुए उसने पूछा
'कौन है तू?' 'तू इस बक्त सवाल पूछने की स्थिति में नहीं है।' जगतार उसे पिस्तौल। के निशाने पर रखता हुआ बोला-'सवाल मैं पूछंगा
और जवाब तू देगा। बता तू कौन है और यहां क्या कर रहा है?'
अंधेरे के बावजूद भी कालिया ने उसे पहचान ही सिया। साधना और जमतार की जो फोटो हरिया और रघुबर ने उसे दिखाई थी, उससे ही मिलता-जुलता हुलिया मजर आया था उसे।
बोला-'तू जगतार है ना?'
'ठीक पहचाना और तू?' शायद कालिया है?' 'पहचाना हे ना मुझे?' 'देखा पहली बार है लेकिन नाम इससे पहले सुन चुका हूं।' 'शायद इस इलाके में नया-नया आया है जो मुझे इससे पहले नहीं देखा।' कालिया उसे आंखों से तौलता हुआ बोला-'कहां से आया है?'
'जेल से।'
'ओह।' कालिया ने समझदारी के साथ गर्दन हिलाई-'छूटकर या भागकर?'
'फेर तो ठीक जगह आया है तू।' कालिया ने धीरे से हंसकर कहा। साथ ही अपने तने हुए शरीर को ढीला छोड़ता हुआ बोला-'अब फिकर मतकर। जब कालिया के इलाके में आ गया है तो उसका शरणागत है तू। अब कोई तेरा बाल बांका
भी नही कर सकता। अब जा यहां से। कल सुबह मुझे मिलिये। कोई-न-कोई इन्तजाम करवा देगा।'
'मगर तुम कहां चले कालिया सेठ।' 'अब फालतू बातें करके वक्त खराब मत कर। अभी मुझे जरूरी काम निपटाने दे।'

'हम भी तो सुने वह जरूरी काम क्या है?'
कालिया अप्रसन्नता सी व्यक्त करता हुआ बोला-'देख पिछली बार तूने इस फारेस्ट आफिसर वाले मामले में मेरे आदमियों पर हाथ उठा दिया था। जानता हूं ऐसा अनजाने में हुआ होगा। इसलिए वो कसूर तेरा माफ कर दिया मैंने। अब इस वक्त मेरे काम में टांग अड़ाई तो बहुत बुरा होगा तेरे लिए।' 'बुरा तो तुम्हारे लिए होगा कालिया सेठ, अगर तुम यहीं से
वापिस नहीं लौट गए तो।'
यह तू बोल रहा है या फारेस्ट आफिसर की बहन का इश्क?' कालिया ने क्रोध मे आकर कहा।
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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जगतार का इस तरह बीच में कूदकर टाईम खराब करना उसे उत्तेजित करने के लिए पर्याप्त था।
'जो कुछ भी बोल रहा है उसकी आवाज अच्छी तरह से सुन लो।' जगतार एक एक शब्द पर जोर देता हुआ बोला-'तुमने या तुम्हारे आदमियों ने इस बंगले को तरफ आंख उठाकर देखने की कोशिश भी की तो मैं तुम्हारी ईट से ईट बजा दूंगा।' 'तुम मुझे धमकी दे रहे हो?'
'नहीं।' जगतार मुस्करा कर बोला-'दोस्ताना सलाह दे रहा हूं।'
'मैं तुम्हारे बारे में पुलिस को खबर कर दूंगा।'
'बड़े भोलो हो कालिया सेठ। पुलिस जब मुझे जेल में ही पकड़कर न रख सकी तो इस जंगल में तो क्या पकड़ पाएगी। तुम्हारी बेहतरी इसी में है कि जिस रास्ते से आए हो
चुपचाप उसी रास्ते से वापिस लौट जाओ।'
कालिया ने लाचारी से अपने कंधों को झटका दिया और फिर वापिस लौटता हुआ वह बोला-'मेरी दुश्मनी की बहुत बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी तुम्हें...।'
और जगतार के पास से गुजरते हुए अचानक ही...| उसका वांया हाथ जगतार के पिस्तौल वाले हाथ पर पड़ा
और बाएं हाथ का झपट्टा जगतार की दूसरी बांह पर पड़ा। खाल समेत नुचता चला गया और उसके साथ कमीज का वह हिस्सा भी फटकर खून के साथ भीगता हुआ अलग हो यया।
पिस्तौलै वाले हाथ पर हाथ मारने के बावजूद भी जगतार के हाथ से पिस्तौल न निकली थी।
कालिया के उस अप्रत्याशित आक्रमण से वह हतप्रभ-सा तो रह गया था किन्तु फिर भी उसने फायर किया। एड़ियों पर घूमता हुआ कालिया गोली को वचा गया। साथ ही उसने जगतार की गरदन पर झपट्टा मारा। जगतार को लगा जैसे किसी शिकारी जानवर का मजबूत पंजा उसकी गरदन पर पड़ा हो और गरदन से मांस नुचता चला गया।
इस बार भी पिस्तौल उसके हाथ से न निकल पाई।
फिर भी जगतार पीछे को हटा। खून उसके घावों से किसी तेजधार झरने की तरह उबलता हुआ-सा बहने लगा था। उसने फिर से पिस्तौल का निशाना लेना चाहा।

लेकिन तब तक कालिया फिर से उस पर झपट चुका था।
इस बार जगतार ने उसके दाएं हाथ को कलाई से पकड़ लिया। कालिया ने अपने दूसरे हाथ से उसके पिस्तौल बाले हाथ की कलाई थाम ली थी।
जगतार ने ट्रिगर दबाया। पिस्तौल का निशाना कहीं और था। इसलिए गोली कालिया को कोई नुकसान पहुंचाए बिना जंगल के अंधेरे में कहीं खो गई।
दोनों एक-दूसरे से क्रुद्ध सांडों की तरह जूझ रहे थे।
जगतार ने कालियों की टांगों के जोड़ पर अपने घुटने की चोट की। लेकिन उसने खुद महसूस किया कि उसकी चोट में कोई दम नहीं है। शायद निरन्तर बहते हुए खून के कारण यह अपने आपको कालिया के मुकाबले कुछ कमजोर-सा होता महसूस कर रहा था।
फिर भी वह अपनी समस्त शक्ति के साथ उसके दाएं हाथ की कलाई पकड़े हुए था। उसकी समझ में न आया था कि कालिया के हाथ में ऐसी क्या चीज है जिससे वह इतने खतरनाक बार करने में समर्थ हुआ था। लेकिन वह इतना जरूर जानता था कि वह बहुत ही खतरनाक चीज है जिसके ब्लेड जैसे तेज धार और पैने आघातों से कालिया उसे चीर-फाड़कर बराबर कर देगा।
इसलिए वह प्राणपण से उसके दाएं हाथ की कलाई को मजबूती से पकड़े हुए उसे अपने से दूर रखने की कोशिश कर रहा था।
आखिर कालिय ने उमे गिरा लिया।

दोनों में जबर्दस्त गुत्थम-गुत्था हो रही थी। कभी वह ऊपर कभी वह नीचे। दोनों ही अपने-अपने हथियारों से सम्पन्न हाथों को एक-दूसरे की पकड़ से छुड़ा लेना चाहते थे।
दो खतरनाक जानवर उस भयानक मृत्यु-संघर्ष में प्राणपण से जूझ रहे थे।
कालिया की मजबूत उंगलियां उसके पिस्तौल वाले हाथ की कलाई पर कसी हुई थीं। और जगतार अपनी समस्त शक्ति से कालिया के उस खतरनाक दाहिने हाथ को अपने से दूर रखने की चेष्टा में लया हुआ था।

लेकिन लगातार बहते हुए खून के कारन निरन्तर क्षीण होती हुई शक्ति जगतार को यह सोचने पर मजबूर कर रही थी कि आखिर वह कब तक कालिया के उस हाथ को रोके रहेगा। उसने कालिया के नीचे दबे-दबे ही अपने घुटनों की चोट उसकी टांगों के जोड़ पर मारनी शुरू की। लेकिन कालिया पर उसका कोई असर नहीं हो रहा था। जगतार को खुद महसूस हो रहा था कि उसकी चोटों में कोई जान नहीं है। वह निरन्तर कमजोर होता जा रहा था। इसके वावजुद भी वह सुनार की ठक-सी किए जा रहा था। हालांकि इस बारे में भी उस कोई शक नहीं था कि कई क्षण जा रहा है जब कालिया लुहार की एक पड़ेगी और फिर सबकुछ खत्म हो जाएगा।
वह नहीं जानता कि वह उसकी ठुक-ठुक का परिणाम था या कुछ और जगतार को अपनी कलाई पर कालिया की पसीने से भीगी हुई उंगलियां कुछ ढीली पड़ती-सी महसूस हुई। उसके साथ ही जगतार के भीतर विस्फोट-सा हुभा-उसके कमजोर होते हुए शरीर में शक्ति का अन्तिम विस्फोट।
वह झटके-से अपना पिस्तौल वाला हाथ कालिया के पेट के निकट ले आया और कमजोर पड़ती उंगलियों से ट्रिगर खीच दिया। और गले से अजीब-सी आगज निकालता हुआ
कालिया किसी आलू के बोरे की तरह उस पर से लुढ़क गया।
अपने ही खून से लथपथ जगतार एक झटके के साथ उठकर खड़ा हो गया। धुंधलाती हुई दृष्टि से उसने देखा कि कालिया दोनों हाथों से अपना पेट पकड़ हुए गुड-मुड-सा पड़ा है।

बंगले की ओर से आवाजें-सी आती सुनाई दी।
गरदन घुमाई। घुमाने में तकलीफ हुई। कुछ स्पष्ट नजर नहीं आया। रात का अंधेरा और भी अधिक काला होता जा रहा था। नजर धुंधलाए चली बा रही थी। फिर भीए उसने देखा दो जने थे। उनमें एक शायद औरत थी।
साधना?
तभी कालिया कुछ हरकत-सी करता हुआ लगा। उसने पिस्तौल का रुख तुरन्त सकी ओर कर दिया। मगर उंगलियों में अब उसे पकड़े रहने की ताकत नहीं बची थी। अपने आप ही स्तिः ऐल उसके हाथ से निकलकर जमीन पर गिर गई।
उसके साथ ही चकराकर वह भी गिर गया।
कुछ अस्पष्ट-सी आवायें सुनाई थी. एक घुटी-पूटी चीख-सी। फिर किसी की कोमल उंगलियों का स्पर्श।
कोमल उंगलियों ने उसका सिर उठाकर अपनी गोद में रख लिया।
'केशो, जल्दी से दौड़कर जीप तो ले आ भइया?'
साधना का स्वर।
उसकी साधना का स्वर।
एक स्वर्गिक शान्ति का-सा अनुभव किया। खुरदरे होंठों पर सन्तोष की मुस्कान ने मचलने की एक असफल कोशिश की।
उसे लगा कि साधना का स्वर कहीं दूर बहुत दूर विलीन-सा होता जा रहा है और वह उसे पकड़ने के लिए उसे आवाजें देता हुआ दौड़ा चला जा रहा है-उसके पीछे।

अजीब-सी आवाजें जो मधु मक्खियों की भिनभिनाहट सरीखी लग रही थी। धीरे से आंखें खोलीं। एक धुंधलाए से बेचैन चेहरे को अपनी ओर ताकते पाया।
साधना?
हां, साधना ही थी वह।
दश्य कुछ और साफ हुआ। उसके निकट खड़ा केसरी भी दिखाई दिया। दो सफेद-सी वर्दियों भी। शायद डाक्टर और
नर्स थे। वही तो थे।
तो हास्पिटल में है वह।
'कैसा महमूस कर रहे हो?' उसके पट्टियों बंधे सरीर पर धीरे
से हाथ डुलाते हुए पूछा साधना ने। कितना सुखद और सन्तोषदायक था उसके हाथ का वह स्यर्श।
'ठीक हूं।'
'बोलने में दर्द हुआ था जैसे सारे गले की नसें सूज-सी गई हों। मगर फिर भी उसे इस बात का सन्तोष था कि वह बोल सकता था। उससे भी ज्यादा सन्तोष इस बात का था कि वह
जीवित है।
'रात को वह सब हंगामा अकेले ही कर बैठे?' केसरी आगे को झुकता हुआ बोला -'कम-से-कम मुझे ही जगा लिया होता?'
'इसका मौका न था।' वह अवीब-सी आवाज में बोला। फिर प्रश्न-सा किया-'कालिया?'
'वह भी बचा लिया गया है?' केसरी बोला-'गोलियों की
आवाजों ने हमें चौंका दिया था। बाहर निकलकर देखातो पहरेदार भी नहीं था। कुछ समझ में न आया। तभी गोली की आवाज फिर सुनाई दी। तुम्हारी तरफ दौड़कर पहुंचे। जब तक तुम्हारे निकट पहुंचते तब तक तुम चक्कर खाकर गिर पड़े थे। दीदी ने मुझे फौरन जीप लाने के लिए कहा। फटाफट तुम्हें और कालिया को जीप में डालकर यहां लाए। डाक्टरों ने एड़ी चोटी का जोर लगा दिया तुम लोगों को बचाने के लिए।'
'वह भी यहीं है?' पूछा जगतार ने।
'हां इसी मंजिल पर आखिरी वाला कमरा उसका है।' केसरी बोला-'लेकिन अब पुलिस के चंगुल से न बच सकेगा। खून से रंगा बघनखा उसके हाथ में था। साफ जाहिर है कि पिछले फारेस्ट आफिसर को भी किसी जानवर ने नहीं बल्कि इसी कालिया ने मारा था अपने इस बधनखे से, तुम्हें भी तो किसी जानवर की तरह ही नोंच डाला है उसने। शुक्र है कि चेहरा बच गया।'
लेकिन जगतार उसकी बात नहीं सुन रहा था। वह तो साधना के उदास चेहरे को देखे जा रहा था। न जाने क्यों उस चेहरे को देखकर एक अजीब सकून-सा मिल रहा था।
'लेकिन कालिया का भाई हरिया भी तो मारा गया है।'
'उसने केसरी को कहते सुना।
'उसे किसने मारा?'

'मैंने मारा है।'
'यह तुमने मलत किया?'
'मैंने उसे जानबूझकर नहीं मारा। न मेरा इरादा उसे मारने का
था। बस हाथापाई में मारा गया।'
तभी एक पुलिस अधिकारी ने वहां प्रवेश किया। उसके साथ दो सिपाही भी थे।
'यह भीड़ कैसी लगा रखी है आप लोगों ने?' वह आते ही बोला। फिर केसरी की ओर उन्मुख होकर उसने कहा-'चलीए
आप लोग बाहर चलिए।'
केसरी बाहर जाने को हुआ। लेकिन साधना वहीं बैठी रही तो पुलिस अधिकारी उससे भी बोला-'मेहरबानी करके आप भी बाहर चलिए।'
'इन्हें मेरे पास ही रहने दीजिए।' जगतार कमजोर-सी
आवाज में बोला।
'अभी नहीं बाद में।' पुलिस अधिकारी बोला-'पहले तुम्हारी
घेराबन्दी कर लें हम लोग।'
केसरी और साधना बाहर आ गए। भ्रमित-सी साधना दरवाजे के पास ही ठिठककर खड़ी हो गई।
'घर चलो दीदी।' केसरी बोला-'यहां रुकने से कोई फायदा नहीं। पुलिस अब हमें उसके पास नहीं जाने देगी।' 'मैं यहीं रहूंगी।' साधना ने कहा और दरवाजे के निकट ही दीवाल के साथ बनी एक बैंच पर बैठ गई।
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