फोरेस्ट आफिसर

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rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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कोई चमत्कार ही उसे बचा सकता था और यह जानता था कि आजकल के वैज्ञानिक युग में चमत्कारों की कहीं कोई गुंजाईश नहीं है।
उसने बड़ी ही कमजोर सी आवाज में अपने सेक्रेटी से कहा-'वह प्रेस कांफ्रेंस कैंसिल कर दो सेठी। वजह कोई भी बता देना।'

जेल से भागे एक अपराधी द्वारा चंगल के खामोश अंधेरों में
खेला गया रूह को कंप-कंपा देने वाला खूनी खेल।
अखवार की इन सुर्खियों के नीचे छोटे अक्षरों में पूरी खबर इस प्रकार छपी थी-पिछले दिनों जेल से भागकर जगतार नामक एक खतरनाक खुजरिम जंगल में आ छपा। कहा जाता है कि इस मुजरिम की सहायक न केवल कुछ देवी शक्तियां हैं बल्कि इसन एक वशीकरण मंत्र भी सद्ध कया हुआ। यह अजीबो गरीब रक्तरंजित कहानी उसके इस वशीकरण मंत्र से ही सम्बन्धित है।
पिछले दिनों जंगल में एक नए फारेस्ट आफिसर श्री के. सी. केसरी की नियुक्ति हुई। श्री केसरी न केवल एक ईमानदार
और मेहनती अफसर हैं बल्कि एक ऐसे परिवार से सम्बन्धित हैं जिसकी रगों में साहस और तपस्या कूट-कूटकर भरी हुई है। जिसका जीता जागता उदाहरण है उनकी बड़ी बहन कुमारी साधना। त्याग और तपस्या की इस देवी ने बचपन में ही मां बाप के मर जाने के कारण अनाथ हो गए अपने भाई-बहनों की जिम्मेदारी जिस साहस के साथ सम्भाल कर उन्हें पढ़ा लिखा कर शिक्षित किया इसकी मिसाल कहा और मिलनी मुश्किल है।
उस देवी की सुशीलता और सच्चरित्रता की कसमें खाई जाती
था।
किन्तु यहां आते ही अनहोनी हो गई। उस देवी की सुन्दरता पर जगतार की कुटिल दृष्टि पड़ी और उसने कुमारी साधना के धवल यश रूपी चन्द्रमा को राहु की तरह ग्रस लिया।
अपने सिद्ध वशीकरण मंत्र का प्रयोग करके उसने उस देवी की ऐसी बुद्धि हरी कि वह दीन दुनिया भूलकर उसी की दीवानी हो गई। यह बात जब फारेस्ट आफिसर केसरी को मालूम हुई तो एक भाई होने के नाते अपनीवहन की वह हालात देखकर चिन्तित हुए। जो कि स्वाभाविक भी था। बहन को समझाने की कोतिश की लेकिन बेसुद। क्योंकि वह बेचारी तो वशीकरण मंत्र के प्रभाव में होने के कारण कुछ भी सोचने समझने से लाचार थी।
श्री केसरी पुलिस में भी इस रिपोर्ट को दर्ज नहीं कराना चाहते थे। क्योंकि इसमें बदनामी का डर था और एक शरीफ भाई भला अपनी बहन की बदनामी कैसे बर्दाश्त कर सकता था।
आखिर उन्होंने अपने मित्र कालिया से जो कि जंगल के ठेकेदार भी हैं, अपनी परेशानी का जिक्र किया।श्री कालिया ने बातचीत द्वारा मामले को सुलझाने के उद्देश्य से जगतार से मिलने का निश्चय किया।
चूंकि जगतार एक फरार मुजरिम था इलिए वह दिन में मिलने का खतरा तो मोल नही बे सकता था। इसलिए रात में मिलना निश्चित हुआ। निश्चित समय पर थी कालिया अपने छोटे भाई हरिया के साथ जगतार से मिलने के लिए जंगल में गए। उन्होंने जगतार
को प्रेमपूर्वक समझाने की कोशिश की कि वह उस देवी का पीछा छोड़ दे और उसे अपने वशीकरण मंत्र से मुक्त कर दें। बदले में जितना भी धन वह चाहता है वे देने के लिए तयार
लेकिन उस काम लोलुप कुटिल कामी जगतार के कानों पर जूं तक न रेंगी।
जब श्री कालिया ने उस पर किसी भी तरह की बातचीत और अनुनय-विनय का असर होते न देरवा तो उसे डराने के लिए धमकी दी कि अगर वह जंगल छोड़कर नहीं गया तो वे उसके बारे में पुलिस को सूचना दे देंगे। बस इतना सुनते ही वह नरपिशाच इतना उत्तेजित हुआ कि उसने वही श्री कालिया के छोटे भाई हरिया की हत्या कर दी
और श्री कालिया को भी बुरी तरह घायल कर दिया। श्री केसरी ने बीच बचाव किया जिसमें जगतार भी कुछ घायल हुआ।
दोनों का इलाज शहर के अस्पताल में हो रहा है जहां श्री
कालिया की जिन्दगी और मौत के बीच एक गहरी कशमकश चख रही है।
हम अधिकारियों से पूछना चाहते हैं कि जगतार जैसा
भयानक कैदी जेल से आखिर भागा कैसे? उसे फांसी पर क्यों नहीं चढ़ा दिया गया।
हरिया का पिछले ही साल विवाह हुआ था। उसकी विधवा पत्नी अपनी सूनी मांग और उजड़े सुहाग के साथ यह जानना चाहती है कि आखिर कब तक जगतार जैसा क्रूर कर्मी अपराधी उस जैसी सुहागनों के सुहाग को छीनता रहेगा। उसकी छ: माह की अनाथ हो गई अबोध बच्ची अपनी आंसू भरी आंखों के साथ अपने उस बाप को ढूढ़ रही है जो उसे अब कभी नहीं मिलेगा।
आखिर कब तक जगतार जैसा खतरनाक अपराधी लोगों का सुख-चैन छीनता रहेगा। उनकी खूबसूरत जिन्दगियों को रौंदकर मौत के घाट उतारता रहेगा?'
आखिर कब तक?
केसरी ने पूरा अखबार पढ़ा और जगत सेठ की ताकत को मन-ही-मन माना कि स्याह को सफेद और सफेद को स्याह कर देना उस आदमी के बाएं हाथ का खेल है।
अभी साधना को साफ बचा ले गया है वह। लेकिन अगर उसने उसके चंगुल से निकलने की कोशिश की तो तस्वीर के दूसरे पहलू का प्रचार करने में भी वह देर नही लगायेगा।
सुपरवाईजर ही उसे अखवार देकर गया है। अखबार देने के साथ वह उसके बारे में कुछ चर्चा भी करना चाहता था। लेकिन उसे टालकर भेज दिया था।
वह खबर पढ़ने बैठ गया था।
साधना हास्पिटल जाने की तैयारी कर रही थी। वह तो रात
को भी वहीं रुकना चाहती थी लेकिन पुलिस वालों ने रुकने नहीं दिया।
दोनों भाई-बहनों में बातचीत लगभग बन्द-सी ही थी। फिर भी अखबार लेकर वह उसके पास गया।
'अगर हास्पिटल न जाओ तो बेहतर है।' केसरी ने उसकी
ओर अखबार बढ़ाते हुए कहा-'अखबारों तक में चर्चे होने लगे हैं।'
'बदनामी से सिर्फ वे ही लोग डरते हैं जिनके दिल में पाप होता है।' साधना ने अखबार को बिना पड़े ही एक ओर रखते हुए कहा।
'नही।' वह दोषपूर्ण स्वर में बोला-'बदनामी से वो लोग डरते हैं जिनमें थोड़ा भला-बुरा सोचने-समझने की बुद्धि होती है।'
लेकिन साधना ने कोई जवाब नहीं दिया।
वह जाने के लिए उद्यत थी। लेकिन फिर भी न जा सकी। क्योंकि तभी एक जीप वहां आकर रुकी और उसमें से वही पुलिस अधिकारी नीचे उतरा जिसने कल हास्पिटल में साधना को समझाने की कोशिश की थी।
'लगता है मैं सही वक्त पर आया हूं।' साधना को तैयार देखकर वह बोला-'कल ही तुम्हारी बातों से मैंने अन्दावा लगा लिया था कि तुम काफी जिद्दी किस्म की लड़की हो आर
शायद अखबार पढ़ने के बाद भी रुषेगी नहीं। मेरा अनुमान ठीक ही निकला। मैं वैसे इन मंत्र-वंत्र की बातों में विश्वास नहीं रखता। लेकिन तुम्हारी हालत देखकर मुझे भी यकीन होने लगा है कि वाकई उसने तुम पर किसी वशीकरण मंत्र का प्रयोग किया हुआ है। बहरहाल मुझे इन बातों से क्या लेना-देना। लेकिन तुम अब हास्पिटल न जा सकोगी क्योंकि अखबारों में यह सब छपने के बाद खतरा है कि लोग तुम्हें देखने के लिए हास्पिटल के बाहर जमा होना न शुरू हो जाए। पहले ही हमारी दिक्कतें बहुत बढ़ी हुई हैं। अब उन्हें और बढ़ाने की जरूरत नहीं।'
पुलिस के आगे साधना भी मजबूर थी और उसे विवश होकर रुकना ही पड़ा।
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सांप की कोटर।
वह सुबह के इस वक्त जबकि सूरज आसमान पर काफी ऊंचा उठ आया था दीगर के ऊपर लिखे हुए शब्दों को नहीं देख रहा था। बल्कि बरामदे के बाहर खड़ा सामने के पेड़ की एक कोटर को देख रहा था जिसमें से एक काला सांप अपनी चिरी हुई जोमों को लपलपाता हुमा धीरे-धीरे रेंगकर गहर निकल रहा था।
कालिया नाग-पहले यही शब्द उसके मस्तिष्क में उभरे। फिर वह गर्दन को झटका देता हुत्रा मन-ही-मन बोला कालिया नहीं जगन सेठ। नहीं यह नाग जगन सेठ भी नहीं हो सकता। क्योंकि जगन सेठ तौ आदमी के वेष में इससे भी अधिक खतरनाक और जहरीला नाग है। जिसका काटा पानी भी न मांगे।
नाग कोटर से निकनकर पेड़ की डाल पर बन खाता इमा सरककर आंखों से ओझल हो गया। लेकिन यह फिर मी बपने असम्बद्ध विचारों में उलझा रहा।
तभी सुपरवाईजर की आवाज सुनकर चौंका। देखा कि बहु हाथ में अबजार लिए हुए तेजी से उसी की ओर लपका चला रहा था-'कुछ सुना आपने सर? कमाल हो गया। कल रात जगतार हास्पिटल से कालिया की हत्या करके
भाग गया।'
'क्या कहते हो?' वह एकदम चौंककर आश्चर्य मिश्रित स्वर में बोला।

'अखबार देखिए सर, आज की सबसे बड़ी सनसनीखेब
खबर तो यही है।' उसने झपटकर सुपरवाईजर से अखबार ले लिया और पढ़ने लगा। मुख पृष्ठ पर ही छपी थी वह खबर-खतरानक कैदी जगतार पुलिस निगरानी के बावजूद हास्पिटल से भागने में कामयाब।
भागते समय भी वह अपना बदला लेना नहीं चूका। जाते-जाते कालिया की हत्या करता गया।
कल रात लगभग दस बजे अचानक ही हास्पिटल की लाईट चली गई और चारों ओर घष्य अंधेरा छा गया। उस अंधेरे का लाभ उठाकर पुलिस निगरानी से भागने में कामयाब हो गया। जब बत्ती आई जोकि जगतार के ही किसी सहयोगी द्वारा मेन- स्विच बन्द कर दिए जाने के कारण चली गई थी, तो एक नर्स ठेकेदार कालिया के कक्ष में प्रविष्ट हुई और यह देखकर वह चीख पड़ी कि ठेकेदार कालिया की लाश फटी-फटी आंखों से उप घूर रही थी। ठेकेदार के मफलर से हा गला घोंट कर उनकी हत्या कर दी गई थी। इन पंक्तियों के प्रेस में जाने तक कोई विशेष विवरण प्राप्त नहीं हो सका लेकिन पुलिस का अनुमान है कि यह जगतार का ही काम है।
पाठकों को याद होगा कि इस संवाददाता ने कल ही
अधिकारियों को जगतार के बारे में सावधान |
लेकिन उसने अन्तिम लाईनों को पूरा पढ़ना जरूरी नहीं समझा। वह अखबार लेकर भीतर गया जहां साधना अपनी पूत्रा की तैयारी कर रही थी।
'लो देख लो अपने उस जगतार का नया करिश्मा।' यह
अखबार उसकी ओर बढ़ाता हुआ बोला-'अब वह कालिया की हत्या भी करके भाग गया।'
साधना ने अखबार लेकर एक सरसरी सी नजर सुर्खियों पर डाली और उपेक्षा से उसे एक ओर रख दिया।
'क्यों पूरी खबर पड़ने के की हिम्मत नहीं।' बह बोला-'अब तो आंखें खोलो दीदी और समझो कि उस खूनी और बहशी के लिए आदमी की जान की कोई कीमत नही, वह तुम्हारी पवित्र भावनाओं को क्या कभी समझ पाएगा।'
'मुझे कितनी बार कहना होगा केशो कि मैं उनके बारे में एक
शब्द भी गलत नहीं सुन सकती।'
उसक चेहरा फिर कस गया। पुछ क्षण तक अपलक देखता रहा। फिर बोला
'आखिर तुम्हें क्या हो गया है दीदी?' वह अजीब बिबशता
भरे स्वर में बोला-'एक खतरनाक अपराधी के पीछे तुम अपनी अच्छी-भली जिन्दगी खराब करने पर तुली हुई हो। अब तो मुझे भी इस बात का यकीन हो गया है कि उसने तुम पर किसी वशीकरण मन्त्र का ही प्रयोग किया है। कहो तो किसी ओझा को।'
'हां हां वशीकरण मन्त्र का प्रयोग दिया है उन्होंने मुझ पर।' साधना मानो फ्ट-सी पड़ी-'जानते हो बह वशीकरण मन्त्र है उनका उस रात अपनी जान पर खेल जाना जब कालियाने अपने गुण्डे हम लोगों को मारने केलिए भेजे थे। वह वशीकरण मन्त्र है उनका दो रात पहले उस कालिया से उलझ जाना जो रात के अंधेरे में हमें मारने के लिए खुद आया था। उस दरिन्दे से जूझते हुए वे खद मौत के मुंह में पहुंच गए लेकिन हम लोगों पर कोई आंच नहीं आने दी। वेह वशीकरण मन्त्र उस पापी कालिया को उसके किए की सजा देना जिसने हमारी जिन्दगी हराम कर दी थी। नही तो मुझे बताओ कि उनकी कालिया से अपनी क्या दुश्मनी थी?'
इस बात का कोई जवाब नहीं था उसके पास। उसने नजरें घुमाकर देखा तो सुपरवाइजर के बातें सुनता पाया। उसे अपनी ओर देखता पाकर सुपरवाइजर नाक का चश्मा ठीक करके वहां से सरकता हुआ बोला-अच्छा तो मैं जाकर मजदूरों को देखता हूं सर।'
सुपरवाइजर के पीछे-पीछे वह भी बाहर निकल आया।
दीदी से बहस करने का कोई लाभ नही था।
अचानक उसकी नबर पेड़ के उस कोटर की ओर उठ गई जिसमें से उसने नाग को निकलते हुए देखा था।
पहले रेंगकर नजरों से ओझल हो गया हुआ नाग इस बीच लौट आया था और कोटर के किनारे पर बड़े मजे से फन उठाए धूप सेक रहा था।
उसे लगा जैसे वह नाग नहीं बल्कि खुद जगन सेठ बैठा हुआ उसका मुंह चिढ़ा रहा है। इच्छा हुई कि अभी जाकर इस नाग
का फन कुचलकर मार डाले।

फिर उसने अपने-आपको समझाया कि ऐसी मूर्खतापूर्ण बातें
सोचने से क्या फायदा? इस नाग को मारने से कोई जगन सेठ थोड़े ही मर जाएगा।
एक दीर्घ निःश्वास के साथ वह धीरे से बड़बड़ाया-'तुम क्या जानो दीदी कि सिर्फ कालिया को मार देने भर से कुछ नहीं होने वाला। और भी न जाने कितने बड़े-बड़े नाग हैं जिन्होंने जिन्दगी में जहर घोल दिया है। तुम्हारा जगतार कितनों को मारेगा?'
सोचते-सोचते उसे लगा कि उसकी आंखें सजल हो आई हैं।
आस्तीन से उन्हें पोंछते हुए उसने महसूस किया कि कितना कमजोर और बेबस हो गया है वह।


जगतार ने अपने भागने का समाचार अखबार में पढ़ा और फिर उसे एक ओर रखते हुए उसने जगन सेठ की ओर
देखकर कहा-'लेकिन यह कालिया बाला किस्सा क्या हुआ? मैंने तो उसे मारा नहीं है।'
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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जगतार ने अपने भागने का समाचार अखबार में पढ़ा और फिर उसे एक ओर रखते हुए उसने जगन सेठ की ओर
देखकर कहा-'लेकिन यह कालिया बाला किस्सा क्या हुआ? मैंने तो उसे मारा नहीं है।'

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धीरे से' मुस्कराया जगन सेठ और उसने अपने पीछे खड़े भैरोंसिंह की ओर संकेत करते हुए कहा-'यह काम हमारे भैरोंसिंह का है। अन्धेरे का लाभ उठाकर जब तुम्हें हास्पिटल से बाहर ले जाया जा रहा था तब भैरों, कालिया का काम तमाम कर रहा था।'
'लेकिन जंगल में जो कुछ मैंने सुना उससे तो लगता था कि
भैरों, कालिया का खास आदमी हैं। उस फारेस्ट आफिसर के पास रिश्वत लेकर सबसे पहले यही तो गया था शायद।'
'हम तो सरकार के गुलाम हैं जगतार गुरु।' भैरों ने जनन सेठ के प्रति खुशामदी से स्वर में कहा-'इन्होंने कहा कालिया की नौकरी करो, हम कालिया की नौकरी में चले गए। भैरों की

जिन्दगानी तो सरकार की जूतियों की नोक पर रखी है। हुक्म दें तो अभी अपनी खाल खिंचवाकर हुजूर के कदमों में बिछवा दूं। "ऐसे वफादार लोग ही जिन्दगी में तरक्की करते हैं।' जगतार ने एक नजर उसकी ओर देखते हुए कहा। फिर जगन सेठ की ओर उन्मुख होकर बोला-'लेकिन मैंने तो यह भी सुना था कि कालिया एक किस्म से दाहिना हाथ था आपका। फिर उसके साथ यह सलूक क्यों किया गया।' 'बहुत कुछ सुन रखा है तुमने?'
'लोगों की जनाने बात करेंगी तो काम सुनेंगे भी।' जगतार अपनी गरदन और हाथ की पट्टियों पर हाथ फिराता हुआ बोला।
'बात तो सही कर रहे हो।' जगन सेठ ने धीरे से मुस्करा कर
कहा, 'दरअसल कालिया कुछ-कुछ यरूरत से ज्यादा ही पसरने लगा था। अपनी बेवकूफियों के कारण उसने इस फारेस्ट आफिसर वाले मामले को इस बुरी तरह बिगाड़ कर रख दिया। तुम जैसे बहादुर और दिलेर आदमी से उसे दोस्ती करनी चाहिए थी लेकिन वह मूर्ख तुम्हें भी अपना दुश्मन बना बैठा। और घायल होने के बाद तो उसका दिमाग कुछ ऐसा खराब हो गया कि बजाए इसके कि वह बिगड़े हुए मामले को सम्हालने का मुझे मौका देता, वह मुझ पर यह जोर डालने लगा कि मैं भैरों से तुम्हारी हत्या करवा दूं। इन सब बातों को देखते हुए मुझे यकीन हो गया कि कालिया अगर जिन्दा रहेगा तो मुसीबतें ही बढ़ाएगा। लिहाजा उसे खत्म करवाने
का फैसला मुझ लेना ही पड़ा।'
'आपने कालिया की बात मानने की बजाए मुझने दोस्ती
करना बेहतर समझा इसके लिए आपका शुक्रिया।' जगतार बोला-'मुझमें आपकी दिलचस्पी का कारण? कहीं जो काम कालिया करता था वह मुझसे तो नहीं करवाना चाहते?'
'नही भाई।' जगन सेठ ने कहा, 'कालिया की गद्दी का
असली हकदार तो भैरोंसिंह है।'
'तो फिर पुलिस की घेराबन्दी के बावजूद मुझे हास्पिटल से निकालने का खतरा क्यों मोल लिया आपने?'
'एक तो यह साबित करने के लिए कि कहीं कालिया का दोस्त होने के नाते तुम हमें भी अपना दुश्मन न समझने
लगो।'
'और दूसरे?' जगतार ने प्रश्न पूर्ण दृष्टि से जगन सेठ की ओर देखते हुए पूछा। 'दूसरे तुमसे दोस्ती करने के लिए।' जगन सेठ ने
कहा-'क्योंकि यह बात हम अच्छी तरह जानते हैं कि किसी भी बहादुर थोर दिलेर आदमी की दोस्ती हमेशा फायदेमंद ही साबित होती है।'
'मुझसे क्या फायदा उठाना चाहते हैं आप?'
'फिलहाल तो सिर्फ तुमसे दोस्ती करना चाहते हैं।' जगन सेठ ने कहा-'इस जगह तुम बेफिक्र होकर आराम के साथ स्वास्थ्य लाभ कर सकते हो। उसके वाद जहां तुम्हारी मरजी हो जा सकते हो। क्योंकि यह मैं जानता हूं कि तुम्हारे जैसा आदमी किसी एक जगह टिककर रहना पसन्द नही करेगा। लेकिन इस सबके बदले में मैं यह उम्मीद जरूर करता हूं कि

अगर मुझे तुम्हारी कभी कोई जरूरत पड़ी तो तुम मेरी मदद के लिए जरुर आओगे।' 'यह भी कभी कोई कहने की बात है क्या जगन सेठ?
जगतार ने जिन्दगी में कभी किसी का कोई उधार रखना नहीं सीखा। वैसे एम मामले में तुम्हारी सलाह लेना चाहता हूं।' 'कौन सा मामला है?'
उत्तर देने से पहले अगतार ने, एक लम्बी सांस ली और फिर बोला, 'अब तक की सारी जिन्दगी आवारा बादल की तरह उड़ते हुए काट डाली। न कानून ही कभी मुझे बांधकर रख सका न किसी किस्म का माया मोह का बन्धन। आजाद पंछी
की तरह मन मरजी की जिन्दगी जी है मैंने।'
'तो अब क्या इस जिन्दगी को बदलना चाहते हो?'
'सोच रहा हूं।' जगतार शून्य में घूरता हुआ बोला-'यह जिन्दगी तो जीकर देख ली। लेकिन एक जगह टिक कर जीने में क्या मजा है यह भी अगर जीकर देख लिया जाए तो क्या बुराई है?'
'कोई बुराई नहीं है।' बयन सेठ ने कहा-'इसमें मेरी जिस मदद को जसरत हो करने को तैयार हूं। लेकिन यह बताओ
दोस्त कि यह परिवर्तन आया कैसे?' कहीं उस फारेस्ट
आफिसर की बहन की हिरण जैसी आंखों ने हमारे इस जंगली शेर का शिकार तो नहीं कर लिया?'
उत्तर में धीरे से मुस्कराया जगतार और फिर बोला-शायद। लेकिन जिन्दगी में पहली बार हुआ मेरे साथ कि मैं अपने बारे
में यह सोचने को मजबूर हुआ कि मस्त पवन के झोंके की तरह इधर से उधर और उधर से इधर तो बहुत भटक लिया अब जरा थोड़ा थम के भी देख लूं कि जिंदगी के तालाब में कौन सी खुशियों के कमल खिलते हैं।'
'फिक्र मत करो सारी खुशियों के कमल खिलेंगे।' जगन सेठ ने उसके घुटने को थपथपाते हुए कहा, 'बस थोड़ा ठीक हो जाओ। सबसे बढ़िया बात यह है कि तुम चल फिर तो आराम से लेते दो। सिर्फ गरदन चौर बांह में घाव हैं सो कुछ दिन में ठीक हो जाएंगे। कुछ दिन में ठीक हो जाएगा। तब तक तुम यहां आराम से विश्राम करो। भैरों और इसके आदमी कमरे के बाहर गोदाम में होंगे ही। हर रोज डाक्टर आकर तम्हारी पट्टी कर जाया करेगा। गाहे बगाहे मैं चक्कर लगाऊंगा ही।
और किसी खास चीज की जरूरत हो तो बताओ?'
'उम्मीद से ज्यादा आराम का इन्तजाम कर रखा है जगन सेठ आपने मेरे लिए।' जगतार बोला, 'फिलहाल तो किसी चोज की जरूरत नहीं लगती। अगर हुई तो बाहर गोदाम में भैरों या इसके आदमी तो होंगे ही।'
'बिल्कुल।' इस बार जवाब भैरों ने दिया, 'चौबीस घंटे कोई न कोई बड़ा मौजूद रहेगा। मैं भी रहूगा ही अगर किसी काम से बाहर नदी गया हुआ तो।'
'तब तो तुमसे काफी गहरी मुलाकातें होती रहेंगी?' 'क्या मतलब?' भैरों ने चौंक कर पूछा।
'सारे आदमियों में एक तुम्हीं तो ऐसे हो जिसके साथ मेरा
सबसे गहरा सम्बन्ध जुडा है।'
'मैं कुछ समझा नहीं।'
'अरे भई कालिया का कत्ल तुमने किया और लोग कातिल मुझे समझ रहे हैं। तो हम दोनों का सम्बन्ध औरों से कुछ गहरा हुआ या नहीं?'
जगन सेठ ने खिलखिलाकर हंसते हुए कहा, 'मजाक अच्छा कर लेते हो तुम। अच्छी निभेगी हम लोगों की। अच्छा अब मे चलता हूं मौका लगा तो शाम को चक्कर लगाऊंगा, नहीं तो कब आऊंगा ही।'
भैरों भी जगन सेठ के पीछे-पीछे बाहर निकल आया।
'लगता है यह तो धर बसाने की सोच रहा है हुजूर।' गोदाम के बाहर दरवाजे के निकट आकर उसने अपनी शंका व्यक्त की जगन सेठ से।
'अच्छा है।' जगन सेठ ने एक रहस्यमयी मुस्कान के साथ कहा, 'हमें कोई कोशिश नहीं करनी पड़ेगी और यह खुद-ब-खुदय अपना जंगलीपना छोड़कर कुत्ते की तरह दुम हिलाता हुमा हमारे तलवे चाटने लगेगा।' 'मुझे तोर यह आदमी कुछ जंच नहीं रहा सरकार।'

'क्यों?'
'यह तो मैं नहीं जानता।' भैरों अपनी खोपड़ी खुजाता हुआ बोला-'लेकिन इसकी बातों से कुछ दोगलापन-सा लगता है मुझे।' 'दोगलापन दिखाएगा तो खुद ही नुक्सान उठाएगा।' जगन सेठ ने कहा-'यहां हमारे रहमोकरम पर पड़ा हुआ है। बाहर पुलिस इसकी तलाश में घूम रही है। कालिया के कत्ल का जिम्मा भी अब इसके सिर पर है। चारों तरफ से फंसा पड़ा है बेचारा। फिर घर बसाने का सपना भी देख रहा है। यानि मछली कांटा निगलने ही वाली है। उसके बाद इसकी हमारे बिना गत कहां।' 'हुजूर इन बातों को मुझसे बेहतर समझते हैं। अपनी छोटी
सी बुद्धि के मुताबिक जो मुझे महसूस हुआ वह मैंने आपको बता दिया।'

'तुम्हें यह सब बातें सोचकर अपना दिमाग खराब करने की जरूरत नहीं है।' जगन सेठ ने कहा, 'हालांकि यह यहां से भागकर कहीं जाएगा नहीं। लेकिन फिर भी तुम इस पर नजय रखे रहो। लेकिन इस बात का भी ख्याल रहे कि इसे कुछ महसूस न होने पाए। जब तक यह तन्दुरुस्त न हो जाए तब तक यहा जताते हो कि यह हमारा सबसे सम्मानित दोस्त ई। उसके बाद हम देखेंगे कि यह यह क्या करता है और हमें इसके साथ क्या करना चाहिए।'

कहकर बगन सेठ गदर अपनी कार की और बढ़ गया।
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

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सांप की कोटर।
केसरी की खुद समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक ही बह सांप की कोटर उसे बरबस ही अपमी और आकर्षित क्यो करने लगी थी। निकलते बड़ते नजर अपने आप उस ओर उठ जाती।
अपने कमरे में यया तो दीवार पर लिखे वे शब्त-'सांप की कोटर'-अपने आकार से कहीं बहुत ज्यादा बड़े होकर उसके सामने खड़े हो जाते। बाहर जाता तो नजरें अपने आप उस पेड़ की और उठ जातीं और कोटर के पास उस काले सांप को तलाश करने लगतीं।
अब भी ऐसा ही हुआ था और वह उस सांप को देख रहा वा
ओ अपनी काली मखमली रस्सी जैसी आकृति को बल देता हुआ पेड़ से नीचे की ओर रेंग रहा था। देखते-देखते वह सोच रहा था कि क्या इस सांप को उसे मार नहीं देना चाहिए। इस लिए नहीं कि वह सांप उसे जगन सेठ की याद दिला देता था। बल्कि इसलिए कि घर के निकट इतने जहरीले सांप का होना कभी भी खतरनाक हो सकता है।
लेकिन यह तो सादा जंगल ही ऐसे खतरनाक जानवरों से भरा हुआ है?
वह यही सोच रहा था क्षि सांप पेड़ से उतरकर पास की झाड़ियों में घुस गया। वह बंगने में जाने के लिए मुड़ने ही वाला था कि अचानक चौंककर रुक नया क्योंकि अचानक ही झाड़ियां बड़े जोर से हिलीं और उसने उस सांप को बड़ी तेजी के साथ दाहर निकलते देखा।


उसके पीछे-पीछे हो झपटती हुई सी आई एक भूरे धूसर रंग
की आकृति सी। यह एक भक्तिशाली नेवला था जिसने उछलकर सांप को बीच में से पकड़ा और अपने मजबूत दांतों में भंभोंड़ डाला।
सांप भयंकर रूप से फुफराता हुआ तेजी से पलटा और नेवले को डसने ढ़े लिए अपने फन से चोट की। लेकिन चतुर नेवला खतरे को भांप कर फुर्ती से एक ओर को उछल कर कूद गया।

फिर इससे पहले की कि सांप पलट पाता उसने उसके सिर
को अपने दांतों में दबा कर जमीन पर रगड़ना शुरू कर दिया।

पीड़ित सांप का लम्बा शरीर भयंकर रूप से बल खाते हुए नेवले के शरीर की अपनी सशक्त कुंडलियों में फंसाने की कोशिश करने लगा। लेकिन नेवला बड़ी सफाई से अपने शरीर को उसकी गिरफ्त से बचाने की कोशिश करता हुआ पूरी शक्ति के साथ उसके फने को जमीन पर रगड़ता रहा।

मानो उसके खतरनाक विष दंत तोड़ देने के लिए दृढ़ प्रतिज्ञा हो। सांप प्राणापण से अपनी गरदन नेवले के मजबूत जबड़ों से छुड़ाकर उसे अपनी कुंडलियों के बन्धन मे बांध लेने के प्रयत्न में लगा हुआ था। लेकिन नेवला बड़ी चपलता से अपने शरीर को उसके हड्डी-तोड़ बंधनों से बचाता हुत्रा उसके फन को जमीन पर रगड़े चला जा रहा था।
धरती की मिट्टी सांप की गरदन से निकले खून के कारण लाल होने लगी थी।


बह एकटक उस जिन्दगी और मौत की खामोश लड़ाई को देखे जा रहा था। उस भयंकर युद्ध का वह एकमात्र दर्शक था
और उसकी सारी सहानुभूति भावनाएं साकार होकर उस नेवले के साथ जुड़ी हुई थी।
उसे ऐसा लग रहा था जैसे वह नेवला कोई अन्य प्राणी नहीं बल्कि बह स्वयं है जो जनन सेठ रूपी उस भयानक विषैले नाम का अन्त करने पर तुला हुआ है।
उस नेवले के माध्यम से वह उस काले नाग रूपी जगन सेठ का अन्त कर देना चाहता था। कोई दया ममता नही थी उस नाग के लिए उसके मन में क्योंकि वह तो उस जमन का प्रतीक था जिसने खुद उसकी जिन्दगी को अपने घिनौने हथकन्डों से नागपाश में इस बुरी बरह जकड़ लिया था कि वह चैन से सांस भी नहीं ले सकता।

आखिर नेवले ने सांप की गरदन काट कर फेंक दी। उसका 'काली रस्सी सा शरीर दो हिस्सों में बंटकर भयानक रूप से तड़पने लगा। गरदन कट जाने के बावजूद भी सांप की जीवन अखक्ति अभी नष्ट नहीं हुई थी। उसका कटा हुआ सिर अपना भयानक जबड़ा खोले हुए फिर नेवले की ओर झपटा।

लेकिन नेवला फुर्ती के साथ उसके सामने से हट गया और उसके तड़पते हुए धड़ को मुंह से खींचकर झाड़ियों में ले गया।
सांप का कटा हुआ मुंह अपने प्राणधाती दुश्मन को अपने थामने न पाकर भयंकर रूप से फुफकारते हुए उछल-उछल कर हबर-उधर गिरने लगा।

फिर कुछ देर बाद ठंडा होकर किसी निर्जीव सी गेंद की तरह झाड़ियों के बीच जा गिरा। आसपास की जमीन उसके खून से लालमलाल हो गई थी।
वह खडा सोचता रहा कि काश वह इस नेवले की तप मगन सेठ रूपी नाग का अन्त कर पाता। क्या ऐसा मौका मिलेगा कभी।
नहीं-एक दीर्घ निःश्वास के साथ उसने सोचा-वह सिर्फ भस अनहोनी की कल्पना कर रहा है जो कभी वास्तविकता का प नहीं ले सकती। उसके मुकाबले में जगन सेठ कहीं बहुत ज्यादा ताकतवर है।
कहीं बहुत ज्यादा। यहीं सब सोवता हुआ वह अपने कमरे में चला गया।

अनायास ही नजर दीवार पर लिखे उन अक्षरों की ओर खिच गई--सांप की कोटर।
इच्छा हुई मिटा दे इन अक्षरों कों। सांप मर चुका हए। अब इन अक्षरों क लिखे रहने का कोई महत्व नही रह जाता।
महत्व?'

मस्तिष्क में एकदम जैसे रोशनी का मनाका सा हुआ हो एक दम। अगर अब इन अक्षरों के लिखे रहने का कोई महत्व नहीं रह जाता तो क्या पहले इनका कुछ महत्व था?

क्या यह राब्द किसी महत्वपूर्ण उद्देश्य से लिखे गए हैं क्या? कहीं इन शब्दों को लिखने के पीछे लिखने वाले का उद्देश्य
आफिसर कोई ग्टू संकेत देना तो नहीं था?
rajan
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Re: फोरेस्ट आफिसर

Post by rajan »

क्या गूढ़ संकेत हो सकता है वह-खामोश खड़ा वह इसी बारे में सोचता रहा।
फिर झटके के साथ उसने अपनी टार्च उठाई और बाहक निकल गया। हालांकि अभी दोपहर ही थी लेकिन कोटर के भीतर झांककर देखने के लिए टार्च के प्रकाश की जरूरत पड़ सकती थी। पेड़ पर चढ़कर कोटर के निकट पहुंचा वह। टार्च जलाकर भीतर देखा। कोटर ऊपर से चौड़ी थी किन्तु गहराई की तरख निरन्तर संकरी होती चली गई थी।
कोटर की तली में टार्च का प्रकाश पड़ते ही प्लास्टिक की थैली जैसी कोई चीज चमक उठी। हाथ डालकर उसने उसे बाहर निकाल लिया। उस पर धूल गर्दा इत्यादि तो जमी हुई थी लेकिय मोटी और मजबूत प्लास्टिक की थैली को इससे ज्यादा और कोई नुकसान नहीं पहुंचा था।
उसने एक नजर उसमें रखे कागजातों को देखा और फिज उसके साथ पेड़ से नीचे उतरकर अपने कमरे मे पहुंच गया।
थैली खोलकर कागजात निकाले और अपनी मेज पर बैठकर उन्हें पढ़ने लगा। पढ़ते-पढ़ते कई बार चौंका वह। उसने कल्पना भी नहीं की थी कि जगन सेठ और उसके साम्राज्य के विरुद्ध ऐसी शवितशाली चीज अचानक ही उसके हाथ लग जाएगी।
उन कागजातों में कालिया, जमन सेठ, पुलिस कमिश्नर तीनो का कच्चा चिट्ठा खोल कर लिखा हुआ था। विस्तार से पूरा विवरण दिया हुआ था कि किस प्रकार यह तिगड्डा
साम-दाम-दंड भेद की नीति के द्वारा फारेस्ट आक्सिर को
अपने कब्जे में करके करोड़ो की वन-सम्पदा गैर काननी रूप से खुलेआम चराकर बेचते थे। यही नहीं बल्कि जंगले की जटिलता का लाभ उठाते हुए किस प्रकार उसके गुप्त मार्गों का तस्करी के लिए उपयोग करते थे।
वह पूरे मनोयोग से पढ़ रहा थाकि साधना ने खाने के लिए आवाज लगाई किन्तु उसने मना कर दिया।
भाई-बहन के सम्बन्ध पिछली घटनाओं के कारण कटु तो हो चूके थे इसलिए साधना ने भी दोबारा नहीं पूछा। अगर पूछती भी तो भी उसका जवाब इंकार में ही होता। अपने दुश्मनों के खिलाफ इतनी महत्वपूर्ण जानकारी को पढ़ते समय खाने का
हो करने की फुरसत किसे थी।
वह मनोयोग से पढ़ता रहा।
पढ़ते-पढते उसे इस बात का यकीन हो गया कि यह बाख्द ऐसा है जो जगन सेठ के पूरे साम्राज्य को मिट्टी में मिलाकर रख देगा।
लेकिन इसे पहुंचाए किसके पास?'
यहां तो पुलिस कमिश्नर भी खुद लुटेरों से मिला हुआ है।
तभी उसे मेयर का ध्यान आया। पाप की इस लंका में वही तो एक धर्मात्मा विभीपण है। न सिर्फ वह जगन सेठ से टक्कर लेने की हिम्मत रखता है। बल्कि उसकी पहुंच भी काफी ऊपर तक है।

उसने कागज फिर वापिस समेट कर उस प्लास्टिक की थैली में बन्द किए और फिर रिसीवर उठाकर मेयर का नम्बर डायल किया।
'शर्मा जी, केसरी बोल रहा हूं मैं। जगन सेठ के खिलाफ कुछ ऐसे लिखित सबूत हासिल किए हैं मैंने कि उन्हें जेल की चक्की पिसवाई जा सकती है। कोई ताज्जुब नहीं कि फांसी भी हो जाए।'
'तो उन सबूतों को मेरे पास लेते लाओ ना!' दूसरी ओर से मेयर की आवाज काई–'समाज और देश के इन दुश्मनों के खिनाफ ऐसे ही सबूत तो चाहिए। लेकिन यह सबूत तुम्हें मिले कैसे?'
'यह सारी बात मिलने पर बताऊंगा।'
'तो कब आ रहे हो?'
'बस यह समझिए कि आप तक पहुंचने ही वाला हूं।'
'मैं इन्तजार कर रहा हूं।'
जब वह बंगले से बाहर निकला तो दिन का तीसरा पहर था।

'वाकई।' पढ़ने के बाद उन कार्यों को मेयर ने इस प्रकार
सम्हाला जैसे वे केवल कागज नहीं बल्कि वेशकीमती खबाना हो-'यह तो बड़ी अनमोल चीज हाम लग गई है। कौन सोच सकता था कि तुम्हारे बंगले के पास वाले उस पेड़ की कोटर में अगन सेठ एण्ड कम्पनी की मौत का सामान रखा हुत्रा है। उस पिछले वाले फारेस्ट आफिसर ने तो क्या नाम था उसका सरन महतो ने तो कमाल ही करके रख दिया। मैं तो उसे इन लोगों का दुमछल्ला ही समझता था। लेकिन डसने इनकी बो-वो जानकारियां हासिल' करके लिख डाली कि जगन सेठ और पुलिस कमिश्नर को छठी का दूध याद करा दिया जाए। अब तुम देखना केसरी कि कैसे मैं इन दोनों की नाक में नकेल डाल कर नचाता हुं। 'नचाने-बचाने की क्या जरूरत है सर।' वह बोला -'आप तुरन्त उच्चाधिकारियों से सम्पर्क स्थापित कीजिए और इन अपराधियों के हाथ में हथकड़ियां डलवाइये।'
'वह भी होगा।' कागजों को सम्हालते हुए मेयर उठा और
दीवार में बनी सेफ की ओर बढता हुप्रा बोला-'लेकिन बाद में कुछ भी करने से पहले एक मौका देना होगा जगन सेठ को।'
'मौका?' वह एकदम चौंककर बोला-'कैसा मौका?' कागजात सेफ में सुरक्षित बन्द करने के बाद मुड़ता हुआ बोला मेयर-'असावधान दुश्मन पर वार करना मैं कायरता समझना हुंकेसरी। चाहे दुश्मन कितना भी नीच क्यों न हो किन्तु मैं धर्म और नैतिकता का रास्ता कभी नहीं छोड़ सकता।'
'मेरी समझ में तो आपकी बातें आ न रही।' भ्रमित सा केसरी
वोला-'अपराधियों के विरुद्ध ठोस सबूत हुमारे हाथ में हैं। मैं नहीं समझ पा रहा या कि उच्चाधिकारियों से सम्पर्क स्थापित करके अपराधियों को उनके किए की सजा दिलवाने में कौन से धर्म और कौन सी नैतिकता का शस्त्र छूटा जा रहा है?'
'तुम अभी इन बातों को नहीं समझोगे।' मेयर उसके सामने बैठता उलबा बोला। वह अब पहने सा परेशान और हारा का मेयर नहीं था। अब उसके भीतर से एक खास किस्म का दबंगपना उभर आया था जो उसकी बोलचाल और हाव-भाव
की एक-एक हरकत से व्यक्त हो रहा था।
'तुमने अपना काम कर दिया।' मेयर उससे कह रहा था 'अब मझ अपना काम कर्ने दो। हां इतना अवश्य विश्वास दिलाता हूं तुम्हें कि जिस निष्ठा और ईमानदारी का तुमने
परिचय दिया है उसका पुरा पुरस्टार तुम्हें अवश्य मिलेगा। साथ ही यह आभ्यासन भी देता हूं कि ख्म शहर में अब कोई जगन सेठ अथवा कालिया तुम्हें परेशान नहीं कर सकेगा।
केसरी भी परिवर्तन को लक्ष्य कर रहा था। लेकिन उसका सही मतलब समझ सकने में वह अपने आपको असमर्थ पा रहा था।
'आखिर मुझे भी तो कुछ मालूम हो कि आप करना क्या
चाहते हैं?'
'तम्हारे जाने के बाद मैं जगन सेठ को बुलाऊंगा यहां पच
और उठेसे कहूंगा कि अपने आपको सुधारने का सिर्फ एक मौका और दे सकता हूं मैं उसे। या तो वह सीधे रास्ते पर आ जाए या फिर...।'
असली बात केसरी की समझ में अब आ गई थी। मेयर का मुखौटा भी उतर गया और उसका असली चेहरा नजर आने लगा उसे।
जिसे वह धर्म की सीढ़ी समझा था वह भी वास्तव में जहरीला सांप निकला।
वह अपने भीतर का सारा आक्रोश अपने शब्दों में उंडेलता हुआ बोला-'यानि तम जगन सेठ के साथ सौदेबाजी करोगे?'
'नही, मैं अपराधी को सजा देने से पहले सुधरने का एक
मौका देना चाहता हू।' मेयर बोला-'लेकिन तुम अगर इस बात को सौदेबाजी के ढंग से समझ सकते हो तो ऐसे ही समझ लो।'
'तुम जिसे मैंने एक आदर्श पुरुष समझा था तुम इतने गिरे हुए आदमी निकलोगे मैंने सोचा भी नहीं था। तुम्हारी नीचता तो जगन सेठ से भी बढ़-चढ़ कर है। वे कागजात मुझे वापिस दो।'
'कौन से कागजात?' मेयर ने बड़े भोलेपन से पूछा। 'तुम इतनी आसानी से नही बच पाओगे मेयर चाहे मेरी जान
क्यों न चली जाए मगर तुम्हारी ईट से इंट बजा कर रख दूंगा।'
'अभी तम जोश में हो छोकरे इसलिए होश की बात तुम्हारी समझ में नहीं आएगी। जाओ अभी घर जाकर आराम करो। धन होश उतरने के बाद दिमाग ठिकाने आ जाए तब मेरे पास माना।

विवशता पूर्ण क्रोध से कांपता हुआ यह उठ खड़ा हुआ।
'आस्तीन के सांप तुझे जिन्दा नहीं छोडूंगा मैं।' कहते हुए
उसने उसकी गरदन की ओर हाथ बढ़ाए।
मगर तभी रुक जाना पड़ा उसे। क्योंकि मेज के नीचे छिपे हाथों में से एक ऊपर उठ आया था, उसमें एकपिस्तौल दबी हुई थी।
'आस्तीन का सांप तुम मुझे कह रहे हो?' उसे पिस्तौल की नोंक पर रखता हुश्रा बोला मेयर-'लेकिन जगन सेठ से मिल कर आने के बाद सबसे पहले सम्बन्ध खत्म करने की घोपणा किसने की थी?'
एकाएक इस आरोप का कोई जवाब नहीं दे पाया केसरी।
'जब तुम अकेले इन लोगों से जूझ रहे थे मैं तुम्हारी मदद के लिए आगे बढ़ा।' मेयर उसे पिस्तौल की नोंक पर रखता हुआ बोला-'लेकिन मुझे बीच मंझधार में छोड़कर उससे जा मिले।'
'यह झठ है।' उसने जोरदार शब्दों में विरोध करते हुए
कहा-'और इसका सबूत है वे कागजात जो तुमने सेफ में रख लिए हैं। अगर मैं जगन सेठ से मिला हुआ होता तो यह
कागजात लेकर तुम्हरे पास कभी नहीं आता। रहा तुम्हारा सबसे पहले मेरी मदद के लिए आना तो वह भी सिर्फ तुम्हारा एक ढ़ोंग था। अन्यथा असलियत यह है कि तुमने मुझे अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए जगन सेठ के खिलाफ एक मोहरा बनाया था। तुम मेरे माध्यम से शहर का जनमत इस तरह से अपने पक्ष में तैयार कर लेना चाहते थे ताकि आने कले चुनावों में तुम्हें ही वोट मिलें।'

'बड़े अक्लमंद होते जा रहे हो।' मेयर धीरे से मुस्करा कर बोला-'लेकिन इस बात से तो तुम इंकार नहीं कर सकोगे कि सबसे पहले धोखा देने की शुरुआत तुमने की थी। तुमने मुझे उस वक्त धौखा दिया जब जगन सेठ मुझ पर भारी होने लगा था।'
'उस वक्त मेरी बहुत बड़ी मजबूरी मेरे सामने आ गई थी!' 'जरा हम भी तो सुने कि वह क्या मजबूरी थी?'
केसरी ने बताया कि किस तरह जगन सेठ ने फोटोग्राफ दिखाकर उसे अपने कालू में कर लिया था।
सब कुछ बताने के बाद वह बोला-'अगर मेरी नीयत जानबूझ कर तुम्हें धोखा देने की होती तो यह कागजात लेकर तुम्हारे पास न आया होता बल्कि सीधा जगन सेठ के पास पहुंच गया होता।'
'खैर मजबूरी में तो आदमी को बहुत कुछ करना पड़ जाता है।' मेयर बोला-'रही तुम्हारी नीयत की बात तो उस पर न मुझे पहले शक था न अब है। हां तुम जरूर मेरी नीयत पर शक किए जा रहे हो। मगर मुझे अपनी सफाई में कुछ नहीं कहना है। फिलहाल मैं तुम्हें दरवाजे तक छोड़ आता हू। जब दिमाग ठंडा हो जाए और मेरे साथ काम करने को जी चाहे तो आ जाना। तुम्हारे जैसे होशियार और होनहार व्यक्ति को अपना सहयोगी बनाकर मुझे वास्तव में बड़ी खुशी होगी।' कहते हुए मेयर अपनी कुर्सी से उठा और उसे पिस्तौल के इशारे से बाहर की ओर ले जाता हुआ बोला-'नाऊ गैट आऊट काम हियर।'
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