एक अधूरी प्यास- 2

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rajan
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एक अधूरी प्यास- 2

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एक अधूरी प्यास- 2

अब तक शुभम की जिंदगी में कई औरतें आ चुकी थी जिनमें रसीली बुर के साथ-साथ कुंवारी बुर भी शामिल थी। शुभम अभी-अभी जवानी की दहलीज पर कदम रख रहा था लेकिन उसकी किस्मत बड़ी तेज थी कि अभी से ही वह कई औरतों की चुदाई कर चुका था।
मर्दानगी उसके अंदर कूट-कूट कर भरी हुई थी जो भी उसकी मर्दानगी का स्वाद चखती थी। वह उसकी पूरी तरह से दीवानी हो जाती थी जिसमें उसकी मां निर्मला भी शामिल थी जिसे शुभम के रूप में एक दमदार मर्द के साथ साथ एक प्रेमी भी मिल चुका था जो कि उसकी जवानी और उसके प्यार की कदर करता था ।
शुभम अपनी जवानी का जलवा अपने गांव में भी बिखेर कर आया था वह अपनी दोनों मामी के साथ-साथ नवविवाहित मामी के साथ भी शारीरिक संबंध बनाने में सफल हो चुका था साथ ही अपनी बड़ी मामी की लड़की को अपने चिकनी चुपड़ी बातों में फंसाकर अपने मोटे तगड़े लंड की मर्दानगी दिखाते हुए उसकी बुर की गहराई भी नाप चुका था।
शुभम अपनी मां के साथ शारीरिक संबंध रखता है यह बात अभी तक किसी को भी पता नहीं थी केवल शुभम की बड़ी मामी की लड़की को छोड़कर हालांकि शुभम को इस बात का बिल्कुल भी डर नहीं था क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि वह किसी से नहीं बताने वाली क्योंकि वह खुद जानती थी कि शुभम के संबंध उसकी मां के साथ साथ उसके साथ भी थे इसलिए यह राज ़़़ राज ही रह गया।
अपनी खूबसूरत जवानी से भरपूर बुआ के साथ भी वह शारीरिक संबंध बनाकर उसे अपनी मर्दानगी का कायल बनाते हुए उसे अपनी दीवानी बना चुका था ।
शुभम को अपने मोटे तगड़े लंबे लंड पर फक्र होने लगा था क्योंकि उसी की बदौलत वह अब तक औरतों के मधुर रस से भरे हुए बुर का स्वाद चखते आ रहा था।
अपने पति से शारीरिक सुख और स्नेह ना मिल पाने की वजह से मजबूरी में और अपने बेटे की मर्दानगी कटीले बदन के आकर्षण में बंद कर निर्मला ना चाहते हुए भी अपने बेटे से ही शारीरिक संबंध बना चुकी थी जिसकी बदौलत चुदाई का असली मजा क्या होता है इस बात से अवगत होने के बाद वह शुभम से रोज चुदवाने की आदी हो चुकी थी।
अशोक को अभी तक इस बात की भनक तक नहीं लग पाई थी कि पीठ पीछे उसकी पत्नी अपने ही बैटे के साथ चुदाई सुख भोग रही थी।
निर्मला एक तरह से अपने बेटे से एक प्रेमिका की तरह प्यार करने लगी थी वह अपने प्रेमी समान बेटे को किसी औरत के साथ बांटना नहीं चाहती थी वह चाहती थी कि शुभम केवल उसी का रहे और इसीलिए वह दिन रात उसे संपूर्ण औरत का सुख दे रही थी और उससे मजे भी ले रही थी जिससे उसकी जिंदगी बदलने लगी थी वरना अब तक वह जैसे तैसे अपनी जिंदगी को व्यतीत कर रही थी अपने बेटे के साथ शारीरिक संबंध बनाकर उसे इस बात का ज्ञात हुआ कि औरत की जिंदगी में जब तक उसे शरीर सुख देने वाला एक गठीला मर्द ना हो तब तक उसकी जिंदगी वीरान रहती है इसलिए वह इस हकीकत को अच्छी तरह से जान कर शुभम को केवल अपना ही बनाने के उद्देश्य से वह उसे शीतल से ना मिलने की हिदायत दे चुकी थी क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि शीतल की नजर उसके बेटे पर ना जाने कबसे थी और जब निर्मला को इस बात का एहसास हुआ कि कहीं ना कहीं शुभम भी शीतल के प्रति आकर्षण रख रहा है तो वह अंदर ही अंदर क्रोधी तो गई और शुभम को उस पर जरा भी ध्यान ना देने के लिए हिदायत दे दी।
शुभम को शीतल भी बहुत अच्छी लगती थी शुभम उसकी जवानी के रस पान से अपने आप को तृप्त करना चाहता था उसकी बड़ी-बड़ी चुचियों को अपने हाथों में भरकर उसे मुंह में लेकर उसके रस को पीना चाहता था उसकी बड़ी बड़ी गांड की गर्मी को अपने अंदर महसूस करना चाहता था वह यह देखना चाहता था कि उसका मोटा तगड़ा लंड उसकी रसीली बोल के अंदर जाकर उसे किस कदर तृप्त करती है क्योंकि वह खुद एकदम प्यासी औरत थी और वह शुभम से प्यार करते हुए उसे चुदवाना चाहती थी जिसकी बदौलत वह एक बार शुभम के मोटे तगड़े लंड की चुसाई भी कर चुकी थी और वह भी स्कूल के अंदर जो कि यह बात कोई नहीं जानता था। शीतल शुभम की मर्दानगी उसके मोटे तगड़े लंबे लंड की पूरी तरह से दीवानी हो चुकी थी । शुभम के मोटे तगड़े लंबे लंड के आकर्षण में वह इस कदर बंध चुकी थी की उसे अपने मुंह में लेकर चूसने की लालच को वह रोक नहीं पाई थी।
शुभम के मोटे तगड़े लैंड को मुंह में लेकर चूसने की वजह से उसे इस बात का एहसास हो चुका था कि शुभम पूरी तरह से मर्दानगी से भरा हुआ नौजवान लड़का था और जब वह मुंह में इतना जबरदस्त असर कर रहा है तो अगर वह उसके मोटे तगड़े लंड को अपनी प्यासी कसी हुई बुर मे लेगी तब तो गदर मचा देगा और इसी वजह से शीतल के तन बदन में शुभम के मोटे लंड से चुदने की चीटियां रेंगने लगी थी और वह अपनी प्यास शुभम के मोटे तगड़े लंड से बुझाना चाहती थी। लेकिन शुभम के बढ़ते हुए शीतल के प्रति आकर्षण को देखकर निर्मला को लगने लगा कि कहीं उसका बेटा शीतल की मदहोश जवानी में ना खो जाए और अगर ऐसा हो गया तो वह उसके प्रति बिल्कुल भी ध्यान नहीं देगा और ऐसा हुआ बिल्कुल नहीं चाहती थी इसलिए वह उसे धमका चुकी थी कि वह आइंदा से शीतल की तरफ देखेगा भी नहीं और शुभम भी अपनी मां से बेहद प्यार करता था इसलिए वह ऊसका दिल तोड़ना नहीं चाहता था इसलिए वह भी शीतल से ना मिलने का वादा कर चुका था लेकिन उसका भी झुकाव शीतल के प्रति बढ़ता जा रहा था क्योंकि जिस तरह से वह एक-एक करके अपने रिश्ते दार की ही औरतों की चुदाई करने का आदी हो रहा था उसे नई-नई औरतों के साथ संभोग करने की लत बढ़ती जा रही थी और इसी लत की वजह से वह शीतल के प्रति झुकाव रखने लगा था और वह भी शीतल की मदमस्त कसी हुई जवानी का मजा लेना चाहता था उसके खूबसूरत बदन से आनंद लेना चाहता था जिसके लिए वह पूरी तरह से तैयार भी था और मौके की तलाश में था लेकिन वह अपनी मां का रवैया देखकर समझ चुका था कि अब उसके लिए आगे बढ़ना नामुमकिन सा है क्योंकि वह अपनी मां का दिल नहीं तोड़ना चाहता था और इस बात से वह शीतल को भी अवगत करा दिया था और उसे साफ साफ शब्दों में कह दिया था कि अभी कुछ दिन तक वह उसके प्रति बिल्कुल भी ध्यान ना दें।
लेकिन शीतल के मन में शुभम पूरी तरह से बस चुका था वह उसके आकर्षण में पूरी तरह से खो चुकी थी वह किसी भी हालात में शुभम को अपना प्रेमी बनाना चाहती थी और उसके साथ शारीरिक संबंध बनाना चाहती थी कुछ दिन तक तो वह शुभम की बात मानते हुए उसके प्रति बिल्कुल भी ध्यान नहीं दी लेकिन अंदर ही अंदर वह उससे बात करने के लिए उसके करीब आने के लिए तड़पती रही।
और जब उसे यह तड़प बर्दाश्त नहीं हुई तो वह मौका देखकर रिसेस में शुभम को इशारा करके अपनी क्लास में बुलाई और शुभम उसके आकर्षण में बंद कर डरते डरते हैं उसके क्लास में पहुंच गया जहां पर शीतल अपने प्यार की दुहाई देकर शुभम को इस तरह से दूर ना रहने के लिए मना ली।
शुभम भी क्या करता शीतल औरतें ऐसी खूबसूरत थी कि वह इंकार नहीं कर पाया लेकिन उसके मन में अपनी मां को लेकर डर बना हुआ था वह नहीं चाहता था कि इस बात का उसकी मां को जरा सी भी भनक लगे। शीतल के मदहोश भरी जवानी के देहलालितय के आकर्षण में खोकर वह एक बार फिर से बहकने लगा।
rajan
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क्लास रूम का दरवाजा बंद था और समय बिल्कुल कम था रिसेस कभी भी पूरी होने वाली थी लेकिन बहुत दिनों बाद इस तरह का मौका शीतल के हाथ आया था इसलिए वह इस मौके को जाने नहीं देना चाहती थी इसलिए वह तुरंत अपने घुटनों के बल बैठकर शुभम के पेंट की बटन खोलने लगी जो कि इस समय उसके पेंट में उत्तेजना की वजह से तंबू बना हुआ था वह जल्द से जल्द शुभम के मोटे तगड़े लंड का दीदार अपनी आंखों से करना चाहती थी उसे अपने मुंह में लेकर उसकी गर्मी को महसूस करना चाहती थी उसकी गर्माहट भरे स्पर्श से अपनी जवानी को पिघलाना चाहती थी। शुभम भी अगले पल के लिए अपने आप को पूरी तरह से तैयार कर चुका था वह भी अपने मोटे तगड़े लंड को शीतल के मुंह में भर देना चाहता था इसलिए वह उत्सुकता वश शीतल की हर एक प्रतिक्रिया को देख रहा था देखते ही देखते शीतल पेंट की चेन खोल कर उसके मोटे तगड़े लंड को बाहर निकाल कर उसे मुंह में लेकर चूसना शुरू कर दी एक बार फिर से शीतल के प्यासे मन को तृप्ति का अहसास होने लगा यह तृप्ति का अहसास आगे बढ़ कर उसकी प्यास बुझाता इससे पहले ही भड़ाक की आवाज के साथ दरवाजा खुल गया दोनों की नजर दरवाजे पर पड़ी तो सामने ही निर्मला खड़ी थी जोकि उन दोनों को ही देख रही थी।
तीनों की हालत खराब थी तीनों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें शीतल तो यह नजारा देखते ही एकदम सन्न रह गई उसे बिल्कुल भी यकीन नहीं था कि क्लास रूम का दरवाजा इस तरह से खुलेगा और वह भी खोलने वाली निर्मला होगी जो कि इस समय निर्मला उन दोनों को बड़े गुस्से से घूर रही थी क्योंकि इस समय भी शुभम का मौका तगड़ा लंड शीतल के मुंह के अंदर था।
अपने बेटे को और अपनी सबसे अच्छी प्यारी सहेली को इस अवस्था में देखकर वह एकदम जड़वंत हो गई उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें निर्मला की हालत खराब हो रही थी उसे जिस बात का डर था वही हो रहा था । इसीलिए वह अपने बेटे को शीतल से दूर रखना चाहती थी वह अच्छी तरह से जानते थे कि शीतल की नजर उसके बेटे पर थी।
लेकिन अपने बेटे को लाख समझाने के बावजूद भी वह शीतल के मोहपास में खींचकर वह यहां तक आज गया था कि आज क्लास के अंदर अपने मोटे तगड़े लंड को उसके मुंह में देकर उसे लंड चुसाई का आनंद दे रहा था।
कुछ सेकंड बाद जब उसे अंदर के हालात के बारे में समझ में आया तो वह जल्दी से क्लास रूम का दरवाजा बंद कर दी क्योंकि वह नहीं चाहती थी कि इस नजारे को कोई और भी देखें और जब तक वह दरवाजा बंद करती तब तक शीतल और शुभम भी होश में आ चुके थे शुभम एकदम शर्मिंदा हो चुका था और शर्मिंदगी का अहसास लिए हुए वह अपने मोटे तगड़े लंड को अपने पेंट में डालने की कोशिश कर रहा था जो कि इस समय उत्तेजना अवस्था में होने के कारण ठीक तरह से अंदर जा नहीं रहा था वह जैसे तैसे करके उसे अपने पेंट में छिपा लिया और जल्द ही सीतल भी अपनी अवस्था को सुधारते हुए शर्म के मारे अपनी नजरों को नीचे झुका ली उसे समझ में नहीं आ रहा था कि इस गलती के लिए वह निर्मला से कैसे माफी मांगे निर्मला पूरी तरह से गुस्से में थी वह लगभग शीतल के गाल पर दो चार तमाचे जड़ना चाहती थी लेकिन ना जाने कैसे अपने आप को संभाले रह गई ।
वह बहुत गुस्से में थी और शीतल और शुभम दोनों शर्मिंदा थे दोनों की नजरें नीचे झुकी हुई थी वह अच्छी तरह से जानती थी कि शीतल ही बहका कर उसे यहां तक लेकर आई होगी वह शीतल की जालसाजी से अच्छी तरह से वाकिफ थी वह शीतल से झगड़ा करना चाहती थी उस पर चिल्लाना चाहती थी उस पर बिगड़ना चाहती थी लेकिन वह हंगामा खड़ा करना नहीं चाहती थी इसमें उसके बेटे की और उसकी ही बदनामी थी वह शीतल से कुछ कहती इससे पहले ही रिशेष पूरी होने की घंटी बज गई। निर्मला अपने बेटे का हाथ पकड़कर क्लास के बाहर जाते जाते शीतल से बस इतना ही बोली कि मुझे तुमसे यह उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी और इतना कहकर वो क्लास से बाहर चली गई शीतल वहीं खड़े आंखों में आंसू लिए दोनों को क्लास रूम से बाहर जाते हुए देखती रही उसे अपनी गलती पर पछतावा होने लगा था ।
दूसरी तरफ शुभम की भी हालत खराब थी क्योंकि एक तरह से वह अपनी मां को धोखा दिया था क्योंकि वह अपनी मां से वादा किया था कि अब शीतल से वह किसी प्रकार का संबंध नहीं रखेगा। शुभम को भी अपने आप पर गुस्सा आने लगा वह मन ही मन सोचने लगा कि ना शीतल की बात माना होता ना ही क्लास रूप में जाकर इस स्थिति का सामना करना पड़ता उसे समझ में नहीं आ रहा था किया वह अपनी मां की नजरों का सामना कैसे करेगा कैसे अपनी मां से नजर मिला पाएगा वह एक तरह से अंदर ही अंदर अपने आप को कोसने लगा निर्मला का भी यही हाल था उसकी आंखों में आंसू भरे हुए थे उसका पढ़ाने में बिल्कुल भी मन नहीं लग रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसके हाथों से शुभम का हाथ छूटता चला जा रहा है अच्छी तरह से जानती थी की दुनिया कैसी है और मर्द कैसे हैं वाह अभी तक निर्मला की जवानी के साथ अपनी प्यास बुझाता आ रहा था और मर्दों की आदत से वह पूरी तरह से अवगत थी अच्छी तरह से जानती थी कि बाहर मौका मिलने पर मर्द कभी भी मौका चुकते नहीं है और वही हाल शुभम का भी था।
अब वह भी अच्छी तरह से समझ गई थी कि अगर उसने शुभम पर लगाम नहीं कसी तो उसका घोड़ा पूरी तरह से आवारा हो जाएगा और फिर उसके पल्लू में बजने वाला बिल्कुल भी नहीं था अगर वह अभी कुछ नहीं की तो वह अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने जैसा हाल कर लेगी इसलिए वह शुभम को डांटना चाहती थी इस बारे में उससे खुलकर बात करना चाहती थी।
निर्मला मर्दों की फितरत को समझ नहीं पा रही थी। सीकर उसका पति था जो इतनी खूबसूरत पत्नी होने के बावजूद भी दूसरे औरतों से मुंह मारा फिरता था उसकी तरफ बिल्कुल भी ध्यान नहीं देता था जबकि वह इतनी खूबसूरत थी कि उसके आगे लड़कियां भी पानी भर्ती थी इस उम्र में भी वह किसी भी उम्र के मर्दों को मदहोश कर दे दी थी और इसी मदहोशी भरी जवानी का स्वाद वह अपने बेटे को खा चुकी थी वह मन ही मन सोच रही थी कि उसने अपने बेटे को कितना सुख दी उसे औरत का सुख देकर मर्द बना चुकी थी लेकिन अब लगने लगा था कि उसका भी मन उसे भरने लगा है तभी वह दूसरी औरतों के पीछे लार टपकाए घूम रहा है।
यह ख्याल मन में आते ही वह अंदर तक सिहर उठी वह शुभम को किसी भी हाल में किसी औरत से बांटना नहीं चाहती थी वह मन ही मन निश्चय कर चुकी थी कि शुभम सिर्फ उसका है।
यही सब सोचते हुए कब छुट्टी होने की घंटी बज गई उसे पता ही नहीं चला शुभम डर के मारे कार में पहले से जाकर बैठ गया था निर्मला उस पर एक नजर डाली और कार को अपने घर की तरफ ले जाने लगी रास्ते भर दोनों में से किसी ने 1 शब्द तक नहीं बोला था।
रात को खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले गए शुभम अपनी गलती का पछतावा लिए अपनी मां से माफी मांगना चाहता था लेकिन उसे समझ में नहीं आ रहा था कि वह किस तरह से अपनी मां से माफी मांगे और कमरे में बैठा बैठा यही सोच रहा था कि उसकी मां ने उसे क्या कुछ नहीं दी उसे हर सुख दी बदले में वह चाहती थी कि वह सिर्फ उसका प्रति वफादार रहें जो कि उससे इतना भी नहीं हुआ और वह दूसरी औरत के चक्कर में पड़ कर अपनी मां का दिल तोड़ बेठा।
rajan
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दूसरी तरफ निर्मला अपने बिस्तर पर पेट के बल लेटकर तकिया का सहारा लेकर आंसू बहा रही थी उसे समझ में नहीं आ रहा था कि अब वह क्या करें एक तो वह अपने पति अशोक की वजह से पहले ही दुखी थी जिंदगी में जो सुख शुभम से मिला था जिसकी बदौलत उसे जीने की उम्मीद जागी थी एक बार फिर से शुभम की वजह से चारों तरफ अंधेरा ही अंधेरा नजर आने लगा। एक बार फिर से उसकी जिंदगी में आई खुशियां छीनती हुई नजर आ रही थी। बिस्तर पर लेटे लेटे यही सब सोचकर वह रोए जा रही थी और दूसरी तरफ शुभम अपना मन बना करके अपनी मां से माफी मांगने के उद्देश्य से उसकी कमरे की तरफ जाने लगा ।

शुभम अपने कदम आगे तो बना रहा था लेकिन उसके मन में डर बराबर बना हुआ था वह अच्छी तरह से जान रहा था कि जिस तरह की हरकत करते हुए उसे उसकी मां ने अपनी आंखों से देखा है वह दृश्य शायद उससे बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं हुआ है तभी तो वह उससे एक शब्द भी नहीं बोली थी और उसका मन उखड़ा उखड़ा लग रहा था उसे यह समझ में नहीं आ रहा था कि वह अपनी मां का सामना किस तरह से करेगा लेकिन फिर भी वह अपनी मां से माफी मांगने के लिए निश्चय कर चुका था इसलिए वह अपने कदम को निर्मला के कमरे की तरफ आगे बढ़ा रहा था थोड़ी ही देर में वह अपनी मां के कमरे के आगे पहुंच गया जहां पर दरवाजा हल्का सा खुला हुआ था और अंदर डिम लाइट का बल्ब झिलमिला रहा था।
यहां तक पहुंचने के बावजूद भी शुभम का मन कर रहा था कि यहां से वापस चला जाए क्योंकि वह सच में अपनी मां से नजरें मिलाने के काबिल बिल्कुल भी नहीं था लेकिन इस स्थिति से मुंह फेर लेना भी उचित नहीं था आखिरकार वह भी अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां को समझने वाला केवल वही था इसलिए इस हालात में माफी मांग लेना ही उचित था और कमरे के दरवाजे को खुला देख कर वह इतना तो समझ ही गया था कि उसकी मां ने जानबूझकर कमरे का दरवाजा खुला रखी थी ताकि वह आराम से कमरे में दाखिल हो सके और निर्मला को इस बात की उम्मीद भी थी कि उसका बेटा उससे मिलने जरूर आएगा इसलिए वह जानबूझकर कमरे के दरवाजे को खुला छोड़ दी थी। अपने आप को पूरी तरह से तैयार करके शुभम कमरे के अंदर दाखिल हुआ जहां पर डिम लाइट की रोशनी में केवल उसे एक साया सा नजर आ रहा था जो कि बिस्तर पर पेट के बल लेटा हुआ था इसलिए वह एक बार अपनी मम्मी को आवाज लगाते हुए बोला।
मम्मी ओ मम्मी . (इतना कहते हुए शुभम अपने हाथों से दीवाल पर टटोलकर जल्द ही स्विच को लपक लिया और स्विच ऑन कर दिया जिससे पूरा कमरा ट्यूबलाइट की दूधिया रोशनी में नहा गया )
अब यहां क्या करने आया है । (निर्मला अपने बेटे की तरफ देखे बिना ही बोली )
क्या करने आया है ..मतलब मैं क्या अब इतना खराब हो गया कि तुम्हारे कमरे में भी नहीं आ सकता ....
आ सकता था लेकिन अब नहीं आ सकता जा अपनी शीतल के पास अब उसी से तेरा मन भरेगा मेरे से तो अब तेरा मन बिल्कुल भी भर गया है ना।
यह कैसी बातें कर रही हो मम्मी ........(इतना कहते हुए वह अपनी मां के बिस्तर के करीब जाकर बिस्तर पर बैठ गया जिसका एहसास निर्मला को अच्छी तरह से हुआ हालांकि वह अभी भी शुभम की तरफ अपनी नजर नहीं घूमाई थी। )
मैं जो भी कह रही हूं ठीक ही कह रही हूं अब मेरे पास क्या करने आया है मेरे पास कुछ भी नहीं है तुझे देने के लिए जो कुछ भी मेरे पास था मैं वह सब कुछ तुझ पर निछावर कर चुकी हूं ।
(शुभम अपनी मां को इतने गुस्से में पहली बार देख रहा था उससे अच्छा तो नहीं लग रहा था लेकिन क्या करें गलती उसकी ही थी लेकिन फिर भी इतनी तनाव युक्त माहौल होने के बावजूद भी शुभम की नजर अपनी मां की कदर आई हुई गांड पर घूम रही थी क्योंकि इस समय व पेट के बल लेटी हुई थी और जिस तरह से वह गुस्से में बोल रही थी उसकी वजह से उसके बदन में एक अजीब सी थीरकन हो रही थी और उस थीरकन की वजह से उसके भराव दार नितंबों में लहर सी दौड़ रही थी जोकि रेशमी पतली साड़ी पहने होने के कारण साफ साफ नजर आ रही थी और शुभम अपनी मां की मदमस्त गांड की थिरकन को देखकर मदहोश होने लगा था। उससे रहा नहीं गया और वह अपना एक हाथ आगे बढ़ा कर अपनी मां की मदमस्त गांड पर उसे रखते हुए बोला।)
मम्मी ऐसा क्यों बोल रही हो जो कुछ भी हुआ उसमें मेरी गलती बिल्कुल भी नहीं थी मैं नहीं चाहता था कि मैं शीतल मैडम के पास जाऊं ।(इतना कहते हुए शुभम अपनी मां की मदमस्त गांड को हल्के हल्के सहलाना शुरू कर दिया जिससे शुभम के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी लेकिन अपने बेटे की इस हरकत पर निर्मला उसका हाथ जोर से झटक ते हुए उठ कर बैठ गई और बोली।)
मेरी नहीं जाकर उसी कल की गांड को सहला क्योंकि मैं उसी दिन समझ गई थी जब तू ललचाई आंखों से उसकी मटकती हुई गांड को देख रहा था तभी मैं समझ गई थी कि अब तेरा मन भटक रहा है और मुझसे तेरा मन भरने लगा है तभी मैंने तुझे उस दिन हीं साफ साफ शब्दों में कह दी थी कि शीतल से दूर ही रहना लेकिन तू नहीं माना और लार टपका आते हुए पहुंच गया उसके पास क्लास में ।
मम्मी मैं सच कह रहा हूं मैं अपने आप वहां नहीं गया था ।
हां तुझको तो सीतल अपनी गोद में उठा कर अपने कमरे में ले गई थी।और खुद ही तेरे पेंट की चैन खोलकर तेरा लंड निकालकर मुंह में लेकर चूस रही थी यही कहना चाह रहा था ना तेरी तो गलती ही नहीं है तू बहुत सीधा-साधा है।
(निर्मला एकदम गुस्से में शुभम की आंखों में आंखें डाल कर उसे बोले जा रही थी शुभम एकदम घबरा गया था क्योंकि इससे पहले उसने अपनी मां को इस तरह गुस्से में कभी नहीं देखा था वह अपना बचाव करने हेतु सारे बयान दे डाल रहा था लेकिन यह बात वह भी अच्छी तरह से जानता था कि उसकी मां को उसकी एक भी बात का विश्वास होने वाला बिल्कुल भी नहीं था फिर भी वह जो कुछ भी हुआ उसमें उसका हाथ बिल्कुल भी नहीं था इस बात का विश्वास दिलाते हुए अपनी मां से बोला ।
मम्मी जो कुछ भी हुआ उसने मेरा हाथ बिल्कुल भी नहीं था मैं वहां अपने मन से नहीं गया था वह तो जबरदस्ती शीतल मैडम ने ही इशारा करके मुझे अपने क्लास रूम में बुलाई थी।
तू दुनिया को बेवकूफ बना सकता है लेकिन मुझे नहीं तू अपने मन से नहीं गया तो शीतल के मुंह में डालने के लिए तेरा लंड खड़ा कैसे हो गया तेरा मन नहीं कर रहा था तो तुझे मजा कैसे आ रहा था।
तुम मुझे बेवकूफ बनाने की कोशिश मत कर तूने मुझे धोखा दिया है मैं तुझे लड़के से मर्द बनाई हूं और तू मुझे ही धोखा दे रहा है चुदाई का पहला सुख तुझे मुझसे ही मिला; औरतों के साथ संभोग कैसे किया जाता है उन्हें कैसे चोदा जाता है मैं तुझे सिखाई जब तू कल्पना में औरतों के अंग से खेलता था तब तुझे पता भी नहीं था कि औरतों का अंग कैसा होता है साड़ी के अंदर उनकी चूची कैसी होती है उनकी गांड कैसी होती है और उनकी बुर का आकार कैसा होता है यह सब तुझे बिल्कुल भी पता नहीं था इन सब बातों से मैंने तुझे अवगत कराया और तू सब कुछ सीखने के बाद मजा लेने के बाद मुझसे मुंह फेर कर दूसरी औरत की बाहों में जाना चाहता है ।
rajan
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मम्मी ऐसा बिल्कुल भी नहीं है (शुभम अपनी तरफ से अपनी मां को समझाने की पूरी कोशिश करते हुए बोला लेकिन निर्मला थी कि शुभम की बात सुनने को तैयार ही नहीं थी)
सब कुछ ऐसा ही है सब मर्द एक जैसे होते हैं तू भी तेरे बाप की तरह ही हो गया है जब मन भर गया तब दूसरी तरफ अपना ठिकाना ढूंढने लगा मैं सब जानती हूं और अच्छी तरह से जानती हूं कि मर्दों की फितरत सिर्फ औरतों को धोखा देना ही होता है भले होगा उसकी प्रेमिका हो या पत्नी हो या उसकी मां हो एक बार मजा लेने के बाद मन भर ही जाता है यह बात तो साबित कर चुका है तभी तो मजे लेकर मेरे लाख समझाने के बावजूद तू शीतल के पास गया और उसे अपना मोटा तगड़ा लंड उसके मुंह में डालकर उसको चुसवाने का मजा दे रहा था और ले भी रहा था‌।
यह क्या कह रही हो मम्मी (शुभम इससे ज्यादा कुछ बोल ही नहीं पा रहा था मन ही मन में वह अपने आप को कोसने लगा कि आखिरकार वह क्यों वहां गया ना वहां गया होता ना यह बखेड़ा खड़ा होता वह अपनी मां की तरफ बड़े ध्यान से देख रहा था वह एकदम गुस्से में थी उसके बाल बिखरे हुए थे आंखों में आंसू और वह बार-बार गुस्से में अपनी भड़ास निकाले जा रही थी।ज्यादा गुस्से में होने के कारण सुगंधा की साड़ी उसके कंधे पर से सरक कर नीचे आ गई थी जो कि नीचे बिस्तर पर बिखरी पड़ी थी और उसकी ब्लाउज का एक बटन खुला हुआ था जिसमें से उसकी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां बाहर झांक रहे थे जिस पर ना चाहते हुए भी शुभम की नजर बार-बार चली जा रही थी आखिरकार भले वह अपनी मां से दो चार बातें सुन रहा था लेकिन फिर भी अपनी मां के खूबसूरत बदन के आकर्षण से अपनी नजर को हटा नहीं पा रहा था‌। निर्मला अपने बेटे की नजरों को भांपते हुए गुस्से में बोली।
तुझे लगता है कि मेरी चुचियों में पहला जैसा कसाव नहीं रहा ना अब यह टाइट नहीं है ....यह पपाया की तरह लटक गई है तुझे ऐसा लग रहा है ना ले देख ले देख ले .. (इतना कहते हुए अपनी ब्लाउज के बटन खोलने लगी निर्मला पूरी तरह से गुस्से में थी लेकिन गुस्से में होने के बावजूद भी वह बहुत खूबसूरत लग रही थी और उसका यह अंदाज कि गुस्से में होने के बावजूद भी वह अपनी ब्लाउज के बटन को अपने बेटे की आंखों के सामने खोल रहे थे यह देखकर शुभम शर्मिंदा होने के बावजूद भी उत्तेजना का अनुभव करने लगा और देखते ही देखते उसकी मां ब्लाउज के सारे बटन को खोल दी जिससे उसकी बड़ी-बड़ी चूचियां पिंजरे में कैद कबूतर की तरह बाहर हवा में फड़फड़ाने लगे यह बात तो तय थी कि इस उम्र में भी निर्मला की चुचियों का कसाव जवानी के दिनों की तरह ही बरकरार थे फिर भी वह ऐसा समझ रही थी कि शायद शुभम को अब उसकी चूचियों में पहले जैसा कसाव महसूस नहीं हो रहा है इसीलिए वह दूसरी औरतों की सोबत में पड़ रहा है इसलिए वह अपने ब्लाउज के सारे बटन खोल कर अपने दोनों चूचियों को अपने हाथों में पकड़ कर उसकी तरफ आगे बढ़ाते हुए गुस्से में बोली ।)
ले शुभम पकड़ अपने हाथों में ले इसे जोर से दबा .. ने पकड़ी से अब चुप क्यों मिले पकड़ना इसे दबा अपने हाथों में भरकर इसे तुझे ऐसा लग रहा है ना कि इनमें कसाव नहीं है यह लटक गई है पहले जैसे तुझे मजा नहीं आ रहा है इतना कहते हुए निर्मला अपने हाथों से अपने बेटे का हाथ पकड़कर उसके हथेली को अपनी चुचियों पर रखकर उसे दबाने के लिए बोलने लगी अपनी मां का गुस्सा देखकर उसे हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह अपनी मां की चूची को दबा दें वह सिर्फ आश्चर्य से अपनी मां की तरह देखे जा रहा था शुभम की तरफ से कोई प्रतिक्रिया ना होता देखकर वो खुद हीअपने बेटे की हथेली पर अपनी हथेली रखकर उसे जोर जोर से दबाते हुए अपनी चूचियों को दबाना शुरू कर दी । और अपने बेटे की आंखों में आंखें डाल कर गुस्से में बोली ।..
बोल तुझे मजा नहीं आ रहा है ना मेरी चूचियों को दबाने में अब ईसमें खरबूजे जैसा मजा नहीं रह गया इन में रस नहीं रहगया इसलिए तू शीतल की तरफ बढ़ रहा है यही बात है ना ।
(शुभम को अब कैसे अपनी मां को समझाना है इस बात का बिल्कुल भी समझ नहीं थी उसका दिमाग काम करना बंद हो गया था। उसकी मां को वह समझाना चाहता था उससे माफी मांगना चाहता था लेकिन उसकी मां सुनने को तैयार ही नहीं थी बल्कि उसकी हरकतों की वजह से शुभम के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ रही थी... पजामे के अंदर शुभम का लंड खड़ा होने लगा था । इस तरह की स्थिति ना होती तो जिस तरह की हरकत उसकी मां कर रही थी उसे देखते हुए शुभम अब तक उसे बिस्तर पर लेटा कर उसकी दोनों टांगों को फैला कर अपने लंड को उसकी रसीली बुर के अंदर डाल दिया होता लेकिन इस समय ऐसा करना उचित नहीं था यह बात वह भी अच्छी तरह से जानता था क्योंकि ऐसे हालात में अगर वह अपनी तरफ से इस तरह की कोई प्रतिक्रिया देता है तो उसकी मां को यही लगेगा कि यह केवल हुस्न का दीवाना है इसे औरतों से इसने नहीं बल्कि उनके बदन से मोहब्बत है इसलिए वह इस तरह की हरकत नहीं करना चाहता था कि उसकी मां को इस बात से ठेस पहुंचे वह किसी तरह से अपनी मां को मना लेना चाहता था इसलिए अपनी मां को मनाने के उद्देश्य से वाह अपना हाथ पीछे हटाते हुए बोला ।)
शीतल कीमत मस्त जवानी जिसे देखकर शुभम का भी मन भटकने लगा था उसकी बड़ी बड़ी गांड शुभम की हालत खराब कर रहे थे
शीतल की खरबूजे जैसी बड़ी-बड़ी चूचियां देखकर शुभम का मन करने लगा था कि उसे दबा दबा कर उसे मुंह में भरकर उस का रस पी जाए

शीतल जोकि शुभम के मोटे तगड़े लंड के दर्शन कर चुकी थी और उसकी ताकत को भाप कर उसे अपनी बुर के अंदर लेकर अपनी प्यास बुझाना चाहती थी इस तरह से

शुभम झटके से अपने दोनों हाथ को अपनी मां की मदमस्त गोलगोल चुचियों पर से हटाते हुए बोला ।

यह क्या कर रही हो मम्मी ?

वही जो तू चाहता है। तुझे अब दूसरी औरतें पसंद आने लगी है ।

ऐसी कोई भी बात नहीं है मम्मी आप मुझे गलत समझ रही हैं ।

मैं तुझे गलत समझ रही हूं जो मेरी आंखों ने देखा वह क्या गलत था क्या तू शीतल के पास नहीं गया क्या मैं तुझे शरीर सुख नहीं दे पा रही हूं या अब तुझे मेरे बदन में मजा नहीं आ रहा है या मुझसे ज्यादा खूबसूरत और सेक्सी है वह शीतल (निर्मला गुस्से में अपने बेटे से सब कुछ बोले जा रही थी जो कि एक मां को एक बेटे से नहीं बोलना चाहिए था।)

मम्मी जो कुछ भी तुमने देखा हुआ सब कुछ गलत था।

मुझे तो बेवकूफ समझ रहा है शुभम मेरी आंखों ने जो कुछ भी देखा वह गलत था मैं कैसे यकीन कर लूं कि वह गलत था तू शीतल के क्लासरूम मम्मी अपना लंड खड़ा करके खड़ा था और वह घुटनों के बल बैठकर तेरे मोटे तगड़े लंड को मुंह में लेकर चूस रही थी और तू कह रहा है कि मैंने जो कुछ भी देखी वह सब कुछ गलत था। (निर्मला की अश्लील गंदी बातें शुभम के तन बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ आ रही थी जो कि इस तनाव भरी स्थिति में भी वह काफी उत्तेजित हो गया था उसे यकीन नहीं हो रहा था कि वह अपनी मां के मुंह से इस तरह के अश्लील शब्दों को सुन रहा है हालांकि वह इससे भी अश्लील बातें सुन चुका था लेकिन आज की बात कुछ और थी आज उसकी मां गुस्से में थी इसलिए उसे बड़ा अजीब लग रहा था लेकिन काफी उत्तेजना आत्मक भी क्योंकि गुस्से में होने के बावजूद भी निर्मला जिस तरह से बिस्तर पर घुटनों के बल बैठी हुई थी उसकी बड़ी-बड़ी खरबूजे जैसी चूचियां हवा में किसी को बारे की तरह झूल रहे थे जिसे देख कर शुभम की उत्तेजना बरकरार होती जा रही थी और उसके पजामे में तंबू सा बन गया था जिस पर निर्मला की भी नजर बनी हुई थी और वह अपने बेटे के पजामे मैंने तंबू को देखकर अंदर ही अंदर उत्तेजित भी हो रही थी लेकिन इस समय वह आगे के बारे में नहीं सोच रही थी ...उसके सामने केवल शीतल ही नजर आ रही थी जो कि उसे ऐसा प्रतीत हो रहा था कि वह उसके बेटे को अपने हुस्न के जलवे से छीन लेना चाहती है जो कि वह ऐसा होने देना नहीं चाहती थी इसलिए शुभम कुछ कहता है इससे पहले वह बिस्तर से उतर कर शुभम के बिल्कुल करीब जाकर उसके सामने ही घुटनों के बल बैठ गई और जबरदस्ती उसके पेंट की बटन खोलने लगी। और पेंट की बटन खोलते हुए बोली ।)

क्या शुभम तुझे क्या लगता है कि मैं तेरा लंड पहले की तरह नहीं चुस सकती ...क्या मेरी जीभ तेरे लंड के सुपाड़े पर अपना कमाल नहीं दिखा पाती जो तो उस हरामि के पास गया था अपना लंड चूस वाने ।
(ऐसा कहते हुए निर्मला अपने बेटे की पेंट की बटन को खोल चुकी थी और वह पहचाने में से उसके मोटे तगड़े खड़े लंड को बाहर निकालने जा रही थी लेकिन शुभम उसे बार-बार हाथ पकड़ कर रोक दे रहा था हालांकि वह मन ही मन यही चाह रहा था कि उसकी मां जबरदस्ती उसके मोटे तगड़े लंड को मुंह में लेकर चूसने क्योंकि आज तक जो भी हुआ था वह मर्जी से ही हुआ था लेकिन आज बस यही सोच रहा था कि उसकी मां उसके साथ जबरदस्ती करें आगे से वह कुछ भी नहीं करना चाहता था क्योंकि वह नहीं चाहता था कि उसकी मां को यह पता चले इस बात का एहसास हो कि शुभम को केवल औरतों के बदन से प्यार है उनके जज्बातों से नहीं‌।इसलिए वह ना चाहते हुए भी स्थिति को समझकर अपनी मां का हाथ पकड़कर झटके से उसे झटक दिया जिससे उसकी मां पीछे की तरफ गिरते-गिरते बची । शुभम के इस व्यवहार को देखकर निर्मला को इस बात का एहसास हो गया कि उसका बेटा अब उससे प्यार नहीं करता इसलिए वह इतने जोर से उसे धक्का दे दिया वह रोने लगी उसकी आंखों से आंसू गिरने लगे जिसे देखकर शुभम लगभग दौड़ते हुए अपनी मां की तरफ आया लेकिन निर्मला उसे वहीं रोक दी और बोली ।)
rajan
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Re: एक अधूरी प्यास- 2

Post by rajan »

नहीं शुभम अब एक कदम भी आगे मत बनाना हमें अच्छी तरह से समझ गई हूं कि तू भी अब बदल गया है तुझे भी शीतल के बदन में अपनी प्यास और अपनी संतुष्टि नजर आने लगी है तभी तो मुझे इस तरह से धक्का देकर हटा दिया अगर तुझे मुझ से जरा भी प्यार होता तो तु मुझे इस तरह से धक्का नहीं देता (वह अपने बेटे से बोले जा रही थी और रोए जा रही थी उसकी स्थिति को देखकर शुभम को भी इस बात का एहसास हुआ कि उसे इतनी जोर से धक्का नहीं देना चाहिए था इसलिए वह माफी मांगते हुए बोला।)

मम्मी मैं तुम्हें धोखा नहीं देना चाहता था लेकिन मैं यह समझाना चाह रहा हूं कि तुम्हें क्या हो गया है‌।

(इतना सुनते ही फिर से निर्मला गुस्से में आ गई और लगभग अपने बेटे पर भड़कते हुए बोली।)

हां हां मैं पागल हो गई हूं .... पागल हो गई हो मैं क्योंकि मैं नहीं चाहती कि तुझे मुझसे कोई छीन ले...

यह कैसी बातें कर रही है मम्मी आखिरकार तुमसे मुझे कौन छीनना चाहता है और कौन छीन लेगा।

शीतल .....शीतल तुझे मुझसे छीन लेगी मैं अच्छी तरह से जानती हूं वह बहुत सातीर है ..बहुत पहले से ही तुझ पर उसकी नजर थी वह तुझे गंदी नजरों से देखती थी तेरे साथ शरीर सुख का आनंद लेना चाहती थी वह कई बार मुझसे बोल भी चुकी थी और इसीलिए मैंने तुझे समझाई थी कि तू उसके आसपास भी मत भटकना लेकिन जो मैं नहीं देखना चाहती थी वही तूने मुझे दिखा दिया। (इतना कहते हुए वह लगातार रोए जा रही थी उसकी आंखों से लगातार आंसू बह रहे थे जिसे शुभम नहीं देखना चाहता था क्योंकि आज तक उसने अपनी मां को इस तरह से रोते हुए नहीं देखा था इसलिए वह भी अंदर ही अंदर रोने लगा उसकी आंखों में भी आंसू आ गए वह किसी भी तरह से अपनी मां को मना लेना चाहता था इसलिए वह बोला।)

हां मम्मी जो तुमने अपनी आंखों से देखी वह बिल्कुल सच था शीतल मैडम मेरा लंड मुंह में लेकर चूस रही थी । (शुभम जानबूझकर इस समय अश्लील शब्दों का प्रयोग कर रहा था क्योंकि अपनी मां की स्थिति उसके नंगे बदन और उसकी बड़ी-बड़ी चुचियों को देखकर उसके तन बदन में उत्तेजना की चिंगारी फूट रही थी) तुमने जो अपनी आंखों से देखी वह बिल्कुल सच था लेकिन उस सच के पीछे की सच्चाई तुम नहीं जानती।

कैसी सच्चाई .....(निर्मला सीसकते हुए बोली)

मैं वहां अपने मन से नहीं किया था मम्मी मैं पहले भी तुम्हें बता चुका हूं मैं वहां जाना ही नहीं चाहता था वह तो बहुत जोर देने पर एग्जाम्स से संबंधित कुछ जरूरी बात करने के उद्देश्य से वह मुझे वहां पर बुलाई।

तू बच्चा नहीं है तो समझदार है अब बड़ा हो चुका है तो अच्छी तरह से जानता था कि वह तुझे किस लिए बुला रही है।

मम्मी में पहले तो यही समझ रहा था कि वह शायद मुझसे ऐसी वैसी हरकत करने के लिए ही वहां बुला रही है लेकिन एग्जाम का नाम लेकर वह मुझे बुलाई तो मैं चला गया और क्लास रूम में जैसे ही पहुंचा हुआ झट से मेरे सामने खड़ी हो गई मैं कुछ समझ पाता इससे पहले जो मुझे अपनी बाहों में भर कर मुझे चूमना शुरु कर दी ....

और उस कल मूवी के चुम्मा चाटी से तुझे मजा आने लगा होगा तभी तो तेरा लंड भी खड़ा हो गया अगर मजा नहीं आता तो खड़ा कैसे होता।

मम्मी तुम पहले मेरी बात सुनो तो सही ।(इतना कहते हुए वह धीरे-धीरे जाकर अपनी मम्मी के पास बैठ गया और उसकी आंखों में आंखें डाल कर बोला )

व्ह जिस तरह से मुझे अपनी बाहों में जकड़े हुए थी मैं डर गया था और मैं झटके से उसे दूर कर के वहां से जाने वाला था कि वह मेरा हाथ पकड़ कर बोली‌।

रुक जाओ शुभम अगर तुम कमरे से बाहर जाने की कोशिश भी की है तो मैं शोर मचा दूंगी और कहूंगी कि तुम मेरे साथ छेड़खानी कर रहे थे इतना सुनते ही मैं एकदम से सन्न हो गया .....

क्या ....?(निर्मला अपने बेटे की यह बात सुनकर एकदम गुस्से में और आश्चर्य के साथ बोली)

हां मम्मी शीतल मैडम की बात सुनकर तो मुझे यकीन ही नहीं हो रहा था कि वह क्या कह रही हैं मुझे समझ में नहीं आ रहा कि मैं क्या करूं .... मैं उनके क्लासरूम से निकल जाना चाहता था वहां से भाग जाना चाहता था इसलिए मैं दरवाजा खोलने ही वाला था लेकिन उनकी बात सुनकर मैं एकदम से ठिठक गया ....(शुभम झूठ का सहारा लेकर अपनी मां को किसी भी तरह से मना लेना चाहता था वह अपनी मां को विश्वास दिला देना चाहता था कि जो कुछ भी हुआ था उसमें उसका हाथ बिल्कुल भी नहीं था इसलिए वह अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए बोला।)
मम्मी ने वहां से दरवाजा खोल कर बाहर निकल जाने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं था क्योंकि मैं अच्छी तरह से जानता था कि अगर मैं कमरे से बाहर गया तो हो सकता है वह शोर मचा दे और ऐसे में हम लोगों की इज्जत जाने का डर बना हुआ था सोचो मम्मी अगर ऐसा हो जाता मैं वहां से बाहर निकल जाता और वह औरत शोर मचा देती तो मेरी और तुम्हारी इज्जत का क्या होता तुम स्कूल की टीचर हो और ऐसे में अगर कोई आपके बेटे पर इस तरह का लांछन लगाए तो सोचो कितनी बदनामी होती...(वह अपनी मां को विश्वास दिलाने के लिए लगातार झूठ का सहारा लेकर बातपे बात बनाए जा रहा था और तिरछी नजरों से अपनी मां की मदमस्त गोल गोल खरबूजे जैसी चूचियों को प्यासी नजरों से देखते भी जा रहा था अपनी मां की नंगी चूची को देखकर उसके लंड में तनाव बरकरार था। अपने बेटे की बात सुनकर निर्मला गुस्से में बोली।)

उस हरामजादी की इतनी हिम्मत .... वह मेरे बेटे को झूठा इल्जाम लगाने के बहाने इस तरह से फसाना चाहती थी। मैं उसे छोडूंगी नहीं मैं कल स्कूल जाकर सबके सामने उसके चरित्र को कैसे सबके सामने लाती हूं। (निर्मला एकदम गुस्से में बोल रही थी और उसकी बात सुनकर शुभम को सुकून महसूस हो रहा था उसे यकीन हो गया था कि उसकी मां ने उसकी बातों पर विश्वास कर ली है लेकिन इस बात का डर भी था कि कहीं सच में उसकी मां उससे जाकर झगड़ा ना करने लगे इसलिए वह अपनी मां को समझाते हुए बोला।)

नहीं मम्मी ऐसा बिल्कुल भी मत करना जो हुआ उसे जाने दो मैं नहीं चाहता कि इस तरह की बातें बाहर समाज में फैले और इससे हम दोनों की ही बदनामी होगी सबको ऐसा ही लगेगा कि जरूर मैं इस तरह का लड़का हूं तभी उसने मेरे सामने इस तरह का प्रस्ताव रखी। ....
(शुभम की बात सुनकर निर्मला कुछ हद तक शांत होने लगी .. वह अपने आंसू पोंछते हुए बोली।)

नहीं बेटा उसे सबक सिखाना ही पड़ेगा मैं कितना डर गई थी तू नहीं जानता देख अभी तक मेरी सांस कितनी तेजी से चल रही है।(इतना कहते हुए निर्मला अपने बेटे का हाथ पकड़कर अपनी छाती पर रख दी जोकी वह अपने बेटे की हथेली को अपनी चूची के ऊपरी सतह पर रखी थी जिससे शुभम उत्तेजित होने लगा..अपनी मां की छाती पर हथेली रखकर उसे इस बात का अहसास हुआ कि वास्तव में उसकी मां पूरी तरह से डर गई थी तभी उसके दिल की धड़कन बड़ी तेजी से चल रही थी। शुभम उत्तेजना आत्मक स्थिति में अपनी मां की छाती को हल्के हल्के सहलाते हुए बोला।)...
हां मम्मी मैं अच्छी तरह से जानता हूं कि आप बहुत डर गई हैं तभी तो आप इस तरह की बातें कर रही थी और कभी भी यह मत समझना कि मैं तुम्हें छोड़ कर जाऊंगा मैं तुम्हें कभी भी पापा की तरह नहीं छोड़ कर जाऊंगा। .

बेटा मुझे बहुत डर लगता है मैं फिर से अकेली नहीं होना चाहती हूं...बरसों के बाद मुझे तेरा सहारा मिला है मेरे सहारा नहीं खोना चाहती मैं नहीं चाहती कि कोई और तुझे अपना बना ले.
(निर्मला पूरी तरह से जज्बाती हुए जा रही थी और वास्तविकता यही थी कि वह अपने बेटे को खोना नहीं चाहती थी किसी भी कीमत पर और यह बात शुभम भी अच्छी तरह से जानता था तभी तो आज उसे अपनी मां का एक नया रूप देखने को मिला था।.. शुभम धीरे-धीरे अपनी हथेली को अपनी मां की बड़ी बड़ी छातियों की गोलाई पर रखते हुए बोला)

मुझे कोई भी अपना नहीं बना लेगा मम्मी और बनाना भी चाहेगा तो मैं उसका नहीं बनूंगा भला इस धरती पर तुमसे खूबसूरत औरत होगी कहीं तुम बहुत खूबसूरत मम्मी।( इतना कहते हुए शुभम उत्तेजित अवस्था में अपनी मां की एक चूची को अपनी हथेली में भर कर दबाना शुरू कर दिया...)

बेटा मैं भी यही चाहती हूं कि तू किसी और का ना होकर जिंदगी भर सिर्फ मेरा ही रहे।
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