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Thriller एक ही अंजाम

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rajsharma
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Thriller एक ही अंजाम

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एक ही अंजाम
(थ्रिलर)


बम्बई के फोर्ट एरिया में स्थित वो एक सिनेमा हाल था जिसमें सुबह के दस बजे कोई फिल्म शो होने के स्थान पर शिवालिक ग्रुप आफ इन्डस्ट्रीज के माइनोरिटी स्टाक होल्डर्स की मीटिंग हो रही थी । हाल इस हद तक खचाखच भरा हुआ था कि कितने ही लोग दीवारों के साथ टेक लगाये खड़े थे और कितने ही सीटों के बीच की राहदारी में बैठे हुए थे । किसी कम्पनी के अंशधारकों का इतनी तादाद में इकट्ठा हो जाना ही किसी करिश्मे से कम नहीं था और वो करिश्मा भी खामखाह नहीं हो गया था । वो करिश्मा हुआ था कान्ति देसाई के करिश्मासाज व्यक्तित्व की वजह से जो कि उस घड़ी उस विशाल जनसमूह से सम्बोधित था और शेर की तरह गर्ज रहा था ।
कान्ति देसाई एक कोई साठ साल का झक सफेद बालों वाला सूटबूटधारी अति आधुनिक वृद्ध था जो कि अनिवासी भारतीय के तौर पर कोई आठ महीने पहले कैनेडा से बम्बई वापिस लौटा था और अब बम्बई में स्थायी रूप से बस जाने का इरादा रखता था । बम्बई लौटने के बाद ही उसने शिवालिक के शेयर खरीदने आरम्भ किए थे और अब शिवालिक में उसकी पूंजी लगभग पन्दरह प्रतिशत तक पहुंच भी चुकी थी ।
लेकिन वो जानता था कि शिवालिक की स्थापना के दिनों से ही कम्पनी पर काबिज शाह परिवार को सिंहासनच्युत करने के लिए उसकी पन्दरह प्रतिशत शेयरों की मिल्कियत ही काफी नहीं थी और उस प्रतिशत में अब कोई इजाफा करने के उसे इरादे पिटने लगे थे क्योंकि शाह परिवार उसकी नीयत को समझ गया था और भरपूर कोशिशें करने लगा था कि कोई एकमुश्त शेयर अब कम से कम भविष्य में कान्त‍ि देसाई के हाथों में न पड़ने पायें ।
त‍ब कान्ति देसाई ने माइनोरिटी स्टाक होल्डर्स को - अल्पसंख्यक अंशधारकों को - जमा करके अपनी ओर करने का अभियान चलाया था जो कि उस रोज की वहां की हाजिरी ही साफ बता रही थी कि कामयाब हो रहा था ।
उस ऐतिहासिक मीटिंग में शामिल होने के लिए सारे भारतवर्ष से आकर लोग वहां इकट्ठे हुए थे और ये कान्ति देसाई का ही जहूरा था कि यूं शिवालिक के अंशधारकों का वो विशाल जनसमूह वहां एकत्रित हो सका था ।
“शिवालिक के अंशधारको !” - स्टेज पर से अपनी ललकारभरी आवाज में कान्ति देसाई गर्ज रहा था - “अपनी ताकत को पहचानो । उसे कम करके न आंको । अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता लेकिन संगठन में बड़ी शक्ति होती है । मत भूलो, मेरे साथियो, कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है । मत भूलो कि कम्पनी का चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर चुनने में, कम्पनी के डायरेक्टरों का बोर्ड चुनने में, आप लोगों की भी वोट की उतनी ही कीमत है जितनी कि शाह परिवार के वोट की है । लेकिन आप कम्पनी के मौजूदा सी एम डी (चेयरमैन एण्ड मैनेजिंग डायरेक्टर) हरीभाई शाह को अपनी प्राक्सी वोट का हकदार बनाकर अपने हाथ कटा चुके हैं । आपमें से कौन नहीं जानता कि शिवालिक में शाह परिवार के केवल तीस प्रतिशत शेयर हैं जो कि कम्पनी पर काबिज होने के लिये हरगिज भी काफी नहीं लेकिन शाह परिवार शिवालिक पर फिर भी काबिज है ! कैसे काबिज है ? वो काबिज है कुछ आप लोगों की स्वेच्छा से दी हुई प्राक्सी वोटों से और कुछ प्राक्सी वोटों में घोटाला करके । घोटालों की नीयत शाह परिवार में इतनी गहरी पैठ चुकी है कि वो दिन दूर नहीं होगा जबकि कम्पनी ऐसी रसातल में पहुंच चुकी होगी कि किसी के उबारे नहीं उभरेगी । दोस्तो ! आप जानते हैं कि शाह परिवार की बद्इन्तजामी और निजी स्वार्थ के लिए की गई हेराफेरियों की वजह से ही कम्पनी का मुनाफा घटता जा रहा है और उसके शेयरों की कीमत गिरती जा रही है । लेकिन इन हालात से शाह परिवार को कोई फर्क नहीं पड़ता । कम्पनी के खर्चे से उनकी पांच सितारा ऐश, उनकी स्विट्जरलैंड की पिकनिकें, जारी हैं । जो पैसा मुनाफे की सूरत में आप लोगों में बंटना चाहिये, जिसकी वजह से आपको बोनस शेयर मिलने चाहिये, उसे हरीभाई शाह और उसके होते-सोते अपनी ऐश के लिये दोनों हाथों से उड़ा रहे हैं । शिवालिक के अंशधारकों ! ये नुकसान किसका है ? ये नुकसान आपका है ! वो पैसा किसका है जो पूरी बेरहमी से उड़ाया जा रहा है ? वो पैसा आपका है । क्या आप इन ज्यादतियों से आंखें मूंदे रह सकते हैं ?”
“नहीं ! नहीं !” - अंशधारक समवेत स्वर में बोले ।
“क्या आप शाह परिवार को यूं ही शिवालिक को दिवालियेपन की ओर धकेलते चले जाने की इजाजत दे सकते हैं ?”
“नहीं ! नहीं !”
“क्या आपको मंजूर है कि वो हरीभाई शाह एक चूहे की तरह आपकी गांठ कुतरता चला जाये ?”
“नहीं ! नहीं !”
“क्या अपने माल की हिफाजत करना गुनाह है ? क्या उसे अपनी आंखों के सामने लुटा जाता देखना मुनासिब है ?”
“नहीं ! नहीं !”
“तो फिर जागो ! शिवालिक के अल्पसंख्यक अंशधारकों, जागो ! चेतो ! और उखाड़ फेंको शाह परिवार के घटिया, मतलबपरस्त, कुनबापरस्त निजाम को ।”
“कैसे ? कैसे ?”
“रास्ता मैं दिखाता हूं लेकिन पहले आप फैसला कीजिए कि आप मेरे दिखाये रास्ते पर चलने के लिए, मेरे ऊपर विश्वास दिखाने के लिये, तैयार हैं ?”
“हम तैयार हैं ।”
“जो साहबान मेरी पेशकश के हक में हैं, हो वो बरायमेहरबानी अपने हाथ खड़े करें ।”
तत्काल इतने हाथ खड़े हुए कि कान्ति देसाई को तमाम के तमाम तो दिखाई भी न दे सके ।
“तो आप सब साहबान मेरे बताये रास्ते पर, तरक्की के रास्ते पर चलने को तैयार हैं ?”
“हम तैयार हैं । बताइये, हमें क्या करना होगा ?”
“सबसे पहले तो आप लोगों को मेरी ये ही राय है कि आप हरीभाई शाह के हक में दी अपनी प्राक्सी वोट कैंसिल करे क्योंकि उसी वजह से आप लोग अपने हाथ कटाये बैठे हैं ।”
“हम करेंगे ।”
“फिर शिवालिक के मौजूदा सी एम डी, जो कि हरीभाई शाह है, और मौजूदा बोर्ड आफ डायरेक्टर से, जिसमें कि उसके परिवार के लोग और चमचे भरे हुए हैं, के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास करें और नये सी एम डी और नये बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के चयन के लिए इलैक्शन की मांग करें ।”
“हम करेंगे ।”
“तो समझ लीजिए कि जीत हमारे हाथ में है ।”
“लेकिन ऐसा कैसे होगा ?” - कोई बोला - “इलैक्शन में तो शाह परिवार फिर जीत जायेगा ।”
“इस बार नहीं जीत पायेगा ।”
“लेकिन देसाई साहब, हम जैसे हजारों माइनोरिटी शेयर होल्डर्स के शेयरों की कुल जमा वैल्यू तो दस प्रतिशत भी नहीं बनती ।”
“बनती है । बारह प्रतिशत बनती है । मैंने कम्पनी का रिकार्ड देखकर इस बात की तसदीक की है ।”
“लेकिन बारह प्रतिशत भी...”
“किसी कद कम नहीं । पन्दरह प्रतिशत शेयर मेरे पास हैं जिन्हें कि शाह परिवार की मुखालफतों के बावजूद भी मैं बीस प्रतिशत तक यकीनन पहुंचा लूंगा । बाकी के अट्ठारह प्रतिशत को भी शाह परिवार के खिलाफ मैं मुहैया करके दिखाऊंगा ।”
“कैसे ?”
“मैंने दो अदिवासी भारतीयों का पता किया है जिनके पास शिवालिक के दस-दस प्रतिशत के शेयर हैं लेकिन वो कभी वोट नहीं डालते । वो चाहें तो कम्पनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में जगह पा सकते हैं लेकिन उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं । वो न वोट डालने भारत आते हैं और न प्राक्सी वोट का हक इस्तेमाल करते हैं । साहबान, अगर आप लोग मेरा साथ देंगे तो उन दोनों अनिवासी भारतीयों को, जो कि सगे भाई हैं, मैं आप लोगों के हक में करके दिखाऊंगा । बहुत जल्द उनसे मिलने के लिए मैं नेपाल जाने वाला हूं । मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि जब मैं लौटूंगा तो उन दोनों भाइयों की बीस प्रतिशत की प्राक्सी वोट साथ लेकर लौटूंगा ।”
सभा ने हर्षनाद किया ।
“लेकिन ये न भूलिये, जनाबे हाजरीन कि हरीभाई शाह जैसा रावण गिराने के लिये आपकी वोटों का मैं फिर भी तलबगार रहूंगा । ये न भूलिये कि पासा जिस रुख भी पलटेगा, आपकी वोटों से ही पलटेगा । अब यह फैसला आपके हाथ में है कि आप शाह परिवार के करप्ट और घाटे वाले निजाम से ही बंधे रहना चाहते हैं या ऐसे निजाम को उखाड़ फेंकना चाहते हैं जो आपकी गिरह काट रहा है ।”
“हम शाह परिवार के निजाम को उखाड़ फेंकना चाहते हैं ।”
“तो फिर ऐसा ही होगा । धोखेबाज, बेईमान और मतलब परस्त आदमी का एक ही अंजाम होता है । अब आप अपनी आंखों से देखेंगे कि कैसे हरीभाई शाह अपने उस अंजाम तक आनन-फानन पहुंचता है । शिवालिक के अंशधारको, रावण मर के रहेगा, इंकलाब आके रहेगा ।”
“इंकलाब !” - बाल्कनी में से कोई जोशभरे स्वर में बोला ।
“जिन्दाबाद !” - सैकड़ों आवाजों में फौरन जवाब मिला ।
“इंकलाब !”
“जिन्दाबाद !”
***
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
मानव से देव ना बन जाऊं कहीं,,,,
बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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सिनेमा के ऐन सामने सड़क के पार एक बहुमंजिली इमारत थी जिसकी दसवीं मंजिल पर स्थित एक आफिस के वातानुकूलित कमरे में, जिसकी एक विशाल खिड़की सिनेमा की ओर खुलती थी, एक विशाल टेबल के पीछे एक एग्जीक्यूटिव चेयर पर एक युवक बैठा था । आयु में कोई पैंतीस साल का वो युवक फिल्म अभिनेताओं जैसा खूबसूरत था और अपने केशविन्यास और पोशाक में फिल्म अभिनेताओं जैसा ही उसका रख-रखाव था । युवक के सामने मेज पर एक रिसीवर रखा था जो कि सड़क से पार सिनेमा में जहां कि शिवालिक के अंशधारकों की मीटिंग चल रही थी, बड़ी चतुराई से छुपाये गए माइक्रोफोन से सम्बद्ध था । युवक रिसीवर से निकलती कान्ति देसाई की कहर बरपाती आवाज सुन रहा था और अंगारों पर लोट रहा था ।
युवक का नाम किशोर शाह था और वो हरीभाई शाह का सबसे छोटा बेटा था ।
“हरामजादा !” - किशोर शाह सांप की तरह फुंफकारा - “कुत्ते का पिल्ला !”
कमरे में एक शख्स और था जो कि खिड़की के पास खड़ा था और एक पर्दे की ओट में से बाहर देख रहा था । वो कोई पैंतालीस साल का बेहद चौकस तन्दुरुस्ती वाला और बेहद क्रूर चेहरे वाला आदमी था । उसका नाम राजू सावंत था और वो एक दुर्दान्त हत्यारा था । पिछले बारह सालों में वो एक मामूली मवाली से इलाके का बड़ा दादा और फिर निहायत खतरनाक सुपारी हत्यारा बना था । उसकी मौजूदा तरक्की-भरी हैसियत ये थी कि अब वो शाह परिवार का संकटमोचक बना हुआ था । शाह परिवार के रास्ते में रुकावट बन के आन खड़ा हुआ कोई भी पत्थर जो सीधे-सीधे हटता दिखाई नहीं देता था, उसे हटाना राजू सावंत का काम होता था जिसे कि वो बहुत ही कामयाबी से, बहुत ही मुस्तैदी से, अंजाम देता था ।
अपने छोटे मालिक के मुंह से गालियों का गुबार फटता पाकर उसने एक बार किशोर शाह की दिशा में निगाह उठायी और फिर खिड़की से बाहर देखने लगा ।
बड़े घरों के रौशन चिरागों का गुस्सा ऐसा ही होता था - उसने मन-ही-मन सोचा - चार गालियां देकर ही शान्त हो जाता था ।
तब तक रिसीवर में से कान्ति देसाई की आवाज आनी बन्द हो गयी थी ।
किशोर शाह क्रोध से कांपते हाथों से डनहिल का एक सिगरेट सुलगाने लगा ।
“मीटिंग खत्म हो रही मालूम होती है ।” - एकाएक सावंत बोला ।
किशोर शाह अपनी कुर्सी से उठा और खिड़की पर अपने ट्रबल शूटर के करीब पहुंचा । सावंत के कन्धे पर से वो भी बाहर झांकने लगा ।
लोगों का हुजूम सिनेमा से बाहर आ रहा था और इधर-उधर बिखरकर - अपनी अपनी राह लग रहा था ।
फिर दोनों के देखते-देखते चार बाडीगार्डों से घिरा कान्ति देसाई सिनेमा से बाहर निकला और एक एम्बैसेडर में सवार हो कर वहां से रवाना हो गया ।
“साला सरकारी सांड !” - किशोर शाह फुंफकारा ।
सावंत ने सहमति में सिर हिलाया । वो जानता था कि वो मामूली से दिखने वाले बाडीगार्ड वास्तव में कान्ति देसाई की सरकार द्वारा मुहैया कराये गये ब्लैक कैट कमान्डो थे । वैसे ही आठ कमान्डो उन दो और एम्बैसेडर कारों में थे जो देसाई वाली कार के आगे-पीछे चलती वहां से गयी थीं । उस ‘सरकारी’ इन्तजाम की वजह से ही सावंत जैसा दुर्दान्त हत्यारा भी बम्बई में देसाई पर हाथ डालने में असमर्थ था ।
कान्ति देसाई नाम का अनिवासी भारतीय वास्तव में सरकार द्वारा ऐन वैसे ही कैनेडा से बुलाकर शाह परिवार के खिलाफ खड़ा किया गया था जैसे कभी स्वराजपाल को लन्दन से बुलाकर एस्काट्स और डी सी एम के खिलाफ खड़ा किया गया था । सत्ता के गलियारों में शाह परिवार की बढती हुई साख मौजूदा सरकार को नागवार गुजर रही थी और शाह परिवार के पर कतरने के लिए ही वो कान्ति देसाई को शिवालिक को हथियाने के लिए तैयार कर रहे थे । उधर कान्ति देसाई इसी खयाल से फूलकर कुप्पा हुआ जा रहा था कि खुद सरकार उसकी पीठ पर सवार थी ।
“कैसा आदमी है तू ?” - किशोर शाह सावन्त के कान में भुनभुनाया - “कि एक आदमी की लाश नहीं गिरा सकता ।”
“क्यों नहीं गिरा सकता ?” - सावन्त बड़े सब्र से बोला - “मैं तो इसके दर्जन-भर कमान्डो और तमाम के तमाम हिमायतियों समेत अभी इस साले सिनेमा को ही फूंक के रख सकता हूं लेकिन ऐसा करना समझदारी न होगी । आप ही की भलाई में ऐसा करना मुनासिब नहीं । मौजूदा हालात में ये आदमी मारा गया तो, गुस्ताखी की माफी के साथ कह रहा हूं छोटे मालिक, फिर पूरे का पूरा शाह परिवार जेल में होगा ।”
किशोर शाह पड़फड़ाया लेकिन मुंह से कुछ न बोला ।
“बल्कि जेल की नौबत ही नहीं आयेगी” - सावन्त आगे बढा - “इसके मौजूदा हिमायती ही आप सबकी तिक्का-बोटी एक करके रख देंगे ।”
“कोई मजाक है ?” - किशोर शाह भड़का ।
“आप मॉब फ्यूरी को नहीं समझते, छोटे मालिक । ताव खाया हुआ हजूम तो फौज के रोके नहीं रुकता । ये आदमी बहुत लोकप्रियता हासिल कर चुका है । मौजूदा हालात में ये मारा गया तो इसका दर्जा एक शहीद जैसा होगा । तब इसकी शहादत इसके पिछलग्गुओं को शाह परिवार के खिलाफ ऐसे भड़कायेगी कि आप लोगों के लिए पनाह हासिल करना मुश्किल हो जायेगा ।”
“मुल्क का कायदा-कानून ऐसा होने देगा ?”
“मुल्क के कायदे-काननू की हवा इस वक्त आपसे विपरीत दिशा में बह रही है । जब जो प्रेत आपके खिलाफ खड़ा किया जा रहा है, वही सरकारी है तो मुल्क का कायदा-कानून आपके किस काम आयेगा ? यकीन जानिये, अगर शाह परिवार के खिलाफ कुछ बुरा हुआ तो सरकार आंखें बन्द कर लेगी और तभी खोलेगी और चेतेगी जब कि वो बुरा मुकम्मल तौर से हो चुका होगा ।”
किशोर शाह ने भुनभुनाते हुए डनहिल का एक लम्बा कश लगाया ।
“व्यापार और राजनीति में सामने आने वाले दुश्मन यूं, खत्म नहीं किये जाते !” - सावन्त बोला ।
“यानी कि” - किशोर शाह दांत पीसता हुआ बोला - “ये हरामजादा यूं ही हमारी छाती पर मूंग दलेगा ? यूं तो एक दिन ये हमें कान पकड़कर शिवालिक के सिंहासन से खड़ा कर देगा और खुद हमारी सीट पर बैठ जायेगा ।”
“ऐसा नहीं होगा ।”
“जो हालात सामने हैं उनसे तो लगता है कि ऐसा ही होगा । हमारे खिलाफ उसका जोर बढता जा रहा है, हमारे शेयर होल्डर उसके मुरीद बनते जा रहे हैं और हम हैं कि ये सिलसिला रोक भी नहीं सकते । न हम उसकी पापुलरिटी को कम कर सकते हैं और न हम उसका कत्ल करा सकते हैं ।”
“बम्बई में नहीं करा सकते । हिन्दुस्तान में नहीं करा सकते ।”
“क्या मतलब ?”
“आपने उसकी तकरीर गौर से नहीं सुनी । आपने नहीं सुना कि बहुत जल्द कुलकर्णी बन्धुओं से मिलने और उन्हें अपनी तरफ मिलाने वो नेपाल जाने वाला है । छोटे मालिक, जितना महफूज वो यहां है, उतना महफूज वो नेपाल में नहीं होगा ।”
“ओह !”
“नेपाल में हुए उसके कत्ल से हमारा रिश्ता जोड़ना बहुत मुश्किल होगा, खासतौर से तब जब कि हममें से कोई - न मैं और मेरा कोई आदमी और न शाह परिवार में से कोई - उसके पीछे नेपाल भी नहीं गया होगा ।”
“फिर कैसे होगा ये काम ?”
“होगा । मेरे किये होगा । मैं करूंगा सब इन्तजाम ।”
“लेकिन कैसे ?”
“वक्त आने दीजिये, सब मालूम पड़ जायेगा । फिलहाल इतना जान लीजिए कि नेपाल गया आपका और आपकी बादशाहत का दुश्मन कान्ति देसाई नाम का ये आदमी वहां से वापिस एक ताबूत में बन्द होकर लौटेगा जो कि सरकारी फूलमालाओं से लदा होगा ।”
“तब इसके पिछलग्गू नहीं भड़केंगे ?”
“भड़केंगे । जरूर भड़केंगे । कोई छोटा-मोटा उत्पात भी मचायेंगे । लेकिन उस उत्पात का निशाना शाह परिवार नहीं होगा इसलिये नहीं होगा क्योंकि उसकी मौत का शाह परिवार से रिश्ता जोड़ना नामुमकिन होगा ।”
“क्या गारन्टी है ?”
“मैं गारन्टी हूं । छोटे मालिक, नेपाल में उसका कत्ल यूं होगा कि उसका रिश्ता आपसे तो क्या, मेरे से भी जोड़ना सम्भव नहीं होगा ।”
“हूं ।”
“उसके कत्ल के बाद मैं ऐसी अफवाह काम कराऊंगा कि ये कान्ति देसाई शाह परिवार के हाथों बिक गया था और अपने अनुयायियों को और अपनी पीठ पर मौजूद भारत सरकार दोनों को धोखा देकर अपना खुद का उल्लू सीधा करने की फिराक में लग गया था और फिर इस डबल क्रास से भड़ककर उन्हीं लोगों में से किसी ने उसका कत्ल कर दिया था या करवा दिया था जिनका कि ये रहनुमा बना हुआ था और मसीहा बनने की कोशिश कर रहा था ।”
तब किशोर शाह के चेहरे पर इतमीनान की झलक दिखाई दी ।
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“गुड !” - वो बड़े संतोष से सहमति में गर्दन हिलाता हुआ बोला - “गुड ।”
फिर दोनों कई क्षण खामोशी से बाहर झांकते रहे । सिनेमा की इमारत में से लोग निकलने बन्द हो गये तो वे खिड़की के पास से हटे और वापिस आफिस टेबल पर आमने-सामने आन बैठे ।
“पहुंचा के कौन आयेगा” - फिर किशोर शाह बोला - “इस कान्ति को जहन्नुम के दरवाजे पर ?”
“मैंने पहले ही अर्ज किया है, छोटे मालिक” - सावंत बोला - “कि वो शख्स न शाह परिवार का करीबी होगा और न मेरा । वो हमारे से बाहर का बल्कि हमारे मुल्क से बाहर का आदमी होगा । वो ऐसा आदमी होगा जिसका शिवालिक की मौजूदा पेचीदगियों से या कान्त‍ि देसाई के माध्यम से उसकी गौरमेंट टेक ओवर से कुछ लेना-देना नहीं होगा । वो आदमी अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर काम करने वाला एक सुपारी हत्यारा होगा, इन्डस्ट्रियल और पोलोटिकल असासीनेशन जिसकी स्पैशलिटी है !”
“कत्ल का ! कत्ल का स्पैशलिस्ट है वो ?”
“जी हां । स्पैशलिस्ट भी ऐसा कि कई मुल्कों की हकूमतें तक उसकी सेवायें प्राप्त कर चुकी हैं ।”
“कमाल है । है कौन वो ?”
“है कोई मेरे जैसा ही एक खुदा का बन्दा जो हमपेशा होने की वजह से मेरा लिहाज करता है । मेरे और उसमें इतना ही फर्क है कि मेरा फील्ड बम्बई है या यूं कह लीजिए कि महाराष्ट्र है जबकि उसका फील्ड कुल जहान है ।”
“यानी कि वो दुनिया के किसी भी कोने में कत्ल करने के लिए तैयार हो जाता है ?”
“फीस लेकर । बहुत मोटी फीस लेकर ।”
“लेकिन तैयार हो जाता है ।”
“जी हां । उजरत उसकी मनमानी हो तो चांद पर जाकर कत्ल करने को तैयार हो सकता है ।”
“है कौन वो ?”
“आप क्या करेंगे जान के !” - सावंत तनिक हंसा - “छोटे मालिक, आप नतीजे से निस्बत रखिये, उस तक पहुंचने के लिये क्या करना है, कैसे करना है, किसके जरिये करना है, इसकी फिक्र इस खाकदार पर छोड़ दीजिये ।’
“अच्छा !” - किशोर शाह तनिक सन्दिग्ध भाव से बोला ।
“आप सिर्फ इतना जान लीजिये कि एकदम सेफ तरीके से आपकी ख्वाहिश अगर कोई शख्स पूरी कर सकता है तो वो वो ही इन्टरनेशनल कान्ट्रैक्टर किलर है जो कि मेरा दोस्त है । वो ही आपके घोर शत्रु कान्ति देसाई को बांह पकड़कर जहन्नुम के दरवाजे पर खड़ा करके आयेगा ।”
किशोर शाह कुछ क्षण सोचता रहा और फिर बड़े अनमने भाव से सहमति में सिर हिलाने लगा ।
***
फोर्ट के ही इलाके में विक्टोरिया टर्मिनस स्टेशन के सामने स्थित एक होटल के एक सुईट में चार आदमी बैठे थे जिनमें से दो इलैक्ट्रानिक सर्वेलेंस डिवाइस से सम्बद्ध हैडफोन अपने कानों पर चढाये हुए थे और यूं कानों में पड़ती आवाजों को बड़े गौर से सुन रहे थे । उन दो में से जिस एक शख्स के चेहरे पर सबसे ज्यादा गम्भीरता के भाव थे और जो रह-रहकर एक नोटशीट पर कुछ-न-कुछ नोट भी करता जा रहा था, उसका नाम निर्मल कोठारी था और वो रॉ (रिसर्च एण्ड अनैलेसिज विंग - भारत की गुप्तचर संस्था) का उच्चाधिकारी था । उसके दायें पहलू में बैठे शख्स का नाम शिवाजी साबले था जो कि कान्ति देसाई का खास आदमी था और जो राजू सावंत जैसा ही खतरनाक मवाली और बेरहम सुपारी किलर था । शिवाजी साबले अपने मालिक और सरकार के नुमायन्दों के बीच में पुल का काम करता था ताकि ये बात छुपी रह पाती कि शिवालिक के मौजूदा निजाम का तख्ता पलटने की कोशिशों के पीछे सरकार का भी हाथ था ।
बाकी के दो आदमी भी रॉ से सम्बंधित थे और कोठारी के विश्वसनीय लेफ्टीनेंट थे । उनमें से एक का नाम सिन्हा था और दूसरे का कुरेशी था । दूसरा हैडफोन सिन्हा के कानों पर था और वो ही रॉ का इलैक्ट्रानिक विशेषज्ञ था ।
वहां वायरलेस सर्वेलेंस क्योंकि सरकारी साधनों के उपयोग से हो रही थी, इसलिये वहां ऐसा इन्तजाम था कि सिनेमा हाल और उसके अलावा उस आफिस में चलता किशोर शाह और राजू सावन्त का वार्तालाप भी सुना जा सकता था जहां बैठे वो खुद सिनेमा में चलती मीटिंग को मानीटर कर रहे थे ।
कोठारी ने अपना हैडफोन उठाकर अपने सामने मेज पर रख लिया और अपने कान मसलने लगा । फिर वो यूं एक सिगरेट सुलगाने में मशगूल हो गया जैसे सर्वेलेंस के उस काम से बोर हो चुका था ।
उसकी देखा-देखी साबले में भी एक सिगरेट सुलगा लिया ।
पांच मिनट यूं ही खामोशी से गुजरे ।
एकाएक सिन्हा ने भी अपना चोगा कान पर से उतारा और अपने बॉस से सम्बोधित हुआ - “पंगे की शुरुआत होने ही वाली लगती है ।”
कोठारी ने प्रश्नसूचक नेत्रों से उसकी तरफ देखा ।
“साबले के बॉस को” - सिन्हा बोला - “जहन्नुम का दरवाजा दिखाने की तैयारियां हो रही हैं ।”
“उनकी मजाल नहीं हो सकती !” - साबले कहरभरे स्वर में बोला - “बम्बई में कोई करीब भी फटक के दिखाये देसाई साहब के ।”
कोठारी ने हाथ के इशारे से उसे चुप रहने को कहा और अपने मातहत से बोला - “बम्बई में ?”
“नहीं ।” - सिन्हा बोला - “बम्बई में नहीं ।”
“तो कहां ?”
“नेपाल में ।”
कोठारी ने प्रश्नसूचक नेत्रों से सावले की ओर देखा ।
“आपको मालूम तो है” - साबले बोला - “कि देसाई साहब कुलकर्णी भाइयों से मिलने जाने वाले हैं ।”
“वो मुलाकात नेपाल में होनी तय हुई है ?”
“हां ।”
“ये नहीं मालूम था । तारीख मुकर्रर हो गयी ?”
“अभी नहीं लेकिन दो हफ्ते तो लग ही जायेंगे वो मुलाकात होते-होते ।”
“क्यों ?”
“कुलकर्णी भाइयों की कुछ ऐसी ही मसरूफियात हैं । दोनों से अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग, मुलाकात जल्दी हो सकती है लेकिन दोनों से एक ही जगह एक साथ मिलने में इतना वक्त लग जाना लाजमी है ।”
“ओह !” - कोठारी कुछ क्षण सोचता रहा और फिर सिन्हा से बोला - “साफ कहा गया था कि वो लोग नेपाल में देसाई का कत्ल करने का इरादा रखते थे ?”
“कराने का ।” - सिन्हा बोला - “किसी कान्ट्रैक्ट किलर से । किसी इन्टरनेशनल असासिन से जो कि न शाह परिवार का आदमी होगा और न राजू सावन्त का ।”
“कोई नाम नहीं लिया गया ?”
“नहीं ।”
“चोंगा कान पर रखो । शायद अब लिया जाए ।”
सिन्हा ने इनकार में सिर हिलाया ।
“क्यों ?” - कोठारी बोला ।
“उन लोगों का वार्तालाप खत्म हो गया है । जिस जगह पर हमारा गुप्त ट्रांसमीटर लगा हुआ है, वो वहां से उठके चले गए हैं ।”
“ओह !” - कोठारी फिर सोच में डूब गया - “तो ये इरादे हैं शिवालिक के धन्ना सेठों के ।”
सिन्हा ने सहमति में सिर हिलाया ।
“हमें मालूम होना चाहिए कि वो इन्टरनेशनल कान्ट्रैक्ट किलर कौन है ?”
“लगता है उसे सावन्त के अलावा कोई नहीं जानता । किशोर शाह के सामने उसका नाम लेने से उसने परहेज रखा, इससे लगता है कि वो इस बात को बहुत गुप्त रखना चाहता है ।”
“वो क्या चाहता है, मुझे उससे कुछ लेना-देना नहीं । तुम वो सुनो जो मैं चाहता हूं ।”
“फरमाइये ।”
“मैं उस गैंगस्टर की, उस राजू सावंत की चौबीस घन्टे की निगरानी चाहता हूं । ऐसी निगरानी चाहता हूं कि अगर वो टायलेट में भी जाए तो हमारा आदमी उसके साथ हो ।”
“कैसे ?”
“भूत बनके । प्रेत बनके । चाण्डाल बनके । कैसे भी हो लेकिन हो ।”
सिन्हा जवाब देने ही वाला था कि एकाएक खामोश हो गया । उसका ध्यान फौरन अपने सामने पड़े हैडफोन के चोंगे की तरफ गया जिसमें से कड़-कड़ की हल्की-हल्की आवाज आने लगी थी । उसने झपटकर चोंगा उठाया और उसे वापिस अपने कानों पर चढा लिया ।
कितनी ही देर कमरे में मरघट का सा सन्नाटा छाया रहा ।
फिर सिन्हा ने चोंगा यूं अपने सिर से सरकाया कि वो हार की तरह उसके गले में पड़ गया ।
“सावन्त ने” - फिर वो बोला - “अभी-अभी मस्कट में अब्दुल रहमान अल यूसुफ नाम के किसी शख्स को ट्रंककाल की है लेकिन उसकी उससे बात नहीं हुई क्योंकि वो घर पर नहीं था ।”
“और ?” - कोठारी बोला ।
“और दूसरी तरफ से सावन्त को राय दी गयी थी कि वो दुबई फोन करे और वहां इमाम साहब को ट्राई करे ।”
“इमाम साहब ?”
“कोई सम्पर्क सूत्र होगा ।”
“या” - साबले बोला - “बतौर कोड इस्तेमाल किया जाने वाला कोई फर्जी नाम होगा ।”
सिन्हा ने सहमति में सिर हिलाया ।
“सर्वेलेंस जारी रहे ।” - कोठारी सख्ती से बोला - “यही आदमी वो इन्टरनेशनल कान्ट्रैक्ट किलर हो सकता है जिसे कि वो लोग नेपाल में देसाई के पीछे लगाने का इरादा रखते हैं ।”
साबले का सिर अपने-आप सहमति में हिलने लगा ।
“तुम्हारे क्या इरादे हैं ?” - कोठारी साबले से बोला ।
“अभी तो सिर्फ निगाहबीनी का इरादा है ।” - साबले लापरवाही से बोला - “जब नेपाल वाली नौबत आएगी तो जाहिर है कि इरादा सिर्फ निगाहबीनी का नहीं रह जाएगा ।”
“तब क्या करोगे ?”
“वही जो ये करने का इरादा रखते हैं ।”
“उस कान्ट्रैक्ट किलर का काम तमाम करोगे ?”
“वो तो उसकी शिनाख्त होने पर होगा । वो काम तो होते-होते होगा । वो बहुत शातिर बदमाश हुआ तो हो सकता है, कि न भी हो । तब उनको देखेंगे जिनकी शिनाख्त मुझे है ।”
“मतलब ?”
“ठेका देने वाले ही नहीं रहेंगे तो कत्ल का ठेकेदार क्या करेगा ?”
“सावंत को खत्म करने का इरादा है ?”
“और उस सपोलिये किशोर शाह को भी जो कि सांप से भी ज्यादा खतरनाक है ।”
“कर सकोगे ?”
साबले हंसा ।
“हमारी मदद के बिना ?”
तत्काल साबले की हंसी को ब्रेक लगी ।
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(शिद्द्त - सफ़र प्यार का ) ......(प्यार का अहसास ) ......(वापसी : गुलशन नंदा) ......(विधवा माँ के अनौखे लाल) ......(हसीनों का मेला वासना का रेला ) ......(ये प्यास है कि बुझती ही नही ) ...... (Thriller एक ही अंजाम ) ......(फरेब ) ......(लव स्टोरी / राजवंश running) ...... (दस जनवरी की रात ) ...... ( गदरायी लड़कियाँ Running)...... (ओह माय फ़किंग गॉड running) ...... (कुमकुम complete)......


साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
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बस यही सोचकर थोडा सा पाप भी कर लेता हूँ
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Re: Thriller एक ही अंजाम

Post by rajsharma »

“हालात ऐसे बने सकते हैं कि मुमकिन है कि हम चाह कर भी इस मामले में तुम्हारी कोई मदद न कर सकें । इसलिए पूछा । हमारी मदद के बिना ये काम कर पाओगे ?”
साबले ने कोई उत्तर न दिया लेकिन उसके चेहरे पर से सन्देह के भाव स्पष्ट रूप से परिलक्षित होने लगे ।
“ये न भूलो कि हम सरकार का हिस्सा हैं । ऐसी हत्याओं में शरीक होना सरकार का काम नहीं होता । गुपचुप कुछ भी किया जा सकता है लेकिन खुल्लमखुल्ला हम शायद कुछ न कर सकें । और गुपचुप भी हम तभी कुछ कर सकते है जबकि हमें गारन्टी हो कि हमारी पोल नहीं खुल जायेगी । समझे ?”
सावन्त ने बड़ी कठिनाई से सहमति में सिर हिलाया ।
“हिन्दुस्तान में देसाई पर आंच न आये, इस बात की गारन्टी हम कर सकते हैं लेकिन हिन्दुस्तान के बाहर इस काम को अंजाम देने के रास्ते में बहुत अड़चने आ सकती हैं ।”
“ये तो आप बड़ी दिल तोड़ने वाली बात कर रहे हैं ।”
“मैं सच्ची, बेबाक बात कर रहा हूं । इस मुश्किल का आसान हल ये है कि मौजूदा हालात में देसाई हिन्दुस्तान से बाहर कदम न रखे । वो कोई ऐसा इन्तजाम करे कि कुलकर्णी बन्धु उससे मिलने हिन्दुस्तान आयें, न कि वो उनसे मिलने नेपाल जाये ।”
“इस बाबत बात हो चुकी है । वो लोग हिन्दुस्तान आने के लिए तैयार नहीं ।”
“क्यों ?”
“फेरा के उल्लंघन के अन्तर्गत उनके खिलाफ कोई केस है जिसकी वजह से हिन्दुस्तान में कदम रखने पर वो गिरफ्तार हो सकते हैं ।”
“ओह ! यानी कि देसाई को ही उनके पास जाना पड़ेगा !”
“हां । नेपाल नहीं तो कहीं और लेकिन जाना देसाई साहब को ही पड़ेगा । हिन्दुस्तान से बाहर उन दोनों भाइयों का शिड्यूल ऐसा है कि नेपाल में उनसे मीटिंग जल्दी हो सकती है । अब इस मीटिंग को कैन्स‍िल करके कहीं और मीटिंग निर्धारित करने में महीनों का वक्त लग सकता है जबकि मौजूदा हालात ऐसे हैं कि जल्दी न होने की सूरत में वो मीटिंग बेमानी ही साबित हो सकती है ।”
“वो क्यों ?”
“क्योंकि अब वो देसाई साहब की सुनने के, उनके मौजूदा मिशन से इत्तफाक और हमदर्दी दिखाने के, मूड में हैं । देर हो जाने से उनका ये मूड तब्दील हो सकता है । उनका झुकाव हरीभाई शाह की तरफ हो सकता है जो कि बजाते खुद भी कोई कच्चा खिलाड़ी नहीं और इस वजह से उसकी ताकत को, उसकी पहुंच हो, उसकी सलाहियात को कम करके नहीं आंका जा सकता ।”
“आई सी । आई सी ।” - कोठारी एक क्षण ठिठका और फिर बोला - “यानी कि देसाई की नेपाल यात्रा मुश्किल ही टलेगी !”
“जी हां ।”
“फिर तो उसका भगवान ही मालिक है ।”
“भगवान तो सबका मालिक है ।”
जवाब में कोठारी कुछ न बोला ।
फिर मीटिंग बर्खास्त हो गयी ।
***
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Re: Thriller एक ही अंजाम

Post by rajsharma »

अनिरुद्ध शर्मा ने अपना विस्की का गिलास खाली किया और बारमैन को इशारा किया ।
बारमैन ने तत्काल उसके लिए नया पैग बनाया जो कि उसका चौथा था ।
अनिरुद्ध शर्मा एक कोई अड़तीस साल का बड़े आकर्षक व्यक्तित्व का स्वामी, कलाकार प्रवृत्तियों वाला व्यक्ति था जो कि बम्बई दूरदर्शन से बतौर प्रोड्यूसर सम्बद्ध था । उसका साप्ताहिक प्रोग्राम ‘आपसे मिलिये’ बहुत हिट प्रोग्राम माना जाता था और सारे भारत में बड़े चाव से देखा जाता था । उस प्रोग्राम में समाज के हर वर्ग के गणमान्य व्यक्तियों के इन्टरव्यू वो खुद लेता था और वो प्रोग्राम इन्टरव्यू मार्का ऐसे और प्रोग्रामों से जिस वजह से जुदा माना जाता था वो ये थी कि उसमें इन्टरव्यू के लिए आमन्त्रित मेहमान को महिमामंडित नहीं किया जाता था, बल्कि अनिरुद्ध शर्मा का भरसक प्रयत्न यही होता था कि उसके बौखला देने वाले सवालों से मेहमान की खूबियां नहीं, खामियां उजागर हों और वो उस घड़ी को कोसे जबकि उसने उस प्रोग्राम में भाग लेने के लिए हामी भरी थी ।
लेकिन उस रोज जो लाइव प्रोग्राम वो ब्राडकास्ट कराके आया था, उसमें पासा पलट गया था । उसमें इन्टरव्यू के लिए आमन्त्रित मेहमान ने - जो कि शिव सेना से निकाला हुआ एक नेता था - अनिरुद्ध शर्मा की ही ऐसी धज्जियां उड़ा दी थीं कि वो पनाह मांगने लगा था । उस नेता ने अनिरुद्ध शर्मा की इस नीयत की कि वो उसके माध्यम से शिव सेना पर कीचड़ उछालना चाहता था, उस सफाई से उजागर किया था कि सवाल करने वाले को जवाबों के लाले पड़ गये थे ।
ऐसा पहले कम-से-कम उसके साथ कभी नहीं हुआ था ।
प्रोग्राम तब बहरहाल फिर भी पसन्द किया जाना था लेकिन उस रोज अनिरुद्ध शर्मा की और उसके स्ट्रेटेजी की जो हार हुई थी, वो किसी से छुपाये नहीं छुपने वाली थी ।
उसी हार से भुनभुनाया वो दूरदर्शन केन्द्र के करीब के ही एक बार में बैठा यूं हुई अपनी किरकिरी को विस्की में घोलकर हज्म करने की कोशिश कर रहा था ।
वो उसकी पुरानी आदत थी ।
जब भी उसे पनाह की जरूरत होती थी तो वो उसे विस्की में ही तलाशता था ।
यही वजह थी कि अड़तीस साल की उम्र में ही वो पक्का शराबी बन चुका था और कम-से-कम एक बोतल रोज का रियाजी बन चुका था ।
बोतल ने ही उसकी आठ साल की शादी तोड़ी थी लेकिन उसने फिर भी कोई सबक नहीं लिया था ।
पिछले साल उसकी आठ साल की ब्याहता बीवी राधिका ने उससे तलाक की अर्जी अदालत में दायर की थी जिसका सिला भी उसे रोज सुनने को मिला था जिस रोज कि उसका शो फ्लाप हुआ था ।
उस रोज मैजिस्ट्रेट ने अनिरुद्ध शर्मा को एक शराबी और परस्त्रीगामी चरित्रहीन व्यक्ति करार देते हुए उसकी बीवी से उसके तलाक का फैसला सुना दिया था और उनकी सात साल की बेटी मेघना, जो कि उनकी इकलौती औलाद थी, की कस्टडी का भी राधिका को हकदार करार दिया था ।
वो वोट अनिरुद्ध शर्मा पर सबसे ज्यादा भारी गुजरी थी । वो मेघना को बहुत चाहता था । वो बीवी बिना अपनी कल्पना कर सकता था लेकिन बेटी बिना अपनी कल्पना नहीं कर सकता था ।
मेघना की बाबत ही अपने वकील से कोई मशवरा करने के लिए वो वहां मौजूद था जहां कि उसके वकील का आगमन किसी भी क्षण अपेक्षित था ।
तभी उसके वकील ने वहां कदम रखा ।
उसका वकील देशपाण्डे उसी की उम्र का एक व्यक्ति था और वो अनिरुद्ध का पुराना दोस्त था ।
उसे आया देखकर वो बार पर से हटा और अपना गिलास उठाये उसके साथ एक कोने की मेज पर जा बैठा ।
“पियेगा ?” - अनिरुद्ध ने देशपाण्डे से पूछा ।
“नहीं ।” - देशपाण्डे तत्काल बोला - “अभी मैंने फौरन एक लेडी क्लायन्ट से मिलने जाना है । महकते जाना ठीक न होगा ।”
“मर्जी तेरी ।”
“अब बोल क्या चाहता है ?”
“मैंने एक बात सोची है ।”
“क्या ?”
“राधिका ने मेरे ऊपर चरित्रहीनता के जो इलजाम लगाये हैं, वो मैं भी तो उसे पर लगा सकता हूं । वो साली कौन-सी दूध की धुली है ! ऐसा कौन-सा ऐब है जो मैं करता हूं और वो नहीं करती ? ऐसी कौन-सी खामी है जो मेरे में है और उसमें नहीं है । मिकदार में कोई कमी बेशी हो तो हो वर्ना जैसा मैं हूं, वैसी वो है ।”
“तो ? बीवी को अपने जैसी खराब साबित करने से तुझे क्या हासिल होगा ? तलाक तो हो ही गया है । यू क्या डबल तलाक हो जाएगा ? तू क्या ये तसल्ली चाहता है कि जैसे तेरे में खामियां निकालकर उसने तेरे से तलाक लिया है, वैसे उसमें खामियां निकालकर तू उससे तलाक लेता ?”
“अरे, तलाक गया तेल लेने ।” - अनिरुद्ध झल्लाया - “मैं बदला चाहता हूं । कचहरी में वो साला मैजिस्ट्रेट मुझे तो यूं आंखें तरेर रहा था जैसे मैं कोई मोरी का कीड़ा था और वो सती सावित्री थी जो कि मेरे साथ शहीद हुई जा रही थी । मैं ये बात उजागर करना चाहता हूं कि मेरे में और राधिका में उन्नीस-बीस का ही फर्क है । मैं चाहता हूं जैसे सोसायटी में मेरी नाक कटी है, वैसे ही उसकी भी नाक कटे । जैसे मेरे ऊपर थू-थू हुई है, वैसे ही उसके ऊपर भी हो ।”
“हो जाएगी । जैसा कमीना तू है, कर भी लेगा तू ऐसा लेकिन इससे नुकसान किसका होगा ?”
“जाहिर है कि मेरी उस ‘होलियर दैन दाऊ’ नीयत वाली महाचुड़ैल बीवी का ।”
“सिर्फ उसका नहीं, तेरा भी ।”
“मेरा अब और क्या नुकसान होगा ? मेरा तो जो नुकसान होना था, हो लिया । मेरी नाक तो मोरी में रगड़ी जा भी चुकी ।”
“अभी और भी नुकसान हो सकता है ।”
“क्या ?”
“तुम्हारी बेटी की जिन्दगी बरबाद हो सकती है ।”
“क्या !”
“अरे, तू अपनी बीवी का घटिया चरित्र उजागर करेगा तो जानता है क्या होगा ?”
“क्या होगा ?”
“मैजिस्ट्रेट राधिका को भी मेघना की कस्टडी के नाकाबिल करार दे देगा । नतीजा ये होगा कि अब तो वो मासूम लड़की सिर्फ बाप के प्यार से महरूम होगी, तब वो मां और बाप दोनों के प्यार के लिए तरसेगी और जरूर किसी अनाथाश्रम में पलेगी ।”
“खबरदार !”
“मुझे क्या खबरदार कर रहा है ? मैं भेज रहा हूं उसे अनाथाश्रम ? मैं तो तुझे ये बता रहा हूं कि जो वार तू अपनी बीवी पर करना चाहता है, वो असल में किस पर जाकर पड़ेगा !”
“ऐसा नहीं होना चाहिए ।”
“बिल्कुल नहीं होना चाहिए । लेकिन करने वाला तो तू ही है । तू नहीं करेगा तो नहीं होगा ।”
“मैं खून कर दूंगा साली का ।”
“बढिया । फिर तू फांसी चढ जायेगा । फिर मेघना सर्टिफाइड अनाथ बन जायेगी ।”
“तो मैं क्या करूं ?”
“बीवी को बदनाम करने का, गड़े-मुर्दे उखाड़ने का खयाल छोड़ ।”
“ये मेरा वकील मुझे मशवरा दे रहा है ?”
“ये तेरा दोस्त तुझे सिन्सियर राय दे रहा है ।”
“और ? और क्या करूं ?”
“और फिलहाल वो ही कर जो कर रहा है ।”
“क्या ?”
देशपाण्डे ने उसके विस्की के गिलास की ओर इशारा किया ।
“हां ।” - अनिरुद्ध ने एक ही सांस में गिलास खाली कर दिया और वेटर को नया पैग लाने का इशारा किया - “ये राय ठीक है ।”
“मैं चलता हूं ।” - देशपाण्डे उठता हुआ बोला - “मेरी और जगह अप्वायन्टमैंट है ।”
अनिरुद्ध ने बड़े अनमने भाव से सहमति में सिर हिला दिया ।
पीछे विस्की में डुबो-डुबोकर अपनी बीवी को गालियां देता और उसकी तत्काल मौत की कामना करता अनिरुद्ध विस्की में पनाह मांगता बैठा रहा ।
और अपनी उस जिन्दगी की कल्पना करता रहा जिसमें उसके और उसकी बेटी के सिवाय किसी का दखल न होता ।
छठा पैग खत्म होने तक उसने एक इंकबाली फैसला किया ।
अपनी बेटी का अगुवा करने का फैसला ।
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साधू सा आलाप कर लेता हूँ ,
मंदिर जाकर जाप भी कर लेता हूँ ..
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