एक ही अंजाम
(थ्रिलर)
बम्बई के फोर्ट एरिया में स्थित वो एक सिनेमा हाल था जिसमें सुबह के दस बजे कोई फिल्म शो होने के स्थान पर शिवालिक ग्रुप आफ इन्डस्ट्रीज के माइनोरिटी स्टाक होल्डर्स की मीटिंग हो रही थी । हाल इस हद तक खचाखच भरा हुआ था कि कितने ही लोग दीवारों के साथ टेक लगाये खड़े थे और कितने ही सीटों के बीच की राहदारी में बैठे हुए थे । किसी कम्पनी के अंशधारकों का इतनी तादाद में इकट्ठा हो जाना ही किसी करिश्मे से कम नहीं था और वो करिश्मा भी खामखाह नहीं हो गया था । वो करिश्मा हुआ था कान्ति देसाई के करिश्मासाज व्यक्तित्व की वजह से जो कि उस घड़ी उस विशाल जनसमूह से सम्बोधित था और शेर की तरह गर्ज रहा था ।
कान्ति देसाई एक कोई साठ साल का झक सफेद बालों वाला सूटबूटधारी अति आधुनिक वृद्ध था जो कि अनिवासी भारतीय के तौर पर कोई आठ महीने पहले कैनेडा से बम्बई वापिस लौटा था और अब बम्बई में स्थायी रूप से बस जाने का इरादा रखता था । बम्बई लौटने के बाद ही उसने शिवालिक के शेयर खरीदने आरम्भ किए थे और अब शिवालिक में उसकी पूंजी लगभग पन्दरह प्रतिशत तक पहुंच भी चुकी थी ।
लेकिन वो जानता था कि शिवालिक की स्थापना के दिनों से ही कम्पनी पर काबिज शाह परिवार को सिंहासनच्युत करने के लिए उसकी पन्दरह प्रतिशत शेयरों की मिल्कियत ही काफी नहीं थी और उस प्रतिशत में अब कोई इजाफा करने के उसे इरादे पिटने लगे थे क्योंकि शाह परिवार उसकी नीयत को समझ गया था और भरपूर कोशिशें करने लगा था कि कोई एकमुश्त शेयर अब कम से कम भविष्य में कान्ति देसाई के हाथों में न पड़ने पायें ।
तब कान्ति देसाई ने माइनोरिटी स्टाक होल्डर्स को - अल्पसंख्यक अंशधारकों को - जमा करके अपनी ओर करने का अभियान चलाया था जो कि उस रोज की वहां की हाजिरी ही साफ बता रही थी कि कामयाब हो रहा था ।
उस ऐतिहासिक मीटिंग में शामिल होने के लिए सारे भारतवर्ष से आकर लोग वहां इकट्ठे हुए थे और ये कान्ति देसाई का ही जहूरा था कि यूं शिवालिक के अंशधारकों का वो विशाल जनसमूह वहां एकत्रित हो सका था ।
“शिवालिक के अंशधारको !” - स्टेज पर से अपनी ललकारभरी आवाज में कान्ति देसाई गर्ज रहा था - “अपनी ताकत को पहचानो । उसे कम करके न आंको । अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता लेकिन संगठन में बड़ी शक्ति होती है । मत भूलो, मेरे साथियो, कि बूंद-बूंद से घड़ा भरता है । मत भूलो कि कम्पनी का चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर चुनने में, कम्पनी के डायरेक्टरों का बोर्ड चुनने में, आप लोगों की भी वोट की उतनी ही कीमत है जितनी कि शाह परिवार के वोट की है । लेकिन आप कम्पनी के मौजूदा सी एम डी (चेयरमैन एण्ड मैनेजिंग डायरेक्टर) हरीभाई शाह को अपनी प्राक्सी वोट का हकदार बनाकर अपने हाथ कटा चुके हैं । आपमें से कौन नहीं जानता कि शिवालिक में शाह परिवार के केवल तीस प्रतिशत शेयर हैं जो कि कम्पनी पर काबिज होने के लिये हरगिज भी काफी नहीं लेकिन शाह परिवार शिवालिक पर फिर भी काबिज है ! कैसे काबिज है ? वो काबिज है कुछ आप लोगों की स्वेच्छा से दी हुई प्राक्सी वोटों से और कुछ प्राक्सी वोटों में घोटाला करके । घोटालों की नीयत शाह परिवार में इतनी गहरी पैठ चुकी है कि वो दिन दूर नहीं होगा जबकि कम्पनी ऐसी रसातल में पहुंच चुकी होगी कि किसी के उबारे नहीं उभरेगी । दोस्तो ! आप जानते हैं कि शाह परिवार की बद्इन्तजामी और निजी स्वार्थ के लिए की गई हेराफेरियों की वजह से ही कम्पनी का मुनाफा घटता जा रहा है और उसके शेयरों की कीमत गिरती जा रही है । लेकिन इन हालात से शाह परिवार को कोई फर्क नहीं पड़ता । कम्पनी के खर्चे से उनकी पांच सितारा ऐश, उनकी स्विट्जरलैंड की पिकनिकें, जारी हैं । जो पैसा मुनाफे की सूरत में आप लोगों में बंटना चाहिये, जिसकी वजह से आपको बोनस शेयर मिलने चाहिये, उसे हरीभाई शाह और उसके होते-सोते अपनी ऐश के लिये दोनों हाथों से उड़ा रहे हैं । शिवालिक के अंशधारकों ! ये नुकसान किसका है ? ये नुकसान आपका है ! वो पैसा किसका है जो पूरी बेरहमी से उड़ाया जा रहा है ? वो पैसा आपका है । क्या आप इन ज्यादतियों से आंखें मूंदे रह सकते हैं ?”
“नहीं ! नहीं !” - अंशधारक समवेत स्वर में बोले ।
“क्या आप शाह परिवार को यूं ही शिवालिक को दिवालियेपन की ओर धकेलते चले जाने की इजाजत दे सकते हैं ?”
“नहीं ! नहीं !”
“क्या आपको मंजूर है कि वो हरीभाई शाह एक चूहे की तरह आपकी गांठ कुतरता चला जाये ?”
“नहीं ! नहीं !”
“क्या अपने माल की हिफाजत करना गुनाह है ? क्या उसे अपनी आंखों के सामने लुटा जाता देखना मुनासिब है ?”
“नहीं ! नहीं !”
“तो फिर जागो ! शिवालिक के अल्पसंख्यक अंशधारकों, जागो ! चेतो ! और उखाड़ फेंको शाह परिवार के घटिया, मतलबपरस्त, कुनबापरस्त निजाम को ।”
“कैसे ? कैसे ?”
“रास्ता मैं दिखाता हूं लेकिन पहले आप फैसला कीजिए कि आप मेरे दिखाये रास्ते पर चलने के लिए, मेरे ऊपर विश्वास दिखाने के लिये, तैयार हैं ?”
“हम तैयार हैं ।”
“जो साहबान मेरी पेशकश के हक में हैं, हो वो बरायमेहरबानी अपने हाथ खड़े करें ।”
तत्काल इतने हाथ खड़े हुए कि कान्ति देसाई को तमाम के तमाम तो दिखाई भी न दे सके ।
“तो आप सब साहबान मेरे बताये रास्ते पर, तरक्की के रास्ते पर चलने को तैयार हैं ?”
“हम तैयार हैं । बताइये, हमें क्या करना होगा ?”
“सबसे पहले तो आप लोगों को मेरी ये ही राय है कि आप हरीभाई शाह के हक में दी अपनी प्राक्सी वोट कैंसिल करे क्योंकि उसी वजह से आप लोग अपने हाथ कटाये बैठे हैं ।”
“हम करेंगे ।”
“फिर शिवालिक के मौजूदा सी एम डी, जो कि हरीभाई शाह है, और मौजूदा बोर्ड आफ डायरेक्टर से, जिसमें कि उसके परिवार के लोग और चमचे भरे हुए हैं, के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव पास करें और नये सी एम डी और नये बोर्ड आफ डायरेक्टर्स के चयन के लिए इलैक्शन की मांग करें ।”
“हम करेंगे ।”
“तो समझ लीजिए कि जीत हमारे हाथ में है ।”
“लेकिन ऐसा कैसे होगा ?” - कोई बोला - “इलैक्शन में तो शाह परिवार फिर जीत जायेगा ।”
“इस बार नहीं जीत पायेगा ।”
“लेकिन देसाई साहब, हम जैसे हजारों माइनोरिटी शेयर होल्डर्स के शेयरों की कुल जमा वैल्यू तो दस प्रतिशत भी नहीं बनती ।”
“बनती है । बारह प्रतिशत बनती है । मैंने कम्पनी का रिकार्ड देखकर इस बात की तसदीक की है ।”
“लेकिन बारह प्रतिशत भी...”
“किसी कद कम नहीं । पन्दरह प्रतिशत शेयर मेरे पास हैं जिन्हें कि शाह परिवार की मुखालफतों के बावजूद भी मैं बीस प्रतिशत तक यकीनन पहुंचा लूंगा । बाकी के अट्ठारह प्रतिशत को भी शाह परिवार के खिलाफ मैं मुहैया करके दिखाऊंगा ।”
“कैसे ?”
“मैंने दो अदिवासी भारतीयों का पता किया है जिनके पास शिवालिक के दस-दस प्रतिशत के शेयर हैं लेकिन वो कभी वोट नहीं डालते । वो चाहें तो कम्पनी के बोर्ड ऑफ डायरेक्टर्स में जगह पा सकते हैं लेकिन उनकी ऐसी कोई मंशा नहीं । वो न वोट डालने भारत आते हैं और न प्राक्सी वोट का हक इस्तेमाल करते हैं । साहबान, अगर आप लोग मेरा साथ देंगे तो उन दोनों अनिवासी भारतीयों को, जो कि सगे भाई हैं, मैं आप लोगों के हक में करके दिखाऊंगा । बहुत जल्द उनसे मिलने के लिए मैं नेपाल जाने वाला हूं । मैं आपको यकीन दिलाता हूं कि जब मैं लौटूंगा तो उन दोनों भाइयों की बीस प्रतिशत की प्राक्सी वोट साथ लेकर लौटूंगा ।”
सभा ने हर्षनाद किया ।
“लेकिन ये न भूलिये, जनाबे हाजरीन कि हरीभाई शाह जैसा रावण गिराने के लिये आपकी वोटों का मैं फिर भी तलबगार रहूंगा । ये न भूलिये कि पासा जिस रुख भी पलटेगा, आपकी वोटों से ही पलटेगा । अब यह फैसला आपके हाथ में है कि आप शाह परिवार के करप्ट और घाटे वाले निजाम से ही बंधे रहना चाहते हैं या ऐसे निजाम को उखाड़ फेंकना चाहते हैं जो आपकी गिरह काट रहा है ।”
“हम शाह परिवार के निजाम को उखाड़ फेंकना चाहते हैं ।”
“तो फिर ऐसा ही होगा । धोखेबाज, बेईमान और मतलब परस्त आदमी का एक ही अंजाम होता है । अब आप अपनी आंखों से देखेंगे कि कैसे हरीभाई शाह अपने उस अंजाम तक आनन-फानन पहुंचता है । शिवालिक के अंशधारको, रावण मर के रहेगा, इंकलाब आके रहेगा ।”
“इंकलाब !” - बाल्कनी में से कोई जोशभरे स्वर में बोला ।
“जिन्दाबाद !” - सैकड़ों आवाजों में फौरन जवाब मिला ।
“इंकलाब !”
“जिन्दाबाद !”
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