दूसरी ओर रशीद के दिल में जो तूफान मचा था, उसका अनुमान किसी को ना था। यहाँ तक कि स्वयं रणजीत, जिसे वह कैदखाने की कोठरी से निकाल लिए जा रहा था, उसके इरादों के बारे में कुछ नहीं जानता था। रणजीत को उसने जीप में लिटाकर अपने ओवर कोट से ढक रखा था और जीप बॉर्डर की ओर उड़ी जा रही थी। चेक पोस्ट पर थोड़ी देर के लिए उसकी गाड़ी रुकी, लेकिन फिर आगे बढ़ गई मेजर रशीद पर किसी को किसी प्रकार का संदेह नहीं हुआ।
थोड़ी देर बाद जीप गाड़ी सीमा के पास एक नहर के सुनसान किनारे पर पहुँचकर रुक गई। शायद यही रशीद की मंजिल थी। गाड़ी में बैठे बैठे रशीद ने इधर-उधर नज़र दौड़ाई…सर्वत्र सन्नाटा छाया हुआ था। हवा से पास के खेतों में अधपकी फसल जब लहराती, तो एक हल्की सी सनसनाहट उस सन्नाटे को तोड़ देती। वातावरण का भली-भांति निरीक्षण करके रशीद ने धीरे से कहा, “बाहर आ जाओ कैप्टन!”
रणजीत ने ओवर कोट हटाया और कूदकर जीप गाड़ी की फ्रंट सीट पर आ बैठा। रशीद ने झट अपने कोर्ट की जेब से कैप्टन रणजीत के कागजात और आईडेंटिटी कार्ड उसे देते हुए कहा,” अच्छा ख़ुदा हाफ़िज़!”
रणजीत ने आश्चर्य से अपने इस हमशक्ल को देखा, जिसकी आँखों में आज कुछ अनोखी चमक थी। वह टकटकी बांधे उसे देखे जा रहा था। कुछ देर बाद रशीद ने उसका कंधा थपथपाते हुए कहा, “जाओ दोस्त? यह नहर हिंदुस्तान और पाकिस्तान की सरहद है। इसका एक ही किनारा हमारा है और दूसरा तुम्हारा। तुम एक अच्छे तैराक हो। एक छलांग लगाओ और तैरते हुए अपने किनारे तक पहुँच जाओ।”
“लेकिन क्या मैं पूछ सकता हूँ कि तुमने मेरे लिए इतना बड़ा खतरा क्यों मोल दिया?”
“हमारी सूरतें जो आपस में मिलती हैं।”
“मैं तो तब भी मिलती थी, जब तुम मुझे कैदखाने की कालकोठरी में डालकर मेरे देश में जासूसी करने चले गए थे।”
“वह मेरा फ़र्ज़ था और यह है उसकी तलाफी – मेरा प्रायश्चित।”
“प्रायश्चित?” रणजीत बड़बड़ाया।
“हाँ तुम अभी नहीं समझोगे। जाओ देर ना करो…किसी को खबर हो गई, तो मेरे साथ तुम भी कहीं के ना रहोगे। अब तक शायद अफ़सर हरकत में आ चुके होंगे।”
“फौजी कानून में अच्छी तरह समझता हूँ। मैं जानता हूँ मेरे यूं जाने के बाद तुम्हारा क्या होगा। लेकिन मैं यह जाने बिना नहीं जाऊंगा कि तुम मेरे लिए अपनी ज़िन्दगी को दांव पर क्यों लगा रहे हो?”
“देखो रणजीत! इस वक्त जिद करके मेरी तमाम कोशिशों पर पानी मत फेरो। ख़ुदा के लिए जाओ रणजीत…देर न करो। वहाँ पूनम तुम्हारा इंतज़ार कर रही है। माँ ने अगले महीने की 18 तारीख को तुम्हारी शादी तय कर रखी है।” रशीद ने जल्दी-जल्दी कुछ भावुक स्वर में कहा।
“लेकिन यह अचानक मेरी प्रेमिका से, मेरी माँ से और मुझसे तुम्हें इतनी दिलचस्पी क्यों पैदा हो गई? कल तक तो तुम मेरे देश के दुश्मन थे, आज दोस्त कैसे बन गये? अब तो यह जाने बिना मेरे लिए जाना नामुमकिन हो गया है।” रणजीत ने हठ करते हुए कहा।
“अच्छा…तुम जानना ही चाहते हो तो सुनो…हम दोनों का हमशक्ल होना इत्तिफ़ाकिया नहीं है रणजीत, हम दोनों जुड़वा भाई हैं।”
“क्या?” रणजीत को एक तीव्र झटका लगा।
“हाँ रणजीत…हम दोनों सगे भाई हैं।”
“नहीं, यह कैसे हो सकता है?” रणजीत चीख पड़ा और फटी-फटी आँखों से रशीद को घूरने लगा। यह रहस्य जानकर उसके पूरे शरीर में कंपकंपी सी दौड़ गई। एक भूचाल सा आ गया, जिसने उसे झकझोर कर रख दिया। अभी वह सकते में ही खड़ा था कि रशीद फिर बोला, “यह हकीकत है रणजीत! हम दोनों एक ही माँ के बेटे हैं, जो हिंदुस्तान के बंटवारे के वक्त एक दूसरे से बिछड़ गए थे। तुम माँ के साथ हिंदुस्तान चले गए और मुझे मुसलमान बनकर पाकिस्तान में रहना पड़ा। ज़िन्दगी का यह राज़ मैं तब ही जान सका, जब अपनी माँ से मिला।”
“तो क्या माँ तुम्हें पहचान गई?” रणजीत ने उसके चुप होते ही पूछा।
“नहीं बल्कि मुझे रणजीत ही समझ कर उसने यह राज उगल दिया। जानते हो माँ ने मेरे बचपन से लेकर शादी तक की तस्वीरों को सीने से लगा कर रखा हुआ है। माँ जो कि इन्हीं याद और मुस्तकबिल के सुनहरे सपनों के सहारे ही जी रही है…वह सपने जो शायद कभी पूरे न होंगे।”
“तो तुम मेरे भाई हो रशीद?”
“हाँ रणजीत…मेरे भाई…लेकिन अब तुम देर मत करो…जाओ…लेकिन जाने से पहले पहली और आखिरी बार मेरे सीने से लग जाओ, क्योंकि मैं जानता हूँ यह हमारी आखिरी मुलाकात है।” यह कहते हुए रशीद ने बड़ी भावुकता से रणजीत को गले से लगा लिया।
तभी दूर से कई जीप गाड़ियों की रोशनी चमकती दिखाई दीं। गाड़ियाँ अभी दूर थीं, किंतु वह नहर वाली सड़क पर ही बढ़ी जा रही थीं। रशीद कांप उठा और एक झटके से रणजीत को अपने आप से अलग करते हुए बोला, “जल्दी से कूद जाओ इस नहर में…जाओ जल्दी..!”
“लेकिन भैया तुम्हारा क्या होगा?” रणजीत उसका हाथ अपने हाथ में लेकर बोला।
“मेरा ख़ुदा हाफ़िज़ है, माँ और पूनम भाभी से कह देना मुझे माफ़ कर दें।”
यह कहते हुए रशीद की पलकें भीग गई, लेकिन उसे धैर्य से काम लिया और रणजीत को नहर की ओर ढकेलता हुआ बोला, “कूद जाओ।”
गाड़ियों की रोशनियाँ प्रतिक्षण निकट होते जा रही थीं और साथ ही रशीद के दिल की धड़कन बढ़ती जा रही थीं। रणजीत ने एक बार फिर आगे आकर उससे गले मिलने का प्रयत्न किया, तो रशीद जल्दी से बोला, “तुम्हें माँ की कसम और आगे बढ़े तो? लौटो और कूद जाओ।”
नहर के पानी में छपाका हुआ। इस आवाज को सुनकर दूर से कहीं सिक्योरिटी फोर्स के सिपाहियों ने ललकारा। रशीद ने झट रिवाल्वर से हवा में एक फायर किया। फायर की आवाज सुनकर न जाने कहाँ से दो सिपाही दौड़ते हुए उसके पास आकर बोले, “क्या हुआ जनाब?”
“कुछ नहीं एक भेड़िया था…फायर होने से पहले ही पानी में कूद गया।”
रशीद ने यह कहकर नहर की ओर देखा, जिसके शीतल जल में गोता लगाकर तैरता हुआ रणजीत बहुत दूर निकल गया था। रशीद ने संतोष की सांस ली और एक सिगरेट सुलगाकर जीप गाड़ी में जा बैठा। फिर उसने गाड़ी स्टार्ट की और खेतों के बीच में कच्ची सड़क पर मोड़ दी। सिपाहियों ने उसे सेल्यूट किया और आश्चर्य से इस अफसर को देखने लगे, जो नहर की पक्की सड़क को छोड़कर गाड़ी को कच्चे रास्ते पर उतार ले गया था। उन्होंने क्षण भर के लिए एक-दूसरे को प्रश्न सूचक दृष्टि से देखा और फिर पलटकर रोशनी को चल पड़े, जो अब बहुत निकट आ गई थीं।
रशीद बिना रोशनी के ही कच्चे रास्ते पर गाड़ी बढ़ाता चला गया। लड़ाई में वह बॉर्डर के सब रास्तों की रैकी कर चुका था। इसलिए जीप चलाते हुए कोई उसे कोई कष्ट नहीं हुआ। थोड़ी ही देर में वह टेढ़े मेढे रास्ते को पार करता हुआ फुल स्पीड से बहुत दूर निकल गया। उसे पूरा भरोसा था कि बात के उच्च सैनिक अधिकारियों तक पहुँचने से पहले ही वह अपनी सलमा के पास पहुँचच चुका होगा।
रात आधी से अधिक बीत चुकी थी। सलमा अपने कमरे में बेखबर सो रही थी कि अचानक खट..खट…खट की आवाज ने उसे चौंका दिया। अभी नींद का प्रभाव पूर्ण रूप से उसके दिमाग से दूर नहीं हुआ था कि दस्तक की आवाज और तेज हो गई। वह चुपके से उठकर अंधेरे कमरे में टटोलती हुई बिजली के स्विच तक पहुँच गई। बाहर कोई ज़ोर-ज़ोर से किवाड़ खटखटा रहा था। इससे पहले कि सलमा स्विच ऑन कर के कमरे में प्रकाश करती, बाहर से किसी ने मुक्का मारकर दरवाजे का शीशा तोड़ दिया और हाथ अंदर डालकर चटकनी खोल दी। सलमा डर के मारे बत्ती जलाना भी भूल गई। फिर इससे पहले कि वह अपनी नौकरानी नूरी को जगाती, एक छाया बढ़कर उसके पास आई और उसके मुँह पर हाथ रखते हुए दबी आवाज में बोली, “मैं हूँ सलमा!”
सलमा ने रशीद की आवाज पहचान ली और दीवार की ओर हाथ बढ़ाकर उसने कमरे में प्रकाश करना चाहा, किंतु रशीद ने उसका हाथ पकड़ लिया और बोला, “नहीं अंधेरा ही रहने दो।”
“क्यों? क्या बात है? आप इस कदर घबराये हुए क्यों है? खैरियत तो है और आप आए कब?” सलमा ने घबराकर पूछा।
“आज ही आया हूँ।” यह कहकर रशीद ने एक सिगरेट सुलगा लिया।
“लेकिन इस तरह अंधेरे में…चोरों की तरह।” कहते हुए सलमा ने उसके पसीने से भरे चेहरे पर हाथ फेरा और कुछ रुक कर बोली, “कहाँ से भाग कर आ रहे हैं आप?”
“भागकर नहीं…भगा कर आ रहा हूँ।”
“भगा कर? किसको?”
“रणजीत को…जानती हो सलमा…वह मेरा भाई है…सगा भाई।”
“क्या बहकी-बहकी बातें कर रहे हैं आप?” वह आश्चर्य से उसे देखती हुई बोली।
“यकीन करो मैं ठीक कह रहा हूँ। तुम हैरान थी ना कि दो अजनबी आदमियों की सूरत इतनी ज्यादा कैसे मिल सकती है। रणजीत अजनबी नहीं, मेरा जुड़वा भाई है। हिंदुस्तान के बंटवारे के वक्त हम दोनों भाई बिछड़ गए थे…ओह…आज मैं किस कदर खुश हूँ। अपने भाई को कैद से आजाद करके मेरे सीने से बहुत भारी बोझ हट गया है।”
“ओह…यह आपने क्या किया? कानून और वतन आप को कभी मुआफ़ नहीं करेंगे।”
“मैं जानता हूँ और यह भी कि इसकी सजा मुझे नहीं बल्कि तुम्हें मिलेगी…जिस औरत के हाथों की मेहंदी का रंग भी अभी फीका न पड़ा हो…जिसके कानों में अभी बाबुल के गीत गूंज रहे हो…जिसका अभी कोई ख्वाब पूरा न हुआ हो…मैं उसकी ज़िन्दगी को एक दर्द भरी चीख बनाकर छोड़े जा रहा हूँ…कितनी बड़ी नाइंसाफी होगी तुम्हारे साथ सलमा…कितनी बड़ी नाइंसाफी।”