मैंने वैसे ही किया और वो “आह… ओह…” करती तेज़ी से सिसकारते हुए अपने दूध मसलने लगी. थोड़ी ही देर में उसका चेहरा तपने लगा और आँखें भिंच गयीं। फिर अजीब सी नज़रों से मुझे देखते हुए मेरा हाथ रोक दिया।
“अब इस बड़े वाले बैंगन को ले और अपनी ढेर सी लार इसपे लगा के इसे अंदर घुसा दे!”
एकदम से मेरे मुंह से निकलने को हुआ कि इतना बड़ा बैंगन भला कैसे घुसेगा लेकिन फिर मुझे उस रात की बात याद आ गयी कि कैसे राशिद ने इसी बैंगन के साइज़ का अपना लिंग इसी योनि में घुसाया था।
किसी बहस का कोई मतलब ही नहीं… मैंने वही किया। मुंह में ढेर सी लार बनायी और उसे उस बैंगन पर मल दिया। वह चमकने लगा और तब अहाना के इशारे पर मैंने उसे अपनी उँगलियों की जगह अहाना की योनि में घुसा दिया।
मुझे डर लग रहा था कि उसे तकलीफ न हो लेकिन उसे तो लगा जैसे मज़ा ही आ गया हो, उसने जोर की ‘आह…’ के साथ अपनी आँखें बंद कर लीं और मुट्ठियों में बेड की चादर भींच ली। मैंने बैंगन को डंठल तक घुसा कर देखा कि वह कहाँ तक जा सकता है।
और यह बस एक सेंटीमीटर ही बचा था बाहर… फिर उसके निर्देशानुसार मैं उसे अंदर बाहर करने लगी और वह ‘आह… आह…’ करती फिर अपने दोनों दूध मसलने लगी।
फिर एकदम से उसने मुझे गिरा लिया और मेरे ऊपर लद कर मुझे चूमने रगड़ने लगी। उसकी योनि में ठुंसा बैंगन ठुंसे-ठुंसे मेरे हाथ से छूट गया। वो मेरे चूचुक चुभलाने लगी, दूध मसलने लगी और एकदम फिर मेरे दिमाग पर नशा तारी होने लगा। “सुन.. तेरी झिल्ली फट चुकी है या नहीं?” अहाना ने उखड़ी-उखड़ी साँसों के दरमियान कहा।
“पता नहीं… मुझे नहीं पता यह सब!”
उसने बेड के साइड की दराज़ से एक कपड़ा निकाल लिया और मुझे सरहाने से सटा कर खुद मेरी फैली हुई टांगों के बीच औंधी लेट गयी और अपने उलटे हाथ से मेरी योनि ऊपर की तरफ से फैला कर अपने सीधे हाथ की बिचली उंगली से योनि के ऊपरी सिरे को सहलाने लगी।
मेरे दिमाग में चिंगारियां छूटने लगीं।
मैंने कभी सोचा भी नहीं था कि पेशाब करने वाली जगह में इतना अकूत आनंद हो सकता है। एकाध बार मैंने उकडूं बैठ कर और नीचे शीशा रख के अपनी योनि को अंदर से देखने की कोशिश की थी लेकिन उसकी बनावट ही मेरी समझ में नहीं आई थी।
अलबत्ता इतना समझ सकती थी कि योनि में ऊपर की तरफ जो हुड सा उभरा हुआ मांस रहता है, इस वक़्त अहाना वही सहला रही थी और मेरे नस-नस में इतना गहरा नशा फैल रहा था जिसे मैं शब्दों में ब्यान नहीं कर सकती थी।
इसी मज़े के बीच अहाना ने अपनी उंगली एक झटके से मेरी योनि के अंदर उतार दी। मेरे नशे को एक झटका सा लगा और मुंह से हल्की सी चीख निकल गयी.. ऐसा लगा था जैसे कोई सरिया सी मेरी अंदरूनी चमड़ी को छीलती अंदर भुक गयी हो।
मैंने तड़प कर उसकी उंगली निकालनी चाही लेकिन उसने मेरे पेडू पर दबाव डाल मुझे ऐसा करने से रोक दिया।
“चुपचाप पड़ी रह पागल… तेरी सील तो उंगली ने तोड़ी तो तुझे ज़रा ही तकलीफ हुई और मेरी सोच.. मेरी सील इस बैंगन जैसी मुनिया से टूटी थी लेकिन फिर भी मैंने बर्दाश्त किया था न… हम लड़कियों को यह बर्दाश करना ही होता है।”
“ऐसा लग रहा है जैसे चाकू घुसा दिया हो।”
“भक.. चाकू पहले घुसवाया है क्या जो उसका तजुर्बा है? कुछ नहीं होता रे.. बस थोड़ी देर सब्र कर। अभी पहले से ज्यादा मज़ा आने लगेगा।”
मेरा सारा नशा काफूर हो चुका था, लेकिन अपनी बिचली उंगली अंदर घुसाये-घुसाये उसने उलटे हाथ के अंगूठे से वही रगड़न देनी शुरू की जहाँ पहले उंगली से सहला रही थी।
धीरे-धीरे नशा फिर चढ़ने लगा।
उसके कहने पे मैंने अपने दूध और घुंडियों को अपने ही हाथों से मसलना शुरू कर दिया. मेरी योनि के ऊपरी सिरे पर उसके अंगूठे की सहलाहट वापस उसी अजीब सी तरंग को जिंदा कर रही थी, जो पहले टूट गयी थी।
धीरे धीरे नशा चढ़ता गया और दर्द पर हावी होता गया.. फिर एक दौर वह भी आया कि दर्द काफूर हो गया और रह गया तो बस मज़ा।
अब अहाना धीरे-धीरे उंगली अंदर बाहर करने लगी.. कोई बहुत ज्यादा नहीं, बस डेढ़-दो इंच तक ही अंदर बाहर कर रही थी लेकिन इतने में भी मुझे गज़ब का मज़ा आ रहा था।
“क्यों री… अब समझ में आया कि मुनिया की खुजली क्या होती है और यह कैसे मिटती है?” बीच में अहाना की आवाज़ मेरे कानों तक पहुंची लेकिन मैंने बोलने की ज़रुरत न समझी।
मैंने महसूस किया कि अब खुद बखुद मेरे मुंह से वैसी ही “आहें…” उच्चारित होने लगी थीं जैसे थोड़ी देर पहले अहाना के मुंह से निकल रही थीं और शरीर की एक एक नस में मादकता से भरपूर ऐंठन भारती जा रही थी।