शिद्द्त - सफ़र प्यार का
कहते हैं कि अगर आप किसी चीज़ को या इंसान को बड़ी शिद्दत से चाहो तो सारी कायनात उसे आपसे मिलाने मे जुट जाती है। ये कहानी उसी शिद्दत की कहानी है जिसमें कहानी का नायक राजू अपने प्यार को इतनी शिद्दत से चाहता है कि भगवान को भी उसके सामने हारना पड़ता है। इससे ज्यादा परिचय इस कहानी के बारे मे मैं नही दे पाऊंगा क्योंकि अगर इससे ज्यादा परिचय दिया तो इसका मूल विषय उजागर हो जाएगा और आप इसका आनंद नही ले पाएंगे। अब आपका ज्यादा समय न लेते हुए कहानी पर आता हूँ।
बात 1995 की राजस्थान के छोटे से कस्बे बांधवगढ़ की है जहां राजू अपनी माँ के साथ रहता था,राजू पेशे से एक टूरिस्ट गाइड था,पास ही मे जोधपुर शहर था जहां वो गाइड का काम करता था,स्वभाव से वो थोड़ा गुस्सैल था और नास्तिक भी वो भगवान को नही मानता था और उसके होने पर उसको विश्वास नही था । भगवान को न मानने की एक वजह ये भी थी कि वो उसकी माँ की नाज़ायज़ संतान था और हमेशा इस बात का दोषी वो भगवान को मानता था,उसने अपनी माँ से बहुत बार ये जानने की कोशिश की की उसके पिता कौन है पर हर बार माँ कोई न कोई बहाना बना कर बात टाल देती थी, राजू बहुत छोटी उम्र मैं ही अपनी घर की जिम्मेदारियां संभाल रहा था अभी उम्र ही क्या थी उसकी,सिर्फ 18 साल का था राजू,इतनी कम उम्र मे काम करना और घर की जिम्मेदारियां संभालना उसकी मजबूरी बन गया था क्योंकि उसकी माँ की तबियत कुछ ठीक नही रहती थी।
इतनी सारी परेशानियों से झुझते झुझते वो इतना कठोर हो गया था कि उसका कठोरपन उसकी आदत मे शामिल हो गया था और वो चिड़चिड़ा सा होने लगा था,उसके जीवन का लक्ष्य सिर्फ ये जानना था कि उसके पिता कौन है और उन्होंने उसकी माँ को क्यों छोड़ा..? ये सवाल हमेशा उसे कचोटता रहता था। समय बीतता गया और फिर एक दिन मुंबई का एक स्कूल का ग्रुप जोधपुर घूमने आया,कंपनी की तरफ से राजू गाइड को उस ग्रुप को घुमाने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। राजू ने ग्रुप को घुमाने के लिए हामी भर दी पर हर बार की तरह इस बार भी उसकी सिर्फ एक ही शर्त रहती थी और इस शर्त के बारे मे उसकी कंपनी बखूबी जानती थी कि वो अपने यात्रियों को हर जगह घुमाएगा,किले,महल पर किसी मंदिर की सीढ़ियां नही चढ़ेगा। उसकी ये शर्त थी तो अजीब पर वो अपना काम इतने अच्छे से करता था कि उसकी ये शर्त मान ली जाती थी।
अब वो दिन आ ही गया जिस दिन राजू को उस ग्रुप से मिलकर उसे घुमाना था,वो जनवरी का महीना था,राजस्थान की ठंड अपने चरम पर थी,पारा 5° पे आ गया था। राजू अपने दिए गए समय पर होटल पहुँच जाता है अपने ग्रुप को लेने,10 लड़के लड़कियों का ये मुम्बई वाला ग्रुप था जो कुछ दिनों के लिए राजस्थान आया हुआ था,जोधपुर का उनका प्रोग्राम 5 दिनों का था। धीरे धीरे स्कूल टीचर्स और उनके स्टूडेंट्स आने शुरू हुए। सब इकट्ठा कर के ले जाना था राजू को, धीरेधीरे सब आ गए और चलने को तैयार हो गए,इतने मे उस ग्रुप मे से किसी ने बोला
अरे रुको रुको...रानी नही आई अभी,अगर उसे छोड़कर गए तो सारा जोधपुर सिर पर उठा लेगी,आखिर वो स्कूल के ट्रस्टी की लड़की है।
ये सुनकर स्कूल का स्टाफ भी परेशान हो गया जो उस ग्रुप के साथ आया हुआ था।
ये सब देखकर राजू के गुस्से का पारा भी चढ़ने लगा था क्योंकि वो अपना काम ईमानदारी से कर रहा था,पर आखिर वो नौकरी कर रहा था तो अपने गुस्से को पी गया और चुपचाप खड़ा रहा और वो भी देखना चाहता था कि आखिर ये बिगड़ी शहजादी है कौन....??
तभी उसके आने की आहट सुनाई देती है और सबकी निगाहें होटल से नीचे आती हुई सीढ़ियों पर पड़ती है।।
सबका उस एक लड़की के लिए इस तरह इंतज़ार करना राजू को भी समझ नही आ रहा था,और खासकर उसके इंतज़ार मे लड़के पलकें बिछाएं बैठे थे।