स्वाँग

koushal
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Re: स्वाँग

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अध्याय आठ

कितने रहस्य कैद है इस लड़की के हृदय में कौन जाने। कभी देखो तो सिर्फ दर्द दिखता है। सिर्फ मासूमियत दिखती है। लेकिन इस बात को भी झुटलाया नहीं जा सकता कि इसके हाथ खून से रंगे हैं। आँखों में सिर्फ गुस्सा भरा है। स्त्री स्नेह को परिभाषित करती है लेकिन इस कुरूप लड़की की पहचान रक्तरंजित है। यह कातिल है।

अदालत में बिलकुल ही सन्नाटा था। लोग अपने स्थानों पर बैठे जज साहब के आदेश का इंतजार कर रहे थे। कुछ समय के लिए जैसे समय का रफ्तार मंद पड़ गया था। आज की कार्यवाही कहाँ से आरंभ किया जाय। परी कटघरे में पिछले दिन की तरह ही खड़ी थी। जज साहब उचित शब्द का चयन कर रहे थे ताकि उस अपराधी से प्रश्न कर सकें। उसकी आगे की कहानी सुन सकें।

"मैं मौत से लड़ती अपने पापा की गोद में अचेत लेटी थी। उस रोज़ अचानक से मेरा पूरा परिवार तबाह हो गया था। माँ की लाश कीचड़ में तैर रही थी। दादा–दादी के शरीर को आग जला रही थी। मेरे पिता घायल अवस्था में ट्रक के पिछले हिस्से में चेतना से संघर्ष कर रहे थे। उन्हें बहुत चोट लगी थी। कांटों और नुकीले पत्थरों से उनका पैर छलनी हो चुका था। रक्त ज्यादा बह जाने से वे बेहोश हो गए। मेरी सांसे मंद थी। हमारी जिंदगी का नया अध्याय शुरू हो गया था। ट्रक चलता रहा। कितनी देर... नहीं जानती। कहाँ उसकी मंजिल थी... नहीं जानती।" परी आगे की कहानी सुनाने लगी।

सूर्योदय के साथ ही ट्रक दिल्ली पहुँच गया। फैक्ट्री का मुख्य दरवाजा खोला गया। गाड़ी अंदर गई। गाड़ी रुकते ही कुछ मजदूर भागते हुए ट्रक के पास गए। गाड़ी पर से समान उतार कर फैक्ट्री में रखना था। लेकिन जब उन्होंने ट्रक का दरवाजा खोला तो राघव और उसकी बेटी को देखा। सुपरवाइजर ने तुरंत एंबुलेंस बुलाया। इस बात की जानकारी पुलिस को दी।

अस्पताल में दोनों का उपचार आरंभ किया गया। राघव तो कम घायल था, इसलिए उसे जल्दी ही होश आ गया लेकिन परी लगभग मौत के मुंह में ही थी। उसकी हालत बहुत खराब थी। दो हफ्ते बीत गए लेकिन परी को अभी तक होश नहीं आया था। डॉक्टर का कहना था कि दिमाग में बहुत ही गहरा चोट आया। इसलिए शायद वो कोमा में है। धड़कने मंद है। कहा नहीं जा सकता कि यह जीवित रहेगी भी या नहीं।

बहुत समय बीत गया। राघव स्वस्थ हो गया था। आजीविका के लिए उसे एक कंपनी में मजदूरी का काम मिल गया था। लेकिन इस काम में उसका तनिक भी दिल नहीं लगता। क्योंकि पिछले एक महीने से उसकी बेटी अस्पताल में बेहोश पड़ी थी। न जाने मौत के साथ उसका संघर्ष कब समाप्त होगा! वो कब जागेगी? और पापा कह कर राघव से लिपट जायेगी।

उस हादसे को भूल जाना भी बहुत मुश्किल था। अपनी प्राणों से प्रिय पत्नी को इस तरह खो देगा कौन जानता था। अंतिम बार वह उसे गले भी नहीं लगा पाया था। नीलिमा की शादी की खुशी थी, लेकिन जब कलेजे के टुकड़े को किसी और को दे दिया जाता है, तब सिर्फ बेबसी होती है। भाग कर सुलेखा के पास चला जाना चाहता था। कई घंटों से उसे न देखने से हृदय व्याकुलता के दलदल में धंसते ही जा रहा था। और वह बाजार चला गया। कौन जानता था कि उसकी अनुपस्थिति में वक्त का कहर बरसेगा।

आज राघव साइट पर काम कर रहा था। सीमेंट के भरी बोरियों को कार्य स्थल तक ढोना उसका काम था। फिर सीमेंट को मशीन में डाल कर मसाला तैयार किया जाता था। सिर पर बोरी लादे राघव जा ही रहा था कि उसकी पत्नी की कीचड़ में तैरती लाश का वो दृश्य सामने आ गया। अपने माता और पिता की चीखने की ध्वनि कानों में गूंजने लगी। कितने तड़पें होने न वे लोग! जब अग्नि के ताप से उनके शरीर की कोशिकाएं जल रही होगी, असीम जलन, असहनीय दर्द, कब भागकर बाहर जाएं। किसे बुलाएं जो तुरंत इस दर्द से राहत दिला दे। मदद के लिए पुकारते उनके स्वर घर की चार दीवारों के भीतर उनके शरीर की ही भांति जल कर राख हो गई।

राघव को जैसे वह दर्द महसूस होने लगा था। सीमेंट की बोरी लिए वह गिर पड़ा। यह देख उसके साथ काम करने वाले अन्य मजदूर उसकी ओर दौड़ें। उसकी स्थिति के बारे में सब जानते थे इसलिए सभी इसके साथ सहानुभूति का व्यवहार रखा करते।

काम से छुट्टी होते ही वह बिना वक्त गंवाए अस्पताल भागा। आज महीने हो गए थे, परी अभी तक नहीं जागी। आईसीयू के दरवाजे पर खड़े हो कर एक नजर परी को देखा। वह उसकी इस स्थिति को बिलकुल भी देखना नहीं चाहता था। अचानक से उसे सुलेखा का ख्याल आया। क्या हुआ होगा जब उसे यह समाचार मिला होगा? कैसी बीती होगी उस पर जब उसे पता चला होगा कि मात्र पल भर ही में उसका परिवार तबाह हो गया। अब वह अपने माँ से कभी नही मिल पाएगी। दादा दादी अब कभी नहीं डांटेंगे।

"जब आपकी धड़कने चलती रहती है और आप बहुत ही लंबी नींद में सोए होते हो। मैं एक महीने से कोमा में थी। वक्त अपने साथ परिवर्तन करता ही जा रहा था। लेकिन मेरी स्मृति उसी काली रात में कैद थी। वही सारे दृश्य। जिन्हे झुठलाया नहीं जा सकता था। न स्मृति से मिटाया ही जा सकता था।" जिस नम आँखों से पिछली रात बारिश हो रही थी, अब वह बिलकुल ही सुखी थी। यादों की यतानों की आगत से घायल लड़की जो पूरी रात रोती रही थी, अभी बिल्कुल ही पत्थर सी खड़ी अपनी जीवनी अदालत के दस्तावेजों में अंकित कर रही थी।

फिर मैने अपनी माँ का स्पर्श अपने सिर के ऊपर महसूस किया। पिता का हाथ कंधों पर रखा हुआ पाया। वो मुझे हौसला दे रहे थे। क्षण भर के लिए ही सही मैं अपने साथ हुए अपराध पर क्रोधित हुई, आक्रमक हुई, बदले की भावना हृदय में उत्पन्न हो शरीर में संचालित हुई। झूठे अभिमान की बलि चढ़ी मेरी सहेली कविता, बेकुसूर मेरी माँ और वो लड़का। मैं नहीं जानती थी कि दादा और दादी के खून के छीटें भी कविता के भाईयों और पिता के हाथ के ऊपर हैं।

माँ ने मेरा हाथ थामा। मौत और जीवन के मध्य जूझते मुझ लड़की को जीवन ज्योति की ओर ले जाने लगी। अचानक से जब वह अदृश्य हो गई मैं बेचैन हो गई। बेचैनी, कहाँ चली गई अचानक वो मुझे छोड़कर। और मैं जोर से चीख पड़ी।

"माँ...!" जब मेरी आँखे खुली तो सिर्फ आश्चर्य ही आश्चर्य था। मेरे शरीर की गतिविधियों की गणना करते ये यंत्र, अस्पताल की बेड पर महिनों ले अचेत पड़ी मैं अचानक से कहाँ आ गई। माँ कहाँ गई? पिता जी कहाँ है? मैं अस्पताल में क्यों भर्ती हूं। ये मशीनें... मुझे क्या हुआ है?

हालाँकि गहरे चोट के दर्द पूरी तरह से ठीक नहीं हुए थे और अभी भी मैं इसे महसूस कर सकती थी। लेकिन इस समय वास्तविकता को झेल पाना मेरे लिए मुश्किल हो रहा था।

मेरे पिता जो आईसीयू के बाहर बैठे बस रोए ही जा रहे थे मेरे चीखने की आबाज सुनकर भागे अंदर चले आए। मुझे होश में आया देख बहुत खुश हो गए। आंसु अब भी आँखों से बह रहा था लेकिन यह शायद खुशी के थे। अब हमारे परिवार में हम दोनो के अलावा कोई नहीं था। हम दोनों ही एक दूसरे की दुनियां थे। कुछ देर तक टकटकी लगा वो मुझे देखते ही रहें। जैसे कि कई वर्षों के बाद मैं उनके सामने आज खड़ी हूं। लेकिन परिस्थिति को मैं समझ नहीं पा रही थी। मेरा परिवार तबाह हो चुका है, मैं अपने गाँव और घर को छोड़ एक नई दुनियां में चली आई हूं, इसका मुझे तनिक भी आभास नहीं था।

फिर अचानक से ऐसा हुआ जो आज से पहले कभी नहीं हुआ था। मेरे पिता ने मुझे अपने सीने से लगा लिया। आज मेरे लिए उनका स्नेह उमड़ पड़ा था और इसे रोकने के लिए आज उनके पैरों में सामाजिक रीतियों में पिरोई जंजीरें भी नहीं थी। उनके आंसुओं से मेरा कंधा गीला होता जा रहा था। मेरे आँखों से भी नदी उमड़ती ही जा रही थी।

एक पिता का स्नेह, इसे कैसे परिभाषित करूं? यह दिखावटी नहीं होता। यह बनावटी नहीं होता। शायद उन्हें अपने प्यार का दिखावा करना नहीं आता l लेकिन आज उनकी सारी बंदिशे टूट गई थी। आज अपने बेटी से प्यार करने से उन्हें कोई रोक नहीं सकता था।

"परी..! परी..! मेरी प्यारी बेटी परी..!" सिसकियां लेते हुए वह इन्हीं शब्दों को दोहराते आ रहे थे।
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अध्याय नौ

जब परी को होश आया वह पूरी तरह से स्वस्थ नहीं थी। गहरे चोट के दर्द ठीक नहीं हुए थे। मानसिक तनाव से संघर्ष करने की शक्ति उसमे नहीं थी। अचानक से सबकुछ छीन गया था। पहले तो धन से गरीब थी लेकिन अब वास्तव में वह निर्धन हो गई थी। सबसे मूल्यवान धन परिवार उससे छीन लिया गया था। वह डिप्रेशन में चली गई थी। न हंसती, न किसी से बात करती। अस्पताल के उस छोटे से कमरे के भीतर डरी हुई, सहमी हुई दुबकी रहती। हालात से मजबूर हुए परी को मजबूरन दिल्ली आना पड़ा था।

वह अपने बेड पर मायूस ही बैठी थी। न वह टहलने जाती न ही किसी से बात ही करती। नर्स उसका चेकअप करती, दवाइयां देती और फिर समय ऐसे ही बीतता। राघव रोज़ काम पर जाता। पैसे कमाता। परी के लिए फल लेकर आता। लेकिन परी उन फलों को कैसे खाती। मानसिक तनाव, यह दर्द से बढ़ता ही जाता है। हर वक्त बस वही यादें। फल वैसे ही रखा का रखा रह जाता। राघव भी कहाँ कुछ खाता पीता। इन एक डेढ़ महीनों में वह काफी दुबला हो गया था।

बाहरी दुनियां से परी का संपर्क टूट गया था। लेकिन राघव अपने अतीत को स्वीकार करते हुए अब बची जिंदगी परी को खुश देखना चाहता था। कहते हैं कि वक्त धीरे धीरे गहरा से गहरा जख्म भर देता है लेकिन परी की मानसिक स्थिति बिलकुल ही बदल नहीं रही थी। जिसके वजह से उसकी शारीरिक स्थिति भी बिल्कुल वैसी ही थी।

अस्पताल का माहौल, बीमार लोग, दर्द से कराहते और डॉक्टर उनका उपचार करते।

राघव हर बार की तरह काम से छुट्टी मिलते ही यहाँ भागता आया। थैले भर सेब फिर ले आया था। इस बार वह हंसाने वाली कहानियों की एक पुस्तक भी साथ लाया था। यह सोच कि इसे पढ़कर शायद क्षण भर के लिए वह मुस्कुराए। ध्यान बंट जाने से यादें स्मृति से धुंधली हो जाती है।

राघव को देखते ही परी उससे लिपट गई। जोर जोर से रोने लगी। बहुत लंबे समय से शायद वह अपने सब्र के बाँध को रोके रखी थी, लेकिन राघव को देखते ही यह बाँध टूट गया।

"मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे घर जाना है। मुझे घर जाना है..!!" बोलते हुए वह बस रोए ही जा रही थी।

घर..! वह घर जाना चाहती थी। राघव तो यहीं अस्पताल के बाहर सो जाया करता। कभी परी के बेड के समीप बैठे, उसके हाथों को थामे उसे हिम्मत देते हुए कि तुम बहादुर हो, तुम्हें हालात से संघर्ष करना होगा। तब तक... जब तक तुम जीत नहीं जाते।

राघव ने डॉक्टर से बात की। डॉक्टर इस बात को अच्छी तरह से समझते थे कि अगर परी फिर से लोगों के बीच जाने लगेगी तब यह ठीक हो जाएगी। यही सलाह उन्होंने राघव को भी दिया। उन्होंने उसे घर ले जाने की सलाह दी। ज्यादा से ज्यादा लोगों से मिलेगी। नए नए जगहों पर घूमेंगी। तब उसके मस्तिष्क में बैठा भय धुंधला हो जायेगा। वह स्वस्थ होने लगेगी।

"हम घर जाने वाले हैं।" राघव की बात सुनकर परी खुश तो हुई लेकिन हंसी होठों पर नहीं आई।

राघव ने दिल्ली के एक कॉलोनी में एक कमरा किराए पर लिया। वे अब वापस घर लौट नहीं सकते थे। डॉक्टर ने उसे डिस्चार्ज कर दिया।

लगभग 9 बजने को था। राघव परी को अस्पताल से कॉलोनी ले आया। दोनों ऑटो से उतरे। आसपास के लोगों को देख परी व्याकुल सी होने लगी। उसकी सांसे तेज होने लगी थी। तब राघव ने उसे गोद में उठा लिया। परी ने आँखें बंद कर ली। अपने पिता के सीने से लिपट वह खुद को सुरक्षित महसूस करने लगी। आँखें बंद किए अपने पिता को वह कस कर पकड़े रही। तब तक। जब तक कि वह अपने कमरे के पास पहुँच गई। यह वही बहादुर लड़की थी जो अपनी बड़ी बहन सुलेखा के लिए उस मास्टर को दंडित करी थी। लेकिन आज वही लोगों की उपस्थिति से भयभीत हो रही थी।

राघव ने उसे गोद से उतारा। और उसे आँखे खोलने बोला। परी ने धीरे धीरे आँखें खोली। वह कमरे के दरवाजे पर खड़ी थी। यह दूसरे फ्लोर पर था। पास ही में सीढ़ी थी और दो अन्य कमरे भी। परी के आँखे खोलते ही राघव ने घर का दरवाजा खोला। अंदर गया और लाइटें जलाई। हालाकि अभी दिन का समय था फिर भी। छोटे से इस कमरे को बहुत ही अच्छे से सजाया गया था। जैसे कि आज ही परी का जन्म हुआ है, जिस पुत्री के जन्म की खुशी वह उस रोज नहीं मना पाया था, आज इसे किसी त्योहार की तरह मानना चाहता था।

परी के कमरे में भीतर कदम रखते ही उसपर फूलों की बारिश होने लगी। पूरा कमरा फूलों की खुशबू से महक उठा था। दीवार पर रंग बिरंगे तस्वीरें चिपकाई गई थी। कोने में टेबल पर एक टीवी भी लगाया गया था। रिमोट बेड पर रखा था। स्वादिष्ट पकवानों की खुशबू, उसके लिए नए ड्रेस, श्रृंगार की सभी वस्तुएं, सब कुछ उपलब्ध था। राघव अपनी बेटी परी को आज सचमुच का परी महसूस कराना चाहता था। इन आकर्षक और खूबसूरत वस्तुओं की चमक से मोहित हो परी क्षण भर के लिए उस हादसे को भूल जाए और बिलकुल उसी तरह से खिलखिला उठे जैसे पहले मुस्कुराया करती थी। बस इतनी सी ही उसकी ख्वाइश थी। न जाने उसकी यह ख्वाइश कब पूरी होगी।

"उस हादसे का प्रभाव मुझपर बहुत ही गहरा पड़ा था। मैं निष्प्राण मूर्ति की भांति 10 फिट के उस छोटे से कमरे में बंद रहती थी। मुझे टीवी देखने का शौक था, इसलिए उन्होंने कमरे में टीवी भी लगा दी थी। खूबसूरत कपड़े, गहने और बहुत कुछ जिसे देखकर मैं खुशी से झूम उठा करती थी, निष्फल साबित हो रहे थे मेरे होंठों पर क्षणमात्र के लिए भी मुस्कान लाने में। वे पूरा दिन परिश्रम करते और हर एक संभव प्रयास करते मुझे उस गहरे अवसाद से बाहर निकालने की। लेकिन मेरे आँखों से सामने हर क्षण मेरी माँ का कत्ल होता रहता, मेरी दोस्त कविता की लाश तैरती रहती। उन दानवों का डरावना चेहरा मस्तिष्क में घूमते रहता।" परी बोलती रही। "इंसान अच्छी स्मृतियों को जल्दी क्यों भुल जाता है। खुशी के पल जल्दी क्यों बीत जाते है और गम का गहरा बादल अमावस की रात की तरह अंधेरा किए लंबे समय तक क्यों रहता है। बहुत समय बीत गया। इस बीच सुलेखा दीदी की कोई खबर नहीं थी। मैं मानसिक रोग से जूझती जिंदा तो थी लेकिन उसका क्या हाल था कौन जानता? तीन महीने वक्त एक ही रूटीन में चलता रहा। अब परिस्थितियां बदलने लगी थी। निष्प्राण हो चुकी पत्थर की मूर्ति मैं टीवी में आने वाले कार्टून और कॉमेडी देख हंसने का झूठा प्रयास कर लेती थी। इसलिए कि पिता जी का तनाव थोड़ा कम हो।

उनके जिस्म पर कांटों और झाड़ियों से बने गहरे जख्म के निशान उस दृश्य को जीवंत कर देता। सब कुसूर मेरा ही तो था। न मैं उस शाम टहलने निकलती न कविता की लाश मुझे मिलती, न इसके बारे माँ को बताती और न ही यह हादसा होता। अभी मैं अपने गाँव के उसी माहौल में होती। उन्हीं खेतों में भागते – झूमते स्कूल जाया करती। दोस्तों से मिलती। आम के बगीचे से आम भी चुराती। दादा और दादी का डांट तो था ही, इसकी आदत सी जो हो गई थी, अब जब ये कानों में नहीं पड़ते तो उनकी कमी खलती है।

माँ की गोद में सिर रख लेट जाती और नीले आसमान को देखते हुए उनसे बेमतलब की बातें करती।" यह बोलते समय उस कुरूप लड़की की आँखों से एक बूंद आंसू जल गालों पर लुढ़कता हुआ उसकी हथेली पर जा गिरा।

इस दृश्य पर सहसा ही जज साहब की नजर पड़ी। अब तक मूर्ति बनी लड़की, जो दिल पत्थर का होने का दिखावा कर रही थी, आंसू का यह एक बूंद उसे नाकाम कर गया। भावनाओं की तराजू पर गवाह की गुणवत्ता नहीं परखा जाता लेकिन इस लड़की की कहानी सुन सिर्फ जज साहब ही नहीं बल्कि पूरा अदालत ही भावुक होनें लगा था। लेकिन अदालत तो तर्कों और कुतर्कों के आयत–निर्यात का बाजार है।

"कहानीकार... जो मिथ्या को सत्य की थाल परोस रहा है। ताकि इसके गुनाह के धूल बनावटी आंसुओं से धूल जाय। अदालत इसे निर्दोष मानें। लेकिन यह मुद्दा बस इतना ही नहीं है बल्कि यहाँ.. बस इस कुरु..." वकील साहब कुरूप बोलने वाले थे लेकिन रुक गए। किसी इंसान की उसके शरीर के बनावट के वजह से भेदभाव करना तथा इसी कारण से उससे ईर्ष्या करना मानवता की तौहीन होती।

वकील साहब के शब्दों के वाण के घाव भले ही तीखे थे, लेकिन वे मानवता को ही ईश्वर मानने वालों में से थे। उन्हें ईश्वर के पूजन और उनके सृजन एवम् इतिहास जानने में रुचि नहीं था, ना ही वे पूजा, अर्चना जैसे कुछ करते। लेकिन वह नास्तिक भी नहीं थे। वह हमेशा ईश्वर को इंसानों के भीतर ही ढूंढने का प्रयास करते। पत्थर की मूर्ति को छप्पन भोग न लगा कर वे दस भूखे लोगों को भोजन करा, उन्हें तृप्त कर अपना पूजन संपन्न मानते।

सत्य तो यह भी था कि उस कुरूप के द्वारा सुनाई जा रही कहानी इनके हृदय को भी उतना ही कुरेद रहा था, जितना अन्य लोगों का। लेकिन उनका पेशा सत्य को सामने लाना था। सत्य साबित करने के लिए और इस नियम को बरकरार रखने के लिए कि न्यायकार्य भावनाओं में बहकर नहीं बल्कि ठोस सबूतों के साथ किया जाता है। तब उनके द्वारा पूछे गए सवालों के बाण एक बार फिर से परी के कलेजे को छलनी करने लगी।

क्रांतिकारी महिलाओं के आक्रोश की वजह था परी नामक एक प्रसिद्ध लड़की की हत्या हो जाना, जिसकी उम्र करीब 24 थी। लेकिन जब पिछली सुनवाई में इस कुरूप लड़की ने स्वयं को परी बताया तब तो जैसे शहर में आग ही लग गई थी।

यह भला कभी संभव है कि कोई अपने ही के कत्ल के इल्जाम की सुनवाई में अदालत में पेश किया गया हो। परी को लोग प्यार करते थे। नई पीढ़ी की लड़कियां हो या औरतें परी उनके लिए आदर्श थी।

"तुमने जैसे बताया कि तुम परी हो। वही परी जिसकी हत्या इस विडियो में की गई है। जिसकी हत्या वजह बन गई अदालत के परिसर में खड़े औरतों की भीड़ को क्रांतिकारी बन जाने की।"

"मैं ही परी हूं..!!"

"सरासर झूठ... एक प्रसिद्ध इंसान के बारे में कौन नहीं जानता? उसके जन्म से लेकर वर्तमान तक की सभी कहानी इंटरनेट पर या बुक्स में, एवम अन्य कई माध्यम में उपलध होतें है। क्योंकि तुमने उसका कत्ल किया है, उसके बारे में तुमने बारीकी से अध्ययन किया हो। एक पल के लिए मान भी लिया कि तुम जो कहानी कह रही हो वह सत्य है। तब तुम ही परी हो यह कैसे मानें? इसे साबित करने के लिए कोई सबूत है तुम्हारे पास?"

सन्नाटे में वकील साहब के तर्क की जीत की हंसी सुनाई पड़ने लगी थी। अब तो मामला बिलकुल साफ था। यह एक सीरियल किलर हैं, जो अदालत को अपना पहचान न बता कर इसकी तौहीन तो कर ही रही है, स्वयं को परी कह कर सारे अपराधों से बचना चाहती है।

"उस विडियो को क्या आप एक बार फिर से चलाएंगे?" कुरूप लड़की ने अपना पासा फेंका।

वकील साहब अच्छे से समझ नहीं सके। वीडियो को उन्होंने कई बार देखा था। और इस केस की पहली सुनवाई में भी इसे उन्होंने पूरे अदालत के सामने दिखाया था। इतनी बारीकी से देखने के बाद भी ऐसा कौन सा तथ्य छूट गया जिसका इस्तमाल ये लड़की अपने बचाव में करना चाहती है। उन्होंने जज साहब की ओर देखा।

"वीडियो एक बार फिर से चलाया जाय।" जज साहब दिल से यही चाहते थे कि कटघरे में मूर्ति की भांति खड़ी ये अपराधी साबित न हो।

वीडियो फिर से प्ले किया गया। सभी ने ध्यान से देखा। वही सारे दृश्य। पहले परी के पेट में छुरा घुसाया गया। फिर तेजाब फेंक कर कातिल फरार हो गया।

जब वीडियो खत्म हुआ तब वकील साहब उसे उत्तर की उम्मीद से देखने लगें।

अपने लिए सजा में फांसी माँगने वाली लड़की अब अपना पक्ष रखने वाली थी। शायद इस लिए कि आज उसकी कहानी को सुना जा रहा था। वह कहानी जो सिर्फ उसके अतीत बन कर रह जाती। अगर उसे उम्र कैद की सजा होती तो सिर्फ याद बनी रहती। वही कहानी न सिर्फ अदालत के दस्तावेजों में अंकित हो रहा था बल्कि देश में आग की तरह फैल रहा था।

"मेरी सलाह मानें और विडियो एक और बार देखिए।" वह बोली।

यह चिढ़ दिलाने जैसे था। क्या यह लड़की अदालत में बैठे सभी लोगों को बेवकूफ समझ रही है, जो इस विडियो में छिपे उस तथ्य को नहीं देख पा रहें हैं जो यह अपने बचाव में दिखाना चाहती है? जज साहब को भी यह उसी भाव से तौल रही है। यह विचार गुस्सा दिलाने वाला था। वकील साहब कुछ कह पाते कि इससे पहले ही जज साहब ने विडियो दुबारा दिखाने की अनुमति दे दी।

वीडियो एक बार फिर से प्ले किया गया।

अब वह विडियो के बारे में बताने लगी। उसने बताया कि उस विडियो में जो लड़की हत्या कर रही है, वह मैं नहीं बल्कि कोई और है। बल्कि वह कोई औरत नहीं, एक आदमी है।

बकवास लॉजिक।

सुनते ही सभी हंस पड़े। भला ऐसा थोड़ी होता है। जो दिल में आया बोल दिया। यह अदालत है, हास्य–व्यंग का बाजार नहीं जो सिर्फ हंसने–हंसाने के लिए ही आयोजित किया गया है।

जब लोगों की हंसी रुकी और वकील साहब ने इसपर व्यंग करना बंद किया तब परी ने बोलना शुरू किया।

"आप एक काम करिए। मेरी हाईट नापिये।" अब भी वह खुद को क्या समझ रही है? ऐसा करके न जाने क्या साबित करना चाहती है?

लेकिन जो वह बोली किया गया। उसका हाईट वैसे तो दस्तावेज में लिखा हुआ ही था लेकिन एक बार फिर अदालत के सामने उसका हाईट नापा गया। वह 5 फिट 3 इंच की थी।

"और विडियो में कत्ल कर रहे उस कातिल की हाईट देखिए।" वह बोली।

सभी ने एक बार फिर से विडियो पर गौर किया। उस कातिल की हाईट का अनुमान लगाया गया। यह करीब 5 फिट 8 इंच था। सभी हैरान रह गए थे। इतनी छोटी चीज किसी ने भी गौर नहीं किया था।

"दरअसल यह विडियो एडिटिंग करके बनाया गया है। VFX और अन्य कंप्यूटर सॉफ्टवेयर की मदद से। वीडियो में जिस लड़की का कत्ल किया जा रहा है वह मैं। यह विडियो सच है। लेकिन कातिल नहीं। उस रोज 5 फिट 8 इंच का वो आदमी जिसने पहले मुझे चाकू मारा और फिर पूरे शरीर पर तेजाब गिरा दिया।"

"एक मिनट... तुम्हारे इस तर्क से सिर्फ इतना ही साबित हुआ है कि विडियो में दिखने वाला वो कातिल तुम नहीं हो। यह साबित नहीं हुआ कि तुम ही परी हो।"

फिर से घंटी बज पड़ी। समय आज भी समाप्त हो गया।

"इस विडियो को जांच के लिए भेजा जाय। और अगर यह विडियो नकली है तो इसका ओरिजनल कॉपी ढूंढ कर कल अदालत में पेश किया जाय। और इस लड़की के द्वारा दिए गए व्यानों की भी जांच कराई जाय। एक स्पेशल टीम बना कर गाँव में इसकी जांच के लिए भेजा जाय। और तुम..." जज साहब परी से बोलें। "तुम्हे अदालत में अपने पक्ष रखने के लिए एक वकील रखना जरूरी है।"

"आगे की सुनवाई कल होगी।" और वे उठ खड़े हुए। इसी के साथ अदालत बर्खास्त हुआ।
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Re: स्वाँग

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अध्याय दस

छत पर बैठी परी ढलते शाम को देख रही थी। अचानक से किसी के गिरने की आबाज़ आई। वह उठी और नीचें झांक कर देखी। एक युवक सामने गली में गिरा पड़ा है। फटे आटे की बोरी और आटे की सफेदी से वह बिल्कुल ही सफेद सफेद हुआ पड़ा है। यह देख परी के ठहाके निकल पड़े। महीनों से मायूस परी अचानक से हंस पड़ी थी।

उसकी हंसी सुन युवक ने ऊपर देखा। परी को अपनी दशा पर हंसता देख शर्माया और नजरें झुका लिया। लेकिन अंदर ही अंदर परी की हंसी ने उसे गुदगुदाया। वह भी मंद मंद मुस्कुराया।

तब से इस कहानी में एक नया किरदार उत्पात मचाने लगा। उसके इस हलचल से न किसी को दर्द हुआ न नुकसान बल्कि एक लड़की के होंठों पर हंसी आने का सिलसिला चलता रहा।

फिर हर दिन वह किसी न किसी बहाने उसके घर के सामने आता और गिर पड़ता। उसके हाल पर परी हंस पड़ती और वह परी की हंसी देख घायल हो जाता। एक लड़की के होंठों पर मुस्कान लाने के चक्कर में यह लड़का अपनी हड्डियां तोड़ने को बेचैन था। हालाँकि हर बार वह अभिनय करता। चोट तो लगती लेकिन हल्की फुल्की। लेकिन आज जब बारिश की वजह से शहर गीला हो चुका था, यह बारिश शायद उसकी कहानी लिखने आई थी।

पैर फिसला। संतुलन बिगड़ा। और धड़ाम..!

यह अभिनय नहीं था। उसे गहरी चोट आई। परी दौड़ी बाहर आई। उसके कपड़े गंदे हो गए थे। चोट से उत्पन्न हो रहे दर्द उसके चेहरे पर स्पष्ट थें।

इस बार वह नहीं हंसी थी। जानती थी शायद कि यह कोई अभिनय नहीं है बल्कि दुर्घटना है। वह भागी। चोट तो उसे लगी थी लेकिन बैचैनी परी के चेहरे पर दिखने लगी थी।

परी को अपने पास आया देख उसके सारे दर्द जैसे छूमंतर हो गए। झूठा अभिनय हंसने का किया और फिर खड़ा हुआ।

"वो... मैं... बस पैर फिसल गया था तो..." उसके टूटे फूटे शब्द। उसके दिल के हाल बेहाल थे।

जिस चांदको वह अक्सर दूर से देखा करता। जिसकी चमक नजरों को आकर्षित करती। आज उसके सामने व्याकुल खड़ी थी क्योंकि सच में उसे चोट लगी थी।

न परिचय न पहचान।

न वो उसका नाम जानती थी और ही और कुछ। लेकिन दोनों के बीच कोई खास बंधन बंध गया था। शायद प्यार का..!

बेचैन परी जबतक उसके पास पहुँचती वह सीधा खड़ा हो गया था। कपड़ों से लिपटे कीचड़ को झाड़ते हुए उसे देखा और मुख से निकलते शब्द भीतर ही रह गए।

यह सुनिश्चित होते ही कि उसे ज्यादा चोट नहीं आई उसकी सांस में सास आई। उस लड़के के तरफ भागते कदमों में रफ्तार मंद हुए और फिर दोनों एक दूसरे के सामने खड़े थे।

"ही.. ह.. अं.. वैसे मेरा नाम गौरव है। और तुम..?" उछलते कूदते दिल को काबू करते हुए परी को अपना परिचय दिया इस नए किरदार ने।

फिर तेज होती धड़कनें। भय ही भय। कहीं यह इस कहानी का अंत न हो जाय। फिर उसकी उस हंसी को देखे बिना क्या वह जी सकेगा। सकुन न मिलेगी न शांति।

शायद आबारा ही इधर उधर भटकता फिरेगा।

सन्नाटा..! अगले कुछ क्षणों तक परी के चेहरे पर भावशून्य अभिव्यक्ति। यह उस उलझन को बढ़ाता ही जाता। फिर अचानक से ही जोर की हंसी छूटी।

बदलते चेहरे के रंग को देख परी उसके दिल के भाव भी समझ गई थी। बुद्धू..! इसे चोट की फिक्र नहीं। दर्द का एहसास नहीं। है तो बस जान पहचान बढ़ाने की।

"अभी ये कहना जरूरी था?" वाक्य पूरा करते ही वह फिर से हंस पड़ी। हंसने की वजह भले ही उसे ज्ञात न हो लेकिन हमेशा की तरह खुद को बुद्धू मान खुद के ही हाल पर हंसने लगा।

"दोस्त बनोगी मेरी..!"

दोस्ती का हाथ परी के तरफ बढ़ाया।

सोचने का अभिनय करते हुए परी ने फिर से उसे परेशान करना चाहा। फिर बोली —

"ऐसे गंदे इंसान से मैं दोस्ती नहीं करती। नहा कर आओ तो बात बनेगी।"

गौरव इसी कॉलोनी में रहने वाला एक मध्यवर्गीय परिवार का लड़का था। ग्यारहवीं में पढ़ता था लेकिन जब से परी के दर्शन किए हैं बेचारे के तोते उड़ गए हैं।

फिल्मों का शौकीन। इसे घूमना फिरना पसंद है।

अब इसकी एक नई दोस्त बन गई थी। नए शहर में आए वैसे तो परी को कई दिन हो गए थे और तब से ही वह डिप्रेशन, तनाव और दुःख के दलदल में डूबी थी। लेकिन जब से गौरव से उसकी दोस्ती हुई सबकुछ बदलने लगा।

वह सारा समय परी के साथ रहने को तत्पर रहता। उसकी बातें और हरकतें परी को हंसने पर मजबूर कर देती। हंसी हर दर्द के एहसास को कम कर देता है। उसने उसे दिल्ली घुमाया।

लाल किला। चांदनी चौक। संसद भवन और हर एक जगह।

अब वह अतीत को भूलने लगी थी। राघव खुश था। उसकी बेटी अब पहले जैसी होने लगी थी। हंसने लगी। खुश रहने लगी थी। अब उसे कोई फिक्र नहीं थी।

समय बीतता गया। परी ने बोर्ड एग्जाम दिया। टेंथ पास कर गई। गाँव में हुए उस हादसे को वह बिल्कुल ही भूल चुकी थी। गौरव अब उसके जीवन का हिस्सा बन गया था।

फिल्में देखना। होटल में खाना खाना और साथ में मस्ती और पढ़ाई करना।





अध्याय ग्यारह

फिर वही सलाखें... वही यादें और वही अंधेरा कमरा। अभी अदालत किसी खास निष्कर्ष पर नहीं पहुँची थी कि ये कुरूप लड़की जिसका पूरा शरीर झुलसा हुआ है, जिसकी आँखों में अंगार झलकता है, जो किसी शिल्पकार की मूर्ति लगती है और जिसमे भावनाओं को व्यक्त करने की कोई अदा ही नहीं, गुनहगार नहीं है। इसलिए अभी भी ये सलाखों के पीछे ही कैद थी।

लेकिन अब कुछ चीजें बदल सी गई थी। इसकी अधूरी कहानी सत्य है या मिथ्या— इसकी जांच की जा रही थी। पुलिस की एक स्पेशल टीम को इस काम के लिए नियुक्त किया था।

वे परी के द्वारा बताए गए उस गाँव में पड़ताल करने गए जहाँ से इस कहानी की शुरुआत हुई थी। वो स्कूल, वो मास्टर और वो सारे किरदार— सत्य थें या कल्पना।

अंधेरे में ही, हालाकि सामने कुछ नहीं था, लेकिन परी को देखकर ऐसा लग रहा था कि वह आइने में खुद की छवि को देख रही है, अपने श्रृंगार को, उस स्वरूप को जो उसका वास्तविक रूप था।

यह स्वरूप—अभी तक जो दुनिया के लिए एक रहस्य है, जिसकी कहानी अधूरी है, उसकी आँखों में देख ऐसा प्रतीत हुआ कि उसके द्वारा फेका गया जाल खाली नहीं रहा।

थोड़ी मुस्कुराई। अपनी अंतरात्मा की छवि के आँखों में खुद के तस्वीर को देख ऐसे इतराई जैसे अब उसका प्रतिशोध पूरा होने को है।

इस बार अदालत के माहौल पहले जैसा नहीं था। अब कई तथ्यों की जांच की जा चुकी थी। कहानी नया मोड़ लेने वाली थी। आज इस बात का निर्णय होना था कि ये लड़की अपराधी है या निर्दोष। ऐसे में सनसनी और कोहराम। भीड़ पहले की तुलना में ज्यादा इकट्ठा हुई थी आज यहाँ।

परी कटघरे में खड़ी अपने लक्ष्य को हासिल होता देख मुस्कुरा तो रही थी लेकिन अभिनय कुछ और ही कर रही थी। एक वकील उसके तरफ से अदालत में पक्ष रखने को कहा गया था लेकिन शायद अब भी इसे कानून और न्याय व्यवस्था पर यकीन नहीं था।

जज साहब कुछ देर मौन ही बैठे रहें। उन्हे लगा कि इस कुरूप लड़की ने अब तक कोई वकील नियुक्त कर लिया होगा। वे अदालत की कार्यवाही आगे बढ़ाएंगे। शायद समय से थोड़े देर में पहुँचें। जब कोई नहीं आया। उनकी उम्मीद टूटने लगी। वे दिल से चाहते थे कि ये लड़की निर्दोष साबित हो। इसे न्याय मिले।

"आपका वकील अभी तक नहीं आएं?" उन्होंने उससे पूछा।

"मैने कोई वकील नियुक्त नहीं किया।"

उत्तर सुन उन्हे आश्चर्य हुआ।

"लेकिन क्यों?"

"क्योंकि मैं अपराधी हूं। मैं अपना हर एक अपराध स्वीकार कर चुकी हूं। तब फिर वकील नियुक्त करने का क्या फायदा? अपराधी सामने है, साक्ष्य भी है, तो इस केस में समय बर्बाद करने का क्या फायदा?"

अब भी ये लड़की अपना बचाब नहीं चाहती। अब भी यह हर एक गुनाह को कबूल कर रही है। इजहार कर रही है। और कह रही है कोर्ट सिर्फ वक्त की बर्बादी कर रहा है। जज साहब को इस तरह के उत्तर की उम्मीद नहीं थी। लेकिन अब इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं थी।

अब कोई क्या कहे?

"फिर पिछली सुनवाई में तुमने जो बयान दिया था। तुम्हारा वो थ्योरी... हाइट वाला। तुमने खुद को निर्दोष साबित करने का प्रयास किया था..!" जज साहब को ये लड़की बिल्कुल समझ नहीं आ रही थी।

"तो आपको मेरा वो बयान झूठा लगता है? आपने जांच का आदेश दिया था न? मेरे ख्याल से सच सामने आ गया होगा।" उसके स्वर आत्मविश्वास से लबरेज थे। न कोई भय न ही ग्लानि।

जांच टीम ने अपना रिपोर्ट अदालत में पेश किया। विडियो नकली था। वे सारे किरदार असली थे जो ये कुरूप लड़की कह रही थी। वो गाँव, वे लोग और... और सबकुछ।

"इन सब से साबित होता है कि तुम गुनहगार नहीं हो।" जज साहब ने कहा।

"ऐसा आपको इसलिए लगता है कि आपको अधूरी कहानी बताया गया है। मैं गुनहगार हूं। इतने गुनाह मेरे हिस्से में है कि दंड संहिता में वर्णित सजा मेरे लिए कम पड़ेंगे। यह कहानी अभी अधूरी है क्योंकि इसमें न अभी मेरे प्यार का अध्याय ही है और न ही इंतकाम का। और अगर मैं हत्याओं की गिनती कराने लगूं तो कोर्ट के कई दिन बेकार ही में बर्बाद हो जाएगा। इसलिए वे सारे अपराध जो मैने किया है, आपके सामने रखे उन दस्तावेजों में उसका जिक्र हो न हो, सब स्वीकार करती हूं। और अदालत से आग्रह करती हूं कि मुझे सजाए मौत दे दिया जाय।"

फिर वही स्थिति। यह बयान अब सब रास्ते बंद कर चुका था। उसका कन्फेशन इस तिथि में अदालत को अपना निर्णय सुनाने को मजबूर कर रहा था।

दस्तावेजों में हत्याओं की गिनती और अपराधों का कन्फेशन लेकिन जज साहब कुछ और ही चाहते थे। वे उसकी कहानी को पूरा सुनना चाहते थे। क्योंकि अभी तक उसकी असली कहानी तो शुरू ही नहीं हुआ था। लेकिन ये लड़की सजाए मौत माँगे ही जा रही है।

खामोशी। सन्नाटा।

क्रांतिकारी औरतें मूर्ति बन गई। हवाओं का शोर सबके कानों में गूंजने लगा। सब की नज़रें जज साहब पर ही टिकी हुई थी। अब इस कहानी को जानने की उत्सुकता न सिर्फ जज साहब को ही बल्कि इस अदालत में उपस्थित हर एक व्यक्ति की भी थी।

"जबकि तुम निर्दोष साबित हो रही हो फिर भी ऐसा बयान क्यों दे रही हो?" जज साहब ने पूछा। "क्या किसी दबाव में आकर तुम ऐसा कर रही हो? तो भय त्याग दो। और सत्य कहो। अदालत विश्व दिलाता है कि न्याय होगा।" वे अब भी उसी भावना में बहे जा रहे थें।

"ऐसा संभव ही नहीं है। क्योंकि मेरा गुनहगार कोई आम इंसान नहीं है। मेरा गुनहगार... खैर... रहने दीजिए।"

"निर्भय कहो। कौन है वो और क्या अपराध है उसका। अदालत में हर किसी को अपना पक्ष रखने की पूर्ण आजादी है।"

"मैं निर्भय ही हूं लेकिन उसका नाम सुनते ही न्याय के लिए विश्वास दिलाने वाला ये अदालत ही भयभीत हो जायेगा। फिर दंड संहिता में लिखे कानून की बातें बस कल्पना रह जायेगी और वही होगा जो वो चाहेगा। और वो यही चाहेगा कि मुझे सजाए मौत हो। इसलिए एक बार फिर अदालत से विनती करती हूं। न्यायधीश महोदय, आपसे विनती करती हूं कि प्लीज़ अब इस कहानी को यहीं पर समाप्त हो जाने दें और मुझे मेरे अपराधों के दंड में सजाए मौत दे दो।"

क्या यह सब सत्य था? चाहे जो भी हो उस लड़की के मुख से निकला हर एक शब्द जज साहब सहित अदालत में उपस्थित हर एक एक दिल को झकझोर रहा था। न्याय के इस मंदिर में भी एक व्यापार किया जाता है। बात कड़वी है लेकिन सत्य है। सभी जानते है। बस कुछ पैसों का खेल। फिर न्याय बेच दिया जाता है। अपराधी मासूम घोषित कर दिया जाता है और कुछ मामलों में पीड़ित ही गुनहगार बन जाता है।

उस लड़की का ये बयान इस सिस्टम के गालों पर जोरदार तमाचा जैसा था। जिस कार्य को छिपाकर किया जाता रहा है, पर्दे के पीछे हर कोई ही कानून तोड़ने वाला है, और जिस वस्तु के क्रय–विक्रय का स्थान ये अदालत बन गया है, कैसे यह एक पीड़ित को न्याय दिलाने का वादा कर सकता है?

सभी निरुत्तर थें। खामोशी हर एक होंठों पर थी। क्रांति की आग ठंडी होने लगी थी। दिन में भी लोगों के सामने अंधेरा रहता लेकिन इस अंधेरे में एक अजब अनजान लड़की अचानक से ही सत्य की चकाचौंध रौशनी रख देगी तो सबकी आँखें चकाचौंध हो जायेगी। फिर ये लोग जिन्हें अंधेरे में ही चीजें स्पष्ट दिखाई पड़ती है, कैसे किसी वस्तु को देख सकेंगे इतनी तीव्र रौशनी में? बेहतर है सत्य का ये प्रकाश बुझा ही रहे।

"न्याय व्यवस्था भेदभाव नहीं करती। हर अपराधी को दंड मिलना तय है। तुमने भी अगर अपराध किया है तो दंड मिलेगा।" जज साहब बोलने लगे। सबको लगा वे वही करने वालें है जो ये लड़की चाहती है। एक प्रतिष्ठित और पॉवरफुल इंसान—हालाँकि अभी उसकी पहचान गुप्त ही था, अगर उसका नाम सामने आ गया तो शायद हलचल मच जाय। "और अगर तुम पीड़िता हो तो न्याय भी। और उस अपराधी को दंड भी। भले ही वो इंसान कोई भी हो। दंड संहिता में लिखा गया कानून सभी के लिए एक समान लागू होता है। तुम अपना पक्ष निर्भय हो कर अदालत में रखो।"

शायद इसी अवसर का तलाश था उसे।

"चाहे फिर वो देश का कोई महान राजनेता ही क्यों न हो?" परी ने जज साहब की आँखों में देखते हुए प्रश्न किया।

देश का राजनेता कोई आम इंसान नहीं होता। ऐसे ही उसे कटघरे में खड़ा नहीं किया जा सकता। और ये कुरूप लड़की दावा करने लगी कि उसका अपराधी एक राज नेता है।

"तुम क्या कह रही हो पता है न तुम्हें?" जज साहब ने स्पष्ट कहा।

"हां, जानती हूं। अपनी और अदालत... दोनो की गरिमा को। लेकिन मेरा अपराधी वही है।" उसके स्वर कठोर थे। इसमें सत्य की आग थी। लेकिन कोई कैसे इसपर यकीन करे।

उंगली तो कोई भी किसी पर उठा सकता है न। देश का हर नागरिक या तो राजनेताओं से संतुष्ट होता है या तो उसे अपराधी कहता फिरता है। नई बात नहीं है।

"तुम्हारे पास साक्ष्य है?" वकील साहब ने पूछा। क्योंकि इस लड़की का बयान अभी तक सभी को झटके ही देता आया है।

"हां..!"

"क्या?"

"पहले अपराधी का अपराध तो जान लो।"

"तुम कह रही हो कि तुम्हारा अपराधी एक राजनेता है..!" बोलते हुए वे हंसे। जैसे उसने कोई चुटकुला कह दिया हो।

"मेरा अपराधी अभी प्रधानमंत्री है उस वक्त नहीं था जब उसने मेरा रेप किया था।"

उसके इस कथन से अदालत को एक बार फिर झटका लगा।

"रेप..?" क्योंकि यह बहुत ही अजीब था। वह इतनी कुरूप थी कि उसका चेहरा तक देखना न चाहे कोई रेप करना तो बहुत दूर की बात है।

"उस हादसे के बाद मैं सदमे में थी। फिर मुझे एक दोस्त मिला। गौरव। फिर धीरे धीरे सबकुछ बदलने लगा। जब मैं नॉर्मल हो गई तब हमने सुलेखा दीदी से मिलने का फैसला किया।" वह आगे की कहानी सुनाने लगी।

राघव और परी के हृदय में किसी से भी प्रतिशोध लेने की भावना नहीं थी। जब परी ठीक हुई तब दोनों सुलेखा से मिलने उसके ससुराल गये। जब से ससुराल गई थी तब से उसकी कोई खबर नहीं मिली थी। राघव को उसकी फिक्र हो रही थी। उन्होंने वापस गाँव जाना ठीक नहीं समझा। यह खतरनाक भी हो सकता था। कविता के पिता न जाने कितना जहर घोल रखा है गाँव वालों के हृदय में।

दोनों सुलेखा के ससुराल गए। सुलेखा अब दोनों से घृणा करने लगी थी। सच्चाई तो उसे भी मालूम नहीं था। वह भी इसी बात को सत्य मानती थी कि राघव ने अपने माता–पिता को, नीलिमा और कविता और उस लड़के को मार डाला। उसका पिता हत्यारा है। इस वजह से ससुराल में उसे उलाहना दिया जाता। उसकी बहन के भी हाथ अपने ही परिवार के खून से रंग गए है। इस बात के शर्म से वह डूब मरना चाहती थी। एक बार प्रयास भी करने गई थी। गाँव के कुएं में जाकर छलांग भी लगा दी थी। तभी एक अधेड़ व्यक्ति की नजर पड़ गई। और उसने उसे डूबने नहीं दिया।

अब यह जीवन उसे बिल्कुल नर्क लगता। ससुराल में लोग उसे हत्यारण की बेटी कह गालियां देते। न पति ही प्रेम करता। न जी पा रही थी और न ही मरने दिया जा रहा था। एक रोज जब स्थिति बर्दाश्त से बाहर हो गई वह घर छोड़ भाग गई। कहाँ गई कोई नहीं जानता था। कैसी है कोई नहीं जानता। जिंदा भी है या मर गई कोई नहीं जानता।

गाँव के लोगों ने जब दोनों को देखा तो आश्चर्य में थे। इन्हें देख उनके मन में उन्हीं दोनों हत्यारे पिता और बेटी का ख्याल बार बार आता। जब दोनों सुलेखा के ससुराल वालों के घर के आगे जा खड़े हुए तब सब को यकीन हो गया कि दोनों वही हत्यारें है। एक ने पुलिस को फोन भी कर दिया था।

जब दोनों ने सुलेखा से मिलने की इच्छा जताई उसकी सास रो पड़ी।

चिल्लाने लगी —

"तुम दोनों हत्यारे की वजह से मेरी बहु न जाने कहाँ भाग गई। अपराध तुमने किया और दंड हम भुगत रहें है। समाज में अब हमारी कोई इज्जत नहीं रह गई है। घर से बाहर निकलने में शर्म आता है। काश! उस रोज उसे कुएं में डूब मरने देती। कम से कम हमारी इज्जत तो नहीं जाती।"

उनका भाषण शुरू जो हुआ समाप्त होने का नाम ही नहीं ले रहा था। गाँव के लोगों ने दोनों को घेर रखा था। कविता के पिता और भाइयों की वजह से ये दोनों हत्यारे के नाम से प्रसिद्ध हो गए थे। ऐसा कर उन्होंने अपना अपराध भी छुपा लिया था और इज्जत भी बचा लिया था। लोगों की हमदर्दी बटोरते जो अलग।

गाँव के लोग दोनों को देख आक्रमक होते जा रहे थे। अगर उनके वश में होता तो तत्काल ही दोनों को पैरों से कुचल डालते। पर मजबूरन सिर्फ पुलिस के आने तक का इंतजार कर सकते थे।

पुलिस आई। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। थाने ले जाने के लिए हथकड़ियां लगाकर गाड़ी में बैठाया गया। गाड़ी गाँव से रवाना हुई।

गाँव से बहुत दूर आने के बाद ड्राइवर ने गाड़ी रोक दिया।

राघव अधिकारी को समझाने का प्रयास कर रहा था कि वे निर्दोष हैं। उनपर झूठे आरोप लगाए गए। हत्यारा कोई और ही है। वे अपराधी नहीं बल्कि पीड़ित हैं।

पुलिस अधिकारी ने कुछ देर तक विचार किया। और फिर कहा कि एक लाख दे दो और भाग जाओ। कोई केस नहीं। कोई सजा नहीं।

भ्रष्टाचार का यह धंधा नया नहीं था। पैसा बहुत ही शक्तिशाली चीज है। इन पैसों से न सिर्फ पेट भरने के लिए भोजन बल्कि दुनियां का हर एक चीज खरीदा जा सकता है। ऐश की सभी वस्तुएं, किसी का चरित्र भी बिकाऊ होता है। इन्हीं पैसों से लोग पाप को बेच अपने लिए अपराध के बदले माफी खरीद लेते हैं।

"लेकिन साहब... अभी हमारे पास एक लाख नहीं है।" राघव मामले को बहुत अच्छी तरह से समझता था। हत्या का अपराध—भले ही उसने नहीं किया है, फिर भी इसे साबित करने वाले सकड़ों थें।

और अगर सौ लोग किसी को गलत कहें तो वह सही कैसे हो सकता है?

इस मामले में या तो फांसी की सजा होगी या आजीवन कारावास। इससे अच्छा था कि इन्हे पैसे खिलाकर खेल ही खत्म कर दिया जाए।

"समझने का प्रयास करो। हत्या का मामला है, कड़ी सजा मिलेगी। डील ओके कर लो। मैं केस क्लोज कर दूंगा। लिख दूंगा कि तुम दोनों एक एक्सीडेंट में मारे गए।" वह रुका। कुछ हिसाब का आंकलन करने बाद फिर बोलने लगा।"अब झूठा सबूत बनाने में भी तो मेहनत करनी पड़ेगी।"

वे तीन थे। तीनों ने हिसाब लगा कर ही दाम तय किया था। उन्हें लगा कि राघव उनकी बात समझ गया है। अब तो बस लक्ष्मी जी के दर्शन ही शेष है।

"मैं समझ रहा हूं सर। लेकिन आप ही बताओ कि कोई इतना पैसा लेकर बाहर घूमता है?"

राघव की बात पर तीनों एक दूसरे को देखने लगे।

"मेरे पास अभी पाँच हजार है। अभी ले लो। आप अपना खाता नंबर दे दो। दिल्ली जाने के बाद मैं आपको ट्रांसफर कर दूंगा।"

"दिल्ली जाने के बाद..? खाता नंबर..? बेवकूफ समझा है क्या?" इस बात कि क्या गारंटी थी कि दिल्ली जाने के बाद राघव पैसे ट्रांसफर कर ही देगा। और अगर नहीं करेगा तो..? शिकार शिकारी के हाथ से निकल जाए तो फिर उसे किस बात का भय?

"तो हुजूर आप ही कोई रास्ता बताओ।"

पाँच हजार निकाल पुलिस के हाथ में रखते हुए राघव ने विनती भरे स्वर में उन्हीं का राय माँगा।

तीनों ने विचार किया। गाड़ी के बाहर जाकर कुछ देर तक आपस में बात करने के बाद वापस आएं। पैसों की भाषा कमाल की होती है। भले ही राघव की पेशगी छोटी थी लेकिन काम बनाने वाली थी।

पुलिसवाले एक शर्त पर तैयार हो गए। उन्हें एक लाख के साथ अब राघव का वो घर भी चाहिए था।

क्योंकि अब वह घर किसी काम का नहीं रहा था। अब न वह जा ही सकता था। तो अब उसे रहने या न रहने का क्या मतलब? राघव ने शर्त स्वीकार कर लिया। लेकिन समस्या इसमें कई थे। खैर इन समस्या से ये लालची लोग ही लिपटें।

तरकीब लगाई थी। राघव अभी बिहार में ही रुका। पुलिस ने घर की नीलामी कराई। इसे अपने ही आदमी से खरीदवाया और फिर राघव से वायदा भी लिया बाकी के 95 हजार लेने के। और फिर दोनों को दिल्ली की गाड़ी पर चढ़ाकर मामले को खत्म कर दिया गया।

सुलेखा की यादों की जंजीर में दोनों बंधे थे। कम उम्र की अकेली लड़की कहाँ और किस हाल में होगी? जीवित भी होगी या समाज की आलोचनाओं को न झेल सकने के कारण आत्महत्या कर ली होगी। लेकिन राघव ईश्वर से उसकी की कामना कर रहा था। भगवान, भले ही वह दूर रहे लेकिन आत्महत्या करने का दुस्साहस न करे। खुशी से रहे। और उसकी हिस्से की सारी तकलीफें, सारे दर्द राघव को मिल जाय।

दिल्ली वापस पहुँचते ही राघव ने फिर से कंपनी में मजदूर का काम करना शुरू कर दिया। सुलेखा की वजह से दोनों फिर से उदास रहने लगें थे। धीरे धीरे कर राघव पुलिसवालों को पैसे भेजता था। पुलिसवालों ने भी वादा निभाया। कैसी अज्ञात शव को बाप और बेटी की पहचान दे दिया गया। एक्सीडेंट के झूठे सबूत बनाए गए। इनकी पहचान पूरी तरह से मिटा दिया गया था।

दस्तावेजों में अब इनकी मौत की झूठी कहानी थी।

परी फिर से पढ़ाई करने लगी थी। गौरव से उसकी दोस्ती प्यार में तब्दील हो गई थी।

बोर्ड एग्जाम क्लियर करके परी एक कॉल सेंटर में जॉब करने लगी थी। गौरव ने प्यार का इजहार भी कर दिया था। परी कुछ बड़ा करना चाहती थी। मेहनत करती थी। पढ़ाई में तो वह बचपन से होशियार थी। लेकिन बड़ी बहन सुलेखा का ख्याल बेचैन कर देता।

अतीत याद तो करना नहीं चाहती थी लेकिन इसपर इसका वश चलता है। अक्सर अतीत की यादें उसे तोड़ने आ जाती।

अब सबकुछ ठीक रहा था। अच्छे मार्क्स से परी के मार्कशीट्स सजे भरे थें।

अच्छा जॉब। खुशहाल जीवन। एक दोस्त। एक बॉयफ्रेंड और बहुत बड़ा सपना।

गौरब टेक्नोलिजी से जुड़ा रहने वाला लड़का था। वक्त की रफ्तार तेजी से बदल रही थी। मोबाइल और इंटरनेट क्रांति ले आई थी। विज्ञान विश्व बदलने में व्यस्त था।

बदलते दौर में बहुत चीजें बदल गई थी। संचार का माध्यम। चिट्ठी से विडियो कॉल तक का सफ़र।

एक दिन गौरव ने परी को एक मोबाइल गिफ्ट किया। परी टेक्नोलॉजी में पिछड़ी थी। गौरव ने उसे मोबाइल और इंटरनेट चलाना सिखाया। इंटरनेट पर ज्ञान और मनोरंजन का भंडार था। उसे बचपन के वे दिन याद आने लगें थें जब दोनों कविता के घर बैठ कर टीवी देखा करती थी। तब कभी कभी दिल करता कि फिल्म अभिनेता ही बन जाए।

टिक टॉक जैसे मनोरंजक एप्लिकेशन पर कुछ समय व्यतीत करने के बाद दिल करने लगा कि वह भी एक दो विडियो बनाए। आज के दौर में लगभग सभी ही यूट्यूब, फेसबुक, इंस्टाग्राम और टिकटिक जैसे एप्लिकेशन पर बस मनोरंजन के लिए अपने विडियो और फोटो अपलोड किया करते।

परी ने भी किया। गौरव ने भी मदद की।

धीरे धीरे परी अब एक स्टार बन गई थी। फिल्मों में काम करने वाली अभिनेत्री नहीं फिर भी लाखों दिलों पर राज करने लगी थी। बढ़ते फॉलोवर्स को देख कर कई कंपनी वाले अपने प्रोडक्ट का प्रचार करने उसके पास आते लेकिन परी कहती कि यह बस एक मनोरंजन का जरिया है। इसे बिजनेज नहीं बनाना चाहती। वह यह सिर्फ मनोरंजन के लिए करती है। इसे पेशा नहीं बनाना चाहती।

उसकी विडियो मनोरंजक और मोटिवेशनल होते। फॉलोवर्स बढ़ते गए। हजार से लाख और लाख से दस लाख, पचास लाख और फिर एक करोड़। इतने सारे फॉलोवर्स..!!!

कई लड़के इस खूबसूरत लड़की के ऊपर जान छिड़कते। बहुत सारे लोग उससे सीखते। प्रेरणा लेते। उससे प्यार और स्नेह करते। वह खुश थी।

लेकिन एक ही सिक्के के दो पहलू होते हैं। परी की पॉपुलैरिटी घातक बनने वाली थी। अब तक जीवन में हो रहे दुर्भाग्य की वजह सिर्फ किस्मत थी लेकिन अब उसकी कहानी में खलनायक की आने की बारी थी।
koushal
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Re: स्वाँग

Post by koushal »

अध्याय बारह

जज साहब ने एक बार उन दस्तावेजों पर सरसरी निगाह दौड़ाया जिसे जांच टीम ने अदालत में पेश किया था। उन दस्तावेजों में परी और राघव, दोनों ही मृत थें। यह तथ्य चकित करने वाला था। क्योंकि आरंभ से ही यह लड़की खुद को दस्तावेजों में लिखे उन्हीं क़िरदार से संबंधती कह रही थी जो वर्षों पहले मृत घोषित किए गए थे। लेकिन इनकी कहानी सत्य थी। तो ऐसा संभव हो सकता था कि यह लड़की उस किरदार का स्वांग रचा रही है। लेकिन क्यों? इसे तो अपने जीवन से जरा सा भी मोह नहीं है।

कुछ देर तक विचार करने के बाद उन्होंने परी से इस संबंध में प्रश्न किया।

"तुम्हारी कहानी तो सत्य लग रही है लेकिन जैसा इन दस्तावेजों में लिखा है, तुम्हारी कहानी की वो परी और राघव लगभग तीन साल पहले ही, 2016 में ही इनकी मृत्यु एक एक्सीडेंट में हो गया था। तो इससे यह साबित होता है कि तुम्हारे द्वारा सुनाई गई अब तक की कहानी तुम से संबंधित नहीं है।"

"क्या दस्तावेजों पर लिखे महज कुछ शब्द ही किसी शख्स के जीवित या मृत होने का सबूत होता है?" परी बोली।

"हां, क्योंकि इन्हीं दस्तावेजों के आधार पर ही न्यायवस्था और कानून कार्य करती है। सबूतों और प्रस्तुत तथ्यों का सावधानी पूर्वक आंकलन करती है और फिर निर्णय करती है।" वकील साहब ने उत्तर दिया।

"तो आपके अनुसार मेरा कोई अस्तित्व ही नहीं है। क्योंकि महज कुछ पैसों के लालच में आपके सिस्टम के कुछ अफसरों ने यह लिख दिया है।" इतना बोलने के बाद गहरी सांस ली और फिर बोलना जारी रखी। "लेकिन उन्हीं तीन पुलिसवालों की वजह से मैं सिर्फ दस्तावेजों में मरी थी, वास्तव में नहीं। बल्कि, अब नए पहचान के साथ मैं नई दुनिया में जीने लगी थी। वक्त मेरे जख्मों को अभी भरने ही लगा था। जिन अपनों को खोया था उनकी कमी पूरा करने के लिए मेरे पास एक अच्छा दोस्त था। हमारी दोस्ती हद पार करके प्यार का रूप ले चुका था। फिर मैं अतीत का हर एक हादसा बिल्कुल ही भूल गई थी। लेकिन यह किस्मत को मंजूर नहीं था।"

परी और गौरव उस रोज रेस्टुरेंट में थे। अचानक उसे एक अर्जेंट कॉल आया था। हालाँकि वह रविवार का दिन था और आज उसकी छुट्टी थी। उसने परी के साथ सारा दिन बिताने का वादा किया था लेकिन ऑफिस से आया अचानक कॉल। गौरव IT की पढ़ाई कर रहा था। एक IT कंपनी में उसे जॉब मिल गई थी।

"क्या हुआ गौरव?" परी पूछी। वह उसके चेहरे के भाव को पढ़कर समझ गई थी सबकुछ।

"जो प्रोजेक्ट मैने बनाया था न..? उसमे थोड़ा गड़बड़ हो गया है। कल सोमवार को इसे क्लाइंट को देना है तो अभी जाकर उसे ठीक करना होगा।" वह बोला।

"लेकिन हम डेट पर आए थे न?" परी काम की जिम्मेदारी समझती थी। वह उसे रोक नहीं रही थी लेकिन नाराज होना तो स्वाभिक था।

"सॉरी डियर..!" बोलते हुए गौरव ने अपने दोनों कान पकड़ लिया।

वह भी आज का दिन परी के साथ इंजॉय करना चाहता था लेकिन वक्त का खेल। इस वजह से उसकी प्रेमिका मायूस हो गई उसे जरा सा भी अच्छा नहीं लग रहा था। परी ने उसे जाने को कहा। वह कुछ देर रेस्टुरेंट में ही रुकी।

यह शहर के नामी रेस्टुरेंट में से एक था। इंटरनेट पर इसके अच्छे रेटिंग्स और रिव्यू थे। दूसरे शब्दों में कहें तो यह रेस्टुरेंट अमीरों को पैसा खर्च करने का एक साधन था। बहुत सारे बड़े लोग अक्सर यहाँ आकर पैसा और वक्त दोनों ही बर्बाद किया करते थे। यहाँ पर अक्सर प्रेमी अपनी गर्लफ्रेंड को साथ लेकर आते थे। रेस्टुरेंट के इस छत के नीचे न जाने कितनी ही प्रेम कहानियां, बिज़नेस और कई अन्य किस्से लिखे गए थे।

परी ने एक ड्रिंक ऑर्डर किया।

जब तक ड्रिंक आता वह मोबाइल पर अपने विडियोज पर आए लाइक्स और कॉमेंट्स देखने लगी। इतने में वेटर ने ड्रिक सर्व किया। ड्रिंक को एंजॉय करते हुए वह कॉमेंट्स पढ़ती और अपने खराब हुए इस डेट के कारण हो रहे दुख को भूलने का प्रयास करती रही।

ड्रिंक खत्म करने के कुछ देर बाद बिल पे करके घर जाने के लिए लौटने लगी। तभी उसे कुछ अजीब सा होने लगा था। शरीर में अजीब सी हलचल। कुछ नशा सा। रह रह चक्कर आने सा महसूस होता। लगता कि चलते चलते अचानक से ही पैर के नीचे से जमीन गायब हो गया है। ऐसा पहले कभी अनुभव नहीं करी थी वो।

उसे लगा कि शायद बदलते मौसम की वजह से तबियत खराब हो गई है। सिर पर पहले भी तो गहरा चोट लगा था उसे। कमजोरी वजह हो सकती थी इस चक्कर की। खुद को नियंत्रित करते हुए कैसे भी करके वह रेस्टुरेंट से बाहर आई।

बहुत अजीब सा लग रहा था सबकुछ। ऐसा, जैसे बारिश हुई हो। अब भी हो रही है। बहुत तेज बारिश। लेकिन इनकी बूंदे उसे भींगा नहीं रही। सड़क पर पानी भर गया है पर वह बिल्कुल भी गीली नहीं हो रही। दिन की रंगत बिल्कुल ही अलग है। क्या वह सो गई है? और यह सब सपने में देख रही है? क्योंकि दिन में रौशनी कभी लाल होती तो कभी पीली—नीली। निर्जीव वस्तुओं में हलचल और बहुत ही विचित्र तरह की चीजें।

रेस्टुरेंट से बाहर निकल वह कुछ दूर पैदल ही जा रही थी। आगे चलकर ऑटो लेकर घर चली जायेगी। फिर सो जायेगी। नींद हर दर्द को ठीक कर देता है।

तभी उसे लगा कि कोई उसका पीछा कर रहा है। जब पीछे मुड़कर देखी तो कोई नहीं था। भ्रम ही होगा। सोच आगे बढ़ने लगी। लगभग आठ से दस कदम आगे बढ़ी होगी कि उसे फिर लगा कि एक मंहगी बीएमडब्ल्यू कार उसके गति की रफ्तार से उसके पीछे चल रही है। वह रुक गई। थोड़ी देर आँखे मूंदे रही। सिर घूम रहा था। जैसे उसने तगड़ा वाला नशा किया हो। आँखें बंद होने को बेकरार थी।

जब आँखें खोली और पीछे देखी तो सच में एक बीएमडब्ल्यू कार उसके बगल में खड़ी थी। वह कुछ समझती कि उसका दरवाजा खुला। एक शख्स बाहर आया। लेकिन वह कुछ स्पष्ट देख नहीं पा रही थी।

सब धुंधला धुंधला दिख रहा था। शरीर जैसे उसके नियंत्रण में ही नहीं था। क्या वह अपने पैरों पर खड़ी थी?

कार से उतर कर उसके पास आते उस शख़्स को गौर से देखने का प्रयास कर रही थी। लेकिन बस उसकी धुंधली तस्वीर दिखाई पड़ती। घने कोहरे में जैसे रंगबिरंगा चित्र गति कर रहा हो।

उस शख़्स ने परी को गोद में उठा लिया।

आखिर कौन उसे इस तरह गोद में उठा सकता है? गौरव? उसका प्रेमी और कौन— उसे लगा। उसे लगा कि गौरव ने उसके लिए कुछ स्पेशल प्लान किया है। अर्जेंट काम का उसका कोई बहाना है। शायद उसे उसकी बिगड़ती तबियत का आभास हो गया है। इसलिए वह गाड़ी ले आया।

ऐसा विचार आते ही वह उस शख़्स को कसकर पकड़ ली। इसे गौरव समझ खुद को सुरक्षित महसूस करने लगी। इतने में उसे कार के भीतर किया गया।

अंदर एक और आदमी था। अकेला। परी को उसके गोद में रख दिया गया था। परी अर्धमुर्छा अवस्था में थी। शायद उसे कोई ड्रग्स दिया गया था। जिसकी वजह से वह आधी होश में थी और आधी मूर्छा में।

जिसे वह गौरव समझ रही थी उसने उसे किसी आदमी के गोद में रख दिया था। वह डर गई। जान गई कि वह गौरव नहीं था बल्कि कोई और था। लेकिन वह चीजों को स्पष्ट नहीं देख सकती थी।

गाड़ी का दरवाजा बंद किया गया। वह बहुत प्रयास कर रही थी खुद पर संतुलन बनाने का। चीखने का। किसी को सहायता के लिए बुलाने का। लेकिन...

गाड़ी स्टार्ट हो गई। वह चलती हुई गाड़ी को महसूस कर रही थी।

अब हर बीतते घड़ी में उसकी धड़कने तेज होने लगी थी। न जाने यह अजनबी कौन था और कहाँ ले जा रहा था? क्यों ले जा रहा था? और अचानक से उसे क्या हो गया है?

तभी उसे अपने गालों पर किसी की उंगलियों का स्पर्श महसूस हुआ। गाड़ी में बैठा वह शख़्स शायद उसकी बिखरे बालों को व्यवस्थित कर रहा था। लेकिन उस इंसान की धुंधली छवि... और ये दुर्बलता...!!!

उसकी जुल्फों को संवारने के बाद शायद उसने उसकी तस्वीर खींची। मोबाइल जेब में रख उसकी ओर मुड़ा और उसकी गालों को चूम लिया। उसके कंधे पर ऐसे हाथ रखा जैसे कि वह उसकी अपनी हो और फिर उसे अपनी ओर खींच सीने में भर लिया। वह अपना हर संभव प्रयास कर रही थी लेकिन कुछ नहीं कर पा रही थी। न जाने यह कैसी दुर्बलता थी।

उसने महसूस किया कि वह इंसान उसके कंधों को सहला रहा है। फिर धीरे धीरे उसके वस्त्रों के साथ छेड़ छाड़ कर रहा है। उसका हर एक स्पर्श उसकी डर बढ़ाती जाती। पर हर प्रयास निष्फल हो जाता। लेकिन अब वह समझ चुकी थी कि उसके साथ क्या होने वाला था। वह समझ गई थी कि जो कुछ भी हो रहा है, सबकुछ षड्यंत्र था। और गाड़ी में बैठा यह शख़्स उसका बलात्कार करने वाला है।

गाड़ी रुकने का अनुभव। फिर धीरे धीरे उसके वस्त्रों को उतार दिया गया था। वह न चीख पा रही थी न ही खुद को बचाने का कोई संभव प्रयास ही कर पा रही थी। फिर वह शख्स उसे नोचने लगा था। वह उसके हर एक प्रहार को महसूस कर रही थी। उसका चेहरा ठीक उसके आँखों के सामने था लेकिन वह अपने बलात्कारी को देख ही नहीं पा रही थी।

फिर कब वह बेहोश हो गई पता ही नहीं चला।

कुछ देर बाद जब उसे होश आया वह रेस्टुरेंट के भीतर ही थी। उसी टेबल पर। जैसे कि वह गहरी नींद से जागी हो। लेकिन फिर भी सबकुछ अजीब सा लग रहा था। अभी जो कुछ भी हुआ था वह सब उसे याद था लेकिन अब उलझन इस बात की थी कि वह सपना था या हकीकत।

अभी कुछ देर पहले ही उसका बलात्कार हुआ था और अब वह उसी रेस्टुरेंट में उसी टेबल पर थी। ड्रिंक का ग्लास भी टेबल पर पड़ा था। वह कुछ समझ नहीं पा रही थी। उठी और भागते हुए बाहर गई। शायद उस बीएमडब्ल्यू कार को ढूंढ रही थी। लेकिन वहाँ कुछ भी नहीं था।

वह अब ही थोड़ा थोड़ा वैसा ही महसूस कर रही थी लेकिन अब उसे खुद पर नियंत्रण था। सिर अब भी घूम रहा था। बहुत देर तक बैचेन वह उस हादसे की गुत्थी सुलझाने का प्रयास करती रही लेकिन कुछ भी हाथ नहीं लगा। सिवाय इस बात की कि उसका बलात्कार हो चुका है।

लेकिन किसने किया उसका बलात्कार वह नहीं जानती थी। बचपन से ही बहादुरी से जीने वाली लड़की आज अपनी ही रक्षा करने में नाकाम हो गई थी। बस कुछ दर्द, सबकुछ लूट जाने का एहसास, इनके अलावा कुछ और नहीं बचा था उसके पास।

उसने गौरव को कॉल लगाया। लेकिन उसने कॉल डिस्कनेक्ट कर दिया। उधर से एक मैसेज किया। विल कॉल यू सुन।

अचानक से परी का ध्यान टाइम पर गया। गौरव को यहाँ से गए दो घंटे से ज्यादा हो गया था। भागते हुए वह अंदर गई। वेटर और मैनेजर ने उसे बताया कि ड्रिंक पीने के बाद वह सो गई थी। और अभी कुछ देर पहले ही जागी है।

उसे उनके बातों का विश्वास तो नहीं हो रहा था लेकिन क्या करती? घर को चली आई। घर आते ही बेहोश सी हो गई। उस ड्रग का असर अभी तक था। उसे फिर से गहरी नींद आ गई थी।

अब फिर से वह दृश्य उसके आँखों के सामने था। वही धुंधला तस्वीर। उसके बलात्कारी का। अचानक से वह उठ बैठी। वह उस शख़्स को दूर धकेल देना चाहती थी। लेकिन इस बार यह सपना था हकीकत नहीं।

उसके बिखरे बाल। वह अब भी उसके चंगुल में जकड़ी महसूस कर रही थी। लेकिन ऐसा दिखाया गया था कि उसके साथ कुछ भी नहीं हुआ है। वह उठी और आइने के पास गई। दर्द। यह दर्द उस वास्तविक का सबूत था जिसे बलात्कारी ने झुठलाने का प्रयास किया था। कुछ खरोचें। नाखूनों से दिए जख्म और...

आइने में उसे अपने शरीर पर कई निशान दिखे जिसका अर्थ था कि उसका बलात्कार किया गया है। उसे गुस्सा आने लगा था। उस बलात्कारी के सीने को चीर कलेजा निकाल लेती पर अफ़सोस उसके बारे में वह कुछ भी नहीं जानती थी।

शाम हो गया था। राघव भी घर लौट आया। उदास और बेचैन परी को देख वह कुछ समझ नहीं पा रहा था। उसने परी से वजह पूछा। परी ने वो सब राघव को बताया।

राघव ने विचार किया। समाज में एक बलात्कार पीड़ित लड़की की क्या वैल्यू है वह जानता था। कई तरह के प्रश्न। जिस बात को अभी सिर्फ दो लोग जानते हैं, न्याय पाने के चक्कर में सिर्फ बदनामी होगी। यह विचार भी डरावना था। और यह हादसा भी जो अभी हुआ था।

बहुत समय के बाद अब जब हालात सुधरने लगा था किस्मत ने एक बार फिर उसके हिस्से में कष्ट लिख दिया। क्या करे और क्या न करें। राघव ने शांत ही रहने का निर्णय लिया। इसे बस एक बुरा सपना समझ भूल जाओ और अपने सामान्य जीवन में उसी तरह आनंद और खुशी से रहो जैसे कि कुछ हुआ ही न हो।

परी मानसिक तनाव को झेल तो नहीं पा रही थी लेकिन पिता की बात मान ली। किसी को कोई खबर नहीं होगा कि उसका बलात्कार हुआ है। हां, वह शोषित हुई है। लेकिन किसको फर्क पड़ता है। अब वह एक साधारण सी गाँव की एक लड़की नहीं रही थी बल्कि अब उसके लाखों फॉलोअर्स थें। वह सोसल मीडिया इंफुलेंसर थी, जिससे प्रेरणा ले कई लोग प्रभावित जीवन जीते थें।

उस रात वह बिल्कुल ही सो नहीं सकी थी। वही चित्र आँख बंद होते ही सामने आ जाती। वही विवशता और वही दुर्बलता।

कल जब गौरव से मिलेगी तो इस हादसे को भूल जायेगी।

जैसे तैसे रात कट गई। लेकिन अगली सुबह और भी दुर्भाग्य साथ ले आई थी। हर दिन की तरह तैयार हो वह ऑफिस गई। लेकिन न जाने क्यों आज उसे लोग हीन भावना से देख रहें थे। लोगों के अजीब से चेहरे इस बात का भय बढ़ा रहा था कि कहीं इन्हे यह पता तो नहीं लग गया कि परी का बलात्कार हुआ है?

जब ऑफिस पहुँची तो उसे HR ने ऑफिस में बुलाया। उसने कहा कि अब उसे जॉब पर आने की कोई आवश्यकता नहीं है। अचानक से यह सब क्या होने लगा था। कल एक अजनबी ने रेप किया और आज बेवजह ही जॉब से निकाला जा रहा है। जब वह वापस लौटी तो बिल्कुल ही हैरान थी। किसी भी तरह से उसका मन नहीं लग रहा था। अचानक से लोगों का व्यवहार बदल गया था उसके प्रति।

जब उसने गौरव को कॉल किया तो उसने कॉल नहीं उठाया। यही लड़का जो परी के फोन का रिंग बजते ही झट से कॉल रिसीव करता और उत्सुकता से बातें किया करता आज कई बार फोन कर देने के बाद भी जवाब नहीं दे रहा था। अंत में परी ने उसे टेक्स्ट किया।

"फोन क्यू नहीं उठा रहे हो गौरव?" और उसके उत्तर का इंतजार करने लगी।

लेकिन अब तक सबकुछ छीन लिया गया था उससे और उसे कुछ पता ही नहीं था। उस बलात्कारी ने न सिर्फ उसका बलात्कार किया था बल्कि उसका एमएमएस बनाकर इंटरनेट पर डाल दिया था। गौरव के पास और उसके कंपनी के लोगों के पास भी भेज दिया गया था। न जाने उस शख्स की परी से क्या दुश्मनी थी।

राघव जिस बात को छुपाना चाहता था, उसी रात वह बात आग की तरह पूरे देश में फैल गया था। परी का वह अच्छा किरदार अब बुरा बन गया था।

"मेरा बलात्कार किया गया। फिर विडियो बनाकर इसे हर किसी के पास भेज दिया गया था। उसके बाद से मुझे हर तरफ से सिर्फ नफ़रत ही नफरत मिला। जैसे मैने ही अपराध किया हो। एक पीड़ित लड़की को किस नजरिए से देखता है समाज... आप तो अच्छी तरह से जानते है।" परी टकटकी लगाकर जज साहब को देखते रही। उसकी भावशून्य आँखें। "फिर मुझे कई नाम दिए गए। कस्बीन, कुलटा, वैश्या... जिस इंसान से मैं प्यार करती थी उसने भी मेरा तिरस्कार यह कह कर कर दिया कि मैं एक रण्डी हूं। महज कुछ पैसों के खातिर लोगों के सामने अपना जिस्म परोसती हूं। फिर तिरस्कार ही तिरस्कार मिलने लगा मुझे। मोहल्ले के लोगों ने पहले हमें उस घर से भागने को विवश किया। न कहीं कोई काम मिलता न रहने को ठिकाना।"

राघव और परी चाहकर भी अपनी बेगुनाही साबित नहीं कर पा रहें थे। एक बार फिर बिना कसूर के दोनों बेघर हो गए थे। दिल्ली की सड़कों पर एक रात बिताई। राघव को भी काम मिलना बंद हो गया था। अब कोई अपना मकान किराए पर देने को तैयार नहीं था।

परी एक बार फिर से सबकुछ खो चुकी थी। घर, जॉब, प्यार और सबकुछ। समाज का तिरस्कार और वह दृश्य..!!! अब वह बिल्कुल ही टूट चुकी थी। जो कुछ भी हो रहा था। असहनीय था।

"फिर मैने एक फैसला लिया। आत्महत्या करने का।" परी बोली।

आत्महत्या करने के उद्देश्य से राघव और परी रेलवे ट्रैक पर आँखें बंद किए खड़े थे। क्योंकि अब दोनों के पास जीने की कोई उम्मीद ही नहीं बची थी। रेल पूरी रफ्तार से दोनों की ओर बढ़ रही थी। राघव के अंतर्मन में भी बहुत द्वंद चल रहा था। लेकिन इन युद्धों का अंत जल्दी ही उसके मृत्यु के साथ ही हो जायेगा।

"मैं बचपन से ही बहादुरी से जीती आई थी। लेकिन उस परिस्थिति को बिल्कुल भी झेल नहीं पा रही थी। आत्महत्या शायद बेहतर निर्णय था। लेकिन मुझमें इतनी बहादुरी नहीं थी कि खुद के ही प्राण ले सकूं। रेलगाड़ी जब बिल्कुल नजदीक आने वाला था मैं पिता जी को ट्रैक से बाहर खींचने लगी। लेकिन निर्णय बदलने में मैने कुछ ज्यादा ही देर कर दिया था। उन्होंने मुझे धक्का दे दूर फेंक दिया और रफ्तार में भागती गाड़ी उनके चीथड़े कर गया। उनके शरीर के कई हिस्से मेरे सामने बिखरे पड़े थे। खून ही खून। मैं अब अपने पिता को भी खो चुकी थी। उनके शरीर के चीथड़े देख मैं बेहोश हो गई।"
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Re: स्वाँग

Post by koushal »

अध्याय तेरह

रेल की पटरियों पर से पुलिस और अन्य लोगों का घेरा था। मीडिया और पत्रकारों की भीड़ सुर्ख़ियों में इस घटना को समेत रहें थे। किसी ने कुछ कहा तो किसी ने कुछ। सभी के अपने अपने तर्क थे कि राघव ने आत्महत्या क्यों किया। बेहोश परी को उपचार के लिए अस्पताल भेजा गया था। और राघव की लाश को पोस्टमार्टम के लिए। लेकिन यह सिर्फ एक खबर बन कर ही रह गया था।

बाप और बेटी, दोनों रेल के नीचे कट कर आत्महत्या करने आए थे। अंत समय में पिता ने बेटी को धक्का दे दिया और उसकी जान बचा ली। लेकिन रफ्तार में भागती रेल उसके शरीर के चिथड़े कर गया।

अखबारों में ऐसी ही सुर्खियां छपी थी उस रोज।

परी को जब होश आया वह हादसा फिर उसके नजरों के सामने चित्रित होने लगा था। शुरू से अंत तक का। अब तक उसने सबकुछ खो दिया था। माँ—पिता, दादा–दादी, बहन, दोस्त, घर, प्रेमी, जॉब और इज्ज़त।

"सबकुछ खो देने के बाद जब आप इस दुनियां में बिल्कुल अकेले रह जाते तो फिर जीने की उम्मीद ख़त्म हो जाती है। मैने और पिता जी ने जीने की उम्मीद छोड़ आत्महत्या करना चाहा लेकिन मृत्यु अभी मुझे गले बिल्कुल नहीं लगाना चाहता था। अब तो पिता का साया भी सर से उठ गया था। जब एक स्त्री बेघर होती है, समाज में कलंकित होती है तब उसके पास एक ही स्थान होता है आश्रय लेने के लिए। समाज से दूर, लेकिन समाज का ही एक अंग।" परी बोलती रही।

अब परी के जीवन में खलनायक की एंट्री हो गई थी। उस खलनायक ने इसकी जिंदगी पूरी तरह से तबाह कर दिया था। तो अब क्या?

अब प्रतिशोध। अब परी आगे की कहानी में प्रतिशोध लिखने वाली थी। लेकिन किससे लेती प्रतिशोध वह? न उसे अपने बलात्कारी का पता था और न ही वह इस समाज में उसे उलाहना दे कर पुकारने वाले लोगों से लड़ने की ही हिम्मत थी।

अस्पताल से छूटने के बाद उसके कदम वैश्या की बाजारों के ओर चल पड़े। यह बाजार जहाँ दो वक्त की रोटी के लिए जिस्म का व्यापार किया जाता था।

"तो क्या तुम जिस्म का व्यापार करने लगी थी?" वकील साहब ने प्रश्न किया।

"नहीं। लेकिन जिस्म का व्यापार करने वाली उन औरतों के साथ उनके मोहल्ले में रहने लगी।" परी ने उत्तर दिया।

परी ने निर्णय कर लिया था अब प्रतिशोध लेने की। भले ही वह अपने बलात्कारी को नहीं पहचानती थी लेकिन बलात्कार करने वाला हर दरिंदा अब उसका दुश्मन था।

"आपको याद है एक तारीख? जून 2018 का?" परी वकील साहब से पूछी।

जून 2018 की उस सुबह को दिल्ली के एक हाई सोसाइटी एरिया में, एक बिल्डिंग के एक कमरे में एक शख्स का शव मिला था। खून से सराबोर कमरे की जमीन और दीवारों पर छींटें। वह बिस्तर पर अर्धनग्न अवस्था में मृत पड़ा था। उसकी गर्दन कटकर बिल्कुल ही अलग कर दिया गया था।

पुलिस की भीड़ यहाँ भी उमड़ी थी। इस हत्या की गुत्थी को सुलझाने के लिए। यहाँ भी मीडिया और पत्रकारों की कैमरे की चमक चकाचौंध थी।

यह खबर सुर्खियों में था कि बिजनेसमैन रौनीत सिंह के बेटे का बड़ी ही बेरहमी से कत्ल कर दिया गया है। कातिल उसका गर्दन काट अपने साथ ले गया है। अभी जांच की जा रही है। पुलिस का दावा है कि अपराधी जल्दी ही पकड़ा जाएगा।

अपराधी पकड़ा जाएगा। अपराधी पकड़ा जाएगा।

"हां, उसका कटा सिर करोलबाग मेट्रो स्टेशन के पास लटका मिला था।" वकील साहब बोले।

परी मुस्कुराई।

"उसके कत्ल के साथ ही मेरी इंतकाम की कहानी की शुरुआत हुई।"

उस कुरूप लड़की की बात सुन सभी अचंभे में पड़ गए। क्योंकि अभी डेढ़ साल बाद तक भी इस गुत्थी को सुलझाया नहीं गया था। उसका कातिल अब भी पुलिस द्वारा ढूंढा जा रहा था। यह लड़की अपने केश को पेंचीदा बनाती जा रही थी। उसका मकसद क्या था कोई नहीं जानता था।

"वह सिर्फ एक कत्ल नहीं था बल्कि उस कत्ल के साथ ही न्याय और मेरी प्रतिशोध की कहानी शुरू हुई थी। वह एक बिजनेस मैन का बेटा था। अमीर बाप की बिगड़ी औलाद। एक रोज नशे में धुत होकर उसने एक 15 वर्ष की लड़की का बलात्कार किया था। वह लड़की न्याय चाहती थी। लेकिन पैसों की ताकत के सामने कौन जीत सकता था। अंत में उसने भी वही किया था जो मैं करना चाहती थी। आत्महत्या। फिर मैने निर्णय लिया। उस रात मैं ही उसके घर गई थी खूनी खेल खेलने। उसकी खून ने अपनी प्रतिशोध की कहानी और न्याय लिखने।"

परी ने बड़ी ही बेरहमी से उस बलात्कारी का गर्दन रेत दिया था। खून की फव्वारे उसके गर्दन से निकलने लगे थे। दोनों के बीच हाथापाई भी हुई थी लेकिन परी अपने मकसद में कामयाब हुई थी। वह तड़पते हुए फर्श पर गिर था। खून उसके जिस्म से ऐसे बहे जा रहा था जैसे फूटे बर्तन से पानी। परी उसके सीने पर बैठ गई थी।

क्रोध से लाल उसकी आँखें। बलात्कार करने वाले उस दरिंदे में उसे उसी के बलात्कारी की धुंधली छवि दिखाई पड़ने लगा। एक हाथ से उसके बाल दबोची और दूसरे से चाकू कसकर पकड़ी। फिर धीरे धीरे उसका गला काटती रही। वह तड़पता रहा। मरता रहा। और अंततः उसने उसका गर्दन काट बिल्कुल अलग कर लिया।

परी, खून से लिपटी। खड़ी हुई। जुल्फों को संवारी। उंगलियों में लगे खून बालों में और गालों में लग गए थे। उसके गर्दन को एक थैले में रखी और खिड़की के रास्ते से फरार हो गई।

"तुम कह रही हो कि वह कत्ल तुमने किया है.!!!" वकील साहब चौंकते हुए बोलें।

"सिर्फ उसी का नहीं बल्कि उसके जैसे बीस बलात्कारियों का कत्ल किया है मैंने। बीस।" वह बोली।

परी निकल पड़ी थी अपनी कहानी के खलनायक की तलाश में। रास्ता उस तक पहुँचने क्या था नहीं जानती थी लेकिन एक दिन वह उसे जरूर ढूंढ लेगी उसे विश्वास था।

दिल्ली शहर में मौत का तांडव शुरू हो गया था। आए दिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़ और बलात्कार जैसे न्यूज आते रहते थे। बलात्कारी न्यायालय के कटघरे में खड़े तो होते लेकिन उन्हें दंडित नहीं किया जाता। महीनों तक न जाने कैसी बहस होती रहती। पीड़ित बस तारीख पर कोर्ट में हाजरी लगाते रहता।

तब परी ने एक खूनी खेल शुरू किया। मौत का खेल। शहर के बलात्कारियों का बेरहमी से हत्या करती। और उसके शव के पास खून से लिख देती।

"मैं बलात्कारी हूं और यही डिजर्व करता हूं।"
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