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Horror वो कौन थी?

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adeswal
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Horror वो कौन थी?

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Horror वो कौन थी?


" अभी कितनी दूर घर हैं पापा । कब से हम चले ही जा रहे हैं। " छः साल की बच्ची नित्या बड़ी मासूमियत से अपने पापा से पूछ रही थी। रात के 11 बज रहे थे और नित्या अपने पापा मम्मी और बड़े भाई शुभ के साथ एक शादी के फंक्शन से वापस लौट रहे थी। एक तो फंक्शन में खेल खेल कर थक गयी थी और वापसी में इतना लंबा सफर करकर वो थक गयी थी और बोर होने लगी थी।





" बस बेटा जल्दी ही पहुँच जायेंगे । देखो भैया सो गया है, आप भी सो जाओ। घर पहुँचते ही जगा देंगे।"





"पापा मुझे नींद नही आ रही हैं तो बताइये मैं कैसे सो जाऊँ। भैया तो वैसे भी सोअक्कड़ हैं जब देखो सोता रहता है। "





" फिर मेरी गुड़िया क्या करेगी । " नित्या को अपनी गोदी में बैठाते हुए पापा बोले।





" पापा मुझे बस आपकी गोदी में ही बैठना हैं। " पापा की गोदी


में नित्या बैठते हुए बोली।





" चलो अच्छा मैं अपनी गुड़िया को सुला देता हूँ अच्छे से नींद आ जायेगी ।" कहते हुए पापा नित्या के बालों को सहलाते हुए उसे सुलाने की कोशिश करते हैं लेकिन तभी कार एक जोरदार ब्रेक के साथ रुक जाती है और सभी सोये हुए लोगो की नींद खुल जाती है।





" क्या हुआ ड्राइवर , ऐसे एकदम से गाड़ी क्यों रोक गयी।"





"साहब सामने एक बहुत बड़ा पेड़ अचानक से गिर पड़ा ।भगवान का सुक्र हैं बच गए। मैं जाकर पेड़ को किनारे कर देता हूँ फिर चलता हूँ । कहते हुए ड्राइवर कार का दरवाजा खोल बाहर निकलने ही वाला होता हैं कि नित्या की आवाज से रुक जाता है।





"पापा वो देखिये वहाँ कोई हैं । " नित्या के कहने पर सभी नित्या की बताई जगह पर देखने लगते है।





"ये तो कोई औरत लग रही , लेकिन इतनी रात में यहाँ सुनसान जगह पर । ड्राइवर देखो जाकर कौन हैं शायद किसी को हमारी जरुरत हो।"





"रुक जाइये नितिन साहब , अभी किसी का बाहर जाना ठीक नही हैं। " कार में आगे की सीट पर बैठे हुए पंडित जी ने कहा।





"क्यों क्या हुआ पंडित जी ।"





"मैं बाद में बताता हूँ , ड्राइवर अभी तुम धीऱे धीऱे गाड़ी को रिवर्स में लेकर चलो।"





"लेकिन 5 Full stop"


"मैने कहा ना अभी मैं आपको बताता हूँ , जैसा कहा हैं अभी वो करो।"





"ठीक है ड्राइवर जैसा पंडित जी कह रहे वैसा करो। " कहते हुए ड्राइवर धीऱे धीऱे गाड़ी को रिवर्स लेने लगता है।





"पापा आप तो कहते हैं कि हमें सभी की मदद करनी चाहिए फिर आप उन आंटी को इतनी रात में छोड़ के कैसे जा रहे हैं?"





"नितिन साहब आप बच्ची को सुला दीजिये और सब लोग उस ओर मत देखिये । बिना आवाज किये सब लोग चुप चाप बैठिए।"





"लेकिन पापा 4 Full stop"


"गुड़िया अभी आप मम्मी के पास जाओ। " नितिन नित्या को अपनी पत्नी स्वाति को देते हुए कहते हैं और स्वाति नित्या को अपने आँचल से ढक लिया लेकिन कहते हैं ना बच्चो का मन बहुत ही उत्सुकता से भरा हुआ होता हैं उन्हें जो मना किया जाता है वो उसी काम को करने को तत्पर रहते है और नित्या भी अभी छोटी सी बच्ची हैं और उसके मन में उस औरत को लेकर हजारो सवाल आ रहे थे कि सब उसकी मदद करने की जगह उसे ऐसे रात में छोड़कर जा रहे थे इसलिए वो छुप छुप के उसी को देख रही थी।





धीऱे धीऱे गाड़ी रिवर्स गेयर में जा रही थी । जैसे जैसे कार बैक होती वो साया नुमा औरत उसकी तरफ बढ़ने लगती जैसे ही गाड़ी रुक जाती वो भी रुक जाती और जैसे ही गाड़ी चलती वो साया भी उसकी ओर बढ़ने लगता। पंडित जी ने धीऱे धीऱे उसे बैक करते हुए चलने को कहा लेकिन एक जगह पीछे भी रोड


ब्लॉक थी तो ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। पंडित जी के कहने पर सभी लोग आँखे बंद करके गाड़ी में नीचे की तरफ दुबक गये और मन ही मन भगवान का नाम लेने लगे। नित्या जो कि अभी भी माँ के आँचल से चुपके चुपके बाहर बस उसी धुंधली सी दिखती औरत को एकटक देखे जा रही थी । अचानक से वो सीसे के करीब आ जाती है और उसकी उलझे हुए खुले बालों से झांकते हुई लाल लाल चमकती बड़ी बड़ी डरावनी आँखे देख मासूम सी नित्या का दिल जोरो से धड़कने लगता हैं और वो अपने को माँ के आँचल में छुपा लेती हैं लेकिन कुछ ही सेकंड में वो फिर से उसे देखने के लिए धीऱे धीऱे अपने सर को बाहर निकलती हैं और फिर से सामने उसे वही आँखे दिखती हैं लेकिन इस बार वो उन आँखों को देखकर डरती नही हैं बल्कि उसे बिना पलक झुकाये देखते जाती हैं , ऐसा लग रहा था जैसे किसी सम्मोहन शक्ति ने उसे वैसे ही स्थिर कर दिया हो। दोनों आँखो में एक दूसरे का अक्स साफ साफ नजर आने लगता है । उस औरत की दूर जाती धुंधली आकृति को अब भी नित्या घूरे ही जा रही थी। नित्या की माँ को एहसास होते ही वो उसे फिर से छुपा लेती है।





" नितिन साहब , हमें अभी इस रास्ते पर आगे नही बढ़ना चाहिए । रात के २ बज रहे हैं बस और २ घंटे की बात हैं , मेरा मानना हैं कि यही पास में कही रुक कर सुबह होने का इंतजार करना चाहिए। "





"लेकिन पंडित जी इतनी रात में यहाँ कहाँ और किस जगह रुकेंगे और फिर ये बच्चे भी साथ हैं।"





"साहब यहाँ पास में एक ढाबा हैं वहाँ हम लोग कुछ समय के लिए रुक सकते हैं ।" ड्राइवर ने उनसे कहा।








"लेकिन इतनी रात में कौन सा खुला होगा।"





"साहब वो ढाबा हाइवे पर हैं इसलिए पूरी रात खुला रहता हैं।





"ठीक हैं फिर वही चलते हैं। " कहते हुए ड्राइवर गाड़ी को बैक करके एक दूसरे रास्ते से 10 मिनट बाद ही उस ढाबे पर पहुँच गये। वहाँ जाकर सभी ढाबे पर बैठकर चाय नाश्ते का आर्डर कर दिया और आपस में बातें करने लगे। पंडित जी नितिन को लेकर दूसरी सीट पर बैठ गए।





"पंडित जी वो कौन थी जो हमें उस अँधेरे में दिखी थी । कुछ अजीब सी लग रही थी और वो ऐसा बर्ताव क्यों कर रही थी।"





"नितिन साहब मैने आपको सबके सामने बताना सही नही समझा क्योंकि बच्चे थे साथ में , वो डर जाते।"





"जैसे ही अचानक से पेड़ गिरा और ड्राइवर ने गाड़ी रोकी तभी मुझे वहाँ कुछ असामान्य सा महसूस हुआ और जब आपकी बेटी ने उस औरत की तरफ इशारा किया तो उसे देखते ही मैं समझ गया ये कोई इंसान नही हैं बल्कि एक आत्मा हैं और इसीलिए मैने आप सभी को वहाँ से तुरंत वापस लौटने को कहा।"





"क्या पंडित जी आप भी आज के समय में ऐसी बाते कर रहे हैं। आज के ज़माने में ऐसा कुछ नही होता। आत्मा वात्मा कुछ नही होता । पुराने लोगो द्वारा फैलाया गया ये सब अन्धविश्वास हैं । "





"क्यों आपने देखा नही कि वो धुंधली सी आकृति हमारी तरफ बढ़ रही थी । "








"हो सकता हैं उसे मदद की जरुरत हो और वो हमसे सहायता चाहती हो।"





"लग रहा आपने उसके हाव भाव पर गौर नही किया , उसके बिखरे हवा में लहराते बाल और तुरंत ही वहाँ के वातावरण में हुआ बदलाव सब उसे रहस्मयी बना रहा था। मैने कुछ महसूस किया तभी आप सभी को वहाँ से वापस आने को कहा था ।"
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Re: Thriller वो कौन थी?

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"आप जानते हैं पंडित जी , मैं इन सब को नही मानता । आप हमारे पारिवारिक गुरु हैं और आपने हमेशा ही हमारे हित की बात की हैं इसलिए आपकी किसी बात को टाल नही सकता।"





"अच्छा ये बताइये आप ईश्वर पर विश्वाश करते हैं ।"





"हा बहुत विश्वाश हैं मुझे अपने आराध्य पर। मैं महाकाल का भक्त हूँ और इन सब को नही मानता। "





"पंडित जी ये नही मानते लेकिन मैं मानती हूँ और मुझे पूरा यकीन हैं कि वहाँ कोई था । नितिन की पत्नी ने पंडित जी की बात सुनते हुए वहाँ आकर कहा।





" क्या यार तुम भी इन सब बातो में , कितनी बार समझाया हैं लेकिन फिर भी । " नितिन ने अपनी पत्नी को समझाते हुए कहा।





"मुझे पता हैं एक सामान्य इंसान के लिए इन बातों पर यकीन करना मुश्किल हैं और वैसे भी आप डॉक्टर हैं तो आपको यकीन करना बहुत ही मुश्किल हैं। आप मुझे ये बताइये कि जब आप किसी का ऑपरेशन करते हैं तो उसे ऑक्सीजन क्यों


लगाते हैं ?





"क्यों उसे सही मात्रा में हवा नही मिलती या फिर साँस लेने में तकलीफ होती हैं उसे तभी लगाते है।"





"तो क्या आपने उस हवा को देखा है?"


"अब हवा को कोई कैसे देख सकता हैं।"





ठीक , जिस प्रकार हम हवा को नही देख सकते और वो हमारे आसपास ही होती है तभी उसी प्रकार ये भूत प्रेत भी हवा की तरह ही होते हैं जो हमारे आसपास ही होते हैं बस दिखाई नही देते और जैसा की आपने कहा आप महाकाल के भक्त हैं तो आपको ये भी पता होगा कि भूत पिशाच सभी उनके साथ ही रहते हैं। जिस तरह से ईश्वर की सकारात्मक ऊर्जा हमारे आसपास विद्यमान हैं उसी प्रकार नकारात्मक ऊर्जा भी हमारे चारों ओर हैं । जैसे हमें ईश्वर दिखाई नही देता बस कुछ ना कुछ एहसास होता है उसके होने का उसी तरह ये भूत प्रेत भी हमारे आसपास होते है जो कि दिखाई नही देते। आम आदमी को ये ऊर्जा महसूस नही होती लेकिन जिसे तंत्र मंत्र की जानकारी होती हैं वो इस नकारात्मक ऊर्जा को भी महसूस कर लेते हैं और वहाँ मैने उसी ऊर्जा को महसूस किया था तभी वहाँ से लौटने को कहा।"





"आप की सभी बातें सही हैं पंडित जी लेकिन फिर भी मेरा मन9 Full stopये सब मानने को तैयार नही हो रहा।"





"कोई बात नही होता है ऐसा सबके साथ । जिस दिन तुम्हारी या किसी अपने की जिंदगी में कुछ भी ऐसा घटित होगा तो तुम्हे मेरी बात पर यकीन होगा। मेरे लिए इतना ही काफी हैं कि तुम मेरी किसी बात को कभी नही काटते ।"








"माफ़ कीजियेगा साहब लेकिन मैं काफी देर से आपकी बातें सुन रहा हूँ । " काफी देर से उनकी बातें सुन रहे एक वेटर ने चाय रखते हुए कहा।





"आप लोगो ने अच्छा किया जो आप लोग आगे नही गये वापस लौट आये । उस हाईवे के पार 12 बजे के बाद जो भी गया वो इस कभी वापस नही आया। "





"तुम ये कैसी बात कर रहे हो। हमें डराने की कोशिश कर रहे हो । " इससे पहले नितिन कुछ कहते पंडित जी ने उन्हें रोक दिया।





"नही साहब ये सच कह रहा हैं , उस जगह पर आये दिन हादसे रहते हैं । अभी एक हफ्ते पहले 2 लोग आये थे । उन्होंने हमारे ढाबे पर ही खाना खाया । रात के ग्यारह बज रहे थे और, वो आगे जाने लगे । हमने मना भी किया कि साहब इस समय आप आगे मत जाइए लेकिन उन्होंने हमारी बात नही मानी और अपनी बाइक पर सवार होकर निकल गए । सुबह अख़बार में उनदोनो की खौफनाक मौत की खबर देखकर मेरा हृदय दहल गया । साहब बहुत ही भयानक मौत मिली थी उन दोनों को। भगवान ऐसी मौत किसी को ना दे।"





"ऐसा क्या हैं आखिर उस जगह पर जो कि 6 Full stop"





"ज्यादा तो नही पता साहब लेकिन आसपास के गांव वाले बताते हैं कोई दो साल पहले एक फैमिली वाले जा रहे थे , उनके साथ भी उनके 2 बच्चे थे। एक ट्रक के जोर से टक्कर मारने पर उनकी कार पलट गई और एक खायी में जाकर गिर गयी । कार में बैठे सभी लोगो की मौत हो गयी । कहते हैं उन्ही सब लोगो की आत्मा आज भी वही भटकती हैं और रात में आने


जाने वालों से अपनी मौत का बदला लेती है। कुछ लोग तो कहते हैं कि उस हादसे में बस्ची बच गयी थी और उसकी माँ आज भी उसे वही पर खोजती हैं।"





"तुम सब इन बातों पर कैसे भरोशा कर लेते हो। कोई कुछ भी कह देता और तुम लोग उनकी बातों पर भरोसा कर लेते हो।"





"नही साहब ये सच हैं , बहुत से लोगो ने रात में वहाँ कुछ लोगो को महसूस किया हैं। कुछ लोगो ने तो वहाँ रात में 12 बजे के बाद किसी औरत की परछाई को इधर उधर टहलते देखा है। कुछ लोगो ने ये तक कहा कि उस औरत की लाल लाल आँखे हैं और जो भी उसकी आँखों में देख लेता है उसे वो आत्मा अपने वश में कर लेती हैं। "





" मुझे नही पता कि आप लोग जो कह रहे हो उसमे कितनी सच्चाई हैं लेकिन वहाँ एक औरत को तो मैंने भी देखा है और हमें सुबह होने तक यही रुकना होगा।





" साहब आप लोग फैमिली वाले हो और साथ में बच्चे भी हैं , यहाँ एक छोटा सा कमरा हैं आप चाहे तो वहाँ आराम कर सकते हैं। "





"नही हमें जरुरत नही हैं ।" कहते हुए नितिन ने बात टालनी चाही लेकिन पंडित जी ने उसे टोकते हुए माँ और बच्चो को उस कमरे में रुकवा दिया। जैसे तैसे सुबह के चार बजे और सभी लोग घर के लिए रवाना हो गए।




















सुबह के 6 बजे पंडित जी को उनके घर छोड़ने के बाद नितिन अपने बीवी बच्चों के साथ घर पहुँचे , फंक्शन और सफर की थकान और पूरी रात जागने के कारण सभी सीधे ही बिस्तर पर जाकर पसर गये। वैसे भी रविवार का दिन होने के कारण ना तो नितिन को अस्पताल जाना था और ना ही बच्चों का स्कूल इसलिए निश्चिन्त होकर सो रहे थे। लगभग 11 बजे कुछ आवाज से नितिन की पत्नी स्वाति की नींद खुल गयी और वो इधर उधर देखने लगी । जब उसे कही कोई नही दिखा तो फिर से लेटने लगी लेकिन उसने देखा कि उसकी बेटी नित्या बेड पर नही थी। नित्या को आवाज लगाते हुए स्वाति उसे कमरे से बाहर निकल कर देखने लगी लेकिन जब उसे नित्या कही नही मिली तो वो बहुत घबरा गई और भागकर उसने अपने पति नितिन को जगाया। शोरगुल से शुभ की भी नींद खुल गयी । नितिन , स्वाति और शुभ तीनो मिलकर नित्या को खोजने लगते हैं। बहुत आवाज देने पर भी जब नित्या नही मिलती तो स्वाति बैठकर रोने लगती हैं तभी छत से कुछ अजीब सी आवाजें सुनकर सभी दौड़ कर छत पर भाग कर जाते हैं वहाँ नित्या को देखकर सभी हैरान हो जाते हैं।स्वाति तो रोने लगती है । नित्या छत की किनारे पर बनी रेलिंग पर खड़ी थी ऐसा लग रहा था जैसे वो वहाँ से कूदने जा रही हो।





" नित्या " जोर से कहते हुए नितिन नित्या की तरफ दौड़कर उसे पकड़ लेता हैं और उसे नीचे उतार कर लाता है। नित्या उसकी गोद में बेहोश हो जाती है। नितिन उसे कमरे में लाकर बेड पर लिटाता हैं और उसके चेहरे पर पानी के छीटें मारता हैं।





दूसरी तरफ सोच सोच के ही सबका मन दहला जा रहा था कि अगर एक मिनट भी देर हो जाती तो आज पता नही क्या होता। आखिर नित्या वहाँ क्यों और कैसे पहुँच गयी। आजतक उसने ऐसा कभी नही किया फिर आज ही अचानक से क्यों ? " अंतर्मन में चल रहे अनगिनत सवालों का जवाब सिर्फ नित्या ही दे सकती थी जो शायद सदमे के कारण बेहोश हो गयी थी।





" गुड़िया सुबह सुबह तुम छत पर क्या कर रही थी ?" होश आने पर प्यार से पुचकारते हुए नितिन ने नित्या से पूछा ।





"छत पर मैं , लेकिन मैं तो छत पर गयी ही नही और आप ही तो अकेले जाने को मना करते हो फिर मैं कैसे जा सकती हूँ।"





"तो तुम अकेले छत पर क्यों गयी और रेलिंग पर चढ़कर क्या कर रही थी ? वो कोई खेलने की जगह हैं क्या ? " थोड़ा गुस्सा दिखाते हुए स्वाति बोली ।





"मम्मा आप गुस्सा क्यों कर रही हैं ? मैने कहा ना मैं नही गयी छत पर ।"





"इतनी भी मासूम बनने की जरुरत नही हैं । अगर तुम्हे कुछ हो


जाता तो 5 Full stopकभी सोचा हैं 4 Full stop" कहते हुए स्वाति ने नित्या को अपने सीने से लगा लिया । उसकी आँखों से अश्रु धारा बहने लगी ।





" मम्मा मैं सच कह रही हूँ , मैने कुछ नही किया आप प्लीज रोइये मत वर्ना मुझे भी रोना आ जायेगा। " अपनी माँ स्वाति के आंशू पोछते हुए नित्या बोली।





" फिर ये बताओ तुम बिना किसी से कहे छत पर क्यों गयी थी और रेलिंग पर क्यों खड़ी थी । अगर पापा नही पकड़ते तो तुम वहाँ से गिर जाती। तुन्हें पता हैं एक पल को तो मेरी और पापा की सांसे तो जैसे अटक सी गयी थी।"





"मम्मा , पापा मैं छत पर नही गयी । मैं तो यही पर सो रही थी । अभी तो आपने मुझे जगाया हैं तब तो मैं उठी हूँ।"





"अरे फिर से झूठ । हम सभी ने तुम्हे देखा था और लेकर नीचे लाये थे।"





"पापा आप मम्मा को समझाइए मैं झूठ नही बोल रही । मैं सच कह रही हूँ ।"





"देखो ना ये तो मानने को ही नही 7 Full stop" इससे पहले स्वाति कुछ कहती नितिन ने इशारे से उसे रोक दिया।





"चलो अच्छा जाओ फ्रेश हो जाओ और नाश्ते के लिए रेडी होकर आओ। शुभ आप भी जाइये और रेडी होकर जल्दी से डाइनिंग टेबल पर आइये।"





"आप ने मुझे रोका क्यों , देख रहे थे ना नित्या झूठ पर झूठ


बोल रही थी। जैसे जैसे बड़ी हो रही है शैतान होती जा रही हैं। " दोनों बच्चों के कमरे से बाहर जाने पर स्वाति ने नितिन से कहा।





"स्वाति समझने की कोशिश करो। तुम्हे पता हैं हमारी नित्या कभी भी हमसे झूठ नही बोलती । हो सकता हैं वो नींद में ही उठकर गयी हो और उसे भी इस बारे में पता ना हो।"





"तो क्या हमारी नित्या को नींद में चलने की 7 Full stop'कहते कहते स्वाति रोने सी लगी।





"क्या स्वाति तुम भी , कुछ भी सोच कर परेशान हो जाती हो। मैने ये नही कहा कि उसे ये बीमारी हो गयी लेकिन हो सकता किसी वजह से ये हुआ हो । चलो अब नास्ता लगवाओ । बच्चे भी आते होंगे। "
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Re: Thriller वो कौन थी?

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थोड़ी देर में ही डाइनिंग टेबल पर नास्ता लग गया और सभी आकार बैठ गए।


"मम्मा आज क्या बना हैं नाश्ते में ? "


"आज मैने अपनी गुड़िया के लिए उसकी सैंडविच बनाया है। चलो जल्दी से ये सैंडविच खाओ और मिल्क पियो। " नित्या की प्लेट में सैंडविच रखते हुए गिलास में मिल्क डालते हुए कहती हैं।





" मुझे आज सैंडविच नही खाने और मिल्क भी नही पीना। मुझे आलू के पराठे खाने हैं और चाय पीनी हैं। " नित्या के कहने पर सभी आश्चर्यचकित हो उसे देखने लगते हैं क्योंकि नित्या आज नाश्ते में जो खाना चाहती थी वो उसे बिलकुल भी पसंद नही था और आज एकाएक उसकी पसंद बदल गयी।





"गुड़िया अभी आप छोटी हैं ना , छोटे बच्चे चाय नही पीते ।


आपको पराठे खाने हैं तो खा लीजिये लेकिन साथ में मिल्क ले लीजिए।"





"मैने कहा ना मुझे चाय ही पीनी हैं तो मुझे बस वही पीना हैं। नही तो मैं कुछ भी नाश्ता नही करुँगी। " कहते हुए डाइनिंग टेबल पर हाथ पटक कर उठकर वो जाने लगती हैं तो नितिन उसे रोक लेता हैं। नित्या के इस तरह का व्यवहार देख थोड़ा सा अजीब लगा लेकिन सब चुप रहे।





"नित्या आज ये तुम कैसे सबसे बात कर रही हो। तुम तो ऐसे कभी किसी से बात नही करती थी। " नित्या के बड़े भाई शुभ ने नित्या से कहा।।





"ऐसे नाश्ते की मेज से उठकर नही जाते। मेरी गुड़िया का जो मन होगा वो वही करेगी। " कहते हुए नितिन उसे प्यार से कुर्सी पर बैठाता है ।





"स्वाति आज हमारी गुड़िया का जो मन हैं उसे नाश्ते में वही दो।"





"आप भी ऐसे इसकी हर जिद मानेंगे तो ये बिगड़ जायेगी।"





"नही स्वाति ऐसा नही हैं लेकिन अभी वो बच्ची हैं अभी उसके खाने पीने पर ज्यादा जोर मत दो । कभी कभी उसकी पसंद का भी ध्यान रखो। वैसे भी आज पहली बार उसने खाने में जिद की हैं वर्ना कभी कुछ नही कहती। "





"ठीक हैं बाबा पता हैं वो आपकी लाडली हैं उसके बारे में कुछ भी नही सुन सकते। "


सभी लोग नास्ता करने के बाद अपने अपने काम में लग गए ।


पूरा दिन कब बीत गया पता ही नही चला।





"शुभ और नित्या कल आप दोनों का स्कूल हैं ना । जल्दी से डिनर फिनिश कीजिए और जाकर सो जाइये। " माँ के कहने पर शुभ और नित्या अपने कमरे में जाकर सो गए और नितिन अपने कमरे में । घर के सारे काम निपटाने के बाद स्वाति पहले अपने बच्चो के कमरे में गयी , उन्हें चादर उढ़ाया और फिर दरवाजे को धीऱे से बंद कर अपने कमरे में आ कर लेट गयी।





"मम्मा मम्मा दरवाजा खोलिए। " शुभ के दरवाजा पीटने से स्वाति और नितिन हड़बड़ा कर उठ गए और दरवाजा खोला तो नितिन को परेशान देख चिंतित हो गए।





"क्या हुआ बेटा , इतना परेशान क्यों हो। क्या हो गया ?"


"मम्मा , पापा वो नित्या 4 Full stop"


"क्या हुआ नित्या को ?" परेशान होते हुए स्वाति बोली।





"मम्मा वो नित्या 5 Full stopपता नही 4 Full stop" वो कमरे की तरफ इशारा करते हुए चलने को कहा। स्वाति और नितिन लगभग दौड़ते हुए नित्या के पास गए। नित्या ने पूरे कमरे के सामान को इधर उधर बिखेर दिया था और हँस रही थी।





" नित्या नित्या , ये सब क्या कर रही हो। कमरे को कैसे तहस नहस कर दिया है।"


"मैने तो कुछ नही किया किया मम्मा , मैं तो बस खेल रही थी। भैया से कहा तो भैया ने मना कर दिया तो मैं अकेले ही खेलने लगी ।"





" रात के 3 बज रहे हैं और ये कोई खेलने का समय हैं और वो भी इस तरह , सारे कमरे का सामान, इधर उधर फैला कर कौन


सा खेल खेला जाता हैं। " थोड़ा गुस्सा करते हुए स्वाति बोली।





" रुको मैं उससे बात करता हूँ । " कहते हुए नितिन नित्या के पास जाकर उसे सर पर हाथ फेरते समझाते हुए कहने लगते हैं लेकिन नित्या तुरंत ही वहाँ से हटकर बेड पर जाकर लेट जाती हैं।





" मुझे नींद आ रही हैं , अभी मुझे किसी से कोई बात नही करनी हैं। " कहते हुए नित्या चादर से अपने को ढककर लेट जाती हैं। शुभ , नितिन और स्वाति नित्या के इस अप्रत्याशित व्यव्हार से आहत हो जाते हैं। उन्हें समझ नही आता कि आखिर नित्या को हो क्या गया हैं । वो ऐसा कैसे व्यव्हार कर रही हैं।





"बेटा शुभ आखिर हुआ क्या था जो नित्या ऐसा करने लगी थी। "





"पता नही पापा , कुछ आवाज से मेरी नींद खुल गयी तो देखा नित्या बेड के किनारे पर पैर लटकाये बैठी हिल रही थी। मेरे पूछने पर भी उसने कोई जवाब नही दिया तो मैं उठकर उसके पास गया और पूछा कि क्या हुआ नित्या ऐसे उठकर क्यों बैठी हो तो मेरा हाथ छिटक कर बिना कुछ बोले सामान इधर उधर फेकने लगी। मैने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन जब उसने मेरी कोई बात नही सुनी तो मैं भाग कर आपके पास आया। "





"बेटा जाओ आप भी लेटो जाकर और नित्या पर नजर रखना अगर ऐसा कुछ करे तो बताना आकार मुझे। " कहते हुए नितिन और स्वाति अपने कमरे में आ गए । वो दोनों अपनी बेटी नित्या के बदले व्यव्हार को लेकर परेशान थे । उन्हें समझ ही नही आ रहा कि नित्या ऐसा व्यवहार क्यों कर रही हैं। कही उसे कोई


समस्या तो नही हो रही जो वो नही बता पा रही हो।





"नितिन पता नही हमारी बच्ची को क्या हो गया। अब से पहले कभी उसने ऐसा नही किया। " कहते हुए स्वाति रोने लगी।





"परेशान मत हो स्वाति , हमारी बच्ची को कुछ नही हुआ । बस कभी-कभी बढ़ती उम्र के साथ बच्चो में कुछ बदलाव आने लगते हैं ।"





"तो क्या ऐसे बदलाव जो उसके व्यवहार ही बदल दे। मुझे लग रहा हैं उसके साथ कोई ना कोई समस्या जरूर हैं। आप मेरी बात को सिरिअस नही ले रहे हैं।"





"अच्छा ठीक हैं , मैं कल ही जाकर बच्चों के डॉक्टर से सलाह लेता हूँ जरुरत पड़ी तो नित्या को वहाँ दिखा भी देंगे। अब थोड़ी देर आराम कर लो सुबह होने ही वाली हैं।"





सुबह स्वाति ने उठकर बच्चों को जल्दी जल्दी जगाया और स्कूल के लिए तैयार करने लगी। बच्चों का टिफिन रखकर उन्हें स्कूल भेज दिया और नितिन के लिए नास्ता तैयार करने लगी।





"स्वाति बच्चे कहाँ हैं ? " नितिन अपने रूम से निकलते हुए बोले।


"बच्चे स्कूल के लिए चले गए ।"


"अरे बड़ी जल्दी .."


"जल्दी कहाँ 5 Full stopआप ने टाइम देखा हैं कितना हो गया ?"





"ओह्ह 8 बज रहे हैं , तुमने पहले जगाया क्यों नही ।"





"रात में आपकी भी नींद ख़राब हो गयी थी फिर आप सो गए


तो मैंने नही जगाया। चलो आप भी जल्दी से रेडी हो कर आइये नास्ता कर लीजिये नही तो अस्पताल के लिए लेट हो जायेंगे।"





"अच्छा नित्या कैसी हैं , फिर तो उसे कोई परेशानी नही हुई।"





"अभी सुबह जब वो सोकर उठी तो एक दम पहले जैसी ही थी । ब्रेड बटर खाया और मिल्क भी बिना कोई सवाल किए पिया और स्कूल के लिए चली गयी।"





"देखा मैने कहा था ना उसे कोई परेशानी नही हैं । हो सकता नींद ना पूरी होने और सफर की थकावट के कारण उसमे कुछ बदलाव आ गए हो। तुम फालतू में ही परेशान हो रही थी। "





"अच्छा अब जाइये रेडी होकर आइये और हा कल पिता जी की बरसी हैं तो मैने सब सामान नौकर को लाने को कह दिया हैं , बस आप पंडित जी से कल शाम 6 बजे आने को कह दीजियेगा ।





" अच्छा हुआ तुमने याद दिला दिया वरना मैं तो भूल ही गया था । हॉस्पिटल जाते वक्त उन्हें बोल दूँगा जिससे वो सारी तैयारी करके समय से आ जाय।"





" ओह्ह शिट " कलेंडर की तरफ देखते हुए नितिन बोला।





"क्या हुआ , अचानक से आपको । "





"अरे आज तो मेरा एक ऑपरेशन भी लगा हैं मुझे जल्दी जाना था और आज लेट भी हो गया। मैं जल्दी से रेडी होकर आता हूँ । " कहते हुए नितिन जल्दी से तैयार होने चला जाता हैं ।
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Re: Thriller वो कौन थी?

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बच्चों के स्कूल और नितिन के हॉस्पिटल जाने के बाद स्वाति घर के कामों में व्यस्त हो गयी । उसे पता ही नही चला कब दोपहर हो गयी और बच्चे आ गए । बच्चों को खाना दिया और उन्हें थोड़ी देर आराम करने के बाद उन्हें पढ़ाने लगी। शाम हो गयी और नितिन के भी आने का समय हो गया । सब काम निपटा के सब जल्दी ही सो गए। वो दिन रात सामान्य रूप से ही बीत गए और सुबह फिर सब अपने रोजमर्रा के कामों में बिजी हो गए।





शाम को स्वाति ने पूजा की पूरी तैयारी कर पंडित जी के आने का इंतजार करने लगी। पंडित जी अपने नियत समय पर पहुँच गये लेकिन जैसे ही उन्होंने घर के दरवाजे पर पैर रखा उनके कदम वही पर ठहर गये।

















" मम्मा मेरा होमवर्क हो गया हैं , मैं पार्क में खेलने जाऊँ। " नित्या स्वाति के पास आकर बोली।





"नही बेटा , तुम्हें पता हैं ना आज घर में पूजा हैं तो आज घर में ही रहना । पंडित जी आने ही वाले होंगे।"


"लेकिन मम्मा मुझे 7 Full stop"





"एक बार कहा ना मैने 5 Full stop अब अपने रूम में जाइये " स्वाति ने नित्या से थोड़ा गुस्से से कहा तो नित्या पैर पटकते हुए वहाँ से चली गयी और स्वाति पूजा की तैयारी में लग गयी।





" स्वाति सारी तैयारी हो गयी ? 6 बजने वाले हैं पंडित जी आते होंगे।" नितिन ने अपने शर्ट की आस्तीन फोल्ड करते हुए स्वाति से कहा।





" हा जी ! सारी तैयारी हो गयी ।


"और बच्चे तैयार हुए कि नही अभी ।""मैने दोनों बच्चों हो रेडी होने को कह दिया हैं , तैयार होकर आते ही होंगे। बस नित्या थोड़ा नाराज हो गयी ।


क्यों , क्या हुआ उसे।


कुछ नही , बस खेलने जाने की जिद कर रही थी मैनें मना कर दिया। " स्वाति नितिन से बता ही रही थी कि तभी घर की डोरबेल बजी और नितिन ने जाकर दरवाजा खोला। सामने पंडित जी को देख उन्हें प्रणाम कर अंदर आने को कहा । पंडित जी ने जैसे ही घर की चौखट पर कदम रखें उनके कदम वही रुक से गये ।


क्या हुआ पंडित जी , आप यहाँ रुक क्यों गये । अंदर आइये सारी तैयारियां हो गयी हैं। " नितिन के कहने पर भी उन्होंने कुछ ध्यान नही दिया और इधर उधर देखने लगे।





क्या हुआ पंडित जी " पंडित जी को शांत इधर उधर देखते हुए नितिन बोला।





कुछ नही बस मुझे अजीब सा महसूस हो रहा हैं।


क्या 6 Full stop


कुछ नही चलिये पूजा का समय हो रहा हैं देर करना उचित नही हैं। " कहते हुए पंडित जी हवन की तैयारी करने लगे और सारी तैयारी करने के बाद उन्होंने सभी को पास आकर बैठने को कहा।





सभी यहाँ हैं लेकिन नित्या नही आयी अभी तक। शुभ बेटा नित्या कहाँ रह गयी । जाओ उसे लेकर आओ। " नित्या को वहाँ ना देखकर नितिन शुभ से नित्या को लाने को कहता हैं और शुभ उसे बुलाने चला जाता हैं और थोड़ी देर बाद वो घबराता हुआ बिना नित्या के वापस हाँफता हुआ लौटता हैं ।





क्या हुआ शुभ , नित्या कहाँ हैं उसे क्यों नही लाये ?








पापा नित्या कमरे में नही हैं ।


तो देख लेते इधर उधर कही खेल रही होगी।


नही पापा , नित्या कही नही हैं । मैने पूरा घर देख लिया । यहाँ तक छत पर भी देख आया हूँ , पता नही कहाँ चली गयी।





अरे जायेगी कहाँ , यही कही किसी कमरे में खेल रही होगी। मैं अभी उसे लेकर आता हूँ । " कहते हुए नितिन उठने लगता हैं तो स्वाति उन्हें रोक कर खुद नित्या को लाने के लिए चली जाती हैं लेकिन उसे भी नित्या कही नही मिलती और वो भी वापस लौट आती हैं।





क्या हुआ मिली नित्या ?


नही मिली लेकिन मुझे पता हैं कहाँ गयी होगी।


पता हैं मतलब ।


हा , एक मिनट रुकिए " कहते हुए स्वाति किसी से फोन पर बात करती हैं ।





ये आजकल बहुत जिद्दी हो गयी हैं कुछ भी सुनती ही नही हैं मुझसे बाहर खेलने जाने की जिद कर रही थी लेकिन मैंने मना कर दिया । मेरे मना करने के बावजूद भी वो हम सब से छुप के खेलने चली गयी । अभी मेरी मिसेज शर्मा से बात हुई और उन्होंने ही बताया कि नित्या उनके घर गयी थी और फिर सुप्रिया और कुछ दोस्तों के साथ पार्क में खेलने चली गयी। मैं जाकर उसे अभी लेकर आती हूँ ।" कहते हुए स्वाति जाने लगती हैं लेकिन पंडित जी उसे रोक देते हैं।





पूजा का समय हो गया हैं और इस वक्त आप दोनों में से किसी का भी बाहर जाना उचित नही हैं इसलिए आप दोनों यहाँ बैठ जाइए। बेटा आप जाओ और बहन को लेकर आओ। " पंडित


जी के कहने पर दोनों पूजा पर बैठ जाते हैं और शुभ नित्या को लेने चला जाता है। पंडित जी पूजा संपन्न कराते हैं और फिर स्वाति उनके लिए नाश्ते पानी का प्रबंध करने किचन में चली जाती है।





नितिन जी मैने जब आपके घर में कदम रखा तो मुझे वैसी ही नकारात्मक ऊर्जा महसूस हुई जैसे उस रात को वहाँ सड़क पर हुई थी।





क्या पंडित जी आप भी कैसी बातें कर रहे हैं ? अब घर में ऎसा कुछ क्या होगा।





पता नही लेकिन मुझे आपके घर में कुछ सही नही लग रहा । " इससे आगे पंडित जी कुछ कहते शुभ नित्या को लेकर घर आता हैं। उसके घर में आते ही पंडित जी को फिर से कुछ महसूस होने लगता हैं और उनकी नजर नित्या पर जाती हैं । उसे देखते ही उनका चेहरा पसीने से डूब जाता हैं और उसे नित्या के चेहरे में कुछ और ही महसूस होने लगता हैं और उनको नजरे नित्या पर ही टिक जाती हैं।





पापा पापा ..कहते हुए नित्या नितिन के गले लग जाती हैं।





मुझे बात मत करो गुड़िया , मैं तुमसे बहुत गुस्सा हूँ ।





लेकिन क्यों पापा मैने क्या किया।





आपको पता था ना कि आज घर में बाबा की पूजा हैं फिर भी आप बिना किसी को बताइये घर के बाहर खेलने चली गयी ।





ओह्ह सॉरी पापा , वो सुप्रिया हैं ना वही मुझे जबर्दस्ती खेलने ले


गयी थी। " कहते हुए नित्या ने बड़ी ही मासूमियत से दोनों हाथों से अपने कान पकड़ कर सॉरी बोलने लगी। उसके ऐसे मासूम से चेहरे को देख एक पल में ही नितिन का गुस्सा शांत हो गया और उसने नित्या को गले से लगा लिया।





बस अपने इसे बिगाड़ रखा हैं , कितनी शैतान हो गयी हैं। देखो अपने कपडे कितने गंदे कर लायी हैं । जाओ पहले कपडे चेंज करके आओ । " चाय नाश्ता लेकर आते आते हुए स्वाति बोली। नित्या कपडे चेंज करने के लिए अपने कमरे में चली गयी ।





क्या हुआ पंडित जी , कहाँ खो गए । लीजिये चाय पीजिए।





नितिन साहब , मुझे लग रहा नित्या के साथ कुछ समस्या हैं।


ये क्या कह रहे हैं आप ?


मुझे नित्या में कुछ और ही भाव नजर आ रहे हैं । अच्छा ये बताइये आपको नित्या में पहले की अपेक्षा कुछ बदलाव महसूस हुए हैं क्या ?





हा पंडित जी , मुझे भी लगता हैं लेकिन ये बात सुनने को तैयार ही नही । बेटी के प्रेम का तो ऐसा पर्दा पड़ा हैं कि कुछ भी सुनने को तैयार नही हैं।





क्या स्वाति तुम भी , वो बच्ची हैं अभी और ऐसी उम्र में बदलाव होते रहते हैं।





क्यों जो 2 दिन में हुआ वो आश्चर्यचकित करने वाला नही था क्या और उस दिन जो हुआ 4 Full stopअगर समय से नही पहुँचते तो 6 Full stopकहते कहते स्वाति थोड़ा उदास हो गयी।





आप मुझे बताइये क्या हुआ और किस बदलाव की बात कर रहे


हैं ?





अरे पंडित जी कुछ नही , इन औरतो का काम ही ऐसा हैं जरा सी बात पर घबरा जाती हैं।





नितिन जी किसी भी बात को हल्के में लेना सही नही होता जब वो बात अपने बच्चों या परिवार से सम्बंधित होती हो। आप बताइये स्वाति जी क्या बात हैं " पंडित जी के पूछने पर स्वाति ने नित्या के साथ हुई हर घटना के बारे में पंडित जी से विस्तार से बता दिया जिसे सुनकर पंडित जी का शक यकीन में बदल गया कि नित्या के साथ कोई न कोई समस्या जरूर हैं।





मुझे अभी तक शक था लेकिन अब मुझे यकीन हो गया हैं कि नित्या के साथ हो रही घटना सामान्य नही हैं। अच्छा ये बताइये ये सब कब से शुरू हुआ मेरा मतलब हैं कि क्या पहले भी ऐसा किया हैं नित्या ने ।





नही पंडित जी , कभी मेरी बेटी ने ऐसा कुछ नही किया और ये सब उस रात की सुबह से ही हुआ जबसे हम वहाँ से लौट कर आये थे ।


आप ने अच्छा किया मुझे सब बता दिया । अब आप निश्चिन्ति रहिये मैं इस समस्या की जड़ तक जाने का पूरा प्रयास करूँगा और सब ठीक हो जायेगा। " कहते हुए पंडित जी उठकर जाने लगते हैं तभी शुभ की जोर जोर से चिल्लाने की आवाजें आने लगती हैं। उसकी आवाजे सुन स्वाति , नितिन और पंडित जी भाग कर शुभ के कमरे में जाते हैं और शुभ को घायल अवस्था में जमीन पर पड़ा देख भयभीत हो जाते हैं। नितिन भाग कर शुभ को उठाकर बेड पर बिठाता हैं और ये सब होने का कारण पूछता हैं तो शुभ खिड़की की तरफ इशारा करते हुए बेहोश हो जाता है।








"क्या हुआ शुभ , तुम्हें ये चोट कैसे लगी ।" घबराते हुए स्वाति शुभ को उठाते हुए बोली।





"मैं फर्स्ट एड बॉक्स लेकर आता हूँ , तुम इसे संभालो। " कहते हुए नितिन फर्स्ट एडबॉक्स लेकर आता हैं और शुभ की चोट साफ कर पट्टी करने लगता हैं।





"बेटा ये सब कैसे हुआ और इतनी चोट कैसे लग गयी ? " चोट पर मेडिसिन लगाते हुए नितिन कहता हैं।





"पापा वो मुझे नित्या ने मारा और फिर 6 Full stop"


"क्या 4 Full stopनित्या ने , लेकिन उसने ऐसा क्यों किया । वो तुम्हे कभी चोट नही पंहुचा सकती ।"





"पता नही पापा उसे क्या हो गया था , ऐसा लग रहा था वो नित्या हैं ही नही ।"





"वो नित्या नही , ये क्या कह रहे हो ? " नित्या जो कि शुभ से


बहुत प्यार करती हैं उसके ऐसा करने की बात पर किसी को यकीन ही नही हो रहा था।





"सच में इसने सारी हदे ही पार कर दी है , लेकिन नित्या हैं कहाँ " नित्या को वहाँ ना देख नितिन ने शुभ से पुछा।





" माँ पापा , नित्या ने मेरे सर पर वार किया और यहाँ से चली गयी।"





"चली गयी मतलब , कहाँ चली गयी ?" कहते हुए नितिन उसे पंडित जी के साथ उसे पूरे घर में ढूंढने लगता हैं लेकिन वो उसे कही भी नही मिलती। कुछ दिनों के उसके परिवर्तित व्यवहार से सभी उसके लिए बहुत परेशान थे। पंडित जी भी नित्या को लेकर चिंतित होने लगे। उन्हें लग रहा कही उनका शक यकीन में तो नही बदल रहा । कही वास्तव में तो नित्या के साथ कोई बड़ी समस्या तो नही हो गयी। इन्ही विचारों की उधेड़ बुन में वो दोनों शुभ के पास ही आ जाते हैं।





"क्या हुआ कहाँ हैं मेरी बच्ची ? "





"नही मिली , मैने और पंडित जी ने पूरे घर में देख लिया कही भी नही मिली।"





"पता नही मेरी बच्ची को क्या हो गया हैं और वो कहाँ होगी ? " कहते हुए स्वाति रोने लगी।





"स्वाति तुम परेशान मत हो , मैं उसके सभी दोस्तों के यहाँ कॉल करके पूछता हूँ । शायद किसी सहेली के घर चली गयी होगी। " कहते हुए नितिन आसपड़ोस में और नित्या के सभी दोस्तों के यहाँ फ़ोन करते हैं लेकिन कही भी किसी को नित्या के बारे में


कुछ भी नही पता। यहाँ तक कॉलोनी के चौकीदार ने भी उसे कही बाहर जाते नही देखा। अब तो नितिन , स्वाति और शुभ तीनो ही नित्या के लिए बहुत परेशान हो गए।





"आप लोग परेशान मत होइए । हम लोग नित्या को ढूंढ लेंगे। " पंडित जी ने स्वाति और स्वाति को ढांढस बँधाते हुए कहा।





"कैसे और कहाँ ढूंढेंगे ? अँधेरा भी हो गया हैं । उसे तो अँधेरे से डर लगता हैं । यहाँ तक वो अँधेरे में कभी कमरे से बाहर तक नही जाती थी और आज10 Full stop"





"इसके लिए मुझे पहले पूरी बात जाननी होगी कि आखिर ये सब हुआ क्यों ? "





"शुभ बेटा , पहले ये बताओ आखिर हुआ क्या था ? नित्या ने तुम्हे चोट क्यों पहुँचायी। " पंडित जी ने शुभ के पास बैठ प्यार से पूछा।





"अंकल मम्मा ने नित्या को कपडे चेंज करके जब आने को कहा तो वो कमरे में आ गयी । जब काफी देर हो गयी वो बाहर नही आयी तो मैं उसे बुलाने गया तो देखा वो वही गंदे से कपडे पहने बैठी थी और एक कागज में पेंसिल से कुछ बना रही थी । मैने उससे कहा कि नित्या अभी तक तुमने कपडे नही बदले और मम्मा कितनी देर से बुला रही हैं। चलो जल्दी से बदलकर बाहर आओ। जब उसने मेरी किसी बात का जवाब नही दिया तो मैं उसके सामने गया और उसके हाथ से वो पेपर छीन लिया और बाहर चलने को कहा । तो उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा और अपना पेपर मांगने लगी।"





"मेरा पेपर दो मुझे ? "





"नही दूंगा , पहले मम्मा बुला रही हैं बाहर चलो।"





"मैने कहा ना मेरा पेपर मुझे दो । " गुस्से से मेरी तरफ देखते हुए बोली।





"एक बार कहा ना नही दूंगा , जरा देखू तो इस पेपर क्या हैं जो इसके लिए परेशान और गुस्सा हो रही हो। "
adeswal
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Re: Thriller वो कौन थी?

Post by adeswal »

"ख़बरदार जो तूने मेरा पेपर देखा तो " कहते हुए वो मेरे हाथ से पेपर छीनने के लिए झपटी लेकिन मैं उसे चिढ़ाते हुए पीछे की तरफ हट गया और बेड पर चढ़कर पेपर को ऊंचा कर हिलाते हुए कहने लगा कि अब ये मम्मा पापा को दिखाऊंगा । कहते हुए मैं कमरे से बाहर आने लगा तो पता नही कैसे कमरे का दरवाजा अपनेआप बंद हो गया । पीछे पलटकर देखा तो नित्या एक हाथ अपनी कमर पर रखकर बड़ी अजीब तरह से मुस्कुरा रही थी। फिर वो पता नही कैसे एकदम से मेरे करीब आ गयी और वो पेपर लेने लगी लेकिन मैंने फिर से उसे नही दिया तो वो गुस्सा हो गयी और गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया । बड़ी बड़ी लाल लाल डरावनी सी आँखे और वो हवा में उड़ने लगी। उसे ऐसे देखकर मुझे डर लगने लगा तभी उसने पास टेबल पर रखे फ्लावर पॉट से मेरे सर पर वार किया और मेरे हाथ से वो पेपर छीन कर मुझे धक्का देकर कमरे से बाहर निकल गयी । " शुभ को बात सुनकर सभी नित्या के लिए परेशान हो गए।





"मैं कह रही थी ना कि नित्या को कुछ हुआ हैं तभी वो बदली बदली नजर आने लगी थी और ना जाने कैसी हरकते करने लगी थी। अब ना जाने मेरी बच्ची कहाँ और किस हाल में होगी।" कहते हुए स्वाति परेशान हो रोने लगी।





"सब जगह तो पता कर चुके हैं , अब कहाँ ढूंढे उसे ?"








" समझ नही आ रहा कि वो कहाँ जा सकती हैं ? लेकिन स्वाति तुम परेशान मत हो ,मैं पोलिस स्टेशन जाकर रिपोर्ट करता हूँ । इससे पुलिस भी हमारी मदद करेगा और हम जल्दी ही नित्या को खोज लेंगे।"





"रुकिए नितिन साहब , जिस तरह आप लोगो ने नित्या के कुछ दिन से बदले व्यवहार और आज शुभ के साथ किये बर्ताव के बारे में बताया उससे यही लगता हैं कि मेरा शक सही हैं और उसमे पुलिस कुछ नही कर पायेगी।"





"आपका शक मतलब ?"





"मतलब ये कि जैसे ही मैने घर में कदम रखा था मुझे यहाँ की नकारात्मक ऊर्जा होने का एहसास हुआ था और फिर जब नित्या सामने आयी तो वही एहसास और ज्यादा महसूस हुआ लेकिन मैं किसी नतीजे पर नही पहुँच पा रहा था लेकिन जो भी अभी शुभ ने बताया उससे मुझे पूरा यकीन हो गया कि किसी ना किसी बुरी शक्ति ने नित्या को अपने वश में कर रखा हैं इसलिए जब वो उसके प्रभाव में रहती हैं तो वो वही करती हैं जो वो उससे कराना चाहती हैं।"





"आपको पता हैं पंडित जी , मैं इन सब बातों में यकीन नही करता।"





"नितिन जी इतना सब कुछ होने के बाद भी आपको यकीन नही होता। अगर मेरा शक पूरी तरह सही निकला तो अब सोच भी नही सकते कि नित्या को किन किन तकलीफों का सामना करना पड़ सकता हैं।"








"लेकिन मेरी इतनी छोटी बच्ची ने किसी का क्या बिगाड़ा हैं जो कि उसे कोई परेशान करेगा।"





"यही तो पता लगाना हैं कि उसके साथ क्या हुआ और उस पेपर में ऐसा क्या था जिसके लिए उसने शुभ को भी चोट पहुँचायी। स्वाति जी आप मुझे नित्या को कोई कपड़ा जो उसने इधर एक दो दिन में ही पहना हो लाकर दीजिये। " पंडित जी के कहने पर स्वाति नित्या की फ्रॉक लेकर आती हैं और पंडित जी को दे देती हैं। पंडित जी ने उस फ्रॉक एक टेबल पर रख दिया और अपने थैले से कुछ भभूत जैसा निकाला और उसे हाथ पर लेकर मन्त्र पढ़ा और उस फ्रॉक पर डाल दिया । इसके पश्चात गंगाजल हाथ की अंजुली में लेकर मन्त्र पढ़ उसे उसी फ्रॉक पर छिड़क दिया। कुछ ही पल में उस भभूत में से लाल रंग का धुँआ सा उठने लगा ।





"नितिन जी हमें इस धुंए का पीछा करना होगा । ये धुँआ हमें नित्या तक ले जायेगा। हमें जल्दी से चलना चाहिए कही ये धुँआ हमारी आँखों से ओझल ना हो जाये।"





"मैं भी चलूंगी " स्वाति ने भी चलना चाहा लेकिन नितिन ने उसे मना कर दिया और घर में रहकर शुभ की देखभाल करने को कहा। नितिन और पंडित जी अपनी गाड़ी से लाल रंग के उस धुंए का पीछा करते हुए एक जंगल में पहुँच जाते हैं । आगे का रास्ता बहुत ही सकरा था जहाँ गाड़ी नही जा सकती थी इसलिए दोनों गाड़ी से उतर कर धुएं का पीछा करते हुए पैदल चलने लगे। आगे जाकर एक जगह पर पहुँचने पर वो धुँआ गायब हो जाता हैं।





"पंडित जी ये धुँआ तो यहाँ आकर गायब हो गया । अब आगे हम कहाँ जाये।"








"चिंतित ना हो । अगर ये धुँआ यही पर आकर गायब हो गया तो नित्या यही आसपास कही होगी ।"





"लेकिन यहाँ तो दो रास्ते हैं हम किस रास्ते पर चले।"





"एक मिनट रुको मैं देखता हूँ । " कहते हुए पंडित जी जल को हाथ में ले आँखे बंद करके मन्त्र पढ़कर उसे आगे की तरफ फेंकते हैं तो एक रास्ते में धुंध सी फैलने लगती है। उस धुंध को देखकर पंडित नितिन को इशारे से उस रास्ते पर आगे बढ़ने को कहते हैं। उस रास्ते और आगे बढ़ते ही एक जगह पहुँचकर पंडित जी और नितिन की आँखे फटी की फटी रह जाती हैं । जो सामने था उसे देख उस पर यकीन करना मुश्किल हो रहा था।




















नितिन और पंडित जी नित्या के अभिमंत्रित कपड़े से निकलने वाले धुएं की मदद से जंगल के बीच में पहुँच जाते हैं । वहाँ का दृश्य देख दोनों के पैरों तले जैसे जमीन निकल जाती हैं। नित्या तो दिखती हैं लेकिन उसका ऐसा रूप देख उन्हें अपनी आँखों पर विश्वास ही नही होता और उनकी आंखें फटी की फटी रह जाती हैं।





जंगल के बीच में बना एक बड़ा और भयानक शमशान जिसमे चारों तरफ चिताये ही चिताये जल रही थी । उन्हीं चिताओं के बीचोबीच एक अधजली चिता के पास बिना किसी डर के निर्भीक रूप से जमीन पर नित्या बैठी हुई जैसे किसी पूजा को अंजाम दे रही थी। बगल में थाली कुछ वस्तुएं रखी हुई थी जिससे बारी बारी से मन्त्र पढ़ते हुए वो उस अधजली चिता में डाल रही थी। इतनी नन्ही बच्ची को ये सब करते देख नितिन बहुत ही परेशान हो गया और वो नित्या को पकड़ने के लिए दौड़ा लेकिन पंडित जी ने उसका हाथ पकड़ कर उसे रोक दिया।


"क्या हुआ , आपने मुझे रोका क्यों ? देख रहे हैं ना नित्या क्या कर रही हैं?"


"हा मैं देख रहा हूँ और इसीलिए आपको रोका।"


"मतलब"


"मतलब ये कि , ये आपकी नित्या नही हैं बल्कि नित्या के रूप में कोई और हैं ।"





"ये आप क्या कह रहे हैं , देखिये सही से ये मेरी नित्या ही हैं।"


"हा है तो आपकी नित्या ही लेकिन सिर्फ उसका शरीर। उसकी हालत और इस तरह से तंत्र करते देख आपको नही लग रहा कि नित्या इस तरह कभी नही कर सकती। ये कोई परिपक्व इंसान ही कर सकता हैं ।"





"परिपक्व इंसान से आपका क्या मतलब"





"मतलब ये कि शरीर तो आपकी बेटी का हैं लेकिन उसका शरीर उसके वश में नही है। कोई हैं जिसने कि उसके शरीर पर कब्ज़ा कर रखा हैं और जो वो उसके शरीर का प्रयोग अपने कार्य के लिए इस्तेमाल कर रहा हैं।"





"मुझे कुछ नही समझना बस मुझे इतना पता हैं कि मुझे अपनी बेटी को लेने जाना हैं।"





"मैं आपको रोक नही रहा लेकिन हमें जो करना होगा संभल कर करना होगा वर्ना नित्या को नुकसान हो सकता हैं।"





"मुझे कुछ नही पता बस मुझे अपनी बेटी 8 Full stop "कहते हुए नितिन पंडित जी से अपना हाथ छुड़ाते हुए नित्या की तरफ बढ़ता हैं। जैसे ही वो नित्या के पास जाकर उसका हाथ पकड़


कर उसे वहाँ से उठाना चाहता हैं एक जोरदार झटके से वो पीछे की तरफ गिर जाता हैं । नितिन फिर से उठकर नित्या को पकड़कर उठाने की कोशिश करता है तो नित्या गुस्से से गुर्राते हुए पीछे मुड़कर नितिन की तरफ देखने लगती हैं और हाथ झिटक देती है। उसके उलझे हुए लहराते बाल , बड़ी बड़ी काली आँखे ,लाल लाल डरावना सा चेहरा जिसपर कई चोट के चीरे के निशान पड़े हुए थे , देखकर नितिन और पंडित जी के होश उड़ जाते हैं। नितिन भागकर पंडित जी के पास जाता है।





"पंडित जी , ये मेरी बेटी को क्या हो गया है । उसका चेहरा देखा आपने ? "





"इसलिए तो मैं बोल रहा था कि रुक जाइये आप। ये आपकी बेटी नही हैं। अभी आपने अगर इसे वहाँ से जबर्दस्ती लाने की कोशिश की तो क्या करेगी वो कोई नही सोच सकता। इसलिये हमें जो करना होगा सोच समझ कर करना होगा।"





"पंडित जी कुछ भी कीजिये लेकिन मेरी बच्ची को बच्चा लीजिये।"





"आप थोड़ा सब्र कीजिये मैं कुछ करता हूँ । " कहते हुए पंडित जी अपने थैले से एक किताब निकाल कर उसे पढ़ने लगते हैं और फिर बंद करके उसे रख देते हैं।





"क्या हुआ कुछ पता चला ? "





"हा , इस जगह के आसपास ही कही पर शिव जी का एक पुराना मंदिर होगा । हमें जल्द ही उस मंदिर के प्रांगड़ के बोचोबीच से ऊपर की मिट्टी के नीचे की लाल मिट्टी , दूब और शिवलिंग के पास की धूब बत्ती या अगरबत्ती की थोड़ी सी राख


लानी होगी और अगर राख ना मिले जो हल्दी कुमकुम कुछ भी जो भी उस जगह मिले लाना होगा। आप जाकर पहले उस मंदिर को खोजिये और ये तीनों चीजे ले आइये , जबतक कुछ और चीजे लेकर आता हूँ ।"





"ठीक हैं ।" कहते हुए नितिन पंडित जी द्वारा बताई सामग्री लेने के लिए चला जाता हैं और पंडित जी दूसरी दिशा में। पूरब दिशा में लगभग 100 मीटर की दूरी तय करने के बाद नितिन को एक छोटा सा मंदिर दिखाई देता हैं जो कि शायद खंडहर बन चूका था और वहाँ जाने में अच्छे अच्छे लोगो की रूह तक कांप जाय लेकिन नितिन के मन में सिर्फ अपनी बेटी का ख्याल था और उसके आगे उसे कुछ भी समझ नही आ रहा था। बिना किसी डर के वो बस अपनी बेटी के लिए सोचकर उस खंडहर में चला जाता हैं। एक तो भयानक अँधेरा और ऊपर से नाममात्र की रौशनी देती टॉर्च के सहारे नितिन मंदिर के प्रांगण में पहुँच जाता हैं और वहाँ बीचोबीच के स्थान से एक पत्थर की सहायता से मिट्टी खोदने लगता हैं , तभी उसे वहाँ ऊपर की भूरी मिट्टी के नीचे लाल रंग की मिट्टी मिलती हैं । नितिन जल्दी से वो मिट्टी लेकर एक पॉलिथीन में भर लेता हैं और पास में ही खड़ी दूब निकाल कर अपने पास रख लेता हैं। इसके बाद वो शिवलिंग की तलाश में आगे बढ़ जाता हैं और एक कमरे में पहुँच जाता हैं। बाहर से दिखने वाला खंडहरनुमा मंदिर अंदर से बहुत ही आलीशान बना हुआ था और पूरा मंदिर रौशनी से जगमगा रहा था । धूपबत्ती के धुएं से भरा कमरा और फूलों की खुश्बू से महकता मंदिर का वो भाग ऐसा लग रहा था जैसे थोड़ी देर पहले ही कोई पूजा करके गया हो। उसने वहाँ आवाज लगायी लेकिन वहाँ उसे कोई भी नही दिखा। नितिन ने अपने पैरों से जूते निकाले और अहिस्ता अहिस्ता शिवलिंग के पास पहुँच गया और धूपबत्ती से गिरती राख को धीऱे से इकट्ठा कर जल्दी से वापस उसी जगह पर आ जाता हैं जहाँ पर पहले से पंडित जी


विराजमान थे।





"नितिन जी सब कुछ मिल गया ? "





"हा पंडित जी , ले लीजिए आपने जो भी बोला था वो सब मैं ले आया। " मंदिर से लायी सब चीजों को पंडित जी को देते हुए नितिन कहता हैं।





"जल्दी लाइए " नितिन से सारा सामान लेकर पंडित जी उसमे से मिट्टी निकाल कर हाथ में लेते हैं और कुछ मन्त्र पढ़ने लगते हैं। मन्त्र पढ़ने के बाद वो नितिन को उस मिट्टी को देते हुए उसे नित्या के चारों ओर एक घेरा बनाने को कहते हैं । नितिन मिटटी ले जाकर नित्या के पास घेरा बनाने के लिए जैसे ही आगे बढ़ता हैं एक भयंकर आवाज के साथ नित्या दहाड़ती हैं और वहाँ आँधी जैसी आ जाती हैं और नितिन उछल कर पीछे गिर जाता हैं। पंडित जी उसे उठाते हैं और मंदिर से लायी धूप को अभिमंत्रित कर उसे आसमान की तरफ उछाल देते है जिससे वहाँ धुँआ सा फ़ैल जाता है और नित्या अपनी आँखों को मलने लगती हैं। उसी समय का फायदा उठाते हुए पंडित जी नितिन को फिर से जाने को कहते हैं । नितिन जल्दी से जाता हैं और नित्या के चारों ओर घेरा बनाने लगता हैं और पंडित जी मंदिर की दूब को पानी में डालकर उस दूब वाले जल से उस नित्या पर बार बार छिड़कते जाते हैं जिससे उसे एक जलन सी होती है और वो उस जलन से तड़पने लगती हैं। उसकी तड़प को देखकर नितिन परेशान हो जाता है लेकिन पंडित जी के दिलासा देते हुए शांत रहने को कहते हैं। थोड़ी ही देर में नित्या जैसे बेसुध सी वही गिर जाती हैं। नितिन उसे उठाने के लिए आगे बढ़ता हैं लेकिन पंडित जी अभी उसके पास जाने से मना कर देते हैं। दूब वाले जल को हाथ में लेकर मन्त्र पढ़ते हुए पंडित जी नितिन के साथ नित्या के पास जाते हैं और उसे गोद में उठाने को कहते हैं


। नितिन जैसे ही नित्या को उठाने लगता हैं वो एकदम से चीखते हुए भारी सी आवाज में कहती हैं । " चले जाओ यहाँ से , तुम लोग मुझे यहाँ से नही ले जा सकते।" उसका भयानक सा चेहरा देख दोनों के हृदय कांप जाता हैं । पंडित जी वही अभिमंत्रित जल नित्या पर जोर जोर से छिड़कने लगते हैं। उस अभिमंत्रित जल के प्रभाव से वो फिर से तड़पने लगती हैं और फिर बेहोश जाती है। पंडित जी एक कलावा लेकर उस पर रोली चन्दन का टीका कर मन्त्र पढ़कर उसे नित्या के बाजू में बांध देते हैं और फिर नितिन को उसे उठाकर घर ले चलने को कहते हैं । नितिन नित्या को गोद में लेकर उठाकर उस शमशाम से घर की तरफ चलने लगता हैं तभी पंडित जी की नजर एक कागज के टुकड़े पर पड़ती हैं और वो ये सोचकर कि शायद शुभ इसी कागज की बात कर रहा था , उठा कर अपने बैग में रख लेते हैं।





नितिन नित्या को बेहोशी की हालत में ही घर में लाकर बेड पर लिटा देता हैं और स्वाति के पूछने पर वहाँ घटी सारी घटना के बारे में विस्तार से बता देता हैं जिसे सुनकर स्वाति भी परेशान हो जाती हैं। रात भर स्वाति और नितिन नित्या के पास ही बैठे रहते हैं । सुबह नित्या को होश आता हैं तो रात में हुई घटना के बारे में उसे कुछ भी याद नही होता। लेकिन शायद अब सब सही हो गया था । नित्या पहले जैसे ही व्यवहार करने लगी थी। ऐसे ही कई दिन बीत गया । सब कुछ सामान्य देखकर सभी खुश थे लेकिन एक दिन ऊपर छत से नीचे आते वक्त नित्या का हाथ किसी से टकरा जाता हैं और उसके हाथ में बंधा कलावा खुल कर नीचे जमीन में गिर जाता हैं ।


























नितिन नित्या को बेहोशी की हालत में ही घर में लाकर बेड पर लिटा देता हैं और स्वाति के पूछने पर वहाँ घटी सारी घटना के बारे में विस्तार से बताता हैं जिसे सुनकर स्वाति के पैरों तले जमीन खिसक जाती हैं लेकिन सब कुछ सही होने के ख्याल से उसकी साँस में साँस आती हैं। पंडित जी ने एक अभिमंत्रित ताबीज को नित्या के गले में पहना दिया और उसे कभी ना निकालने के लिए कहा और साथ ही साथ उसके बाजू में बंधा कलावे को भी खुलने से बचाने को कहा। स्वाति रात भर वो नित्या के पास ही बैठी रहती हैं । सुबह नित्या को जब होश आता हैं तो रात में उसके साथ हुई घटना के बारे में उसे कुछ भी याद नही होता और फिर किसी ने उससे इस बारे बात करना जरुरी नही समझा। नित्या पहले जैसे ही व्यवहार करने लगी थी और सब ये देखकर बहुत खुश थे। रोज सुबह तैयार होकर स्कूल जाना , वहाँ दिन भर अच्छे से पढ़ाई करना , खेलना कूदना और घर आकर धमाचौकड़ी मचाना उसकी दिनचर्या बन गयी थी। पिछले कुछ दिनों जो भी उसके साथ हुआ उसे कुछ भी याद नही था। ऐसे ही कई दिन , कई महीने और और साल बीत गए।सब कुछ सामान्य होने से सभी ये सोचकर की अब सब सही हो गया निश्चिन्त हो गए और शायद इतना समय बीतने के साथ काला साया समझ कर सभी भूल भी गये।पंडित जी ने शमशान से जो कागज का टुकड़ा उठाया था उसे भी कही रख कर भूल गए और फिर सब कुछ सामान्य हो जाने और किसी आवश्यक कार्य से बाहर चले जाने से उनका ध्यान उस ओर से बिलकुल ही हट गया ।एक तरफ से नित्या के ऊपर जो साया था उसे सब अतीत की काली यादे समझ कर लगभग भूल ही चुके थे।





" मम्मा देखो नित्या को , मेरी सारी चीजें फेंक रही हैं। " शुभ ने चिल्लाते हुए माँ को आवाज दी।





"ओफ्फो तुम दोनों कितना लड़ते हो। इतने बड़े हो गए हो लेकिन जरा सी भी अक्ल नही हैं। " स्वाति ने शुभ और नित्या को छुड़ाते हुए कहा।





"नित्या इतनी बड़ी हो गयी हो लेकिन जब देखो अपने बड़े भाई को परेशान करती रहती हो।"





"मम्मा पहले भाई ने मुझे मारा था।"


"नही मम्मा पहले इस नित्या की बच्ची ने मेरी सारी किताबे फेक दी थी।"





"अच्छा चुप हो जाओ दोनों लोग। शुभ तुम तो बड़े हो फिर फिर नासमझी वाली बात करते हो। तुम्हे तो नित्या को समझाना चाहिए और खुद ही लड़ने लगते हो। "





"माँ वो 5 Full stop"


"अच्छा अब बस , अब, कोई कुछ नही बोलेगा और शुभ नित्या


तुम्हारी छोटी बहन हैं तो उससे इस तरह से लड़ाई मत किया करो और जल्दी से ये सब सामान समेट कर नीचे आओ दोनों लोग। कल नित्या का जन्मदिन हैं तो बहुत सी तैयारी करनी है।" कहते हुए स्वाति दोनों को समझाते हुए कमरे से जाने लगती है तो नित्या शुभ को चिढ़ाने लगती हैं।
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