Horror वो कौन थी?
" अभी कितनी दूर घर हैं पापा । कब से हम चले ही जा रहे हैं। " छः साल की बच्ची नित्या बड़ी मासूमियत से अपने पापा से पूछ रही थी। रात के 11 बज रहे थे और नित्या अपने पापा मम्मी और बड़े भाई शुभ के साथ एक शादी के फंक्शन से वापस लौट रहे थी। एक तो फंक्शन में खेल खेल कर थक गयी थी और वापसी में इतना लंबा सफर करकर वो थक गयी थी और बोर होने लगी थी।
" बस बेटा जल्दी ही पहुँच जायेंगे । देखो भैया सो गया है, आप भी सो जाओ। घर पहुँचते ही जगा देंगे।"
"पापा मुझे नींद नही आ रही हैं तो बताइये मैं कैसे सो जाऊँ। भैया तो वैसे भी सोअक्कड़ हैं जब देखो सोता रहता है। "
" फिर मेरी गुड़िया क्या करेगी । " नित्या को अपनी गोदी में बैठाते हुए पापा बोले।
" पापा मुझे बस आपकी गोदी में ही बैठना हैं। " पापा की गोदी
में नित्या बैठते हुए बोली।
" चलो अच्छा मैं अपनी गुड़िया को सुला देता हूँ अच्छे से नींद आ जायेगी ।" कहते हुए पापा नित्या के बालों को सहलाते हुए उसे सुलाने की कोशिश करते हैं लेकिन तभी कार एक जोरदार ब्रेक के साथ रुक जाती है और सभी सोये हुए लोगो की नींद खुल जाती है।
" क्या हुआ ड्राइवर , ऐसे एकदम से गाड़ी क्यों रोक गयी।"
"साहब सामने एक बहुत बड़ा पेड़ अचानक से गिर पड़ा ।भगवान का सुक्र हैं बच गए। मैं जाकर पेड़ को किनारे कर देता हूँ फिर चलता हूँ । कहते हुए ड्राइवर कार का दरवाजा खोल बाहर निकलने ही वाला होता हैं कि नित्या की आवाज से रुक जाता है।
"पापा वो देखिये वहाँ कोई हैं । " नित्या के कहने पर सभी नित्या की बताई जगह पर देखने लगते है।
"ये तो कोई औरत लग रही , लेकिन इतनी रात में यहाँ सुनसान जगह पर । ड्राइवर देखो जाकर कौन हैं शायद किसी को हमारी जरुरत हो।"
"रुक जाइये नितिन साहब , अभी किसी का बाहर जाना ठीक नही हैं। " कार में आगे की सीट पर बैठे हुए पंडित जी ने कहा।
"क्यों क्या हुआ पंडित जी ।"
"मैं बाद में बताता हूँ , ड्राइवर अभी तुम धीऱे धीऱे गाड़ी को रिवर्स में लेकर चलो।"
"लेकिन 5 Full stop"
"मैने कहा ना अभी मैं आपको बताता हूँ , जैसा कहा हैं अभी वो करो।"
"ठीक है ड्राइवर जैसा पंडित जी कह रहे वैसा करो। " कहते हुए ड्राइवर धीऱे धीऱे गाड़ी को रिवर्स लेने लगता है।
"पापा आप तो कहते हैं कि हमें सभी की मदद करनी चाहिए फिर आप उन आंटी को इतनी रात में छोड़ के कैसे जा रहे हैं?"
"नितिन साहब आप बच्ची को सुला दीजिये और सब लोग उस ओर मत देखिये । बिना आवाज किये सब लोग चुप चाप बैठिए।"
"लेकिन पापा 4 Full stop"
"गुड़िया अभी आप मम्मी के पास जाओ। " नितिन नित्या को अपनी पत्नी स्वाति को देते हुए कहते हैं और स्वाति नित्या को अपने आँचल से ढक लिया लेकिन कहते हैं ना बच्चो का मन बहुत ही उत्सुकता से भरा हुआ होता हैं उन्हें जो मना किया जाता है वो उसी काम को करने को तत्पर रहते है और नित्या भी अभी छोटी सी बच्ची हैं और उसके मन में उस औरत को लेकर हजारो सवाल आ रहे थे कि सब उसकी मदद करने की जगह उसे ऐसे रात में छोड़कर जा रहे थे इसलिए वो छुप छुप के उसी को देख रही थी।
धीऱे धीऱे गाड़ी रिवर्स गेयर में जा रही थी । जैसे जैसे कार बैक होती वो साया नुमा औरत उसकी तरफ बढ़ने लगती जैसे ही गाड़ी रुक जाती वो भी रुक जाती और जैसे ही गाड़ी चलती वो साया भी उसकी ओर बढ़ने लगता। पंडित जी ने धीऱे धीऱे उसे बैक करते हुए चलने को कहा लेकिन एक जगह पीछे भी रोड
ब्लॉक थी तो ड्राइवर ने गाड़ी रोक दी। पंडित जी के कहने पर सभी लोग आँखे बंद करके गाड़ी में नीचे की तरफ दुबक गये और मन ही मन भगवान का नाम लेने लगे। नित्या जो कि अभी भी माँ के आँचल से चुपके चुपके बाहर बस उसी धुंधली सी दिखती औरत को एकटक देखे जा रही थी । अचानक से वो सीसे के करीब आ जाती है और उसकी उलझे हुए खुले बालों से झांकते हुई लाल लाल चमकती बड़ी बड़ी डरावनी आँखे देख मासूम सी नित्या का दिल जोरो से धड़कने लगता हैं और वो अपने को माँ के आँचल में छुपा लेती हैं लेकिन कुछ ही सेकंड में वो फिर से उसे देखने के लिए धीऱे धीऱे अपने सर को बाहर निकलती हैं और फिर से सामने उसे वही आँखे दिखती हैं लेकिन इस बार वो उन आँखों को देखकर डरती नही हैं बल्कि उसे बिना पलक झुकाये देखते जाती हैं , ऐसा लग रहा था जैसे किसी सम्मोहन शक्ति ने उसे वैसे ही स्थिर कर दिया हो। दोनों आँखो में एक दूसरे का अक्स साफ साफ नजर आने लगता है । उस औरत की दूर जाती धुंधली आकृति को अब भी नित्या घूरे ही जा रही थी। नित्या की माँ को एहसास होते ही वो उसे फिर से छुपा लेती है।
" नितिन साहब , हमें अभी इस रास्ते पर आगे नही बढ़ना चाहिए । रात के २ बज रहे हैं बस और २ घंटे की बात हैं , मेरा मानना हैं कि यही पास में कही रुक कर सुबह होने का इंतजार करना चाहिए। "
"लेकिन पंडित जी इतनी रात में यहाँ कहाँ और किस जगह रुकेंगे और फिर ये बच्चे भी साथ हैं।"
"साहब यहाँ पास में एक ढाबा हैं वहाँ हम लोग कुछ समय के लिए रुक सकते हैं ।" ड्राइवर ने उनसे कहा।
"लेकिन इतनी रात में कौन सा खुला होगा।"
"साहब वो ढाबा हाइवे पर हैं इसलिए पूरी रात खुला रहता हैं।
"ठीक हैं फिर वही चलते हैं। " कहते हुए ड्राइवर गाड़ी को बैक करके एक दूसरे रास्ते से 10 मिनट बाद ही उस ढाबे पर पहुँच गये। वहाँ जाकर सभी ढाबे पर बैठकर चाय नाश्ते का आर्डर कर दिया और आपस में बातें करने लगे। पंडित जी नितिन को लेकर दूसरी सीट पर बैठ गए।
"पंडित जी वो कौन थी जो हमें उस अँधेरे में दिखी थी । कुछ अजीब सी लग रही थी और वो ऐसा बर्ताव क्यों कर रही थी।"
"नितिन साहब मैने आपको सबके सामने बताना सही नही समझा क्योंकि बच्चे थे साथ में , वो डर जाते।"
"जैसे ही अचानक से पेड़ गिरा और ड्राइवर ने गाड़ी रोकी तभी मुझे वहाँ कुछ असामान्य सा महसूस हुआ और जब आपकी बेटी ने उस औरत की तरफ इशारा किया तो उसे देखते ही मैं समझ गया ये कोई इंसान नही हैं बल्कि एक आत्मा हैं और इसीलिए मैने आप सभी को वहाँ से तुरंत वापस लौटने को कहा।"
"क्या पंडित जी आप भी आज के समय में ऐसी बाते कर रहे हैं। आज के ज़माने में ऐसा कुछ नही होता। आत्मा वात्मा कुछ नही होता । पुराने लोगो द्वारा फैलाया गया ये सब अन्धविश्वास हैं । "
"क्यों आपने देखा नही कि वो धुंधली सी आकृति हमारी तरफ बढ़ रही थी । "
"हो सकता हैं उसे मदद की जरुरत हो और वो हमसे सहायता चाहती हो।"
"लग रहा आपने उसके हाव भाव पर गौर नही किया , उसके बिखरे हवा में लहराते बाल और तुरंत ही वहाँ के वातावरण में हुआ बदलाव सब उसे रहस्मयी बना रहा था। मैने कुछ महसूस किया तभी आप सभी को वहाँ से वापस आने को कहा था ।"