"सृष्टि जी आपको क्या हो गया था और ये सब क्या और नित्या के शरीर पर ये कालापन क्यों आ रहा था।"
"नित्या बहुत बड़ी समस्या में हैं , हमें उसे बचाना होगा।" जोर से हाँफते हुए सृष्टि ने कहा।
"ये आप क्या कह रही हैं?"
"मैं जो कह रही हूँ वही सच हैं। हम लोग सोच रहे थे कि जिस आत्मा ने नित्या के शरिर पर कब्ज़ा किया था वो छोड़ के चली गयी लेकिन हम पूरी तरह से गलत थे। वो चली तो गयी लेकिन अपनी परछाई छोड़ गयी। इसलिए वो कह रही थी कि वो जल्दी ही इसे ले जाएगी क्योंकि आत्मा को शरीर से दूर किया जा सकता हैं लेकिन परछाई को दूर करना असंभव हैं और इसीलिए उसने ये तरीका निकाला ।"
"परछाई मतलब "
" मतलब ये कि अभी अभी मैने जो कुछ भी किया वो ये सब पता लगाने के लिए किया और आपको जानकर आश्चर्य और दुःख होगा कि हमारे पास बहुत कम वक्त हैं नित्या को बचाने का। मैने जब अभी नित्या के माथे पर हाथ रखा और मन्त्र पढ़ा तो अपनी अंतरनिहित शक्तियों के इस्तेमाल के द्वारा देखा कि नित्या का शरीर एक धुएं के रूप में एक अलग दूसरी दुनिया में खिंचता जा रहा था ।जैसे ही नित्या का शरीर काला पड़ता जायेगा वैसे वैसे वो उस दूसरी दुनिया में जाती रहेगी और जैसे ही उसका शरीर पूरी तरह स्याह हो जायेगा , वो एक परछाई में बदल जायेगी और फिर वो उस दुनिया में कैद होकर रह जायेगी और फिर इस दुनिया में वापसी का कोई भी मार्ग शेष नही बचेगा इसलिए अभी मैने कुछ समय के लिए नित्या के शरीर को परछाई बनने से रोक दिया हैं लेकिन ज्यादा समय तक नही ।"
"कब तक "
" सिर्फ चाँद के निकलने तक अर्थात जैसे ही चंद्रमा की किरणें धरती से टकराएंगी नित्या के चारों तरफ बना ये तंत्र का कवच टूट जाएगा और उसका शरीर फिर से काला होने लगेगा।"
"मतलब हमारे पास सिर्फ शाम तक का समय हैं।"
"हा और इसी समय में हमें इसका उपाय ढूँढना होगा।"
"तो इसका उपाय क्या हैं ?"
"मुझे नही पता ।"
"आपको नही पता तो मेरी नित्या को अब कौन बचाएगा।कुछ तो तरीका होगा आपके पास । आपके पास तो काफी शक्तियां हैं बचा लीजिये मेरी बच्ची को।"
"जो कुछ भी अभी मैने देखा उसके बारे में मुझे कुछ नही पता । मुझे खुद ही नही समझ में आ रहा कि मैं क्या और कैसे करूँ।"
"लेकिन कुछ तो होगा ना , कोई तो होगा जो हमें बता सकता हैं।"
"इसके बारे में एक ही इंसान हैं जो हमारी मदद कर सकता हैं और वो हैं गुरुमहाराज। आप लोग नित्या का ख्याल रखिये ।मैं आपने गुरु जी से इसका उपाय ढूंढने में मदद करती हूँ ।"
"सृष्टि जी रुकिए , मैं भी आपके साथ चलता हूँ ।" कहते हुए नितिन सृष्टि के साथ गुरुमहाराज के पास जाते हैं। गुरुमहाराज आँखे बंद किये ध्यान अवस्था में बैठे हुए थे।सृष्टि को आते देख वो उठ खड़े हुए।
"गुरु जी , ये नितिन जी हैं "सृष्टि इससे आगे कुछ कहती गुरु जी ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया।
"कुछ भी बताने की जरुरत नही हैं , मुझे पता हैं ये कौन हैं और यहाँ क्यों आये हैं।"
"गुरुमहाराज मुझे पता हैं किसी अपरिचित को यहाँ लाने का आदेश नही हैं आपका लेकिन फिर भी मैं इन्हें यहाँ लायी हूँ क्योंकि
"क्योंकि इनकी बेटी की चिंता इन्हें यहाँ खीच लायी हैं।"
"आप तो सब कुछ जानते हैं महराज । अब मेरी मदद कीजिये और मेरी बच्ची को बचा लीजिये।"
"आज अपनी बच्ची की चिंता हैं उस वक्त कहाँ थी जब एक निर्दोष बच्ची तुम्हारे अस्पताल में तुम्हारी वजह से मर गयी थी। "गुरुमहाराज के मुँह से ऐसी बाते सुनकर नितिन आश्चर्य होकर उन्हें देखता रहा । उसे कुछ भी नही समझ आ रहा था कि वो किनकी बात कर रहे हैं ?
"याद नही आया ना कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ ।"
"नही महराज "
"आज से 5 साल पहले तुम्हारे अस्पताल में राघव नाम का एक कम्पाउंडर काम करता था । याद आया कि नही ।"
"हा उसकी बेटी की असमय मौत हो जाने से वो पागल सा हो गया था और फिर ना जाने कहाँ गायब हो गया । मैने बहुत पता लगाने की कोशिश की लेकिन उसका कोई भी पता नही लग पाया।"
"उसकी बेटी की असमय मौत के कारण तुम थे।"
"ये आप क्या कह रहे हैं ? मैं ऐसा करना तो दूर सोच भी नही सकता।"
"हा तुमने जानबूझ कर तो नही किया लेकिन कही ना कही उसकी वजह तुम ही थे।"
"लेकिन कैसे"
"जब उसकी बच्ची पर कोई भी दवा असर नही कर रही थी तो वो मेरे पास ही आया था और मैने उसे बेटी को यहाँ लाने को कहा था लेकिन तुमने ये सब अन्धविश्वास कह कर उसे लाने से मना कर दिया और उसकी मौत हो गयी। अगर तुम्हे याद होगा उसका उस समय वही हाल था जो इस समय तुम्हारी बेटी का। उसे भी बचाया जा सकता था अगर तुम उसे सही समय पर मेरे पास लाने देते।"
"हा याद हैं मुझे लेकिन उस समय मैं इन सब बातों पर विस्वाश ही नही था और मुझे ये सब ढोंग लगता था।"
"और आज तुम्हे ये सब ढोंग नही लगता क्योंकि सब कुछ खुद देखा हैं और सहा हैं। जब इंसान पर खुद बीतती हैं तो उसे ना चाह कर भी यकीन करना ही पड़ता है। तुम्हे जानकार आश्चर्य होगा कि जिस आत्मा का शिकार वो लड़की थी उसी ने तुम्हारी बेटी को भी अपने वश में कर रखा हैं।"
"गुरुमहराज मैं वो गलती सुधार तो नही सकता और ना ही उसकी कोई माफ़ी हो सकती हैं । उसकी जो भी सजा हो मुझे दे दीजिए लेकिन मेरी बेटी को बचा लीजिये।"
"तुम्हारी बेटी को बचाना नामुमकिन तो नही लेकिन बहुत मुश्किल हैं। किसी भी आत्मा के चंगुल से बचाने के लिए सबसे पहले उसके अतीत के बारे में जानना जरूरी होता है। जबतक उस आत्मा के बारे में हम नही जान सकते उसके छुटकारा पाने का भी कोई मार्ग नही होता। एक बार उसके बारे जान ले तो तुम्हारी बेटी को बचाना आसान हो जायेगा।"
"गुरु जी लेकिन हम उस आत्मा के बारे में कैसे पता लगाएंगे।"
"एक तरीका हैं उस दिन जब राघव की बेटी की मौत हो गयी थी उसके अंतिम संस्कार के बाद वो मेरे पास आया था और उसने सब कुछ मुझे बताया था । उसके लिए उसकी बेटी ही सब कुछ थी ।अतः उसकी मौत ने उसे तोड़ दिया था और वो माया मोह से विमुक्त हो चूका था। मेरे पास रहकर वो आत्माओं से लड़ने और जो उसकी बेटी के साथ हुआ वो किसी के साथ ना हो इसलिये मेरे पास रहकर साधना करने लगा। सृष्टि उस समय तुम्हारे पिता और राघव में बहुत ग़हरी दोस्ती हो गयी थी। वो हर काम साथ साथ करते थे और तभी उस आत्मा ने नित्या को अपना शिकार बनाया । नित्या के साथ 2 साल पहले जो भी हुआ था उसे देखकर दोनों को समझ में आ गया था कि ये और कोई नही वही आत्मा थी जिसने राघव की बेटी को अपना शिकार बनाया था। पता लगते ही राघव उसके बारे में पता लगाने में जी जान से जुट गया और हम सभी से दूर होकर ना जाने कहाँ गायब हो गया । कोई नही जानता वो कहाँ हैं और उसके साथ क्या हुआ ? और तुम्हारे पिता भी तुम्हारे पास चले गए थे और ये वाक्या यही बंद हो गया लेकिन मुझे बाद में पता चला कि राघव को उस आत्मा के बारे में पता चल गया था और उससे संबंधित कोई सबूत भी उसके हाथ लग गया था जिसे उसने तुम्हारे पिता को विदेश जाने से पूर्व दिया था और वो उन्होंने कही छुपा के रख दिया था। उस सबूत का उस आत्मा और तुम्हारे पिता के साथ उस रात बंद कमरे में क्या हुआ ये सिर्फ वही जानते थे और शायद वो आत्मा कौन थी इसके बारे में वो जान चुके थे इसलिए उसने उन्हें मार दिया।"
"लेकिन अब हमें क्या करना होगा । अब हम कैसे पता करेंगे कि वो कौन हैं ? क्योंकि अब ना तो पिता जी हैं और ही राघव अंकल और फिर वो क्या सबूत था और कहाँ होगा । हमें तो ये
भी नही पता कि वो है भी कि नही। सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब कोई नही।"
"अभी कुछ दिन पहले मुझे कुछ सूत्रों से राघव के बारे में पता चला हैं । यहाँ भी 50 किलोमीटर दूर जंगल के दाहिनी भाग में राघव ने खुद को एक कुटिया में कैद कर रखा हैं । अगर तुम लोग उसे ढूंढ सको तो शायद उस आत्मा के बारे में पता कर सकते हैं और फिर उससे कैसे निपटना हैं ये पता लग सकता हैं। गुरुमहाराज की बात सुनकर सृष्टि और नितिन बताई जगह पर राघव को खोजने निकल पड़ते हैं।
नितिन और सृष्टि के पास समय की ही कमी हैं अगर सही समय पर उस आत्मा के बारे में उन्हें नही पता चला तो नित्या को बचाना शायद नामुमकिन हो जायेगा इसलिए दोनों बिना समय गवाए राघव को ढूंढने के लिए गुरुमहाराज की बताई जगह पर निकल जाते हैं । 50 किलोमीटर का सफर वैसे तो कोई बहुत ज्यादा लंबा नही होता लेकिन जब किसी के जीवन और मौत का सवाल हो तो राहे बहुत लंबी हो जाती हैं । समय बहुत तेजी से गुजर रहा था और दूसरी तरफ राघव को ढूँढना भी मुश्किल हो रहा था। काफी तकलीफों और मशक्कत के बाद आखिर उन दोनों को राघव का पता चल ही गया। दोनों ही पैदल कुटिया की तरफ जाने लगते हैं। बड़े बड़े और घने पेड़ो से घिरा जंगल और उसके दूसरे छोर पर बनी कुटिया मन में एक अजीब सी सिरहन पैदा कर रही थी। अहिस्ता अहिस्ता सहमे क़दमो से दोनों कुटिया की तरफ बढ़ने लगे। कुटिया के दरवाजे पर पहुँचकर सृष्टि ने दरवाजा खटखटाया और आवाज दी लेकिन अंदर से कोई प्रतिउत्तर नही मिला। कई बार खटखटाने पर भी जब कोई उत्तर नही मिला तो सृष्टि ने दरवाजे को धीऱे से धक्का दिया और हलके धक्के से ही वो अपनेआप खुल गया । नितिन और सृष्टि
दोनों कुटिया के अंदर पहुँच गये लेकिन उन्हें वहाँ कोई नही मिला । वहाँ के बिखरे सामान को देखकर लग रहा था कि यहाँ कोई ना कोई रहता तो हैं और आधी खाना खायी प्लेट को देखकर लग रहा था जैसे किसी ने जल्दबाजी में खाना छोड़ कर छुप गया हो।
"अंकल ,राघव अंकल कहाँ हैं आप। मैं सृष्टि पंडित जी की बेटी हूँ । मुझसे आपको डरने या छुपने की जरुरत नही है।"
"अंकल प्लीज आ जाइये , हमें आपकी मदद की जरुरत हैं। सृष्टि ने बहुत आवाज दी लेकिन किसी की जरा भी ना आहट हुई और ना ही किसी ने कोई आवाज दी। " हताश होकर दोनों वहाँ से जाने लगे तभी सृष्टि की नजर जमीन पर पड़े एक बिछौने पर गयी जो किनारे से थोड़ा सा मुड़ा हुआ था और उससे हल्की हल्की रौशनी आती हुई दिखाई दे रही थी। सृष्टि ने उसके पास पहुँचकर उस मुड़े हुए बिछौने को पलट दिया और वहाँ नीचे को जाता हुआ सीढ़ीदार रास्ता देख दोनों आश्चर्यचकित हो गए। दोनों ही उन सीढ़ियों से बने रास्ते से नीचे की ओर जाने लगे।
उन सीढ़ियों से वो दोनों एक छोटे से कमरे में पहुँच गये । पूरा कमरे में हल्की मध्यम सी रौशनी फैली हुई थी। कमरे के एक किनारे पर खटिया पड़ी हुई थी जिसके ऊपर फटा हुआ मैला एक चादर बिछा हुआ था। खटिया के बगल में ही एक मेज रखी हुई थी जिसपर पानी से भरा हुआ एक घड़ा और एक गिलास रखा हुआ था। खटिया के ही दूसरे किनारे ही जमीन पर काले फटे हुए से कंबल से खुद को ढके बैठा हुआ था । उसकी तेज चलती सांसे उस सुनसान कमरे में साफ साफ सुनाई दे रही थी।
"अंकल , राघव अंकल " कहते हुए सृष्टि धीऱे धीऱे क़दमों से उस
इंसान की तरफ बढ़ने लगती हैं और उसके बढ़ने से वो आदमी ख़ुद को और भी अपनेआप में समेटते जा रहा था। सृष्टि ने उनके पास पहुँच कर जैसे ही उनके कंधे पर हाथ रखा राघव ने झटकते हुए उसका हाथ दूर कर दिया और वहाँ से भागकर दूसरे किनारे पर खुद को फिर से छुपाने का प्रयास करने लगा।
"अंकल आप डरिये मत । हम आपको कोई नुकसान नही पहुँचाने आये थे । हमें आपकी मदद की जरुरत हैं।"कहते हुए सृष्टि उनकी तरफ बढ़ने लगी।
"जाओ यहाँ से मैं किसी को नही जानता । जाओ यहाँ से , भाग जाओ । मुझे नही मिलना जाओ जाओ" कंबल से अपना एक हाथ निकाल कर हिलाते हुए वहाँ से जाने को कहते हैं।
"अंकल प्लीज एक बार हमारी बात सुन लीजिये फिर हम यहाँ से चले जायेंगे।"
"राघव जी प्लीज हमारी मदद कीजिये। " नितिन के कहने पर भी राघव ने कोई प्रतिउत्तर नही दिया।
"जाओ जाओ भाग जाओ जाओ मुझे नही सुनना। जाओ यहाँ से। "कहते हुए वो फिर वहाँ से हटकर खटिया पर घुड़मुढाकर अपने को छुपा लेते हैं।
"सृष्टि जी चलिये लग रहा ये हमारी मदद नही करेंगे। हमें उनके बारे में पता करने के लिए कुछ और ही करना होगा।"कहते हुए नितिन जाने के लिए पलटता हैं लेकिन सृष्टि इशारे से उन्हें रुकने के लिए कहती है।
"राघव अंकल मुझे नही पता आपको क्या हुआ और आप ऐसा
क्यों कर रहे हैं लेकिन जहाँ तक पिता जी ने आपके बारे में मुझे बताया कि आप तो हमेशा सबकी सहायता के लिए तैयार रहते थे तो आज आपको ऐसा क्यों हो गया। पिता जी से जब भी मेरी बात होती थी वो सिर्फ आपकी ही बातें करते रहते थे। " सृष्टि के ये सब कहने पर राघव ने कंबल से अपना चेहरा निकलते हुए उनकी तरफ देखने लगता है। सृष्टि ने सही समय सोचकर आगे कहना शुरू किया।
"मुझे पता हैं कि जब आपकी बेटी की मौत काली शक्तियों की वजह से हुई थी तभी आपने इस दुनिया में कदम रखकर सबकी मदद करने का वचन लिया था और जिस आत्मा ने आपकी बेटी को आपसे छीन लिया आज वही आत्मा फिर से एक बेटी को ले जाने के लिए मुँह फैलाये खड़ी हैं। आप नही चाहते क्या कि आपकी बेटी को ले जाने वाली को सजा मिलनी चाहिए जिससे वो किसी और पिता को अपनी बेटी को खोने के दर्द को सहना ना पड़े। " सृष्टि की बातों का उन पर असर होता दिख रहा था । राघव सृष्टि की बातों को ध्यान से सुन रहे थे और अपने ऊपर से कंबल को हटा दिए थे। अपनी बातों पर गौर करते देख सृष्टि आगे कहने लगी।