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Horror वो कौन थी?

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adeswal
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Re: Thriller वो कौन थी?

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"सृष्टि जी आपको क्या हो गया था और ये सब क्या और नित्या के शरीर पर ये कालापन क्यों आ रहा था।"





"नित्या बहुत बड़ी समस्या में हैं , हमें उसे बचाना होगा।" जोर से हाँफते हुए सृष्टि ने कहा।





"ये आप क्या कह रही हैं?"





"मैं जो कह रही हूँ वही सच हैं। हम लोग सोच रहे थे कि जिस आत्मा ने नित्या के शरिर पर कब्ज़ा किया था वो छोड़ के चली गयी लेकिन हम पूरी तरह से गलत थे। वो चली तो गयी लेकिन अपनी परछाई छोड़ गयी। इसलिए वो कह रही थी कि वो जल्दी ही इसे ले जाएगी क्योंकि आत्मा को शरीर से दूर किया जा सकता हैं लेकिन परछाई को दूर करना असंभव हैं और इसीलिए उसने ये तरीका निकाला ।"








"परछाई मतलब "





" मतलब ये कि अभी अभी मैने जो कुछ भी किया वो ये सब पता लगाने के लिए किया और आपको जानकर आश्चर्य और दुःख होगा कि हमारे पास बहुत कम वक्त हैं नित्या को बचाने का। मैने जब अभी नित्या के माथे पर हाथ रखा और मन्त्र पढ़ा तो अपनी अंतरनिहित शक्तियों के इस्तेमाल के द्वारा देखा कि नित्या का शरीर एक धुएं के रूप में एक अलग दूसरी दुनिया में खिंचता जा रहा था ।जैसे ही नित्या का शरीर काला पड़ता जायेगा वैसे वैसे वो उस दूसरी दुनिया में जाती रहेगी और जैसे ही उसका शरीर पूरी तरह स्याह हो जायेगा , वो एक परछाई में बदल जायेगी और फिर वो उस दुनिया में कैद होकर रह जायेगी और फिर इस दुनिया में वापसी का कोई भी मार्ग शेष नही बचेगा इसलिए अभी मैने कुछ समय के लिए नित्या के शरीर को परछाई बनने से रोक दिया हैं लेकिन ज्यादा समय तक नही ।"





"कब तक "





" सिर्फ चाँद के निकलने तक अर्थात जैसे ही चंद्रमा की किरणें धरती से टकराएंगी नित्या के चारों तरफ बना ये तंत्र का कवच टूट जाएगा और उसका शरीर फिर से काला होने लगेगा।"





"मतलब हमारे पास सिर्फ शाम तक का समय हैं।"





"हा और इसी समय में हमें इसका उपाय ढूँढना होगा।"





"तो इसका उपाय क्या हैं ?"


"मुझे नही पता ।"








"आपको नही पता तो मेरी नित्या को अब कौन बचाएगा।कुछ तो तरीका होगा आपके पास । आपके पास तो काफी शक्तियां हैं बचा लीजिये मेरी बच्ची को।"





"जो कुछ भी अभी मैने देखा उसके बारे में मुझे कुछ नही पता । मुझे खुद ही नही समझ में आ रहा कि मैं क्या और कैसे करूँ।"





"लेकिन कुछ तो होगा ना , कोई तो होगा जो हमें बता सकता हैं।"





"इसके बारे में एक ही इंसान हैं जो हमारी मदद कर सकता हैं और वो हैं गुरुमहाराज। आप लोग नित्या का ख्याल रखिये ।मैं आपने गुरु जी से इसका उपाय ढूंढने में मदद करती हूँ ।"





"सृष्टि जी रुकिए , मैं भी आपके साथ चलता हूँ ।" कहते हुए नितिन सृष्टि के साथ गुरुमहाराज के पास जाते हैं। गुरुमहाराज आँखे बंद किये ध्यान अवस्था में बैठे हुए थे।सृष्टि को आते देख वो उठ खड़े हुए।





"गुरु जी , ये नितिन जी हैं "सृष्टि इससे आगे कुछ कहती गुरु जी ने हाथ के इशारे से उसे रोक दिया।





"कुछ भी बताने की जरुरत नही हैं , मुझे पता हैं ये कौन हैं और यहाँ क्यों आये हैं।"





"गुरुमहाराज मुझे पता हैं किसी अपरिचित को यहाँ लाने का आदेश नही हैं आपका लेकिन फिर भी मैं इन्हें यहाँ लायी हूँ क्योंकि





"क्योंकि इनकी बेटी की चिंता इन्हें यहाँ खीच लायी हैं।"








"आप तो सब कुछ जानते हैं महराज । अब मेरी मदद कीजिये और मेरी बच्ची को बचा लीजिये।"





"आज अपनी बच्ची की चिंता हैं उस वक्त कहाँ थी जब एक निर्दोष बच्ची तुम्हारे अस्पताल में तुम्हारी वजह से मर गयी थी। "गुरुमहाराज के मुँह से ऐसी बाते सुनकर नितिन आश्चर्य होकर उन्हें देखता रहा । उसे कुछ भी नही समझ आ रहा था कि वो किनकी बात कर रहे हैं ?





"याद नही आया ना कि मैं किसकी बात कर रहा हूँ ।"





"नही महराज "





"आज से 5 साल पहले तुम्हारे अस्पताल में राघव नाम का एक कम्पाउंडर काम करता था । याद आया कि नही ।"





"हा उसकी बेटी की असमय मौत हो जाने से वो पागल सा हो गया था और फिर ना जाने कहाँ गायब हो गया । मैने बहुत पता लगाने की कोशिश की लेकिन उसका कोई भी पता नही लग पाया।"





"उसकी बेटी की असमय मौत के कारण तुम थे।"





"ये आप क्या कह रहे हैं ? मैं ऐसा करना तो दूर सोच भी नही सकता।"





"हा तुमने जानबूझ कर तो नही किया लेकिन कही ना कही उसकी वजह तुम ही थे।"








"लेकिन कैसे"





"जब उसकी बच्ची पर कोई भी दवा असर नही कर रही थी तो वो मेरे पास ही आया था और मैने उसे बेटी को यहाँ लाने को कहा था लेकिन तुमने ये सब अन्धविश्वास कह कर उसे लाने से मना कर दिया और उसकी मौत हो गयी। अगर तुम्हे याद होगा उसका उस समय वही हाल था जो इस समय तुम्हारी बेटी का। उसे भी बचाया जा सकता था अगर तुम उसे सही समय पर मेरे पास लाने देते।"





"हा याद हैं मुझे लेकिन उस समय मैं इन सब बातों पर विस्वाश ही नही था और मुझे ये सब ढोंग लगता था।"





"और आज तुम्हे ये सब ढोंग नही लगता क्योंकि सब कुछ खुद देखा हैं और सहा हैं। जब इंसान पर खुद बीतती हैं तो उसे ना चाह कर भी यकीन करना ही पड़ता है। तुम्हे जानकार आश्चर्य होगा कि जिस आत्मा का शिकार वो लड़की थी उसी ने तुम्हारी बेटी को भी अपने वश में कर रखा हैं।"





"गुरुमहराज मैं वो गलती सुधार तो नही सकता और ना ही उसकी कोई माफ़ी हो सकती हैं । उसकी जो भी सजा हो मुझे दे दीजिए लेकिन मेरी बेटी को बचा लीजिये।"





"तुम्हारी बेटी को बचाना नामुमकिन तो नही लेकिन बहुत मुश्किल हैं। किसी भी आत्मा के चंगुल से बचाने के लिए सबसे पहले उसके अतीत के बारे में जानना जरूरी होता है। जबतक उस आत्मा के बारे में हम नही जान सकते उसके छुटकारा पाने का भी कोई मार्ग नही होता। एक बार उसके बारे जान ले तो तुम्हारी बेटी को बचाना आसान हो जायेगा।"








"गुरु जी लेकिन हम उस आत्मा के बारे में कैसे पता लगाएंगे।"





"एक तरीका हैं उस दिन जब राघव की बेटी की मौत हो गयी थी उसके अंतिम संस्कार के बाद वो मेरे पास आया था और उसने सब कुछ मुझे बताया था । उसके लिए उसकी बेटी ही सब कुछ थी ।अतः उसकी मौत ने उसे तोड़ दिया था और वो माया मोह से विमुक्त हो चूका था। मेरे पास रहकर वो आत्माओं से लड़ने और जो उसकी बेटी के साथ हुआ वो किसी के साथ ना हो इसलिये मेरे पास रहकर साधना करने लगा। सृष्टि उस समय तुम्हारे पिता और राघव में बहुत ग़हरी दोस्ती हो गयी थी। वो हर काम साथ साथ करते थे और तभी उस आत्मा ने नित्या को अपना शिकार बनाया । नित्या के साथ 2 साल पहले जो भी हुआ था उसे देखकर दोनों को समझ में आ गया था कि ये और कोई नही वही आत्मा थी जिसने राघव की बेटी को अपना शिकार बनाया था। पता लगते ही राघव उसके बारे में पता लगाने में जी जान से जुट गया और हम सभी से दूर होकर ना जाने कहाँ गायब हो गया । कोई नही जानता वो कहाँ हैं और उसके साथ क्या हुआ ? और तुम्हारे पिता भी तुम्हारे पास चले गए थे और ये वाक्या यही बंद हो गया लेकिन मुझे बाद में पता चला कि राघव को उस आत्मा के बारे में पता चल गया था और उससे संबंधित कोई सबूत भी उसके हाथ लग गया था जिसे उसने तुम्हारे पिता को विदेश जाने से पूर्व दिया था और वो उन्होंने कही छुपा के रख दिया था। उस सबूत का उस आत्मा और तुम्हारे पिता के साथ उस रात बंद कमरे में क्या हुआ ये सिर्फ वही जानते थे और शायद वो आत्मा कौन थी इसके बारे में वो जान चुके थे इसलिए उसने उन्हें मार दिया।"





"लेकिन अब हमें क्या करना होगा । अब हम कैसे पता करेंगे कि वो कौन हैं ? क्योंकि अब ना तो पिता जी हैं और ही राघव अंकल और फिर वो क्या सबूत था और कहाँ होगा । हमें तो ये


भी नही पता कि वो है भी कि नही। सवाल बहुत हैं लेकिन जवाब कोई नही।"





"अभी कुछ दिन पहले मुझे कुछ सूत्रों से राघव के बारे में पता चला हैं । यहाँ भी 50 किलोमीटर दूर जंगल के दाहिनी भाग में राघव ने खुद को एक कुटिया में कैद कर रखा हैं । अगर तुम लोग उसे ढूंढ सको तो शायद उस आत्मा के बारे में पता कर सकते हैं और फिर उससे कैसे निपटना हैं ये पता लग सकता हैं। गुरुमहाराज की बात सुनकर सृष्टि और नितिन बताई जगह पर राघव को खोजने निकल पड़ते हैं।


























नितिन और सृष्टि के पास समय की ही कमी हैं अगर सही समय पर उस आत्मा के बारे में उन्हें नही पता चला तो नित्या को बचाना शायद नामुमकिन हो जायेगा इसलिए दोनों बिना समय गवाए राघव को ढूंढने के लिए गुरुमहाराज की बताई जगह पर निकल जाते हैं । 50 किलोमीटर का सफर वैसे तो कोई बहुत ज्यादा लंबा नही होता लेकिन जब किसी के जीवन और मौत का सवाल हो तो राहे बहुत लंबी हो जाती हैं । समय बहुत तेजी से गुजर रहा था और दूसरी तरफ राघव को ढूँढना भी मुश्किल हो रहा था। काफी तकलीफों और मशक्कत के बाद आखिर उन दोनों को राघव का पता चल ही गया। दोनों ही पैदल कुटिया की तरफ जाने लगते हैं। बड़े बड़े और घने पेड़ो से घिरा जंगल और उसके दूसरे छोर पर बनी कुटिया मन में एक अजीब सी सिरहन पैदा कर रही थी। अहिस्ता अहिस्ता सहमे क़दमो से दोनों कुटिया की तरफ बढ़ने लगे। कुटिया के दरवाजे पर पहुँचकर सृष्टि ने दरवाजा खटखटाया और आवाज दी लेकिन अंदर से कोई प्रतिउत्तर नही मिला। कई बार खटखटाने पर भी जब कोई उत्तर नही मिला तो सृष्टि ने दरवाजे को धीऱे से धक्का दिया और हलके धक्के से ही वो अपनेआप खुल गया । नितिन और सृष्टि


दोनों कुटिया के अंदर पहुँच गये लेकिन उन्हें वहाँ कोई नही मिला । वहाँ के बिखरे सामान को देखकर लग रहा था कि यहाँ कोई ना कोई रहता तो हैं और आधी खाना खायी प्लेट को देखकर लग रहा था जैसे किसी ने जल्दबाजी में खाना छोड़ कर छुप गया हो।





"अंकल ,राघव अंकल कहाँ हैं आप। मैं सृष्टि पंडित जी की बेटी हूँ । मुझसे आपको डरने या छुपने की जरुरत नही है।"





"अंकल प्लीज आ जाइये , हमें आपकी मदद की जरुरत हैं। सृष्टि ने बहुत आवाज दी लेकिन किसी की जरा भी ना आहट हुई और ना ही किसी ने कोई आवाज दी। " हताश होकर दोनों वहाँ से जाने लगे तभी सृष्टि की नजर जमीन पर पड़े एक बिछौने पर गयी जो किनारे से थोड़ा सा मुड़ा हुआ था और उससे हल्की हल्की रौशनी आती हुई दिखाई दे रही थी। सृष्टि ने उसके पास पहुँचकर उस मुड़े हुए बिछौने को पलट दिया और वहाँ नीचे को जाता हुआ सीढ़ीदार रास्ता देख दोनों आश्चर्यचकित हो गए। दोनों ही उन सीढ़ियों से बने रास्ते से नीचे की ओर जाने लगे।





उन सीढ़ियों से वो दोनों एक छोटे से कमरे में पहुँच गये । पूरा कमरे में हल्की मध्यम सी रौशनी फैली हुई थी। कमरे के एक किनारे पर खटिया पड़ी हुई थी जिसके ऊपर फटा हुआ मैला एक चादर बिछा हुआ था। खटिया के बगल में ही एक मेज रखी हुई थी जिसपर पानी से भरा हुआ एक घड़ा और एक गिलास रखा हुआ था। खटिया के ही दूसरे किनारे ही जमीन पर काले फटे हुए से कंबल से खुद को ढके बैठा हुआ था । उसकी तेज चलती सांसे उस सुनसान कमरे में साफ साफ सुनाई दे रही थी।





"अंकल , राघव अंकल " कहते हुए सृष्टि धीऱे धीऱे क़दमों से उस


इंसान की तरफ बढ़ने लगती हैं और उसके बढ़ने से वो आदमी ख़ुद को और भी अपनेआप में समेटते जा रहा था। सृष्टि ने उनके पास पहुँच कर जैसे ही उनके कंधे पर हाथ रखा राघव ने झटकते हुए उसका हाथ दूर कर दिया और वहाँ से भागकर दूसरे किनारे पर खुद को फिर से छुपाने का प्रयास करने लगा।





"अंकल आप डरिये मत । हम आपको कोई नुकसान नही पहुँचाने आये थे । हमें आपकी मदद की जरुरत हैं।"कहते हुए सृष्टि उनकी तरफ बढ़ने लगी।





"जाओ यहाँ से मैं किसी को नही जानता । जाओ यहाँ से , भाग जाओ । मुझे नही मिलना जाओ जाओ" कंबल से अपना एक हाथ निकाल कर हिलाते हुए वहाँ से जाने को कहते हैं।





"अंकल प्लीज एक बार हमारी बात सुन लीजिये फिर हम यहाँ से चले जायेंगे।"





"राघव जी प्लीज हमारी मदद कीजिये। " नितिन के कहने पर भी राघव ने कोई प्रतिउत्तर नही दिया।





"जाओ जाओ भाग जाओ जाओ मुझे नही सुनना। जाओ यहाँ से। "कहते हुए वो फिर वहाँ से हटकर खटिया पर घुड़मुढाकर अपने को छुपा लेते हैं।





"सृष्टि जी चलिये लग रहा ये हमारी मदद नही करेंगे। हमें उनके बारे में पता करने के लिए कुछ और ही करना होगा।"कहते हुए नितिन जाने के लिए पलटता हैं लेकिन सृष्टि इशारे से उन्हें रुकने के लिए कहती है।





"राघव अंकल मुझे नही पता आपको क्या हुआ और आप ऐसा


क्यों कर रहे हैं लेकिन जहाँ तक पिता जी ने आपके बारे में मुझे बताया कि आप तो हमेशा सबकी सहायता के लिए तैयार रहते थे तो आज आपको ऐसा क्यों हो गया। पिता जी से जब भी मेरी बात होती थी वो सिर्फ आपकी ही बातें करते रहते थे। " सृष्टि के ये सब कहने पर राघव ने कंबल से अपना चेहरा निकलते हुए उनकी तरफ देखने लगता है। सृष्टि ने सही समय सोचकर आगे कहना शुरू किया।





"मुझे पता हैं कि जब आपकी बेटी की मौत काली शक्तियों की वजह से हुई थी तभी आपने इस दुनिया में कदम रखकर सबकी मदद करने का वचन लिया था और जिस आत्मा ने आपकी बेटी को आपसे छीन लिया आज वही आत्मा फिर से एक बेटी को ले जाने के लिए मुँह फैलाये खड़ी हैं। आप नही चाहते क्या कि आपकी बेटी को ले जाने वाली को सजा मिलनी चाहिए जिससे वो किसी और पिता को अपनी बेटी को खोने के दर्द को सहना ना पड़े। " सृष्टि की बातों का उन पर असर होता दिख रहा था । राघव सृष्टि की बातों को ध्यान से सुन रहे थे और अपने ऊपर से कंबल को हटा दिए थे। अपनी बातों पर गौर करते देख सृष्टि आगे कहने लगी।
adeswal
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Re: Thriller वो कौन थी?

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"उस दिन आपकी बेटी को वो आत्मा लेकर अपने साथ चली गयी और आप उसका कुछ भी नही बिगाड़ पाये थे और आज वही आत्मा फिर एक पिता से उसकी बेटी को हमेशा के लिए दूर कर देना चाहती हैं। क्या आप नही चाहते कि अब किसी पिता को अपनी बेटी खोनी ना पड़े और इसमें सिर्फ आप ही हमारी मदद कर सकते हैं।"





"मैं किस तरफ से मदद कर सकता हूँ ।" राघव के कहते ही सृष्टि और नितिन की आँखों में ख़ुशी की चमक उभर आई। सृष्टि उनके पास गई और पहले घड़े से पानी निकाल कर दिया और


आराम से बैठने को कहा और दोनों पास में ही बैठ गए।





अंकल वो कौन थी जो ये सब किया ।"सृष्टि और नितिन ने नित्या के साथ हुई पूरी घटना के बारे में विस्तार से बताया।





"सृष्टि जब मुझे पता चला कि नित्या को अपने वश में करने वाली आत्मा वही हैं जिसने मुझसे मेरी बच्ची को छीन लिया तो मैं उसके बारे में पता लगाने के लिए सबसे दूर हो गया और पता लगने के बाद मैं तुम्हारे पिता जी को बताने के लिए उनके पास गया लेकिन उनको तुम्हारे पास आने की ख़ुशी को देखकर उन्हें कुछ भी नही बताया बस एक डिब्वा देकर उसे संभाल कर रखने को कहकर जाने लगा। उन्होंने उसके बारे में बहुत पूछा लेकिन मैंने सही समय पर बताने का वादा कर वहाँ से चला गया। फिर तुम्हारे पिता जी तुम्हारे पास चले गए और उस आत्मा से मुक्ति का उपाय ढूंढने लगा। उस दिन जब तुम्हारे पिता जी यहाँ वापस आये उन्होंने मुझे फोन किया और अपने आने की सूचना दी।मैने भी किसी दिन मिलने को कहकर अपने काम में लग गया लेकिन रात 1 बजे जब उनका कॉल देख मै परेशान हो गया और तुरंत ही फोन उठाया लेकिन उधर से कोई आवाज नही आयी। मैने फ़ोन कर करके फिर से मिलाया तो उधर से तुम्हारे पिता जी की घबराई हुई आवाज सुन मैं बहुत ही परेशान हो गया। मैं बार बार पूछता रहा क्या हुआ लेकिन वहाँ से सिर्फ चीखने की आवाजें आने लगी। मैने बिना कुछ सोचे समझे फोन रखा और तुम्हारे घर की तरफ भागा। तुम्हारे पिता के कमरे में पहुँचते ही वहाँ का माहौल देख बहुत घबरा गया। पूरे कमरे में सारा सामान हवा में उड़ रहा था और उसके बीच में तुम्हारे पिता भी किसी भवँर में फॅसे हुए इंसान की तरफ तड़प रहे थे। मैने उनकी तरफ बढ़कर उन्हें बचाना चाहा तो मुझे उस भवँर के पास तक भी जा नही पाया।जैसे ही मैं उन्हें बचाने के लिए पास जाता मुझे एक झटके के साथ कोई अदृश्य शक्ति दूर फेक देती।


फिर मुझे उसीं शक्ति ने हवा में ही उल्टा लटका दिया और मेरे सामने ही मेरे दोस्त के हड्डियों के टूटने, उनके चीखने और तड़पने की आवाजें मेरे कानों में गूँजने लगी। तभी मुझे उनके दिए गए डिब्बे की याद आयी और मैने किसी तरफ मन्त्र शक्ति के द्वारा अपने आपको को आजाद किया और उस डिब्बे को ढंढने लगा। डिब्बे के मिलते ही मैने अपने दोस्त को छोड़ने या फिर उसे नष्ट करने को कहा लेकिन तभी काले धुएं सा मेरे चारो ओर फैलने लगा और वो आँखों में इतना लगने लगा कि आँखे खोलना भी नामुमकिन हो गया लेकिन तभी किसी ने मुझे पीछे से जोरदार धक्का मारा और मैं उछल कर गिर पड़ा। मेरे हाथ से वो डिब्बा छूट कर गिर गया और मैं बेहोश हो गया। उसके बाद मुझे नही पता कि वहाँ क्या हुआ लेकिन जब होश आया तो खुद को एक सुनसान जगह पर पाया । काफी समय इधर उधर भटकने के बाद भी मुझे वहाँ से निकलने का कोई रास्ता नही मिला और अँधेरा हो गया तो मैं थकहारकर एक जगह बैठ गया। सुबह होते ही मैं रास्ता खोजने इधर से उधर जंगल में भागता रहता लेकिन घूम फिर कर यही वापस आ जाता और अँधेरा होने पर फिर से सुबह होने का इंतजार करने लगता। काफी दिन ऐसे ही भूखे प्यासे रहने से मेरा शरीर कमजोर पड़ने लगा और मैं बेसुध सा होने लगा था। अब शायद मैं हमेशा के लिये यही फॅस कर रह जाऊंगा यही सोचते हुए मैने यहाँ पर एक कुटिया बना ली और आसपास के जंगल से खाने पीने का इंतजाम करने लगा। थोड़े समय बाद ही मुझे महसूस होने लगा कि यहां कोई शक्ति मेरा हर पल पीछा करती हैं । मैं उससे डरकर भागने लगता और तभी मैने एक रात मैने बहुत ही भयानक स्वप्न देखा और नींद खुली तो वो कोई स्वप्न नही बल्कि हकीकत थी। हर पल वो स्वप्न मेरा पीछा करने लगा और मैं इतना डर गया कि खुद को इस घर में यहाँ कैद कर दिया लेकिन तुम लोग यहाँ तक कैसे पहुँचे ?"








"गुरुमहाराज की सहायता से हम आप तक पहुँचने में कामयाब हो पाए। "





"मतलब अब मैं यहां से निकल सकता हूँ ?"





"हा हम आपको यहाँ से साथ ले जाने ही आये हैं।" कहते हुए सृष्टि और नितिन राघव को अपने साथ लेकर आये और गाड़ी में बैठ गए। दोपहर के 3 बज चुके थे और बहुत कम समय था उनके पास नित्या को बचाने का भी बहुत कम समय बचा था इसलिए सृष्टि और नितिन की भी चिंता बढ़ती जा रही थी लेकिन उन्हें ख़ुशी थी कि वो एक पड़ाव पर पहुँच गये थे । अब बस उस आत्मा के बारे में जानना ही शेष था। सृष्टि और नितिन राघव को लेकर गुरुमहाराज के पास आ गए। गुरुमहाराज ने राघव के शीश पर हाथ रखा और कुछ मन्त्र पढ़ने के बाद उसे उसके भय से मुक्त किया।





"राघव हमारे पास नित्या को बचाने का बहुत ही कम समय हैं इसलिए तुम्हे उस आत्मा के बारे में जो भी पता हो शीघ्र अति शीघ्र बताओ जिससे कि उसे बचाया जा सके।"





18 Asterisk


"कहाँ हैं आप कुछ पता चला " घबराते हुए स्वाति का नितिन के पास फोन आता है।





"क्या हुआ स्वाति नित्या को कोई परेशानी तो नही।"





"हैं तभी तो फोन किया।"





"अब क्या हुआ ?"








"नित्या का शरीर फिर से काला पड़ना शुरू हो गया।"





"क्या "





"क्या हुआ नितिन जी , कोई समस्या " नितिन को परेशान देख सृष्टि ने पूछा।





"नित्या का शरीर फिर से काला पड़ना शुरू हो गया ।"कहते हुए नितिन रुआँसा हो गया।


"अब शायद मैं अपनी बच्ची को नही बचा पाउँगा।





"ऐसा मत कहिये नितिन जी । जब तक आपकी बेटी का शरीर पूरी तरह काला नही हो जाता तब तक हमारे पास उसके बचाने का पूरा समय हैं। आप बस संयम और ईश्वर पर भरोसा रखिये।"





"कैसे रखूं समय जब मैं खुद अपनी बेटी को पल पल अपने से दूर होते जाते देख रहा हूँ। हमें तो ये भी नही पता कि आखिर वो कौन हैं और ये सब क्यों कर रही है ?"





"इसके पीछे बहुत लंबी कहानी हैं जिसके बारे में जाने बिना आप उससे छुटकारा नही पा सकते। ना जाने उसने कितनी बच्चियों को काल के ग्रास में समा दिया और ना जाने कितनो के साथ वो करेगी। आज से लगभग 50 साल पहले माधवपुर नाम का एक गाँव था और वहाँ मानसिंह नाम के ज़मीदार का आधिपत्य था। कहने को वो ज़मीदार थे लेकिन वो बहुत नेक, ईमानदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति थे। उनके गाँव में चारों और खुशहाली छायी हुई थी। गरीबी और भुखमरी जैसी किसी समस्या के लिए कोई जगह नही थी लेकिन उनकी एक गलती ने सब कुछ तहसनहस कर दिया।"


आज से लगभग 50 साल पहले माधवपुर नाम का एक गाँव था और वहाँ मानसिंह नाम के ज़मीदार का आधिपत्य था। कहने को वो ज़मीदार थे लेकिन वो बहुत नेक, ईमानदार और सत्यनिष्ठ व्यक्ति थे। उनके गाँव में चारों और खुशहाली छायी हुई थी। गरीबी और भुखमरी जैसी किसी समस्या के लिए कोई जगह नही थी।मानसिंह के पिता के असमय मौत ने मानसिंह के नन्हे कंधों पर जिम्मेदारियों का पहाड़ लाद दिया था और वो नन्हा बालक कब उन जिम्मेदारियों को निभाते निभाते बड़ा हो गया ,पता ही नही चला। नन्ही सी उम्र में ही विपरीत परिस्थितियों का सामना करने के कारण ही वो बहुत ही हिम्मती और सबके दुःख दर्द को समझने वाला हो गया। एक बार रात को जब वो घर वापस आ रहा था तो उसने देखा कि एक जगह बहुत सी भीड़ इकठ्ठा थी और किसी पर चिल्लाने की तेज तेज आवाजे आ रही थी। पास जाकर देखा तो जमीन पर फटे पुराने गंदे कपड़ो में एक लड़की जमीन पर पड़ी रो रही थी और लोग उसे पत्थरो से मार मार कर उसे भगा रहे थे। "तुम सभी का दिमाग खराब हो गया हैं क्या ?" जमीदार की कड़क आवाज सुनते ही वहाँ एकत्रित भीड़ इधर उधर हो गयी ।





"जमीदार साहब वो वो "





"क्या वो वो "





"तुम लोगो को एक औरत के ऊपर इस तरह से पत्थर फेंकते जरा भी शर्म नही आती क्या? "





"नही साहब ये इसी लायक हैं , आप नही जानते इसने क्या किया? इसका यही दंड हैं ? " कहते हुए कुछ लोगो ने हाथों में पत्थर उठा लिया।





"मैने कहा सब लोग फेक दो पत्थर , वर्ना अच्छा नही होगा।"





"साहब आप ये अच्छा नही कर रहे हैं। आप नही जानते इसने क्या किया हैं ?"





"इसने जो भी कुछ किया हो लेकिन तुम लोगो को किसने हक़ दिया किसी औरत पर हाथ उठाने को। औरत , माँ बहन , पत्नी होती हैं उसकी इज्जत करनी चाहिए ना कि इस तरह का सुलूक।"





"अरे साहब आप नही जानते कि ये डायन हैं , इसने अपने पूरे परिवार को खा लिया है और तो और इसने हमारे गाँव की कई बच्चों को गायब कर दिया और पूछने पर कुछ बता भी नही रही।"





"चुप रहो तुम लोग । इस तरह की दकियानूसी बातो करके एक औरत को बदनाम करते शर्म आनी चाहिए।"








"अरे साहब हम सभी सच कह रहे हैं , आप इसका पक्ष लेकर इसे बचाने की कोशिश ना करे। इसे जितनी जल्दी हो यहाँ से भगा दीजिये नही तो ये सभी को खा जायेगी।"





"बस अब मैं और कुछ भी नही सुनना चाहता। अगर तुम लोगो के मन में मेरे लिए जरा सी भी इज्जत हैं तो इसे छोड़ दो और यहाँ से चले जाओ।"





"लेकिन साहब "





"मतलब मेरे लिए तुम लोगो के मन में कुछ भी नही "





"जमीदार साहब हम सभी आपकी बहुत इज्जत करते हैं लेकिन इसका मतलब ये नही कि इसे छोड़ दे लेकिन अगर आपकी यही इक्षा हैं तो ठीक है जैसी आपकी मर्जी लेकिन हम इसे अपने गांव में नही रहने देंगे।" कहते हुए सारे गाँव वाले ज़मीदार की बात मानकर वहाँ से चले गए। जमीदार ने उस लड़की को जमीन से उठाया और पास में एक जगह पर बिठा के पीने के लिए पानी दिया।





"अब आप ठीक हैं न?"





"जी, मैं ठीक हूँ । आपका बहुत बहुत धन्यवाद जमीदार साहब लेकिन आपको मुझे नही बचाना चाहिए था। मुझे मर ही जाना चाहिए था। " कहते हुए वो दोनों हाथों से अपने चेहरे को ढके रोने लगी।





"अरे ऐसा नही कहना चाहिए। जिंदगी हँसी ख़ुशी से जीने के लिए होती हैं ना कि इस तरह से घुट घुट कर रहने के लिए।


अच्छा ये बताइये आप इतनी हताश क्यों हैं ? और ये गांव वाले आपके साथ इतना बुरा बर्ताव क्यों कर रहे हैं। " ज़मीदार के पूछने पर कुछ नही बोली और जोर जोर से रोने लगी।





"अरे आप रोइये मत, अगर नही बताना चाहे तो मत बताइये लेकिन प्लीज चुप हो जाइये।"





"क्या बताऊँ साहब , मेरे जन्म लेते ही मेरी माँ गुजर गई।माँ की मौत के गम में पिता जी ने शराब का सहारा ले लिया और बस उसी पर आश्रित रहने लगा । मेरी मौसी ने मेरा लालन पालन किया लेकिन मेरे बड़ी होते ही वो भी इस दुनिया से चल बसी। पिता जी रोज शराब पीकर आते और मुझे तब तक मारते रहते जब तक मैं बेहोश नही हो जाती।एक दिन वो शराब के नशे में अपने ही एक शराबी साथी के साथ आया और मुझे उससे शादी करने को कहा। मैने जब मना किया तो उसने मुझे खूब मारा पीटा और कमरे में बंद कर दिया। मैं रोती रही चिल्लाती रही लेकिन उनको मुझपर जरा भी दया नही आयी। अगले दिन वो इतना ज्यादा शराब पीकर आया कि खुद ही अपने होश खो बैठा और कुए में गिर कर अपनी जान से हाथ धो बैठे। आप तो जानते ही हैं कि अकेली जवान लड़की जिसपर उसके माता पिता का साया ना हो समाज उसे कितनी बुरी नजर से देखता हैं। लोगो की वासना भरी नजर मुझे अंदर ही अंदर तड़पा देती और मैं बेबस और असहाय खुद को बचाने की नाकाम कोशिश करती रहती। आये दिन मनचले लोग मेरे आगे पीछे घूमने लगे । मैं कहाँ तक और किससे अपनी इज्जत बचाती फिरूँ ।





"इंसान को जिंदगी जीने के लिए पैसो की जरुरत होती हैं और मेरे पास इसका कोई जरिया नही था। आखिर कब तक भूखी प्यासी जिन्दा रह सकती थी। मैने लोगो के घरों में काम करना शुरू किया लेकिन लोग मेरे काम कम और मुझे ज्यादा देखते


थे। मुझे छूने के तरह तरह के बहाने ढूंढते रहते । वासना भरी दृष्टि मुझे अंदर ही अंदर झकझोर देती। एक दिन काम करके लौटते समय मुझे थोड़ा अँधेरा हो गया । मुझे अपने पीछे कुछ लोगो के कदमो की आहट सुनाई दी । मुझे डर सा महसूस होने लगा और मैने अपनी रफ़्तार तेज कर दी तो मेरे पीछे वाले क़दमो की आहट भी और तेज हो गयी । मैने पीछे मुड़ कर देखा तो कुछ लड़के मेरा पीछा कर रहे थे। मुझे बहुत डर लगने लगा कुछ नही समझ आ रहा था कि मैं क्या करूँ । बस अपनी गति तेज की और जंगल की तरफ पहुँच गयी। अभी भी वो सभी मेरा पीछा ही कर रहे थे। गिरते , पड़ते मैं बस भागती ही जा रही थी। मेरे हाथों पैरो में चोट लग गयी थी और उनसे खून निकलने लगा था । आखिर मैं कब तक उन दरिंदों से भागती एक डाली से टकरा कर गिर गयी। भाग भाग कर मैं थक के चूर हो गयी थी । वो सभी मेरे पास आकर मुझे पकड़ लिया और मुझसे जबरदस्ती करने की कोशिश करने लगे लेकिन वहाँ कुछ लोगो के आने की आवाज सुनकर वो सभी वहाँ से भाग खड़े हुए। मैं अधमरी सी वही पड़ी बोहोश हो गयी थी। सुबह जब मुझे होश आया तो अपने को एक कुटिया में पाया। मैं डरी सहमी आश्चर्यचकित होकर इधर उधर देखने लगी। तभी एक साधु कमरे में प्रवेश किये। मुझे डरा और सहमा देख वो मेरे करीब आये और मेरे सर पर हाथ फेरते हुए सांत्वना देने लगे।"





"बेटी तुम्हे हमसे डरने की जरुरत नही हैं। यहाँ तुम अपने आप को बिल्कुल सुरक्षित महसूस कर सकती हो।"





"बाबा मैं यहाँ कैसे कौन लाया मुझे "





"बेटी रात में तुम हमें घायल अवस्था में जंगल में बेहोश मिली तो हम तुम्हे यहाँ उठा लाये। तुम्हारी ये हालत किसने और क्यों की ? " बाबा से अपनेपन से की बातों से मुझे एक सहारा मिला


और मैने उन्हें अपनी सारी आपबीती सुना दी।
adeswal
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Re: Thriller वो कौन थी?

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"बेटी ये समाज हैं ही ऐसा , जहाँ किसी लड़की को अकेला पाया उसे नोचने के लिए तैयार रहता हैं लेकिन अब तुम्हे घबराने की जरुरत नही हैं । मैं तुम्हे खेती बाड़ी और तरह तरह की विद्या सिखाऊंगा जिससे तुम्हें अपने जीवनयापन का सहारा मिल जायेगा। " बाबा के ऐसा कहने पर मेरे मन में एक नव जीवन का संचार हुआ और मैं वही पर उन सभी के साथ रहकर विधा ग्रहण करने लगी। बाबा ध्यान और तपस्या करने के लिए जंगल के दूसरी छोर में जाने लगे तो मैं भी उनके साथ ही चलने लगी तो उन्होंने मुझे ये कहकर रोक दिया कि वहाँ मैं नही जा सकती और अब उन्होंने मुझे इतना ज्ञान दे दिया कि मैं अपना जीवनयापन आराम से कर सकती थी। मैं यही पास में गांव, में रहकर आगे का जीवन बिताऊँ और ये भी कहा जब भी मुझे उनकी जरुरत पड़े उन्हें याद करना वो खुद आकार मिल लेंगे। "इतना कहकर वो वहाँ से चले गए और मैने अपने जीवन का नया अध्याय आरंभ किया और यही रहकर जीवन यापन करने लगी । अच्छे से ही सब चल रहा था लेकिन फिर वही सब क्या अकेले इंसान वो भी लड़की को बस लोग एक ही नजर से देखते हैं । उन्हें सिर्फ इस्तेमाल और भोग की वस्तु समझा जाता हैं। जब मैंने हर बात का विरोध किया तो गांव वालो ने मुझपर तरह तरह के इल्जाम लगाने शुरू कर दिए। डायन , बच्चियों को उठाने और मारने वाली ना जाने क्या क्या" कहते कहते वो लड़की रोने लगी।





"शांत हो जाइये आप , अब आपको घबराने की जरुरत नही है। ये लोग अब आपको कुछ नही कहेंगे ।"





"इन सभी ने मेरा घर जला दिया मुझे धक्के मार के गांव से बाहर निकाल दिया । अब मैं क्या करूँ और कहाँ जाऊँ।"








"आप बिल्कुल भी परेशान मत होइए । आप मेरे घर चलिये ।वहाँ आपका जब तक मन करे रहिये। आपको किसी प्रकार की कोई भी तकलीफ नही होगी।"





"लेकिन आपके घर वाले ?"





"आप उनकी चिंता मत कीजिये। आपको कोई कुछ नही कहेगा। " कहते हुए मानसिंह उस लड़की को अपने साथ अपने घर ले गए। घर के उनका पूरी तरह से आदर सत्कार हुआ ।





मानसिंह अपने कमरे में बैठे हुए थे तभी वो कमरें में प्रवेश की तो मानसिंह उसे देखते ही रह गए। गुलाबी रंग की साड़ी में वो गजब का कहर ढा रही थी। मानसिंह सिंह की नजरें उसपर ठिठक कर रह गयी ।





"ये कपडे माँ जी ने दिए हैं। " मानसिंह को अपनी तरफ एकटक देखते हुए वो बोली।





"बहुत अच्छी लग रही हैं आप मेरा मतलब हैं कि ये रंग आपके ऊपर बहुत अच्छा लग रहा हैं।"





"जी बहुत बहुत धन्यवाद ।" कहते हुए वो वहाँ से जाने लगी।





"एक मिनट रुको "





"जी "





"आपने अपना नाम तो बताया ही नही । कोई जरुरत हो तो आपको कैसे बुलाएँगे।"








"मेरा नाम नयना हैं ।"





"बहुत ही खूबसूरत नाम हैं बिल्कुल आपकी की तरह "





"जी मेरी माँ ने रखा , कहती थी जब मेरा जन्म हुआ तो मेरी आँखें बहुत अच्छी थी इसलिए उन्होंने ये नाम रख दिया।"





"सच ही कहा था उन्होंने । आपकी आंखें अभी भी बहुत अच्छी हैं । बहुत गहराई हैं उनमें। " मानसिंह के कहने और नयना मुस्कुराते हुए शर्मा कर वहाँ से चली गयी। उसकी सुंदरता , सौम्यता , आकर्षक मुस्कान , उसकी शालीनता और उसके स्वभाव ने सभी का मन मोह लिया। मानसिंह भी उसके व्यक्तित्व से अछूता ना रह सका । मन ही मन वो उसे चाहने लगा। मानसिंह की माँ भी अपने बेटे के मन की बात से अनभिज्ञ नही थी। कुछ ही समय में वो सबकी आदत सी बन गयी थी और सभी उससे प्रेम करने लगे थे। सभी की मर्जी से मानसिंह और नयना की शादी तय कर दी और थोड़े ही दिन में धूमधाम से उन दोनों की शादी कर दी गयी।





"नयना तुम खुश तो हो ना मुझसे शादी करके ?" सुहाग की सेज पर बैठी नयना से मानसिंह कहते हैं।





"आप कैसी बात कर रहे हैं ? मैं बहुत ही सौभाग्यशाली हूँ जो आप मुझे पति के रूप में मिले। मुझे तो अपनी किस्मत पर यकीन ही नही हो रहा कि आप मुझे मिल गए । ऐसा लग रहा जैसे ये सब कोई सपना सा हो । ऐसा लग रहा कि मैं सपना देख रही हूँ और कहीं ये सपना टूट ना जाय।"





"ये सपना नही हकीकत हैं और मैं बहुत खुशनसीब हूँ कि तुम


मेरी जिंदगी में आयी हो। ऐसा लग रहा तुम्हे पाकर मेरे जीवन ने संपूर्णता प्राप्त कर ली हो।" कहते हुए दोनों हमेशा के लिए एक दूजे के हो गए। जल्दी ही उनके घर में एक मेहमान आने की ख़ुशी से पूरा महल खुशियों से रंगीन हो गया। हर तरफ नये मेहमान आने की तैयारियां होने लगी। पूरे नौ महीने बाद उनके घर एक नन्ही परी ने जन्म लिया। पूरा महल बच्चे की किलकारियों से गूंज उठा। चारों ओर बस खुशियाँ ही खुशियाँ छा गयी। मानसिंह और नयना दोनों ही अपनी प्यारी बच्ची के साथ बहुत खुश थे लेकिन कहते हैं ना कि ज्यादा खुशियों को भी नजर लग जाती हैं , ऐसा ही कुछ उनके साथ हुआ और उनकी खुशियों को भी ग्रहण लग गया।





मानसिंह के घर में एक नन्ही परी आने से दोनों की दुनिया ही जैसे बदल गयी हो। चारो तरफ बस ख़ुशी ही ख़ुशी नाचने लगी थी । नयना का तो हल पल अपनी बेटी के लिए होता था। उसके अलावा उसे और कुछ सूझता ही नही था । उसकी तो सुबह शाम रात दिन बस उसकी बेटी ही थी। एक तरह से वो नयना की जिंदगी बन गयी थी। धीऱे धीऱे नयना बड़ी होने लगी और उसके बड़े होने के साथ साथ अपनी बेटी की जरुरत से ज्यादा फ़िक्र नयना के पागलपन का सबब बनता जा रहा था। मानसिंह और घरवाले नयना के व्यवहार को लेकर चिंतित होने लगे थे और मानसिंह ने तो कई बार नयना को समझाने की कोशिश की लेकिन अपनी बेटी के लिए वो किसी की कोई भी बात सुनने को तैयार नही होती। ऎसे ही धीऱे धीऱे समय करवट लेता जा रहा था और परी 2 साल की हो चुकी थी। एक दिन परी और नयना बगीचे में खेल रही थी तभी परी को चक्कर सा आ गया और वो बेहोश होकर गिर पड़ी। नयना ये देखकर पागलो की तरह उसकी तरफ भागी और गोद में उठाकर कमरे में लेजाकर बिस्तर पर लिटा दिया। परी के बेहोश होने से पूरे घर में खलबली सी मच गयी । मानसिंह ने तुरंत ही वैद्य को बुलाया और परी का उपचार कराया। थोड़ी देर में ही परी को होश आया गया लेकिन उसके बेहोश होने का कारण स्पष्ट नही हो पाया। दो दिन परी ठीक रही लेकिन तीसरे दिन उसका शरीर बुखार से तपने लगा। आँखे बंद किये परी बिस्तर पर बेसुध की तरह पड़ी थी। सभी अचानक से हुई उसकी ख़राब तबियत को लेकर काफी परेशान हो गए थे। सबसे ज्यादा तो बुरा हाल नयना का था । नयना लगातार उसके माथे पर ठंडे पानी की पट्टी रखती और बदलती रही लेकिन उसका ताप उतरने का ही नाम नही ले रहा था। वैद्य को बुलाया गया लेकिन किसी की भी दवा परी का ताप उतारने में नाकाम रही और तो और किसी को उसके बुखार का कारण भी स्पष्ट नही हो पा रहा था। सभी ने सलाह दी कि इसे शहर के बड़े अस्पताल में ले जाया जाय । मानसिंह और नयना परी को लेकर शहर आ गए और बड़े अस्पताल में उसका इलाज कराने लगे। डॉक्टर की दवा से परी का बुखार तो उतर गया लेकिन अभी भी उसने आँखे नही खोली थी और ना ही उसे होश आया था। डॉक्टर ने बहुत कोशिश की लेकिन उसे होश में लाने में नाकाम रहे।





दो दिन अस्पताल में इलाज कराने के बाद भी जब परी को थोड़ा होश आया तो जैसे नयना की जान में जान आयी लेकिन तभी नयना की नजर परी के पैरों पर पड़ी। परी के पैर का निचला हिस्सा काला होने लगा था। उसका चेहरा हस्तब्ध सा उसे देखने लगा। ऐसा लगा कि जैसे उसे किसी आशंका ने घेर लिया हो। उसने तुरंत ही मानसिंह से परी को घर ले चलने के लिए कहा।





"अब परी ठीक हैं , अब हमें इसे लेकर घर चलना चाहिए।"





"अभी तो परी को होश आया है एक दो दिन यही रुक कर सही से देख लेते हैं अभी।"








"अब क्या जरुरत हैं । सब ठीक तो हैं। अब चलिये। " नयना के जोर देने पर मानसिंह को बहुत आश्चर्य हुआ। जो नयना अपनी बेटी के लिए इतनी फ़िक्रमंद रहती थी वो आज यहाँ उसके लिए रुकने को भी तैयार नही थी। मानसिंह को इतना अचंभित अपनी ओर देखते हुए नयना फिर बोली।





"आपको क्या लगता मुझे परी की चिंता नही हैं। मैं तो सिर्फ इसलिए कह रही हूँ कि यहाँ डॉक्टर्स ने अपना काम कर दिया । अब परी को देखभाल और आराम की जरुरत है जो कि हम सभी के साथ घर में ही संभव हैं।" मानसिंह नयना से बहुत प्यार करता था और वो कभी उसकी बात को नही टालता था। परी को लेकर दोनों अपने घर आ गए। नयना हर पल परी के ही करीब रहती और उसकी देखभाल करती । रात में परी के सोने के बाद कब मानसिंह कमरे में आये तो





"आपसे एक बात कहनी हैं मुझे ।"





"हा कहो , तुम्हे मुझे कुछ भी कहने के लिए पूछने की जरुरत नही हैं।"





"आज से जब तक परी सही नही हो जाती आप दूसरे कमरे में लेटेंगे। यहाँ पर सिर्फ मैं अपनी परी के साथ रहूँगी।"





"अरे ये क्या बात हुई । मैं भी परी का पिता हूँ । उसपर मेरा भी हक़ हैं और वैसे भी उसकी देखभाल में तुम अपना ख्याल तो रखती नही हो । तुम्हे भी आराम की जरुरत हैं । मैं साथ रहूँगा तो तुम्हें भी मदद हो जायेगी।"





"मैने कहा ना नही मैं और परी सिर्फ " थोड़ा गुस्से से नयना बोली लेकिन कुछ सोचते हुए पास आकर मानसिंह की गले में


हाथ डालते हुए मुस्कुराते हुए बोली।





"परी सो रही हैं और तुम इतना खर्राटे लेते हो , मेरी बेटी की नींद खुल गयी तो ।"





"अच्छा मैं कब खर्राटे लेता हूँ। पहले तो कभी नही कहा और आज अचानक से "





"अब क्या करूँ आपसे इतना डर लगता कि कभी बताने की हिम्मत ही नही होती।"





"अच्छा तुम और डर क्या बात हैं। अब ज्यादा बहाने करने की जरुरत नही हैं। तुम दोनों ही रहो , मैं जाकर दूसरे कमरे में सो जाता हूँ । " कहते हुए मानसिंह वहाँ से उठकर दूसरे कमरे में जाकर सो गया। नयना की अचानक से मानसिंह को दूसरे कमरे में भेजने की आखिर क्या मंशा थी ये तो सिर्फ नयना ही जानती थी।





मानसिंह के जाने पर नयना ने तुरंत जाकर कमरे का दरवाजा बंद कर लिया और परी के पास आकर बैठ गयी। उसके परी के फ्रॉक को थोड़ा ऊपर उठकर देखा तो उसके दाहिने पैर पर जो काला निशान था वो और बढ़ चुका था। नयना ने अपनी अलमारी खोली और उसमे से एक छोटा सा डिब्बा निकाला जो कि उसने सबसे छुपा कर रखा था। उस डिब्बे को लाकर उसने बेड पर रखा और उसे खोला। उसमें कई छोटी छोटी डिब्बियां रखी हुई थी। कई डिब्बियों को देखने के बाद एक डिब्बी को निकाल के बाहर रखा और उस बड़े डिब्बे को बंद करके किनारे पर रख दिया। उस छोटी डिब्बी को हाथ में लेकर वो बिस्तर पर परी के पास बैठ गयी और घड़ी की तरफ देखने लगी। ऐसा लग रहा था कि वो सही समय का इंतजार कर रही हो। रात के 12


बारह बज चुके थे और घर के सभी लोग गहरी नींद में सो गए थे। घड़ी के 12 बजने का इशारा करते ही नयना अपनी जगह से उठी और जमीन पर कुछ आड़ी तिरछी रेखाएं खींची और फिर उसके चारों ओर मोमबत्ती जला के रख दी । परी को उठाकर उन आड़ी तिरछी रेखाओं पर लिटा दिया। जिस डिब्बी को उसने बड़े बक्से से निकाला था उसे खोला तो उसमें से एक हरे रंग की धुएं जैसी कुछ निकालकर जल रही मोमबत्ती के चारों ओर एक घेरे के रूप में फ़ैल गयी। नयना उस फैले के धुएं के अंदर कदम रखा और आसन लगा कर बैठ गयी और कुछ मंत्रो का जाप करने लगी । लगभग एक घंटा वो मंत्रो का जाप करती रही ।कुछ समय बाद ही वो हरे रंग का धुआं परी के अंदर जाने लगा और परी का शरीर तेजी से कांपने लगा । नयना एक देखकर बहुत परेशान हो गयी और उसने जल लेकर मन्त्र पढ़कर परी के ऊपर डाल दिया। थोड़ी देर में ही परी का शरीर शांत हो गया। ये सब देखकर नयना के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आयी । किसी अनहोनी की आशंका तेजी से उसके मन में समाने लगी और मन ही मन उसने कुछ फैसला किया और फिर परी को उठाकर बेड पर लिटा दिया और वहाँ जमीन पर सब सफाई कर पहले जैसा कर दिया। सुबह परी को जब नींद से जागी तो वो उठ नही पा रही थी। पैर पर काला निशान और ऊपर तक बढ़ चुका था और जितना हिस्सा काला हो गया था वो बेजान सा हो गया था। सभी उसकी ये हालत देख घबरा गए । डॉक्टर को दिखाया गया लेकिन किसी को भी इस मर्ज का इलाज समझ नही आया लेकिन शायद नयना समझ गयी थी और उसने मानसिंह से मंदिर जाने की इजाजत मांगी। मानसिंह साथ जाना चाहते थे लेकिन नयना ने उन्हें परी के पास रहकर उसकी देखभाल करने के लिए कहा और खुद ड्राइवर को साथ लेकर मंदिर की तरफ चली गयी। वो किस मंदिर जा रही थी और वो मंदिर कहाँ पर हैं इस बात की जानकारी किसी को भी नही थी। ड्राइवर ने नयना से रास्ता पूछा तो बस उसने इतना ही कहा कि


जैसे जैसे बताये बस चलता रहे। काफी दूर चलने के बाद एक पहाड़ी के पास पहुँचकर नयना ने ड्राइवर को वही रुकने कर आगे अकेले जाने और उसका वही पर वापसी का इंतजार करने को कहकर आगे की तरफ चली गयी। थोड़ी दूरी तय करने के बाद नयना एक गुफा के अंदर चली गयी और लगभग 2 घंटे के बाद वो उस गुफा से बाहर निकली और वापस गाड़ी में आकर बैठ गयी और ड्राइवर को घर चलने का इशारा किया। रास्ते में वो गुफा के अंदर जो भी हुआ उसके बारे में सोचकर गहन चिंता में डूब गई।
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Re: Thriller वो कौन थी?

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"प्रणाम गुरुदेव "


"सदा खुश रहो।"


"गुरुदेव ख़ुशी ही तो नही हैं शायद मेरे जीवन में।"


"सब कुछ तो तुमको मिल गया हैं, अब तुम्हे किस बात की चिंता।"





"यही तो समझ नही आता कि जब भी मेरे जीवन में ख़ुशी की धूप आती पता नही क्यों दुःख तकलीफ के बादल मंडराने लगते।"





"अब ऐसा क्या हो गया। मैने तुम्हे तंत्र मंत्र , जादू , सम्मोहन और कई तरह की विद्या सिखायी जिसके प्रयोग से तुमने गांव वालों को अपने खिलाफ किया और उस ज़मीदार के मन में अपने को लोगो की सताई हुई साबित किया फिर अपनी दर्द भरी दास्ताँ सुनाकर कर उसकी सहानुभूति हासिल कर ली और उसकी उसी सहानुभूति का फायदा उठाकर उसका इस्तेमाल किया और उसके घर के प्रवेश किया और फिर उसे और उसके घर वालो को अपने सम्मोहन के वश में कर शादी की और उस ज़मीदार परिवार की कर्ता धर्ता बन गयी। सभी को अपनी अँगुलियों पर नचाने वाली को आज ऐसी क्या समस्या आ गयी


जो वो यहाँ आने पर मजबूर हो गयी।"





"मेरी बच्ची ही मेरी चिंता का कारण हैं गुरुदेव। मुझे पता हैं मैने सब कुछ किया । सबको अपने वश में किया और इस परिवार की मालकिन बन गयी लेकिन जब से मेरे जीवन में मेरी बेटी आई हैं मेरी दुनिया मेरी जिंदगी सब बदल गयी। मेरी बेटी में जान बसती हैं और आज उसे ही कष्ट हैं । सब कुछ हासिल करने वाली अपनी बच्ची को अपने से दूर जाते कैसे देख सकती हैं।"





"क्या हुआ तुम्हारी बेटी को ।" गुरुदेव के पूछने पर नयना से पिछले कुछ दिन में जो भी हुआ विस्तार से बताया और फिर उसने कल रात जो भी किया और जो भी हुआ उसके बारे में गुरदेव को बताया।





"नयना मैने तुमसे उस दिन भी कहा था कि तंत्र मंत्र की साधना करना इतना आसान नही होता। इस साधना में अपनी सबसे प्रिय वस्तु का बलिदान भी करना पड़ सकता है। तुमने अपनी साधना पूरी करने के लिए ना जाने कितने बच्चों की बलि दी । जब एक बाद ये साधना शुरू कर दी जाती हैं तो पीछे हटना मुश्किल होता हैं और अगर पीछे हटते हैं तो उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती हैं। तुम ज़मीदार से शादी करने के बाद तुमने अपनी ये साधना बीच में ही छोड़ दी और बेटी के जन्म के बाद तुमने एकदम से ही सब कुछ छोड़ दिया तो इसका खामियाजा तो भुगतना ही था। तुम्हारी बेटी के साथ जो भी हो रहा उसका कारण तुम्हारा उस साधना को बीच में ही छोड़ना था।"





"गुरदेव प्लीज मेरी बेटी को बचा लीजिये। मैं उसके लिए कुछ भी कर सकती हूँ । आप जो भी कहेंगे वो मैं करुँगी। अपनी बेटी के लिये मैं कोई भी कीमत देने को तैयार हूँ ।"








"अच्छे से सोच लो , ये सब इतना आसान नही हैंअब तुम्हारे लिए।"





"सोच लिया , मैं अपनी बेटी के लिए सब कुछ करुँगी।"





"ठीक हैं , तो फिर तुम्हें अपनी वही साधना फिर से करनी होगी और जो करने का संकल्प लिया था उसे भी पूरा करना होगा बस फर्क इतना होगा कि पहले जितने का संकल्प लिया था उसका सब कुछ दोगुना करना होगा।अब क्या ये तुम कर पाओगी क्योंकि अब तुम अकेली नही हो एक परिवार का हिस्सा हो और वो सब तुम्हे ऐसा करने की अनुमति नही देंगे।" गुरुदेव की बात सुनकर नयना कुछ पल के लिए शांत हो गयी । उसका चेहरा और आँखे एक शून्य में ताकने लगी।





"ठीक हैं गुरदेव , मैं करुँगी । बस आप मुझे बताइये ये सब कैसे करना होगा।"





"अभी तुम जाओ और कल ठीक दोपहर 12 बजे आना फिर आगे का मैं बताता हूँ। " अचानक से हॉर्न की तेज आवाज और गेट खुलने से नयना गुरुदेव की बातों से वर्तमान में आ गयी।





नयना को परी को लेकर जो शक था गुरुदेव की बातों से साफ हो गया था। आज नयना का अतीत उसके सामने खड़ा हो गया था। कोई भी नही जानता था कि ज़मीदार से विवाह करने के पूर्व वो तंत्र मंत्र की साधना करती थी। किसी को भी सम्मोहित कर कुछ भी कराने का सामर्थ्य था उसकी साधना में और इसी का प्रयोग कर उसने पूरे ज़मीदार परिवार को अपने वश में कर लिया था । सब कुछ पाने के बाद अब वो अपनी उस काली दुनिया में नही जाना चाहती थी लेकिन शायद वो भूल गयी थी कि अतीत का काला साया कभी साथ नही छोड़ता और कभी ना कभी वो सामने आता हैं और उसका सामना भी करना पड़ता हैं। उसे याद आया कि किस तरह वो सबके उलाहने सुनते सुनते परेशान हो गयी थी और खुद को ख़त्म कर देना चाहती थी और इसी कोशिश में उसकी मुलाकात तांत्रिक बाबा से हुई। तांत्रिक बाबा के साथ रहते रहते वो भी शक्ति के प्रभाव से अछूती नही रह सकी और वो भी उन सभी की तरफ तंत्र मंत्र की तरफ अग्रसर हो गयी।सबसे बड़े तांत्रिक बाबा को उसने अपना गुरु मान लिया और काली दुनिया की शक्तियों को पाने का प्रयास करने लगी। गुरुदेव ने उसे सिखाने के पहले चेतावनी भी दी थी कि एक बार इस दिशा में कदम बढ़ाने के बाद पीछे जाना उसके लिए असंभव होगा लेकिन शक्ति के मद में चूर नयना को जैसे कुछ भी समझ नही आ रहा था। वो तंत्र मंत्र को सीखने की जिद करने लगी। उसकी लालसा को देखकर गुरुदेव ने उसे तंत्र मंत्र विद्या सीखाना शुरू कर दिया । नयना में सीखने की ललक को देखकर कभी कभी गुरुदेव को भी घबराहट होती थी। तंत्र साधना के लिए जो उसके मन में जूनून हावी हो चूका था उसे निकालना अब उनके वश में भी नही था। तंत्र मंत्र की साधना के अंतिम पड़ाव में उसे 5 बच्चों की बलि देनी थी और वो भी उन बच्चों को बिना सम्मोहित किये। इसके लिए वो जंगल के पास के ही गांव में रहने लगी और धीऱे धीऱे वो गाँव वालों से घुलने मिलने लगी। उनके बच्चों के साथ समीपता स्थापित की और जब सभी उसके प्रेम के वशीभूत हो गए तो उसने धीऱे बच्चों को बहला फुसला कर बलि की जगह पर ले जाने लगी। अभी उसने 2 बच्चों की ही बलि दी थी तभी गाँव वालों को उसके ऊपर शक हो गया और उन्होंने उसे गाँव से धक्के मार कर निकालने लगे। नयना उस वक्त तंत्र साधना के कारण उन सभी का सामना करने में असमर्थ थी इसलिए उनका प्रतिउत्तर नही दे पा रही थी। उस वक्त उसकी किस्मत ने साथ दिया और ज़मीदार वहाँ आ गए और फिर उसे अपने साथ अपने घर ले गए। ज़मीदार के घर वाले उसकी सुंदरता,सौम्यता और तंत्र के प्रभाव के वशीभूत होकर उसे अपने परिवार का सदस्य बना लिए। नयना से उस वक्त सोचा कुछ और था और हुआ कुछ और। कहते हैं सच्चा प्रेम हर इंसान को बदल देता हैं और ज़मीदार के इसी सच्चे प्रेम ने नयना को तंत्र साधना से विमुख कर दिया । नई जिंदगी में वो सब कुछ भूल कर आगे बढ़ने लगी थी और इसी समय उसके जीवन में आयी नन्ही परी ने उसकी दुनिया एकदम से बदल दी। सब कुछ बिसरा कर वो अपनी बेटी के लिए पूरी तरह समर्पित


हो गयी लेकिन उसकी बेटी के साथ हुए हादसे ने उसे फिर से उसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया। जिस बेटी की वजह से उसने उस जिंदगी से उसने खुद को बहुत दूर कर लिया था आज उसी के लिए फिर से उसी दुनिया में उसके कदम मोड़ दिए और वो ना चाहते हुए वो फिर से उसी रास्ते पर चल पड़ी।





गुरुदेव ने परी को ठीक करने का जो रास्ता बताया वो उसे उसी रास्ते पर ले जायेगा जहाँ से उसने अपने कदम पीछे हटाये थे । नयना ने जो साधना अधूरी छोड़ दी थी पहले उसे ही उसको पूरा करना था और अब इस परिस्थिति में वो सब करना बहुत ही मुश्किल था लेकिन नयना ने सोच लिया था कि वो अपनी बेटी के लिए सब कुछ करेगी और हर हद पार कर जायेगी। घर में कदम रखते ही उसे गुमसुम ख्यालो में देखकर ज़मीदार ने उसके गुमसुम होने का कारण पूछा तो नयना बिना कुछ बोले अपने कमरे में जाकर अंदर से कमरा बंद कर लिया और अपनी बेटी के बारे में सोचने लगी। ज़मीदार ने दरवाजा खुलवाले और परेशानी का कारण पूछने की बहुत कोशिश की लेकिन सब व्यर्थ। थोड़ी देर नयना की चीख की आवाज से सभी लोग इकठ्ठा हो गए। परी के दोनों पैर पूरी तरफ से काले हो गए थे जिसे देखकर ही उसकी चीखे निकल गयी थी।





"क्या हुआ नयना , क्यों चिल्लाई इस इस तरह।"





"देखिये ना हमारी परी को " रोतें हुए परी की तरफ इशारा करते हुए नयना बोली।





"अरे ये सब क्या और कैसे " परी के स्याह पैरो को देखकर सभी अचंभित हो गए।





"मैने कहा था अभी यही हॉस्पिटल में रहने देते हैं लेकिन तुम


कुछ सुनती नही हो । " कहते हुए वो परी को अस्पताल ले जाने के लिए उठाने लगते है लेकिन नयना उसका हाथ पकड़ कर रोक देती हैं।





"अब क्या हुआ ?"





"ये डॉक्टर नही सही कर सकते । हमारी परी को कुछ और हुआ हैं ।"





"क्या हुआ हैं , पता है तुम्हें । नही ना , तो डॉक्टर के पास ले जाना जरूरी हैं।"





"इसमें डॉक्टर कुछ नही कर पाएंगे। मुझे पता है ये कौन सही कर सकता है।"





"कौन "





"मेरे गुरुदेव मेरी बेटी को सही कर सकते हैं।"





"तुम्हारे गुरुदेव , ये कहाँ और कब आ गए ?"





"ये हमारे गाँव आते थे और सभी की सहायता करते थे । वो तंत्र मंत्र भी जानते हैं । वो हमारी बेटी को सही कर देंगे हमें अपनी बेटी को उन्हें ही दिखाना चाहिए।"





"तुम्हारा दिमाग खराब हो गया हैं क्या जो इस तरह के अन्धविश्वाश में पड़ी हो। तुम्हारे बारे में भी जब लोग उल्टा सीधा कह रहे थे तब भी मैने किसी की भी बात का कोई यकीन नही किया था और आज तुम भी उन सभी की जैसी ही बातें कर रही हो।"








"लेकिन "





"अब लेकिन वेकिन कुछ नही । मैं अभी डॉक्टर को यही बुलाकर लाता हूँ । " कहते हुए मानसिंह डॉक्टर को लेने चले जाते हैं। नयना परी के पास बैठी चिंतित मन से उसकी ओर निहार रही थी। उसे समझ नही आ रहा था कि वो किस तरह मानसिंह को परी को गुरुदेव के पास ले जाने के लिए मनाये लेकिन उसे पूरा यकीन भी था कि परी को बचाने का कोई और रास्ता भी नही था । उसे कैसे भी करके गुरुदेव के पास जाना ही था। डॉक्टर ने अच्छे से परी का निरीक्षण किया लेकिन उसे कुछ भी समझ नही आया कि परी को आखिर हुआ क्या हुआ । मानसिंह उसे अस्पताल में भर्ती करने के लिए भी कहा लेकिन डॉक्टर ने ये कहकर कि जरुरत नही है , भर्ती करने को मना कर दिया । जैसे जैसे समय बीत रहा था परी की सांसो की गति बढ़ने लगी और शरीर तड़पने सा लगा। सभी परी की हालत देख घबरा गए । किसी को समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे। डॉक्टरस की भी लाइन लग गयी थी और किसी को भी उसकी इस अवस्था के बारे में समझ नही आ रहा था। नयना की भी ये सब देखकर हालात खराब हो रही थी। किसी तरह जागते हुए वो रात बीती और नयना गुरुदेव से मिलने के लिए निकल पड़ी।





गुरुदेव ने नयना को जो बताया नयना के होश उड़ गए। नयना ने अपनी तंत्र मंत्र साधना में जिन रूहानी शक्तियो का इस्तेमाल किया था वो सब इस साधना के बीच में खंडित हो जाने से आजाद हो गयी थी और वो सभी परी पर हावी हो गयी थी। उन्हें शांत करने और परी से दूर करने के लिए लिए 5 कन्याओं की बलि देनी थी जो कि परी की हमउम्र की हो और साथ ही साथ उनकी बलि भी अमावस की रात को ठीक 12 बजे ही देनी थी । उन बलि से उन तभी उन शक्तियों से परी को मुक्त किया जा


सकता था।





"गुरुदेव लेकिन ये सब मैं करुँगी कैसे , ना तो मैं परी को यहाँ ला सकती हूँ और ना ही घर में कुछ भी कर सकती हूँ । अब आप ही बताइये मैं कैसे क्या करूँ । "





"ठीक हैं मेरे पास एक रास्ता हैं । आज रात मैं तुम्हारे घर आऊंगा। आगे कैसे क्या करना हैं तब बताऊंगा। अब जाओ और रात में मेरा इंतजार करना।" गुरुदेव की बात सुनकर नयना वहाँ से चली गयी और रात में गुरुदेव का इंतजार करने लगी। सभी लोगो के सोने के बाद वो चहलकदमी करते हुए दरवाजे पर गुरुदेव के आने का इंतजार करने लगी। जैसे ही गुरुदेव आये चुपके से उन्हें परी के कमरे में परी के पास ले गयी । परी को देखने के बाद गुरुदेव ने अपनी पोटली से कुछ निकाला और मन्त्र पड़कर सामने दीवार की तरफ फेक दिया। देखते ही देखते उस दीवार में एक दरवाजा सा उभर आया जिसे देखकर नयना आश्चर्यचकित हो गयी लेकिन गुरुदेव के सामने कुछ भी नही बोली।





"आओ नयना " कहते हुए गुरुदेव ने नयना को उस दरवाजे से अंदर आने का इशारा किया। दरवाजे के दूसरी तरफ कदम रखते ही वहाँ का माहौल ही बदल गया। कमरे की दूसरी तरफ जंगल का एक सुनसान हिस्सा था ।





"गुरुदेव ये आप हमें कहाँ ले आये । ये कौन सी जगह हैं और मेरे कमरे से ये जगह कैसे "





"नयना तंत्र साधना का क्षेत्र बहुत ही विशाल हैं । इसे समझना सबके वश में नही है। तुम बस इतना समझ लो कि अब तुम्हे यही पर अपनी साधना पूरी करनी है और 5 कन्याओं की बलि


देनी हैं। याद रखना तुम्हारे पास सिर्फ 5 दिन का वक्त हैं और इन्ही 5 दिनों में तुम्हे अपनी साधना पूरी करने के बाद अमावस की रात 12 बजे बलि देनी होगी। अगर उस रात तक तुम अपने मकसद में कामयाब नही हुई तो तुम अपनी बेटी को हमेशा के लिए खो दोगी और फिर मैं भी कुछ नही कर पाउँगा। और हा एक बात याद रखना अगर इस बार तुम अपनी साधना पूरी करने में असमर्थ रही तो फिर खुद तुम्हारे लिए ही नुकसान देह होगा" कहते हुए उसी रास्ते से दोनों वापस आ गए। गुरुदेव ने नयना को आशीर्वाद दिया और अपने स्थान को चले गए। नयना ने उस दरवाजे को परदे से ढक दिया और साधना की तैयारी के लिए सामान इकठ्ठा करने लगी।





उसकी साधना में किसी भी प्रकार का कोई भी विघ्न ना पड़े इसके लिए उसने खाने के बाद सभी के दूध में नींद की दवाई मिला दी । दूध पीते ही घर के सभी लोग गहरी नींद में सो गए। सभी के सोने के बाद नयना ने परी के कमरे से बने रास्ते से जंगल में प्रवेश किया। वहाँ एक पेड़ के नीचे उसने साधना की तैयारी शुरू कर दी। अग्नि कुंड का निर्माण किया और मंत्रोउचारण करते हुए कठिन साधना करने लगी। नयना रात भर साधना में व्यस्त रहती और दिन भर घर वालो के साथ सामान्य तरीके से।





एक तरफ ज़मीदार की बेटी की स्थिति सुधरने का नाम नही ले रही थी और दूसरी तरफ गांव में बच्चियों के गायब होने की खबर फ़ैल रही थी। गाँव में परी के हमउम्र की 3 बच्चियां गायब हो चुकी थी और जमीदार के पास जब ये बात पहुँची तो अपने दयालु स्वभाव के कारण सभी के लिए बहुत परेशान हो गए। वो खुद ही गांव वालों के साथ उन्हें खोजने निकल पड़े लेकिन किसी का भी कोई सुराग नही मिला ।








ज़मीदार की बेटी की स्थिति सुधरने का नाम नही ले रही थी और उसका आधे से ज्यादा हिस्सा काला पड़ता जा रहा था । ना जाने कहाँ कहाँ और किस किस डॉक्टर से इलाज कराया लेकिन परी को कोई फर्क नही पड़ नही रहा था। इसी बीच गाँव में कुछ बच्चियों के गायब होने की खबर फैलने लगी । गाँव के सबसे बड़े , मददगार और दयालु इंसान होने के कारण गाँव वालों ने ज़मीदार से अपनी बच्चियों को ढूंढने की मदद मांगी और ज़मीदार जो कि खुद ही अपनी बेटी की हालत से परेशान थे वो भला किसी और पिता को तकलीफ में कैसे देख सकते थे इसलिए अपनी बेटी की देखभाल की पूरी जिम्मेदार नयना के ऊपर सौप कर गांव वालों के साथ उनकी बच्चियों को ढूंढने निकल पड़े। अब तक गाँव से परी के हमउम्र की 3 बच्चियां गायब हो चुकी थी और किसी के बारे में कोई भी सुराग नही मिल रहा था । दिन और रात भर खोजने के बाद भी किसी भी बस्ची का कोई भी सुराग नही मिल रहा था । थक हारकर सभी गांव वापस आ गए और सभी को सांत्वना देते हुए ज़मीदार वहाँ से उठकर घर की तरफ लौटने लगे तभी बगल के घर से किसी


के जोर जोर से चीखने की आवाज आने लगी। गाँव वालों सहित ज़मीदार उस आवाज की तरफ भागे।
adeswal
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Re: Horror वो कौन थी?

Post by adeswal »

" क्या हुआ बहन , ऐसे क्यों रो रही हो ?" जमीन पर बैठी एक औरत को रोतें हुए देखा । इससे आगे उस औरत से कोई कुछ पूछता या कुछ कहता वो बेहोश होकर गिर पड़ी। पड़ोस की कुछ औरतों ने उसे उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया। पानी के छिड़कने से उन्हें जैसे ही होश आया वो मेरी "बच्ची ,मेरी बच्ची" कहते हुए उठ खड़ी हुई और पीछे के दरबाजे की तरफ गिरते पड़ते भागने लगी तभी उन लोगो ने उसे संभाला और फिर से पकड़कर बैठाया।





"मुझे जाने दीजिए , मेरी बच्ची के पास । " उसकी बातों को सुनकर वहाँ सभी हैरान हो गए।





"बहन पहले आप शांत हो जाइये । हम आपकी बच्ची को लेकर आएंगे। पहले आप शांत हो जाइये। " ज़मीदार के बहुत ही अपनेपन से सांत्वना देने के कारण वो कुछ ही पल में शांत हो गयी । ज़मीदार ने इशारे से उन्हें पानी देने को कहा और वो उनके करीब बैठ गए ।





"पहले हमें बताओ तुम्हारी बेटी के साथ क्या हुआ और वो कहाँ गयी।"





"साहब पता नही कैसे और क्या हुआ समझ ही नही आया। हम और हमारी बच्चियां "





"बच्चियाँ मतलब कई "





"हा साहब मेरी जुड़वाँ बच्चियाँ । थोड़ी देर पहले ही मेरी


दोनों बच्चियाँ खेल कर घर के अंदर आई और कहने लगी कि माँ बहुत जोर की भूख लगी है जल्दी से खाना लगाओ । मैने कहा जाओ हाथ पैर धोकर आओ मैं तुरंत लगाकर आती हूँ । मेरे पति की मौत कई साल पहले हो चुकी थी और तभी से हम तीनो ही एक दूसरे के लिए सब कुछ हैं और साथ ही खाना खाते है। मैने तीनो खाने की प्लेट लगायी और जल्दी से खाने के लिए आने को कहा । मेरी दोनों बच्चियाँ खाने के लिए बैठ गयी लेकिन जैसे ही उन्होंने रोटी का एक निवाला तोड़कर मुँह में रखने लगी उनके हाथ से निवाला जमीन में गिर गया। दोनों के ही मुँह से एक जैसी प्रतिक्रिया देख मैं चौक गयी । इससे आगे मैं कुछ कहती वो दोनों ही खड़ी हो गयी और दरवाजे के पीछे की तरफ जाने लगी। मैने बार बार पूछते हुए उन्हें रोकने की कोशिश की लेकिन जैसे उन्हें मेरी बात सुनाई ही नही दे रही । मैने हाथ पकड़कर रोकने की कोशिश की तो मुझे एक झटका सा लगा और मैं गिर गयी और मेरी दोनों बच्चियाँ पीछे के दरवाजे से निकल गयी । मैं उन्हें रोकने के लिए भागी तो दरवाजा बंद हो गया और मैं कुछ नही कर सकी।" कहते हुए वो औरत जोरो से रोने लगी।





"मुझे लगता हैं कि ऐसे ही हमारी और भी तीन बच्चियाँ गायब हुई हैं इसीलिए उनका भी कोई पता नही चल। वही होगा जिसने हमारी और भी बच्चियों को गायब किया होगा। " गांव के एक लोग ने जब ये कहा तो लोगो ने उनकी बात का समर्थन किया।





"ये देखिये बच्ची के पैरों के निशान भी हैं। शायद इससे हमें उन तक पहुँचने में मदद मिले।" दरवाजे के दूसरी तरफ कुछ पैरो के निशान देखते हुए एक व्यक्ति ने कहा तो कई लोग उस तरफ दौड़े।





"ज़मीदार साहब आप बताइये हमें आगे क्या करना चाहिए।"








"बच्चियाँ अभी थोड़ी देर पहले ही गायब हुई हैं , अभी हम उनका पीछा करेंगे तो शायद उनका पता लग सकता हैं। जो भी मेरे साथ आना चाहते हैं आ सकते हैं । " कहते हुए ज़मीदार चलने लगे तो कुछ लोगो के साथ वो औरत भी चलने लगी तो ज़मीदार ने उन्हें रोक दिया।





"बहन आप यही रहकर इंतजार कीजिये। हम सभी आपकी बेटी का पता लगाकर ही लौटेंगे। " कहते हुए उन्होंने सांत्वना दी और कुछ लोगो के साथ और हाथ में मशाल लिए उन पैरो के निशान का पीछा करते हुए आगे की ओर बढ़ने लगे। काफी दूर जाने के बाद वो पैरो के निशान गायब हो चुके थे और आगे उस जगह से तीन रास्ते हो गए थे । अब समझ नही आ रहा था कि आखिर किस ओर आगे बढ़ा जाय। आगे का रास्ता जंगल से होकर गुजरता था और इतनी रात में जंगल में जाना मतलब अपने को खतरे में डालना और दूसरी बात आज अमावस की अँधेरी रात जिसमे वैसे भी जंगल में जाना अनुचित था इसलिए इसके लिए कोई भी तैयार नही था।





"ज़मीदार साहब , रात बहुत हो गयी हैं और अब तो पैरो के निशान भी नही मिल रहे । हमें लगता हैं कि हम सबको अब घर चलना चाहिए और कल सुबह हम सभी को यही से आगे की खोजबीन करनी चाहिए।" सभी ने एक मत होकर ज़मीदार के सामने विचार रखा।





"शायद आप सभी सही कह रहे हैं । तो ठीक हैं कल आप सभी यही पर मिलिएगा। हम सभी लोग 3 समूह में विभाजित होकर अलग अलग रास्ते पर जायेंगे। " कहते हुए सभी लोग अपने अपने घर चले।








ज़मीदार घर पहुँचे तो उन्हें वहां अजीब सी शांति महसूस हुई । मन में कुछ डर का एहसास हुआ तो वो सीधे पहले नयना के कमरे में गये लेकिन उसे वहाँ ना तो नयना दिखी और ना ही परी । उन्हें घबराहट सी महसूस हुई तो वो अपनी माँ के कमरे में पहुँचे । उन्हें सोता देख परी और नयना के बारे में पुछने के लिए उन्होंने अपनी माँ को जगाया लेकिन वो ये देखकर आश्चर्य चकित हो गए कि इतनी कोशिश के बाद भी वो उन्हें जगाने में असमर्थ रहे। पूरे महल में जिसके जिसके पास गए सभी को गहरी नींद में बेधड़क सोते देख मानसिंह का हृदय जोरो से धड़कने लगा। किसी अनहोनी की आशंका से उनका मन द्रवित हो उठा। वो फिर से भागते हुए अपनी बेटी के कमरे में गये और नयना को आवाज लगाने लगे। जब कोई भी प्रतिउत्तर नही मिला तो वो उस कमरे से बाहर निकलने लगे लेकिन तभी उनके नजर दीवार के आगे पड़े एक परदे पर गयी जिससे उन्हें कुछ झांकता हुआ नजर आया। धीऱे धीऱे कदमो से वो उस और बड़े और झटके से वो पर्दा हटा दिया और देखकर हैरान हो गए। उस परदे के पीछे एक दरवाजा था जो कि पहले कभी उस जगह पर था ही नही। उस दरवाजे को हलके से खोलते ही अंदर जैसे ही उन्हें रास्ता दिखा वो आश्चर्यचकित से हो गए । अपने महल के अंदर एक गुप्त दरवाजा और उसके अंदर ये रास्ता जिसके बारे में उन्हें पता ही नही था। आखिर ये कब कैसे और किसने मन में हजारों सवाल लिए आगे की तरफ बढ़ रहे थे । थोड़ी देर चलने के बाद ही एक जंगल जैसी जगह पर पहुँचकर उनके कदम ठहर से गये। अपनी आँखों को मलते हुए वो फिर से देखने की कोशिश करने लगे। मानसिंह को अपनी आँखों पर यकीन ही नही हो रहा था कि वो जो देख रहे हैं वो सच हैं या फिर सपना । अभी कुछ दूर आगे ही बड़े कि उनकी आंखें फटी की फटी ही रह गयी।





सामने एक बड़े से पेड़ के नीचे एक बड़े से पत्थर पर परी का


शरीर बेसुध सा पड़ा था और उसके दूसरी तरफ नयना मंत्रोउच्चारण कर रही थी। परी के सिरहाने की तरफ पाँच बच्चियाँ बेहोश सी खड़ी हुई थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो एक मूर्ति की तरह वहाँ पर जमी हुई हो। मानसिंह को ये सब देख एक आघात सा लगा । उसे समझ ही नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है। तभी उन पाँच बच्चियों में से एक बच्ची के शरीर से कुछ सुनहरे रंग का धुँआ सा निकलने लगा और परी के पैरो की तरफ बढ़ने लगा। इससे आगे कुछ होता मानसिंह जोर नयना कहते हुए जोर से चीखा जिसे सुनकर नयना हैरान हो गयी । उसे उम्मीद नही थी कि मानसिंह यहाँ और इस वक्त आ सकता था।





"ये यहाँ सब क्या हो रहा है , ये बच्चियाँ कौन हैं और तुम ये सब क्यों और कैसे , क्या कर रही हो और ये मेरी बच्ची को यहाँ ये सब "एक ही साँस में अनगिनत सवाल कर, डाले।





"मैं आपको बाद में सब कुछ बताती हूँ । अभी मेरे पास वक्त नही है।"





"नही मुझे अभी जानना हैं कि ये सब क्या हैं और तुम ये सब क्यों और क्या कर रही हो?"





"मैने कहा ना अभी मेरे पास वक्त नही है आपको कुछ भी समझाने का । मुझे अपनी बेटी को बचाना हैं , अगर ये रात बीत गयी तो हम हमारी बच्ची को हमेशा के लिए खो देंगे। " कहते हुए उन्हें मानसिंह को झिटका देकर दूर कर दिया।





"मैने कहा ना जबतक मुझे सब कुछ सही सही नही बताओगी मैं तुम्हे कुछ भी नही करने दूंगा। " कहते हुए मानसिंह ने नयना


के हाथ पकड़ लिए।





"अच्छा ठीक है बताती हूँ लेकिन दो मिनट रुको। " कहते हुए उसने परी के चारों तरफ एक सुरक्षा कवच बना दिया और मानसिंह को लेकर किनारे आ गयी।





"अब बताओ ये सब क्या हैं और इसका हमारी परी से क्या वास्ता और फिर ये बच्चियाँ किसकी हैं और यहाँ कैसे आयी?"





"ज़मीदार साहब मेरे बारे में जो कुछ भी जानते हैं वो पूरा सच नही है। आप मुझे तबसे जानते हैं जबसे मैं आपको मिली थी या ये कहे कि पहली उस गांव में मुलाकात थी। उसके पहले मैं क्या थी , कहाँ थी और क्या करती थी मैने जो कुछ भी आपको बताया सब झूठ था। " कहते हुए नयना ने अपनी पूरी कहानी मानसिंह को सुना दी और अब इन बच्चियों की बलि से ही परी को नई जिंदगी मिल सकती है। नयना का अतीत और परी की हालत के बारे में सुनकर मानसिंह को नयना से घृणा सी होने लगी। उसका नयना के लिए प्रेम नफरत में बदल गया। सब कुछ सुनकर मानसिंह मन ही मन टूट गया उसका हृदय उसे धिक्कारने लगा कि उस दिन गांव वालों की बातों पर उसने विश्वास क्यों नही किया।





"नयना तुमझे शर्म नही आती अपनी बेटी की जान बचाने के लिए इन निर्दोष बच्चियों की जान लेते हुए। क्या सुकून से रह पाओगी इस हत्या के पाप से। अपनी बेटी के प्यार में इतना पागल हो गयी कि लोगो से उनकी बच्चियाँ छीनने से तेरे हाथ नही कांपे।"





"कैसी शर्म और कैसी हत्या ? जो भी कर रही हूँ अपनी बेटी को बचाने के लिए कर रही हूँ ।"








"अरे भगवान से तो डर , ये सब करके तेरा तो नही पता लेकिन मुझे तो तूने जीते जी मार दिया ।"





"अरे कुछ नही होगा। बस एक बार मेरी बेटी ठीक हो जाय । आपकी कसम मैं ये सब छोड़ दूँगी और फिर हम सभी ख़ुशी ख़ुशी साथ रहेंगे।"





"तुझे क्या लगता हैं ये सब जानने के बाद मैं तुझसे कोई भी सम्बंद रखूँगा। तू मेरे साथ तो दूर मेरे घर में भी रहने के लायक नही हैं लेकिन फिर भी तुम्हारे पास अपनी गलती सुधारने का एक मौका हैं , जो भी यहाँ हो रहा हैं सब बंद कर दो और इन सब बच्चियों को उनके घर भेज दो। शायद तुम्हारी हर गलती को मैं माफ़ कर सकूँ।"





"आप कैसी बात कर रहे हैं , अगर मैने ऐसा किया तो हम हमारी बेटी को हमेशा के लिए खो देंगे।"





"मुझे अपनी बेटी को खोना मंजूर हैं लेकिन अपनी बेटी के जीवन के बदले और पाँच मासूम बच्चियों की मौत मंजूर नही हैं।"





"आप समझ क्यों नही रहे हैं मेरी बात।"





"तुम पागल हो गयी हो अपनी बेटी के प्यार में लेकिन मैं तुम्हारी तरह पागल नही हूँ इसलिए मैं तुम्हे ऐसा कुछ भी नही करने दूंगा और मैं अपनी बेटी को लेकर यहाँ से जा रहा हूँ । तुम्हारे लिए यही अच्छा होगा ये सब ख़त्म कर इन बच्चियों को उनके घर पहुँचा दो।" तेजी से नयना पर चिल्लाते हुए मानसिंह अपनी बेटी को उठाने के लिए आगे बढ़ता है लेकिन जिस कवच ने


नयना ने परी को ढक दिया था उसके छूते ही मानसिंह जोरदार झटके से पीछे की तरफ गिर जाता है।

















मानसिंह को नयना की सच्चाई पता चलते ही एक धक्का सा लगा जिसने उन्हें हजारों टुकड़ो में तोड़कर रख दिया। ऐसा लग रहा था कि आज जो कुछ भी हो रहा है उसमें सिर्फ और सिर्फ उनकी ही गलती हैं। उस दिन वो नयना को ना तो अपनी जिंदगी में लाये होते और ना ही आज ये दिन देखने को मिलता। चाह कर भी वो इस समस्या का कोई समाधान नही कर पा रहे थे। उन्होंने नयना ने उन बच्चियों की जिंदगी की भीख मांगी और उन्हें छोड़ देने की लाख मिन्नतें की लेकिन नयना पर ज़मीदार मानसिंह की किसी भी बात का कोई भी असर नही पड़ा। जब नयना ने उनकी बात मानने से इंकार कर दिया तो गुस्से में चिल्लाते हुए वो अपनी बेटी को अपने साथ ले जाने के लिए आगे बढ़ते हैं लेकिन एक जोरदार झटके से पीछे की तरफ गिर जाते हैं और नयना देखकर हँसने लगती हैं। मानसिंह एक दो बार और परी को उठाने के लिए उसके करीब जाते हैं लेकिन वैसे ही झटके के साथ गिर जाते हैं।








"नयना क्या किया है तुमने परी के साथ ? मुझे अपनी बेटी को यहाँ से ले जाना हैं और तुम मुझे रोक नही सकती इसलिए जो कुछ भी किया है बंद करो।"





"ज़मीदार साहब आप परी को यहाँ से ले जाना तो दूर मेरी मर्जी के बिना उसे हाथ तक नही लगा सकते। इसके चारों ओर एक सुरक्षा कवच बना हुआ हैं और जब तक मेरी विधि पूरी नही हो जाती आप तो क्या कोई भी उसे पार नही कर सकता।"





"मत करो नयना ये सब । प्लीज छोड़ दो अपनी ज़िद ।" एक बार फिर मानसिंह हाथ जोड़ते हुए नयना के सामने गिड़गिड़ाते हुए कहते हैं लेकिन नयना पर उनकी किसी भी बात का कोई भी असर नही पड़ता और वो साधना की तैयारी में व्यस्त हो जाती हैं। मानसिंह समझ चुके थे कि नयना एकदम पागल हो चुकी हैं और उसको कुछ भी कहना बेवकूफी होगी इसलिये उन्हें कुछ और ही करना होगा लेकिन उन्हें समझ नही आ रहा था कि वो क्या करे। तभी उनके मन में एक विचार आया कि अगर वो इन बच्चियों को होश में ला दे और यहाँ से ले जाये तो नयना की ये साधना अपूर्ण रह जायेगी और फिर वो अपने मकसद में कामयाब नही हो पाएगी।





मानसिंह ने देखा कि नयना आँखे बंद किये अपनी साधना में लीन थी और यही मौका था कि वो इन बच्चियों को यहाँ से आजाद करा ले । मन ही मन सोचते हुए वो उन बच्चियों के पास गए और उन्हें होश में लाने का प्रयत्न करने लगे लेकिन असफल रहे। तभी उन्हें पास में एक घड़े में पानी दिखा और वो उसे लेकर सभी बच्चियों पर छिड़क छिड़क कर उन्हें होश में लाने का प्रयत्न करने लगे लेकिन तभी नयना की आँखे खुल गयी और गुस्से से उसका चेहरा लाल हो गया।








"आप को इतना समझाया लेकिन आपको समझ नही आ रहा क्या ? "





"नयना मैं तुम्हे इन बच्चियों की बलि नही देने दूंगा । अपनी बेटी को नही ले जा सकता लेकिन इन सबको यहाँ से ले जाऊँगा फिर तुम इनके साथ कुछ नही कर सकोगी। "कहते हुए मानसिंह उन बच्चियों को उठाने का भरसक प्रयास करने लगे।





"आप ऐसे नही मानेंगे। आपने मुझे मजबूर कर दिया वो सब करने के लिए जो मैं आपके साथ नही करना चाहती थी। " कहते हुए नयना ने हाथ में जल लेकर कुछ मन्त्र पढ़ा और मानसिंह के ऊपर फेक दिया। मानसिंह के हाथ पैर रस्सियां से जकड गये और वो वही पर गिर पड़े।





"नही नयना ये सब मत करो। " मानसिंह के चिल्लाने पर उसने कुछ ऐसा जादू किया कि चाह कर भी मानसिंह के मुँह से कोई आवाज नही निकल रही थी। अपने रास्ते में आये हुए हर काटें से पूरी तरफ से निश्चिन्त होकर नयना अपनी अधूरी साधना में तल्लीन हो गयी। उसके मंत्रो के उच्चारण से जैसे पूरी धरती और आसमान जैसे गुंजायमान हो उठे हो। जैसे जैसे उसके मंत्रो की शक्ति बढ़ती जा रही थी अग्नि की ज्वाला अपना प्रचंड रूप धारण करती जा रही थी। अग्नि कुंड की ज्वाला जैसे आसमान छू लेने को आतुर लग रही थी और तभी उस ऊँची उठती लौ से एक हरे रंग का धुँआ सा निकलने लगा और वहाँ खड़ी पांचों बच्चियों के अंदर जाने लगा और सभी बच्चियाँ एक एक करके बेहोश होकर जमीन पर गिर गयी।





दूसरी तरफ मानसिंह का हृदय ये सब देख आहात हो रहा था और उसने अपने को इतना असहाय और मजबूर पहली बार


महसूस कर रहा था। लगातार वो अपनेआप को रस्सी के उन बंधनों से मुक्त करने का भरसक प्रयास कर रहा था और मन ही मन ईश्वर से सहायता की भीख मांग रहा था।





सभी बच्चियों के जमीन पर बेसुध होकर गिरने के बाद उस अग्नि की ज्वाला जब थोड़ी मध्यम हो गयी तो नयना ने आँखे खोली और जिस पेड़ के नीचे वो बैठी थी उस पेड़ की जड़ में खुदाई कर उसके नीचे से काले पत्थर के जैसा कुछ निकाला और उसे ले जाकर सभी बच्चियों के माथे पर बारी बारी से रख कर मन्त्र पढ़ने लगी और फिर वापस आकर उस पत्थर को परी के माथे पर रख दिया और कुछ विधि करने लगी। पहले की ही भांति नयना अपनी आंखें बंद करके मंत्रोउच्चारण करने में लग गयी। थोड़ी ही देर बाद बेसुध पड़ी पाँच बच्चियों में से एक बच्ची के शरीर से सुनहरे रंग, का धुँआ निकलकर परी के पास आया और उसके चारों ओर घूमने लगा । नयना के इशारे पर वो सुनहरा धुँआ परी के पैरों में समा गया और देखते ही देखते परी के काले पैर पहले के जैसे हो गए । उसके पश्चात फिर से नयना मन्त्र पढ़ने लगी और दूसरी बच्ची के साथ भी वैसे ही हुआ उसके शरीर से सुनहरे रंग का धुँआ निकला और परी के पास आकर उसके ऊपर घूमने लगा और नयना के इशारे के बाद वो परी के गुठनो से लेकर कमर तक में समा गया और उसका कमर तक का आधा हिस्सा पहले के जैसे ही हो गए। इसी प्रकार तीसरी और चौथी बच्ची ने निकला हुआ सुनहरे धुंए ने परी के गले तक के हिस्से और दोनों हाथों में समा कर उसे पहले जैसा ही कर दिया।





अब सबसे महत्वपूर्ण था उसके बाकी बचे हिस्से का सामान्य होना और उसमे पूरी तरह से जान आना जो कि काफी कठिन था। नयना ने दोहरी शक्ति से अपना मंत्रोउच्चारण शुरू किया लेकिन जब काफी समय तक उसे उस धुएं का एहसास नही


हुआ तो उसने आँखे खोल कर देखा तो वहाँ पांचवी बच्ची थी ही नही और मानसिंह को वहाँ ना देखकर वो गुस्से से तिलमिला उठी और "मानसिंह तुमने ये अच्छा नही किया " कहते हुए उनका पीछा करने लगी। मानसिंह ने बड़ी मुश्किल से अपने को रस्सी के बंधन से मुक्त कर लिया था और नयना की साधना का फायदा उठाकर वहाँ से उसी गुप्त मार्ग द्वारा वापस अपने महल में पहुँचकर वहाँ से निकलकर गाँव की तरफ भागने लगे। अभी मानसिंह गांव की सरहद से कुछ दूरी पर ही पहुँचे थे कि नयना उनके आगे आकर खड़ी हो गयी ।





"ज़मीदार साहब अगर आपको लगता हैं कि आप इसे मुझसे बचा सकते हैं तो ये आपकी बहुत बड़ी ग़लतफ़हमी हैं। आपके लिए यही अच्छा होगा आप मुझे इसे दे दीजिए।"





"तुमने चार बच्चियों को तो मार दिया लेकिन अब इस बच्ची को कोई भी चोट नही पहुँचने दूंगा।"





"लेकिन मैं आपसे कह रही हूँ इसे मुझे दे दीजिए। बस एक कदम दूर मेरी बच्ची की जिंदगी हैं और मैं उसके इस रास्ते में किसी को नही आने दूँगी।"





"कुछ भी कर लो नयना मैं इसे इसके माँ बाप के पास पहुँचा के ही मानूँगा।"





"इसे पहुँचाने लायक रहोगे तब ना पहुचाओगे ।" कहते हुए नयना ने जादू किया और ज़मीदार के पैर जैसे उसी जगह जमीन में धस गये और वो बाहर निकलने और आगे बढ़ने में असमर्थ हो गए और वो मदद के लिए किसी को पुकारते उससे पहले ही मुँह से उनकी आवाज निकलना बंद हो गयी । नयना के जादू से मानसिंह के हाथों में ऐंठन सी होने लगी और ना


चाहते हुए भी वो बच्ची उनकी पकड़ से छूटने लगी। इससे पहले वो बच्ची नीचे गिरती नयना ने उसे पकड़ लिया और उठाकर अपने साथ उसी जगह पर ले जाने के लिए बढ़ी लेकिन तभी सूरज की पहली किरण जमीन पर पड़ते ही नयना जोर से चीखने लगी । उसके शरीर में जलन सी होने लगी। उसके तंत्र के प्रभाव से वो बस्ची मुक्त हो गयी थी और उसे होश आया गया था। ज़मीदार भी उस जादू से आजाद हो गया और नयना की तकलीफ का फायदा उठाकर वो उस बच्ची को लेकर वहाँ से भाग गया।





"मानसिंह तुमने आज जो किया उसके लिए मैं तुम्हे कभी माफ़ नहीं करुँगी। अपनी बेटी को बचाते बचाते आज मैंने उसे खो दिया ।" कहते कहते वो वही पर विलाप करने लगी। उस बच्ची को गांव वालों को देने के बाद मानसिंह जब वापस अपने महल पहुँचे और परी के कमरे में बने उस गुप्त मार्ग की तरफ बढे तो देख कर हैरान हो गए कि अभी रात में जो दरवाजा था वो अपनेआप गायब हो चूका था । महल और आसपास में सभी जगह नयना और परी को ढूंढा लेकिन उनका कहीं भी पता नही चला । घर के सभी लोगो और गाँव वालों को नयना की सच्चाई से अवगत कराया जिसे सुनकर सभी के पैरों तले जमीन खिसक गई । नयना की सच्चाई पर यकीन करना किसी के लिए भी आसान नही था। उसके बाद नयना और परी के बारे में किसी को कुछ भी पता नही चला लेकिन लगभग एक साल बाद जब फिर से वैसी ही छोटी बच्चियाँ गायब होने लगी तो मानसिंह ने अपने कुलगुरु ने इस विषय में वार्ता की और उन्होंने नयना के बारे में पता लगा लिया । नयना ने अपनी मरी बेटी को तंत्र मंत्र के प्रभाव से जिंदा लाश बना कर रखा हुआ था और उसे जिन्दा करने लिए फिर से पाँच बच्चियों की बलि देनी थी। मानसिंह ने प्रण लिया कि उस बार कुछ नही कर पाए थे लेकिन अब वो नयना को ऐसा कुछ नही करने देंगे और उसकी कहानी हमेशा


के लिए ख़त्म कर देंगे लेकिन ये शायद अब उतना आसान नही था क्योंकि जिन्दा लोगो से लड़ना आसान होता है लेकिन किसी आत्मा से नही क्योंकि नयना अब इंसान नही एक आत्मा बन चुकी थी।





बहुत से सवाल जन्म ले चुके थे कि उस दिन के बाद दोनों कहाँ गायब हो गए । उनके साथ क्या हुआ । नयना की मौत कैसे और कब हुई और अगर वो मर चुकी है तो अब बच्चियाँ क्यों गायब हो रही।











मानसिंह ने प्रण लिया कि अब वो नयना को और किसी भी बच्ची की जान नही लेने देगा लेकिन वो करे तो क्या करे क्योंकि एक इंसान का मुकाबला करना तो आसान होता है लेकिन एक आत्मा का सामना करना एक इंसान के वश में नही होता। मानसिंह के कुलगुरु ने अपनी शक्ति के द्वारा नयना की आत्मा को खोज निकाला और अपने पास आने को मजबूर कर दिया । नयना की आत्मा को बंधक बनाने के लिए उन्होंने पहले से ही सारे इंतजाम कर रखे थे और जैसे ही उनकी शक्ति की प्रभाव से वो पास आई उसकी आत्मा को नष्ट करने की बहुत कोशिश की लेकिन वो उस आत्मा का कुछ भी नही बिगाड़ पाये ।
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