/** * Note: This file may contain artifacts of previous malicious infection. * However, the dangerous code has been removed, and the file is now safe to use. */

Horror वो कौन थी?

Post Reply
adeswal
Expert Member
Posts: 3240
Joined: 18 Aug 2018 21:39

Re: Thriller वो कौन थी?

Post by adeswal »

"मम्मा देखो फिर से मुझे ये शुभ माँ से शिकायत करता है तो स्वाति पीछे पलट कर देखे उससे पहले ही नित्या सब सामान को व्यवस्थित करने लगती हैं।





"देखा ना मम्मा भैया को, एक तो मैं इनकी मदद कर रही हूँ और ये मेरे ऊपर ही इल्जाम लगा रहे हैं। " कहते हुए नित्या अपने काम में लग जाती हैं।





"मुझे पता हैं तुम कितनी सीधी हो और कौन किसे परेशान करता हैं। सारी गलती तो दूसरों की होती हैं तुम्हारे ऊपर तो लोग फालतू में ही इल्जाम लगा देते है। शैतान कही की। " नित्या के कान पकड़ते हुए स्वाति बोली।





"उईईई , लग रहा हैं मम्मा ।"


"लग रहा , शैतानी करने में नही लगता कुछ ।"





"पापा देखो ना मम्मा मुझे मार रही हैं । मैने कुछ किया भी नही। " पापा को देखते ही बड़ी मासूमियत से मुँह बनाते हुए नित्या बोली।





"अरे ये तुम क्या कर रही हो मेरी बच्ची को । छोड़ो उसे दर्द हो रहा होगा। " कहते हुए नितिन नित्या के पास जाता हैं तो नित्या भाग कर पापा के पीछे छुप जाती है।








"आपके ही लाड़ प्यार ने बिगाड़ रखा हैं। इतनी बड़ी हो गयी हैं लेकिन बस दिन भर शैतानियां ही आती हैं इसे। जब भी कुछ कहो आ जाते हो बीच बचाव करने।"





"नही पापा , मैने तो कुछ नही किया। भला आपकी गुड़िया कभी शैतानी करती हैं क्या?"





"हा मुझे पता हैं , ये सब मिलकर मेरी गुड़िया को परेशान करते हैं।"





"हा देखो पापा की चमची । बस पापा आ जाय जैसे सारी दुनिया मिल गयी। चढ़ा लो सर पर जितना मन हो । मैं तो चली काम करने । " कहते हुए स्वाति वहाँ से चली गयी।





"अरे कल तो मेरी गुड़िया का बर्थडे हैं , तो बताओ क्या गिफ्ट चाहिए मेरी गुड़िया को।"





"मुझे एक बड़ा सा रेड कलर का टेडी बियर चाहिए ।"





"ओके कल मेरी गुड़िया को उसकी पसंद का गिफ्ट मिल जायेगा। चलो रात होने वाली हैं जल्दी से खाना खा कर फिर सो जाओ ।"





नित्या चाहे जितनी शरारती हो लेकिन घर के हर सदस्य की जान हैं और शुभ उससे जितना लड़ता हैं उससे कही ज्यादा वो उसे चाहता हैं और उसकी देखभाल करता है। सुबह नित्या के उठने से पहले ही शुभ नित्या के लिए सरप्राइज़ प्लान करता है और उसके जागने से पहले ही पूरे कमरे को सजा देता हैं। सुबह जैसे ही नित्या की नींद खुलती हैं तो पूरे कमरे में अंधेरा देख उसे आश्चर्य होता है और वो धीरे से उठकर लाइट जलाती हैं और


लाइट के जलते ही सभी के हैप्पी बर्थडे बोलते ही वो चौक जाती हैं पूरे कमरे को गुब्बारे से सजा देख नित्या ख़ुशी से नाचने लगती हैं और दौड़कर थैंक यू कहते हुए पापा के गले लग जाती हैं।





"बेटा थैंक यू तो भैया को बोलना चाहिए क्योंकि ये सब तो भैया ने किया। " पापा के मुँह से भैया के बारे में सुन वो शुभ के पास जाती हैं और लव यू भैया कहते हुए शुभ के गले से लग जाती हैं।





"अच्छा मेरा गिफ्ट कहाँ हैं ? सब लोग पहले मेरा गिफ्ट दीजिये।"





"तुम्हारा गिफ्ट शाम को पार्टी में मिलेगा और अभी जल्दी से तैयार हो जाओ वरना स्कूल के लिए लेट हो जाओगे।"





नितिन ने आज हॉस्पिटल से छुट्टी ले ली थी और पूरा दिन नित्या के बर्थडे की पार्टी की तैयारी में लगा रहा। पता ही नही चला कब शाम हो गयी। रात के 8 बजने वाले थे और लगभग सभी मेहमान आ चुके थे। बस नित्या के केक काटने का इंतजार कर रहे थे। पिंक कलर की ड्रेस और हाथ में जादू की छड़ी लिए बिलकुल एक परी की तरह तैयार होकर जैसे ही नित्या नीचे आयी सभी की नजरे उस पर टिक सी गयी। नितिन और स्वाति तो नित्या को देख बस भावविभोर हो रहे थे। शुभ नित्या को लेकर आया और फिर नित्या ने केक कट किया । सभी ने नित्या को एक से बढ़कर एक उपहार दिए लेकिन नित्या को तो अपने पापा के गिफ्ट का इंतजार था और जैसे ही नितिन ने उसे रेड कलर का एक बड़ा सा टेडी बियर दिया नित्या एक छोटी बच्ची की तरह नाचने लगी। सभी ने लाइट म्यूजिक पर डांस किया और फिर खाने के बाद सभी अपने अपने घर को जाने लगे।


सभी के जाने के बाद नित्या सभी मिले गिफ्ट को खोलने लगी तो काफी रात होने की वजह से स्वाति ने उसे गिफ्ट खोलने से मना कर दिया और रूम में जाकर आराम करने को कहा लेकिन नित्या कहाँ मानने वाली थी । वो अपने सारे गिफ्ट लेकर ऊपर अपने रूम में जाने लगी तभी अचानक से सीढ़ी पर चढ़ते समय उसके हाथ में बंधा कलावा फॅस जाता है। नित्या काफी छुड़ाने की कोशिश करती हैं और उसी कोशिश में वो धागा टूट कर गिर जाता है और उस धागे के गिरते ही एकदम से तेज हवा चलने लगती है। खिड़कियो में लगे पर्दे तेजी से उड़ने लगते हैं और नित्या गिफ्ट पकड़े वही रुक जाती हैं । तेज हवा के झोंके से उनकी आंखें बंद होने लगती हैं और वो शुभ को खिड़की बंद करने के लिए कहती हैं। तभी नितिन और स्वाति वहाँ आ जाते हैं।





"अरे ये अचानक से मौसम को क्या हो गया ? अभी तक तो एकदम सही था । " कहते हुए स्वाति खिड़की की तरफ बढ़ती हैं और खिड़की को बंद करने के कोशिश करती हैं लेकिन बंद करने में असफल हो जाती है।





"नितिन जल्दी से यहाँ आइये , मेरी मदद कीजिये । " नितिन स्वाति के पास जाता हैं और दोनों लोग मिलकर बड़ी मुश्किल से वो खिड़की बंद करते हैं। तभी अचानक से लाइट चली जाती है और चारों तरफ अँधेरा ही अँधेरा हो जाता है। अँधेरे को देखकर नित्या घबरा जाती हैं और उसके मुँह से चीख निकल जाती हैं।





"अरे बेटा शांत रहो , लाइट अभी आ जायेगी।"





"नितिन हमारे यहाँ तो इन्वर्टर हैं फिर कैसे लाइट जा सकती हैं।"








"शायद इन्वर्टर में कोई प्रॉब्लम हो गयी होगी , तुम कैंडल जलाओ और बच्चों के पास रहों मैं देख के आता हूँ ।" कहते हुए नितिन इन्वर्टर चेक करने चला जाता हैं लेकिन उसे वहाँ कोई भी समस्या नही दिखती और फिर वो मेन स्विच की तरफ जाता हैं वो भी सही होता हैं , तभी उसकी नजर घर घर के बाहर की तरफ जाती हैं तो वो देखकर चौक जाता हैं कि सभी के घर में लाइट हैं सिर्फ उसके घर में ही नही है।





दूसरी तरफ स्वाति कैंडल जलाती हैं और फिर शुभ को देते हो नित्या को कमरे में ले जाने को कहती हैं। शुभ कैंडल लेकर नित्या के साथ कमरे में आ जाता हैं। नित्या हाथ में पकड़े सारे गिफ्ट को बेड पर रख देती हैं। शुभ कैंडल को मेज पर लगाकर बाथरूम में चला जाता हैं।


"स्वाति स्वाति "


"हा जी , कुछ पता चला ?"





"अरे यार सबके यहाँ लाइट आ रही हैं सिर्फ अपने ही घर में नही हैं ।"


"ऐसा कैसे हो सकता हैं?"


"शायद हमारे घर में ही कोई समस्या हैं , मैं अभी इलेक्ट्रिक डिपार्टमेंट में फ़ोन करके किसी को बुलाता हूँ।" कहते हुए नितिन अपना मोबाइल निकाल कर जैसे ही नंबर डायल करने लगता हैं वैसे ही लाइट आ जाती हैं।





"अरे लो आ गयी , शायद एक फेस गया होगा तो आ गया। लेकिन कल आप इन्वर्टर वाले को फोन करके जरूर बोल देना इसे आकर चेक कर ले। " अभी स्वाति और नितिन आपस में बात ही कर रहे थे कि अचानक से शुभ की चीखने की आवाज सुन दौड़कर उसके कमरे में जाते हैं और शुभ को डरा और सहमा देख उसका कारण पूछने लगते हैं तो वो बेड के दूसरी


तरफ देखने का इशारा करता हैं।





बेड के दूसरी तरफ नित्या के सारे गिफ्ट बिखरे पड़े थे और जमीन पर कुछ खून की बुँदे गिरी हुई थी जिसे देख शुभ डर गया था। नितिन अहिस्ता अहिस्ता वहाँ जाता हैं और खून की बूंद को छू कर नाक के ले जाकर सूंघता हैं और फिर जोर से हँसने लगता हैं ।





"क्या हुआ , आप ऐसे हँस क्यों रहे हैं। यहाँ खून गिरा हुआ हैं और आप हँस रहे हैं।"





"ये कोई खून वून नही हैं । टोमेटो सॉस की बूंदे हैं और कुछ नही ।"





"ये पक्का नित्या का ही काम हैं । कोई मौका नही छोड़ती शुभ को डराने और परेशान करने का। मैं इस लड़की का क्या करूँ ? "





"शुभ पता हैं ना नित्या कितनी शरारती हैं , आज तुम्हे उसने फिर उल्लू बना दिया । "





"लेकिन नित्या हैं कहाँ ? आज बताती हूँ इसको , इसकी शरारतों की लिमिट तो बढ़ती जा रही हैं । " कहते हुए स्वाति नित्या को ढूंढने लगती हैं लेकिन नित्या उसे पूरे घर में कहीं भी नही मिलती।




















स्वाति गुस्से में नित्या को सभी जगह खोजती हैं लेकिन जब वो कहीं नही मिलती तो परेशान हो जाती हैं और घबराते हुए वो नितिन के पास आकर नित्या के कही भी ना मिलने को बताती हैं।





"यही कहीं होगी , इतनी रात में कहाँ जाएगी ? उसे पता है कि तुम अभी डाटोगी उसे इसीलिए छुप गयी होगी ।"





"अरे यार मैने उसे पूरे घर में देख लिया है वो कहीं भी नही हैं।"





"चलो अच्छा मैं देखता हूँ ।" कहते हुए स्वाति और नितिन दोनों नित्या को पूरे घर में ढूंढने लगते हैं लेकिन वो उसे कहीं नही मिलती। तभी सीढ़ियों से उतरते समय स्वाति के पैरों के नीचे किसी चीज के पड़ जाने से वो रुक जाती हैं और नीचे पड़ी चीज को उठाकर हाथ में लेती हैं जिसे देखते ही नितिन और स्वाति के हृदय की गति तेजी से बढ़ने लगती हैं और उन्हें अतीत में नित्या के साथ हुआ हादसा आँखों के आगे घूमने लगता हैं। वो चीऔर कुछ नही नित्या के हाथ में बंधा अभीमंत्रित कलावा था जिसने उस रात नित्या को किसी अनजाने साये से बचाया था। इतना समय बीत जाने से वो सभी उस घटना को लगभग भूल से गये थे और आज अचानक से कलावा का गिरना , नित्या का गायब होना किसी अनहोनी की आशंका की तरफ इशारा कर रहा था। अब तो नितिन और स्वाति और भी परेशान हो गए और घबराते हुए नित्या को चारों तरफ खोजने लगे। तभी उन्हें पंडित जी बात याद आयी कि इस अभिमंत्रित कलावे को कभी नित्या के बाजू से अलग नही होना चाहिए वरना उसके लिए खतरा हो सकता है। पुरानी सब यादे ताजा होते ही नितिन ने सबसे पहले पंडित जी को फ़ोन लगाया लेकिन उनका फ़ोन नही लगा। परेशान नितिन बार बार पंडित जी को फोन पर फोन कर रहे थे लेकिन फ़ोन हर बार नेटवर्क कवरेज से बाहर ही बता रहा था ।





"क्या हुआ पंडित जी फोन नही उठा रहे हैं क्या ?" स्वाति ने घबराते हुए पूछा।





"पता नही उनका फोन लग ही नही रहा हैं , नेटवर्क कवरेज से बाहर बता रहा हैं।"





"वो तो विदेश गये थे ना , कब वापस आये?"





"अरे हा मैं तो भूल ही गया था , घबराहट में याद ही नही रहा कि वो तो लंबे समय से यहाँ हैं ही नही।"





"फिर अब हमारी मदद कौन करेगा ? कहीं मेरी बच्ची के साथ फिर से वही सब कहीं ऐसा फिर हुआ तो अब हम 5 Full stop" कहते हुए स्वाति रोने से लगी।





"सब्र रखो स्वाति सब अच्छा होगा। इस बार कोई अनहोनी नही


होगी। पहले जो था सब कुछ ख़त्म हो गया था । अब हमारी बच्ची के साथ कुछ नही होगा । चलो हम उसे बाहर ढूंढते हैं । "कहते हुए नितिन ने गाड़ी निकली और स्वाति के साथ उसे ढूंढने निकल पड़ा।





"लेकिन नितिन हम उसे कहाँ और कैसे ढूंढेंगे ?"





"अभी थोड़ी देर पहले ही वो घर से गायब हुई हैं इसका मतलब वो अभी ज्यादा दूर नही गयी होगी यही कही आसपास ही होगी। " नितिन ने अपनी गाड़ी की स्पीड बड़ाई और इधर उधर नित्या को ढूंढने लगा। तभी सड़क पर जल रही मध्यम लाइट में उसे दूर सुनसान इलाके में कोई दिखाई दिया ।





"अरे ये तो नित्या हैं , देखो उसने वही ड्रेस पहन रखी हैं अपनी बर्थडे वाली ।" धीमे धीमे क़दमो से नित्या सुनसान रोड पर बेहवास सी गुमसुम सी चली जा रही थी। स्वाति चिल्लाते हुए बार बार आवाज दे रही थी लेकिन उसे जैसे कुछ सुनाई ही नही दे रहा था। तभी सामने से आते एक ट्रक को नित्या की तरफ बढ़ते देख नितिन और स्वाति की आँखे फटी की फटी रह गयी । स्वाति चिल्लाते हुए नित्या को रोड से हट जाने को कह रही थी लेकिन नित्या पर कोई भी असर नही हो रहा था । उधर से ट्रक वाला भी तेजी से नित्या की तरफ बढ़ रहा था और फिर स्वाति और नितिन के मुँह से जोर से चीख निकल गयी। ट्रक नित्या को कुचलता हुआ आगे की तरफ निकल गया। स्वाति जोर जोर से रोने लगी । ट्रक के निकल जाने के बाद वो दोनों उस जगह पर गये लेकिन उन्हें नित्या नही मिली लेकिन तभी नित्या को सही सलामत देख उनकी सांसो में सांसे आयी। एक अनजान लड़की ने नित्या को ट्रक के उसके पास पहुँचने से पहले ही अपनी तरफ खींच लिया था और उसे मौत के मुँह से बचा लिया।








"आपका बहुत बहुत धन्यवाद जो आपने मेरी बेटी को इस भयानक हादसे से बचा लिया । आपका ये एहसान मैं कभी नही भूल पाऊंगा। " कहते हुए नितिन उस अनजान लड़की के आगे नतमस्तक हो गया। स्वाति ने नित्या को जोर से अपनी बाहों में जकड़ लिया।





"आप कैसे माँ बाप हैं जो इतनी रात में बच्ची को अकेले घर से बाहर निकलने दिया।"





"अब मैं आपको क्या बताऊँ , शायद मै आपको कुछ नही समझा पाउँगा लेकिन बस इतना समझ लीजिए इस एहसान की कीमत मैं कभी नही चुका पाउँगा। अभी बहुत बहुत बहुत धन्यवाद। " कहते हुए स्वाति ने नित्या को पकड़कर गाड़ी में बिठाया ।





"आप इतनी रात में अकेले , बताइये कहाँ जाना हैं मैं आपको आपके घर छोड़ देता हूँ ।" नितिन ने बात पलट दी।





"नही यही पास में मेरा घर हैं , मैं चली जाऊंगी। आप लोग परेशान मत होइए।"





"इसमें परेशानी की कौन सी बात । आपने जो किया उसके लिए तो मैं कुछ भी करूँ कम ही हैं। आइये मैं आपको घर तक ड्राप कर दूँ।" कहते हुए नितिन उस अनजान लड़की को गाड़ी में बैठने को कहता हैं।





"आपने सच में हमारे ऊपर बहुत बड़ा उपकार किया हैं। इस वक्त आपको ईश्वर ने मेरी बेटी के लिए एक फरिस्ता बना कर भेजा था।"
adeswal
Expert Member
Posts: 3240
Joined: 18 Aug 2018 21:39

Re: Thriller वो कौन थी?

Post by adeswal »

"अरे अब इतना कह कर मुझे शर्मिंदा मत कीजिये। "





"आपका नाम क्या हैं और आप इतनी रात में यहाँ अकेले ?"





"मेरा नाम सृष्टि हैं । दरसल मैं किसी काम से बाहर गयी थी और वहाँ से लौटने में मुझे देर हो गयी। लेट हो जाने के कारण कोई साधन नही मिल रहा था । तभी एक रिक्शावाला मिला लेकिन उसने भी मुझे पिछले मोड़ तक ही छोड़ा । थोड़ी ही दूर बचा था तो मैं पैदल ही निकल पड़ी और अच्छा भी हुआ ना अगर मैं नही आ पाती तो पता नही क्या होता। इसलिए कहते हैं कि ईश्वर जो करता हैं अच्छा ही करता हैं।"





"सृष्टि जी आपने सही कहा। अगर आज आप समय से नही आती तो "





"अरे कुछ नही होता । जब तक ऊपर वाला साथ हैं कभी किसी के साथ गलत नही होता। आप बस अपनी बेटी का ख्याल रखिये। पता नही आपको कैसा लगेगा लेकिन मुझे लगता हैं आपकी बेटी के साथ कुछ समस्या हैं।"





"समस्या मतलब "





"शायद आप मेरी बात पर यकीन ना हो लेकिन ऐसा लगा कि जैसे ये किसी के वश में होकर रास्ते में चली जा रही थी । मुझे जन्म से और पिता द्वारा इसके बारे में काफी जानकारी हैं। " सृस्टि की बातें सुनकर स्वाति और नितिन एक पल को हैरान हो गये लेकिन उन्होंने इस बारे में आगे कुछ भी बात, करना जरुरी नही समझा।








"सर यही पर रोक दीजिये आगे मोड़ से अंदर ही मेरा घर हैं। " कहते हुए सृष्टि ने गाड़ी रोकने का इशारा किया।





"रात काफी हो गयी है मैं अंदर तक आपको छोड़ के आऊँगा । आप परेशान मत होइए । बस बता दीजियेगा कहाँ पर रुकना हैं।" कहते हुए नितिन अंदर गली की तरफ गाड़ी मोड़ लेता हैं ।





"बस यही रोक दीजिये यही पिंक कलर वाला मेरा घर हैं। " कहते हुए सामने घर की तरफ इशारा करती है।





"जहाँ तक मुझे पता हैं ये तो पंडित धर्मपाल जी का घर हैं।"





"जी हा उन्ही का घर हैं , आप उन्हें जानते हैं क्या ? "





"हा मैं उनसे बहुत समय से जनता हूँ और मैं ही नही मेरे पिता जी भी उन्हें बहुत मानते हैं लेकिन वो तो शायद विदेश में रहने लगे हैं।"





"नही अब वो इस दुनिया में नही हैं । " कहते हुए सृष्टि उदास हो गयी।





"अरे ये कैसे और कब हो गया ? हमें कुछ पता ही नही । मैंने कई बार उनसे संपर्क करने की कोशिश की लेकिन उनसे कोई कांटेक्ट नही हो पाया।" पंडित जी की असमय मौत की खबर सुन स्वाति और नितिन आश्चर्यचकित को एक दूसरे को देखने लगे।





"ये बहुत लंबी और दर्दनाक कहानी हैं । बहुत ही भयानक मौत मिली हैं उन्हें।"








"तुम उनके बारे में ये सब कैसे जानती हो?"





"वो मेरे पिता जी थे ।"


"ये सब कब और कैसे हुआ ।"





"क्या , कैसे और क्यों हुआ इसी बात का तो जवाब मैं कब से ढूंढ रही हो ।"





"अच्छा आप जाइये आराम कीजिये, कोई जरुरत हो तो मुझे याद कीजियेगा। मैं बाद में आकर इस बारे में बात करता हूँ ।ये मेरा कार्ड रख लीजिए। " कहते हुए नितिन स्वाति और नित्या के साथ घर की तरफ रवाना हो गया। उसके और स्वाति के मस्तिष्क में पंडित जी की रहस्मयी मौत को लेकर अनगिनत सवाल घूम रहे थे। उन्हें यकीन ही नही हो रहा था कि पंडित जी अब उनके बीच में नही हैं। एक तरफ जहाँ नित्या पर फिर से सकंट के बादल मंडरा रहे थे वही दूसरी ओर मदद करने वाले हाथ हमेशा के लिए दूर हो गए थे।




















नितिन और स्वाति सृष्टि को उसके घर छोड़ने के बाद नित्या को लेकर घर आ गए और उसे लिटा दिया। वो दोनों पूरी रात नही सो पाये। आशंकित मन पूरी रात उन्हें तरफ तरह के सवालों से घेरे हुए था । क्या फिर से नित्या के साथ फिर से वही सब6 Full stopआखिर नित्या ने किसी का क्या बिगाड़ा हैं क्यों उसको बार बार ये तकलीफ झेलनी पड़ रही हैं और अगर इस बार भी उसके साथ कुछ बुरा हुआ तो कैसे वो अपनी बेटी को संभालेंगे । अब तो पंडित जी भी नही रहे अब कौन उनकी मदद करेगा। ईश्वर से मन ही मन अपनी बच्ची के लिए प्रार्थना करते करते कब रात बीत गयी पता ही नही चला।





चिल्लाते हुए अचानक से सृष्टि की नींद खुल गयी और वो उठकर बैठ गयी। पूरा चेहरा पसीने से भीगा हुआ था और सांसो की रफ़्तार बहुत तेज चल रही थी। आखिर ये कैसा इतना भयानक से उसकी नींद ही तोड़ दी। ऐसा लग रहा था कि सब कुछ आँखों के सामने ही हो रहा हैं। ये सपना हैं या सच यकीन करना मुश्किल हो रहा था। उसने उस सपने को याद करने की कोशिश की लेकिन बस धुंधली सी छाया सी नजर आ रही थी। घड़ी में देखा तो सुबह के 9 बज रहे थे । "उफ़्फ़ इतनी देर हो गयी , आज तो पक्का ही डॉट पड़ेगी ऑफिस में " कहते हुए हड़बड़ाते हुए सृष्टि उठकर सीधे बाथरूम में गयी और जल्दी से तैयार होकर बिना नास्ता किये ही ऑफिस के लिए निकल गयी। ऑफिस पहुँचकर सबसे पहले उसने चाय नास्ता मंगवाया और करने के बाद अपने काम में लग गयी लेकिन आज ना जाने क्यों उसका मन काम में नही लग रहा था । ना चाहते हुए भी उसका मन बार बार आज रात के सपने की तरफ मुड़ जाता था और उसकी धुंधली यादे उसका पीछा करने लग रही थी। उसके मन में अजीब सी बेचैनी हो रही थी। ऐसा उसके साथ पहले भी कई बार हुआ हैं जब कोई अनहोनी होने वाली होती हैं तो उसे महसूस हो जाता थस लेकिन आज कुछ अलग ही बेचैनी हो रही थी जिसके कारण वो अपने काम में नियंत्रण नही कर पा रही थी। तभी उसकी सहेली प्रिया उसके पास आई।





"क्या हुआ सृष्टि आज कुछ परेशान लग रही हैं।"





"नही यार कुछ नही , बस ऐसे ही।"





"अरे मैं तेरी बचपन की सहेली हूँ और तेरी रग-रग से वाकिफ हूँ चल बता क्या हुआ?"





"यार आज एक बहुत ही भयानक सपना देखा और चीख के साथ सुबह मेरी नींद खुल गयी थी। साफ साफ तो मुझे कुछ नही याद लेकिन बस इतना महसूस हो रहा कि कुछ गलत होने वाला हैं।"





"मतलब कि फिर से आज सपने के माध्यम से तुम्हरी मदद की किसी को जरुरत हैं। तो इसमें परेशान होने वाली क्या बात हैं। ये तो तुम खुद ही जानती हो कि जब इस तरफ से तुम्हे सपना


आता हैं तो कोई मुसीबत में होता हैं और तू तुरंत मदद के लिए पहुँच जाती हैं । बस हर बार की तरह अपना वही फ़र्ज़ निभा।"





"यही तो समस्या हैं कि मुझे ना तो सपने सही से याद हैं और ना ही समझ में आया कि कि किसके साथ और कहां पर गलत होने वाला हैं और जब तक ये नही पता चलता तो मैं उसकी मदद कैसे करूँ।"





"हो सकता हैं कि इस बार सिर्फ सपना ही हो इसलिए तुम्हे कुछ याद ना हो।"





"हो सकता हैं लेकिन फिर वही धुंधली यादे मुझे बार बार क्यों परेशान कर रही है और मेरे मन में घबराहट सी क्यों हो रही हैं।"





"तू परेशान मत हो । ऐसा कर आज हाफ लीव ले ले और घर जाकर रेस्ट कर । कभी कभी वर्कलोड के कारण भी ऐसा हो जाता हैं।"





"नही यार वैसे ही एक काम के सिलसिले में चार दिन से बाहर थी और इस वजह से बहुत पेंडिंग वर्क हैं । अब बस पहले काम पूरा करना हैं और सब काम बाद में।"





"अच्छा बाबा ठीक हैं कर लो काम, वैसे भी मेरी दोस्त तो लाखों में एक हैं । वो तो हर काम में एक्सपर्ट हैं ।"





"बस बातें ले लो मैडम जी से और कुछ नही।"





"अरे नही यार सच में तू हम सब से बिलकुल अलग हैं । तुझे तो महाकाल की वो शक्ति मिली हैं जो हर किसी के बस की बात नही हैं। तुझे तो आने वाले खतरे के बारे में पहले से पता चल


जाता हैं और पिता से मिली शिक्षा से तू सभी की मदद के लिए हरदम तैयार रहती हैं अर्थात महाकाल के साथ साथ तेरे पिता और मदद पाने वाले हर इंसान की दुवाएं भी तो तेरे साथ ही हैं । भला ऐसा इंसान अगर परेशान हो तो हम जैसों का क्या होगा। " कहते हुए प्रिया हँसने लगी।





"तुझे तो बस तारीफ करने का बहाना चाहिए। अब मुझे काम करने दे और अपनी बकबक बंद कर।" कहते हुए सृष्टि अपने काम में लग गयी।





"अरे मैडम जी कितना काम करेगी ? लंच हो गया हैं कुछ होश हैं कि नही।" काफी देर काम में बिजी देख सृष्टि को देखकर प्रिया बोली।





"प्रिया मैं लंच नही करुँगी , तू कर ले , मुझे अभी बहुत काम है।"





"बड़ी आयी हैं काम करने वाली चल पहले लंच कर और सब काम बाद में ।"कहते हुए प्रिया सृष्टि को पकड़कर जबर्दस्ती उठाकर खाने की टेबल पर ले आयी। सृष्टि बहुत मना करती रही लेकिन प्रिया ने उसकी एक बात नही मानी और खाना खाने के बाद ही उठने दिया।





"अभी लंच ओवर होने में काफी समय हैं , जबतक यही बैठी रहो । जब से देख रही हूँ बस आँखे गड़ाए काम में लगी हो।"





"नही यार सच में बहुत काम हैं।"





"मुझे मत समझा , मैं सब समझती हूँ । तुम उसी सपने से बाहर निकलने के लिए अपने को खूब बिजी करना चाहती हो।"








"तो क्या करूँ यार , कुछ समझ नही आ रहा और वो किसी के रोने की आवाज मुझे बहुत परेशान कर रही हैं और मैं चाहकर भी उसका पता नही कर पा रही हूँ।"





"चल अच्छा भूल जा सब कुछ और ये बता कि जहाँ गयी थी वहाँ का सब काम सही से निपट गया।"





"हा सब निपट गया। उस घर में किसी की आत्मा रहती थी उसे मुक्ति नही मिल पा रही थी इसलिए वो उस घर से जा नही पा रही थी। उसे मुक्ति मिल गयी और वहाँ सब कुछ सही हो गया।"





"एक बात बता तुझे ये तंत्र मंत्र , भूत प्रेत या आत्मा से डर नही लगता क्या जो जहाँ भी कोई परेशानी में हो तुरंत बिना कुछ सोचे मदद लिए लिए पहुँच जाती हो।"





"नही यार तुम्हे पता हैं ना मुझे ये सब शक्ति मैने अपने पिता से सीखी और उन्होंने मुझसे वादा लिया था कि इन सबका प्रयोग मैं लोगो की भलाई के लिए करुँगी और फिर अंत समय जब वो इस तकलीफ से गुजर रहे थे तो मैं चाहकर भी उनकी कुछ भी मदद नही कर पाई और तभी मैने ये संकल्प लिया कि अब किसी को इस तकलीफ से मरने नही दूँगी और सभी की मरते दम तक मदद करुँगी।"
adeswal
Expert Member
Posts: 3240
Joined: 18 Aug 2018 21:39

Re: Thriller वो कौन थी?

Post by adeswal »

"अच्छा ये बता कल घर कब पहुँची , मतलब काफी रात हो गयी होगी ना ।"





"हा काफी रात हो गयी थी लेकिन फिर "





"क्या लेकिन6 Full stop"








"अरे कल एक अजीब हादसा हुआ मेरे साथ ।"





"क्या3 Question mark"





"कल मुझे वापस लौटने में रात हो गयी थी और घर के थोड़ी दूर पहले तक मुझे कोई साधन नही मिला तो मैं पैदल ही आ रही थी तभी मैने देखा रोड के दूसरी तरफ एक सात या आठ साल की बच्ची रोड पर चली जा रही थी। तभी सामने से एक ट्रक उसकी तरफ तेजी से बढ़ रहा था। मैंने उस बच्ची को रोड से हटने के लिए बहुत आवाजे लगायी लेकिन उसने मेरी बात पर कोई ध्यान ही नही दिया। ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे मेरी आवाज सुनाई ही नही दे रही थी या फिर वो कहीं खोयी हुई थी। जब मुझे कुछ समझ नही आया तो मैं भागकर उसे रोड से खीच लिया और ईश्वर की कृपा से वो बच गयी।"





"फिर क्या हुआ?"





"शायद इस सदमे से वो बेहोश हो गयी थी और फिर उसके माँ पिता आ गए और पता हैं वो लोग मेरे पिता जी को बहुत अच्छे से जानते थे।"





"अच्छा और फिर पता चला कि वो बच्ची इतनी रात में वहाँ कैसे और क्यों पहुँची?"





"नही ज्यादा बात नही हुई लेकिन मुझे पता नही क्यों उस बच्ची में कुछ असामान्य सा महसूस हुआ। उनके माँ पिता भी घबराये हुए थे इसलिए मैंने कुछ ज्यादा पूछना जरुरी नही समझा। उन्होंने मुझे घर छोड़ा और फिर अपना कार्ड देकर बाद में मिलने को कहकर चले गए। अभी मैने भी सही से कार्ड नही देखा और


ऐसे ही पर्स में रख लिया । रुको दिखाती हूँ । " कहते हुए सृष्टि अपने पर्स से कार्ड निकालने लगी। कार्ड निकालते वक्त वो कार्ड सृष्टि के हाथ से छूट कर नीचे गिर गया । प्रिया वो कार्ड उठाकर देखने लगी।





"अरे वाह ये तो डॉक्टर साहब हैं । डॉ नितिन अग्रवाल शहर के जाने माने आँखों के डॉक्टर ।"





"अच्छा देखूं जरा सा " कहते हुए सृष्टि ने प्रिया के हाथ से वो कार्ड ले लिया और देखने लगी ।





"क्या हुआ सृष्टि ?4 Full stop सृष्टि को उस कार्ड को अपलक झपकाये काफी देर देखते हुए प्रिया बोली। जब सृष्टि ने प्रिया की बात का कोई जवाब नही दिया तो प्रिया ने उसे झकझोर दिया।





"यही कुछ समस्या हैं यही देखा था । यही लोग हैं जिनके साथ ही कुछ होने वाला हैं।"





"अरे क्या हुआ , किसकी बात कर रही हो। रखो इस कार्ड को । पहले शांत हो जाओ। " कहते हुए प्रिया ने सृष्टि के हाथों को अपने हाथ में लेकर कहा।





"प्रिया मैने जो सपना देखा था उसने एक बंगला दिखा था और उस बंगले के बाहर इन्ही का नाम लिखा था । तब मुझे पता नही था लेकिन इस कार्ड पर उनका नाम देखते ही धुंधली धुंधली मेरी आँखों के सामने जो तस्वीर थी वो उभरने लगी हैं। मैने कहा था ना उनकी बेटी के साथ कुछ समस्या हैं , मैने उसे ही सपने में देखा था । मुझे अभी इनसे मिलना होगा और सब कुछ बताना होगा इनकी बेटी के बारे में । " कहते हुए सृष्टि नितिन को फ़ोन करती हैं लेकिन उनका फोन नही उठता हैं ।








"क्या हुआ फ़ोन लग नही रहा क्या ?"





"बेल तो जा रही हैं लेकिन फोन उठ नही रहा ।"





"चलो थोड़ी देर बार फिर से ट्राय करना।"





"हा , अगर नही उठता हैं तो फिर मैं शाम को ऑफिस के बाद इनके घर जाउंगी। " लंच टाइम ख़त्म हो गया और दोनों फिर से अपने काम में बिजी हो गयी। सृष्टि काम तो कर रही थी लेकिन उसकी आंखें बस फोन में ही लगी थी। एक दो बार उसने फोन किया भी लेकिन फोन उठा नही।





शाम के छः बजे जैसे ही सृष्टि ऑफिस से निकलने लगी तभी नितिन का फोन आया।





"हेल्लो आप कौन ?5 Full stopइस नंबर में मुझे कई बार मिस कॉल आयी थी ।"





"जी आप नितिन जी बोल रहे हैं ?"





"हा लेकिन आप कौन ?"





"कल रात को आपने मुझे घर ड्राप किया और अपना कार्ड दिया था ।"





"अच्छा सृष्टि जी , पंडित जी की बेटी।"


"जी हा "


"हा जी बताइये "








"मुझे आपसे बहुत जरुरी बात करनी थी लेकिन आपने फोन नही उठाया ।"





"दरसल मैं एक ऑपरेशन कर रहा था इसलिए फोन नही उठा पाया । बताइये क्या जरुरी बात हैं ?"





"बात बहुत जरुरी हैं क्या आप अभी मुझसे मिल सकते हैं ?"





"ठीक हैं बताइये कहाँ और कब मिलना हैं। "





"मेरे घर के पास ही हाईवे रेस्टोरेंट हैं वहाँ पर मिले सात बजे।"





"ठीक हैं अभी एक मेरी शार्ट मीटिंग हैं , सात बजे मैं वहाँ पर पहुँच जाऊंगा ।"





ठीक सात बजे सृष्टि रेस्टोरेंट में बैठकर नितिन जी के आने का इंतजार करने लगी। थोड़ी ही देर बाद नितिन वहाँ आ गए। औपचारिक बातचीत के बाद सृष्टि ने अपने सपने और उनके घर में होने वाले हादसे के बारे में अभी बताना ही शुरू किया था कि नितिन के पास स्वाति का फोन आ गया और घबराते और रोतें हुए नितिन को जल्दी घर आने को बोल रही थी। उसे इस तरह परेशान होते देख नितिन बहुत परेशान हो गया और वो बाद में बात करने को कह घर के लिए निकलने लगा तो सृष्टि भी उनके साथ उनके घर के लिए चल दी।











नित्या बेटा उठो , देखो मैं तुम्हारे लिए तुम्हारा फेवरेट चॉक्लेट मिल्क लेकर आई हूँ ।"कहते हुए स्वाति कमरे के अंदर आती हैं लेकिन वहाँ नित्या को ना देख दूध के गिलास को टेबल पर रख उसे इधर उधर ढूंढने लगती हैं लेकिन जब वो उसे कमरें में कहीं नही दिखती तो वो नित्या नित्या आवाज लगाते हुए कमरे के बाहर उसे ढूंढने लगती हैं। तभी स्वाति के कानों में किसी के रोने की आवाज सुनाई देती हैं थोड़ा आश्चर्यचकित हो "यहाँ कौन हैं " कहते हुए वो रोने की आवाज आने के दिशा में अहिस्ता अहिस्ता बढ़ने लगती है। आशंकित और भयभीत मन उसे धीमे क़दमों से आवाज की तरफ बढ़ने को रोक रहा था लेकिन फिर भी उसके कदम उसी ओर अनायास ही बढते जा रहे हैं। आगे बढ़ते ही उसे महसूस हुआ कि एक कमरे का दरवाजा हल्का खुला हुआ था और वो रोने की आवाज उसी कमरे के अंदर से आ रही थी। स्वाति धीऱे धीऱे उस कमरें के पास पहुँची और डरते हुए अहिस्ता से वो कमरा खोला । जैसे ही स्वाति ने कमरे का दरवाजा खोला और कमरें की लाइट ऑन की ,रोने की आवाज अपने आप ही बंद हो गयी। स्वाति ने इधर-उधर देखा जब उसे वहाँ कोई नही दिखा तो वो पीछे की तरफ पलटने लगी लेकिन जैसे ही उसने अपने कदम पीछे की तरफ मोड़ा कमरें में जलती हुई लाइट अपनेआप बंद हो गयी और वही रोने की आवाज फिर से उसके कानों में गूँजने लगी। स्वाति एकदम से चौंक गयी और


उसने पीछे पलटकर देखा तो कि कोई बेड के किनारे बैठा हुआ रो रहा हैं। कौन हो " कहते हुए स्वाति ने उसके करीब जाने लगी लेकिन अँधेरा होने से उसे कुछ भी साफ साफ नही दिखाई दे रहा था। पास में मेज पर रखी टॉर्च को उठकर उसे जलाया और उसकी रौशनी उस रोतें हुए इंसान की तरफ की। दीवार के सहारे नित्या अपने घुटनों पर सर को झुकाये बैठी हुई थी और रो रही थी। रोतें हुए उसकी आवाज एकदम बदली हुई नज़र आ रही थी। उसके बिखरे हुए बाल उसके पूरे चेहरे और सर को ढके हुए थे ।





अरे बेटी तुम यहाँ पे 4 Full stopमैं कबसे तुम्हे ढूंढ रही हूँ । ऐसे यहाँ बेड के किनारे बैठकर क्यों रो रही हो।" थोड़ा निश्चिन्त होते हुए उसके ओएस पहुचकर स्वाति उसके करीब ही बैठ गयी।





क्या हुआ मेरी बच्ची , परेशान मत हो सब ठीक हो जायेगा।" नित्या के सर पर हाथ फेरते हुए स्वाति बोली।





मत रो , तुम्हे पता हैं ना तुम्हे तकलीफ में देखकर हम पर क्या गुजरती हैं। चलो अपने कमरे में चलो और अपना फेवरेट चॉक्लेट मिल्क पियो।" कहते हुए स्वाति नित्या को हाथ पकड़कर उठाने लगती हैं लेकिन नित्या अपनी जगह से टस से मस नही होती। ये देखकर स्वाति फिर से उसके पास बैठ जाती हैं।


मेरी तो बहुत प्यारी और स्वीट गुड़िया हैं नित्या। अगर मिल्क नही पीना तो मत पियो जो मन हो वो मैं अपनी गुड़िया के लिए बना दूँगी। " कहते हुए स्वाति फिर से नित्या के सर पर हाथ फेरते हुए उसे चलने को कहती हैं । माँ के समझाने पर नित्या रोना बंद करती हैं और अपना सर जैसे ही उठाती हैं वैसे ही लाइट भी आ जाती हैं और उसके भयानक डरावने चेहरे को देख कर स्वाति के मुँह से चीख निकल जाती हैं और वो पीछे की


तरफ गिर जाती हैं। नित्या खिलखिलाते हुए हँसते हुए वहाँ से भाग जाती हैं। भयभीत स्वाति के दिल की गति बेतहाशा बढ़ जाती है । उसका शरीर कांपने लगता हैं और हड़बड़ाते हुए किसी तरफ नितिन को फोन करती हैं।








दूसरी तरफ ठीक सात बजे सृष्टि रेस्टोरेंट में बैठकर नितिन जी के आने का इंतजार करने लगी। थोड़ी ही देर बाद नितिन वहाँ आ गए। औपचारिक बातचीत के बाद सृष्टि ने अपने सपने और उनके घर में होने वाले हादसे के बारे में अभी बताना ही शुरू किया था कि नितिन के पास स्वाति का फोन आ गया ।





"क क क कहाँ हैं आप ?"


"क्या हुआ स्वाति तुम इतना घबराई हुई क्यों हो?"


"आ आप जहाँ भी हो पहले तुरंत घर आ जाइये। "घबराते और लगभग रोतें हुए स्वाति कह रही थी।





"हुआ क्या पहले बताओ तो ,तुम इतना परेशान क्यों हो ?


वो3 Full stopवो4 Full stopवो नित्या 9 Full stop, कहते हुए स्वाति रोने लगी।


"क्या हुआ नित्या को ?"


"आप तुरंत घर आइये।"


"ठीक हैं मैं तुरंत आता हूँ ।"





"सॉरी सृष्टि जी , हमें मुझे जाना होगा।मैं बाद में आपसे मिलता हूँ।"


"क्या हुआ कोई प्रॉब्लम ।"


"घर में शायद कुछ प्रॉब्लम हैं तो मुझे तुरंत जाना होगा।"





"अगर आपको एतराज ना हो तो क्या मैं भी आपके साथ आपके घर चल सकती हूँ ।"





"लेकिन 5 Full stop"


"शायद मैं आपकी कोई हेल्प कर सकूँ क्योंकि आज मैंने जिस वजह से आपको यहाँ बुलाया उसका कारण भी आपकी ही बेटी हैं ।"





"मेरी बेटी 4 Full stopअच्छा चलिये। "कहते हुए सृष्टि नितिन के साथ उनके घर के लिए निकल गयी। हड़बड़ाते हुए नितिन जैसे ही घर के अंदर पहुँचा स्वाति भागते और रोतें हुए उसके पास आई ।





"नितिन नित्या 3 Full stop"


"क्या हुआ नित्या को 4 Full stop"


"देखो ना पता नही क्या हो गया । कहते हुए वो उन्हें कमरे की ओर ले गयी । वहाँ नित्या की हालत देख तीनो के होश उड़ गए। नित्या दीवार पर उल्टा लटकी हुई थी। बाल बिखरे, बड़ी बड़ी डरावनी लाल आँखे और चेहरे पर बड़े बड़े चोट के निशान ऐसा भयावह चेहरा कि अच्छे अच्छो को सदमा पहुँच जाये और ऊपर से शैतानी और भयंकर आवाजे निकालती हुई किसी की भी सांसो की गति कम करने को व्याप्त थी।





"बेटी ये तुम्हे क्या हो गया हैं । नीचे आ जाओ।"


"ये तुम्हारी बेटी नही हैं , इसपर तुम्हारा कोई हक नही हैं।"





"बहुत दिनों तक तुमने इसे मुझसे बचा लिया लेकिन अब नही। अब मैं इसे अपने साथ ले जाकर रहूँगी।" भारी आवाज में गरजते हुए बोली।





"मुझे नही पता आप कौन हैं और आप मेरी बेटी के पीछे क्यों पड़ी हैं । आखिर मेरी बेटी ने आपका क्या बिगाड़ा हैं क्यों उसे इतनी तकलीफ दे रही हैं?"








"मैं तो इसे ले जाउंगी , कोई मुझे नही रोक सकता।" ही ही ही करते हुए वो हँसने लगी।





"छोड़ दो मेरी बच्ची को , रहम करो । मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ती हूँ ।" स्वाति गिड़गिड़ाते हुए बोल रही थी।





"तू जो कोई भी हैं इस बच्ची को छोड़ दे अन्यथा तेरे लिए अच्छा नही होगा।"थोड़ा गुस्सा करते हुए सृष्टि बोली।





"अरे तू कौन हैं जो मुझे धमकी दे रही है। तुझे तो पता भी नही हैं कि मैं कौन हूँ । इन लोगो से पूछो 2 साल पहले क्या हुआ था और मैने क्या क्या किया था , वो तो वो पंडित था जो बीच में आ गया था और मुझे मेरे मकसद में कामयाब होने से रोक दिया था। लेकिन अब तो वो भी नही हैं 6 Full stopतड़प तड़प के मरा बिचारा। पता हैं उसे किसने मारा । 5 Full stopमैने 5 Full stopइस तरह से तड़पा तड़पा कर मारा कि उसे क्या किसी को समझ ही नही आया कि उसे हुआ क्या।मेरे रास्ते में आने की कोशिश की थी। मैं जो करना चाहती हूँ करके रहती हूँ ।कोई भी उस रास्ते में आया तो उसका भी वही अंजाम होगा जो उस पंडित का हुआ। मैं जिसके पीछे पड़ गयी उसे अपने साथ लिए बिना नही मानती। अब भूल जाओ इसे और आने वाली अमावस की रात को ये हमेशा के लिए मेरे साथ 5 Full stop" कहते हुए नित्या जोर जोर से हँसने लगी।





"तूने मेरे पिता को मारा , उन्हे तड़प तड़प के मरने पर मजबूर कर दिया। मैं तुझे कंभी नही छोडूंगी। अभी तक मुझे पता नही था लेकिन अब तू अपने किसी मकसद में कामयाब नही हो सकती। किसी और के साथ कुछ भी गलत नही होने दूँगी। तुम्हारे चंगुल से इस बच्ची को भी बचाऊंगी और तेरा नामोनिशान मिटा दूँगी। अब मैं तुझे किसी और के साथ ऐसा


नही करने दूँगी। " नित्या के शरीर में वास कर रही आत्मा के मुँह से अपने पिता के बारे में सुनकर सृष्टि गुस्से से लाल हो गयी।





" अच्छा तो तू उस पंडित की बेटी हैं। तो अब तू मेरा रास्ता रोकेगी । अरे जब तेरा पिता मेरा कुछ नही बिगाड़ पाया तो तू क्या बिगाड़ पायेगी । अगर तू मेरे रास्ते में आयी तो तेरा भी वही हश्र होगा जो तेरे पिता का हुआ। " कहते हुए वो जोर जोर से हँसने लगी।





"स्वाति जी ये आपकी नित्या नही है बल्कि उसके शरीर में कोई बुरी आत्मा हैं , अभी पहले उसे इससे मुक्त करना होगा। " कहते हुए सृष्टि ने स्वाति को कुछ चीजे लाने के लिए भेज दिया और नितिन को उसे अपनी बातों में उलझाने के लिए कहा। नितिन ने उसे अपनी बातों में उलझाया और सृष्टि ने अहिस्ता से स्वाति से गंगाजल लेकर बगल से जाकर मन्त्र पढ़कर नित्या के ऊपर डालने लगी। उस अभिमंत्रित गंगाजल से नित्या चीखने लगी और अपने हाथों को रगड़ने लगी। ऐसा लग रहा था कि की उस जल की बुँदे उसके बदन को जला रही हो और उसकी जलन से वो तड़प रही हो। असहनीय पीड़ा से वो तड़प उठी और एक काले धुएं की तरह वो उसके शरीर से निकलते हुए चीखते हुए बोली। " अभी तो मैं जा रही हूँ लेकिन मेरे चंगुल से तुम इसे नही बचा पाओगे। " उस आत्मा का नित्या के शरीर से निकलते ही नित्या बेहोश हो गयी ।





अपने पिता के मौत के बारे में सुनकर सृष्टि अपने चेहरे पर हाथ रखकर रोतें हुए वही जमीन पर बैठ गयी। स्वाति ने सृष्टि को पानी देते हुए सांत्वना दी और अपनी बच्ची को उस संकट से बचाने के लिए धन्यवाद व्यक्त किया।








"मेरी ही समस्या की वजह से पंडित जी को अपनी जान से हाथ दोना पड़ा। इसका हमें बेहद खेद हैं लेकिन ये सब कब और कैसे हुआ।" थोड़ा रिलैक्स होने के बाद नितिन ने सृष्टि से पूछा।





आपके साथ दो साल पहले जो भी हुआ सब पिता जी ने मुझे बताया था लेकिन ये सब आपके साथ ही हुआ था ये नही पता था। उस दिन शमशान से लौटने के बाद आपके यहाँ सब सही हो गया था और फिर पिता जी भी मेरे पास यानि विदेश आ गए थे। वो वापस आना चाहते थे लेकिन मैंने ही ये कहकर उन्हें रोक लिया कि सबके लिए आपके लिए वक्त हैं लेकिन मेरे लिए नही। मेरी ही जिद के कारण वो मेरे पास ही रुक गए लेकिन काफी दिन बाद मैने महसूस किया कि वो वहाँ खुश नही थे तो मैंने भी एग्जाम ख़त्म होने के बाद ही उनके साथ ही इंडिया लौटने का निश्चय किया। यहाँ आकर मुझे अपने बारे में पता चला कि मेरे अंदर कुछ विशेषता हैं और उसी विशेषता के कारण ही पिता जी ने मुझे खुद से दूर रखा था। यहाँ लौटने पर वो विशेषताये मुझपर जब हावी होने लगी तब पिता जी ने मुझे उनके बारे में मुझे विस्तार से बताया। पिता जी ने उसका प्रयोग मुझे लोगो की भलाई के लिए प्रयोग करने को कहा । मैने भी उन्हें वचन दे दिया तब पिता जी ने अपनी विद्या मुझे सिखाना प्रारंभ कर दिया और मेरा एडमिशन एक स्पेशल कॉलेज में करा दिया । उसी दौरान उन्होंने मुझे नित्या के साथ हुई घटना के बारे में बताया था लेकिन एक दिन जब मैं कॉलेज से वापस लौटी तो वो एक पेयर पर बहुत ध्यान से देख रहे थे। मेरे उस कागज के बारे में पूछने पर उन्होंने वो कागज छुपा लिया और मुझे वहाँ जाने को कहा और अगले ही दिन से उनके साथ जो होने लगा उसकी कल्पना तो किसी ने ना की होगी ।
adeswal
Expert Member
Posts: 3240
Joined: 18 Aug 2018 21:39

Re: Thriller वो कौन थी?

Post by adeswal »

अभिमंत्रित गंगाजल के नित्या के ऊपर पड़ते ही उसके शरीर पर कब्ज़ा करने वाली आत्मा तड़प उठी और ना चाहते हुए भी उसे उस समय उसका साथ छोड़ना पड़ा लेकिन साथ ही जाते जाते वो आने वाली अमावस्या को वो हर कीमत पर नित्या को ले जाकर रहेगी और उस समय कोई भी तंत्र मंत्र काम नही करेगा चेतनवानी देकर गयी। उसकी भयंकर हँसी और चेतनवानी से वहाँ खड़े नितिन , शुभ और स्वाति की रूह तक कांप गयी। इतनी देर उस आत्मा के नित्या के शरीर में रहने के कारण नित्या का शरीर शिथिल हो चूका था और वो अपने शिथिल शरीर के साथ लगभग बेसुध सी थी। नितिन ने अपनी बेटी को उठाया और अच्छे से बेड पर लिटाया। उसका शरीर बुखार से तप रहा था। स्वाति तुरंत ही भागकर ठंडा पानी ले आयी और नित्या के माथे पर पट्टी रख उसका बुखार उतारने की कोशिश करने लगी। नितिन ने उसे इंजेक्शन लगाया और थोड़ी ही देर में नित्या का शरीर सामान्य हो गया । नित्या को अच्छे से चादर उढ़ाकर उसे आराम करने दिया और शुभ उसके सर के पास ही बैठा रहा।नितिन ,स्वाति और सृष्टि कमरे से बाहर आ गए। सृष्टि अपनी आँखों पर हाथ रख रोतें हुए वही पड़े सोफे पर बैठ गयी । उसे ऐसे परेशान और रोतें देख स्वाति उसके पास आई और दिलासा देने लगी।





" मैने अपने पिता जी को उस हालत में देखा जिसमे उन्हें देखना आसान नही था और मैं उनके लिए कुछ भी नही कर सकीं। " कहते हुए सृष्टि रोने लगी।





"चुप हो जाइये आप , ये सब उस आत्मा ने किया था और इसमें कोई इंसान कुछ भी नही कर सकता।"





"ऐसा नही हैं अगर मुझे पहले पता होता तो मैं अपने पिता को बचा सकती थी लेकिन मेरा ध्यान पहले क्यों नही गया।"





"लेकिन आप इसमें कुछ कर भी तो नही सकती थी।"





"ऐसा नही हैं , मैं कर सकती थी लेकिन "


"लेकिन क्या "


"आप लोग मेरे पिता के बारे में जानते थे कि वो पंडित होने के साथ साथ तंत्र मंत्र विद्या के प्रकांड ज्ञाता थे लेकिन कोई भी ये नही जानता कि मैं उनकी बेटी होने के साथ साथ उनकी शिष्या भी हूँ । ये बहुत पुरानी बात हैं जब मेरा जन्म हुआ था तो मेरी कुंडली देखते ही वो समझ गए थे कि मुझमे कुछ खास हैं और समय व्यतीत होते होते उनको इसका अनुभव होने लगा था जो कि उन्होंने मुझे या मेरी माँ को कभी महसूस होने नही दिया। मेरे हाथों से कभी कभी कुछ रहस्मयी घटनाएं होने लगी थी और मैं ना चाहते हुए भी ना जाने किस दुनिया में विचरने लगती थी जिसका मुझे जरा भी आभास नही था और उस समय मेरे साथ हो रही ये अलग अनुभति मेरे पिता के लिए चिंता का विषय बन गयी थी और वो मेरे लिए चिंतित होने लगे , फिर किसी तरह


उन्होंने मन्त्र के द्वारा मेरी उन अज्ञात शक्तियों पर अंकुश लगा दिया। 15 साल की होने पर जब मेरी माँ ये नश्वर शरीर को त्याग कर उस परमात्मा में विलीन हो गयी और मैं अकेलापन महसूस करने लगी । मैं अपनी माँ के साथ बहुत ज्यादा जुडी हुई थी इसलिए मेरी जिंदगी से उनका जाना अंदर तक खोखला कर गया। उस स्थति में मुझे पिता जी ने बहुत संभाला और धीऱे धीऱे मैं उनके करीब आती गयी।"





"दीपावली की रात थी और लगभग 12 बजे मेरी अचानक से नींद खुली और मुझे कुछ आवाजे सुनाई दी । मैं उठकर अहिस्ता अहिस्ता उन आवाजों की दिशा में गयी तो मुझे उस कमरें से जिसे पिता जी हमेशा लॉक रखते थे और मेरे पूछने पर कभी भी जवाब नही दिया से हल्की हल्की रौशनी आती दिखी। मेरे मन में हमेशा से उस कमरे को लेकर जो उत्सुकता और रहस्य बना हुआ था उसके खुलने का शायद समय आ गया था यही सोचकर मैं बिना कोई आवाज किये उस कमरे के दरवाजे पर पहुँच गयी और अंदर की तरफ देखने लगी। वहाँ पर पिता जी किसी पूजा में मग्न थे और वो कुछ मंत्रो का जाप कर हवन सामग्री हवन कुंड में डाल रहे थे। मैने कभी आज के पहले उन्हें इस तरह आधी रात में पूजा करते नही देखा था इसलिए मुझे घोर आश्चर्य हुआ । कुछ समय तक मैं उन्हें यू ही देखती और सुनती रही। फिर जैसे ही मुझे उनके उठने का आभास हुआ, तो मैं उनके कुछ समझने और देखने से पहले ही चुपके से वहाँ से हटकर अपने बिस्तर पर आकर लेट गयी और अपनी आंखें बंद कर ली लेकिन मेरी आँखों से नींद बहुत दूर हो चुकी थी और अनगिनत सवालों ने मेरे मस्तिस्क में कब्ज़ा कर लिया था। किसी भी तरह मैं अपने हर सवाल का जवाब चाहती थी और मैने मन ही मन पिता जी से पूछने का फैसला कर लिया। चुकी माँ की मौत के बाद के बाद मैं पिता जी के बहुत करीब आ गयी थी तो मेरे मन में अब उनसे डर की कोई भावना नही थी।"








"अगले दिन हिम्मत करके मैने पिता जी से रात की घटना के बारे में आखिर पूछ ही लिया लेकिन उन्होंने बात टाल दी लेकिन मेरे जिद करने पर उन्होंने सही समय पर सब कुछ बताने को कहकर वहाँ से चले गए। इसके आगे मेरी उनसे कोई भी सवाल करने की हिम्मत नही हुई और उनके कहने के अनुसार सब कुछ समय पर ही छोड़ दिया। "





"आज भी मुझे वो दिन याद हैं जब मेरा 18वॉ जन्मदिन था और पिता जी ने मुझे कॉलेज से किसी वजह से जल्दी घर वापस आने को कहा था । मैं बहुत ही उत्सुक थी क्योंकि पिता जी ने मुझे पहली बार ऐसा कुछ कहा था। मैं कॉलेज से फ्री होते ही तुरंत ही घर पहुँची तो देखा पिता जी उसी कमरे में बैठे हुए थे और फिर से किसी पूजा की तैयारी में लगे थे। उन्होंने मुझे नहा धोकर साफ सुथरे कपडे पहन कर 15 मिनट के भीतर आने को कहा। उत्सुकता वश मैं जल्दी जल्दी तैयार होने लगी क्योंकि मुझे लग रहा था मेरे बहुत से सवालों और उस कमरे का राज आज शायद मेरे सामने आने वाला था । मैं बिना देर किये उस कमरे में पहुँच गयी । पिता जी ने मुझे बैठने का आदेश किया और मैं चुपचाप उनके पास जाकर बैठ गयी।"





"सबसे पहले उन्होंने मुझे टीका लगाया , मिठाई खिलाई और जन्मदिन की शुभकामनाएं दी। तत्पश्चात उन्होंने मुझे किनारे पे बिछे हुए बिस्तर पर बैठने को कहा और खुद भी वहाँ आकार बैठ गए।"





"बेटी आज मैं जो तुमसे कहने जा रहा हूँ वो तुम्हारे लिए जानना बहुत जरुरी हैं और वो सब तुम्हारी जिंदगी को एकदम बदल कर रख देगा। " मैं हैरानी से उनकी बातों को सुनते हुए उन्हें देखे जा रही थी।








"ये आप क्या कह रहे हैं पिता जी ?"





"हा बेटी तुम्हारे जीवन की एक बहुत बड़ी सच्चाई से मैने तुम्हे दूर रखा था लेकिन उससे दूर रहने में ही तुम्हारी भलाई थी लेकिन आज वो वक्त आ गया हैं जब तुम्हे हर बात की जानकारी होना जरुरी हैं इसलिए मैं जो भी कहने जा रहा हूँ वो ध्यान से सुनना।"





"बेटी उस दिन तुमने इस कमरे का रहस्य पूछा था क्योंकि इस बारे में तुम कभी जानती नही थी। ये कक्ष एक गुप्त कक्ष हैं जिसमे मैं अपनी सारी तंत्र विद्या का प्रयोग करता हूँ ।"





"तंत्र मंत्र और आप "





"बेटी लोग तंत्र मंत्र को गलत समझते हैं लेकिन ये तभी गलत हैं जब इसका प्रयोग गलत काम या किसी को तकलीफ देने के लिए किया जाय वरना तंत्र मंत्र एक सहायता ही हैं जो इंसान को अलौकिक और अप्रत्याशित शक्तियों से रक्षा प्रदान करता है और मैंने इस तंत्र विद्या को लोगो की भलाई के लिए ही सीखा और हरसंभव सभी की मदद करने का प्रयास किया। मैने आजतक इस विद्या का प्रयोग किसी दुर्बल या असहाय को नुकसान पहुँचाने के लिए नही किया अपितु इसे सबकी सहायता के लिए इस्तेमाल किया।"





"और सबसे महत्वपूर्ण बात , तुम्हे लग रहा होगा कि मैं ये सब तुम्हे क्यों बता रहा हूँ इससे तुम्हारा क्या लेना देना तो तुम्हे बताने के पीछे सबसे बड़ा अभिप्राय ये हैं कि मेरे बाद तुम्हे मेरी इस विधा का प्रयोग लोगो की भलाई के लिए करना होगा।"








"लेकिन पिता जी मुझे ही क्यों और मुझे तो इस बारे में कुछ भी नही पता और ना ही मैने कुछ सीखा हैं इस बारे में और "





"इसी क्यों का जवाब देने के लिए मैंने आज तुम्हे यहाँ बुलाया हैं और तुम्हारे हर सवाल का जवाब। आज तुम 18 साल की हो गयी हो और वो वक्त आ गया है जब तुम्हे अपने बारे में सब कुछ जानने का हक़ हैं। तुम्हारी माँ शिव जी की बहुत बड़ी भक्त थी और उनका पूरा समय उन्ही की पूजा पाठ में व्यतीत होता था। सोते जागते , उठते बैठते हर वक्त अगर उनके ध्यान में कोई रहता तो वो शिव जी ही थे। उन्ही के प्रताप के फलस्वरूप उन्हें तुम्हारी प्राप्ति हुई थी । तुम्हारी माँ तुम्हें उन्ही का प्रसाद समझकर तुम्हारी बहुत देखभाल करती थी। तुम्हारे जन्म के कुछ समय बाद जब मैं तुम्हारी कुंडली का निर्माण कर रहा था तो मुझे उसमे कुछ आश्चर्यजनक घटनाएं महसूस हुई लेकिन तब मैने उन पर ध्यान नही दिया। जैसे जैसे तुमने बोलना सीखा कभी कभी ना जाने किससे बातें करती रहती थी और हमें कभी कुछ भी दिखाई नही देता था। फिर जब तुम थोड़ी और बड़ी हुई तो ना जानें कभी कभी तुम किस दुनिया में खो जाती कि अलग सी बातें करने लगती और पूछने पर तुम किसी भी बात को समझा नही पाती। तुम्हारे साथ होती इन अजीब घटनाओं से हम दोनों बहुत डर गए और तुम्हारी कुंडली लेकर अपने गुरु के पास इन सब के बारे में पता करने के लिए पहुँच गया और उन्होंने तुम्हारे बारे में जो भी बताया उसे सुनकर मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई लेकिन इन सब का अभी तुम्हारे साथ होना तुम्हारे लिए घातक था इसलिए तुम्हारे अंदर उत्पन्न हो रही इन शक्तियों को उस समय रोकना बहुत जरुरी था और फिर जैसा उन्होंने मुझसे कहा वैसा मैने किया। उन्होंने मुझसे ये भी कहा कि जब तुम 18 साल की हो जाओगी तब मुझे तुम्हे सब बताना होगा और उस बंधन से मुक्त करना होगा क्योंकि यही उसकी नियति होगी।"








"पिता जी ऐसा उन्होंने आपसे मेरे बारे क्या कहा जो कि आपको ये सब करना पड़ा और फिर मुझसे भी छुपाना पड़ा।"





"उन्होंने कहा कि तुम्हारी माँ उस महाकाल की बहुत बड़ी भक्त हैं जिसकी शक्ति के हम सब पुजारी हैं और उन्ही की तपस्या के फल स्वरूप हमें तुम्हारी प्राप्ति हुई हैं। तुम्हारा जन्म जिस नक्षत्र में और जो योग बन रहा था उसमें लाखो में कोई एक आध लोगो का जन्म होता है और उस महादेव की कृपा होने के कारण तुम्हे जन्म से ही कुछ शक्तियां विधमान थी। जैसे तुम किसी भी आत्मा से संपर्क स्थापित कर सकती हो अर्थात किसी भी अतृप्त आत्मा को बुलाकर बात कर सकती हो । किसी भी इंसान को बुरी शक्तियों से निजात दिला सकती हो , और तो और तुम उनकी दुनिया में प्रवेश भी कर सकती हो और अपने मन से वापस भी आ सकती हो ।ऐसा तुम्हे वरदान सिर्फ इसलिए मिला कि जिससे तुम अधिक से अधिक लोगो की मदद कर सको लेकिन ये सब तभी संभव हैं जब तुम्हे अपनी शक्तियों के बारे में पता हो और उनपर नियंत्रण हो। लेकिन फिर भी ये इतना आसान नही था क्योंकि अगर गलती से भी बिना जानकारी के तुम उस दुनिया में पहुँच गयी तो फिर तुम हमेशा के लिए वही फॅस कर रह जाओगी और अगर कही तुम्हारी इन शक्तियों के बारे में किसी काली शक्ति को पता चल गया तो वो तुमसे तुम्हारी ये शक्ति छीन कर उसका उपयोग लोगो को तकलीफ पहुँचाने में करेंगे इसलिए मुझे तुम्हारे 18 साल का होने तक सभी से तुम्हे और तुम्हारी शक्तियों को छुपाना भी था और सही वक्त पर तुम्हे इस बारे में बताना भी था।"





"इतना सब कुछ मेरे साथ "





"बेटी तुम लाखो नही करोडों में एक हो और अब तुम्हे उस बंधन


से मुक्त करना हैं जिसमें मैंने अभी तक तुम्हें बांध रखा था । इस बंधन से आजाद होते ही तुम्हें ये याद रखना हैं कि तुम्हारा जन्म लोगो की भलाई के लिए हुआ हैं। अगर तुम मन और आत्मा से तैयार हो तो मैं आगे की तैयारी शुरू करूँ।"





"पिता जी आपने अभी जो भी बताया वो सच में हैरान करने वाला था लेकिन अगर मेरे जन्म ही इसके लिए हुआ हैं और मेरी यही नियति हैं तो मैं अपनी जिम्मेदारी और नियति से कभी विमुख नही हो सकती। मेरा जन्म जिस उद्देश्य के लिए हुआ हैं वो मैं पूरी निष्ठा और लगन से करुँगी । मेरा आपसे ये वादा हैं।"





"ठीक हैं अब मुझे थोड़ा वक्त दो जिससे मैं आगे की पूरी प्रक्रिया को पूर्ण कर सकूँ लेकिन फिर भी एक बात याद रखना एक बार इस दिशा में कदम रखा तो कभी पीछे नही लौट पाओगी । हर कदम पर तुम्हे एक से बढ़कर एक नई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। कभी कभी तो ऐसा हो सकता हैं कि तुम्हे जिस रास्ते पर चलना पड़े उस पर तुम्हारी जान को भी खतरा हो सकता हैं।





"मैं हर खतरे से लड़ने को तैयार हूँ । " कहते हुए जब मैने सब कुछ करने का निर्णय ले लिया फिर उसके बाद से पिता जी ने मुझे तंत्र मंत्र की विद्या देना प्रारंभ कर दिया और काफी समय तक मुझे इस विद्या के हर छोटे बड़े पहलुओ से अवगत कराया फिर उन्होंने मुझे पैरानॉर्मल एक्सपर्ट के कोर्स को भी अच्छे से सीखने के लिए विदेश भेज़ दिया।आपकी बेटी नित्या के साथ जो भी हुआ उसके बाद पिता जी मेरे पास विदेश आ गए और तभी उन्होंने नित्या के साथ हुई घटना के बारे में मुझे पूरी जानकारी दी थी । मेरी वहाँ की पूरी पढ़ाई पूरी होने के बाद मैं और पिता जी वापस घर आ गए । एक दिन घर की सफाई के दौरान उन्हें एक पेपर मिला जिसे देखकर ऐसा लगा कि जैसे


अतीत का कुछ याद आ गया हो और वही दिन था जब कि मेरे पिता मुझसे दूर होने लगे थे।"











काफी समय से घर बंद होने के कारण बहुत ही गन्दा और बिखरा हुआ था। मैं और पिता जी ने मिलकर सफाई शुरू कर दी। सफाई के दौरान पिता जी को एक पेपर मिला और उसे देखते ही वो कही खो से गये थे । मैने उन्हें इस तरह शांत उस पेपर को ध्यान से देखते हुए देखा तो पास जाकर पूछने लगी लेकिन उस समय उन्होंने मुझे कुछ भी नही बताया और उस पेपर को संभाल कर रखने को कह दिया। मैने उस पेपर को देखा तो उसपर कुछ अजीब सी अकार्तियाँ बनी हुई थी , मैंने उसे समझने की कोशिश की लेकिन पिता जी ने उसे तुरंत रखने का इशारा किया और फिर मैंने जाकर उसे अलमारी में रख दिया।





"पिता जी उस पेपर में ऐसा क्या था जो अपने उसे संभाल कर रखवाया और मुझे देखने भी नही दिया।"





"बेटी ये वही कागज हैं जिसपर नित्या उस समय कुछ लिख रही थी जब वो उस आत्मा के वश में थी और फिर यही कागज मुझे शमशाम में भी मिला और मैने इस कागज़ के राज को समझने के लिए घर ले आया था लेकिन बाद में मैं भूल गया। आज अचानक से उसी कागज को देखकर वो सब याद आ गया।""ओह्ह तो ये बात हैं और आप सब काम होते ही इस पेपर का राज जानना चाहते हैं इसलिए आपने इसे रखवाया।" कहते हुए हम दोनों ही घर के कामों में लग गए। रात में पिता जी उस पेपर के साथ उसी रूम में चले गए जिसमे वो तंत्र मंत्र का अध्ययन करते थे और एक चौकी पर उस कागज को रखकर उस पर अध्ययन करने लगे। मैं भी वहाँ जाकर बैठने लगी लेकिन पिता जी ने मना कर दिया । शायद उन्हें आभास हो गया था कि उस पेपर के पीछे कोई बहुत बड़ा राज था जो कि शायद जिंदगी के लिए खतरा था। उन्होंने मुझे तो उस खतरे से बचा लिए लेकिन खुद को नही बचा सके। मैं वहाँ से तुरंत चली गयी और पिता जी पूरी रात उस कमरे में उस पेपर पर अध्ययन करते रहे।





दूसरी तरफ मैं उनके कहने पर वहाँ से आ तो गयी लेकिन पता नही मेरा मन किसी अनहोनी की आशंका से ग्रसित था। मैने सोने की बहुत कोशिश की लेकिन मेरी आँखों से नींद कोसो दूर थी । मैं बिस्तर पर लेटे बस करवटे बदलती रही। शायद सुबह के समय मेरी आँख लग गयी और अलार्म की आवाज से मेरी आँखें खुली तो देखा बहुत समय हो चूका


था ।





"अरे इतना समय हो गया पिता जी के चाय का भी टाइम हो गया और मैं पता नही कैसे सोती ही रही। " खुद से बातें करती हुई मैं जल्दी जल्दी किचन में जाकर चाय बनायीं और पिता जी के कमरे में ले गयी लेकिन वहाँ तो पिता जी थे ही नही। मुझे लगा शायद देर होने के कारण वो बगीचे में टहलने लगे होंगे ये सोचकर मैं चाय का कप लिए बगीचे में पहुँच गयी लेकिन वहाँ भी पिता जी अनुपस्थित थे।मैने चाय को एक जगह रखा और पिता जी को पुरे घर में देखने लगी लेकिन वो कहीं भी नही मिले। मैं थोड़ा परेशान और चिंतित हो गयी कि इतनी सुबह सुबह और वो भी बिना बताए पिता जी आखिर कहाँ चले गए।


तभी मेरी नजर उसकी कमरे में गयी जो कि आज आधा खुला हुआ था जबकि उसे पिता जी हमेशा बंद रखते थे। खुला देख मैं उस कमरे की तरफ बढ़ने लगी और अंदर जाते ही वहाँ का नजारा देख मैं अवाक् सी रह गयी। पिता जी जमीन में बेसुध से पड़े थे , पूरा कमरा अस्त व्यस्त पड़ा था । पूजन की सामग्री इधर उधर बिखरी पड़ी थी और जिस पेपर को रात में पिता जी देख रहे थे उसके वो सैकड़ो टुकड़ो में उनके चारों तरफ फैला हुआ था । दौड़ कर मैने पिता जी के पास गई और उन्हें उठाने की कोशिश करने लगी लेकिन जब वो नही उठे तो तो मैंने उनपर पानी छिड़क दिया । उससे उन्हें होश तो आया लेकिन वो मुझे अनजानी नजरो से देख रहे थे । ऐसा लग रहा था कि वो मुझे पहचानते ही नही । मैने बार उनसे बात करने की कोशिश की लेकिन उन्होंने मेरी किसी भी बात का कोई प्रतिउत्तर नही दिया और मेरा झिटकते हुए वहाँ से उठकर अपने कमरे में चले गए और कमरे को अंदर से बंद कर लिया ।





"क्या हुआ आपको पिता जी , क्या हुआ " कहते हुए बार बार रूम का दरवाजा खोलने का निवेदन करती रही । मैं बहुत डर गई थी और मुझे समझ नही आ रहा था कि मैं करूँ । बेतहाशा भागती हुई मैं पड़ोस में रहने वाले कुछ लोगो को मदद के लिए पुकारा और उन्हें सारी बात बताई। कुछ लोग मेरी मदद को आये और उन्होंने दरवाजे को खोला। वहाँ पिता जी को देख कर मेरा मन दहल गया वो कमरें के एक किनारे दुबके हुए से बैठे हुए थे और ऐसा लग रहा वो किसी से डर कर अपने को छुपाने का प्रयास कर रहे हो।
adeswal
Expert Member
Posts: 3240
Joined: 18 Aug 2018 21:39

Re: Thriller वो कौन थी?

Post by adeswal »

" पिता जी आप यहाँ ऐसे क्यों बैठे हैं क्या हुआ ..".उनके कंधे पर हाथ रख कर मैने जैसे ही कहा उन्होंने मेरा हाथ झिटक दिया और डर से थर कांपने लगे । वो वहाँ से उठकर दूसरी तरफ जाकर छुपने की कोशिश करने लगे। मैं फिर उनकी तरफ


बढ़ने लगी तो " मुझे छोड़ दो , मुझे जाने दो , मैं अब नही करूँगा ।" मेरे आगे सर झुकाये हाथ जोड़े अपनी सलामती की भीख मांग रहे थे। पिता जी की ऐसी हालत देख मेरा दिल दहला जा रहा था। मैं खुद को असहाय सा महसूस कर रही थी। कुछ भी समझ ना आने पर मैने डॉक्टर को फोन करके जल्दी घर आने को कहा।





"डॉक्टर साहब देखिये ना , पता नही सुबह से पिता जी को क्या हो गया हैं ?" कहते हुए सृष्टि डॉक्टर को पिता के पास रूम में ले जाती हैं लेकिन जैसे ही वो दोनों कमरे में जाने लगा पिता जी ने कमरे में रखी चीजे उसके ऊपर फेकनी शुरू कर दी।





"ये सब क्या हैं सृष्टि ?"





"यही तो डॉक्टर साहब कुछ भी समझ नही आ रहा कि अचानक से उन्हें क्या हो गया और ये ऐसा व्यवहार क्यों कर रहे हैं। मुझे तो समझ ही नही आ रहा इसलिए आपको फ़ोन किया।"





"लग रहा अब थोड़ा शांति हो गयी , चलो देखते हैं ।" कहते हुए अहिस्ता अहिस्ता दरवाजा खोल कर पहले देखते है और पिता जी को शांत बेड पर पड़ा देख धीमें कदमो से उनकी तरफ बढ़ते हैं। डॉक्टर ब्लड टेस्ट के लिए जैसे ही उसके हाथ में बंद बांधते हैं और ब्लड निकालने के लिए जैसे ही सिरिंज पास में ले जाते हैं पिता जी बहुत ही भयानक आवाज में गुर्राते हुए उनकी तरफ देखते हैं और एक जोरदार धक्का मार कर उन्हें दूर धकेल देते हैं। डॉक्टर दूर जमीन में गिर जाते हैं । लाल लाल खुनी आँखे और भयानक से दिखने वाले पिता जी गुर्राते हुए उनकी तरफ देखते हैं और फिर खुद ही अपने हाथ पैर पटकते हुए तड़पने से लगते हैं। मैने और डॉक्टर ने जोर से उनके हाथों पैरो को जोर


देते हुए जकड लिया। किसी तरह से डॉक्टर उठे और सिरिंज में मेडिसिन लेकर पिता जी को लगायी। इंजेक्शन लगते ही पिता जी शांत होकर वही पर पसर गये। वो तो उस समय शांत हो गए लेकिन वह दृश्य देखे हम दोनों की रूह तक कांप गयी थी । डॉक्टर ने ब्लड सैंपल लिया और फिर हम दोनों ही रूम से बाहर आ गए।





"सृष्टि मैं अभी जाकर ब्लड टेस्ट के लिए देता हूँ । शाम तक रिपोर्ट आ जायेगी तो सब क्लियर हो जायेगा लेकिन सच में ये सब जो भी था बहुत ही भयावह था। देख के रौंगटे खड़े हो गए। तुम अपने पिता जी का ख्याल रखना । दवाई की वजह से अभी वो काफी देर नींद में रहेंगे इसलिए अभी तुम कोई टेंशन मत लो। " कहते हुए डॉक्टर साहब वहाँ से चले जाते हैं। सृष्टि अपने पिता के ही सिरहाने बैठ अश्रु भरे नयनो से द्रवित हृदय से उन्हें देखती रहती हैं।





पिता जी की जो भी जाँच हुई उसमे कोई भी बीमारी या समस्या के कोई भी संकेत नही मिले। डॉक्टर भी नही समझ पा रहे थे कि आखिर वो ऐसा बर्ताव क्यों कर रहे थे। डॉक्टर साहब ने मुझे फोन करके पूरी बात बताई और मुझे हैरानी हुई कि अगर सब कुछ नार्मल हैं तो फिर उन्हें हुआ क्या हैं। डॉक्टर से अभी मैं बात ही कर रही थी कि पिता के चीखने की आवाज सुनाई देती हैं और मैं फ़ोन वही पटक कर जल्दी से भागती हूँ तो देखती हूँ कि पिता जमीन पर बैठे अपने सर के बालों को नोंचने में लगे थे और दर्द से तड़प रहे थे।उनका शरीर काला पड़ गया था और पूरा बदन जकड़ गया था। मैं उनके पास जाकर उन्हें छुड़ाने की कोशिश करती तो वो मुझे दूर धकेल देते। मैं अपने को एकदम असहाय महसूस कर रही थी लेकिन अब मुझे इतना तो समझ आ गया था कि ये सब कोई साधरण समस्या नही थी । इसमें जरूर ही कोई ना कोई नकारात्मकता का असर था। अब मेरे


लिए मेरे पिता द्वारा सिखायी विद्या और उनके द्वारा दिया गये मौखिक ज्ञान का उपयोग करने का सही वक्त आ गया था। मैं वहाँ उन्हें उसी हाल में छोड़कर भागते हुए उसी कमरे में गयी और चारों तरफ देखने लगी। मैने काली माता की मूर्ति के चरणों में रखे सिंदूर को उठाया और उसमें अभिमंत्रित भभूति मिलाकर दौड़कर वापस पिता जी के पास आई और उस सिंदूर को अनियंत्रित पिता जी के माथे पर बड़ी मुश्किलों के बाद लगाया । उन्होंने मुझे खुद से दूर करने की बहुत कोशिश की लेकिन मैंने भी हार नही मानी। उस सिंदूर के उनके माथे पर लगते ही वो शांत हो गए और बेशुध हो वही गिर पड़े।





ये तो पूरी तरफ साबित हो गया था कि पिता जी को कोई शारीरिक बीमारी नही थी । उन्हें कोई ना कोई नकारात्मक ऊर्जा ही परेशान कर रही थी और जब तक उसका पता नही चल जाता तब तक पिता जी को उसके चंगुल से नही बचाया जा सकता था लेकिन मैं कैसे पता लगाऊ ये मुझे समझ नही आ रहा था । तभी मुझे पिता जी की बात याद आयी कि अगर इस बीच उन्हें कुछ हो जाय और मुझे कुछ समझ ना आये तो मैं उनकी शरण में जाऊँ तो वो मेरी हर समस्या का समाधान कर देंगे। मैने बिना देर किये जल्दी से पिता जी के गुरु महाराज के पास पहुँच गयी और उन्हें सारी बात विस्तार से बताई । सारी बात सुनने के बाद उन्होंने मुझे उस कागज को लाने को कहा जिस पर वो आखिरी बार अध्यन कर रहे थे। वो कागज ही उस नकारात्मक ऊर्जा का पता लगाने में मदद कर सकता


था ।





"गुरु महाराज लेकिन वो कागज सैकड़ो टुकड़ो में पिता जी के पास ही बिखरा पड़ा था इसलिए अब वो कागज हमारी कोई मदद नही कर पायेगा।"








"ऐसा नही हैं बेटा, भले ही उस कागज के सैकड़ों टुकड़े हो गए हो लेकिन अभी भी वो अपनी पूरी कहानी बताने में सक्षम हैं इसलिए तुम बिना देर किये जाओ और उसके सारे टुकड़ो को लेकर आओ। " मैं दौड़ती हुई घर गयी और बिखरे हुए पेपर के टुकड़ो को इकट्ठा करके घर से वापस निकलने ही लगती हूँ कि मन में एक बार पिता जी को देखने के ख्याल से उनके कमरे की तरफ मुड़ती हूँ तो वहाँ देखते ही मेरे होश उड़ जाते हैं और उस कागज के सारे टुकड़े मेरे हाथ से छूट पर हवा में उड़ते हुए चारों तरफ बिखर जाते हैं।





पिता जी के गुरुमहाराज के कहने अनुसार मैं जल्दी जल्दी कागज के उन टुकड़ो को समेटकर उनके पास ले जाने लगी लेकिन एक बार पिता जी को देखने की हसरत लिए मैं उनके कमरे की तरफ बढ़ने लगी तभी वहाँ मुझे जमीन की लाल रंग की कुछ बूंदे दिखाई पड़ी । ध्यान से देखा तो मेरा मन आशंकित हो उठा वो लाल रंग की बुँदे खून था जो कि पिता जी के कमरे की तरफ जा रही थी । मेरा मन आशंका और डर से भयभीत हो गया और मैं पिता जी पिता जी कहते हुए अंदर की तरफ भागती हुई गयी तो वहाँ का दृश्य देख मेरा दिल जोरों से धड़कने लगा और मेरे हाथ से उस कागज के सारे टुकड़े छूट कर बिखर गए। पिता जी का शरीर लहूलुहान था । पूरा का पूरा कमरा खून के छीटों से भरा पड़ा था और वो अपने एक हाथ में बड़ा सा चाकू लेकर अपने दूसरे हाथ को चोटिल कर रहे थे। उन्हें देख मेरा हृदय सहम गया और मैं उन्हें रोकने के लिए उनकी तरफ बड़ी ।"रुक जाओ वही नही तो मैं अपने को मार दूंगा।" उस चाकू को अपने गले में लगाते हुए बोले। तो मैं वही पर ठहर गयी और उन्हें चाकू को फेक देने के लिए कहने लगी ।





"पिता जी आपको क्या हो गया है ? क्यों इस तरह खुद को चोट पहुँचा रहे हैं। फेक दीजिये इसे ।"





"मैने कहा ना मुझसे दूर रहना नही तो "





"मैं दूर ही हूँ पिता जी लेकिन आप ये सब मत करिए।"





"मुझे पिता मत बोल , मैं तेरा पिता नही हूँ ।"





"ऐसा मत कहिये पिता जी । बस आप सब्र रखिये सब सही हो जायेगा । मैं सब कुछ सही कर दूँगी। अभी आप बस शांत हो जाइये और चाकू को मुझे दे दीजिए।"





"ना! जा यहाँ से , मुझे वहाँ जाना वो मुझे बुला रही है।"





"कहाँ जाना हैं और कौन बुला रही हैं ? " कहते हुए मैं धीऱे धीऱे उनकी तरफ कदम बढ़ाती हूँ ।





"तुझसे कहा ना मुझसे दूर रह नही मानेगी, अब देख " कहते हुए वो चाकू से अपने पेट पर जोरदार प्रहार करते हैं और उनके पेट से खून की धारा बहने लगती है। मैं जोर से चिल्लाई और रोतें हुए उन्हें ऐसा करने से मना कर रही थी लेकिन उन्हें कोई फर्क नही पड रहा था। उन्हें तो इस चोट से कोई असर ही नही हुआ । ऐसा लग रहा कि उनका मन किसी भी दर्द को महसूस ही नही कर रहा और उन्हें ख़ुद को चोट पहुँचाकर कोई फर्क ही नही पड़ रहा।





"कहा था मेरे पास मत आना अब ले मज़ा " कहते हुए फिर से


अपने शरीर पर चाकू से कई वार किए और हर वार के बाद हँसते रहे। पूरे शरीर से रक्त की बूंदे टपक रही था और वो ख़ुद को घाव पर घाव दिए जा रहे थे। मैं असहाय अपने पिता को रोक भी नही पा रही थी। मैं ख़ुद को कितनी असहाय महसूस कर रही थी कि पिता जी मेरे सामने अपने को चोट पंहुचा रहे थे और मैं मूक दर्शक बनी बस अपनी किस्मत को कोस रही थी।





"पिता जी आपको क्या हो गया ? मत करिए ये सब । खुद को चोट मत पहुँचाइए। " रोतें रोतें मैं बेबस लाचार उन्हें रोकने का असफल प्रयास कर रही थी। अचानक से मुझे पिता जी की एक बात याद आयी और मैं अपने आंशू पोछते हुए पूजा घर की तरफ बढ़ी और महाकाल की शरण में जाकर उनके चरणों में रखी भभूति उठायी और भागते हुए पिता जी के पास आई और उनके ऊपर डालने के लिए जैसे ही हाथ उठाया।





"अब इससे भी कुछ नही होगा। मैं तो चला ।" कहते हुए उन्होंने उस चाकू से अपने गले पर जोर से प्रहार किया और मेरे सामने देखते ही देखते उनका शरीर बेजान हो जमीन पर गिर पड़ा। एक पल को मैं शून्यरहित हो गयी कि क्या से क्या हो गया । अपनी आँखों में मुझे विस्वाश नही हो रहा था। उनके जमीन पर गिरते ही मैं उनके पास भागी लेकिन कुछ ही पल में वो इस दुनिया को छोड़कर चले। मैं अवाक् सी वही बैठी बस उन्हें देखती जा रही थी। मेरी आँखों के तो आंसू जैसे सूख गए थे । माँ के जाने के बाद पिता जी ने ही मुझे माँ और पिता दोनों का प्यार दिया था और आज पिता जी भी मुझे इस दुनिया से छोड़कर चले गए। अब मेरा इस दुनिया में कोई नही था। मुझमे जीने की कोई इक्षा बाकी नही रह गयी थी। ऐसा लग रहा था कि मेरी पूरी दुनिया उजड़ गयी थी।





बहुत ही दर्दनाक और भयानक मौत मिली थी पिता जी को ।


मेरे सामने ही उन्होंने दम तोड़ दिया और मैं कुछ ना कर सकीं। उनका अंतिम संस्कार कर दिया गया । सब कुछ ख़त्म हो गया था। हर कोने में उनकी यादे बसी थी जो हर पल मुझे उनकी दर्दनाक मौत की याद दिलाती थी। घर तो जैसे मुझे काटने को दौड़ता था। मेरा मन अब उस घर में रहने को नही करता था। मैं बहुत दूर चली जाना चाहती थी इसलिए मैंने वो घर छोड़ देने और हमेशा के लिए अमेरिका में बसने का निर्णय कर लिया। मैं जल्दी से अपना सब सामान पैक करने में जुट गयी। सामान पैक करते समय एक बक्से पर नजर जाते ही मुझे पिता जी की बहुत याद आयी। पिता जी वो बक्सा बहुत ही संभाल कर रखते थे।जब भी मैं उस बक्से के बारे में पूछती तो पिता जी हमेशा सही वक्त आने पर पता चल जायेगा कहते हुए बात टाल देते। अब पिता जी नही हैं और मुझे कोई रोकने वाला भी नही था फिर भी उस बक्शे को देखने की हिम्मत नही हो रही थी लेकिन फिर भी हिम्मत करके मैने उसे खोला। खोलते ही पिता जी बहुत सी पुरानी चीजें जिनपर हल्की हल्की धूल जमी हुई थी। देखते हुए मैं लगभग रो सी पड़ी। तभी उसमे मुझे उसमे एक लिफाफा मिला। मैंने उसे खोल कर देखा तो उसमें मेरे नाम, का पिता जी द्वारा लिखा एक पत्र था। उत्सुकतावश मैने जल्दी से उसे पढ़ने का प्रयास करने लगी।





मेरी बेटी


"तुम्हें अगर ये पत्र मिल गया हैं तो इसका मतलब मैं इस दुनिया में नही हूँ। मुझे पता हैं कि तुम इस समय एकदम टूट चुकी होगी । माँ के बाद आज तुमने मुझे भी खो दिया हैं और इन सब से तुम्हारा दिल बहुत ही आहात हुआ है। अब तुम सोच रही होगी कि मैने ये खत कब और क्यों लिखा होगा क्योंकि कोई भी अपनी मौत का समय नही जानता तो बेटा तुम्हे एक बात बताना चाहता हूँ कि मुझे इसका आभास था इसलिए मैंने ये खत पहले ही लिख दिया था।








बेटी मैने तुम्हे पहले ही बताया था कि हमने जिस तंत्र मंत्र का प्रयोग लोगो का इस्तेमाल लोगो की भलाई के लिए किया हैं उसमें हर समय हमें नये खतरे से रूबरू होना पड़ता हैं और उन परिस्थितयों से निकलना कभी कभी बहुत मुश्किल हो जाता हैं। या तो हम इस दुनिया में कदम ना रखे और अगर एक बार रख दिया तो पीछे मुड़ना हमारे लिए बहुत मुश्किल हो जाता हैं। हमें दुसरो के साथ साथ अपनी भी सुरक्षा का ध्यान उन नकारात्मक शक्तियों से रखना पड़ता है। हमारी एक गलती हमारे और दूसरे के लिए बहुत भयानक हो सकती हैं। शायद कभी मुझसे भी कोई गलती हो जाय और मैं किसी नकारात्मक शक्ति के वश में आ जाऊँ तो मुझे भी नही पता कि मेरे साथ क्या हो सकता हैं। हो सकता हैं कि मेरी मौत अप्राकतिक और रहस्मय तरीके से हो जाय लेकिन तुम कभी घबराना नही क्योंकि मुझे तब भी ख़ुशी होगी कि मेरा जीवन लोगो की भलाई के लिए प्रयुक्त हो गया।





बेटी मैने तुम्हे तंत्र विद्या के विषय में काफी कुछ सिखाया हैं लेकिन ये विद्या भी विज्ञानं की तरह ही विशाल जिसके बारे में जितना भी सीखा जाय उतना भी कम हैं। नित नए प्रयोग आपको करने ही पड़ते हैं और हर प्रयोग आपको कुछ न कुछ नया सिखाता है। मुझे पता हैं बेटी कि तुम इस समय बहुत ही तकलीफ से गुजर रही हो और शायद इस काम से पीछे हट जाओ लेकिन तुम्हारे पिता और गुरु होने के नाते मेरी ये हार्दिक इक्षा हैं कि तुम मेरी तरह अपने ज्ञान का प्रयोग लोगो की भलाई के लिए करो। महाकाल ने इसके लिए ही तुम्हे कुछ ऐसी शक्तियां प्रदान की हैं जो कि एक इंसान के लिए अदभुत हैं। मेरे ना रहने के बाद तुम्हारा उत्तरदायित और भी बढ़ जाता हैं उन सभी लोगो की सेवा और मदद करने का जिनके पास इन काली और नकारात्मक शक्तियों से निपटने का कोई भी रास्ता नही होता।








मैं अपनी बेटी से बस यही चाहता हूँ कि वो निस्वार्थ भाव से बस लोगो की मदद कर सके। बेटी अगर तुम ये फैसला कर लो कि तुम्हे ये रास्ता चुनना हैं तो जो भी मैने सिखाया हैं वो आने वाले समय में काफी नही होगा । तुम्हे इस तंत्र मंत्र विद्या की आराधना करनी होगी और इसे पूरी तरह समझना होगा । इसके लिए तुम मेरे गुरुमहाराज की शरण में जाना और वो तुम्हें इस बारे में पूरी जानकारी देंगे। अगर तुम ये सब ना भी करना चाहो तो भी मुझे कोई गम नही होगा। ईश्वर से बस मेरी यही प्रार्थना है वो मेरी बेटी पर हमेशा कृपा दृष्टि बनाये रखे। मेरी बेटी हमेशा खुश रहे। "





पिता जी का खत पढ़ते पढ़ते मेरी आँखों से अश्रु धारा बहने लगी। उदास और शून्य हुए मेरे जीवन को पिता जी का ये खत एक दिशा दे गया और मेरी जीवन की नई शुरुआत। मेरे पिता जी ने लोगो की सेवा और भलाई के लिए अपना पूरा जीवन न्यौछावर कर दिया और उनकी बेटी होंने जा नाते अब मेरा फ़र्ज़ था उनके इस काम को आगे बढ़ाना और लोगो की सेवा करना ।





मैने अपना सारा सामान वापस से व्यवस्थित कर दिया और पिता जी के खत के साथ उनके गुरुमहाराज के पास पहुँचकर उन्हें पिता जी की आकस्मिक मौत और उनके खत के बारे में विस्तार से बताया। गुरुमहाराज ने मुझे आशीर्वाद दिया और तंत्र मंत्र के बारे में विस्तृत ज्ञान प्रदान करने लगे। मैने लगभग 6 महीने वही उनके पास रहकर इसका गहन अध्ययन किया और अपने अंतर में निहित शक्तियों का विस्तार किया। इसके बाद मैं उनका आशीर्वाद लेकर अपने घर आ गयी और लोगो की सेवा के लिए तत्पर हो गयी। चुकी इससे मुझे आत्मिक शांति तो मिलती थी लेकिन जीवकोपार्जन के लिए मुझे कुछ काम भी करना था तो मैंने ऑफिस ज्वाइन कर लिया। अब मैं ऑफिस में


काम भी करती हूँ और जरुरत मंद की समय आने पर मदद भी करती हूँ। उस दिन मैं ऐसी ही किसी जरूरतमंद की मदद करके घर वापस आ रही थी और आपसे टकरा गई। रात को मैने नित्या के साथ कुछ गलत होते देखा लेकिन तब मुझे इस कुछ भी समझ नही आया था ।ऑफिस में जैसे ही आपका दिया विजिटिंग कार्ड में लिया मेरी आँखों के सामने रात का सपना प्रत्यक्ष रूप में मेरे सामने आ गया और मैने आपको यही सब बताने के लिए मिलने को कहा था लेकिन कुछ भी बताने से पहले नित्या के साथ ये सब कुछ हो गया।





"तुम्हारे पिता के साथ बहुत बुरा हुआ । उन्होंने हमारे परिवार की हमेशा हर परिस्थति में मदद की लेकिन, आखिरी समय में हम उनकी और तुम्हारी कुछ भी सहायता नही कर सके इसका हमें बहुत दुख हैं लेकिन तुम्हें अपने पिता के रास्ते पर चलते देख आज उनका सीना गर्व से चौड़ा हो गया होगा। उन्हें आप पर बहुत नाज होगा। मेरी बेटी को उन्होंने नया जीवन दिया था और आपकी वजह से आज फिर से मेरी बेटी को एक नई जिंदगी मिली है।"





"अभी तो ये शुरुआत हैं देखा नही आपने उसने अमावस्या को दे जाने को बोला हैं अर्थात हमारे पास नित्या को उसके चंगुल से बचाने के लिए अमावस्या के पहले तक का वक्त हैं। इस बीच हमें पता करना होगा कि आखिर वो हैं कौन और नित्या से क्या चाहती है ? जबतक हमें उसके बारे में पता नही चल जाता हम नित्या की मदद नही कर सकते।"





"बहुत रात हो गयी आप सब लोग आराम कीजिये। कल देखते हैं कि आगे क्या करना हैं? "





"आप भी निश्चिन्त होकर आराम कीजिये। एक बार फिर से


आपका धन्यवाद।" कहते हुए नितिन और स्वाति नित्या के पास जाकर बैठ गए और सृष्टि गेस्ट रूम में लेट गयी। पिता जी के साथ हुई घटना और उनकी भयावह मौत का दृश्य आज फिर से सृष्टि की आँखों के सामने घूमने लगा । उसे पता ही नही चला वो कब सो गई । स्वाति के जोर जोर से चिल्लाने की आवाज से उसकी निद्रा टूटी और वो अपना दुपट्टा सँभालते हुए भागती हुई नित्या के कमरे में पहुँच


गयी ।





"क्या हुआ स्वाति ऐसे क्यों चिल्ला रही हो ? "स्वाति की आवाज सुन नितिन भी वहाँ आ गया और स्वाति को ऐसे रोतें देख बोला।





"आप लोग देखिये ये नित्या को क्या हो रहा है ?"


























पंडित जी की दर्दनाक और भयावह मौत के बारे में सुनकर नितिन और स्वाति की रूह तक कांप गयी। स्वाति सृष्टि को दिलासा देते हुए आराम करने को कहती हैं और स्वयं भी नित्या के पास जाकर लेट जाती है। सुबह स्वाति के जोर जोर चिल्लाने से सृष्टि की निंद्रा टूटती हैं और वो भागते हुए नित्या के रूम की तरफ जाती है।





"क्या हुआ स्वाति ऐसे क्यों चिल्ला रही हो ? "स्वाति की आवाज सुन नितिन भी वहाँ आ गया और स्वाति को ऐसे रोतें देख बोला।





"आप लोग देखिये , ये नित्या को क्या हो रहा है ?" नित्या की तरफ इशारा करते हुए स्वाति फिर से रोने लगती हैं।सृष्टि और नितिन नित्या के देख चौक जाते हैं। नित्या को अभी तक होश नही आया था और उसके पैरों के अंगूठे और अंगुलियाँ काली पड़ गयी थी और थोड़ा ऊपर की तरफ स्याह हो गया था।


"ये मेरी बेटी को क्या हो रहा , ऐसा लग रहा यहाँ चोट लगी हैं और खून जम गया हो। " रुको मैं दवा लेकर आता हूँ तबतक तुम उसे उठाओ। "कहते हुए नितिन वहाँ से जाने लगता हैं लेकिन सृष्टि उसे रोक देती हैं।





"नितिन जी ये वो नही हैं जो आप समझ रहे हैं , ये कुछ और हैं ध्यान से देखिये देखते ही देखते ये स्याह रंग और ऊपर की तरफ बढ़ता जा रहा हैं। "





"अरे ये तो और ऊपर तक काला हो गया हैं। आखिर ये सब हो क्या मेरी बच्ची के साथ।





"आप यही रहिये और स्वाति जी आप मेरे साथ आइये।"कहते हुए सृष्टि स्वाति के साथ कमरे से बाहर जाती हैं और नितिन नित्या के पास ही बैठ जाता हैं। थोड़ी देर में ही सृष्टि कुछ सामान लेकर वहाँ आती हैं और उन दोनों को नित्या से थोड़ा दूर रहने और कुछ भी हो मुँह से आवाज ना निकलने के लिए कहती हैं और स्वयं पास जाकर बैठ जाती हैं। सबसे पहले वो नित्या के चारों ओर राई के दाने जो कि हनुमान जी के ऊपर से पसार कर लायी थी उससे घेरा बना दिया । सात गुलाब के फूल को थोड़ी थोड़ी दूरी पर राई से बने घेरे पर रख दिया। तुलसी के पाँच दल लेकर उसे पहले माथे पर फिर दोनों आँखों पर ,फिर ओठ पर और पांचवां नित्या के गले पर रख दिया। एक नीम्बू लेकर उसे नित्या के ऊपर से वार कर घर के बाहर चौराहे पर फेंकने के लिए नितिन को दे दिया। जब तक नितिन वापस लौट कर आता सृष्टि ने नित्या के सर पर हाथ रखकर अपनी आंखें बंद की और मन ही मन कुछ मंत्रो का जाप करने लगी। थोड़ी देर मंत्रोउचारण करने के बाद सृष्टि का शरीर कांपने सा लगा जिसे देख स्वाति और नितिन घबरा गए । चूंकि सृष्टि ने पहले ही दोनों


को चुप रहने की हिदायत दी थी इसलिए दोनों घबरा तो रहे थे लेकिन उनमें कुछ भी कहने की हिम्मत नही थी। थोड़ी देर बाद सृष्टि थोड़ा सामान्य हो गयी । उसका पूरा शरीर पसीने से भीग चूका था और सांसे तेजी से चल रही थी। सृष्टि ने नित्या के गले पर रखी तुलसी की पत्तियां उठा ली और सातों गुलाब के फूलो की एक एक पंखुड़ी लेकर उसका रस निकाल लिया और उसे नित्या के मुँह में डाल दिया और कालापन जो नित्या के शरीर पर बढ़ता जा रहा था वो वही पर रुक गया। अब तक नित्या का पूरा पैर काला हो चुका था। शरीर का स्याहपन रुकने से सृष्टि ने थोड़ी राहत की साँस ली और वो वहाँ से उठकर किनारे पड़े सोफे पर बैठ गयी। उसकी धड़कने बहुत तेजी से धड़क रही थी। उसने पानी का इशारा किया और स्वाति के पानी देने पर पहले उसे अपने चेहरे पर उड़ेल दिया और फिर थोड़ा सा मुँह, में डाला ।
Post Reply

Return to “Hindi ( हिन्दी )”