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बेकाबू

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बेकाबू

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बेकाबू

अप्रैल का वो दिन था जब गर्मी की छुट्टियों में मेरे शुभ चिंतक मेरे मास्टर जी, मेरे घर , मेरे हाल समाचार लेने आए थे।
"नमस्कार मास्टर जी अाइए।" मेरी मां ने उनका अभिवादन कर उन्हें अंदर बुलाया। मै अपने कमरे में बंद होकर खिड़की में से चुपके से देख रहा था।
" अभी ठीक है राहुल?" मास्टर जी ने पूछा।
"हां इलाज़ लग गया है , काफ़ी सुधार है।" मां ने मेरे लिए कहा।
"क्या हुआ अचानक?"
"पता नहीं मास्टर जी ये लड़का अपने सीने में क्या दफ़न करके बैठा है, अब आप ही कुछ पता कीजिए।"
" डॉक्टर ने क्या बताया?"
"बस यही की , उसकी जिंदगी का वो राज़ हम भी नहीं जान सके , अगर वो पता चले तो आगे कुछ स्थाई इलाज संभव हो सके।"
मां ने इशारे से मास्टर जी को मेरे कमरे में जाने को कहा।
मास्टर जी ने मेरे कमरे का दरवाज़ा खटखटाया,
"राहुल दरवाज़ा खोलो देखो मै आया हूं , तुम्हारा शर्मा सर।"
शर्मा सर मेरे लिए भगवान तुल्य थे ,
उन्होंने कभी टीचर स्टूडेंट वाला रिश्ता महसूस ही नहीं होने दिया था, और हर संभव मेरी मदद की थी,
हालाकि उसकी वज़ह ये भी थी कि उन्हें असफल लोग बिल्कुल पसंद नहीं थे , और सफल लोग हद से ज्यादा पसंद थे । तो बात कुछ ऐसी थी कि एवरेज बच्चों के लिए वो जीतने के खतरनाक थे उतने ही पढ़ने लिखने वाले बच्चों के प्रिय हुआ करते थे।
मैंने बड़ी मुश्किल से दरवाज़ा खोला ,
वो मेरे कमरे में अंदर आए , मेरे सर पर हाथ फेरा मैंने भी उनके पैर छुए ,मास्टर जी मेरे पलंग के पास रखे स्टूल पर बैठ गए,
"आओ मेरे शेर बैठो मेरे पास।"
मै जा कर चुप चाप उनके पास बैठ गया मेरी आंखे ज़मीन पर गड़ी हुई दांए बांए नाच रही थी,
"कैसे हो ?"
" अच्छा हूं, और आप?"
" मै भी ठीक हूं।"
"इतने समय से शहर वापस आ गए , मुझे बताया नहीं तुमने?"
मेरी धड़कने बढ़ने लगी , क्यों फिर वही सवाल किए जा रहे कोई क्यों मुझे अकेला नहीं छोड़ देता।
" मै बस सोच ही रहा था मिलने आने की।" मैंने ठिठकती हुई आवाज़ में झूठ बोला ताकि अपनी कमज़ोरी छुपा सकूं।
" वो ऑफिस से फ़ोन आ गया कि छुट्टी से वापस आ जाओ।"
" अच्छा ठीक है चले जाना थोड़े दिन और रुकलो , तुम्हे अपना ये शहर अच्छा नहीं लगता क्या?"
मेरी मां ने मास्टर जी को सब बता रखा था , शायद वो जानते थे कि मै झूठ बोल रहा हूं लेकिन मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने ऐसा उत्तर दिया था ,
" मै आज ये जानने आया हूं कि ऐसी कौन सी आंधी थी जिसे मेरा सबसे काबिल स्टूडेंट झेल ना सका और टूट गया?"
" सर आपका काबिल स्टूडेंट टूटा नहीं आंधी के साथ अपना वजूद खो कर चल दिया।"
" तुमने कभी महसूस किया कि तुम मेरा गुरूर थे, तुम्हारी मिसालें दि है मैंने , तुम्हारे जूनियर्स को।"
मास्टर जी मेरी हालत पर तरस भी खा रहे थे , और अन्दर मेरे , सफल ना होने का मलाल और नाराज़गी भी दिल के संदूक में से बाहर आने को कर रही थी ,पर उसका आज कोई इलाज़ ना था, क्योंकि इलाज़ कैसे किया जाए वो सिखाते तो थे , पर जिंदगी की मुश्किलों का डॉक्टर बनना स्टूडेंट के अपने हाथ में होता है।
फ़िर से सवाल दोहराया "बेटा !आज मै तुमसे बस इतना जानने आया हूं कि ये हाल हुआ कैसे तुम्हारा , मै तुमसे वादा करता हूं कि तुम्हारे बारे में कोई धारणा नहीं बनाऊंगा ?"
मुझे थोड़ा सहज महसूस नहीं हो रहा था क्योंकि जो कुछ भी मेरे साथ घटा था, उसे अपने टीचर के सामने रखा नहीं जा सकता था।
मास्टर जी ने कहा "मत घबराओ मै किसी से कुछ नहीं कहूंगा, चाहो तो अपनी आंखे बंद कर लो , और यूं मान लो कि अपने किसी अजीज मित्र के सामने बैठे हो।"
मैंने अपनी आंखे बंद की और कुछ बोलता उसके पहले अचानक मुझे फिर से घबारहट शुरू हो गई,
मैंने घबराकर अपनी आंखे खोल ली ,
"राहुल तुम एक बहादुर बच्चे हो , कोशिश करो साहस करो बताने कि ये बात इस कमरे से बाहर कभी नहीं जाएगी , मै वादा करता हूं।"
मैंने फ़िर आंखे बंद की और हिम्मत जुटाई और बोलना शुरू किया। इतने समय से दफ़न राज़ पहली बार किसी के सामने आने वाला था,
"अक्सर हमारी जिंदगी कल्पनाओं और वास्तविकताओं के बीच संघर्ष की कहानी होती है.."
मेरे शब्द लड़खड़ाने लगे और मै चुप होगया ।
" बेटे चुप क्यूं हो गए , बताओ आगे , हो सकता है तुम्हारी आप बीती किसी का भला कर जाए, किसी का कैरियर बचा ले।"
मास्टर जी की ये बात मेरे जेहन में उतर गई , यदि मेरी आप बीती मेरी तरह के युवाओं को सही राह दिखा सकती थी, तो हर हाल में सब कुछ बताऊंगा मै। ,
चक्रव्यूह ....शहनाज की बेलगाम ख्वाहिशें....उसकी गली में जाना छोड़ दिया
बेकाबू....


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Re: बेकाबू

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2. कम उम्र के बड़े ख़्वाब(अब तक....)







मेरा सूखा गला किसी की मदद के भाव से तर हो चुका था।
"क्या आपने सब कुछ बना हुआ जान बुझकर अपने हाथों से बिगड़ा है?"
" नहीं ! कौन मूर्ख ऐसा करता है।"
" मैं वही मूर्ख हूं।"
मैंने अपनी आंखे बंद की और कहना शुरू किया
" कक्षा आठ तक मै एक लास्ट बैंचर स्टूडेंट था ,
दूसरे बच्चो को मरना , चमकाना और अपनी दादागिरी झाड़ना मेरा शगल और इज्ज़त हुआ करती थी , कक्षा में एक , लड़की थी मिताली मुझे वो बहुत पसंद थी जी करता था कि बस उसे ही देखता रहूं ।
हालाकि उम्र भले छोटी थी पर ये हमारे दादाजी वाला दौर नहीं था , नया ज़माना था, प्रेम रस के घूंट टेलीविज़न वाले हमे बड़े होने से पहले ही पिला देते थे।
मेरे दोस्त मिताली को गेट से देख कर, मुझे आवाज़ लगा देते थे , राहुल , मिताली आ गई, मै दौड़ कर उसके फ्रेश - फ्रेश चेहरे को और उसके गोरे गालों पर आती हुई लट को उंगलियों से सरका कर कान के पीछे ले जाना देखने हाज़िर होजाता था, ये पल ऐसा लगता था मानो ज़माना थम कर मेरे अाघोश में आ चुका हो ।
आज का दिन कुछ अलग है क्यूंकि मैंने मयंक को प्रे से पहले ही एक कोने में ले जा कर धमका आया हूं ,आज से वो मिताली के पास वाली डेस्क पर नहीं बैठेगा जो कि सबसे आगे की डेस्क है , आज से ये फ़ैसला लिया है कि भले मुझे कुछ आए ना आए , भले ही टीचर्स की और मार क्यूं ना खा ली जाए, लेकिन आज से बैठना तो आगे मिताली के ठीक बाजू वाली डेस्क पर ही है।
प्रे के बाद सभी अपनी अपनी कक्षाओं की तरफ़ बढ़े, मै और सन्नी जो कि मेरा जिगरी दोस्त था, हमेशा मेरे साथ रहता था , हमने बढ़े रौब से अपना बैग मिताली की बाजू वाली डेस्क पर रख दिया जैसे कोई बहुत बड़े सेलेब्रिटी आए हो कहीं से, उसके बाद एक पिंक कलर का बैग आकर मेरे बैग के ठीक बाजू में रखा गया जो मेरी मिताली का था, उसने मेरी तरफ़ ऐसे देखा जैसे मैं कोई अतिक्रमणकारी था , फ़िर उसने मयंक को देखने के लिए अपनी गर्दन घुमाई मयंक अपना चश्मा ठीक करते हुए ओके का इशारा कर रहा था ।
ऐसा लग रहा था कि मेरा वहां बैठना मिताली को खल रहा था, दरअसल बात यह थी कि मयंक हमारी क्लास का हीरो था हमेशा फर्स्ट जो आता था , टीचर्स और क्लास के अन्य विद्यार्थियों के सामने उसकी इज्ज़त किसी कलेक्टर से कम ना थी , हर कोई उसके साथ बैठना चाहता था क्योंकि वो दौर ही ऐसा होता है जब मां बाप अपने बच्चों को अच्छे पढ़ने लिखने वाले बच्चों के साथ रहने की हिदायत दे कर स्कूल भेजते है और फिर एक कारण यह भी है, ऐसे टॉपर अपनी कॉपी हमेशा कंप्लीट रखते है, स्कूल रोज़ आते है और तो और कभी कभी टीचर्स से मार खाने से भी बचा , लिया करते है क्योंकि अमूमन क्लास के मॉनिटर भी वही होते है तो उनके साथ बैठना एक अच्छा सौदा साबित होता है,
इधर हम जैसे शैतान बच्चे होते है जो सिर्फ अपने मन में हीरो होते है , असल में स्कूल मैनेजमेंट की नज़र में और छात्रों की नज़र में किसी विलेन से कम नहीं होते है।
हिन्दी का पीरियड था आज सर , जो अभी तक पढ़ाया उसका मौखिक टेस्ट लेने वाले थे , सर कक्षा में अा चुके थे
उन्होंने किताब मांगी मिताली ने झट से निकाल कर दे दी,
मैंने राहत की सांस ली ,
कहीं मुझसे मांग लेते तो मुसीबत खड़ी हो जाती,
आप सोच रहे होंगे किस बात की तो मै आपको बता दूं कि मैं एक सम्पूर्ण हल कि गाईड खरीदता था बस कोई पुस्तक पुस्तिका नहीं ओनली गाइड , जिसके कई फायदे थे , एक तो कॉपी कंप्लीट करने की चिंता खत्म , पास होने जितने आई एम पी मिल जाते थे, और इसके पन्ने एग्जाम टाइम में फाड़ कर खर्रे बनाए जा सकते थे , तो यदि किताब मुझसे मांग ली जाती तो सज़ा मिलना तो तय था ना।
" हां तो प्रश्न है, 'उसने कहा था' शीर्षक से आप क्या समझते है?"
सर ने सन्नी की तरफ़ उंगली घुमाई और उत्तर के लिए खड़ा किया, सन्नी नीचे मुंडी करके खड़ा हो गया उसे नहीं पता था,
उसको कान पकड़ के खड़े रहने की सज़ा दे दी गई ,
अब मेरी बारी थी,
मैंने सोचा आता तो है नहीं बाकी ऐसा जवाब दूं की सब क्लास हंसे और मै फोकस में बना रहूं , और खास कर मिताली के, ध्यानाकर्षण की यह युक्ति मुझ पर भारी पड़ गई,
" उसने कहा था शीर्षक में हमे उस व्यक्ति के बारे में जानकारी मिल गई है जिसने कहा था, अब जाके उसको ठोकना भर रहा गया है।"
सब हंसने लगे , " चुप ,चुप हो जाओ मूर्खों कोई नहीं हंसेगा मै बाहर कर दूंगा।" सब धीरे धीरे चुप हो गए।
सर जी ने स्केल निकाल कर मेरी पिटाई लगाई और डेस्क के ऊपर हाथ ऊंचे करवा कर खड़ा कर दिया।
, लो सोचा था हीरो बनेंगे ये तो बड़ी बेज्ज़ती हुई,
मिताली अगले पीरियड से मुझे देख कर मुंह बनाने लगी जैसे मै कोई घिनौना आदमी हूं,
अगला पीरियड विज्ञान का था ,
उसमे होम वर्क न करने के कारण सजा मिली,
अब तो हद है दो पीरियड से लगातार खड़े होकर हाथ दुखने लगे थे बार बार नीचे की तरफ़ अा रहे थे , इधर पैरों के घुटने भी बार बार मुड़ने लगे थे,
अब सबसे डरावना पीरियड था गणित का जितना विषय भयंकर उससे ज्यादा उसके मास्टर जी थे।
ऐसे ऐसे सवाल हल करने को देते थे जो किताब में भी नहीं होते थे, उनका विचार था कि यदि आपको कॉन्सेप्ट समझ अा गया है तो फिर सवाल कहीं से भी आए आपको बन जाना चाहिए , पर उनका ये दर्शन हमारे दर्शन से अलग था, सवाल रट कर आने वाले लोगो का एक अलग समूह होता है बस एक समानता यहां मिताली और मेरे बीच थी कि हम दोनों इसी समूह से आते थे,
गणित वाले सर आए और कॉपी में होम वर्क खोल कर डेस्क पर रखने के लिए कहा ,
उनके रेट फिक्स थे कोई मोल भाव नहीं,
होम वर्क ना करना दस स्केल ,
अधूरा करना पांच स्केल,
कॉपी घर छोड़ आना दस स्केल,
कल नहीं आया था कि स्थिति में सज़ा छुट्टी के लिए आवेदन देने ना देने पर निर्भर करती थी।
मेरा रिकॉर्ड था एक बार मैंने पांच स्केल खाए थे बाकी रोज़ दस ही खा रहा था,
मैंने मुड़ कर मिताली कि तरफ़ देखा उसकी आंखो में आंसू थे,
मैंने उससे धीरे से पूछा "रो क्यों रही है?"
उसने आंसू पोछे और कहा " आगे देख।"
वाह क्या बेज्ज़ाती हुई थी मेरी मैंने इधर उधर देखा कि किसी ने , सुना तो नहीं।
सर आए और सन्नी और मुझे दस स्केल मारे, आज का दिन मिताली के लिए रोज से अलग था क्यूंकि आज एक भी स्केल ना खाने वाली को पांच स्केल पड़ चुके थे।
रिसेस की घंटी बज गई।
सब टिफिन लेकर बाहर लंच हॉल में चले गए , पर वो नहीं आई, वो रो रही थी , उसको देख कर मैंने सन्नी को जाने का इशारा किया और मै उसके साथ अकेला क्लास में रहा गया,
मैंने उससे कहा " होता है ये , इसके पीछे खाना नहीं खाएगी क्या, देख मुझे तो दस स्केल पड़े मै रो रहा हूं क्या? रो मत टिफिन निकाल और चल ।"
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Re: बेकाबू

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उसने गुस्से से मेरी तरफ देखा और जितनी मन की भड़ास थी निकाल दी, तब जाकर पता चला रोने कि असली वजह मै ही था, उसके बारे में एक चीज़ पता चली कि वो पढ़ने में ठीक थी बस उसका गणित कमज़ोर था, हर रोज जो गणित के जो सवाल रह जाया करते थे वो मयंक से पूछ कर क्लास में होम वर्क कंप्लीट कर लिया करती थी, लेकिन मेरे जैसा लुच्चा उसकी इसमें क्या मदद कर सकता था।
उसने मुझसे इतनी लाचार आवाज़ में रिक्वेस्ट कि
" प्लीज़ राहुल तुम अपनी जगह पर वापस चले जाओ और मयंक को आगे भेज दो।"
उसके सुंदर आंखो से निकल रहे आंसू मुझसे नफ़रत और मयंक की चाहत बयां कर रहे थे, मै तो सोचता था दादागिरी दिखाने वाला सबको हंसाने वाला हीरो होता है, बाकी क्लास की आगे बैठने वाली दुनिया क्लास की पीछे बैठने वाली दुनिया से बहुत अलग होती है, ये आज पता चला था
ये अगड़े लोगो की दुनिया थी , पिछड़े लोगों से अलग ;
मै यदि आज आगे नहीं बैठता तो कितना बेखबर होता मिताली की पसंदगी - नापसंदगी से , उसे पढ़ने- लिखने वाले इज्ज़तदार और स्मार्ट वर्कर्स पसन्द थे , जिनको टीचर्स भी इज्ज़त की नज़र से , देखते थे , मै तो पूरा उल्टा था ।
आज मेरी आंखे खुल गई थी , पूरा नज़रिया बदल चुका था आप कह सकते हो की मुन्ना भाई फिल्म उस समय अाई होती तो मै अपने सर्किट जैसे दोस्त सन्नी को यही कह रहा होता की "ऐ सर्किट! अपुन को साला इस क्लास का नहीं , अख्खी स्कूल का टॉपर बनने का है ,क्या।" ,
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Re: बेकाबू

Post by 007 »

3. अंधा प्यार त्याग नहीं देखता(आगे....)

मैंने अपना बैग उठाया और पीछे वापस अपनी जगह पर जा कर बैठ गया , आज की इस वापसी को लौट के बुद्धू घर को आए नहीं कह सकते थे, ये "गए थे बुद्धू समझ के आए" जैसा कुछ हुआ था।
मिताली ने मुझे पलटकर देखा तो मै उसके मयंक का बैग वापस उसकी अपनी पुरानी जगह पर ला रहा था, जो जगह ना सिर्फ मिताली की डेस्क के क़रीब थी बल्कि उसके दिल के भी करीब थी।
उसने खाना नहीं खाया था, खाया तो शायद मैंने भी नहीं था पर मुझे उसके ना खाने की बात दिलों दिमाग में छप गई थी इसलिए उसके केस में ' शायद ' शब्द की कोई जगह नहीं थी।
रिसेस खत्म होने की बेल बज चुकी थी सारे बच्चे खा पी कर, खेल कूद कर अपनी अपनी कक्षाओं में लौट रहे थे,
मयंक ने मुझे अपनी जगह पर वापस देखा तो पूछा
" क्या हुआ भाई?"
"कुछ नहीं, तू अपनी जगह पर वापस चले जा।"
"क्यों?" बड़े ही व्यंगात्मक लहज़े में उसने पूछा।
उसके क्यों में असल में मेरी नाकामयाबी का मंज़र छुपा था ,वो आगे बढ़ा अपनी जगह पर बैठते हुए उसने मिताली को हाय किया मिताली का मूड मुझे उसकी जगह पर बैठा देख कर जितना आफ़ हुआ था उससे कई तेज़ी से मयंक को वापस अपनी जगह पर देख कर ऑन हो गया,
"ओ हाय।"
इस बार मुस्कुरा कर उसने जवाब दिया था।
हम लड़के अक्सर अपनी साइड देखते है की हमने कितना त्याग किया बंदी के लिए पर कभी ये नहीं देखते कि बंदी सामने वाले के प्यार में कितनी अंधी है , तुम बेचारों का त्याग उसे दिखेगा भी? कुछ ऐसा ही मेटर मेरे साथ होगया था , छोटी सी मयंक की जगह मयंक को वापस क्या कर दी थी, ऐसा मान बैठा था मन ही मन जैसे बहुत बड़ा त्यागी पुरुष हूं मिताली मेरे बारे में जरूर कुछ ना कुछ अच्छा सोचेगी, बाकी देखो उस लड़की को जरा भी कदर नहीं मेरे त्याग की।
आज की स्कूल खत्म होने में और रोज की स्कूल खत्म होने में अंतर था,
स्कूल छूटी और मै भी अपने दोस्त के साथ बाहर आया ,आज मेरा ध्यान उन शरीफों की चाल ढाल देखने में था जिनके बापों की कॉलर खड़ी और मां की बातों में घमंड होता है पूरे रिश्तेदारों के बच्चे , इन्हीं बच्चों का नाम और परफॉर्मेंस सुन कर बड़े होते है।
"अरे सन्नी ये तो वो चेहरे है रे जो कभी ग्राउंड पे नहीं दिखते।"
" अबे अपने जैसे थोड़े ही है , घर जाकर थोड़ा बहुत घूमते फिरते होंगे और पढ़ाई में लग जाते होंगे।" सन्नी ने कहा।
"सुनना "
"बोल"
" देख, ना अपने पास कॉपी कंप्लीट है ,ना अपने पास बुक्स है, कैसे अच्छे मार्क्स लाएंगे?" मैं बड़ी दुविधा में था।
" अब छोड़ ना तू भी अगर पढ़ने कि बातें करेगा तो क्लास में मेरा दोस्त कौन रह जाएगा।" सन्नी ने रोने कि एक्टिंग करते हुए कहा।
"नहीं रे सन्नी अब तो बहुत होगई , देख सामने देख रहा है, वो मिताली ?"
" हां , उसकी सहेली के साथ जारही है , पास में मयंक और उसका दोस्त जा रहा है , मिताली मयंक बातें करते जारहे है ,और कुछ भी कमेंट्री करूं?" सन्नी ने कहा।
, " सन्नी वो जा नहीं रहे , बहुत आगे जा चुके है।"
" अरे तू यार बहुत सीरियस हो गया है मै बोर होजाऊंगा फिर, कट्टी कट्टी जा तू ..।"
" अबे तेरी ये मजाक बंद करेगा तू? "
सन्नी ने मेरी तरफ देखा ,
"तुझे पता है , खाली एक ही वजह है ,मयंक अच्छा पढ़ता है, उसी वजह से वो उसे पसंद करती है, उसकी हेल्प कर देता है यार।"
"हां यार बात तो तूने सही कही , और यहां साला हम अपनी खुद की हेल्प नहीं कर पाते।"
"बहुत हो गया सन्नी इस बार कुछ करके दिखाएंगे भाई मेरे।"
" एक मिनिट तू मुझे क्यूं घसीट रहा है।"
" चल ठीक है मै ख़ुद ही करूंगा अकेला।"
" पढ़ाई ई ई.... मै आरहा हूं।"
" एक मिनिट आज वीडियो गेम नहीं खेलेगा क्या?"
"नहीं"
" तो मां पूछेगी कि एक दम से क्या हो गया इतना पढ़ रहा है , क्या जवाब देगा अंटी को, बोल?"
मै सोच में पड़ गया बात तो अक्ल के पैदल ने सही कही थी आज, एग्जाम के टाइम तक तो मां को बोलना पड़ता है कि बेटा पढ़ ले, बेटा पढ़ ले, अब अचानक से पढ़ने बैठ गया तो मां को शक तो हो जाएगा कि बात तो कुछ है और अगर कहीं ये अंदाज़ा लगा लिया कि मै मास्टर जी से डर गया हूं, इसलिए पढ़ रहा हूं तो अपने लिए तो बड़ी शर्म की बात होगी, अरे इज्ज़त की धज्जियां उड़ जाएगी भाई।
पर जो कुछ भी हो मुझे एग्जैक्टली वैसा ही बनना है , जिसमें मिताली मुझे पसंद करे।
अगर उसका हीरो मेरे जैसा दबंग नहीं कॉमेडी नहीं तो कोई बात नहीं ।
" हर बात होगी मुझमें जो तुझे अच्छी लगे,
होगी तू मेरी ही इस जनम में ,
, चाहे कितना भी मुझे दम लगे।"
अब देखना आगे मै क्या करता हूं....,
4. वो यहां कैसे?
अब सबसे बड़ी समस्या तो ये है कि गाइड से ,पास होने जितना तो काम चल जाएगा पर टॉप करने जितना नहीं, कहीं से बुक्स और नोट्स जुगाड़ने पड़ेंगे।
"नवंबर ख़त्म होने को है , कौन मदद करेगा ?"
अब तो हाफ ईयरली एग्जाम सामने अा चुकी थी कोर्स लगभग पचहत्तर प्रतिशत ख़त्म हो चुका था , सारे पढ़ने लिखने वाले बच्चे जोर शोर से पढ़ाई में लगे हुए थे, अब क्या किया जाता ?
जब सारे रास्ते बंद हो और मन कुछ पाने की ज़िद पर अड़ जाए , तो कभी - कभी ऐसी मजबूरियों की नाव आदमी को बेईमानी के घाट उतार देती है ।मैं भी कुछ ऐसा ही रास्ता अख्तियार करने की तैयारी में था ।
पुस्तकें खरीदने का रास्ता निकल आया था, मैंने घर में कहा "नए टीचर के पास ट्यूशन लगवा रहा हूं , उनके यहां जाने से बहुत सारे फ्रेंड्स अच्छे नंबर ला रहे है?"
मां ने कहा" हां तो वो फ्रेंड्स घर पर पढ़ते भी तो होंगे तेरी तरह तो होंगे नहीं।"
"लेकिन मां इस बार मै पढूंगा।"
"क्यूं स्कूल में टीचर्स ने पिटाई लगाई क्या?"
मां ने तो ओवर की पहली गेंद पे मेरे स्टंप उखाड़ दिए ,
"अरे नहीं , मै तो अपनी मर्जी से पढ़ रहा हूं, वो सन्नी ने कहा है कि इस बार यदि वो अच्छे नंबर लाएगा तो उसके पापा साइकिल दिलाएंगे उसे, अब वो पढ़ने में लग गया है तो सोचा मैं भी पढ़ ही लूं।"
पीछे से आवाज़ आई " यदि तुम्हारे भी अच्छे नंबर आए तो तुम्हारे पापा भी नई साइकिल दिला देंगे।" मुड़ कर देखा तो पापा खड़े थे बस घर आए ही थे । पिता जी एक सरकारी नौकरी में थे ,इस वजह से बाहर रहते थे मुझे और मां को यहां शहर में रख रखा था।
मै दौड़ कर पापा के पास गया और उनसे चिपक गया ," थैंक्यू पापा "
हर मां बाप अपने बच्चों के अच्छे भविष्य के लिए अपनी औकात से ज्यादा खर्च कर सकते है।
"लेकिन मुझे ट्यूशन जाना पड़ेगी ।"
" ठीक है ,तो जाना ,रोका किसने है मेरे शेर को?"
" वो मास्टर जी दो महीने की फीस एडवांस में लेते हैं।"
"ठीक है मुझे बता देना कितनी फीस है ?"
"ओके पापा"
मेरा काम बन गया था । मै एक सीढ़ी चढ़ चुका था ।
मैंने अगले दिन सुबह पापा से पैसे ले लिए , और स्टेशनरी पर जैसे ही बुक खरीदने गया ,
" भैय्या ,ये बुक्स देना।"और दुकानदार के हाथ में पुस्तकों कि लिस्ट पकड़ाई , वो जैसे ही निकाल कर लाया, कि मेरे बाजू में एक ग्राहक ने आवाज़ दी " भैया , एक रफ़ कॉपी दे दो।"
आवाज़ तो बहुत जानी पहचानी है , ऑफकोर्स सही सोच रहे है आप ,ये मिताली ही थी।
मै उधर मुंह करके खड़ा हो गया ताकि वो देख ना सके , मैंने उसके तरफ़ देखा नहीं था , सिर्फ आवाज़ से ही पता लगा लिया था कि ये मिताली है,
उसने काउंटर पर रखी कक्षा आठ की बुक का सेट देखा तो अपनी सहेली से कहा " देख इस समय भी लोग किताबें खरीदते है।"
मेरा मुंह उधर और कान इधर थे उनकी बातें सुनाई दे रही थी।
, "अरे ! ऐसा भी तो हो सकता है कि पुरानी बुक्स फंट गई हो या चोरी हो गई हो।" उसकी सहेली ने कहा।
दुकान के नौकर ने रफ कॉपी निकाल कर दी, गल्ले पर बैठे सेठ ने दोनों सामानों का इकठ्ठा मूल्य बता दिया, पर मैंने मुंह ना घुमाया,
"अरे भैया मेरी सिर्फ रफ कॉपी है।" मिताली।
" ऐ लड़के ये लो तुम्हारी पुस्तकें और उसका बिल।"
"हां अंकल जी।"
मुझे लगा वो निकल गई होंगी , पर कहां की निकली; कॉपी को बैग में रख रही थी , हमारी नजरें मिल गई ,
मेरे साथ अचानक में भयानक घट गया,
वो दोनो मुझे देख कर एक दूसरे को ताली देकर हंस पड़ी; मिताली ने कहा
" तू बुक खरीद रहा है ?"
"हां ।"
"क्यूं तुझे क्या जरूरत पड़ गई, तेरे पास तो गाइड होती है ना?"
" बस ऐसे ही वो सन्नी को पढ़ना है, बुक से।"
" अरे वाह! दोस्ती हो तो ऐसी।"
वो बहाने समझ तो गए थे कि खिसियानी बिल्ली खंबा निपोर रही है, लेकिन ना समझ पाई होगी तो वो ये बात कि ये सब उसके लिए ही तो पागलपन कर रहा था।
अब किताबें मिल चुकी थी , नोट्स जुगाड़ने बाकी थे।
"यार सन्नी नोट्स कहां से मिलेंगे , अपनी क्रेडिट तो इतनी खराब है कि कोई अपनी कॉपी भी नहीं देगा हमे।"
" भाई तू चिंता मत कर ये जिम्मेदारी मेरी।"
"यार सच्ची; दोस्त हो तो तेरे जैसा।" मैंने कहा।
" अरे भाई तू ये छोड़ , नई वाली साइकिल पे ध्यान लगा, मुझे भी चलाने देगा ना तू?"
इधर उधर मुंडी घुमा के सन्नी बोला ,
" भाई वो गेयर वाली लेना यार क्या मस्त लगती है।"
" अरे ओ गंगाधर पहले नोट्स तो ला कर दे।"
, दो दिन गुजर गए ,
शाम को जब सन्नी घर आया तो बाहर से ही आवाज़ लगाता हुआ आया ,
"राहुल .... जल्दी बाहर अा .."
मै घबराकर बाहर आया"क्या हुआ ?"
उसने बैग खोला और नोट्स निकाल कर बताए " ढेन टेडेन .. देख, सारे सब्जेक्ट्स के है।"
मैंने ध्यान से देखा सबके आगे पीछे के पन्ने फटे हुए थे।
"तूने ये कैसे फटेले नोट्स लाया रे।"
"देख सबसे मांगा किसी ने कॉपी दी नहीं , तेरे भाई ने ताड़ ली। अब चोरी का माल है आगे के पन्ने फाड़ दिए जिस पर नाम लिखा था।"
चलो पढ़ना तो था , किताबें नोट्स और गाइड अब ज्ञान अर्जन से किसी का बाप नहीं रोक सकता था।
" पर इस बीच एक गड़बड़ बहुत बड़ी हो गई , होशियारी सारी धरी रह गई।",
चक्रव्यूह ....शहनाज की बेलगाम ख्वाहिशें....उसकी गली में जाना छोड़ दिया
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Re: बेकाबू

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5. सब गड़बड़ सडबड़ हो गया

दूसरे दिन जब हम स्कूल गए तो पिंकी रो रही थी,
वो हमारी क्लासमेट थी , मेरे दो डेस्क आगे ही बैठती थी,
"सन्नी ये क्यों रो रही होगी?"
"अरे! ऐसे लोगों से खुद का समान नहीं संभलता मार दिया होगा किसी ने।"
मैंने सन्नी की तरफ़ देखा तो उसने मुझे आंख मारी।
मैं भांप चूका था कि ये कारनामा इसी का है।
" तूने इसी के नोट्स उड़ाए है ना?"
सन्नी ने मेरी तरफ देखा और हां में अपना सर हिलाया।
मैं भी हंस दिया।
इस समय , मै इतना ख़ुदग़र्ज़ हो गया था कि , अच्छा बुरा कुछ समझ नहीं आरहा था , बस एक ही जुनून सवार था फर्स्ट आने का।
जिस तरह आज के ज़माने में हर किसी को किसी भी शर्त पर बस अपना फ़ायदा चाहिए।
हमारी आज कि स्कूल ख़त्म हुई मै पहली बार पूरा होम वर्क करके आया था , मुझे आज स्केल नहीं पड़े बल्कि शाबासी मिली ।
सच पूछो तो आज ज़िन्दगी में पहली बार इज्ज़त क्या चीज़ है उसका स्वाद चखा था ।
शाम को मैंने ट्यूशन जाना छोड़ दिया था ,
घर से बाहर पार्क में बैठ कर सेल्फ स्टडी करना शुरू कर दिया था, ताकि पुराना कोर्स खत्म हो जाए और स्कूल के टीचर्स के साथ साथ अा जाऊं।
जब अगले दिन स्कूल आए तो , आज का मंज़र ही अलग था,
मेरी मिताली रो रही थी , उसका सुबकना मुझसे देखा नहीं जा रहा था,
" सन्नी आज ये क्यों रो रही है?"
" राहुल मुझ पर शक मत कर प्लीज़, सबकी कॉपी ले सकता हूं पर इसकी नहीं, मेरे भाई की ख़ुशी है वो ,उसके साथ गलत नहीं करूंगा।"
" फिर क्यों रो रही है?"
मयंक उसको चुप करा रहा था,
उतने में सर क्लास में आ गए।
"क्यों मिताली बेटा , क्यों रो रही हो?"
मिताली ने सारी बात रोते हुए सर को बता दी ।
सर " पिंकी यहां आओ।"
पिंकी सर के पास अाई,
"तुम इसकी कॉपियां क्यों नहीं लौटा रही हो?"
पिंकी की गर्दन झुक गई ,
" सर, असल में मिताली कि सारी कॉपियां खो गई है मुझसे।"
"क्या ???"
" नेक्स्ट वीक से एग्जाम है , और तुमने उसकी कॉपी खो दी , तुम्हारे जैसी लड़की से ऐसी उम्मीद नहीं कर सकता था मै।"
सर बहुत नाराज़ हुए , इस के बाद पिंकी के आंखों में फिर से गल गले अा गए, और मेरी आंखो में भी।
पूरा माजरा समझ अा गया था, सन्नी ने जो नोट्स पिंकी के बैग से ट्यूशन में चोर लिए थे असल में वो मिताली के थे,
"सन्नी तूने मिताली के नोट्स चोर लिए?"
"नहीं भाई मैंने तो पिंकी के नोट्स ताड़े थे यार।"
उसने हर बार की तरह सोचने के लिए इधर उधर गर्दन झटकी और फिर उसे याद आया;
, "अरे एक गड़बड़ हो गई , आगे का पन्ना फाड़ते वक़्त ये नहीं पढ़ा था कि उस पर नाम किसका लिखा था।"
मैंने कन्फर्म करने के लिए अपने बैग से चुपके से एक कॉपी निकाली और उसमे देखा किसी का नाम नहीं दिख रहा था।
पर जब मैंने कॉपी के पन्ने पलटकर देखा तो एक जगह बहुत छोटे अक्षरों में " M ❤️M " बना हुआ था।
अब दोनों बातें क्लियर हो गई थी, एक तो ये कि कॉपी मिताली की थी, दूसरी ये की मिताली ने मयंक को 'लाइन क्लियर' (रेलगाड़ी को आगे जाने देने का संकेत) दे दिया था।
आज मुझे जिंदगी ने एक सबक सीखा दिया था ,
बुराई का रास्ता हथियार की तरह होता है, जो सामने कौन है देख नहीं पाता ,बस चीरता चला जाता है, जैसे आज हुआ था, पिंकी के साथ बुरा होने पर हंसने वाला दरअसल खुद की जान की जान निकाल चुका था, बुरा किया था पिंकी के साथ, सोचा भी नहीं था हो कुछ ऐसा जाएगा।
मिताली के आंसू की वजह फ़िर एक बार मै ही था,
उसके आंसुओं ने मेरे अंदर के सत्यवादी हरीशचन्द्र को जगा दिया था,
मै खड़ा हुआ और कॉपी को हवा में लहराते हुए कहा
"कहीं ये तो तुम्हारी कॉपी नहीं है?"
उसने मेरी तरफ देखा , फिर पूरी क्लास मेरी तरफ देखने लगी,
मिताली मेरे पास आई और मेरे हाथ से कॉपी ली,
पलट कर देखा आगे का पन्ना गायब , आगे पीछे से फटी उसकी ही कॉपी थी , उसने कॉपी उठाई और एक जोर का तमाचा मेरे गाल पर रख दिया, इस वक़्त गुस्से में वो कराल काली का अवतार नज़र अा रही थी।
सर भी अा गए ,और मुझे मारते हुए प्रिंसिपल के पास ले जाया गया।
प्रिंसिपल ने मेरे घर मां पापा को सूचना भिजवाई,
" अपने लड़के पर ध्यान दें , चोरी करना सीख रहा है पढ़ने में भी , ध्यान नहीं है , स्कूल के दूसरे बच्चे भी आए दिन इसकी शिकायतें करते है , यदि इसका ऐसा ही रवैया रहा तो हमे मजबूरन स्कूल से निकालना पड़ेगा, उसका जिम्मेदार आप और आपका बेटा होगा।"
मार तो हमेशा से खाई थी, पर आज की नैतिक पतन की मार दिल पर असर कर गई।
घर पर भी मां ने खूब पिटाई लगाई कोई सुनने को तैयार नहीं था, होता भी क्यों और सच्चाई भी यही थी कि मैंने बहुत ग़लत काम किया था , भले सन्नी ने किया था पर मेरे कहने पर ही किया था, इसलिए चोर का साथी भी एक चोर ही था।
आज से कसम ली कि ऐसा अब से नहीं करूंगा, लक्ष्य तो पाना है पर सही की राह पर चलकर,
खैर, अब क्या मतलब था इन सब बातों का ,
मिताली के दिल में मेरा नाम अब नफ़रत वाले कॉलम में जुड़ चुका था ।
लेकिन आप सुन लीजिए ! सही का अंजाम भी सही ही होता है ज़रूरी नहीं, यकीन नहीं तो आगे देख लो....,
चक्रव्यूह ....शहनाज की बेलगाम ख्वाहिशें....उसकी गली में जाना छोड़ दिया
बेकाबू....


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