बेकाबू
अप्रैल का वो दिन था जब गर्मी की छुट्टियों में मेरे शुभ चिंतक मेरे मास्टर जी, मेरे घर , मेरे हाल समाचार लेने आए थे।
"नमस्कार मास्टर जी अाइए।" मेरी मां ने उनका अभिवादन कर उन्हें अंदर बुलाया। मै अपने कमरे में बंद होकर खिड़की में से चुपके से देख रहा था।
" अभी ठीक है राहुल?" मास्टर जी ने पूछा।
"हां इलाज़ लग गया है , काफ़ी सुधार है।" मां ने मेरे लिए कहा।
"क्या हुआ अचानक?"
"पता नहीं मास्टर जी ये लड़का अपने सीने में क्या दफ़न करके बैठा है, अब आप ही कुछ पता कीजिए।"
" डॉक्टर ने क्या बताया?"
"बस यही की , उसकी जिंदगी का वो राज़ हम भी नहीं जान सके , अगर वो पता चले तो आगे कुछ स्थाई इलाज संभव हो सके।"
मां ने इशारे से मास्टर जी को मेरे कमरे में जाने को कहा।
मास्टर जी ने मेरे कमरे का दरवाज़ा खटखटाया,
"राहुल दरवाज़ा खोलो देखो मै आया हूं , तुम्हारा शर्मा सर।"
शर्मा सर मेरे लिए भगवान तुल्य थे ,
उन्होंने कभी टीचर स्टूडेंट वाला रिश्ता महसूस ही नहीं होने दिया था, और हर संभव मेरी मदद की थी,
हालाकि उसकी वज़ह ये भी थी कि उन्हें असफल लोग बिल्कुल पसंद नहीं थे , और सफल लोग हद से ज्यादा पसंद थे । तो बात कुछ ऐसी थी कि एवरेज बच्चों के लिए वो जीतने के खतरनाक थे उतने ही पढ़ने लिखने वाले बच्चों के प्रिय हुआ करते थे।
मैंने बड़ी मुश्किल से दरवाज़ा खोला ,
वो मेरे कमरे में अंदर आए , मेरे सर पर हाथ फेरा मैंने भी उनके पैर छुए ,मास्टर जी मेरे पलंग के पास रखे स्टूल पर बैठ गए,
"आओ मेरे शेर बैठो मेरे पास।"
मै जा कर चुप चाप उनके पास बैठ गया मेरी आंखे ज़मीन पर गड़ी हुई दांए बांए नाच रही थी,
"कैसे हो ?"
" अच्छा हूं, और आप?"
" मै भी ठीक हूं।"
"इतने समय से शहर वापस आ गए , मुझे बताया नहीं तुमने?"
मेरी धड़कने बढ़ने लगी , क्यों फिर वही सवाल किए जा रहे कोई क्यों मुझे अकेला नहीं छोड़ देता।
" मै बस सोच ही रहा था मिलने आने की।" मैंने ठिठकती हुई आवाज़ में झूठ बोला ताकि अपनी कमज़ोरी छुपा सकूं।
" वो ऑफिस से फ़ोन आ गया कि छुट्टी से वापस आ जाओ।"
" अच्छा ठीक है चले जाना थोड़े दिन और रुकलो , तुम्हे अपना ये शहर अच्छा नहीं लगता क्या?"
मेरी मां ने मास्टर जी को सब बता रखा था , शायद वो जानते थे कि मै झूठ बोल रहा हूं लेकिन मेरी हालत को देखते हुए उन्होंने ऐसा उत्तर दिया था ,
" मै आज ये जानने आया हूं कि ऐसी कौन सी आंधी थी जिसे मेरा सबसे काबिल स्टूडेंट झेल ना सका और टूट गया?"
" सर आपका काबिल स्टूडेंट टूटा नहीं आंधी के साथ अपना वजूद खो कर चल दिया।"
" तुमने कभी महसूस किया कि तुम मेरा गुरूर थे, तुम्हारी मिसालें दि है मैंने , तुम्हारे जूनियर्स को।"
मास्टर जी मेरी हालत पर तरस भी खा रहे थे , और अन्दर मेरे , सफल ना होने का मलाल और नाराज़गी भी दिल के संदूक में से बाहर आने को कर रही थी ,पर उसका आज कोई इलाज़ ना था, क्योंकि इलाज़ कैसे किया जाए वो सिखाते तो थे , पर जिंदगी की मुश्किलों का डॉक्टर बनना स्टूडेंट के अपने हाथ में होता है।
फ़िर से सवाल दोहराया "बेटा !आज मै तुमसे बस इतना जानने आया हूं कि ये हाल हुआ कैसे तुम्हारा , मै तुमसे वादा करता हूं कि तुम्हारे बारे में कोई धारणा नहीं बनाऊंगा ?"
मुझे थोड़ा सहज महसूस नहीं हो रहा था क्योंकि जो कुछ भी मेरे साथ घटा था, उसे अपने टीचर के सामने रखा नहीं जा सकता था।
मास्टर जी ने कहा "मत घबराओ मै किसी से कुछ नहीं कहूंगा, चाहो तो अपनी आंखे बंद कर लो , और यूं मान लो कि अपने किसी अजीज मित्र के सामने बैठे हो।"
मैंने अपनी आंखे बंद की और कुछ बोलता उसके पहले अचानक मुझे फिर से घबारहट शुरू हो गई,
मैंने घबराकर अपनी आंखे खोल ली ,
"राहुल तुम एक बहादुर बच्चे हो , कोशिश करो साहस करो बताने कि ये बात इस कमरे से बाहर कभी नहीं जाएगी , मै वादा करता हूं।"
मैंने फ़िर आंखे बंद की और हिम्मत जुटाई और बोलना शुरू किया। इतने समय से दफ़न राज़ पहली बार किसी के सामने आने वाला था,
"अक्सर हमारी जिंदगी कल्पनाओं और वास्तविकताओं के बीच संघर्ष की कहानी होती है.."
मेरे शब्द लड़खड़ाने लगे और मै चुप होगया ।
" बेटे चुप क्यूं हो गए , बताओ आगे , हो सकता है तुम्हारी आप बीती किसी का भला कर जाए, किसी का कैरियर बचा ले।"
मास्टर जी की ये बात मेरे जेहन में उतर गई , यदि मेरी आप बीती मेरी तरह के युवाओं को सही राह दिखा सकती थी, तो हर हाल में सब कुछ बताऊंगा मै। ,